desiaks
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भाग ११)
मैं अपने कमरे में बैठा हाथ में फ़ोटो लिए चुपचाप उस फ़ोटो को देखे जा रहा था और नेत्रों से अश्रुधरा अविरल बहे जा रहे थे | जो कभी भूले से भी कल्पना नहीं की थी मैंने आज वो किसी बुरे सपने के हकीकत में बदल जाने के जैसा मेरे आँखों के सामने फ़ोटो के रूप में मेरे हाथों में था | मैं असहाय सा चुपचाप खुद पे आँसू बहाने के अलावा कुछ भी करने की स्थिति में नहीं था |
*फ्लैशबैक*
उस रात चाची को वैसी स्थिति में देख कर मैं आतंक से भर गया था पर चूँकि चाची से मेरा बहुत लगाव भी था इसलिए खून भी खोल चुका था मेरा | मन ही मन ठान लिया था कि, ‘अब बस, बहुत हो गया ... अब इन लोगों को सबक सिखाना ही होगा..|’ गुस्से से दांत भींचते हुए मैं आहिस्ते से दीवार से उतरा और गली पार कर घर घुसा | करीब दस मिनट तक डोर बेल बजने के बाद चाची ने दरवाज़ा खोला था | भयानक हश्र था उनका | बाल बिखरे हुए... होंठों के साइड में हल्की लालिमा... शायद खून हो... कंधे पर के ब्लाउज बॉर्डर थोड़ा फटा हुआ... कुछेक नाखूनों के निशान...गले, कंधे और सीने के ऊपरी हिस्से पर | किसी तरह साड़ी लपेटी हुई थी.... आँख नहीं मिला रही थी... पर देखी मुझे तीरछि नज़रों से | मैं बिना उनकी नज़रों में आये उनके शरीर का हाल सामने से देख कर सीधे ऊपर अपने कमरे में चला गया | दुःख और प्रचंड गुस्से से भरा था मैं... मेरी रानी जैसी चाची को कोई ऐसे कर रहा है और मैं चुप हूँ?? मुझे चाची बहुत अच्छी लगती थी और बहुत पसंद भी थी | उनकी जैसी शारीरिक गठन और रूप वाली बहुत कम ही पाए जाते हैं | जब भी उनकी क्लीवेज नज़र आ जाए तो दोनों चूचियों के बीच मुँह घुसा देने का मन करे और अगर गांड पर नज़र जाए तो दो-तीन अच्छे से थप्पड़ मार कर मसल देने का मन करे... कमर के आस पास भी उपयुक्त मात्रा में वसा होने के कारण उनकी कमर भी अद्भुत सेक्सी लगती थी | जी करता था की घंटों उनके नाभि को चूमता हुआ कमर पे सिर डाले सोया रहूँ | पीठ की बात करना तो दूर, सोचने भर से लंड बाबाजी अपना सर उठाने लगते हैं ... साफ़..बेदाग़... मांसल...गदराया पीठ को तो जैसे घंटों चूमने, चाटने और दबोचने का मन होता था....
अगले पूरे दिन ना तो चाची को कोई फ़ोन आया और ना ही किसी भी माध्यम से कोई सन्देश.. चाची का भी उनकी तरफ़ से यह पुरज़ोर कोशिश रही की मुझे या उनके पति को किसी भी तरह का कोई संदेह न हो.... मैं किसी भी तरह बहाने कर कर चाची के आस पास ही बना रहता.. पर ऐसे की चाची को भी मुझ पर संदेह ना हो | सिर्फ एक दिन ही नहीं.. बल्कि तीन-चार दिन बीत गए ऐसे ही.. इतने दिनों में चाची एक बार के लिए भी घर से बाहर कदम नहीं रखी | थोड़ी सहमी सहमी सी ज़रूर होती पर हमेशा एक मोहक सी मुस्कान लिए बातें की | पूरी एक घरेलू औरत की तरह नज़र आई .. पति परायण एवं कर्तव्य निष्ठ... पर मेरा जासूस दिमाग कह रहा था की यह सब आने वाले किसी बड़ी सी चौंकाने वाले घटना के पहले की शांति है.... तैयारी है....|
पर मैं किसी घटना या फिर यूँ कहे की दुर्घटना की प्रतीक्षा किये बैठे नहीं रह सकता.. कुछ तो करना था .. इसलिए समय मिलते ही स्कूटर लिए उस मोहल्ले की तरफ़ निकल जाता था जहां चाची को पहली बार देखा था... उसी टेलर के दुकान में... | उसी चाय दुकान में कई घंटे निकाल देता था चाय सिगरेट लेते लेते | चाय वाले ने कई बार पूछा भी कि, किसी से कोई काम है क्या.. पहले कभी यहाँ आते नहीं देखा ...वगेरह वगेरह.. | किसी को कोई शक न हो इसलिए कुछेक बार अपने किसी दोस्त को साथ लिए चलता .. शायद चाय वाले ने भी मुझे उस टेलर दुकान की तरफ़ कई बार घूरते देखा था .. पर कहा कुछ नहीं |
मुझे भी कुछ खास चहल पहल नहीं दिख रही थी कुछ दिनों से .. जेंट्स और लेडीज आती.. कपड़ों के नाप देने... कपड़े देने..लेने.. इसके अलावा और कुछ होता नहीं दिखा | कुछेक कस्टमर से पूछा भी था की टेलर कैसा है... बदले में अलग अलग जवाब सुनने को मिले थें... कोई कहता ‘अच्छा है’.. तो कोई कहता ‘ठीक ही है’ ... तो कोई कहता .. ‘अजी, काम चल जाता है |’
काम (जासूसी) तो मेरा भी अच्छा चल रहा था पर कहते हैं की जासूसी में ज़्यादा उछल कूद बाद में बहुत भारी पड़ जाता है | और यही हुआ भी |
एक दिन अचानक चाची को एक पार्टी में जाना था | ‘वीमेन’स ग्रुप’ ने ऑर्गनाइज़ किया था | शहर के कुछ बड़े लोग भी आने वाले थे | शाम से ही चाची तैयार होने लगी थी ... मैं और चाचा भी जाने वाले थे | चाची ने कहा था की हमें लेने ग्रुप की तरफ़ से ही गाड़ी भेजी जाएगी.. और ठीक सात बजे गाड़ी आई भी | मर्सीडिज़ थी | चाचा की तो आँखें ही चौड़ी हो गयी थी और चाची को यकीं ही नहीं हो रहा था | आँखें तो मेरी भी चौड़ी हो गई थी पर गाड़ी नहीं ... चाची को देख कर ... क्या लग रही थी ! जब कमरे से सज कर निकली तभी से मेरी आँखें सिर्फ चाची पर ही थी... इतना ताड़े जा रहा था की चाची को पता तो लगा ही ... साथ ही शर्मा के लाल हो गई थी |
पारदर्शी साड़ी, स्लीवेलेस – बैकलेस डीप नेक ब्लाउज... जिसमे से आधे से ज़्यादा चूचियां बाहर की तरफ़ निकली आ रही थी.. और उसपे भी वह अत्यंत चुंबकीय आकर्षण जैसा, सुन्दर, गोरा, छह इंच लम्बा क्लीवेज के दर्शन होते रहना... गोरी बाहों में.. हाथों में चूड़ियों की छनछन खन खन ...आहा... शायद हम जैसो के लिए यही स्वर्ग है | चाचा के लिए एक तो यह सब कॉमन हो चूका था और दूसरा वो माइंड नहीं करते थे |
पार्टी में जबरदस्त फन हुआ... डांस हुआ.. हंसी मजाक हुआ... खाना पीना चला.. चाची के डांस ने तो सब को बरबस उनका दीवाना बना दिया था.. उनके हरेक थिरकन पर छलक कर बाहर आते उभार की गोलाईयां सबको होंठों पर जीभ चलाने के लिए मजबूर कर देते थे |
ड्रिंक का दौर चल रहा था ... पार्टी अपने पूरे शवाब पर थी.. चाचा भी कुछ लोगों के साथ मिलकर एक कोने में ड्रिंक करने में मशरूफ हो गए थे | चाची अपनी सहेलियों संग मजे कर रही थी ... मैं भी ड्रिंक कर रहा था पर आँखें मेरी चाची पर ही थी.... ऐसी अप्सरा को कौन भला अपने आँखों के आगे से ओझल होने देता है ?! अभी मैं उनके रूप लावण्य को आँखों से चख ही रहा था की तभी देखा की दो लोग चाची की तरफ़ बढे.. उनको देखते ही चाची की चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगीं | रंग सफ़ेद सा पड़ गया | शायद वो उन लोगों को जानती थी और उनके यहाँ होने की कल्पना नहीं की थी | उन दोनों ने चाची को कुछ कहा और चाची उनके साथ एक तरफ़ चली गई |
पार्टी वाले जगह से निकल कर वे तीनो बाहर लॉन में गए... वहां जहां थोड़ा अँधेरा था | मैं उनके पीछे ही लगा था | वे दोनो चाची को जैसे कुछ समझा रहे थे ... चाची परेशां, चिंतित और भय मिश्रित चेहरा लिए उनके हरेक बात पर सर हिला कर हाँ में जवाब दे रही थी | थोड़ी देर बात होने के बाद उनमें से एक ने इशारा कर के चाची को सड़क के दूसरी तरफ़ खड़े के बड़ी सी गाड़ी की ओर दिखाया... फिर गाड़ी की ओर इशारा किया... गाड़ी का पीछे का शीशा नीचे हुआ... देखा एक कोई शेख़ सा आदमी बैठा आँखों पर काले चश्मे लगाए उन लोगों की ओर देख रहा है.. और स्माइल भी है उसके होंठों पर... कुटिल मुस्कान... चाची देख कर सहम गई.. फ़ौरन उन दोनों की ओर पलट कर कुछ मना किया... पर दोनों नहीं माने... थोड़ी देर कुछ और कहने के बाद एक लिफाफा पकड़ाया चाची के हाथों और वहां से चले गए.. उनके जाने के बाद चाची ने लिफ़ाफ़ा बिना देखे ही अपने हैण्डबैग नुमा पर्स में डाला और फिर पार्टी वाले जगह की ओर चली दी... जाते वक़्त एक बार उन्होंने अपने आँखों पर उँगलियाँ चलाई थीं |
मैं भी पलट कर जैसे ही जाने लगा, ऐसा लगा मानो कोई मेरे पीछे खड़े मुझे देख रहा है और फ़ौरन वहां से हट गया ... मैं दौड़ कर उस जगह पहुँचा पर दूर दूर तक कोई नहीं था ... भययुक्त आशंकाओं से घिरे मन को सँभालते हुए मैं वापस पार्टी वाले जगह पहुँच गया...|
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इस घटना के करीब सप्ताह भर बाद...
सुबह का टाइम... चाचा ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे हैं... चाची किचेन में है... मैं पेपर पढ़ रहा था ... तभी डोर बेल बजी... मैंने उठ कर दरवाज़ा खोला... देखा एक लड़का है.. पोस्टमैन वाले यूनिफार्म में... हमारा रोज़ का पोस्टमैन नहीं था ये... शायद ये लड़का नया ज्वाइन किया है... मुझे एक लिफ़ाफ़ा हाथ में दिया और सलाम करते हुए चला गया... आश्चर्य.... साइन वगेरह कुछ लिए बिना ही चला गया!... लिफ़ाफे पर लिखा देखा... ‘सिर्फ तुम्हारे लिए’....
अपने रूम आ कर मैंने लिफ़ाफ़ा खोला... एक कागज़ का टुकड़ा मिला... मुड़ा हुआ ... खोल कर पढने लगा..
“ये ख़ास तुम्हारे लिए है... बहुत उतावले लगते हो... बहुत सी चीज़ों को जल्द ही जान लेना चाहते हो... इतनी जल्दबाजी अच्छी बात नहीं ... उम्मीद है ..जो भेजा है उसे देख कर फड़फ़ड़ाना बंद कर दोगे ... | और अगर नहीं किये... तो अगली बार इससे भी ज़्यादा बहुत कुछ मिल सकता है तुम्हे..| आगे तुम्हारी मर्ज़ी...|’
मैं कौतुहलवश जल्दी से लिफ़ाफ़े में रखे एक और कागज़ के टुकड़े को निकाला.. मुड़ा हुआ था ये भी .. पर शायद इसमें कुछ था | कागज़ को खोला.. देखा तीन फ़ोटो रखे हैं अंदर...
एक औरत के हैं वो फ़ोटो...
१)एक में बिस्तर पर लेटी ही है... बाएं करवट लेकर.. साड़ी उसके घुटनों तक पहुँच गए हैं | पेट और कमर का काफ़ी हिस्सा दिख रहा है .... चूची का भी कुछ हिस्सा पल्लू के नीचे से दिख रहा है |
२)उसी औरत का क्लीवेज... साड़ी पल्लू बाएं कंधे के एकदम बाएँ तरफ़ है.... और फलस्वरुप, उस महिला के गोरे उन्नत स्तनयुगल पूरी मादकता के साथ दिख रहे हैं.. अपने साथ .. अपने साथी ‘क्लीवेज’ को साथ लेकर ....
३)महिला का पीछे से फ़ोटो लिया गया है... डीप बैक कट से झांकते उसकी गोरी पीठ और गदरायी हुई... चौड़ी और थोड़ी उठी हुई गांड..
**फ़्लैशबैक एंड्स**
और अपने बिस्तर पर बैठा ...जार जार आँसू बहाए जा रहा मैं... फ़ोटो को एकटक देखता हुआ... अपनी किस्मत को कोसता... खुद को गाली दे रहा था | और ऐसा करता भी क्यों ना.... आख़िर वो तीनों फ़ोटो मेरी ‘माँ’ की थी...!........|
क्रमशः
मैं अपने कमरे में बैठा हाथ में फ़ोटो लिए चुपचाप उस फ़ोटो को देखे जा रहा था और नेत्रों से अश्रुधरा अविरल बहे जा रहे थे | जो कभी भूले से भी कल्पना नहीं की थी मैंने आज वो किसी बुरे सपने के हकीकत में बदल जाने के जैसा मेरे आँखों के सामने फ़ोटो के रूप में मेरे हाथों में था | मैं असहाय सा चुपचाप खुद पे आँसू बहाने के अलावा कुछ भी करने की स्थिति में नहीं था |
*फ्लैशबैक*
उस रात चाची को वैसी स्थिति में देख कर मैं आतंक से भर गया था पर चूँकि चाची से मेरा बहुत लगाव भी था इसलिए खून भी खोल चुका था मेरा | मन ही मन ठान लिया था कि, ‘अब बस, बहुत हो गया ... अब इन लोगों को सबक सिखाना ही होगा..|’ गुस्से से दांत भींचते हुए मैं आहिस्ते से दीवार से उतरा और गली पार कर घर घुसा | करीब दस मिनट तक डोर बेल बजने के बाद चाची ने दरवाज़ा खोला था | भयानक हश्र था उनका | बाल बिखरे हुए... होंठों के साइड में हल्की लालिमा... शायद खून हो... कंधे पर के ब्लाउज बॉर्डर थोड़ा फटा हुआ... कुछेक नाखूनों के निशान...गले, कंधे और सीने के ऊपरी हिस्से पर | किसी तरह साड़ी लपेटी हुई थी.... आँख नहीं मिला रही थी... पर देखी मुझे तीरछि नज़रों से | मैं बिना उनकी नज़रों में आये उनके शरीर का हाल सामने से देख कर सीधे ऊपर अपने कमरे में चला गया | दुःख और प्रचंड गुस्से से भरा था मैं... मेरी रानी जैसी चाची को कोई ऐसे कर रहा है और मैं चुप हूँ?? मुझे चाची बहुत अच्छी लगती थी और बहुत पसंद भी थी | उनकी जैसी शारीरिक गठन और रूप वाली बहुत कम ही पाए जाते हैं | जब भी उनकी क्लीवेज नज़र आ जाए तो दोनों चूचियों के बीच मुँह घुसा देने का मन करे और अगर गांड पर नज़र जाए तो दो-तीन अच्छे से थप्पड़ मार कर मसल देने का मन करे... कमर के आस पास भी उपयुक्त मात्रा में वसा होने के कारण उनकी कमर भी अद्भुत सेक्सी लगती थी | जी करता था की घंटों उनके नाभि को चूमता हुआ कमर पे सिर डाले सोया रहूँ | पीठ की बात करना तो दूर, सोचने भर से लंड बाबाजी अपना सर उठाने लगते हैं ... साफ़..बेदाग़... मांसल...गदराया पीठ को तो जैसे घंटों चूमने, चाटने और दबोचने का मन होता था....
अगले पूरे दिन ना तो चाची को कोई फ़ोन आया और ना ही किसी भी माध्यम से कोई सन्देश.. चाची का भी उनकी तरफ़ से यह पुरज़ोर कोशिश रही की मुझे या उनके पति को किसी भी तरह का कोई संदेह न हो.... मैं किसी भी तरह बहाने कर कर चाची के आस पास ही बना रहता.. पर ऐसे की चाची को भी मुझ पर संदेह ना हो | सिर्फ एक दिन ही नहीं.. बल्कि तीन-चार दिन बीत गए ऐसे ही.. इतने दिनों में चाची एक बार के लिए भी घर से बाहर कदम नहीं रखी | थोड़ी सहमी सहमी सी ज़रूर होती पर हमेशा एक मोहक सी मुस्कान लिए बातें की | पूरी एक घरेलू औरत की तरह नज़र आई .. पति परायण एवं कर्तव्य निष्ठ... पर मेरा जासूस दिमाग कह रहा था की यह सब आने वाले किसी बड़ी सी चौंकाने वाले घटना के पहले की शांति है.... तैयारी है....|
पर मैं किसी घटना या फिर यूँ कहे की दुर्घटना की प्रतीक्षा किये बैठे नहीं रह सकता.. कुछ तो करना था .. इसलिए समय मिलते ही स्कूटर लिए उस मोहल्ले की तरफ़ निकल जाता था जहां चाची को पहली बार देखा था... उसी टेलर के दुकान में... | उसी चाय दुकान में कई घंटे निकाल देता था चाय सिगरेट लेते लेते | चाय वाले ने कई बार पूछा भी कि, किसी से कोई काम है क्या.. पहले कभी यहाँ आते नहीं देखा ...वगेरह वगेरह.. | किसी को कोई शक न हो इसलिए कुछेक बार अपने किसी दोस्त को साथ लिए चलता .. शायद चाय वाले ने भी मुझे उस टेलर दुकान की तरफ़ कई बार घूरते देखा था .. पर कहा कुछ नहीं |
मुझे भी कुछ खास चहल पहल नहीं दिख रही थी कुछ दिनों से .. जेंट्स और लेडीज आती.. कपड़ों के नाप देने... कपड़े देने..लेने.. इसके अलावा और कुछ होता नहीं दिखा | कुछेक कस्टमर से पूछा भी था की टेलर कैसा है... बदले में अलग अलग जवाब सुनने को मिले थें... कोई कहता ‘अच्छा है’.. तो कोई कहता ‘ठीक ही है’ ... तो कोई कहता .. ‘अजी, काम चल जाता है |’
काम (जासूसी) तो मेरा भी अच्छा चल रहा था पर कहते हैं की जासूसी में ज़्यादा उछल कूद बाद में बहुत भारी पड़ जाता है | और यही हुआ भी |
एक दिन अचानक चाची को एक पार्टी में जाना था | ‘वीमेन’स ग्रुप’ ने ऑर्गनाइज़ किया था | शहर के कुछ बड़े लोग भी आने वाले थे | शाम से ही चाची तैयार होने लगी थी ... मैं और चाचा भी जाने वाले थे | चाची ने कहा था की हमें लेने ग्रुप की तरफ़ से ही गाड़ी भेजी जाएगी.. और ठीक सात बजे गाड़ी आई भी | मर्सीडिज़ थी | चाचा की तो आँखें ही चौड़ी हो गयी थी और चाची को यकीं ही नहीं हो रहा था | आँखें तो मेरी भी चौड़ी हो गई थी पर गाड़ी नहीं ... चाची को देख कर ... क्या लग रही थी ! जब कमरे से सज कर निकली तभी से मेरी आँखें सिर्फ चाची पर ही थी... इतना ताड़े जा रहा था की चाची को पता तो लगा ही ... साथ ही शर्मा के लाल हो गई थी |
पारदर्शी साड़ी, स्लीवेलेस – बैकलेस डीप नेक ब्लाउज... जिसमे से आधे से ज़्यादा चूचियां बाहर की तरफ़ निकली आ रही थी.. और उसपे भी वह अत्यंत चुंबकीय आकर्षण जैसा, सुन्दर, गोरा, छह इंच लम्बा क्लीवेज के दर्शन होते रहना... गोरी बाहों में.. हाथों में चूड़ियों की छनछन खन खन ...आहा... शायद हम जैसो के लिए यही स्वर्ग है | चाचा के लिए एक तो यह सब कॉमन हो चूका था और दूसरा वो माइंड नहीं करते थे |
पार्टी में जबरदस्त फन हुआ... डांस हुआ.. हंसी मजाक हुआ... खाना पीना चला.. चाची के डांस ने तो सब को बरबस उनका दीवाना बना दिया था.. उनके हरेक थिरकन पर छलक कर बाहर आते उभार की गोलाईयां सबको होंठों पर जीभ चलाने के लिए मजबूर कर देते थे |
ड्रिंक का दौर चल रहा था ... पार्टी अपने पूरे शवाब पर थी.. चाचा भी कुछ लोगों के साथ मिलकर एक कोने में ड्रिंक करने में मशरूफ हो गए थे | चाची अपनी सहेलियों संग मजे कर रही थी ... मैं भी ड्रिंक कर रहा था पर आँखें मेरी चाची पर ही थी.... ऐसी अप्सरा को कौन भला अपने आँखों के आगे से ओझल होने देता है ?! अभी मैं उनके रूप लावण्य को आँखों से चख ही रहा था की तभी देखा की दो लोग चाची की तरफ़ बढे.. उनको देखते ही चाची की चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगीं | रंग सफ़ेद सा पड़ गया | शायद वो उन लोगों को जानती थी और उनके यहाँ होने की कल्पना नहीं की थी | उन दोनों ने चाची को कुछ कहा और चाची उनके साथ एक तरफ़ चली गई |
पार्टी वाले जगह से निकल कर वे तीनो बाहर लॉन में गए... वहां जहां थोड़ा अँधेरा था | मैं उनके पीछे ही लगा था | वे दोनो चाची को जैसे कुछ समझा रहे थे ... चाची परेशां, चिंतित और भय मिश्रित चेहरा लिए उनके हरेक बात पर सर हिला कर हाँ में जवाब दे रही थी | थोड़ी देर बात होने के बाद उनमें से एक ने इशारा कर के चाची को सड़क के दूसरी तरफ़ खड़े के बड़ी सी गाड़ी की ओर दिखाया... फिर गाड़ी की ओर इशारा किया... गाड़ी का पीछे का शीशा नीचे हुआ... देखा एक कोई शेख़ सा आदमी बैठा आँखों पर काले चश्मे लगाए उन लोगों की ओर देख रहा है.. और स्माइल भी है उसके होंठों पर... कुटिल मुस्कान... चाची देख कर सहम गई.. फ़ौरन उन दोनों की ओर पलट कर कुछ मना किया... पर दोनों नहीं माने... थोड़ी देर कुछ और कहने के बाद एक लिफाफा पकड़ाया चाची के हाथों और वहां से चले गए.. उनके जाने के बाद चाची ने लिफ़ाफ़ा बिना देखे ही अपने हैण्डबैग नुमा पर्स में डाला और फिर पार्टी वाले जगह की ओर चली दी... जाते वक़्त एक बार उन्होंने अपने आँखों पर उँगलियाँ चलाई थीं |
मैं भी पलट कर जैसे ही जाने लगा, ऐसा लगा मानो कोई मेरे पीछे खड़े मुझे देख रहा है और फ़ौरन वहां से हट गया ... मैं दौड़ कर उस जगह पहुँचा पर दूर दूर तक कोई नहीं था ... भययुक्त आशंकाओं से घिरे मन को सँभालते हुए मैं वापस पार्टी वाले जगह पहुँच गया...|
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इस घटना के करीब सप्ताह भर बाद...
सुबह का टाइम... चाचा ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे हैं... चाची किचेन में है... मैं पेपर पढ़ रहा था ... तभी डोर बेल बजी... मैंने उठ कर दरवाज़ा खोला... देखा एक लड़का है.. पोस्टमैन वाले यूनिफार्म में... हमारा रोज़ का पोस्टमैन नहीं था ये... शायद ये लड़का नया ज्वाइन किया है... मुझे एक लिफ़ाफ़ा हाथ में दिया और सलाम करते हुए चला गया... आश्चर्य.... साइन वगेरह कुछ लिए बिना ही चला गया!... लिफ़ाफे पर लिखा देखा... ‘सिर्फ तुम्हारे लिए’....
अपने रूम आ कर मैंने लिफ़ाफ़ा खोला... एक कागज़ का टुकड़ा मिला... मुड़ा हुआ ... खोल कर पढने लगा..
“ये ख़ास तुम्हारे लिए है... बहुत उतावले लगते हो... बहुत सी चीज़ों को जल्द ही जान लेना चाहते हो... इतनी जल्दबाजी अच्छी बात नहीं ... उम्मीद है ..जो भेजा है उसे देख कर फड़फ़ड़ाना बंद कर दोगे ... | और अगर नहीं किये... तो अगली बार इससे भी ज़्यादा बहुत कुछ मिल सकता है तुम्हे..| आगे तुम्हारी मर्ज़ी...|’
मैं कौतुहलवश जल्दी से लिफ़ाफ़े में रखे एक और कागज़ के टुकड़े को निकाला.. मुड़ा हुआ था ये भी .. पर शायद इसमें कुछ था | कागज़ को खोला.. देखा तीन फ़ोटो रखे हैं अंदर...
एक औरत के हैं वो फ़ोटो...
१)एक में बिस्तर पर लेटी ही है... बाएं करवट लेकर.. साड़ी उसके घुटनों तक पहुँच गए हैं | पेट और कमर का काफ़ी हिस्सा दिख रहा है .... चूची का भी कुछ हिस्सा पल्लू के नीचे से दिख रहा है |
२)उसी औरत का क्लीवेज... साड़ी पल्लू बाएं कंधे के एकदम बाएँ तरफ़ है.... और फलस्वरुप, उस महिला के गोरे उन्नत स्तनयुगल पूरी मादकता के साथ दिख रहे हैं.. अपने साथ .. अपने साथी ‘क्लीवेज’ को साथ लेकर ....
३)महिला का पीछे से फ़ोटो लिया गया है... डीप बैक कट से झांकते उसकी गोरी पीठ और गदरायी हुई... चौड़ी और थोड़ी उठी हुई गांड..
**फ़्लैशबैक एंड्स**
और अपने बिस्तर पर बैठा ...जार जार आँसू बहाए जा रहा मैं... फ़ोटो को एकटक देखता हुआ... अपनी किस्मत को कोसता... खुद को गाली दे रहा था | और ऐसा करता भी क्यों ना.... आख़िर वो तीनों फ़ोटो मेरी ‘माँ’ की थी...!........|
क्रमशः