desiaks
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- Aug 28, 2015
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दादी के आखरी कुछ अल्फाजों से अजय का दिल जोरों से धड़क उठा और वोह सोचने लगा क्या उसके कान सही सुन रहे थे या मन में कोई वहम हुआ। उसने अपने जांघ पर रखे दादी के हाथ पर अपना हाथ रखकर मलने लगा। जवाब में यशोधा देवी मुस्कुराई।
अजय : में कुछ समझ नही दड़ीमा!
यशोधा देवी को जैसे डायबाएतिस होने चला था अपने पोते के मासूमियत पर। उन्होंने फिर से उसके दूसरे गाल को भी चूम लिए और सोफे में से ऊपर उठती हुई अपने पोते को अपने कमरे में आने का इशारा किया।
जल्द ही अजय अपने दादिमा के पीछे पीछे उनके कमरे की और जाने लगा। क्योंकि रामधीर भी इस वक्त लाइब्रेरी वाले कमरे में किताब ने मगन था, प्राइवेसी में कोई प्रॉब्लम नहीं था। अजय और यशोधा देवी कमरे में पहुंच जाते है और यशोधा देवी सारे खिड़कियां और पर्दे बंद करने लगी। अजय सोच में पड़ गया।
यशोधा देवी : अजय, तुझे कुछ बचपन के मजेदार किस्से सुनता हूं! लेकिन जब तक मै ना ख़तम करू, कोई सवाल मत करना, समझा? (प्यार से)
अजय : (मुस्कुराकर) दादी! कहानी आप से सुने हुए बरसो हो गए! बचपन की बात ही अलग थी। (अपने दाड़ीमा के मोटे मोटे सारी में लिपटी जांघों पर सर रखता हुआ लेट गया)
यशोधा देवी : एक बार तो किया हुआ अजय! (थोड़ा शरमके) हाए मुझे शरम आती है बोलने में! (पुरानी अंदाज़ में पल्लू को मूह पर रखती हुई) एक बार....
अजय : (अपने दादी के पल्लू से खेलने लगा) अब बोलिए भी तो! मेरी प्यारी दाडिमा!
यशोधा देवी : अरे मेरे बच्चा! (गाल को सहलाती हुई) एक बार जब तू बहुत छोटा सा था, हमारे घर पे एक छोटे छोटे बच्चो की फांसी ड्रेस एग्जीबिशन हुए थी, फंक्शन के दौरान तुझे एक बार मैंने और तेरी मा ने मिलके एक मस्त मीठी सी लाल रंग की फ्रॉक पहना दी थी। (शर्मीली अंदाज़ में खिखिला उठी)
अजय : (हैरान) क्या???? सच??
यशोधा देवी : अरे हां! तेरा बाप बहुत नाराज़ हो गया था! लेकिन हाय!!! कितना प्यारा लग रहा था तू! ऐसा लगा जैसे राहुल को एक और बहन मिल गया हो! (ना जाने क्यों वह यह सब पुरानी बातों में खी गई थी)
अजय : दादी आज अचानक यह सा.....
यशिधा देवी अपने पोते के लबों पर हाथ रख देती है और एक अजीब कामुक अंदाज़ में अपने दांतो तले लबों को मसल दिया। उसके मन में कहीं अनकही उमंगे जग उठी और अपने पोते को उठा के वह खुद उसके रूबरू बैठ गई और उसके चेहरे को अपनी हाथ में थाम ली । अजय के धड़कन कुछ ज़्यादा तेज़ हो गया, कुछ तो था जो उसकी दादी कहना चाहती थी बरी बेसब्री से!
यशिधा देवी : अजय बेटा! तुझे कल के प्रोग्राम में देखा तो मुझे अपने जवानी का आलम नजर अगाई! ईश!! यह में क्या क्या कह बैठी!
यशिधा को इस बात का पता ही नहीं थी के उसी कमरे में खुद गाजिधरी खड़ी थी हो मन ही मन कुछ मीठी मिठी मंत्र जप रही थी। उसकी आंखों में शैतानी वाली शरारत थी, लेकिन सूरत पे अप्सराओं वह वाली भोलापन! अजय को अपने दादी की कहीं गई हर एक बात बेहद अजीब लग रहा था! लेकिन जिस्म में एक हुलचुल हो रहा था! एक गुदगुदी जैसा!
यशोधा देवी : मेरा बच्चा! एक दिन हसान करदे इस बुढ़िया पे! बस एक बार मुझे अपने ही जवानी का प्रतिबिंब दिखा दे!!!! (लज्जा के मारे जिस्म में एक हलचल सी होने लगी)
अजय : (थोड़ा परेशान होता) म मतलब??? आप चाहती क्या है दादी??
यशोधा उठके अपनी अलमारी से एक पुरानी मस्त हरा रंग की साड़ी और ब्लाउस के आती हुई बड़ी अदा के साथ अजय के हाथो में थाम दिया। उस सारी के स्पर्श से अजय का जिस्म कांप उठा, ना चाहते हुए भी उसके लिंग में कुछ हलचल सी होने लगी। आंखे नम होने लगा शर्म के मारे!
अजय : दादी! में...... कैसे.... में...
यासिधा देवी अपनी हाथ को उसके जांघ पर रखने के चक्कर में उसके जागृत होता लिंग को स्पर्श कर लिया। एक करेंट दौड़ गई उस बूढ़ी औरत के जिस्म पे। लेकिन यह क्या, एक मज़ाक से की गई बात सर उसका पोता इतना उत्तेजित क्यों ही गया?
दादी पोता एक दूसरे को देखते रहे और यशोधा नाराज़ होती हुई घुस्से से बोल उठी "यह क्या अजय!!!!!! उठ यहां से!! बेशरम!!"
अजय घबरा गया और हाथ में सारी और ब्लाउस लिए खड़ा हो गया। लेकिन पैंट में लिंग है कि कोई भी समझौता नहीं की थी! वोह तो बस......
अजय का चेहरा सफेद हो गया और यशोधा घुस्से से बोल परी "क्या तुझे यह सब अच्छा लगता है????? हाई दैया!!!!"। वोह इस नई खेल में एक रोमांच की अनुभव करने लगी और एक दरोगा कि तरह अपने पोते को डांट ने लगी।
अजय : दादी! में!! दरअसल.....
याशिधा देवी : चुप हो जा!! अगर तू चाहता है के मेरा घुस्सा कम हो, तो निकल जा मेरे कमरे से!!!
अजय : नहीं दादी! आप जो देखना चाहती है, में दिखाऊंगा!! (अपने हाथ में थामे सारी और ब्लाउस लिए वॉशरूम भाग गया)
यशोदा देवी अपनी नजर अपने आइने की और देखने लगी जिसमें गजीधरी प्रकट हो चुकी थी। दोनों औरतें एक दूसरे को देखे कामुक अदा से मुस्कुरा उठी। जी हां! दोस्तों, गहिधरी की मुलाकात हो चुकी थी यशोधा से!
यशोधा देवी : (बरी अदा के साथ) हाए राम! मोरे मईया! मेरा तो संसार भ्रष्ट हो गया री!! (झूठी घुस्से में) यह आज कल के लोंदे लौंडिया बनना चाहती है!!!!! हाय!!!
गहोधरी : बेचारे को लिपस्टिक और पाउडर में दे देते! कैसी दादी है आप!! (नाटक करती हुई) अपने ही पोते को लौंडिया बना दिया!
यशोधा : हाय!!! (उंगली को दांतो तकर काटते) बहुत बुरी हूं में!!
दोनों औरतें हंस देते है धीरे से और गाहिधरी मन में सोचने लगी "अरे मादा तो श्री कृष्ण भी हुए थे गोपियों के हसी मज़ाक में! और यह आजकल के लोंदे!" इतना सोचना था कि वोह आइने में से गायब हो गई। कुछ ही पलों के बाद वॉशरूम का दरवाजा खुल गया और यशोधा की सासें तेज़ हो गई।
वहा दूसरे और ससुर के पसीने से नहके आशा जैसे तरो ताज़ा हो गई, वह एक साधारण सी सारी पहने रसोई में घुसी तो सामने आके खड़ी हुई नमिता! बदन में से पसीने के बू वोह भी ताज़ा ताज़ा! दरअसल उसे सुबह सुबह से नित्य योग करने की आदत थी, नतीजा यह थी के उसकी बदन सुडौल और फुर्तीला थी! लेकिन अब तो कल की घटना के बाद उसके बदन को अब अपने ही पसीने का चस्का लग गई थी।
मा बेटी दोनों पसीने के स्पर्श के बाद सामने सामने खड़े रहे! फर्क यह था के एक अपने ससुर के नमक में भीगी हुई थी, तो दूसरी अपने है नमक की दीवानी हो गई थी। बेटी की पसीने के बू से आशा थोड़ी परेशान दिखी, लेकिन अपनी की गई हरकत को याद करके कुछ ना बोली!
नमिता : मा! भूख लगी है! हलवा बना दो ना प्लीज़!!
आशा : हा बेटा! ज़रूर! (मज़ाक में) बेटी यह कौनसी साबुन इस्तेमाल कर ली तूने! एकदम नमक जैसी गंध आ रही है!
नमिता : (शरारत में) मा! आपका भी बुरा नहीं है! (मा के करीब जाकर सोंघती हुई) हम! मजेदार लगता है!
आशा भी अपनी बेटी को सोंघने लगी! "तेरा तो कुछ ज़्यादा ही है! लेकिन काफी नमकीन लग रहा है!" अपने मा के कथन से नमिता को एक शरारत सुझी और वोह बरी अदा से अपने मा के गर्दन से ताजी तजी नमकीन पानी को अपने मस्त गुलाबी लबों से चख ली! ऐसे अनुभव से आशा की बदन में एक सिहरन उठी।
नमिता : आप चाहो तो मेरा भी चख्के देख सकती हो मा!
आशा की दिल ज़ोर से धड़क उठी और शर्म के मारे वहा से चल परी हलवा बनाने के लिए।
जो उन दोनों को मालूम नहीं थी, वह यह था के इनके हरकत को एक शक्स बरी शिधक्त से देख रहा था थोड़े ही दूर से।
.......
वहा यशोधा अपने कमरे में बेचैनी से सामने देखने लगी के एक बेहद हसीन यूविका हरी रंग के सारी और ब्लाउस पहने खड़ी थी, बाल बांधा हुआ और अदाएं शर्मीली! यह बलखाती जवानी और कोई नहीं बल्कि अजय थी। एक बात तो तैर थी के दो चीजों से यह सजधज सफ्ल हुआ था। पहली बात अजय के लंबे बाल, हो हमेशा स्टाइल से वोह पोनी में रखता था और दूसरा उसका चेहरा करीब काफी हद तक अपने दादी से मिलता जुलता था।
अजय के इस हुलिया को देखकर यशोधा के मुंह से निकल गई "हाय! में मर जाओ! वारि वारी ही गई! आ अजय! यह पास बैठ मेरे!"
अजय भावुक होके : दादी! आपका दिल रखना मेरा स्वाबहग्य है!
यशोधा (पोते की गले लगती हुई) हाय मा!! एक दम मेरी प्रतिबिंब है तू!!!!! उफ्फ!
दूर से ऐसे लगा मानो एक औरत एक और औरत के गले लग रही हो। अजय थोरा गुदगुदाने लगा इस पोषक में और मन में यह दर था के कहीं झट से कमरे में कहीं उसके दादाजी ना टपक परे! उसके दिल की धड़कन तेज हो गई "दादी! के क्या में वापस बदल...... "
इससे पहले वोह कुछ केह पाता, यशोधा उसके होंठों की अपने उंगली से शांत कर देती है! "नहीं मेरा बच्चा! अपनी लाडली दादी के और एक बात मानले! (शर्मा के) ऐसे ही कुछ देर रह जा!!"
इस वाक्य से अजय का दिल ही नहीं धरका, बल्कि उसके लिंग सीधा टेंट की तरह खड़ा हो गया जिसका सारी में भी अनुमान लगाया जा सकता था ।
_______________
अजय : में कुछ समझ नही दड़ीमा!
यशोधा देवी को जैसे डायबाएतिस होने चला था अपने पोते के मासूमियत पर। उन्होंने फिर से उसके दूसरे गाल को भी चूम लिए और सोफे में से ऊपर उठती हुई अपने पोते को अपने कमरे में आने का इशारा किया।
जल्द ही अजय अपने दादिमा के पीछे पीछे उनके कमरे की और जाने लगा। क्योंकि रामधीर भी इस वक्त लाइब्रेरी वाले कमरे में किताब ने मगन था, प्राइवेसी में कोई प्रॉब्लम नहीं था। अजय और यशोधा देवी कमरे में पहुंच जाते है और यशोधा देवी सारे खिड़कियां और पर्दे बंद करने लगी। अजय सोच में पड़ गया।
यशोधा देवी : अजय, तुझे कुछ बचपन के मजेदार किस्से सुनता हूं! लेकिन जब तक मै ना ख़तम करू, कोई सवाल मत करना, समझा? (प्यार से)
अजय : (मुस्कुराकर) दादी! कहानी आप से सुने हुए बरसो हो गए! बचपन की बात ही अलग थी। (अपने दाड़ीमा के मोटे मोटे सारी में लिपटी जांघों पर सर रखता हुआ लेट गया)
यशोधा देवी : एक बार तो किया हुआ अजय! (थोड़ा शरमके) हाए मुझे शरम आती है बोलने में! (पुरानी अंदाज़ में पल्लू को मूह पर रखती हुई) एक बार....
अजय : (अपने दादी के पल्लू से खेलने लगा) अब बोलिए भी तो! मेरी प्यारी दाडिमा!
यशोधा देवी : अरे मेरे बच्चा! (गाल को सहलाती हुई) एक बार जब तू बहुत छोटा सा था, हमारे घर पे एक छोटे छोटे बच्चो की फांसी ड्रेस एग्जीबिशन हुए थी, फंक्शन के दौरान तुझे एक बार मैंने और तेरी मा ने मिलके एक मस्त मीठी सी लाल रंग की फ्रॉक पहना दी थी। (शर्मीली अंदाज़ में खिखिला उठी)
अजय : (हैरान) क्या???? सच??
यशोधा देवी : अरे हां! तेरा बाप बहुत नाराज़ हो गया था! लेकिन हाय!!! कितना प्यारा लग रहा था तू! ऐसा लगा जैसे राहुल को एक और बहन मिल गया हो! (ना जाने क्यों वह यह सब पुरानी बातों में खी गई थी)
अजय : दादी आज अचानक यह सा.....
यशिधा देवी अपने पोते के लबों पर हाथ रख देती है और एक अजीब कामुक अंदाज़ में अपने दांतो तले लबों को मसल दिया। उसके मन में कहीं अनकही उमंगे जग उठी और अपने पोते को उठा के वह खुद उसके रूबरू बैठ गई और उसके चेहरे को अपनी हाथ में थाम ली । अजय के धड़कन कुछ ज़्यादा तेज़ हो गया, कुछ तो था जो उसकी दादी कहना चाहती थी बरी बेसब्री से!
यशिधा देवी : अजय बेटा! तुझे कल के प्रोग्राम में देखा तो मुझे अपने जवानी का आलम नजर अगाई! ईश!! यह में क्या क्या कह बैठी!
यशिधा को इस बात का पता ही नहीं थी के उसी कमरे में खुद गाजिधरी खड़ी थी हो मन ही मन कुछ मीठी मिठी मंत्र जप रही थी। उसकी आंखों में शैतानी वाली शरारत थी, लेकिन सूरत पे अप्सराओं वह वाली भोलापन! अजय को अपने दादी की कहीं गई हर एक बात बेहद अजीब लग रहा था! लेकिन जिस्म में एक हुलचुल हो रहा था! एक गुदगुदी जैसा!
यशोधा देवी : मेरा बच्चा! एक दिन हसान करदे इस बुढ़िया पे! बस एक बार मुझे अपने ही जवानी का प्रतिबिंब दिखा दे!!!! (लज्जा के मारे जिस्म में एक हलचल सी होने लगी)
अजय : (थोड़ा परेशान होता) म मतलब??? आप चाहती क्या है दादी??
यशोधा उठके अपनी अलमारी से एक पुरानी मस्त हरा रंग की साड़ी और ब्लाउस के आती हुई बड़ी अदा के साथ अजय के हाथो में थाम दिया। उस सारी के स्पर्श से अजय का जिस्म कांप उठा, ना चाहते हुए भी उसके लिंग में कुछ हलचल सी होने लगी। आंखे नम होने लगा शर्म के मारे!
अजय : दादी! में...... कैसे.... में...
यासिधा देवी अपनी हाथ को उसके जांघ पर रखने के चक्कर में उसके जागृत होता लिंग को स्पर्श कर लिया। एक करेंट दौड़ गई उस बूढ़ी औरत के जिस्म पे। लेकिन यह क्या, एक मज़ाक से की गई बात सर उसका पोता इतना उत्तेजित क्यों ही गया?
दादी पोता एक दूसरे को देखते रहे और यशोधा नाराज़ होती हुई घुस्से से बोल उठी "यह क्या अजय!!!!!! उठ यहां से!! बेशरम!!"
अजय घबरा गया और हाथ में सारी और ब्लाउस लिए खड़ा हो गया। लेकिन पैंट में लिंग है कि कोई भी समझौता नहीं की थी! वोह तो बस......
अजय का चेहरा सफेद हो गया और यशोधा घुस्से से बोल परी "क्या तुझे यह सब अच्छा लगता है????? हाई दैया!!!!"। वोह इस नई खेल में एक रोमांच की अनुभव करने लगी और एक दरोगा कि तरह अपने पोते को डांट ने लगी।
अजय : दादी! में!! दरअसल.....
याशिधा देवी : चुप हो जा!! अगर तू चाहता है के मेरा घुस्सा कम हो, तो निकल जा मेरे कमरे से!!!
अजय : नहीं दादी! आप जो देखना चाहती है, में दिखाऊंगा!! (अपने हाथ में थामे सारी और ब्लाउस लिए वॉशरूम भाग गया)
यशोदा देवी अपनी नजर अपने आइने की और देखने लगी जिसमें गजीधरी प्रकट हो चुकी थी। दोनों औरतें एक दूसरे को देखे कामुक अदा से मुस्कुरा उठी। जी हां! दोस्तों, गहिधरी की मुलाकात हो चुकी थी यशोधा से!
यशोधा देवी : (बरी अदा के साथ) हाए राम! मोरे मईया! मेरा तो संसार भ्रष्ट हो गया री!! (झूठी घुस्से में) यह आज कल के लोंदे लौंडिया बनना चाहती है!!!!! हाय!!!
गहोधरी : बेचारे को लिपस्टिक और पाउडर में दे देते! कैसी दादी है आप!! (नाटक करती हुई) अपने ही पोते को लौंडिया बना दिया!
यशोधा : हाय!!! (उंगली को दांतो तकर काटते) बहुत बुरी हूं में!!
दोनों औरतें हंस देते है धीरे से और गाहिधरी मन में सोचने लगी "अरे मादा तो श्री कृष्ण भी हुए थे गोपियों के हसी मज़ाक में! और यह आजकल के लोंदे!" इतना सोचना था कि वोह आइने में से गायब हो गई। कुछ ही पलों के बाद वॉशरूम का दरवाजा खुल गया और यशोधा की सासें तेज़ हो गई।
वहा दूसरे और ससुर के पसीने से नहके आशा जैसे तरो ताज़ा हो गई, वह एक साधारण सी सारी पहने रसोई में घुसी तो सामने आके खड़ी हुई नमिता! बदन में से पसीने के बू वोह भी ताज़ा ताज़ा! दरअसल उसे सुबह सुबह से नित्य योग करने की आदत थी, नतीजा यह थी के उसकी बदन सुडौल और फुर्तीला थी! लेकिन अब तो कल की घटना के बाद उसके बदन को अब अपने ही पसीने का चस्का लग गई थी।
मा बेटी दोनों पसीने के स्पर्श के बाद सामने सामने खड़े रहे! फर्क यह था के एक अपने ससुर के नमक में भीगी हुई थी, तो दूसरी अपने है नमक की दीवानी हो गई थी। बेटी की पसीने के बू से आशा थोड़ी परेशान दिखी, लेकिन अपनी की गई हरकत को याद करके कुछ ना बोली!
नमिता : मा! भूख लगी है! हलवा बना दो ना प्लीज़!!
आशा : हा बेटा! ज़रूर! (मज़ाक में) बेटी यह कौनसी साबुन इस्तेमाल कर ली तूने! एकदम नमक जैसी गंध आ रही है!
नमिता : (शरारत में) मा! आपका भी बुरा नहीं है! (मा के करीब जाकर सोंघती हुई) हम! मजेदार लगता है!
आशा भी अपनी बेटी को सोंघने लगी! "तेरा तो कुछ ज़्यादा ही है! लेकिन काफी नमकीन लग रहा है!" अपने मा के कथन से नमिता को एक शरारत सुझी और वोह बरी अदा से अपने मा के गर्दन से ताजी तजी नमकीन पानी को अपने मस्त गुलाबी लबों से चख ली! ऐसे अनुभव से आशा की बदन में एक सिहरन उठी।
नमिता : आप चाहो तो मेरा भी चख्के देख सकती हो मा!
आशा की दिल ज़ोर से धड़क उठी और शर्म के मारे वहा से चल परी हलवा बनाने के लिए।
जो उन दोनों को मालूम नहीं थी, वह यह था के इनके हरकत को एक शक्स बरी शिधक्त से देख रहा था थोड़े ही दूर से।
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वहा यशोधा अपने कमरे में बेचैनी से सामने देखने लगी के एक बेहद हसीन यूविका हरी रंग के सारी और ब्लाउस पहने खड़ी थी, बाल बांधा हुआ और अदाएं शर्मीली! यह बलखाती जवानी और कोई नहीं बल्कि अजय थी। एक बात तो तैर थी के दो चीजों से यह सजधज सफ्ल हुआ था। पहली बात अजय के लंबे बाल, हो हमेशा स्टाइल से वोह पोनी में रखता था और दूसरा उसका चेहरा करीब काफी हद तक अपने दादी से मिलता जुलता था।
अजय के इस हुलिया को देखकर यशोधा के मुंह से निकल गई "हाय! में मर जाओ! वारि वारी ही गई! आ अजय! यह पास बैठ मेरे!"
अजय भावुक होके : दादी! आपका दिल रखना मेरा स्वाबहग्य है!
यशोधा (पोते की गले लगती हुई) हाय मा!! एक दम मेरी प्रतिबिंब है तू!!!!! उफ्फ!
दूर से ऐसे लगा मानो एक औरत एक और औरत के गले लग रही हो। अजय थोरा गुदगुदाने लगा इस पोषक में और मन में यह दर था के कहीं झट से कमरे में कहीं उसके दादाजी ना टपक परे! उसके दिल की धड़कन तेज हो गई "दादी! के क्या में वापस बदल...... "
इससे पहले वोह कुछ केह पाता, यशोधा उसके होंठों की अपने उंगली से शांत कर देती है! "नहीं मेरा बच्चा! अपनी लाडली दादी के और एक बात मानले! (शर्मा के) ऐसे ही कुछ देर रह जा!!"
इस वाक्य से अजय का दिल ही नहीं धरका, बल्कि उसके लिंग सीधा टेंट की तरह खड़ा हो गया जिसका सारी में भी अनुमान लगाया जा सकता था ।
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