Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में - Page 4 - SexBaba
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Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में

थोड़ी देर बाद मैं अपने बिस्तेर पर आकर लेट गयी और कब मेरी आँख लग गयी मुझे पता भी ना चला......शाम को 4 बजे मेरी नींद खुली तो विशाल घर पर था......मम्मी पापा तैयार होकर कहीं बाहर जा रहें थे.......

स्वेता- अदिति हम मार्केट जा रहें है....लौटने में हमे देर हो सकती है......और हां शर्मा आंटी के यहाँ भी जाना है....उनकी तबीयत आज कल कुछ ठीक नहीं रहती......लौटते वक़्त उनसे मिल कर आउन्गि......तुम हो सके तो खाना खा लेना और विशाल को भी खिला देना.........इतना कहकर मम्मी पापा घर से बाहर चले गये.....और इधेर मैं मन ही मन खुशी से झूम उठी......

इधेर विशाल वही सोफे पर बैठ कर टी.वी देख रहा था.......मैं इस वक़्त पीले सूट में थी और नीचे वाइट रंग की लागी पहनी हुई थी........हमेशा की तरह मेरा कपड़ा मेरे बदन से पूरा चिपका हुआ था.....मैने अपनी चुनरी अपने सीने से अलग कर दी और उसी तरह मैं अपने काम करने लगी......तभी विशाल ने मुझे आवाज़ दी कि उसे पानी पीना है......मैं उसके लिए पानी लेकर फ़ौरन उसके कमरे की तरफ चल पड़ी........

जैसे ही मैं किचन से बाहर आई अचानक मेरा पाँव फिसल गया और मैं वही गिर पड़ी......मेरे गिनने से मेरे हाथ में रखा पानी का ग्लास मुझसे दूर जा गिरा और मैं दर्द से वही चीख पड़ी.......गिरने की वजह से मेरे राइट पाँव में मोच आ गयी थी.......दर्द की वजह से मेरे आँखों में आँसू आ गये थे......मैं वही अपने पाँव को पकड़कर वैसे ही रोती रही......तभी विशाल मेरी आवाज़ सुनकर मेरे करीब आया और जब उसकी नज़र मुझपर पड़ी तो वो बिना एक पल के देर किए मुझे अपने मज़बूत हाथों से मुझे सहारा देने लगा.....

मैं उठ नहीं पा रही थी और मेरी आँखों से आँसू भी नहीं रुक रहें थे......विशाल मेरे पास आकर वही मेरे सामने ज़मीन पर बैठ गया और उसने मेरे दोनो गालों को अपने हाथों में थाम लिया.....और मेरी तरफ मेरी इन आँखों में एक टक देखे हुए बोला.....

विशाल- दीदी कैसे हुआ ये सब.......आपको ज़्यादा चोट तो नहीं लगी ना......

मैं अपने आँखों से आँसू पूछते हुए विशाल के तरफ एक नज़र डाली तो वो मुझे ही देख रहा था......मैं उससे कुछ ना बोल सकी और चुप चाप उसे देखकर रोती रही......

विशाल- कुछ तो बोलो दीदी.....आप ठीक तो है ना......

अदिति- एयाया...हह.......विशाल मेरा पाँव........बहुत दुख रहे है........प्लीज़ मुझे थोड़ा सहारा दे दो......मैं उठ नहीं पा रही हूँ........ मुझे मेरे कमरे तक पहुचा दो......

विशाल फिर आगे बढ़कर झट से मेरे कंधों पर अपना हाथ रखर उसने मुझे उठाया तो मैं एक बार फिर से गिर पड़ी.......मेरे इस तरह गिरने से मुझे एक बार फिर से चोट आई.......इस वक़्त मेरा दर्द से बुरा हाल था......कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ......

विशाल कुछ देर तक वैसे ही मुझे देखता रहा फिर उसने झट से मुझे अपनी गोद में उठा लिया और मुझे उठाकर मेरे कमरे की तरफ चल पड़ा........मैं विशाल को एक नज़र देखती रही मगर मैने उससे कुछ ना कहा......मैने अपना एक हाथ उसके गले में डाल दिया ताकि मैं गिर ना जाऊं........इस वक़्त मेरे दोनो बूब्स विशाल के सीने पर दब रहे थे.......इस वक़्त अगर मुझे दर्द ना होता तो मैं इस खूबसूरत एहसास का पूरा पूरा मज़ा लेती......विशाल जैसे ही मेरे बेड के पास पहुँचा उसने मुझे बड़े आराम से मेरे बिस्तेर पर बैठा दिया और खुद भी मेरे करीब आकर बैठ गया.......

विशाल- कौन से पाँव में आपको दर्द हो रहा है दीदी.......मैने फिर अपना एक हाथ आगे बढ़कर अपना दाया पाँव की ओर इशारा किया......विशाल अपना एक हाथ आगे लेजा कर मेरे पाँव को अपने मज़बूत हाथों से थाम लिया और उसपर बड़े प्यार से धीरे धीरे अपनी उंगलियाँ का जादू बिखेरने लगा.......

अदिति- ये क्या कर रहें हो विशाल......प्लीज़ लीव मी.......मैं ठीक हूँ.......तुम जाओ अपने कमरे में.......

विशाल- नहीं दीदी....मैं आपको छोड़ कर इस हाल में कभी नहीं जाऊँगा.......आप यहीं ठहरो मैं अभी आयोडेक्स लेकर आता हूँ.........मैं आगे विशाल से कुछ कह पाती विशाल तेज़ी से मेरे कमरे से बाहर चला गया........अब भी मेरा दर्द पहले जैसे था.......मैं अपने पाँव को ज़रा भी नहीं हिला पा रही थी........तभी थोड़ी देर बाद विशाल अपने हाथ में आयोडेक्स की शीशी ले आया........वो आकर मेरे पाँव के पास बैठ गया......और मेरे पाँव को बड़े गौर से देखने लगा.......
 
अब सवाल ये था कि विशाल आयोडेक्स लगाएगा कैसे.........मैं इस वक़्त लॅगी पहनी हुई थी जिससे वो कपड़ा मेरे पाँव से पूरी तरह से चिपका हुआ था......कपड़ा इतना टाइट था कि विशाल उसे उपर की ओर सरका भी नहीं सकता था......और मेरा दर्द अब तक बिल्कुल कम नहीं हुआ था......इधेर विशाल के चेहरे पर भी परेशानी सॉफ दिखाई दे रही थी मगर वो चाह कर भी मुझसे कुछ नहीं कह पा रहा था.......आख़िरकार उसने थोड़ी हिम्मत जुटाकर मुझसे अपनी प्राब्लम बताई.....

विशाल- लाओ दीदी मैं ये आयोडेक्स आपको लगा देता हूँ....मगर आपकी ये लॅयागी बीच में आ रही है........आप ही बताओ कि मैं आपको आयोडेक्स कैसे लगाऊ.......

अदिति- मैं ठीक हूँ विशाल........मैं लगा लूँगी.......तुम जाओ......

विशाल- नहीं दीदी मैं आपको इस हाल में छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता.....और आप इस वक़्त उस हाल में नहीं है कि आप खुद आयोडेक्स लगा पाएँगी.......

मैं भी आख़िर सोचने पर मज़बूर हो गयी कि विशाल आख़िर आयोडेक्स लगाएगा तो लगाएगा कैसे.......कुछ देर सोचने पर एक ही जवाब मुझे समझ में आया कि उसके लिए मुझे अपनी लगगी विशाल के सामने उतारनी पड़ेगी......तो क्या मैं अब विशाल के सामने सिर्फ़ पैंटी में रहूंगी......ये सोचकर मेरा चेहरा शरम से लाल पड़ गया ........मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी की मैं विशाल को क्या जवाब दूं......

विशाल- दीदी मैं जो कहना चाहता हूँ उसे प्लीज़ आप ग़लत मत समझिएगा......अगर डॉक्टर को इलाज़ करना पड़ता है तो हमे उनके सामने अपनी लाज शरम छोड़नी पड़ती है.......कुछ आज वैसी ही कंडीशन हमारे सामने भी है......इस वक़्त आपके पाँव का दर्द मुझे दूर करना है और उसके लिए आपको अपनी लॅयागी उतारनी पड़ेगी........मैं आपको इस बात के लिए ज़बरदस्ती नहीं करूँगा.....अगर आप चाहें तो........और मैं अपनी आँखे बंद कर लूँगा अगर आपको कोई ऐतराज़ हुआ तो.....

मैं विशाल के उस निस्वार्थ प्रेम के आगे आज झुक गयी थी....सच में उसने कभी मुझपर बुरी नज़र नहीं डाली थी...मगर आज उपर वाले ने भी मेरे साथ क्या खेल खेला था......जिस मौके की तलाश में मैं इतने दिनों से थी वो मौका आज मुझे मिल गया था........मैं तो ये सोच सोच कर पानी पानी हो रही थी कि मैं आज विशाल के सामने अपनी लॅयागी कैसे उतारुंगी......शरम से मेरा चेहरा लाल पड़ता जा रहा था वही विशाल भी अपनी नज़रें झुकाए बिस्तेर की तरफ चुप चाप देख रहा था..........देखना था की आगे वक़्त को क्या मंज़ूर था.


मैं बड़े प्यार से विशाल के मासूम चेहरे की तरफ देख रही थी.........कहते है ना कि मोहबत की शुरुआत आँखों से होती है........आज इन्ही आँखों के ज़रिए विशाल अब मेरे दिल में पूरी तरह से उतर चुका था.......उधेर विशाल का भी कुछ ऐसा ही हाल था........मगर जो भी हो पहल तो मुझे ही करनी थी.......मैं एक नज़र विशाल की तरफ देखने लगी तो उसकी नज़रें अभी भी बिस्तेर की तरफ थी.......

अदिति- ठीक है विशाल जैसा तुम्हें सही लगे.......आख़िर तुम मेरे अपने हो और अपनों से भला कैसी शरम........मैं ही जानती थी कि ये बात मैने विशाल से कैसे कही थी........मेरी साँसें इस वक़्त बहुत ज़ोरों से चल रही थी जिसकी वजह से मेरे दोनो बूब्स उपर नीचे हो रहें थे.......
 
मैं एक नज़र फिर से विशाल के चेहरे की तरफ देखने लगी पता नहीं क्यों मुझे आज उसपर बहुत प्यार आ रहा था....... उसके मासूम चेहरे को देखकर मेरे चेहरे पर भी एक प्यारी सी मुस्कान आ गयी........फिर मैने अपने दोनो हाथों को धीरे धीरे सरकाते हुए अपने कमर तक ले गयी और अपने दोनो उंगलियों को मैं अपनी लॅगी की इलास्टिक के बीच फँसाकर उसे मैं बहुत हौले हौले नीचे की तरफ सरकाने लगी.......शरम तो मुझे बहुत आ रही थी मगर पता नहीं क्यों मुझे ऐसा करना भी अच्छा लग रहा था......

ऐसा पहली बार था जब मैं उस हाल में विशाल के सामने हो रही थी......विशाल ने जब देखा कि मैं अपनी लॅगी उतार रही हूँ तो उसने झट से अपना मूह दूसरी तरफ फेर लिया........मैं भी उसकी परवाह किए बगैर अपनी लॅगी धीरे धीरे नीचे की तरफ सरकाते हुए अपनी जाँघो तक ले आई....फिर मैं उसे और नीचे की तरफ ले गयी और कुछ ही देर में मेरी लॅयागी मेरे जिस्म से अलग हो गयी........अब मेरी गोरी गोरी जंघें विशाल के सामने बे-परदा थी......

इस वक़्त मैं बस सूट में थी और मेरा सूट मेरी जांघों को पूरा नहीं छुपा पा रहा था.......अंदर मैं एक पिंक कलर की पैंटी पहनी हुई थी जो अब सॉफ दिखाई दे रही थी........मेरा जिस्म थर थर काँप रहा था और साथ ही साथ मेरा गला भी सुख रहा था..........शरम से मेरा चेहरा अब पूरा लाल पड़ चुका था........

अदिति- विशाल मैने अपनी लॅयागी उतार दी है.......तुम अब आयोडेक्स लगा सकते हो......इतना कहकर मैने अपना पाँव विशाल के सामने रख दिया.......विशाल कुछ देर तक यू ही खामोश रहा फिर उसने वो आयोडेक्स की शीशी ओपन की और उसमे रखी क्रीम मेरी गोरे पाँव में धीरे धीरे लगाने लगा.....जैसे ही विशाल ने मेरे पाँव को छुआ मैं अपनी सिसकारी ना रोक सकी और मेरे मूह से एक लज़्जत भरी आअहह फुट पड़ी.....लज़्जत से मेरी आँखे दुबारा बंद हो गयी.......

अदिति-आआआआआ........ह..........हह.....विशाल....धीरे .......दर्द हो रहा है......

विशाल- रिलॅक्स दीदी.........अभी आप देखना आपका सारा दर्द कुछ ही मिनट में दूर हो जाएगा.......फिर विशाल अपने दोनो हाथों से मेरे पाँव को धीरे धीरे सहलाने लगा......विशाल के हाथ का स्पर्श मुझे पल पल मदहोश करता जा रहा था.....एक बार फिर से मैं अपना कंट्रोल खोने लगी थी........हालाँकि विशाल की नज़र सिर्फ़ मेरे पाँव की तरफ थी.......अभी तक उसने मेरी जगहों की तरफ नज़र नहीं डाली थी......मगर मैं विशाल को इतनी आसानी से कैसे जाने दे सकती थी......

मेरे मूह से लज़्जत भरी सिसकारी लगातार निकल रही थी ....कुछ दर्द की और कुछ सिसकियों की.........यू कहे कि दोनो का मिला जुला रूप.......

अदिति- विशाल थोड़ा और उपर तक .......मैने अपना एक हाथ अपने घुटनो के पास रखते हुए ये कहा......विशाल फिर मेरे तरफ एक नज़र देखा रहा फिर उसकी नज़र मेरी जाँघो के बीच चली गयी.......वो अपनी आँखे फाडे मेरी जगहों को कुछ पल तक निहारता रहा......जब मैने उसकी नजरों का पीछा किया तो उसने झट से अपनी नज़रें दूसरी तरफ फेर ली......मैं धीरे धीरे अब पूरी मदहोश होने लगी थी.....

अदिति- एक बात पूछू विशाल.........तुम बुरा तो नहीं मनोगे.......

विशाल- पूछो दीदी......

अदिति- क्या तुम मुझे बहुत प्यार करते हो........

विशाल- हां दीदी.........मैं आपको बहुत चाहता हूँ........

अदिति- ये जानते हुए भी कि तुम्हारा और मेरा रिस्ता क्या है........क्या कभी तुमने मुझे उस नज़र से देखा है.......मेरा मतलब गर्लफ्रेंड की नज़र से.......

विशाल- हां......अब मेरा नज़रिया आपके प्रति बदल चुका है........अब मैं आपको अपनी गर्लफ्रेंड मानता हूँ.......

विशाल की बातों को सुनकर मैं अपने चेहरे पर मुस्कान लाने से नहीं रोक सकी- तो तुम ये बात अच्छे से जानते होगे कि कोई लड़का अपनी गर्लफ्रेंड के साथ क्या करता है......आइ मीन......अकेले में......

विशाल- हां जानता हूँ........मगर मैं आपके साथ वो सब नहीं कर सकता.......

अदिति- क्यों विशाल.......आख़िर क्या कमी है मुझ में.......एक तरफ तो तुम मुझसे प्यार करने का दावा करते हो और वही दूसरी तरफ.......

विशाल- जानता हूँ दीदी.......आप जैसी लड़की तो किसी किस्मेत वालों को नसीब होगी......मगर सच तो ये है कि मैने कभी आपको उस नज़र से नहीं देखा........ये ग़लत है दीदी.......

अदिति- क्या सही और क्या ग़लत है विशाल ये तो मैं भी नहीं जानती.......और ना ही मैं ये सब जानना चाहती हूँ.......मगर आज अगर मेरी जगह तुम्हारी कोई अपनी गर्लफ्रेंड होती और जिस हाल में मैं तुम्हारे सामने हूँ तो तुम क्या करते.......क्या मैं तुम्हारी किस्मेत नहीं बन सकती.....
 
विशाल मेरी बातों को सुनकर कुछ पल तक यू ही खामोश रहा.....शायद उसके पास मेरे सवालों का कोई जवाब नहीं था.....

अदिति- विशाल सच तो ये है की मैं भी तुमसे आज बे-इंतेहा मोहब्बत करती हूँ.......तुम्हें पागलों की तरह चाहती हूँ........क्या हुआ जो हम आज भाई बेहन है.......मगर भाई बेहन से पहले तुम एक मर्द हो और मैं एक औरत.......तुम्हारी भी कुछ ज़रूरतें है और मेरी भी.........सच तो ये है विशाल कि मैं आज खुद अपने बदन की आग में जल रही हूँ..........प्लीज़ विशाल मुझे अपनी गर्लफ्रेंड समझकर मुझे प्यार करो.......मैं तुम्हारे इन मज़बूत बाहों में खुद को पल पल महसूस करना चाहती हूँ.......क्या तुम्हारा मन नहीं करता होगा मेरे साथ ये सब करने का.....

विशाल- बस करो दीदी........ये सब ठीक नहीं है........मैने आपके बारे में ऐसा कुछ नहीं सोचता हूँ.....

अदिति- ठीक है विशाल.......तो आज हमारे बीच इस बात का फ़ैसला हो ही जाए तो अच्छा है........

विशाल मेरी बातों को सुनकर मुझे बड़े गौर से देखने लगा.......... मैं विशाल के तरफ बिना देखे मैने झट से अपने दोनो हाथों को अपने सूट की तरफ ले गयी और उसे वही विशाल के सामने उतारने लगी........विशाल के लिए ये किसी बॉम्ब के धमाके से बिल्कुल कम नहीं था.....वो अपनी आँखे फाडे मुझे देखता रहा......कुछ ही पलों में मैने अपना सूट भी विशाल के सामने उतार दिया......अब मैं विशाल के सामने बस ब्रा और पैंटी में थी........शरम से मेरा बुरा हाल था मगर मेरे अंदर की आग अब इस हद तक सुलग चुकी थी कि मुझे अब कुछ सही ग़लत में कोई फ़र्क नज़र नहीं आ रहा था.......

अदिति- कह दो विशाल की तुम्हें मुझे इस हाल में देखकर कुछ महसूस नहीं होता......कह दो कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए कभी कोई ग़लत ख्याल नहीं आया.......मैं जानती हूँ कि तुम भी आज उसी आग में जल रहें हो जिसमें मैं जल रही हूँ.....भले ही तुम मुझसे लाख छुपाओ मगर ये सच है कि तुम भी मेरे साथ वो सब करना चाहते हो जो हर मर्द एक औरत के साथ चाहता है.......

विशाल- बस करो दीदी......

अदिति- मेरी तरफ देखो विशाल मेरी इन आँखों में..........मैं जानती हूँ कि आँखें कभी झूट नहीं बोलती.......मैने तुम्हारी इन आँखों में मेरे लिए वो तड़प देखी है.......क्या अब भी तुम यही कहोगे कि मुझे इस हाल में देखकर तुम्हें कुछ नहीं होता.......

विशाल ने फ़ौरन अपनी नज़रें नीचे झुका ली......मैं उसके पेंट में उभार सॉफ महसूस कर रही थी..........मैं विशाल के और करीब सरककर बैठ गयी........अब मेरा नंगा बदन उसके जिस्म से टच हो रहा था मगर विशाल ने अपने आप को मुझसे दूर करने की कोई कोशिश नहीं की........अब मेरा चेहरा विशाल के चेहरे के बहुत करीब था.......मैं अपना चेहरा विशाल के और करीब ले गयी और उसके चेहरे को बड़े ध्यान से देखने लगी.......

फिर मैने अपना लब बहुत आहिस्ता से विशाल के लबों पर रख दिए.......विशाल के अंदर अब इनकार की भावना लगभग ख़तम हो चुकी थी......फिर मैने उसके होंठो को धीरे धीरे चूसना शुरू किया.......जवाब में वो भी मेरे इन होंठो का रस धीरे धीरे पीने लगा.......इस वक़्त मेरा एक हाथ उसके हाथ में था.........मैं अब अपने हाथों को बहुत आहिस्ता से अपने जिस्म पर धीरे धीरे फेर रही थी.......कुछ देर तक मैं विशाल के होंठो को ऐसे ही चूसति रही और उधेर विशाल भी मेरा पूरा पूरा साथ देता रहा.......

अब मेरा जिस्म किसी आग की भट्टी के समान तप रहा था......मैं अब पूरी तरह से मदहोश हो चुकी थी.......अब मेरे जिस्म से मेरा कंट्रोल लगभग ख़तम हो चुका था.......धीरे धीरे उधेर विशाल के हाथ मेरे जिस्म पर घूम रहें थे.......अब पता नहीं आने वाले वक़्त में ये तपीश कहाँ जाकर रुकने वाली थी.
 
इस वक़्त हम दोनो बिल्कुल खामोश थे........ना ही विशाल मुझसे कुछ कह रहा था और ना ही मैं.......वो मेरी इन आँखों को बड़े गौर से देख रहा था जैसे वो मुझसे मेरे दिल का हाल पूछ रहा हो........कुछ देर खामोशी के बाद मैने विशाल को अपने पीछे आकर बैठने का इशारा किया.......वो चुप चाप मुझसे बिना कुछ कहे मेरे पीछे आकर बैठ गया........इस वक़्त मेरे अंदर कौन सा तूफान उठ रहा था ये शायद मैं भी नहीं जानती थी........

एक तरफ हमारे बीच रिस्तों की मज़बूत डोर थी तो वही दूसरी तरफ हमारे दरमियाँ अटूट गहरा प्रेम.......मैने अपनी गर्देन पीछे की तरफ घुमाई तो विशाल की नज़र मेरी नंगी पीठ को घूर रही थी........जब उसकी नज़र मुझसे मिली तो उसने अपनी नज़रें फ़ौरन दूसरी तरफ फेर ली.......इस वक़्त मेरी आँखों में कुछ शरम और कुछ हवस दोनो का मिला जुला रंग चढ़ा हुआ था......

अदिति- ऐसे क्या देख रहें हो विशाल........मैं अब पूरी तरह से तुम्हारी हूँ..........मुझपर तुम्हारा पूरा अधिकार है........मेरी आत्मा पर और मेरे इस जिस्म पर भी..........मैं अपने आप को तुम्हारे हवाले कर चुकी हूँ .......अब तुम जैसा मेरे साथ जो करना चाहो कर सकते हो.......मैं तुम्हें अब किसी बात के लिए मना नहीं करूँगी.....

विशाल कुछ देर तक यू खामोश होकर मुझे देखता रहा फिर उसने थोड़ी देर बाद अपनी चुप्पी तोड़ी- दीदी मैं ये तो नहीं जानता कि क्या सही है और क्या ग़लत है.......और आगे चलकर इसका क्या परिणाम होगा.......मगर मेरा दिल कहता है कि जो हो रहा है वो शायद नहीं होना चाहिए........अब भी कहीं ना कहीं मेरे इस दिल में एक ही सवाल बार बार उठ रहा है कि क्या मुझे अपनी बेहन के साथ ये सब करना चाहिए.......जिस भाई बेहन की पवित्र प्रेम को लोग संगया देते है हमारे ऐसा करने से उसके पवित्रता पर एक कभी ना मिटने वाला दाग लग जाएगा...........

अब भी वक़्त है दीदी आप अगर चाहो तो अपना फ़ैसला बदल सकती हो.........मुझे आपका हर फ़ैसला मंज़ूर होगा.......और अगर ये बात मम्मी पापा को पता चली तो.........इतना तो पक्का है कि मम्मी हमे कभी माफ़ नहीं करेगी और शायद पापा हमे गोली मार दें.........मैं पापा के गुस्से को आच्छे से जानता हूँ......और आस पड़ोस के लोग भी हमारे बारे में तरह तरह की बातें करेंगे कि एक भाई अपनी सग़ी बेहन के साथ.......

अदिति- अंजाम की परवाह मुझे नहीं है विशाल.......क्या तुमने मुझसे प्यार करते वक़्त ये सब कभी सोचा था........नहीं ना....फिर आज तुम अपने अंजाम के बारे में क्यों सोच रहे हो..........प्यार किया नहीं जाता विशाल प्यार तो हो जाता है जैसे तुम्हें मुझसे हो गया.......भले ही मैं तुम्हारी अपनी बेहन हूँ......प्यार कोई जात धरम , ऊँच नीच देख कर नहीं किया जाता.........आगे तुम्हारी मर्ज़ी.......मगर इतना याद रखना कि अगर अब तुम मुझसे एक पल भी और डोर रहे तो शायद अब मैं तुम्हारे बगैर जी नहीं पाउन्गि..........अब तुम्हें इसका फ़ैसला करना है कि तुम्हें इन दोनो में से किसको चुनना है.........इस दुनिया की झूठी रसमें और रीति रिवाज़ों को ........या फिर मेरी ज़िंदगी को...............

विशाल- मुझे आप चाहिए दीदी.........सच तो ये है की मैं भी आपके बगैर एक पल नहीं जी सकता.......

मैं विशाल को कुछ पल तक ऐसे ही देखती रही फिर ना जाने मुझे क्या हुआ मैं अपनी गर्देन आगे बढ़ाकर विशाल के लबों को बहुत प्यार से चूम लिया..........विशाल भी बस मेरी तरफ बड़े प्यार से एक टक देखता रहा.......

अदिति- विशाल..........मुझे प्यार करो विशाल........मुझे इस वक़्त तुम्हारे प्यार की सख़्त ज़रूरत है........मैं तुम्हारी इन मज़बूत बाहों में टूटना चाहती हूँ........पल पल अपने आप को महसूस करना चाहती हूँ.........आओ विशाल अब मुझे हमेशा हमेशा के लिया अपना बना लो.......मैं आज एक लड़की से औरत बनाना चाहती हूँ........मुझे आज एक औरत का सुख दे दो विशाल........आइ लव यू........और इतना कहकर मैने एक बार फिर से विशाल के लबों को बहुत आहिस्ता से चूम लिया.........

विशाल- हां अदिति आज के बाद तुम्हारा गम मेरा गम है और तुम हर खुशी अब मेरी खुशी है.......आइ लव यू टू.......

आज पहली बार विशाल ने मेरा नाम लिया था.......और ना जाने क्यों मुझे ये सुनकर अच्छा भी लगा था......मैं मन ही मन झूम उठी थी.......आज मैं जीत गयी थी.......मगर पता नहीं क्यों मेरे दिल में कहीं ना कहीं ये बात चुभ रही थी कि अब भी वक़्त है अदिति सम्भल जा......नहीं तो आगे ये तपिश हमे कहीं का नहीं छोड़ेगी........मैं कुछ देर तक अपने विचारों में ऐसी ही डूबी रही.......तभी विशाल के होंठ मेरी पीठ पर मुझे महसूस हुए......
 
जैसे ही विशाल के लबो मेरी नंगी पीठ को छुआ मेरे मूह से के आआआआआअ..........हह की सिसकारी फुट पड़ी..........मेरी आँखें एक बार दुबारा लज़्जत से बंद हो गयी .....मेरा पूरा जिस्म थर थर कांप रहा था.......मेरी साँसें बहुत ज़ोरों से चलने लगी थी.........मेरे जिस्म पर मानो हज़ारों चीटियाँ काट रही हो ऐसा मुझे महसूस होने लगा था......पर जो भी था ये एहसास मेरे लिए बहुत ख़ास था जिसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती थी.......

उधेर विशाल ने अपने हाथ की मिड्ल फिंगर मेरी नंगी पीठ पर हौले से रख दी और वो अपनी उंगलियों को वहाँ बहुत आहिस्ता से इधेर उधेर घुमाने लगा.......मैं लज़्जत से एक बार फिर से ज़ोरों से सिसक पड़ी......मेरी आँखे अब सुर्ख लाल हो चुकी थी........विशाल का इस तरह से मेरे पीठ पर हाथ फेरना मुझे मानो पल पल पागल बनाता जा रहा था.......फिर वो अपने होंठो को बहुत आहिस्ता से मेरी पीठ पर रखकर वहाँ भी अपना होंठ बहुत धीरे धीरे फेरने लगा......

अदिति-आआआआआअ............म्म्म्म.मममममममममम...........हह.........व...ई....स...ह.....आ....एल............मुझे.........प्यार..........करो...........आआआआआ.हह....

विशाल बिना मेरी ओर देखे मेरे पीठ पर ऐसे ही अपना जीभ फेरता रहा और वही दूसरी तरफ अपनी उंगलियों का कमाल भी दिखाता रहा.......अब मेरे निपल्स धीरे धीरे हार्ड होने लगे थे वही मेरी चूत भी अब गीली होने लगी थी........मुझे इस वक़्त कोई होश नहीं था.....बस मैं इस सुखद एहसास को अपने अंदर समेटना चाहती थी.......विशाल के इस तरह उंगलियाँ फेरने से मुझे गुदगुदी भी हो रही थी..........वही मेरे जिस्म के रोयें भी पूरी तरह से खड़े हो चुके थे.......मैं फिर अपना चेहरा आगे बढ़ाकर विशाल के नज़दीक ले गयी और उसके लबों पर अपने होंठ हौले से रख दिए.........

इस बार विशाल मेरे होंठो को अपने मूह में लेकर उसे हौले हौले से चूसने लगा..........अब वो अपने दाँतों के बीच मेरे नीचले होंठ को धीरे धीरे काट रहा था......और साथ ही साथ चूस रहा था......और उधेर दूसरी तरफ अभी भी उसकी उंगलियाँ मेरी पीठ पर धीरे धीरे सरक रही थी.........मैं अब पूरी तरह से मदहोश हो चुकी थी........मैने अपना जिस्म बिल्कुल ढीला छोड़ दिया.......अब विशाल जैसा चाहे मेरे जिस्म के साथ खेले मुझे अब इसी कोई ऐतराज़ नहीं था.......

करीब 15 मिनिट तक विशाल मेरे इन रसीले होंठो का रस पीता रहा और अपनी उंगलियों का जादू मुझपर बिखेरता रहा........मेरे मूह से निकता थूक धीरे धीरे उसके मूह में घुल रहा था वही उसके मूह का थूक मेरे मूह में आ रहा था.......मुझे आज ये सब कुछ बुरा नहीं लग रहा था......विशाल अपने दाँतों के बीच मेरी जीभ को दबाता और उसे चूस्ता जिससे मैं और मदहोश सी हो जाती........अब विशाल का एक हाथ मेरे कंधे पर आ चुका था.......

विशाल मेरी ब्रा के स्ट्रॅप्स के उपर अपनी उंगलियों को धीरे धीरे फेर रहा था........मुझे आज पहली बार ये एहसास हुआ था कि सेक्स वो नशा है जिसमें इंसान एक पल में अपना सब कुछ भूल जाता है......उस वक़्त कुछ वैसा मेरा भी हाल था........कुछ देर तक विशाल अपनी उंगलियों को मेरी ब्रा पर फेरने के बाद उसने मेरे कंधों पर लगा ब्रा का स्ट्रॅप्स धीरे से सरकाते हुए उसे नीचे की तरफ ले जाने लगा.......एक बार फिर से मेरी दिल की धड़कने बढ़ चुकी थी.......मेरी साँसें फिर से बेकाबू हो चली थी.......

एक तरफ मेरा शरम से बुरा हाल था वही मैं चाहती थी कि आज विशाल मेरा ये सुंदर यौवन देखे........अभी भी मेरे अंदर झिझक बाकी थी.....जैसे ही विशाल ने मेरे कंधो पर लगी ब्रा की स्ट्रॅप्स को नीचे किया मैं फ़ौरन उसके लबों को फिर से चूसने लगी........फिर उसने अपना हाथ मेरे दूसरे कंधे पर रखा और वहाँ भी मेरे ब्रा का स्ट्रॅप्स को धीरे धीरे सरकाते हुए नीचे की ओर ले जाने लगा.........

हम दोनो इस वक़्त सब कुछ भूल चुके थे......मुझे ये भी होश नहीं था कि मम्मी पापा भी आने वाले है......अगर उन्होने हमे इस हाल में देख लिया तो........मैं अधनंगी हालत में इस वक़्त विशाल की बाहों में लेटी हुई थी.......तभी अचानक मेरी निगाह घड़ी पर गयी और जब मैने घड़ी में टाइम देखा तो उस वक़्त रात के 8.30 बज रहे थे.......मुझे तो एक पल ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे जिस्म से पूरा खून निचोड़ लिया हो........मैं विशाल के हाथों पर अपना हाथ रख दिए जिससे विशाल वही रुक गया और मुझे बड़े गौर से देखने लगा..

विशाल- क्या हुआ अदिति......मुझसे कोई खता हुई क्या??????

अदिति- नहीं विशाल.....मम्मी पापा अब आने वाले होंगे........देखो इस वक़्त रात के 8.30 बज रहें है......वो कभी भी आ सकते है....अगर उन्होने हमे इस हाल में देख लिया तो तूफान खड़ा हो जाएगा........प्लीज़ मैं ये सब अभी नहीं कर सकती.........मगर जब भी मौका मिलेगा मैं तुम्हें अपनी जवानी का रस ज़रूर पिलाउन्गि ये मेरा तुमसे वादा है.......अब जाओ जल्दी बाहर.......विशाल फिर मुझे बड़े प्यार से मेरे होंठो पर किस किया और फिर मेरे कमरे से फ़ौरन बाहर निकल गया......
 
मैं यू ही खामोश होकर उसे जाता हुआ देखती रही.......एक बार फिर से मेरे चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर गयी......मैं फिर अपने बेड से उठी और अपने कपड़े पहनने लगी........उधेर विशाल बाथरूम में था......मुझे अंदाज़ा था कि वो आज भी मेरे नाम की मूठ मार रहा होगा........और उसका ऐसा करना स्वाभाविक भी था......थोड़े देर बाद जब विशाल बाथरूम से बाहर निकला तो उस वक़्त मैं अपने कपड़े पहन चुकी थी......

अब मेरे पाँव का दर्द काफ़ी हद तक कम हो गया था.......थोड़े देर बाद मम्मी पापा भी आ गये और हम सब वही डाइनिंग टेबल पर डिन्नर करने लगे.....विशाल बीच बीच में मेरी तरफ देख रहा था मगर मेरे अंदर ज़रा भी हिम्मत नहीं थी कि मैं उससे अपनी नज़रें मिला सकूँ........पता नहीं क्यों मुझे बहुत शरम सी महसूस हो रही थी......

जब मैं अपने बिस्तेर पर गयी तो मैने फ़ौरन अपने सारे कपड़े उतार दिए और विशाल के साथ बिताए उन हसीन लम्हों को एक एक कर याद करने लगी.......मेरे हाथ मेरे जिस्म के गुप्तांगों से खेल रहें थे......काफ़ी देर तक मैं अपनी चूत को अपनी उंगलियों से सहलाती रही और आख़िरकार मेरा ऑर्गन्ज़्म हो गया और मैं किसी लाश की तरह बिल्कुल ठंडी पड़ गयी.......

आज अगर मुझे मम्मी पापा का डर नहीं होता तो मैं विशाल को अपनी जवानी सौप देती.....मगर अभी हमारे मिलन में कुछ और वक़्त था......मगर अब मंज़िल ज़्यादा दूर नहीं थी.......उस सुनहरे पल का विशाल को भी उतनी ही बेसब्री से इंतेज़ार था जितना की मुझे......

दूसरे दिन रोज़ की तरह हम कॉलेज गये......आज मैं विशाल के साथ पूरा चिपक कर बैठी थी.......वो मेरे सीने का भार अपने पीठ पर महसूस कर रहा था......

अदिति- विशाल मैं तुमसे एक बात पूछू.......तुम बुरा तो नहीं मनोगे ना......

विशाल- नहीं दीदी......पूछो क्या पूछना है........

अदिति- मैं एक दिन तुम्हारा कमरा सॉफ कर रही थी तो मुझे तुम्हारी अलमारी में से कुछ समान मिला......वो एक सफेद पॅकेट में था और उसके अंदर कोई 3 डीवीडी भी थी......मेरी बात सुनकर विशाल झट से अपनी बाइक पर ब्रेक लगाया जिससे उसकी बाइक रोड पर रगड़ खाती हुई थोड़ी दूर पर जाकर खड़ी हो गयी.......फिर वो अपनी गर्देन पीछे घूमाकर मेरी तरफ ऐसे देखने लगा जैसे मैं कोई उससे ग़लत सवाल पूछ लिया हो.........

विशाल- तो आपने उन डीवीडी'स का क्या किया....मेरा मतलब......क्या आपने वो डीवीडी देखी.........

अदिति- तुम्हें क्या लगता है विशाल कि ऐसा कुछ हुआ होगा.........वैसे क्या था उस डीवीडी में.....

विशाल- दीदी आइ अम सॉरी.......अगर आपने उन डीवीडी'स को देखा हो तो आप ये बात किसी से मत कहिएगा......उन डीवीडी'स में उस टाइप की फिल्में थी.....

अदिति- किस टाइप की फिल्में विशाल.......मैं कुछ समझी नहीं......ज़रा खुल का बताओ......

विशाल- समझा करो दीदी......वो वाली........

अदिति- जो कहना है सॉफ सॉफ कहो........अब तो तुम मुझसे इतना खुल चुके हो तो अब बताने में मुझसे कैसी शरम........

विशाल- दीदी वो ब्लू फिल्म की डीवीडी थी........
 
अदिति- अच्छा तो जनाब ये सब भी करते है.....मैने विशाल के कान पकड़ते हुए कहा तो वो वही दर्द से चीख पड़ा.........तभी मैं कहूँ कि तुम्हें इतना सब कुछ कैसे पता है........शाम को घर चलो मैं मम्मी से कहकर तुम्हारी अच्छे से खबर लेती हूँ.........

विशाल- दीदी प्लीज़.......सॉरी तो बोल रहा हूँ ना मैं..........और अगर मम्मी जान गयी तो मेरा घर से बाहर निकलना बंद कर देगी.........क्या आपको अच्छा लगेगा कि मैं एक कमरे में दिन भर पड़ा रहूं.......

अदिति- हां अच्छा लगेगा........कम से कम तुम मेरी आँखों के सामने तो रहोगे........इतना कहकर मैं विशाल को देखकर धीरे से मुस्कुरा पड़ी......जवाब में विशाल भी मुझे देखकर मुस्कुराता रहा......अच्छा अब कॉलेज चलो हमे देर हो रही है.......फिर हम थोड़ी देर बाद कॉलेज पहुँच गये.........

रोज की तरह पूजा मेरा आज भी इंतेज़ार कर रही थी.......वो मुझे देखकर खुशी से खिल पड़ी......फिर हमारे लेक्चर्स शुरू हो गये.......अब मेरा दिल कॉलेज में नहीं लगता था......जैसे तैसे वक़्त बीता और दोपहर हुई.......हम दोनो गार्डेन में गये......

अदिति- एक बात पूछू पूजा तू मुझे ग़लत तो नहीं समझेगी.........मेरे इस तरह पूछने से पूजा मेरे चेहरे को बड़े गौर से देखने लगी.......

पूजा- हां बोल अदिति बात क्या है.......

अदिति- दर-असल मैं ये जानना चाहती थी कि ........

पूजा- अरे बाबा बोल ना.....क्या जानना चाहती थी.......तू तो मुझसे ऐसे शरमा रही है जैसे मैं कोई लड़का हूँ.......बोल ना क्या पूछना है.....

अदिति- सेक्स कैसे करते है.......आइ मीन मुझे सेक्स के बारे में कोई जानकारी नहीं है.........किन बातों का फर्स्ट टाइम ध्यान रखा जाता है.......मेरे कहने का मतलब........

पूजा मेरे पास आई और मेरे गालों पर कसकर एक चिकोटी काट ली.......मैं वही दर्द से सिसक पड़ी.......

पूजा- क्या बात है जान.......किससे अपनी चूत चुदवानी है तुझे........कोई आशिक़ मिल गया है क्या जो तू मुझसे ये सब सवाल कर रही है.........

अदिति- देख पूजा प्लीज़......जो मैं जानना चाहती हूँ वो मुझे बता ना.......कल को मेरी शादी होगी और मेरा होने वाला पति भी मेरी तरह अनाड़ी निकलेगा तो......समझा कर ना यार.......

पूजा- ओह हो..........क्या बात है......अभी से सुहागरात की तैयारी हो रही है.......ठीक है......मगर तू मुझे क्या चालू समझती है कि मैं ये सब किसी और के साथ..........

अदिति- नहीं पूजा.......मैं ऐसा कुछ नहीं समझती तेरे बारे में........मगर हां इतना जानती हूँ कि तू ये सब में मास्टर है..........

पूजा- अरे वाह......तू तो ऐसा कर रही है जैसे मैने कोई MCC की डिग्री हासिल की हो........

अदिति- ये MCC क्या है.....

पूजा मेरे सवालों को सुनकर धीरे से मुस्कुरा पड़ती है- मास्टर इन चूत चुदाई.

अदिति- अगर तुझे इसी तरह से मुझसे बात करनी है तो मुझे नहीं जानना आगे और कुछ.......

पूजा- अरे तू तो मुझसे ऐसे शरमा रही है जैसे मैं तेरी सहेली ना होकर तेरी बाय्फ्रेंड हूँ......सोच अगर मेरी जगह पर तेरा कोई बाय्फ्रेंड होता और ये बात अगर वो तुझसे कहता तो फिर........थोड़ा बोल्ड बन मेरी जान......दोस्तों के बीच इतना सब कुछ तो चलता है यार......

अदिति- ठीक है ठीक है........तो अब तू मेरे सवालों का जवाब दें........
 
पूजा- अच्छा बाबा बताती हूँ.......जिस दिन तेरी सुहागरत होगी उस दिन तेरा होने वाला पति तेरे कमरे में आएगा......फिर वो तेरे नज़दीक आकर तेरा ये लाज का घूँघट उठाएगा.......

अदिति- फिर.....आगे .....

पूजा- क्या बात है जान तू तो एक दम सीरीयस हो गयी......तुझे देखने से ऐसा लग रहा है जैसे अभी के अभी तेरी सुहागरात होने वाली है.......

अदिति- चुप चाप आगे बताती जा...नहीं तो मारूँगी एक कसकर...........पता नहीं क्यों पूजा की बातों को सुनकर मेरे मन में गुदगुदी सी हो रही थी........वही मेरे चेहरे पर मुस्कान रुकने का नाम नहीं ले रही थी........मगर साथ ही साथ मेरे चेहरे पर शरम और हया के बादल और भी गहरे होते दिखाई दे रहें थे........

पूजा- तो फिर जैसे ही तेरा पति तेरा ये घूँघट उठाएगा उसके सामने तेरा चाँद जैसा मुखड़ा उसे नज़र आएगा.....फिर वो तेरे बदन से सारी ज्वेल्लेरी एक एक कर उतारेगा......फिर अपना हाथ वो तेरे बदन पर धीरे धीरे फेरता जाएगा.......और फिर शुरू होगा यहाँ से चुदाई का सिलसिला......

वो पहले तेरी ब्लाउस उतारेगा...फिर तेरी ब्रा.....उसके बाद वो तेरे इन मस्त चुचियों का रस अपने होंठो से पीएगा........और साथ ही साथ अपने हाथों से तेरी इन दूधो को मसलेगा.......फिर वो धीरे धीरे तेरी साड़ी भी अलग करेगा.....और आख़िरी में तेरी पैंटी भी तेरे बदन से जुदा कर देगा......

पूजा की बातों को सुनकर एक बार फिर से मेरी साँसें बहुत ज़ोरों से चलने लगती थी......एक बार फिर से मेरा मन बेकाबू हो रहा था.......

अदिति- फिर ....आगे... क्या.......

पूजा- फिर तू उसके सामने पूरी नंगी होगी......और तेरा पति तेरा ये हुस्न अपनी आँखों में धीरे धीरे समेटेगा......फिर वो भी अपने कपड़े उतार कर तेरे सामने पूरा नंगा हो जाएगा.......फिर वो मेरे टाइप का हुआ तो वो तुझसे ब्लो जॉब करने को कहेगा.......मेरा मतलब तुझे लोलीपोप चूसने को कहेगा......

अदिति- तेरे टाइप का मतलब........और ये ब्लोवजोब क्या होता है......और लोलीपोप बीच में कहाँ से आ गया......मेरे चेहरे पर सवालों के बादल थे......मुझे पूजा की कुछ बातें उपर से जा रही थी.....

पूजा- मेरे टाइप मतलब एक दम रापचिक बिंदास जैसा.......जो एक दम बेशरम होकर चुदाई करता हो........अरे बुद्धू ब्लोवजोब मतलब लंड चूसने को कहते है.......और लोलीपोप उसका दूसरा कोड वर्ड है......है मैं मर जावां.......क्या हसीन पल होगा वो......मुउउहह................जब तेरे मूह में तेरे पति का लंड होगा और तू उसे मस्त चूस रही होगी.....अपनी जीभ उसपर धीरे धीरे फेर रही होगी....उसका लोलीपोप चूस चूस कर उसके अंदर का माल निकाल रही होगी....

पूजा की बातों से मेरे चेहरे पर एक बार फिर से शरम की लाली आ गयी थी......पूजा की ऐसी बोल्ड बातें एक बार फिर से मेरे अंदर आग भड़काने का काम कर रही थी........मैं उसकी बातो का कोई जवाब नहीं दे रही थी.......मगर मैं चाहती थी की पूजा मुझसे इसी तरह आगे बताती रहें......

मैं अपने बेकाबू सांसो को संभालते हुए पूजा से आगे बताने को कहा- आगे बता ना पूजा......फिर......

पूजा- नहीं.....आगे तो लाइव शो तेरा होने वाला पति ही तुझे बताएगा........तू खुद ही जाकर उससे पूछ लेना.......मैं तो अब चली.......

मुझे उस वक़्त पूजा पर बहुत गुस्सा आ रहा था मगर वो भी मुझे तड़पाने के मूड में थी.......मैं चाह कर भी उससे कुछ ना बोल सकी और फिर हम अपने क्लास में चल पड़े.......पूरे समय मेरे दिमाग़ में पूजा की कहीं सारी बातें घूम रही थी.........जैसे तैसे वक़्त गुज़रा और फिर हमारी छुट्टी हुई......

इधेर विशाल बाहर मेरे आने का इंतेज़ार कर रहा था.....जैसे ही उसकी नज़र मुझपर पड़ी वो मुझे देखकर धीरे से मुस्कुरा पड़ा......जवाब में मैं भी उसे देखकर मुस्कुराती रही.......फिर हम अपने घर की तरफ चल पड़े.


शाम के वक़्त मैं किचन में नाश्ता बना रही थी........आज भी मैने एक लाल रंग की सूट और नीचे वाइट कलर की लॅयागी पहनी हुई थी........हमेशा की तरह मेरे कपड़े मेरे बदन से पूरी तरह चिपके हुए थे.......मैने अपना दुपट्टा निकाल कर वही रख दिया.......दुपट्टा मेरे सीने पर ना होने से मेरी क्लेवरेज बहुत हद तक बाहर की ओर दिखाई दे रही थी........बगल में मम्मी भी थी वो बार बार मुझे ही देख रही थी......

स्वेता- अदिति अब तू बड़ी हो गयी है........दूसरी शब्दों में कहा जाए तो तू अब जवान हो चुकी है.........घर पर तेरे पापा और विशाल भी हमेशा होते है.......मैने तुझे कितनी बार कहा है कि तू अपना दुपट्टा अपने सीने पर रखा कर....मगर तू कभी मेरी बात सुनती ही नहीं.......चल जा और अपना दुपट्टा पहना ले....

अदिति- मगर मा......आज गर्मी बहुत ज़्यादा है.......इस लिए तो मैने......

स्वेता- वो सब मैं कुछ नहीं जानती.......जितना तुझसे कहा गया है उतना कर.......किसी भी इंसान की नियत बदलते देर नहीं लगती.........तू समझ रही है ना कि मैं तुझसे क्या कहना चाहती हूँ.......मैं क्या कहती चुप चाप मैने अपना दुपट्टा उठाया और उसे अपने सीने पर लगा लिया.......मुझे मम्मी पर बहुत गुस्सा भी आ रहा था......
 
थोड़ी देर बाद मम्मी के मोबाइल पर किसी का कॉल आया......मम्मी बरामदे में जाकर फोन पर बातें करने लगी........वो कुछ परेशान सी दिखाई दे रही थी.......कुछ देर बाद वो मेरे पास आई.........अभी भी उनके चेहरे पर चिंता सॉफ झलक रही थी......

स्वेता- बेटी अभी अभी तेरे मौसा का फोन आया था......तेरी मौसी की की तबीयात बहुत खराब है.......उसे डायबिटीज़ और BP दोनो की शिकायत हो गयी है.......इस वक़्त वो हॉस्पिटल में अड्मिट है........हमे अभी वहाँ जाना होगा.......मैं तेरे पापा से इस बारे में बात करती हूँ........फिर मम्मी पापा के पास फोन करती है और उन्हें सारा हाल बताती है......

पापा भी थोड़े देर में घर आते है..........वैसे मेरी मौसी का घर वहाँ से करीब 100 कि.मी की दूरी पर था....करीब 3 से 4 घंटे लगते थे वहाँ पहुँचने में.......वैसे जब मैं बहुत छोटी थी तब मैं उनके पास गयी थी.......मुझे वहाँ गये करीब 5 साल से उपर हो गये थे.....

स्वेता- बेटी तुम एक काम करो अपना समान पॅक करो हम सब वहाँ चलते है.......इसी बहाने तू अपनी मौसी से भी मिल लेगी......मुझे तो जैसे ये सुनकर एक बहुत बड़ा झटका सा लगा........मैं तो ये सोच रही थी कि मम्मी पापा दोनो जाएँगे मौसी के घर मगर यहाँ तो हम सब के जाने का प्लानिंग चल रही थी.....अब तक पापा भी घर आ चुके थे...इस वक़्त हाल में सब कोई बैठा हुआ था......

अदिति- मगर...मम्मी......हमारी पढ़ाई.......

स्वेता- बेटी बस दो तीन दिनों की तो बात है.......

अदिति- मगर मा......मैं नहीं जा सकती.......मुझे वहाँ अच्छा नहीं लगता......

मोहन- ठीक है बेटी अगर तुम्हारा मन नहीं है तो तुम यहीं रुक सकती हो.......विशाल तो हमारे साथ ही जाएगा.......

मुझे पापा की बातों से एक बहुत बड़ा झटका सा लगा.......मैं तो ये सोचकर खुस थी कि अगर मैं नहीं गयी तो विशाल भी मेरे पास रुकेगा.....मगर अब मैं यहाँ अकेले रहकर क्या करूँगी.......मैं इसी उधेरबुन में थी तभी मम्मी की आवाज़ को सुनकर मैं अपने सोच से बाहर आई......

स्वेता- आप भी कैसी बातें करते है.....भला इतने बड़े घर में अदिति अकेले कैसे रहेगी.........तुम एक काम करो विशाल तुम भी यहीं रुक जाओ........इसी बहाने तुम अदिति के साथ रहोगे तो इसका भी मन लगा रहेगा.......

विशाल ने फ़ौरन हां कर दिया......शायद वो भी यही चाहता था......पापा कुछ ना कह सके और फिर उन्होने पॅकिंग करनी शुरू कर दी....उन्होने तीन दिन की ऑफीस से छुट्टी ली और फिर रात के करीब 8 बजे वे लोग झाँसी जाने वाली ट्रेन में बैठ गये......विशाल उन्हें छोड़ने उनके साथ रेलवे स्टेशन गया हुआ था.........

इधेर मैं मन ही मन झूम उठी थी.......मुझे कुछ ऐसे ही सुनहरे मौके का इंतेज़ार था.........और आज उपर वाले की दया से मुझे वो मौका मिल गया था.......मम्मी पापा के जाते ही मैं फ़ौरन बाथरूम में घुस गयी और बाथ लेने लगी.......मैं अपने जिस्म के सारे बाल अच्छे से सॉफ किए........

नहाने के बाद मैं बिना कपड़ों के बाहर आई और अपने रूम की तरफ चल पड़ी........मैने अपना अलमारी खोला और उसमे रखी वो ब्लॅक कलर का लेटेस्ट ब्रा और पैंटी निकाल कर उसे पहनने लगी......फिर वही लगा रॅक में से मैने एक ब्लॅक रंग की चूड़ीदार सूट निकाला और उसी रंग की मॅचिंग पायजामी पहन ली........वैसे मेरे गोरे जिस्म पर काला कपड़ा बहुत जचता था.......

फिर मैने एक खुसबूदार पर्फ्यूम अपने बॉडी पर स्प्रे किया जो मेरे बदन को और भी महका रहा था.......मैने फिर अपने होंठो पर हल्की पिंक कलर की लिपस्टिक लगाई जो मेरी गुलाबी लबों पर और भी प्यारी लग रही थी......आँखों में हमेशा की तरह सूरमाई काजल और माथे पर उसी रंग की मॅचिंग बिंदिया......मैने जान बूझ कर अपने बाल खुले रखे थे........फिर मैं एक हल्की गुलाबी रंग की नैल्पोलिश अपने हाथ और पैरों की नाखूनों में लगाने लगी.......मैं फाइनल टच देकर कुछ देर तक इसी तरह अपने आपको शीशे के सामने निहारती रही........अब तो मुझे भी ऐसा लग रहा था कि मैं आज विशाल को अपनी अदा से घायल ज़रूर कर दूँगी......
 
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