hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
अब सवाल ये था कि विशाल आयोडेक्स लगाएगा कैसे.........मैं इस वक़्त लॅगी पहनी हुई थी जिससे वो कपड़ा मेरे पाँव से पूरी तरह से चिपका हुआ था......कपड़ा इतना टाइट था कि विशाल उसे उपर की ओर सरका भी नहीं सकता था......और मेरा दर्द अब तक बिल्कुल कम नहीं हुआ था......इधेर विशाल के चेहरे पर भी परेशानी सॉफ दिखाई दे रही थी मगर वो चाह कर भी मुझसे कुछ नहीं कह पा रहा था.......आख़िरकार उसने थोड़ी हिम्मत जुटाकर मुझसे अपनी प्राब्लम बताई.....
विशाल- लाओ दीदी मैं ये आयोडेक्स आपको लगा देता हूँ....मगर आपकी ये लॅयागी बीच में आ रही है........आप ही बताओ कि मैं आपको आयोडेक्स कैसे लगाऊ.......
अदिति- मैं ठीक हूँ विशाल........मैं लगा लूँगी.......तुम जाओ......
विशाल- नहीं दीदी मैं आपको इस हाल में छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता.....और आप इस वक़्त उस हाल में नहीं है कि आप खुद आयोडेक्स लगा पाएँगी.......
मैं भी आख़िर सोचने पर मज़बूर हो गयी कि विशाल आख़िर आयोडेक्स लगाएगा तो लगाएगा कैसे.......कुछ देर सोचने पर एक ही जवाब मुझे समझ में आया कि उसके लिए मुझे अपनी लगगी विशाल के सामने उतारनी पड़ेगी......तो क्या मैं अब विशाल के सामने सिर्फ़ पैंटी में रहूंगी......ये सोचकर मेरा चेहरा शरम से लाल पड़ गया ........मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी की मैं विशाल को क्या जवाब दूं......
विशाल- दीदी मैं जो कहना चाहता हूँ उसे प्लीज़ आप ग़लत मत समझिएगा......अगर डॉक्टर को इलाज़ करना पड़ता है तो हमे उनके सामने अपनी लाज शरम छोड़नी पड़ती है.......कुछ आज वैसी ही कंडीशन हमारे सामने भी है......इस वक़्त आपके पाँव का दर्द मुझे दूर करना है और उसके लिए आपको अपनी लॅयागी उतारनी पड़ेगी........मैं आपको इस बात के लिए ज़बरदस्ती नहीं करूँगा.....अगर आप चाहें तो........और मैं अपनी आँखे बंद कर लूँगा अगर आपको कोई ऐतराज़ हुआ तो.....
मैं विशाल के उस निस्वार्थ प्रेम के आगे आज झुक गयी थी....सच में उसने कभी मुझपर बुरी नज़र नहीं डाली थी...मगर आज उपर वाले ने भी मेरे साथ क्या खेल खेला था......जिस मौके की तलाश में मैं इतने दिनों से थी वो मौका आज मुझे मिल गया था........मैं तो ये सोच सोच कर पानी पानी हो रही थी कि मैं आज विशाल के सामने अपनी लॅयागी कैसे उतारुंगी......शरम से मेरा चेहरा लाल पड़ता जा रहा था वही विशाल भी अपनी नज़रें झुकाए बिस्तेर की तरफ चुप चाप देख रहा था..........देखना था की आगे वक़्त को क्या मंज़ूर था.
मैं बड़े प्यार से विशाल के मासूम चेहरे की तरफ देख रही थी.........कहते है ना कि मोहबत की शुरुआत आँखों से होती है........आज इन्ही आँखों के ज़रिए विशाल अब मेरे दिल में पूरी तरह से उतर चुका था.......उधेर विशाल का भी कुछ ऐसा ही हाल था........मगर जो भी हो पहल तो मुझे ही करनी थी.......मैं एक नज़र विशाल की तरफ देखने लगी तो उसकी नज़रें अभी भी बिस्तेर की तरफ थी.......
अदिति- ठीक है विशाल जैसा तुम्हें सही लगे.......आख़िर तुम मेरे अपने हो और अपनों से भला कैसी शरम........मैं ही जानती थी कि ये बात मैने विशाल से कैसे कही थी........मेरी साँसें इस वक़्त बहुत ज़ोरों से चल रही थी जिसकी वजह से मेरे दोनो बूब्स उपर नीचे हो रहें थे.......
विशाल- लाओ दीदी मैं ये आयोडेक्स आपको लगा देता हूँ....मगर आपकी ये लॅयागी बीच में आ रही है........आप ही बताओ कि मैं आपको आयोडेक्स कैसे लगाऊ.......
अदिति- मैं ठीक हूँ विशाल........मैं लगा लूँगी.......तुम जाओ......
विशाल- नहीं दीदी मैं आपको इस हाल में छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता.....और आप इस वक़्त उस हाल में नहीं है कि आप खुद आयोडेक्स लगा पाएँगी.......
मैं भी आख़िर सोचने पर मज़बूर हो गयी कि विशाल आख़िर आयोडेक्स लगाएगा तो लगाएगा कैसे.......कुछ देर सोचने पर एक ही जवाब मुझे समझ में आया कि उसके लिए मुझे अपनी लगगी विशाल के सामने उतारनी पड़ेगी......तो क्या मैं अब विशाल के सामने सिर्फ़ पैंटी में रहूंगी......ये सोचकर मेरा चेहरा शरम से लाल पड़ गया ........मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी की मैं विशाल को क्या जवाब दूं......
विशाल- दीदी मैं जो कहना चाहता हूँ उसे प्लीज़ आप ग़लत मत समझिएगा......अगर डॉक्टर को इलाज़ करना पड़ता है तो हमे उनके सामने अपनी लाज शरम छोड़नी पड़ती है.......कुछ आज वैसी ही कंडीशन हमारे सामने भी है......इस वक़्त आपके पाँव का दर्द मुझे दूर करना है और उसके लिए आपको अपनी लॅयागी उतारनी पड़ेगी........मैं आपको इस बात के लिए ज़बरदस्ती नहीं करूँगा.....अगर आप चाहें तो........और मैं अपनी आँखे बंद कर लूँगा अगर आपको कोई ऐतराज़ हुआ तो.....
मैं विशाल के उस निस्वार्थ प्रेम के आगे आज झुक गयी थी....सच में उसने कभी मुझपर बुरी नज़र नहीं डाली थी...मगर आज उपर वाले ने भी मेरे साथ क्या खेल खेला था......जिस मौके की तलाश में मैं इतने दिनों से थी वो मौका आज मुझे मिल गया था........मैं तो ये सोच सोच कर पानी पानी हो रही थी कि मैं आज विशाल के सामने अपनी लॅयागी कैसे उतारुंगी......शरम से मेरा चेहरा लाल पड़ता जा रहा था वही विशाल भी अपनी नज़रें झुकाए बिस्तेर की तरफ चुप चाप देख रहा था..........देखना था की आगे वक़्त को क्या मंज़ूर था.
मैं बड़े प्यार से विशाल के मासूम चेहरे की तरफ देख रही थी.........कहते है ना कि मोहबत की शुरुआत आँखों से होती है........आज इन्ही आँखों के ज़रिए विशाल अब मेरे दिल में पूरी तरह से उतर चुका था.......उधेर विशाल का भी कुछ ऐसा ही हाल था........मगर जो भी हो पहल तो मुझे ही करनी थी.......मैं एक नज़र विशाल की तरफ देखने लगी तो उसकी नज़रें अभी भी बिस्तेर की तरफ थी.......
अदिति- ठीक है विशाल जैसा तुम्हें सही लगे.......आख़िर तुम मेरे अपने हो और अपनों से भला कैसी शरम........मैं ही जानती थी कि ये बात मैने विशाल से कैसे कही थी........मेरी साँसें इस वक़्त बहुत ज़ोरों से चल रही थी जिसकी वजह से मेरे दोनो बूब्स उपर नीचे हो रहें थे.......