desiaks
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“बड़ा अजीब नाम है तेरा—पंडित भी, शाहबुद्दीन भी और चौधरी भी?”
बेहद नाटे, काले और मोटी तोंद वाले नेता को तेजस्वी के संबोधन का स्टाइल अखरा जरूर, परंतु जानता था कि कुछ बिगाड़ नहीं सकता, अतः बेहयाईपूर्वक ठहाका लगाने के बाद बोला—“ये मेरा जन्मपत्री वाला नहीं बल्कि राजनीतिक नाम है—जैसे लेखक और कवि ‘तखल्लुस’ लगाकर अपना नाम बदल लेते हैं—वैसे ही मैंने भी राजनीतिक नाम रख लिया है, पंडित शाहबुद्दीन चौधरी—धर्मनिरपेक्षता का पोषक हूं मैं और उसी का प्रतीक है मेरा नाम।”
“यही मैं सोच रहा था।” तेजस्वी ने कहा—“एक ही आदमी के भला तीन बाप कैसे हो सकते हैं—पंडित, मुस्लिम और जाट!”
उसकी मां को साफ-साफ गाली दी गई थी मगर लेशमात्र भी विरोध नहीं दर्शाया पट्ठे ने बल्कि हो हो करके यूं हंसा जैसे तेजस्वी ने भारी मजाक किया हो—हंसने के कारण उसकी तोंद जमीन पर पड़े पानी से भरे गुब्बारे की मानिन्द हिल रही थी।
तेजस्वी ने कहा—“दुर्भाग्य की बात है, धर्मनिरपेक्ष नाम चिपकाने के बावजूद तू प्रतापगढ़ का लोकप्रिय नेता न बन सका।”
“लोगों में समझ की कमी है।”
“लोगों की बात छोड़ ‘तीगले नेता’ और मेरी बात सुन!” तेजस्वी ने एक सिगरेट सुलगाने के बाद कहा—“मैं तुझे प्रतापगढ़ का लोकप्रिय नेता बना सकता हूं।”
“अ-आप?” वह हकलाया—“क-कैसे?”
“पहले ये बता, यहां कैसे आया था?”
“क्या बताऊं—आना तो नहीं चाहता था मगर फंस गया, मेरी समझ में अभी तक यह बात नहीं आ रही कि वे लोग मेरे पास आखिर आ कैसे गए, सोचा क्या था उन्होंने?”
“किन्होंने?” तेजस्वी ने भेदभरी मुस्कान के साथ पूछा।
“रंगनाथन के गुर्गे थे वे—करीब आधा घंटा पहले मेरे घर पहुंचे—हाथ जोड़ने लगे, पैरों में पड़ गए—कहने लगे, दुनिया में मैं वह अकेला शख्स हूं जो रंगनाथन को थाने से छुड़ाकर ला सकता हूं—मैं चकित रह गया, हैरान हो उठा—उनका राजनीतिक आका गंगाशरण था। समझ नहीं पा रहा था कि उसे छोड़कर वे मेरे पास क्यों आ गए, बोला—गंगाशरण की शरण में जाओ भाई, रंगनाथन को वही छुड़ा सकता है—मेरी सुनने वाला कौन है—कहने लगे—‘नहीं, मैं झूठ न बोलूं—उन्हें पता लगा है, नए इंस्पेक्टर से मेरे बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं और वह रंगनाथन को केवल मेरे कहने से छोड़ सकता है’—मैंने बहुत समझाया, गिड़गिड़ाकर कहा—‘तुम लोगों को किसी ने बहका दिया है’—इंस्पेक्टर तेजस्वी की तो मैंने शक्ल तक नहीं देखी—मगर वे नहीं माने, मजबूर कर दिया मुझे।”
“मैंने भेजा था उन्हें।”
“अ-आपने?” आंखें उलट गईं।
“मैंने हवलदार से रंगनाथन के गुर्गों में यह बात फैला देने के लिए कहा था कि तेरे कहने से इंस्पेक्टर तेजस्वी रंगनाथन को छोड़ सकता है।”
“आपने ऐसा क्यों किया?”
“तेरी इज्जत, तेरा मान बढ़ाने के लिए—तेरा रुतबा कायम करने के लिए और तेरी नेतागिरी चमकाने के लिए।”
पंडित शाहबुद्दीन चौधरी रोमांचित हो उठा—“म-मगर आपने मुझ पर ये मेहरबानी आखिर की क्यों?”
“दिल आ गया है तुझ पर।”
“ज-जी?”
“चुनाव जीतना लोकप्रियता का प्रतीक है यानि लोकप्रिय नेता वह जो अपने हलके से चुनाव जीत जाए—चुनाव आजकल आम वोटर नहीं बल्कि गुण्डे-बदमाश जिताते हैं—वे, जो आम मतदाता को बूथ तक नहीं पहुंचने देते—भूला-भटका कोई पहुंच भी जाए तो पता लगता है कि उसकी वोट डल चुकी है—मतलब ये कि आजकल ज्यादातर लोगों के वोट गुण्डे-बदमाश डाल देते हैं, ऐसा है कि नहीं?”
“बिल्कुल ऐसा ही है इंस्पेक्टर साहब—वाह, क्या बात कही है आपने—मजा आ गया, चंद शब्दों में हमारे लोकतंत्र की कलई खोलकर रख दी—मैं भी यही कहता रहा हूं—गंगाशरण के चुनाव के खिलाफ अदालत में याचिका दाखिल कर रखी है मैंने—उसमें यही कहा है कि गंगाशरण ने गुण्डागर्दी से चुनाव जीता है—आम मतदाता को तो वोट डालने ही नहीं दिया गया—सभी बूथ उसके रायफलधारी बदमाशों ने कैप्चर कर लिए थे।”
“याचिका का कोई नतीजा निकला?”
“अभी तो बस तारीख पर तारीख लग रही हैं।”
तेजस्वी हंसा—“जबकि विधान सभा भंग भी हो चुकी है।”
“यही तो मैं कहता हूं—हमारे देश का कानून भी कोई कानून है? या तो इंसाफ मिलेगा नहीं और मिलेगा भी तो तब जब पीड़ित पक्ष को उसकी जरूरत नहीं रह जाएगी।”
“तेरे जैसे घोंचू अदालतों के चक्कर काटते रहते हैं, चुनाव नहीं जीत सकते।”
“मैं तुम्हें इसी क्षण अपना राजनीतिक गुरु स्वीकार करता हूं—प्लीज गुरुदेव, वो तरीका बताओ जिससे चुनाव जीता जा सके क्योंकि जो चुनाव नहीं जीत सकता वह राजनीति के मैदान की फुटबाल बनकर रह जाता है, कभी किसी की ठोकर पर तो कभी किसी की।”
“वही बता रहा हूं ‘तीगले नेता’—चुनाव जीतने के लिए छोड़े जाने वाले तीरों का नाम गुण्डे-बदमाश है और गुण्डे-बदमाश उसके तरकश में रहते हैं जो उन्हें पुलिस से संरक्षण दे सके क्योंकि उनके और पुलिस के बीच लाग-डाट चलती रहती है—इसलिए हे नेता! चुनाव जीतना है तो अपने तरकश में गुण्डे-बदमाश नाम के ब्रह्मास्त्र भरकर कुरुक्षेत्र में कूद!”
“व-वे तो आप ही मेरे तरकश में भर सकते हैं।”
“समझदार है तू—जल्द ही समझ गया कि किसकी चरण वन्दना से चुनाव के भवसागर से तर सकता है और भाग्यशाली भी है, तभी तो तुझसे बात तक किए बगैर मैंने तेरे लिए काम करना शुरू कर दिया—अभी तो केवल रंगनाथन के गुर्गे तेरे तरकश में आए हैं, जब रंगनाथन को यहां से छुड़ाकर ले जाएगा तो वह भी तेरे तरकश में पड़ा होगा।”
“बस … बस इंस्पेक्टर साहब, मैं तर जाऊंगा—रंगनाथन का ही तो गिरोह था जिसने आम मतदाता को बूथ तक न पहुंचने दिया—इस बार अगर वह गिरोह मेरे साथ हुआ तो … तो … समझो कि मैं विधायक बन जाऊंगा।”
“तू तो मूर्खतापूर्ण बातें करने लगा तीगले!”
“क-क्या मतलब?” वह घिघियाया।
“जाल ऐसा बुनना चाहिए जिससे सारे तीर अपने ही तरकश में भर जाएं—सामने वाले का तरकश खाली हो—ठीक उसी तरह, जैसे पिछले चुनावों में तेरा तरकश खाली था।”
“ये तो पते की बात है गुरुजी।”
“प्रतापगढ़ में रंगनाथन के गिरोह जैसे और भी कई गिरोह हैं—उनमें से कई ऐसे भी हैं जिनकी रंगनाथन से दुश्मनी है—अगर वे गंगाशरण के तरकश में जा गिरे तो गैंगवार छिड़ जाएगी और गैंगवार का परिणाम कुछ भी निकल सकता है—गंगाशरण के पक्ष में भी और तेरे पक्ष में भी। जबकि अगर हम समझदार हैं तो ऐसा रिस्क नहीं ले सकते—हमें ऐसे बीज बोने हैं जिनसे पैदा होने वाली फसल पर हमारा कब्जा हो।”
“अगर ऐसा हो जाए तो मजा आ जाए गुरुदेव।”
“होगा तीगले—ऐसा होगा—मैं करूंगा, सारे तीर तेरे तरकश में पड़े होंगे।”
“क-कैसे?”
“ठीक वैसे जैसे रंगनाथन नाम का ब्रह्मास्त्र तेरे तरकश में गिरने वाला है—मैं एक-एक को पकड़ूंगा और तू हरेक को छुड़ा ले जाएगा—ऐसा बार-बार होगा, तब तक होता रहेगा जब तक उन्हें अहसास न हो जाए कि प्रतापगढ़ में उनकी दुकानदारी तेरा संरक्षण पाए बगैर नहीं चल सकती।”
“मैं समझ गया गुरुदेव, बिल्कुल समझ गया मैं!” खुशी से पागल हुआ जा रहा पंडित शाहबुद्दीन कहता चला गया—“इस वक्त केवल इतना ही आश्वासन दे सकता हूं कि अगर आपकी कृपा से कभी कुछ बन गया तो सारी जिन्दगी आपकी गुलामी करूंगा, हुक्का भरूंगा आपका।”
“ये था इलाके का लोकप्रिय नेता बनने का एक मोर्चा—दूसरा मोर्चा है, प्रतिद्वंदी की साख को ध्वस्त कर डालना बल्कि उसके चरित्र पर ऐसा बदनुमा धब्बा लगा देना जिससे उसके कट्टर समर्थक भी भड़क उठें, खिलाफ हो जाएं—ऐसा होने पर जनता की निगाहें स्वतः तुझ पर टिक जाएंगी।”
“वैरी गुड गुरुदेव, मगर ऐसा हो कैसे?”
“हो चुका है।”
“जी?”
“ये फोटो देख!” कहने के साथ तेजस्वी ने दराज से एक ऐसा फोटो निकालकर मेज पर डाल दिया जिसमें जन्मजात नंगा गंगाशरण जन्मजात नंगी गोमती के साथ उसके बैड पर नजर आ रहा था। फोटो को देखते ही उसके मुंह से निकला—“हे ऊपर वाले, क्या नजारा है!”
“इस नजारे वाले पोस्टरों से प्रतापगढ़ की दीवारें ढक देना तेरा काम है—अखबार वाले खुद इस फोटो को प्राप्त करने के लिए आकाश-पाताल एक कर देंगे—उसके बाद गंगाशरण हजार खण्डन भेजता रहे, गला फाड़-फाड़कर चिल्लाता रहे कि यह सब झूठ है, मगर खुर्दबीन से ढूंढने पर भी उसकी बात पर विश्वास करने वाला नहीं मिलेगा।”
फोटो की तरफ देखते पंडित शाहबुद्दीन चौधरी ने पूछा—“क्या ये सच है?”
“झूठ होता तो फोटो कहां से जा जाता?” तेजस्वी गुर्राया—“गंगाशरण को गोमती की शरण में से मैंने रंगे हाथों पकड़ा है, दोनों हवालात में बन्द हैं इस वक्त।”
“वाकई, ये साला गंगाशरण तो बड़ा छुपा रुस्तम निकला।”
मुस्कुराया तेजस्वी, बोला—“कल को प्रतापगढ़ के बच्चे- बच्चे की जुबान पर ये शब्द होंगे।”
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“यही मैं सोच रहा था।” तेजस्वी ने कहा—“एक ही आदमी के भला तीन बाप कैसे हो सकते हैं—पंडित, मुस्लिम और जाट!”
उसकी मां को साफ-साफ गाली दी गई थी मगर लेशमात्र भी विरोध नहीं दर्शाया पट्ठे ने बल्कि हो हो करके यूं हंसा जैसे तेजस्वी ने भारी मजाक किया हो—हंसने के कारण उसकी तोंद जमीन पर पड़े पानी से भरे गुब्बारे की मानिन्द हिल रही थी।
तेजस्वी ने कहा—“दुर्भाग्य की बात है, धर्मनिरपेक्ष नाम चिपकाने के बावजूद तू प्रतापगढ़ का लोकप्रिय नेता न बन सका।”
“लोगों में समझ की कमी है।”
“लोगों की बात छोड़ ‘तीगले नेता’ और मेरी बात सुन!” तेजस्वी ने एक सिगरेट सुलगाने के बाद कहा—“मैं तुझे प्रतापगढ़ का लोकप्रिय नेता बना सकता हूं।”
“अ-आप?” वह हकलाया—“क-कैसे?”
“पहले ये बता, यहां कैसे आया था?”
“क्या बताऊं—आना तो नहीं चाहता था मगर फंस गया, मेरी समझ में अभी तक यह बात नहीं आ रही कि वे लोग मेरे पास आखिर आ कैसे गए, सोचा क्या था उन्होंने?”
“किन्होंने?” तेजस्वी ने भेदभरी मुस्कान के साथ पूछा।
“रंगनाथन के गुर्गे थे वे—करीब आधा घंटा पहले मेरे घर पहुंचे—हाथ जोड़ने लगे, पैरों में पड़ गए—कहने लगे, दुनिया में मैं वह अकेला शख्स हूं जो रंगनाथन को थाने से छुड़ाकर ला सकता हूं—मैं चकित रह गया, हैरान हो उठा—उनका राजनीतिक आका गंगाशरण था। समझ नहीं पा रहा था कि उसे छोड़कर वे मेरे पास क्यों आ गए, बोला—गंगाशरण की शरण में जाओ भाई, रंगनाथन को वही छुड़ा सकता है—मेरी सुनने वाला कौन है—कहने लगे—‘नहीं, मैं झूठ न बोलूं—उन्हें पता लगा है, नए इंस्पेक्टर से मेरे बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं और वह रंगनाथन को केवल मेरे कहने से छोड़ सकता है’—मैंने बहुत समझाया, गिड़गिड़ाकर कहा—‘तुम लोगों को किसी ने बहका दिया है’—इंस्पेक्टर तेजस्वी की तो मैंने शक्ल तक नहीं देखी—मगर वे नहीं माने, मजबूर कर दिया मुझे।”
“मैंने भेजा था उन्हें।”
“अ-आपने?” आंखें उलट गईं।
“मैंने हवलदार से रंगनाथन के गुर्गों में यह बात फैला देने के लिए कहा था कि तेरे कहने से इंस्पेक्टर तेजस्वी रंगनाथन को छोड़ सकता है।”
“आपने ऐसा क्यों किया?”
“तेरी इज्जत, तेरा मान बढ़ाने के लिए—तेरा रुतबा कायम करने के लिए और तेरी नेतागिरी चमकाने के लिए।”
पंडित शाहबुद्दीन चौधरी रोमांचित हो उठा—“म-मगर आपने मुझ पर ये मेहरबानी आखिर की क्यों?”
“दिल आ गया है तुझ पर।”
“ज-जी?”
“चुनाव जीतना लोकप्रियता का प्रतीक है यानि लोकप्रिय नेता वह जो अपने हलके से चुनाव जीत जाए—चुनाव आजकल आम वोटर नहीं बल्कि गुण्डे-बदमाश जिताते हैं—वे, जो आम मतदाता को बूथ तक नहीं पहुंचने देते—भूला-भटका कोई पहुंच भी जाए तो पता लगता है कि उसकी वोट डल चुकी है—मतलब ये कि आजकल ज्यादातर लोगों के वोट गुण्डे-बदमाश डाल देते हैं, ऐसा है कि नहीं?”
“बिल्कुल ऐसा ही है इंस्पेक्टर साहब—वाह, क्या बात कही है आपने—मजा आ गया, चंद शब्दों में हमारे लोकतंत्र की कलई खोलकर रख दी—मैं भी यही कहता रहा हूं—गंगाशरण के चुनाव के खिलाफ अदालत में याचिका दाखिल कर रखी है मैंने—उसमें यही कहा है कि गंगाशरण ने गुण्डागर्दी से चुनाव जीता है—आम मतदाता को तो वोट डालने ही नहीं दिया गया—सभी बूथ उसके रायफलधारी बदमाशों ने कैप्चर कर लिए थे।”
“याचिका का कोई नतीजा निकला?”
“अभी तो बस तारीख पर तारीख लग रही हैं।”
तेजस्वी हंसा—“जबकि विधान सभा भंग भी हो चुकी है।”
“यही तो मैं कहता हूं—हमारे देश का कानून भी कोई कानून है? या तो इंसाफ मिलेगा नहीं और मिलेगा भी तो तब जब पीड़ित पक्ष को उसकी जरूरत नहीं रह जाएगी।”
“तेरे जैसे घोंचू अदालतों के चक्कर काटते रहते हैं, चुनाव नहीं जीत सकते।”
“मैं तुम्हें इसी क्षण अपना राजनीतिक गुरु स्वीकार करता हूं—प्लीज गुरुदेव, वो तरीका बताओ जिससे चुनाव जीता जा सके क्योंकि जो चुनाव नहीं जीत सकता वह राजनीति के मैदान की फुटबाल बनकर रह जाता है, कभी किसी की ठोकर पर तो कभी किसी की।”
“वही बता रहा हूं ‘तीगले नेता’—चुनाव जीतने के लिए छोड़े जाने वाले तीरों का नाम गुण्डे-बदमाश है और गुण्डे-बदमाश उसके तरकश में रहते हैं जो उन्हें पुलिस से संरक्षण दे सके क्योंकि उनके और पुलिस के बीच लाग-डाट चलती रहती है—इसलिए हे नेता! चुनाव जीतना है तो अपने तरकश में गुण्डे-बदमाश नाम के ब्रह्मास्त्र भरकर कुरुक्षेत्र में कूद!”
“व-वे तो आप ही मेरे तरकश में भर सकते हैं।”
“समझदार है तू—जल्द ही समझ गया कि किसकी चरण वन्दना से चुनाव के भवसागर से तर सकता है और भाग्यशाली भी है, तभी तो तुझसे बात तक किए बगैर मैंने तेरे लिए काम करना शुरू कर दिया—अभी तो केवल रंगनाथन के गुर्गे तेरे तरकश में आए हैं, जब रंगनाथन को यहां से छुड़ाकर ले जाएगा तो वह भी तेरे तरकश में पड़ा होगा।”
“बस … बस इंस्पेक्टर साहब, मैं तर जाऊंगा—रंगनाथन का ही तो गिरोह था जिसने आम मतदाता को बूथ तक न पहुंचने दिया—इस बार अगर वह गिरोह मेरे साथ हुआ तो … तो … समझो कि मैं विधायक बन जाऊंगा।”
“तू तो मूर्खतापूर्ण बातें करने लगा तीगले!”
“क-क्या मतलब?” वह घिघियाया।
“जाल ऐसा बुनना चाहिए जिससे सारे तीर अपने ही तरकश में भर जाएं—सामने वाले का तरकश खाली हो—ठीक उसी तरह, जैसे पिछले चुनावों में तेरा तरकश खाली था।”
“ये तो पते की बात है गुरुजी।”
“प्रतापगढ़ में रंगनाथन के गिरोह जैसे और भी कई गिरोह हैं—उनमें से कई ऐसे भी हैं जिनकी रंगनाथन से दुश्मनी है—अगर वे गंगाशरण के तरकश में जा गिरे तो गैंगवार छिड़ जाएगी और गैंगवार का परिणाम कुछ भी निकल सकता है—गंगाशरण के पक्ष में भी और तेरे पक्ष में भी। जबकि अगर हम समझदार हैं तो ऐसा रिस्क नहीं ले सकते—हमें ऐसे बीज बोने हैं जिनसे पैदा होने वाली फसल पर हमारा कब्जा हो।”
“अगर ऐसा हो जाए तो मजा आ जाए गुरुदेव।”
“होगा तीगले—ऐसा होगा—मैं करूंगा, सारे तीर तेरे तरकश में पड़े होंगे।”
“क-कैसे?”
“ठीक वैसे जैसे रंगनाथन नाम का ब्रह्मास्त्र तेरे तरकश में गिरने वाला है—मैं एक-एक को पकड़ूंगा और तू हरेक को छुड़ा ले जाएगा—ऐसा बार-बार होगा, तब तक होता रहेगा जब तक उन्हें अहसास न हो जाए कि प्रतापगढ़ में उनकी दुकानदारी तेरा संरक्षण पाए बगैर नहीं चल सकती।”
“मैं समझ गया गुरुदेव, बिल्कुल समझ गया मैं!” खुशी से पागल हुआ जा रहा पंडित शाहबुद्दीन कहता चला गया—“इस वक्त केवल इतना ही आश्वासन दे सकता हूं कि अगर आपकी कृपा से कभी कुछ बन गया तो सारी जिन्दगी आपकी गुलामी करूंगा, हुक्का भरूंगा आपका।”
“ये था इलाके का लोकप्रिय नेता बनने का एक मोर्चा—दूसरा मोर्चा है, प्रतिद्वंदी की साख को ध्वस्त कर डालना बल्कि उसके चरित्र पर ऐसा बदनुमा धब्बा लगा देना जिससे उसके कट्टर समर्थक भी भड़क उठें, खिलाफ हो जाएं—ऐसा होने पर जनता की निगाहें स्वतः तुझ पर टिक जाएंगी।”
“वैरी गुड गुरुदेव, मगर ऐसा हो कैसे?”
“हो चुका है।”
“जी?”
“ये फोटो देख!” कहने के साथ तेजस्वी ने दराज से एक ऐसा फोटो निकालकर मेज पर डाल दिया जिसमें जन्मजात नंगा गंगाशरण जन्मजात नंगी गोमती के साथ उसके बैड पर नजर आ रहा था। फोटो को देखते ही उसके मुंह से निकला—“हे ऊपर वाले, क्या नजारा है!”
“इस नजारे वाले पोस्टरों से प्रतापगढ़ की दीवारें ढक देना तेरा काम है—अखबार वाले खुद इस फोटो को प्राप्त करने के लिए आकाश-पाताल एक कर देंगे—उसके बाद गंगाशरण हजार खण्डन भेजता रहे, गला फाड़-फाड़कर चिल्लाता रहे कि यह सब झूठ है, मगर खुर्दबीन से ढूंढने पर भी उसकी बात पर विश्वास करने वाला नहीं मिलेगा।”
फोटो की तरफ देखते पंडित शाहबुद्दीन चौधरी ने पूछा—“क्या ये सच है?”
“झूठ होता तो फोटो कहां से जा जाता?” तेजस्वी गुर्राया—“गंगाशरण को गोमती की शरण में से मैंने रंगे हाथों पकड़ा है, दोनों हवालात में बन्द हैं इस वक्त।”
“वाकई, ये साला गंगाशरण तो बड़ा छुपा रुस्तम निकला।”
मुस्कुराया तेजस्वी, बोला—“कल को प्रतापगढ़ के बच्चे- बच्चे की जुबान पर ये शब्द होंगे।”
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