desiaks
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पांडुराम की आंखों में इस वक्त लोमड़ी की आंखों जैसी चपलता गर्दिश कर रही थी—चारों तरफ छाये अंधकार को बेधता हुआ वह एक संकरी गली में दाखिल हो गया—पूरी तरह सजग था वह, अपनी तरफ से अच्छी तरह जांच कर ली थी कि कोई उसे वॉच तो नहीं कर रहा है और संतुष्ट होने के बाद ही संकरी गली में कदम रखा था परंतु … काश, वह जान पाता, उसे फॉलो करने वाला उससे ज्यादा चतुर साबित हो रहा था—तभी तो वह बराबर पांडुराम का पीछा करने में भी कामयाब था और उसकी हजार सतर्कताओं के बावजूद यह यकीन दिलाने में भी कि कोई पीछा नहीं किया जा रहा है।
कई मोड़ पार करने के बाद पांडुराम एक मकान के बंद दरवाजे के नजदीक रुका—गली में दोनों तरफ निगाह डाली—दूर-दूर तक अंधकार और सन्नाटे का साम्राज्य नजर आया—हालांकि पीछा करने वाला उससे केवल पंद्रह कदम दूर, एक दीवार से चिपका खड़ा था मगर पांडुराम ने संतुष्टि-जनक ढंग से गर्दन हिलाने के बाद दरवाजे पर दस्तक दी।
दस्तक बहुत जोर से न दी गई थी मगर फिर भी, उसकी आवाज ने गली में सोए सन्नाटे की नींद में खलल डाली—उधर, दीवार से चिपके शख्स ने महसूस किया, पांडुराम ने एक खास अंदाज में दस्तक दी थी—अजीब संगीतमय दस्तक थी वह, जैसे दरवाजे पर दस्तक न दी गई हो बल्कि तबले पर थाप देकर उसे जांचा-परखा गया हो।
दीवार से चिपके खड़े शख्स के होंठों पर मुस्कान फैल गई।
पांडुराम ने पुनः उसी अंदाज में दस्तक दी।
वह शख्स सांस रोके खड़ा रहा।
तीसरी दस्तक के बाद दरवाजा खुला।
एक मोमबत्ती की क्षीण रोशनी नजर आई, पांडुराम ने खुले दरवाजे के अंदर कदम रखा।
उधर दरवाजा बंद हुआ, इधर दीवार से चिपका शख्स तेजी से मकान की तरफ लपका—दरवाजे की झिर्रियां बता रही थीं कि अंदर इस वक्त भी केवल एक मोमबत्ती का ही प्रकाश है—उसने झिर्री पर आंख रख दी मगर कहीं कोई नजर न आया।
पांडुराम झिर्री की रेंज से बाहर, दरवाजे के दाईं या बाईं तरफ था।
“किसलिए याद किया गया मुझे?” यह आवाज पांडुराम की थी।
एक अनजानी आवाज—“तेरे इंस्पेक्टर ने मेजर साहब को चैलेंज दिया है।”
“मालूम है।”
“क्या मालूम है?”
“कहा है, वह काली बस्ती में स्थित उनके अड्डे पर जाकर …।”
“मेजर साहब जानना चाहते हैं, इंस्पेक्टर को उनका पर्सनल नंबर कहां से मिला?”
“इकबाल से!”
“इ-इकबाल से?”
“हां!”
लहजे में चिंता एवं हैरानगी उभर आई—“उस तक कैसे पहुंच गया इंस्पेक्टर?”
“ऊपर वाला जाने!” पांडुराम ने कहा—“अदालत से निकलते ही पट्ठे ने जीप के ड्राइवर को असलम की कोठी पर चलने का हुक्म दिया—मैं साथ था ही, मगर न ड्राइवर को मालूम था कि वहां क्यों जा रहा है न मुझे—रास्ते में पूछने की कोशिश की—केवल यह कहकर बात खत्म कर दी ‘देखते रहो’—देखता रहने के अलावा मैं कर भी क्या सकता था—मुकद्दर का मारा इकबाल बेचारा उसे मिल भी कोठी के लॉन में ही गया—तुरंत पूछताछ शुरू कर दी उसने—जीप में डालकर थाने ले आया गया, टॉर्चर चेयर पर बैठने के पन्द्रह मिनट बाद उसने सब उगल दिया।”
“ये इंस्पेक्टर खतरनाक साबित होता जा रहा है।”
“मैं भी यही कहने वाला था।”—पांडुराम बोला—“तेजस्वी पिछले इंस्पेक्टरों जैसा नहीं है—साले का दिमाग कम्प्यूटर की तरह और जिस्म चीते की तरह काम करता है—देखो न, इकबाल उसके शक के दायरे में केवल इसलिए आ गया क्योंकि सलमा के बाद असलम की संपूर्ण दौलत का वारिस वह था।”
“और अब उसने मेजर साहब को चैलेंज दिया है।”
“इसे तो मैं क्या दुनिया का हर व्यक्ति उसका पागलपन कहेगा।”
“इस संबंध में तुझसे कुछ बात हुई उसकी?”
“नहीं!”
“तो तू अपनी तरफ से बात करने की कोशिश कर।” गुर्राहट दरवाजे के बाहर खड़े शख्स के कानों तक पहुंच रही थी—“मेजर साहब का तेरे लिए यही हुक्म है—थाने की घटना के बाद वे इंस्पेक्टर को उतना ‘हल्का’ नहीं ले रहे हैं जितना पिछले इंस्पेक्टरों को लिया जाता था—उनका ख्याल है, इंस्पेक्टर अपना चैलेंज पूरा करने की कोशिश जरूर करेगा और इसके लिए निश्चित रूप से कोई धांसू योजना बनाएगा—मेजर साहब चाहते हैं, उसकी योजना समय से पहले उन्हें मालूम होनी चाहिए।”
“अगर मुझे पता लगी तो बता दूंगा।”
“मेजर साहब का हुक्म है कि योजना हर हाल में उन्हें पता लगनी चाहिए, यह काम कैसे होगा वह तू जान—अगर कोताही हुई तो तू खतरे में फंस सकता है।”
दरवाजे के बाहर खड़े शख्स ने पांडुराम का जवाब सुनने की चेष्टा नहीं की।
बहुत आराम से और दबे पांव चहलकदमी करता हुआ वह संकरी गलियों के जाल से बाहर निकल आया—सड़क पर पहुंचकर एक सिगरेट सुलगाई उसने।
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कई मोड़ पार करने के बाद पांडुराम एक मकान के बंद दरवाजे के नजदीक रुका—गली में दोनों तरफ निगाह डाली—दूर-दूर तक अंधकार और सन्नाटे का साम्राज्य नजर आया—हालांकि पीछा करने वाला उससे केवल पंद्रह कदम दूर, एक दीवार से चिपका खड़ा था मगर पांडुराम ने संतुष्टि-जनक ढंग से गर्दन हिलाने के बाद दरवाजे पर दस्तक दी।
दस्तक बहुत जोर से न दी गई थी मगर फिर भी, उसकी आवाज ने गली में सोए सन्नाटे की नींद में खलल डाली—उधर, दीवार से चिपके शख्स ने महसूस किया, पांडुराम ने एक खास अंदाज में दस्तक दी थी—अजीब संगीतमय दस्तक थी वह, जैसे दरवाजे पर दस्तक न दी गई हो बल्कि तबले पर थाप देकर उसे जांचा-परखा गया हो।
दीवार से चिपके खड़े शख्स के होंठों पर मुस्कान फैल गई।
पांडुराम ने पुनः उसी अंदाज में दस्तक दी।
वह शख्स सांस रोके खड़ा रहा।
तीसरी दस्तक के बाद दरवाजा खुला।
एक मोमबत्ती की क्षीण रोशनी नजर आई, पांडुराम ने खुले दरवाजे के अंदर कदम रखा।
उधर दरवाजा बंद हुआ, इधर दीवार से चिपका शख्स तेजी से मकान की तरफ लपका—दरवाजे की झिर्रियां बता रही थीं कि अंदर इस वक्त भी केवल एक मोमबत्ती का ही प्रकाश है—उसने झिर्री पर आंख रख दी मगर कहीं कोई नजर न आया।
पांडुराम झिर्री की रेंज से बाहर, दरवाजे के दाईं या बाईं तरफ था।
“किसलिए याद किया गया मुझे?” यह आवाज पांडुराम की थी।
एक अनजानी आवाज—“तेरे इंस्पेक्टर ने मेजर साहब को चैलेंज दिया है।”
“मालूम है।”
“क्या मालूम है?”
“कहा है, वह काली बस्ती में स्थित उनके अड्डे पर जाकर …।”
“मेजर साहब जानना चाहते हैं, इंस्पेक्टर को उनका पर्सनल नंबर कहां से मिला?”
“इकबाल से!”
“इ-इकबाल से?”
“हां!”
लहजे में चिंता एवं हैरानगी उभर आई—“उस तक कैसे पहुंच गया इंस्पेक्टर?”
“ऊपर वाला जाने!” पांडुराम ने कहा—“अदालत से निकलते ही पट्ठे ने जीप के ड्राइवर को असलम की कोठी पर चलने का हुक्म दिया—मैं साथ था ही, मगर न ड्राइवर को मालूम था कि वहां क्यों जा रहा है न मुझे—रास्ते में पूछने की कोशिश की—केवल यह कहकर बात खत्म कर दी ‘देखते रहो’—देखता रहने के अलावा मैं कर भी क्या सकता था—मुकद्दर का मारा इकबाल बेचारा उसे मिल भी कोठी के लॉन में ही गया—तुरंत पूछताछ शुरू कर दी उसने—जीप में डालकर थाने ले आया गया, टॉर्चर चेयर पर बैठने के पन्द्रह मिनट बाद उसने सब उगल दिया।”
“ये इंस्पेक्टर खतरनाक साबित होता जा रहा है।”
“मैं भी यही कहने वाला था।”—पांडुराम बोला—“तेजस्वी पिछले इंस्पेक्टरों जैसा नहीं है—साले का दिमाग कम्प्यूटर की तरह और जिस्म चीते की तरह काम करता है—देखो न, इकबाल उसके शक के दायरे में केवल इसलिए आ गया क्योंकि सलमा के बाद असलम की संपूर्ण दौलत का वारिस वह था।”
“और अब उसने मेजर साहब को चैलेंज दिया है।”
“इसे तो मैं क्या दुनिया का हर व्यक्ति उसका पागलपन कहेगा।”
“इस संबंध में तुझसे कुछ बात हुई उसकी?”
“नहीं!”
“तो तू अपनी तरफ से बात करने की कोशिश कर।” गुर्राहट दरवाजे के बाहर खड़े शख्स के कानों तक पहुंच रही थी—“मेजर साहब का तेरे लिए यही हुक्म है—थाने की घटना के बाद वे इंस्पेक्टर को उतना ‘हल्का’ नहीं ले रहे हैं जितना पिछले इंस्पेक्टरों को लिया जाता था—उनका ख्याल है, इंस्पेक्टर अपना चैलेंज पूरा करने की कोशिश जरूर करेगा और इसके लिए निश्चित रूप से कोई धांसू योजना बनाएगा—मेजर साहब चाहते हैं, उसकी योजना समय से पहले उन्हें मालूम होनी चाहिए।”
“अगर मुझे पता लगी तो बता दूंगा।”
“मेजर साहब का हुक्म है कि योजना हर हाल में उन्हें पता लगनी चाहिए, यह काम कैसे होगा वह तू जान—अगर कोताही हुई तो तू खतरे में फंस सकता है।”
दरवाजे के बाहर खड़े शख्स ने पांडुराम का जवाब सुनने की चेष्टा नहीं की।
बहुत आराम से और दबे पांव चहलकदमी करता हुआ वह संकरी गलियों के जाल से बाहर निकल आया—सड़क पर पहुंचकर एक सिगरेट सुलगाई उसने।
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