Holi sex stories-होली की सेक्सी कहानियाँ - Page 10 - SexBaba
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Holi sex stories-होली की सेक्सी कहानियाँ

ससुराल की पहली होली-6

फिर हम लोग नहा धो के फ्रेश हुए , होली का रंग तो एक दिन में छूटने वाला नहीं था।

खाना खाते समय मैने अपनी जेठानी से पुछा ,

" क्यों भाभी , होली हो ली। "

" अभी कहाँ , शाम की होली तो और जबरदस्त होगी। और अभी तो इनका मस्त माल , हमारी छिनार ननद मीता शाम को आएगी। जम के लेनी है उसकी। "

फिर मेरी जेठानी ने राजीव को छेड़ा ,

" क्यों देवर तो होली में उद्घाटन करवा दूँ , आपसे। आखिर कोई न कोई तो लेगा ही। "

वो बिचारे झेंप के रह गए।

थोड़ी देर की नींद के बाद मैं शाम को उठी।

और थोड़ी देर में हमारी ननद और इनकी मस्त माल कम ममेरी बहन , मीता आयी।

मस्त खूब टाइट चिपका , सारे उभार कटाव दिखाता पीला टॉप , छोटी सी काली स्कर्ट ,

मक्खन सी चिकनी गोरी गोरी जांघ दिखाती , ललचाती। काली कजरारी बड़ी बड़ी सी आँखे , गोरे गुलाबी भरे भरे गाल , रसीले होंठ , और सबसे बढ़कर टाइट टॉप में मुश्किल से बंद , टेनिस बॉल्स के साइज के किशोर बूब्स जिसमें सिर्फ उभार और कटाव ही नहीं दिख रहा था , बल्कि निपल्स भी हलके हलके दिख रहे थे।

चेहरे पे एक भोलापन लेकिन साथ में आँखों में एक निमंत्रण ,…और देह पे आती हुयी जवानी के सारे निशान ,

मैंने उसे जोर से से अपनी बाँहों में भींच लिया और अपनी बड़ी 36 डी साइज जोबन से उसके छोटे छोटे किशोर उभारों को दबाने , रगड़ने लगी, और छेड़ा ,

" रास्ते में कुछ छैले मिल गए थे क्या ननद रानी , जो इतना टाइम लग गया। "


" अरे हमारी ननद को देख के तो इसके मोहल्ले के गदहों का लंड खड़ा हो जाता है , तो बिचारे छैलों कि बात ही क्या है "
चमेली भाभी ने चिढ़ाया।

मेरा एक हाथ उसकी पीठ पे ब्रा स्ट्रैप को सहला , हलके से खीच रहा था और उसके कंधे पे हाथ रख के मैंने उसे ऊपर छत पे बेडरूम में सीधे ले गयी , और समझाया

" सुन यार नीचे अभी थोड़ी भीड़ है , वो कालोनी की ,… तो जरा मैं उनको निपटा के आती हूँ। तब तक तुम जरा ,....'

" एकदम भाभी , मैं कहीं जाने वाली नहीं हूँ। हाँ मैंने सूना है सुबह होली में आप लोगों ने खूब कपडे फाड़े सबके " मुझे बांहो में ले , वो किशोर सुनयना , मुस्करा के बोली।

चमेली भाभी को तो मौका चाहिए था , उन्होंने उसके गाल पे पिंच कर के कहा ,

" अरे ननद रानी , उनके तो कपडे ही फाड़े थे , आपका देखिये क्या क्या फटता है "

" भाभी , आप भी न , अरे ये बिचारी तो आयी ही डलवाने है। पहले जरा ननद रानी को कुछ खिलाइये , पिलाइये , फिर डालने डलवाने का काम तो होता ही रहेगा। " मैंने चमेली भाभी को बोला। 

कुछ ही देर में , मेरा इशारा समझ के चमेली भाभी , गुझिया की प्लेट और ठंडाई का ग्लास ले आयीं। ये कहने की जरूरत नहीं की दोनों में भांग की डबल डोज पड़ी थी।

मैंने एक गुझिया अपने हाथ से उसके मुंह में डाला और बोला , " ये ठंडाई भी पी ले साथ में सट से गटक जायेगी। "

चमेली भाभी नीचे पडोसिनो को सम्हालने चली गयी थीं।

बिस्तर पे कुछ मस्तराम की किताबें पड़ी थी, सचित्र। मीता की निगाहें बार बार वहीँ जा रही थीं।

मैंने उसे उठा के एक किताब दे दिया और बोली " असल में तुम्हारे भैया की ये फेवरिट किताबे हैं , हम साथ साथ पढ़ते है और प्रैक्टिस भी करते है। अब तू भी बड़ी हो गयी है ले पढ़। "

किताब खोलते ही जो उसने पढना शुरू किया , उसके आँखों की चमक बता रही थी की क्या असर हो रहा है।

मैंने टीवी भी खोल दिया , उसमें पहले से ही एक ब्ल्यू फ़िल्म की सीडी लगी हुयी थी।

"तू य किताबे पढ़ , टी वी देख बस मैं १० मिनट में उन सब को निपटा के आती हूँ " मैंने बोला।

तब तक फ़िल्म शुरू हो गयी। एक जोड़ा चुम्मा चुम्मी कर रहा था। फिर लड़की के होंठ धीरे धीरे नीचे आये और पहले तो उसने बल्ज को होंठो से रगड़ा , और जिपर खोल दिया। स्प्रिंग कि तरह बड़ा लम्बा और मोटा लंड झटके से बाहर निकल आया। मीता की आँखे टी वी स्क्रीन पे चिपकी थीं।

लड़की ने पहले तो एक हाथ में पकड़ के लंड को आगे पीछे किया और फिर अपने होंठो के जोर से सुपाड़ा खोल दिया।


क्या मस्त मोटा सुपाड़ा था , मुश्किल से के मुंह में घुस पाया। लेकिन वो सपड़ सपड़ उसे चाटे चूसे जा रही थी।

तभी एक और लड़की आयी और उसने पहली वाली की स्कर्ट उठा के उसकी गुलाबी चूत चूसनी शुरू कर दी। यहाँ तक की उसकी चूत की दोनों फांको को फैला के अपनी जुबान अंदर घुसेड़ दी और जीभ से ही चोदने लगी।

मैं कनखियों से मीता पर उसका असर देख रही थी। उसके किशोर उरोज और पथरा रहे थे। अब टॉप से उस के कबूतरों की चोंचें झाँकने लगी थी। मेरी सेक्सी ननद की साँसे भी लम्बी हो रही थी।

वो हलके से बोली , " भाभी ".

मैं उठी और उससे कहा ,

" अरे अभी तो फ़िल्म शुरू हुयी है है। , तू ये गुझिया भी ख़तम कर दे तो मैं प्लेट ले जाऊं। निगाहें उसकी अभीः भी टीवी पर थीं , चेहरे से मस्ती झलक रही थी। बिना कुछ सोचे उसने गुझिया उठा के खा ली और मैं प्लेट ले के बाहर निकल आयी। मैंने बाहर से दरवाजा न सिर्फ बंद किया बल्कि बोल्ट भी कर दिया।
 
दो गुझिया और ठंडाई यानी स्ट्रांग भांग की तीन बड़ी बड़ी गोलियां अंदर , और साथ में मस्तराम और ब्ल्यू फ़िल्म में , दस मिनट में ननद रानी की चुन्मुनिया में चींटे रहे होंगे , मैंने सोचा। 

कुछ देर बात करके पडोसिनो को मैंने टरकाया। राजीव , मेरी जेठानी के साथ कुछ यहाँ होली मिलने जा रहे थे। उनके जाने के बाद मैंने दरवाजा बंद किया।

चमेली भाभी ऊपर चलने के लिए बेताब थीं लेकिन मैंने उन्हें रोका और बोली ,

" अरे , जरा ननद रानी पे भांग ठीक से चढ़ तो जाने दीजिये। "

हँसते हुए वो बोली," ठीक कह रही है , उस के बाद हम लोग चढ़ेंगे। "

दस क्या पंद्रह मिनट के बाद हम लोग धड़धड़ाते हुए ऊपर चढ़े और चमेली भाभी के हाथ में स्पेशल गुलाल की एक प्लेट थी ( अंदर गाढ़े रंग और ऊपर पतली परत गुलाल की )

मैंने धीरे से दरवाजा खोला।


मीता की हालत खराब थी।


हलकी गुलाबी आँखे बता रही थीं , भांग का असर पूरा चढ़ चूका है। उसकी आँखे टीवी पे चिपकी थीं , जहाँ एक लड़की पे दो दो चढ़े थे ,एक का मोटा लंड इंजन के पिस्टन की तरह चूत में आगे पीछे हो रहा था। और दूसरा सटासट , गांड मार रहा था।

मेरी ननद की काली छोटी सी स्कर्ट आलमोस्ट पूरा ऊपर तक उठी थी और उसकी उँगलियाँ जाँघों के बीच थी।

"घबड़ाइए मत ननद रानी आपको भी एक साथ दो दो मिलेंगे ऐसे ही मोटे लम्बे। "


मैंने चिढ़ाया , और मेरी आवाज सुन के वो झटके से खड़ी हो गयी।

चमेली भाभी ने गुलाल की प्लेट टेबल पे रखी और मेरी ननद के छोटे छोटे उभारों को ललचायी निगाह से देखते , उन्होंने छेड़ा ,

" क्यों ननद रानी , पहले डालोगी , की डलवाओगी। "

" अरे भाभी , ये छोटी है पहले इसका हक़ बनता है। " मैं मीता, अपनी किशोर ननद की ओर से बोली।

और हिम्मत कर के एक चुटकी गुलाल , उस ने उठाया , और चमेली भाभी के गालों पे लगा दिया।

जब उसने हाथ उठाये , तो साइड से टाइट टॉप से , उसके किशोर उरोजों का उभार और साफ झलक रहा था और जानमारू लग रहा था।

फिर थोडा गुलाल , उसने मेरे गालों पे भी मला।

उन किशोर गदोरियों के गाल पे स्पर्श से ही मेरा शरीर दहक उठा। मेरी निगाहें उसके उठते उभारों को सहला रही थी।

अब बारी , हम भाभियों की थी। मैंने चुटकी में गुलाल लिया और सीधे उसकी मांग में , फिर मीता के रसीले गालो पे , जिसपे , सारे शहर के छैले दीवाने थे , काटते बोली ,

" ननद रानी , सिंदूर दान तो हो गया। अब सुहाग रात भी हो जाय। "

लाज से उसके गालों पे कितने पलाश खिल उठे। 

और उसके कुछ बोलने से पहले ही ढेर सारा गुलाल अपने हाथों में ले के मैंने उसके गुलाब से गाल पे , रगड़ने , मसलने लगी।

" अरे ननद रानी , जब छैलन से ई गाल मसलवइबू , रगड़वइबू , तब जवानी का मजा मिले असली। " चमेली भाभी ने छेड़ा। 

वो बार बार अपने हाथों से मेरे हाथों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी। पर हम दो थे और वो भी खाये।

चमेली भाभी ने उसके दोनों हाथ पकड़ के उसकी पीठ के पीछे , मोड़ दिये। अब उसकी दोनों कलाइयां , चमेली भाभी के कब्जे में थी।

मेरे पास खुला मौका था। उसके उड़ने के लिए बेताब कबूतरों को टॉप के ऊपर से सहलाते , हलके से छेड़ते , मैंने चिढ़ाया ,

" ननद रानी , कब तक इन्हे छिपा के रखोगी। " और आराम से टॉप के बटन खोल दिए।

वो कसमसाती रही , मचलती रही , लेकिन चमेली भाभी की सँड़सी ऐसी पकड़ से आज तक कोई ननद निकल पायी है क्या ,जो वही निकलती।

और अब मैंने फिर एक मुट्ठी गुलाल उठाया और मेरे हाथ सीधे मीता मेरी ननद के टॉप के अंदर थे। मैं पहले तो हलके हलके छू रही थी , सहला रही थी , फिर मैंने जोर से रुई के फाहो की तरह , बस आ रहे , उन मुलायम उरोजों को पकड़ के दबाना , मसलना शुरू कर दिया। 

" क्या मस्त जोबन आये हैं ननद रानी तेरे , जिन छैलों को मिलेगा , रगड़ मसल के मस्त हो जायेंगे " मैंने उसे छेड़ा।

चमेली भाभी क्यों पीछे रहतीं। ऐसे नयी बछेड़ी की दोनों कलाइयां पकड़ने के लिए उनका एक हाथ बहुत था। और अब उनका दूसरा हाथ खाली हो गया। पीछे से मीता के टॉप के अंदर हाथ ड़ाल के उसकी टीन ब्रा के हुक उन्होंने खोल दिए। 

बस फड़फाते हुए कबूतर कैद से बाहर हो गए और मुझे और मौका मिल गया। अब मैं खुल के अपनी ननद के दनो जोबन मसल , रगड़ रही थी।

वो सिसक रही थी , मचल रही थी।

तब तक चमेली भाभी ने ढेर सारा गुलाल लेके टॉप को अच्छी तरह खोल के ऊपर से डाल दिया।

मेरे तो मजे हो गए।

गुलाल की नयी सप्लाई के साथ , मेरे हाथ दूने तेजी से मेरी ननद मीता के उभारों को रगड़ने मसलने लगे। गोरे , दूधिया कबूतरों के पंख , लाल , गुलाबी , हरे हो गए। और तभी मैंने जोर से उसके निपल रगड़े और चिढ़ाया ,

" अरे ननद रानी , अब जरा खुल के हार्न बजवाना शुरू करो। कब तक बिचारे छैलों को ललचाती रहोगी , अरे ये तो हैं ही दबवाने , मसलवाने , रगड़वाने के लिए। "

मैंने जोर से निपल पिंच किया तो सिसकियों के साथ चीख भी निकल गयी और वो बोली ,

" भाभी , प्लीज। "
गोल गोल निपल को रोल करती मैं बोली

" अरे मेरी प्यारी ननदिया , तेरे भैया तो इससे दूने जोर से मसलते हैं , ऐसे " फिर जैसे चक्की चले मेरी दोनों हथेलियां , उसके जोबन को मसल रगड़ रही थीं बिना रुके फूल स्पीड से।

" उयीईईईईईई ओह्ह्ह , आह्ह्ह , ओह्ह्ह , नहींईईईईईई भाभी। " मस्ती से उसकी हालत खराब हो रही थी।

" अरे अभी तो ये मेरे हाथ हैं , ही एक दिन तेरे दिन में भैया , रात में सैयां से मसलवाऊंगी तेरे जोबन , तब असली मजा आएगा। " मैंने छेड़ा।

उधर चमेली भाभी ने पीछे से मीता का स्कर्ट उठा दिया था और उसके छोटे छोटे चूतड़ पे गुलाल मसल रही थीं। लगे हाथ चमेली भाभी की एक उंगली पिछवाड़े से पैंटी के अंदर घुस गयी और उन्होंने छेड़ा ,

" अरे नन्द रानी , जब ये मस्त चूतड़ मटका के चलती होगी तो छैलों की तो जान ही निकल जाती होगी।


इस दुहरे हमले से बिचारी की हालत खराब हो गयी।

और मैंने मीता की उठती चूंचियों को और जोर से से दबाना शुरू किया , और वो चिंचियाने लगी ,

" भाभी , छोडो न लगता है। "

जवाब में मैंने निपल की घुन्डियाँ और जोर से दबोचीं। मस्ती और दर्द दोनों से वो जोर से सिसकी और बोली ,

" भाभी , प्लीज छोडो न "

" क्या छोडूं , मेरी बांकी हिरनिया , एक बार अपने मुंह से दे बोल दे छोड़ दूंगी , जानु। " मैंने प्यार से उसे उभार दबाते हुए कहा।

छाती , सीना , ब्रेस्ट , जोबन वो सब बोल चुकी लेकिन जब तक उसने चूंची नहीं कहा , मैं उसके प्यारे प्यारे तने खड़े , निपल पिंच करती रही।

लेकिन चमेली भाभी इतनी आसानी से थोड़ी छोड़ने वाली थीं।

उन्होंने जोर से उसके चूतड़ दबोचते कहा ,

" जोर से बोल न मैंने नहीं सूना "

और खूब जोर जोर से मीता से हम दोनों ने चूंची बुलवाया।

और फिर इन गदराई टीन बूब्स का मजा , चमेली भाभी ने भी लेना शुरू कर दिया लेकिन अपनी स्टाइल से।
 
ससुराल की पहली होली-7

उन्होंने उसका टॉप पीछे से उठाया और मैंने आगे से , चमेली भाभी ने मीता की टीनेजर ब्रा निकाल कर, पलंग पे फ़ेंक दी। और टॉप उठा था ही , बस पीछे से मर्द की तरह जोर जोर से उसकी अब खुली हुयी चूंची दबा रही थीं।




मीता की पैंटी भी उन्होंने खींच के उतार दी थी और उसे भी ब्रा के पास , पलंग पे फ़ेंक दी थी।

मैंने भी एक नया मोर्चा खोल दिया था। नीचे की ओर।

मेरी हथेली अब दोनों जांघो के बीच थी और थोड़ी ही देर में सीधे उसकी गुलाबी परी पर।



बोर्डिंग से लेकर यूनिवर्सिटी तक लड़कियां मेरी उँगलियों की कायल थी , तो बिचारी ये कच्ची कली,… 

और कुछ ही देर में मेरी हथेलियों ने मसल मसल कर , रगड़ रगड़ कर उसकी बुलबुल को पागल बना दिया।

और जब उँगलियों की हरकत चालु हुयी , बहुत कसी थी कुँवारी कली लेकिन मेरी अनुभवी उंगली, …तर्जनी की टिप्स घुस ही गयी और जैसे ही वो गोल गोल घूमने लगी , थोड़ी देर में रस मलायी का रस निकलने लगा और वो बिचारी बोली ," भाभी , निकाल लो न। प्लीज , निकाल लो ना "

बस यही तो मैं चाहती थी। फिर मैंने वही बात पूछी ,

" अरे कहाँ से निकाल लूँ ननद रानी "

थोड़ी देर तक तो वो ना नुकुर करती रही लेकिन जब अंगूठे ने क्लिट को रगड़ना शुरू किया तो वो चिं बोल गयी।

पहले तो वो योनि , फिर वैजायना ,

लेकिन जब तक उसने चूत नहीं बोला। मैंने ऊँगली बाहर नहीं की , वो भी पांच बार जोर जोर से।

उसके बाद तो एक बार धड़क खुल गयी तो गांड , लंड , चुदाई सब उससे बुलवाया ही और कसम भी खिलायी की अब आगे से हम सब के साथ इसी तरह बोलेगी।


लेकिन ये सिर्फ शुरुआत थी , उसकी रगड़ाई की।


चमेली भाभी ने ऊपर का मोर्चा सम्हाला और मैंने नीचे का। 

क्या गौने की रात दुल्हन की रगड़ाई होती होगी , जैसे उसकी हुयी। चमेली भाभी , कभी उसके निपल खींचती , कभी फ्लिक करतीं , कभी दो उँगलियों में ले के रोल करतीं तो कभी. पिंच करती।


जितने खेली खायी औरतों ने न लिए होंगे वो चमेली भाभी ने उस नयी बछेड़ी को दिए और साथ में मैं नीचे।


अब मेरी तर्जनी का एक पोर अच्छी तरह उसकी रामपियारी में घुस चूका था। बस। मैं जोर जोर से गोल घुमाती , कभी उंगली मोड़ के उसके नकल ( kncukle ) से चूत की अंदुरनी दीवाल रगड़ती और साथ में अंगूठा , क्लिट को सहला , दबा रहा था।

वो बार बार झड़ने के कगार पे पहुंचती , और हम रुक जाते और थोड़ी देर में फिर , चमेली भाभी ने उससे सब कुछ कबूलवा लिया की उसकी चूत को लंड चाहिए , वो बहुत चुदवासी है , छिनार है। 

वो कुछ भी बोलने के लिए तैयार थी , बस हम उसे झाड़ दें।


तब तक नीचे घर में कुछ आवाजाही सुनायी दी। मुझे लगा की मेरी जेठानी और ' ये ' लौट आये हैं

फिर मुझे याद आया की मैं एक चीज तो भूल गई गयी , वो कुल्हड़ , 'स्पेशल डिश ' जो मैंने ननद जी के लिए बनायी थी। मैंने चमेली भाभी को इशारा किया और अब नीचे का मोर्चा ही उनके हवाले था।



मैं वो कुल्हड़ निकाल के ले आयी ( जी हाँ , वही , जिसमें मैंने उनकी रात में दो बार गाढ़ी मलायी इकट्ठी की थी ).



उधर चमेली भाभी को भी लग गया था की राजीव लौट आये हैं और उन्होने चूत मंथन की रफ्तार बढ़ा दी।

" मीता देख , तेरे लिए स्पेशल , रबड़ी गुलाब जामुन मैंने रखा है , मुंह खोल "

मैंने ननद से बोला।

और कुल्हड़ में 'उनके रस ' में ड़ूबे , दो गुलाब जामुन में से एक उसके मुंह में , और उसने गड़प कर लिया।

तब सीढ़ियों पे पैरों की आवाज सुनायी पड़ी और मैंने कुल्हड़ उसे पकड़ा दिया , और बोला बड़ी स्पेशल रबड़ी है एक बूँद भी बचनी नहीं चाहिए।

जी भाभी वो बोली

और फिर बस एक नदीदी की तरह उसने पहले तो गुलाब जामुन और फिर कुल्हड़ उठा के सीधे होंठो से लगा लिया और सब गड़प। फिर जीभ कुल्हड़ में डालके बचा खुचा वो चाट गयी।

मैं चमेली भाभी के साथ अपनी कुँवारी ननद की चूत सेवा में लगी थी , चमेली भाभी की मोटी ऊँगली तूफान मेल की तरह मीता की चूत में अंदर बाहर हो रही थी और मैं साथ में क्लिट को जोर जोर से रगड़ना शुरू कर दिया। 

मीता बहुत जोर से झड़ने लगी। वो तेजी से सिसक रही थी , चूतड़ आगे पीछे कर रही थी , चूंचिया उसकी पत्थर हो रही थीं और निपल कांच के कंचे की तरह गोल और कड़क।




तभी दरवाजे पे खट खट हुयी और इनकी आवाज सुनायी पड़ी।

लेकिन चमेली भाभी की ननद की बिल में ऊँगली तेजी से आती जाती रही , औ फिर से मेरी छोटी ननद झड़ने लगी।

उसकी चूत एकदम रस से गीली हो गयी थी , चमक रही थी। 

मैं दरवाजा खोलने गयी और मीता को इशारा किया , ब्रा पैंटी फिर से पहनने का समय तो था नहीं , बस उसने झट से अपनी टॉप और स्कर्ट नीचे कर ली।
,
अंदर घुसते ही उनकी नजर मीता पे पड़ी , बल्कि सच कहूं तो बिना ब्रा के टॉप फाड़ती , मीता की गुदाज गोलाइयों पे जो साफ साफ दिख रही थीं। यहाँ तक की कबूतर की चोंचे भी साफ नजर आ रही थी।

और हम सब ने उनकी निगाह पकड़ ली और मुस्कराने लगे।

बात बदलने के लिए उन्होंने चमेली भाभी की ओर देखा।

उनकी तर्जनी चमक रही थी और उसमें कुछ गाढ़े शीरे जैसा लगा था। वो चमेली भाभी से बोलेजाती ,

" क्यों कुछ खाया पिया जा रहा था क्या "
" हाँ देवर जी जबरदस्त रसमलाई , अब आप लेट हो गए तो चलिए चासनी चाट लीजिये "


और पिछले १० मिनट से मीता की चूत में आती जाती , उसकी रस से गीली अँगुली , उन्होंने राजीव के मुंह में डाल दी और राजीव नदीदों की तरह उसे जोर जोर से चूसने , चाटने लगे।
 
शर्म से मीता के गाल दहक उठे। उसे तो मालुम ही था की वो ऊँगली अभी क्या कर रही थी और उस में क्या लगा है।

उंगली निकाल के चमेली भाभी ने पुछा ,

" क्यों देवर जी मीठ था न "

"एकदम भौजी , " अपने होंठो पे लगी 'चासनी ' का रस चाटते वो बोले।


" अउर चाहिए तो सीधे , रस मलायी से ही ले लो " ये बोलते हुए चमेली भाभी ने मीता की स्कर्ट दोनों हाथों से उठा दी।

अबकी मेरी ननद मीता के दोनों हाथ मैंने पीछे से पकड़ रखे थे। पैटी तो हमारे बेड पे पड़ी थी।

होली की शाम उनको 'रस मलायी ' के दरशन हो गए , चिकनी , रस से लिपटी , गुलाबी।

और तभी उनकी निगाह खाली कुल्हड़ पे पड़ी और वो समझ गए , और खिसिया के वो चमेली भाभी के पीछे पड़े। 

" हम तो आपकी रस माधुरी का रस लेंगे " वो बोले।

इधर मीता ने हाथ छुड़ा कर कहा , भाभी मैं नीचे चलती हूँ।

जब तक मैं रोकूँ रोकूँ , वो हिरनी दरवाजे के पार।

और मैं उसके पीछे , सीढ़ियों पे भागती ,

कमरे में से इनकी आवाज सुनायी पड़ी ,


" भौजी , लगता है दुपहरिया को मन नहीं भरा "

" एकदम नहीं एक बार में मन भर जाय तो भौजी कौन ," चमेली भाभी कौन थी अपने देवर से।

और फिर मेरे कमरे के दरवाजे बंद होने की आवाज।

मैं मुस्करायी , इसका मतलब देवर भाभी की होली शुरू।

मैं पीछे रह गयी थी और मीता आखिरी सीढ़ी पे , लेकिन तभी मैं मुस्करायी , वो आलमोस्ट कैच हो गयी। मेरा कजिन संजय वहीँ खड़ा था।

मेरे मन में फिर 'कुल्हड़ ' वाली बात आयी और मैं मुस्कराये बिना नहीं रह सकी। ये ट्रिक मेरे मायके में गांव् की एक भाभी ने बतायी थी ,

" लाली , होली के दिन कौनो कुँवारी के लंड की मलायी खिलाय दो तो शर्तिया , तीन दिन के अंदर उसका भरतपुर लूट जायेगा। और उसके बाद ओकरे चूत में अस चींटी काटी , की दिन रात चुदवासी रही उ , नंबरी छिनार बन जाई। और जेकर मलायी खायी ओसे तो शर्तिया चुदवाई "

"भाभी , ओहमे हमार कौन फायदा होई " मुस्कराकर मैंने भौजी से पुछा था।

" अरे कुवांरी चूत को मजा देवाय से बड़ा पुण्य का काम कौन है , और जो पुण्य का काम करिहे तो तो फायदा होगा ही। " वो बोलीं।

एक बात तय थी कि मेरी ननद और मेरे उनका तो फायदा होना तय था.

मेरी निगाह मेरी ननद मीता और कजिन संजय पे पड़ी दोनों में छेड़छाड़ शुरू हो गयी थी। 

संजय मीता से दो -तीन साल बड़ा होगा। और मेरी शादी के बाद से ही दोनों को में खूब जम क छनती थी।

मेरी शादी में मेरी बहनो ने मीता को सारी गालियां , संजय के साथ ( हमरे खेत में सरसों फुलाये , मीता साल्ली संजय से चुदवाये , हमरे भैया से चुदवाये ), लगा के दी और शादी के बाद मीता ने खुद जब वो चौथी में आया तो उसे सूद ब्याज के साथ गालियां सुना के सारी कसर पूरी की।

मीता उसे हमेशा साले कह के बुलाती थी , ( आखिर वो था भी तो उस के भाई का साला) और वो भी बजाय बुरा मानने के साथ उसी टोन में उसे जवाब देता था।

संजय को देख के मीता रुक गयी और बोली ,

" क्यों साल्ले , मन नहीं माना , आ गए अपनी बहन से होली खेलने। "

" एकदम होली में मन कैसे मानता , लेकिन बहन नहीं बहन की ननद से होली खेलने " वो उसके ब्रा विहीन टॉप से झांकते बूब्स को घूरते , छेड़ कर बोला।

" अच्छा , बड़ी हिम्मत हो गयी है साल्ले की। पहले पकड़ो , फिर आगे देखा जाएगा " और ये कह के मीता भाग खड़ी हुयी , हिरणी की तरह।

आगे आगे वो , पीछे पीछे संजय।


बिना ब्रा के उसके उरोज कसे टॉप में लसर पसर कर रहे थे।

मैं देख रही थी दोनो का खेल।

दौड़ने में मीता भी बहुत तेज थी , लेकिन संजय भी कम नहीं था।

घर के कोने में बने एक बाथ रूम में मीता घुस गयी और अंदर से दरवाजा बंद करने की कोशिश में लगी थी की संजय भी अंदर घुस गया और दरवाजा उसने बंद कर लिया।

पीछे पीछे मैं, एक छोटा सा छेद था उससे अंदर का हालचाल देख रही थी , साथ में चौकीदारी भी कर रही थी , की कहीं कोई आ ना जाये , और मेरी ननद की मेरी मेरी भाई के साथ चल रही होली में बाधा न पड़े।
और उन दोनों कि होली शुरू हो गयी थी।


मीता खिलखला रही थी , चिढ़ा रही थी और संजय मेरा भाई उस के टॉप में हाथ डाल के उस के किशोर उभारों में पेंट लगा रहा था ,

" हे जा के अपनी बहन के सीने पे रंग लगा , साल्ले , उन का मुझ से बड़ा है " वो बोल रही थी।

" मुझे तो तेरा ही पसंद है , एक बार दिखा न " वो बोला और जब तक वो कुछ टोकती , उस ने टॉप भी उठा दिया।

( ब्रा , पैंटी तो हम पहले ही उतार चुके थे )


और मेरी ननद के छोटे छोटे गदराते , जोबन सामने थे। और जब तक वो रोकती , निपल संजय के मुंह में।
संजय का रंग लगा हाथ अब स्कर्ट के अंदर उसकी चिड़िया को रंग रहा था। 

तब तक कुछ खड़बड़ हुयी और मैंने आँख हटा लिया।

और बाथरूम के सामने जा के खड़ी होगयी।

कोई आ रहा था लेकिन मुझे देख के वापस चला गया। .


मैंने फिर छेद पे आँख लगा लिया।

मीता नखड़े दिखा रही थी , बार बार न न कर रही थी।

और संजय का औजार , पैंट से बाहर निकला हुआ था। मस्त मोटा , एकदम तना।
और उसने वही किया जो मेरे भाई को मेरे ननद के साथ करना चाहिए , जबरदस्ती।

थोड़ी देर तक तो उसने मीता के गुलाब के पंखुड़ी की तरह होंठों पे अपना सुपाड़ा रगड़ा , और फिर एक हाथ से अपना लंड पकड़ा और दुसरे हाथ से जोर से मीता के गोरे भरे भरे गाल दबाये , और चिड़िया की तरह मीता ने होंठ खोल दिए , और सटाक से सुपाड़ा अंदर।




थोड़ी ही देर में नखड़ा भूल के मजे से वो मेरे भाई के लंड को चूम चाट रही थी , जोर जोर से चूस रही थी।

और मेरे भाई ने भी उसका सर पकड़ के जोर जोर से उसका मुंह चोदना शुरू कर दिया। 

" तेरे भाई , को भी साल्ला न बनाया तो कहना " मुंह चोदते हुए सन्जय बोला 

" कैसे ," मीता से नहीं रहा गया , और पल भर के लिए लंड मुंह से बाहर निकाल के उसने पुछा।

" अरे जानु , उस साल्ले की बहन को हचक के चोदुंगा तो वो साल्ला, मेरा साल्ला होगा कि नहीं। "

मीता खिलखिला उठी जैसे चांदी की हजार घंटियाँ बज उठी हों और हंस के बोली " बना देना न " और फिर दुबारा लंड चूसने लगी।



जिस तरह संजय उसके मुंह में धक्के मार रहा था , लग रहा था बस अब वो झड़ने वाला है। और वही हुआ।
 
ससुराल की पहली होली-8

मीता ने लाख सर पटका , लेकिन मेरा भाई उसके मुंह में ही झड़ा , झड़ता रहा और जब निकाला , तो सुपाड़े में लगी मलायी , उसके गालों और चूंचियों पे पोत दी।

"अब हुयी असली होली ननंद रानी की " मैंने सोचा।

वीर्य का एक बड़ा सा थक्का उसके होंठो पे था। शीशे में उसने देखा तो जीभ निकाल के उसे भी चाट लिया।


मुझे लगा कि अब घुसने का समय हो गया है , और मैंने दरवाजा खटखटाटाया.
संजय , चुपके से निकल गया।

लेकिन मैंने मीता को पकड़ लिया और टॉप के ऊपर से उसके मम्मो को दबाती बोली , " क्या खाया पिया जा रहा था "

उसका चेहरा १००० वाट के बल्ब की तरह चमक उठा , वो जोर से मुस्करायी और मुझे सीधे मुंह खोल के दिखा दिया।

उसकी जीभ पे अभी भी मेरे भाई की गाढ़ी थक्केदार मलायी थी।
और मुझे दिखा के वो नदीदी उसे भी गटक गयी।

मैंने उससे पुछा , क्यों स्वाद कैसा था , मेरी ननद रानी। 

हम दोनों एक दूसरे के कंधे पे सहेलियों की तरह जा रहे थे की मीता ने मुझे चिढ़ाते बोला ,

" बहुत स्वादिष्ट , भाभी , एकदम यम्मी। आपको खाना है बुलाऊँ साल्ले को ,अभी गया नहीं होगा। "

मैं कौन पीछे रहने वाली थी , मैंने भी छेड़ा " अच्छा पहले ये बोल , किसका ज्यादा स्वादिष्ट था , मेरे भैया का या तेरे भैया का। "

" मतलब " वो ठिठक के रुक गयी।

" अरे अब तो तूने स्वाद ले ही लिया , तो , ,…वो कुल्हड़ में जो रबड़ी थी गुलाब जामुन के साथ , वो तेरे भैया की ,… "

मेरे बात पूरा करने के पहले ही वो बात समझ कर बड़ी जोर से चीखी " भाभी :" और मुझे मारने दौड़ी।

मैं आगे आगे भागी , आखिर उसी कि तो भाभी थी, दौड़ने में तेज।

लेकिन कुछी देर में पकड़ी गयी , …मै नहीं वो मेरी ननद। मीता।

कालोनी की भाभियाँ आयी थी और सब एक से एक हुड़दंगी।

मीता उधर से निकली मेरा पीछा करती और धर ली गयी।

यही तो मैं चाहती थी , उसे देख के मैं आँखों ही आँखों में उसे चिढ़ा रही थी।

सारी भाभियाँ एक से एक खेली खायी , कन्या खोर , और मीता के देख के उन की आँखों में एक आदमखोर भूख चमक उठी। 

मीता उधर से निकली मेरा पीछा करती और धर ली गयी।

यही तो मैं चाहती थी , उसे देख के मैं आँखों ही आँखों में उसे चिढ़ा रही थी।
सारी भाभियाँ एक से एक खेली खायी , कन्या खोर , और मीता के देख के उन की आँखों में एक आदमखोर भूख चमक उठी।

एक ने मीता का हाथ पकड़ के रोक लिया और बोली , "

ननद रानी , अरे सुबह की होली तो तुम अपने भाइयों , और यारों से खेल रही थी , कम से कम शाम की होली तो भाभियो के साथ खेल लो। "

बिचारी मीता।

खूब खुल के होली के मस्त गाने हो रहे थे , और ये हुआ की अगले गाने में मीता नाचेगी. मीश्राईन भाभी ने ढोलक सम्हाली और` बाकी ने गाना शुरू किया। मैंने भी मजीरे से ताल देने शुरू की , आखिर मेरी ननद जो नाच रही थी ,

जैसे ही उसने एक दो ठुमके लगाए होंगे , किसी ने कमेंट मारा ,

" अरे कोठे पे बैठा दो तो इतना मस्त मुजरा करेगी ,… "

" अरे जरा ये जोबन तो उचका ,… " ये नीरा भाभी और की आवाज थी मेरी जेठानी। वो और चमेली भाभी भी अब आ गयी थीं।

गाना शुरू हुआ ,

" अरे नकबेसर कागा ले भागा , मोरा सैयां अभागा न जागा।
अरे उड़ उड़ कागा मोरे होंठवा पे बैठा , उड़ उड़ कागा मोरे होंठवा पे बैठा
होंठवा के सब रस ले भागा , अरे मोरा सैयां अभागा न जागा। "

इत्ती मस्त एक्टिंग मीता ने लुटने की कि , की मजा आ गया।

अगली लाइन गाने की मैंने शुरू की ,और डांस में साथ देने मेरे मोहल्ले के रिश्ते से , देवरानी रूपा उठी शादी पिछले साल ही हुयी थी।

अरे नकबेसर कागा ले भागा , मोरा सैयां अभागा न जागा।
अरे उड़ उड़ कागा मोरे चोलिया पे बैठा , उड़ उड़ कागा मोरे चोलिया पे बैठा
जुबना के सब रस ले भागा , अरे मोरा सैयां अभागा न जागा।



और डांस के दौरान , उसने मीता को पकड़ लिया , पीछे से और बाकायदा , जोबन मर्दन कर के जोबन लुटने का हाल बताया

बिचारी मीता लाख कोशिश करती रही लेकिन रूपा ने सबके सामने न सिर्फ टॉप के ऊपर से बल्कि अंदर भी खूब चूंचियां रगड़ी और बोला ,

" अरे ननद रानी तेरे भैया तो दिन रात हमारा जोबन लूटते हैं , आज हमारा दिन है ननदों का जोबन लूटने का।

गाना आगे बढ़ा और नीरा भाभी ने गाना शुरू किया


अरे नकबेसर कागा ले भागा , मोरा सैयां अभागा न जागा।
अरे उड़ उड़ कागा मोरे साया पे बैठा , उड़ उड़ कागा मोरे साया पे बैठा
बुरिया के सब रस ले भागा , अरे मोरा सैयां अभागा न जागा।

अरे बुरिया के सब रस ले भागा , अरे मोरा सैयां अभागा न जागा।



और इस बार तो अति हो गयी। रूपा अभी भी डांस में साथ दे रही थी और जैसे ही नीरा भाभी ने बोला बुरिया के सब रस ले भागा , अरे मोरा सैयां अभागा न जागा। उसने मीता का स्कर्ट उठा दिया और पीछे से चमेली भाभी ने उसका साथ दिया।

सब लोगो ने दरसन कर लिया। 

और उसके साथ ही रुपा ने मीता की चूत पे वो घिस्से लगाये ,



गनीमत थी की तब तक ये आगये , और सब लोग हट गए। 

कालोनी की औरते अपने घर निकल गयीं। चमेली भाभी भी रूपा के साथ चली गयी।

नीरा भाभी , मेरी जेठानी और ये मीता को छोड़ने उसके घर गए और अब मैं अकेली बची।
जाने से पहले मैंने मीता को अंकवार में भरा और जोर से भींचते हुए बुलाया

" हे कल जरूर आना , और शाम को नहीं दिन में ही "

जितना जोर से मैं अपनी बड़ी बड़ी चूंचियो से उसके जोबन रगड़ रही थी , उअतने ही जोर से वो भी जवाब दे रही थी।

" एकदम भाभी , पक्का आउंगी " वो बोली और तीनो चले गए। 
 
लला ! फिर खेलन आइयो होरी
प्यारे नंदोई जी,
सदा सुहागिन रहो, दूधो नहाओ, पूतो फलो.
अगर तुम चाहते हो कि मैं इस होली में तुम्हारे साथ आके तुम्हारे मायके में होली खेलूं तो तुम मुझे मेरे मायके से आके ले जाओ. हाँ और साथ में अपनी मेरी बहनों, भाभियों के साथ...

हाँ ये बात जरूर है कि वो होली के मौके पे ऐसा डालेंगी, ऐसा डालेंगी जैसा आज तक तुमने कभी डलवाया नहीं होगा. माना कि तुम्हें बचपन से डलवाने का शौक है, तेरे ऐसे चिकने लौंडे के सारे लौंडेबाज दीवाने हैं और तुम 'वो वो' हलब्बी हथियार हँस के ले लेते हो जिसे लेने में चार-चार बच्चों की माँ को भी पसीना छूटता है...लेकिन मैं गारंटी के साथ कह सकती हूँ कि तुम्हारी भी ऐसी की तैसी हो जायेगी.

हे कहीं सोच के हीं तो नहीं फट गई...अरे डरो नहीं, गुलाबी गालों वाली सालियाँ, मस्त मदमाती, गदराई गुदाज मेरी भाभियाँ सब बेताब हैं और...उर्मी भी...”




भाभी की चिट्ठी में दावतनामा भी था और चैलेंज भी, मैं कौन होता था रुकने वाला,


चल दिया. उनके गाँव. अबकी होली की छुट्टियाँ भी लंबी थी.


पिछले साल मैंने कितना प्लान बनाया था, भाभी की पहली होली पे...पर मेरे सेमेस्टर के इम्तिहान और फिर उनके यहाँ की रसम भी कि भाभी की पहली होली, उनके मायके में हीं होगी. भैया गए थे पर मैं...अबकी मैं किसी हाल में उन्हें छोड़ने वाला नहीं था.

भाभी मेरी न सिर्फ एकलौती भाभी थीं बल्कि सबसे क्लोज दोस्त भी थीं, कॉन्फिडेंट भी. भैया तो मुझसे काफी बड़े थे, लेकिन भाभी एक दो साल हीं बड़ी रही होंगी. और मेरे अलावा उनका कोई सगा रिश्तेदार था भी नहीं. बस में बैठे-बैठे मुझे फिर भाभी की चिट्ठी की याद आ गई.

उन्होंने ये भी लिखा था कि,

“कपड़ों की तुम चिंता मत करना, चड्डी बनियान की हमारी तुम्हारी नाप तो एक हीं है और उससे ज्यादा ससुराल में, वो भी होली में तुम्हें कोई पहनने नहीं देगा.”

बात उनकी एकदम सही थी, ब्रा और पैंटी से लेके केयर फ्री तक खरीदने हम साथ जाते थे या मैं हीं ले आता था और एक से एक सेक्सी. एकाध बार तो वो चिढ़ा के कहतीं,

“लाला ले आये हो तो पहना भी दो अपने हाथ से.” और मैं झेंप जाता.

सिर्फ वो हीं खुलीं हों ये बात नहीं, एक बार उन्होंने मेरे तकिये के नीचे से मस्तराम की किताबें पकड़ ली, और मैं डर गया लेकिन उन्होंने तो और कस के मुझे छेड़ा,

“लाला अब तुम लगता है जवान हो गए हो. लेकिन कब तक थ्योरी से काम चलाओगे, है कोई तुम्हारी नजर में. वैसे वो मेरी ननद भी एलवल वाली, मस्त माल है, (मेरी कजिन छोटी सिस्टर की ओर इशारा कर के) कहो तो दिलवा दूं, वैसे भी वो बेचारी कैंडल से काम चलाती है, बाजार में कैंडल और बैंगन के दाम बढ़ रहे हैं...बोलो.”

और उसके बाद तो हम लोग न सिर्फ साथ-साथ मस्तराम पढ़ते बल्कि उसकी फंडिंग भी वही करतीं.


ढेर सारी बातें याद आ रही थीं, अबकी होली के लिए मैंने उन्हें एक कार्ड भेजा था, जिसमें उनकी फोटो के ऊपर गुलाल तो लगा हीं था, एक मोटी पिचकारी शिश्न के शेप की. (यहाँ तक की उसके बेस पे मैंने बाल भी चिपका दिए) सीधे जाँघ के बीच में सेंटर, कार्ड तो मैंने चिट्ठी के साथ भेज दिया लेकिन मुझे बाद में लगा कि शायद अबकी मैं सीमा लांघ गया पर उनका जवाब आया तो वो उससे भी दो हाथ आगे. उन्होंने लिखा था कि,

“माना कि तुम्हारे जादू के डंडे में बहुत रंग है, लेकिन तुम्हें मालूम है कि बिना रंग के ससुराल में साली सलहज को कैसे रंगा जाता है. अगर तुमने जवाब दे दिया तो मैं मान लूंगी कि तुम मेरे सच्चे देवर हो वरना समझूंगी कि अंधेरे में सासू जी से कुछ गड़बड़ हो गई थी.”

अब मेरी बारी थी. मैंने भी लिख भेजा, “हाँ भाभी, गाल को चूम के, चूचि को मीज के और चूत को रगड़-रगड़ के चोद के.”
 
फागुनी बयार चल रही थी. पलाश के फूल मन को दहका रहे थे, आम के बौर लदे पड़ रहे थे.






फागुन बाहर भी पसरा था और बस के अंदर भी.

आधे से ज्यादा लोगों के कपड़े रंगे थे. एक छोटे से स्टॉप पे बस थोड़ी देर को रुकी और एक कोई अंदर घुसा. घुसते-घुसते भी घर की औरतों ने बाल्टी भर रंग उड़ेल दिया और जब तक वो कुछ बोलता, बस चल दी.

रास्ते में एक बस्ती में कुछ औरतों ने एक लड़की को पकड़ रखा था और कस के पटक-पटक के रंग लगा रही थी, (बेचारी कोई ननद भाभियों के चंगुल में आ गई थी.)



कुछ लोग एक मोड़ पे जोगीड़ा गा रहे थे, और बच्चे भी. तभी खिड़की से रंग, कीचड़ का एक...खिड़की बंद कर लो, कोई बोला.

लेकिन फागुन तो यहाँ कब का आँखों से उतर के तन से मन को भीगा चुका था. कौन कौन खिड़की बंद करता. भाभी की चिट्ठी में से छलक गया और...उर्मी भी.


किसी ने पीठ पे टॉर्च चमकाई (फ्लैश बैक) और कैलेंडर के पन्ने फड़फड़ा के पीछे पलटे,


भैया की शादी...तीन दिन की बारात...गाँव में बगीचे में जनवासा.


द्वार पूजा के पहले भाभी की कजिंस, सहेलियाँ आईं लेकिन सब की सब भैया को घेर के, कोई अपने हाथ से कुछ खिला रहा है, कोई छेड़ रहा है.

मैं थोड़ी दूर अकेले, तब तक एक लड़की पीले शलवार कुर्ते में मेरे पास आई एक कटोरे में रसगुल्ले.



“मुझे नहीं खाना है...” मैं बेसाख्ता बोला.



“खिला कौन रहा है, बस जरा मुँह खोल के दिखाइये, देखूं मेरी दीदी के देवर के अभी दूध के दाँत टूटे हैं कि नहीं.”
झप्प में मैंने मुँह खोल दिया और सट्ट से उसकी उंगलियाँ मेरे मुँह में, एक खूब बड़े रसगुल्ले के साथ.




और तब मैंने उसे देखा, लंबी तन्वंगी, गोरी. मुझसे दो साल छोटी होगी. बड़ी बड़ी रतनारी आँखें.

रस से लिपटी सिपटी उंगलियाँ उसने मेरे गाल पे साफ कर दीं और बोली,

“जाके अपनी बहना से चाट-चाट के साफ करवा लीजियेगा.”


और जब तक मैं कुछ बोलूं वो हिरणी की तरह दौड़ के अपने झुंड में शामिल हो गई.

उस हिरणी की आँखें मेरी आँखों को चुरा ले गईं साथ में.

द्वार पूजा में भाभी का बीड़ा सीधे भैया को लगा और उसके बाद तो अक्षत की बौछार (कहते हैं कि जिस लड़की का अक्षत जिसको लगता है वो उसको मिल जाता है) और हमलोग भी लड़कियों को ताड़ रहे थे.

तब तक कस के एक बड़ा सा बीड़ा सीधे मेरे ऊपर...मैंने आँखें उठाईं तो वही सारंग नयनी.


“नजरों के तीर कम थे क्या...” मैं हल्के से बोला.

पर उसने सुना और मुस्कुरा के बस बड़ी-बड़ी पलकें एक बार झुका के मुस्कुरा दी.


मुस्कुराई तो गाल में हल्के गड्ढे पड़ गए. गुलाबी साड़ी में गोरा बदन और अब उसकी देह अच्छी खासी साड़ी में भी भरी-भरी लग रही थी.



पतली कमर...मैं कोशिश करता रहा उसका नाम जानने की पर किससे पूछता.


रात में शादी के समय मैं रुका था. और वहीं औरतों, लड़कियों के झुरमुट में फिर दिख गई वो. एक लड़की ने मेरी ओर दिखा के कुछ इशारा किया तो वो कुछ मुस्कुरा के बोली, लेकिन जब उसने मुझे अपनी ओर देखते देखा तो पल्लू का सिरा होंठों के बीच दबा के बस शरमा गई.

शादी के गानों में उसकी ठनक अलग से सुनाई दे रही थी. गाने तो थोड़ी हीं देर चले, उसके बाद गालियाँ, वो भी एकदम खुल के...दूल्हे का एकलौता छोटा भाई, सहबाला था मैं, तो गालियों में मैं क्यों छूट पाता.

लेकिन जब मेरा नाम आता तो खुसुर पुसुर के साथ बाकी की आवाज धीमी हो जाती और...ढोलक की थाप के साथ बस उसका सुर...और वो भी साफ-साफ मेरा नाम ले के.

और अब जब एक दो बार मेरी निगाहें मिलीं तो उसने आँखें नीची नहीं की बस आँखों में हीं मुस्कुरा दी. लेकिन असली दीवाल टूटी अगले दिन.

अगले दिन शाम को कलेवा या खिचड़ी की रस्म होती है, जिसमें दूल्हे के साथ छोटे भाई आंगन में आते हैं और दुल्हन की ओर से उसकी सहेलियां, बहनें, भाभियाँ...इस रसम में घर के बड़े और कोई और मर्द नहीं होते इसलिए...माहौल ज्यादा खुला होता है. सारी लड़कियाँ भैया को घेरे थीं.

मैं अकेला बैठा था. गलती थोड़ी मेरी भी थी. कुछ तो मैं शर्मीला था और कुछ शायद...अकड़ू भी. उसी साल मेरा सी.पी.एम.टी. में सेलेक्शन हुआ था.

तभी मेरी मांग में...मैंने देखा कि सिंदूर सा...मुड़ के मैंने देखा तो वही. मुस्कुरा के बोली,

“चलिए आपका भी सिंदूर दान हो गया.”

उठ के मैंने उसकी कलाई थाम ली. पता नहीं कहाँ से मेरे मन में हिम्मत आ गई.
“ठीक है, लेकिन सिंदूर दान के बाद भी तो बहुत कुछ होता है, तैयार हो...”

अब उसके शर्माने की बारी थी. उसके गाल गुलाल हो गये. मैंने पतली कलाई पकड़ के हल्के से मरोड़ी तो मुट्ठी से रंग झरने लगा. मैंने उठा के उसके गुलाबी गालों पे हल्के से लगा दिया.

पकड़ा धकड़ी में उसका आँचल थोड़ा सा हटा तो ढेर सारा गुलाल मेरे हाथों से उसकी चोली के बीच, (आज चोली लहंगा पहन रखा था उसने).
कुछ वो मुस्कुराई कुछ गुस्से से उसने आँखें तरेरी और झुक के आँचल हटा के चोली में घुसा गुलाल झाड़ने लगी.
मेरी आँखें अब चिपक गईं, चोली से झांकते उसके गदराए, गुदाज, किशोर, गोरे-गोरे उभार,

पलाश सी मेरी देह दहक उठी. मेरी चोरी पकड़ी गई. मुझे देखते देख वो बोली,
“दुष्ट...” और आंचल ठीक कर लिया.
उसके हाथ में ना सिर्फ गुलाल था बल्कि सूखे रंग भी...बहाना बना के मैं उन्हें उठाने लगा.


लाल हरे रंग मैंने अपने हाथ में लगा लिए लेकिन जब तक मैं उठता, झुक के उसने अपने रंग समेट लिए और हाथ में लगा के सीधे मेरे चेहरे पे.

उधर भैया के साथ भी होली शुरू हो गई थी. उनकी एक सलहज ने पानी के बहाने गाढ़ा लाल रंग उनके ऊपर फेंक दिया था और वो भी उससे रंग छीन के गालों पे...बाकी सालियाँ भी मैदान में आ गईं. उस धमा चौकड़ी में किसी को हमारा ध्यान देने की फुरसत नहीं थी.

उसके चेहरे की शरारत भरी मुस्कान से मेरी हिम्मत और बढ़ गई.


लाल हरी मेरी उंगलियाँ अब खुल के उसके गालों से बातें कर रही थीं, छू रही थीं, मसल रही थीं.

पहली बार मैंने इस तरह किसी लड़की को छुआ था. उन्चासो पवन एक साथ मेरी देह में चल रहे थे. और अब जब आँचल हटा तो मेरी ढीठ दीठ...चोली से छलकते जोबन पे गुलाल लगा रही थी.

लेकिन अब वो मुझसे भी ज्यादा ढीठ हो गई थी. कस-कस के रंग लगाते वो एकदम पास...उसके रूप कलश...मुझे तो जैसे मूठ मार दी हो. मेरी बेकाबू...और गाल से सरक के वो चोली के... पहले तो ऊपर और फिर झाँकते गोरे गुदाज जोबन पे...

वो ठिठक के दूर हो गई.

मैं समझ गया ये ज्यादा हो गया. अब लगा कि वो गुस्सा हो गई है.

झुक के उसने बचा खुचा सारा रंग उठाया और एक साथ मेरे चेहरे पे हँस के पोत दिया.


और मेरे सवाल के जवाब में उसने कहा, “मैं तैयार हूँ, तुम हो, बोलो.”

मेरे हाथ में सिर्फ बचा हुआ गुलाल था. वो मैंने, जैसे उसने डाला था, उसकी मांग में डाल दिया.
भैया बाहर निकलने वाले थे.

“डाल तो दिया है, निभाना पड़ेगा...वैसे मेरा नाम उर्मी है.” हँस के वो बोली. और आपका नाम मैं जानती हूँ ये तो आपको गाना सुन के हीं पता चल गया होगा. वो अपनी सहेलियों के साथ मुड़ के घर के अंदर चल दी.

अगले दिन विदाई के पहले भी रंगों की बौछार हो गई.
 
अगले दिन विदाई के पहले भी रंगों की बौछार हो गई.

फिर हम दोनों एक दूसरे को कैसे छोड़ते.

मैंने आज उसे धर दबोचा. ढलकते आँचल से...अभी भी मेरी उंगलियों के रंग उसके उरोजों पे और उसकी चौड़ी मांग में गुलाल...चलते-चलते उसने फिर जब मेरे गालों को लाल पीला किया तो मैं शरारत से बोला,

“तन का रंग तो छूट जायेगा लेकिन मन पे जो रंग चढ़ा है उसका...”

“क्यों वो रंग छुड़ाना चाहते हो क्या.” आँख नचा के, अदा के साथ मुस्कुरा के वो बोली और कहा,

“लल्ला फिर अईयो खेलन होरी.”



एकदम, लेकिन फिर मैं डालूँगा तो...मेरी बात काट के वो बोली,

“एकदम जो चाहे, जहाँ चाहे, जितनी बार चाहे, जैसे चाहे...मेरा तुम्हारा फगुआ उधार रहा.”

मैं जो मुड़ा तो मेरे झक्काक सफेद रेशमी कुर्ते पे...लोटे भर गाढ़ा गुलाबी रंग मेरे ऊपर.

रास्ते भर वो गुलाबी मुस्कान. वो रतनारे कजरारे नैन मेरे साथ रहे.



अगले साल फागुन फिर आया, होली आई. मैं इन्द्रधनुषी सपनों के ताने बाने बुनता रहा, उन गोरे-गोरे गालों की लुनाई, वो ताने, वो मीठी गालियाँ, वो बुलावा...लेकिन जैसा मैंने पहले बोला था, सेमेस्टर इम्तिहान, बैक पेपर का डर...जिंदगी की आपाधापी...मैं होली में भाभी के गाँव नहीं जा सका.

भाभी ने लौट के कहा भी कि वो मेरी राह देख रही थी.

यादों के सफर के साथ भाभी के गाँव का सफर भी खतम हुआ.




भाभी की भाभियाँ, सहेलियाँ, बहनें...घेर लिया गया मैं. गालियाँ, ताने, मजाक...लेकिन मेरी निगाहें चारों ओर जिसे ढूंढ रही थी, वो कहीं नहीं दिखी.

तब तक अचानक एक हाथ में ग्लास लिए...जगमग दुती सी...

खूब भरी-भरी लग रही थी. मांग में सिंदूर...मैं धक से रह गया (भाभी ने बताया तो था कि अचानक उसकी शादी हो गई लेकिन मेरा मन तैयार नहीं था),

वही गोरा रंग लेकिन स्मित में हल्की सी शायद उदासी भी...

“क्यों क्या देख रहे हो, भूल गए क्या...?” हँस के वो बोली.

“नहीं, भूलूँगा कैसे...और वो फगुआ का उधार भी...” धीमे से मैंने मुस्कुरा के बोला.

“एकदम याद है...और साल भर का सूद भी ज्यादा लग गया है. लेकिन लो पहले पानी तो लो.”

मैंने ग्लास पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया तो एक झटके में...झक से गाढ़ा गुलाबी रंग...मेरी सफेद शर्ट.”

“हे हे क्या करती है...नयी सफेद कमीज पे अरे जरा...” भाभी की माँ बोलीं.

“अरे नहीं, ससुराल में सफेद पहन के आएंगे तो रंग पड़ेगा हीं.” भाभी ने उर्मी का साथ दिया.

“इतना डर है तो कपड़े उतार दें...” भाभी की भाभी चंपा ने चिढ़ाया.

“और क्या, चाहें तो कपड़े उतार दें...हम फिर डाल देंगे.” हँस के वो बोली. सौ पिचकारियाँ गुलाबी रंग की एक साथ चल पड़ीं.



“अच्छा ले जाओ कमरे में, जरा आराम वाराम कर ले बेचारा...” भाभी की माँ बोलीं.

उसने मेरा सूटकेस थाम लिया और बोली,

“बेचारा...चलो.”

कमरे में पहुँच के मेरी शर्ट उसने खुद उतार के ले लिया और ये जा वो जा.



कपड़े बदलने के लिए जो मैंने सूटकेस ढूंढा तो उसकी छोटी बहन रूपा बोली, “वो तो जब्त हो गया.”

मैंने उर्मी की ओर देखा तो वो हँस के बोली, “देर से आने की सजा.”

बहुत मिन्नत करने के बाद एक लुंगी मिली उसे पहन के मैंने पैंट चेंज की तो वो भी रूपा ने हड़प कर ली.

मैंने सोचा था कि मुँह भर बात करूँगा पर भाभी...वो बोलीं कि हमलोग पड़ोस में जा रहे हैं, गाने का प्रोग्राम है. आप अंदर से दरवाजा बंद कर लीजिएगा.

मैं सोच रहा था कि...उर्मी भी उन्हीं लोगों के साथ निकल गई. दरवाजा बंद कर के मैं कमरे में आ के लेट गया. सफर की थकान, थोड़ी हीं देर में आँख लग गई.

सपने में मैंने देखा कि उर्मी के हाथ मेरे गाल पे हैं. वो मुझे रंग लगा रही है, पहले चेहरे पे, फिर सीने पे...और मैंने भी उसे बाँहों में भर लिया. बस मुझे लग रहा था कि ये सपना चलता रहे...डर के मैं आँख भी नहीं खोल रहा था कि कहीं सपना टूट ना जाये. सहम के मैंने आँख खोली...

वो उर्मी हीं थी.
 
मैंने उसे कस के जकड़ लिया और बोला...“हे तुम...”

“क्यों, अच्छा नहीं लगा क्या. चली जाऊं...”

वो हँस के बोली. उसके दोनों हाथों में रंग लगा था.
“उंह उह्हं जाने कौन देगा तुमको अब मेरी रानी...”

हँस के मैं बोला और अपने रंग लगे गाल उसके गालों पे रगड़ने लगा. 'चोर...' मैं बोला.

“चोर...चोरी तो तुमने की थी. भूल गए...”

“मंजूर, जो सजा देना हो, दो ना.”

“सजा तो मिलेगी हीं...तुम कह रहे थे ना कि कपड़ों से होली क्यों खेलती हो, तो लो...” और एक झटके में मेरी बनियान छटक के दूर...मेरे चौड़े चकले सीने पे वो लेट के रंग लगाने लगी.

कब होली के रंग तन के रंगों में बदल गए हमें पता नहीं चला.

पिछली बार जो उंगलियाँ चोली के पास जा के ठिठक गई थीं उन्होंने हीं झट से ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए...

फिर कब मेरे हाथों ने उसके रस कलश को थामा कब मेरे होंठ उसके उरोजों का स्पर्श लेने लगे, हमें पता हीं नहीं चला. कस कस के मेरे हाथ उसके किशोर जोबन मसल रहे थे, रंग रहे थे. और वो भी सिसकियाँ भरती काले पीले बैंगनी रंग मेरी देह पे...

पहले उसने मेरी लुंगी सरकाई और मैंने उसके साये का नाड़ा खोला पता नहीं.

हाँ जब-जब भी मैं देह की इस होली में ठिठका, शरमाया, झिझका उसी ने मुझे आगे बढ़ाया.

यहाँ तक की मेरे उत्तेजित शिश्न को पकड़ के भी... “

इसे क्यों छिपा रहे हो, यहाँ भी तो रंग लगाना है या इसे दीदी की ननद के लिए छोड़ रखा है.”

आगे पीछे कर के सुपाड़े का चमड़ा सरका के उसने फिर तो...लाल गुस्साया सुपाड़ा, खूब मोटा...तेल भी लगाया उसने.

आले पर रखा करुआ (सरसो) तेल भी उठा लाई वो.

अनाड़ी तो अभी भी था मैं, पर उतना शर्मीला नहीं.

कुछ भाभी की छेड़छाड़ और खुली खुली बातों ने, फिर मेडिकल की पहली साल की रैगिंग जो हुई और अगले साल जो हम लोगों ने करवाई...

“पिचकारी तो अच्छी है पर रंग वंग है कि नहीं, और इस्तेमाल करना जानते हो...तेरी बहनों ने कुछ सिखाया भी है कि नहीं...”
उसकी छेड़छाड़ भरे चैलेंज के बाद...उसे नीचे लिटा के मैं सीधे उसकी गोरी-गोरी मांसल किशोर जाँघों के बीच...लेकिन था तो मैं अनाड़ी हीं.

उसने अपने हाथ से पकड़ के छेद पे लगाया और अपनी टाँगे खुद फैला के मेरे कंधे...

मेडिकल का स्टूडेंट इतना अनाड़ी भी नहीं था,

दोनों निचले होंठों को फैला के...मैंने पूरी ताकत से कस के, हचक के पेला...उसकी चीख निकलते निकलते रह गई. कस के उसने दाँतों से अपने गुलाबी होंठ काट लिए. एक पल के लिए मैं रुका, लेकिन मुझे इतना अच्छा लग रहा था...


रंगों से लिपी पुती वो मेरे नीचे लेटी थी. उसकी मस्त चूचियों पे मेरे हाथ के निशान...मस्त होकर एक हाथ मैंने उसके रसीले जोबन पे रखा और दूसरा...कमर पे और एक खूब करारा धक्का मारा.
“उईईईईईईई माँ...”

रोकते रोकते भी उसकी चीख निकल गई. लेकिन अब मेरे लिए रुकना मुश्किल था. दोनों हाथों से उसकी पतली कलाईयों को पकड़ के हचाक...धक्का मारा.

एक के बाद एक...वो तड़प रही थी, छटपटा रही थी. उसके चेहरे पे दर्द साफ झलक रहा था.

“उईईईईईईई माँ ओह्ह बस...बस्सस्सस्स...” वह फिर चीखी. अबकी मैं रुक गया. मेरी निगाह नीचे गई तो मेरा ७ इंच का लंड आधे से ज्यादा उसकी कसी कुँवारी चूत में...और खून की बूँदें...अभी भी पानी से बाहर निकली मछली की तरह उसकी कमर तड़प रही थी.

मैं रुक गया. उसे चूमते हुए, उसका चेहरा सहलाने लगा. थोड़ी देर तक रुका रहा मैं.

उसने अपनी बड़ी-बड़ी आँखें खोलीं. अभी भी उसमें दर्द तैर रहा था.


“हे रुक क्यों गए...करो ना, थक गए क्या...?”
“नहीं, तुम्हें इतना दर्द हो रहा था और...वो खून...” मैंने उसकी जाँघों की ओर इशारा किया.

“बुद्धू...तुम रहे अनाड़ी के अनाड़ी...अरे कुँवारी...अरे पहली बार किसी लड़की के साथ होगा तो दर्द तो होगा हीं...और खून भी निकलेगा हीं...” कुछ देर रुक के वो बोली, “अरे इसी दर्द के लिए तो मैं तड़प रही थी, करो ना, रुको मत...चाहे खून खच्चर हो जाए, चाहे मैं दर्द से बेहोश हो जाऊं...मेरी सौं...”

और ये कह के उसने अपनी टाँगे मेरे हिप्स के पीछे कैंची की तरह बांध के कस लिया और जैसे कोई घोड़े को एड़ दे...मुझे कस के भींचती हुई बोली,

“पूरा डालो ना, रुको मत...ओह ओह...हाँ बस...ओह डाल दो अपना...लंड, चोद दो मुझे कस के.”

बस उसके मुँह से ये बात सुनते हीं मेरा जोश दूना हो गया और उसकी मस्त चूचियाँ पकड़ के कस-कस के मैं सब कुछ भूल के चोदने लगा. साथ में अब मैं भी बोल रहा था...

“ले रानी ले, अपनी मस्त रसीली चूत में मेरा मोटा लंड ले...ले आ रहा है ना मजा होली में चुदाने का.”

“हाँ राजा, हाँ ओह ओह्ह...चोद चोद मुझे...दे दे अपने लंड का मजा ओह...”

देर तक वो चुदती रही, मैं चोदता रहा. मुझसे कम जोश उसमें नहीं था.
पास से फाग और चौताल की मस्त आवाज गूंज रही थी.

अंदर रंग बरस रहा था, होली का, तन का, मन का...चुनर वाली भीग रही थी.

हम दोनों घंटे भर इसी तरह एक दूसरे में गुथे रहे और जब मेरी पिचकारी से रंग बरसा...तो वह भीगती रही, भीगती रही. साथ में वह भी झड़ रही थी, बरस रही थी.

थक कर भी हम दोनों एक दूसरे को देखते रहे, उसके गुलाबी रतनारे नैनो की पिचकारी का रंग बरस बरस कर भी चुकने का नाम नहीं ले रहा था.

उसने मुस्कुरा के मुझे देखा, मेरे नदीदे प्यासे होंठ, कस के चूम लिया मैंने उसे...और फिर दुबारा.

मैं तो उसे छोड़ने वाला नहीं था लेकिन जब उसने रात में फिर मिलने का वादा किया, अपनी सौं दी तो मैंने छोड़ा उसे. फिर कहाँ नींद लगने वाली थी. नींद चैन सब चुरा के ले गई थी चुनर वाली.


कुछ देर में वो, भाभी और उनकी सहेलियों की हँसती खिलखिलाती टोली के साथ लौटी. सब मेरे पीछे पड़ी थीं कि मैंने किससे डलवा लिया और सबसे आगे वो थी...चिढ़ाने में. मैं किससे चुगली करता कि किसने लूट लिया...भरी दुपहरी में मुझे.
 
होली का असली मजा


होली का असली मजा--1
written by Komal
मुझे त्योहारों में बहुत मज़ा आता है, खास तौर से होली में.

पर कुछ चीजें त्योहारों में गड़बड़ है. जैसे, मेरे मायके में मेरी मम्मी और उनसे भी बढ़ के छोटी बहनें कह रही थीं कि मैं अपनी पहली होली मायके में मनाऊँ. वैसे मेरी बहनों की असली दिलचस्पी तो अपने जीजा जी के साथ होली खेलने में थी. परन्तु मेरे ससुराल के लोग कह रहे थे कि बहु की पहली होली ससुराल में हीं होनी चाहिये.

मैं बड़ी दुविधा में थी. पर त्योहारों में गड़बड़ से कई बार परेशानियां सुलझ भी जाती हैं. इस बार होली २ दिन पड़ी.

मेरी ससुराल में 17 मार्च को और मायके में 18 को.

मायके में जबर्दस्त होली होती है और वो भी दो दिन. तय हुआ कि मेरे घर से कोई आ के मुझे होली वाले दिन ले जाए और ‘ये’ होली वाले दिन सुबह पहुँच जायेंगे. मेरे मायके में तो मेरी दो छोटी बहनों नीता और रीतू के सिवाय कोई था नहीं. मम्मी ने फिर ये प्लान बनाया कि मेरा ममेरा भाई, चुन्नू, जो 11वीं में पढ़ता था, वही होली के एक दिन पहले आ के ले जायेगा.

"चुन्नू कि चुन्नी..." मेरी ननद गीता ने छेड़ा.

वैसे बात उसकी सही थी. वह बहुत कोमल, खूब गोरा, लड़कियों की तरह शर्मीला, बस यों समझ लीजिए कि जबसे वो क्लास ८ में पहुँचा, लड़के उसके पीछे पड़े रहते थे. यूं कहिये कि ‘नमकीन’ और हाईस्कूल में उसकी टाइटिल थी, “है शुक्र कि तू है लड़का..”, पर मैंने भी गीता को जवाब दिया,
“अरे आएगा तो खोल के देख लेना क्या है, अंदर हिम्मत हो तो...”

“हाँ, पता चल जायेगा कि... नुन्नी है या लंड(penis)” मेरी जेठानी ने मेरा साथ दिया.

“अरे भाभी उसका तो मूंगफली जैसा होगा... उससे क्या होगा हमारा?” मेरी बड़ी ननद ने चिढ़ाया.

“अरे मूंगफली है या केला.. ये तो पकड़ोगी तो पता चलेगा. पर मुझे अच्छी तरह मालूम है कि तुम लोगों ने मुझे ले जाने के लिये उसे बुलाने की शर्त इसीलिये रखी है कि तुम लोग उससे मज़ा लेना चाहती हो.”

हँस के मैं बोली.

“भाभी उससे मज़ा तो लोग लेना चाहते है, पर हम या कोई और ये तो होली में हीं पता चलेगा, आपको अब तक तो पता चल हीं गया होगा कि यहाँ के लोग पिछवाड़े के कितने शौक़ीन होते है?”

मेरी बड़ी ननद रानू जो शादी-शुदा थी, खूब मुँह फट्ट थी और खुल के मजाक करती थी.

बात उसकी सही थी.

मैं फ्लैश बैक में चली गई.

सुहागरात के चार-पांच दिन के अंदर हीं, मेरे पिछवाड़े की... शुरुआत तो उन्होंने दो दिन के अंदर हीं कर दी थी.

मैं फ्लैश बैक में चली गई.

सुहागरात के चार-पांच दिन के अंदर हीं, मेरे पिछवाड़े की... शुरुआत तो उन्होंने दो दिन के अंदर हीं कर दी थी.


मुझे अब तक याद है, उस दिन मैंने सलवार-सूट पहन रखा था, जो थोड़ा टाईट था और मेरे मम्मे और नितम्ब खूब उभर के दिख रहे थे. रानू ने मेरे चूतड़ों पे चिकोटी काट के चिढ़ाया,


“भाभी लगता है आपके पिछवाड़े में काफी खुजली मच रही है. आज आपकी गांड़ बचने वाली नहीं है, अगर आपको इस ड्रेस में भैया ने देख लिया...”


“अरे तो डरती हूँ क्या तुम्हारे भैया से? जब से आई हूँ लगातार तो चालू रहते है, बाकी और कुछ तो अब बचा नहीं...... ये भी कब तक बचेगी?” चूतड़ मटका के मैंने जवाब दिया.

और तब तक ‘वो’ भी आ गए. उन्होंने एक हाथ से खूब कस के मेरे चूतड़ को दबोच लिया और उनकी एक उंगली मेरे कसी सलवार में, गांड़ के क्रैक में घुस गई.

उनसे बचने के लिये मैं रजाई में घुस गई अपनी सास के बगल में.....

‘उनकी’ बगल में मेरी जेठानी और छोटी ननद बैठी थी. वह भी रजाई में मेरी बगल में घुस के बैठ गए और अपना एक हाथ मेरे कंधे पे रख दिया.

छेड़-छाड़ सिर्फ कोई ‘उनकी’ जागीर तो थी नहीं. सासू के बगल में मैं थोड़ा सेफ भी महसूस कर रही थी और रजाई के अंदर हाथ भी थोड़ा बोल्ड हो जाता है.

मैंने पजामे के ऊपर हाथ रखा तो उनका खूंटा पूरी तरह खड़ा था. मैंने शरारत से उसे हल्के से दबा दिया और उनकी ओर मुस्कुरा के देखा.


बेचारे.... चाह के भी..... अब मैंने और बोल्ड हो के हाथ उनके पजामे में डाल के सुपाड़े को खोल दिया. पूरी तरह फूला और गरम था. उसे सहलाते-सहलाते मैंने अपने लंबे नाख़ून से उनके पी-होल(pee hole) को छेड़ दिया. जोश में आ के उन्होंने मेरे मम्मे कस के दबा दिए.


उनके चेहरे से उत्तेजना साफ़ दिख रही थी. वह उठ के बगल के कमरे में चले गए जो मेरी छोटी ननद का रीडिंग रूम था. बड़ी मुश्किल से मेरी ननद और जेठानी ने अपनी मुस्कान दबायी.

“जाइये-जाइये भाभी, अभी आपका बुलावा आ रहा होगा.” शैतानी से मेरी छोटी ननद बोली.

हम दोनों का दिन-दहाड़े का ये काम तो सुहागरात के अगले दिन से हीं चालू हो गया था.

पहली बार तो मेरी जेठानी जबरदस्ती मुझे कमरे में दिन में कर आई और उसके बाद से तो मेरी ननदें और यहाँ तक की सासू जी भी.......बड़ा खुला मामला था मेरी ससुराल में......

एक बार तो मुझसे ज़रा सी देर हो गई तो मेरी सासू बोली, “बहु, जाओ ना... बेचारा इंतज़ार कर रहा होगा...”

“ज़रा पानी ले आना...” तुरन्त हीं ‘उनकी’ आवाज सुनाई दी.

“जाओ, प्यासे की प्यास बुझाओ...” मेरी जेठानी ने छेड़ा.

कमरे में पँहुचते हीं मैंने दरवाजा बंद कर दिया.

उनको छेड़ते हुए, दरवाजा बंद करते समय, मैंने उनको दिखा के सलवार से छलकते अपने भारी चूतड़ मटका दिए.

फिर क्या था.? पीछे आके उन्होंने मुझे कस के पकड़ लिया और दोनों हाथों से कस-कस के मेरे मम्मे दबाने लगे. और ‘उनका’ पूरी तरह उत्तेजित हथियार भी मेरी गांड़ के दरार पे कस के रगड़ रहा था. लग रहा था, सलवार फाड़ के घुस जायेगा.


मैंने चारों ओर नज़र दौडाई. कमरे में कुर्सी-मेज़ के अलावा कुछ भी नहीं था. कोई गद्दा भी नहीं कि जमीन पे लेट के.


मैं अपने घुटनों के बल पे बैठ गई और उनके पजामे का नाड़ा खोल दिया. फनफ़ना कर उनका लंड बाहर आ गया. सुपाड़ा अभी भी खुला था, पहाड़ी आलू की तरह बड़ा और लाल.

मैंने पहले तो उसे चूमा और फिर बिना हाथ लगाये अपने गुलाबी होठों के बीच ले चूसना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे मैं लॉलीपॉप की तरह उसे चूस रही थी और कुछ हीं देर में मेरी जीभ उनके पी-होल को छेड़ रही थी.


उन्होंने कस के मेरे सिर को पकड़ लिया. अब मेरा एक मेहन्दी लगा हाथ उनके लंड के बेस को पकड़ के हल्के से दबा रहा था और दूसरा उनके अंडकोष (Balls) को पकड़ के सहला और दबा रहा था. जोश में आके मेरा सिर पकड़ के वह अपना मोटा लंड अंदर-बाहर कर रहे थे.


उनका आधे से ज्यादा लंड अब मेरे मुँह में था. सुपाड़ा हलक पे धक्के मार रहा था. जब मेरी जीभ उनके मोटे कड़े लंड को सहलाती और मेरे गुलाबी होठों को रगड़ते, घिसते वो अंदर जाता.... खूब मज़ा आ रहा था मुझे. मैं खूब कस-कस के चूस रही थी, चाट रही थी.

उस कमरे में मुझे चुदाई का कोई रास्ता तो दिख नहीं रहा था. इसलिए मैंने सोचा कि मुख-मैथुन कर के हीं काम चला लूं.
पर उनका इरादा कुछ और हीं था.

“कुर्सी पकड़ के झुक जाओ...” वो बोले.. मैं झुक गई.

पीछे से आके उन्होंने सलवार का नाड़ा खोल के उसे घुटनों के नीचे सरका दिया और कुर्ते को ऊपर उठा के ब्रा खोल दी. अब मेरे मम्मे आजाद थे. मैं सलवार से बाहर निकलना चाहती थी, पर उन्होंने मना कर दिया कि ऐसे झट से कपड़े फिर से पहन सकते हैं, अगर कोई बुला ले.....

इस आसन में मुझे वो पहले भी चोद चुके थे पर सलवार पैर में फँसी होने के कारण मैं टाँगे ठीक से फैला नहीं पा रही थी और मेरी चूत और कसी कसी हो रही थी.

एक हाथ से वो मेरा जोबन मसल रहे थे और दूसरे से उन्होंने मेरी चूत में उँगली करनी शुरू कर दी.

चूत तो मेरी पहले हीं गीली हो रही थी, थोड़ी देर में हीं वो पानी-पानी हो गई. उन्होंने अपनी उँगली से मेरी चूत को फैलाया और सुपाड़ा वहाँ सेंटर कर दिया. फिर जो मेरी पतली कमर को पकड़ के उन्होंने कस के एक करारा धक्का मारा तो मेरी चूत को रगड़ता, पूरा सुपाड़ा अंदर चला गया.

दर्द से मैं तिलमिला उठी. पर जब वो चूत के अंदर घिसता तो मज़ा भी बहुत आ रहा था.
 
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