hotaks444
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शाज़िया के कपड़े पहनने तक ज़ाहिद ने भी फॉरन उठ कर अपनी शलवार और बनियान पहनी और फिर आहिस्ता से अपने कमरे का दरवाज़ा खोल दिया.
“लो बच्चो चाय ले लो” दरवाज़ा खुलते ही रज़ाई बीबी धड़कते दिल के साथ मुस्कराते हुए चाय की ट्रे ले कर कमरे में दाखिल हुई.
कमरे में दाखिल होते ही,कमरे की फ़िज़ा में भिखरी हुई चुदाई की माक्सोस सी बू (स्मेल) रज़िया बीबी के नथुनो (नाक) से टकराई.
ये वो बू थी. जो जिन्सी ताल्लुक़ात के बाद इंसानी जिस्मो से निकलने वाले पसीने की वजह से पैदा होती है.
अपने शोहर के ज़िंदा होते हुए तो रज़िया बीबी इस बू की आदि थी. मगर अपनी बेवगी के बाद से अब तक उस ने कभी इस किस्म की बू नही सूँघी थी.
इसीलिए आज इतने अरसे बाद जब उस ने अपने ही बच्चो के कमरे में आ कर ये बू महसूस की.
तो इस रज़िया बीबी को यूँ लगा जैसे उस के बच्चो के मिलन से पेदा होने वाली इस जिन्सी महक का उस असर उस पर भी होने लगा है.
क्यों कि अपने बच्चो के कमरे में पैर रखाते ही रज़िया बीबी के जिस्म में रात को सुलगने वाली उस की जिस्म की आग फिर से अपना सर उठा ने लगी.
जिस की वजह से रज़िया बीबी को अपनी फुद्दि में हल्का सा गीला पन फिर से महसूस होने लगा था.
कमरे में दाखिल होते ही रज़िया बीबी ने एक भरपूर नज़र कमरे के अंदर वाले माहौल पर दौड़ाई.
तो रज़िया बीबी को कमरे के फर्श पर बिखरे हुए अपने सगे बेटे की शेरवानी,अपनी सग़ी बेटी का लहनगा,ब्रेज़ियर और पैंटी. और उस के साथ साथ बिस्तर पर पड़ी चादर की खराब हालत देख कर ब खूबी अंदाज़ा हो गया. कि उस के दोनो बच्चो की सुहाग की इस सेज पर कल रात क्या खेल खेला जा चुका है.
“अम्मी आप ने क्यों तकलीफ़ की, शाज़िया थोड़ी देर में खुद उठ कर चाय बना लेती” ज़ाहिद ने जब अपनी अम्मी को खड़े खड़े यूँ कमरे का जायज़ा लेते देखा. तो उसे ना जाने क्यों अपनी अम्मी से शरम महसूस होने लगी. और उस ने अपनी अम्मी को बातों में उलझा कर उन का ध्यान किसी दूसरी तरफ लगाने की कोशिश करते हुए कहा.
“नही बेटा इस में तकलीफ़ की कौन सी बात है,वैसे भी शाज़िया तो अभी नई नवेली दुल्हन है,इस को अभी से काम काज पर लगा दूं ,ये कैसे हो सकता है भला” रज़िया बीबी ने चाय की ट्रे कमरे के टेबल पर रखते हुए जवाब दिया.और फिर साथ ही साथ रज़िया बीबी ने ज़ाहिद की अलमारी के पास चुप चाप खड़ी अपनी जवान बेटी पर अपनी नज़रें जमा दीं.
रज़िया बीबी ने बिना किसी झिझक के ये बात अपनी बेटे से कह दी. इस बात पर पर रज़िया बीबी को खुद भी हैरानी महसूस हुई. क्यों कि आम हालत में तो वो कभी भी अपने बच्चो से इस किस्म की बात ना कह पाती.
मगर लगता था कि अपनी चूत के हल्के हल्के गीले पन ने रज़िया बीबी की सारी समझ बूझ को ख़तम कर दिया था.
शाज़िया का दुपट्टा उस के गले से गिर जाने की वजह से उस की कमीज़ के खुले गले में से, रात भर काटे गये ज़ाहिद के दाँतों के निशान शाज़िया की जवान और भारी छातियों पर वज़िया नज़र आ रहे थे.
इसीलिए अपनी बेटी की जवान और रस भरी छातियों पर अपने ही बेटे के काटने के सुर्ख निशान देख कर रज़िया बीबी ये बात ब खूबी जान चुकी थी. कि उस की सग़ी बेटी की नथ, उस का अपना सगा बेटा ना सिर्फ़ गुज़शता रात उतार चुका है.
बल्कि ज़ाहिद अपनी अम्मी के कहने के मुताबिक रात भर अपनी बहन के गरम और प्यासे जिस्म की प्यास बुझा कर अपने होने आज वाले वैलमा को सही मायनो में जायज़ भी कर चुका है.
(वैसे तो किसी कंवारी चूत की सील पहली दफ़ा टूटने को नथ उतराई कहा जाता है. शाज़िया की असल नथ तो उस के असली सबका शोहर के लंड से ही उतरी थी. मगर ज़ाहिद ने भी चूँकि पहली ही दफ़ा अपनी बहन की फुद्दि का मज़ा लिया था. इसीलिए रज़िया बीबी के ख्याल में ये भी नथ उतराई ही थी.)
अपनी बेटी के सेरपे (जिस्म) और चेहरे का ब गौर जायज़ा लेते हुए रज़िया बीबी की आँखों ने अपनी बेटी के तन बदन और चेहरे में आज एक बिल्कुल नई तब्दीली नोट की.
वो तब्दीली ये थी कि आज दो साल बाद रज़िया बीबी को अपनी बेटी शाज़िया के चेहरे पर खुशी की चमक और इतमीनान के आसार नज़र आए.
जब कि अपने तलाक़ के बाद मुरझा सी जाने वाली अपनी बेटी शाज़िया के अंग अंग से उठती हुई जवानी की झलक और महक रज़िया बीबी के लिए एक नया और ख़ुशगवार तजुर्बा था.
“लो बच्चो चाय ले लो” दरवाज़ा खुलते ही रज़ाई बीबी धड़कते दिल के साथ मुस्कराते हुए चाय की ट्रे ले कर कमरे में दाखिल हुई.
कमरे में दाखिल होते ही,कमरे की फ़िज़ा में भिखरी हुई चुदाई की माक्सोस सी बू (स्मेल) रज़िया बीबी के नथुनो (नाक) से टकराई.
ये वो बू थी. जो जिन्सी ताल्लुक़ात के बाद इंसानी जिस्मो से निकलने वाले पसीने की वजह से पैदा होती है.
अपने शोहर के ज़िंदा होते हुए तो रज़िया बीबी इस बू की आदि थी. मगर अपनी बेवगी के बाद से अब तक उस ने कभी इस किस्म की बू नही सूँघी थी.
इसीलिए आज इतने अरसे बाद जब उस ने अपने ही बच्चो के कमरे में आ कर ये बू महसूस की.
तो इस रज़िया बीबी को यूँ लगा जैसे उस के बच्चो के मिलन से पेदा होने वाली इस जिन्सी महक का उस असर उस पर भी होने लगा है.
क्यों कि अपने बच्चो के कमरे में पैर रखाते ही रज़िया बीबी के जिस्म में रात को सुलगने वाली उस की जिस्म की आग फिर से अपना सर उठा ने लगी.
जिस की वजह से रज़िया बीबी को अपनी फुद्दि में हल्का सा गीला पन फिर से महसूस होने लगा था.
कमरे में दाखिल होते ही रज़िया बीबी ने एक भरपूर नज़र कमरे के अंदर वाले माहौल पर दौड़ाई.
तो रज़िया बीबी को कमरे के फर्श पर बिखरे हुए अपने सगे बेटे की शेरवानी,अपनी सग़ी बेटी का लहनगा,ब्रेज़ियर और पैंटी. और उस के साथ साथ बिस्तर पर पड़ी चादर की खराब हालत देख कर ब खूबी अंदाज़ा हो गया. कि उस के दोनो बच्चो की सुहाग की इस सेज पर कल रात क्या खेल खेला जा चुका है.
“अम्मी आप ने क्यों तकलीफ़ की, शाज़िया थोड़ी देर में खुद उठ कर चाय बना लेती” ज़ाहिद ने जब अपनी अम्मी को खड़े खड़े यूँ कमरे का जायज़ा लेते देखा. तो उसे ना जाने क्यों अपनी अम्मी से शरम महसूस होने लगी. और उस ने अपनी अम्मी को बातों में उलझा कर उन का ध्यान किसी दूसरी तरफ लगाने की कोशिश करते हुए कहा.
“नही बेटा इस में तकलीफ़ की कौन सी बात है,वैसे भी शाज़िया तो अभी नई नवेली दुल्हन है,इस को अभी से काम काज पर लगा दूं ,ये कैसे हो सकता है भला” रज़िया बीबी ने चाय की ट्रे कमरे के टेबल पर रखते हुए जवाब दिया.और फिर साथ ही साथ रज़िया बीबी ने ज़ाहिद की अलमारी के पास चुप चाप खड़ी अपनी जवान बेटी पर अपनी नज़रें जमा दीं.
रज़िया बीबी ने बिना किसी झिझक के ये बात अपनी बेटे से कह दी. इस बात पर पर रज़िया बीबी को खुद भी हैरानी महसूस हुई. क्यों कि आम हालत में तो वो कभी भी अपने बच्चो से इस किस्म की बात ना कह पाती.
मगर लगता था कि अपनी चूत के हल्के हल्के गीले पन ने रज़िया बीबी की सारी समझ बूझ को ख़तम कर दिया था.
शाज़िया का दुपट्टा उस के गले से गिर जाने की वजह से उस की कमीज़ के खुले गले में से, रात भर काटे गये ज़ाहिद के दाँतों के निशान शाज़िया की जवान और भारी छातियों पर वज़िया नज़र आ रहे थे.
इसीलिए अपनी बेटी की जवान और रस भरी छातियों पर अपने ही बेटे के काटने के सुर्ख निशान देख कर रज़िया बीबी ये बात ब खूबी जान चुकी थी. कि उस की सग़ी बेटी की नथ, उस का अपना सगा बेटा ना सिर्फ़ गुज़शता रात उतार चुका है.
बल्कि ज़ाहिद अपनी अम्मी के कहने के मुताबिक रात भर अपनी बहन के गरम और प्यासे जिस्म की प्यास बुझा कर अपने होने आज वाले वैलमा को सही मायनो में जायज़ भी कर चुका है.
(वैसे तो किसी कंवारी चूत की सील पहली दफ़ा टूटने को नथ उतराई कहा जाता है. शाज़िया की असल नथ तो उस के असली सबका शोहर के लंड से ही उतरी थी. मगर ज़ाहिद ने भी चूँकि पहली ही दफ़ा अपनी बहन की फुद्दि का मज़ा लिया था. इसीलिए रज़िया बीबी के ख्याल में ये भी नथ उतराई ही थी.)
अपनी बेटी के सेरपे (जिस्म) और चेहरे का ब गौर जायज़ा लेते हुए रज़िया बीबी की आँखों ने अपनी बेटी के तन बदन और चेहरे में आज एक बिल्कुल नई तब्दीली नोट की.
वो तब्दीली ये थी कि आज दो साल बाद रज़िया बीबी को अपनी बेटी शाज़िया के चेहरे पर खुशी की चमक और इतमीनान के आसार नज़र आए.
जब कि अपने तलाक़ के बाद मुरझा सी जाने वाली अपनी बेटी शाज़िया के अंग अंग से उठती हुई जवानी की झलक और महक रज़िया बीबी के लिए एक नया और ख़ुशगवार तजुर्बा था.