hotaks444
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होली पे चुदाई --1
हाई फ्रेंड्स मैं राज शर्मा आपको फिर से एक घरेलू कहानी सुनाने जा रहा
हूँ. यह मेरी फ्रेंड सुनीता की कहानी है. वह आपको बताने जा रही
है की कैसे उसने अपनी सहेली और उसके बड़े भाई के साथ चुदवाया.
इस होली पर मम्मी पापा बाहर जा रहे थे. रीलेशन मैं एक डेत हो
गयी थी. माँ ने पड़ोस की आंटी को मेरा ध्यान रखने को कह दिया
था. आंटी ने कहा था कि आप लोग जाइए सुनीता का हम लोग ध्यान
रखेंगे. माँ ने हमे समझाया और फिर चली गयी. पड़ोस की आंटी की
एक लड़की थी मीना जो मेरी उमर की ही थी. वह मेरी बहुत फास्ट फ्रेंड
थी. वह बोली कि जब तक तुम्हारे मम्मी पापा नही आते तुम खाना
हमारे घर ही खाना.
मैं खाना और समय वही बिताती पर रात मैं सोती मीना के साथ
अपने घर पर ही थी. दो दिन हो गये और होली आ गयी. सुबह होते ही
मीना ने अपने घर चलने को कहा तो मैं रंग से बचने की लिए बहाने
करने लगी. मीना बोली, "मैं जानती हूँ तुम रंग से बचना चाहती हो.
नही आई तो मैं खुद आ जाउन्गी." "कसम से आउन्गि."
मैं जान गयी कि वह रंग लगाए बगैर नही मानेगी. मैने सोचा की
घर पर ही रहूंगी जब आएगी तू चली जाउन्गि. होली के लिए पुराने
कपड़े निकाल लिए थे. पुराने कपड़े छ्होटे थे. स्कर्ट और शर्ट पहन
लिया. शर्ट छ्होटी थी इसलिए बहुत कसी थी जिससे दोनो चूचियों
मुश्किल से सम्हल रही थी. बाहर होली का शोरगुल मच रहा था.
चड्डी भी पुरानी थी और कसी थी. कसे कपड़े पहनने मैं जो मज़ा
आ रहा था वह कभी शलवार समीज़ मैं नही आया. चलने मैं कसे
कपड़े चूचियों और चूत से रगड़ कर मज़ा दे रहे थे इसलिए मैं
इधर उधर चल फिर रही थी.
मैं अभी मीना के घर जाने को सोच ही रही थी कि मीना दरवाज़े को
ज़ोर ज़ोर से खटखटाते हुवे चिल्लाई, "अरी सुनीता की बच्ची जल्दी से
दरवाज़ा खोल." मैने जल्दी से दरवाज़ा खोला तो मीना के पीछे ही
उसका बड़ा भाई रमेश भी अंदर घुस आया. उसकी हथेली मैं रंग
था. अंदर आते ही रमेश ने कहा, "आज होली है बचोगी नही,
लगाउन्गा ज़रूर."
मीना बचने के लिए मेरे पीछे आई और बोली, "देखो भैया यह
ठीक नही है." मेरी समझ मैं नही आया कि क्या करूँ. रमेश
मेरे आगे आया तो ऐसा लगा की मीना के बजाय मेरे ही ना लगा दे. मैं
डरी तो वह हथेली रगड़ता बोला, "बिना लगाए जाउन्गा नही
मीना." "हाए राम भैया तुमको लड़कियों से रंग खेलते शरम नही
आती." "होली है बुरा ना मानो. लड़कियों को लगाने मैं ही तो मज़ा
है. तुम हटो आगे से सुनीता नही तो तुमको भी लगा दूँगा." मैं डर
से किनारे थी. तभी रमेश ने मीना को बाँहों मैं भरा और हथेली
को उसके गाल पर लगा रंग लगाने लगा. मीना पूरी तरह रमेश की
पकड़ मैं थी. वह बोली, "हाए भैया अब छ्चोड़ो ना." "अभी कहाँ
मेरी जान अभी तो असली जगह लगाना बाकी ही है." और वह पीछे से
चिपक मीना की दोनो चूचियों को मसल उसकी गांद को अपने लंड पर
दबाने लगा.
"हाए भैया." चूचियों दबाने पर मीना बोली तो रमेश मेरी ओर
देख अपनी बहन की दोनो चूचियों को दबाता बोला, "बुरा ना मानो होली
है." मीना की मसली जा रही चूचियों को देख मैं अपने आप कसमसा
उठी. चूचियों को अपने भाई के हाथ मैं दे मीना की उछल कूद कम
हो गयी थी. रमेश उसकी दोनो चूचियों को कसकर दबाते हुवे उसकी
गांद को अपनी रानो पर उठता जा रहा था.
"हाए भैया फ्रॉक फट जाएगी." "फटत जाने दो. नयी ला दूँगा." और
अपनी बहन के दोनो अमरूद दबाने लगा. इस तरह की होली देख मुझे
अजीब लगा. मैं समझ गयी कि रमेश रंग लगाने के बहाने मीना की
चूचियों का मज़ा ले रहा है. "हाए अब छ्होरो ना." मीना ने मेरी ओर
देखते कहा तो मुझे मीना मैं एक बदलाव लगा. तभी रमेश उसकी गोल
गोल चूचियों को दबाते हुवे बोला. "हाए इस साल होली का मज़ा आ
रहा है. हाए मीना अब तो पूरा रंग लगाकर ही छोड़ूँगा." और पूरी
चूचियों को मुट्ठी मैं दबा बेताबी से दबाने लगा. मैने देखा की
रमेश का चेहरा लाल हो गया था. अब मीना विरोध नही कर रही थी
और वह मेरे सामने ही अपनी बहन को रंग लगाने के बहाने उसकी
चूचियाँ दबा रहा था. इस सीन को देख मेरे मन मैं अजीब सी
उलझन हुई. मेरी और मीना की चूचियों मैं थोड़ा सा फ़र्क था. मेरी
मीना से ज़रा छ्होटी थी. सहेली की दबाई जा रही चूचियों को देख
मेरी चूचियाँ भी गुदगुदाने लगी और लगा कि रमेश मेरी भी रंग
लगाने के बहाने दबाएगा. मीना को वह अपने बदन से कसकर चिपकाए
था.
हाई फ्रेंड्स मैं राज शर्मा आपको फिर से एक घरेलू कहानी सुनाने जा रहा
हूँ. यह मेरी फ्रेंड सुनीता की कहानी है. वह आपको बताने जा रही
है की कैसे उसने अपनी सहेली और उसके बड़े भाई के साथ चुदवाया.
इस होली पर मम्मी पापा बाहर जा रहे थे. रीलेशन मैं एक डेत हो
गयी थी. माँ ने पड़ोस की आंटी को मेरा ध्यान रखने को कह दिया
था. आंटी ने कहा था कि आप लोग जाइए सुनीता का हम लोग ध्यान
रखेंगे. माँ ने हमे समझाया और फिर चली गयी. पड़ोस की आंटी की
एक लड़की थी मीना जो मेरी उमर की ही थी. वह मेरी बहुत फास्ट फ्रेंड
थी. वह बोली कि जब तक तुम्हारे मम्मी पापा नही आते तुम खाना
हमारे घर ही खाना.
मैं खाना और समय वही बिताती पर रात मैं सोती मीना के साथ
अपने घर पर ही थी. दो दिन हो गये और होली आ गयी. सुबह होते ही
मीना ने अपने घर चलने को कहा तो मैं रंग से बचने की लिए बहाने
करने लगी. मीना बोली, "मैं जानती हूँ तुम रंग से बचना चाहती हो.
नही आई तो मैं खुद आ जाउन्गी." "कसम से आउन्गि."
मैं जान गयी कि वह रंग लगाए बगैर नही मानेगी. मैने सोचा की
घर पर ही रहूंगी जब आएगी तू चली जाउन्गि. होली के लिए पुराने
कपड़े निकाल लिए थे. पुराने कपड़े छ्होटे थे. स्कर्ट और शर्ट पहन
लिया. शर्ट छ्होटी थी इसलिए बहुत कसी थी जिससे दोनो चूचियों
मुश्किल से सम्हल रही थी. बाहर होली का शोरगुल मच रहा था.
चड्डी भी पुरानी थी और कसी थी. कसे कपड़े पहनने मैं जो मज़ा
आ रहा था वह कभी शलवार समीज़ मैं नही आया. चलने मैं कसे
कपड़े चूचियों और चूत से रगड़ कर मज़ा दे रहे थे इसलिए मैं
इधर उधर चल फिर रही थी.
मैं अभी मीना के घर जाने को सोच ही रही थी कि मीना दरवाज़े को
ज़ोर ज़ोर से खटखटाते हुवे चिल्लाई, "अरी सुनीता की बच्ची जल्दी से
दरवाज़ा खोल." मैने जल्दी से दरवाज़ा खोला तो मीना के पीछे ही
उसका बड़ा भाई रमेश भी अंदर घुस आया. उसकी हथेली मैं रंग
था. अंदर आते ही रमेश ने कहा, "आज होली है बचोगी नही,
लगाउन्गा ज़रूर."
मीना बचने के लिए मेरे पीछे आई और बोली, "देखो भैया यह
ठीक नही है." मेरी समझ मैं नही आया कि क्या करूँ. रमेश
मेरे आगे आया तो ऐसा लगा की मीना के बजाय मेरे ही ना लगा दे. मैं
डरी तो वह हथेली रगड़ता बोला, "बिना लगाए जाउन्गा नही
मीना." "हाए राम भैया तुमको लड़कियों से रंग खेलते शरम नही
आती." "होली है बुरा ना मानो. लड़कियों को लगाने मैं ही तो मज़ा
है. तुम हटो आगे से सुनीता नही तो तुमको भी लगा दूँगा." मैं डर
से किनारे थी. तभी रमेश ने मीना को बाँहों मैं भरा और हथेली
को उसके गाल पर लगा रंग लगाने लगा. मीना पूरी तरह रमेश की
पकड़ मैं थी. वह बोली, "हाए भैया अब छ्चोड़ो ना." "अभी कहाँ
मेरी जान अभी तो असली जगह लगाना बाकी ही है." और वह पीछे से
चिपक मीना की दोनो चूचियों को मसल उसकी गांद को अपने लंड पर
दबाने लगा.
"हाए भैया." चूचियों दबाने पर मीना बोली तो रमेश मेरी ओर
देख अपनी बहन की दोनो चूचियों को दबाता बोला, "बुरा ना मानो होली
है." मीना की मसली जा रही चूचियों को देख मैं अपने आप कसमसा
उठी. चूचियों को अपने भाई के हाथ मैं दे मीना की उछल कूद कम
हो गयी थी. रमेश उसकी दोनो चूचियों को कसकर दबाते हुवे उसकी
गांद को अपनी रानो पर उठता जा रहा था.
"हाए भैया फ्रॉक फट जाएगी." "फटत जाने दो. नयी ला दूँगा." और
अपनी बहन के दोनो अमरूद दबाने लगा. इस तरह की होली देख मुझे
अजीब लगा. मैं समझ गयी कि रमेश रंग लगाने के बहाने मीना की
चूचियों का मज़ा ले रहा है. "हाए अब छ्होरो ना." मीना ने मेरी ओर
देखते कहा तो मुझे मीना मैं एक बदलाव लगा. तभी रमेश उसकी गोल
गोल चूचियों को दबाते हुवे बोला. "हाए इस साल होली का मज़ा आ
रहा है. हाए मीना अब तो पूरा रंग लगाकर ही छोड़ूँगा." और पूरी
चूचियों को मुट्ठी मैं दबा बेताबी से दबाने लगा. मैने देखा की
रमेश का चेहरा लाल हो गया था. अब मीना विरोध नही कर रही थी
और वह मेरे सामने ही अपनी बहन को रंग लगाने के बहाने उसकी
चूचियाँ दबा रहा था. इस सीन को देख मेरे मन मैं अजीब सी
उलझन हुई. मेरी और मीना की चूचियों मैं थोड़ा सा फ़र्क था. मेरी
मीना से ज़रा छ्होटी थी. सहेली की दबाई जा रही चूचियों को देख
मेरी चूचियाँ भी गुदगुदाने लगी और लगा कि रमेश मेरी भी रंग
लगाने के बहाने दबाएगा. मीना को वह अपने बदन से कसकर चिपकाए
था.