Hindi Sex Story राधा का राज - SexBaba
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Hindi Sex Story राधा का राज

hotaks444

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Nov 15, 2016
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राधा का राज --1

मेरा नाम राधा है. मैं 30 साल की खूबसूरत महिला हूँ. 38 साइज़ की बड़ी - बड़ी चुचियाँ और पतली कमर किसी को भी पागल कर देने के लिए काफ़ी हैं. देखने मे बला की हूबसूरत हूँ. इसलिए हमेशा ही भंवरे आस पास मंधराते रहते थे. लेकिन मैने कभी किसी को लिफ्ट नही दी.

सुरू से ही मुझपे मरने वालों की कोई कमी नहीं रही थी. कॉलेज के दिनो मे भी मेरे पीछे काफ़ी लड़के पड़े रहते थे. मैं उन परिंदो पर अपना रस न्योछावर करने मे विस्वास नहीं करती जिनका काम ही फूलों का रस पी कर उड़ जाना होता है..

मैंन ने एम बी बी एस किया है. मेरी पोस्टिंग असम के एक छोटे से कस्बे के सरकारी. हॉस्पिटल मे हुई है. मैं पिछले साल बाहर से यहाँ के ओर्तोपेदिक वॉर्ड मे काम कर रही हूँ.

यहाँ हॉस्पिटल के कई डॉक्टर भी मुझपे मरते हैं. मगर मेरी चाय्स कुछ अलग किस्म की है. मैं मर्दों से दूरी बना कर रखती हूँ इसलिए कुछ लोग मुझे घमंडी और नकचाढ़ि कहते हैं लेकिन मैने कभी उनकी बातों का बुरा नही माना. सच बात तो ये है कि मैं एक बहुत ही शर्मीली लड़की हूँ और मेरी पसंद का आजतक कोई भी लड़का नहीं मिला. पाता नहीं क्यों मुझे कोई भी पसंद ही नहीं आता. मेरे घर वाले भी मुझसे परेशान थे. कई लड़को की तस्वीरें भी भेज चुके थे. मगर मैने ना कर दिया था.

उम्र हो चुकी थी इसलिए माता पिता की चिंता स्वाभाविक थी. मैने उन्हे कह दिया कि मेरी चिंता छोड़ दें और मुझसे छोटी वाली का ख़याल रखें. जिस दिन मुझे कोई लड़का पसंद आ जाएगा मैं उसको उनसे मिलवा दूँगी.

यहाँ हॉस्पिटल मे एक डॉक्टर है डॉक्टर. श्यामल थापा. बहुत दिलफेंक. उसका हॉस्पिटल की कई नर्स और लेडी डॉक्टर्स के साथ चक्कर चलता रहता है. वो काफ़ी दिनो से हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ा हुआ है. लेकिन मैने उसे कभी घास नही डाला. एक बार उस ने अंधेरी जगह पर मुझे पकड़ कर ज़बरदस्ती करने की कोशिश की. वो मेरी चुचियों को कस कर मसल्ने लगा. मैने अपने घुटने से उसकी टाँगों के जोड़ पर ऐसा वार किया कि वो दर्द से बिलबिला उठा. मैं उसकी गिरफ़्त से निकल गयी. उसके बाद तो उसकी वो ठुकाई की की बेचारे ने मेरी तरफ देखना भी छोड़ दिया. जब भी मुझ से क्रॉस करता चेहरा झुका कर ही

गुज़रता था.

लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंजूर था. इतनी मगरूर, इतनी शर्मीली, इतनी कोल्ड लड़की आख़िर किसी के प्रेम मे पड़ ही गयी. वो भी इस तरह की उसने उस पर अपना सब कुछ न्योचछवर कर दिया. वो आदमी ना तो डॉक्टर की तरह खूबसूरत था ना डब्ल्यू डब्ल्यू एफ के पहलवानो सी बॉडी थी उसकी और ना ही कोई अमीर ज़्यादा था. बस एक मामूली सा मुझसे बहुत ही बिलो स्टेटस का आदमी था. जिससे मिलने के बाद कुछ दिनो तक मैने अपने पेरेंट्स के माथे पर शिकन देखी थी. मगर जब मैने उन्हे मनाया तो वो मेरी खुशी को ही सबसे ज़्यादा महत्व देकर हम दोनो की शादी करवा दी. अब मैं आपको हम दोनो के बीच किस तरह प्रेम का पौधा उगा उसकी कहानी सुनाती हूँ.

हुआ यूँ की एक दिन मैं राउंड पर निकली थी. शाम के 6 बज रहे थे मेरे साथ एक नर्स भी थी. एक-एक पेशेंट के पास जा कर हम चेक उप कर रहे थे. पहले हम कॅबिन्स मे रह रहे मरीजों का चेक अप करके जनरल वॉर्ड की तरफ बढ़े. मैं एक एक करके सबका केस हिस्टरी देखती हुई उनकी कंडीशन नोट करती जा रही थी.

जनरल वॉर्ड एक बड़ा हाल था जिसमे बीस बेड्स थे. कोने की तरफ हल्का अंधेरा था चेक करते करते मैं जब कोने की तरफ बढ़ी तो अचानक किसी काम से नर्स वापस लौट गई. मैं अकेली ही थी आखरी पेशेंट था इसलिए मैने भी कोई ज़्यादा तवज्जो नही दी. और ये तो डेली का रुटीन था इसलिए ऐसे हालत की तो मैं आदि हो चुकी थी.

कोने के बेड पर एक 30 – 32 साल का हृष्ट पुष्ट आदमी लेटा हुआ था. उसके पैर मे डिसलोकेशन था. मैं उसके पास पहुँच कर मुआयना करने लगी. चार्ट देखते हुए मैने उसकी तरफ देखा. वो 30-32 साल का तंदुरुस्त नौजवान था. उसके चेहरे मे एक जबरदस्त आकर्षण सा था. मेरी आँखें कुछ पलों के लिए उसकी आँखों से चिपक कर रह गयी. ऐसा लगा मानो मैं उसकी आँखों के सम्मोहन मे बँध गयी हूँ.

वो बिस्तर पर पीठ के बल लेटा हुआ था. एक पतली चादर को सीने तक ओढ़ रखा था. उसकी रिपोर्ट देखते देखते मेरी नज़र उसके कमर पर पड़ी. उसकी कमर के पास चादर टेंट की तरह उठा हुआ था जिससे सॉफ दिख रहा था कि उसका लंड उत्तेजित अवस्था मे है. उसके हाथों

की धीमी हरकत बता रही थी कि उसके हाथ अपने लंड पर चल रहे हैं. मैं कुछ पल तक एक तक उसके लंड के आकार को देखती रही. टेंट के सबसे उपर वाला हिस्सा जहाँ उसके लंड का टोपा टिका हुआ था उस जगह पर एक गीला धब्बा उसके लंड से निकले प्रेकुं को दिखा रहा था. वो एक तक मेरी ओर देखता हुआ अपने लंड पर ज़ोर ज़ोर से हाथ चलाने लगा. मैं एक दम घबरा गई मेरा गला सूखने लगा मैं जाने को मूडी तो उसने धीरे से कहा,

"डॉक्टर मेरे दाएँ पैर को थोड़ा घुमा दें जिससे मैं एक ओर करवट ले सकूँ."

मैने उसके टाँगों की तरफ देखा. उसके चेहरे की तरफ देखने की हिम्मत नही जुटा पायी. ऐसा लग रहा था मानो उसने मुझे चोरी करते हुए पकड़ लिया हो. मैने चारों ओर देखा लेकिन किसी को कोई खबर नही थी. आधे से ज़्यादा तो उंघ रहे थे और कुछ अपने रिश्ते दारों से मद्धिम आवाज़ मे बातें कर रहे थे. कोई नर्स या किसी तरह का हेल्प करने वाला नही दिखने पर मैने उसकी टाँगों को चादर के उपर से पकड़ना चाहा लेकिन ट्रॅक्षन लगा होने के कारण पकड़ सही नही बैठ पा रही थी.

" चादर के अंदर से पाकड़ो." वो इस तरह से मुझे सलाह दे रहा था मानो डॉक्टर मैं नही वो हो. मैने काँपते हाथों से उसके चादर को एक तरफ से थोडा उठाया और दूसरे हाथ को अंदर डाल दिया. चादर के भीतर वो नग्न था. मैने उसकी कमर को एक हाथ से थामने की कोशिश की मगर सफल नही हो सकी. फिर मैने अपने दोनो हाथों से उसके दाई

टांग को जोड़ों से पकड़ा. इस कॉसिश मे दो बार उसकी टाँगों के बीच मौजूद लंड के नीचे लटकते दोनो गेंदों को च्छू लिया था. मेरे पूरा बदन पसीने से भीग चुका था. मैने उसकी टाँगों को उसकी सहूलियत के हिसाब से थोड़ा घुमाया तो उसने हल्की से एक ओर करवट ली. इस बीच एक बार उसकी कमर के उपर से चादर खिसक गयी और उसका तना हुआ लंड मेरे सामने आ गया. मैने देखा एक दम काला लंड था वो. इतना मोटा और लंबा की मेरे बदन मे एक झूर झूरी सी दौड़ गयी.
 
"थॅंक यू डॉक्टर" उसने मेरी हालत का मज़ा लेते हुए मुस्कुरा कर कहा. मैं तो झट वहाँ से घूम कर लगभग भागती हुई कमरे से निकल गयी.

मेरा बदन पसीने से लथपथ हो रहा था. मैं हॉस्पिटल के कॉंपाउंड मे ही बने क्वॉर्टर्स मे रहती थी. मैने नर्स से तबीयत खदाब होने का बहाना किया और सीधी घर जाकर ठंडे पानी से नहाई. मेरा दिल इतनी तेज धड़क रहा था कि उसकी आवाज़ कानो तक गूँज रही थी. मैने फ्रिड्ज से एक चिल्ड पानी की बॉटल निकाल कर एक घूँट मे सारा खाली कर दिया. ठंडा पानी धीरे धीरे मेरे बदन को ठंडा करने लगा. कुछ देर बाद जब मैं कुछ नॉर्मल हुई तो वापस अपनी ड्यूटी पर लौट गयी. लेकिन वापस उस कमरे मे ना जाना परे इसका पूरा ख़याल रखा.

ड्यूटी ऑफ होने के बाद उस दिन जब मैं बिस्तर पर लेटी तो उस घटना के बारे मे सोचने लगी. पूरी घटना किसी फिल्म की तरह मेरी आँखों के सामने चलने लगी. पता नही क्यों मान मे एक गुदगुदी सी होने लगी थी. बार बार मन वही पर खींच कर ले जाता.

किसी तरह मैने अपने जज्बातों पर अंकुश लगाया. लेकिन जैसे जैसे रात बढ़ती गयी मेरा अपने उपर से कंट्रोल हटता गया. आख़िर मैं तड़प कर वापस हॉस्पिटल की ओर बढ़ चली. उस समय रात के 12.30 हो रहे थे चहल पहल काफ़ी कम हो गया था मैं स्टाफ की नज़रों से बचती हुई ओर्तोपेदिक वॉर्ड मे घुसी. अपने आप को लगभग छिपाते हुए मैं जनरल वॉर्ड मे पहुँची. ज़्यादातर पेशेंट सो गये थे. चारों ओर शांति छा रही थी. कभी कभी किसी के कराहने की आवाज़ ही सिर्फ़ महॉल को बदल दे रही थी. मैं वहाँ किसलिए आए? क्या करना चाहती थी कुछ नही पता था. कोई अगर मुझसे वहाँ की मौजूदगी के बारे मे पूछ बैठता तो जवाब देना मुश्किल हो जाता.

मैं इधर उधर देखती हुई आखरी बेड पर पहुँची. मैने उसकी तरफ देखा वो जगा हुआ था. अपनी घबराहट पर काबू पाने के लिए मैने बिस्तर के साइड मे रखा हिस्टरी कार्ड देखने लगी. नाम लिखा था राज शर्मा.

मैने घबराते हुए उसकी तरफ देखा. वो अभी भी उसी कंडीशन मे था. यानी की उसका लंड खड़ा था और वो उस पर अपना हाथ चला रहा था. लकिन उसकी चादर पर एक सूखा हुआ धब्बा बता रहा था की एक बार उसका स्खलन हो चुका था. मैं धीरे धीरे सरक्ति हुई उसके पास पहुँची और उसके बदन का टेंपरेचर देखने के बहाने उसके माथे पर अपना हाथ रखा. कुछ देर तक यूँ ही हाथ को रखे रहने के बाद मैं धीरे धीरे अपने नाज़ुक हाथों से उसके चेहरे को सहलाने लगी.

अचानक चादर के नीचे से उसका एक हाथ निकला और मेरी कलाई को सख्ती से पकड़ लिया. मैने हाथ छुड़ाने की कोशिश की मगर उसका हाथ तो लोहे की तरह मेरी कलाई को जकड़ा हुआ था. हम दोनो के मुँह से एक शब्द भी नही निकल रहा था. इस बात का ख़याल दोनो ही रख रहे थे कि हमारी हरकतों का पता बगल वाले बेड पर सो रहे आदमी को भी नही पता चले. किसी को भी खबर नहीं थी कि कमरे के एक कोने मे क्या ज़ोर मशक्कत हो रही थी.

उसने मेरे हाथ को चादर के भीतर खींच लिया. मेरे हाथ को सख्ती से थामे हुए अपने टाँगों के जोड़ तक ले गया. मेरा हाथ उसके तने हुए लंड से टकराया. पूरे शरीर मे एक सिहरन सी दौड़ गई. उसने ज़बरदस्ती मेरे हाथ को अपने लंड पर रख दिया. मैने अपना हाथ बाहर खींचने की पूरी कोशिश की लेकिन उसकी ताक़त के आगे मेरे बदन का पूरा ज़ोर भी कुछ नही कर पाया. मेरा हाथ सुन्न होने लगा. वो मेरे हाथ को छोड़ने के मूड मे नही था. आख़िर मैने हिचकते हुए उसके लंड को अपनी मुट्ठी मे ले लिया. अब वो मेरे हाथ को उसी तरह पकड़े हुए अपने लंड पर उपर नीचे चलाने लगा. मुझे लग रहा था

मानो मैने अपनी मुट्ठी मे कोई गरम लोहा पकड़ रखा हो. उसका लंड काफ़ी मोटा था. लंबाई मे कम से कम 10" होगा. मैं उसके लंड पर हाथ चलाने लगी. कुछ देर बाद उसके हाथ की पकड़ मेरे हाथ पर ढीली पड़ने लगी. जब उसने देखा की मैं खुद अब उसके लंड को मुट्ठी मे भर कर उसे सहला रही हूँ तो उसने धीरे धीरे मेरे हाथ को छोड़ दिया. मैं उसी तरह उसके लंड को मुट्ठी मे सख्ती से पकड़ कर उपर नीचे हाथ चला रही थी. कुछ देर बाद उसका शरीर तन गया और मेरे हाथों पर ढेर सारा चिपचिपा वीर्य उधेल दिया. मैने झटके से उसका लंड छोड़ दिया. मैने चादर से अपना हाथ बाहर निकाला. पूरा हाथ गाढ़े सफेद रंग के वीर्य से सना हुआ था. उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी चादर से पोंच्छ दिया. मैं हाथ छुड़ा कर वहाँ से वापस भाग आई. मैं दौड़ते हुए अपने घर पहुँच कर ही सांस ली. मेरे जांघों के बीच पॅंटी गीली हो चुकी थी.

जब वापस कुछ नॉर्मल हुई तो मैने अपने हाथ को नाक के पास ले जा कर सूँघा. उसके वीर्य की सुगंध अभी तक हाथों मे बसी हुई थी. मैने मुँह खोल कर एक उंगली अपनी जीभ से छुआया. उसके वीर्य का टेस्ट अच्छा लगा. मैने पहली बार किसी मर्द के वीर्य का टेस्ट पाया था. एक अजीब सा टेस्ट था. जो मुझे भा गया. फिर तो सारी उंगलियाँ ही चाट गयी. चाटते हुए सोच रही थी कि कितना अच्छा होता अगर उसने मेरी उंगलियाँ अपनी चादर से नही पोंच्छा होता. मैने अपने हाथ को अपने होंठों पर रख कर हॉस्पिटल की ओर एक फ्लाइयिंग किस उछाल दिया.

रात भर मैं करवटें बदलती रही. जब भी झपकी आई उसका चेहरा सामने आ जाता था. सपनो मे वो मेरे बदन को मसलता रहा. रात भर बिना कुछ किए ही मैं कई बार गीली होगयि. पता नहीं उसमे ऐसा क्या था जो मेरा मन बेकाबू हो गया. जिसे जीतने के लिए अच्छे अच्छे लोग अपना सब कुछ दाँव पर लगाने को तैयार थे वो खुद आज पागल हुई जा रही थी.

जैसे तैसे सुबह हुई. मेरी आँखें नींद से भारी हो रही थी. पूरा बदन टूट रहा था. ऐसा लग रहा था मानो पिच्छली रात मेरी सुहागरात रही हो. मैं तैयार हो कर हॉस्पिटल गयी. राउंड पर निकली तो मैं राज शर्मा के बेड तक नहीं जा पाई. मैने स्टाफ को बुला कर उसके बारे मे पूछा तो पता लगा कि वो ग़रीब इंसान है. शायद उसके घर मे कोई नहीं है क्यों की उससे मिलने कभी कोई नहीं आता. किसी आक्सिडेंट मे उसकी टाँगों के जोड़ पर चोट आई थी. वो अभी ट्रॅक्षन पर था और बिस्तर से उठ भी नही सकता था.

मैं चुपचाप उठी और काउंटर पर पहुँच कर उसके लिए डेलूक्ष वॉर्ड बुक किया. वॉर्ड का खर्चा अपनी जेब से भर दिया था. वापस आकर मैने नर्स को स्लिप देते हुए राज शर्मा को डेलक्स वॉर्ड मे शिफ्ट करने का ऑर्डर दिया. नर्स तो एक बार चकित सी मुझको देखती रही. मैने काम मे व्यस्त ता दिखा कर उसकी नज़रों से अपने को बचाया.
 
सब के सामने उसके पास जाने मे मुझे हिचक हो रही थी. मैं आज तबीयत खराब होने का बहाना कर के घर चली गयी. शाम को हॉस्पिटल जा कर पता लगा कि राज शर्मा को डेलक्स वॉर्ड मे शिफ्ट कर दिया गया है. मैं लोगों की नज़र बचा कर शाम आठ बजे के आस पास उसके वॉर्ड मे पहुँची. वहाँ मौजूद नर्स को मैने बाहर भेज दिया.

" तुम खाना खा कर आओ तब तक मैं यहीं हूँ."

वो खुशी खुशी चली गयी. मुझे देख कर राज शर्मा मुस्कुरा दिया. मैं भी मुस्कुराते हुए उसके पास पहुँची.

"कैसे हो" मैने पूछा.

"तुम्हें देख लिया बस तबीयत अच्छी हो गयी." राज शर्मा मुस्कुरा रहा था. मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया. दो बार के मिलन के बाद अब मैं भी उससे थोड़ा अभ्यस्त हो गयी थी. मैं उसका टेंपरेचर देखने के बहाने से उसके बालों मे अपनी उंगलियाँ फिराने लगी.

"मुझ पर इतना खर्चा क्यों किया डॉक्टर.." राज शर्मा ने पूछा.

" राधा. राधा नाम है मेरा. मुझे ये नाम अच्छा लगता है. तुम कम से कम मुझे इसी नाम से पुकरोगे." मैं उसके बिस्तर पर उसके पास बैठ गयी.

उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा मैं जान बूझ कर उसके सीने से लग गयी. उसने मेरे होंठों को अपने होंठों से छुलिया.

"धन्यवाद र….राधा" उसने धीरे से कहा.

मेरा पूरा बदन थर थारा रहा था. मैने भी अपने होंठ उसके होंठ से सटा दिए और उसके होंठों को अपने होंठों मे दबा कर चूसने लगी.

तभी दरवाजे पर किसी ने नॉक किया. मजबूरन मुझे उससे अलग होना पड़ा. मैने जल्दी जल्दी अपने कपड़े ठीक किए.

"मैं कल आऔन्गि" मैने उसके कानो मे धीरे से कहा और दरवाजा खोल दिया. एक नर्स खाना लेकर आई थी.

मजबूरन मुझे वहाँ से जाना पड़ा. लेकिन जाने से पहले मैने उससे कह दिया कि कल से शाम को मैं उसके लिए घर से खाना लेकर आया करूँगी.

अगले दिन शाम को बड़े जतन से मैने हम दोनो का खाना तैयार किया और शाम को उसके उसके कॅबिन मे पहुँची. नर्स मुझे देख कर मुस्कुरा दी. शायद उसे भी दाल मे कुछ क़ाला नज़र आने लगा था. वो हम दोनो को अकेला छोड़ कर वहाँ से चली गयी. मैं उसके बेड पर आ कर बैठी और टिफिन खोल कर हम दोनो का एक ही थाली मे खाना लगाया. वो मुझे अपनी बाहों मे भर कर चूमना चाहता था लेकिन मैने उसके इरादों को सफल नही होने दिया.

क्रमशः........................
 
राधा का राज --2

गातांक से आगे....................

"अभी कुछ नही. पहले खाना खा लो. तुम्हे लगी हो ना हो मुझे तो बहुत ज़ोर की भूख लग रही है." वो मेरी बातें सुन कर हंस दिया. मैने उसके बदन को सहारा देकर सिरहाने पर कुछ उठाया. इस कोशिश मे मैं उसके बदन से लिपट गयी. उसके बदन की खुश्बू मेरे दिल तक उतर गयी थी. मैं एक कौर उसको खिलाती तो दूसरा कौर खुद खाती.

खाना ख़तम करके मैने अपने हाथ धोए और फिर राज शर्मा का मुँह पोंच्छ कर उसको पानी पिलाने लगी. राज शर्मा पानी पीकर मेरे हाथ से ग्लास लेकर साइड के टेबल पर रख दिया. और मुझे खींच कर अपने बदन से सटा लिया. मैं भी तो इसी छन का इंतेज़ार कर रही थी. मैं भी उसके बदन से किसी लता की तरह लिपट गयी.

मेरे होंठों को चूमते हुए उसके हाथ मेरी चुचियों पर आगए. ऐसा लगा जैसे इन्हीं हाथों के चुअन के लिए मैं आज तक तड़प रही थी. मैने उसके हाथों पर अपने हाथ रख कर अपनी चुचियों को हल्के से दबा कर उसे अपनी सहमति जताई. वो मेरी चुचियों को दबाने लगा. मेरे हाथ चादर के अंदर घुस कर उसके सीने को सहलाने लगे. मैं उसकी बलिष्ठ छाती पर अपने हाथ फिरा रही थी. मैने अपना हाथ नीचे लाकर कुछ च्छुआ तो चौंक उठी. आज वो पयज़ामा पहन रखा था. मैं उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा दी.

"ये इसलिए कि तुम्हारे अलावा किसी और की पहुँच मेरे बदन तक ना हो."

मेरे हाथ उसके पयज़ामे के नाडे से उलझे हुए थे. मैने नडा खोल कर हाथ को अंदर डाल दिया. उसका लंड मेरे हाथ की चुअन से फुंफ़कार उठा. मैं उसे बाहर निकाल कर सहलाने लगी. मैं अपने हाथों से उसके लंड को सहलाने लगी बीच बीच मे उसके नीचे की दोनो गेंदों को भी सहला देती. वो काफ़ी उत्तेजित था कुछ ही देर मे उसका बदन एंथने लगा और उसने मेरे हाथों को अपने वीर्य से भर दिया. मेरे हाथ फिर उसके वीर्य से सन गये. वो मेरी चुचियों से खेल रहा था. मैं हाथ बाहर निकाल कर उसके सामने ही अपनी जीभ से उसके वीर्य को चाटने लगी. हाथ मे लगे उसके सारे वीर्य को अपनी जीभ से चाट कर सॉफ कर दिया.

"कैसा लगा?" राज शर्मा ने पूचछा.

"टेस्टी है. बहुत अच्छा लगा. अब तुम सो जाओ. नर्स के लौटने का समय हो गया है. मैं चलती हूँ." मैने जल्दी से अपने कपड़े सही किए. आधा घंटा हो चुका था. नर्स किसी भी वक़्त लौट सकती थी. मैं जाने को मूडी तो उसने मेरी बाँह पकड़ कर मुझे रोका.

"नही राज शर्मा मुझे जाना ही पड़ेगा. नही तो पूरे हॉस्पिटल मे सब मुझ पर हँसने लगेंगे" मैने उसकी पकड़ से अपनी बाँह छुड़ानी चाही.

"ठीक है लेकिन जाने से पहले एक ….." कह कर उसने अपने होंठ उपर की ओर कर दिए. मैने उसके होंठों पर अपने होंठ रख कर उसे एक गहरा चुंबन दिया और उस कमरे से निकल गयी.

अगले दिन नर्स को खाने पर भेज कर मैने कुण्डी बंद कर ली. जैसे ही मैं राज शर्मा के पास आई उसने मेरे चेहरे को चूम चूम कर लाल कर दिया. मैं खाने का टिफिन एक ओर रख कर उसके सीने से लग गयी. उसके बदन से चादर को पूरी तरह हटा दिया और उसके पयज़ामे को खोल कर उसका लंड निकाल लिया. उसका लंड एक दम तना हुआ था. मैने झट से उसके लंड के टिप पर अपने होंठों से एक चुंबन जड़ दिया.

इस बार उसने मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड पर झुका दिया. मैं ने शरारत से होंठ भींच लिए. वो लंड को मेरे होंठों पर रगड़ने लगा. होंठ उसके वीर्य से गीले होगये. कुछ देर बाद मैने अपने होंठ खोल कर उसका लंड अपने मुँह मे ले लिया. पहले धीरे धीरे और बाद मे ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी. वो मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड पर भींचने लगा. काफ़ी देर तक मुख मैंतुन करने के वो मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड पर सख्ती से दबा दिया. उसका लंड मेरे मुँह से होता हुआ मेरे गले के अंदर प्रवेश कर गया. उसका लंड फूलने लगा था. मैं साँस लेने के लिए च्चटपटा रही थी. तभी ऐसा लगा जैसे उसके लंड से गरम गरम लावा निकल कर मेरे गले से होता हुआ मेरे पेट मे प्रवेश कर रहा है. मैने सिर को थोडा बाहर की ओर खींचा. पूरा मुह्न उसके वीर्य से भर गया था. होंठों के कोनो से वीर्य बाहर चू रहा था. पूरा वीर्य निकल जाने के बाद ही उसने मेरे सिर को छोड़ा. मैने प्यार से उसकी ओर देखते हुए सारा वीर्य अंदर गटक लिया. उसने मेरे होंठों के कोरों से टपकते वीर्य को अपनी चादर से पोंच्छ दिया.
 
अचानक मेरी नज़र अपने रिस्ट . पर पड़ी. काफ़ी टाइम हो चुका था. मैने दौड़ कर बाथरूम मे जाकर अपना मुँह धोया. वहीं पर आईने के सामने अपने बाल & और कपड़े सही कर के लौटी.

" ऐसा लगता है तुम किसी दिन मुझे मार ही दोगे." कहकर मैं उस से लिपट कर उसके होंठों को चूम ली.

"बहुत दर्द कर रहा है गले मे. तुम कितने गंदे हो. इस तरह कभी मुँह मे डालते हैं?" मैं उसके सीने से सटी हुई बोली. वो हंसता हुआ मेरे गले को और गालो को सहलाने लगा. इतना सुकून मुझे आज तक कभी नही आया था.

फिर हम दोनो एक दूसरे को खाना खिलाए. थोड़ी देर मे नर्स आ गई थी. उसके दरवाजे को खटखटाते ही मैं कमरे से बाहर निकल गयी.

इसी तरह रोज जब भी मौका मिलता मैं लोगों की नज़रों से बचा कर अपने महबूब से मिलती रही. हम एक दूसरे को चूमते, सहलाते और प्यार करते थे. वो मेरे बूब्स को खूब मसलता था, मेरी निपल्स को खींचता और मसलता था. मैं रोज मुख मैंतुन से उसका निकाल देती थी. उसका वीर्य मुझे बहुत अच्छा लगता था. वो मुझे खींच कर अपने उपर लिटा लेता और मेरे पेटिकोट के अंदर हाथ डालकर मेरी पॅंटी को खिसका कर मेरी योनि को सहलाने लगता. बीच बीच मे मेरी योनि मे भी उंगली डाल कर उस से ज़्यादा हम वहाँ कुछ कर भी नहीं पाते थे. पकड़े जाने और बदनामी का डर जो था.

धीरे उसकी टाँग ठीक हो गयी. उसे मैं अपने कंधे का सहारा देकर कमरे मे ही चलाती. वो किसी नर्स की मदद लेने से मना कर देता था. तभी अचानक मेरी तबीयत एकदम से खराब हो गयी. विराल फीवर हुआ था. काफ़ी तेज बुखार चढ़ता था. दो तीन दिन तो मैं बिस्तर से ही नही हिल पाई थी. जब कुछ ठीक हुई तो मैं हल्के बुखार मे भी हॉस्पिटल पहुँची.

मैं सीधे राज शर्मा के कॅबिन मे पहुँचा. मुझे पता था कि वो मुझ पर नाराज़ होने वाला है. इतने दिनो से मिल जो नही पाई थी उससे. किसी के हाथ खबर भी नही भिजवा पाई क्योंकि इसके लिए उसे सब कुछ बताना पड़ता जो कि मैं नही चाहती थी.

लेकिन जब मैं वहाँ पहुँची तो कमरा खाली पाया. पूच्छने पर पता लगा कि उसको डिसचार्ज कर दिया गया है. मैने कमरे मे उसके हिस्टरी शीट मे सब जगह उसका पता जानने की कॉसिश की मगर कुछ पता नहीं लगा. मेरी हालत पागलो जैसी हो गयी थी जिससे मन लगाया वोई मेरी बेवकूफी के कारण मुझसे दूर हो गया था. मुझे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था की इतने दिनो साथ रहे मगर कभी उसका पता नही पूछा. मैने उसे हर जगह ढूँढा. मगर वो तो ऐसे गायब हुआ जैसे सुबह की रोशनी मे ढूँढ गायब हो जाती है.

मैं जिंदगी मे पहली बार किसी पराए लड़के से बिच्छुड़ने पर रोई थी. मेरी सहेली रचना जो मेरे साथ क्वॉर्टर शेर करती थी, उसने भी काफ़ी खोदने की कोशिश की मगर मैने किसी को भी कुछ नहीं बताया. मैने जिंदगी मे पहली बार किसी से प्यार किया था. वो जैसा भी था मुझे अच्छा लगता था.

वो ग़रीब था लेकिन उसमे कुछ बात थी जो उसे सबसे अलग करती थी. कुछ हो ना हो मैं तो उस से प्यार करने लगी थी. किसी ने सच ही कहा है दिल किसी रूल को नही मानता. उसके अपने अलग ही उसूल होते हैं. घरवाले परेशान कर रहे थे शादी के लिए. मेरे पेरेंट्स आज़ाद ख़यालों के थे इसलिए उन्हों ने कह दिया था कि मैं जिसे चाहे पसंद करके शादी कर लूँ. कभी कभी मैं सोचती कि क्या वो भी मुझे चाहता होगा? या मैं ही उससे एक तरफ़ा प्यार करने लगी थी. शायद उसे तो मेरे बदन से खेलने मे अच्छा लगता था इसलिए उसने मुझे उसे किया. नही तो इतने दिनो मे एक बार तो कभी भूल से ही सही अपने प्यार का इज़हार करता. मैं तो उसके मुँह से प्यार के बोल सुनने को तरसती थी.

अगर वो मुझे पसंद करता था तो फिर वो कभी दोबारा मुझसे मिला क्यों नहीं. धीरे धीरे सिक्स मंत्स गुजर गये उस मुलाकात को. मैने अपने दिल को मना लिया था. मैं मानने लगी थी कि शायद मेरी किस्मेत मे कोई है ही नही. मैने घर वालों को भी सॉफ सॉफ कह दिया था कि मुझे बार बार परेशान नही करे. मुझे किसी से शादी नही करना है. वापस वही हॉस्पिटल और वो कमरा बस इसी मे बँध गयी थी. हां जब कभी मैं उस कॅबिन के सामने से गुजरती तो लोगों की नज़रों से बच कर एक बार अंदर ज़रूर झाँक लेती. क्यों?....नही मालूम. शायद दिल को अभी भी आशा थी कि राज शर्मा फिर मुझे उस कॅबिन मे मिल जाएगा.

फिर अचानक ही वो मिला. मैं तो उम्मीद हार् चुकी थी. लेकिन वो मिला…..वो जब मिला तो मुझे दिए तले अंधेरा वाली बात याद आई. एक दिन मैं हॉस्पिटल के लिए निकली तो अचानक मुझे एक जाना –पहचाना चेहरा हॉस्पिटल के सामने के बगीचे मे काम करता हुआ नज़र आया. मेरे सामने उसकी पीठ थी. वो पोधो पर झुका हुआ उनकी कटिंग कर रहा था. पीछे से वो मुझे काफ़ी जाना पहचाना लग रहा था.
 
" सुनो माली." उसके घूमते ही मैं धक से रह गयी, "त…तुऊऊँ?" सामने राज शर्मा खड़ा था. मेरा प्यार, मेरा राज. मैं एकटक उसे देख रही थी. मुँह से कोई बोल नही निकले. मेरे बदन और मेरे दिमाग़ ने कुछ छनो के लिए काम करना बंद कर दिया.

"राआआआ……..मेडम" राज शर्मा ने मुझे जैस सोते से जगाया." मैं यहाँ माली का काम करता हूँ. आप अपने आप को सम्हलिए नहीं तो कोई भी आदमी इसका ग़लत मतलब निकाल सकता है. आप यहा डॉक्टर हैं और मैं एक

मामूली सा माली…"

मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ. "तुम मुझे आज शाम च्छे बजे मेरे घर पर मिलना. बहुत ज़रूरी काम है… आओगे ना?" मैने उससे कहा मगर उसके मुँह से कोई बात निकलती ना देख कर मैने धीरे से कहा,"तुम्हे मेरी कसम." कहकर मैं अपने आप को समहाल्ती हुई तेज़ी से हॉस्पिटल मे चली गयी.

मुझे मालूम था कि अगर मैने मूड कर देख लिया तो मैं अपने जज्बातों पर काबू नही रख सकूँगी. हॉस्पिटल मे मन नहीं लगा तो तबीयत खदाब होने का बहाना बना कर मैं भाग निकली. आज किसी काम मे मन नही लग रहा था. शाम को राज शर्मा आने वाला था मुझसे मिलने. उसकी तैयारी भी करनी थी. वापसी मे मुझे राज शर्मा कहीं नहीं दिखा. मैने उस गार्डेन के दो तीन चक्कर काटे मगर कहीं भी नही था वो.

मैं बाज़ार जा कर कुछ समान खरीद लाई. समान मे कुछ रजनीगंधा के स्टिक्स, एक झीना रेशमी गाउन था. रात का डिन्नर और तीन बॉटल बियर था. एक लड़की के लिए बियर खरीदना कितना मुश्किल काम है आज मुझे पता लगा था.

बड़ी मुश्किल से किसी को पैसे देकर मैने तीन बॉटल बियर माँगाया. आज मैं उसकी पूरी तरह से स्वागत करना चाहती थी. शाम चार बाजे से ही मैं अपने महब्बूब के लिए तैयार होकर बैठ गयी. हाल्का मेकप करके पर्फ्यूम लगाया. फिर ट्रॅन्स्परेंट ब्रा और पॅंटी के उपर नया रेशमी गाउन पहन लिया. गुलाबी झीने गाउन को पहनना और नही पहनना बराबर था. बाहर से मेरे गुलाबी बदन एक एक रोया दिख रहा था. मैने बिस्तर पर साफ़ेद रेशमी चदडार बिच्छा दिया. रूम स्प्रे को चारों ओर स्प्रे कार दिया था जिससे एक रहश्यमय वातावरण तैयार हो. कुछ रजनीगंधा के स्टिक्स एक फ्लवर वर्स मे बेड के सिरहाने पर राख दिया.

6 बजे तक तो मैं बेताब हो उठी. बार बार घड़ी को देखती हुई चहल कदमी कर रही थी. 6.10 पर डोर बेल बजा. मैं दौड़ कर दरवाजे पर गई. पीप होल से देखकर ही दरवाजा खोलना चाहती थी. क्योंकि कोई और हुआ तो मुझे इस रूप मे देखकर पता नहीं क्या सोचे. उसे देख कर मैं दो सेकेंड्स रुक कर अपनी तेज साँसों को कंट्रोल किया और दरवाजा खोलका उसे अंदर खींच लिया. दरवाज़ा बंद करके मैं उससे बुरी तरह से लिपट गयी. किस कर करके पूरा मुँह भर दिया.

" कहाँ चले गये थे? मेरी एक बार भी याद नहीं आई?" मैने उससे शिकायत की.
 
" मैं यहीं था मगर मैं जान बूझ कर ही आपसे मिलना नही चाहता था. कहाँ आप और कहाँ मैं. चाँद और सियार की जोड़ी अच्छी नहीं लगती" मैने उसके मुँह पर हाथ रख दिया.

" खबरदार जो मुझ से दूर जाने का भी सोचा. आगर जाना ही था तो आए क्यूँ? मेरी जिंदगी मे हुलचल पैदा करके भागने की सोच रहे थे. वो सब जो हमारे बीच उस कॅबिन मे हुआ वो सब खेल था. टाइम पास?" मैने कहा.

"अरे नही आप मुझे ग़लत समझ रही हैं….."

" और मुझे ये आप आप करना छोड़ो. तुम्हारे मुँह से तुम और तू अच्छा लगेगा."

" लेकिन मेरी बात तो सुनिए...... सुनो ..."

" बैठ जाओ" कहकर मैने उसे धक्का देकर सोफे पर बिठा दिया. मैने मन ही मन डिसाइड कर लिया था कि इतना सब होने के बाद आब मैं राज शर्मा से कोई शरम नहीं करूँगी और निर्लज्ज होकर अपनी बात मनवा लूँगी. हम इतने आगे बढ़ चुके थे कि शर्म की दीवार खींचना अब व्यर्थ था.

मैं उठी और फ्रिड्ज से बियर की बॉटल निकाल कर उसका कॉर्क खोला. एक काँच के ग्लास मे उधेल कर उसके पास आई. ग्लास मे उफनता हुआ झाग मेरे जज्बातों को दर्शा रहा था. मैं उस से सॅट कर बैठ गयी और ग्लास को उसके होंठों के पास ले गयी. जैसे ही उसने ग्लास से अपने होंठ लगाने के लिए अपने होंठ बढ़ाए मैने झट से ग्लास को पीछे करके अपने होंठ आगे कर दिए. राज शर्मा मुस्कुराता हुआ अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिया.

मैने उसके होंठों से ग्लास लगा दिया. उसने मेरी ओर देखते हुए मेरी हाथों से एक घूँट पिया. उस एक घूँट मे ही पूरा ग्लास खाली कर दिया.

"हां तो अब बताओ कि दोनो मे से कौन ज़्यादा नशीला है. मैं या ये……" कहकर मैने उत्तेजक तरीके से अपने बालों को पीछे करके कमर पर हाथ रख कर अपनी टाँगों को कुछ फैला कर खड़ी हो गयी. उसने

हाथ बढ़ा कर मेरी बाँह पकड़ कर मुझे अपने गोद मे खींच लिया. हम दोनो के होंठ मिले और मैने अपनी जीभ उसके मुँह मे डाल दी. मैं उसके पूरे मुँह के अंदर अपनी जीभ फिराने लगी. काफ़ी देर बाद जब

हम अलग हुए तो ग्लास को उसके हाथों मे पकड़ा कर मैं खड़ी होगयि.

" तुम्हे मेरे ये बहुत अच्छे लगते थे ना? " मैने अपने ब्रेस्ट्स की तरफ इशारा करते हुए उसके होंठों के बिल्कुल पास आकर पूछा. उसने स्वीकृति मे अपने सिर को हिलाया.

" खोल कर नहीं देखना चाहोगे?" इससे पहले कि वो कुछ कहे मैने खड़े होकर एक झटके मे गाउन की डोर को खींच कर उसे खोल दिया. गाउन सामने की तरफ से पूरा खुल चुका था. मेरा गुलाबी बदन सिर्फ़ दो छोटे कपड़ों से ढका हुआ था.

मैने अपने गाउन को शरीर से अलग कर दिया. वो एकटक मेरे लगभग नग्न बदन को निहार रहा था.. मैं उसकी ओर झुकते हुए अपने ब्रा के एक स्ट्रॅप को खींच कर छोड़ा. स्ट्रॅप वापस अपनी जगह पर आ गया मगर सामनेवाले के दिल मे एक टीस सा छोड़ गया. उसकी ज़ुबान तो लगता था सिथिल सी हो गयी थी. मुझसे शायद इतने बोल्ड हरकत की उसकी उम्मीद नही थी उसे. वो बस एक तक मेरे बदन के एक एक इंच को निहार रहा था. आज पहली बार मुझमे भी कामुक लहरे उफन रही थी. आज तक सर्द सी जिंदगी बिताने के बाद आज पूरा बदन गर्मी से झुलस रहा था.

क्रमषश्.......................

....
 
राधा का राज --3

गतान्क से आगे....................

मैं उसके पास आकर दोनो पैरों को फैला कर उसकी गोद मे बैठ गई. उसके सिर को पकड़ कर आपनी एक छाती पर दबा दिया.

"लो चूमो इसे. ये सिर्फ़ तुम्हारे लिए हैं. क्या अब भी तुम्हे लगता है कि हमारे बीच किसी तरह की कोई दीवार है?" उसके होंठ मेरे स्तनो पर फिर रहे थे.

"ब्रा खोल्दो" मैने उसके कानो मे फुसफुसाते हुए कहा. मगर उसे कोई हरकत करता नहीं देख कर मैने खुद ही ब्रा को शरीर से अलग कर दिया. आज मैं इतनी उत्तेजित थी कि ज़रूरत पड़ने पर राज शर्मा को रेप

भी करने को तैयार थी.

" देखो ये कितने बेताब हैं तुम्हारे होंठों के. कितने दिनो से तड़प रही थी……" कहकर मैने उसके होंठों से अपने निपल सटा दिए. पहले वो थोड़ा झिझका फिर धीरे से उसके होंठ खुले और मेरा एक निपल मुँह मे प्रवेश कर गया. वो अपने जीभ से निपल के टिप को गुदगुदाने लगा.

"कैसे हैं?" मैने शरारत से पूछा.

उसका मुँह मे मेरे निपल होने के कारण सिर्फ़ "उम्म्म्म" जैसी आवाज़ ही निकली.

"मुझे कुछ भी समझ मे नही आया. ठीक से कहो. मुझे सुनना है."

उसने अपने मुँह को उठाया और मेरे होंठों से दो इंच दूर अपने होंठ लाकर धीरे से कहा. "बहुत अच्छे. मैने कभी इतनी हसीन साथी की कल्पना भी नही की थी. मैं एक ग़रीब…." मैने अपने हाथ उसके मुँह पर रख कर आगे बोलने नही दिया.

"बस अब मुझे सिर्फ़ प्यार करो. मैने अपनी जिंदगी मे कभी अपने जज्बातों को आवारा होने नही दिया. मगर आज मैं झूमना चाहती हूँ. आज सिर्फ़ प्यार पाना चाहती हूँ तुमसे." उसने वापस अपने होंठ मेरे स्तनो पर लगा दिए. मैने उसके सिर को अपनी दोनो चुचियों के बीच की खाई मे दबा दिया.

" आ हाआँ प्लस्सस. हेयेयन आअज मुझे नीचूओद लूओ.पूरा रास पीई जाऊओ. " मैं उसके बालों मे हाथ फिराते हुए बुदबुदाने लगी. उसने मेरे निपल को अपने मुँह मे डाल कर तेज तेज चूसने लगा. मैं "आआआआआआअहह ह उम्म्म्मममम ओफफफफफफफफूऊ" जैसी आवाज़ें अपने मुँह से निकाल रही थी. मैं उसके दूसरे हाथ को आपने दूसरे ब्रेस्ट पर रख कर दबाने लगी. कुछ देर बाद उसने दूसरे निपल को चूसना शुरू कर दिया उसके हाथ मेरे बदन पर घूम रहे थे. स्पर्श इतना हल्का था मानो शारीर पर कोई रुई फिरा रहा हो.
 
[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]कुछ देर बाद उसने मुँह उठा ते हुए कहा, " मेडम….राधा अब भी सम्हल जाइए अब भी वक्त है. हम मे अओर आपमे ज़मीन आसमान का फिर्क़ है." मैं एक झटके से उठी. अपने शरीर से आखरी वस्त्र भी नोच डाला. उसके सामने अब मैं बिल्कुल निवस्त्र थी जबकि वो पूरे कपड़ों मे था. मेरा चेहरा गुस्से मे लाल सुर्ख हो रहा था.

"देखो इस शरीर की एक झलक पाने के लिए कई लोग बेचैन रहते हैं और आज मैं खुद तुम्हारे सामने बेशर्म होकार नंगी खड़ी हूँ और तुम मुझ से दूर भाग रहे हो." मैने कहा, "अगर किसी कोई मुझे इस तरह की हरकतें करते हुए देख ले तो उसे अपनी आँखों पर विस्वास नहीं होगा. मुझे सब कठोर, ठंडी और मगरूर लड़की समझते हैं. और तुम?…देखो किस तरह मुझे अपने सामने निर्लज्ज होकर गिड़गिदाने पर मजबूर कर रहे हो. अगर इतना ही सोचना था तो पहले दिन ही मुझसे दूर हो जाते. क्यों हवा दी तुमने मेरे जज्बातों को?"

मैने उसका हाथ पकड़ खींच कर उठा दिया और लगभग खींचते हुए बेडरूम मे ले गई. उसे बेड के पास खड़ा कर के मैं उसके कपड़ों पर ऐसे टूट पड़ी मानो कोई भूखा किसी स्वादिस्त खाने को देख कर

टूट पड़ता है. कुछ ही देर मे वो भी मेरी ही हालात मे आगाया.

आज पहली बार मैने उसे पूरी तरह नग्न अवस्था मे देखा था. कॅबिन मे आने के बाद वो हमेशा बदन पर पयज़ामा पहना रहता था. जिसे ढीला करके मैं उसके लंड को प्यार करती थी. मैने उसे एक ज़ोर का धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया. उसे बिस्तर पर पटक कर मैं उस पर चढ़ बैठी. उसके शरीर के एक एक अंग को चूमने चाटने लगी. उसके निपल्स को दाँतों से हल्के से काट दिया. उसके होंठों से अपने होंठ रगड़ ते हुए अपनी जीभ उसके मुँह मे दे दिया. वो भी मेरी जीभ को चूसने लगा. मेरे हाथ उसके लंड को सहला रहे थे.

मैं उसके पैरों के अंगूठे और उंगलियों को चूमते हुए उपर बढ़ने लगी. उपर आते आते मेरे होंठ उसकी टाँगों के जोड़ तक पहुँच गये. मैने अपनी जीभ निकाल कर उसके अंडकोषों पर फिराना शुरू किया. मैने अब अपना ध्यान उसके लंड पर कर दिया. पहले उसके लंड को चूमा फिर उसे मुँह मे ले कर चूसने लगी. लंड का साइज़ बढ़ कर लंबा और मोटा हो गया. उसका साइज़ देख कर एक बार तो मैं सिहर गयी थी कि ये दानव तो मेरी योनि को फाड़ कर रख देगा.

"बहुत ही शैतान है ये. इसने मुझे ऐसा रोग लगाया कि अब ये मेरा नशा बन गया है. आज मैं इसे ठंडा करूँगी अपने पानी से." फिर मैने उनको उल्टा करने की कोशिश की तो उन्हों ने खुद ही करवट बदल कर पेट के बल लेट कर मेरी कोशिश आसान कर दी. मैं अब अपने होंठों को उनकी पीठ पर चलाने लगी. मेहनत का काम करते रहने के कारण उनके बदन बहुत ही बलिष्ठ और सख़्त था. मुझे अपने कोमल बदन को उनके बदन से रगड़ने मे मज़ा आ रहा था ऐसा लग रहा था मानो मैं अपने बदन को किसी दीवार से रगड़ रही हूँ. मैने उनकी पूरी पीठ पर और उनके नितंबों पर अपनी जीभ फिरा कर उनको खूब प्यार किया.

काफ़ी देर ताक हम दोनो एक दूसरे के बदन से खेलते रहे. फिर मैं उसकी तरफ देख कर बोली, " आज मैं अपना कोमार्य तुम्हें भेंट कर रही हूँ. इससे महनगी कोई चीज़ मेरे पास नहीं है. ये मेरे दिल मे तुम्हारे लिए कितना प्यार है उसे दर्शाती है. प्लीज़ मुझे लड़की से आज औरत बना दो."

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jaySuper memberPosts: 7900Joined: 15 Oct 2014 22:49Contact: 
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Re: राधा का राज[/font]


[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]Post by jay » 08 Nov 2014 20:19[/font]
मैने उसे चित लिटाकर उसका खड़े लंड के दोनो ओर अपने घुटनो को मोड़ कर बैठी. मैने उनके लंड को अपने चूत के मुहाने पार रख कर उनके लंड पर बैठने के लिए ज़ोर लगाई मगर अनारी होने के कारण एवं मेरी चूत का साइज़ छ्होटा होने के कारण लंड अंदर नाहीं जा पाया. मैने फिर अपनी कमर उठाकर उसके लंड को अपने हाथों से सेट किया और शरीर को ज़ोर से नीचे किया मगर फिर उसका लंड फिसल गया. मैने झुंझला कर उसकी ओर देखा.

"कुछ करो नाआ. कैसे आदमी हो तब से मैं कोशिश कर रही हूँ और तुम चुप चाप पड़े हुए हो. क्या हो गया है तुम्हे." तब जाकर उसने अपनी झिझक को ख़त्म कर के मुझे बिस्तर पर पाटक दिया. मेरी टाँगों को चौड़ा कर के मेरी चूत को चूम लिया.

" ये हुआ ना असली मर्द. वाह मेरे शेर! मसल दो मुझे. मेरी सारी गर्मी निकाल दो" उसने अपनी जीभ निकाल कर मेरी योनि मे घुसने लगा मैने अपने दोनो हाथों से अपनी योनि के फांकों को चौड़ा करके उसकी जीभ का स्वागत किया. वो मेरी योनि मे जीभ फिराने लगा. एक तेज सिहरन सी पूरे बदन मे दौड़ने लगी. मुझे लगने लगा कि अब वो उठे और मेरे योनि मे चल रही खुजली को शांत कर दे. मैं अपने हाथों से उसके सिर को अपनी योनि पर दबाने लगी. इस कोशिश मे मेरी कमर भी बिस्तर छोड़ कर उसकी जीभ को पाने के लिए उपर उठने लगी.

काफ़ी देर तक मेरी गीली चूत पर जीभ फिराने के बाद वो उठा. मैं तो उसके जीभ से ही एक बार झाड़ गयी.

"राआाज बस और नही. प्लीज़ अब और मत सताओ. अब बस मुझे अपने लंड से फाड़ डालो. आआअहह राआाज आअज मुझे पता चला कि इसमे कितना मज़ा छिपा होता है. म्‍म्म्ममममम" उसने मेरी टाँगों को उठा कर अपने कंधे पर रखा और अपने लंड को मेरी टपकती चूत पर रख कर एक ज़ोर दार धक्का मारा.

" आआआआआः उउउउउउउउईईईई माआआआ" उसका लंड रास्ता बनाता हुआ आगे बढ़कर मेरे कौमार्य की झिल्ली पर जा रुका. उसने मेरी ओर देख कर एक मुस्कुराहट दी.

"ये तुम्हारे लिए है मेरी जान तुम्हारे लिए ही तो बचा कर रखा था. लो इस पर्दे को हटा कर मुझे अपना लो."

अब उसने एक और ज़ोर दार धक्का मारा तो पूरा लंड मेरे अंदर फाड़ता हुआ समा गया. "ऊऊऊओफ़ माअर ही डालोगे क्या? ऊउउउउईईईईइ मा मर गई" मैं बुरी तरह तड़पने लगी. वो लंड को पूरा अंदर डाल कर कुछ देर रुका. अपने लंड को उसी अवस्था मे रोक कर वो मेरे उपर लेट गया. वो मेरे होंठों को चूमने लगा. मैने भी आगे बढ़ कर उसके होंठ अपने दांतो के बीच दबा कर उसे चूमने लगी. इस तरह मेरे ध्यान योनि से उठ रही दर्द की लहरों की तरफ से हट गया. मैं उत्तेजित तो पूरी तरह ही हो रही थी. मैने अपने लंबे नाख़ून उसकी पीठ पर गढ़ा दिए. जिससे हल्का हल्का खून रिसने लगा था.धीरे धीरे मेरा दर्द गायब हो गया. उसने अपने लंड को पूरा बाहर निकाल कर मुझे सिर से पकड़ कर कुछ उठाया और अपने लंड को दिखाया. लंड पर खून के कुछ कतरे लगे हुए थे. मैं खुशी से झूम उठी. मैने अपने हाथों से उसके लंड को पकड़ कर खुद ही अपनी टाँगे चौड़ी कर के अपनी योनि मे डाल लिया. उसने वापस अपने लंड को जड़ तक मेरी योनि मे डाल दिया.

उसने लंड को थोड़ा बाहर निकाल कर वापस अंदर डाल दिया. फिर तो उसने खूब ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाए. मैं भी पूरी ज़ोर से नीचे से उसका साथ दे रही थी. अंदर बाहर अंदर बाहर जबरदस्त धक्के लग रहे थे. 45 मिनट के बाद वो मेरे अंदर ढेर सारा वीर्य उधेल दिया. मैं तो तब ताक तीन बार निकाल चुकी थी. वो थॅक कर मेरे शरीर पर लेट गया. मैं तो उसकी मर्दानगी की कायल हो चुकी थी. हम एक दूसरे को चूम रहे थे और एक दूसरे के बदन पर हाथ फिरा रहे थे.
 
कुछ देर बाद वो बगल मे लेट गया मैं उस हालत मे उसके सीने के ऊपर अपना सिर रख कर उसके सीने के बालों से खेलने लगी.वो मेरे बालों से खेल रहा था.

" थॅंक यू" मैने कहा "मैं आज बहुत खुश हूँ. मेरा एक एक अंग तुम्हारी मर्दानगी का कायल हो गया है. मुझे लड़की से औरत बनाने वाला एक जबरदस्त लंड है. जिसके धक्के खाकर तो मेरी हालत पतली हो गयी. मगर खुश मत होना आज सारी रात तुम्हारी बरबादी करूँगी." वो मुस्कुरा रहा था.

"क्यों मन नही भरा अब भी?" उसने मुस्कुराते हुए पूछा.

"इतनी जल्दी कभी मन भर सकता है क्या?" वो मेरे निपल्स से खेलते हुए हँसने लगा.

मैने उसकी आँखो मे झाँकते हुए पूछा, " अब बोलो मुझ से प्यार करते हो? देखो ये चादर हम दोनो के मिलन की गवाह है." मैने चादर पर लगे खून के धब्बों की ओर इशारा किया. उसने सिर हिलाया.

"मुझसे शादी करोगे? धात मैं भी कैसी पगली हूँ आज तक मैने तो तुमसे पूछा भी नहीं कि तुम शादीशुदा हो कि नहीं और देखो अपना सब कुछ तुम्हे दे दिया."

" अगर मैं कहूँ कि मैं शादीशुदा हूँ तो ?" उसने अपने होंठों पर एक कुटिल मुस्कान लाते हुए पूछा.

" तो क्या? मेरी किस्मत. अब तो तुम ही मेरे सब कुछ हो. चाहे जिस रूप मे मुझे स्वीकार करो" मेरी आँखें नम हो गयी.

" जब सब सोच ही लिया तो फिर तुम जब चाहे फेरों का बंदोबस्त कर लो. मैं अपने घर भी खबर कर देता हूँ." उसने कहा.

" येस्स्स!" मैने अपने दोनो हाथ हवा मे उँचे कर दिए फिर उस पर भूकी शेरनी की तरह टूट पड़ी. इस बार उसने भी मुझे अपने ऊपर खींच लिया. एक और मरथोन राउंड चला. इस बार मैं उस पर चढ़ कर उसके लंड पर चढ़ाई कर रही थी. अब शरम किस लिए ये तो अब मेरा होने वाला शोहार था. काफ़ी देर तक करने के बाद उसने मुझे चौपाया बना कर पीछे से अपना लंड डाल कर धक्के मारने लगा. मेरी नज़र सिरहाने की तरफ डॉक्टोरेस्सैंग टेबल पर लगे मिरर पर गया. बड़ी शानदार जोड़ी लग रही थी. वो पीछे से धक्के लगा रहा था और मेरे बड़े बड़े उरोज़ आगे पीछे उच्छल रहे थे. मैं पोज़िशन चेंज कर के मिरर के सामानांतर अगाई. उसका मोटा काला लंड मेरी चूत मे जाता हुआ काफ़ी एग्ज़ाइटिंग लग रहा था. मैं एक के बाद एक कई बार लगातार अपना पानी छोड़ने लगी. लेकिन उसका तब भी नही निकला था. उसके बाद भी वो काफ़ी देर तक करता रहा. फिर उसने ढेर सारा वीर्य मेरी योनि मे डाल दिया. उसका वीर्य मेरी योनि से उफन कर बिस्तर पर गिर रहा था. वो थक कर मेरे उपर गिर पड़ा. मैं उसके वजन को अपने हाथों और पैरों के बल सम्हल नही पाई और मैं भी उसके बदन के नीच ढेर हो गयी. हम दोनो पसीने से लथपथ हो रहे थे. कुछ देर तक एक दूसरे को चूमते हुए लेटे रहे.
 
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