hotaks444
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शाम को प्रेम जब विनीता के घर गया तो सौरभ कुछ काम से बाहर गया था वो लेटी हुई थी प्रेम को देख कर उसे अच्छा लगा प्रेम उसके पास बैठ गया और बाते करते हुए उसकी टाँगो को सहलाने लगा विनीता तो प्रेम पर पूरी तरह से फिदा थी ही उसके स्पर्श से उसकी चूत गीली होने लगी वो बोली ओह प्रेम कैसा जादू सा कर दिया है तूने मुझ पर पल पल तड़प रही हूँ तेरे बिना पर मैं करूँ भी तो क्या उपर से ये निगोडी चूत जीने नही दे रही है
प्रेम ने कहा चाची अब ऐसी हालत मे चुदाई कैसे होगी कहीं जोश जोश मे घुटने की मुसीबत और ना बढ़ जाए वो बात कर ही रहे थे कि सौरभ भी आ गया फिर प्रेम और सौरभ नदी की तरफ घूमने चल दिए चलते चलते सौरभ ने पूछा कि यार प्रेम चूत मारने का बड़ा दिल करता है पर क्या करूँ कि अपना काम बन जाए अब प्रेम उसको क्या बता ता कि उसका काम तो बन ही गया है तो प्रेम ने कहा कि यार दिल तो मेरा भी बहुत करता है पर कोई जुगाड़ हो तभी ना
तो सौरभ बोला यार मैं थोड़े दिन पहले जब शहर गया था तो एक किताब लाया था उसमे माँ और बहन को चोदने की कहानिया थी क्या ऐसा सच्ची मे हो सकता है अब प्रेम ने उषा के साथ जो कुछ महसूस किया था तो वो ही सीन उसकी आँखो के सामने आ गये और बेध्यानी मे उसके मुँह से निकल गया कि यार ऐसा होता है मैं भी उषा दीदी को चोदना चाहता हूँ
पर अगले ही पल उसे अपनी ग़लती का अहसास हुआ पर अब बात को संभाला नही जा सकता था तो सौरभ बोला यार तू तो छुपा रुस्तम निकला दीदी को चोदना चाहता है औ मुझे नही बताया तो प्रेम बोला यार वो बस ऐसे ही हो गया तो फिर सौरभ बोला यार मैं भी तुझसे एक बात बताना चाहता हूँ कि मैं भी अपनी मम्मी को चोदना चाहता हूँ पर कैसे ये नही पता
तो प्रेम ने कहा कि वाह मेरे शेर तू भी कम नही है तो यार हम आज से ही अपनी इन हसरतों को पूरा करने की कोशिश करेंगे और एक दूसरे की मदद भी करेंगे इधर सौरभ खुश था और प्रेम ये सोच रहा था कि अब जब सौरभ भी विनीता की ले लेगा तो उसके और विनीता के रिश्ते पर वो कुछ बोल भी ना पाएगा उधर सौरभ सोच रहा था कि मम्मी की चुदाई के बाद वो उषा दीदी को भी पेल देगा जल्दी ही उनकी ये हसरतें क्या गुल खिलाने वाली थी
उस रात प्रेम अकेला बिस्तर पर करवटें बदल रहा था सौरभ विनीता के बेड के साइड मे ही खाट डाले हुए था नींद तीनो की आँखो मे ही नही थी सब कुछ ना कुछ सोच रहे थे हसरतों की आग धीरे धीरे भड़क रही थी सबको इंतज़ार था चिंगारी को शोलो मे बदल जाने का उधर उषा ने चुपके से अपनी सलवार को घुटनो तक सरका दिया था और कच्छि के उपर से ही अपनी अन्छुइ फूली हुई चूत को रगड़ते हुए प्रेम के ख़यालो मे ही डूबी हुई थी कभी कभी वो सोचती थी कि अपने भाई के बारे मे ऐसा सोचना बड़ा ही ग़लत है पर भाई से चुदने के ख़याल से ही उसके तन बदन मे एक जोश की लहर दौड़ जाती थी
अपनी चूत की दरार मे उंगली रगड़ते हुए उषा सोच रही थी कि कब वो अपने भाई का मस्त लोड्ा चूत मे लेगी ना जाने कब माँ वापिस घर जाएगी और वो जुगाड़ करके भाई से चुदेगि दूसरी तरफ जब से प्रेम ने उषा दीदी का जिकर किया था तो वो मस्त मंज़र उसकी आँखो से हट ही नही रहा था जब उसने अपनी दीदी को पूरी तरह से नंगी अवस्था मे देखा था तो बस दीदी को चोदने की कल्पना करते हुए वो अपने लंड को हिलाने लगा और कर भी क्या सकता था बेचारा
दोनो भाई बहन अपना अपना पानी गिरा कर सो गये रात के करीब दो बज रहे थे विनीता को पेशाब लगी थी उसने देखा कि सौरभ नींद मे है तो वो दीवार का सहारा लेकर उठी और दरवाजे के पास ही पेशाब करने को गयी उसे पता नही था कि सौरभ जाग गया है बाहर जलते बल्ब से सौरभ बाहर का नज़ारा देख रहा था विनीता अब बैठ तो सकती नही थी उसने सोचा कि बेटा तो सो रहा है खड़ी खड़ी ही मूत ले उसने साड़ी को कमर तक उठाया अंदर कच्छि तो पहनी नही थी
अब दरवाजे की तरफ उसकी जो पीठ थी तो मस्त गोरे गोरे चूतड़ सौरभ की आँखो को चुन्धियाने लगे उफफफफफफफफफ्फ़ कितने बड़े बड़े गोल मटोल कूल्हे थे सौरभ की लार टपक पड़ी विनीता ने अपनी टाँगो को खोला और सुर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर सुर्र्र्ररर करते हुए टाँगो के जोड़ से पेशाब की धार बह निकली कुछ पेशाब नीचे गिरने लगा कुछ उसकी टाँगो पर रिसने लगा सौरभ के लिए बड़ा ही सेक्सी नज़ारा था वो अब उसको अपने तने हुए लंड को जल्दी ही ढीला करना था नसें इतनी फूल गयी थी कि कहीं फट ही ना जाए
अपनी मम्मी के अन्द्रुनि अंगो को देख कर सौरभ बहुत मुश्किल से खुद पर काबू कर पा रहा था अगर वो उसकी मम्मी ना होती तो पक्का अब तक वो उसको ज़बरदस्ती चोद चुका होता पर अभी भी उनके बीच मे मर्यादा की डोरी थी जिसे टूट ने मे थोड़ा वक़्त लग ना था अगले दिन सौरभ का बापू जल्दी ही घर आ गया तो फिर सौरभ को कुछ ज़्यादा मोका नही मिला विनीता के करीब रहने का , जबकि उषा ने तो वापिस घर जाने की रट लगा दी तो हार कर सुधा को तैयार ही होना पड़ा वापिस आने को
जब माँ बेटी वापिस आ रही थी तो बस मे बहुत ही भीड़ थी सुधा ने जवान बेटी को तो किसी तरह सीट पर बिठा दिया पर उसे खड़ा ही होना पड़ा उसके पीछे एक प्रेम की ही उमर का लड़का खड़ा था बस झटके ले ले कर चल रही थी सुधा को परेशानी तो बहुत हो रही थी पर मजबूरी थी सफ़र भी तो करना था, और वो लड़का भी बेशरम उस से बिल्कुल चिपक ही रहा था सुधा को जल्दी ही अपनी मस्तानी गान्ड पर कुछ चुभता सा महसूस हुआ तो वो समझ गयी कि वो क्या है पर बस में वो कोई तमाशा नही खड़ा करनी चाहती थी
प्रेम ने कहा चाची अब ऐसी हालत मे चुदाई कैसे होगी कहीं जोश जोश मे घुटने की मुसीबत और ना बढ़ जाए वो बात कर ही रहे थे कि सौरभ भी आ गया फिर प्रेम और सौरभ नदी की तरफ घूमने चल दिए चलते चलते सौरभ ने पूछा कि यार प्रेम चूत मारने का बड़ा दिल करता है पर क्या करूँ कि अपना काम बन जाए अब प्रेम उसको क्या बता ता कि उसका काम तो बन ही गया है तो प्रेम ने कहा कि यार दिल तो मेरा भी बहुत करता है पर कोई जुगाड़ हो तभी ना
तो सौरभ बोला यार मैं थोड़े दिन पहले जब शहर गया था तो एक किताब लाया था उसमे माँ और बहन को चोदने की कहानिया थी क्या ऐसा सच्ची मे हो सकता है अब प्रेम ने उषा के साथ जो कुछ महसूस किया था तो वो ही सीन उसकी आँखो के सामने आ गये और बेध्यानी मे उसके मुँह से निकल गया कि यार ऐसा होता है मैं भी उषा दीदी को चोदना चाहता हूँ
पर अगले ही पल उसे अपनी ग़लती का अहसास हुआ पर अब बात को संभाला नही जा सकता था तो सौरभ बोला यार तू तो छुपा रुस्तम निकला दीदी को चोदना चाहता है औ मुझे नही बताया तो प्रेम बोला यार वो बस ऐसे ही हो गया तो फिर सौरभ बोला यार मैं भी तुझसे एक बात बताना चाहता हूँ कि मैं भी अपनी मम्मी को चोदना चाहता हूँ पर कैसे ये नही पता
तो प्रेम ने कहा कि वाह मेरे शेर तू भी कम नही है तो यार हम आज से ही अपनी इन हसरतों को पूरा करने की कोशिश करेंगे और एक दूसरे की मदद भी करेंगे इधर सौरभ खुश था और प्रेम ये सोच रहा था कि अब जब सौरभ भी विनीता की ले लेगा तो उसके और विनीता के रिश्ते पर वो कुछ बोल भी ना पाएगा उधर सौरभ सोच रहा था कि मम्मी की चुदाई के बाद वो उषा दीदी को भी पेल देगा जल्दी ही उनकी ये हसरतें क्या गुल खिलाने वाली थी
उस रात प्रेम अकेला बिस्तर पर करवटें बदल रहा था सौरभ विनीता के बेड के साइड मे ही खाट डाले हुए था नींद तीनो की आँखो मे ही नही थी सब कुछ ना कुछ सोच रहे थे हसरतों की आग धीरे धीरे भड़क रही थी सबको इंतज़ार था चिंगारी को शोलो मे बदल जाने का उधर उषा ने चुपके से अपनी सलवार को घुटनो तक सरका दिया था और कच्छि के उपर से ही अपनी अन्छुइ फूली हुई चूत को रगड़ते हुए प्रेम के ख़यालो मे ही डूबी हुई थी कभी कभी वो सोचती थी कि अपने भाई के बारे मे ऐसा सोचना बड़ा ही ग़लत है पर भाई से चुदने के ख़याल से ही उसके तन बदन मे एक जोश की लहर दौड़ जाती थी
अपनी चूत की दरार मे उंगली रगड़ते हुए उषा सोच रही थी कि कब वो अपने भाई का मस्त लोड्ा चूत मे लेगी ना जाने कब माँ वापिस घर जाएगी और वो जुगाड़ करके भाई से चुदेगि दूसरी तरफ जब से प्रेम ने उषा दीदी का जिकर किया था तो वो मस्त मंज़र उसकी आँखो से हट ही नही रहा था जब उसने अपनी दीदी को पूरी तरह से नंगी अवस्था मे देखा था तो बस दीदी को चोदने की कल्पना करते हुए वो अपने लंड को हिलाने लगा और कर भी क्या सकता था बेचारा
दोनो भाई बहन अपना अपना पानी गिरा कर सो गये रात के करीब दो बज रहे थे विनीता को पेशाब लगी थी उसने देखा कि सौरभ नींद मे है तो वो दीवार का सहारा लेकर उठी और दरवाजे के पास ही पेशाब करने को गयी उसे पता नही था कि सौरभ जाग गया है बाहर जलते बल्ब से सौरभ बाहर का नज़ारा देख रहा था विनीता अब बैठ तो सकती नही थी उसने सोचा कि बेटा तो सो रहा है खड़ी खड़ी ही मूत ले उसने साड़ी को कमर तक उठाया अंदर कच्छि तो पहनी नही थी
अब दरवाजे की तरफ उसकी जो पीठ थी तो मस्त गोरे गोरे चूतड़ सौरभ की आँखो को चुन्धियाने लगे उफफफफफफफफफ्फ़ कितने बड़े बड़े गोल मटोल कूल्हे थे सौरभ की लार टपक पड़ी विनीता ने अपनी टाँगो को खोला और सुर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर सुर्र्र्ररर करते हुए टाँगो के जोड़ से पेशाब की धार बह निकली कुछ पेशाब नीचे गिरने लगा कुछ उसकी टाँगो पर रिसने लगा सौरभ के लिए बड़ा ही सेक्सी नज़ारा था वो अब उसको अपने तने हुए लंड को जल्दी ही ढीला करना था नसें इतनी फूल गयी थी कि कहीं फट ही ना जाए
अपनी मम्मी के अन्द्रुनि अंगो को देख कर सौरभ बहुत मुश्किल से खुद पर काबू कर पा रहा था अगर वो उसकी मम्मी ना होती तो पक्का अब तक वो उसको ज़बरदस्ती चोद चुका होता पर अभी भी उनके बीच मे मर्यादा की डोरी थी जिसे टूट ने मे थोड़ा वक़्त लग ना था अगले दिन सौरभ का बापू जल्दी ही घर आ गया तो फिर सौरभ को कुछ ज़्यादा मोका नही मिला विनीता के करीब रहने का , जबकि उषा ने तो वापिस घर जाने की रट लगा दी तो हार कर सुधा को तैयार ही होना पड़ा वापिस आने को
जब माँ बेटी वापिस आ रही थी तो बस मे बहुत ही भीड़ थी सुधा ने जवान बेटी को तो किसी तरह सीट पर बिठा दिया पर उसे खड़ा ही होना पड़ा उसके पीछे एक प्रेम की ही उमर का लड़का खड़ा था बस झटके ले ले कर चल रही थी सुधा को परेशानी तो बहुत हो रही थी पर मजबूरी थी सफ़र भी तो करना था, और वो लड़का भी बेशरम उस से बिल्कुल चिपक ही रहा था सुधा को जल्दी ही अपनी मस्तानी गान्ड पर कुछ चुभता सा महसूस हुआ तो वो समझ गयी कि वो क्या है पर बस में वो कोई तमाशा नही खड़ा करनी चाहती थी