एकदम तीर की तरह नुकीली चुचिया थी दीदी की. भरी-भरी, भारी और गुदाज़. गोल और गदराई हुई. साधारण सलवार कुर्ती में भी गजब की लगती थी. बिना चुन्नी के उनकी चूचियां ऐसे लगती जैसे किसी बड़े नारियल को दो भागो में काट कर उलट कर उनकी छाती से चिपका दिया गया है. घर में दीदी ज्यादातर साड़ी या सलवार कमीज़ में रहती थी . गर्मियों में वो आम तौर पर साड़ी पहनती थी . शायद इसका सबसे बड़ा कारण ये था की वो घर में अपनी साड़ी उतार कर, केवल पेटीकोट ब्लाउज में घूम सकती थी. ये एक तरह से उसके लिए नाईटी या फिर मैक्सी का काम करता था. अगर कही जाना होता था तो वो झट से एक पतली सूती साड़ी लपेट लेती थी. मेरी मौजूदगी से भी उसे कोई अंतर नहीं पड़ता था, केवल अपनी छाती पर एक पतली चुन्नी डाल लेती थी. पेटीकोट और ब्लाउज में रहने से उसे शायद गर्मी कम लगती थी. मेरी समझ से इसका कारण ये हो सकता है की नाईटी पहनने पर भी उसे नाईटी के अन्दर एक स्लिप और पेटीकोट तो पहनना ही पड़ता था, और अगर वो ऐसा नहीं करती तो उसकी ब्रा और पैन्टी दिखने लगते, जो की मेरी मौजूदगी के कारण वो नहीं चाहती थी. जबकि पेटीकोट जो की आम तौर पर मोटे सूती कपड़े का बना होता है एकदम ढीला ढाला और हवादार. कई बार रसोई में या बाथरूम में काम समय मैंने देखा था की वो अपने पेटीकोट को उठा कर कमर में खोस लेती थी जिससे घुटने तक उसकी गोरी गोरी टांगे नंगी हो जाती थी. दीदी की पिंडलियाँ भी मांसल और चिकनी थी. वो हमेशा एक पतला सा पायल पहने रहती थी. मैं दीदी को इन्ही वस्त्रो में देखता रहता था मगर फिर भी उनके साथ एक सम्मान और इज्ज़त भरे रिश्ते की सीमाओं को लांघने के बारे में नहीं सोचता था. वो भी मुझे एक मासूम सा लड़का समझती थी और भले ही किसी भी अवस्था या कपड़े में हो , मेरे सामने आने में नहीं हिचकिचाती थी.
खेर दीदी जिस बाथरूम में गयी थी उसमे लैट्रीन और बाथरूम दोनों को सेपरेट कर दिया गया. इसके लिए बाथरूम के बीच में लकड़ी के पट्टो की सहायता से एक दिवार बना दी गई. ईट की दीवार बनाने में एक तो खर्च बहुत आता दूसरा वो ज्यादा जगह भी लेता, लकड़ी की दीवार इस बाथरूम के लिए एक दम सही थी. लैट्रीन के लिए एक अलग दरवाजा बना दिया गया.
दीदी बाथ रूम में थी और में लेट्रीन में घुस गया ताकि दीदी को नहाते देख सकू .. दीदी शायद कोई गीत गुनगुना रही थी. लैट्रीन में उसकी आवाज़ स्पष्ट आ रही थी.
बहुत आराम से उठ कर लकड़ी के पट्टो पर कान लगा कर ध्यान से सुन ने लगा. केवल चुड़ियो के खन-खनाने और गुन-गुनाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी. फिर नल के खुलने पानी गिरने की आवाज़ सुनाई दी. मेरे अन्दर के शैतान ने मुझे एक आवाज़ दी, लकड़ी के पट्टो को ध्यान से देख. मैंने अपने अन्दर के शैतान की आवाज़ को अनसुना करने की कोशिश की, मगर शैतान हावी हो गया था. दीदी जैसी एक खूबसूरत औरत लकड़ी के पट्टो के उस पार नहाने जा रही थी. मेरा गला सुख गया और मेरे पैर कांपने लगे. अचानक ही पजामा एकदम से आगे की ओर उभर गया. दिमाग का काम अब लण्ड कर रहा था. मेरी आँखें लकड़ी के पट्टो के बीच ऊपर से निचे की तरफ घुमने लगी और अचानक मेरी मन की मुराद जैसे पूरी हो गई. लकड़ी के दो पट्टो के बीच थोड़ा सा गैप रह गया था. सबसे पहले तो मैंने धीरे से हाथ बढा का बाथरूम स्विच ऑफ किया फिर लकड़ी के पट्टो के गैप पर अपनी ऑंखें जमा दी.
दीदी की पीठ लकड़ी की दिवार की तरफ थी. वो सफ़ेद पेटिको़ट और काले ब्लाउज में नल के सामने खड़ी थी. नल खोल कर अपने कंधो पर रखे तौलिये को अपना एक हाथ बढा कर नल की बगल वाली खूंटी पर टांग दिया. फिर अपने हाथों को पीछे ले जा कर अपने खुले रेशमी बालो को समेट कर जुड़ा बना दिया. बाथरूम के कोने में बने रैक से एक क्रीम की बोतल उठा कर उसमे से क्रीम निकाल-निकाल कर अपने चेहरे के आगे हाथ घुमाने लगी. पीछे से मुझे उनका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था मगर ऐसा लग रहा था की वो क्रीम निकाल कर अपने चेहरे पर ही लगा रही है. लकड़ी के पट्टो के गैप से मुझे उनके सर से चुत्तरों के थोड़ा निचे तक का भाग दिखाई पड़ रहा था. क्रीम लगाने के बाद अपने पेटिको़ट को घुटनों के पास से पकर कर थोड़ा सा ऊपर उठाया और फिर थोड़ा तिरछा हो कर निचे बैठ गई. इस समय मुझे केवल उनका पीठ और सर नज़र आ रहा थे. पर अचानक से सिटी जैसी आवाज़ जो की औरतो के पेशाब करने की एक विशिष्ट पहचान है वो सुनाई दी. दीदी इस समय शायद वही बाथरूम के कोने में पेशाब कर रही थी. मेरे बदन में सिहरन दौर गई. मैं कुछ देख तो सकता नहीं था मगर मेरे दिमाग ने बहुत सारी कल्पनाये कर डाली. पेशाब करने की आवाज़ सुन कर लण्ड ने झटका खाया. मगर अफ़सोस कुछ देख नहीं सकता था.
फिर थोड़ी देर में वो उठ कर खड़ी हो गई और अपने हाथो को कुहनी के पास से मोर कर अपनी छाती के पास कुछ करने लगी. मुझे लगा जैसे वो अपना ब्लाउज खोल रही है. मैं दम साधे ये सब देख रहा था. मेरा लण्ड इतने में ही एक दम खड़ा हो चूका था. दीदी ने अपना ब्लाउज खोल कर अपने कंधो से धीरे से निचे की तरफ सरकाते हुए उतार दिया. उनकी गोरी चिकनी पीठ मेरी आँखों के सामने थी. पीठ पर कंधो से ठीक थोड़ा सा निचे एक काले रंग का तिल था और उससे थोड़ा निचे उनकी काली ब्रा का स्ट्रैप बंधा हुआ था. इतनी सुन्दर पीठ मैंने शायद केवल फ़िल्मी हेरोइनो की वो भी फिल्मो में ही देखी थी. वैसे तो मैंने दीदी की पीठ कई बार देखि थी मगर ये आज पहली बार था जब उनकी पूरी पीठ नंगी मेरी सामने थी, केवल एक ब्रा का स्ट्रैप बंधा हुआ था. गोरी पीठ पर काली ब्रा का स्ट्रैप एक कंट्रास्ट पैदा कर रहा था और पीठ को और भी ज्यादा सुन्दर बना रहा था. मैंने सोचा की शायद दीदी अब अपनी ब्रा खोलेंगी मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया. अपने दोनों हाथो को बारी-बारी से उठा कर वो अपनी कांख को देखने लगी. एक हाथ को उठा कर दुसरे हाथ से अपनी कांख को छू कर शायद अपने कांख के बालो की लम्बाई का अंदाज लगा रही थी. फिर वो थोड़ा सा घूम गई सामने लगे आईने में अपने आप को देखने लगी. अब दीदी का मुंह बाथरूम में रखे रैक और उसकी बगल में लगे आईने की तरफ था. मैंने सोच रहा था काश वो पूरा मेरी तरफ घूम जाती मगर ऐसा नहीं हुआ. उनकी दाहिनी साइड मुझे पूरी तरह से नज़र आ रही थी. उनका दाहिना हाथ और पैर जो की पेटिको़ट के अन्दर था पेट और ब्रा में कैद एक चूची, उनका चेहरा भी अब चूँकि साइड से नज़र आ रहा था इसलिए मैंने देखा की मेरा सोचना ठीक था और उन्होंने एक पीले रंग का फेसमास्क लगाया हुआ था. अपने सुन्दर मुखरे को और ज्यादा चमकाने के लिए. अब दीदी ने रैक से एक दूसरी क्रीम की बोतल अपने बाएं हाथ से उतार ली और उसमे से बहुत सारा क्रीम अपनी बाई हथेली में लेकर अपने दाहिने हाथ को ऊपर उठा दिया. दीदी की नंगी गोरी मांसल बांह अपने आप में उत्तेजना का शबब थी और अब तो हाथ ऊपर उठ जाने के कारण दीदी की कांख दिखाई दे रही थी. कांख के साथ दीदी की ब्रा में कैद दाहिनी चूची भी दिख रही थी. ब्रा चुकी नोर्मल सा था इसलिए उसने पूरी चूची को अपने अन्दर कैद किया हुआ था इसलिए मुझे कुछ खास नहीं दिखा, मगर उनकी कांख कर पूरा नज़ारा मुझे मिल रहा था. दीदी की कांख में काले-काले बालों का गुच्छा सा उगा हुआ था. शायद दीदी ने काफी दिनों से अपने कांख के बाल नहीं बनाये थे. वैसे तो मुझे औरतो के चिकने कांख ही अच्छे लगते है पर आज पाता नहीं क्या बात थी मुझे दीदी के बालों वाले कांख भी बहुत सेक्सी लग रहे थे. मैं सोच रहा था इतने सारे बाल होने के कारण दीदी की कांख में बहुत सारा पसीना आता होगा और उसकी गंध भी उन्ही बालों में कैद हो कर रह जाती होगी. दीदी के पसीने से भीगे बदन को कई बार मैंने रसोई में देखा था. उस समय उनके बदन से आती गंध बहुत कामोउत्तेजक होती थी और मुझे हवा तैरते उसके बदन के गंध को सूंघना बहुत अच्छा लगता था. ये सब सोचते सोचते मेरा मन किया की काश मैं उसकी कांख में एक बार अपने मुंह को ले जा पाता और अपनी जीभ से एक बार उसको चाटता. मैंने अपने लण्ड पर हाथ फेरा तो देखा की सुपाड़े पर हल्का सा गीलापन आ गया है. तभी दीदी ने अपने बाएं हाथ की क्रीम को अपनी दाहिने हाथ की कांख में लगा दिया और फिर अपने वैसे ही अपनी बाई कांख में भी दाहिने हाथ से क्रीम लगा दिया. शायद दीदी को अपने कान्खो में बाल पसंद नहीं थे.
कान्खो में हेयर रिमूविंग क्रीम लगा लेने के बाद दीदी फिर से नल की तरफ घूम गई और अपने हाथ को पीछे ले जाकर अपनी ब्रा का स्ट्रैप खोल दिया और अपने कंधो से सरका कर बहार निकाल फर्श पर दाल दिया और जल्दी से निचे बैठ गई. अब मुझे केवल उनका सर और थोड़ा सा गर्दन के निचे का भाग नज़र आ रहा था. अपनी किस्मत पर बहुत गुस्सा आया. काश दीदी सामने घूम कर ब्रा खोलती या फिर जब वो साइड से घूमी हुई थी तभी अपनी ब्रा खोल देती मगर ऐसा नहीं हुआ था और अब वो निचे बैठ कर शायद अपनी ब्लाउज और ब्रा और दुसरे कपड़े साफ़ कर रही थी. मैंने पहले सोचा की निकल जाना चाहिए, मगर फिर सोचा की नहाएगी तो खड़ी तो होगी ही, ऐसे कैसे नहा लेगी. इसलिए चुप-चाप यही लैट्रिन में ही रहने में भलाई है. मेरा धैर्य रंग लाया थोड़ी देर बाद दीदी उठ कर खड़ी हो गई और उसने पेटीकोट को घुटनों के पास से पकड़ कर जांघो तक ऊपर उठा दिया. मेरा कलेजा एक दम धक् से रह गया. दीदी ने अपना पेटिकोट पीछे से पूरा ऊपर उठा दिया था. इस समय उनकी जांघे पीछे से पूरी तरह से नंगी हो गई थी. मुझे औरतो और लड़कियों की जांघे सबसे ज्यादा पसंद आती है. मोटी और गदराई जांघे जो की शारीरिक अनुपात में हो, ऐसी जांघे. पेटीकोट के उठते ही मेरे सामने ठीक वैसी ही जांघे थी जिनकी कल्पना कर मैं मुठ मारा करता था. एकदम चिकनी और मांसल. जिन पर हलके हलके दांत गरा कर काटते हुए जीभ से चाटा जाये तो ऐसा अनोखा मजा आएगा की बयान नहीं किया जा सकता. दीदी की जांघे मांसल होने के साथ सख्त और गठी हुई थी उनमे कही से भी थुलथुलापन नहीं था. इस समय दीदी की जांघे केले के पेड़ के चिकने तने की समान दिख रही थी. मैंने सोचा की जब हम केले पेड़ के तने को अगर काटते है या फिर उसमे कुछ घुसाते है तो एक प्रकार का रंगहीन तरल पदार्थ निकलता है शायद दीदी के जांघो को चूसने और चाटने पर भी वैसा ही रस निकलेगा. मेरे मुंह में पानी आ गया. लण्ड के सुपाड़े पर भी पानी आ गया था. सुपाड़े को लकड़ी के पट्टे पर हल्का सा सटा कर उस पानी को पोछ दिया और पैंटी में कसी हुई दीदी के चुत्तरों को ध्यान से देखने लगा. दीदी का हाथ इस समय अपनी कमर के पास था और उन्होंने अपने अंगूठे को पैंटी के इलास्टिक में फसा रखा था. मैं दम साधे इस बात का इन्तेज़ार कर रहा था की कब दीदी अपनी पैंटी को निचे की तरफ सरकाती है. पेटीकोट कमर के पास जहा से पैंटी की इलास्टिक शुरू होती है वही पर हाथो के सहारे रुका हुआ था. दीदी ने अपनी पैंटी को निचे सरकाना शुरू किया और उसी के साथ ही पेटीकोट भी निचे की तरफ सरकता चला गया. ये सब इतनी तेजी से हुआ की दीदी के चुत्तर देखने की हसरत दिल में ही रह गई. दीदी ने अपनी पैंटी निचे सरकाई और उसी साथ पेटीकोट भी निचे आ कर उनके चुत्तरों और जांघो को ढकता चला गया. अपनी पैंटी उतार उसको ध्यान से देखने लगी पता नहीं क्या देख रही थी. छोटी सी पैंटी थी, पता नहीं कैसे उसमे दीदी के इतने बड़े चुत्तर समाते है. मगर शायद यह प्रश्न करने का हक मुझे नहीं था क्यों की अभी एक क्षण पहले मेरी आँखों के सामने ये छोटी सी पैंटी दीदी के विशाल और मांसल चुत्तरों पर अटकी हुई थी. कुछ देर तक उसको देखने के बाद वो फिर से निचे बैठ गई और अपनी पैंटी साफ़ करने लगी. फिर थोड़ी देर बाद ऊपर उठी और अपने पेटीकोट के नाड़े को खोल दिया. मैंने दिल थाम कर इस नज़ारे का इन्तेज़ार कर रहा था. कब दीदी अपने पेटीकोट को खोलेंगी और अब वो क्षण आ गया था. लौड़े को एक झटका लगा और दीदी के पेटीकोट खोलने का स्वागत एक बार ऊपर-निचे होकर किया. मैंने लण्ड को अपने हाथ से पकर दिलासा दिया. नाड़ा खोल दीदी ने आराम से अपने पेटीकोट को निचे की तरफ धकेला पेटीकोट सरकता हुआ धीरे-धीरे पहले उसके तरबूजे जैसे चुत्तरो से निचे उतरा फिर जांघो और पैर से सरक निचे गिर गया. दीदी वैसे ही खड़ी रही. इस क्षण मुझे लग रहा था जैसे मेरा लण्ड पानी फेंक देगा. मुझे समझ में नहीं आ रहा था मैं क्या करू. मैंने आज तक जितनी भी फिल्में और तस्वीरे देखी थी नंगी लड़कियों की वो सब उस क्षण में मेरी नजरो के सामने गुजर गई और मुझे यह अहसास दिला गई की मैंने आज तक ऐसा नज़ारा कभी नहीं देखा. वो तस्वीरें वो लड़कियाँ सब बेकार थी. उफ़ दीदी पूरी तरह से नंगी हो गई थी. हालाँकि मुझे केवल उनके पिछले भाग का नज़ारा मिल रहा था, फिर भी मेरी हालत ख़राब करने के लिए इतना ही काफी था. गोरी चिकनी पीठ जिस पर हाथ डालो तो सीधा फिसल का चुत्तर पर ही रुकेंगी. पीठ के ऊपर काला तिल, दिल कर रहा था आगे बढ़ कर उसे चूम लू. रीढ़ की हड्डियों की लाइन पर अपने तपते होंठ रख कर चूमता चला जाऊ. पीठ पीठ इतनी चिकनी और दूध की धुली लग रही थी की नज़र टिकाना भी मुश्किल लग रहा था. तभी तो मेरी नज़र फिसलती हुई दीदी के चुत्तरो पर आ कर टिक गई. ओह, मैंने आज तक ऐसा नहीं देखा था. गोरी चिकनी चुत्तर. गुदाज और मांसल. मांसल चुत्तरों के मांस को हाथ में पकर दबाने के लिए मेरे हाथ मचलने लगे. दीदी के चुत्तर एकदम गोरे और काफी विशाल थे. उनके शारीरिक अनुपात में, पतली कमर के ठीक निचे मोटे मांसल चुत्तर थे. उन दो मोटे मोटे चुत्तरों के बीच ऊपर से निचे तक एक मोटी लकीर सी बनी हुई थी. ये लकीर बता रही थी की जब दीदी के दोनों चुत्तरों को अलग किया जायेगा तब उनकी गांड देखने को मिल सकती है या फिर यदि दीदी कमर के पास से निचे की तरफ झुकती है तो चुत्तरों के फैलने के कारण गांड के सौंदर्य का अनुभव किया जा सकता है. तभी मैंने देखा की दीदी अपने दोनों हाथो को अपनी जांघो के पास ले गई फिर अपनी जांघो को थोड़ा सा फैलाया और अपनी गर्दन निचे झुका कर अपनी जांघो के बीच देखने लगी शायद वो अपनी चूत देख रही थी. मुझे लगा की शायद दीदी की चूत के ऊपर भी उसकी कान्खो की तरह से बालों का घना जंगल होगा और जरुर वो उसे ही देख रही होंगी. मेरा अनुमान सही था और दीदी ने अपने हाथ को बढा कर रैक पर से फिर वही क्रीम वाली बोतल उतार ली और अपने हाथो से अपने जांघो के बीच क्रीम लगाने लगी. पीछे से दीदी को क्रीम लगाते हुए देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो मुठ मार रही है. क्रीम लगाने के बाद वो फिर से निचे बैठ गई और अपने पेटीकोट और पैंटी को साफ़ करने लगी. मैंने अपने लौड़े को आश्वाशन दिया की घबराओ नहीं कपरे साफ़ होने के बाद और भी कुछ देखने को मिल सकता है. ज्यादा नहीं तो फिर से दीदी के नंगे चुत्तर, पीठ और जांघो को देख कर पानी गिरा लेंगे.