hotaks444
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मैंने शरणागति मान ली. हाथ जोड़कर अपनी रानी से कहा "जैसा तुम कहो डार्लिंग, और कोई आज्ञा हो तो बताओ"
"वो कल बताऊंगी आने के बाद. चलो अब मुंह लटका के न बैठो" मुझे चूम के प्यार से बोली "ये रिश्ते तो निभाने ही पड़ते हैं. आज बड़े घर जाना ही है, कल पूरा दिन है फ़िर से, तब खातिरदारी करवा लेना. अब एक घंटे में तैयार हो जाओ सब फटाफट, मां तो एक घंटे पहले ही गयी भी, बोल कर गयी थी कि सब जल्दी आना"
मैं और ललित पांच मिनिट पड़े रहे, स्खलन का आनंद लेते हुए. फ़िर उठे और तैयार होने लगे.
बड़े घर में ये हड़कंप मचा था. बहुत से रिश्तेदार आये थे. मैंने कितने बड़े बूढ़ों और बूढ़ियों के पैर छुए, उसकी गिनती ही नहीं है, सब नया जमाई करके इधर उधर मुझे मिलवाने ले जा रहे थे. लीना, मीनल और ताईजी तो मुझे बहुत कम दिखीं, हां ललित दिखा जो लीना को ढूंढ रहा था, बेचारा अपनी दीदी का मारा था. हां, बाद में जब औरतों का गाना बजाना खतम हुआ तो वे तीनों दिखीं. सब इतनी सुंदर लग रही थीं. याने वे सुंदर तो थीं ही, मैंने सबकी सुंदरता इतने पास से देखी थी पर उस दिन सिल्क की साड़ियां, गहने, मेकप इन सब के कारण वे एकदम रानियां लग रही थीं. लीना तो लग ही रही थी राजकुमारी जैसी, मीनल भी कोई कम नहीं थी और सासूमां, उफ़्फ़ उनका क्या कहना, गहरी नीले रंग की कांजीवरम साड़ी में उनका रूप खिल आया था. लीना ने शायद जिद करके उनको हल्की लिपस्टिक भी लगा दी थी, उनके होंठ गुलाब की कलियों जैसे मोहक लग रहे थे और जब मैंने उनके सुबह के चुंबनों के स्वाद के बारे में सोचा तो कुरता पहने होने के बावजूद मेरा हल्का सा तंबू दिखने लगा, बड़ी मुश्किल से मैंने लंड को शांत किया नहीं तो भरी सभा में बेइज्जती हो जाती. एक बात थी, मैं कितना भाग्यवान हूं कि ऐसी सुंदर तीन तीन औरतों का प्यार मुझे मिल रहा है, ये बात मेरे मन में उतर गयी थी. पर उस समय कोई मुझे कहता कि फटाफट चुदाई याने क्विकी के लिये तीनों में से एक चुनो, तो मुश्किल होती. शायद मैं मांजी को चुन लेता!! क्या पता!!
रात को पूजा देर तक चली. फ़िर खाना हुआ. दो बज गये थे और सब वही सोय गये, वैसे सब की व्यवस्था अच्छी की गयी थी, इतना ही था कि मर्द और औरतें अलग अलग कमरों में थे. अब इतने लोगों में सबको जोड़े बनाकर कमरे देना भी मुश्किल था. सुबह उठकर बस चाय पीकर सब निकलनी लगे. हम भी निकले और नौ बजे तक घर आ गये. आते ही थोड़ा आराम किया, अब भी थकान थी. एक दो घंटे आराम के बाद नहाना धोना वगैरह हुआ. अब राधाबाई भी नहीं थी इसलिये हमने बाहर से ही खाना मंगवा लिया. दोपहर के खाने के बाद मीनल से सोनू को बोतल से दूध पिलाया. सोनू जल्द ही सो गयी. मीनल लीना की ओर देखकर मुस्करा कर बोली "अब सोयेगी चार पांच घंटे आराम से, कल भीड़ भाड़ की वजह से चिड़चिड़ा रही थी, सोयी भी नहीं ठीक से"
मैं सोच रहा था कि कल से मीनल के स्तन खाली नहीं हुए, भर गये होंगे. उसके ब्लाउज़ में से वे अब अच्छे खासे उभरे उभरे से लग रहे थे. मीनल ने मेरी नजर कहां लगी है वो देखा और मुझे आंख मार दी. फ़िर पलक जल्दी जल्दी झपका कर प्यार से सांत्वना दी कि फ़िकर मत करो, सब मिलेगा. अपना आंचल ठीक करके मीनल लीना से बोली "लीना दीदी ... आज रात को तुम दोनों जाने वाले हो? बहुत कम समय के लिये आये हो तुम लोग, देखो ना, कल का आधा दिन और पूरी रात और आज का आधा दिन ऐसे ही बेकार गया"
लीना बोली "भाभी, पूरी दोपहर और शाम है, ट्रेन तो रात की है ना, मुहब्बत करने वाले तो पांच मिनिट में भी जन्नत की सैर कर आते हैं. वैसे तुम ठीक कहती हो. ललित ... जा बाहर से ताला लगा दे और पीछे के दरवाजे से अंदर आ जा. और सब पर्दे खिड़कियां बंद कर दे. कोई आये भी तो वापस चला जायेगा सोच के कि हम वापस नहीं आये अब तक. शाम को ताला खोलेंगे."
मांजी जो अब तक चुपचाप बैठी थीं, बोलीं "तब से कह रही हूं, अब ज्यादा टाइम नहीं बचा है, कोई सुनता ही नहीं मेरी. अब देर मत करो और. लीना, तू जल्दी दामादजी को लेकर आ जा मेरे कमरे में"
मीनल हंसने लगी "मां जी को सबसे ज्यादा जल्दी हो रही है अपने दामाद के और लाड़ प्यार करने की"
सासूमां शरमा गयीं. बोलीं "चल बदमाश कहीं की. अरे अनिल का तो खयाल करो, बेचारे की पूरी रात वेस्ट कर दी हमने, चलो जल्दी करो"
मीनल बड़े नाटकीय अंदाज में बोली "और मैं और ललित क्या करें ममी? चल ललित, अपन पिक्चर चलते हैं, वो जय संतोषी मां लगी है"
ताईजी चिढ़ कर बोलीं "अब तो बहू तू मार ही खायेगी, कोई कहीं नहीं जायेगा, सब लोग जल्दी मेरे कमरे में आओ, और कैसे तैयार होकर आना है ये बताने की जरूरत नहीं है. मेरा कमरा बड़ा है, इसलिये वहां सब को आराम से ... याने ... मैं जा रही हूं, तुम लोग भी आ जाओ" फ़िर वे उठकर अपने कमरे में चली गयीं.
लीना बोली "अब सब समझे या नहीं? मां ने तैयार होकर आने को कहा है. याने और अच्छे कपड़े पहनकर बनाव सिंगार करके नहीं, कपड़े निकाल कर जाना है, एकदम तैयार होकर हमारी कामदेव की पूजा जल्द से जल्द शुरू करने के लिये. चल ललित, जा और ताला लगाकर जल्दी आ, मैं अनिल को लाती हूं"
मुझे वह अपने कमरे में ले गयी. हमने फटाफट कपड़े निकाले. लीना जब साड़ी फ़ोल्ड करके रख रही थी तब उसके गोल मटोल गोरे नितंब देखकर मैंने झुक कर उनको चूम लिया. फ़िर उनको दबाता हुआ पीछे से चिपक गया. अपना लंड उन तरबूजों के बीच की लकीर में सटा कर लीना की ज़ुल्फ़ों में मुंह छुपा कर बोला "अब डार्लिंग, इन मेरे प्यारों को मैं इतना मिस कर रहा हूं, जरा एक राउंड हो जाये फटाफट? पीछे से?"
"बिलकुल नहीं ये फटाफट होने वाली चीज नहीं है. मुझे मालूम है, मेरी गांड के पीछे पड़े कि रात भर की छुट्टी."
लीना के नितंबों को दबाता हुआ मैं बोला "बड़ी आई रात भर वाली. महने में एक बार कभी इनका आसरा मेरे लंड को मिलता है, अब आज मरा भी लो रानी प्लीज़"
"बिलकुल नहीं, अब चलो, मीनल और ललित तो आ भी गये होंगे ममी के कमरे में"
"रानी, चलो तुम ना मराओ, तुमको मैं क्या कहूं, तुम्हारा तो गुलाम हूं पर वो ... याने नाराज मत हो पर ताईजी की क्या मस्त गांड है, डनलोपिलो जैसी, अब तक ठीक से हाथ भी नहीं लगा पाया. हाथ खोले ही नहीं किसी ने कल दिन भर मेरे. और मीनल की ठीक से देखी नहीं पर मस्त कसी हुई लगती है. अगर आज अब मैं जरा ...."
लीना मेरी बात काट कर गुस्से से बोली "खबरदार. मां की गांड को बुरी नजर से मत देखना. अनर्थ हो जायेगा. डेढ़ दिन को आये हो, जरा अपनी साख मनाये रहो. मां को सच में आदत नहीं है, मीनल की मैं नहीं जानती पर आज अब टाइम भी नहीं है"
मेरे सूरत देख कर फिर वो तरस खा गयी. मेरे गाल को सहला कर बोली "आज मां और मीनल को अपने तरीके से तुम्हारी खातिरदारी करने दो, बाद में मौके बहुत मिलेंगे. अगली दीवाली भी है ना! अब चलो. ऐसे मुंह मत लटकाओ" वो जानती थी कि उसकी गांड मारने का मुझे कितना शौक था जो बस महने में एकाध बार ही मैं पूरा कर पाता था.
हम ममी के कमरे में आये. वहां बड़ा सुहाना दृश्य था. तीन नग्न बदन आपस में लिपटे हुए थे. ललित को बीच में लेकर उसकी मां और भाभी उसके लाड़ कर रहे थे. ताईजी अपने बेटे को बड़े प्यार से चूम रही थीं. उसका गोरा चिकना लंड उनकी मुठ्ठी में था. मीनल बस उसे बाहों में भरके उसका सिर अपनी ब्रा में कसे स्तनों पर टिकाये थी. वह बीच बीच में ताईजी के चुम्मे ले लेती. ललित का लाड़ प्यार जिस तरीके से हो रहा था, उसमें कोई अचरज की बात नहीं थी. वह घर का सबसे छोटा सदस्य था और जाहिर है कि सबका और खास कर अपनी मां का लाड़ला था. इस बार उसे ठीक से देखा तो मैंने गौर किया कि सच में बड़ा चिकना लौंडा था, एकदम खूबसूरत. अभी तो मां के प्यार का आनंद ले रहा था और मीनल की ब्रा खोलने की कोशिश कर रहा था.
"अरे ये क्या कर रहा है बार बार" मीनल झुंझलाई.
"पिला दो ना भाभी, कल से तरस गया हूं"
"अरे मेरे राजा, तू समझता क्यों नहीं है, रोज पीता है ना, अब एक दिन नहीं पिया तो क्या हुआ, आज ये दावत सिर्फ़ अनिल के लिये है, ठीक से पिला नहीं पायी कल से, बस थोड़ा जल्दी जल्दी में चखाया था. अब आज जरा तेरे जीजाजी को मन भरके इसका भोग लगाने दे"
ललित शर्मा गया, जैसे गलती करते पकड़ा गया हो. "सॉरी भाभी, भूल गया था." फ़िर कनखियों से मेरी ओर देखा जैसे माफ़ी मांग रहा हो.
मैंने कहा "मीनल, मेरी मानो तो सबको थोड़ा थोड़ा दे दो, मेरे हिस्से का रात को निकलने के पहले पिला देना, पर तब मैं सब पियूंगा"
लीना बोली "चल, खुश हो गया अब तो? चलो भाभी, अब जल्दी करो"
"अभे नहीं लीना, जरा भरने दे ना और. फ़िर सबको दो दो घूंट तो मिलेंगे, पहले ब्रेक के बाद मुंह मीठा कराती हूं सब का. चल ललित सो जा ठीक से" ललित को नीचे चित लिटाकर मीनल उसपर चढ़ने की तैयारी करने लगी. ताईजी भी संभल कर अपने बेटे का सिर अपनी जांघ पर लेकर बैठ गयीं.
"ये क्या हो रहा है?" लीना ने उनको फटकार लगायी. "ललित को भेजो इधर और तुम दोनों सास बहू अनिल पर ध्यान दो"
ताईजी बोलीं "अरे क्या कर रही है लीना, ललित को कब से पकड़कर बैठी है. और अनिल को भी कल से तेरे साथ ... याने मौका ही नहीं मिला. हमने सोचा कि अब तुम दोनों जरा प्यार से ..."
"वहां बंबई में ये मेरा पति मुझे जोंक जैसा चिपका रहता है चौबीस घंटे, छोड़ता ही नहीं, अब दो दिन मेरे बदन को नहीं मसलेगा तो मर नहीं जायेगा. तुम दोनों खबर लो उसकी. मुझे भी जायका बदलना है. चल ललित ..." कहकर उसने ललित को हाथ पकड़कर जल्दी उठाया और पलंग के बाजू में रखी कुरसी पर बैठ गयी. ललित को सामने बैठा कर टांगें फैलाकर बोली "चल ललित, मुंह लगा दे जल्दी, तू आज भुनभुना रहा था ना कि दीदी ने मुंह भी नहीं लगाने दिया, अब पूरा रस चूस ले अपनी दीदी का. और जरा ठीक से प्यार से स्वाद ले, दीदी को भी मजे दे देकर, तेरे इस मुसटंडे ..." ललित के खड़े लंड को पैर से रगड़कर लीना बोली " ... को बहुत मजे दिये हैं मैंने कल से, अब इस कह कि जरा सब्र करे. चल शुरू हो जा फटाफट"
ललित लीना की टांगों के बाच बैठता हुआ बोला "दीदी ... प्लीज़ चोदने भी दो ना ..."
"कल तो चोदा था अनिल के सामने, बड़े घर जाने के पहले" लीना उसे आंखें दिखाकर बोली.
"वो तो दीदी तुमने मुझे चोदा था. मैंने तुमपर चढ़ कर कहां चोदा है पिछले दो दिनों में?" ललित ने कहा तो लीना चिढ़ गयी
"तुझे नहीं चूसनी मेरी चूत तो सीधा बोल दे कि दीदी, अब मुझको तुम्हारा रस नहीं भाता. यहां बहुत हैं उसके कदरदान. मां या मीनल भाभी तो बेचारी कब से राह देख रही हैं, वो तो मैं ही प्यार से लाड़ से तेरे लिये अपनी बुर संजोये बैठी हूं कि मेरा लाड़ला छोटा भैया है, उसको मन भर के पिलाऊंगी. और अनिल को कहूं तो अभी सब छोड़ छाड़ कर आ जायेगा मुंह लगाने. तू फूट ... चल भाग ..."
ललित ने घुटने टेक दिये. याने सच में घुटने टेक कर लीना की माफ़ी मांगते हुए उसके पांव चूमने लगा. वैसे उसमें कोई बड़ा तकलीफ़ वाली बात नहीं थी, लीना के पैर हैं बहुत खूबसूरत "दीदी ... सॉरी ... माफ़ कर दो ... मेरा वो मतलब नहीं था ... तुम्हारे रस के लिये तो मैं कुछ भी कर लूं .... बस दीदी .... तुमको देखते ही ये बदमाश ..." अपने लंड को पकड़कर वह बोला "बहुत तंगाता है दीदी"
"उसको कह कि सबर करेगा तो बहुत मीठा फल मिलेगा. अब चल फटाफट" लीना आराम से कुरसी में टिकते हुए बोली. अपनी टांगें उसने ललित के स्वागत में फैला दीं. ललित ने बैठ कर मुंह लगा दिया और मन लगाकर चूसने लगा. जिस प्यास से वो अपनी बड़ी बहन की चूत चूस रहा था उससे मैं समझ गया कि बुरी तरह मरता है लीना पर. दो मिनिट बाद उसने लीना की जांघें बाहों में भर लीं और चेहरा पूरा लीना की बुर में छिपा दिया. लीना सिहरकर बोली "हं ... आह ... अब कैसा अच्छे भाई जैसा दीदी की सेवा कर रहा है ... हं .... हं ... हं ..."
मुझे भाई बहन का यह प्यार बड़ा ही मादक लगा. मैं यह भी सोच रहा था कि आखिर लीना कल से सिर्फ़ अपने छोटे भाई के पीछे क्यों पड़ी है. मुझे लगा था कि दो ही दिन को आये हैं तो मां और भाभी से भी ठीक से इश्क विश्क करने का मन होता होगा. पर मैं कुछ बोला नहीं, मैं जरा घबराता हूं उससे, पूरा जोरू का गुलाम जो ठहरा. सोचा करने दो मन की.
"वो कल बताऊंगी आने के बाद. चलो अब मुंह लटका के न बैठो" मुझे चूम के प्यार से बोली "ये रिश्ते तो निभाने ही पड़ते हैं. आज बड़े घर जाना ही है, कल पूरा दिन है फ़िर से, तब खातिरदारी करवा लेना. अब एक घंटे में तैयार हो जाओ सब फटाफट, मां तो एक घंटे पहले ही गयी भी, बोल कर गयी थी कि सब जल्दी आना"
मैं और ललित पांच मिनिट पड़े रहे, स्खलन का आनंद लेते हुए. फ़िर उठे और तैयार होने लगे.
बड़े घर में ये हड़कंप मचा था. बहुत से रिश्तेदार आये थे. मैंने कितने बड़े बूढ़ों और बूढ़ियों के पैर छुए, उसकी गिनती ही नहीं है, सब नया जमाई करके इधर उधर मुझे मिलवाने ले जा रहे थे. लीना, मीनल और ताईजी तो मुझे बहुत कम दिखीं, हां ललित दिखा जो लीना को ढूंढ रहा था, बेचारा अपनी दीदी का मारा था. हां, बाद में जब औरतों का गाना बजाना खतम हुआ तो वे तीनों दिखीं. सब इतनी सुंदर लग रही थीं. याने वे सुंदर तो थीं ही, मैंने सबकी सुंदरता इतने पास से देखी थी पर उस दिन सिल्क की साड़ियां, गहने, मेकप इन सब के कारण वे एकदम रानियां लग रही थीं. लीना तो लग ही रही थी राजकुमारी जैसी, मीनल भी कोई कम नहीं थी और सासूमां, उफ़्फ़ उनका क्या कहना, गहरी नीले रंग की कांजीवरम साड़ी में उनका रूप खिल आया था. लीना ने शायद जिद करके उनको हल्की लिपस्टिक भी लगा दी थी, उनके होंठ गुलाब की कलियों जैसे मोहक लग रहे थे और जब मैंने उनके सुबह के चुंबनों के स्वाद के बारे में सोचा तो कुरता पहने होने के बावजूद मेरा हल्का सा तंबू दिखने लगा, बड़ी मुश्किल से मैंने लंड को शांत किया नहीं तो भरी सभा में बेइज्जती हो जाती. एक बात थी, मैं कितना भाग्यवान हूं कि ऐसी सुंदर तीन तीन औरतों का प्यार मुझे मिल रहा है, ये बात मेरे मन में उतर गयी थी. पर उस समय कोई मुझे कहता कि फटाफट चुदाई याने क्विकी के लिये तीनों में से एक चुनो, तो मुश्किल होती. शायद मैं मांजी को चुन लेता!! क्या पता!!
रात को पूजा देर तक चली. फ़िर खाना हुआ. दो बज गये थे और सब वही सोय गये, वैसे सब की व्यवस्था अच्छी की गयी थी, इतना ही था कि मर्द और औरतें अलग अलग कमरों में थे. अब इतने लोगों में सबको जोड़े बनाकर कमरे देना भी मुश्किल था. सुबह उठकर बस चाय पीकर सब निकलनी लगे. हम भी निकले और नौ बजे तक घर आ गये. आते ही थोड़ा आराम किया, अब भी थकान थी. एक दो घंटे आराम के बाद नहाना धोना वगैरह हुआ. अब राधाबाई भी नहीं थी इसलिये हमने बाहर से ही खाना मंगवा लिया. दोपहर के खाने के बाद मीनल से सोनू को बोतल से दूध पिलाया. सोनू जल्द ही सो गयी. मीनल लीना की ओर देखकर मुस्करा कर बोली "अब सोयेगी चार पांच घंटे आराम से, कल भीड़ भाड़ की वजह से चिड़चिड़ा रही थी, सोयी भी नहीं ठीक से"
मैं सोच रहा था कि कल से मीनल के स्तन खाली नहीं हुए, भर गये होंगे. उसके ब्लाउज़ में से वे अब अच्छे खासे उभरे उभरे से लग रहे थे. मीनल ने मेरी नजर कहां लगी है वो देखा और मुझे आंख मार दी. फ़िर पलक जल्दी जल्दी झपका कर प्यार से सांत्वना दी कि फ़िकर मत करो, सब मिलेगा. अपना आंचल ठीक करके मीनल लीना से बोली "लीना दीदी ... आज रात को तुम दोनों जाने वाले हो? बहुत कम समय के लिये आये हो तुम लोग, देखो ना, कल का आधा दिन और पूरी रात और आज का आधा दिन ऐसे ही बेकार गया"
लीना बोली "भाभी, पूरी दोपहर और शाम है, ट्रेन तो रात की है ना, मुहब्बत करने वाले तो पांच मिनिट में भी जन्नत की सैर कर आते हैं. वैसे तुम ठीक कहती हो. ललित ... जा बाहर से ताला लगा दे और पीछे के दरवाजे से अंदर आ जा. और सब पर्दे खिड़कियां बंद कर दे. कोई आये भी तो वापस चला जायेगा सोच के कि हम वापस नहीं आये अब तक. शाम को ताला खोलेंगे."
मांजी जो अब तक चुपचाप बैठी थीं, बोलीं "तब से कह रही हूं, अब ज्यादा टाइम नहीं बचा है, कोई सुनता ही नहीं मेरी. अब देर मत करो और. लीना, तू जल्दी दामादजी को लेकर आ जा मेरे कमरे में"
मीनल हंसने लगी "मां जी को सबसे ज्यादा जल्दी हो रही है अपने दामाद के और लाड़ प्यार करने की"
सासूमां शरमा गयीं. बोलीं "चल बदमाश कहीं की. अरे अनिल का तो खयाल करो, बेचारे की पूरी रात वेस्ट कर दी हमने, चलो जल्दी करो"
मीनल बड़े नाटकीय अंदाज में बोली "और मैं और ललित क्या करें ममी? चल ललित, अपन पिक्चर चलते हैं, वो जय संतोषी मां लगी है"
ताईजी चिढ़ कर बोलीं "अब तो बहू तू मार ही खायेगी, कोई कहीं नहीं जायेगा, सब लोग जल्दी मेरे कमरे में आओ, और कैसे तैयार होकर आना है ये बताने की जरूरत नहीं है. मेरा कमरा बड़ा है, इसलिये वहां सब को आराम से ... याने ... मैं जा रही हूं, तुम लोग भी आ जाओ" फ़िर वे उठकर अपने कमरे में चली गयीं.
लीना बोली "अब सब समझे या नहीं? मां ने तैयार होकर आने को कहा है. याने और अच्छे कपड़े पहनकर बनाव सिंगार करके नहीं, कपड़े निकाल कर जाना है, एकदम तैयार होकर हमारी कामदेव की पूजा जल्द से जल्द शुरू करने के लिये. चल ललित, जा और ताला लगाकर जल्दी आ, मैं अनिल को लाती हूं"
मुझे वह अपने कमरे में ले गयी. हमने फटाफट कपड़े निकाले. लीना जब साड़ी फ़ोल्ड करके रख रही थी तब उसके गोल मटोल गोरे नितंब देखकर मैंने झुक कर उनको चूम लिया. फ़िर उनको दबाता हुआ पीछे से चिपक गया. अपना लंड उन तरबूजों के बीच की लकीर में सटा कर लीना की ज़ुल्फ़ों में मुंह छुपा कर बोला "अब डार्लिंग, इन मेरे प्यारों को मैं इतना मिस कर रहा हूं, जरा एक राउंड हो जाये फटाफट? पीछे से?"
"बिलकुल नहीं ये फटाफट होने वाली चीज नहीं है. मुझे मालूम है, मेरी गांड के पीछे पड़े कि रात भर की छुट्टी."
लीना के नितंबों को दबाता हुआ मैं बोला "बड़ी आई रात भर वाली. महने में एक बार कभी इनका आसरा मेरे लंड को मिलता है, अब आज मरा भी लो रानी प्लीज़"
"बिलकुल नहीं, अब चलो, मीनल और ललित तो आ भी गये होंगे ममी के कमरे में"
"रानी, चलो तुम ना मराओ, तुमको मैं क्या कहूं, तुम्हारा तो गुलाम हूं पर वो ... याने नाराज मत हो पर ताईजी की क्या मस्त गांड है, डनलोपिलो जैसी, अब तक ठीक से हाथ भी नहीं लगा पाया. हाथ खोले ही नहीं किसी ने कल दिन भर मेरे. और मीनल की ठीक से देखी नहीं पर मस्त कसी हुई लगती है. अगर आज अब मैं जरा ...."
लीना मेरी बात काट कर गुस्से से बोली "खबरदार. मां की गांड को बुरी नजर से मत देखना. अनर्थ हो जायेगा. डेढ़ दिन को आये हो, जरा अपनी साख मनाये रहो. मां को सच में आदत नहीं है, मीनल की मैं नहीं जानती पर आज अब टाइम भी नहीं है"
मेरे सूरत देख कर फिर वो तरस खा गयी. मेरे गाल को सहला कर बोली "आज मां और मीनल को अपने तरीके से तुम्हारी खातिरदारी करने दो, बाद में मौके बहुत मिलेंगे. अगली दीवाली भी है ना! अब चलो. ऐसे मुंह मत लटकाओ" वो जानती थी कि उसकी गांड मारने का मुझे कितना शौक था जो बस महने में एकाध बार ही मैं पूरा कर पाता था.
हम ममी के कमरे में आये. वहां बड़ा सुहाना दृश्य था. तीन नग्न बदन आपस में लिपटे हुए थे. ललित को बीच में लेकर उसकी मां और भाभी उसके लाड़ कर रहे थे. ताईजी अपने बेटे को बड़े प्यार से चूम रही थीं. उसका गोरा चिकना लंड उनकी मुठ्ठी में था. मीनल बस उसे बाहों में भरके उसका सिर अपनी ब्रा में कसे स्तनों पर टिकाये थी. वह बीच बीच में ताईजी के चुम्मे ले लेती. ललित का लाड़ प्यार जिस तरीके से हो रहा था, उसमें कोई अचरज की बात नहीं थी. वह घर का सबसे छोटा सदस्य था और जाहिर है कि सबका और खास कर अपनी मां का लाड़ला था. इस बार उसे ठीक से देखा तो मैंने गौर किया कि सच में बड़ा चिकना लौंडा था, एकदम खूबसूरत. अभी तो मां के प्यार का आनंद ले रहा था और मीनल की ब्रा खोलने की कोशिश कर रहा था.
"अरे ये क्या कर रहा है बार बार" मीनल झुंझलाई.
"पिला दो ना भाभी, कल से तरस गया हूं"
"अरे मेरे राजा, तू समझता क्यों नहीं है, रोज पीता है ना, अब एक दिन नहीं पिया तो क्या हुआ, आज ये दावत सिर्फ़ अनिल के लिये है, ठीक से पिला नहीं पायी कल से, बस थोड़ा जल्दी जल्दी में चखाया था. अब आज जरा तेरे जीजाजी को मन भरके इसका भोग लगाने दे"
ललित शर्मा गया, जैसे गलती करते पकड़ा गया हो. "सॉरी भाभी, भूल गया था." फ़िर कनखियों से मेरी ओर देखा जैसे माफ़ी मांग रहा हो.
मैंने कहा "मीनल, मेरी मानो तो सबको थोड़ा थोड़ा दे दो, मेरे हिस्से का रात को निकलने के पहले पिला देना, पर तब मैं सब पियूंगा"
लीना बोली "चल, खुश हो गया अब तो? चलो भाभी, अब जल्दी करो"
"अभे नहीं लीना, जरा भरने दे ना और. फ़िर सबको दो दो घूंट तो मिलेंगे, पहले ब्रेक के बाद मुंह मीठा कराती हूं सब का. चल ललित सो जा ठीक से" ललित को नीचे चित लिटाकर मीनल उसपर चढ़ने की तैयारी करने लगी. ताईजी भी संभल कर अपने बेटे का सिर अपनी जांघ पर लेकर बैठ गयीं.
"ये क्या हो रहा है?" लीना ने उनको फटकार लगायी. "ललित को भेजो इधर और तुम दोनों सास बहू अनिल पर ध्यान दो"
ताईजी बोलीं "अरे क्या कर रही है लीना, ललित को कब से पकड़कर बैठी है. और अनिल को भी कल से तेरे साथ ... याने मौका ही नहीं मिला. हमने सोचा कि अब तुम दोनों जरा प्यार से ..."
"वहां बंबई में ये मेरा पति मुझे जोंक जैसा चिपका रहता है चौबीस घंटे, छोड़ता ही नहीं, अब दो दिन मेरे बदन को नहीं मसलेगा तो मर नहीं जायेगा. तुम दोनों खबर लो उसकी. मुझे भी जायका बदलना है. चल ललित ..." कहकर उसने ललित को हाथ पकड़कर जल्दी उठाया और पलंग के बाजू में रखी कुरसी पर बैठ गयी. ललित को सामने बैठा कर टांगें फैलाकर बोली "चल ललित, मुंह लगा दे जल्दी, तू आज भुनभुना रहा था ना कि दीदी ने मुंह भी नहीं लगाने दिया, अब पूरा रस चूस ले अपनी दीदी का. और जरा ठीक से प्यार से स्वाद ले, दीदी को भी मजे दे देकर, तेरे इस मुसटंडे ..." ललित के खड़े लंड को पैर से रगड़कर लीना बोली " ... को बहुत मजे दिये हैं मैंने कल से, अब इस कह कि जरा सब्र करे. चल शुरू हो जा फटाफट"
ललित लीना की टांगों के बाच बैठता हुआ बोला "दीदी ... प्लीज़ चोदने भी दो ना ..."
"कल तो चोदा था अनिल के सामने, बड़े घर जाने के पहले" लीना उसे आंखें दिखाकर बोली.
"वो तो दीदी तुमने मुझे चोदा था. मैंने तुमपर चढ़ कर कहां चोदा है पिछले दो दिनों में?" ललित ने कहा तो लीना चिढ़ गयी
"तुझे नहीं चूसनी मेरी चूत तो सीधा बोल दे कि दीदी, अब मुझको तुम्हारा रस नहीं भाता. यहां बहुत हैं उसके कदरदान. मां या मीनल भाभी तो बेचारी कब से राह देख रही हैं, वो तो मैं ही प्यार से लाड़ से तेरे लिये अपनी बुर संजोये बैठी हूं कि मेरा लाड़ला छोटा भैया है, उसको मन भर के पिलाऊंगी. और अनिल को कहूं तो अभी सब छोड़ छाड़ कर आ जायेगा मुंह लगाने. तू फूट ... चल भाग ..."
ललित ने घुटने टेक दिये. याने सच में घुटने टेक कर लीना की माफ़ी मांगते हुए उसके पांव चूमने लगा. वैसे उसमें कोई बड़ा तकलीफ़ वाली बात नहीं थी, लीना के पैर हैं बहुत खूबसूरत "दीदी ... सॉरी ... माफ़ कर दो ... मेरा वो मतलब नहीं था ... तुम्हारे रस के लिये तो मैं कुछ भी कर लूं .... बस दीदी .... तुमको देखते ही ये बदमाश ..." अपने लंड को पकड़कर वह बोला "बहुत तंगाता है दीदी"
"उसको कह कि सबर करेगा तो बहुत मीठा फल मिलेगा. अब चल फटाफट" लीना आराम से कुरसी में टिकते हुए बोली. अपनी टांगें उसने ललित के स्वागत में फैला दीं. ललित ने बैठ कर मुंह लगा दिया और मन लगाकर चूसने लगा. जिस प्यास से वो अपनी बड़ी बहन की चूत चूस रहा था उससे मैं समझ गया कि बुरी तरह मरता है लीना पर. दो मिनिट बाद उसने लीना की जांघें बाहों में भर लीं और चेहरा पूरा लीना की बुर में छिपा दिया. लीना सिहरकर बोली "हं ... आह ... अब कैसा अच्छे भाई जैसा दीदी की सेवा कर रहा है ... हं .... हं ... हं ..."
मुझे भाई बहन का यह प्यार बड़ा ही मादक लगा. मैं यह भी सोच रहा था कि आखिर लीना कल से सिर्फ़ अपने छोटे भाई के पीछे क्यों पड़ी है. मुझे लगा था कि दो ही दिन को आये हैं तो मां और भाभी से भी ठीक से इश्क विश्क करने का मन होता होगा. पर मैं कुछ बोला नहीं, मैं जरा घबराता हूं उससे, पूरा जोरू का गुलाम जो ठहरा. सोचा करने दो मन की.