Holi sex stories-होली की सेक्सी कहानियाँ - Page 13 - SexBaba
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Holi sex stories-होली की सेक्सी कहानियाँ

होली का असली मजा--8

तिजहरिया के समय तक होली खेल के सब वापस लौट रही थीं|

चंपा भाभी और कई औरतें अपने घर रास्ते में रुक गईं| हमलोग दो तीन हीं बचे थे कि रास्ते में एक मर्दों का झुंड दिखा, शराब के नशे में चूर, शायद दूसरे गाँव के थे|

एक तो हमलोग कम रह गये थे, दूसरा उनका भाव देख के हम डर से तितर बितर हो गये| थोड़ी देर में मैंने देखा तो मैं अब गाँव के एकदम बाहरी हिस्से में आ गई थी|


मुख्य बस्ती से थोड़ा दूर, चारों ओर गन्ने और अरहर के खेत और बगीचे थे| तभी मैंने देखा कि वहाँ एक कुआं और घर है| उसे पहचान के मेरी हिम्मत बढ़ गई, वो मेरी कहारिन कुसुमा का घर था| और उसका मरद कल्लू कुएं पे पानी भर रहा था|

कुसुमा गाँव में मेरी अकेली देवरानी लगती थी|

उसकी शादी मेरी शादी के दो तीन महीने बाद हीं हुई थी| 

गोरी, छुई मुई सी, छरहरी, लेकिन बहुत ताकत थी उसमें, छातियाँ छोटी छोटी, लेकिन बहुत सख्त, पतली कमर, भरे चूतड़| लेकिन मरद का हाथ लगते हीं वो एकदम गदरा गई|

कहते हैं कि मरद का रस सोखने के बाद हीं औरत की असली जवानी चढ़ती है|

घर में वो काम करती थी, नहाने के लिए पानी लाने से देह दबाने तक|

पानी बाहर कुएं पे उसका मरद भरता था और अंदर वो लाती थी| हम दोनों की लगभग साथ हीं शादी हुई थी इसलिए दोस्ती भी हो गई थी| रोज तेल लगवाते समय मैं उसे छेड़-छेड़ के रात की कहानी पूछती, पहले कुछ दिन तो शर्माई, लेकिन मैंने सब उगलवा हीं लिया|

रात भर चढ़ा रहता है वो, वो बोली|

मैंने हँस के कहा,

“हे मेरे देवर को कुछ मत कहना, मेरी देवरानी का जोबन हीं ऐसा है| क्यों दो बार किया या तीन बार?”

मेरी जाँघें दबाती बोली,

“अरे दो तीन बार की बात हीं नहीं, झड़ने के बाद वो बाहर हीं नहीं निकालता मुआ, थोड़ी देर में फिर डंडे ऐसा और फिर चोदना चालू, कभी चार बार तो कभी पाँच बार और घर में और कोई तो है नहीं, ना पास पड़ोसी, इसलिए जब चाहे तब, दिन दहाड़े भी|”

सुन के मैं गिनगिना गई| उसको 'माला डी' भी मैंने हीं दी|

एक बार वो आंगन में मुझे नहला रही थी| मैंने उसे छेड़ा,

“अरे अपने मरद से बोल ना, एक बार उसके असली पानी से नहाउंगी|” तो वो हँस के बोली,

“हाँ ठीक है, मैं बोल दूंगी, लेकिन वो शर्माता बहुत है|” ठसके से वो बोली|

“अरे मेरा देवर लगता है, मेरा हक है, क्या रोज-रोज सिर्फ देवरानी को हीं...”

“और क्या फागुन लग गया है|” पीठ मलते वो बोली|

"एकदम और उसको ये भी बोल देना इस होली में ना, तुम मेरी अकेली देवरानी हो पूरे गाँव में तो मैं और सबको भले छोड़ दूं, लेकिन उसको नहीं छोड़ने वाली|

“सच में...” उसने पूछा|

“एकदम..” साड़ी पहनते मैं बोली|

सच बात तो ये थी कि मैंने उसे कई बार कुएं पे पानी भरते देखा था| था तो वो आबनूस जैसा, लेकिन क्या गठा बदन था, एक-एक मसल पे नजर फिसल जाती थी| ताकत छलकती थी और ऊपर से जो कुसुमा ने उसके बारे में कहा कि वो कैसे जबरदस्त चोदता था|

मैं एकदम पास पहुँच के, एक पेड़ की आड़ में खड़े होके देख रही थी|
लेकिन...लग रहा था जैसे होली उन लोगों के घर को बचा के निकल गई थी|

जहाँ चारों ओर फाग की धूम मची थी, वहीं उसके देह पे रंग के एक बूंद का भी निशान नहीं था| चारों ओर रंगों की बरसात और यहाँ एकदम सूखा...होली में तो कोई भेद भाव नहीं होता, कोई छोटा बड़ा नहीं...लेकिन..|


मुझे बुरा तो बहुत लगा पर मैं समझ गई|

फिर मैंने दोनों हाथों में खूब गाढ़ा लाल पेंट लगाया और पीछे हाथ छिपा के...उसके सामने जा के खड़ी हो गई और पूछा,

“क्यों लाला, अभी से नहा धो के साफ वाफ हो के...”

“नहीं भौजी, अभी तो नहाने जा हीं रहा था...” वो बोला|

“तो फिर होली के दिन इतने चिक्कन मुक्कन कैसे बचे हो? रंग नहीं लगवाया...”
“रंग...होली...हमसे कौन होली खेलेगा, कौन रंग लगायेगा...?”



“औरों का तो मुझे नहीं पता, लेकिन ये तेरी भौजी आज तुझे बिना रंग लगाये नहीं छोड़ने वाली|” दोनों हाथों में लाल पेंट मैंने कस के रगड़-रगड़ के उसके चेहरे पे लगा दिया|

मैं उससे अब एकदम सट के खड़ी थी| सिर्फ धोती में उसकी एक-एक मसल्स साफ दिख रही थीं, पूरी मर्दानगी की मूरत हो जैसे|

लेकिन वो अब भी झिझक रहा था|
 
मैंने बचा हुआ पेंट उसकी छाती पे लगा के, उसके निप्पल्स को कस के पिंच कर दिया और चिढ़ाते हुए बोली, “देवरानी तो बहुत तारीफ करती है तुम्हारी| तो सिर्फ लगवाओगे हीं या लगाओगे भी|”

“भौजी, कहाँ लगाऊं...?” अब पहली बार मुस्कुरा के मेरी देह की ओर देखता वो बोला|

मैंने भी अपनी देह की ओर देखा, सच में पहले तो मेरी सास, ननद और फिर 'जो कुछ' नंदोई और ननद ने मिल के लगाया था, फिर सुनील और उसके दोस्तों ने जिस तरह कीचड़ में रगड़ा था, उसके बाद चंपा भाभी के यहाँ...मेरी देह का कोई हिस्सा बचा नहीं था|

“एक मिनट रुको...”

मैं बोली और फिर पेड़ के पीछे जा के मैंने सब कुछ उतार के सिर्फ साड़ी लपेट ली, अपने स्तनों को कस के उसी में बाँध के...रंगों और पेंट की झोली, कुएं के पास रख दी और कुएं पे जा के बैठ के बोली,

“रोज तो तुम्हारे निकाले पानी से नहाती थी| आज अपने हाथ से पानी निकालो और मुझे नहलाओ भी, धुलाओ भी|”

थोड़ी हीं देर में पानी की धार से मेरा सारा रंग वंग धुल गया|

पतली गुलाबी साड़ी अच्छी तरह देह से चिपक गई थी|

गदराए जोबन के उभार, यहाँ तक की मेरे इरेक्ट निप्पल्स एकदम साफ साफ झलक रहे थे| दोनों जांघे फैला के मैं बोली,

“अरे देवर जी, जरा यहाँ भी तो डालो, साड़ी अपने आप सरक के मेरी जाँघों के ऊपरी हिस्से तक आ गई थी|


पूरे डोल भर पानी उसने सीधे वहीं डाला और अब मेरी चूत की फांक तक झलक रही थी| जवान मर्द और वो भी इतना तगड़ा...धोती के अंदर अब उसका भी खूंटा तन गया था|
“क्यों हो गई न अब डालने के लायक...”

सीना उभार कर मैंने पूछा| और उसका इन्तजार किये बिना रंग उसके चेहरे, छाती हर जगह लगाने लगी|

अब वो भी जोश में आ गया था| कस-कस के मेरे गाल पे, चेहरे पे और जो भी रंग उसके देह पे मैं लगाती वो रगड़-रगड़ के मेरी देह पे...साड़ी के ऊपर से हीं कस-कस के मेरे रसीले जोबन पे भी...

लेकिन अभी भी उसका हाथ मेरी साड़ी के अंदर नहीं जा रहा था|

“अरे सारी होली बाहर हीं खेल लोगे तुम दोनों, अंदर ले आओ भौजी को|”

अंदर से निकल के कुसुमा बोली| और वो मुझे गोद में उठा के अंदर आंगन में ले आया| कुसुमा ने दरवाजा बंद कर दिया| उसके बाद तो...


पूरे आंगन में रंग बरसने लगा, हर पेड़ टेसू का हो गया|

बस लग रहा था कि सारा गाँव नगर छोड़ के फागुन यहीं आ गया हो|

कुसुमा भी हमारे साथ, कभी मेरी तरफ से तो कभी उसकी| उसने अपने मरद को ललकारा,



“हे अगर सच्चे मर्द हो तो आज भौजी को पूरी ताकत दिखा दो|” मैं भी बोली “हाँ देवर, जरा मैं भी तो देखूं कि मेरी देवरानी सही तारीफ करती थी या...अगर अपने बाप के हो तो...” और मैंने उसकी धोती खींच दी|

मैंने अब तक जितने देखे थे, सबसे ज्यादा लंबा और मोटा...फिर वो मेरी साड़ी क्यों छोड़ता|


उसे मैंने अपने ऊपर खींच के कहा, “देवर जरा आज फागुन में भाभी को इस पिचकारी का रंग तो बरसा के दिखाओ|” पल भर में वो मेरे अंदर था| चुदाई और होली साथ-साथ चल रही थी|


कुसुमा ने कहा, “जरा हम लोगों का रंग तो देख लो और एक घड़े में गोबर और कीचड़ के घोल से बना (और भी 'पता नहीं क्या-क्या' पड़ा था) मेरे ऊपर डाल दिया| मैंने उसके मर्द को उसके सामने कर दिया| क्या ताबड़ तोड़ चुदाई कर रहा था| मस्त हो कर मेरी चूत भी कस-कस के उसके लंड को भींच रही थी|


अब तक जितने भी लंड से मैं चुदी थी उनसे ये २० नहीं २२ रहा होगा| जैसे हीं वो झड़ के अलग हुआ मैंने कुसुमा को धर दबोचा और रंग लगाने के साथ निहुरा कर, उसे पटक के, सीधे उसकी चूत कस-कस के चाटने लगी और बोली, “देखूं, इसने कितना मेरे देवर का माल घोंटा है|”


जैसे दो पहलवान अखाड़े में लड़ रहे हों, हम दोनों कस-कस के एक दूसरे की चूचियाँ रगड़ रहे थे, रंग, गोबर और कीचड़ लगा रहे थे| उधर मौका देख के वो पीछे से हीं कुतिया की तरह मुझे चोदने लगा| मैं उसे कस के हुचुक हुचुक कर कुसुमा की चूत अपनी जीभ से चोद रही थी|

वो नीचे से चिल्लाई, “ये तेरी भौजी छिनाल ऐसे नहीं मानेगी, हुमच के अपना लंड इसकी गांड़ में पेल दो|” मैं डर गई पर बोली, “और क्या, अकेले तुम्हीं देवर से गांड़ मराने का मजा लोगी|” लेकिन जैसे ही उसने गांड़ में मूसल पेला, दिन में तारे दिख गये| मैं भी हार मानने वाली नहीं थी| मेरी चूत खाली हो गई थी|
 
मैं उसे कुसुमा की झाँटों भारी बुर पे रगड़ने लगी|

कुछ हीं देर में हमलोग सिक्स्टी नाइन की पोज में थे लेकिन वो घचाघच मेरी गांड़ मारे जा रहा था|

हम दोनों दो-दो बार झड़ चुके थे| उसने जैसे हीं गांड़ में झड़ने के बाद लंड निकाला, सीधे मैंने मुँह में गड़प कर लिया| वो लाख मना करता रहा लेकिन मैंने चाट चूट के हीं छोड़ा|

तीन बार मेरी बुर चुदी|
मैं उठने की हालत में नहीं थी| किसी तरह साड़ी लपेटी, ब्लाउज देह पे टांगा और घर को लौटी

शाम को फिर सूखी होली, अबीर और गुलाल की और इस बार इनके भी दोस्त, देवर कईयों ने नंबर लगाया|

और मेरा भाई बेचारा (हालाँकि उसने भी सिर्फ छोटी ननद की हीं नहीं बल्कि दो-तीन और की सील तोड़ी) मेरी ननदों ने मिल के जबरन साड़ी ब्लाउज पहना पूरा श्रृंगार करके लड़की बनाया और मेरे सामने हीं निहुरा के...


मैं सोच रही थी कि आज दिन भर...शायद हीं कोई लड़का, मर्द बचा हो जिसने मेरे जोबन का रस ना लिया...सारे के सारे नदीदे ललचाते रहते थे...होली का मौका हो और नई भौजाई हो|

लेकिन मैंने भी अपनी ओर से छोड़ा थोड़े हीं, सबके कपड़े फाड़े, पजामे में हाथ डाल के नाप जोख की और अंगुली किये बिना छोड़ा नहीं,

कम से कम चार बार मेरी गांड़ मारी गई, ७-८ बार मैंने बुर में लिया होगा और मुँह में लिया वो बोनस| ननदों के साथ जो मजा लिया वो अलग|

मेरी बड़ी ननद और जेठानी अपने बारे में बता रही थीं...

जेठानी बोली कि वो तो हाई स्कूल में थी कि उनके उनके जीजा ने होली में अपने दो दोस्तों के साथ...सैंडविच बनाई, कोई छेद नहीं छोड़ा और यहाँ पे ससुराल में सबने मिलके उनको तो उनके सगे भाई के साथ...


ननद बोली कि नंदोई जी को होली में ईयर एंड के चक्कर में छुट्टी नहीं मिली तो क्लब में हीं सबने दारु पी|
सब इंतजाम कंपनी की हीं ओर से था और फिर खूब सामूहिक...



लेकिन सबसे २० मेरी हीं होली थी|

मैं कुछ और बोलती कि मेरी ननद बोलीं,

“अरे भाभी ये तो खाली ट्रेलर था, जब आप मायके से लौट के आइयेगा ना...यहाँ असली होली तो रंग पंचमी को होती है, होली के पांच दिन बाद और सिर्फ कीचड़ और 'बाकी चीजों' से..”

मुझे आँख मार के बोली|

जब तक मैं कुछ बोलती वो बोली,

“और आपका एक देवर तो बचा हीं रह गया है, शेरू (उनका कुत्ता, जिसका नाम ले ले के मेरी शादी में ननदों को खूब गालियाँ दी गईं थीं|) उस दिन उसके साथ भी आपका...”


तब तक वो आये और बोले,

“अरे जल्दी करो, तुम्हारी गाड़ी का समय हो गया है|”


“मैं तैयार हूँ|” मैं बोली|

“अच्छा, मैं ये सोच रहा था कि अगर तुम कहो तो होली के बाद छुटकी को भी ले आते हैं| अभी तो उसकी छुट्टियाँ चलेंगी, अगले साल तो उसका भी हाई स्कूल का बोर्ड हो जायेगा और तुम्हारा भी मन बहल जाएगा|

(मैं तो उनकी और नंदोई जी की बात सुन के छुटकी के बारे में उन लोगों का इरादा जान हीं चुकी थी|)
मुस्कुरा के मैं बोली,

“अरे आपकी साल्ली है, जो आप कहें|”
 
होली का असली मजा--9

स्टेशन पहुँच के वो अचानक बोले कि अरे मैं एक जरुरी चीज लगता है भूल गया हूँ| ये साला तो है हीं| मैं अगली गाड़ी से या बाई रोड सुबह पहुँच जाऊँगा|


मैं क्या बोलती| ट्रेन छूटने का समय हो रहा था| हम लोगों का रिजर्वेशन एक फर्स्ट क्लास के केबिन में था| मुझे खराब तो बहुत लगा लेकिन क्या बोलती| मेरी हालत जान के मेरे भाई के सामने मुझे कस के चूम के वो बोले,

“अरे मैं जल्द हीं तुम्हारे पास पहुँच जाऊँगा और तब तक तो ये सल्ला है हीं तुम्हारा ख्याल रखने ले लिए|”

और उससे बोले,

“साले अपनी बहन का ख्याल रखना| किसी हाल में मेरी कमी महसूस मत होने देना, वरना लौट के तेरी गांड़ मार लूंगा|”

वो हँस के बोला,

“नहीं जीजा, जैसा आपने कहा है एकदम वैसा हीं करूँगा|”

तब तक ट्रेन ने सीटी दे दी और वो उतर गये|

टीटी ने टिकट चेक करने के बाद कहा कि आज ट्रेन खाली हीं है और अब इस केबिन में और कोई नहीं आयेगा, इसलिए हमलोग दरवाजा अंदर से बंद लें|

फर्स्ट क्लास की चौड़ी सीट...वो बैठ गया और मैं थोड़ी देर में, मैं दिन की थकी, उसके जाँघों पे सिर रख के लेट गई| खिड़की खुली थी| होली के पूनो का चाँद अंदर झांक रहा था, मेरे गदराए रसीले जिस्म को सहलाता...फगुनाई हवा मन में, तन में मस्ती भर रही थी| मेरी कजरारी आँखें अपने आप बंद हो गईं|


आंचल मेरा लुढ़क गया था...कसे ब्लाउज में उभरे जोबन छलक रहे थे| मैंने एक दो हुक खोल दिये| आँखें बंद थी, लेकिन मन की आँखें खुली थीं और दिन भर का सीन चल रहा था|

मैंने सोचा होली हो ली, लेकिन ननद की बात याद आई...ये तो अभी शुरुआत है|



कल घर पे जम के होली होगी| 

अब हम लोगों के बदला लेने का मौका होगा, मेरी बहनें, सहेलियां, भाभियाँ और जैसा मैं इनको समझ गई थी ये भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ने वाले थे| आगे पीछे हर ओर से...और भाभी ने बोला था कि वो मुझे भी... सोच सोच के सिहरन हो रही थी|

फिर लौट के... ससुराल में ...

ननद जिस तरह से शेरू के बारे में बात कर रही थीं और नंदोई ने भी कहा था कि...तब तक जैसे अंजाने में उसका (मेरे भाई) हाथ पड़ गया हो...मेरे ब्लाउज के ऊपर उसने हाथ रख दिया|

मैंने भी नींद में जैसे उसका हाथ खींच के खुले ब्लाउज के अंदर सीधे उरोज पे रख दिया| मस्ती से मेरी चूचियाँ पत्थर हो रही थी| उसका असर उसके ऊपर भी...मेरे होंठ सीधे उसके अकड़ते तन्नाते शिश्न पे...


सुबह जब मैंने पहले पहल 'उसका' देखा था...जब वो नंदोई और 'उनके' साथ...मेरा मन कर रहा था, उसका गप्प से मुँह में ले लूं|


अब फिर वही बात, मेरे होंठ गीले हो रहे थे| 

मैं हल्के हल्के नेकर के ऊपर से हीं उसे रगड़ रही थी|मुलायम और कड़ा दोनों हीं लग रहा था, मेरे लंबे नाख़ून उसके साइड से सहला रहे थे| हल्के से मैंने उसका बटन भी खोल दिया, उधर उसने भी मेरे ब्लाउज के बचे हुए हुक खोल दिये और कचाक से मेरा जोबन ब्रा के ऊपर से... 

सुबह जो काम मैंने नहीं किया था , बस सोच के रह गयी थी , वो काम अब किया। गप्प से उसका लीची ऐसा सुपाड़ा मुंह में ले लिया और चूसने चुभलाने लगी।
 
क्या स्वाद था। खूब रसीला। और वो भी मेरे गदराये जोबन को चूस रहा था , दबा रहा था। एकदम पागल हो गया था मृ चूंचियों को पा के।

मैं कुछ देर चूसती चुभलाता रही , फिर उसे तंग करते प्यार से मैं उसके बॉल्स सहलाने लगी , उनसे खेलने लगी। उसका जोश बढ़ता जा रहा था। वो हलके हल्के धक्के मेरे मुंह में मारने लगा , और साथ ही उसके होंठो मेरे निपल्स चूस रहे थे और एक हाथ मेरे निचले होंठों को सहला रहा था।

बस मन कर रहा था , कर दे वो ,

गाडी तेजी से मेरे मायके की और चली जा रही थी


तब तक खट-खट की आवाज हुई| कौन हो सकता है,मैंने सोचा, टीटी ने टिकट तो चेक कर लिया है और बोल के गया था कि कोई नहीं आयेगा| आंचल से खुला हुआ ब्लाउज मैंने बिना बंद किये ढक लिया और उससे बोली, “हे देखो, कौन है?”

मैं दंग रह गई|
वही थे|


“अरे तुम सोचती थी, इत्ते मस्त माल को छोड़ के मैं होली की रात बेकार करूँगा| मैं ट्रेन चलने के साथ हीं चढ़ गया था और झांक के सब देख रहा था|”

वो बोले और उसके सामने हीं मुझे कस-कस के चूम लिया, फिर उसके पीछे जा के खड़े हो गये और उसका नेकरसरकाते बोले,

“लगे रहो साल्ले, होली में...”

और फिर रात भर हम लोगों की होली होती रही|

तो आप बताएं कैसी लगी ये दास्तान और लौट के मैं बताउंगी क्या हुआ रंग पंचमी में|
 
होली का असली मजा--10

" लगे रहो मुन्ना भाई " हँसते हुए वो बोले और उनकी हंसी से साफ लग रहा था की उन्होंने 'सब कुछ ' देख लिया है।

मेरे ममेरे भाई के चिकने मक्खन ऐसे लौंडिया मार्का गाल को सहलाते वो बोले ,

" अरे यार थोड़ी देर पहले जब गाडी रुकी थी न तो मैं डिब्बे में चढ़ गया था। टी टी ने बोला की इस केबिन में तुम लोग हो और उसके अलावा , पूरा डिब्बा खाली है , फर्स्ट क्लास का। उसे मैंने १०० का नोट पकड़ाया होली की गिफ्ट और वो उतर के सेकेण्ड क्लास में चला गया। मैंने डिब्बा ही अंदर से बंद कर दिया। रात में कोई स्टापेज भी नहीं है। बस अब हम तीन है। "

और बोलते हुए उन्होंने मेरी ओर जोर से आँख भी मारी।

मैं सब समझ गयी। थोड़ी देर पहले मैं अपने ममेरे भाई के साथ बर्थ पे उसकी अधलेटी , उसका लीची ऐसा सुपाड़ा चूस रही थी। और ये उन्होंने देख लिया था (अब सुबह उसने मुझे मेरी जिठानी , ननदों और नंदोई के सामने चोदा ही था। और मेरे सामने मेरे नंदोई ने उसकी हचक हचक कर गांड भी मारी थी। तो अब हम में क्या शरम बचती। )

और जैसे ये काफी न हो उन्होंने मेरे अधखुले ब्लाउज के पूरे बटन खोल दिए और मेरे गोरे गोरे जोबन छलक के बाहर आए गए। उन्होंने सीधे से मेरे भाई के हाथ पकड़ के मेरी चूंची पे रख दिया और बोला , " क्यों साल्ले , मस्त मम्मे है ना मेरी बीबी के जरा दबा के देखो न , शर्माओ अपना ही माल है। "

उन्होंने मुझे फिर आँख मारी और कहा , " हे मेरे डब्बे में आने से पहले जो चल रहा है , चलता रहना चाहिए। "

अब मैं उनका इरादा साफ समझ गयी उनकी नियत फिर मेरे भाई पे डोल गयी थी। और उन्हें मेरा सपोर्ट चाहिए था।

दिन भी जब में भी जब वो उसकी कच्ची गांड खोल रहे थे तो नंदोई जी उनका साथ दे रहे थे। नंदोई जी ने पहले तो मेरी भाई को देशी दारु पिलायी और उसके बाद उसके मुंह में अपना मोटा लौंडा ठूंसा था , तभी वो चीख नहीं पाया। उसके बाद जब नंदोई जी ने उसकी गांड मारी तो नीचे से मैंने उसे अपना देवर समझ के कस के कैंची की तरह पैर उसके पीठ पे बाँध रखा था और होंठ अपने होंठ से सील किये हुए थे।

मैं कौन होती थी अपने साजन की बात टालने वाली।

मैंने फिर से उसका नेकर सरकाया और उसका आधा खड़ा लंड अपने होंठो के बीच गपक लिया और चूसने चुभलाने लगी।

मेरे पैरों ने उसके पैरों में फंसे नेकर को पूरा निकाल दिया।

कुछ देर में उसने भी हिम्मत कर के मेरी चूंचिया हलके हलके दबानी शुरू कर दीं।

वो उसके बाल और गाल प्यार से सहला रहे थे।
मैंने 'उनकी' ओर प्यार से देखा और अपने भाई की शर्ट के नीचे के बटन खोल दिए। मेरे भाई ने इशारा समझ लिया और उसने अपनी शर्ट की बाकी बटने भी खोल के शर्ट नीचे उतार के गिरा दी। उसकी नेकर मैं पहले ही उतार चुकी थी।

उसकी पूरी नंगी देह देख के 'उनकी ' आँखे चमक गयीं।

अब आँख मारने की बारी मेरी थी।

वो मुझे देख के मुस्कराये और उनकी उस मुस्काराहट के लिए मैंने कुछ भी न्यौछावर कर सकती थी। मेरे छोटे भाई का पिछवाड़ा कौन सी चीज थी।

उनका बाल सहलाता हुआ हाथ पीठ पे उतर गया और थोड़ी देर में ही नितम्बो की दरार के ठीक ऊपर था।

मैंने अपने भाई के चिनिया केले ऐसे लिंग कि चुसाई तेज कर दी थी। मेरा मुंह अब तक उनके बित्ते भर के लंड का आदी हो चूका था। सुबह नंदोई के कलाई ऐसे मोटे लंड को चूस चुकी थी। भाई का लिंग तो ५-६ इंच का मुश्किल से था। आसानी से मैं जड़ तक चूस रही थी। मस्ती से उसकी आँखे बंद हो रही थी और अब जोर जोर सेवो मेरी चूंची के निपल वो दबा रहा था , मसल रहा था।
उन्होंने भी अब अपनी शर्ट उतार दी थी। उनका चौड़ा सीना मेरे आँखों के सामने था। कुछ देर में ही उन्होंने मेरे भाई के सर को अपनी जांघो पे रख दिया।

मेरे हाथ तो खाली ही थे , मैंने शरारत से उनकी जींस का जिपर खोल दिया। ' वो ' कुनमुना रहा था। मेरी शैतान उँगलियों ने अंदर घुस के उसे जगाना शुरू कर दिया और थोड़ी देर में वो फुफकारने लगा। और मैंने उसे निकाल के बाहर कर दिया।

पूरे एक बित्ते का मोटा कड़ियल नाग , बिल तलाशता ,…

उनकी उंगलिया भाई के चिकने गाल को टटोलतीं तो कभी उसके रसीले होंठो को। और अब वो मोटा लिंग भी गाल सहला रहा था।

उसके गाल दबा के मुंह चियरवा के , होंठ खोलते हुए बोले वो ,

" साल्ले , बहनचोद , तेरी बहन का मुंह तो तेरे साथ बीजी है मेरा काम कौन चलायेगा , चल तू ही घोंट। "

और जब तक मेरा भाई कुछ समझता , सुपाड़ा , उसके मुंह के अंदर था।
 
मैं उसका लंड चूस रही थी और उस की हालत देख के मुस्करा रही थी।

अब वो लाख चूतड़ पटक ले ये उसे पूरा लंड घोंटा के ही मानेंगे।
मैंने एक मिनिट के लिए उसका लंडनिकाला और उसे समझाया ,

" अरे भैया , मुंह पूरा खोलो , एकदम आ आ कर के , जबड़े को लूज रखो "

और उसने मेरी सलाह मान ली। कुछ ही देर में 'उनका ' आधा लंड अंदर था और अब मेरा भाई जोर जोर से लंड चूस रहा था।
मैं कभी अपने भाई के बॉल्स सहलाती , कभी पी हॉल जीभ से सुरसुराती , और उसका हौसला बढाती।

अब वो अपने साले का सर पकड़ के जोर जोर से उसका मुंह चोद रहे थे। उनके चेहरे से लग रहा था की उन्हें कितना मजा आ रहा है।

वो बिचारा गों गों कर रहा था , लेकिन साथ में चूस भी रहा था।

" साल्ला , बहुत मस्त लंड चूसता है " मुझसे वो बोले।
"
मैं भी मुस्करा के बोली , " अरे आखिर भाई किसका है , मैं भी तो इतना जबरदस्त लंड चूसती हूँ ".


उनकी निगाह बार सरक के उसकी दुबदुबाती गांड की और जा रही थी। और मैं समझ गयी थी कि उन का मन किधर है।

मैंने बाजी बदली , और उन्हें आँख मार के इशारा किया , फिर बोली

" बिचारे का मुंह थक गया होगा जरा उसे अपनी रसमलाई चटा दूँ "

और थोड़ी देर में मैं और मेरा भाई 69 की पोज में थे , मैं ऊपर वो नीचे।

और उनका लंड जोर से फड़फड़ा रहा था।

मैंने धीरे से बोला "बस थोड़ी देर, फिर दिलवाती हूँ तुझे मजा। "

" क्यों भैया , आ रहा है रस मलायी का मजा " उसके मुंह में चूत रगड़ती हुयी मैं बोली।


" हाँ दीदी , " लपालप चूत चाटते हुए वो बोला। इनकी बात एकदम सही थी , चाटने में मेरा भाई एकदम मस्त था।

" हे जरा एक तकिया देना " मैंने 'इनसे 'कहा औ हलके से आँख मार दी।

वो एक क्या , जीतनी तकिया थीं सब ले आये और वो मैंने अपने भाई के चूतड़ के नीचे लगा दी। अब वो अच्छा ख़ासा ऊपर उठ गया था।

ट्रेन अपनी रफ्तार से चली जा रही थी। ट्रेन की खिड़की से पूनो की चांदनी हम सबको नहला रही थी।

फर्स्ट क्लास की बर्थ अच्छी खासी चौड़ी होती है। और मैं और मेरा ममेरा भाई , मस्ती से 69 के मजे ले रहे थे।

वो आके मेरे सर की और बैठ गए थे , और मुझे अपने साले का लंड चूसते हुए देख रहे थे।

मैंने अपने ममेरे भाई की दोनों टाँगे एकदम ऊपर उठा रखी थीं और मेरे हाथ कभी उसके बॉल्स सहलाते तो कभी गोरी गोरी लौंडिया छाप चूतड़ ,

और एक बार मैंने उन्हें दिखा के अपने भाई के पिछवाड़े के छेद में ऊँगली कर दी।

वास्तव में बड़ी कसी थी। पूरा जोर लगाने पे भी सिर्फ टिप घुस पायी।

वो इशारा समझ गए थे। उनका मोटा लंड बेकरार हो रहा था , मैंने इशारे से बरजा और पल भर के लिए भाई के लंड को छोड़ के पति का लंड गपक लिया।

रोज के आदी मेरे होंठ जम के चूसने चाटने लगे।


ये नहीं था की मैंने , अपने भाई को पति के सामने इग्नोर कर दिया हो।

अब उसके लंड कि हाल चाल मेरी गोरी उंगलिया ले रही थी , जोर जोर से मुठिया के। और अंगूठा और उंगली दूसरे हाथ की खूब थूक लगा के , उसके गांड के छेद को चौड़ा करने पे तुली थी।

मेरे पति की निगाहने उसी गोल छेद पे टिकी थीं।

मैंने अपने दोनों पैरों को अपने भाई के हाथों पे टिकाया , पूरी देह का जोर उसे पे डाल दिया , और अपनी चूत से उसका मुंह अच्छी तरह सील कर दिया। दोनों जाँघों ने उसके सर को दबोच लिया।


और अब मैंने उनके उनके वावरे तड़इपते लंड को आजाद किया और अपने हाथो से ही ममेरे भाई के गांड के दुबदुबाते छेद पे सटा दिया।

फिर क्या था ' वो ' तो पागल हो रहे थे , उन्होंने उस के गोल मटोल छोटे छोटे चूतड़ों को पकड़ के हचाक से पूरा करारा धक्का दिया।

ऐसे धक्के का मतलब मुझसे अच्छा कौन समझ सकता था।

मेरे नीचे दबा मेरा भाई तड़प रहा था , मचल रहा था। दर्द से पिघल रहा था।

उसके इस दर्द को मुझसे अच्छा कौन समझ सकता था।

लेकिन ये समय बेरहमी का था , जोर जबरदस्ती का था , और मैंने नहीं चाहती थी की मेरे पति के मजे में कोई विघ्न पड़े।
 
मैंने जोर से अपनी बुर उसके मुंह पे भींच दी , अपने पूरे देह से उसे और जोर से दबाया और अपने दोनों हाथो से उसके तड़पते ,फड़फड़ाते पैरों को फ़ैला के अलग रखा।

वो जोर से धक्के मारते रहे , उसके गोल मटोल चूतड़ों को पकड़े हुए , सुपाड़ा थोडा घुस गया था।

नीचें वो चूतड़ पटक रहा था , लेकिन मेरे और उनके मिले जुले जोर के आगे बिचारे की क्या चलती।


दोचार धक्को के बाद , अब पूरा सुपाड़ा अंदर चला गया और ऩीने चैन कि साँस ली , अब वो लाख गांड पटके , लंड बाहर नहीं निकल सकता था।

उन्होंने भी हमला रोक दिया।

मैंने अपनी देह का दबाव हल्का कर दिया और एक बार फिर से अपने छोटे ममेरे भाई का लंड मुंह में ले के चुभलाने चूसने लगी।

वो भी कम नहीं था , उसने फिर मेरी चूत रस मलायी का मजा लेना शुरु कर दिया।


यही तो हम दोनों चाहते थे।

उसका ध्यान , दुखती गांड पर से एक पलके लिए हट गया।
गांड के छल्ले को भी मेरे मर्द के मोटे लंड की आदत पड़ गयी।

और 'उन्होंने ' फिर एक जबरदस्त धक्का मारा और लंड गांड के अंदर पेलना शुरू कर दिया।

वो बिचारा गों गों कर रहा था।

उन्होंने इशारा किया और मैं हट गयी। मैं जा के अपने भाई के सर के पास बैठ गयी और उसका सर सहलाने लगी।

वो अब खूब मजे से हलके हलके लंड पेल रहे थे।
'उन्होंने ' अपना मूसल जैसा लंड , जो एक तिहाई अंदर घुस चुका था , सुपाड़े तक बाहर खिंचा और मैं समझ गयी क्या होनेवाला है।

मैंने उन्हें आँख से इशारा किया कि , क्या मैं अपने मोटे मोटे मम्मे , इसके मुंह में डाल के इसका मुंह बंद करा दूँ , लेकिन उन्होंने सर हिला के मना कर दिया।

फिर भी मैंने अपने दोनों हाथ उसकी कलाई पे रख के कस के दबा दिया और अगले पल तूफान आ गया।

उन्होंने पूरी ताकत से लंड अंदर पेला , और रगड़ता , दरेरता , घिसटता , वो अंदर घुसा।

और जोर की चीख केबिन में गूंजी। अगर मैंने पूरी ताकत से उसके हाथ न पकड़ रखा होता तो वो शायद उछल जाता।

लेकिन पूरे कोच में कोई नहीं था और मेरे भाई बिचारे कि दर्द भरी चीख किसी ने नहीं सुनी।
दूसरा धक्का पहले से भी तेज था और चीख भी और , ह्रदय विदारक।

बिना रुके वो धक्के पे धक्का मार रहे थे।

मुझे याद आया , किसी कि बात की जब तक जिसकी गांड मारी जाय वो दर्द से बिलबिलाए नहीं , चीखे , चिल्लाये नहीं और गांड उसकी दर्द से परपराए नहीं , जब तक वो दिन तक टांग फैला के न चलें , न गांड मारने वाले को मजा आता है और ना गांड मरवाने वाले को।
चीखें कम हो गयी थी लेकिन दर्द अभी भी झलक रहा था।

अचानक मुझे आया , सुबह जब इन्होने इसकी ली थी और बाद में नंदोई जी ने भी , बस आधे लंड से लिया था वो भी बहुत हौले हौले।

ये मैं सुहागरात में ही सीख गयी थी की पहली दो बार तो प्यार मुहब्बत से होता है , असली हमला तो तीसरी बार ही होता है जब दोनों एक दूसरे के आदि हो जाते हैं , और यही हो रहा था।


अचानक वो रुक गए। अब उनका ३/४ लंड बेसाख्ता मेरे ममेरे भाई के गांड में धंस गया था और वो उसकी लम्बाई मोटाई का आदी हो रहा था।

अब वो उसके गालों को चूम रहे थे , उसके बाल सहला रहे थे। और उससे अचानक जोर से बोला ,
" चल साल्ले बन कुतिया , तुझे कातिक में कुतिया जिस तरह , चुदती है उस तरह चोदुंगा। "

मुझे अचरज हुआ , कि बिना कुछ देर किये वो कुतिया बन गया। 

और अब जो उन्होंने धक्का मारा , तो पूरा लंड अंदर।

आधे घंटे हचक के उसे चोद के ही वो झड़े , और सारी मलायी गांड में।

और उसे नीचे दबोच के लेट गए

कुछ देर तक जीजा साले उसी तरह लेटे रहा।

और फिर उठ के अपने बैग से उन्होंने दारु की एक बोतल निकाली।
वो फ
वैसी ही जिसे सुबह उन्होंने और नंदोई जी ने मिलकर पिया था और छोटे भाई को पिलाया था। और मेरी ननदो ने मुझे पिलाया था और मैंने नशे में रंग से रेंज अपने भाई को देवर समझ के उसके ऊपर चढ़ गयी , और मौके का फायदा उठा के मेरे नंदोई जी ने भी , उसे सैंडविच बना दिया।

एक बार फिर उन्होंने आधे से ज्यादा बोतल उसे पिला दी और बाकी मैं और वो चट कर गए और कुछ ही देर में उसका दर्द गायब था।

मैं नशे में बिना सैंया और भैया में भेदभाव किये बिना दोनों के लिंग की सेवा अंगुलियो और होंठो से कर रही थी।

थोड़ी देर में उन्होंने मेरे भाई को जोश दिला के मेरे ऊपर चढ़ा दिया। सुबह की तरह। सुबह धोके में हुआ था अबकी नशे में।

और सुबह की ही तरह जैसे नंदोई जी पीछे से उसके ऊपर चढ़ गए थे , वो उसके ऊपर चढ़ गए , और हचक हचक कर ली।

जब वो उतरे तो बस सुबह होने वाली थी और मेरे मायके का स्टेशन आने वाला था।

हम लोग जल्दी जल्दी तैयार हुए। गाडी वो धीमी हो रही थी , वो फ्रेश होने बाथरूम गए तो मैंने , अपने ममेरे भाई से आँखा नचाकर पुछा ,

" हे बोल , ज्यादा मजा किसके साथ आया , मेरे साथ या जीजू के साथ। "
वो हंसने लगा और बोला , " दी बुरा मत मानना , जीजू के साथ। " 
 
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