hotaks444
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थोड़ी देर बाद मैं अपने बिस्तेर पर आकर लेट गयी और कब मेरी आँख लग गयी मुझे पता भी ना चला......शाम को 4 बजे मेरी नींद खुली तो विशाल घर पर था......मम्मी पापा तैयार होकर कहीं बाहर जा रहें थे.......
स्वेता- अदिति हम मार्केट जा रहें है....लौटने में हमे देर हो सकती है......और हां शर्मा आंटी के यहाँ भी जाना है....उनकी तबीयत आज कल कुछ ठीक नहीं रहती......लौटते वक़्त उनसे मिल कर आउन्गि......तुम हो सके तो खाना खा लेना और विशाल को भी खिला देना.........इतना कहकर मम्मी पापा घर से बाहर चले गये.....और इधेर मैं मन ही मन खुशी से झूम उठी......
इधेर विशाल वही सोफे पर बैठ कर टी.वी देख रहा था.......मैं इस वक़्त पीले सूट में थी और नीचे वाइट रंग की लागी पहनी हुई थी........हमेशा की तरह मेरा कपड़ा मेरे बदन से पूरा चिपका हुआ था.....मैने अपनी चुनरी अपने सीने से अलग कर दी और उसी तरह मैं अपने काम करने लगी......तभी विशाल ने मुझे आवाज़ दी कि उसे पानी पीना है......मैं उसके लिए पानी लेकर फ़ौरन उसके कमरे की तरफ चल पड़ी........
जैसे ही मैं किचन से बाहर आई अचानक मेरा पाँव फिसल गया और मैं वही गिर पड़ी......मेरे गिनने से मेरे हाथ में रखा पानी का ग्लास मुझसे दूर जा गिरा और मैं दर्द से वही चीख पड़ी.......गिरने की वजह से मेरे राइट पाँव में मोच आ गयी थी.......दर्द की वजह से मेरे आँखों में आँसू आ गये थे......मैं वही अपने पाँव को पकड़कर वैसे ही रोती रही......तभी विशाल मेरी आवाज़ सुनकर मेरे करीब आया और जब उसकी नज़र मुझपर पड़ी तो वो बिना एक पल के देर किए मुझे अपने मज़बूत हाथों से मुझे सहारा देने लगा.....
मैं उठ नहीं पा रही थी और मेरी आँखों से आँसू भी नहीं रुक रहें थे......विशाल मेरे पास आकर वही मेरे सामने ज़मीन पर बैठ गया और उसने मेरे दोनो गालों को अपने हाथों में थाम लिया.....और मेरी तरफ मेरी इन आँखों में एक टक देखे हुए बोला.....
विशाल- दीदी कैसे हुआ ये सब.......आपको ज़्यादा चोट तो नहीं लगी ना......
मैं अपने आँखों से आँसू पूछते हुए विशाल के तरफ एक नज़र डाली तो वो मुझे ही देख रहा था......मैं उससे कुछ ना बोल सकी और चुप चाप उसे देखकर रोती रही......
विशाल- कुछ तो बोलो दीदी.....आप ठीक तो है ना......
अदिति- एयाया...हह.......विशाल मेरा पाँव........बहुत दुख रहे है........प्लीज़ मुझे थोड़ा सहारा दे दो......मैं उठ नहीं पा रही हूँ........ मुझे मेरे कमरे तक पहुचा दो......
विशाल फिर आगे बढ़कर झट से मेरे कंधों पर अपना हाथ रखर उसने मुझे उठाया तो मैं एक बार फिर से गिर पड़ी.......मेरे इस तरह गिरने से मुझे एक बार फिर से चोट आई.......इस वक़्त मेरा दर्द से बुरा हाल था......कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ......
विशाल कुछ देर तक वैसे ही मुझे देखता रहा फिर उसने झट से मुझे अपनी गोद में उठा लिया और मुझे उठाकर मेरे कमरे की तरफ चल पड़ा........मैं विशाल को एक नज़र देखती रही मगर मैने उससे कुछ ना कहा......मैने अपना एक हाथ उसके गले में डाल दिया ताकि मैं गिर ना जाऊं........इस वक़्त मेरे दोनो बूब्स विशाल के सीने पर दब रहे थे.......इस वक़्त अगर मुझे दर्द ना होता तो मैं इस खूबसूरत एहसास का पूरा पूरा मज़ा लेती......विशाल जैसे ही मेरे बेड के पास पहुँचा उसने मुझे बड़े आराम से मेरे बिस्तेर पर बैठा दिया और खुद भी मेरे करीब आकर बैठ गया.......
विशाल- कौन से पाँव में आपको दर्द हो रहा है दीदी.......मैने फिर अपना एक हाथ आगे बढ़कर अपना दाया पाँव की ओर इशारा किया......विशाल अपना एक हाथ आगे लेजा कर मेरे पाँव को अपने मज़बूत हाथों से थाम लिया और उसपर बड़े प्यार से धीरे धीरे अपनी उंगलियाँ का जादू बिखेरने लगा.......
अदिति- ये क्या कर रहें हो विशाल......प्लीज़ लीव मी.......मैं ठीक हूँ.......तुम जाओ अपने कमरे में.......
विशाल- नहीं दीदी....मैं आपको छोड़ कर इस हाल में कभी नहीं जाऊँगा.......आप यहीं ठहरो मैं अभी आयोडेक्स लेकर आता हूँ.........मैं आगे विशाल से कुछ कह पाती विशाल तेज़ी से मेरे कमरे से बाहर चला गया........अब भी मेरा दर्द पहले जैसे था.......मैं अपने पाँव को ज़रा भी नहीं हिला पा रही थी........तभी थोड़ी देर बाद विशाल अपने हाथ में आयोडेक्स की शीशी ले आया........वो आकर मेरे पाँव के पास बैठ गया......और मेरे पाँव को बड़े गौर से देखने लगा.......
स्वेता- अदिति हम मार्केट जा रहें है....लौटने में हमे देर हो सकती है......और हां शर्मा आंटी के यहाँ भी जाना है....उनकी तबीयत आज कल कुछ ठीक नहीं रहती......लौटते वक़्त उनसे मिल कर आउन्गि......तुम हो सके तो खाना खा लेना और विशाल को भी खिला देना.........इतना कहकर मम्मी पापा घर से बाहर चले गये.....और इधेर मैं मन ही मन खुशी से झूम उठी......
इधेर विशाल वही सोफे पर बैठ कर टी.वी देख रहा था.......मैं इस वक़्त पीले सूट में थी और नीचे वाइट रंग की लागी पहनी हुई थी........हमेशा की तरह मेरा कपड़ा मेरे बदन से पूरा चिपका हुआ था.....मैने अपनी चुनरी अपने सीने से अलग कर दी और उसी तरह मैं अपने काम करने लगी......तभी विशाल ने मुझे आवाज़ दी कि उसे पानी पीना है......मैं उसके लिए पानी लेकर फ़ौरन उसके कमरे की तरफ चल पड़ी........
जैसे ही मैं किचन से बाहर आई अचानक मेरा पाँव फिसल गया और मैं वही गिर पड़ी......मेरे गिनने से मेरे हाथ में रखा पानी का ग्लास मुझसे दूर जा गिरा और मैं दर्द से वही चीख पड़ी.......गिरने की वजह से मेरे राइट पाँव में मोच आ गयी थी.......दर्द की वजह से मेरे आँखों में आँसू आ गये थे......मैं वही अपने पाँव को पकड़कर वैसे ही रोती रही......तभी विशाल मेरी आवाज़ सुनकर मेरे करीब आया और जब उसकी नज़र मुझपर पड़ी तो वो बिना एक पल के देर किए मुझे अपने मज़बूत हाथों से मुझे सहारा देने लगा.....
मैं उठ नहीं पा रही थी और मेरी आँखों से आँसू भी नहीं रुक रहें थे......विशाल मेरे पास आकर वही मेरे सामने ज़मीन पर बैठ गया और उसने मेरे दोनो गालों को अपने हाथों में थाम लिया.....और मेरी तरफ मेरी इन आँखों में एक टक देखे हुए बोला.....
विशाल- दीदी कैसे हुआ ये सब.......आपको ज़्यादा चोट तो नहीं लगी ना......
मैं अपने आँखों से आँसू पूछते हुए विशाल के तरफ एक नज़र डाली तो वो मुझे ही देख रहा था......मैं उससे कुछ ना बोल सकी और चुप चाप उसे देखकर रोती रही......
विशाल- कुछ तो बोलो दीदी.....आप ठीक तो है ना......
अदिति- एयाया...हह.......विशाल मेरा पाँव........बहुत दुख रहे है........प्लीज़ मुझे थोड़ा सहारा दे दो......मैं उठ नहीं पा रही हूँ........ मुझे मेरे कमरे तक पहुचा दो......
विशाल फिर आगे बढ़कर झट से मेरे कंधों पर अपना हाथ रखर उसने मुझे उठाया तो मैं एक बार फिर से गिर पड़ी.......मेरे इस तरह गिरने से मुझे एक बार फिर से चोट आई.......इस वक़्त मेरा दर्द से बुरा हाल था......कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ......
विशाल कुछ देर तक वैसे ही मुझे देखता रहा फिर उसने झट से मुझे अपनी गोद में उठा लिया और मुझे उठाकर मेरे कमरे की तरफ चल पड़ा........मैं विशाल को एक नज़र देखती रही मगर मैने उससे कुछ ना कहा......मैने अपना एक हाथ उसके गले में डाल दिया ताकि मैं गिर ना जाऊं........इस वक़्त मेरे दोनो बूब्स विशाल के सीने पर दब रहे थे.......इस वक़्त अगर मुझे दर्द ना होता तो मैं इस खूबसूरत एहसास का पूरा पूरा मज़ा लेती......विशाल जैसे ही मेरे बेड के पास पहुँचा उसने मुझे बड़े आराम से मेरे बिस्तेर पर बैठा दिया और खुद भी मेरे करीब आकर बैठ गया.......
विशाल- कौन से पाँव में आपको दर्द हो रहा है दीदी.......मैने फिर अपना एक हाथ आगे बढ़कर अपना दाया पाँव की ओर इशारा किया......विशाल अपना एक हाथ आगे लेजा कर मेरे पाँव को अपने मज़बूत हाथों से थाम लिया और उसपर बड़े प्यार से धीरे धीरे अपनी उंगलियाँ का जादू बिखेरने लगा.......
अदिति- ये क्या कर रहें हो विशाल......प्लीज़ लीव मी.......मैं ठीक हूँ.......तुम जाओ अपने कमरे में.......
विशाल- नहीं दीदी....मैं आपको छोड़ कर इस हाल में कभी नहीं जाऊँगा.......आप यहीं ठहरो मैं अभी आयोडेक्स लेकर आता हूँ.........मैं आगे विशाल से कुछ कह पाती विशाल तेज़ी से मेरे कमरे से बाहर चला गया........अब भी मेरा दर्द पहले जैसे था.......मैं अपने पाँव को ज़रा भी नहीं हिला पा रही थी........तभी थोड़ी देर बाद विशाल अपने हाथ में आयोडेक्स की शीशी ले आया........वो आकर मेरे पाँव के पास बैठ गया......और मेरे पाँव को बड़े गौर से देखने लगा.......