hotaks444
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अपडेट-10
अब मुझे कोई उम्मीद नज़र नही आ रही थी कि जो मुझे क़ासिम के बारे मे बता सके मैं वहाँ से बाहर निकल आया. किसी को भी क़ासिम के बारे मे नही पता था. मैं पूरी रात उसको ढूँढ-ढूँढ कर थक चुका था ऑर मेरे पैर भी चल-चल कर जवाब दे चुके थे. अब ना तो मुझ मे चलने की हिम्मत थी ना ही क़ासिम का कुछ पता चला था मैने घर वापिस जाने का फ़ैसला किया ओर बो-झिल दिल के साथ वापिस घर आ गया जब घर आया तो घर के बाहर पोलीस की गाड़ी खड़ी थी जिसको देखकर ना-जाने क्यो एक पल के लिए मैं चोंक गया. बाबा ऑर फ़िज़ा थानेदार से कुछ बात कर रहे थे मुझे उनको देख कर कुछ समझ नही आया इसलिए वहाँ जाके सारा मामला पता करना बेहतर समझा. जब मैं वहाँ पहुँचा तो जाने क्यो थानेदार मुझे गौर से देखने लगा जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो. लेकिन फ़िज़ा ने मुझे आँखों से ही चुप रहने का इशारा किया ऑर मैं बस पास जाके खड़ा हो गया ऑर थानेदार को सलाम किया.
थानेदार : व.सलाम, ये कौन है.
बाबा : जनाब ये मेरा छोटा बेटा है.
थानेदार : (कुछ याद करते हुए) तुमको मैने पहले भी कही देखा है.
मैं : जी नही साब मैं तो आपको पहली बार मिल रहा हूँ.
थानेदार : क्या नाम है तेरा ?
बाबा : जनाब इसका नाम नीर है बहुत सीध-साधा लड़का है कोई बुरी आदत नही इसको.
थानेदार : ओह्ह अच्छा-अच्छा बेटा है तुम्हारा.... फिर ये कोई ऑर है इसको देख कर किसी की याद आ गई जो एक-दम इसके जैसा था.
इतने मे फ़िज़ा ने नाज़ी को इशारा किया ऑर वो मुझे लेके अंदर चली गई. ये सब क्या हो रहा था मुझे कुछ भी समझ नही आ रहा था...ये थानेदार यहाँ क्यों आया है इतनी रात को, किसी ने भी मुझसे क़ासिम के बारे में क्यो नही पूछा ऐसे ही मेरे अंदर कई सवाल एक साथ खड़े हो गये थे. अचानक मेरी नज़र जीप मे बैठे क़ासिम पर पड़ी तो मैं उसकी ओर जाने लगा लेकिन नाज़ी ने मुझे बाजू से पकड़ लिया ऑर अंदर आने का इशारा किया. मैं बिना कोई सवाल किया चुप-चाप उसके साथ अंदर आ गया.
मैं : ये सब क्या हो रहा है ऑर ये क़ासिम को कहाँ लेके जा रहे हैं, थानेदार मुझे ऐसे क्यो देख रहा था?
नाज़ी : एक तो तुम सवाल बहुत करते हो....अभी कुछ मत बोलो बस अंदर चलो बाबा बात कर रहे हैं ना...
मैं : अच्छा ठीक है (हां मे सिर हिलाते हुए)
कुछ देर बाद थानेदार भी चला गया ऑर उनके साथ क़ासिम भी लेकिन मैं बस खामोश होके अपने सवालो का जवाब जानने के लिए बे-क़रार होके बाबा ऑर फ़िज़ा का इंतज़ार करने लगा. कुछ देर मे बाबा ऑर फ़िज़ा भी घर के अंदर आ गये.
मैं : बाबा ये सब क्या हो रहा है ऑर ये क़ासिम को कहाँ लेके जा रहे हैं?
बाबा : बस बेटा जाने कौन्से गुनाहो की सज़ा मिल रही है मुझ बूढ़े को जो बुढ़ापे मे ये दिन देखने को मिल रहे हैं (अपने सिर पर हाथ रखकर बैठ ते हुए)
मैं : क्या हुआ है बाबा कोई मुझे कुछ बताता क्यो नही.
नाज़ी : वो भाई जान ने हमरी फसल सरपंच को बेच दी थी ऑर उससे पैसे लेके जुए ऑर शराब मे उड़ा दिए थे अब सरपंच अपने पैसे वापिस माँग रहा है लेकिन क़ासिम भाई ने वो सब पैसे खर्च कर दिए इसलिए उस सरपंच ने अपने पैसे निकलवाने के लिए पोलीस को बुला लिया ऑर वो उनको पकड़ के ले गई है.
मैं : तो हम उनके पैसे वापिस कर देते हैं ना उसमे क्या है आख़िर वो इस घर का बेटा है वैसे भी हमारे पास फसल के काफ़ी पैसे बचे हुए हैं
बाबा : नही बेटा क़ासिम के लिए हम बहुत बार पैसे दे चुके हैं अब ज़रूरत नही है शायद जैल मे रहकर ही उससे अक़ल आ जाए.
मैं : बाबा मैं सरपंच से बात करके आता हूँ क़ासिम भाई के लिए शायद वो मान जाए?
बाबा : नही बेटा वो बहुत बे-रहम इंसान है वो नही मानेगा तुम भी इन सब चक्करो मे ना पडो तो बेहतर होगा.(ऑर मायूस क़दमो के साथ अपने कमरे मे चले गये)
मैं : मानेगा बाबा ज़रूर मानेगा नाज़ी मैं अभी आया.
नाज़ी : नही नीर वो बहुत घटिया किस्म का इंसान है जाने दो
मैं : मुझ पर भरोसा है या नही?
नाज़ी : (हाँ मे सिर हिलाते हुए) सबसे ज़्यादा तुम पर ही तो भरोसा है.
मैं : बस फिर चुप रहो मैं अभी आता हूँ
मैं सरपंच की हवेली की तरफ चला गया. जब मैं हवेली के गेट पर पहुँचा तो एक दरबान ने मुझे रोक दिया.
दरबान : क्या काम है अंदर कहाँ घुसा चले आ रहा है?
मैं : मुझे सरपंच से मिलना है बुलाओ उसको.
दरबान : उनकी इजाज़त के बिना उनसे कोई नही मिल सकता ऑर तू है कौन जो इतना रौब झाड़ रहा है चल दफ़ा होज़ा यहाँ से.
मैं : (दरबान की गर्दन पकड़ते हुए) मैं बोला मुझे अभी सरपंच से मिलना है गेट खोल नही तो तेरी गर्दन तोड़ दूँगा समझा....
दरबान : खोलता हूँ भाई मेरी गर्दन तो छोड़ो.... जाओ अंदर.
जब मैं हवेली के अंदर गया तो उसकी शान-ओ-शौकत से ही अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि जाने कितने ही ग़रीबो का खून चूस कर इस इंसान ने इतना पैसा जमा किया है हवेली की हर चीज़ से पैसा झलक रहा था. अंदर से हवेली बहुत ही आलीशान ऑर शानदार थी जहाँ में खड़ा था वहाँ से चारों तरफ रास्ते दिखाई दे रहे थे मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि अब मैं किस तरफ जाऊं मैं वहीं खड़ा हो कर इंतिज़ार करने लगा कि कोई नज़र आए तो में सरपंच का पूच्छू अभी मैं इसी शशो पुंज मे था कि मुझे हवैली के लेफ्ट साइड से किसी की खनकती हँसी की आवाज़ सुनाई दी उस हँसी के बाद फॉरेन ही काफ़ी सारी लड़कियों के खिलखिला कर हँसने की आवाज़ आई मेरा रुख़ खुद-ब-खुद उस तरफ हो गया जहन से आवाज़ें आ रहीं थीं. मुझे वहाँ कुछ लड़कियाँ आपस मे अठखेलिया करती नज़र आई. मैने अपने कदम उनकी तरफ बढ़ा दिए इससे पहले कि मैं उनसे कुछ पूछ पाता कुछ लोगो ने आके मुझे पिछे से पकड़ लिया. इससे पहले कि मैं अपना हाथ उठाता उन लड़कियो मे से एक लड़की ने आगे बढ़कर उन लोगो को हुकुम दिया कि मुझे छोड़ दिया जाए ऑर सब लोगो ने सिर झुका कर उस लड़की का हुकुम मान लिया ऑर मुझे छोड़ दिया....
लड़की : हंजी कौन हो आप ऑर अंदर कैसे आए......
मैं : जी मुझे सरपंच जी से मिलना है
लड़की : अब्बू तो घर पर नही है बताओ क्या काम है मैं उनकी बेटी हूँ
मैं : (कुछ सोचते हुए) जी कुछ नही फिर मैं चलता हूँ माफ़ कीजिए आपको मेरी वजह से परेशानी हुई
लड़की : तुमको पहली बार देख रही हो तुम कौन हो ऑर यहाँ नये आए हो क्या (साथ ही उन लोगो को उंगली से जाने का इशारा करते हुए)
मैं : जी मेरा नाम नीर है मैं हैदर अली का छोटा बेटा ऑर क़ासिम अली का छोटा भाई हूँ
लड़की : हमम्म तुमने अभी तक बताया नही कि तुमको अब्बू से काम क्या था ऑर इतनी रात गये इस तरह क्यों आए.?
मैने लड़की को सारी समस्या बता दी ऑर उनकी रकम धीरे-धीरे करके लौटाने की बात भी कह दी ऑर उसको मेरी मदद करने को कहा....
लड़की : ठीक है मैं देखती हूँ क्या कर सकती हूँ आपके लिए.
मैं : आपका बहुत-बहुत शुक्रिया
लड़की : अब बहुत रात हो गई तुम अपने घर जाओ सुबह अब्बू आएँगे तो मैं उनसे बात करके देखूँगी कि क्या हो सकता है
मैं : ठीक है जी आपका मुझ पर अहसान होगा अगर आप मेरी मदद कर देंगी तो.
मैं खुशी-खुशी घर की तरफ जा रहा था लेकिन बार-बार मुझे उस लड़की का चेहरा आँखो के सामने नज़र आ रहा था. कुछ तो था उस लड़की मे जो मुझे अपनी ओर खींच रहा था....लड़की इंतेहा खूबसूरत थी...... गोल सा चेहरा, चेहरे पर बालो की पतली सी लट जो बहुत क़ातिलाना लगती थी... बड़ी-बड़ी हिरनी जैसी आँखें... गुलाब की पंखुड़ी जैसे पतले से रस-भरे होंठ जब हँसती थी तो गालों मे गड्ढे से पड़ते थे जो उसकी खूबसूरती मे चार-चाँद लगाते थे शायद ये पहली लड़की थी गाँव मे जो मैने इतनी सजी-सवरी हुई देखी थी ऑर उसके बात करने का सलीका भी बहुत अच्छा था. मैं उस लड़की के बारे मे ही सोचता हुआ पता नही कब घर के सामने आ गया मेरा ध्यान तब टूटा जब नाज़ी ने मुझे हिला कर कहा....
नाज़ी : अब अंदर भी आना है या आज रात यही दरवाज़े पर ही गुज़ारनी है?
मैं : (चोन्क्ते हुए) हाँ आता हूँ
नाज़ी : क्या बात है आज बड़ा मुस्कुरा रहे हो हवेली पर ही गये थे ना या फिर तुमने भी क़ासिम भाई की तरह कहीं ऑर जाना शुरू कर दिया है (मुझे छेड़ते हुए)
मैं : कहीं ऑर से क्या मतलब है तुम्हारा तुमको मैं ऐसा लगता हूँ क्या....हाँ हवेली पर ही गया था ऑर एक खुश खबरी लेके आया हूँ
नाज़ी : (हैरानी से) क्या खुशख़बरी?
मैं : वो मैं जब हवेली पर गया था तो मुझे सरपंच की बेटी मिली थी वो कह रही थी कि वो अपने अब्बू से बात करेगी ऑर हमारी मदद भी करेगी बहुत अच्छी है वो
नाज़ी : नीर तुम कितने भोले हो...तुम आज के बाद कभी हवेली नही जाओगे समझे
मैं : क्यो क्या हुआ मैने कुछ ग़लत किया क्या?
नाज़ी : नही तुमने कुछ ग़लत नही किया बस आज के बाद उस लड़की से मत मिलना
मैं : वो जब हमारी मदद कर रही है तो ग़लत क्या है मिलने मे ये तो बताओ
नाज़ी : मैने जो तुमको कहा वो तुम्हे समझ नही आया ना ठीक है जो तुम्हारे दिल मे आए करो लेकिन मुझसे बात मत करना आज के बाद समझे
मैं : (परेशानी से) यार लेकिन हुआ क्या बताओ तो सही
नाज़ी : कुछ नही हुआ बस तुम आज के बाद वहाँ नही जाओगे नही तो मैं तुमसे बात नही करूँगी. वो लोग अच्छे लोग नही है नीर.
मैं : ठीक है जो हुकुम सरकार का
नाज़ी : (हँसती हुई) तुम जब मेरी बात मान जाते हो ना तो मुझे बहुत अच्छे लगते हो दिल करता है कि.....
मैं : कि...? क्या दिल करता है?
नाज़ी : कुछ नही बुद्धू चलो अब अंदर चलो खाना खा लो तुम्हारी वजह से मैने ऑर भाभी ने भी खाना नही खाया लेकिन तुमको क्या तुम तो जाओ अपनी उस सरपंच की बेटी के पास.....
मैं : अर्रे तुम दोनो ने खाना क्यों नही खाया?
नाज़ी : हमने सोचा आज हम सब साथ मे ही खाना खा लें (नज़रे झुका के मुस्कुराते हुए)
मैं : बाबा ने खाना खा लिया?
नाज़ी : हाँ वो तो खाना खा के सो भी गये बस हम ही दो पागल बैठी है जो अपने बुढ़ू का इंतज़ार कर रही है लेकिन तुमको तो हवेली वाली से ही फ़ुर्सत नही है हमारी याद कहाँ से आएगी..
मैं : (मुस्कुराते हुए) ज़्यादा मत सोचा करो.... चलो मुझे भी बहुत बहुत भूख लगी है.
अब मुझे कोई उम्मीद नज़र नही आ रही थी कि जो मुझे क़ासिम के बारे मे बता सके मैं वहाँ से बाहर निकल आया. किसी को भी क़ासिम के बारे मे नही पता था. मैं पूरी रात उसको ढूँढ-ढूँढ कर थक चुका था ऑर मेरे पैर भी चल-चल कर जवाब दे चुके थे. अब ना तो मुझ मे चलने की हिम्मत थी ना ही क़ासिम का कुछ पता चला था मैने घर वापिस जाने का फ़ैसला किया ओर बो-झिल दिल के साथ वापिस घर आ गया जब घर आया तो घर के बाहर पोलीस की गाड़ी खड़ी थी जिसको देखकर ना-जाने क्यो एक पल के लिए मैं चोंक गया. बाबा ऑर फ़िज़ा थानेदार से कुछ बात कर रहे थे मुझे उनको देख कर कुछ समझ नही आया इसलिए वहाँ जाके सारा मामला पता करना बेहतर समझा. जब मैं वहाँ पहुँचा तो जाने क्यो थानेदार मुझे गौर से देखने लगा जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो. लेकिन फ़िज़ा ने मुझे आँखों से ही चुप रहने का इशारा किया ऑर मैं बस पास जाके खड़ा हो गया ऑर थानेदार को सलाम किया.
थानेदार : व.सलाम, ये कौन है.
बाबा : जनाब ये मेरा छोटा बेटा है.
थानेदार : (कुछ याद करते हुए) तुमको मैने पहले भी कही देखा है.
मैं : जी नही साब मैं तो आपको पहली बार मिल रहा हूँ.
थानेदार : क्या नाम है तेरा ?
बाबा : जनाब इसका नाम नीर है बहुत सीध-साधा लड़का है कोई बुरी आदत नही इसको.
थानेदार : ओह्ह अच्छा-अच्छा बेटा है तुम्हारा.... फिर ये कोई ऑर है इसको देख कर किसी की याद आ गई जो एक-दम इसके जैसा था.
इतने मे फ़िज़ा ने नाज़ी को इशारा किया ऑर वो मुझे लेके अंदर चली गई. ये सब क्या हो रहा था मुझे कुछ भी समझ नही आ रहा था...ये थानेदार यहाँ क्यों आया है इतनी रात को, किसी ने भी मुझसे क़ासिम के बारे में क्यो नही पूछा ऐसे ही मेरे अंदर कई सवाल एक साथ खड़े हो गये थे. अचानक मेरी नज़र जीप मे बैठे क़ासिम पर पड़ी तो मैं उसकी ओर जाने लगा लेकिन नाज़ी ने मुझे बाजू से पकड़ लिया ऑर अंदर आने का इशारा किया. मैं बिना कोई सवाल किया चुप-चाप उसके साथ अंदर आ गया.
मैं : ये सब क्या हो रहा है ऑर ये क़ासिम को कहाँ लेके जा रहे हैं, थानेदार मुझे ऐसे क्यो देख रहा था?
नाज़ी : एक तो तुम सवाल बहुत करते हो....अभी कुछ मत बोलो बस अंदर चलो बाबा बात कर रहे हैं ना...
मैं : अच्छा ठीक है (हां मे सिर हिलाते हुए)
कुछ देर बाद थानेदार भी चला गया ऑर उनके साथ क़ासिम भी लेकिन मैं बस खामोश होके अपने सवालो का जवाब जानने के लिए बे-क़रार होके बाबा ऑर फ़िज़ा का इंतज़ार करने लगा. कुछ देर मे बाबा ऑर फ़िज़ा भी घर के अंदर आ गये.
मैं : बाबा ये सब क्या हो रहा है ऑर ये क़ासिम को कहाँ लेके जा रहे हैं?
बाबा : बस बेटा जाने कौन्से गुनाहो की सज़ा मिल रही है मुझ बूढ़े को जो बुढ़ापे मे ये दिन देखने को मिल रहे हैं (अपने सिर पर हाथ रखकर बैठ ते हुए)
मैं : क्या हुआ है बाबा कोई मुझे कुछ बताता क्यो नही.
नाज़ी : वो भाई जान ने हमरी फसल सरपंच को बेच दी थी ऑर उससे पैसे लेके जुए ऑर शराब मे उड़ा दिए थे अब सरपंच अपने पैसे वापिस माँग रहा है लेकिन क़ासिम भाई ने वो सब पैसे खर्च कर दिए इसलिए उस सरपंच ने अपने पैसे निकलवाने के लिए पोलीस को बुला लिया ऑर वो उनको पकड़ के ले गई है.
मैं : तो हम उनके पैसे वापिस कर देते हैं ना उसमे क्या है आख़िर वो इस घर का बेटा है वैसे भी हमारे पास फसल के काफ़ी पैसे बचे हुए हैं
बाबा : नही बेटा क़ासिम के लिए हम बहुत बार पैसे दे चुके हैं अब ज़रूरत नही है शायद जैल मे रहकर ही उससे अक़ल आ जाए.
मैं : बाबा मैं सरपंच से बात करके आता हूँ क़ासिम भाई के लिए शायद वो मान जाए?
बाबा : नही बेटा वो बहुत बे-रहम इंसान है वो नही मानेगा तुम भी इन सब चक्करो मे ना पडो तो बेहतर होगा.(ऑर मायूस क़दमो के साथ अपने कमरे मे चले गये)
मैं : मानेगा बाबा ज़रूर मानेगा नाज़ी मैं अभी आया.
नाज़ी : नही नीर वो बहुत घटिया किस्म का इंसान है जाने दो
मैं : मुझ पर भरोसा है या नही?
नाज़ी : (हाँ मे सिर हिलाते हुए) सबसे ज़्यादा तुम पर ही तो भरोसा है.
मैं : बस फिर चुप रहो मैं अभी आता हूँ
मैं सरपंच की हवेली की तरफ चला गया. जब मैं हवेली के गेट पर पहुँचा तो एक दरबान ने मुझे रोक दिया.
दरबान : क्या काम है अंदर कहाँ घुसा चले आ रहा है?
मैं : मुझे सरपंच से मिलना है बुलाओ उसको.
दरबान : उनकी इजाज़त के बिना उनसे कोई नही मिल सकता ऑर तू है कौन जो इतना रौब झाड़ रहा है चल दफ़ा होज़ा यहाँ से.
मैं : (दरबान की गर्दन पकड़ते हुए) मैं बोला मुझे अभी सरपंच से मिलना है गेट खोल नही तो तेरी गर्दन तोड़ दूँगा समझा....
दरबान : खोलता हूँ भाई मेरी गर्दन तो छोड़ो.... जाओ अंदर.
जब मैं हवेली के अंदर गया तो उसकी शान-ओ-शौकत से ही अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि जाने कितने ही ग़रीबो का खून चूस कर इस इंसान ने इतना पैसा जमा किया है हवेली की हर चीज़ से पैसा झलक रहा था. अंदर से हवेली बहुत ही आलीशान ऑर शानदार थी जहाँ में खड़ा था वहाँ से चारों तरफ रास्ते दिखाई दे रहे थे मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि अब मैं किस तरफ जाऊं मैं वहीं खड़ा हो कर इंतिज़ार करने लगा कि कोई नज़र आए तो में सरपंच का पूच्छू अभी मैं इसी शशो पुंज मे था कि मुझे हवैली के लेफ्ट साइड से किसी की खनकती हँसी की आवाज़ सुनाई दी उस हँसी के बाद फॉरेन ही काफ़ी सारी लड़कियों के खिलखिला कर हँसने की आवाज़ आई मेरा रुख़ खुद-ब-खुद उस तरफ हो गया जहन से आवाज़ें आ रहीं थीं. मुझे वहाँ कुछ लड़कियाँ आपस मे अठखेलिया करती नज़र आई. मैने अपने कदम उनकी तरफ बढ़ा दिए इससे पहले कि मैं उनसे कुछ पूछ पाता कुछ लोगो ने आके मुझे पिछे से पकड़ लिया. इससे पहले कि मैं अपना हाथ उठाता उन लड़कियो मे से एक लड़की ने आगे बढ़कर उन लोगो को हुकुम दिया कि मुझे छोड़ दिया जाए ऑर सब लोगो ने सिर झुका कर उस लड़की का हुकुम मान लिया ऑर मुझे छोड़ दिया....
लड़की : हंजी कौन हो आप ऑर अंदर कैसे आए......
मैं : जी मुझे सरपंच जी से मिलना है
लड़की : अब्बू तो घर पर नही है बताओ क्या काम है मैं उनकी बेटी हूँ
मैं : (कुछ सोचते हुए) जी कुछ नही फिर मैं चलता हूँ माफ़ कीजिए आपको मेरी वजह से परेशानी हुई
लड़की : तुमको पहली बार देख रही हो तुम कौन हो ऑर यहाँ नये आए हो क्या (साथ ही उन लोगो को उंगली से जाने का इशारा करते हुए)
मैं : जी मेरा नाम नीर है मैं हैदर अली का छोटा बेटा ऑर क़ासिम अली का छोटा भाई हूँ
लड़की : हमम्म तुमने अभी तक बताया नही कि तुमको अब्बू से काम क्या था ऑर इतनी रात गये इस तरह क्यों आए.?
मैने लड़की को सारी समस्या बता दी ऑर उनकी रकम धीरे-धीरे करके लौटाने की बात भी कह दी ऑर उसको मेरी मदद करने को कहा....
लड़की : ठीक है मैं देखती हूँ क्या कर सकती हूँ आपके लिए.
मैं : आपका बहुत-बहुत शुक्रिया
लड़की : अब बहुत रात हो गई तुम अपने घर जाओ सुबह अब्बू आएँगे तो मैं उनसे बात करके देखूँगी कि क्या हो सकता है
मैं : ठीक है जी आपका मुझ पर अहसान होगा अगर आप मेरी मदद कर देंगी तो.
मैं खुशी-खुशी घर की तरफ जा रहा था लेकिन बार-बार मुझे उस लड़की का चेहरा आँखो के सामने नज़र आ रहा था. कुछ तो था उस लड़की मे जो मुझे अपनी ओर खींच रहा था....लड़की इंतेहा खूबसूरत थी...... गोल सा चेहरा, चेहरे पर बालो की पतली सी लट जो बहुत क़ातिलाना लगती थी... बड़ी-बड़ी हिरनी जैसी आँखें... गुलाब की पंखुड़ी जैसे पतले से रस-भरे होंठ जब हँसती थी तो गालों मे गड्ढे से पड़ते थे जो उसकी खूबसूरती मे चार-चाँद लगाते थे शायद ये पहली लड़की थी गाँव मे जो मैने इतनी सजी-सवरी हुई देखी थी ऑर उसके बात करने का सलीका भी बहुत अच्छा था. मैं उस लड़की के बारे मे ही सोचता हुआ पता नही कब घर के सामने आ गया मेरा ध्यान तब टूटा जब नाज़ी ने मुझे हिला कर कहा....
नाज़ी : अब अंदर भी आना है या आज रात यही दरवाज़े पर ही गुज़ारनी है?
मैं : (चोन्क्ते हुए) हाँ आता हूँ
नाज़ी : क्या बात है आज बड़ा मुस्कुरा रहे हो हवेली पर ही गये थे ना या फिर तुमने भी क़ासिम भाई की तरह कहीं ऑर जाना शुरू कर दिया है (मुझे छेड़ते हुए)
मैं : कहीं ऑर से क्या मतलब है तुम्हारा तुमको मैं ऐसा लगता हूँ क्या....हाँ हवेली पर ही गया था ऑर एक खुश खबरी लेके आया हूँ
नाज़ी : (हैरानी से) क्या खुशख़बरी?
मैं : वो मैं जब हवेली पर गया था तो मुझे सरपंच की बेटी मिली थी वो कह रही थी कि वो अपने अब्बू से बात करेगी ऑर हमारी मदद भी करेगी बहुत अच्छी है वो
नाज़ी : नीर तुम कितने भोले हो...तुम आज के बाद कभी हवेली नही जाओगे समझे
मैं : क्यो क्या हुआ मैने कुछ ग़लत किया क्या?
नाज़ी : नही तुमने कुछ ग़लत नही किया बस आज के बाद उस लड़की से मत मिलना
मैं : वो जब हमारी मदद कर रही है तो ग़लत क्या है मिलने मे ये तो बताओ
नाज़ी : मैने जो तुमको कहा वो तुम्हे समझ नही आया ना ठीक है जो तुम्हारे दिल मे आए करो लेकिन मुझसे बात मत करना आज के बाद समझे
मैं : (परेशानी से) यार लेकिन हुआ क्या बताओ तो सही
नाज़ी : कुछ नही हुआ बस तुम आज के बाद वहाँ नही जाओगे नही तो मैं तुमसे बात नही करूँगी. वो लोग अच्छे लोग नही है नीर.
मैं : ठीक है जो हुकुम सरकार का
नाज़ी : (हँसती हुई) तुम जब मेरी बात मान जाते हो ना तो मुझे बहुत अच्छे लगते हो दिल करता है कि.....
मैं : कि...? क्या दिल करता है?
नाज़ी : कुछ नही बुद्धू चलो अब अंदर चलो खाना खा लो तुम्हारी वजह से मैने ऑर भाभी ने भी खाना नही खाया लेकिन तुमको क्या तुम तो जाओ अपनी उस सरपंच की बेटी के पास.....
मैं : अर्रे तुम दोनो ने खाना क्यों नही खाया?
नाज़ी : हमने सोचा आज हम सब साथ मे ही खाना खा लें (नज़रे झुका के मुस्कुराते हुए)
मैं : बाबा ने खाना खा लिया?
नाज़ी : हाँ वो तो खाना खा के सो भी गये बस हम ही दो पागल बैठी है जो अपने बुढ़ू का इंतज़ार कर रही है लेकिन तुमको तो हवेली वाली से ही फ़ुर्सत नही है हमारी याद कहाँ से आएगी..
मैं : (मुस्कुराते हुए) ज़्यादा मत सोचा करो.... चलो मुझे भी बहुत बहुत भूख लगी है.