hotaks444
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मै मां के पीछे खडा होकर उनकी बांहो को छूते हुये बाबुजी से पूछा,
“बाबुजी आप मां के साथ होली नही खेलेंगें?”
“खेलेंगे , लेकिन रात को....” बाबुजी ने मुस्की मारते हुये कहा और वापस मुझसे पुछा,
“लेकिन तु अपनी मां के साथ होली खेला कि नही...?” उन्होने मां की ओर देखते हुये कहा , ”तेरी इस मस्तानी मां के साथ होली खेलने के लिये सभी साल भर इन्तंजार करते है. “
मां ने हमारी ओर गुस्से से देखते हुये कहा “ क्या फालतू बात कर रहे हो, बच्चे को बिगाड रहे हो...कोई मां से भी होली खेलता है क्या...”
“साली, रंडी , बेटे का पूरा लौडा खा गयी और अब सती- सावित्री बन रही है. मैने सोचा कि मां को इस हालत में देखकर बाबुजी भी गरमा गये है...और चुंकि मेरे सामने अपनी बीबी के साथ मस्ती मारने मे शरमा रहे है, इस लिये मुझे भडका रहे है कि मै मां को और मस्त करुं.
“देखिये ना बाबुजी , मै इतने सालो के बाद होली में घर पर हूं तो भी मां मुझे रंग नही लगाने दे रही है.., मैने कितना खुशामद किया फिर भी मुझे रंग नही लगाने दिया...” मैने मां की गोरी –चिकनी बांहो को सहलाते हुये कहा...
“और इसी गुस्से मे तुमने मेरा साडी खोल कर फेक दिया....” मां ने मेरी बात काटते हुये कहा, “चलो कोई बात नही, आज मै तुम लोगों के सामने ऐसी ही रहुंगी...”
“लेकिन मां रंग लगाने दो ना....” मैने मां की गालो को सहलाते हुये कहा.. ”चल, हट् जा..” मां ने मुझे कोहनी से धक्का मारते हुये कहा..”बाहर जा , बहुत लडकी मिल जायेगी , उनको ही रंग लगाना....मां के साथ बच्चे रंग नही खेलते...जा मुझे काम करने दे..”
“ अरे रानी, जिद्द क्यो करती हो ? इतने सालो बाद तो बेटा होली पर घर मे है....पहले कैसे हर साल होली पर रोती रहती थी कि ‘बेटा होली में घर क्यों नही आता है..और इस बार जब वो है तो नखडा मार रही हो....लगाने दो रंग , खेलो होली बेटे के साथ...” बाबुजी ने मां क़ॉ बडा सा लेक्चर दे दिया.
“मैने गालों और बाहों पर तो रंग लगाने दिया था. “ मां ने सफाई दी.
“लेकिन मुझे तो तुम्हारे साथ ऐसे रंग खेलना था जैसे एक जवान लडका और लडकी होली खेलते है..” मैने मां को अपनी ओर घुमाते हुये कहा.
मां ने गैस बंद कर दिया और आंखे नीची किये हुये कहा, “बेटा, मै तुम्हरी मां हूं, दोस्त नही..बस गाल मे लगा दिया वही बहुत है...” मां ने अपना दोनो हाथ मेरे कंधो पर रख्खा और कहा ,
“ठीक है, चलो एक बार मै तुम्हे चुमने देती हूं... जहां मन है चुम लो...”
वो सीधी खडी हो गयी और अपना आंख बंद कर लीया. मैने बाबुजी कि ओर देखा. बाबुजी मेरा असमंजस समझ गये... ”बेटा, इतना अछ्छा मौका कहां मिलेगा!. ळे लो , चुम लो ..जल्दी करो नही तो वो फिर कुछ नहीं करने देगी. “ बाबुजी ने भी इजाजत दे दी.
फिर क्या था. मैने एक हाथ मां की पीठ पर रख कर उनको अपनी ओर खींचा और दोनो हाथों मे कस कर बांध लिया. मै ने खुब जोर से दबाया और मां कसमसाने लगी. एक हाथ आगे लाकर उनकी गुलाबी चिकनी गालो को सहलाया और कुछ देर सहलाने के बाद गाल को सहलाते सहलाते मैने मां के चेहरे को उपर उठाया और अपने ओंठों को मां की रसीली ओंठों के उपर रख्खा और धीरे धीरे चूमने लगा. थोडी देर पहले मैने मां को जम कर चोदा था लेकिन अभी बाबुजी के सामने मां को चुमने मे जो मजा आ रहा था वो कुछ और ही था. पहले धीरे धीरे फिर खुब जोर से ओंठों को चूसा और चुम्मा लेते लेते मै एक हाथ् मां चुची पर रख कर हौले हौले चुची को सहलाने लगा..मां फिर कसमसाने लगी लेकिन मैने उसे अलग होने नही दिया और जोर जोर से चुची को मसला... मै मा को चुमता रहा और चुची को इतना और इस तरह से मसला कि ब्लाउज के सारे बटन खुल गये और मेरे हाथों में मां की नंगी चुची थी. चुमना जारी रखते हुये मैं ने बाबुजी कि ओर देखा तो उनके चेहरे पे कोई गुस्सा नही था. थोडी देर तक चुची को और मसला और हाथ को मां के पेट को सहलाते हुये कमर पर हाथ लाया. मस्त , चीकनी कमर को सहलाना बहुत अछ्छा लग रहा था और तभी मुझे लगा कि मां अपनी हांथो से मेरे पीठ को सहलाते सहलाते मेरे चुत्तरो को दबाने लगी है और मुझे अपनी ओर दबा रही है. मैने मां की ओंठों को चूमना छोड उनकी गालो को चुमा, चूसा और काटा भी. मां ने अपनी आंखे खोल दी थी. मैने उनकी आंखो में मुस्कुरा कर देखा और एक चुची की घुंडी को अंगुली से रगडते - रगडते दुसरी चुची को चुसने लगा. अब मै आराम से मां की चुची का पुरा मजा ले ले कर दबा रहा था, चूस रहा और साथ में घून्डीओ का भी स्वाद ले रहा था जैसे बचपन मे मां का दुध पीता था. अब मां भी आराम से बेटे को अपना दुध पिला रही थी.
“देखा आपने, साले को थोडी सी छूट दी तो आपके लाडले ने ब्लाउज ही उताड दिया...” मां ने बाबुजी से शिकायत की लेकिन मुझे अपनी चुची से अलग नहीं किया. मै मां की चुचीओं का मजा ले रहा था साथ ही उनकी मख्खन जैसी चिकनी और लचकिली कमर को भी सहला रहा था. मां को अन्दाजा था कि मेरा अगला कदम क्या होगा..तभी उन्होने फिर बाबुजी से कहा,
“अब अपने बेटे को हट्ने के लिये कहो , पता नहीं , इसका क्या ईरादा है?
“बाबुजी आप मां के साथ होली नही खेलेंगें?”
“खेलेंगे , लेकिन रात को....” बाबुजी ने मुस्की मारते हुये कहा और वापस मुझसे पुछा,
“लेकिन तु अपनी मां के साथ होली खेला कि नही...?” उन्होने मां की ओर देखते हुये कहा , ”तेरी इस मस्तानी मां के साथ होली खेलने के लिये सभी साल भर इन्तंजार करते है. “
मां ने हमारी ओर गुस्से से देखते हुये कहा “ क्या फालतू बात कर रहे हो, बच्चे को बिगाड रहे हो...कोई मां से भी होली खेलता है क्या...”
“साली, रंडी , बेटे का पूरा लौडा खा गयी और अब सती- सावित्री बन रही है. मैने सोचा कि मां को इस हालत में देखकर बाबुजी भी गरमा गये है...और चुंकि मेरे सामने अपनी बीबी के साथ मस्ती मारने मे शरमा रहे है, इस लिये मुझे भडका रहे है कि मै मां को और मस्त करुं.
“देखिये ना बाबुजी , मै इतने सालो के बाद होली में घर पर हूं तो भी मां मुझे रंग नही लगाने दे रही है.., मैने कितना खुशामद किया फिर भी मुझे रंग नही लगाने दिया...” मैने मां की गोरी –चिकनी बांहो को सहलाते हुये कहा...
“और इसी गुस्से मे तुमने मेरा साडी खोल कर फेक दिया....” मां ने मेरी बात काटते हुये कहा, “चलो कोई बात नही, आज मै तुम लोगों के सामने ऐसी ही रहुंगी...”
“लेकिन मां रंग लगाने दो ना....” मैने मां की गालो को सहलाते हुये कहा.. ”चल, हट् जा..” मां ने मुझे कोहनी से धक्का मारते हुये कहा..”बाहर जा , बहुत लडकी मिल जायेगी , उनको ही रंग लगाना....मां के साथ बच्चे रंग नही खेलते...जा मुझे काम करने दे..”
“ अरे रानी, जिद्द क्यो करती हो ? इतने सालो बाद तो बेटा होली पर घर मे है....पहले कैसे हर साल होली पर रोती रहती थी कि ‘बेटा होली में घर क्यों नही आता है..और इस बार जब वो है तो नखडा मार रही हो....लगाने दो रंग , खेलो होली बेटे के साथ...” बाबुजी ने मां क़ॉ बडा सा लेक्चर दे दिया.
“मैने गालों और बाहों पर तो रंग लगाने दिया था. “ मां ने सफाई दी.
“लेकिन मुझे तो तुम्हारे साथ ऐसे रंग खेलना था जैसे एक जवान लडका और लडकी होली खेलते है..” मैने मां को अपनी ओर घुमाते हुये कहा.
मां ने गैस बंद कर दिया और आंखे नीची किये हुये कहा, “बेटा, मै तुम्हरी मां हूं, दोस्त नही..बस गाल मे लगा दिया वही बहुत है...” मां ने अपना दोनो हाथ मेरे कंधो पर रख्खा और कहा ,
“ठीक है, चलो एक बार मै तुम्हे चुमने देती हूं... जहां मन है चुम लो...”
वो सीधी खडी हो गयी और अपना आंख बंद कर लीया. मैने बाबुजी कि ओर देखा. बाबुजी मेरा असमंजस समझ गये... ”बेटा, इतना अछ्छा मौका कहां मिलेगा!. ळे लो , चुम लो ..जल्दी करो नही तो वो फिर कुछ नहीं करने देगी. “ बाबुजी ने भी इजाजत दे दी.
फिर क्या था. मैने एक हाथ मां की पीठ पर रख कर उनको अपनी ओर खींचा और दोनो हाथों मे कस कर बांध लिया. मै ने खुब जोर से दबाया और मां कसमसाने लगी. एक हाथ आगे लाकर उनकी गुलाबी चिकनी गालो को सहलाया और कुछ देर सहलाने के बाद गाल को सहलाते सहलाते मैने मां के चेहरे को उपर उठाया और अपने ओंठों को मां की रसीली ओंठों के उपर रख्खा और धीरे धीरे चूमने लगा. थोडी देर पहले मैने मां को जम कर चोदा था लेकिन अभी बाबुजी के सामने मां को चुमने मे जो मजा आ रहा था वो कुछ और ही था. पहले धीरे धीरे फिर खुब जोर से ओंठों को चूसा और चुम्मा लेते लेते मै एक हाथ् मां चुची पर रख कर हौले हौले चुची को सहलाने लगा..मां फिर कसमसाने लगी लेकिन मैने उसे अलग होने नही दिया और जोर जोर से चुची को मसला... मै मा को चुमता रहा और चुची को इतना और इस तरह से मसला कि ब्लाउज के सारे बटन खुल गये और मेरे हाथों में मां की नंगी चुची थी. चुमना जारी रखते हुये मैं ने बाबुजी कि ओर देखा तो उनके चेहरे पे कोई गुस्सा नही था. थोडी देर तक चुची को और मसला और हाथ को मां के पेट को सहलाते हुये कमर पर हाथ लाया. मस्त , चीकनी कमर को सहलाना बहुत अछ्छा लग रहा था और तभी मुझे लगा कि मां अपनी हांथो से मेरे पीठ को सहलाते सहलाते मेरे चुत्तरो को दबाने लगी है और मुझे अपनी ओर दबा रही है. मैने मां की ओंठों को चूमना छोड उनकी गालो को चुमा, चूसा और काटा भी. मां ने अपनी आंखे खोल दी थी. मैने उनकी आंखो में मुस्कुरा कर देखा और एक चुची की घुंडी को अंगुली से रगडते - रगडते दुसरी चुची को चुसने लगा. अब मै आराम से मां की चुची का पुरा मजा ले ले कर दबा रहा था, चूस रहा और साथ में घून्डीओ का भी स्वाद ले रहा था जैसे बचपन मे मां का दुध पीता था. अब मां भी आराम से बेटे को अपना दुध पिला रही थी.
“देखा आपने, साले को थोडी सी छूट दी तो आपके लाडले ने ब्लाउज ही उताड दिया...” मां ने बाबुजी से शिकायत की लेकिन मुझे अपनी चुची से अलग नहीं किया. मै मां की चुचीओं का मजा ले रहा था साथ ही उनकी मख्खन जैसी चिकनी और लचकिली कमर को भी सहला रहा था. मां को अन्दाजा था कि मेरा अगला कदम क्या होगा..तभी उन्होने फिर बाबुजी से कहा,
“अब अपने बेटे को हट्ने के लिये कहो , पता नहीं , इसका क्या ईरादा है?