Hindi Sex Story ठाकुर की हवेली - SexBaba
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Hindi Sex Story ठाकुर की हवेली

hotaks444

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Nov 15, 2016
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हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक ओर नई कहानी लेकर आपके सामने हाजिर हूँ तो कहानी का मज़ा लीजिए

धाम धाम ढोल बाज रहे थे जिन्हे 7-8 लोग बजा रहे थे और उनके पीछे दो तगड़े ग्रामीण एक मरे हुए बाघ को एक मोटी लकड़ी से बँधे ढोते चले आ रहे थे. उनके पीछे एक बहोत ही रॉबिला व्यक्ति घोड़े पर सवार था. उसके कंधे से बंदूक झूल रही थी जैसे उसीने उस बाघ को मारा हो.

18 वर्ष का रणबीर उस रोबीले व्यक्ति के पीछे चल रहा था. ठाकुर जब भी शिकार के लिए निकलता था उसे कुछ आदमियों की ज़रूरत पड़ती थी जिनका बंदोबस्त ठाकुर के मुलाज़िम ही गाँव के बेकार बैठे नवयुवकों को पकड़ कर दिया करते थे. ऐसा ही एक युवक रणबीर था.

"देखो... मालिक ठाकुर सॉह्ब ने आज एक शेर को मार गिराया." एक साधारण सा दीखने वाले किसान ने दूसरे किसान से कहा."

ये कारवाँ ठीक गाँव के चौपाल मे आकर रुक गया और वृढ ठाकुर अपने घोड़े से नीचे उत्तर आया.

"गाओं वासियों आज हम बहोत खुश है की इस नौजवान की वजह से हुमने ये शेर मार गिराया." वृढ ठाकुर ने रणबीर की तरफ देखते हुए अपनी रॉबिली आवाज़ मे कहा.

"कौन है इस इस नौव्जवान के मा-बाप" ठाकुर की रोबिली आवाज़ एक बार फिर चौपाल मे गूँज उठी.

तभी एक ग़रीब आदमी भीढ़ से निकल कर ठाकुर के सामने आकर खड़ा हो गया.

"बाबा....." उस आदमी को देख रणबीर के मुँह से अपने आप निकल पड़ा.

"ये मेरे बाबा है मालिक." रणबीर ने ठाकुर की और मुड़ते हुए कहा.

"तुम्हारा लड़का तो बहोत बहादुर है... अकेले ही इस शेर से भीड़ गया और इसने हमारी जान बचा ली. रणबीर की ज़रूरत हवेली मे है. हमे रणबीर की ज़रूरत है और आज हम तुमसे तुम्हारा बेटा अपने साथ ले जाने आए है..... क्या तुम हमे अपना बेटा दोगे?" ठाकुर ने कहा.

"आप ही का बच्चा है हज़ूर, अगर हवेली मे रहेगा तो कुछ सीखेगा नही तो यहाँ आवारा लड़कों के साथ रहेगा तो बिगड़ जाएगा."

"तो ठीक है... आज से रणबीर हवेली मे काम करेगा हमारे साथ." कहकर ठाकुर ने रणबीर के कंधों पर हाथ रखा और साथ चलने का इशारा किया.

"बाबा... हम जाएँ?" रणबीर ने अपने बाप के लगभग पैरों मे गिरते हुए पूछा.

"जा बेटा... ठाकुर साहेब की खूब सेवा करना और खूब मन लगाकर काम करना और जब भी बाबा की याद आए तो मेरे पास आ जाना, पास ही तो है हमारा गाओं. " उस वृढ ने रणबीर को सीने से से लगा लिया और उसके माथे को चूम कर उसे विदा किया.

ठाकुर का कारवाँ गाँव के चौपाल से चल कर एक विशाल हवेली के सामने जाकर रुक गया. रणबीर उस हवेली को निहारे जा रहा था. ठाकुर घोरे से नीचे उतरा और रणबीर को हवेली के अंदर ले गया. हवेली भीतर से बहोत ही शानदार थी और ऐशो आराम के तमाम खूबसूरतियों से साजी हुई थी.

"आओ हमे तुमसे कुछ कहना है," ये कहते हुए ठाकुर ने अपनी दराज़ से एक बहोत ही सुन्दर खंजर निकाला.

"ये लो तुम्हारी बहादुरी का इनाम."

रणबीर कुछ हिचकिचाया तो ठाकुर ने बड़े स्नेह से कहा, "रख लो.... ये तुम्हारी बहादुरी की पहचान है. बहुत सुंदर है ना...?"

"हां ठाकुर सॉह्ब.... बहोत सुंदर है." रणबीर ऐसा तोहफा पाकर बहोत खुश था.

"तो ठीक है आज से तुम हमारे ख़ास आदमी हुए... हमारी रक्षा करना और जो हमसे गद्दारी करे या फिर हमारा सामना करने की जुर्रत करे ये खंजर उसके सीने मे उतार देना."

"जी ठाकुर सहाएब." रणबीर ने झुकते हुए कहा.

ठाकुर बहोत खुश था की उसे एक ईमानदार और बहादुर नौवकर मिल गया है जो जीवन भर उसकी चाकरी करेगा.

"भानु... इधर आओ." ठाकुर ने पास ही खड़े एक मुलाज़िम को आवाज़ डी.

"जी मालिक." भानु ठाकुर के सामने आया और लगभग ठाकुर के कदमों को देखता दोहरा हो गया.

"आज से ये तुम लोगों के साथ पीछे वाले मकान मे रहेगा.... इसका ख़याल रखना... समझे? यह थक गया होगा, इसके खाने पीने का और आराम का बंदोबस्त करदो." ठाकुर ने कहा.

"जी मालिक." ये कहते हुए भानु रणबीर को अपने साथ ले हवेली से निकल पड़ा.

भानु रणबीर को लेकर अपने घर पहुँचा. यहाँ भानु अपने विधुर पिता रामानंद, अपनी चाची मालती को करीब 35 साल के थी और अपनी 17 साल की जवान बीवी सूमी के साथ रह रहा था.

भानु और सूमी दोनो ही अभी किशोरे अवस्था मे थे पर गाओं मे शादियाँ जल्दी हो जाती थी. भानु ने रणबीर का परिचय अपने घर के सदस्यों से करवाया. बातों बातों मे रणबीर को पता चला की मालती ने अपने पति को छोड़ दिया है और उसके बाद वो अपने जेठ के घर मे ही रह रही है.
 
भानु की शादी भी एक साल पहले ही हुई थी और उसने बहोत जोश के साथ अपनी बीवी का परिचय करवाया, लेकिन भानु एक बात पर ध्यान नही दे पाया उसकी चाची भी इस मस्त लौडे मे पूरी दिलचस्पी ले रही है.

सूमी भी रणबीर से काफ़ी प्रभावित दीख रही थी, जबसे उसने सुना था की वह निहत्था ही शेर के सामने कूद पड़ा था और शेर को काबू मे कर उसेन ठाकुर के जान बचा ली थी. दूसरा उसका पति गान्डू क्सिम का मर्द था जो अक्सर उसकी गांद मारता रहता था.

भानु जो पक्का लौडे बाज था रह रह कर रणबीर के गथिले शरीर को देखे जा रहा था . वह सोच रहा था की कैसे इस नौजवान लौडे के लंड और गांद का मज़ा लूटा जाए.

तभी भानु रणबीर को ले नदी की तरफ चल पड़ा. मालती भी कांख मे एक घड़ा दबाए उनके पीछे चल डी. नदी पर पहुँच कर रणबीर ने अपना कुर्ता उतार दिया और केवल एक लोंगोट मे नदी मे स्नान के लिए उत्तर पड़ा. रणबीर का बालों भरा सीना और गथिला बदन देख मालती कसक पड़ी. उसकी कई दीनो से प्यासी चूत मे टीस उठने लगी पर क्या करती बेचारी अपने शादी शुदा भतीजे के सामने नंगी तो नही हो सकती थी. उधर भानु का भी लंड रणबीर के पुत्थे और लंगोट मे लंड का उभार देख मचल उठा था.

रणबीर काम के स्वाद से अंजान नही था. गाओं के आस पास के मिलन सार माहॉल मे वह कुछ रिश्ते की भाबियों को चोद चुका था. जब से उसने सूमी को देखा वो अपने भाग्या पर फूले नही समा रहा था. वो ये बात अछी तरह से जानता था की ये केवल समय की बात है, उसे जल्दी ही सूमी और मालती की चूत मिलने वाली है.

उसे अपने लंड पर बड़ा नाज़ था, वो अछी तरह जनता था की गाओं की जवान लड़कियाँ की बात तो छोड़िए गाओं की अधेड़ औरतें भी उसे देख कर आहें भरा करती है, जो एक बार उससे चुद जाती थी वो उसी की होकर रह जाती थी.

रणबीर ने रात का खाना रामानंद के साथ किया. खाना खिलाते समय मालती उसे बहोत ही आग्रह के साथ परोस रही थी. रणबीर का खाना ज़रूरत से ज़्यादा हो गया. घर मे और कमरे नही थे इसलिए उसका बिस्तर रसोई घर मे ही लगा दिया गया.

थोड़ी ही देर मे नींद ने उसे आ घेरा और सपने मे सूमी मचलने लगी ना जाने रात मे कब उसकी लंगोट खुल चुकी थी. और उसका मचलता लंड बाहर आ गया था. जब उसे होश आया पूरा बिस्तर चिप चिपा हो चुका था. उसे कुछ सुस्ती भी लग रही थी और उसका बिल्कुल भी मन नही कर रहा था की वो बिस्तर को सॉफ करे. वो फिर नींद की दुनिया मे खो गया और सुबह ही उसकी आँख खुली.

दूसरे कमरे मे मालती की उससे भी बुरी हालत थी. वो सारी साया ब्लाउस सब खोल नंगे हो गयी. उसने अपनी दोनो जांघों के बीच भरा पूरा जंगल उगा रखा था. कई देर तक उसकी उंगलियाँ उस जंगल बे भ्रमण करती रही फिर गहराई मापने लगी.

आज उसे अपने पति को छोड़े पाँच साल हो गये थे. इन बरसों मे वह प्यासी ही रही. पर आज रणबीर को देख उसका मन ही बस मे नही था. उसने कई बार जवान भतीजे भानु को भी मौका दिया पर वह था की कभी भी चाची को उस नज़र से नही देखा.

वो सोच रही थी की उसे चाहे कुछ भी करना पड़े वो रणबीर को पा के रहेगी. यह विचार आते ही उसकी उंगलियाँ की रफ़्तार चूत मे बढ़ गयी. उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी. है रन्न्न्न्न्वीएर करती वो तृप्त होकर नींद की दुनियाँ मे चली गयी.

उधर सूमी के साथ जो रोज होता था वही हो रहा था, भानु उसकी गन्द मारकर आराम से नींद मे खर्राटें ले रहा था. रणबीर को देख कर उसकी झांतों मे पहले ही आग लगी हुई थी और उपर से उसका पति उसे मझदार मे छोड़ कर अर्राम से सो रहा था. भानु के मस्त शरीर को देखकर शादी के दिन वो बहोत खुश हुई थी पर सुहग्रात की रात ही उसे मायूस होना पड़ा था.
 
उस रात भानु ने वो जोश नही दीखाया जो वो अपनी सहेलियों से सुनती आई थी. सुहग्रात के दिन भानु उसके नंगे शरीर से कई देर तक खेलता रहा पर जब उसनेउसकी चूत मे लंड डाला तो दो तीन धक्के लगा कर उसे मझधार मैं ही छोड़ शांत हो गया. पहली ही रात को वो तड़पति रह गयी.

दो दिन बाद ही जब उसने अपने पति को घर के पीचवाड़े पड़ोस के एक लड़के का लंड चूस्ते देखा तो वो अपना मन मसोस कर रह गयी. पर आज उसके शरीर की ज्वाला धधक रही थी जो शांत होने का नाम ही नही ले रही थी. उसने अपनी चूत अपने सोए पति के मुरझाए लंड से रगड़नी शुरू कर दी. और अपने पति की जीभ को अपने मुँह मे ले ली.

भानु सूमी की हरकतों से जाग पड़ा और उसे अपने दूर धकेलते हुए गुस्से से बोला, "मेने तुम्हे कितनी बार समझाया की मुझे ये सब अच्छा नही लगता?"

"तो क्या अच्छा लगता है, दूसरे लड़कों का लंड चूसना? सूमी भी गुस्से से बोल पड़ी.

"कह लिया अब चुप चाप सो जा और मुझे परेशन मत्कर." भानु भी आधी रात को सूमी से बहस नही करना चाहता था.

भानु करवट बदल कर सो गया और सूमी वैसे ही चूत की आग मे सुलगती रही. उसने घृणा भरी नज़रों से अपने पति की और देखा और उसकी तरफ पीठ कर के सो गयी.

दूसरे दिन रणबीर सुबह जल्दी ही उठ गया और रोज़ की तरह कमर पर लंगोट कस कसरत करने लगा. लंगोट मैं कसे आंडों का स्पष्ट उभार नज़र आ रहा था. मालती भी जल्दी उठ गयी थी क्योंकि घर का काम ख़तम कर उसे हवेली जाना था. जैसे ही वह नहाने के लिए स्नान घर की और मूडी उसने रसोई से कुछ आवाज़ें सुनी.

उसने रसोई मे झाँक कर देखा तो रणबीर लंगोट कस कर कसरत कर रहा था. उसकी लचौड़ी चौड़ी जंघे और लंड का उभार देख कर मालती एक आह भर के रह गयी.

घर मे अभी भी सब सो रहे थे और मालती जानती थी की एक घंटे के पहले कोई उठने वाला नही है. मालती ने तुरंत एक प्लान बनाया और दबे पाँव रणबीर के पीछे आ गयी. इस समय वो सिर्फ़ पेटिकोट और ब्लाउस पहने हुए थी.

पहले तो उसने अपना ब्लाउस खोला और फिर पेटिकोट का नाडा खींच दिया और वो मदरजात नंगी हो गयी. रणबीर को कुछ भी पता नही था वो तो अपनी धुन मे कसरत किए जा रहा था.

तभी मालती बिल्कुल उसके सामने नंगी आ गयी. एक बार तो रणबीर हक्का बक्का रह गया फिर उसने मालती से पूछा, "आप चाचीजी इस हालत में?"

मालती आगे बढ़ कर उसके पास आ गयी और उसे अपनी बाहों मे जाकड़ लिया. वो अपनी बड़ी बड़ी चुचियाँ रणबीर के सीने पर रगड़ने लगी. मालती की इस हरकत पर रणबीर का लंड लंगोट फाड़ बाहर निकलने को मचल उठा.

"मुझे अपनी बना लो रणबीर.... में आज तुम्हे पाना चाहती हूँ."

"बहुत बड़ा है तुम्हारा... तुम्हारी सूरत देख कर लगता नही की इतना बड़ा लंड होगा तुम्हारा." मालती उसके लंड को अपने हाथों मे पकड़ते हुए बोली.
 
मालती ने फिर उसकी लंगोट को एक झटका दिया और रणबीर भी मालती की तरह पूरी तरह से नंगा हो गया.

मालती अब उसके लंड को अपनी मुथि मे ले मसल्ने लगी थी.

अब तक रणबीर अपने आप पर काबू पा चुका था, उसे अछी तरह पता था की मालती जैसी अधेड़ औरतों से कैसे पेश आया जाता है, उसने कुटिलता से कहा, "ये मस्त लंड तभी अछा लगेगा जब तुम इसे अपनी जीब से चाटोगी और मुँह मे लेकर इसे चूसोगी."

"क्यों लंड चूसवाना है तुम्हे?" मालती ने उसके लंड से खेलते हुए पूछा.

"मज़ा तो तभी आएगा जब में तुम्हारी चुदाई करूँगा....चूसवने के बाद...." अभी भी बहोत कोरी है तुम्हारी चूत." रणबीर ने

मालती की झांतों से भरी चूत पर हाथ रख दिया और चूत मे एक उंगली घुसाते हुए कहा.

"बहुत दीनो से इसी किसी ने नही चोदा इसलिए थोड़ी कोरी है."

फिर मालती रसोई के कोने मे लगे रणबीर के बिस्तर पर चिट लेट गयी और रणबीर को निमंत्रण देते हुए अपनी टाँगें खोल दी. रणबीर ने भी कोई देर नही की और 35 साल की चाची के भोस्डे मे एक ही थाप मे पूरा लंड डाल दिया.

रणबीर की जोरदार ठप से मालती चाची छटपटाने लगी, तभी रणबीर ने पूछा, "क्या दर्द हो रहा है.... आहिस्ता चोदु क्या?"

"नही और जोरों से चोदूऊऊओ राअज़ा, बहोट मज़ा आ रहा हाईईईई...में तो तुम्हे देखते ही पागल हो गइईए थी... और कब से तुम्हारा लंड अपनी चूत मे लेने के लिए बेचैन थी......" ये कहकर मालती ने रणबीर को अपनी बाहों मे जाकड़ लिया और नीचे से अपने भारी भारी चूतड़ उछाल ठप पर ठप लगाने लगी.

रणबीर कई देर तक उसे ऐसे ही जोरों से चोद्ता रहा.

"म्‍म्म्मममममम में तो झड़ीईई........ ओह्ह्ह अहह."

जैसे ही मालती की चूत ने पानी छोड़ दिया रणबीर ने उसे पलट कर चौपाया बना दिया. जब तक मालती कुछ समझ पाती रणबीर उसपर सांड की तरह चढ़ बैठा और उसकी गंद के छेद पर अपने लंड का सूपड़ा फिट कर दिया.

ऑश ये मत करो प्लीज़ दर्द होगा ....." तभी मालती की समझ मे आया की आगे क्या होने जा रहा है और वो तुरंत बोल पड़ी.

"चुप कर रंडी में तुहरि जैसी औरतों को जब भी चोद्ता हू उनकी गांद ज़रूर मारा हूँ. साली चूत का तो भोसड़ा बना रखा है, पता ही नही चलता की लंड कहाँ घूस गया. अब खुद मज़ा ले लीयी तो नखरे कर रही हो. ऐसा कह मालती के रस से लथपथ लंड का एक करारा शॉट उसकी गंद मे दिया और लंड उसकी गंद को चीरता हुआ आधे से ज़्यादा एक बार मे अंदर चला गया. मल्टी के मुँह से एक घुटि घुटि से चीख निकल पड़ी.

पर रणबीर ने उसकी चीख की कोई परवाह नही की और दो धक्कों मे पूरा लंड उसकी गांद मे पेल मज़े से उसकी गंद मारने लगा. मल्टी ने कस के अपना जबड़ा भींच लिया था, उसकी आवाज़ बाहर ना निकल पाए और उसने आपने आप को रणबीर की मर्ज़ी पर छोड़ दिया.

रणबीर ने कई देर तक उसकी गंद मारी और ढेर सारा गाढ़ा वीर्या उसकी गंद मे छोड़ रहा था. तब रणबीर ने कहा, "मुझे माफ़ कर दो ये मेरे बस की बात नही थी. जिस तरह मुझे देख कर तुम्हारी चूत मे आग लगी हुई थी वैसे ही तुम्हारी फूली गांद देख कर मेरा लंड भी मेरे बस मे नही था.

मालती किसी तरह अपनी अंगो को फैलाए उठी और अपने कपड़े पहन रणबीर को घूरती हुई बाथरूम की और भाग पड़ी.
 
रणबीर सुबह काफ़ी देर तक सोता रहा और तभी एक मधुर सुरीली आवाज़ से उसकी नींद टूटी.

"चाइ ले लीजिए," रणबीर ने अपनी पलकें मसल्ते हुए आँख खोली तो देखा की सूमी चाइ की प्याली लिए उसके सामने खड़ी थी. दिन काफ़ी चढ़ आया था, रणबीर ने कहा, "मुझे पहले क्यों नही उठाया?"

"आप जल्दी से नहा कर तय्यार हो जाइए, आपको इनके साथ हवेली जाना है," सूमी ने मधुर आवाज़ मे कहा.

"इनके?" रणबीर ने एक शरारत भरी नज़रों से सूमी की आँखों मे झाँकते हुए कहा.

"मेरा मतलब है की मेरे पति के साथ... " सूमी ने थोडा मुँह बिचकाते हुए कहा.

रणबीर ने सूमी के हाथ से चाइ की प्याली ले ली और धीरे धीरे चाइ की चुस्कियाँ लेता रहा.

दोनो कई देर तक खामोश रहे, कोई भी कुछ नही बोला सिर्फ़ एक दूसरे की आँखों मे झँकते रहे. जब रणबीर की चाइ ख़तम हो गयी तो सूमी उसके हाथ से चाइ की प्याली ले जाने लगी तभी रणबीर ने उसका हाथ पकड़ लिया.

"क्या हुआ?" सूमी ने घूमते हुए उसकी आँखों में झाँक कर पूछा और अपनी कलाई रणबीर के हाथों से छुड़ाने की कोशिश करने लगी.

"कुछ नही भाभी बस दिल कर रहा है की तुम्हे देखते जाउ."

"क्यों ऐसा क्या है मुझमे?" सूमी ने अपना हाथ रणबीर के हाथों मे ढीला छोड़ते हुए कहा.

तभी बाथरूम से भानु की आवाज़ आई, वो सूमी का नाम ज़ोर ज़ोर से ले पुकार रहा था.

"जल्दी से मेरा हाथ छोड़ो नही तो वो आ जाएँगे." सूमी ने दरवाज़े की तरफ देखते हुए कहा.

"ऐसे कैसे छोड़ दूं भाभी.... अभी अभी तो आग लगी है." रणबीर ने अपनी बात कहने मे कोई देर नही की.

"अभी नही रात को.... सात बजे पीछे वाले खेत पर आ जाना फिर ये हाथ दे दूँगी पकड़ने के लिए." सूमी की भी सोई हुई भावनाए अब पूरी तरह जाग चुकी थी और उसने झट से प्लान बनाते हुए कहा.

"सच में भाभी?"

"सच मे... में भी चाहती हूँ की आप मेरा हाथ पकड़े.... मुझे प्यार करें." सूमी ने कहा.

"अभी क्यों नही..." रणबीर ने सूमी को अपनी बाहों मे भरते हुए कहा.

"अभी नही.... क्योंकि अभी वो नहा रहे है.... अब छोड़ो भी मुझे आती हूँ ना रात को.... "सूमी ने अपनी कलाई छुड़ाने के लिए कहा, पर रणबीर का हाथ उसकी कठोर चुचि पर आ चुका था.

उसने सूमी की चुचि को जोरों से मसल दिया और उसकी थोड़ी को उपर कर उसके होठों का एक तगड़ा सा चूमा ले लिया और एक बार फिर उसकी चुचि को कस कर दबा दिया.

"आआआअ..... ईईईई" सूमी के मुँह से सिसकारी निकल पड़ी और रणबीर के हाथों से अपनी कलाई छुड़ा वो रसोई से भाग खड़ी हुई.

रणबीर ने जल्दी जल्दी स्नान किया और भानु के साथ हवेली जाने के लिए तय्यार हो गया.

जब वो दोनो हवेली पहुँचे तो ठाकुर उन्ही का इंतेज़ार कर रहा था.

"अक्च्छा हुआ रणबीर तुम आ गये... रात कैसी गुज़री?" ठाकुर ने पूछा.

"ठीक ही गुज़री ठाकुर साहब."

"तो चलो आज फिर शिकार पर चलते है," ठाकुर ने कहा.

"शिकार पर आज फिर?"

"हां...... शिकार पर... हमे जिंदगी मे बस एक ही शौक तो है..

शिकार करने का."

"लेकिन हम कल ही तो शिकार पर से वापस आए है," रणबीर ने फिर कहा तो ठाकुर ने एक कड़ी नज़र से उसे देखा और फिर ठाकुर भानु की तरफ देखने लगा.

"कोई बात नही.... आज हम फिर शिकार पर जाएँगे.." इस बार ठाकुर की आवाज़ मे कॅडॅक्पन और एक गुस्सा था.

"लेकिन....." रणबीर ने कुछ कहना ही चाहा था की भानु ने उसे कोहनी मारी. समय की नाज़ूकटा समझते हुए रणबीर चुप हो गया.

रणबीर समझ चुका था की शिकार पर जाने का मतलब था की आज रात सात बजे वो सूमी से नही मिल पाएगा.

"तो ठीक है.... आज हम शिकार पर जाएँगे

"जी.... आज हम शिकार पर जाएँगे." रणबीर ने ठाकुर के सामने झुकते हुए कहा और सोचने लगा, सूमी आज नही तो फिर कभी तो मिलेगी जाएगी कहाँ.... चूत की खुजली होती ही ऐसी है.

"ठीक है... हम ज़रूर जाएँगे," ठाकुर भानु की और मुड़ा और कहा," अपने साथ 3-4 आदमी और ले लेना हम शाम को ठीक 5.00 बजे निकल जाएँगे."

"जैसे आपका हुकुम सरकार," रणबीर और भानु ने झुक कर सलाम किया और वहाँ स निकल पड़े.

"ठाकुर साहेब से क्यों ज़बान लड़ा रहा था, अगर तुम्हारी जगह और कोई होता तो ठाकुर साहेब उसकी चॅम्डी उड़ेध कर रख देते." भानु ने रणबीर से कहा.

रणबीर अपने आप मे खोया चुप चाप भानु के साथ चलता रहा.
 
"तू पागल है जो ठाकुर साहेब से क्यों पूछता है? भानु ने फिर कहा.

तभी रणबीर और भानु को मालती चाची दीखाई पड़ी जो एक कमरे मे जा रही थी.

रणबीर ने पूछा, "ये मालती चाची यहाँ क्या कर रही है?"

"वो इस हवेली मे ठकुराइन की सेवा करती है." भानु ने जवाब दिया.

"तो ठाकुर ने ठकुराइन भी पाल रखी है?"

"हां... हमारे ठाकुर साहेब भी बड़े रंगीन मिज़ाज के हैं. एक बार शिकार पर गये थे और आए तो अपनी बेटी की उमर की एक लड़की साथ ले आए. कहने लगे की उन्हे इस हवेली का वारिस चाहिए... "

"और कौन कौन है ठाकुर साहब के खानदान मे?" रणबीर ने भानु से पूछा.

"बस एक बेटी है जो सहर मे डॉक्टोरी पढ़ रही है." भानु ने जवाब दिया. "कभी कभी आती है यहाँ पर, इस बार होली पर आएगी.... वो ठाकुर की पहली बीवी से है... मंज़ुलिका नाम है उसका."

"कितनी उमर की है ये ठकुराइन?" रणबीर जवान ठकुराइन के बारे मे जानने को उत्तावला हो रहा था.

"यही कोई 24-25 साल की बस."

"और कितने दिन पहले हुई थी इनकी शादी?"

"दो साल पहले." भानु ने रणबीर को बताया.

"दो साल हो गये शादी को लेकिन अभी तक ठाकुर साहेब को कोई औलाद नही हुई?" रणबीर के चेहरे पर एक शैतानी भरी मुस्कुराहट थी.

"तुम कहना क्या चाहते हो?" भानु रणबीर की आँखों मे झँकते हुए बोला.

"कुछ नही में तो यूँ ही पूछ रहा था... क्या नाम है इस ठकुराइन का?"

भानु रणबीर के बिल्कुल पास आ गया और उसके कान मे फुसफुसते हुए बोला, "रजनी नाम है इस ठकुराइन का."

"रजनी.... बड़ा प्यारा नाम है." रणबीर बदबूदा उठा.

"तू मरेगा किसी दिन... यहाँ हवेली मे ठकुराइन का नाम नही लिया जाता... कोई सुन लेगा तो जान के लाले पड़ जाएँगे." भानु ने उसे समझाते हुए कहा.

तभी मालती उस कमरे से बाहर आई और रणबीर और भानु को देखा तो झट कमरे मे वापस चली गयी और दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया.

"क्या हुआ तू वापस कैसे आ गयी?" ठकुराइन करवट के बल पलंग पर लेटी हुई थी पर जैसे ही उसने मालती को अंदर आते देखा तो पूछा.

"कुक्ककच... नाआहिन..... वो..ह़ बाहर खड़ा है." मालती ने काँपते हुए कहा.

"अरे कौन खड़ा है? कुछ नाम पता भी तो होगा उसका?" ठकुराइन ने पूछा.

"वही जिसने आज सुबह मेरी गांद फाड़ कर रख दी थी." मालती अभी तक रणबीर से डरी हुई थी.

"अक्च्छा. वो जो ठाकुर साहेब का नया वफ़ादार नौकर है..... क्या नाम है उसका?" ठकुराइन की दिलचस्पी रणबीर मे बढ़ने लगी.

"जीए.... रणबीर...." मालती ने जवाब दिया.

"ये रणबीर दीखने मे कैसा है?" ठकुराइन ने पूछा.
 
मालती वैसे तो हवेली की नौकरानी थी और ठकुराइन की सेवा करती ही थी लेकिन ठकुराइन उसे अपनी सहेली ज़्यादा मानती थी. रजनी को मालती के साथ सेक्सी और गंदी गंदी बातें करने मे बहोत मज़ा आता था.

शुरू मे तो ठकुराइन से 10 साल बड़ी मालती काफ़ी शरमाती थी पर रजनी ने उसे उकसा उकसा कर उसकी सारी झिझक ख़तम कर दी थी.

"मालकिन क्या बताउ, शकल से दीखने मे बहोत भोला लगता है, लेकिन साले ने अपने घोड़े जैसे लंड से मेरी गंद फाड़ कर रख दी.

रजनी ये बात इतनी दयनीए स्वर मे कहा की रजनी उसकी बात सुनकर गरम हो गयी.

"तेरी चूत भी तो चोदि थी उसने और क्या गंद भी मारता रहा?"

रजनी पेट के बल हो गयी थी और मालती से बातों का मज़ा लेना चाह

रही थी.

"मालकिन चोदने मे तो बहोत बड़ा उस्ताद है पर साले ने मेरी गंद चील कर रख दी. गंद मारने के पहले उसने एक बार चुदाई भी की थी." मालती ने अपनी गंद सहलाते हुए कहा.

फिर बात को बदलते हुए बोली, "आज ठाकुर साहब ने दावा खाई?" मालती ने टेबल पर पड़ी दवा की शीशी की तरफ इशारा करते हुए पूछा.

"दवा तो रोज़ ही खाते है पर फ़ायदा क्या, हर बार की तरह आज भी फिसल गये." रजनी ने नामार्द ठाकुर की हँसी उड़ाते हुए कहा.

"क्या लंड खड़ा हुआ था उनका?" मालती भी रंग मे आ गयी और खुले शब्दों मे पूछा.

"कहाँ साला खड़ा ही नही होता, हरदम सोया ही रहता है," दोनो इस बात पर हँसने लगी फिर रजनी ने पूछा, "रणबीर का लंड कैसा है दीखने मे?" इतना कहकर रजनी मालती के सामने पालती मार कर बैठ गयी.

"बहुत तगड़ा और मोटा लंड है साले का.... गोरा भी काफ़ी है पर साले ने बिना तेल के ही मेरी गंद मार दी.... अभी तक गंद मे दर्द हो रहा है."

"रणबीर का लंड चूसा था तूने?" रजनी ने पूछा.

"हां चूसा था... पहले तो जैसे ही मेने उसकी लंगोट उतारी उसने लंड को मुँह मे देकर ही चुदाई के खेल की शुरुआत की." मालती ने ऐसा कह रजनी का पल्लू नीचे गिरा दिया जिससे ठकुराइन की मस्त चुचियाँ ब्लाउस मे क़ैद उसके सामने आ गयी.

"कैसा लगता था उसका लंड चूसने मे?" रजनी ने आँखे बंद करली और मालती उसके ब्लाउस के हुक खोलने लगी.

"बहुत अक्च्छा लगा था मालकिन... क्या मोटा और लंबा लंड था... मेरे गले तक आ गया था... स्वाद भी अक्च्छा था थोडा नमकीन.... " मालती ने रजनी का ब्लाउस उत्तरते हुए कहा.

रजनी की मस्त और भारी भारी चुचियों सफेद ब्रा मे क़ैद थी. फिर दोनो एक दूसरे के आगोश मे समा गये. अब मालती ने ब्रा भी ठकुराइन के बदन से अलग कर दी और वा कमर से उपर तक नंगी हो गयी.

"ऑश मालती कितना रस है तेरी बातों मे.... कैसे चूसा था उसका लंड तूने..... देख ना लंड तो तूने चूसा था और गीली में हो रही हूँ.....बताओ ना?" रजनी ने मालती से पूछा और अपने खड़े हुए निपल को मालती के मुँह मे दे दिए.

"ऐसे... " ये कह कर मल्टी ने अपनी मालिकिन की चुचि को एक बच्ची की तरह चूसने लगी.

"ऑश ज़ोर से चूवसूऊ मालती बहुत हही अककचा लग रहा है.....जैसे तूने उसका लंड चूसा था वैसे ही अब मेरी चुचियों को भी चूस" फिर रजनी ने मालती को अपनी बाहों मे ले लिया और बोली, "चल अपनी गंद दीखा... देखने दे कैसे मारी है मेरी सहेली की फूली हुई गंद.." रजनी उसकी गंद पर हाथ रखते हुए बोली, "सच मालती अगर में मर्द होती तो तेरी गंद मारे बिना नही छोड़ती"

इतना कहकर रजनी ने मल्टी को झुका दिया और उसकी सारी और पेटिकोट सहित कमर तक उपर को उठा दी. मल्टी ने पॅंटी नही पहन रखी थी.

फिर रजनी ने मालती की गंद फैलाई और कहा, "लगता है रणबीर का लंड बहोत लंबा और मोटा है? देख तेरी गंद कैसे फैल गयी है," रजनी अब मल्टी की गंद मे अपनी उंगली डाल कर देख रही थी.

"नही अब और मत डालना बहोत दर्द हो रहा है... आज तो मुझसे चला भी नही जा रहा है.... तुमसे दुख बाँटने किसी तरह हवेली तक चल कर आ पाई हूँ."

"अरे देखने तो दे की किस तरह मारी है तेरी गंद उसने, " रजनी ने मालती को चारों हाथ पैर पर चोपाया बना दिया और पीछे हो उसकी गंद को जीभ की नोक से छेड़ने लगी और बोली, "अककचा लगा.. इससे तुम्हारा दर्द कम हो जाएगा."

"हां मेरी गंद पर बड़ी अजीब सुरसुरी हो रही है,"
 
रजनी अब उसकी गंद मे अपनी पूरी जीब डाल अंदर बाहर करते हुए पूछी, "अब बताओ कैसा लग रहा है?"

"बहुत अक्च्छा लग रहा है..." मालती को अब रजनी की जीब अपनी गंद पर किसी मलम की तरह लग रही थी. फिर रजनी अपनी जीब मालती की गंद से बाहर निकल पीछे से अपनी जीब उसकी चूत के अंदर घुसा दी, "कल यहीं पर रणबीर ने तुम्हे चोदा था ना... इसी के अंदर अपना बान ओह्ह्ह क्या कहते हैं लंड डाला था ना?"

"हाआँ यहीं पर.... नहीं इसके पूरी तरह भीतर... जहाँ तक जा सकता है वहाँ तक डाला कर मुझे चोदा था... हां आईसीए ही" मालती ऐसा कहते हुए रजनी के मुँह पर अपनी चूत दबाने लगी

रजनी अपनी प्यास ऐसे ही बुझाती थी. मालती से चूत चटवाती, गंद चटवाती, अपनी चुचियों को दबवाती और बदले मे मालती के साथ भी यही सब करती. जब किसी औरत का मर्द नमार्द होता है तो औरत अपना रास्ता खुद ढूंड लेती है और वही रास्ता रजनी को मालती मे मिल

गया था.

ठाकुर का कारवाँ अपने नियमित समय पर शिकार पर पहुँच गया था. एक बड़ा मंच सा बनाया गया था जिस पर ठाकुर अपनी बंदूक लिए बैठा था. कुछ छोटे मंच भी बनाए गये थे जिन पर ठाकुर के साथ आए उसके मुलाज़िम बैठे थे.

एक दम सन्नाटा छाया हुआ था, सभी को कड़ी हिदायत थी किसी के मच से हल्की भी आवाज़ ना निकले. नीचे पेड़ के साथ खूंती से एक बकरा बँधा था जिसकी बीच बीच मे मिमियने की आवाज़ आ रही थी

रणबीर और भानु एक ही मंच पर बैठे थे. तभी अंधेरे मे भानु ने रणबीर की जाँघ पर हाथ रख दिया.

"अरे ये क्या कर रहा है और अपना हाथ कहाँ घुसाए जा रहा है?"

रणबीर ने उँची आवाज़ मे भानु को डांटा.

तभी एक झाड़ी से एक हिरण निकल के भागा और ठाकुर ने रणबीर की तरफ गुस्से से देखा और बंदूक ले उसके पीछे भागा.

"क्या हुआ साले... क्यों हाथ लगा रहा था." रणबीर ने भी ठाकुर की क्रोध भारी नज़रें देख ली थी और सारा गुस्सा भानु पर उतारते हुए पूछा.

"कुछ नही .... बस मन कर रहा था इसलिए...." भानु ने खींसी निपोर्टे हुए कहा.

"मुझे ये सब बिल्कुल भी पसंद नही.. और आगे से ख़याल रहे ऐसा कुछ भी नही होना चाहिए?" रणबीर से कहा.

"तुम्हे पसंद नही तो क्या मुझे तो पसंद है.." भानु ने कहा.

"मेने कह दिया ना की मुझे पसंद नही है.. बस.." रणबीर थोड़ा क्रोधित होते हुए बोला.

"तो क्या पसंद है साले.... मालती चाची की गंद मारना?" भानु ने भी उसी तरह गुस्से से बिफर्ते हुए कहा.

यह बात सुनते ही रणबीर का चेहरा फक पड़ गया. इससे भानु की हिम्मत और बढ़ गयी और वो बोला, "साले औरत की गंद मारने मे मज़ा आता है और आदमी की गंद पसंद नही. आबे साले गंद गंद होती... क्या औरत की क्या मर्द की." भानु ने फिर कहा.

अगर ज़्यादा कुछ बोला तो ठाकुर साहेब से बता दूँगा की तूने सुबह

मालती चाची के साथ क्या किया था. तुम तो जानते ही हो की ठाकुर पहले तो तेरी चाँदी उधेड़ेगा और जब तुम्हारे बुड्ढे बाप को ठाकुर से ये सब पता चलेगा तो तुम्हारी क्या हालत होगी." भानु ने रणबीर को ब्लॅकमेल करते हुए कहा.

"आख़िर तुम चाहते क्या हो?" रणबीर भी उसकी धमकी से नरम पड़ते हुए बोला.

"कुछ नही बस थोडा सा मज़ा और वो भी बाद मे." भानु ने हंसते हुए कहा. तभी वहाँ एक 18 साल का लड़का वहाँ आ गया जिसका नाम रघु था. वो और भानु आपस मे समलैंगीक कामो का आनंद साथ मैं लेते थे.

तभी ठाकुर लौट कर आ गया. उसने दो हिरण मारे थे इसलिए वो काफ़ी खुश था. टेंट लगा दिए गये थे.

सभी मुलाज़िमो को टेंट बाँट दिए गये थे और जो खाने पीने का सामान वो साथ लाए थे वो भी बाँट कर टेंट मे रखवा दिया गया था.

रात मे तीनो भानु रणबीर और रघु एक ही टेंट मे सोने के लिए आ गये. टेंट मे पहुँचते हू भानु ने रणबीर से कहा, "चल जल्दी से नंगा हो जा."
 
रणबीर ने झिझकते हुए अपने कपड़े उतारे और नंगा हो गया. भानु ने रघु के लंड को उसकी पॅंट से बाहर निकल लिया था.

भानु कुछ देर तक तो रघु के लंड को सहलाता रहा फिर उसे अपने मुँह मे ले चूसने लगा. रणबीर ने घृणा से अपना मुँह दूसरी और फेर लिया.

तभी भानु रघु के लंड को छोड़ रणबीर के लंड पर झुक पड़ा और उसके लंड को अपने मुँह मे ले लॉली पोप की तरह चूसने लगा. आख़िर लूँ लंड ही होता है.. भानु के मुँह की गर्मी पा वो तन्न्ने लगा और लोहे की तरह सख़्त हो गया.

तब भानु वहीं चोपाया हो गया और अपनी गंद मे उठा रणबीर से बोला, "चल अंदर डाल, साले थोड़ा थूक लगा लेना आज सुबह तूने चाची की तो सुखी ही मार दी थी. में सब वहाँ चुप कर देख रहा था.

रणबीर का आज पहली बार बालों से भरी किसी मर्द की गंद से पाला पड़ा था. आज तक वो औरतों की सॉफ और चिकनी गांद ही मारते आया था. पहले तो उसने भानु की गंद पर ढेर सारा थुका और फिर वहाँ अपना लंड लगा धीरे धीरे अंदर ठेलने लगा.

उधर भानु ने रघु को फिर अपने सामने बुलाया और उसके लंड को अपने मुँह मे लिया. रणबीर का ध्यान बँट गया और वो भानु की गंद मारना भूल भानु को रघु का लंड चूस्ते हुए देखने लगा.

"साले अंदर बाहर कर ना... सुबह मालती चाची की तो ऐसा मार रहा था की बेचारी एक साप्ताह तक तो ठीक से चल भी नही पाएगी."

अब रणबीर जोरोंसे भानु की गंद मारने लगा और थोड़ी ही देर मे उसका लंड भानु की गंद मे झाड़ गया.

"क्यों मज़ा आया? क्यों मालती चाची से कुछ अलग थी या वैसे ही थी." भानु ने पूछा.

रणबीर कुछ नही बोला पर मन ही मन वो प्रतिगया कर रहा था की इसका पूरा हिसाब वो सूमी से चुका लेगा.

दूसरे दिन सुबह ही ठाकुर का कारवाँ हवेली के लिए वापस चल पड़ा. भानु और रणबीर घर पहुँचते ही बिस्तर मे घुस पड़े और काफ़ी देर तक सोते रहे.
 
फिर दोपहर मे दोनो ने साथ साथ खाना खाया. भानु हवेली जाने के लिए तय्यार था उसने रणबीर से पूछा भी की उसे भी चलना है क्या, तो रणबीर को लगा की वो उसे साथ ले जाने मे ज़्यादा इंट्रेस्टेड नही है. ये रणबीर के लिए अछी बात थी, उसने सिर भारी होने का बहाना कर दिया.

कहने को भानु कह कर गया की वो हवेली जा रहा है लेकिन रणबीर जनता था की भानु और रघु किसी एकांत जगह पर जा आपस मे मस्ती करेंगे.

मौका देख रणबीर ने सूमी से कह दिया था की वो शाम को खेत पर जा रहा है और मौका देख वो भी वहीं चली आए.

शाम हुई तो रणबीर नदी घूमने के बहाने घर से निकल पड़ा.

वो सीधा खेत पर पहुँच उस जगह आ गया जहाँ किसी का भी आना जाना नही था. खेत के कोने मे एक झोपड़ा बना हुआ था और अंदर एक चारपाई भी पड़ी थी जिसपर रुई का गद्दा पड़ा हुआ था. रणबीर वहीं झोपडे के बाहर बैठ कर सूमी का इंतेज़ार करने लगा. धीरे धीरे अंधेरा बढ़ने लगा था. कुछ देर बाद उसे एक छाया खेत की और आते दीखाई पड़ी. रणबीर उस छाया को देखता रहा और जब वो काफ़ी नज़दीक आई तो उसने पहचान लिया की वो सूमी ही थी. रणबीर उसका हाथ पकड़ उसे झोपडे मे ले गया.

"में तो समझा था की तुम आओगी ही नही," रणबीर सूमी को वहीं चारपाई पर बिठाते हुए बोला.

चारपाई के ठीक पीछे एक खिड़की बनी हुई थी जिसमे से ढलती शाम का हल्का हल्का प्रकाश झोपड़ी मे आ रहा था.

"रणबीर मुझे लगता है की मालती चाची जैसे मुझ पर नज़र रख रही हो... उनकी नज़र से छपते छुपाते आई हूँ... ज़्यादा देर नही रुक सकूँगी." सूमी ने कहा.

"भाभी ये क्या अभी अभी तो आई हो ठीक से बैठी भी नही और अभी से जाने की बात कर रही हो...." रणबीर ने सूमी को बाहों मे भरते हुए कहा.

"अपने इस देवर की बात रखने के लिए आना पड़ा." सूमी ने भी रणबीर के गले मे बाहें डाल दी.

"तो भाभी सारी रात रहोगी ना." इतना कहकर रणबीर ने अपने होठ सूमी के होठों पर रख उन्हे चूसने लगा. सूमी की बाहों का बंधन उसके इर्द गिर्द और कस गया.

अब तो घर पर ही दो बातें करने का मौका मिलता रहेगा." सूमी ने अपनी तनी हुई चुचियाँ को रणबीर के छाती पर रगड़ते हुए कहा.

"घर पर कहाँ बात करने का मौका मिलेगा भाभी, एक तो घर पर आपके वो होंगे और जब होंगे तो उनके साथ मुझे भी तो हवेली जाना होगा, " रणबीर ने सूमी के ब्लाउस के हुक खोलते हुए कहा.

"उसकी तो बात मत करो... उसे घर मे कौन दीखाई पड़ता है. उसे तो बस रघु और दो चार उस जैसे है सिर्फ़ वही दीखाई पड़ते है." सूमी ने घृणा से कहा.

रणबीर सूमी का ब्लाउस उतार चुका था. फिर उसने ब्रा के उपर से ही सूमी के कठोर चुचियों जो किसी कम्सीन लड़की जैसी कठोर थी मसल दिया.

फिर उसने अंजान बनते हुए कहा, "कौन रघु भाभी?"

अब रणबीर ने सूमी की ब्रा भी उतार दी और नीचे झुक कर एक चुचि को अपने मुँह मे ले चूसने लगा.

सूमी सिसकारी लेने लगी और उसका सिर अपनी चूची पर दबाते हुए बोली, "छोड़ो इन सब बातों का... तुम्हारा चुचि चूसना कितना अक्च्छा लग रहा है.... जिक्से लिए में बरसों से तड़प रही हूँ वो सुख तो वो कभी दे ना सका.

अब सूमी ने अपना हाथ रणबीर की पॅंट के उपर से उसके लंड पर रख दिया जो किसी लोहे की सलाख की तरह सख़्त हो गया था.

"भाभी भानु तो तकदीर वाला है की उसे तुम जैसी बीवी मिली."

रणबीर उसकी चुचियों को मसल्ते और चूस्ते हुए बोला.

सूमी अब रणबीर की पॅंट के बटन खोलने लग गयी थी...
 
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