Holi sex stories-होली की सेक्सी कहानियाँ - Page 11 - SexBaba
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Holi sex stories-होली की सेक्सी कहानियाँ

दो चार धक्के ऐसे मारने के बाद उन्होंने मेरी चूचियों को कस-कस के रगड़ते, मसलते चुदाई शुरू कर दी. जल्द हीं मैं भी मस्ती में आ कभी अपनी चूत से उनके मोटे हलब्बी लंड पे सिकोड़ देती, कभी अपनी गांड़ मटका के उनके धक्के का जवाब देती. साथ-साथ कभी वो मेरी क्लिट, कभी निप्पल्स पिंच करते और मैं मस्ती में गिनगिना उठती.


तभी उन्होंने अपनी वो उँगली, जो मेरी चूत में अंदर-बाहर हो रही थी और मेरी चूत के रस से अच्छी तरह गीली थी, को मेरी गांड़ के छेद पे लगाया और कस के दबा के उसकी टिप अंदर घुसा दी.

“हे...अंदर नहीं......उँगली निकाल लो.....प्लीज़...” मैं मना करते बोली.

पर वो कहाँ सुनने वाले थे. धीरे-धीरे उन्होंने पूरी उँगली अंदर कर दी.

अब उन्होंने चुदाई भी फुल स्पीड में शुरू कर दी थी. उनका बित्ते भर लंबा मूसल पूरा बाहर आता और एक झटके में उसे वो पूरा अंदर पेल देते. कभी मेरी चूत के अंदर उसे गोल-गोल घुमाते. मेरी सिसकियाँ कस-कस के निकल रही थी.

उँगली भी लंड के साथ मेरी गांड़ में अंदर-बाहर हो रही थी. लंड जब बुर से बाहर निकलता तो वो उसे टिप तक बाहर निकालते और फिर उँगली लंड के साथ हीं पूरी तरह अंदर घुस जाती. पर उस धक्का पेल चुदाई में मैं गांड़ में उँगली भूल हीं चुकी थी.

जब उन्होंने गांड़ से गप्प से उँगली बाहर निकाली तो मुझे पता चला. सामने मेरी ननद की टेबल पर फेयर एंड लवली ट्यूब रखी थी.

उन्होंने उसे उठा के उसका नोज़ल सीधे मेरी गांड़ में घुसा दिया और थोड़ी सी क्रीम दबा के अंदर घुसा दी. और जब तक मैं कुछ समझती उन्होंने अबकी दो उंगलियां मेरी गांड़ में घुसा दी.

दर्द से मैं चीख उठी. पर अबकी बिन रुके पूरी ताकत से उन्होंने उसे अंदर घुसा के हीं दम लिया.

“हे...निकालो ना.... क्या करते हो.? उधर नहीं...प्लीज़....चूत चाहे जित्ती बार चोद लो... ओह...” मैं चीखी.

लेकिन थोड़ी देर में चुदाई उन्होंने इत्ती तेज कर दी कि मेरी हालत खराब हो गई. और खास तौर से जब वो मेरी क्लिट मसलते..., मैं जल्द हीं झड़ने के कगार पर पहुँच गई तो उन्होंने चुदाई रोक दी.

मैं भूल हीं चुकी थी कि जिस रफ़्तार से लंड मेरी बुर में अंदर-बाहर हो रहा था, उसी तरह मेरी गांड़ में उँगली अंदर-बाहर हो रही थी.

लंड तो रुका हुआ था पर गांड़ में उँगली अभी भी अंदर-बाहर हो रही थी. एक मीठा-मीठा दर्द हो रहा था पर एक नए किस्म का मज़ा भी मिल रहा था. उन्होंने कुछ देर बाद फिर चुदाई चालू कर दी.

दो-तीन बार वो मुझे झड़ने के कगार पे ले जाके रोक देते पर गांड़ में दोनों उँगली करते रहते और अब मैं भी गांड़, उँगली के धक्के के साथ आगे-पीछे कर रही थी.

और जब कुछ देर बाद उँगली निकाली तो क्रीम के ट्यूब का नोज़ल लगा के पूरी की पूरी ट्यूब मेरी गांड़ में खाली कर दी. अपने लंड में भी क्रीम लगा के उसे मेरी गांड़ के छेद पे लगा दिया और अपने दोनों ताकतवर हाथों से मेरे चूतड़ को पकड़, कस के मेरी गांड़ का छेद फैला दिया.

उनका मोटा सुपाड़ा मेरी गांड़ के दुबदुबाते छेद से सटा था. और जब तक मैं संभलती, उन्होंने मेरी पतली कमर पकड़ के कस के पूरी ताकत से तीन-चार धक्के लगाए....


“उईईई.....” मैं दर्द से बड़े जोर से चिल्लाई. मैंने अपने होंठ कस के काट लिये पर लग रहा था मैं दर्द से बेहोश हो जाऊँगी. बिना रुके उन्होंने फिर कस के दो-तीन धक्के लगाये और मैं दर्द से बिलबिलाते हुए फिर चीखने लगी. मैंने अपनी गांड़ सिकोड़ने की कोशिश की और गांड़ पटकने लगी पर तब तक उनका सुपाड़ा पूरी तरह मेरी गांड़ में घुस चुका था और गांड़ के छल्ले ने उसे कस के पकड़ रखा था. 

मैं खूब अपने चूतड़ हिला और पटक रही थी पर जल्द हीं मैंने समझ लिया कि वो अब मेरी गांड़ से निकलने वाला नहीं. और उन्होंने भी अब कमर छोड़ मेरी चूचियाँ पकड़ ली थी और उसे कस कस के मसल रहे थे. दर्द के मारे मेरी हालत खराब थी. पर थोड़ी देर में चूचियों के दर्द के आगे गांड़ का दर्द मैं भूल गई.


अब बिना लंड को और ढकेले, अब वो प्यार से कभी मेरी चूत सहलाते, कभी क्लिट को छेड़ते. थोड़ी देर में मस्ती से मेरी हालत खराब हो गई. अब उन्होंने अपनी दो उंगलियां मेरी चूत में डाल दी और कस-कस के लंड की तरह उसे चोदने लगे.

जब मैं झड़ने के कगार पे आ जाती तो वो रुक जाते. मैं तड़प रही थी.
मैंने उनसे कहा, “प्लीज मुझे झड़ने दो...” तो वो बोले, “तुम मुझे अपनी ये मस्त गांड़ मार लेने दो.” मैं अब पागल हो रही थी.
मैं बोली, “हाँ राजा चाहे गांड़ मार लो, पर...”
वो मुस्कुरा के बोले, “जोर से बोल....”


और मैं खूब कस के बोली, “मेरे राजा, मार लो मेरी गांड़, चाहे आज फट जाये... पर मुझे झाड़ दो...”

और उन्होंने मेरी चूत के भीतर अपनी उँगली इस तरह से रगड़ी जैसे मेरे जी-प्वाइंट को छेड़ दिया हो और मैं पागल हो गई. मेरी चूत कस-कस के काँप रही थी और मैं झड़ रही थी, रस छोड़ रही थी.


और मौके का फायदा उठा के उन्होंने मेरी चूचियाँ पकड़े-पकड़े कस-कस के धक्के लगाये और पूरा लंड मेरी कोरी गांड़ में घुसेड़ दिया. दर्द के मारे मेरी गांड़ फटी जा रही थी. कुछ देर रुक के उनका लंड पूरा बाहर आके मेरी गांड़ मार रहा था.

आधे घन्टे से भी ज्यादा गांड़ मारने के बाद हीं वो झड़े. और उनकी उंगलियां मेरा चूत मंथन कर रही थी और मैं भी साथ-साथ झड़ी.

उनका वीर्य मेरी गांड़ के अंदर से निकल के मेरे चूतड़ों पे आ रहा था. उन्होंने अपने लंड निकाला भी नहीं था कि मेरी ननद की आवाज़ आई, “भाभी, आपका फोन.”

जल्दी से मैंने सलवार चढाई, कुरता सीधा किया और बाहर निकली. दर्द से चला भी नहीं जा रहा था.

किसी तरह सासू जी के बगल में पलंग पे बैठ के बात की. मेरी छोटी ननद ने छेड़ा,

“क्यों भाभी, बहुत दर्द हो रहा है.?”

मैंने उसे खा जाने वाली नज़रों से देखा. सासू बोली,

“बहु, लेट जाओ...”

लेटते हीं जैसे मेरे चूतड़ गद्दे पे लगे फिर दर्द शुरू गया हो. उन्होंने समझाया,

“करवट हो के लेट जाओ, मेरी ओर मुँह कर के...”

और मेरी जेठानी से बोलीं, “तेरा देवर बहुत बदमाश है, मैं फूल-सी बहु इसीलिए थोड़ी ले आई थी...”

“अरी माँ, अपनी बहु को दोष नहीं देती, मेरी प्यारी भाभी है हीं इत्ती प्यारी और फिर ये भी तो मटका-मटका कर.” उनकी बात काट के मेरी छोटी ननद बोली.

“लेकिन इस दर्द का एक हीं इलाज है, थोड़ा और दर्द हो तो कुछ देर के बाद आदत पड़ जाती है.” मेरा सिर प्यार से सहलाते हुए मेरी सासू जी धीरे से मेरे कान में बोलीं.

“लेकिन भाभी भैया को क्यों दोष दें? आपने हीं तो उनसे कहा था मारने के लिये... खुजली तो आपको हीं हो रही थी.” सब लोग मुस्कुराने लगे और मैं भी अपनी गांड़ में हो रही टीस के बावजूद मुस्कुरा उठी.

सुहागरात के दिन से हीं मुझे पता चल गया था कि यहाँ सब कुछ काफी खुला हुआ है. तब तक वो आके मेरे बगल में रजाई में घुस गए. सलवार तो मैंने ऐसे हीं चढा ली थी. इसलिए आसानी से उसे उन्होंने मेरे घुटने तक सरका दी और मेरे चूतड़ सहलाने लगे.

मेरी जेठानी उनसे मुस्कुराकर छेड़ते हुए बोली, “देवर जी, आप मेरी देवरानी को बहोत तंग करते हैं, और तुम्हारी सजा ये है कि आज रात तक अब तुम्हारे पास ये दुबारा नहीं जायेगी.”

मेरी सासू जी ने उनका साथ दिया.



जैसे उसके जवाब में उन्होंने मेरे गांड़ के बीच में छेड़ती उँगली को पूरी ताकत से एक हीं झटके में मेरी गांड़ में पेल दिया. गांड़ के अंदर उनका वीर्य लोशन की तरह काम कर रहा था. फिर भी मेरी चीख निकल गई.

मुस्कराहट दबाती हुई सासू जी किसी काम का बहाना बना बाहर निकल गईं. लेकिन मेरी ननद कहाँ चुप रहने वाली थी.

वो बोली, “भाभी, क्या किसी चींटे ने काट लिया...?”

“अरे नहीं लगता है, चींटा अंदर घुस गया है...” छोटी वाली बोली.

“अरे मीठी चीज होगी तो चींटा लगेगा हीं. भाभी आप हीं ठीक से ढँक कर नहीं रखती?” बड़ी वाली ने फिर छेड़ा.

तब तक उन्होंने रजाई के अंदर मेरा कुरता भी पूरी तरह से ऊपर उठा के मेरी चूचि दबानी शुरू कर दी थी और उनकी उँगली मेरी गांड़ में गोल-गोल घूम रही थी
“अरे चलो, बेचारी को आराम करने दो, तुम लोगों को चींटे से कटवाउंगी तो पता चलेगा.” ये कह के मेरी जेठानी दोनों ननदों को हांक के बाहर ले गईं. लेकिन वो भी कम नहीं थी. ननदों को बाहर करके वो आईं और सरसों के तेल की शीशी रखती बोलीं, “ये लगाओ, एंटी-सेप्टिक भी है.” 

तब तक उनका हथियार खुल के मेरी गांड़ के बीच धक्का मार रहा था. निकल कर बाहर से उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया.

फिर क्या था.? उन्होंने मुझे पेट के बल लिटा दिया और पेट के नीचे दो तकिया लगा के मेरे चूतड़ ऊपर उठा दिए. सरसों का तेल अपने लंड पे लगा के सीधे शीशी से हीं उन्होंने मेरी गांड़ के अंदर डाल दिया.

वो एक बार झड़ हीं चुके थे इसलिए आप सोच हीं सकते हैं इस बार पूरा एक घंटा गांड़ मारने के बाद हीं वो झड़े और जब मेरी जेठानी शाम की चाय ले आईं तो भी उनका मोटा लंड मेरी गांड़ में हीं घुसा था.

उस रात फिर उन्होंने दो बार मेरी गांड़ मारी और उसके बाद से हर हफ्ते दो-तीन बार मेरे पिछवाड़े का बाजा तो बज हीं जाता है.
 
होली का असली मजा--2

मेरी बड़ी ननद रानू मुझे फ्लैश बैक से

वापस लाते हुए बोली, “क्या भाभी, क्या सोच रही हैं अपने भाई के बारे में?”
“अरे नहीं तुम्हारे भाई के बारे में...” तब तक मुझे लगा कि मैं क्या बोल गई, और मैं चुप हो गई.
“अरे भाई नहीं अब मेरे भाईयों के बारे में सोचिये... फागुन लग गया है और अब आपके सारे देवर आपके पीछे पड़े हैं. कोई नहीं छोड़ने वाला आपको और नंदोई हैं सो अलग..” वो बोली.
“अरे तेरे भाई को देख लिया है तो देवर और नंदोई को भी देख लूंगी..” गाल पे चिकोटी काटती मैं बोली.


होली के पहले वाली शाम को वो (मेरा ममेरा भाई) आया........
पतला, गोरा, छरहरा किशोर, अभी रेख आई नहीं थी. 

सबसे पहले मेरी छोटी ननद मिली और उसे देखते हीं वो चालू हो गई, ‘चिकना’

वो भी बोला, “चिकनी...” और उसके उभरते उभारों को देख के बोला, “बड़ी हो गई है.” मुझे लग गया कि जो ‘होने’ वाला है वो ‘होगा’. दोनों में छेड़-छाड़ चालू हो गई.

वो उसे ले के जहाँ उसे रुकना था, उस कमरे में ले गई. मेरे बेडरूम से एकदम सटा, प्लाई का पार्टीशन कर के एक कमरा था उसी में उसके रुकने का इंतज़ाम किया गया था.

उसका बेड भी, जिस साइड हम लोगों का बेड लगा था, उसी से सटा था.

मैंने अपनी ननद से कहा, “अरे कुछ पानी-वानी भी पिलाओगी बेचारे को या छेड़ती हीं रहोगी?”

वो हँस के बोली, “ अब भाभी इसकी चिंता मेरे ऊपर छोड़ दीजिए.”

और गिलास दिखाते हुए कहा, “देखिये इस साले के लिये खास पानी है.”


जब मेरे भाई ने हाथ बढ़ाया तो उसने हँस के ग्लास का सारा पानी, जो गाढा लाल रंग था, उसके ऊपर उड़ेल दिया. बेचारे की सफ़ेद शर्ट...

पर वो भी छोड़ने वाला नहीं था. उसने उसे पकड़ के अपने कपड़े पे लगा रंग उसकी फ्रॉक पे रगड़ने लगा और बोला,

“अभी जब मैं डालूँगा ना अपनी पिचकारी से रंग तो चिल्लाओगी”
वो छुड़ाते हुए बोली, “

एकदम नहीं चिल्लाउंगी, लेकिन तुम्हारी पिचकारी में कुछ रंग है भी कि सब अपनी बहनों के साथ खर्च कर के आ गए हो?”

वो बोला कि सारा रंग तेरे लिये बचा के लाया हूँ, एकदम गाढ़ा सफ़ेद...

उन दोनों को वहीं छोड़ के मैं गई किचेन में जहाँ होली के लिये गुझिया बन रही थी और मेरी सास, बड़ी ननद और जेठानी थी. गुझिया बनाने के साथ-साथ आज खूब खुल के मजाक, गालियाँ चल रही थी. बाहर से भी कबीरा गाने, गालियों की आवाज़ें, फागुनी बयार में घुल-घुल के आ रही थी.

ठण्डाई बनाने के लिये भांग रखी थी और कुछ बर्फी में डालने लिये.

मैंने कहा, हे कुछ गुझिया में भी डाल के बना देते है, लोगों को पता नही चलेगा. और फिर खूब मज़ा आएगा.”

मेरी ननद बोली, “हाँ, और फिर हम लोग वो आपको खिला के नंगे नचायेंगे.....”

मैं बोली, “मैं इतनी भी बेवकूफ नहीं हूँ, भांग वाली और बिना भांग वाली गुझिया अलग-अलग डिब्बे में रखेंगे.”
हम लोगों ने तीन डिब्बों में, एक में डबल डोज वाली, एक में नॉर्मल भांग की और तीसरे में बिना भांग वाली रखी. फिर मैं सब लोगों को खाना खाने के लिये बुलाने चल दी.

मेरा भाई भी उनके साथ बैठा था. साथ में बड़ी ननद के हसबैंड, मेरे नंदोई भी... उनकी बात सुन के मैं दरवाजे पे हीं एक मिनट के लिये ठिठक के रुक गई और उनकी बात सुनने लगी.


मेरे भाई को उन्होंने सटा के, ऑलमोस्ट अपने गोद में (खींच के गोद में हीं बैठा लिया). सामने नंदोई जी एक बोतल (दारू की) खोल रहे थे. मेरे भाई के गालों पे हाथ लगा के बोले,

“यार तेरा साला तो बड़ा मुलायम है..”

“और क्या एकदम मक्खन मलाई....” दूसरे गाल को प्यार से सहलाते वो बोले.

“गाल ऐसा है तो फिर गांड़ तो... क्यों साल्ले कभी मराई है क्या?” बोतल से सीधे घूंट लगाते मेरे नंदोई बोले और फिर बोतल ‘उनकी’ ओर बढ़ा दी.

मेरा भाई मचल गया और मुँह फुला के अपने जीजा से बोला, “देखिये जीजाजी, अगर ये ऐसी बात करेंगे तो....”

उन्होंने बोतल से दो बड़ी घूंट ली और बोतल नंदोई को लौटा के बोले,

“जीजा, ऐसे थोड़े हीं पूछते हैं.!! अभी कच्चा है, मैं पूछता हूँ...”

फिर मेरे भाई के गाल पे प्यार से एक चपत मार के बोले,

“अरे ये तेरे जीजा के भी जीजा हैं, मजाक तो करेंगे हीं.... क्या बुरा मानना? फिर होली का मौका है. तू लेकिन साफ-साफ बता, तू इत्ता गोरा चिकना है लौंडियों से भी ज्यादा नमकीन, तो मैं ये मान नहीं सकता कि तेरे पीछे लड़के ना पड़े हों! तेरे शहर में तो लोग कहते हैं कि अभी तक इसलिए बड़ी लाइन नहीं बनी कि लोग छोटी लाइन के शौक़ीन हैं.”

और उन्होंने बोतल नंदोई को दे दी.

ना नुकुर कर के उसने बताया कि कई लड़के उसके पीछे पड़े तो थे और कुछ हीं दिन पहले वो साईकिल से जब घर आ रहा था तो कुछ लड़कों ने उसे रोक लिया और जबरन स्कूल के सामने एक बांध है, उसके नीचे गन्ने के खेत में ले गए.

उन लोगों ने तो उसकी पैंट भी सरका के उसे झुका दिया था. लेकिन बगल से एक टीचर की आवाज सुनाई पड़ी तो वो लोग भागे.

“तो तेरी कोरी है अभी? चल हम लोगों की किस्मत... कोरी मारने का मज़ा हीं और है.”

नंदोई बोले और अबकी बोतल उसके मुँह से लगा दिया. वो लगा छटपटाने....

उन्होंने उसके मुँह से बोतल हटाते हुए कहा,

“अरे जीजा अभी से क्यों इसको पिला रहे हैं?” (लेकिन मुझको लग गया था कि बोतल हटाने के पहले जिस तरह से उन्होंने झटका दिया था, दो-चार घूंट तो उसके मुँह में चला हीं गया.) और खुद पीने लगे.

“कोई बात नहीं...कल जब इसे पेलेंगे तो... पिलायेंगे.” संतोष कर नंदोई बोले.

“अरे डरता क्यों है?” दो घूंट ले उसके गाल पे हाथ फेरते वो बोले,

“तेरी बहना की भी तो कोरी थी, एकदम कसी... लेकिन मैंने छोड़ी क्या? पहले उँगली से जगह बनाई, फिर क्रीम लगा के, प्यार से सहला के, धीरे-धीरे... और एक बार जब सुपाड़ा घुस गया... वो चीखी, चिल्लाई लेकिन.... अब हर हफ्ते उसकी पीछे वाली... दो-तीन बार तो कम से कम..”

और उन्होंने उसको फिर से खींच के अपनी गोद में सेट करके बैठाया.

दरवाजे की फांक से साफ़ दिख रहा था. उनका पजामा जिस तरह से तना था... मैं समझ गई कि उन्होंने सेंटर करके सीधे वहीं लगा के बैठा लिया उसको.

वो थोड़ा कुनमुनाया, पर उनकी पकड़ कितनी तगड़ी थी, ये मुझसे अच्छा और कौन जानता था? उन्होंने बोतल अब नंदोई को बढ़ा दी...
 
“यार तेरी बीवी...मेरी सलहज का पिछवाड़ा..उसके गोल गोल गुदाज चूतड़ इतने मस्त हैं कि देख के खड़ा हो जाता है... और ऊपर से गदराई उभरी-उभरी चूचियाँ... बड़ा मज़ा आता होगा तुझे उसकी चूचि पकड़ के गांड़ मारने में..है ना?”

बोतल फिर नंदोई जी ने वापस कर दी. एक घूंट मुँह से लगा के ‘ये’ बोले,

“एकदम सही कहते हैं आप... उसके दोनों मम्मे बड़े कड़क हैं... बहोत मज़ा आता है उसकी गांड़ मारने में ”

“अरे बड़े किस्मत वाले हो साले जी तुम... बस एक बार मुझे मिल जाये ना... बस जीवन धन्य हो जाये...मज़ा आ जाये यार”

नंदोई जी ने बोतल उठा के कस के लंबी घूंट लगाई... अपनी तारीफ सुन के मैं भी खुश हो गई थी... मेरी चूत भी अब गीली हो रही थी.

“अरे तो इसमें क्या? कल होली भी है और रिश्ता भी.” बोतल अब उनके पास थी. मुझे भी कोई ऐतराज नहीं था. मेरा कोई सगा देवर था नही, फिर नंदोई जी भी बहुत रसीले थे.

“तेरे तो मज़े हैं यार....कल यहाँ होली और परसों ससुराल में...किस उम्र की है तेरी सालियाँ?” नंदोई जी अब पूरे रंग में थे.

‘इन्होंने’ बोला कि “बड़ी वाली दसवें में पढ़ती है है और दूसरी थोड़ी छोटी है...(मेरी छोटी ननद का नाम ले के बोले) ...उसके बराबर होगी.”

“अरे तब तो चोदने लायक वो भी हो गई है.” हँस के नंदोई जी बोले.

“अरे उससे भी 4-5 महीने छोटी है...छुटकी.” मेरा भाई जल्दी से बोला.

अबतक ‘इन्होंने’ और नंदोई ने मिल के उसे ८-१० घूंट पिला हीं दिया था. वो भी अब शर्म-लिहाज खो चुका था.

“अरे हाँ...साले साहब से हीं पूछिये ना उनकी बहनों का हाल. इनसे अच्छा कौन बताएगा?” ‘ये’ बोले.

“बोल साल्ले... बड़ी वाली की चूचियाँ कितनी बड़ी हैं?”

“वो...वो उमर में मुझसे एक साल बड़ी है और उसकी...उसकी अच्छी है....थोड़ी..दीदी के इतनी तो नहीं... दीदी से थोड़ी छोटी....” हाथ के इशारे से उसने बताया.

मैं शर्मा गई...लेकिन अच्छा भी लगा सुन के कि मेरा ममेरा भाई मेरे उभारों पे नज़र रखता है.

“अरे तब तो बड़ा मज़ा आयेगा तुझे उसके जोबन दबा-दबा के रंग लगाने में...” नंदोई ‘इनसे’ बोले और फिर मेरे भाई से पूछा, “और छुटकी की?”

“वो उसकी...उसकी अभी...” नंदोई बेताब हो रहे थे. वो बोले, “अरे साफ-साफ बता, उसकी चूचियाँ अभी आयी हैं कि नहीं?”

“आयीं तो है बस अभी..... लेकिन उभर रही हैं... छोटी है बहुत....” वो बेचारा बोला.

“अरे उसी में तो असली मज़ा है...चूचियाँ उठान में...मींजने में, पकड़ के पेलने में... चूतड़ कैसे हैं?”

“चूतड़ तो दोनों सालियों के बड़े सेक्सी हैं... बड़ी के उभरे-उभरे और छुटकी के कमसिन लौण्डों जैसे... मैंने पहले तय कर लिया है कि होली में अगर दोनों साल्लियों की कच-कचा के गांड़ ना मारी.”

“हे तुम जब होली से लौट के आओगे तो अपनी एक साली को साथ ले आना...उसी छुटकी को...फिर यहाँ तो रंग पंचमी को और जबरदस्त होली होती है. उसमें जम के होली खेलेंगे साल्ली के साथ.”

आधी से ज्यादा बोतल खाली हो गई थी और दोनों नशे के सुरूर में थे. थोड़ा बहुत मेरे भाई को भी चढ़ चुकी थी.
“एकदम जीजा... ये अच्छा आइडिया दिया आपने. बड़ी वाली का तो बोर्ड का इम्तिहान है, लेकिन छुटकी तो अभी 9वीं में है. पंद्रह दिन के लिये ले आयेंगे उसको.”

“अभी वो छोटी है.” वो फिर जैसे किसी रिकार्ड की सुई अटक गई हो बोला.

“अरे क्या छोटी-छोटी लगा रखी है? उस कच्ची कली की कसी फुद्दी को पूरा भोंसड़ा बना के पंद्रह दिन बाद भेजेंगे यहाँ से, चाहे तो तुम फ्रॉक उठा के खुद देख लेना.” बोतल मेज पे रखते ‘ये’ बोले.

“और क्या... जो अभी शर्मा रही होगी ना...जब जायेगी तो मुँह से फूल की जगह गालियाँ झड़ेंगी, रंडी को भी मात कर देगी वो साल्ली....” नंदोई बोले.

मैं समझ गई कि अब ज्यादा चढ़ गई है दोनों को, फिर उन लोगों की बातें सुन के मेरा भी मन करने लगा था. मैं अंदर गई और बोली, “चलिए खाने के लिये देर हो रही है!”

नंदोई उसके गाल पे हाथ फेर के बोले, “अरे इतना मस्त भोजन तो हमारे
पास हीं है.”

वो तीनों खाना खा रहे थे लेकिन खाने के साथ-साथ... ननदों ने जम के मेरे भाई को गालियां सुनाई, खास कर छोटी ननद ने. मैंने भी नंदोई को नहीं बख्शा और खाना परसने के साथ में जान-बूझ के उनके सामने आँचल ढुलका देती...कभी कस के झुक के दोनों जोबन लो कट चोली से... नंदोई की हालत खराब थी.
 
जब मैं हाथ धुलाने के लिये उन्हें ले गई तब मेरे चूतड़ कुछ ज्यादा हीं मटक रहे थे, मैं आगे-आगे और वो मेरे पीछे-पीछे... मुझे पता थी उनकी हालत. और जब वो झुके तो मैंने उनकी मांग में चुटकी से गुलाल सिंदूर की तरह डाल दिया और बोली, “सदा सुहागन रहो, बुरा ना मानो होली है.”


उन्होंने मुझे कस के भींच लिया. उनके हाथ सीधे मेरे आँचल के ऊपर से मेरे गदराए जोबन पे और उनका पजामा सीधे मेरे पीछे दरारों के बीच... मैं समझ गई कि उनका ‘खूंटा’ भी उनके साले से कम नहीं है. मैं किसी तरह छुड़ाते हुए बोली, “समझ गई मैं, जाइये ननद जी इंतज़ार कर रही होंगी. चलिए कल होली के दिन देख लूंगी आपकी ताकत भी, चाहे जैसे जितनी बार डालियेगा, पीछे नहीं भागूंगी.”

जब मैं किचेन में गई तो वहाँ मेरी ननद कड़ाही की कालिख निकाल रही थी और दूसरे हाथ में बिंदी और टिकुली थी.
मैंने पूछा तो बोली, “आपके भाई के श्रृंगार के लिये, लेकिन भाभी... उसे बताइयेगा नहीं! ये मेरे-उसके बीच की बात है.”
हँस के मैं बोली, “एकदम नहीं, लेकिन अगर कहीं पलट के उसने डाल दिया तो... ननद रानी बुरा मत मानना!”
वो हँस के बोली, “अरे भाभी, साल्ले की बात का क्या बुरा मानना? एकदम नहीं.. और फिर होली तो है हीं डालने-डलवाने का त्योहार. लेकिन आप भी समझ जाइये ये भी गाँव की होली है, वो भी हमारे गाँव की होली..यहाँ कोई भी ‘चीज़’ छोड़ी नहीं जाती होली में.”

उसकी बात पे मैं सोचती, मुस्कुराती कमरे में गई तो ‘ये’ तैयार बैठे थे. 

बची-खुची बोतल भी ‘इन्होंने’ खाली कर दी थी. साड़ी उतारते-उतारते उन्होंने पलंग पर खींच लिया और चालू हो गए.

सारी रात चोदा ‘इन्होंने’ लेकिन मुझे झड़ने नही दिया.

जब से मैं आई थी ये पहली रात थी जब मैं झड़ नहीं पाई, वरना हर रात...कम से कम ५-६ बार.

इतनी चुदवासी कर दिया मुझे कि... वो कस-कस के मेरी पनियाई चूत चूसते और जैसे हीं मैं झड़ने के करीब होती, कचकचा के मेरी चूचियाँ काट लेते. दर्द से मैं बिलबिला पड़ती, मेरी चीख निकल उठती.

मेरे मन में आया भी कि बगल के कमरे में मेरा भाई लेटा है और वो मेरी हर चीख सुन रहा होगा.

पर तब तक उन्होंने निप्पल को भी कस के काट लिया, नाख़ून से नोच लिया. उनकी ये नोच-खसोट और काटना मुझे और मस्त कर देता था.

सब कुछ भूल के मैं फिर चीख पड़ी. मेरी चीखें उनको भी जोश से पागल बना देती थी.

एक बार में हीं उन्होंने बालिश्त भर लम्बा, लोहे की रॉड ऐसा सख्त लंड मेरी चूत में जड़ तक पेल दिया.
जैसे हीं वो मेरी बच्चेदानी से टकराया, मैं मस्ती से चिल्ला उठी, “हाँ राजा, हाँ चोद...चोद मुझे...ऐसे हीं...कस-कस के पेल दे अपना मूसल मेरी चूत में.”

और ‘ये’ भी मेरी चूचियाँ मसलते हुए बोलने लगे, “ले ले रानी ले. बहुत प्यासी है तेरी चूत ना... घोंट मेरा लौड़ा!”

मेरी सिसकियाँ भी बगल वाले कमरे में सुनाई पड़ रही होंगी, इसका मुझे पूरा अंदाजा था, लेकिन उस समय तो बस यही मन कर रहा था कि ‘वो’ चोद-चोद कर के बस झाड़ दें... मेरी चूत.





जैसे हीं मैं झड़ने के कगार पर पहुँची, उन्होंने लंड निकाल लिया.

मैं चिल्लाती रही, “राजा बस एक बार मुझे झाड़ दो, बस एक मिनट...”

लेकिन आज उनके सिर पर दूसरा हीं भूत सवार हो गया. उन्होंने मुझे निहुरा के कुतिया ऐसा बना दिया और बोले, “चल साल्ली पहले गांड़ मरा...”

एक धक्के में हीं आधा लंड अंदर... “ओह्ह...ओह..फटी...फट गई..मेरी गांड़.” मैं चीखी कस के.

पर उन्होंने मेरे मस्त चूतड़ों पे दो हाथ कस के जमाए और बोले, “यार, क्या मस्त गांड़ है तेरी.” साथ-साथ पूछा, “होली में चल तो रहा हूँ ससुराल पर ये बोल कि साल्लियां चुदवाएंगी कि नहीं?”

मैं चूतड़ मटकाते हुए बोली, “अरे साल्लियां हैं तेरी, ना माने तो जबर्दस्ती चोद देना.”

खुश होके जब उन्होंने अगला धक्का दिया तो पूरा लंड गांड़ के अंदर. ‘वो’ मजे में मेरी क्लिट सहलाते हुए मेरी गांड़ मारने लगे. अब मुझे भी मस्ती चढ़ने लगी. मैं सिसकियां भरती बोलने लगी,

“हे मुझे उंगली से हीं झाड़ दो....ओह्ह्ह...ओह्ह...मज़ा आ रहा है ...ओह्ह्ह...”

उन्होंने कस के क्लिट को पिंच करते हुए पूछा, “हे पर बोल पहले तेरी बहनों की गांड़ भी मारूंगा, मंजूर?”


“हाँ...हाँ...ओओह्ह्ह...ओ...हा...अआ...जो चाहो.... बोला तो..... तेरी साल्लियाँ हैं जो चाहो करो....जैसे चाहो करो.”

पर अबकी फिर जैसे मैं कगार पे पँहुची उन्होंने हाथ हटा लिया. इसी तरह सारी रात ७-८ बार मुझे कगार पे पँहुचा के वो रोक देते... मेरी देह में कंपन चालू हो जाता लेकिन फिर वो कच-कचा के काट लेते.

झड़े वो जरूर लेकिन वो भी सिर्फ दो बार, पहली बार मेरी गांड़ में जब लंड ने झड़ना शुरू किया तो उसे निकाल के सीधे मेरी चूचि, चेहरे और बालों पे... बोले, “अपनी पिचकारी से होली खेल रहा हूँ.”

और दूसरी बार एकदम सुबह मेरी गांड़ में.
 
होली का असली मजा--3

जब मेरी ननद दरवाजा खटखटा रही थी. उस समय तक रात भर के बाद उनका लंड पत्थर की तरह सख्त हो चुका था. झुका के कुतिया की तरह कर के पहले तो उन्होंने अपना लंड मेरी गांड़ में...

खूब अच्छी तरह फैला के, कस के पेल दिया. फिर जब वो जड़ तक अंदर तक घुस गया तो मेरे दोनों पैर सिकोड़ के, अच्छी तरह चिपका के, खचाखच.. खचाखच पेलना शुरू कर दिया.

पहले मेरे दोनों पैर फैले थे, उसके बीच में उनका पैर, और अब उन्होंने जबरन कस के अपने पैरों के बीच में मेरे पैर सिकोड़ रखे थे. मेरी कसी गांड़ और संकरी हो गई थी. मुक्के की तरह मोटा उनका लंड गांड़ में ...

जब मेरी ननद ने दरवाजा खटखटाया, वो एकदम झड़ने के कगार पे थे और मैं भी. उनकी तीन उंगलियां मेरी बुर में और अंगूठा क्लिट पे रगड़ रहा था.

लेकिन खट-खट की आवाज के साथ उन्होंने मेरी बुर के रस में सनी अपनी उंगलियां निकाल के कस के मेरे मुँह में ठूंस दी. दूसरे हाथ से मेरी कमर उठा के सीधे मेरी गांड़ में झड़ने लगे.

उधर ननद बार-बार दरवाजा खटखटा रही थी और इधर ‘ये’ मेरी गांड़ में झड़ते जा रहे थे. मेरी गीली प्यासी चूत भी... बार-बार फुदक रही थी.

जब उन्होंने गांड़ से लंड निकाला तो गाढ़े थक्केदार वीर्य की धार, मेरे चूतड़ों से होते हुए मेरे जांघ पर भी..
पर इसकी परवाह किये बिना मैंने जल्दी से सिर्फ ब्लाउज पहना, साड़ी लपेटी और दरवाजा खोल दिया.

बाहर सारे लोग मेरी जेठानी, सास और दोनों ननदें... होली की तैयारी के साथ.

“अरे भाभी, ये आप सुबह-सुबह क्या कर... मेरा मतलब करवा रही थी? देखिये आपकी सास तैयार हैं.” बड़ी ननद बोली.
(मुझे कल हीं बता दिया गया था कि नई बहु की होली की शुरुआत सास के साथ होली खेल के होती है और इसमें शराफ़त की कोई जगह नहीं होती, दोनों खुल के खेलते हैं).

जेठानी ने मुझे रंग पकड़ाया. झुक के मैंने आदर से पहले उनके पैरों में रंग लगाने के लिये झुकी तो जेठानी जी बोलीं,
“अरे आज पैरों में नहीं, पैरों के बीच में रंग लगाने का दिन है.”

और यही नहीं उन्होंने सासू जी का साड़ी साया भी मेरी सहायता के लिये उठा दिया. मैं क्यों चूकती? मुझे मालूम था कि सासू जी को गुदगुदी लगती है. मैंने हल्के से गुदगुदी की तो उनके पैर पूरी तरह फ़ैल गए.

फिर क्या था? मेरे रंग लगे हाथ सीधे उनकी जांघ पे.

इस उम्र में भी (और उम्र भी क्या? 40 से कम की हीं रही होंगी), उनकी जांघें थोड़ी स्थूल तो थी लेकिन एकदम कड़ी और चिकनी. अब मेरा हाथ सीधे जांघों के बीच में...

मैं एक पल सहमी, लेकिन तब तक जेठानी जी ने चढ़ाया,


“अरे जरा अपने पति के जन्म-भूमि का तो स्पर्श कर लो.”

उंगलियां तब तक घुंघराली रेशमी झाँटों को छू चुकी थी. (ससुराल में कोई भी पैंटी नहीं पहनता था, यहाँ तक कि मैंने भी पहनना छोड़ दिया.). मुझे लगा कि कहीं मेरी सास बुरा ना मान जाये लेकिन वो तो और... खुद बोलीं,

“अरे स्पर्श क्या, दर्शन कर लो बहु.”

और पता नहीं उन्होंने कैसे खींचा कि मेरा सिर सीधे उनकी जांघों के बीच. मेरी नाक एक तेज तीखी गंध से भर गई. जैसे वो अभी-अभी ... कर के आयी हों और उन्होंने... जब तक मैं सिर निकालने का प्रयास करती कस के पहले तो हाथों से पकड़ के फिर अपनी भारी-भारी जांघों से कस के दबोच लिया.

उनकी पकड़ उनके लड़के की पकड़ से कम नही थी. मेरे नथुनों में एक तेज महक भर गई और अब वो उसे मेरी नाक और होंठों से हल्के से रगड़ रही थीं.

हल्के से झुक के वो बोलीं, “दर्शन तो बाद में कराउंगी पर तब तक तुम स्वाद तो ले लो थोड़ा.”

जब मैं किसी तरह वहाँ से अपना सिर निकाल पाई तो वो तीखी गंध... अब एकदम मतवाली सी तेज, मेरा सिर घूम-सा रहा था. एक तो सारी रात जिस तरह उन्होंने तड़पाया था, बिना एक बार भी झड़ने दिये...

और ऊपर से ये. मेरा सिर बाहर निकलते हीं मेरी ननद ने मेरे होंठों पे एक चांदी का ग्लास लगा दिया... लबालब भरा, कुछ पीला-सा और होंठ लगते हीं एक तेज भभका सा मेरे नाक में भर गया.

“अरे पी ले, ये होली का खास शर्बत है तेरी सास का.... होली की सुबह का पहला प्रसाद...” ननद ने उसे ढकेलते हुए कहा. सास ने भी उसे पकड़ रखा था.

मेरे दिमाग में कल गुझिया बनाते समय होने वाली बातें आ गईं.
 
ननद मुझे चिढ़ा रही थी कि भाभी कल तो खारा शरबत पीना पड़ेगा, नमकीन तो आप है हीं, वो पी के आप और नमकीन हो जायेंगी.

सास ने चढ़ाया था, “अरे तो पी लेगी मेरी बहु...तेरे भाई की हर चीज़ सहती है तो ये तो होली की रसम है.”

जेठानी बोलीं, “ज्यादा मत बोलो, एक बार ये सीख लेगी तो तुम दोनों को भी नहीं छोड़ेगी.”
मेरे कुछ समझ में नही आ रहा था.

मैं बोली, “मैंने सुना है कि गाँव में गोबर से होली खेलते हैं...”

बड़ी ननद बोली, “अरे भाभी गोबर तो कुछ भी नहीं... हमारे गाँव में तो...”

सास ने इशारे से उसे चुप कराया और मुझसे बोलीं,

“अरे शादी में तुमने पंच गव्य तो पीया होगा. उसमें गोबर के साथ गो-मूत्र भी होता है.”

मैं बोली, “अरे गो-मूत्र तो कितनी आयुर्वेदिक दवाओ में पड़ता है, उसमें...”

तो मेरी बात काट के बड़ी ननद बोली कि

“अरे गो माता है तो सासू जी भी तो माता है और फिर इंसान तो जानवरों से ऊपर हीं...तो फिर उसका भी चखने में...”
मेरे ख्यालों में खो जाने से ये हुआ कि मेरा ध्यान हट गया और ननद ने जबरन ‘शरबत’ मेरे ओंठों से नीचे...

सासू जी ने भी जोर लगा रखा था और धीरे-धीरे कर के मैं पूरा डकार गई. मैंने बहुत दम लगाया लेकिन उन दोनों की पकड़ बड़ी तगड़ी थी. मेरे नथुनों में फिर से एक बार वही महक भर गई जो... जब मेरा सिर उनकी जांघों के बीच में था.

लेकिन पता नहीं क्या था... मैं मस्ती से चूर हो गई थी.

लेकिन फिर भी मेरे कान में... किसी ने कहा, “अरे पहली बार है ना, धीरे-धीरे स्वाद की आदि हो जाओगी... जरा गुझिया खा ले, मुँह का स्वाद बदल जायेगा...”

मैंने भी जिस डिब्बे में कल बिना भाँग वाली गुझिया रखी थी, उसमें से निकाल के दो खा लीं... (वो तो मुझे बाद में पता चला, जब मैं तीन-चार गटक चुकी.....कि ननद ने रात में हीं डिब्बे बदल दिये थे और उसमें डबल डोज वाली भांग की गुझिया थी).

कुछ हीं देर में उसका असर शुरू हो गया.

जेठानी ने मुझे ललकारा, “अरे रुक क्यों गई? अरे आज हीं मौका है सास के ऊपर चढ़ाई करने का...दिखा दे कि तूने भी अपनी माँ का दूध पीया है...”

और उन्होंने मेरे हाथ में गाढ़े लाल रंग का पेंट दे दिया सासू जी को लगाने को.

“अरे किसके दूध की बात कर रही है? इसकी पंच भतारी, छिनाल, रंडी, हरामचोदी माँ, मेरी समधन की... उसका दूध तो इसके मामा ने, इसके माँ के यारों ने चूस के सारा निकाल दिया. एक चूचि इसको चुसवाती थी, दूसरी इसके असली बाप, इसके मामा के मुँह में देती थी.”

सास ने गालियों के साथ मुझे चैलेंज किया. मैं क्यों रूकती.?


पहले तो लाल रंग मैंने उनके गालों पे और मुँह पे लगाया.

उनका आँचल ढलक गया था, ब्लाउज से छलकते बड़े-बड़े स्तन... मुझसे नहीं रहा गया, होली का मौका, कुछ भाँग और उस शरबत का असर, मैंने ब्लाउज के अंदर हाथ डाल दिया.

वो क्यों रूकतीं? उन्होंने जो मेरे ब्लाउज को पकड़ के कस के खींचा तो आधे हुक टूट गए. मैंने भी कस कस के उनके स्तनों पे रंग लगाना, मसलना शुरू कर दिया.

क्या जोबन थे? इस उम्र में भी एकदम कड़े-टनक, गोरे और खूब बड़े-बड़े... कम से कम 38डीडी रहे होंगे.

मेरी जेठानी बोली,

“अरे जरा कस के लगाओ, यही दूध पी के मेरा देवर इतना ताकतवर हो गया है... कि...”

रंग लगाते दबाते मैंने भी बोला,

“मेरी मम्मी के बारे में कह रही थीं ना, मुझे तो लगता है कि आप अभी भी दबवाती, चुसवाती हैं. मुझे तो लगता है सिर्फ बचपन में हीं नहीं जवानी में भी वो इस दूध को पीते, चूसते रहे हैं. क्यों है ना? मुझे ये शक तो पहले से था कि उन्होंने अपनी बहनों के साथ अच्छी ट्रेनिंग की है लेकिन आपके साथ भी...?”

मेरी बात काट के जेठानी बोलीं, “

तू क्या कहना चाहती है कि मेरा देवर....”
“जी...जो आपने समझा कि वो सिर्फ बहनचोद हीं नहीं... मादरचोद भी हैं.”

मैं अब पूरे मूड में आ गई थी.

“बताती हूँ तुझे...” कह के मेरी सास ने एक झटके में मेरी ब्लाउज खींच के नीचे फेंक दिया. अब मेरे दोनों उरोज सीधे उनके हाथ में.

“बहोत रस है रे तेरी इन चूचियों में, तभी तो सिर्फ मेरा लड़का हीं नहीं गाँव भर के मरद बेचारों की निगाह इन पे टिकी रहती है. जरा आज मैं भी तो मज़ा ले के देखूं...” और रंग लगाते-लगाते उन्होंने मेरा निप्पल पिंच कर दिया.


“अरे सासू माँ, लगता है आपके लड़के ने कस के चूचि मसलना आपसे हीं सीखा है. बेकार में मैं अपनी ननदों को दोष दे रही थी. इतना दबवाने, चुसवाने के बाद भी इतनी मस्त है आपकी चूचियां...” मैं भी उनकी चूचि कस के दबाते बोली.

मेरी ननद ने रंग भरी बाल्टी उठा के मेरे ऊपर फेंकी.

मैं झुकी तो वो मेरी चचेरी सास और छोटी ननद के ऊपर जा के पड़ी. फिर तो वो और आस-पास की दो-चार और औरतें जो रिश्ते में सास लगती थी, मैदान में आ गईं. सास का भी एक हाथ सीने से सीधे नीचे, उन्होंने मेरी साड़ी उठा दी तो मैं क्यों पीछे रहती? मैंने भी उनकी साड़ी आगे से उठा दी...

अब सीधे देह से देह, होली की मस्ती में चूर अब सास-बहु हम लोग भूल चुके थे. अब सिर्फ देह के रस में डूबे हम मस्ती में बेचैन. मैं लेकिन अकेले नहीं थी.

जेठानी मेरा साथ देते बोलीं,

“तू सासू जी के आगे का मज़ा ले और मैं पीछे से इनका मज़ा लेती हूँ. कितने मस्त चूतड़ हैं?”


कस कस के रंग लगाती, चूतड़ मसलती वो बोलीं,

“अरे तो क्या मैं छोड़ दूंगी इस नए माल के मस्त चूतड़ों को? बहोत मस्त गांड़ है. एकदम गांड़ मराने में अपनी छिनाल, रंडी माँ पे गई है, लगता है. देखूं गांड़ के अंदर क्या माल है?”

ये कह के मेरी सास ने भी कस के मेरे चूतड़ों को भींचा और रंग लगाते, दबाते, सहलाते, एक साथ हीं दो उंगलियां मेरी गांड़ में घचाक से पेल दी.

“उईई माँ.....”
 
मैं चीखी पर सास ने बिना रुके सीधे जड़ तक घुसेड़ के हीं दम लिया.


तब तक मेरी एक चचेरी सास ने एक गिलास मेरे मुँह में, वही तेज, वैसी हीं महक, वैसा हीं रंग... लेकिन अब कुछ भी मेरे बस में नहीं था.

दो सासों ने कस के दबा के मेरा मुँह खोल दिया और चचेरी सास ने पूरा ग्लास खाली कर के दम लिया और बोली, “अरे मेरा खारा शरबत तो चख...”

फिर उसी तरह दो-तीन ग्लास और...

उधर मेरे सास के एक हाथ की दो उंगलियां गोल-गोल कस के मेरी गांड़ में घूमती, अंदर-बाहर होती और दूसरे हाथ की दो उंगलियां मेरी बुर में.

मैं कौन सी पीछे रहने वाली थी? मैंने भी तीन उंगलियां उनकी बुर में. वो अभी भी अच्छी-खासी टाईट थीं.
“मेरा लड़का बड़ा ख्याल रखता है तेरा बहु... पहले से हीं तेरी पिछवाड़े की कुप्पी में मक्खन मलाई भर रखा है, जिससे मरवाने में तुझे कोई दिक्कत ना हो.” वो कस के गांड़ में उँगली करती बोलीं.


होली अच्छी-खासी शुरू हो गई थी.

“अरे भाभी, आपने सुबह उठ के इतने ग्लास शरबत गटक लिये, गुझिया भी गपक ली लेकिन मंजन तो किया हीं नहीं.”

“आप क्यों नहीं करवा देती?” अपनी माँ को बड़ी ननद ने उकसाया.

“हाँ...हाँ...क्यों नहीं...मेरी प्यारी बहु है...”


और गांड़ में पूरी अंदर तक 10 मिनट से मथ रही उंगलियों को निकाल के सीधे मेरे मुँह में...

कस-कस के वो मेरे दांतों पे और मुँह पे रगड़ती रही. मैं छटपटा रही थी लेकिन सारी औरतों ने कस के पकड़ रखा था.

और जब उनकी उँगली बाहर निकली तो फिर वही तेज भभक, मेरे नथुनों में.... अबकी जेठानी थीं.

“अरे तूने सबका शरबत पीया तो मेरा भी तो चख ले.”

पर बड़ी ननद तो... उन्होंने बचा हुआ सीधा मेरे मुँह पे,

“अरे भाभी ने मंजन तो कर लिया अब जरा मुँह भी तो धो लें.”

घंटे भर तक वो औरतों, सासों के साथ... और उस बीच सब शरम-लिहाज.... मैं भी जम के गालियाँ दे रही थी. किसी की चूत, गांड़ मैंने नहीं छोड़ी और किसी ने मेरी नहीं बख्शी.

उनके जाने के बाद थोड़ी देर हमने साँस ली हीं थी कि... गाँव की लड़कियों का हुजूम...

मेरी ननदें सारी....से २४ साल तक ज्यादातर कुँवारी...कुछ चुदी, कुछ अनचुदी...कुछ शादी-शुदा, एक दो तो बच्चों वाली भी...कुछ देर में जब आईं तो मैं समझ गई कि असली दुर्गत अब हुई.


एक से एक गालियां गाती, मुझे छेड़ती, ढूंढती


“भाभी, भैया के साथ तो रोज मजे उड़ाती हो...आज हमारे साथ भी...”


ज्यादातर साड़ियों में, एक दो जो कुछ छोटी थीं फ्रॉक में और तीन चार सलवार में भी...मैंने अपने दोनों हाथों में गाढ़ा बैंगनी रंग पोत रखा था और साथ में पेंट, वार्निश, गाढ़े पक्के रंग सब कुछ...
 
होली का असली मजा--4

एक खंभे के पीछे छिप गई मैं, ये सोच के कि कम से कम एक दो को तो पकड़ के पहले रगड़ लूंगी.

तब तक मैंने देखा कि जेठानी ने एक पड़ोस की ननद को (मेरी छोटी बहन छुटकी से भी कम उम्र की लग रही थी, उभार थोड़े-थोड़े बस गदरा रहे थे, कच्ची कली)

उन्होंने पीछे से जकड़ लिया और जब तक वो सम्भले-सम्भले लाल रंग उसके चेहरे पे पोत डाला. कुछ उसके आँख में भी चला गया और मेरे देखते-देखते उसकी फ्रॉक गायब हो गई और वो ब्रा चड्डी में.


जेठानी ने झुका के पहले तो ब्रा के ऊपर से उसके छोटे-छोटे अनार मसले. फिर पैंटी के अंदर हाथ डाल के सीधे उसकी कच्ची कली को रगड़ना शुरू कर दिया. वो थोड़ा चिचियाई तो उन्होंने कस के दोहथड़ उसके छोटे-छोटे कसे चूतड़ों पे मारा और बोलीं,

“चुपचाप होली का मज़ा ले.”

फिर से पैंटी में हाथ लगा के, उसके चूतड़ों पे, आगे जांघों पे और जब उसने सिसकी भरी तो मैं समझ गई कि मेरी जेठानी की उँगली कहाँ घुस चुकी है?

मैंने थोड़ा-सा खंभे से बाहर झाँक के देखा, उसकी कुँवारी गुलाबी कसी चूत को जेठानी की उँगली फैला चुकी थी और वो हल्के-हल्के उसे सहला रही थीं.

अचानक झटके से उन्होंने उँगली की टिप उसकी चूत में घुसेड़ दी. वो कस के चीख उठी.

“चुप...साल्ली...” कस के उन्होंने उसकी चूत पे मारा और अपनी चूत उसके मुँह पे रख दी... वो बेचारी मेरी छोटी ननद चीख भी नहीं पाई.

“ले चाट चूत...चाट...कस-कस के...” वो बोलीं और रगड़ना शुरू कर दिया.. मुझे देख के अचरज हुआ कि उस साल्ली चूत मरानो मेरी ननद ने चूत चाटना भी शुरू कर दिया. 

वो अपने रंग लगे हाथों से कस के उसकी छोटी चूचियों को रगड़, मसल भी रही थी. कुछ रंग और कुछ रगड़ से चूचियाँ एकदम लाल हो गई थीं. तब हल्की-सी धार की आवाज ने मेरा ध्यान फिर से चेहरे की ओर खीचा. मैं दंग रह गई.


“ले पी...ननद...छिनाल साल्ली...होली का शरबत....ले...ले...एकदम जवानी फूट पड़ेगी. नमकीन हो जायेगी ये नमकीन शरबत पी के...”

एकदम गाढ़े पीले रंग की मोटी धार...छर-छर...सीधे उसके मुँह में...

वो छटपटा रही थी लेकिन जेठानी की पकड़ भी तगड़ी थी...सीधा उसके मुँह में...जिस रंग का शरबत मुझे जेठानी ने अपने हाथों से पिलाया था, एकदम उसी रंग का वैसा हीं...

और उस तरफ देखते समय मुझे ध्यान नहीं रहा कि कब दबे पांव मेरी चार गाँव की ननदें मेरे पीछे आ गईं और मुझे पकड़ लिया.

उसमें सबसे तगड़ी मेरी शादी-शुदा ननद थी, मुझसे थोड़ी बड़ी बेला.

उसने मेरे दोनों हाथ पकड़े और बाकी ने टाँगे, फिर गंगा डोली करके घर के पीछे बने एक चहबच्चे में डाल दिया. अच्छी तरह डूब गई मैं रंग में. गाढ़े रंग के साथ कीचड़ और ना जाने क्या-क्या था उसमें?

जब मैं निकलने की कोशिश करती दो चार ननदें उसमें जो उतर गई थीं, मुझे फिर धकेल दिया. साड़ी तो उन छिनालों ने मिल के खींच के उतार हीं दी थी. थोड़ी हीं देर में मेरी पूरी देह रंग से लथ-पथ हो गई. 

अबकी मैं जब निकली तो बेला ने मुझे पकड़ लिया और हाथ से मेरी पूरी देह में कालिख रगड़ने लगी. मेरे पास कोई रंग तो वहाँ था नहीं तो मैं अपनी देह से हीं उस पे रगड़ के अपना रंग उस पे लगाने लगी.


वो बोली,

“अरे भाभी, ठीक से रगड़ा-रगड़ी करो ना...देखो मैं बताती हूँ तुम्हारे नंदोई कैसे रगड़ते हैं!”

और वो मेरी चूत पे अपनी चूत घिसने लगी. मैं कौन-सी पीछे रहने वाली थी? मैंने भी कस के उसकी चूत पे अपनी चूत घिसते हुए बोला,

“मेरे सैंया और अपने भैया से तो तुमने खूब चुदवाया होगा, अब भौजी का भी मज़ा ले ले.”

उसके साथ-साथ लेकिन मेरी बाकी ननदें, आज मुझे समझ में आ गया था कि गाँव में लड़कियाँ कैसे इतनी जल्दी जवान हो जाती हैं और उनके चूतड़ और चूचियाँ इतनी मस्त हो जाती हैं...

छोटी-छोटी ननदें भी कोई मेरे चूतड़ मसल रहा था तो कोई मेरी चूचियाँ लाल रंग ले के रगड़ रहा था...

थोड़ी देर तक तो मैंने सहा फिर मैंने एक की कसी कच्ची चूत में उँगली ठेल दी.

चीख पड़ी वो...मौका पा के मैं बाहर निकल आई लेकिन वहाँ मेरी बड़ी ननद दोनों हाथों में रंग लगाए पहले से तैयार खड़ी थी.

रंग तो एक बहाना था. उन्होंने आराम से पहले तो मेरे गालों पे फिर दोनों चूचियों पे खुल के कस के रंग लगाया, रगड़ा. मेरा अंग-अंग बाकी ननदों ने पकड़ रखा था इसलिए मैं हिल भी नही पा रही थी.

चूचियाँ रगड़ने के साथ उन्होंने कस के मेरे निप्पल्स भी पिंच कर दिये और दूसरे हाथ से पेंट सीधे मेरी क्लिट पे... बड़ी मुश्किल से मैं छुड़ा पाई.

लेकिन उसके बाद मैंने किसी भी ननद को नही बख्शा.

सबको उँगली की... चूत में भी और गांड़ में भी.....
 
लेकिन जिसको मैं ढूँढ रही थी वो नही मिली, मेरी छोटी ननद... मिली भी तो मैं उसे रंग लगा नही पाई. वो मेरे भाई के कमरे की ओर जा रही थी, पूरी तैयारी से, होली खेलने की.

दोनों छोटे-छोटे किशोर हाथों में गुलाबी रंग, पतली कमर में रंग, पेंट और वार्निश के पाऊच. जब मैंने पकड़ा तो वो बोली,

“प्लीज भाभी, मैंने किसी से प्रॉमिस किया है कि सबसे पहले उसी से रंग डलवाउंगी. उसके बाद आपसे... चाहे जैसे, चाहे जितना लगाईयेगा, मैं चूं भी नही करुँगी.”
मैंने छेड़ा, “ननद रानी, अगर उसने रंग के साथ कुछ और डाल दिया तो?”

वो आँख नचा के बोली, “तो डलवा लूँगी भाभी, आखिर कोई ना कोई, कभी ना कभी तो... फिर मौका भी है, दस्तूर भी है.”

“एकदम” उसके गाल पे हल्के से रंग लगा के मैं बोली और कहा कि

“जाओ, पहले मेरे भैया से होली खेल आओ, फिर अपनी भौजी से.”

थोड़ी देर में ननदों के जाने के बाद गाँव की औरतों, भाभियों का ग्रुप आ गया और फिर तो मेरी चांदी हो गई.
हम सबने मिल के बड़ी ननदों को दबोचा और जो-जो उन्होंने मेरे साथ किया था वो सब सूद समेत लौटा दिया. मज़ा तो मुझे बहुत आ रहा था लेकिन सिर्फ एक प्रोब्लम थी.

मैं झड़ नही पा रही थी. रात भर ‘इन्होंने’ रगड़ के चोदा था लेकिन झड़ने नही दिया था...

सुबह से मैं तड़प रही थी, फिर सुबह सासू जी की उंगलियों ने भी आगे-पीछे दोनों ओर, लेकिन जैसे हीं मेरी देह कांपने लगी, मैंने झड़ना शुरू हीं किया था कि वो रुक गईं और पीछे वाली उँगली से मुझे मंजन कराने लगी. तो मैं रुक गई और उसके बाद तो सब कुछ छोड़ के वो मेरी गांड़ के हीं पीछे पड़ गई थीं.

यही हालत बेला और बाकी सभी ननदों के साथ हुई...बेला कस कस के घिस्सा दे रही थी और मैं भी उसकी चूचियाँ पकड़ के कस-कस के चूत पे चूत रगड़ रही थी...

लेकिन फिर मैं जैसे हीं झड़ने के कगार पे पहुँची कि बड़ी ननद आ गई... और इस बार भी मैंने ननद जी को पटक दिया था और उनके ऊपर चढ़ के रंग लगाने के बहाने से उनकी चूचियाँ खूब जम के रगड़ रही थी और कस-कस के चूत रगड़ते हुए बोल रही थी, "देख ऐसे चोदते हैं तेरे भैया मुझको!"

चूतड़ उठा के मेरी चूत पे अपनी चूत रगड़ती वो बोली, "और ऐसे चोदेंगे आपको आपके नंदोई!"

मैंने कस के क्लिट से उसकी क्लिट रगड़ी और बोला, "हे डरती हूँ क्या उस साले भड़वे से? उसके साले से रोज चुदती हूँ, आज उसके जीजा साले से भी चुदवा के देख लूंगी."

मेरी देह उत्तेजना के कगार पर थी, लेकिन तब तक मेरी जेठानी आ के शामिल हो गई और बोली,

“हे तू अकेले मेरी ननद का मज़ा ले रही है और मुझे हटा के वो चढ़ गईं.

मैं इतनी गरम हो रही थी कि मेरी सारी देह कांप रही थी. मन कर रहा था कि कोई भी आ के चोद दे. बस किसी तरह एक लंड मिल जाए, किसी का भी. फिर तो मैं उसे छोड़ती नहीं, निचोड़ के, खुद झड़ के हीं दम लेती.

इसी बीच मैं अपने भाई के कमरे की ओर भी एक चक्कर लगा आई थी. उसकी और मेरी छोटी ननद के बीच होली जबर्दस्त चल रही थी.

उसकी पिचकारी मेरी ननद ने पूरी घोंट ली थी. चींख भी रही थी, सिसक भी रही थी, लेकिन उसे छोड़ भी नहीं रही थी.
तब तक गाँव की औरतों के आने की आहट पाकर मैं चली आई.

जब बाकी औरतें चली गई तो भी एक-दो मेरे जो रिश्ते की जेठानी लगती थीं, रुक गईं.

हम सब बातें कर रहे थे तभी छोटी ननद की किस्मत... 

वो कमरे से निकल के सीधे हमीं लोगों की ओर आ गई. गाल पे रंग के साथ-साथ हल्के-हल्के दांत के निशान, टांगे फैली-फैली...



चेहरे पर मस्ती, लग रहा था पहली चुदाई के बाद कोई कुंवारी आ रही है| जैसे कोई हिरनी शिकारियों के बीच आ जाए वही हालत उसकी थी.

वो बिदकी और मुड़ी तो मेरी दोनों जेठानियों ने उसे खदेड़ा और जब वो सामने की ओर आई तो वहाँ मैं थी. मैंने उसे एक झटके में दबोच लिया. वो मेरी बाहों में छटपटाने लगी, तब तक पीछे से दोनों जेठानियों ने पकड़ लिया और बोलीं,


"हे, कहाँ से चुदा के आ रही है?"

दूसरी ने गाल पे रंग मलते हुए कहा,

“चल, अब भौजाईयों से चुदा| एक-एक पे तीन-तीन...”

और एक झटके में उसकी ब्लाउज फाड़ के खींच दी. जो जोबन झटके से बाहर निकले वो अब मेरी मुट्ठी में कैद थे.
“अरे तीन-तीन नहीं चार-चार...”

तब तक मेरी जेठानी भी आ गई| हँस के वो बोली और उसको पूरी नंगी करके कहा,

“अरे होली ननद से खेलनी है, उसके कपड़ों से थोड़े हीं|”

फिर क्या था, थोड़ी हीं देर में वो नीचे और मैं ऊपर| रंग, पेंट, वार्निश और कीचड़ कोई चीज़ हम लोगों ने नही छोड़ी| लेकिन ये तो शुरुआत थी.

मैं अब सीधे उसके ऊपर चढ़ गई और अपनी प्यासी चूत उसके किशोर, गुलाबी, रसीले होंठों पे रगड़ने लगी. 

वो भी कम चुदक्कड़ नहीं थी, चाटने और चूसने में उसे भी मज़ा आ रहा था. उसके जीभ की नोंक

मेरे क्लिट को छेड़ती हुई मेरे पेशाब के छेद को छू गई और मेरे पूरे बदन में सुरसुरी मच गई.
 
मुझे वैसे भी बहुत कस के 'लगी' थी, सुबह से पांच छः ग्लास शरबत पी के और फिर सुबह से की भी नहीं थी. 

मैं अब सीधे उसके ऊपर चढ़ गई और अपनी प्यासी चूत उसके किशोर, गुलाबी, रसीले होंठों पे रगड़ने लगी.


वो भी कम चुदक्कड़ नहीं थी, चाटने और चूसने में उसे भी मज़ा आ रहा था. उसके जीभ की नोंक मेरे क्लिट को छेड़ती हुई मेरे पेशाब के छेद को छू गई और मेरे पूरे बदन में सुरसुरी मच गई. मुझे वैसे भी बहुत कस के 'लगी' थी, सुबह से पांच छः ग्लास शरबत पी के और फिर सुबह से की भी नहीं थी.

(मुझे याद आया कि कल रात मेरी ननद ने छेड़ा था कि भाभी आज निपट लीजिए, कल होली के दिन टायलेट में सुबह से हीं ताला लगा दूंगी, और मेरे बिना पूछे बोला कि अरे यही तो हमारे गाँव की होली की...खास कर नई बहु के आने पे होने वाली होली की स्पेशलिटी है. जेठानी और सास दोनों ने आँख तर्रेर कर उसे मना किया और वो चुप हो गई|)

मेरे उठने की कोशिश को दोनों जेठानियों ने बेकार कर दिया और बोली,

“हे, आ रही है तो कर लो ना...इतनी मस्त ननद है...और होली का मौका...ज़रा पिचकारी से रंग की धार तो बरसा दो...छोटी प्यारी ननद के ऊपर|”


मेरी जेठानी ने कहा, “और वो बेचारी तेरी चूत की इतनी सेवा कर रही है...तू भी तो देख ज़रा उसकी चूत ने क्या-क्या मेवा खाया है?”

मैंने गप्प से उसकी चूत में मोटी उंगली घुसेड़ दी|

चूत उसकी लसालस हो रही थी| मेरी दूसरी उंगली भी अंदर हो गई. मैंने दोनों उंगलियां उसकी चूत से निकाल के मुँह में डाल ली... वाह क्या गाढ़ी मक्खन-मलाई थी?

एक पल के लिये मेरे मन में ख्याल आया कि मेरी ननद की चूत में किसका लंड अभी गया था? लेकिन सिर झटक के मैं मलाई का स्वाद लेने लगी| वाह क्या स्वाद था? मैं सब कुछ भूल चुकी थी कि तब तक मेरी शरारती जेठानियों ने मेरे सुरसुराते छेद पे छेड़ दिया और बिना रुके मेरी धार सीधे छोटी ननद के मुँह में.


दोनों जेठानियों ने इतनी कस के उसका सिर पकड़ रखा था कि वो बेचारी हिल भी नहीं सकती थी, और एक ने मुझे दबोच रखा था|

देर तो मैंने भी हटने की कोशिश की लेकिन मुझे याद आया कि अभी थोड़ी देर पहले हीं, मेरी जेठानी पड़ोस की उस ननद को... और वो तो इससे भी कच्ची थी|

“अरे होली में जब तक भाभी ने पटक के ननद को अपना खास असल खारा शरबत नहीं पिलाया, तो क्या होली हुई?” एक जेठानी बोली|
दूसरी बोली, “तू अपनी नई भाभी की चूत चाट और उसका शरबत पी और मैं तेरी कच्ची चूत चाट के मस्त करती हूँ.”


मैं मान गई अपनी ननद को, वास्तव में उसकी मुँह में धार के बावजूद वो चाट रही थी|


इतना अच्छा लग रहा था कि... मैंने उसका सिर कस के पकड़ लिया और कस-कस के अपनी बुर उसके मुँह पे रगड़ने लगी. मेरी धार धीरे-धीरे रुक गई और मैं झड़ने के कगार पे थी कि मेरी एक जेठानी ने मुझे खींच के उठा दिया| लेकिन मौके का फायदा उठा के मेरी ननद निकल भागी और दोनों जेठानियां उसके पीछे|

मैं अकेले रह गई थी| थोड़ी देर मैं सुस्ता रही थी कि ‘उईईईई...’ की चीख आई...

उस तरफ़ से जिधर मेरे भाई का कमरा था| मैं उधर बढ़ के गई... मैं देख के दंग रह गई|

उसकी हाफ-पैंट, घुटने तक नीचे सरकी हुई और उसके चूतड़ों के बीच में ‘वो’...‘इनका’ मोटा लाल गुस्साया सुपाड़ा पूरी तरह उसकी गांड़ में पैबस्त... वो बेचारा अपने चूतड़ पटक रहा था लेकिन मैं अपने एक्सपेरिएंस से अच्छी तरह समझ गई थी कि अगर एक बार सुपाड़ा घुस गया तो... ये बेचारा लाख कोशिश कर ले, ये मूसल बाहर नहीं निकलने वाला|


उसकी चीख अब गों-गों की आवाज़ में बदल गई थी| उसके मुँह की ओर मेरा ध्यान गया तो... नंदोई ने अपना लंड उसके मुँह में ठेल रखा था| लम्बाई में भले वो ‘मेरे उनसे’ उन्नीस हो लेकिन मोटाई में तो उनसे भी कहीं ज्यादा, मेरी मुट्ठी में भी मुश्किल से समां पाता|

मेरी नज़र सरक कर मेरे भाई के शिश्न पर पड़ी|

बहुत प्यारा, सुन्दर सा गोरा, लम्बाई मोटाई में तो वो ‘मेरे उनके’ और नंदोई के लंड के आगे कहीं नहीं टिकता, लेकिन इतना छोटा भी नहीं, कम से कम ६ इंच का तो होगा हीं, छोटे केले की तरह और एकदम खड़ा|


गांड़ में मोटा लंड होने का उसे भी मज़ा मिल रहा था| ये पता इसी से चल रहा था|

वो उसके केले को मुट्ठिया रहे थे और उसका लीची ऐसा गुलाबी सुपाड़ा खुला हुआ... बहुत प्यारा लग रहा था, बस मन कर रहा था कि गप्प से मुँह में ले लूँ और कस-कस कर चूसूं|

मेरे मुँह में फिर से वो स्वाद आ गया जो मेरी छोटी ननद के बुर में से उंगलियां निकाल के चाटते समय मेरे मुँह में आया था| अगर वो मिल जाता तो सच मैं बिना चूसे उसे ना छोड़ती, मैं उस समय इतनी चुदासी हो रही थी कि बस...

“पी साले पी... अगर मुँह से नहीं पिएगा तो तेरी गांड़ में डाल के ये बोतल खाली कराएँगे|”

नंदोई ने दारू की बोतल सीधे उसके मुँह में लगा के उड़ेल दी|
 
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