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- Dec 5, 2013
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दीना को इतना मारा गया कि उसका प्राणांत हो गया। फिर एक घंटे के अंदर-अंदर उसकी लाश भी ठिकाने लगा दी गई। रामगढ़ में वास्तव में ऐसा कोई न था जो जमींदार के विरुद्ध अपनी जुबान खोल पाता, किन्तु इस घटना के पश्चात जमींदार साहब वहां न रुके और शहर आ गए।
जिस समय वह अपने मकान के सामने तांगे से उतरे-हरिया वहीं खड़ा था। हरिया ने उन्हें देखकर आदर से हाथ जोड़ लिए और बोला 'सरकार! छोटे मालिक भी आए हैं।'
'अच्छा -कब?'
'रात! आते ही रामगढ़ चले गए थे। फिर लौट आए। रामगढ़ से एक लड़की भी आई है।'
'कौन है?"
'डॉली!'
जमींदार के सामने विस्फोट-सा हुआ। चौंककर बोले- 'दीना की भतीजी डॉली?'
'यह तो मैं नहीं जानता सरकार! लेकिन लड़की है बहुत सुंदर। इतनी कि शायद उस जैसी लड़की पूरे शहर में भी न होगी।'
'हूं-जय कहां है?'
'डॉली तो अंदर वाले कमरे में है और छोटे मालिक अभी-अभी रामगढ़ गए हैं।'
'हमें तो नहीं मिला।'
'हो सकता है-पर्वतपुर वाली सड़क से गए हों।'
'ठीक है।'
'लेकिन सरकार! आज तो आपका...।'
.
.
'बताएंगे थोड़ी देर में।' जमींदार साहब ने कहा और इसके पश्चात वह तेज-तेज कदमों से चलकर डॉली वाले कमरे में आ गए।
डॉली इस समय खिड़की के सामने खड़ी थी। कंधों पर फैले बाल बता रहे थे कि उसने अभी-अभी स्नान किया था। वह अपनी ही किन्हीं सोचों में इतनी गुम थी कि उसे जमींदार साहब के आने का पता ही न चला। जबकि जमींदार साहब धीरे-धीरे आगे बढ़े और डॉली के ठीक पीछे पहुंचकर उससे बोले- 'भई इसे कहते हैं दीये तले अंधेरा। हम तुम्हें रामगढ़ में खोजते रहे-यहां तक कि तुम्हारी वजह से दीना भी दुनिया से चला गया और तुम यहां छुपी हो।'
यह सुनते ही डॉली फुर्ती से मुड़ी और दूसरे ही क्षण उसके सम्मुख भयानक विस्फोट-सा गूंज गया। वह विस्फोट इतना भयानक था कि डॉली के मस्तिष्क की धज्जियां उड़ गईं और वह केवल मूर्तिमान-सी जमींदार का चेहरा देखती रही।
जमींदार फिर बोले- 'लेकिन एक बात हमारी समझ में नहीं आई। जब तुम्हें हमारी ही दुल्हन बनना था तो तुम्हें इतना बड़ा नाटक करने की क्या जरूरत थी?'
डॉली के होंठ पत्थर बने रहे।
जिस समय वह अपने मकान के सामने तांगे से उतरे-हरिया वहीं खड़ा था। हरिया ने उन्हें देखकर आदर से हाथ जोड़ लिए और बोला 'सरकार! छोटे मालिक भी आए हैं।'
'अच्छा -कब?'
'रात! आते ही रामगढ़ चले गए थे। फिर लौट आए। रामगढ़ से एक लड़की भी आई है।'
'कौन है?"
'डॉली!'
जमींदार के सामने विस्फोट-सा हुआ। चौंककर बोले- 'दीना की भतीजी डॉली?'
'यह तो मैं नहीं जानता सरकार! लेकिन लड़की है बहुत सुंदर। इतनी कि शायद उस जैसी लड़की पूरे शहर में भी न होगी।'
'हूं-जय कहां है?'
'डॉली तो अंदर वाले कमरे में है और छोटे मालिक अभी-अभी रामगढ़ गए हैं।'
'हमें तो नहीं मिला।'
'हो सकता है-पर्वतपुर वाली सड़क से गए हों।'
'ठीक है।'
'लेकिन सरकार! आज तो आपका...।'
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'बताएंगे थोड़ी देर में।' जमींदार साहब ने कहा और इसके पश्चात वह तेज-तेज कदमों से चलकर डॉली वाले कमरे में आ गए।
डॉली इस समय खिड़की के सामने खड़ी थी। कंधों पर फैले बाल बता रहे थे कि उसने अभी-अभी स्नान किया था। वह अपनी ही किन्हीं सोचों में इतनी गुम थी कि उसे जमींदार साहब के आने का पता ही न चला। जबकि जमींदार साहब धीरे-धीरे आगे बढ़े और डॉली के ठीक पीछे पहुंचकर उससे बोले- 'भई इसे कहते हैं दीये तले अंधेरा। हम तुम्हें रामगढ़ में खोजते रहे-यहां तक कि तुम्हारी वजह से दीना भी दुनिया से चला गया और तुम यहां छुपी हो।'
यह सुनते ही डॉली फुर्ती से मुड़ी और दूसरे ही क्षण उसके सम्मुख भयानक विस्फोट-सा गूंज गया। वह विस्फोट इतना भयानक था कि डॉली के मस्तिष्क की धज्जियां उड़ गईं और वह केवल मूर्तिमान-सी जमींदार का चेहरा देखती रही।
जमींदार फिर बोले- 'लेकिन एक बात हमारी समझ में नहीं आई। जब तुम्हें हमारी ही दुल्हन बनना था तो तुम्हें इतना बड़ा नाटक करने की क्या जरूरत थी?'
डॉली के होंठ पत्थर बने रहे।