Incest Sex Stories मेरी ससुराल यानि बीवी का मायका - Page 3 - SexBaba
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Incest Sex Stories मेरी ससुराल यानि बीवी का मायका

काफ़ी देर ये खेल चलता रहा. आखिर अखिर में बेचारी की बुरी हालत हो गयी, लंड सूज कर लाल हो गया, मैंने खुद को मन ही मन शाबाशी दी कि उसकी ऐसी हालत करने में मैं कामयाब हुआ था. आखिर में उसने मेरा सिर पकड़ा, कस के अपने पेट पर दबाया और मेरे मुंह में लंड पूरा पेल कर धक्के मारने लगा. मैं चुपचाप पड़ा रहा कि देखें क्या करता है. आखिर आखिर में तो मुझे नीचे करके उसने मेरे मुंह को चोद ही डाला. जब झड़ा तब भी मैं चुपचाप पड़ा रहा, बिना झिझके उसका वीर्य निगल गया. उसकी बात सच थी, खारा कसैला सा स्वाद था पर मुझे खराब नहीं लगा, शायद इसलिये कि अब मेरा लंड भी फ़िर से पूरा तन कर खड़ा हो गया था.

आखिर जब ललित मुझपर से हट कर लस्त होकर लेट गया तो मैंने उसकी छाती सहलाकर कहा "रूल तोड़ दिया तूने ललित, ये अच्छा नहीं किया. इसकी पेनाल्टी पड़ेगी तेरे को"

"सॉरी जीजाजी" ललित बोला. पर उसकी आंखों में चमक थी "आप ने सब पी लिया जीजाजी?"

मैंने कहा "हां, वो तो चखना ही था. जवानी की क्रीम है आखिर, कौन छोड़ेगा! मजा आया तेरे को?"

"हां जीजाजी, बहुत मस्त, इतना मजा तो मां और दीदी के चूसने में भी नहीं आता" ललित मुझसे चिपक कर बोला.

"ठीक है, तो उसकी कीमत दे दे अब मेरे को. बोल, इसको कैसे खुश करेगा?" अपना तन्नाया लंड उसे दिखा कर मैंने पूछा.

वो चुप रहा. सोच रहा था कि क्या करूं. वैसे शायद खुशी खुशी वो मुझे एक बार और चूस डालता, पर उसके कुछ कहने के पहले की मैंने कहा "अब तो चोद ही डालता हूं तेरे को, उसके बिना ये दिल की आग नहीं ठंडी नहीं होगी मेरी"

बेचारा घबरा गया. मेरे उछलते लंड को देखकर उसकी हालत ये सोच कर ही खराब हो गयी होगी कि ये गांड में गया तो फाड़ ही देगा. पर बेचारा बोला कुछ नहीं, शायद मैं सच में मारता तो वो चुपचाप गांड मरवा लेता.

पर अपने उस चिकने लाड़ले साले को ऐसे दुखाने की मेरी इच्छा नहीं थी, वो भी पहली रात में.

"घबरा गया ना? डरपोक कहीं का, चल ये टांगें जरा फैला और करवट पर लेट जा" उसकी जांघों के बीच मैंने पीछे से लंड घुसेड़ा और कहा "अब चिपका ले टांगें और पकड़ मेरे लंड को उनके बीच. तुझे क्या लगा कि मैं तेरी गांड मारने वाला हूं. ऐसी ड्राइ फ़किंग नहीं देखी कभी? लीना भी करवाती है कई बार"

उसे पीछे से कस के भींच कर मैं अपना लंड उसकी जांघों के बीच पेलने लगा. उसकी जान में जान आयी. "थैन्क यू जीजाजी ... वैसे आप जो कहेंगे वो मैं करूंगा जीजाजी" मुड़ कर मेरी ओर देखते हुए ललित बोला. अपनी जांघों के बीच से निकले लंड के सुपाड़े को उसने अब अपनी हथेली में पकड़ लिया था और जिस लय में मैं उसकी जांघें चोद रहा था, उसी लय में वह मेरी मुठ्ठ भी मार रहा था.

उसका सिर अपनी ओर मोड़ कर उसके चुम्मे लेते हुए मैंने उसकी जांघें चोद दीं. एक मिनिट में मेरे वीर्य की फुहार ने उसकी जांघें भिगो दीं. बड़ा सुकून मिला, आने वाले स्वर्ग सुख का थोड़ा टेस्ट भी मिल गया.

बाद में टॉवेल से उनको पोछता हुआ ललित बोला "जीजाजी ... ये वेस्ट हो गया"

"याने?" मैंने पूछा.

"याने आप कहते तो मैं आप को फ़िर से एक बार चूस लेता" ललित बोला.

"आह हा ... याने स्वाद अब पसंद आ गया है मेरी ललिता रानी को. अब मुझे क्या मालूम था, पिछली बार तो ऐसा मुंह बनाया था तूने ... खैर आगे याद रखूंगा. और ये मत समझ कि आज छूट गयी वैसे हमेशा बचती रहेगी. तुझे चोदे बिना वापस नहीं भेजूंगा ललिता डार्लिंग. चल लाइट ऑफ़ कर और सो जा अब"

पांच मिनिट बाद मुझे महसूस हुआ कि ललित सरककर मेरे पास आया और पीछे से मुझे चिपक गया.

"क्या हुआ ललित?" मैंने पूछा.

"कुछ नहीं जीजाजी, आज बहुत मजा आया, इतना कभी नहीं आया था. थैंक यू जीजाजी ... और .. और .. आइ लव यू जीजाजी"

मैं मन ही मन मुस्कराया और आंखें बंद कर लीं. आज एक से एक मीठी बातें हुई थीं, खूबसूरत कमसिन लड़की जैसे जवान साले के साथ सेक्स किया, उसे खुश किया और खास कर अपनी बीवी के छोटे भाई को इतना आनंद दिया, इसका मुझे काफ़ी संतोष था. 
 
जब नींद खुली तो ललित मुझे पीछे से चिपका हुआ था. गहरी नींद में था पर उसका एक पैर मेरे बदन पर था. लंड भी खड़ा था, और मेरी पीठ अर उसका दबाव महसूस हो रहा था. मेरा लंड भी टनटनाया हुआ था जैसा सुबह अधिकतर होता है. लीना के साथ जब होता हूं तो ऐसे में उसे चोद कर ही उठता हूं पर इस वक्त आठ बज गये थे, ऑफ़िस भी जाना था.

मैं तैयार हुआ और फिर जाते वक्त चाय बनाकर ललित को जगाया. लगता है कल के सेक्स से काफ़ी रिलैक्स होकर गहरी नींद आयी थी उसे. बेचारा उठ ही नहीं रहा था. आखिर जब उसके लंड को पकड़कर जोर से हिलाया तब उठा.

चाय पीते पीते मैंने अपना दिन का प्लान उसको बताया "ललित, अब फ़िर से ललिता बन जा. जल्दी. मैं नही हूं फ़िर भी घर में ललिता बनकर ही रहना, ठीक है ना? अपनी शर्त याद है ना?"

उसने सिर हिलाया, मैंने आगे कहा "आज मैं हाफ़ डे की ट्राइ करता हूं. तुम तैयार रहना, घूमने चलेंगे. क्या पहनोगे?"

ललित थोड़ा घबराकर बोला "बाहर जाना है घूमने, वो भी दिन में? फ़िर मैं शर्ट पैंट ही पहनता हूं जीजाजी"

"नथिंग डूइंग, अपनी शर्त लगी है तो लगी है. साड़ी में तू बहुत अच्छा लगता है, आज साड़ी पहन"

"पर मुझे साड़ी पहनना नहीं आता जीजाजी. उस दिन तो मीनल भाभी ने पहना दी थी"

"चलो, ठीक है, फिर तू लीना की कोई जीन्स और टॉप ही पहन ले. हां, हाइ हील सैंडल भी पहनना पड़ेगी"

"मुझे चलने में तकलीफ़ होगी जीजाजी, अब घूमना है तो ... " ललित सकुचाकर बोला.

"तकलीफ़ होगी तो सहन करो उसे. शर्त शर्त है. दिन में प्रैक्टिस कर लेना. और वैसे भी अधिकतर कार से ही जायेंगे, इतना नहीं चलना पड़ेगा"

दोपहर को मैं जब वापस आया तो ललित एकदम मीठी कटारी बना था. किसी मॉडर्न कॉलेज गोइंग दुबली पतली लड़की जैसा मोहक लग रहा था. और उसने लीना की सफ़ेद हाई हील पहनी हुई थी. जब चलता तो थोड़ा संभल संभल कर, पर उस सधी चाल में भी वह सेक्सी लगता था जैसे वो रैंप पर मॉडल्स चलती हैं. मैंने मन ही मन कहा कि ललिता रानी, तुम्हारा रूप इसी लायक है कि अभी तुम्हें बेडरूम में ले जाऊं और कस के - हचक हचक के - पटक पटक के चोद मारूं पर तुमको वायदा किया है तो अभी तो बंबई घुमाऊंगा, वापस आकर आगे की देखूंगा.

मैंने उसे काफ़ी जगहों पर ले गया. गेटवे, नरिमन पॉइन्ट, मरीन ड्राइव. आखिर में अंधेरा होने पर हम मलाबार हिल गये. उसे ज्यादा चलना नहीं पड़ा था, हां जब चलता तो बीच में थोड़ा बैलेंस जाता था. लीना की वो हाई हील पहनना आसान नहीं है. फ़िर भी बेचारे ने मेरे कहने पर पहनीं ये देखकर मुझे उसपर बड़ा प्यार सा आ रहा था. मैं बीच बीच में उसका हाथ पकड़ लेता जब ऐसा लगता कि चलने में तकलीफ़ हो रही है. एक दो बार तो मैंने कमर में हाथ डालकर सहारा दिया. आजू बाजू के लोगों को कोई परवाह नहीं थी, बंबई के लिये ये आम बात थी. हां कुछ मनचले बड़ी आशिकी नजर से ललित की ओर देख लेते थे, फ़िर मुझे देखते जैसे मन ही मन कह रहे हों कि बड़ा लकी है यार जो ऐसी गर्ल फ़्रेंड मिली है.

फ़िर हम गार्डन के एक कोने में कुछ देर बैठे. मैंने अचानक उसे पास खींच कर किस कर लिया. आस पास एक दो जोड़े और थे, वे भी बस यही सब कर रहे थे. ललित कुछ बोल नहीं, बस बदन सिकोड कर चुपचाप बैठा रहा.

मैंने पूछा "अच्छा नहीं लगा डार्लिंग मेरा किस करना? अब सच में तू बहुत सुंदर लग रही है ललिता डार्लिंग"

"बहुत अच्छा लगा जीजाजी, और आप के साथ ऐसे लड़की बनकर हाई हील पहनकर ... लचक लचक लचक कर चलने में ... भी मजा आया. जीजाजी ... मैं गे हूं क्या?"

बेचारा जरा कन्फ़्यूज़्ड लग रहा था. मैंने दिलासा दिया "अरे इस तरह से क्यों सोचता है? अगर हो भी तो कोई गुनाह थोड़े है. पर मेरी ठीक से सुन, परेशान न हो, तू गे नहीं है, पूरा गे होता तो ऐसे अपनी मां, दीदी को मस्ती में चोदता? हां बाइसेक्सुअल जरूर है. तेरे साथ दो दिन बिता कर मुझे भी लगा है कि शायद मैं भी हूं थोड़ा बहुत, शायद सभी मर्द और औरत थोड़े बहुत बाइसेक्सुअल होते हैं, तू जरा ज्यादा है, और ऊपर से तुझे क्रॉसड्रेसिंग करना भी अच्छा लगता है, बस इतनी सी बात है.

मेरी बात से उसे थोड़ा दिलासा मिला क्योंकि जब हम वापस आये तो उसका चेहरा काफ़ी प्रसन्न था, टेन्शन खतम हो गया था.

हम खाना खाकर ही घर वापस लौटे. ललित ने बड़े सलीके से होटल में बिहेव किया. बैठना, उठना, खाना - कहीं ऐसा नहीं लगा कि वह लड़की के भेस में लड़का है. वापस आते समय मैंने सोसायटी के गेट पर कार रोकी और ललित को कहा कि जाकर कुछ फल वगैरह ले आये. उसे लड़की बनके कॉन्फ़िडेन्ट्ली अकेले घूमने का मौका मैं देना चाहता था.

वापस आने के दस मिनिट बाद बेल बजी. ललित अंदर आया. खुश नजर आ रहा था. कोई परेशानी नहीं हुई थी. बस एक घटना हुई थी जिसे वह समझ नहीं पाया था. "जीजाजी, मैं वापस आ रहा था तो मेन रोड के उस ओर एक औरत खड़ी होकर मेरी ओर देख रही थी. मुझे देखकर हंसी और कुछ इशारा किया, मैं समझा नहीं, इसलिये बस मुस्करा दिया और खिसक लिया."

मैं सोचने लगा कि कौन होगी. "यार अपनी सोसायटी की तो नहीं होगी. नहीं तो रोड के उस पार से इशारे करने का मतलब ही नहीं है. दिखने में कैसी थी? याने अच्छी अपने नेबर्स जैसी थी या नौकरानी वगैरह थी?"

"यहां रहने वाली तो नहीं लग रही थी. उसे देखकर मुझे थोड़ा राधाबाई की याद आयी, वैसे वो औरत राधाबाई से कम उमर की थी"

मेरे दिमाग में अचानक बिजली कौंधी "साड़ी पहने थी?"

"हां जीजाजी, हाथ में खूब सारी चूड़ियां थीं, शायद बड़ी बिन्दी भी लगायी थी. थोड़ी भरे भरे खाते पीते बदन की थी. चेहरा ठीक से नहीं दिखा. कौन थी?"

मैं अपने माथे पर हाथ मारने वाला था पर किसी तरह खुद को रोका, बेचारे ललित को टेंशन हो जाता. इसलिये मैंने उसे कहा "क्या पता! तू मत चिन्ता कर. कोई कल आयेगा तो मैं देख लूंगा. तू जाकर फ़्रेश हो, मैं भी नहा लेता हूं"

जाते जाते ललित ने मुड़ कर बड़ी नजाकत से बिलकुल लड़की के अंदाज में पूछा "जीजू डार्लिंग, आप भी आ जाओ ना नहाने मेरे साथ! मुझे पता है कि आप लीना दीदी के साथ हमेशा बाथ लेते हैं "

मैंने उसे पीछे से पकड़कर कहा "चुदवाना पड़ेगा नहाते वक्त. आऊं?"
 
ललित मेरी ओर देखने लगा. मैंने जरा छेड़ा "लीना दीदी ने ये नहीं बताया कि नहाते वक्त उसको खड़े खड़े शॉवर के नीचे जब तक चोद नहीं लेता तब तक हमारा नहाना खतम नहीं होता"

थोड़ा संभल कर ललित बोला "पर जीजू ... "

"डर मत मेरी जान, इसीलिये तेरे साथ नहाना बाद में होगा ... अभी तू जा और नहा ले, मुझे कुछ काम है"

ललित के जाने के बाद मैंने लीना को फोन लगाया. आने के बाद उससे बात ही नहीं हुई थी. उसने भी फोन नहीं किया था. वैसे कोई अचरज की बात नहीं थी, तीनों गरम गरम नारियों में - मां, बेटी और बहू - अकेले में जम के इश्क चल रहा होगा - ये तय था.

लीना को फोन लगाया. पहले पांच मिनिट डांट फटकार और ताने सुने कि कैसे मैं उसको भूल गया, इतना भी वक्त नहीं है जनाब को कि पांच मिनिट फोन कर लेते. फ़िर दस मिनिट उसने बड़े इन्टरेस्ट से ललित के कारनामे सुने कि कैसे वह अब तक लड़की जैसा ही रह रहा है, घर में भी ब्रा पैंटी पहनता है, कैसे मेरे साथ पूरा दिन लड़की के भेस में हाई हील पहनकर घूमा इत्यादि इत्यादि.

"असल बात तो बताओ. बस जीजा साले की तरह रह रहे हो कि कुछ साली और जीजा जैसा भी हुआ है? तुमने उसे परेशान तो नहीं किया अकेले में? "

"अरे ललित एकदम खुश है. कल मेरे साथ सोया भी था हमारे बेड में"

"सिर्फ़ सोया? " लीना ने पूछा.

"अब मिलने पर बताऊंगा रानी, जरा सस्पेंस तो रहने दो, अगर जीजा साली का चक्कर चल सकता है तो जीजा साले का क्यों नहीं? वैसे तुम्हारे छोटे भाई को बिलकुल फूल - या कली जैसा संभाल कर रख रहा हूं."

"हां वैसे ही रहो. जबरदस्ती मत करना मेरे नाजुक भैया के साथ. तुम्हारा कोई ठिकाना नहीं, तुम्हारा एक बार खड़ा हो जाये तो तुमको जरा होश नहीं रहता ... फ़िर उस बेचारे को अकेले में ... उसपर सांड जैसे चढ़ मत जाना"

"अरे डार्लिंग - सारी दुनिया एक तरफ़ और जोरू का भाई एक तरफ़ - और वो तो साले से ज्यादा मेरी प्यारी नाजुक साली है. अब जरा मेरी सुनो, जरा सीरियस बात है. आज शांताबाई ने लगता है ललित को देख लिया दूर से. वैसे वो तुम्हारी ड्रेस में था और दूर से उसने उसे लीना समझ लिया होगा - यही बात मेरे को जरा खटक रही है. अब देखना, वो कल पक्का आकर बेल बजायेगी यह समझ कर कि तुम वापस आ गयी हो"

लीना हंसने लगी "अरे वा... मुझे नहीं लगा था कि ललित इतने अच्छे तरीके से मेरी ड्रेसेज़ पहनने लगेगा, जो शांताबाई भी दूर से धोखा खा जाये. पर इसमें परेशानी की क्या बात है? आती है तो आने दो. तुम्हारा उपवास भी खतम हो जायेगा" अब ये उपवास से ऐसा न समझें कि वह पेट वाले उपवास की बात कर रही थी. वैसे शांताबाई खाना भी बहुत अच्छा बनाती है.

"मुझे ये उपवास मेरे प्यारे साले ... सॉरी साली के साथ ही छोड़ना है. अब तो कहीं जरा घुला मिला है मुझसे, इश्क विश्क भी करने लगा है, अब जब असली बात के करीब आ गये हैं तो ये शांताबाई आ टपकी. बेवजह का लफ़ड़ा शुरू हो गया"

"कोई लफ़ड़ा नहीं होगा. तुम शांताबाई को सब बता दो, तुमको मालूम है कि वो मेरे पर तुम्हारे ऊपर भी कितनी जान छिड़कती है, मदद ही करेगी तुम्हारी, जैसी उस दिन की थी" लीना का स्वर थोड़ा शैतानी भरा था.

"मुझे उनकी मदद नहीं चाहिये, जो करना है मैं खुद कर लूंगा. और ऐसी क्या मदद की थी शांताबाई ने?" मैंने पूछा.

"भूल गये? उस दिन दोपहर को ... तुम्हारा जम के मूड था पर मैं तैयार नहीं थी क्योंकि वेसेलीन खतम हो गयी थी ... नयी बोतल लाना भूल गये थे तुम"

मुझे याद आया. याद आने के साथ ही लंड में गुदगुदी होने लगी, तुरंत खड़ा होने लगा. मैंने दाद दी "याद आया रानी साहिबा, बस, यही ठीक रहेगा, शांताबाई जिंदाबाद."

"और देखो, मुझे एक दो दिन और देरी हो सकती है आने में. अब मां नहीं आने देगी जल्दी. इसलिये ललित को भी बता देना कि वो भी वापस आने की जल्दी ना करे. वैसे भी उसके कॉलेज की छुट्टी एक हफ़्ते के लिये बढ़ गयी है. चलो, शांताबाई आ गयी ये सुन कर मुझे दिलासा मिला. कल वो रहेगी तो तुम पर कंट्रोल रहेगा. नहीं तो तुम ललित की हालत कर देते"

"इतना क्यों बदनाम कर रही हो डार्लिंग? ललित को एकदम लाड़ प्यार से संभाल रहा हूं मैं. कल सोते वक्त तो ’आइ लव यू जीजाजी’ भी बोला.

"अरे वाह. याने तुमपर अच्छा खासा मरने लगा है ललित. चलो अच्छा है, साले और जीजा के मधुर संबंध हों तो और क्या चाहिये. अब कितने मधुर ये तो उन दोनों पर ही छोड़ देना चाहिये है ना" कहकर लीना हंसने लगी. फ़िर बोली "और अब शांताबाई आ ही रही है तो दोनों काम रोज करने दो अब उसको"

"दोनों काम याने?"

"अब भोले मत बनो. घर का काम और वो ... दूसरा वाला काम. समझे?"

"समझ गया मेरी मां. वैसे काम करने में शांताबाई होशियार है. देखें ललित को उनका काम कितना अच्छा लगता है. वैसे तुम बताओ, हमारी सासू मां कैसी हैं? और भाभी जी? उन्होंने जो मुंह मीठा कराया था निकलते वक्त, उसका स्वाद अब भी मुंह में है"

"मां बहुत खुश है, एकदम मस्ती में है, हां जरा परेशान है बेचारी" लीना बोली

"क्यों डार्लिंग?"

"हम दोनों मिलकर जो उसके पीछे लगे हैं कल से. असल में बाजी जरा पलट गयी है. मां ने मीनल भाभी के साथ प्लान बनाया था कि जब लीना आयेगी और हमारे साथ अकेली रहेगी तो उसके साथ ऐसा करेंगे, वैसे करेंगे. पर मीनल भाभी गद्दारी कर बैठी. भाभी को सीधा करना मेरे को आता है. उसके बाद हम दोनों मिलकर मां पर टूट पड़े हैं. मीनल भाभी को भी मौका मिला है अपनी सास के साथ जो मन चाहे करने का. अकेले में तो शायद करने की हिम्मत नहीं होती. कल से मां बेचारी को बेडरूम में ही कैद रखा है, निकलने ही नहीं दिया. उसको बचाने को अब राधाबाई भी नहीं है, गांव गयी है."

"अरे अरे ... ऐसा मत करो ... कैसी दुष्ट हो ... वो भी मां के साथ ..."

"हां हां रहने दो अपनी सिम्पैथी, तुम होते तो ऐसा ही करते ... सच अनिल ... मां का इतना मीठा रस निकाला है हम दोनों ने मिलके ... और अपना रस निकलवाने में उसे भी मजा आता है ... वैसे मां तुमको भी याद करती है ... दिल जीत लिया है तुमने उसका"

दो तीन मिनिट और नोक झोंक करके मैंने फोन रख दिया. लीना से बात करके हमेशा अच्छा लगता है मुझे.

इसके बाद मैंने थोड़ी वर्जिश की, उठक बैठक लगाईं. वैसे मैं सोसायटीके जिम में जाता हूं रोज पर अभी जरा अज्ञातवास चल रहा था इसलिये अवॉइड कर रहा था. व्यायाम करने के बाद मैं नहाया. बदन पोछकर वैसे ही बाहर आ गया, बिना कपड़े पहने. पहले सोचा देखूं ललित तैयार हुआ या नहीं, फ़िर सोचा इस तरह से उसके पीछे लगना ठीक नहीं है. ईमेल देखने बैठ गया और काम में जुट गया.

जब दो बाहें मेरे गले में पीछे से पड़ीं तब मैंने लैपटॉप से ऊपर देखा. क्षण भर लगा लीना ही है, वो हमेशा बड़े प्यार से ऐसे ही पीछे से मेरी गर्दन में बाहें डालती है. पर ललित था, या ये कहना ज्यादा ठीक होगा कि ललिता थी. अब वहां जो लड़की खड़ी थी उसमें से जैसे ललित का नामोनिशान गुम हो गया था. बदन से भीनी भीनी खुशबू आ रही थी, काली ब्रा और पैंटी में बला की हसीन लग रही थी. मैंने उसे गोद में खींच लिया. देखा तो पैरों में लीना की सिल्वर कलर वाली चार इंची हाई हील थी. याने मुझपर डोरे डालने की पूरी तैयारी करके आई थी ललिता -- या ललित? मैंने उसका धीरे से चुंबन लिया. आज उसने हल्की गुलाबी लिपस्टिक भी लगाई थी, स्ट्राबेरी के टेस्ट वाली. मैं उस स्ट्राबेरी को खाने में जुट गया. उस मीठी स्ट्राबेरी को - उन गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठों का स्वाद लेते लेते इस बार मेरे हाथ ललित के पूरे बदन पर घूम रहे थे. आज मैं उसके बदन को ठीक से जान लेना चाहता था. कभी उसकी पीठ सहलाता, उसकी ब्रा के स्ट्रैप को खींचता और ट्रेस करता, कभी उसकी कमर हाथ से टटोलता, कभी उसकी छरहरी जांघों की पुष्टता को महसूस करता और कभी उसके नितंबों को पकड़कर दबाता. और अब आखिर में एक हाथ मैंने उसकी पैंटी में डालकर उन मुलायम नितंबों को दबा कर, मसलकर, रगड़कर उनकी नरमी और चिकनाई को पूरा महसूस किया.

उस रात भी मैंने ललिता को नहीं चोदा. याने नहीं चोदना चाहता था ऐसी बात नहीं है, उन खूबसूरत नितंबों के बीच अपना सोंटा गाड़ने को मैं मरा जा रहा था पर जैसे मैं और ललित में टेलीपैथी से ऐसे जुड़ गये थे कि एक दूसरे के मन की बातें बिनकहे समझ रहे थे. ललित ने मेरी तीव्र वासना को पहचान लिया था. मुझे भी यह समझ में आ रहा था कि इस समय ललित पूरा लड़की के माइन्डसेट में आ चुका था और मेरे आगे पूरा समर्पण करना चाहता था, मुझसे हर तरह का सेक्स करना चाहता था पर अब भी मेरी तना हुआ मूसल अपनी गांड में लेने से डर रहा था.

इसलिये वह रात थी बड़ी मादक पर उसमें चुदाई नहीं हुई. आधे घंटे की बेहिसाब चूमाचाटी के बाद जब मैं और रुकने की हालत में नहीं था, तब ललित ने मुझे कुरसी में बिठा कर मेरे सामने नीचे बैठ कर मुझे वह ब्लो जॉब दिया जैसा शायद लीना ने भी कम ही दिया होगा. बहुत देर तक मेरे लंड को कर तरह से चूस कर आखिर जब मुझे झड़ाया तो मुझे ऐसा लगा कि मेरी वासना की शांति के साथ साथ मेरी जान भी निकल गयी हो. इस बार पूरा वीर्य उसने आंखें बंद करके चाव से निगला और बाद में भी निचोड़ता रहा.

इस सुख के बदले में मैंने जब उसे वही सुख देने को पास खींचा तो वह अलग हो गया, जबकि उसका लंड इतना कस के खड़ा था कि पैंटी के अंदर सीधा उसके पेट से सट गया था. मैंने उसके कान में प्यार से कहा "घबराओ मत ललिता डार्लिंग, तुम्हें आज मैं नहीं चोदूंगा. असल में तुम्हारे इस मुलायम बदन में अपना लंड घुसेड़ने को मैं मरा जा रहा हूं, कोई भी कीमत दे सकता हूं फ़िर भी आज नहीं चोदूंगा क्योंकि मुझे इस बात का एहसास है कि तुम अभी तैयार नहीं हो. पर मेरी जान, अब अपने आप को तैयार कर लो, किसी भी हालत में कल तो तुमको मुझसे चुदाना ही होगा. पर आज तुमको मैं इस मस्ताई हालत में सूखा सूखा छोड़ दूं तो पाप लगेगा, अब तू बैठ और मैं तेरे को प्यार करता हूं"

ललित नजर झुका कर बोला "जीजाजी ... आज रहने दीजिये, मुझे ऐसा ही चलेगा. मस्ती कल के लिये संभाल कर रखता - रखती हूं, ये ऐसी हालत रहेगी तो कल आपसे चुदाने में आसानी होगी"

मैं समझ गया. बेचारा अपने लंड की मस्ती ऐसे ही बचा कर रखना चाहता था, याने इस मस्ती में मेरे लंड को अपनी गांड में लेने में उसको आसानी होगी ऐसा उसको लग रहा था. बात सच थी, मैंने उसे चूमा और कहा "ठीक है ललिता रानी, जो तुम कहो वैसा ही होगा. अब फ़िर ऐसा करो, कि आज वहां लीना के कमरे में सो जाओ, मैं अपने बेडरूम में सोता हूं. और देखो, सो जाना, इसको ..." उसके लंड को पैंटी के ऊपर से दबाकर मैं बोला "हाथ भी मत लगाना"

"ठीक है जीजाजी" ललित बोला.

"नींद आयेगी?"

ललित जरा शर्मिंदगी में मुस्करा दिया, उसका लंड जिस हालत में था उसमें सोना असंभव था. मैंने कहा "चल, स्लीपिंग पिल देता हूं, सिर्फ़ आज के लिये, कल से इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी, नींद नहीं आयेगी तो रात भर चुदाई किया करेंगे"

रात को मुझे भी स्लीपिंग पिल लेना पड़ी क्योंकि के ने दो बार मुझे चूसने के बावजूद मेरा फिर खड़ा हो गया था. अब कल का इंतजार था, और कल की उस मादक घड़ी के पहले शांताबाई आकर क्या गुल खिलायेगी, आयेगी भी या नहीं, इसका भी मुझे अंदाजा नहीं था.
 
रात को सोने के पहले मैंने ललित से कहा था कि कल मैं छुट्टी ले लेता हूं "और घूमेंगे. एलीफैंटा चलते हैं"

वो पहले खुश हुआ "सुपर जीजाजी. मजा आयेगा" फ़िर नीचे देख कर बोला "वैसे आप छुट्टी ले रहे हैं तो ... हम घर में भी रह सकते हैं"

मैं समझ गया कि वो क्या कह रहा है. मेरे साथ और मौज मस्ती करना चाहता था, यह मालूम होते हुए भी कि आज तो उसकी गांड की खैर नहीं है. मुझे उसकी यह अदा बहुत प्यारी लगी. मैंने कहा कि कल सोचेंगे क्या करना है.

इसलिये सुबह मैंने उसे देर तक सोने दिया. मैं लैपटॉप लेकर बैठा काम कर रहा था. बेल बंद कर दी थी कि ललित को डिस्टर्ब ना हो. थोड़ी देर से मुझे बेल स्विच दबाने की आवाज आयी. मैंने पीप होल से देखा तो शान्ताबाई ही थीं. मैंने दरवाजा खोला और उसे अंदर आने दिया. दरवाजा बंद किया और शान्ताबाई की ओर देखा.

शान्ताबाई आज एकदम सज धज कर - साज सिन्गार करके आई थीं. लीना ने उनको दीवाली पर अपनी एक शादी की सिल्क की साड़ी दी थी, वही पहनी थीं. ब्लाउज़ उन्होंने नया सिलाया था क्योंकि लीना का ब्लाउज़ तो शान्ताबाई को हो ही नहीं सकता था, ब्लाउज़ की छाती को ही डेढ़ गुना कपड़ा लगता.

"कल लीना बाई को देखा तो हैरान रह गयी मैं भैयाजी" वो बोलीं. "जाते बखत तो यही बोली थी कि एक दो हफ़्ते बाद आऊंगी. अब कल देखा तो यकीन ही नहीं हुआ. मैं तो रोड के पार आकर बात करने वाली थी पर बाई रुकी ही नहीं. बस मुस्करा कर चली गयी. मैंने भी सोचा कि ऐसा क्या जल्दी थी मोड़ी को कि मेरे से बात किये बिना चली गयी नहीं तो हमेशा तो मेरे बिना एक दिन नहीं जाता उसका. वैसे है कहां लीना दीदी? अंदर ही होगी."

मैंने हां कहा. शान्ताबाई अंदर जाने लगी तो मैंने हाथ पकड़ किया. "अब लीना से मिलने की ऐसी भी क्या जल्दी है शान्ताबाई? हम भी तो हैं ना यहां, आप के चाहने वाले. जरा हमसे मीठी मीठी बातें कीजिये, हमारा मुंह मीठा कराइये, फ़िर अंदर जाइये अपनी प्यारी छोरी से मिलने, वैसे भी वो सो रही है अभी" कहकर मैंने खींचकर शान्ताबाई को अपने से चिपटा लिया. फ़िर उनको गोद में ले कर सोफ़े में बैठ गया.

"ये क्या भैयाजी! छोड़ो मेरे को. ऐसे खुले में बैठक के कमरे में अच्छा लगता है क्या?" शान्ताबाई थोड़ा शर्मा कर बोलीं. वे हमेशा शुरू में थोड़ा शरमाती हैं और मुझे उनकी ये अदा बड़ी लुभावनी लगती है. मैंने उनकी एक ना सुनी और उनको कस के भींच कर उनका एक चुंबन ले लिया. वे मेरी गिरफ़्त से छूटने की बेमन की कोशिश करते हुए बोलीं. "अब भैयाजी, जरा सबर करो, सबर ना हो रहा हो तो कम से कम अंदर तो चलो. ऐसे खुले आम क्या करम करवाते हो मेरे से. पहले मेरे को देखने दो कि हमारी बिटिया कैसी है, उसको कुछ चाहिये क्या? फ़िर घर का भी तो काम पड़ा है, वो तो जरा कर लेने दो"

"घर का काम बाद में बाई, पहले यह वाला काम करना जरूरी है. और इस वाली दीवाली की मिठाई तो अब तक मैंने चखी ही नहीं" मैंने उनके जरा से मोटे मोटे पर एकदम नरम मुलायम पान से लाल होंठों को कस के चूमते हुए कहा. फ़िर उनकी वो एक विशाल चूंची पकड़ कर बोला "और ये माल तो और मालदार हो गया लगता है बाई सिर्फ़ एक हफ़्ते में. जरा देखें तो ऐसा क्या हो गया इस खोये के गोले को?"

"कुछ भी कहते हो आप भैयाजी" गर्दन को एक खूबसूरत झटका देकर शांताबाई बोलीं. "वजन बढ़ गया है मेरा, अब जाते वक्त लीना बिटिया इतनी सारी मिठाई मेवा मेरे को दे कर गयी, घर में और कोई खानेवाला है नहीं, फ़िर मैंने ही सारी खा डालीं. अब बदन फूलेगा नहीं तो क्या होगा. अब छोड़ो भी, ये क्या कर रहे हो" उन्होंने उठने की एक झूट मूट की कोशिश की पर मैंने पकड़कर नीचे खींचा तो धप से मेरी गोद में वापस बैठ गयीं. फ़िर खुद ही मेरे चुंबन लेने लगीं. विरोध प्रकट करने का नाटक कहिये या लज्जाशील औरतों की तरह पहले नहीं नहीं कहने का एक औपचारिक प्रोटोकॉल कहिये - वो उन्होंने पूरा कर लिया था. अब वे भी अपनी प्यारी दुलारी लीना बिटिया के पति के लाड़ दुलार करने में लग गयीं.

मैंने मौके का फायदा उठाया. मुझे ऐसा एकांत उनके साथ बहुत कम मिलता है, करीब करीब नहीं के बराबर क्योंकि लीना साथ में होती है. इसलिये आज मिले एकांत का मैंने पूरा उपयोग कर लिया. पहले उनके उन भरे भरे होंठों के खूब चुंबन लिये, ऐसे चुंबन शान्ताबाई को बड़े अच्छे लगते हैं, जब मस्त गरम हो गयीं तो उनका ब्लाउज़ सामने से खोला और चुम्मे लेते लेते उनके मोटे मोटे स्तनों को हाथेली में भरके खेलने लगा. वे ब्रा पैंटी वगैरह नहीं पहनती हैं इसलिये सीधे असली काम पर आने को वक्त नहीं लगता. जब मेरी हथेली में उनके निपल खड़े होकर चुभने लगे तो उनको थोड़ी देर तक बारी बारी से चूसा. जब वे मेरी गोद में बैठे बैठे मेरी टांग को अपनी जांघों में लेने की कोशिश करने लगीं तब मैं समझ गया कि भट्टी गरम हो गयी है और रस की फ़ैक्टरी ने अपना काम शुरू कर दिया है.

इसलिये मैंने उन्हें वहीं सोफ़े पर लिटा कर उनकी साड़ी ऊपर की और उनकी घने काले बालों वाली बुर में मुंह डाल दिया. गजब का रस है उनका, अगर लीना का रस किसी महंगी वाइन जैसा है तो शान्ताबाई का खालिस देसी ठर्रा है जो सीधा दिमाग में चढ़ता है. मन भरके रस पीकर मैं उनपर चढ़ गया और लंड उनकी तपती चूत में घुसेड़कर चोद डाला. कहने को शान्ताबाई नाक सिकोड़ कर "ये क्या भैयाजी ... ऐसे यहीं ... लीना बिटिया आ गयी तो क्या कहेगी ... बोलेगी कि मुझसे मिली भी नहीं और सीधे मेरे मर्द को अपने ऊपर ले लिया ..." पर ये सब कहते कहते वे खुद मुझसे चिपक कर, मुझे बाहों और टांगों में जकड़कर चूतड़ उछाल उछाल कर चुदवा रही थीं. ये हमेशा होता है, लीना से उनको भले मुहब्बत हो, मुझसे चुदवाने को वे हमेशा तैयार रहती हैं, आखिर जवान लंड से चुदवाना उन जैसी रसिक गरम औरत कैसे छोड़ेगी!

मैंने झुक कर उनका वो काले जामुन जैसा निपल मुंह में लिया और चूसते चूसते जम के धक्के लगाने शुरू कर दिये. चोद कर बड़ी शांति मिली, ऐसे बस लंड चुसवा चुसवाकर आदमी फ़्रस्ट्रेट हो जाता है, घचाघच चोदे बिना सुकून नहीं मिलता.

मैं पड़ा पड़ा हांफ़ रहा था. दो मिनिट बाद जब जरा शांत हुआ तो मुझे हटाकर शान्ताबाई उठ बैठीं और कपड़े और बाल ठीक ठाक करके बोलीं "चलो ... हो गया ना आपके मन जैसा? ... अब जरा अंदर जाने दो मेरे को नहीं तो लीना बाई चिल्लाएगी"

"वो सो रही है शान्ताबाई. नहीं तो मुझमें इतनी हिम्मत कहां कि बिना उसकी इजाजत के आपको हाथ तक लगाऊं!"

उठकर साड़ी ठीक करके शान्ताबाई बोलीं "आज क्या छुट्टी पर हो भैयाजी?"

मैंने हां कहा. वे बोलीं "फिर फालतू में इतनी जल्दबाजी की. लीना बिटिया हमेशा आप की छुट्टी के दिन आप को भी अंदर बुला लेती है, किसी बात को ना नहीं कहती. आराम से जरा मस्ती ले लेकर करते तो मुझे भी जरा तसल्ली होती"

मैंने उनकी कमर में हाथ डालकर कहा "दिल छोटा ना करो शांताबाई. इस जवान लंड को तो तुम जानती हो, जब कहोगी तब फ़िर से चोद दूंगा, आपकी इच्छा नुसार"

अपनी नाक सिकोड़ कर आंख मटकाकर उन्होंने मुझे अपना झटका दिखा दिया और अंदर चली गयीं. लगता है लीना से मिलने को बहुत उत्सुक थीं. मैं सोफ़े पर लेट कर राह देखने लगा कि अब क्या कहकर बाहर आयेंगी. शान्ताबाई हमारे यहां कैसे काम करने लगीं वह भी मेरे दिमाग में चलने लगा.
 
शान्ताबाई को ढूंढकर लाने का श्रेय लीना को ही जाता है. लीना लाखों में एक है और उसकी कामवासना भी लाखों में एक है. जैसे दिन रात धधकते रहने वाली आग. शादी के बार जैसे लाइसेन्स मिल गया है तो और तीव्र हो गयी है. पहले वह सर्विस करती थी, अब छोड़ दी है, घर में अकेले रह कर जैसे उसका टॉर्चर होता है. अच्छा वह ऐसी स्लट नहीं है कि कहीं भी किसी से सेक्स कर ले, उस मामले में बिना परखे या बिना जान पहचान के, बिना उस व्यक्ति के लिये मन में थोड़ी मृदुल भावना आये कुछ नहीं करती. अब मेरा एक मित्र अरुण और लीना की एक सहेली सोनल ने भी शादी कर ली है और उनसे हमारी अच्छी जमती है, हर बात में! दो तीन दिन का वीकेन्ड हो तो साथ रहते हैं, हर चीज शेयर करते हैं, बेड तक. तब लीना को अपनी आग थोड़ी धीमी कर लेने का मौका मिलता है. पर उनके साथ वीकेन्ड बिताने का मौका बस महने में एकाध बार ही आ पाता है.

लीना को मैं बहुत प्यार करता हूं, इतना कि उसकी यह तड़प मुझसे नहीं देखी जाती. मैं तो इतनी हद तक सोचने लगा था कि कोई हैंडसम नौकर रख लूं जो दोपहर में उसे खुश रखे.

पर लीना ने दन से यह आइडिया ठुकरा दिया. "मुझे नहीं चाहिये. वो अरुण और सोनल हैं ना, उतना ठीक है. और मेरे राजा, मुझे तुम समझते क्या हो? आखिर तुम मेरे पति हो. ऐसे किसी ऐरे गैरे के साथ मुझे बिलकुल नहीं चलेगा. वो भी नौकर. हां नौकरानी की बात और है"

तब मुझे याद आया कि उमर में बड़ी औरतों के प्रति भी लीना को बड़ी आसक्ति है, बाद में कारण समझ में आया जब उसकी मां और राधाबाई को मिला. अब ऐसी नौकरानी ढूंढना जो लीना के दिल में उतर जाये, मेरे लिये मुमकिन नहीं था, पर लीना खुद ही ढूंढ लेगी इसका मुझे विश्वास था.

हुआ भी ऐसा ही. तब शान्ताबाई पास के मार्केट में सब्जी का ठेला लगाती थी. लीना अक्सर उसीके यहां से सब्जी खरीदती थी. एक दिन मुझे बोली "वो सब्जी वाली बाई देखी डार्लिंग?"

"कौन सी सब्जी वाली" मैंने अनजान बनकर कहा. वैसे मैं जानता था. शान्ताबाई के यहां से जो भी सब्जी खरीदता था, वह उनके एकदम देसी जोबन से अछूता नहीं रह सकता था.

"अब बनो मत, सब्जी तौलते वक्त कैसे उसकी छाती की ओर टुकुर टुकुर देखते रहते हो, मुझे क्या मालूम नहीं है?"

"अब वो ... याने डार्लिंग" मैंने लीपा पोती की कोशिश की तो लीना और भड़क गयी. "देखो मुझे गुस्सा ना दिलाओ अब ..." फ़िर अचानक शांत हो गयी "मैं नाराज नहीं हो रही हूं, तुम ये जो बिना बात झूट बोलते हो वो मुझे नहीं सहा जाता. शान्ताबाई ... याने वो सब्जी वाली ... तुम देखो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है, है ही वह देखने लायक. उसके वे मम्मे देखे? पपीते जैसे हैं. है थोड़ी सांवली पर एकदम चिकनी है"

"जरा उमर में बड़ी है. पैंतीस छत्तीस के ऊपर की तो होगी."

"तुमको इतने साल की लगी याने चालीस या पैंतालीस की भी होगी. पर मुझे चलेगा." लीना पलक झपका कर बोली.

"चलेगा याने ..." मैंने पूछा तो तुनक कर बोली "किस काम के लिये ये सब मुझे चलेगा ये अब समझाने की जरूरत नहीं है. इस उमर की औरतें अक्सर बड़े मीठे स्वभाव की होती हैं, खुद भी मीठी होती हैं, इस शान्ताबाई की मिठास चखने का मूड हो रहा है. और उसका इन्टरेस्ट भी है मुझमें."

"अब ये तुमको कैसे मालूम डार्लिंग" मैंने सवाल किया तो लीना बोली "वो बताने की बात नहीं है, समझने की बात है. मैं सब्जी लेने जाती हूं तो बस मुझसे गप्पें लड़ाने लगाती है, मेरी आंखों में बेझिझक देखती है. दूसरे ग्राहक रहें या चले जायें, उससे उसको फरक नहीं पड़ता. मुझे सबसे अच्छी और ज्यादा सब्जी देती है. सब्जी चुनते वक्त जरूरत से ज्यादा झुकती है और अपनी चोली में से मोटे मोटे स्तनों का दर्शन कराती है. मुझे बहुत सेक्सी लगी डार्लिंग वो औरत. ये अपने यहां काम करने को राजी हो जाये तो ... उफ़्फ़ ... मजा आ जायेगा .... और तुम जो परेशान रहते हो मेरी परेशानी देख कर, वो भी खतम हो जायेगी."

मुझे भरोसा नहीं था. "देख लो डार्लिंग, वो है तो सेक्सी और जैसा तुम कहती हो, वैसे तुमपर मरती भी होगी पर आखिर उसका सब्जी बेचने का पुराना व्यवसाय है, वो छोड़कर घर का काम करने को राजी हो जायेगी ये मुझे नहीं लगता"

"तुम बस देखो, और ये सब फ़्री में थोड़े कराऊंगी उससे, अच्छी सैलरी दूंगी."

लीना का कहना सच निकला, शान्ताबाई तो जैसे बस राह देख रहे थी कि लीना कुछ कहे. लीना के बात छेड़ते ही तुरंत तैयार हो गयी, न पैसे की बात की, न क्या काम करना होगा इसकी बात. वो तो लीना पर ऐसी फिदा थी कि तुरंत ठेला बंद करके दूसरे ही दिन हाजिर हो गयी. लगता है लीना पर मर मिटी थी, वैसे लीना है ही इतनी सुंदर और उतनी ही चुदैल. और शान्ताबाई ने उसकी चुदासी पहचान ली थी.

शान्ताबाई हमारे यहां काम करने लगी उस दिन से लीना के चेहरे पर जो सुकून मुझे दिखने लगा, उससे मैंने भी मन ही मन शान्ताबाई को धन्यवाद दिया. लीना वैसे उसे बहुत खुश रझती थी. अच्छे खासे पैसे, खाना पीना, साड़ी कपड़े. और शान्ताबाई भी ऐसी हो गयी थी जैसे स्वर्ग में आ गयी हो. और उसे भले मालूम हो कि उसका असली काम क्या है, घर का काम भी बड़ी मेहनत से करती थी, लीना को कुछ भी नहीं करना पड़ता था.

और शान्ताबाई को बस एक हफ़्ता ट्राइ करके लीना ने छुट्टी के दिन शान्ताबाई के साथ चलते अपने इश्क में मुझे भी शामिल कर लिया. हां वह खुद उस समय रहती थी. शान्ताबाई को भी ऐसा हो गया कि अंधा मांगे एक आंख, और मिल जायें दो. भले लीना के साथ उसका जम के प्यार दुलार चलता था पर मर्द से चुदाने में उसे उतना ही आनंद आता था.

ये सब याद करते करते मेरा खड़ा हो गया और फ़िर अचानक मैं यह सोचने कगा कि अंदर क्या चल रहा होगा.
 
दो मिनिट में शान्ताबाई बाहर आयीं. थोड़ी अपसेट लग रही थीं. "ये क्या चल रहा है भैयाजी? कौन है वो लड़का जो अंदर सोया है? मुए ने लीना बाई की बॉडी और चड्डी भी पहन रखी है लगता है"

मुझे हंसी आ गयी पर किसी तरह से मैंने उसे दबाते हुए कहा "कहां शान्ताबाई? लीना ही तो है. आपने चेहरा नहीं देखा?"

"इतना बड़ा तंबू बना है उसकी चड्डी में और तुम कहते हो लड़की है. मैं सब समझती हूं कि क्या चल रहा है." शान्ताबाई ने कमर पर हाथ रखकर कहा. लीना से छिपाकर मैं कुछ लफ़ड़ा कर रहा हूं, और वो भी एक जवान लड़के के साथ, यह विचार उसे सहन नहीं हो रहा था.

"शांत हो जाओ मेरी प्यारी शान्ताबाई. वो लीना का भाई है, मेरे साथ बंबई घूमने आया है. लीना वहीं है अपने मायके. मेरे को लगा कि तुम अपने आप समझ जाओगी"

वे थोड़ा नरम पड़ीं, फ़िर बोलीं "ऐसे औरतों की अंगिया क्यों पहने है? अजीब लड़का है, वैसे लंड तो अच्छा खासा लगता है, कितनी जम के खड़ा था नींद में. मैंने हाथ लगाया तो जाग गया, फ़िर घबरा गया कि ये कौन औरत अंदर बेडरूम में है"

मैंने उन्हें ललित की फ़ेतिश के बारे में समझाया. वैसे वे होशियार हैं, एक मिनिट में सब समझ गयीं. हंसकर बोलीं "बस इतनी सी बात है ये कुछ हजम नहीं होता भैयाजी. माना उस छोकरे को ये पहनने की आदत है पर इधर आप दोनों अकेले घर में, वो छोकरा सोते वक्त भी वो सब पहने ... ब्रा व्रा ... मस्ती चल रही है लगता है बाई की पीठ पीछे. याने आप को भी लौंडेबाजी का शौक चढ़ ही गया"

"अब शान्ताबाई ... क्या कहूं .... वो इतना सुन्दर छोकरा है और हूबहू लीना जैसा लगता है. ऊपर से उसका ये औरतों के कपड़े पहनने का शौक, अब अगर उसको लीना समझकर मेरा मन डोल जाता है तो बुरा क्या है? और भले लौंडेबाजी हो, अगर दिल आ गया तो बुरा क्या है? आप नहीं करतीं लीना के साथ लौंडीबाजी? साली नहीं है तो साले को साली समझा तो इसमें क्या गैर है?"

इस बात पर शान्ताबाई मुंह पर आंचल रखकर हंसने लगी. फ़िर बोली "भैयाजी, मैं चलती हूं, लगता है मैं फालतू ही आ गयी. आप की रंग रेलियां चलने दो, जब लीना बाई आ जायेगी तो मेरे को बता देना"

"अरे नहीं शान्ताबाई, मुझे आपकी जरूरत है, आपकी मदद के बिना ये काम नहीं होगा, बड़ी नाजुक जगह आकर मामला अटक गया है"

"आप दो जवान मर्द ... आपको मेरी क्या जरूरत होगी भैयाजी"

मैंने धीरे धीरे सब समझाया कि कैसे पिछले चार दिनों में ललित -ललिता के साथ सब तो कर लिया मैंने पर अब तक चोद नहीं पाया उसके घबराने की वजह से. फ़िर बोला "याद है शान्ताबाई, एक दिन आपने कैसी मदद की थी? वेसेलीन नहीं था और लीना जरा ऐसे रूठे चिढ़े मूड में ही थी?"

उस दिन असल में ये हुआ था कि मेरा जम के मूड था लीना की गांड मारने का. शादी के बाद उसने बस एक बार मुझसे मरवाई थी. मैं वैसे हठ नहीं करता पर दो दिन से लीना जैसी टाइट जीन पहनकर घूम रही थी, उसके गोल मटोल चूतड़ एकदम लंड को पागल कर गये थे. अब संयोग ऐसा कि वेसेलीन की बॉटल नहीं मिल रही थी. लीना वैसे भी इस बात से दूर भागती थी, अब तो बहाना मिल गया था. इस बात पर मैं उसे मना रहा था, वो शान्ताबाई ने काम करते करते सुन लिया था. फ़िर उन्होंने मदद की, और उस दिन लीना को दुखा भी कम, और काफ़ी मजा भी आया.

"हां भैयाजी, अच्छी तरह याद है" मुंह चढ़ा कर शान्ताबाई बोली "मैंने ठंडा मख्खन लाकर दिया था फ़्रिज से और फ़िर बाई को अपने ऊपर लेकर सोई थी उसको दिलासा देने को. आप मर्द लोग भी कैसे गांड के पीछे पड़ जाते हैं ये देखकर मेरे को तो बड़ी हैरत होती है. इतनी गरम रसीली रेशमी चूत से क्या आप का मन नहीं भरता?"

"अब कैसे समझाऊं शान्ताबाई, बस समझ लो किसी वजह से दिल जुड़ गये हैं मेरे और ललित के. रही गांड की बात, लीना की मैं नहीं मारता क्या? उतनी ही खूबसूरत ललित की गांड है. आखिर मिठाई तो मिठाई है. और वह भी मिठाई चखाने को एकदम तैयार है, जरा घबरा रहा है बस."

"ठीक है ठीक है भैयाजी, मैं समझ गयी, चलो मैं तैयार कर लूंगी उसको, अब जरा अंदर चलो और उसे समझाओ, मुझे देख कर नींद से जागते ही घबरा गया बेचारा" शान्ताबाई बोली.

मैं उनके साथ अंदर गया. जाते जाते बोली "बस एक घंटा लगेगा मुझे, उस छोकरे को भी फुसला लूंगी और आप के लिये तैयार रखूंगी"

मैं अंदर गया. ललित पलंग पर बैठा था. आधी नींद में था. पर अब अचानक शान्ताबाई के आने से जरा परेशान लग रहा था. मैंने उसके पास बैठ कर कहा "ललिता डार्लिंग - यह है शान्ताबाई, बस जैसे वहां राधाबाई हैं वैसे ही समझ लो." सुनकर ललित जरा आश्वस्त सा होता दिखा.

"फिर ठीक है जीजाजी, नहीं तो क्या धक्का लगा मेरे को - नींद खुली और .... ये बैठी थीं यहां ... मेरा पकड़कर ..."

"अरे मैंने ही उन्हें अंदर भेजा था कि लीना सोई है अंदर. सोचा जरा मजाक कर लूं. वैसे शान्ताबाई बहुत लाड़ दुलार करती हैं लीना दीदी के" मैंने ललित को समझाया.

"तू मत टेन्सन ले बेटे." ललित के बाजू में बैठ कर उसके गालों को सहलाती शान्ताबाई बोलीं. अब तक लगता है वे भी फिदा हो गयी थीं ललित पर. छोकरे की जवानी ही ऐसी थी. "ये तेरे जीजाजी जरा ऐसे ही मजाकिया हैं. अब उठो. दस बजने को आये, तुम लोगों ने नाश्ता भी नहीं किया होगा, मैं बनाती हूं. उसके बाद नहा धो लो. भैयाजी - आप जाकर अपना काम करो, मैं उपमा बनाती हूं. ललित बेटा, जरा मुंह धो लो और आकर मुझे थोड़ी मदद करो"

बीस मिनिट बाद शान्ताबाईने बुलाया. मैं डाइनिंग रूम में गया तो देखा कि शान्ताबाई चम्मच से ललित को उपमा खिला रही थीं. ललित भी आराम से खा रहा था. लगता है इतनी सी देर में ही शान्ताबाई का वशीकरण मंत्र चल चुका था.

"बहुत अच्छा उपमा है मौसी, एकदम सॉफ़्ट और टेस्टी. आप दोसे भी बनाती हो क्या?" ललित बोला. याने अब पहली बार मिली शान्ताबाई बीस मिनिट में मौसी बन गयी थी.

"खाओगे? वो भी बना दूंगी, चलो अब जल्दी जल्दी इतना और खा लो और नहाने चलो, मैं तुमको नहला देती हूं. भैयाजी, नाश्ता करके आप भी नहा वहा लो"

मैं खाने लगा. उधर ललित बोला "अब मैं बच्चा थोड़े ही हूं मौसी कि ..."

"जानती हूं मेरे लाल" उसके अब भी आधे खड़े लंड को पकड़कर शान्ताबाई बोलीं "तभी तो कह रही हूं, अब बच्चों को नहलाने में मेरा क्या फायदा?"

"करवा ले करवा ले मौसी से नहाने का करम. ये मुझे और लीना को भी कभी कभी नहला देती हैं." मैंने ललित को कहा.

शान्ताबाई ने ने बचा हुआ उपमा ललित को खिलाया और फ़िर हाथ पकड़कर खींच कर ले गयीं. ललित बेचारा अभी भी जरा परेशान था. शान्ताबाई के पीछे जाते वक्त मुड़ कर मेरी ओर देखा जैसे कह रहा हो कि बचा लो जीजाजी, पर मैंने बस उसे आंख मार दी.

नाश्ता खतम करके मैंने भी आराम से नहाया, बदन पोछा और थोड़ी देर तक ईमेल देखीं. आधे घंटे के बाद बेडरूम में दाखिल हुआ.

शान्ताबाई एकदम नंगी बिस्तर पर पड़ी हुई थीं. उनके जरा गीले से बालों से लग रहा था कि उन्होंने भी नहा लिया था. उनकी मोटी मोटी टांगें फैली हुई थीं और उनके बीच ललित झुक कर मजे से उनकी चूत चाट रहा था. इतना मग्न था कि मेरे आने का पता भी उसको नहीं चला.

ललित को देखकर मैं दंग रह गया. शान्ताबाई ने एकदम खास सजाया था उसको. याने था वही ब्रा और पैंटी में पर क्या पैंटी थी! काली, छोटी सी और एकदम तंग. लीना ने शायद हनीमून पर पहनी वाली थी. ललित के आधे से ज्यादा गोरे गोरे चूतड़ नंगे थे. और ऊपर से उस पैंटी में पीछे से एक छेद था, बड़ा सावधानी से जैसे किसी ने ठीक गुदा के ऊपर एक दो इंच का छेद कर दिया था. उसमें से ललित का लाल गुलाबी गुदा दिख रहा था. पहले मैं अचंभे में पड़ गया कि ये क्या चक्कर है, फ़िर देखा तो शायद शान्ताबाई ने उसपर हल्की लिपस्टिक से चूत जैसी बना दी थी.
 
ब्रा गुलाबी रंग की थी. लगता है कहीं अंदर से ढूंढ कर निकाली थी. और विग वही था पर शोल्डर लेंग्थ बालों को पीछे से एक जरा सी चोटी में क्लिप से बांध दिया था जिससे ललित का रूप ही बदल गया था.

शान्ताबाई लेटे लेटे ललित के सिर को पकड़कर अपनी चूत पर दबाये हुए थीं और मस्ती में गुनगुना रही थीं. "बहुत अच्छे बेटे ... बहुत अच्छे मेरे लाल ... कितना प्यार से चाटता है राजा मेरी चूत को ... तेरी दीदी की याद आ गयी ... लीना बाई भी एक बार शुरू होती हैं तो घंटे घंटे सिर दिये रहती हैं मेरी टांगों में ..."

मुझे देखकर बोलीं "भैयाजी, आपने ये नहीं बताया कि हमारा ललित बेटा चूत का कितना दीवाना है. बाथरूम में मेरी बुर देखी तो सीधे उसके पीछे ही पड़ गया. यहां भी देखो कैसे चूस रहा है. कहता है कि पूरा रस निचोड़ कर ही उठूंगा"

ललित उनकी बुर में से मुंह निकाल कर बोला "तुम्हारा रस तो खतम ही नहीं होता मौसी ... अब चोदने दो ना, जैसा तुमने वायदा किया था."

उसके सिर को कस के वापस अपनी जांघों के बीच खोंसते हुए शान्ताबाई बोलीं "पहले अपना काम तो पूरा कर, फ़िर वायदे की बात कर. तुमने कहा था ना कि एक एक बूंद निचोड़ लूंगा मौसी, तो पहले निचोड़. और आप भैयाजी, ऐसे क्यों खड़े हो? आओ ना यहां" अपने बाजू में बिस्तर को थपथपा कर वे बोलीं.

मैं जाकर उनके पास बैठ गया. उन्होंने मेरा सिर नीचे खींच कर कस के मेरा चुंबन लिया, दो तीन मिनिट शान्ताबाई से चूमा चाटी करने में गये, उनके चूमने के अंदाज से ही लगता था कि कितनी गरमा गयी थीं वे. मैंने उनकी मांसल चूंचियां एक दो मिनिट मसलीं और फ़िर उनके निपल एक एक करने चूसने लगा.

"आह ... हाय ... आज कितने दिनों के बाद दो मर्द मेरे से लगे हैं .... और चूसो भैयाजी ... आह अरे कितने जोर से काटते हो ... दुखता है ना" सिसककर वे बोलीं पर मैंने निपल चबाना चालू रखा. उन्होंने मेरा सिर अपनी छाती पर दबा लिया और बोलीं "वैसे ये लौंडा लाखों में एक है भैयाजी ... इतना चिकना लौंडा नहीं देखा ... ये इसके चूतड़ देखो, लीना बाई की बराबरी के हैं ... और लंड भी कोई कम नहीं है भैयाजी ... एकदम कड़क गाजर जैसा ..."

मैं ललित के नितंबों पर हाथ फेरने लगा. अब मेरा लंड कस के तन्ना गया था. मुंह में पानी आ रहा था तंग काली पैंटी में से आधी दिखती उस गोरी गोरी गांड को देख कर, असल में लीना की गांड मारे भी तीन चार हफ़्ते हो गये थे और मेरा लंड बेचारा गांड को तरस गया था. मैंने ललित के पेट के नीचे हाथ डालकर टटोला तो उसका भी हाल बुरा था, लंड एकदम तना हुआ था. मैं ललित के चूतड़ मसलने लगा.

"शान्ताबाई ... अब नहीं रहा जाता" मैंने उनकी ओर देख कर कहा. वे बोलीं "तो चख लो ना मिठाई, ऐसे दूर से क्या ललचा रहे हो"

मैंने झुक कर ललित के नितंबों को चूम लिया. कब से यह करने की इच्छा थी मेरी. उसके बदन में सिरहन सी दौड़ गयी. मैंने पैंटी के छेद में से उसके नरम नरम छेद को थोड़ा सहलाया और उंगली की टिप उसमें फंसा दी. उसका छेद कस सा गया. शान्ताबाई ने देख लिया और मुस्कराने लगीं "ललित ... याने हमारी ललिता रानी अभी कुआरी है भैयाजी, ऐसे बिचके तो कोई नयी बात नहीं. पर अब चोद ही लो, क्यों ललिता ... ललित बेटा ... चुदवा ही ले अब अपने जीजाजी से"

"दुखेगा मौसी?" ललित थोड़े कपते स्वर में बोला.

"बिलकुल दुखेगा, आखिर तेरे जीजाजी का सोंटा है, कोई जरा सी लुल्ली थोड़े है. पर इतना मर्द का बच्चा तू, ऐसे क्या डरता है? इससे तो लड़कियां बहादुर होती हैं, एक बार दिल आये, तो जैसे कहो, जिस छेद में कहो, चुदवा लेती हैं. और मैं हूं ना बेटा. भैयाजी, आप जरा वो डिब्बा इधर करो"

पलंग के पास के स्टैंड पर एक स्टील का डिब्बा रखा था. मैंने उसे खोला तो देखा अंदर मख्खन है, घर में बना चिकना ठंडा मख्खन. शान्ताबाई मुस्करायीं, मुझे याद आ गया कि कैसे उन्होंने उस दिन मख्खन लगवाकर लीना की गांड मुझसे मरवाई थी.

"अब ऊपर आ जा मेरे राजा बेटा. ऐसा लेट मेरे पर" कहकर उन्होंने ललित को अपने ऊपर लिटा लिया. ललित उन्हें बेतहाशा चूमता हुआ उनकी चूत में लंड घुसेड़ने की कोशिश करने लगा. "अभी रुक राजा ... जरा तेरे जीजाजी को भी तो तैयार होने दे ... आप ऐसे इधर आओ भैयाजी"

शान्ताबाई ने हथेली पर मख्खन का एक लौंदा लिया और मेरे लंड पर चुपड़ने लगी. बोली "आप लोग क्यों वेसलीन के पीछे पड़ते हो मेरे पल्ले नहीं पड़ता. अरे मख्खन इतना चिकना है, वो भी घर का मख्खन, इससे अच्छी क्रीम नहीं मिलेगी दुनिया में चोदने के लिये, और चूमा चाटी के दौरान मुंह में चला जाये तो भी अच्छा लगता है, वो वेसलीन तो कड़वा कड़वा रहता है" अपनी मुठ्ठी ऊपर नीचे करके पूरे लंड को एकदम चिकना कर दिया. इतना मजा आ रहा था कि लगा कि ऐसे ही मुठ्ठ मरवा लूं उनसे. उन्होंने उंगली पर थोड़ा और मख्खन लेकर मेरे सुपाड़े पर लगाया और फ़िर हथेली चाटने लगीं "अब आप खुद ही लगा लो ललिता रानी के छेद में. जरा ठीक से लगाना, चिकना कर लेना"

मैंने उंगली पर मख्खन लिया और ललित के गुदा में चुपड़ने लगा. उसने फ़िर गुदा सिकोड़ लिया, लगता है अनजाने में वो अपने कौमार्य को - वर्जिनिटी को बचाने की कोशिश कर रहा था. मैंने शान्ताबाई की ओर देखा और आंखों आंखों में गुज़ारिश की कि आप मदद करो, ये तो गांड भी नहीं खोल रहा है. वे उंगली में मख्खन लेकर ललित की गांड में लगाने लगीं. बोलीं "अब छेद तो ढीला करो ललिता रानी - मेरी उंगली ही नहीं जा रही है तो जीजाजी का ये मूसल कैसे जायेगा! मरवाना है ना? चुदवाना है?" ललित के मुंडी हिला कर हां कहा. "फ़िर छेद ढीला कर अच्छे बच्चे -- बच्ची जैसे" मुझे उन्होंने आंखों आंखों में इशारा किया और फ़िर हाथ मिला कर अलग किये. मैं समझ गया कि वे मेरे को ललित के चूतड़ पकड़कर चौड़े करने को कह रही हैं.

मैंने वो मुलायम चूतड़ फैलाये और शान्ताबाई उंगली उसके गुदा पर उंगली रखकर दबाने लगीं. अब उनकी उंगली अंदर धंसने लगी. कई बार उन्होंने मख्खन लेकर छेद में लगाया और उंगली अंदर तक आधी घुसाई. जिस तरह से ललित का गुलाबी छेद चौड़ा होकर उंगली को अंदर ले रहा था, मेरा पागलपन पढ़ रहा था. क्या टाइट कुआरा छेद था! मन में बस यही था कि आज पटक पटक कर चोदूंगा भले फट जाये.

उधर गांड में उंगली करवाने से ललित महाराज भी मस्ता रहे थे, बार बार धक्के मारकर शान्ताबाई की चूत छेदने की कोशिश कर रहे थे. शान्ताबाई ने भी उसको कस के पकड़ रखा था "ऐसे उतावले ना हो मेरे राजा ... धक्के मत मार अभी ... तेरे जीजाजी को चढ़ जाने दे एक बार ... फ़िर तू भी मन भरके चोद लेना. मजा आयेगा. तू मेरे को चोदेगा और तेरे जीजाजी तेरे को चोदेंगे. चलिये, आ जाइये भैयाजी"

पर ललित से रुका नहीं जा रहा था, वह शान्ताबाई से चिपटा जा रहा था और उनकी बुर में लंड डालने की भरसक कोशिश कर रहा था. देख कर उसपर तरस खाकर शान्ताबाई ने अपनी चूत खोल ली और अगले ही पल ललितने अपना लंड पेल दिया. फ़िर चहक कर बोला "कितनी टाइट चूत है मौसी ... आह .. ओह"

शान्ताबाई की बुर सच में इतनी टाइट है कि लगता है जैसे किसी एकदम जवान लड़की की हो. प्रकृति का यह चमत्कार ही है कि इतने मांसल खाये पिये बदन के साथ ऐसी सकरी चूत उनको मिली हो.

ललित अब तक सपासप चोदने लगा था. शान्ताबाई ने उसको अपने हाथों पैरों में कसकर उसके धक्के बंद किये और बोलीं "अब जरा रुक मेरे राजा ... इतना उतावला ना हो ... तेरे को अकेले अकेले ये मजा नहीं करने दूंगी मैं ... अपने जीजाजी को भी अंदर डाल लेने दे, फ़िर तुम दोनों चोदना एक साथ. चलिये भैयाजी, अब देरी मत कीजिये"
 
उन्होंने मेरी मदद की. सिर्फ़ होंठ हिला कर बिना आवाज किये मूक स्वर में बोलीं "धी ऽ रे ऽ धी ऽ रे ऽ प्या ऽ र से ऽ" फ़िर ललित के चूतड़ पकड़कर चौड़े किये, पैंटी के छेद में से उसका सकरा गुलाबी छेद दिख रहा था, खुला हुआ. मैंने सुपाड़ा जमाया और धीरे धीरे पेलने लगा. लगता था कि सटक जायेगा, छेद इतना सकरा था पर मैंने सुपाड़ा जमाये रखा. उसकी टिप अंदर फंसने के बाद मैं थोड़ा रुका. ललित ने गुदा सिकोड़ लिया था इसलिये मैंने जबरदस्ती नहीं की. शान्ताबाई प्यार से उसके नितंबों को सहलाने लगीं. "अब जरा खोल ना बेटे ... बेटी तेरे जीजाजी के लिये, बेचारे कैसे तरस रहे हैं देख जरा. बस जरा ढीला छोड़ .... "

उनके पुचकारने का असर हुआ, धीरे धीरे ललित का छेद ढीला होता सा लगा, मैंने तुरंत मौका देख कर पूरा सुपाड़ा ’पक्क’ से अंदर कर दिया. अब मेरा सुपाड़ा अच्छा खासा मोटा है, उसे दुखा होगा क्योंकि उसका बदन थोड़ा ऐंठा और मुंह से एक हल्की सी आवाज निकली, हल्की सी क्योंकि शान्ताबाई ने ललित के मुंह में अपनी एक नरम नरम चूंची ठूंस रखी थी. यहां ललित थोड़ा तड़पा, और वहां उन्होंने कस के उसका सिर अपनी छाती पर और भींच कर आधा मम्मा मुंह में भर दिया. फ़िर मुस्कराकर मुझे इशारा किया कि अब पेल दो. उनकी भी आंखें चमक रही थीं, ऐसे अपनी मालकिन के छोटे भाई की गांड मारी जाती देख कर शायद बड़ी एक्साइटेड हो गयी थीं. उधर मैं एकदम मस्त था, ऐसा लग रहा था कि किसी ने कस के मेरा सुपाड़ा मुठ्ठी में पकड़ा हो.

मैंने जोर लगाया और आधा लंड ललित के नितंबों के बीच उतार दिया. ललित का बदन एकदम कड़ा हो गया. शान्ताबाई ने इशारा किया कि बस अब रहने दो. ललित फ़िर जरा तड़पने सा लगा था पर मेरे लंड पेलना बंद करते ही फ़िर रिलैक्स होकर शान्ताबाई की बाहों में समा गया.

"बस हो गया राजा .... देखा फालतू घबराता था तू. अब चोद मेरे को, तब से लगा है कि मौसी चोदूंगा, अब कर ले अपने मन की"

ललित धीरे धीरे शान्ताबाई को चोदने लगा. मैं वैसे ही उसके ऊपर झुक कर बैठा रहा. उसके चोदने से अपने आप मेरा लंड इंच भर उसकी गांड के अंदर बाहर हो रहा था. ललित की गांड ऐसी टाइट थी जैसी शायद किसी लड़की की चूत नहीं होती होगी. अपार सुख का आनंद लेता हुआ मैं अब भी किसी तरह अपने आप पर संयम रख कर बैठा रहा.

कुछ देर के बाद अचानक ललित ने कस के धक्के मारने शुरू कर दिये, लगता है शान्ताबाई की टाइट योनि ने उसको गाय के थन की तरह दुहना शुरू कर दिया था जो उनकी स्पेशलिटी थी. बेचारा कामदेव के उस बाण को कैसे सहता.

अब अपने आप ललित की गांड चुद रही थी. एक दो मिनिट मैंने और सहन किया, फ़िर मुझसे ना रहा गया. मैंने झुक कर ललित के बदन को बाहों में लिया और उसके नकली स्तन पकड़कर दबाते हुए घचाघच चोदने लगा. ललित का सिर तो शान्ताबाई की छाती पर दबा हुआ था, वे उसके मुंह में अपनी चूंची ठूंसी हुई थीं, पर उनका वो मादकता से दमकता चेहरा मेरे सामने था. मैंने शान्ताबाई के रसीले होंठ अपने होंठों में पकड़े और उनके मुखरस का पान करते हुए लंड पेलने लगा. दो चार धक्कों में ही मेरा पूरा लंड जड़ तक ललित की सकरी नली में समा गया. मुझे लगा था कि ललित चिलायेगा या तड़पेगा पर शायद अब वह इतना गरमा गया था कि बिना रुके शान्ताबाई को चोदता रहा. मैंने अपने स्ट्रोक उससे मैच कर लिये याने जब वह अपना लंड शान्ताबाई की चूत में पेलता, तो मैं अपना लंड उसकी गांड से करीब करीब सुपाड़े तक बाहर निकालता और जब वह लंड बाहर की तरफ़ खींचता तो मैं जड़ तक उसके नितंबों के बीच अपना लंड गाड़ देता.

यह तीव्र चुदाई अधिक देर चलना संभव ही नहीं था. मैं ऐसा कस के झड़ा कि जैसे जान ही निकल गयी. हांफ़ते हांफ़ते मैं नंगे शरीरों के उस ढेर के ऊपर पड़ रहा. शान्ताबाई और ललित अब भी जोश में थे, ललित हचक हचक कर चोद रहा था और शान्ताबाई नीचे से चूतड़ उछाल उछाल कर चुदवा रही थीं. मैं झड़ जरूर गया था पर लंड अब भी तना हुआ था, एक दो मिनिट लगे लंड को जरा बैठने को, तब तक ललित की चुदाई चलती रही और मेरे चुदे लंड के ललित की नली के घर्षण से मेरे सुपाड़े में अजीब सी असहनयीय गुदगुदी होती रही. मुझसे और सहा नहीं जा रहा था पर फ़िर जल्दी ही ललित भी भलभला कर झड़ गया.

शान्ताबाई ने मुझे आंख मारी और आंखों आंखों में पूछा कि मजा आया, मन जैसा हुआ कि नहीं. मैंने पलक झपका कर हां कहा. फ़िर शान्ताबाई ने ललित के कान खींच कर कहा "बस इतना सा चोद के रह गया? अब मैं क्या करूं? मुझे लगा था कि जवान लड़का है, पंधरा बीस मिनिट तो कस के चोदेगा.

ललित बेचारा कुछ कहने की स्थिति में नहीं था. आंखें बंद करके हांफ़ता हुआ पड़ा था.

मैंने कहा "शान्ताबाई, आप को ऐसे नहीं टंगा हुआ छोड़ेंगे, ललिता डार्लिंग, जरा बाजू हट रानी" ललित को बाजू में करके मैं शान्तबाई की टांगों के बीच लेट गया और उनकी बुर को जीभ से चाटने लगा. हमेशा की तरह का मादक टेस्ट था, पर आज उसमें कुछ गाढ़ी सफ़ेद मलाई भी मिली हुई थी. झड़ा होने के बावजूद मेरा मस्ती गयी नहीं थी इसलिये उनकी चूत को निचोड़ता रहा जब तक वे भी एक सिसकी के साथ स्खलित नहीं हो गयीं.

थोड़ी देर से शान्ताबाई ने उठकर कपड़े पहने. "ये क्या शान्ताबाई, जा रही हो? अभी तो शुरुआत हुई है मीठी मीठी"

"अब ये आगे की प्यार मुहब्बत तुम दोनों में ही होने दो, मेरा काम हो गया, मैं तो लीना बाई आ गयी यह सोच कर आयी थी. तुम दोनों का मिलन करवाने को रुक गयी, अब जीजा साले के बीच मैं क्यों आऊं"

"रुक भी जाओ बाई, ये जीजा साला नहीं, जीजा साली का चक्कर है, ये मेरा साला साली से ज्यादा खूबसूरत है, अब ललित लड़का है इसमें मैं क्या करूं. आप रहेंगी तो ऐसे ही ठीक से इसको प्यार कर पाऊंगा"

"मैं आ जाऊंगी परसों."

"परसों क्यों? कल क्यों नहीं?" मैंने पूछा.

शान्ताबाई उठ कर किचन में गयीं. उनके इशारे से मैं समझ गया कि कुछ बात करना चाहती हैं. मैंने ललित की ओर देखा, वो अब भी पड़ा पड़ा आराम कर रहा था. मैंने उसे किस किया और बोला "ललिता डार्लिंग, ज्यादा दुख रहा है क्या?"

उसने मुंडी हिला कर ना कहा. मैंने उसे पलटाकर उसकी गांड देखी कि सच में फाड़ तो नहीं दी मैंने. गांड ठीक ठाक थी, शान्ताबाई ने लगाये मख्खन ने उसकी तकलीफ़ काफ़ी कम कर दी थी. हां गांड का छेद जो हमेशा बंद रहता है, थोड़ा खुला था और उसमें से उसके गुदा के अंदर का गुलाबी भाग दिख रहा था. ऐसा ही लीना के साथ हुआ था इसलिये मैंने राहत की सांस ली नहीं तो लीना मुझे कच्चा चबा जाती. मैंने ललित को कहा "आराम करो रानी, मैं अभी आया"

ललित बोला "जीजाजी, मौसी को आज रोक लीजिये, बड़ा मजा आया उनके साथ"

"कोशिश करता हूं" कहकर जब मैं किचन में आया तो शान्ताबाई बादाम काट रही थीं. "बादाम का हलुआ बना रही हूं भैयाजी, अब जरा शक्ति चाहिये ना ये सब रंगरेलियां करने को?"

मैंने पूछा कि मुझे क्यों बुलाया था, कुछ कहना है क्या?

शान्ताबाई बोलीं "अब आज इस लड़के को और तंग मत करना भैयाजी"

मैंने कहा कि ललित तो ठीक लगता है, मजे में है, आपके मख्खन ने कमाल कर दिया तो बोलीं "अरे तुम नहीं जानते कि इतने हलब्बी लंड से चुदवाने पर गांड की क्या हालत होती है. उस दिन लीना बाई की भी गांड कैसी ठुक ठुक कर छिल सी गयी थी. वो तो रोने को आ गयी थी, मैंने संभाला था उसको इसलिये कहती हूं कि आज रहने दो, कल से करना फिर से, भले ललित कुछ ना कहे, उसे दुख जरूर रहा होगा, कल तुम दोनों ही जरा सबर से रहो, परसों मैं आ जाऊंगी"

मैं उनको पकड़कर उनके मम्मे दबाते हुए बोला "फ़िर तो आप अभी रुक ही जाओ मौसीजी, आप के भांजे के लिये. और जरा मुझे भी मौका दीजिये, आप आज ठीक से चुदी कहां हैं? आप को ऐसे सूखे सूखे वापस भेजना मुझे अच्छा नहीं लगता"

शान्ताबाई बोलीं "कुछ भी कहते हो भैयाजी, आते ही आपने नहीं चिद दिया था मेरे को?" पर मेरी बात से उनके चेहरे पर लाली सी आगयी थी.

"वो तो जल्दी जल्दी, आप जैसे जोबन वाली अप्सरा को तो फ़ुरसत में मन लगा कर चोदना चाहिये"

उन्होंने एक दो बार ना नुकुर की पर फ़िर तुरंत मान गयीं. वैसे इतना मस्त माहौल छोड़ कर जाने का उनका भी मन नहीं था.
 
जब तक वे खाना बना रही थीं, तब तक मैंने थोड़ा ऑफ़िस का काम कर लिया. ललित रसोई में उनकी सहायता कर रहा था और गप्पें मार रहा था.

एकाध घंटे बाद खाना खाकर मैं और ललित आकर बेडरूम में आकर शान्ताबाई की राह देखने लगे. मेरे साथ आते वक्त ललित ने शान्ताबाई की ओर देखा तो वे बोलीं "शाम को प्रैक्टिस करवा दूंगी ललिता रानी" और हंस कर उसे आंख मार दी. मुझे बड़ा कुतूहल था कि क्या बातें कर रहे हैं पर मैं कुछ बोला नहीं.

मैं ललित को पास लेकर बोला "तो ललिता रानी, अब बताओ कि बहुत दुखा तो नहीं?"

"बहुत दुखा जीजाजी, कितना बड़ा है आपका, मैंने नहीं सोचा था कि ऐसे मेरी चौड़ी कर देगा. पर ... मजा भी आया जीजाजी, बाद में आप चोद रहे थे तो ... दुखता भी था और ... मस्त गुदगुदी भी होती थी. ... मुझे चोद कर आप को कैसा लगा जीजाजी .... याने दीदी को तो आपने इतनी बार चोदा है ... उसके कंपेरिज़न में?"

"बहुत मजा आया मेरी जान ... क्या मखमली गांड है तेरी जालिम ... पर अपनी दीदी को मत बताना प्लीज़ नहीं तो मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगी, कहेगी कि गांड मेरी मारते हो और तारीफ़ और किसी की गांड की करते हो, भले वो उसके छोटे भाई की गांड हो. पर यार ललित ... मेरा मतलब है ललिता रानी, तेरी गांड की बात ही और है, कसी हुई, कोमल, मखमली, गरम गरम ... एकदम हॉट. मैं तो गुलाम हो गया इस गांड का, अब चाहे तो तू मुझे ब्लैकमेल कर सकता है, मैं कुछ भी कर लूंगा तेरी ये गांड पाने को"

"मैं आप को क्यों ब्लैकमेल करूंगा जीजाजी! आप के साथ तो इतनी मौज मस्ती चल रही है मेरी" वो बोला.

थोड़ी देर से घर का काम निपटाकर शान्ताबाई अंदर आयीं. "क्यों ललित बेटे, ठीक ठाक है ना?"

"हां मौसी, आप ठीक कह रही थीं कि दुखेगा पर मजा आयेगा. वैसा ही हुआ"

"चलो, ये अच्छा हुआ. वैसे तेरी तारीफ़ करनी चाहिये कि तेरे जीजाजी का तूने ऐसे आसानी से ले लिया. तेरी दीदी भी करीब करीब रो दी थी उस दिन"

घर का काम करने के लिये उन्होंने लीना का एक ढीला गाउन पहन किया था. गाउन निकालकर वे बिस्तर पर बैठ गयीं. "चलिये भैयाजी, आप को जो करना है, कीजिये, बहुत देर हो गयी, अब मेरे को जाना है" कहने को वे जल्दबाजी कर रही थीं पर मुझे पता था कि रात भर रोक कर चोदता तो भी वे आसानी से मान जातीं.

"अब पहले आपकी जरा वो स्पेशल बैठक हो जाये शान्ताबाई. आज आपके इस मुलायम माल में घुस जाने का मन हो रहा है" कहकर मैं बिस्तर पर लेट गया और खिसक कर अपना सिर एक बाजू के किनारे पर कर लिया.

"अब ये क्या शौक चर्राया है आज आपको" शान्ताबाई मेरी ओर देख कर बोलीं "पिछली बार दम घुटने लगा था, लीना बाई ने क्या क्या नहीं कहा मेरे को तब"

"अब लीना कभी कभी उलटा सीधा करती है तो मैं क्या करूं बाई? उस दिन मेरा दम वम कुछ नहीं घुटा था, जरा मूड में आकर आपके इस मुलायम बदन की खुशबू ले रहा था मुंह और नाक से, तो वो न जाने क्या समझ बैठी"

"ठीक है, मैं बैठती हूं, मुझे भी अच्छा लगता है ऐसा किसी शौकीन के मुंह पर बैठना. पर एक बार बैठूंगी तो पंधरा बीस मिनिट नहीं उठूंगी ये पहले ही समझ लो. फ़िर मेरे को नहीं बोलना"

"घंटे भर बैठिये ना शान्ताबाई, मुझे ये जन्नत थोड़ी देर और मिलेगी. ललित राजा, तू भी देख, ये नया तरीका है मौसी जैसी मतवाली नार के जोबन को चखने का" ललित बड़े इन्टरेस्ट से ये नया करम देख रहा था.

शान्ताबाई बिस्तर के पास आ कर मेरी ओर पीठ करके खड़ी हो गयीं. मैंने उनके भारी भरकम चूतड़ हाथों में पकड़ लिये और दबाने लगा. एकदम तरबूज थे, रसीले तरबूज. फ़िर टांगों के बीच हाथ डालकर उनकी घुंघराले बालों में छिपी बुर में उंगली की, मस्त एकदम गीली चिकनी थी. वे पीछे देखकर बोलीं "चलो हाथ हटाओ, अब जो कुछ करना है वो मुंह से करो" और वे धप्प से मेरे चेहरे पर अपना पूरा वजन दे कर बैठ गयीं. उनकी मुलायम तपती गीली चूत और नरम नरम नितंबों ने मेरा पूरा चेहरा ढक लिया. मेरा मुंह और नाक दोनों उनके निचले अंगों में समा गये. होठ और ठुड्डी उनकी बुर के पपोटों में दब गये और नाक उनकी गांड के छेद में फंस गयी. मैं बुर के पपोटे चूसने लगा.

ललित की आवाज आयी, वो बेचारा थोड़ा परेशान लग रहा था "मौसी ... अरे ये क्या कर रही हो! जीजाजी का तो पूरा चेहरा तुमने दबा लिया, उनको सांस लेने में तकलीफ़ हो रही होगी"

"हो तकलीफ़ तो हो मेरी बला से, मुझे तो मजा आ रहा है. और मैंने तो कहा नहीं था, ये उन्हींकी फ़रमाइश है" शान्ताबाई बोलीं. फ़िर एक मिनिट बाद हंसकर बोलीं "अरे ऐसा क्या परेशान हो रहा है, कुछ नहीं होगा तेरे जीजाजी को. उनको बहुत मजा आता है. पहले मैं भी सोचती थी कि यह क्या पागलपन करते हैं पर उनको अच्छा लगता है तो ठीक है ना. अब तू आ मेरे पास बैठ और मुझको जरा अपने इस प्यारे प्यारे मुखड़े के चुम्मे दे"

फ़िर चूमाचाटी की आवाज आने लगी. शान्ताबाई की ’अं .. उं ... अं ... चुम ... चुम ..’ ज्यादा सुनाई दे रही थी, वे शायद अपनी चपेट में फंसे उस हसीन जवान लड़के के होंठ कस कस के चूस रही थीं. अब साथ साथ वे थोड़ा आगे पीछे होकर अपनी चूत और अपनी गांड मेरे मुंह और नाक पर घिस रही थीं. उस गीले मांस को मैं सन्तरे जैसा चूस कर चम्मच चम्मच उनकी बुर से रिसता शहद पी रहा था.

"अरे सिर्फ़ मेरी छतियां दबायेगा कि चूसेगा भी? चल अब मुंह में ले ले मेरा दुदू" शान्ताबाई की आवाज आयी. फ़िर स्तनपान कराने के स्वर सुनाई देने लगे.

"क्यों भैयाजी? मजा आ रहा है? स्वाद लग रहा है? फ़िर जरा जीभ भी चलाओ ना, मेरी बुर के अंदर डालो जरा और जीभ से चोदो, देखो कैसी टपक रही है मुई पर झड़ती नहीं"

मैंने जीभ डाली और अंदर बाहर करने लगा. बीच में मेरे होंठों पर जो कड़ा कड़ा चने जैसा दाना महसूस हो रहा था, उसको चूस लेता या हल्के से काट लेता. शान्ताबाई अब धीरे धीरे मेरे सिर पर ऊपर नीचे होने लगी थीं. अचानक बोलीं "ललित ... आ जा मेरी गोद में ... तेरे जीजाजी को जरा और मस्त करते हैं"

कुछ ही देर में उनका वजन एकदम बढ़ गया, ललित उनकी गोद में आ गया था. अब मेरा चेहरा उनकी तपती गीली चूती बुर में ढक गया था. मैंने जो मुंह में आया वो भर लिया. चूसने लगा, बीच में हल्के से काट भी खाया. "उई ऽ मां ऽ ... ओह ऽ मां ऽ... करती शान्ताबाई झड़ गयीं और मेरा पूरा चेहरा गीला हो गया.

दो मिनिट सांस लेने के बाद शान्ताबाई ने ललित को गोद से उतारा और लेट गयीं. मेरी ओर बाहें पसार कर बोलीं "अब आ जाइये भैयाजी ... बहुत देर से इंतजार कर रहे हैं ... और मैं भी कर रही हूं"

"पर झड़ाया तो आपको शान्ताबाई अभी अभी मैंने, फ़िर आप कहां इन्तजार कर रही हैं, इन्तजार तो कर रहा है मेरा ये सोंटा जिसे अब तक आपकी बुर को कूटने का मौका नहीं मिला है" उनकी चूत में लंड पेलते पेलते मैं बोला.

"चुसवाना तो ठीक है भैयाजी पर जब तक बदन के अंदर बड़ा सा लंड न चले, चूत रानी का पेट नहीं भरता" कहकर उन्होंने मुझे खुद के ऊपर चढ़ा लिया. मैं उनपर चढ़ कर चोदने लगा. ये प्योर चुदाई थी, बस घचाघच घचाघच उनकी बुर को मैं कूट कूट कर चोद रहा था. ऐसी चुदाई लीना के सामने करने का ज्यादा मौका नहीं मिलता था इसलिये उन्होंने भी दिल खोल कर चुदवाया, नीचे से चूतड़ उछाल उछाल कर, कमर हिला हिला कर अपनी बुर में लंड पिलवाया. वे ललित को पास लेकर सोयी थीं और उसे बार बार चूम रही थीं. ललित आंखें फाड़ फाड़ कर ये चुदाई देख रहा था. शायद सोच रहा था कि जिस तरह से मैं शान्ताबाई को चोद रहा था, वैसा उसको चोदता तो उसकी गांड का क्या हाल होता! 
 
ललित के चेहरे के भाव देखकर शान्ताबाई जोर से सांस लेते हुए बोलीं "लगता है ... ललित राजा ने ... जीजाजी के असली कारनामे देखे नहीं हैं ... एक नंबर के खिलाड़ी हैं राजा वे ... न जाने कहां से सीखे हैं ... लीना बाई घर में ना हों तो आधे घंटे में मुझे ऐसे ठोक देते हैं कि दो तीन दिन के लिये मेरी ये बदमाश बुर ठंडी हो जाती है"

"अब लीना जैसी अप्सरा ... बीवी हो तो ... आदमी बहुत कुछ ... सीख जाता है ... ललित ... पर जरा संभालना पड़ता है ... पटाखा है पटाखा ... कब फूट जाये पता भी नहीं चलता ..." मैंने चोदते हुए कहा.

"हां ललित बेटा ... तुम्हारी दीदी याने एकदम परी है ... हुस्न की परी ...." शान्ताबाई चूतड़ उछालते हुए बोली "जब से वे यहां ... रहने आयीं ... तब से मैं देखती थी हमेशा ... फ़िर मेरे यहां से सब्जी भाजी खरीदने लगीं ... मैं तो बस टक लगाकर देखती रहती थी उनका रूप. और तू जानता है- उसको देखकर मेरी चूत गीली हो जाती थी जैसे किसी मर्द का लंड खड़ा हो जाता होगा. अब उसके सामने मैं क्या हूं , फ़िर भी मेरे पास थोड़ा बहुत माल तो है ना ... " अपने ही स्तनों को गर्व से देखती हुई शान्ताबाई बोली " ... सो मैं भी दिखाती थी उसको अपनी पुरानी टाइट चोली पहन पहन कर. उनकी आंखों को देखकर लगता था कि वे भी मुझे पसंद करती हैं इसलिये बड़ी तमन्ना से रोज राह देखती थी उनकी. और जब एक दिन लीना बाई खुद बोली कि शान्ताबाई, अब भाजी का ठेला छोड़ो और मेरे यहां काम करने को आ जाओ, मेरे को लगा जैसे मन्नत मिल गयी हो"

"वैसे आप भी कम खूबसूरत नहीं हैं शान्ताबाई, बस यह फरक है कि लीना जरा नाजुक और स्लिम है और आप के जलवे एकदम खाये पिये मांसल किस्म के हैं. ये पपीते जैसे स्तन ... या ये कहो कि झूलते नारियल जैसी चूंचियां, ये जामुन या खजूर जैसे निपल, ये नरम नरम डनलोपिलो जैसा पेट, ये घने रेशमी घुंघराले बालों से भरी - घनी झांटों के बीच खिली हुई लाल लाल गीली चिपचिपी गरमागरम चूत ... अब वो रंभा और उर्वशी के पास भी इससे ज्यादा क्या होगा बाई?" मैंने तारीफ़ की. हमेशा करता हूं, बाई ऐसे खिल जाती हैं कि रस का बहाव दुगना हो जाता है. अब भी ऐसा ही हुई, उनमें ऐसा जोर आया कि डबल स्पीड से नीचे से चोदने लगीं.

अब मस्ती में उन्होंने ललित को बैठने को कहा और फ़िर कमर में हाथ डालकर उसे पास खींचा और उसका लंड मुंह में ले लिया. जब तक ललित ने उनको अपनी क्रीम खिलाई तब तक वे एकदम सर्र से झड़ गयीं. ऐसी झड़ीं कि तीन चार हल्की हल्की चीखें उनके मुंह से निकल गयीं. झड़ने के बाद फ़िर उनको मेरे लंड के धक्के जरा भारी पड़ने लगे. "बस बाबूजी ... भैयाजी अब रुक जाओ ... हो गया मेरा ... " वे कहती रह गयीं पर मैंने उनके होंठ मुंह में लेकर उनकी बोलती बंद कर दी और ऐसा कूटा कि वे तड़प कर अपना सिर इधर उधर फ़ेकने लगीं.

जब वे पांच मिनिट में उठीं तो पूरी लस्त हो गयी थीं. कपड़े पहनते पहनते ललित से बोलीं "तेरे जीजाजी से चुदवा कर मैं एकदम ठंडी हो जाती हूं बेटा ... क्या कूटते हैं ... बड़ा जुलम करते हैं ... मेरे और तुम्हारी दीदी जैसी गरम चूत को ऐसा ही लंड चाहिये नहीं तो जीवन नरक हो जाता है बेटा. खैर, अब मैं चलती हूं, तुम आराम करो"

"मौसी ... तुमने प्रॉमिस किया था" ललित उठकर चिल्लाया.

"अरे भूल ही गयी, चलो बेटा, उस कमरे में चलते हैं" फ़िर मेरी ओर मुड़ कर बोलीं "अब ऐसे ना देखो, कुछ ऐसा वैसा नहीं करने वाली इस छोरे के साथ, करना हो तो सरे आम आप के सामने करूंगी. इतनी भयंकर चुदाई के बाद किसी में इतना हौसला नहीं है कि अंदर जाकर शुरू हो जायें. ललित को कुछ सिखाना है, आप बाहर बैठ कर अपना काम करो अब"

मैं बाहर जाकर बैठ गया. मन हो रहा था कि अंदर जाकर देखूं कि क्या चल रहा है पर फ़िर रुक गया.

करीब डेढ़ घंटे बाद शान्ताबाई बाहर आयीं. मुड़ कर बोलीं "आओ ना ललिता रानी, शरमाओ मत"

और अंदर से साड़ी पहनी, पूरी तरह से तैयार हुई एक खूबसूरत लड़की के भेस में ललित बाहर आया. क्या बला का हुस्न था. मैंने सोचा कि ललित बाकी कैसे भी कपड़े पहने, लीना की तरह की सुंदरता उसकी साड़ी में ही निखरती थी.

मेरी आंखों में के प्रशंसा के भाव देखकर शान्ताबाई गर्व से बोलीं "ये खुद पहनी है इसने, आखिर सीख ही गया, एक घंटे में चार पांच बार प्रैक्टिस करवाई मैंने, वैसे सच में शौकीन लड़का है भैयाजी हमारा ललित, नहीं तो लड़कियों को भी आसानी से नहीं आता साड़ी बांधना."

ललित को सीने से लगाकर वे बोलीं "ललित राजा ... अरे अब तुझे ललिता कहने की आदत डालना पड़ेगी, अब मैं परसों आऊंगी, तब तक जो इश्क विश करना है, कर ले जीजाजी के साथ." ललित वहां आइने में खुद को निहारने में जुट गया था, बड़ा खुश नजर आ रहा था.

बाहर जाते जाते मेरे पास आकर शान्ताबाई बोलीं "भैयाजी, जरा बुरा मत मानना, आप को कह कर गयी थी कि कुछ नहीं करूंगी पर अभी मैंने अंदर साड़ी पहनाते पहनाते फ़िर से ललित का लंड चूस लिया, आप को बुरा तो नहीं लगेगा भैयाजी?"

"मुझे क्यों बुरा लगेगा बाई? आप को मौसी कहता है आखिर. पर अभी फिर से याने ... अभी एक घंटा पहले ही तो चोदते वक्त आपने चूसा था फ़िर ... "

"अरे साड़ी पहनाते पहनाते मुझसे नहीं रहा गया, और लड़के का शौक तो देखो, साड़ी पहनने के शौक में फ़िर लंड खड़ा हो गया उसका. ऊपर से कहता है कि गोटियां दुखती हैं. असल का रसिक लौंडा है लगता है. मुझसे नहीं रहा गया. याने आज रात को ज्यादा मस्ती नहीं कर पायेगा बेचारा, तीन चार बार तो मेरे साथ ही झड़ा है छोकरा. आप ऐसा करो कि आज सच में आप दोनों आराम कर लो भैयाजी, कल नये दम खम से अपनी प्यार मुहब्बत होने दो"

"ठीक है बाई, मैं आज ललित को तकलीफ़ नहीं दूंगा"

"और मैंने बादमा का हलुआ बहुत सारा बनाया है रात को भी खा लेना, अच्छा होता है सेहत के लिये, खास कर नौजवान मर्दों के लिये. और भैयाजी .... बुरा मत मानना ... एक बात कहनी है ..." वे बोलीं. अब तक हम बाहर ड्राइंग रूम में आ गये थे, ललित अंदर ही था.

"अब मैं क्यों बुरा मानूंगा?" मैंने पूछा.

"अरे आप भरे पूरे मर्द हो, और अधिकतर मर्दों को मैं जो कहने जा रही हूं, वो बात ठीक नहीं लगेगी, पर आप उसको इतना प्यार करते हो इसलिये कह रही हूं. ललित को आप बहुत अच्छे लगते हैं, याने जैसा आपने आज उसके साथ किया, शायद उसको भी आपके साथ वैसा ही करना है. आज उसे साड़ी पहनना सिखाते वक्त मैं जब उसके इस लड़कियों के कपड़े के शौक के बारे में बातें कर रही थी तो वो बोला कि जीजाजी भी अगर ऐसे ... बन जायें तो बला के सेक्सी लगेंगे."

"याने ऐसे लड़कियों के कपड़े पहनकर? ..." मैं अचंभे में आ गया.

"... और भैयाजी ..."

"क्या शान्ताबाई?"

आंख मार कर वे बोलीं "ऐसा मत समझो आप कि उसको बस आपका लंड ही अच्छा लगता है, पूरे बदन पर फिदा है आपके, शरमा कर कह नहीं पाता पर ...’ मेरे चूतड़ को दबा कर शान्ताबाई बोली "इसमें भी बड़ा इन्टरेस्ट लगता है छोरे का"

"ऐसा?" मैंने चकराकर कहा "बड़ा छुपा रुस्तम निकला. ठीक है, मैं देख लूंगा उसको"

"डांटना मत. वो आपका दीवाना है" कहकर वे दरवाजा खोल रही थीं तो मैंने कहा "परसों जरूर आइये शान्ताबाई. मैं अब रोज रोज तो छुट्टी नहीं ले सकता, आप आयेंगी तो मन बहला रहगा उसका"

कमर पर हाथ रखकर शान्ताबाई बड़ी शोखी से बोलीं "सिर्फ़ मन ही नहीं, तन भी बहला रहेगा मेरे साथ. अब देखो भैयाजी, सिर्फ़ गपशप करने को तो मैं आऊंगी नहीं, इतना हसीन जवान है, खेले निचोड़े बिना नहीं रहा जायेगा मेरे को"
 
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