Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में - Page 3 - SexBaba
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Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में

वैसे ये पहला मौका था जब वो मुझे इस हाल में देख रहा था.......मैं आगे कुछ कहती या अपने बदन को ढकति उससे पहले विशाल ओह.शिट!!!! कहता हुआ दरवाज़े के तरफ अपना मूह घूमाकर खड़ा हो गया......

विशाल- दीदी आइ अम रियली सॉरी.......मुझे नहीं पता था कि आप कपड़े बदल रही होंगी......अगर मुझे पता होता तो मैं यहाँ कभी नहीं आता......फिर विशाल जैसे ही बाहर जाने के लिए मुड़ता है मेरी आवाज़ सुनकर उसके बढ़ते कदम अचानक से वही रुक जाते है.......

विशाल की बातों को सुनकर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी........मगर मैने ये बात उसे बिल्कुल ज़ाहिर नहीं होने दिया.........

अदिति -इसमें सॉरी की कोई वजह नहीं विशाल....ग़लती मेरी ही थी.....मुझे दरवाज़ा अंदर से लॉक करना चाहिए था.......मगर...............इतना कहकर मैं खामोश हो गयी.......विशाल भी मेरी बात को आगे सुनने के लिए वही खड़ा होकर मेरे आगे बोलने का इंतेज़ार कर रहा था......अब भी उसका मूह दूसरी तरफ था.......

अदिति- विशाल अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो क्या तुम मेरा एक छोटा सा काम करोगे........विशाल मेरी ओर बिना मुड़े जवाब में हां कहकर फिर से खामोश हो जाता है......

अदिति- दर-असल मेरी ब्रा का हुक मुझसे नहीं लग रहा.....क्या तुम प्लीज़ मेरी ब्रा की हुक लगा दोगे.......मेरी बात सुनकर विशाल के मानो होश उड़ गये थे....उसने मुझसे कभी इस बात की उम्मीद नहीं की थी......मैने भी ये बात बहुत हिम्मत जुटाकर उससे कही थी........मगर मुझे पूरा विश्वास था कि विशाल मुझे मना नहीं करेगा......मैं फिर खामोश होकर उसके जवाब का इंतेज़ार करने लगी.....

थोड़ी देर बाद विशाल ने आख़िर चुप्पी तोड़ी- दीदी मुझसे ये नहीं होगा.......अगर मम्मी पापा जान गये तो........और मैं कैसे आपको उस हाल में देख सकता हूँ.......

अदिति- विशाल ........मैं तुमसे कोई ग़लत काम करने को तो नहीं कह रही........मेरी हुक बहुत टाइट है....और अगर मम्मी यहाँ होती तो मैं उनसे ही लगवा लेती.......और रागिनी का भी कई बार फोन आ चुका है.......वो मेरा ही वेट कर रही है......समझा करो हम लेट हो जाएँगे......

विशाल मरता क्या ना करता.......वो कुछ देर तक यू ही खामोश रहता है.......

विशाल- ठीक है दीदी मगर आप मुझे पहले ये वादा करो कि आप ये बात कभी किसी से नहीं कहोगी........मेरे चेहरे पर एक विजयी मुस्कान तैर गयी........मैं उसे पूरा विश्वास दिलाया और फिर मैं अपने दोनो हाथ अपने सीने पर रख दिए......मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था......क्या होगा जब विशाल मेरे नंगी पीठ पर अपना हाथ रखेगा......एक तरफ मेरा दिल ज़ोरों से धधक रहा था वही मेरे अंदर की आग एक बार फिर से धीरे धीरे सुलगने लगी थी.......

उधेर फिर विशाल पीछे घूमकर मेरी ओर अपना चेहरा करता है.......फिर वो मेरी तरफ धीरे धीरे अपने कदम बढ़ाता है.......विशाल की भी हालत खराब थी.......उसका जिस्म थर थर काँप रहा था मैं आईने में उसकी चाल देखकर इस बात का अंदाज़ा आसानी से लगा सकती थी........विशाल जब मेरे करीब आया तो वो मेरी नंगी पीठ को बड़े गौर से देखने लगा......मेरी गोरी पीठ कमर के उपर पूरी नंगी थी.......आज पहली बार मैं उस हाल में विशाल के सामने बैठी हुई थी........

विशाल फिर मेरे पास आया और उसने अपनी आँखें बंद कर ली......शायद उसे बहुत शरम सी लग रही थी.......मगर मेरा सारा ध्यान तो विशाल के चेहरे और उसकी हर हरकत पर था.......जैसे ही विशाल ने मेरे नंगे पीठ को छुआ मेरे मूह से एक हल्की सी सिसकरी फुट पड़ी.......सिसकारी इतनी धीमी थी कि विशाल उसे नहीं सुन सकता था.....मगर हां मुझे देखकर मेरे अंदर उठ रहे उस तूफान को ज़रूर महसूस कर सकता था......जैसे ही उसके हाथों का स्पर्श मेरे पीठ पर हुआ मेरी साँसें बहुत ज़ोरों से चलने लगी.......मेरा दिल बहुत तेज़ी से धड़कने लगा.........

मैं बता नहीं सकती उस वक़्त मैं क्या महसूस कर रही थी......मगर सच तो ये था कि मेरी दोनो निपल्स तन कर बहुत हार्ड हो गयी थी.......मेरी चूत गीली हो चली थी.......जब आईने में मैने विशाल के चेहरे पर नज़र डाली तो उसकी आँखें बंद थी.......वो अपनी आँखे बंद कर मेरी ब्रा के हुक को लगा रहा था.......मैं भी आज पूरे शरारत के मूड में थी.......जब विशाल ने मेरे दोनो ब्रा के स्ट्रॅप्स को पकड़ा फिर वो जैसे ही उसे आगे खीच कर उसका हुक लगाने को आगे बढ़ा मैने अपने सीने को और फैला दिया जिससे उसके हाथों में रखा एक स्ट्रॅप्स छूट गया........
 
तो दोस्तो क्या विशाल अपनी बहन की ब्रा के हुक लगा पाएगा या मामला इससे भी आगे जाएगा आगे पढ़ते रहिए 
और हां आप लोगो ने बिल्कुल ही कमेंट पास करना बंद कर दिया है क्या ये कहानियाँ आपको पसंद नही आ रही है या कोई और बात है ज़रूर बताए क्योंकि किसी भी साइट को पाठक ही बनाते हैं और पाठक ही बिगाड़ते हैं दोस्तो आपके विचारो का स्वागत है और मुझे पूरी उम्मीद है आप लोग इस साइट को आगे बढ़ाने मे हमारी मदद ज़रूर करेंगे 
 
विशाल ने एक दो बार कोशिश की हर बार मैने ऐसा ही किया.......मुझे अब उसकी हर हरकत कर हँसी सी आ रही थी......

अदिति - क्या कर रहे हो विशाल........कैसे मर्द हो....तुमसे एक हुक नहीं लग रहा........अगर कल तो तुम्हारी बीवी आएगी और तुमसे ये कहेगी तो सोचो वो तुम्हारे बारे में क्या कहेगी.......विशाल मेरी बातों को सुनकर लगभग झेप सा गया.....

विशाल- इसमें मेरी क्या ग़लती है......आपका ये इतना टाइट है कि ये मेरी हाथों से फिसल जा रहा है.......

अदिति- फिसलेगा कैसे नहीं.....तुमने अपनी आँखें जो बंद कर रखी है......देख कर लगाओ देखना ये लग जाएगा.......मेरी बातों का असर विशाल पर तुरंत हुआ और उसने झट से अपनी आँखे खोल ली.........मेरे चेहरे पर भी मुस्कान तैर गयी मगर विशाल ने मेरी तरफ ना देखते हुए उसने अपना सारा ध्यान मेरी पीठ पर केंद्रित कर दिया.....

मैं उसके हाथों को अच्छे से अपनी नंगी पीठ पर पल पल महसूस कर रही थी.........मैं तो यही चाहती थी कि काश ये हसीन पल यहीं थम जाए......इधेर विशाल फिर थोड़ा सा झुक कर मेरी पीठ के और करीब आ गया और उसने इस बार मेरे दोनो ब्रा के हुक को अपने हाथों में पकड़ा और फिर उसने इस बार थोड़ा ज़ोर लगाते हुए मेरे ब्रा के हुक को लगाने की पूरी पूर कोशिश की.......इस वक़्त विशाल का चेहरा मेरे पीठ के बेहद करीब था......मैं उसकी साँसे को अपने पीठ पर महसूस कर रही थी.......उसकी गरम साँसें मेरी बेचैनी को और भी बढ़ाती जा रही थी......आख़िरकार उसकी मेहनत रंग लाई और उसे इतनी मेहनत के बाद उसे सफलता मिल ही गयी......

अब तक वो पसीने से बुरी तरह भीग चुका था......ऐसा उसका पहला मौका था जब वो किसी लड़की के साथ इस तरह का काम कर रहा था....भले ही वो लड़की उसकी खुद की बेहन ही क्यों ना हो.....आख़िर थी तो एक लड़की ही.

विशाल के चेहरे पर अब भी बारह बजे हुए थे........मेरा दिल भी बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था.......उस वक़्त मेरा जी कर रहा था कि मैं अभी विशाल के सीने से जाकर लिपट जाऊं और उसके मज़बूत बाहों में अपने आपको पूरा समर्पण कर दूं......मगर ऐसा करने की हिम्मत मुझ में बिल्कुल नहीं थी.....मगर मुझे पूरा यकीन था कि एक ना एक दिन ऐसा आएगा जब विशाल मेरा दामन थामेगा........मुझे अपने इन मज़बूत बाहों में मेरे इस नाज़ुक बदन को मसलेगा......मुझे उस दिन का बहुत बेसब्री से इंतेज़ार था.......

इस वक़्त तो मैं बाथरूम में जाना चाहती थी ताकि मैं अपने आप को शांत कर सकूँ.....मेरा जिस्म फिर से हवस की आग में तप रहा था.....मगर मैं पहले से ही लेट हो चुकी थी और अब मम्मी पापा भी आने वाले थे......विशाल मुझसे कुछ ना कह सका मगर जाते जाते वो एक बार फिर से मेरी नंगी पीठ का दीदार अच्छे से करता हुआ कमरे से बाहर चला गया........फिर मैने थोड़े देर बाद बाथरूम की आहट सुनी........एक बार फिर से मेरे चेहरे पर शरारती मुस्कान तैर गयी......आज फिर विशाल मेरे नाम की मूठ मार रहा था बाथरूम के अंदर........

करीब 10 मिनिट बाद मम्मी पापा भी आ गये......और विशाल थोड़ी देर बाद हॉल में आकर टी.वी देखने लगा.......करीब 1/2 घंटे बाद मैं पूरी तैयार होकर कमरे से बाहर निकली.......जब मैं विशाल के सामने गयी तो एक बार फिर से मेरा कलेजा ज़ोरों से धड़कने लगा.......ऐसा पहला बार था जब मैने विशाल के सामने साड़ी पहनी थी......मुझे अपने आप पर नाज़ था कि मेरा आज ये रूप देखकर विशाल ज़रूर घायल हो जाएगा......और ऐसा हुआ भी जब उसकी नज़र मुझपर पड़ी तो वो अपनी आँखें फाडे मुझे देखता ही रहा........

मम्मी पापा भी मेरी तारीफ किए बिना ना रह सके.........मैं जब विशाल के नज़दीक गयी तो वो मुझे अब भी आँखें फाडे देख रहा था....मुझे उसके इस तरह से देखने पर मुझे हँसी सी आ रही थी.......

स्वेता- बेटा अपना ध्यान रखा......और हां विशाल तू अदिति के सात साथ रहना.........आज कल जमाना खराब है........कहीं कुछ उन्च नीच हो गयी तो.......मैं मम्मी की बातों को सुनकर मुस्कुरा पड़ी.......मम्मी क्या जानती थी कि उनकी बेटी की नियत उसके बेटे पर ही खराब हो चुकी है......मेरा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा मगर हां विशाल के साथ ज़रूर कुछ ना कुछ होगा अगर वक़्त रहते मैं उसे सिड्यूस कर सकी तो......

विशाल- आप निसचिंत रहिए मम्मी मैं दीदी के साथ रहूँगा......फिर मैं विशाल के साथ उसकी बाइक पर जाकर बैठ गयी.......मेरे बदन से भीनी भीनी पर्फ्यूम की खुसबू उठ रही थी जो विशाल की सांसो में उसकी खुसबू अब धीरे धीरे फैल रही थी.......मेरे बदन की खुश्बू से वो मानो अब पागल सा हो रहा था.......मैं आज फिर से उससे सट कर बैठ गयी और अपने सीने का पूरा वजन उसकी पीठ पर रख दिया.......विशाल बाइक चला रहा था मगर आज उसका सारा ध्यान मेरी तरफ था......बाइक के शीशे में मैं उसके चेहरे को पल पल देख रही थी......उसका ज़्यादातर ध्यान मेरी तरफ था ना कि रोड के तरफ...........

अदिति- विशाल .........तुमने मुझे बताया नहीं कि मैं आज कैसी लग रही हूँ........मैने अपने बीच इस खामोशी को तोड़ते हुए विशाल से ये सवाल किया.....फिर मैं उसके जवाब का बेसब्री से इंतेज़ार करने लगी.......

विशाल- हमेशा की तरह दीदी आप आज भी बहुत खूबसूरत लग रही हो......मगर.......इतना कहकर विशाल चुप हो जाता है.......

अदिति - मगर क्या विशाल.........
 
अदिति- दीदी सच कहूँ तो आज तो मैं आपको एक पल तक देखता ही रह गया.........आज तो आप वाकई में कमाल की लग रही हो.....आप पर साड़ी बहुत प्यारी लग रही है........आप सच में बहुत खूबसूरत हो.......

मैं विशाल की बातों को सुनकर मुस्कुराए बिना ना रह सकी.........

अदिति- सच .......थॅंक्स भाई.......तुम भी तो बहुत हॅंडसम हो.......और आज तुम भी तो बहुत स्मार्ट लग रहे हो........

विशाल- अपनी ऐसी किस्मेत कहाँ दीदी.......कि कोई लड़की मुझे पसंद करें........सच तो ये है कि कॉलेज में एक मेरे ही दोस्तों का ग्रूप है जिनकी अब तक कोई गर्लफ्रेंड नहीं बनी.......पता नहीं लड़के लड़कियाँ कैसे पटा लेते है....मुझसे तो ये सब नहीं होता है.......

अदिति- ऐसी बात नहीं है विशाल......पूजा तो तुम्हें पसंद करती है......अगर वो तुम्हें पसंद है तो मुझसे कहो मैं उससे इस बारे में बात करती हूँ.......

विशाल- नहीं दीदी मुझे पूजा पसंद नहीं.......वो शकल से मुझे बहुत चालू लगती है.......पता नहीं आपकी दोस्ती उस लड़की से कैसे हो गयी.......वो बहुत बोल्ड किसम की है......और मुझे सादी पसंद है........पता नहीं क्यों पर विशाल की बातों को सुनकर मुझे बहुत सुकून सा मिला.....अब मैं पूजा की तरफ से बेख़बर सी हो गयी थी......मैं मन ही मन झूम सी उठी..... 

अदिति - और मैं ..........तुम्हें मैं कैसी लगती हूँ........मेरा मतलब........

विशाल- दीदी.......वाइ यू कंपेर वित अदर्स........आप बेहन हो मेरी.........आप मेरे लिए हमेशा से बेस्ट हो और हमेशा रहोगी.......

अदिति- विशाल मैं एक बात कहूँ तुमसे तुम बुरा तो नहीं मनोगे.........अगर मैं तुम्हारी बेहन नहीं होती तो क्या तुम मुझे........

विशाल- ओफकौर्स दीदी.......इस लिए तो मैने आपसे एक बार ये बात कही थी कि काश आप मेरी बेहन नहीं होती......तो मैं आपको पटा कर अपनी गर्लफ्रेंड बना लेता.......जिस सादगी से मुझे प्यार है वो सब आप में मौजूद है.......आप बहुत सिंपल है इस लिए तो मैं आपको बहुत पसंद करता हूँ.....मगर ये सब बातों से अब कोई फ़ायदा नहीं....मगर जिस दिन मुझे आपकी टाइप की लड़की मिल गयी मैं उस दिन उस लड़की से ज़रूर शादी कर लूँगा.......

विशाल की बातों को सुनकर मैं मुस्कुराए बिना ना रह सकी........मगर दिक्कत तो ये थी कि आज हमारे बीच रिश्तों की एक मज़बूत दीवार थी....और इस दीवार का टूटना शायद इतना आसान नहीं था......मगर अब विशाल के प्रति मेरी चाहत बढ़ती जा रही थी .........मैं अब विशाल को पाने के लिए किसी भी हद तक गुज़र सकती थी.......मगर जो कुछ भी करना था मुझे अपने दायरे में रख कर करना था.......मैं विशाल की नज़रो में गिरना नहीं चाहती थी........

अदिति- तुम्हें वैसी लड़की ज़रूर मिलेगी......और अगर तुम्हें नहीं मिली उस टाइप की लड़की तो मैं हूँ ना तुम्हारे लिए......तुम मुझसे ही शादी कर लेना......और इतना कहकर मैं ज़ोरों से हंस पड़ी......विशाल भी मेरी बातों को सुनकर मुस्कराता रहा..........विशाल ने मेरी बातों को मज़ाक में लिया था मगर सच तो ये था कि मैं अपने दिल की बात आज अपने ज़ुबान पर ला चुकी थी.......

विशाल- हां सही कहाँ दीदी आपने ......आप दूसरा ऑप्षन तो है ही मेरे लिए.......मन विशाल की बातों को सुनकर मन ही मन झूम उठी......और उधेर विशाल भी मुस्कुरा पड़ा.......मैं एक बात तो आज समझ चुकी थी कि आज विशाल के दिल में मेरे प्रति थोड़ी सी चिंगारी सुलग चुकी है.....अब बस मुझे उस चिंगारी को थोड़ी सी हवा देनी है.......फिर ये चिंगारी शोला बनने में ज़्यादा देर नहीं लगेगी.....

फिर हम रागिनी के घर पहुँच गये........मैं मन ही मन आज बहुत खुस थी.......विशाल भी मेरे बारे में कुछ ऐसा ही सोचता था मगर आज हमारे बीच रिश्तों की दीवार थी जो अब मुझे किसी भी हाल में ये दीवार को हमारे बीच से गिरानी थी........

शादी में काफ़ी लोग आए थे....आधिकांश मर्दों की नज़र मेरे उपर थी........मगर मेरी नज़र तो विशाल पर थी....वो भी बीच बीच में मुझे देखता रहता.....और जब मैं उसकी आखों से दूर होती तो उसकी आँखे मुझे ही तलाश करती......शादी में हम ने बहुत मज़े किए......रात के करीब 12 बज रहें थे.........मैं अपनी सहेलियों के बीच थी तभी मैने विशाल को छत पर जाते देखा......मैं भी थोड़ा टाइम निकाल कर उसके पास जा पहुँची......

मैं बता नहीं सकती कि उस वक़्त समा कितना रंगीन था......आसमान में चाँदनी अपने पूरे शबाब पर थी......नीचे शादी का महॉल था.......और उपर विशाल अकेले छत पर खड़ा चुप चाप आसमान की ओर देख रहा था......मैं जब उसके करीब गयी तो मैने उसके कंधे पर अपना एक हाथ रख दिया.....विशाल मेरी तरफ देखा मगर फिर वो आसमान की ओर देखने लगा........

अदिति- क्या बात है विशाल.....तुम यहाँ........कुछ हुआ क्या.......

विशाल- नहीं दीदी......बस थोड़ा थक गया था इस लिए मैं यहाँ अपनी थकान दूर करने चला आया......मैं फिर जैसे ही जाने के लिए मूडी तभी विशाल ने झट से मेरा एक हाथ थाम लिया.......वैसे तो ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी मगर विशाल के उस तरह हाथ पकड़ने से मेरा कलेजा ज़ोरों से धड़कने लगा.......मैं वही खामोशी से उसके जवाब का इंतेज़ार करने लगी........

विशाल- दीदी मैं बहुत दिनों से आपसे एक बात कहना चाहता था मगर कभी कह ना सका.......शायद मैं डरता था कि कहीं आप मुझसे नाराज़ तो नहीं हो जाएँगी.....अगर आप इसकी इज़ाज़त दें तो मैं क्या वो बात आपसे कह सकूँ......
 
मैं विशाल की बातों को सुनकर उसकी तरफ पलटी और उसके चेहरे की तरफ बड़े गौर से देखने लगी......मैं उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही थी.....पता नहीं ऐसी कौन सी बात विशाल मुझसे कहना चाहता था......ऐसी कौन सी बात थी जो उसे मुझसे कहने से रोक रही थी.......मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़कने लगा.......मैं बड़ी शिद्दत से विशाल के जवाब का इंतेज़ार करने लगी.

विशाल अभी भी मेरे सामने चुप चाप खड़ा था अपनी गर्देन नीचे झुकाए........जैसे जैसे वक़्त गुज़र रहा था मेरे दिल की बेताबी भी पल पल बढ़ती जा रही थी.....दिल में बार बार यही सवाल उठ रहा था कि ऐसी कौन सी बात है जो विशाल मुझसे कहना चाहता है.....आख़िर कर मेरा सब्र टूट गया और मैं आख़िर विशाल से बोल पड़ती हूँ.....

अदिति- क्या बात है विशाल........कुछ तो कहो........

विशाल मेरी तरफ एक नज़र मेरी आँखों में देखने लगा फिर उसने वो बात एक ही पल में मुझसे कह डाली........

विशाल- दीदी आइ अम इन लव........मुझे किसी से प्यार हो गया है.......विशाल के मूह से ऐसी बातें सुनकर मैं अपनी आँखें फाडे उसके चेहरे की ओर एक टक देखने लगी......ये मेरे लिए किसी शॉक से कम नहीं था.......एक पल तो मुझे अपने सारे अरमानों पर मानो पानी फिरता सा नज़र आने लगा......मैं बहुत मुश्किलों से अपने जज़्बातो को संभाल रही थी.......मुझे ऐसा लगा कि मैं वही विशाल के सामने रो पड़ूँगी........दिल में एक तेज़ दर्द की लहर सी दौड़ पड़ी थी मगर मैं अब उस सच को झुटला नहीं सकती थी......बहुत मुश्किलों से मैं विशाल से बस इतना ही पूछ पाई......

अदिति- किससे........कौन है वो!!!!

विशाल- मैं नाम नहीं बताउन्गा उसका......मगर जो भी है वो बहुत ख़ास है........और वो मेरे दिल के बहुत करीब है......मैं उसके बारे में दिन रात सोचता हूँ......हर पल हर घड़ी मुझे उसका ही इंतेज़ार रहता है......आप ही बताओ कि मुझे उससे अपनी दिल की बात कहनी चाहिए.........या नहीं.........

मेरे लिए ये किसी बॉम्ब के धमाके से बिल्कुल कम नहीं था.........मैं ये सोचने पर मज़बूर हो गयी थी कि विशाल किस लड़की के प्यार में पड़ गया है.......अब एक बार फिर से मुझे मेरी हार सॉफ दिखाई दे रही थी........मगर आज विशाल ने तो मुझसे ये बात कही थी कि वो किसी लड़की को जानता भी नहीं.....और पूजा उसे पसंद नहीं......फिर ये मेरे रास्ते की काँटा बनकर कौन आ गयी.......मैं अपने सवालों जवाबों में फँसी थी तभी विशाल की आवाज़ सुनकर मैं अपने सोच से बाहर आई......

विशाल- दीदी आपने मुझे बताया नहीं........मुझे क्या करना चाहिए.......

मैं क्या कहती मुझे तो बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा था फिर भी मैं इतना ही विशाल से कह पाई- हां तुम्हें जाकर उसे प्रपोज़ कर देना चाहिए......फिर मैं वहाँ एक पल भी नहीं रुकी और फिर वहाँ से लगभग भागते हुए रागिनी के कमरे में गयी और उस कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर बिस्तेर पर जाकर फुट फुट कर रोने लगी........पता नहीं क्यों मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था विशाल का इस तरह से मुझसे दूर जाना......शायद अब मुझे आभास हो चुका था कि मैं अब हार चुकी हूँ........घंटों मैं वही रोती रही और कब मेरी आँख लग गयी मुझे पता भी नहीं चला.......

सुबेह रागिनी की बिदाई हुई तो उसने मुझसे इस बात की शिकायत की कि वो मेरे साथ क्यों नहीं रही......कैसे मैं उसे बताती कि आज मेरे दिल पर क्या बीत रही है.....मैं बस उससे ये कहा कि मेरी तबीयात थोड़ी ठीक नहीं थी........फिर कुछ देर बाद मैं विशाल के साथ अपने घर आ गयी......मैं पूरे रास्ते भर खामोश रही.......मेरा दिल कहीं नहीं लग रहा था......विशाल ने भी मेरे चेहरे पर उदासी सॉफ देख ली थी मगर उसकी हिम्मत नहीं थी कि वो मुझसे कोई बात पूछ सके.......मैं अपने घर पहुँचकर अपने कमरे में गयी और अपना रूम अंदर से लॉक कर सोने की कोशिश करने लगी........

मगर नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी.....मैं वही बिस्तेर पर रोती रही और विशाल के बारे में सोचती रही......थोड़े देर बाद मेरे कमरे का दरवाज़ा विशाल ने नॉक किया तो मैं अपने आँखों से बहते आँसू पोन्छने लगी और जाकर दरवाज़ा खोला......विशाल मेरे चेहरे को बड़े गौर से देख रहा था.....शायद वो मेरे दिल का हाल जानने की कोशिश कर रहा था.........उसने मेरी आँखों की नमी देख ली थी......

विशाल- दीदी आप ठीक तो है ना......मम्मी पापा अभी बाहर गये हुए है......वो दो तीन घंटे बाद वापस आएँगे.......मैं खामोशी सी वही चुप चाप खड़ी रही और विशाल की बातें सुनती रही.....विशाल फिर मेरे बेडरूम में आया और आकर वही बैठ गया मैं भी वही उससे थोड़े दूर पर जाकर बैठ गयी........

विशाल- दीदी मैं देख रहा हूँ कि आप कल से बहुत उदास है......बात क्या है......क्या किसी ने कुछ कहा आपसे......क्या मुझसे कोई भूल हुई......

अदिति- नहीं विशाल ऐसी कोई बात नहीं.......बस कुछ तबीयत ठीक नहीं लग रही......

विशाल- दीदी एक बात कहूँ.....आप नाराज़ तो नहीं होंगी......

मैं फिर विशाल के चेहरे की ओर देखने लगी.....एक बार फिर से मेरा दिल ज़ोरों से धड़कने लगा.......मुझे कल की सारी बातें एक एक कर मेरे दिमाग़ में फिर से घूमने लगी......

विशाल- दीदी मैने कल जो बात आपसे कही थी वो बात मैने अधूरी छोड़ दी थी.....मैने उस लड़की का नाम नहीं बताया था आपको......आप जानना नहीं चाहोगी कि वो लड़की कौन है......मैं किससे प्यार करता हूँ.......

मुझे अब विशाल पर गुस्सा आने लगा था........ मैं वही खामोश रही और उसकी बातें चुप चाप सुनती रही.........

विशाल- वो लड़की ..........कैसे कहूँ मैं आपसे......पता नहीं मैं ये बात आपसे कहूँ या नहीं......

मेरे अंदर का गुस्सा अब भड़क चुका था मैं विशाल के नज़दीक गयी और उसपर लगभग चिल्ला पड़ी- मुझे तुम्हारी निजी ज़िंदगी से कोई लेना देना नहीं है.......बताना है तो बताओ नहीं तो दफ़ा हो जाओ यहाँ से.......मुझे इस बारे में तुमसे अब कोई बात नहीं करनी.......मेरा ये बदला हुआ रूप देखकर विशाल खामोश होकर मेरी तरफ देखने लगा फिर उसने काग़ज़ का एक टुकड़ा अपने जेब से निकाला और मुझसे बिना कुछ कहे मेरे कमरे से बाहर चला गया...........मैं चुप चाप विशाल को जाता हुआ देखती रही......मैं ये बिल्कुल नहीं समझ पा रही थी कि मैं जो कर रही हूँ वो सही है या ग़लत......और जो मेरे साथ हो रहा है क्या वो सही है......

कुछ देर तक मैं वही खामोश रही फिर मैं गुस्से से उठकर विशाल के कमरे के तरफ चल पड़ी.....अभी भी वो काग़ज़ का टुकड़ा मेरे हाथ में था.......मैं जब विशाल के कमरे में पहुँची तो वो मुझे बड़े गौर से देख रहा था......वो मेरे दिल का हाल जानना चाहता था........मैं उसके नज़दीक गयी और वो काग़ज़ का टुकड़ा उसके मूह पर मार दिया.......विशाल ने मुझसे एक शब्द ना कहा और चुप चाप वही खामोश खड़ा रहा.......
 
अदिति- बंद करो अपनी ये बकवास........मुझे कोई इंटरेस्ट नहीं है तुम्हारे बारे में और ना ही उस लड़की के बारे में कुछ जानने की.........मैं जैसे ही फिर मूडी अपने कमरे की तरफ वैसे ही विशाल ने झट से मेरा एक हाथ थाम लिया........मैं पहले से ही गुस्से में चूर थी उसका इस तरह से मेरा हाथ पकड़ना मेरे गुस्से को जैसे और मानो भड़का सा दिया......... मैं फ़ौरन उसकी तरफ पलटकर उसकी आँखों में घूर्ने लगी और अगले ही पल मैने एक ज़ोरदार थप्पड़ विशाल के गालों पर कसकर जड़ दिया.....थप्पड़ इतना ज़ोरदार था कि उसकी गूँज पूरे कमरे में सॉफ सुनाई देने लगी......

विशाल चुप छाप अपनी गर्दन नीचे झुकाए मेरे सामने खड़ा रहा........मेरा गुस्सा अब बहुत हद तक कम हो चुका था......फिर मेरी नज़र उस काग़ज़ के टुकड़े पर गयी जो अभी कुछ देर पहले मैने विशाल के मूह पर मारी थी.......मैने उस काग़ज़ को अपने हाथों में लिया और उसे खोलकर पढ़ने लगी.......जैसे जैसे मैं वो सब कुछ पढ़ रही थी वैसे वैसे मुझे झटके पर झटके लग रहे थे.......विशाल ने उस काग़ज़ में मेरे बारे में लिखा था.........वो भी अब मुझे चाहने लगा था मगर बेहन की रूप में नहीं बल्कि प्रेमिका के रूप में........

शायद विशाल को ऐसा लगा कि ये सब पढ़ने के बाद मैं उसके साथ ऐसा सुलूक कर रही हूँ और उसका ये सोचना बहुत हद तक सही था......मगर सच तो ये था कि मैं अब उसके सामने ही वो सब कुछ पढ़ रही थी जो उसने मेरे लिए लिखा था.......मैं पढ़ती गयी और वैसे वैसे मेरी आँखों से आँसुओ की धारा भी और तेज़ होती गयी.......

जब मैने वो सब पढ़ लिया तो मैं वही खामोश होकर विशाल के चेहरे की ओर एक टक देखने लगी......विशाल अब भी मेरे सामने अपनी गर्दन नीचे झुकाए खड़ा था......

अदिति- ये सब क्या है विशाल.........तो तुम ये कहना चाहते हो कि तुम्हें मुझसे प्यार हो गया है........ये जानते हुए भी कि तुम्हारा और मेरा रिश्ता क्या है......प्यार तो मैं भी तुमसे बहुत करती हूँ मगर.............इतना कहकर मैं खामोश हो गयी..........

विशाल फिर मेरे नज़दीक आया और मेरे सामने आकर खड़ा हो गया-दीदी जो मुझे ठीक लगा वो मैने इस काग़ज़ के ज़रिए आपसे कह दिया.......मगर सच तो ये है कि आप ही वो लड़की है जिसके बारे में मैं रात दिन सोचता रहता हूँ.......ये जानते हुए भी कि आप मेरी बेहन है..........ऐसा पहही बार किसी के साथ हुआ होगा कि किसे लड़के ने अपनी बेहन को लव लेटर दिया हो......सुनने में ये सब अजीब लगता है मगर सच तो ये है कि मैं आपसे अब दूर नहीं रह सकता.........आप मुझे ग़लत मत समझिएगा......

विशाल की बातों को सुनकर मुझे ये समझ नहीं आया कि मैं उसकी बातों से खुस होउँ या दुखी......मगर यही तो मैं चाहती थी......मैं भी तो विशाल को चाहने लगी थी.......फिर अब मैं आगे क्यों नहीं बढ़ रही थी......क्यों मैं उसके सारे सवालों का जवाब नहीं दे रही थी.........

विशाल- दीदी जाने अंजाने में मैने अगर आपका दिल दुखाया हो तो आइ अम सॉरी.......फिर विशाल मेरे सामने से होता हुआ कमरे से बाहर जाने लगा तभी मेरे अंदर की आग अचानक से भड़क उठी और मैने विशाल का हाथ फ़ौरन थाम लिया......और उसे अपनी तरफ खीच लिया.......मेरे इस तरह खीचने से विशाल फ़ौरन रुक गया और वो अब मेरे सामने आकर खड़ा हो गया........

मैं उसकी आँखों की तरफ बड़े गौर से देखने लगी......उसकी दिल की बातें अब मैं उसकी आँखों से सॉफ पढ़ सकती थी.......विशाल ने इस बार अपनी नज़रें नीचे नहीं की और मेरी आँखों में ऐसे ही घूरता रहा.......मैं भी एक पल के लिए उसी इन नशीली आँखों में मानो डूब सी गयी.......अगले ही पल मैं उसके और करीब गयी और मैने फ़ौरन विशाल के सिर पर अपना एक हाथ रखा और उसके होंटो को अपने होंठो के और करीब ले गयी.........इधर मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था........अब मेरे होंठो और विशाल के होंठो के बीच चन्द फ़ासले थे.......

मैं कुछ पल तक विशाल की आँखों में देखती रही फिर मैने अपना लब बहुत आहिस्ता से विशाल के लबों पर रख दिए........ऐसा पहली बार था जब मैं किसी मर्द के होंठ चूम रही थी ये एहसास मेरे लिए बिल्कुल नया था......जैसे ही मैने विशाल के लबों को छुआ मेरी आँखे खुद ब खुद बंद हो गयी.......मैं उस पल में सब कुछ भूल चुकी थी .......हमारे बीच सारे रिश्ते नाते.......मान मर्यादा......मुझे ये भी होश नहीं था कि मैं क्या कर रही हूँ.....बस मुझे ये होश था कि मैं अपने अंदर की आग को जल्द से जल्द बुझाना चाहती हूँ......चाहे वो ग़लत कदम ही क्यों ना हो......

विशाल के लिए ये बहुत बड़ा झटका था......वो मेरे अंदर इस तरह के बदलाव को बिकलूल नहीं समझ पा रहा था......मगर उस वक़्त वो भी सब कुछ भूल चुका था......वो भी अब मुझ में पूरी तरह से डूबना चाहता था.......मेरी जवानी का रूस पीना चाहता था......देखना ये था कि आगे ये हवस की आग हम दोनो को कौन से मोड़ पर लाकर खड़ा करती है.

मैं इस वक़्त सब कुछ भूल चुकी थी.........मुझे ये भी होश ना था कि सामने मेरा अपना भाई है......ना की कोई प्रेमी......मेरे लब इस वक़्त विशाल के लबों को छू रहें थे......मैं बहुत आहिस्ता से विशाल के नचले होंठ को अपने दाँतों के बीच दबाकर उसे हौले हौले काट रही थी......मेरी गरम साँसें विशाल भी अपने अंदर पल पल महसूस कर रहा था.........उसकी साँसें भी मेरी रगों में धीरे धीरे घुल रही थी.....अब मैं पूरी तरह से मदहोश होने लगी थी.......धीरे धीरे मेरे बदन से अब मेरा कंट्रोल मानो ख़तम सा होता जा रहा था......मेरी आँखें इस वक़्त बंद थी मगर मैं इस वक़्त अपने आप को जैसे जन्नत में महसूस कर रही थी.......

विशाल कुछ देर तक वैसे ही खामोशी से मेरे सामने खड़ा रहा फिर उसने भी अपने होंठो को धीरे धीरे हरकत करनी शुरू कर दी......उसने मेरे गुलाबी होंठो को धीरे धीरे चूसना शुरू कर दिया.........अब वो भी मेरे नीचले होंठ को अपने दाँतों के बीच दबाकर उसे हौले हौले काट रहा था......उसकी जीभ मेरी जीभ से बार बार टच हो रही थी.......जीभ के टच होने से मेरे बदन में मानो एक आग सी लगती जा रही थी........मेरे अंदर की आग अब धीरे धीरे सुलग रही थी......मैं लगभग अपने आपको विशाल के हवाले कर चुकी थी.......करीब दो मिनिट तक विशाल मेरे लबों को ऐसे ही चूस्ता रहा और इधेर मैं भी उसका पूरा साथ देती रही.........अब मेरा बदन किसी आग की भट्टी के समान तप रहा था.......

तभी अचानक मेरे दिमाग़ में कुछ ख्याल आया और मैं फ़ौरन विशाल से दूर हो गयी......मैने फ़ौरन अपनी आँखें खोली तो उस वक़्त मेरी आँखें सुर्ख लाल हो चुकी थी......मैं विशाल की आँखों में देखने लगी........वो भी मेरी इन आँखों को घूर रहा था.......एक पल बाद मैने झट से अपनी नज़रें नीचे की और मैने विशाल को अपने आप से दूर किया और लगभग वहाँ से भागते हुए अपने कमरे में आ गयी और अंदर आकर मैने दरवाज़ा बंद कर लिया......इस वक़्त मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था......मेरी साँसें बहुत ज़ोरों से चल रही थी........घबराहट और बेचैनी की वजह से मेरे चेहरे पर पसीने की कुछ बूँदें भी सॉफ नज़र आ रही थी.......

मैं इस वक़्त दरवाज़े से सट कर खड़ी थी........मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि जो कुछ मेरे साथ हो रहा है क्या वो सही है......जो मैं कर रही हूँ क्या वो ठीक है........एक तरफ मेरा दिल इस बात को मान रहा था कि जो हो रहा है सब सही है......मगर दूसरी तरफ मेरा दिमाग़ पल पल इस बात की मुझे चेतावनी दे रहा था कि अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा अदिति .......रुक जा ......नहीं तो इस हवस की आग में एक दिन सब कुछ जलकर खाख हो जाएगा........

उधेर विशाल अपने कमरे में ही रहा शायद उसकी बिल्कुल हिम्मत नहीं थी कि वो मेरे सामने भी आ सके.......मैं घंटों अपने कमरे में चुप चाप बैठी यही सब सोचती रही......आज ये सब मेरी ही ग़लती का नतीज़ा था......ना मैं विशाल को ऐसे ऐक्स्पोज करती और ना ही ये बात यहाँ तक आती......मगर कमाल की बात तो ये थी कि मेरे दिल में कहीं कोई इस बात का पस्चाताप नहीं हो रहा था.....थोड़ी देर बाद मम्मी पापा भी आ गये.......मैं असमंजस में फँसी रही कि आज मैं अपने दिल की सुनू या फिर अपने ............दिमाग़ की........
 
रात में डिन्नर के वक़्त डाइनिंग टेबल पर विशाल अपनी नज़रें नीचे झुकाए बैठा रहा और चुप चाप खाना ख़ाता रहा......मैं भी वही खामोशी से खाना खा रही थी......मेरे अंदर भी हिम्मत नहीं थी कि मैं उसकी तरफ एक नज़र भी देखूं........मगर मम्मी को इस बात का एहसास हो चुका था........

स्वेता- क्या हुआ अदिति..... विशाल से आज तेरा झगड़ा हुआ है क्या......रोज़ तू इससे बक बक करती रहती है और आज ये तुम दोनो के बीच इतनी गहरी खामोशी.......बात क्या है.......

मैं मम्मी के सवालों का क्या जवाब देती......क्या बताती उन्हें कि हमारे बीच अब क्या चल रहा है.......मैं कुछ ना बोल सकी और वहाँ से फ़ौरन उठकर अपने कमरे में आ गयी और मैने दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया......मम्मी मेरे इस तरह के बर्ताव को बिल्कुल ना समझ सकी और फिर विशाल के चेहरे की तरफ देखने लगी......

स्वेता- बात क्या है विशाल.......क्या हुआ है तुम दोनो के बीच.......आख़िर किस बात का झगड़ा है.......कब तुम दोनो के अंदर समझ आएगी की अब तुम बच्चे नहीं रहे........

विशाल कुछ ना बोल सका और चुप चाप मम्मी की डाँट सुनता रहा.......सच तो ये था कि आज विशाल के पास भी कहने के लिए कुछ नहीं बचा था........

दूसरे दिन सुबेह जब मेरी आँख खुली तो मेरे जेहन में एक बार फिर से कल की सारी घटना याद आ गयी......ये सब सोचकर मेरे चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर गयी.......मैं फिर रोज़ की तरह तैयार होकर कॉलेज के लिए निकल पड़ी......विशाल अपनी बाइक निकाल कर बाहर मेरे आने का ही इंतेज़ार कर रहा था........मम्मी भी वही खड़ी थी........मैं विशाल से कुछ ना बोली और चुप चाप उसकी बाइक पर जाकर बैठ गयी.......एक बार फिर विशाल को अपने करीब पाकर मेरा दिल ज़ोरों से धड़कने लगा था.....कुछ वैसा ही हाल उधेर विशाल का भी था........

थोड़ी दूर जाने पर भी हम दोनो बिल्कुल खामोश रहें......ना मैने कुछ कहा और ना ही विशाल ने......आख़िर विशाल ने अपनी चुप्पी तोड़ी........

विशाल- दीदी आइ अम सॉरी......जो कल हुआ हमारे बीच उसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूँ......

मैं चाह कर भी कुछ ना बोल सकी और यू ही खामोशी से विशाल की बातें सुनती रही.......शायद विशाल को मेरे जवाब का इंतेज़ार था.......जब कुछ देर तक मैं कुछ ना बोली तो उसने फिर दुबारा अपनी बात कही.......

विशाल- मैं जानता हूँ दीदी कि आप मुझसे नाराज़ है......और आपका मुझसे नाराज़ होना बिल्कुल लाजमी है.......मगर........

अदिति- विशाल मुझे तुमसे कोई नाराज़गी नहीं है......बस थोड़ा शर्मिंदगी की वजह से मैं तुम्हारा सामना नहीं करना चाहती थी......ग़लती मेरी ही थी जो मैने तुमपर अपना हाथ उठाया......मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था........मेरे इतना कहने पर विशाल को मानो एक नयी हिम्मत मिल गयी.....

विशाल के चेहरे पर खुशी झलक पड़ी- अच्छा किया आपने जो मुझपर अपना हाथ उठाया......वैसे आप बहुत ज़ोर का थप्पड़ मारती है.......दूसरी बार मैं आपके हाथों से थप्पड़ खा रहा हूँ....पर सच कहता हूँ दीदी मुझे बहुत अच्छा लगा........

विशाल के मूह से ऐसी बातें सुनकर मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी- क्या अच्छा लगा विशाल ........थप्पड़ खाना......अगर ज़्यादा बक बक करोगे तो एक और कान के नीचे लगाउन्गि........

विशाल- नहीं दीदी थप्पड़ के बाद वाला........वो किस......विशाल इतना कहकर ज़ोरों से हंस पड़ा और मेरा चेहरा शरम से बिल्कुल लाल पड़ गया......आख़िरकार मेरे चेहरे पर भी एक प्यारी सी मुस्कान आ ही गयी.......फिर हम कॉलेज पहुँच गये......मेरा सारा टेन्षन अब दूर हो चुका था.......

जैसे तैसे वक़्त गुज़रा और फिर कॉलेज की छुट्टी हुई......मेरा शैतानी दिमाग़ फिर से इधेर उधेर भटक रहा था........विशाल फिर बाइक लेकर मेरे पास आया और मैं उसे देखकर मुस्कुराते हुए बाइक पर बैठ गयी........फिर उसने बाइक घर की तरफ मोड़ दी.....

अदिति- विशाल मुझे कुछ ज़रूरी समान अपने लिए खरीदना है.......पहले तुम मार्केट चलो फिर हम वहाँ से घर चलेंगे.......

विशाल- कैसा समान दीदी.......

अदिति- दर-असल मुझे वो ........खरीदना है......

विशाल- वो क्या दीदी.....बताओगी नहीं तो मैं बाइक कहाँ रोकुंगा......

मैं विशाल को कैसे बताती कि मुझे ब्रा और पैंटी लेनी है......

विशाल- बताओ ना दीदी......क्या खरीदना है आपको.....

मैं कुछ पल तक खामोश रही फिर मैं एक ही साँस में बोल पड़ी- मुझे अपने लिए ब्रा और पैंटी लेनी है.........तुम सच में बहुत बुद्धू हो.......इतना भी नहीं समझते कि लड़कियाँ मार्केट में अपने लिए पर्सनल चीज़ें खरीदने जाती है.......

विशाल मेरे चेहरे की ओर पलटकर ऐसे देखने लगा जैसे मैने कोई उससे बहुत बड़ी चीज़ माँग ली हो......वो आगे कुछ ना बोल सका और फिर अपनी बाइक मार्केट की ओर घुमा दी......थोड़ी देर बाद हम एक बड़े से शोरुम के बाहर खड़े थे......बाहर कई तरह के लक्सरी ब्रा और पैंटी टन्गि हुई थी.......

विशाल- आप जाओ दीदी और जाकर खरीद लो......मैं यहीं आपका इंतेज़ार करता हूँ.......

अदिति- विशाल.......चलो ना तुम भी मेरे साथ........मुझे शॉपिंग करनी नहीं आती.......विशाल जाना तो नहीं चाहता था मगर मेरी ज़िद्द की वजह से वो मेरे साथ अंदर जाने को तैयार हो गया.......अंदर एक जेंट्स बैठा हुआ था काउंटर पर......वो ब्लॅक सूट और पेंट में था........उसने हमे देखते ही सलाम ठोका......
 
वो आदमी लगभग 35 साल के आस पास होगा उसने हमे देखते हुए वही सामने रखी चेर पर हम दोनो को बैठने का इशारा किया- कहिए मेडम आपको क्या चाहिए........

अदिति- जी.....मुझे अपने लिए अंडरगार्मेंट्स लेने थे.......

वो आदमी मेरे बदन को घूर कर उपर से नीचे तक मुझे देखते हुए बोला- अंदर एक लॅडीस बैठी हुई है वो आपको लेटेस्ट ब्रांड दिखा देगी.......फिर उस आदमी ने हमे अंदर जाने का इशारा किया.....वैसे इस वक़्त भीड़ बिल्कुल नहीं थी.......मैं विशाल के साथ अंदर शो रूम की तरफ चल पड़ी.....वही एक औरत थी करीब 23 साल के आस पास.......वो हमे देखकर मुस्कुराने लगी.......दिखने में वो खूबसूरत थी.....

वो औरत फिर हमे कई टाइप की ब्रॅंड्स दिखाने लगी वही विशाल शरम से अपनी नज़रें इधेर उधेर घुमा रहा था.......

औरत- मेडम ये अब तक का लेटेस्ट ब्रांड है......उस औरत ने एक ब्लॅक कलर की ब्रा को अपने हाथों में उठाते हुए कहा.........उसपर एक महीन जालीदार परत थी जो दिखने में बेहद आकर्षक लग रही थी......ब्रा के उपर का उपर का हिस्सा ट्रॅन्स्परेंट था.......और उसकी रंग की मॅचिंग पैंटी भी बिल्कुल वैसी थी......वो औरत विशाल की ओर देखते हुए बोल पड़ी.....

औरत- देखिए मिस्टर......

विशाल- जी मेरा नाम विशाल है.......

औरत- देखिए विशाल जी.......आज कल फॅशन का दौर है......लोग यहाँ नये नये ब्रॅंड्स के लिए आते है....इस लिए हम हर कस्टमर्स को नये मॉडेल ज़रूर दिखाते है ताकि आप ये डिज़ाइन पसंद करे.....आपकी बीवी वाकई हॉट और खूबसूरत है......इनपर ये ब्रा और पैंटी बहुत सूट करेगी......

उस औरत के मूह से बीवी शब्द सुनकर विशाल के चेहरे पर बारह बज गये थे........वही मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी......वो मेरी तरफ घूर घूर कर ऐसे देखने लगा जैसे वो मुझसे ये पूछ रहा हो कि क्या आप सच में मेरी बीवी है.......

औरत- क्या सोच रहें है सर.......मेरी बात मान लीजिए आप एक बार मेरे खातिर इसे खरीद लीजिए......मैं आपको 20% डिसकाउंट भी दूँगी.......वैसे आपकी बीवी के फिगर का साइज़ क्या है......

विशाल का चेहरा देखने लायक था......वो कभी मेरी तरफ देख रहा था तो कभी उस औरत की तरफ........मुझे बहुत हँसी भी आ रही थी......मगर मैने अपनी हँसी विशाल पर बिल्कुल ज़ाहिर नहीं होने दी....वो औरत क्या जानती थी कि मैं उसकी बीवी नहीं बेहन हूँ.....वैसे लोग अक्सर ऐसे शोरुम में अपनी बीवियों के साथ आते है ना कि अपनी बेहन के साथ........
 
विशाल मानो हड़बड़ा सा गया था जैसे तैसे उसने मेरे जिस्म की ओर देखते हुए कहा- जी......32......24......34......यही होगा......मेरे ख्याल से.....मैं एक बार फिर से मुस्कुरा पड़ी....क्या पर्फेक्ट साइज़ बताया था विशाल ने मेरी फिगर का...

औरत- आप एक काम कीजिए मेडम......आप चाहे तो एक बार इसे ट्रायल रूम में जाकर चेक कर सकती है.....मैं उस औरत की बातों को सुनकर उछल सी पड़ी.......तभी उसने एक और बात कही जिससे सुनकर मेरे होश उड़ गये.....

औरत- आप चाहे तो आपने पति के साथ उस रूम में जा सकती है......और इसे पहनकर उन्हें दिखा सकती है.......मुझे पूरा यकीन है कि इन्हें ये ज़रूर पसंद आएगा.......आपका ट्राइयल भी हो जाएगा और आपको इसकी क्वालिटी भी देखने को मिल जाएगी......विशाल के चेहरे पर पसीने सॉफ झलक रहे थे........हालाँकि अंदर ए.सी चल रहा था फिर भी उसके चेहरे पर पसीने की बूँदें थी.....

विशाल-जी...नहीं.......मेडम को ही भेज दो ट्रेल रूम में.......विशाल ने ये बात हकलाते हुए कहा तो वो औरत मुस्कुरा पड़ी......मैं भी वो ब्रा और पैंटी अपने हाथों में लेकर ट्राइयल रूम में चली गयी और उसे पहन कर अच्छे से चेक किया......थोड़ी देर बाद मैं उसे चेंज कर 
फिर से बाहर आई.......वो ब्रा और पैंटी मेरे साइज़ से पूरी मॅच कर रही थी......

औरत- तो मेडम मैं इसे पॅक कर दूँ........

अदिति- मुझे और भी ब्रांड चाहिए.....फिर वो औरत दो तीन ब्रॅंड्स और दिखाने लगी.......आख़िरकार मैने तीन सेट ब्रा और पैंटी खरीदी और फिर मैने 2000 का पेमेंट किया और हम वहाँ से बाहर आ गये.......विशाल मुझे बड़े गौर से देख रहा था.......

अदिति- ऐसे क्या घूर रहे हो विशाल.......अब चलो घर .......हम लेट हो रहें है........

विशाल-दीदी.......आपने उस औरत को ये क्यों नहीं बताया कि मैं आपका भाई हूँ......देखा आपने वो औरत हमे क्या समझ रही थी.........

अदिति- अरे बुद्धू........वैसे शोरुम में लोग अक्सर अपनी बीवियों के साथ आते है ना कि अपनी बेहन के साथ.....चलो किसी ने तो हमे पति पत्नी समझा.....इतना कहकर मैं विशाल को देखकर मुस्कुरा लगी और वही विशाल मानो मेरी बातों से झेप सा गया........घर पहुँचने पर मैं अपने कमरे में चल पड़ी......आज मैं बहुत खुस थी......जो पल मैने आज विशाल के साथ गुाज़रे थे वो मेरी ज़िंदगी के कुछ ख़ास लम्हों में से एक थे......अब देखना ये था कि आगे और ऐसे कितने हसीन पल मुझे विशाल के साथ गुज़ारने पड़ेंगे........मुझे उन हर लम्हों का बड़ी ही बेसबरी से इंतेज़ार था.

वक़्त गुज़रता जा रहा था और मेरी विशाल के प्रति दीवानगी भी साथ साथ बढ़ती जा रही थी........उधेर विशाल का भी कुछ ऐसा ही हाल था.....उसकी आँखों में मेरे लिए इंतेज़ार हमेशा रहता था......अगर ज़्यादा देर तक उसे मैं ना नज़र आऊँ तो वो किसी ना किसी बहाने से मेरे कमरे में चला आता......एक तरफ तो मेरा विशाल के प्रति प्यार बढ़ता जा रहा थी वही दूसरी तरफ मेरे अंदर की हवस भी अब पूरे उफान पर थी.......
 
दिन रात मैं यही सोचा करती कि कब विशाल मेरे इस नाज़ुक से बदन को भोगेगा.......कब उसका लंड मेरी इस नाज़ुक सी चूत की गहराई में पूरा समाएगा......कब मैं एक लड़की से औरत बनूँगी......और कब मेरे अंदर इस ये तपिश शांत होगी......मगर कहते है ना कि सब्र का फल बहुत मीठा होता है तो अब मुझे इंतेज़ार ही तो करना था उस विशाल रूपी उस मीठे फल का.......जो आने वाले वक़्त में वो सुख जो मुझे विशाल से मिलने वाला था......मुझे पूरा यकीन था कि वो वक़्त भी अब बहुत जल्द आएगा......

दूसरे दिन कॉलेज की छुट्टी थी ....विशाल अपने दोस्तों के घर घूमने चला गया......मम्मी ने मुझे विशाल का कमरा सॉफ करने को कहा....वैसे तो मैं छुट्टी के दिन उसका कमरा सॉफ कर देती थी.......मैं फिर झाड़ू लेकर उसके कमरे में गयी और उसका कमरा सॉफ करने लगी......तभी मैने उसकी अलमारी खोली और उसमे भी रखा सारा समान अच्छे से अरेंज किया.......तभी मेरी नज़र वही रखे एक पॅकेट पर पड़ी......उसका उपरी कवर वाइट था......मैने उसे खोला तो उसमे तीन चार डीवीडी थी.......मुझे कुछ समझ में नहीं आया कि ये कैसी डीवीडी है......मैने उसका लेबल पढ़ा तो उसके उपर सॉफ़्टवरेस लिखा हुआ था.......

मुझे ना जाने क्या सूझा और मैने उन चारों डीवीडी को अपने पास रख लिया और फिर से कमरा सॉफ करने लगी.......थोड़ी देर बाद मैने बाथ ली और फिर तैयार होकर मैं अपने कमरे में आ गयी.....मम्मी खाना खाकर सो चुकी थी......फिर मुझे अचानक उस डीवीडी का ख्याल आया.....मैने अपना लॅपटॉप ऑन किया और फिर थोड़ी देर बाद मैने एक डीवीडी उसमे प्ले कर दी.......

अगले ही पल मेरे होश उड़ गये......उसमे कोई सॉफ्टवेर नहीं था बल्कि वो एक ब्लू फिल्म की डीवीडी थी.......मैं अपनी आँख फाडे उस को देखने लगी और फिर से मेरे हाथ अपनी चूत पर सरकने लगे थे.....मैं एक हाथ से अपने निपल्स को मसल रही थी तो दूसरी हाथ से अपनी चूत को........कुछ ही पलों में मैं उस फिल्म में पूरी तरह से खो गयी और मेरा जिस्म फिर से किसी आग के समान सुलगने लगा.......मैं अपने चूत के दानों को धीरे धीरे मसल रही थी और अपनी दोनो उंगलियों के बीच अपनी निपल्स को बारी बारी से मसल रही थी.......थोड़े देर बाद मेरा ऑर्गॅनिसम हो गया और मैं वही एक बार फिर किसी लाश की तरह बिल्कुल ठंडी पड़ गयी........

अब मुझे इन सब में ज़्यादा मज़ा नहीं आता था......अब मुझे एक लंड की सख़्त ज़रूरत थी ........मुझे ऐसा लगने लगा था कि अगर मुझे लंड जल्दी ना मिला तो मैं कुछ भी कर जाऊंगी......किसी भी हद से गुज़र जाऊंगी.......ना जाने क्यों अब मुझे आपने आप पर भी भरोसा नहीं था......

जब मैं थोड़ी नॉर्मल हुई तो मैने अपना लॅपटॉप फ़ौरन बंद किया......और फिर विशाल के बारे में सोचने लगी......क्या विशाल भी ऐसी फिल्में देखता है........मगर मैं तो उसे बहुत शरीफ समझती थी........खैर अब तो मेरा काम और भी आसान हो गया था........आख़िर कब तक बचोगे विशाल तुम मुझसे.....देख लेना एक दिन तुम्हें पागल ना बना दिया तो मेरा नाम भी अदिति नहीं.......ये सोचकर मेरे चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गयी.....
 
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