desiaks
Administrator
- Joined
- Aug 28, 2015
- Messages
- 24,893
नंबर फाइव मुस्करा रहा था।
वह मुस्कराहट मौत की सिहरन बनकर तेजस्वी के संपूर्ण जिस्म में कौंधती चली गई।
उसका वह दिमाग जो शतरंजी चालें चलने में माहिर था इस वक्त कुंठित होकर रह गया था।
जुबान को जैसे लकवा मार गया था।
नंबर फाइव ने पुनः कहा—“चीफ को शक तो था कि तू घुटी हुई चीज है मगर जब उसे पता लगेगा पांच लाख के लालच में तूने फोन पर कमिश्नर से क्या-क्या डायलॉग बोले तो वह भी दंग रह जाएगा—और अब यह उगलवाना उसका काम है कि तूने काली बस्ती में जाकर थारूपल्ला की खाल उधेड़ने जैसा करिश्माई करतब कैसे कर दिखाया …?”
उपरोक्त शब्द सुनते ही तेजस्वी के जहन में बिजली-सी कौंधी।
बड़ी तेजी से एक विचार उठा—यह कि नंबर फाइव की ड्यूटी इस वक्त उसे अपने चीफ के सामने पेश करना है।
अर्थात … उसकी कोशिश मुझे जीवित रखना होगी।
और!
उसकी इस मजबूरी का लाभ उठाया जा सकता है।
तेजस्वी का शतरंजी दिमाग सक्रिय हो उठा था—अचानक उसने पल भर के लिए नंबर फाइव के पीछे मौजूद अपने ऑफिस के दरवाजे को देखा और हल्का-सा इशारा किया—ऐसी कोशिश के साथ जैसे इस इशारे पर नंबर फाइव की नजर न पड़ने देना चाहता हो—साथ ही पुनः अपनी नजरें नंबर फाइव के चेहरे पर गड़ाकर थोड़े उत्साह भरे स्वर में बोला—“तुम मुझे गलत समझ रहे हो दोस्त।”
वही हुआ जो तेजस्वी ने चाहा था।
उसने चाहा था, नंबर फाइव को अपने पीछे किसी की मौजूदगी का वहम हो जाए और यह सोचे कि मैं अनावश्यक रूप से उसे बातों में लगाना चाहता हूं—उस वक्त नंबर फाइव कनखियों से अपने पीछे देखने की कोशिश कर रहा था जब तेजस्वी ने पुनः एक व्यर्थ की बात कही—“मैं वैसा नहीं हूं जैसा तुम सोच रहे हो।”
नंबर फाइव को पूरा यकीन हो गया कि पीछे कोई है तथा तेजस्वी उसे व्यर्थ की बातों में उलझाने की चेष्टा कर रहा है अतः तेजी से पैंतरा बदलकर खुद को ऐसी पोजीशन में लाना चाहा जिससे एक साथ तेजस्वी और दरवाजे पर मौजूद शख्स को कवर कर सके—जबकि इसी क्षण का लाभ उठाकर तेजस्वी न केवल फर्श पर बैठ गया बल्कि होलेस्टर से रिवॉल्वर भी निकाल लिया।
‘धांय!’ गड़बड़ी की आशंका होते ही नंबर फाइव ने फायर झोंक दिया।
गोली कुर्सी की पुश्त में धंसी।
तेजस्वी इस वक्त मेज के नीचे था—बाएं हाथ के अंगूठे से वह बटन दबाया जिसके दबते ही थाने के प्रांगण में घंटी की आवाज गूंज उठी—हलचल तो रिवॉल्वर से निकली गोली ही मचा चुकी थी, घंटी की आवाज ने रही-सही कसर पूरी कर दी।
“तुम बच नहीं सकते इंस्पेक्टर!” बौखलाए हुए नंबर फाइव ने मेज में जोर से ठोकर मारी—“इसकी बैक से निकलकर खुद को मेरे हवाले कर दो, वरना यहां से तुम्हारी लाश उठेगी।”
तेजस्वी मेज के पायों को जकड़े बैठा रहा।
तभी भागते कदमों की आहट ऑफिस के गेट पर आकर रुकी, एक साथ कई स्वर उभरे—“क्या हुआ?”
तेजस्वी पहचान गया, आवाजें पुलिसियों की थीं।
नंबर फाइव की गुर्राहट उभरी—“एक भी हिला तो सबको गोली मार दूंगा—जो जहां है वहीं खड़ा रहे, मैं स्पेशल कमांडो दस्ते का एजेंट हूं और तुम्हारे इंस्पेक्टर को रिश्वत लेने के जुर्म में पकड़ चुका हूं।”
तेजस्वी समझ चुका था, फायर और घंटी की आवाज सुनकर पुलिसिए निहत्थे ही उसके ऑफिस की तरफ दौड़ पड़े होंगे और दरवाजे पर पहुंचते ही खुद को नंबर फाइव की रिवॉल्वर के निशाने पर पाकर हकबकाये खड़े होंगे।
“इंस्पेक्टर साब कहां हैं?” यह सवाल पांडूराम ने पूछा था।
तेजस्वी ने सोचा, अब नंबर फाइव उसके सवाल का जवाब देगा और उसके लिए ऐसा ही कोई मौका ‘स्वर्ण अवसर’ था, अतः उधर नंबर फाइव ने कहना चाहा—“वह मेज की बैक …।”
“धांय!”
तेजस्वी के रिवॉल्वर ने शोला उगला।
गोली नंबर फाइव की कनपटी में जा धंसी।
उसके मुंह से चीख निकली, रिवॉल्वर फर्श पर गिरा।
तेजस्वी द्वारा उसे किसी किस्म का अवसर दिए जाने का सवाल ही न था—पहली गोली की मार से उस वक्त नंबर फाइव शराबी की मानिन्द लड़खड़ा रहा था जब तेजस्वी ने खुद को पूरी तरह मेज की बैक से निकालकर निरंतर दो बार ट्रेगर दबाया—एक गोली पेट में धंसी, दूसरी सीने में।
कटे वृक्ष-सा गिरा वह!
और, अंतिम हिचकी के साथ ठण्डा पड़ गया।
तेजस्वी के हाथ में दबी रिवॉल्वर की नाल से धुआं निकल रहा था।
दरवाजे पर दो पुलिसिए और पांडुराम खड़े थे, इधर तेजस्वी—सभी हकबकाए थे और बीच में पड़ी थी नंबर फाइव की लाश—काफी देर तक वहां ब्लेड की-सी पैनी धार वाला सन्नाटा छाया रहा।
फिर!
एकाएक घनघना उठने वाली फोन की घंटी ने सबको उछाल दिया।
करीब आधे मिनट तक तो तेजस्वी सहित किसी को समझ में ही न आया कि किया क्या जाए—फोन की घंटी निरंतर घनघनाए जा रही थी और फिर, तेजस्वी फोन की तरफ इस तरह लपका जैसे अभी-अभी चेतना लौटी हो—रिसीवर उठाते ही बोला—“थाना प्रतापगढ़!”
“हम बोल रहे हैं तेजस्वी!” कमिश्नर की आवाज सुनते ही उसके रोंगटे खड़े हो गए।
बुरी तरह बौखला उठा वह—“य …यस सर!”
“तुम ठीक तो हो?” सतर्क स्वर में पूछा गया।
पसीने-पसीने हुआ तेजस्वी बोला—“ज-जी हां, ठीक हूं—क्यों?”
“घबराए से लग रहे हो?”
“न-नहीं सर!” हकलाहट को काबू में रखने की भरसक चेष्टा के साथ कहा उसने—“म-मैं बिल्कुल ठीक हूं—हां, थोड़ा शर्मिंदा जरूर हूं—आप बार-बार फोन कर रहे हैं लेकिन क्या बताऊं सर, लुक्का साला हाथ ही नहीं …।”
“हमारा ख्याल है वह खुद थाने पहुंचेगा।”
“ज-जी?” तेजस्वी के हलक से चीख निकल गई।
“और तुमसे कहेगा—मैं हाजिर हूं, योगेश की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार कर लो मुझे।”
बौखला गया तेजस्वी—“म-मैं समझा नहीं सर!”
“समझोगे क्या खाक?” शांडियाल गुर्रा उठे—“हमने जितनी बार फोन किया, तुम्हें थाने में पाया—जाहिर है उसे तलाश करने तुम अभी तक नहीं निकले—ऐसे हालात में इसके अलावा क्या समझा जा सकता है कि तुम्हें उसके थाने में आकर खुद गिरफ्तारी देने की उम्मीद है?”
“नहीं सर, ऐसी बात नहीं है—एक टुकड़ी सब-इंस्पेक्टर के नेतृत्व में और दूसरी हवलदार पांडुराम के नेतृत्व में हर उस ठिकाने की खाक छानती फिर रही है जहां लुक्का मिल सकता है—मगर दुर्भाग्य से अभी तक उनमें से किसी को सफलता नहीं मिल पाई और मैं … मैं निकलने ही वाला था कि आपका फोन आ गया।”
“फिलहाल वहीं रहो।”
“क-क्यों सर?”
“हम आ रहे हैं!” इन शब्दों के साथ उधर से भले ही सामान्य अंदाज में रिसीवर रखा गया हो मगर तेजस्वी को ‘धमाके’ का स्वर सुनाई दिया—वह ‘धमाका’ रिसीवर के रखे जाने के कारण कम—शांडियाल के अंतिम शब्दों के कारण ज्यादा धमाकेदार था—कभी न घबराने वाले तेजस्वी को जब पांडुराम ने जूड़ी के मरीज की मानिन्द कांपते देखा तो बोला—“क्या हुआ सर?”
तेजस्वी की चेतना लौटी—रिसीवर को क्रेडिल पर फेंकने के साथ चीखा—“कमिश्नर पहुंचने वाला है पांडुराम—उसे यहां हुई घटना के बारे में पता नहीं लगना चाहिए—जल्दी कर, लाश यहां से हटा।”
“ल-लेकिन सर, ये है कौन?”
“डिटेल बाद में बताऊंगा—फिलहाल इतना समझ ले, अगर ये जिंदा रह जाता तो मुझे अकेले को नहीं बल्कि सारे थाने को, थाने पर तैनात चिड़िया तक को फांसी पर लटकवा देता—मदद कर मेरी, इसे खींचकर हवालात में डलवा—इसकी लाश तक की मौजूदगी हमारे लिए मौत का फंदा है।” कहने के साथ तेजस्वी ने झपटकर दोनों हाथ नंबर फाइव की लाश की बगलों में डाले और उसे हवालात की तरफ खींचने का प्रयास करने लगा—उधर, पांडुराम ने आगे बढ़कर लाश के पैर पकड़े।
तीनों जख्मों से खून भल्ल-भल्ल करके बह रहा था।
एक सिपाही ने कहा—“सारा ऑफिस खून में सन गया है साब, लाश हटा लें तब भी—यहां की हालत कमिश्नर साहब को सारी कहानी सुना …।”
“बकवास बंद कर भूतनी के, खून साफ कर।” तेजस्वी दहाड़ा—“चलो, दोनों लगो।”
दोनों बौखला गए, समझ नहीं पा रहे थे खून कैसे साफ होगा?
खून उगलती लाश को हवालात की तरफ ले जाते पांडुराम ने पूछा—“क्या सचमुच कमिश्नर साहब आने वाले हैं साब?”
“हां, वो उल्लू का पट्ठा अपने भतीजे के कातिल के लिए मरा जा रहा है।”
“वह यही तो है साब।”
“कौन?”
“कमिश्नर साहब के भतीजे का कातिल लुक्का।”
“तूने कैसे पहचाना?”
“मैंने लुक्का को थाने में दाखिल होता देखने के बावजूद यह सोचकर आंखें मूंद ली थीं कि शायद वह आपसे सौदेबाजी करने जा रहा है और मेज पर लम्बे बालों वाली विग तथा लुक्का के चेहरे का मास्क भी रखा है।”
“सोचा मैंने भी यही था—बात भी इस हरामी के पिल्ले ने सौदेबाजी की ही की, मेज पर पड़े दो लाख तूने देख लिए होंगे—मेरी ही मति मारी गई थी जो चक्कर में आ गया—पांच-पांच सौ के नोटों की चार गड्डियां देखकर मुझे सोचना चाहिए था, लुक्का जैसे टुच्चे बदमाश पर वे कैसे हो सकती हैं मगर लालच साला बुद्धि को काम कहां करने देता है—इधर मैंने सौदा कुबूल किया उधर हरामजादे ने विग और फेसमास्क उतारकर कहा ‘मैं स्पेशल कमांडो दस्ते का एजेंट नंबर फाइव हूं और रिश्वत लेने के जुर्म में तुम्हें गिरफ्तार करता हूं’, मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई—तू ही सोच पांडुराम, इसे लाश में तब्दील कर देने के अलावा रास्ता क्या था?” कहने के साथ उसने लाश हवालात में पटक दी।
नंबर फाइव की टांगें छोड़कर सीधा खड़ा होता हुआ पांडुराम बोला—“लेकिन साब, अगर कमिश्नर साब आ रहे हैं तो यहां हुई वारदात उनसे छुपाई नहीं जा सकेगी।”
“आ तो वो हरामी का पिल्ला रहा ही है।” इन शब्दों के साथ तेजस्वी हवालात से पुनः अपने ऑफिस की तरफ लपका—“उसके आने से पहले यहां इतनी सफाई करनी होगी कि …।”
“नहीं हो सकेगी साब!” उसके साथ दौड़ते पांडुराम ने कहा—“जरा देखिए तो सही, ऑफिस से लेकर हवालात तक सारा फर्श खून से सना पड़ा है, उन्हें पुलिस ऑफिस से यहां पहुंचने में पंद्रह मिनट से ज्यादा न लगेंगे।”
“तो क्या करें?”
पांडुराम ने राय दी—“उन्हें यहां आने से रोकने का प्रयास।”
तेजस्वी को बात जंची बल्कि आश्चर्य हुआ कि यह छोटी-सी बात उसके दिमाग में क्यों नहीं आई—दोनों पुलिसिए दो कपड़े लिए फर्श पर फैले खून को साफ करने का असफल प्रयास कर रहे थे, तेजस्वी ने कहा—“जल्दी करो हरामजादो—और सफाई से करना, खून का एक कतरा भी कहीं नजर आ गया तो खाल में भूसा भर दूंगा।”
सिपाही जुटे पड़े थे परंतु खून ऐसी चीज नहीं होती जिसके प्रत्येक धब्बे को आनन-फानन में मिटाया जा सके—तेजस्वी ने आगे बढ़कर कमिश्नर का नंबर डॉयल किया, अपनी अंगुलियां उसे बुरी तरह कांपती नजर आईं—फिर भी, रिंग चली गई—दूसरी तरफ से रिसीवर उठाया जाते ही उसने कहा—“इंस्पेक्टर तेजस्वी बोल रहा हूं, कमिश्नर साहब से बात कराओ—जल्दी!”
“वे आपके थाने के लिए निकल चुके हैं।”
“क-क्या?” हलक से स्वतः चीख उबल पड़ी—“कब?”
“मुश्किल से दो मिनट हुए हैं।”
तेजस्वी ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया, सम्पूर्ण जिस्म के मसाम रह-रहकर पसीना उगल रहे थे और यही वक्त था जब पांडुराम ने सवाल किया—“क्या हुआ साब?”
“वो हरामी का पिल्ला निकल चुका है।”
पांडुराम को अपने हाथ-पैर ठण्डे पड़ते से लगे, बोला—“अब क्या होगा साब?”
“उसे रोकना होगा पांडुराम—जैसे भी हो उसे रोकना होगा, अगर वह यहां पहुंच गया और ऑफिस की हालत देख ली तो … तो हमारे पास उसे ठिकाने लगाने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाएगा।”
खून साफ करते पुलिसियों के हाथ रुक गए, तेजस्वी के शब्दों ने उनके छक्के छुड़ा दिए थे।
बुरी तरह चकरा चुके पांडुराम के मुंह से निकला—“क-क्या बात कर रहे हैं साब, उन्हें ठिकाने लगाकर भला हम कैसे बच सकते हैं—वायरलैस के जरिए यहां के लिए उनकी रवानगी की जानकारी पूरे विभाग को होगी और यहां पहुंचने के बाद अगर वो हमेशा के लिए गायब हो गए तो …।”
“व-वायरलेस!” तेजस्वी उछल पड़ा—“वायरलेस ही अब एकमात्र ऐसा हथकण्डा है जिसके जरिये उस भूतनी वाले को यहां पहुंचने से रोका जा सकता है।”
“कैसे साब?”
“गुड!” अचानक तेजस्वी चुटकी बजा उठा, अंदाज ऐसा था जैसे हल सोच लिया हो, बोला—“वायरलैस जीप में है और जीप प्रांगण में खड़ी है—मैं उस पर कमिश्नर के लिए मैसेज प्रसारित करता हूं कि मुझे अभी-अभी लुक्का के रेलवे-स्टेशन पर होने और प्रतापगढ़ से भागने की कोशिश करने की सूचना मिली है—अतः मैं स्टेशन की तरफ बढ़ रहा हूं, वे भी वहीं पहुंचें।”
“ओ.के. सर, यही ठीक रहेगा।”
“तू एक सिपाही के साथ यहां रह—ऑफिस और हवालात की सफाई करने की चेष्टा कर, दूसरे सिपाही को मैं साथ लिए जाता हूं—कमिश्नर को यहां नहीं पहुंचने दूंगा ये मेरी गारंटी रही।”
घबराए हुए पांडुराम ने कहा—“कोई और भी तो आ सकता है साब!”
“मैं ऑफिस का दरवाजा बंद करके बाहर ताला लटका देता हूं।”
“क्या ये अजीब स्थिति नहीं होगी—सारे थाने में केवल हम दो और वो भी ताले में बंद—उसके अलावा सारा थाना खाली … कोई पब्लिक का आदमी आ सकता है, लुक्का की तलाश में गए हमारे साथी लौट सकते हैं।”
“उफ्फ … तू तो नई-नई समस्याएं खड़ी करके टाइम बरबाद कर रहा है पांडुराम।” उत्तेजना के कारण तेजस्वी झुंझला उठा—“तो ऐसा करते हैं—एक सिपाही मेरे साथ जाएगा, दूसरा थाने के मुख्य द्वार पर पहरा देगा—तू यहां ताले में बंद रहकर सफाई करने की कोशिश कर।”
“अ-अकेला?” पांडुराम के होश फाख्ता हो गए।
“क्यों … क्या नंबर फाइव की लाश हवालात से बाहर आकर तेरा गला दबा देगी?”
“मैं अकेला यहां बंद रहकर कर ही क्या सकूंगा साब—मेरे ख्याल से इस वक्त हमें यहां की सफाई के झंझट में न पड़कर इस कोशिश में लगना चाहिए कि कोई भी शख्स किसी कीमत पर आपके ऑफिस में न पहुंच सके—एक बार ये खतरा टल जाए, उसके बाद आराम से सफाई होगी—थाना हमारा है, हम यहां के मालिक हैं—कौन रोकेगा हमें?”
“ये भी ठीक है …।”
वह मुस्कराहट मौत की सिहरन बनकर तेजस्वी के संपूर्ण जिस्म में कौंधती चली गई।
उसका वह दिमाग जो शतरंजी चालें चलने में माहिर था इस वक्त कुंठित होकर रह गया था।
जुबान को जैसे लकवा मार गया था।
नंबर फाइव ने पुनः कहा—“चीफ को शक तो था कि तू घुटी हुई चीज है मगर जब उसे पता लगेगा पांच लाख के लालच में तूने फोन पर कमिश्नर से क्या-क्या डायलॉग बोले तो वह भी दंग रह जाएगा—और अब यह उगलवाना उसका काम है कि तूने काली बस्ती में जाकर थारूपल्ला की खाल उधेड़ने जैसा करिश्माई करतब कैसे कर दिखाया …?”
उपरोक्त शब्द सुनते ही तेजस्वी के जहन में बिजली-सी कौंधी।
बड़ी तेजी से एक विचार उठा—यह कि नंबर फाइव की ड्यूटी इस वक्त उसे अपने चीफ के सामने पेश करना है।
अर्थात … उसकी कोशिश मुझे जीवित रखना होगी।
और!
उसकी इस मजबूरी का लाभ उठाया जा सकता है।
तेजस्वी का शतरंजी दिमाग सक्रिय हो उठा था—अचानक उसने पल भर के लिए नंबर फाइव के पीछे मौजूद अपने ऑफिस के दरवाजे को देखा और हल्का-सा इशारा किया—ऐसी कोशिश के साथ जैसे इस इशारे पर नंबर फाइव की नजर न पड़ने देना चाहता हो—साथ ही पुनः अपनी नजरें नंबर फाइव के चेहरे पर गड़ाकर थोड़े उत्साह भरे स्वर में बोला—“तुम मुझे गलत समझ रहे हो दोस्त।”
वही हुआ जो तेजस्वी ने चाहा था।
उसने चाहा था, नंबर फाइव को अपने पीछे किसी की मौजूदगी का वहम हो जाए और यह सोचे कि मैं अनावश्यक रूप से उसे बातों में लगाना चाहता हूं—उस वक्त नंबर फाइव कनखियों से अपने पीछे देखने की कोशिश कर रहा था जब तेजस्वी ने पुनः एक व्यर्थ की बात कही—“मैं वैसा नहीं हूं जैसा तुम सोच रहे हो।”
नंबर फाइव को पूरा यकीन हो गया कि पीछे कोई है तथा तेजस्वी उसे व्यर्थ की बातों में उलझाने की चेष्टा कर रहा है अतः तेजी से पैंतरा बदलकर खुद को ऐसी पोजीशन में लाना चाहा जिससे एक साथ तेजस्वी और दरवाजे पर मौजूद शख्स को कवर कर सके—जबकि इसी क्षण का लाभ उठाकर तेजस्वी न केवल फर्श पर बैठ गया बल्कि होलेस्टर से रिवॉल्वर भी निकाल लिया।
‘धांय!’ गड़बड़ी की आशंका होते ही नंबर फाइव ने फायर झोंक दिया।
गोली कुर्सी की पुश्त में धंसी।
तेजस्वी इस वक्त मेज के नीचे था—बाएं हाथ के अंगूठे से वह बटन दबाया जिसके दबते ही थाने के प्रांगण में घंटी की आवाज गूंज उठी—हलचल तो रिवॉल्वर से निकली गोली ही मचा चुकी थी, घंटी की आवाज ने रही-सही कसर पूरी कर दी।
“तुम बच नहीं सकते इंस्पेक्टर!” बौखलाए हुए नंबर फाइव ने मेज में जोर से ठोकर मारी—“इसकी बैक से निकलकर खुद को मेरे हवाले कर दो, वरना यहां से तुम्हारी लाश उठेगी।”
तेजस्वी मेज के पायों को जकड़े बैठा रहा।
तभी भागते कदमों की आहट ऑफिस के गेट पर आकर रुकी, एक साथ कई स्वर उभरे—“क्या हुआ?”
तेजस्वी पहचान गया, आवाजें पुलिसियों की थीं।
नंबर फाइव की गुर्राहट उभरी—“एक भी हिला तो सबको गोली मार दूंगा—जो जहां है वहीं खड़ा रहे, मैं स्पेशल कमांडो दस्ते का एजेंट हूं और तुम्हारे इंस्पेक्टर को रिश्वत लेने के जुर्म में पकड़ चुका हूं।”
तेजस्वी समझ चुका था, फायर और घंटी की आवाज सुनकर पुलिसिए निहत्थे ही उसके ऑफिस की तरफ दौड़ पड़े होंगे और दरवाजे पर पहुंचते ही खुद को नंबर फाइव की रिवॉल्वर के निशाने पर पाकर हकबकाये खड़े होंगे।
“इंस्पेक्टर साब कहां हैं?” यह सवाल पांडूराम ने पूछा था।
तेजस्वी ने सोचा, अब नंबर फाइव उसके सवाल का जवाब देगा और उसके लिए ऐसा ही कोई मौका ‘स्वर्ण अवसर’ था, अतः उधर नंबर फाइव ने कहना चाहा—“वह मेज की बैक …।”
“धांय!”
तेजस्वी के रिवॉल्वर ने शोला उगला।
गोली नंबर फाइव की कनपटी में जा धंसी।
उसके मुंह से चीख निकली, रिवॉल्वर फर्श पर गिरा।
तेजस्वी द्वारा उसे किसी किस्म का अवसर दिए जाने का सवाल ही न था—पहली गोली की मार से उस वक्त नंबर फाइव शराबी की मानिन्द लड़खड़ा रहा था जब तेजस्वी ने खुद को पूरी तरह मेज की बैक से निकालकर निरंतर दो बार ट्रेगर दबाया—एक गोली पेट में धंसी, दूसरी सीने में।
कटे वृक्ष-सा गिरा वह!
और, अंतिम हिचकी के साथ ठण्डा पड़ गया।
तेजस्वी के हाथ में दबी रिवॉल्वर की नाल से धुआं निकल रहा था।
दरवाजे पर दो पुलिसिए और पांडुराम खड़े थे, इधर तेजस्वी—सभी हकबकाए थे और बीच में पड़ी थी नंबर फाइव की लाश—काफी देर तक वहां ब्लेड की-सी पैनी धार वाला सन्नाटा छाया रहा।
फिर!
एकाएक घनघना उठने वाली फोन की घंटी ने सबको उछाल दिया।
करीब आधे मिनट तक तो तेजस्वी सहित किसी को समझ में ही न आया कि किया क्या जाए—फोन की घंटी निरंतर घनघनाए जा रही थी और फिर, तेजस्वी फोन की तरफ इस तरह लपका जैसे अभी-अभी चेतना लौटी हो—रिसीवर उठाते ही बोला—“थाना प्रतापगढ़!”
“हम बोल रहे हैं तेजस्वी!” कमिश्नर की आवाज सुनते ही उसके रोंगटे खड़े हो गए।
बुरी तरह बौखला उठा वह—“य …यस सर!”
“तुम ठीक तो हो?” सतर्क स्वर में पूछा गया।
पसीने-पसीने हुआ तेजस्वी बोला—“ज-जी हां, ठीक हूं—क्यों?”
“घबराए से लग रहे हो?”
“न-नहीं सर!” हकलाहट को काबू में रखने की भरसक चेष्टा के साथ कहा उसने—“म-मैं बिल्कुल ठीक हूं—हां, थोड़ा शर्मिंदा जरूर हूं—आप बार-बार फोन कर रहे हैं लेकिन क्या बताऊं सर, लुक्का साला हाथ ही नहीं …।”
“हमारा ख्याल है वह खुद थाने पहुंचेगा।”
“ज-जी?” तेजस्वी के हलक से चीख निकल गई।
“और तुमसे कहेगा—मैं हाजिर हूं, योगेश की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार कर लो मुझे।”
बौखला गया तेजस्वी—“म-मैं समझा नहीं सर!”
“समझोगे क्या खाक?” शांडियाल गुर्रा उठे—“हमने जितनी बार फोन किया, तुम्हें थाने में पाया—जाहिर है उसे तलाश करने तुम अभी तक नहीं निकले—ऐसे हालात में इसके अलावा क्या समझा जा सकता है कि तुम्हें उसके थाने में आकर खुद गिरफ्तारी देने की उम्मीद है?”
“नहीं सर, ऐसी बात नहीं है—एक टुकड़ी सब-इंस्पेक्टर के नेतृत्व में और दूसरी हवलदार पांडुराम के नेतृत्व में हर उस ठिकाने की खाक छानती फिर रही है जहां लुक्का मिल सकता है—मगर दुर्भाग्य से अभी तक उनमें से किसी को सफलता नहीं मिल पाई और मैं … मैं निकलने ही वाला था कि आपका फोन आ गया।”
“फिलहाल वहीं रहो।”
“क-क्यों सर?”
“हम आ रहे हैं!” इन शब्दों के साथ उधर से भले ही सामान्य अंदाज में रिसीवर रखा गया हो मगर तेजस्वी को ‘धमाके’ का स्वर सुनाई दिया—वह ‘धमाका’ रिसीवर के रखे जाने के कारण कम—शांडियाल के अंतिम शब्दों के कारण ज्यादा धमाकेदार था—कभी न घबराने वाले तेजस्वी को जब पांडुराम ने जूड़ी के मरीज की मानिन्द कांपते देखा तो बोला—“क्या हुआ सर?”
तेजस्वी की चेतना लौटी—रिसीवर को क्रेडिल पर फेंकने के साथ चीखा—“कमिश्नर पहुंचने वाला है पांडुराम—उसे यहां हुई घटना के बारे में पता नहीं लगना चाहिए—जल्दी कर, लाश यहां से हटा।”
“ल-लेकिन सर, ये है कौन?”
“डिटेल बाद में बताऊंगा—फिलहाल इतना समझ ले, अगर ये जिंदा रह जाता तो मुझे अकेले को नहीं बल्कि सारे थाने को, थाने पर तैनात चिड़िया तक को फांसी पर लटकवा देता—मदद कर मेरी, इसे खींचकर हवालात में डलवा—इसकी लाश तक की मौजूदगी हमारे लिए मौत का फंदा है।” कहने के साथ तेजस्वी ने झपटकर दोनों हाथ नंबर फाइव की लाश की बगलों में डाले और उसे हवालात की तरफ खींचने का प्रयास करने लगा—उधर, पांडुराम ने आगे बढ़कर लाश के पैर पकड़े।
तीनों जख्मों से खून भल्ल-भल्ल करके बह रहा था।
एक सिपाही ने कहा—“सारा ऑफिस खून में सन गया है साब, लाश हटा लें तब भी—यहां की हालत कमिश्नर साहब को सारी कहानी सुना …।”
“बकवास बंद कर भूतनी के, खून साफ कर।” तेजस्वी दहाड़ा—“चलो, दोनों लगो।”
दोनों बौखला गए, समझ नहीं पा रहे थे खून कैसे साफ होगा?
खून उगलती लाश को हवालात की तरफ ले जाते पांडुराम ने पूछा—“क्या सचमुच कमिश्नर साहब आने वाले हैं साब?”
“हां, वो उल्लू का पट्ठा अपने भतीजे के कातिल के लिए मरा जा रहा है।”
“वह यही तो है साब।”
“कौन?”
“कमिश्नर साहब के भतीजे का कातिल लुक्का।”
“तूने कैसे पहचाना?”
“मैंने लुक्का को थाने में दाखिल होता देखने के बावजूद यह सोचकर आंखें मूंद ली थीं कि शायद वह आपसे सौदेबाजी करने जा रहा है और मेज पर लम्बे बालों वाली विग तथा लुक्का के चेहरे का मास्क भी रखा है।”
“सोचा मैंने भी यही था—बात भी इस हरामी के पिल्ले ने सौदेबाजी की ही की, मेज पर पड़े दो लाख तूने देख लिए होंगे—मेरी ही मति मारी गई थी जो चक्कर में आ गया—पांच-पांच सौ के नोटों की चार गड्डियां देखकर मुझे सोचना चाहिए था, लुक्का जैसे टुच्चे बदमाश पर वे कैसे हो सकती हैं मगर लालच साला बुद्धि को काम कहां करने देता है—इधर मैंने सौदा कुबूल किया उधर हरामजादे ने विग और फेसमास्क उतारकर कहा ‘मैं स्पेशल कमांडो दस्ते का एजेंट नंबर फाइव हूं और रिश्वत लेने के जुर्म में तुम्हें गिरफ्तार करता हूं’, मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई—तू ही सोच पांडुराम, इसे लाश में तब्दील कर देने के अलावा रास्ता क्या था?” कहने के साथ उसने लाश हवालात में पटक दी।
नंबर फाइव की टांगें छोड़कर सीधा खड़ा होता हुआ पांडुराम बोला—“लेकिन साब, अगर कमिश्नर साब आ रहे हैं तो यहां हुई वारदात उनसे छुपाई नहीं जा सकेगी।”
“आ तो वो हरामी का पिल्ला रहा ही है।” इन शब्दों के साथ तेजस्वी हवालात से पुनः अपने ऑफिस की तरफ लपका—“उसके आने से पहले यहां इतनी सफाई करनी होगी कि …।”
“नहीं हो सकेगी साब!” उसके साथ दौड़ते पांडुराम ने कहा—“जरा देखिए तो सही, ऑफिस से लेकर हवालात तक सारा फर्श खून से सना पड़ा है, उन्हें पुलिस ऑफिस से यहां पहुंचने में पंद्रह मिनट से ज्यादा न लगेंगे।”
“तो क्या करें?”
पांडुराम ने राय दी—“उन्हें यहां आने से रोकने का प्रयास।”
तेजस्वी को बात जंची बल्कि आश्चर्य हुआ कि यह छोटी-सी बात उसके दिमाग में क्यों नहीं आई—दोनों पुलिसिए दो कपड़े लिए फर्श पर फैले खून को साफ करने का असफल प्रयास कर रहे थे, तेजस्वी ने कहा—“जल्दी करो हरामजादो—और सफाई से करना, खून का एक कतरा भी कहीं नजर आ गया तो खाल में भूसा भर दूंगा।”
सिपाही जुटे पड़े थे परंतु खून ऐसी चीज नहीं होती जिसके प्रत्येक धब्बे को आनन-फानन में मिटाया जा सके—तेजस्वी ने आगे बढ़कर कमिश्नर का नंबर डॉयल किया, अपनी अंगुलियां उसे बुरी तरह कांपती नजर आईं—फिर भी, रिंग चली गई—दूसरी तरफ से रिसीवर उठाया जाते ही उसने कहा—“इंस्पेक्टर तेजस्वी बोल रहा हूं, कमिश्नर साहब से बात कराओ—जल्दी!”
“वे आपके थाने के लिए निकल चुके हैं।”
“क-क्या?” हलक से स्वतः चीख उबल पड़ी—“कब?”
“मुश्किल से दो मिनट हुए हैं।”
तेजस्वी ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया, सम्पूर्ण जिस्म के मसाम रह-रहकर पसीना उगल रहे थे और यही वक्त था जब पांडुराम ने सवाल किया—“क्या हुआ साब?”
“वो हरामी का पिल्ला निकल चुका है।”
पांडुराम को अपने हाथ-पैर ठण्डे पड़ते से लगे, बोला—“अब क्या होगा साब?”
“उसे रोकना होगा पांडुराम—जैसे भी हो उसे रोकना होगा, अगर वह यहां पहुंच गया और ऑफिस की हालत देख ली तो … तो हमारे पास उसे ठिकाने लगाने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाएगा।”
खून साफ करते पुलिसियों के हाथ रुक गए, तेजस्वी के शब्दों ने उनके छक्के छुड़ा दिए थे।
बुरी तरह चकरा चुके पांडुराम के मुंह से निकला—“क-क्या बात कर रहे हैं साब, उन्हें ठिकाने लगाकर भला हम कैसे बच सकते हैं—वायरलैस के जरिए यहां के लिए उनकी रवानगी की जानकारी पूरे विभाग को होगी और यहां पहुंचने के बाद अगर वो हमेशा के लिए गायब हो गए तो …।”
“व-वायरलेस!” तेजस्वी उछल पड़ा—“वायरलेस ही अब एकमात्र ऐसा हथकण्डा है जिसके जरिये उस भूतनी वाले को यहां पहुंचने से रोका जा सकता है।”
“कैसे साब?”
“गुड!” अचानक तेजस्वी चुटकी बजा उठा, अंदाज ऐसा था जैसे हल सोच लिया हो, बोला—“वायरलैस जीप में है और जीप प्रांगण में खड़ी है—मैं उस पर कमिश्नर के लिए मैसेज प्रसारित करता हूं कि मुझे अभी-अभी लुक्का के रेलवे-स्टेशन पर होने और प्रतापगढ़ से भागने की कोशिश करने की सूचना मिली है—अतः मैं स्टेशन की तरफ बढ़ रहा हूं, वे भी वहीं पहुंचें।”
“ओ.के. सर, यही ठीक रहेगा।”
“तू एक सिपाही के साथ यहां रह—ऑफिस और हवालात की सफाई करने की चेष्टा कर, दूसरे सिपाही को मैं साथ लिए जाता हूं—कमिश्नर को यहां नहीं पहुंचने दूंगा ये मेरी गारंटी रही।”
घबराए हुए पांडुराम ने कहा—“कोई और भी तो आ सकता है साब!”
“मैं ऑफिस का दरवाजा बंद करके बाहर ताला लटका देता हूं।”
“क्या ये अजीब स्थिति नहीं होगी—सारे थाने में केवल हम दो और वो भी ताले में बंद—उसके अलावा सारा थाना खाली … कोई पब्लिक का आदमी आ सकता है, लुक्का की तलाश में गए हमारे साथी लौट सकते हैं।”
“उफ्फ … तू तो नई-नई समस्याएं खड़ी करके टाइम बरबाद कर रहा है पांडुराम।” उत्तेजना के कारण तेजस्वी झुंझला उठा—“तो ऐसा करते हैं—एक सिपाही मेरे साथ जाएगा, दूसरा थाने के मुख्य द्वार पर पहरा देगा—तू यहां ताले में बंद रहकर सफाई करने की कोशिश कर।”
“अ-अकेला?” पांडुराम के होश फाख्ता हो गए।
“क्यों … क्या नंबर फाइव की लाश हवालात से बाहर आकर तेरा गला दबा देगी?”
“मैं अकेला यहां बंद रहकर कर ही क्या सकूंगा साब—मेरे ख्याल से इस वक्त हमें यहां की सफाई के झंझट में न पड़कर इस कोशिश में लगना चाहिए कि कोई भी शख्स किसी कीमत पर आपके ऑफिस में न पहुंच सके—एक बार ये खतरा टल जाए, उसके बाद आराम से सफाई होगी—थाना हमारा है, हम यहां के मालिक हैं—कौन रोकेगा हमें?”
“ये भी ठीक है …।”