Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में - Page 2 - SexBaba
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Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में

मैने अपने सीने से चुनरी हटा दी और उसे बिस्तेर के एक साइड पर रख दिया......इस वक़्त मैं सूट और लॅयागी में थी.......जो हमेशा की तरह टाइट थी और मेरे बदन से पूरी तरह चिपकी हुई थी........जैसे ही मेरे सीने से चुनरी हटी मेरी बड़ी बड़ी छातियाँ मचल कर बाहर को आने लगी......दुपट्टा हट जाने से मेरा क्लेवरेज काफ़ी हद तक बाहर की ओर दिखाई दे रहा था.....वैसे तो विशाल की नज़र दूसरे तरफ थी मगर मुझे उस हाल में अगर वो मुझे देख लेता तो कहीं ना कहीं उसके दिल में मेरे लिए भी कुछ तो अरमान जनम ले ही लेते......

जैसे ही मैने विशाल के ज़ख़्मो को छुआ उसके मूह से एक दर्द भरी कराह निकल पड़ी......उसके पीठ पर कई जगह काले निशान पड़ गये थे......और उसके राइट हॅंड पर भी काफ़ी सूजन थी.........मैं अपने हाथों में हल्दी और तेल दोनो लेकर विशाल के पीठ पर धीरे धीरे लगाने लगी.......विशाल को अब अच्छा लग रहा था मेरे हाथों का स्पर्श......मगर इधेर पता नहीं क्यों मेरे अंदर की आग अब धीरे धीरे भड़कने लगी थी........ये मुझे भी समझ नहीं आ रहा था कि ये मुझे क्या होता जेया रहा है......

आज मेरे मा बाप जानते थे कि मैं विशाल से प्यार करती हूँ.....विशाल भी मुझे बहुत प्यार करता था.......मगर मुझे क्या पता था कि एक दिन ये प्यार कुछ और ही नया रूप ले लेगा.......जिसे लोग भाई बेहन की परिभाषा दिया करते थे....उनके बीच की पवित्रता प्रेम .....मुझे नहीं पता था कि एक दिन यही प्रेम मेरी मोहब्बत में धीरे धीरे बदल जाएगी.......मैं अपने ही भाई से इश्क़ लड़ा लूँगी ये सब सुनने में ही अजीब सा लगता है मगर ये सच होने वाला था और अब इसकी शुरूवात हो चुकी थी ......आने वाला वक़्त देखना था कि मेरे लिए क्या सौगात लेकर आता है.

विशाल का चेहरा अभी भी दूसरी तरफ था........मैं अपने नाज़ुक हाथों से उसके ज़ख़्मों पर धीरे धीरे हल्दी और तेल लगा रही थी......उसके बदन का स्पर्श मुझे भी अच्छा लग रहा था और वही विशाल को भी...... मेरे हाथों की नर्माहट विशाल अपने जिस्म पर पल पल महसूस कर रहा था.....मेरी साँसें अभी भी मेरे बस में नहीं थी.......मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धडक रहा था उसके वजह से मैं बहुत लंबी लंबी साँसें ले रही थी जिससे मेरे दोनो बूब्स उपर नीचे हो रहें थे........पता नहीं क्यों बार बार मेरे मन में विशाल के प्रति बुरे ख्याल आ रहें थे......शायद विशाल की मौजूदगी की वजह से........

विशाल- दीदी क्या आप अब भी मुझसे नाराज़ है........विशाल के मन में उठ रहें सवाल अब उसकी ज़ुबान पर आ गये थे........फिर उसने अपना चेहरा मेरी तरफ किया.....और जब उसकी नज़र मेरे सीने की तरफ गयी तो वो एक पल तो मानो मेरे सीने को देखता रहा........उसकी नज़र मेरे सीने से चिपक सी गयी थी.......मगर कुछ सेकेंड्स के बाद उसने अपनी नज़रें दूसरी तरफ फेर ली.......यानी मेरे चेहरे के तरफ.........

मैं उसके चेहरे को देखकर मुस्कुराती रही- नहीं.......अब तुमसे कोई नाराज़गी नहीं है.......विशाल ने तुरंत अपनी नज़रें मेरे चेहरे से हटा ली......शायद उसे ऐसा लगा था कि मैने उसकी नज़रो को पकड़ लिया हो........

विशाल- रहने दो दीदी अब.......आपके हाथों में भी तो चोट लगी है..........आप बेवजह परेशान हो रहीं है.........विशाल की बातों से मुझे ऐसा लगा कि वो ज़रूर मुझसे ये कहेगा कि मैं भी हल्दी और तेल लगा देता हूँ तुम्हें.......मगर उसने ऐसी कोई बात अपने मूह से नहीं कही.......शायद वो शरम से ऐसा ना कह सका हो.......मैं अंदर ही अंदर खुस थी कि काश विशाल आगे मुझसे कुछ और कहता जो मैं उसके मूह से सुनना चाहती थी मगर अगले ही पल मेरी खुशियों पर मानो पानी सा फिर गया.......मैं यही तो चाहती थी कि वो मेरे नाज़ुक से हाथों पर तेल और हल्दी लगाए और अपने कठोर हाथों से मेरे बदन की कोमलता को अच्छे से अपने अंदर महसूस करे...... मगर मेरी ये ख्वाहिश मेरे दिल की दिल में ही दबकर रह गयी........

क्यों चाहती थी मैं ऐसा......आख़िर वो मेरा भाई ही तो था.......ये मुझे क्या होता जा रहा था.......मैं क्यों उसके करीब आकर बहकने लगी थी......शायद विशाल मेरे भाई से पहले वो एक संपूर्ण मर्द था......यक़ीनन उसकी ये मर्दानगी मुझे ऐसा सोचने पर पल पल विवश कर रही थी........मैं उसके मज़बूत बाहों में अपना ये जवान जिस्म सौपना चाहती थी.......महसूस करना चाहती थी.......मैं चाहती थी कि वो मेरे बदन के उन अंगों को छुएें और मसले जिसके लिए मैं अब तड़प रही थी मगर ऐसा विशाल मेरे साथ कभी नहीं कर सकता था.......शायद हमारे दरमियाँ आज रिश्ते की मज़बूत दीवार खड़ी थी.......

विशाल- अब आप आराम करो दीदी.....और हां अपने ज़ख़्मों पर भी तेल और हल्दी लगा लेना........अगर मैं ये कर सकता तो ज़रूर करता मगर आप समझ रही हो ना मेरी मज़बूरी........बेहन हो आप मेरी.........मैं बस विशाल के मासूम चेहरे को देखकर मुस्कुराती रही.......विशाल ने सही कहा था......मेरे हाथों पर और मेरे पीठ पर भी ज़ख़्म के काले काले निशान थे और उसके लिए मुझे अपना सूट निकालना पड़ता.....और रिश्ते से मैं उसकी बेहन थी.......भला वो अपनी बेहन को इस हाल में कैसे हल्दी और तेल की मालिश करता......

फिर वो दवाई लेकर अपने रूम की ओर जाने लगा.....मैं वही अपने बिस्तेर पर बैठी हुई थी........इस वक़्त मेरा सफेद सूट पर हल्दी के पीले दाग सॉफ दिखाई दे रहें थे......विशाल की नज़र मेरे कपड़ों पर लगे उस दाग पर थी.......

विशाल- ये क्या दीदी.....आपके कपड़े तो खराब हो गये......

अदिति- कोई बात नहीं विशाल....तुम ठीक हो जाओ.....मेरे लिए यही बहुत है.......और क्या मेरे पास कपड़ों की कोई कमी है.......विशाल धीरे से मुस्कुरा कर अपने कमरे की तरफ जाने लगा ......मैं उसे वही से जाता हुआ देख रही थी......नीचे नीले रंग का जीन्स पहने हुए और उपर का जिस्म उसका पूरा नंगा था.......जिससे देखकर मैं मदहोश सी हो रही थी......जैसे ही विशाल दरवाज़े के पास पहुँचा वो तुरंत रुक गया और उसने अपनी गर्देन मेरे तरफ घुमा दी......मैं अभी भी विशाल के जिस्म को घूर रही थी........मैं अब अपने बिस्तेर से उठकर वही फर्श पर खड़ी थी........

विशाल तुरंत पलटकर मेरे पास एक दम से मेरे करीब आकर खड़ा हो गया.......इस वक़्त हमारे बीच फ़ासले बहुत कम थे....यही कोई 3 से 4 इंच की दूरी......मैं उसके साँसों को अच्छे से महसूस कर सकती थी........विशाल ने एक हाथ मेरे कंधे पर रखा और मुस्कुराते हुए थॅंक्स कहा.......

मैं भी बस धीरे से मुस्कुरा दी और ना जाने मुझे क्या हुआ और मैं तुरंत विशाल के सीने में अपना सिर छुपाकर उससे लिपटती चली गयी.......मेरी ये हरकत पर विशाल को एक बहुत बड़ा झटका सा लगा......ऐसा पहली बार था जब मैं विशाल के गले लगी थी.......विशाल भी अपना एक हाथ मेरे सिर पर बड़े प्यार से फेरता रहा और मुझे अपनी बाहों में धीरे धीरे समेटने लगा......मेरे दोनो बूब्स इस वक़्त विशाल के सीने से पूरी तरह चिपके हुए थे.......शायद विशाल भी मेरे बूब्स को अपने सीने पर पल पल महसूस कर रहा था......उसकी नर्माहट को अपने अंदर समेट रहा था.......

इस वक़्त हम दोनो खामोश थे......बस मैं विशाल से लिपटी रही और विशाल मुझसे.......ना ही वो कुछ कह रहा था और ना ही मैं....मगर शायद इस खामोशी में आज मैं अपने दिल का हाल उसे बताना चाहती थी.....मगर मेरी ज़ुबान से चाह कर भी कुछ नहीं कह पा रहें थे........फिर कुछ देर बाद विशाल ने अपनी ये खामोशी तोड़ी.......

विशाल- दीदी.....आप सच में बहुत खूबसूरत हो.......काश आप मेरी बेहन ना होती तो................विशाल के शब्द इतने पर आकर रुक गये थे......मगर मैं उसके कहने का मतलब समझ चुकी थी.......विशाल फ़ौरन मुझसे दूर हुआ और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा......मैं अकेले कमरे में खामोश होकर बस उसे जाता हुआ देखती रही.
 
जब तक विशाल मेरी नज़रो से दूर नहीं हो गया तब तक मैं वही खामोशी से उसे जाता हुआ देखती रही.......मैं ये बिल्कुल भी तय नहीं कर पा रही थी कि मैं विशाल की बातों से खुस होउँ या फिर नाराज़.......मैं फ़ौरन अपने बिस्तेर पर आकर लेट गयी और फिर से सारी बातें शुरू से लेकर अंत तक सोचने लगी.......एक बार फिर से मेरे दिल में अपने भाई के लिए प्यार उमड़ पड़ा था.........

ऐसे ही ना जाने कब मेरी आँख लग गयी मुझे पता भी ना चला......सुबेह आज भी मैं जल्दी सोकर उठी और अपने बिस्तेर पर कुछ देर तक बैठ रही....आज फिर से मैं अपनी डायरी लेकर बैठ गयी थी......आज मेरे पास लिखने को बहुत कुछ था........मैं कल की सारी घटनायें पूरी लिखती चली गयी.......मैं पहले भले ही अपने भाई के लिए कुछ भी सोचती थी मगर अब मेरा नज़रिया धीरे धीरे अपने भाई के प्रति बदल रहा था........पता नहीं क्यों मैं विशाल की बाहों में अपने आप को पल पल महसूस कर रही थी........

अब तो मेरे मन में विशाल को सिड्यूस करने की भी तमन्नाए जनम लेने लगी थी........वैसे तो ये सब ठीक नहीं था इस बात की गवाही मेरा दिमाग़ पल पल मुझे दे रहा था मगर दिल कह रहा था कि जो होगा अच्छा होगा......मैं बहुत देर तक इसी असमजस में फँसी रही मगर अब तक कोई भी फ़ैसला नहीं कर पा रही थी......फिर जब मुझे कुछ नहीं समझ आया तो मैं उठकर अपने बाथरूम में चली गयी........

थोड़ी देर बाद मैं जब नहाने लगी तब अचानक से मुझे कुछ ख्याल आया जिससे मेरे चेहरे पर मुस्कान की हल्की लकीर तैर गयी......मैने अपने बदन पर लगा ब्रा फ़ौरन उतार दिया और उसे जानबूझ कर वही सामने के हॅंगर पर टाँग दी........जहाँ पर रोज़ विशाल अपने कपड़े टांगा करता था........मेरी काले रंग की ब्रा इस वक़्त हॅंगर की शोभा बढ़ा रही थी......मुझे पूरा यकीन था कि विशाल ज़रूर कुछ ना कुछ मेरी ब्रा के साथ छेड़खानी करेगा.......मैं फिर झट से नहाने लगी और फिर अपने कपड़े पहन कर बाहर आ गयी........जब मेरी नज़र सामने विशाल के चेहरे पर पड़ी तो मैं उसे देखकर धीरे से मुस्कुरा पड़ी.......विशाल के चेहरे पर भी एक प्यारी सी मुस्कान थी.........

वो आज भी सिर्फ़ टवल में खड़ा था और मेरे बाहर आने का इंतेज़ार कर रहा था........जब उसने मुझे बाहर आते देखा तो वो फ़ौरन अंदर चला गया......मेरी नज़र एक बार फिर से उसके मज़बूत जिस्म पर चली गयी थी जिसे देखकर मेरे दिल में एक मीठी सी चुभन होने लगी थी.......वैसे तो मैं अपने अंडरगार्मेंट्स रोज़ नहाते वक़्त धो देती थी और उसे अपने कपड़े के नीचे सुखाने के लिए रख देती थी मगर आज मैं अपनी ब्रा को छोड़कर अपने सारे कपड़े धोकर रख दिए थे........उस ब्रा में मेरे बदन की खुसबू ज़रूर आ रही होगी......अब मुझे विशाल के बाहर आने का इंतेज़ार था........मैं अपने प्लान को अंजाम देकर अपने मन ही मन में बहुत खुस हो रही थी........

पता नहीं क्यों पर मुझे ऐसा लग रहा था कि वो अपना पेनिस मेरी ब्रा में लेकर रगड़ेगा और अपना कम उसपर छोड़ेगा......थोड़ी देर बाद मैं डाइनिंग टेबल पर उसके आने का इंतेज़ार करती रही......विशाल नहा कर बाहर निकला और अपने कमरे में चला गया......जैसे ही वो अपने कमरे में गया मैं फ़ौरन उठकर बाथरूम की ओर तेज़ी से जाने लगी.....पापा वही बैठे थे वो मुझे इस तरह जाता हुआ देखकर मुझसे पूछने लगे कि मैं कहाँ जा रही हूँ......मैं क्या कहती जल्दी से बहाना बनाया कि मैने हाथ सही से नहीं धोए है......हालाँकि पापा ने मेरी बातों पर ज़्यादा गौर नहीं किया था........मगर सोचने वाली बात ये थी कि नहाने के बाद हाथ भला इतनी जल्दी कैसे गंदे हो सकते है......
 
जब मैं बाथरूम के अंदर गयी तो मैने फ़ौरन दरवाज़ा अंदर से लॉक कर दिया......मैं फिर अपने ब्रा को देखने लगी और जब मेरी ब्रा पर नज़र पड़ी तो मुझे एक बहुत बड़ा झटका सा लगा......जिस हाल में मैं अपना ब्रा वहाँ छोड़ कर गयी थी ठीक वैसे ही ब्रा अब तक हॅंगर पर लटका हुआ था.....विशाल ने मेरे ब्रा को हाथ भी नहीं लगाया था.........

आख़िर क्यों.........क्या विशाल ने मेरे ब्रा पर नज़र नहीं डाली......मगर ऐसा कैसे हो सकता है........ये सामने ही तो थी........उसने ज़रूर देखा होगा मेरी ब्रा को......फिर उसने ऐसा वैसे कुछ किया क्यों नहीं....... जो मैं सोच रही हूँ क्या विशाल के दिल में मेरे लिए ऐसी कहीं कोई भी भावना नहीं है........क्या वो आज भी मुझे अपनी बहेन के नज़र से देखता है........मैं जो सोच रही थी मेरी सारी उम्मीदो पर पानी फिर गया था.........मगर अब मेरे अंदर की सोच अब धीरे धीरे बदल रही थी.....मैं भी देखना चाहती थी कि विशाल आख़िर कब तक मुझसे दूर भागता है.....एक दिन मैने उसे पागल ना बना दिया तो मेरा नाम भी अदिति नहीं........

मगर मैं क्यों ऐसा कर रही थी ये शायद मैं भी नहीं जानती थी मगर कहीं ना कहीं मेरे जिस्म को एक मर्दाने शरीर की चाहत थी.......और वो भूक को मिटाने के लिए चाहे मुझे कुछ भी क्यों ना करना पड़े मुझे उसके खातिर सब मंज़ूर था.....मैं फिर बाथरूम से बाहर आई और डाइनिंग चेर पर आकर बैठ गयी.........मेरी नज़र जब विशाल के चेहरे पर पड़ी तो वो भी मुझे एक पल देखने लगा........मैं उसकी आँखों में आँखें डाले देखती रही जैसे मैं उससे ये पूछ रही थी कि उसने इतना अच्छा मौका अपने हाथ से क्यों जाने दिया.........

मोहन- बेटा सॉरी....कल के लिए........मैने जाने अंजाने में तुम्हारे साथ कुछ ज़्यादती की.......

विशाल- नहीं पापा इसमें आपको कोई ग़लती नहीं....मुझे आपको सच्चाई बता देनी चाहिए थी......मगर मैं दीदी की इज़्ज़त के खातिर ये सब बताना ठीक नहीं समझा.......

मोहन- कोई बात नहीं बेटा......होता है ऐसा......

मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी थी जो विशाल की नज़रो से ना छुप सकी थी......वो भी मुझे देखकर मुस्कुराता रहा.......आज तो सॅटर्डे था और मेरी दोपहर में छुट्टी हो जाती थी.......मैं अपना नाश्ता ख़तम करती तभी पापा मुझसे सवाल करते है जिससे मैं वही फिर से बैठ जाती हूँ.....

मोहन- बेटी अब आगे से तुम्हारे साथ ऐसी वैसी कोई हरकत हो तो मुझे सबसे पहले इनफॉर्म करना...मैं सीधा तुम्हारे प्रिन्सिपल से मिलूँगा.......

मैं क्या कहती बस हां में अपना सिर धीरे से हिला दिया........पापा फिर विशाल की ओर देखकर उससे कहते है.....

मोहन- बेटा सोच रहा हूँ कि तेरे लिए एक बाइक खरीद दूं....वैसे तो तूने ये बात मुझसे बहुत पहले कही थी मगर मेरे पास पैसों की उस वक़्त थोड़ी प्राब्लम थी......और वैसे भी तुम दोनो को घर से एक घंटा पहले निकलना पड़ता है.....बाइक आ जाने से टाइम की भी बचत होगी और पैसों की भी......

विशाल का चेहरा खुशी से खिल उठा था और ना जाने क्यों मुझे भी इस बात की बहुत खुशी हो रही थी......मेरे खुरापाति दिमाग़ में फिर से विशाल को लेकर बुरे बुरे ख्यालात जनम लेने लगे थे.......कितना मज़ा आएगा मैं जब विशाल के साथ उसके बाइक पर बैठकर कॉलेज जाऊंगी.......मेरा जिस्म उसके जिस्म से चिपका होगा ....इस तरह की सोच अब मेरे दिमाग़ में जनम ले रही थी......फिर हम दोनो कॉलेज के लिए निकल पड़े......विशाल के चेहरे पर आज खुशी सॉफ झलक रही थी........

रोज़ की तरह हम दोनो आज भी दूर दूर खड़े थे........मैं विशाल के पास गयी और उसके बगल में जाकर खड़ी हो गयी......विशाल अब मुझे ही देख रहा था.......

अदिति- विशाल तुम्हारी चोट कैसी है....मेरा मतलब है कि तुम्हें आराम है कि नहीं.......

विशाल मेरी बातों को सुनकर धीरे से मुस्कुरा पड़ता है- हां दीदी मेरा दर्द तो मानो गायब ही हो गया.......आप सच में कमाल की दवा लगाती है......मैं विशाल की बातों को सुनकर धीरे से मुस्कुरा देती हूँ और उधेर विशाल के चेहरे पर भी एक प्यारी सी मुस्कान आ जाती है.
 
थोड़ी देर बाद बस भी आ गयी.......हमेशा की तरह आज भी बस में भीड़ बहुत ज़्यादा थी.......मैं जैसे तैसे अंदर आई तो विशाल अपने दोस्तों की तरफ आगे जाने लगा.......मैने फ़ौरन उसका हाथ पकड़ लिया तो वो मेरी तरफ पलटकर मुझे हैरत से एक नज़र देखता रहा.......वैसे आज मुझे पूजा कहीं बस में दिखाई नहीं दे रही थी......इस वजह से मेरे खुरापाति दिमाग़ में विशाल को लेकर कई तरह की फीलिंग्स उमड़ रही थी.......

मैं इस वक़्त सफेद सूट में थी .......नीचे मैने उसी रंग की लॅयागी पहनी हुई थी जो हमेशा की तरह मेरे बदन से पूरी तरह चिपकी हुई थी........सीने पर मेरे लाल चुनरी था जो मेरी आकर्षण को और भी बढ़ा रहा था.......विशाल अब भी मुझे घूरे जा रहा था वो मेरा इस तरह से हाथ पकड़ने का मतलब शायद नहीं समझ पा रहा था......

अदिति- विशाल प्लीज़ आज मेरे पास ही रहो ना.......आज तो पूजा भी नहीं आई है......मैं अकेले बोर हो जाऊंगी.......विशाल एक नज़र मुझे देखा रहा फिर वो मुस्कुराते हुए मेरे बाजू में आकर खड़ा हो गया.......मेरे चेहरे पर भी एक प्यारी सी मुस्कान तैर गयी.......इस वक़्त मैं विशाल से सटकार खड़ी थी....उसका बाजू मेरे बाजू से टच हो रहा था......एक बार फिर से मेरे अंदर की आग धीरे धीरे शोला का रूप ले रही थी.......पता नहीं क्यों जब भी विशाल मेरे नज़दीक आता मेरे जिस्म से मेरा कंट्रोल मानो ख़तम हो जाता........

थोड़े देर बाद मैं विशाल के और नज़दीक गयी और मैं उसके आगे जाकर खड़ी हो गयी.......भीड़ इतनी ज़्यादा थी कि थोड़ा भी आगे सरकना बहुत मुश्किल था.......तभी मैं और विशाल के पीछे सटकर खड़ी हो गयी जिससे मेरी गान्ड अब उसके पेंट पर रगड़ खा रहा था......पहले तो उसने मुझे एक नज़र देखा फिर जब मैने कोई रिक्षन नहीं किया तब वो चुप चाप वैसे ही खड़ा रहा........

इस वक़्त मैं विशाल के लंड को अपनी गान्ड पर अच्छे से महसूस कर रही थी......शायद विशाल भी कुछ ऐसा ही महसूस कर रहा होगा.......बस चलने से बार बार धक्के लग रहें थे जिससे मैं और पीछे की तरफ सरक रही थी.......विशाल भी अब आखरी छोर पर खड़ा था.......वो अब और वहाँ से पीछे की ओर नहीं सरक सकता था.....मगर मैं हर बस के धक्के के साथ उसके और करीब होती जा रही थी......मेरे इस हरकत पर विशाल के चेहरे पर पसीने की कुछ बूँदें सॉफ नज़र आ रही थी........

विशाल का लंड अब मेरी गान्ड की गहराई में मानो गुम हो चुका था.....मगर जहाँ तक मैने महसूस किया था कि विशाल का लंड अभी तक खड़ा नहीं हुआ था.......जबकि मैं तो पानी में भी आग लगाने की ताक़त रखती हूँ.......फिर भी आज विशाल और मेरे बीच रिश्तो की मज़बूत दीवार खड़ी थी.....शायद इसी वजह से वो आगे बढ़ना नहीं चाहता था या नहीं बढ़ पा रहा था.......मगर मैने भी सोच लिया था कि चाहे कुछ हो जाए अब विशाल ही वो पहला मर्द होगा जिसको मैं अपनी कुँवारी चूत को सौपुंगी.......उसके लिए मुझे चाहे किसी भी हद तक क्यों ना जाना पड़े.......मगर अफ़सोस आज भी मैं विशाल के दिल में अब तक कहीं कोई ऐसी वैसी भावना नहीं जनम दे पाई थी.......मगर विश्वास था मुझे खुद पर कि ऐसा एक दिन होगा कि विशाल भी मेरे लिए उतना ही तडपेगा जितना मैं आज तड़प रही हूँ......

बस के लगातार कई झटकों ने मेरा काम और भी आसान कर दिया था.......एक और ज़ोर के झटके के साथ मैं अपनी गान्ड विशाल के लंड पर अच्छे से महसूस कर रही थी......जिससे मेरी चूत अब पूरी तरह से भीग चुकी थी......मेरी निपल्स अब किसी पत्थर की तरह सख़्त हो चुके थे.......एक बार दिल में ये ख्याल आया कि मैं फ़ौरन अपने दोनो हाथो को अपने निपल्स पर रख दूं और उन्हें ज़ोरों से मसल दूं.....मगर ऐसा करना वहाँ संभव नहीं था.......तभी विशाल ने फ़ौरन अपने दोनो हाथ मेरे कंधों पर रख दिए........शायद वो अब सही से खड़ा नहीं हो पा रहा था और उपर से मैं भी अपना पूरा वजह उसपर डाल रखी थी.......

मैं उसके तरफ एक नज़र डाली तो वो मुझे ही देख रहा था.......मैने उसकी आँखों में देखा तो जैसे वो मुझसे मानो फर्याद कर रहा हो कि दीदी आप मुझसे दूर हो जाओ......मगर मैं भला इतना अच्छा मौका अपने हाथ से कैसे जाने देती.......पूरे रास्ते भर मैं विशाल को ऐसे ही परेशान करती रही......थोड़ी देर बाद कॉलेज भी आ गया.......मैं फ़ौरन विशाल से दूर हुई तो वो अब लंबी लंबी साँसें ले रहा था मानो जैसे उसके सिर से कोई बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो......
 
फिर मैं कॉलेज के तरफ चल पड़ी मगर जाते जाते मैने एक नज़र विशाल के पेंट की तरफ एक नज़र डाली तो मुझे उसके पेंट पर उभार सॉफ महसूस हो रहा था......ये नज़ारा देखकर मेरे चेहरे पर एक शरारती मुस्कान तैर गयी.......शायद ये मेरी सफलता की पहली सीढ़ी थी......थोड़ी देर बाद पूजा भी आ गयी......वैसे तो सॅटर्डे को क्लास नहीं लगती थी.......सारा दिन हम सहेलियाँ बस बातों में अपना टाइम पास करती थी........पूजा मेरे पास आई और मेरे गालों पर चुटकी काट ली.....मेरे मूह से एक दर्द भरी सिसकारी फुट पड़ी.......

पूजा- वैसे जान आज तो तू पूरी कयामत लग रही है....आज ये बिजली किस्पर गिराने का इरादा है.........

मैं ना चाहते हुए भी पूजा की बातों को सुनकर मुस्कुरा पड़ी.......

अदिति- आज तू बस में क्यों नहीं आई........

पूजा- हां आज देर हो गयी थी जिससे मेरी बस छूट गयी......चल पार्क में चलते है.....मैं फिर पूजा के साथ पार्क में चल पड़ी........

अदिति- पूजा एक सवाल मैं तुझसे पूछू.......प्लीज़ मेरे सवाल का ग़लत मतलब मत निकालना......

पूजा मेरी तरफ ऐसी देखने लगी जैसे मानो मैने उससे कोई बहुत बड़ी चीज़ माँग ली हो.......वो एक टक मेरे चेहरे की ओर देखती रही......

पूजा- बोल अदिति.....क्या पूछना चाहती है.......

अदिति- तुझे विशाल कैसा लगता है......मेरा मतलब........है........कि......

पूजा मेरी तरफ ऐसे देखने लगी जैसे मैने कोई बहुत बड़ी बात उससे कह दी हो- अच्छा लगता है......बहुत अच्छा लगता है.......मगर तू ये सब क्यों मुझसे पूछ रही है.......

अदिति- एक बार तूने कहा था कि अगर विशाल तेरा भाई होता तो तू उससे वो कर लेती.......क्या तुमने ये बात मुझसे सीरियस्ली में कहा था या मज़ाक में........

पूजा- वो तो बस मैने ऐसे ही कह दिया था......मगर तू ये सब क्यों मुझसे पूछ रही है.......बात क्या है......कहीं तेरा दिल भी तेरे भाई पर तो नहीं आ गया........और ये क्या करना करना लगा रखा है.....उसे चुदवाना कहते है......अब मुझसे भी इतना शरमाएगी तो कैसे काम चलेगा......

अदिति- बस ऐसे ही........अच्छा बता अगर तू मेरी जगह पर होती तो तू क्या करती विशाल के साथ....आइ मीन तू उसे कैसे सिड्यूस करती.......

पूजा मेरी बातें को सुनकर धीरे से मुस्कुरा देती है......मेरा चेहरा इस वक़्त शरम से पूरा लाल पड़ चुका था मगर मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था.......अगर आइडिया नहीं मिलेगा तो बात आगे कैसे बढ़ेगी......ये सोच कर मैं पूजा से इस बारे में जानकारी ले रही थी......

पूजा- मुझे तो लगता है कि तू भी अब विशाल से चुदवाना चाहती है.......खैर उससे मुझे क्या.......तेरी लाइफ है तू जिससे चाहे चुदवा.....वो चाहे तेरा भाई ही क्यों ना हो.......अगर मैं तेरी जगह होती तो रोज़ मैं शॉर्ट कपड़े पहन कर विशाल के सामने जाती.......उसे अपनी चुचियाँ दिखाती......उससे खुल कर बातें करती.....और जब भी मौका मिलता उससे सट कर खड़ी रहती........लड़कों को सिड्यूस करना हो तो सबसे पहले उसे अपना जलवा दिखाना पड़ता है.....तभी तो वो जानेगा कि हम क्या चीज़ है......

मगर ये याद रखना कि कभी अपना सब कुछ इतनी आसानी से किसी को मत सौप देना......नहीं तो उस चीज़ की अहमियत ख़तम हो जाएगी.......मेरे कहने का मतलब तू समझ रही है ना......मर्दों को जितना हम तडपायेन्गे उतना ही वो हमारे पीछे आएँगे........बस तू ये सब करती जा फिर देखना दुनिया का कोई भी मर्द तुझे पाने के लिए मानो पागल सा हो जाएगा........

मैं पूजा की बातों को सुनकर कुछ पल तक खामोश रही......और फिर शुरू से सब कुछ सोचने लगी........पूजा ने सही कहा था.......अब मुझे ये सब तरीके विशाल पर आज़माने थे......और अब मैं विशाल को अपने हुस्न के जलवों से पूरा पागल करना चाहती थी.......देखा चाहती थी कि वो मेरे लिए अब कितना बेचैन हो सकता है.......ये तो आने वाला वक़्त ही बता सकता था.

पूजा बार बार मेरे चेहरे की तरफ सवाल भरी नज़रो से देख रही थी.......वो मेरे दिल में उठे उस तूफान को बिल्कुल नहीं समझ पा रही थी......अगर समझ जाती तो उसे अपने उपर कभी विश्वास नहीं होता.......ये मुझे पल पल क्या होता जा रहा था......मैं खुद अपने उपर हैरान थी कि आख़िर मैं ये सब करके क्या साबित करना चाहती हूँ......मैं ये बात अच्छे से जानती थी कि इसमें सिवाए रुसवाई, दर्द और बदनामी के मुझे और कुछ हासिल नहीं होने वाला.........

पता नहीं जब मेरे दिल की बात विशाल को पता लगेगी तब वो मेरे बारे में क्या सोचेगा......मगर मैं जानती थी कि हवस ऐसा नशा है जिसमें इंसान अपना वजूद तक भूल जाता है......वो ये भी नहीं सोचता कि सामने उसकी बेहन , मा या बेटी है.......मैं जानती थी कि एक ना एक दिन इस तपिश की आग में विशाल भी अपना सब कुछ भूल जाएगा......

पूजा बात बात पर मुझे छेड़ती रही.......मगर मैं किसी भी हाल में अपने और विशाल के बीच रिश्तों को उसे बताना नहीं चाहती थी......मैं ये बात अच्छे से जानती थी कि वो विशाल की बातों को लेकर अक्सर मुझसे मज़ाक करती है पर पता नहीं क्यों मैं अब उसे सीरियस्ली लेती जा रही थी.......मैं कॉलेज में पूजा की बातों से और भी गरम हो चुकी थी.......जब तक वो मेरे पास रही ये सब बातें मुझसे करती रहती.......

पहले तो मुझे ये सब बुरा लगता था मगर अब मैं खुद उसकी बातों में इंटरेस्ट लेती जा रही थी......जैसे तैसे मैं अपने जज्बातो को संभालते हुए दोपहर में घर पहुँची.......सॅटर्डे की वजह से विशाल अक्सर अपने दोस्तों के साथ घूमने निकल जाया करता था इस लिए मुझे अकेले कॉलेज से आना पड़ता था.......मैं अपने घर आई और सीधा अपने रूम में चली गयी.....मम्मी ने मेरे लिए खाना बना दिया था.......मैं फ़ौरन अपने कपड़े चेंज कर खाना खाने लगी ....मम्मी फिर थोड़ी देर बाद अपने कमरे में सोने चली गयी.........
 
खाना खाने के बाद मैं भी अपने रूम के अंदर आई और अपना कमरा अंदर से लॉक कर दिया.......आज फिर से मेरा बदन अंदर से किसी आग की तरह तप रहा था.....मैने फिर से अपनी अलमारी में रखा वो सीडी और अपना लॅपटॉप निकाली और फिर उसे ऑन करके देखने बैठ गयी.......एक बार फिर से मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा था.......आज मैने दूसरी डीवीडी प्ले की थी.......ये पहले वाली से भी ज़्यादा हॉट थी......इसमें पहले सीन तो लेज़्बीयन आक्ट था......जब मेरी नज़र उस सीन पर गयी तो मैं एक पल के लिए ये सोचने पर मज़बूर हो गयी कि भला लड़की लड़की को आपस में सेक्स करने से क्या मज़ा आता होगा.........

फिर मैं उस सीन को देखने के बाद मैं अगले सीन को देखने लगी......उस सीन में एक लड़की थी और दो लड़के.......जैसे जैसे वो सीन आगे बढ़ रहा था इधेर मेरा गला घबराहट से सुख रहा था.......मैं ऐसा सेक्स ना तो कभी इससे पहले देखी थी और ना ही कभी सुनी थी.......मेरे हाथ खुद ब खुद मेरे सीने पर चले गये थे......मैं अपने निपल्स को अपने दोनो उंगलियों के बेच ज़ोरों से मसल रही थी.....मेरा एक हाथ अब मेरी चूत के दरमियाँ था........फिर जब मुझसे और बर्दास्त नहीं हुआ तो मैने एक एक कर अपने सारे कपड़े उतार दिए.......आज भी मैं बिन कपड़ों के अपने रूम में बैठी हुई ब्लू फिल्म देख रही थी.........

उस सीन में पहले तो एक मर्द उस औरत की चुदाई कर रहा था.......दूसरा अपना लंड उसके मूह में डाल कर उससे चूस्वा रहा था.....ये नज़र देखकर तो मेरे होश मानो उड़ गये थे........यहाँ एक लड़की दो मर्दों को एक साथ संभाल रही थी.......फिर जब अगले सीन पर मेरी नज़र पड़ी तो मैं तो मानो उछल सी पड़ी.......वो आदमी फिर उस औरत के पीछे गया और अपना लंड उसकी गान्ड पर रखकर तेज़ी से अपना लंड उसकी गान्ड में डाल दिया......पहला बंदा तो उसकी चूत चोद रहा था.......

मुझे अपने आँखों पर बिल्कुल विश्वास नहीं हो रहा था.....भला एक लड़की एक साथ अपने दोनो सूराखों में लंड कैसे ले सकती है........मैने अक्सर ये तो सुना था कि मर्द औरत की गान्ड के बहुत शौकीन होते है मगर आज पहली बार मैं ये सब देख रही थी....मेरी चूत आज इस कदर गीली हो चुकी थी की अब मुझे ऐसा लगने लगा था कि अब मेरे जिस्म से मेरा कंट्रोल पूरी तरह से ख़तम हो जाएगा........मैं तेज़ी से अपने दोनो हाथों से हरकत कर रही थी.......एक तरफ मैं उंगलियों से अपनी निपल्स को बेदर्दी से मसल रही थी वही दूसरे हाथों से अपनी चूत को सहला भी रही थी........कुछ पल बाद आख़िर मेरा सब्र टूट गया और आख़िर कार मैं फिर से एक बार फारिग हो गयी........एक बार फिर से मैं मंज़िल पा चुकी थी.......उस वक़्त मेरे मूह से हल्की हल्की सिसकारी निकल रही थी..........

एक बार फिर से मैं एक लाश की तरह बिल्कुल ठंडी पड़ चुकी थी........अब मेरे जिस्म में मानो कोई जान ना रह गयी हो.......मेरे अंदर की आग अब बाहर निकल चुकी थी........मैं बहुत देर तक ऐसे ही अपने बिस्तेर पर पड़ी रही........फिर कुछ देर बाद जब मुझे होश आया तो फिर मैने अपना लॅपटॉप बंद किया.........मेरे जेहन में एक बार फिर से विशाल का ख्याल आ रहा था......क्या विशाल का लंड भी इतना ही बड़ा होगा........मुझे अब लंड की सख़्त ज़रूरत हो रही थी........मैं अपनी चूत में विशाल का लंड लेना चाहती थी......और ये बात मैं जानती थी कि जो मैं सोच रही हूँ वो इतना मेरे लिए आसान नहीं है.....

मगर जब मैने ये तय कर लिया था तो मुझे अब अपनी मंज़िल को किसी भी हाल में हासिल करना था.......उसके लिए मुझे चाहे कुछ भी क्यों ना करना पड़े....चाहे जमाने की रुसवाई ही क्यों ना सहनी पड़े........मेरी हवस में धीरे धीरे प्यार का रंग भी घुलता जा रहा था........पता नहीं आगे इस प्यार का क्या अंजाम होगा......सच तो ये था कि मैं अपने अंजाम के बारे में सोचना नहीं चाहती थी......शायद कहीं ना कहीं मेरे दिल में डर भी था मगर फिर भी मुझे आज सब मंज़ूर था.........

थोड़े देर बाद मेरी आँख लग गयी........शाम को जब मेरी आँख खुली तो विशाल घर आ चुका था......मैं भी अपने कपड़े पहनकर अपने बाथरूम में गयी और फिर थोड़ी फ्रेश हुई.......फिर थोड़ा मेकप वगेरह करके मैने एक नीले रंग का सूट पहन लिया........मेरी सूट हमेशा की तरह टाइट था जो मेरे बदन से पूरी तरह से चिपका हुआ था......मैं फिर जब हाल में आई तो मम्मी पापा तैयार होकर कहीं बाहर जा रहें थे.....विशाल वही बैठा हुआ टीवी देख रहा था......जब उसने मेरी तरफ देखा तो वो मुझे देखकर एक प्यारी सी स्माइल दे दी......जवाब में मैं भी उसे देखकर मुस्कुरा पड़ी......

ममता- अदिति हम राज शर्मा अंकल के यहाँ जा रहें है.....आज उनके बेटे की शादी है.......लौटने में हमे देर भी हो सकती है.......खाना मैने बना दिया है तुम खाने के वक़्त फ्रीज़ में से खाना निकाल कर उसे गरम करके खा लेना और विशाल को भी दे देना.......ना जाने क्यों जब ये बात मुझे पता चली तो मैं मन ही मन खुशी से झूम सी उठी......मैं ऐसा ही कुछ मौका ढूँढ रही थी......अब पूजा की बातों को सच करने का सही वक़्त आ गया था......

थोड़ी देर बाद मम्मी पापा शर्मा अंकल के घर की तरफ निकल पड़े........मैं मेन डोर बंद कर आई तो विशाल अभी भी टी.वी में खोया हुआ था........मेरा मूड तो टी.वी देखने को बिल्कुल नहीं कर रहा था मैं तो उस वक़्त विशाल के बारे में सोच रही थी.........मैं भी उसके सामने वाले सोफे पर आकर बैठ गयी.......और फ़ौरन अपने सीने से दुपट्टा निकाल कर वही मेज़ पर रख दिया........फिर मेरी नज़र आज के अख़बार पर गयी
 
इस वक़्त मेरे दोनो बड़े बूब्स बिना चुनरी के कयामत ढा रहे थे......और उपर से समीज़ भी इतनी टाइट थी कि मेरी क्लेवरेज बहुत हद तक बाहर की ओर दिखाई दे रही थी.......मैं थोड़ा सा झुक कर वही रखा अख़बार पढ़ने लगी.........जैसे ही मैं थोड़ा झुकी मेरी क्लेवरेज और भी बाहर को दिखाई देने लगी........इस वक़्त मेरी 50% बूब्स बाहर की ओर झलक रहें थे........मैं कुछ देर तक वही इसी पोज़िशन में पेपर पढ़ती रही........फिर मैं एक हेडलाइन्स को पढ़कर जैसे ही विशाल की ओर अपना चेहरा किया वो मुझे खा जाने वाली नज़रो से घूरे जा रहा था........

इस वक़्त उसका ध्यान टी.वी स्क्रीन पर बिल्कुल नहीं था........वो मेरे दोनो बूब्स को घूर रहा था.......मुझे तो एक पल ऐसा लगा मानो वो मुझे अपनी नज़रो से पल पल नंगा कर रहा हो.......जब मेरी नज़र उसपर पड़ी तो उसने फ़ौरन अपनी नज़रें दूसरी तरफ फेर ली.........और फिर से वो टी.वी स्क्रीन की ओर देखने लगा......उसके चेहरे पर फिर से पसीने की बूंदे सॉफ झलक रही थी......मेरे चेहरे पर एक कातिल मुस्कान तैर गयी मगर मैं विशाल के सामने कहीं कोई ऐसा रिक्षन नहीं करना चाहती थी जिससे उसे ये लगे कि ये सब मैने जान बूझ कर किया है.....

अदिति- आज कल महँगाई कितनी ज़्यादा बढ़ गयी है......है ना विशाल......अब तो सोना चाँदी के प्राइस आसमान छूने लगे है.......

मेरी बातों को सुनकर विशाल मानो हड़बड़ा सा गया और उसने अपनी नज़रें तुरंत दूसरी तरफ फेर ली.......उसे डर था कि कहीं मैने उसकी नज़रो को पकड़ तो नहीं लिया.......मगर मैं बिल्कुल नॉर्मल बिहेव कर रही थी.......मगर मैने अपनी पोज़िशन नहीं बदली और उसी पोज़िशन में झुक कर बैठी रही.......विशाल के जवाब में डर और कँपकपाहट सॉफ झलक रही थी.......

विशाल- हां दीदी वो.... तो... है.........

मैं विशाल के जवाब को सुनकर धीरे से मुस्कुरा पड़ी और फिर से अपना सारा ध्यान पेपर पर लगा लिया.....विशाल थोड़ी देर तक टी.वी की ओर देखता रहा फिर से वो मुझे घूर घूर कर देखने लगा......बीच बीच में वो टी.वी की ओर भी एक नज़र डाल लिया करता था.......मुझे मेज़ पर लगे शीशे से उसकी हर हरकत सॉफ पता चल रही थी.......मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी......विशाल भले ही मेरे सामने लाख बहाने क्यों ना बनाए मगर सच तो ये था कि वो भी मेरे बदन के उन हिस्सों को देखना चाहता था जो हर मर्द औरत के बदन को देखना चाहता है.......

मेरी चूत इधेर अब गीली होती जा रही थी.......कुछ एग्ज़ाइट्मेंट की वजह से और कुछ दिल में उठ रहे उस मीठे से अहसास से.......जब मैं विशाल को अपने दोनो उभारों के अच्छे से दर्शन करवा दिए फिर मैं फ़ौरन किचन की ओर चल पड़ी......इस वक़्त भी मेरा दुपट्टा वही सोफे पर था.......जैसे ही मैं किचेन में गयी उसके तुरंत बाद विशाल ने टी.वी ऑफ कर दिया और लगभग तेज़ कदमों से चलते हुए वो बाथरूम के अंदर घुस गया..........मैं उसकी हर्कतो पर मन ही मन मुस्कुरा पड़ी.........

मैं ये बात अच्छे से जानती थी कि वो बाथरूम क्यों गया है और अंदर क्या कर रहा होगा........शायद मेरी नाम की मत........हां यक़ीनन.....आज मेरे ख्याल से पहली बार विशाल मेरी नाम की मूठ मार रहा होगा.......ये सब सोचकर एक बार फिर से मेरी साँसें भारी हो चली थी.....दिल में बार बार यही ख्याल आ रहा था कि मैं बाथरूम में जाकर अंदर देखूं मगर ऐसा करना मेरे लिए अभी मुनासिब नहीं था.......

करीब 10 मिनिट बाद विशाल बाथरूम से बाहर आया......वो इस वक़्त पसीने से बुरी तरह से भीग चुका था........और भीगता भी क्यों ना.....आख़िर वो अपने अंदर छुपे हुए उन सैलाब को अभी अभी बाहर निकल कर आ रहा था......वो फिर अपने कमरे में चला गया और अपनी किताबो में खो गया......मैं फिर खाना गरम करके उसके कमरे में ले गयी और वही उसके बेड पर खाना रख दिए........

विशाल- दीदी आप भी खा लो ना मेरे साथ.......मुझे अच्छा लगेगा.......मैं भला विशाल की बातों को कैसे मना करती........मैं भी वही बैठ कर खाना खाने लगी......विशाल बार बार मेरी तरफ देख रहा था....कभी उसकी नज़र मेरे सीने के तरफ जाती तो कभी मेरे चेहरे की तरफ......खाना ख़तम होने तक मैं भी बिल्कुल खामोश रही और वही विशाल भी मुझे एक शब्द कुछ ना कहा........

मैं फिर सारे बर्तन समेटकर किचन की तरफ चल पड़ी........मुझे ये एहसास था कि इस वक़्त विशाल मेरी गान्ड को घूर रहा होगा.......मगर आज के लिए इतना काफ़ी था.......मैं किचन में बर्तन धो रही थी तभी थोड़ी देर बाद मैने विशाल के कदमों की आहट सुनी.......एक बार तो मेरे दिल में मानो सवालों का तूफान सा खड़ा हो गया कि आख़िर क्या बात है विशाल को मुझसे अब क्या काम हो सकता है......कहीं वो आज मेरे जलवों से पिघल तो नहीं गया......

जब मैं उसकी तरफ पलट कर एक नज़र डाली तो अगले ही पल मेरा सारा भ्रम दूर हो गया........विशाल किचन के दरवाज़े के पास खड़ा था.......उसके हाथों में मेरा दुप्पट्टा था......मैं आगे उससे कुछ कह पाती या उससे कुछ पूछती वो फ़ौरन मेरे करीब आया और उसने मेरे कंधो पर मेरी चुनरी डाल दी.......मेरे लिए ये किसी शॉक से कम नहीं था......अब तक जो मैं विशाल के लिए सोच रही थी एक बार फिर से विशाल ने मेरे सारे अरमानों पर मानो पानी सा फेर दिया था........

विशाल- दीदी आप बहुत खूबसूरत हो......अगर खूबसूरती सादगी में रहें तो और भी अच्छी लगती है..........शरम का परदा ही आपका गहना है अगर आप इसे आगे सभाल कर रखेंगी तो ये आपके लिए ही अच्छा है....और एक बात कहूँ आप मुझे ऐसे ही अच्छी लगती है........इतना कहकर विशाल अपने कमरे की तरफ चला जाता है......मैं उसे जाता हुआ बस देख रही थी......आज मेरे पास कहने के लिए एक शब्द भी नहीं थे.........आज एक बार फिर से मैं हार गयी थी.

आज सनडे था......इस लिए आज मुझे कोई जल्दी नहीं थी उठने की........कुछ देर तक मैं यू ही अपने बिस्तेर पर करवट बदलती रही.......विशाल की बातों ने मुझे अंदर तक झांकझोर दिया था........मैं अब पहले से और भी ज़्यादा बेचैन हो गयी थी.....फिर मैं डायरी लेकर उन बीते लम्हों को फिर से लिखने बैठ गयी..... ना जाने क्यों मुझे अब भी उम्मीद की किरण नज़र आ रही थी.......अभी मैने आस का दामन नहीं छोड़ा था........

थोड़ी देर बाद मम्मी की आवाज़ आई.......वो मुझे हमेशा की तरह अपना रामायण सुना रही थी.......मगर मुझे तो जैसे आदत सी पड़ चुकी थी उनकी बक बक रोज़ सुनने की.......

स्वेता- अरे ओ शहज़ादी आज सनडे है तो इसका मतलब क्या आज सारा दिन सोती रहेगी ......रात को हम देर से आए और थकि हुई तू लग रही है.......चल जल्दी से फ्रेश हो जा.......मैं बुरा सा मूह बनाते हुए अपने बिस्तेर से उठी और सीधा बाथरूम की ओर चल पड़ी.......जैसे ही मैं बाथरूम के पास पहुँची बाथरूम अंदर से लॉक था........इसका मतलब आज विशाल ने मुझसे पहले बाज़ी मार ली थी......

मैं कुछ देर तक वही इधेर उधेर टहलती रही और विशाल के बाहर आने का इंतेज़ार करती रही.......थोड़े देर बाद विशाल बाथरूम से बाहर आया......इस वक़्त उसका जिस्म पानी से भीगा हुआ था.......उसके बाल भी गीले थे......वो अभी अभी नाहकर निकला था.......जैसे ही मेरी नज़र उसपर पड़ी मैं एक बार फिर से उसके मर्दाने जिस्म को देखकर बेचैन सी हो उठी........उसने मुझे देखकर एक प्यारी सी स्माइल दी और फिर वो अपने रूम में चला गया........मैं उसे जाता हुआ देखती रही......फिर मैं भी फ़ौरन बाथरूम में घुस गयी........

जब मैं बाथरूम में गयी तो मेरी नज़र विशाल के अंडरवेर पर पड़ी.......ना जाने क्यों मैं कुछ पल तक खामोशी से वही खड़ी उस अंडरवेर को एक टक देखती रही......फिर कुछ सोचकर मैने एक एक कर अपने सारे कपड़े पूरे उतार दिए......जब मेरे जिस्म पर एक भी कपड़ा ना रहा तब मैं आगे बढ़कर विशाल के भीगे अंडरवेर को बाथ टब से बाहर निकाला और उसे अपने हाथों में लेकर कुछ पल तक टकटकी लगाए उसे घूरती रही........फिर कुछ सोचकर मेरे चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर गयी.........

मैं विशाल के अंडरवेर को अपने हाथों में लेकर उसे अपनी नाक की तरफ ले गयी.......वहाँ से उसके बदन की भीनी भीनी खुसबू आ रही थी.......ये खुसबू मुझे मदहोश करने के लिए काफ़ी थी.......पहले तो मुझे ये सब कुछ बुरा सा लगा मगर मेरे अंदर की आग अब एक बार फिर से सुलग चुकी थी.......एक बार फिर से मैं हवस की आग में जल रही थी.......ये मुझे दिन बा दिन क्या होता जा रहा था........कुछ पल तक मैं यू ही उसकी खुसबू को अपने अंदर समेटती रही.....एक बार फिर से मैं मदहोशी के आलम में जा चुकी थी........
 
अब मेरे जिस्म से मेरा कंट्रोल धीरे धीरे ख़तम होता जा रहा था.......मेरी आँखे अब सुर्ख लाल हो चुकी थी......मैं फिर अगले ही पल विशाल के अंडरवेर को अपने मूह के पास ले गयी और धीरे से मैने अपना मूह पूरा खोल दिया.......फिर मैं अपनी आँखे बंद कर उसके अंडरवेर को अपने मूह में लेकर धीरे धीरे उसपर अपना जीभ फेरना शुरू कर दिया.....मेरी जीभ की पॉइंट उस जगह पर सरक रही थी जहाँ पर विशाल के लंड से निकले कुछ प्रेकुं उस अंडरवेर पर लगे हुए थे.......पहले तो मुझे उसका जायका बहुत अजीब सा लगा मगर कुछ देर बाद मुझे उसका टेस्ट अच्छा लगने लगा.....

अब तक मेरा एक हाथ मेरे सीने पर पहुच चुका था......मैं अपनी उंगलियों के बीच अपने निपल्स को बड़ी ही बेदर्दी से मसल रही थी.......मेरी चूत भी अब गीली होती जा रही थी.......मैं अब पूरी तरह से अपना होश खो बैठी थी.......मैं अब धीरे धीरे विशाल के अंडरवेर को अपने मूह में और भी अंदर तक लेकर चूस रही थी.......इस तरह चूसने से विशाल का अंडरवेर अब मेरी थूक से पूरा गीला होता जा रहा था.......करीब 5 मिनिट बाद मैं फिर उसे अपने मूह से निकाल कर उसे अपनी चूत के दरमियाँ ले गयी और उसे धीरे धीरे अपने चूत के उपर धीरे धीरे रगड़ने लगी.......

हालाँकि मेरी चूत अभी कुँवारी थी तो मैं उसे अपनी चूत के अंदर कैसे ले पाती........इधेर मैं अपने एक हाथ से बारी बारी अपने दोनो निपल्स को मसल रही थी.....मेरे इस तरह मसल्ने से मेरी निपल्स पर अब लाल दाग दिखाई दे रहें थे......मगर मुझे अपने अंदर उस आग को बुझाने के सिवा और कुछ नहीं सूझ रहा था......इधेर मेरी हाथों की स्पीड अब लगातार बढ़ती जा रही थी......मैं विशाल के अंडरवेर को अपनी चूत के दरमियाँ अपने दानों को भी अपनी उंगली से धीरे धीरे मसल रही थी.......

एक पल तो मुझे ऐसा लगा कि मैं विशाल का लंड अपने अंदर लिए हूँ......ये ख्याल आते ही मेरे जिस्म के रोयें एक बार फिर से खड़े हो गये थे...अगले ही पल मैं वही ज़ोरों से सिसक पड़ी और मेरे अंदर का तूफान एक बार फिर से बाहर फुट पड़ा.......मुझे तो ये भी होश नहीं था कि मैं बाथरूम में कितनी देर तक उसी हाल में वैसे ही पड़ी रही.......करीब 10 मिनिट बाद मैने विशाल का अंडरवेर अपनी चूत से दूर किया......इस वक़्त उसका अंडरवेर बुरी तरह से भीग चुका था.....उसपर अब मेरी चूत का रस भी लगा हुआ था.........वो नज़ारा देखकर तो मुझे एक बार अपने उपर शरम सी आ गयी.......मैं ये क्या कर रही हूँ......मैं अब कितना नीचे गिरती जा रही हूँ........मुझे ऐसा करना क्या शोभा देगा......वगेरह ....वगेरह.......

मैने विशाल के अंडरवेर को साबुन से सॉफ किया और उसे फिर से बाथ टब में डाल दिया......ताकि विशाल को कोई शक़ ना हो........फिर मैने बाथ ली और कुछ देर बाद मैं नाहकर बाथरूम से बाहर निकली.......आज मैने पीले रंग का सूट पहना था........और नीचे वाइट कलर की लॅयागी.......फिर मैने थोड़ा मेकप किया और फिर डाइनिंग टेबल पर जाकर नाश्ते का इंतेज़ार करने लगी......

स्वेता- क्या चाहिए शहज़ादी तुम्हें......नाश्ता या खाना.......

मैं मम्मी को सवाल भरी नज़रो से एक टक देखने लगी........मैं उनकी बातों का मतलब शायद समझ नहीं पाई.
स्वेता- ऐसे क्या आँखे फाड़ फाड़ कर मुझे देख रही है........देख इस वक़्त घड़ी में.......11.30 बज रहें है.......आज तो तू 9 बजे सो कर उठी है........उपर से पूरे दो घंटे तू बाथरूम में बिता दी......अब तो मेरे ख्याल से तू खाना ही खा ले.......दोपहर में नाश्ता थोड़ी ना किया जाता है........

मैं मम्मी की बातों को सुनकर धीरे से मुस्कुरा पड़ी- ठीक है मम्मी आप मुझे खाना ही दे दो.......और विशाल और पापा कहीं दिखाई नहीं दे रहें......कहाँ गये है वे ..........

स्वेता- बेशरम कहीं की........पता नहीं कब तू सुधेरेगी.....तेरा उपर वाला ही कुछ कर सकता है.........बस भगवान से तेरे लिए यही दुआ करूँगी कि तुझे थोड़ी अकल दे दें.........और हां तेरे पापा विशाल को लेकर शोरुम गये है.......उसके लिए बाइक खरीदने..........मैं मम्मी की बातों को सुनकर अगले पल खुशी से उछल सी पड़ी......

अदिति - वाउ.....अब कितना मज़ा आएगा.......अब हमे बस में धक्के नहीं खाने पड़ेंगे........

स्वेता- और तू एक घंटे देरी से रोज़ उठा करेगी .......है ना......तेरा कुछ नहीं होने वाला.........खैर यही सोचकर तो तेरे पापा तेरे भाई के लिए बाइक खरीदने को राज़ी हो गये........मैं बाहर मार्केट जा रही हूँ.....मुझे लौटने में देर हो सकती है........अगर तेरे पापा आए तो मुझे एक फोन कर देना........मैं वैसे जल्दी आने की कोशिश करूँगी......

मैने मम्मी की बातों का कोई जवाब नहीं दिया और हां में बस अपनी गर्देन धीरे से हिला दी......

फिर मम्मी मार्केट के लिए बाहर चली गयी......मैं भी अपने कमरे में चल पड़ी....... और फिर आने वाले समय के बारे में सोचकर मन ही मन मैं मुस्कुरा पड़ती हूँ.........तभी मेरी सोच पर लगाम लग जाती है......किसी ने घर का डोर बेल बजाया था.......

अदिति- अब कौन आ सकता है.......मैं फिर तेज़ी से आगे बढ़कर मैं डोर के पास गयी और जाकर दरवाज़ा खोला.......सामने पूजा खड़ी थी.......मैं उसे देखकर खुशी से उछल सी पड़ी........आज बहुत दिनों के बाद वो मेरे घर पर आई थी......मैं उसे अपने कमरे के अंदर ले कर आई और उससे बातें करने लगी.......

अदिति- कहो पूजा आज कैसे इतने दिनों बाद.........

पूजा- तू तो मेरे घर आने से रही.....वैसे एक बात बता घर पर कोई दिखाई नहीं दे रहा........विशाल भी नहीं है.......कहाँ गया है वो.....

अदिति- क्यों तुझे विशाल से क्या काम है......तू तो मिलने मुझसे आई है तो तू उसे क्यों पूछ रही है........

पूजा मेरी बातो को सुनकर मानो हड़बड़ा सी जाती है- नहीं नहीं........वैसे ही....बस पूछ लिया........क्यों तुझे जलन हो रही है क्या......कहीं तू ये तो नहीं सोच रही कि अगर विशाल मुझे पसंद कर लिया तो तेरा पाता हमेशा के लिए काट जाएगा........है ना......

मैं चाह कर भी पूजा की बातों का कोई जवाब ना दे सकी.....सच तो ये था कि मैं अब नहीं चाहती थी कि विशाल और मेरे बीच कभी कोई आयें.......मुझे ना जाने क्यों आज पूजा से भी जलन सी हो रही थी........क्यों कि वो भी अब विशाल में कुछ ज़्यादा ही इंटरेस्ट ले रही थी.....और मैं ये बात अच्छे से समझ रही थी कि वो उसी से मिलने आई है.......बस मुझसे मिलना तो बस जस्ट फॉरमॅलिटी लग रही थी......क्यों कि मैने उसके चेहरे पर थोड़ी सी उदासी देखी थी......
 
अदिति- हां मुझे जलन हो रही है......और कुछ.......अच्छा बता नाश्ता में क्या लेगी.......ठंडा या गरम.......

पूजा- गरम तो मैं ऑलरेडी बहुत हूँ....चल तू मुझे ठंडा ही पिला दे....फिर पूजा मेरी तरफ देखकर धीरे से मुस्कुरा पड़ती है.....मैं भी उसकी बातों को सुनकर एक प्यारी सी स्माइल दे देती हूँ............

हमारी बातों के दरमियाँ पूजा ने एक ऐसी हरकत की जिससे मेरा कलेजा बाहर को आ गया.....उसने अपने दोनो हाथों से मेरे दोनो निपल्स को अपनी चुटकी में पकड़ा और उसे कसकर मसल दिया.....उसकी इस हरकत पर मेरे मूह से एक ज़ोर की सिसकारी फुट पड़ी.......ना चाहते हुए भी मैं शरम से पानी पानी हो गयी........शरम की वजह से मेरा चेहरा एक दम लाल पड़ चुका था.......अब भी मेरा जिस्म थर थर कांप रहा था.......कुछ लज़्जत से और कुछ एग्ज़ाइट्मेंट से.......मेरी दशा को देखकर पूजा मुस्कुराए बिना ना रह सकी......

पूजा- अदिति.......जब मैं तेरे साथ ऐसा कर रही हूँ तो तेरा ये हाल है....तो कसम से अगर कोई लड़का तुझे छुएगा तब तू क्या करेगी.....ऐसे में तो तू शरम से मर जाएगी.......

अदिति- प्लीज़ पूजा स्टॉप दिस.......मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता........

पूजा भी रुक जाती है और मेरे चेहरे को बड़े ध्यान से देखने लगती है.......सच तो ये था कि मुझे पूजा की ये हरकत अच्छी लगी थी मगर मैं उपरी तौर से उससे गुस्सा होने का झूठा दिखावा कर रही थी........पूजा की उस हरकत से मेरी चूत एक बार फिर से गीली हो चुकी थी...........तभी थोड़ी देर बाद पापा और विशाल भी आ जाते है.......घर पर नयी बाइक आ गयी थी......मैं और पूजा फिर हाल में जाते है और वही पूजा सोफे पर बैठ जाती है.......

पापा अपने कमरे में चले जाते है.....विशाल वही सामने के सोफे पर बैठा हुआ था.....और मैं पूजा के लिए स्नॅक्स और कोल्ड ड्रिंक लेने किचन में चली जाती हूँ.......कमरे में कुछ देर तक खामोशी छाई रही मगर थोड़ी देर बाद मुझे पूजा और विशाल की बातें सुनाई देने लगी.......अंदर ही अंदर मैं एक बार फिर से पूजा से जल सी गयी थी......मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था कि वो विशाल से कोई बात करें.......

इससे पहले मेरी ना जाने कितनी सहेलियाँ आया करती थी मेरे घर पर......विशाल मेरी अधिकतर सहेलियों से बातें भी किया करता था....तब मुझे ऐसी फीलिंग्स नहीं होती थी......फिर आज ऐसा क्या हो गया था मुझे जो ये सब मैं सोच रही थी......क्यों मुझे ऐसा बार बार लग रहा था कि विशाल को कोई मुझसे चुरा लेगा......क्या मैं अब विशाल से प्यार करने लगी थी.........मगर प्यार तो मैं उससे पहले भी करती थी........

तो आज क्या मेरा प्यार बदल चुका था......क्या मेरी सारी फीलिंग्स विशाल के प्रति बदल चुकी थी.......क्या मेरे देखने का नज़रिया विशाल के प्रति अब धीरे धीरे बदल रहा था.........यक़ीनन मैं अब विशाल से प्यार करने लगी थी......

थोड़ी देर बाद मैं उनके करीब गयी तो वो दोनो फिर से मुझे देखकर खामोश हो गये........थोड़े देर तक यू ही गप्सप होती रही फिर पूजा अपने घर चली गयी.......पूजा के जाते ही मम्मी भी थोड़े देर में घर आ गयी और फिर उन्होने नयी बाइक की पूजा वगेरह की.......

शाम को मैं मम्मी के साथ किचन में थी......वैसे आज मैं विशाल के बारे में कुछ ज़्यादा ही सोच रही थी...........विशाल के प्रति मेरी दीवानगी अब बढ़ती जा रही थी......पता नहीं आने वाले वक़्त को आगे क्या मंज़ूर था.

मैं किचन में इस वक़्त विशाल के बारे में ही सोच रही थी......मम्मी मेरी बगल में खाना बनाने की तैयारी कर रही थी....अचानक मेरे दिमाग़ में कुछ ख्याल आया और मैं मम्मी से तुरंत बोल पड़ी.......

अदिति- मम्मी आज मुझे पूरी और पनीर खाने का बहुत मन हो रहा है....प्लीज़ आज आप मेरे लिए वही बनाओ ना......मम्मी मुझे एक नज़र देखी रही फिर वो मुस्कुराते हुए फ्रीज़ के पास गयी और उसमे से पनीर निकाल कर वही मेरे सामने उसे बनाने लगी.......

स्वेता- क्या बात है बेटी.....चल खैर कोई बात नहीं.....आज तेरा मन है तो यही सही.......वैसे ये विशाल की पसंदीदा डिश थी......तो स्वाभाविक सी बात थी जो चीज़ विशाल को अच्छी लगती है वो तो मुझे भी अच्छी लगेगी इसमें अब कोई दो राई नहीं थी.........मैं भी मम्मी को देखकर मुस्कुरा पड़ी और उनकी हेल्प करने लगी.......

शाम को जब विशाल की नज़र खाने पर पड़ी तो वो खुशी से मानो खिल सा उठा........मैं उसकी हर एक हरकत पर उसे देखकर मुस्कुराते रही........पता नहीं क्यों आज मुझे विशाल अब और भी प्यारा लगने लगा था.......उसके लिए अब मेरी दीवानगी बढ़ती जा रही थी......शायद ये प्यार ही तो था जो अब धीरे धीरे मेरे दिल में उसके प्रति धीरे धीरे सुलग रहा था.......मगर विशाल के दिल में कहीं कोई ऐसी वैसी मेरे लिए कोई भावना नहीं थी.......

खाना खाने के बाद मैं बिस्तेर पर जाकर काफ़ी देर तक करवट बदलती रही........मेरा अब नींद और चैन दोनो लूट चुके थे.......दिल में हमेशा मीठी मीठी सी चुभन होती रहती थी......ना जाने कब तक मैं ऐसे ही विशाल के बारे में सोचती रही और फिर मैं नींद में धीरे धीरे डूबती चली गयी.......

आज सुबेह जब मेरी आँख खुली तो सबसे पहले मेरे जेहन में विशाल का ख्याल आया....फिर उसकी वो बाइक......उसपर मैं और विशाल एक साथ.....ये सब ख्याल आते ही एक बार फिर से मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी........मैं फ़ौरन अपने बिस्तेर से उठी और बाथरूम में चल पड़ी.....मैने अच्छे से बाथ लिया और हमेशा की तरह आज भी मुझे विशाल बाहर मेरा इंतेज़ार करता दिखाई दिया.......
 
नाश्ता वगेरह करने के बाद मैं विशाल के साथ बाहर गयी तो मम्मी भी मेरे साथ साथ बाहर आई.......विशाल ने अपनी बाइक निकली और फिर मुझे उसपर बैठने का इशारा किया......सामने मम्मी थी इस लिए मुझे विशाल से थोड़ी दूरी बनानी पड़ी......मैने विशाल के कंधे पर अपना एक हाथ रखा और विशाल को चलने का इशारा किया........मम्मी ने विशाल को बाइक धीरे चलाने की हिदायक दी........

थोड़ी दूर जाने पर मैं थोड़ा आगे सरक कर विशाल के और नज़दीक आ गयी......इस वक़्त मेरा एक हाथ उसकी कमर पर था तो दूसरा हाथ उसके पीठ पर.......रास्ता बहुत खराब था जिसकी वजह से विशाल को बार बार ब्रेक लेने पड़ रहे थे....हर ब्रेक पर मैं धीरे धीरे उसके और करीब आती जा रही थी.......अब तक मैं विशाल से पूरी तरह से सटकर बैठ चुकी थी.......अब मेरे दोनो सीने विशाल की पीठ पर चुभ रहें थे.......शायद विशाल भी मेरे दोनो बूब्स को अपने पीठ पर महसूस कर रहा था.........

क्यों कि मैं उसके हाथों की रोयें देख चुकी थी......वो अब पूरे खड़े हो चुके थे......मगर विशाल ने ऐसी कहीं कोई हरकत नहीं कि जिससे मुझे ये लगे की वो मेरे सीने को अपने पीठ पर महसूस कर रहा हो.......मैं एक बार फिर से सरककर उसके और करीब आ गयी और अपने दोनो उभारों का वजन पूरा उसकी पीठ पर डाल दिया.......विशाल ने एक बार पीछे मेरी तरफ पलट कर देखा मगर उसने मुझे कुछ नहीं कहा......फिर वो पहले की तरह बाइक चलाने लगा.......मुझे अब पूरा यकीन था कि विशाल का खून पूरी तरह से गरम हो चुका है.......आधे घंटे के बाद मेरा कॉलेज आ गया........विशाल ने थोड़ी दूर पर बाइक रोक दी.................

विशाल- दीदी कॉलेज आ गया........विशाल जैसे तैसे ये शब्द मुझसे कह पाया......उसकी आवाज़ में कपकपाहट थी........मैं उसके चेहरे पर पसीने को भी सॉफ महसूस कर रही थी.......मैं उससे कुछ नहीं बोली और चुप चाप बाइक से उतर गयी.......विशाल ने अपनी बाइक पार्क की और फिर उसने अपने पेंट को अड्जस्ट किए......मैने एक बार फिर से उसके लंड पर उभार सॉफ देख लिया था.......यक़ीनन आज मेरी उस हरकत से विशाल का लंड खड़ा हो चुका था......फिर वो बाथरूम चला गया और मैं अपनी क्लास के तरफ.......ना चाहते हुए भी मैं अपने चेहरे पर मुसकान लाने से नहीं रोक पाई.....

आज भी मेरा दिन अच्छे से बीत गया......शाम को आते वक़्त पूजा मेरे साथ थी.......जब उसने देखा कि विशाल अपनी बाइक लेकर मेरे पास आ रहा है तो उसने मुझे जलाने के लिए एक चाल चली......

पूजा- विशाल क्या तुम मुझे आज मेरे घर तक छोड़ सकते हो......दर-असल मेरे पाँव में मोच आ गयी है.......मैं चल नहीं पाउन्गि.......अगर तुम मुझे घर तक छोड़ दोगे तो मुझे बहुत खुशी होगी.......एक बार तो मुझे पूजा की बातों को सुनकर बहुत गुस्सा आया.....जैसे तैसे मैं अपना गुस्सा अपने वश में रखा......मगर सच तो ये था कि मैं अंदर ही अंदर जल सी गयी थी.......अगर विशाल मेरे पास नहीं खड़ा होता तो मैं आज पूजा को ऐसा जवाब देती जिससे वो मेरे भाई की तरफ कभी डोरे नहीं डालती.......मगर मैं उसके सफेद झूट को चाह कर भी झुटला नहीं सकती थी......इस लिए मुझे चुप चाप खड़े होकर बस तमाशा देखने के सिवा और कोई चारा नहीं था.........

विशाल ने पूजा को अपनी बाइक पर बैठाया और फिर मुझे थोड़े देर वेट करने को कहा......मुझे ये बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था मगर मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी........पूजा ने भी वही किया होगा जो आज मैने विशाल के साथ किया था......ऐसा मुझे अंदाज़ा था.......थोड़ी देर बाद विशाल वापस आया फिर मैं विशाल के साथ बाइक पर बैठ गयी और अपने घर के तरफ चल पड़ी.......पूरे रास्ते भर मैने विशाल से कोई बात नहीं की थी........और इस बार मैं उससे थोड़ी दूर होकर बैठी थी.....मेरे दिमाग़ में पूजा को कैसे भी करके विशाल से दूर करने का ख्याल घूम रहा था.

वक़्त गुज़रता गया और कुछ दिन बाद फिर से मेरे पीरियड्स शुरू हो गये......उस बीच मैं विशाल से ज़्यादा टच में नहीं रही.......क्यों कि मेरे सामने मज़बूरी थी अगर मेरे अंदर आग लगती भी तो मैं चाह कर भी अपनी प्यास नहीं बुझा सकती थी......इस लिए मुझे विशाल से थोड़ा दूरी बनानी पड़ी.......मगर इससे एक फ़ायदा भी हुआ.......अब मुझे भी ऐसा लगने लगा था कि कहीं ना कहीं विशाल की आँखों में मेरे लिए इंतेज़ार रहता था...........क्यों कि मैं ज़्यादातर समय विशाल से दूर ही रहने की कोशिश करती......मैने अब उसकी आँखों में वो कशिश देखी थी.....

करीब 10 दिन बाद मैं फिर से नॉर्मल हो गयी........उसके एक दिन बाद मेरी एक सहेली रागिनी की शादी का मुझे इन्विटेशन कार्ड आया था......उसने मुझे और विशाल को ख़ास तौर पर अपनी शादी में बुलाया था......रागिनी का भाई विशाल का अच्छा दोस्त था....इस वजह से विशाल को भी उसके शादी में जाना था.......मैने इस बारे में मम्मी से बात की तो मम्मी ने पहले मुझे सॉफ सॉफ मना कर दिया....फिर मैं पापा से ये बात कही तो उन्होने विशाल को मेरे साथ शादी में जाने की इज़ाज़त दे दी........

अब वो दिन भी आ गया था........यानी रागिनी के शादी का दिन.......उस शाम मैं अपने घर पर बैठी हुई थी.......मम्मी और पापा कहीं बाहर गये हुए थे......विशाल भी अपने दोस्तों के साथ कहीं बाहर गया हुआ था.......मैं काफ़ी देर तक यही सोचती रही कि आज शादी में मैं क्या पहनूं.......बहुत सोचने के बाद मुझे साड़ी पहने का ख्याल आया......अभी कुछ दिन पहले मैने वो सेट मम्मी से खरीदवाया था मगर अब तक मैने उसे नहीं पहनी थी........हालाँकि इसी पहले मैने साड़ी कभी नहीं पहनी थी मगर मम्मी ने मुझे साड़ी पहनना सिखा दिया था.......मैने फ़ौरन अपने अलमारी में से वो कपड़े बाहर निकाले.......

वो साड़ी गुलाबी रंग की थी.......जो बहुत प्यारी लग रही थी..........मुझे पूरा यकीन था कि मैं उसमे हर किसी को घायल तो ज़रूर कर दूँगी.......ख़ास कर विशाल को.....फिर मैं बाथरूम में गयी और मैने बाथ लिया..........नहाने के बाद मैं अपने कमरे में गयी मैं इस वक़्त घर में अकेली थी........मैने अपने बदन पर साड़ी लपेट रखी थी जो कमर तक थी.........मगर मेरी ब्रा का हुक मुझसे नहीं लग रहा था...वैसे मैं अक्सर 32 साइज़ की ब्रा पहनती थी मगर आज मैने 30 साइज़ की ब्रा पहनी थी.......तो स्वाभाविक सी बात थी कि वो मेरे बदन पर टाइट होगी.......जिसकी वजह से मेरे ब्रा का हुक नहीं लग रहा था......

जैसे तैसे तो एक हुक लगा फिर बाद में वो भी निकल गया.......इस वक़्त मेरी कमर के उपर का भाग पूरा नंगा था......मैं आईने के सामने बैठी हुई बार बार कोशिश कर रही थी वैसे मेरे दोनो बूब्स ब्रा की क़ैद में थे......तभी मेरे कमरे का दरवाज़ा अचानक खुला जिससे मैं चौक सी गयी.......मैं फ़ौरन दरवाज़े की तरफ पलटकर देखा तो सामने मुझे विशाल खड़ा हुआ दिखाई दिया......उसका मूह पूरा खुल गया था.......वो कुछ देर तक मेरी नंगी पीठ की तरफ देखता रहा अपनी आँखे फाडे........
 
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