Kamukta Kahani महँगी चूत सस्ता पानी - Page 3 - SexBaba
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Kamukta Kahani महँगी चूत सस्ता पानी

उस रात हम मिल नहीं सके..रिस्तेदारो और लोगों के बीच घिरी थी पायल दीदी ....सब को जान ने की उत्सुकता थी , दीदी कैसी हैं ..ससुराल कैसा है..लोग कैसे हैं ....और पायल दीदी इन सब सवालों का जवाब देते देते तक कर सो गयीं ..मैने भी उन्हें डिस्टर्ब नहीं किया ...अभी दो दिन उन्हें और रहना था ....

कहते है ना इंसान सोचता कुछ है , होता कुछ और ही है ......

दूसरे दिन सुबेह सुबेह ही जीजा जी पहून्च गये दीदी को लेने ....

" क्या जीजा जी ..दीदी को कुछ दिन तो हमारे साथ भी रहने दीजिए..अब तो वो आप के साथ पूरी जिंदगी रहने वाली हैं..?? "मैने उन से मज़ाक किया..

" अरे नहीं किशू ..ऐसी बात नहीं ....मैं तो खुद चाहता था के पायल यहाँ कुछ दिन और रहे ..उसके लिए भी चेंज हो जाएगा ..पर क्या करें मजबूरी है "

फिर उन्होने पूरी बात मुझे बताई.

जीजा जी ने बहुत से अमेरिकन यूनिवर्सिटीस में टीचिंग जॉब के लिए अप्लाइ कर रखा था ...वे केमिस्ट्री में पी एच.डी थे और अपने सहर के जाने माने कॉलेज में प्रोफेसर थे ..इतनी कम उम्र में ही उन्होने काफ़ी महारत हासिल कर ली थी ..

उनके अच्छे रेकॉर्ड्स और काबिलियत की वाज़ेह से एक प्रसिद्ध अमेरिकन यूनिवर्सिटी से उन्हें तीन साल का टीचिंग कांट्रॅक्ट मिल गया...इस मौके को वह गँवाना नहीं चाहते ....और ये खबर उन्हें कल ही मिली थी .

उन्हें जल्द से जल्द जाय्न करने को कहा गया था ...

पर अभी प्राब्लम था, पायल दीदी को भी वे साथ ले जाना चाहते थे..और उनका पासपोर्ट , वीसा वग़ैरह वग़ैरह भी करवाना था ..समय कम था ..इसलिए इन सब फॉरमॅलिटीस के लिए दीदी की ज़रूरत थी ....

अब मैं भी क्या करता ....बात तो बहुत खुशी की थी ... जीजा जी बहुत खुश थे..वे बार बार कहते नहीं थकते " देखो पायल के आते ही कितनी बड़ी बात हुई मेरे कैरियर में ..... "

सब खुश थे ..पर मेरा दिल फिर से रो रहा था ..पायल दीदी भी उपर से खुश थीं पर सिर्फ़ मैं और वो ही समझते थे हम पर क्या बीत रही थी ....

उनकी आँखों में दर्द , विवशता और एक गिल्ट की फिलिंग थी....

हम दोनों को कुछ देर अकेले बात करने का मौका मिला , दीदी की आँखों में आँसू थे

" किशू ..मुझे माफ़ कर देना भाय्या ..मैं तुम्हारी कर्ज़दार हूँ ....पर याद रखना मैं ये क़र्ज़ अदा करूँगी ...चाहे जैसे भी हो.....तू अपने को संभालना किशू .... पढ़ाई में मन लगाना .." और वे फफक फफक के रो पड़ीं ..

" दीदी आप चिंता मत करो....मैं बिल्कुल ठीक से रहूँगा ....आप खुशी खुशी जाओ..देखो ना जीजा जी कितने खुश हैं .....मैं वादा करता हूँ दीदी , आप का सर हमेशा उँचा रहेगा ..आप का किशू आप का इंतेज़ार करेगा ..."

और दस दिनों के अंदर ही मैने दीदी को फिर से दुबारा विदा किया ....पर इस बार एक लंबे समय के लिए ...

दीदी चली गयीं ....मैं फिर से अकेला था .... बहुत अकेला ......

पर इस अकेलेपन का बस एक ही इलाज़ था ..अपने आप को व्यस्त रखना ..और मैने यही किया ..मैं अपनी पढ़ाई में जुट गया ..स्वेता दीदी मेरा खूब ख़याल रखतीं ..कहना ना होगा उनके ख़याल में मेरे लंड का ख़याल सर्वोपरि रहता ..उन्हें मेरे लंड चूसने और सहलाने में बड़ा मज़ा आता था ....

मैं पढ़ाई करता , वो अपनी प्यास बुझाती ... और साथ में मेरा भी रिलॅक्सेशन होता ..

दीदी की चिट्ठियाँ आती रहती ..वहाँ काफ़ी अच्छा समय कट रहा था ..

दोनों के प्यार ने इतना रंग लाया के तीन सालों में उनके तीन बच्चे हो गये ....

दीदी के अंदाज़ भी निराले थे ..तीन सालों में ही तीन बच्चे..

उनका कहना था गौरव को कॉंडम लगाना पसंद नहीं था और उन्हें( दीदी ) पिल्स से नफ़रत .नतीज़ा तो येई होना था....

पर दीदी ने तीसरे बच्चे के बाद अपना ऑपरेशन करवा लिया था .....झंझट ही दूर.....

...

मेरी मेहनत का भी काफ़ी अच्छा नतीज़ा निकला ..मैने 12 थ (हाइयर सेकेंडरी) में अपने डिस्ट्रिक्ट के मेरिट में पोज़िशन हासिल किया ...

मुझे आसानी से इंजीनाइरिंग कॉलेज में अड्मिशन मिल गयी ..

दीदी को जब मालूम पड़ा , बहुत खुश हुईं ...

और अब मैं 18 साल का हो चूका था..जवानी की ओर मेरे झूमते कदम बढ़ रहे थे....

जवानी की ओर मैं लंबे लंबे कदमों से बढ़ता जा रहा था .....लंड की साइज़ भी पीछे नहीं थी....उसने भी अपनी जवानी के रंग ढंग दिखाने शुरू कर दिए थे ..अब वो ककड़ी की तरह नहीं .वरन . लकड़ी की तरह ठोस कड़क हो जाता...

स्वेता दीदी तो बस अपनी चूत में लेने को परेशान थी ...उन्हें भी पायल दीदी के आने की बड़ी उत्सुकता थी .....

पर जब वे उसे हाथ में लेतीं , मैं झूम उठता ..बड़े प्यार से उस कड़क लौडे को सहलाती ..अपने गालों से लगाती..चूमती , चाट ती और फिर मुँह में अपने जीभ से इतने प्यार से चाट ती , होंठों से चूस्ति ..मैं सिहर जाता ....मेरा रोम रोम कांप उठ ता और फिर उनके मुँह में अपनी पिचकारी छ्चोड़ देता .....स्वेता दीदी मेरे तरो-ताज़ा रस को अमृत की तरह पी जातीं ...गटक जातीं ....

स्वेता दीदी हमेशा ये कहतीं

" देख किशू अच्छा हुआ तू ने पहले पायल को नहीं चोदा...अब जो ये मूसल पायल की चूत में जाएगा .. उसे असली चुदाई का मज़ा आएगा ...." और फिर उनका हाथ और जोरों से सहलाना चालू कर देता ....." उफ़फ्फ़ जल्दी बुलाओ ना पायल को ..मेरी भी चूत तड़प रही है रे ....." और ऐसी हालत में वो मेरे लंड से अपनी गीली चूत की घिसाई चालू कर देती.....

पायल दीदी की याद और स्वेता दीदी के साथ मस्ती ...बड़े अच्छे दिन कट रहे थे ...

और आख़िर पायल दीदी की वो चिट्ठि जिसका मैं तीन सालों से इतनी बेसब्री से इंतेज़ार कर रहा था आ ही गयी............

पायल दीदी की चिट्ठी

क्रमशः……………………
 
महँगी चूत सस्ता पानी--12

गतान्क से आगे…………………………….

पायल दीदी की चिट्ठि

किशू ...ऊऊऊऊऊऊः किशू ...उफफफफ्फ़ कितना तडपाएगा रे .... मैं सात समुंदर दूर हूँ यहाँ ,

तेरी बहुत याद आती है ...नहीं रे ..याद क्यूँ..तू तो हमेशा मेरे साथ है किशू ..हमेशा ..क्या एक पल भी तू मुझ से दूर हुआ ...नहीं किशू ...कभी नहीं रे..कभी नहीं .....

तू तो अब जवान हो गया है..मैं जानती हूँ किशू तेरे पर क्या बीत रही होगी ....मैं समझ सकती हूँ रे......मेरे बिना तू भी कितना तड़प रहा होगा .....

मैं बस आ रही हूँ किशू..तेरे पास ....बहुत जल्द ...पर तू ये मत समझना के मैं तीन बचों की माँ बन गयी ..तो मेरी चूत तेरे लायक नहीं रही..नहीं किशू .ये तेरी अमानत थी ना मेरे पास..तू देखना ये अभी भी उसी हालत में है .....मैने इसे बहुत सहेज़ के रखा है रे ..अपने किशू के कुंवारे लंड के लिए ....हाआँ किशू बहुत सहेज़ा है इसे .....आख़िर मेरे किशू की अमानत जो है ...

देख ना तेरी याद इसे भी कितना तड़पाती है.....कितनी गीली है ....तेरे नाम से ही ....

मैं और मेरी चूत ...उफफफफफफ्फ़ ..तेरे कुंवारे लंड के लिए ...तुम से पहली बार चूद्ने के लिए ....हाआआं ..रे कैसा लगेगा जब तू मुझे अपनी बाहों में लेगा और मेरी चूत में धक्का लगाएगा ..?? पर किशू ज़रा संभाल के .....मेरी चूत अभी अभी भी बहुत नाज़ुक है रे ..देख लेना ........उफफफफफफफ्फ़ ....अब और वेट नहीं कर सकती .......

मैं टेलिग्रॅम से एग्ज़ॅक्ट डेट और फ्लाइट नंबर. भेजूँगी......

कीश्यूवूऊवूऊवूऊवूऊवूऊवूऊवूऊवूऊवूऊवूऊवूयूयुयूवयू आइ लव यू .........

और फिर मैने देखा चिट्ठी के अंत में फुल स्टॉप की जागेह एक उंगली की टिप के बराबर गोलाकार छाप थी , मानो वहाँ पानी की बूँद गिर गयी हो......

मैं मुस्कुरा उठा ....उफफफफ्फ़ दीदी के अंदाज़ सही में निराले थे ..चूमने लगा उस जागेह को .....सूंघने लगा ...दीदी की चूत का रस भी निराला ही था......

मैं उनके आने का बेसब्री से इंतेज़ार कर रहा था........

और फिर वो दिन और वो पल जिसका मुझे हर पल इंतेज़ार था....वो सुनेहरा पल जब दीदी का टेलिग्रॅम मेरे हाथों में था....

दीदी एक हफ्ते के बाद की फ्लाइट से आ रहीं थीं.

मैं खुशी से झूम उठा......आख़िर इतने इंतेज़ार और इतनी तड़प के बाद ..दीदी और हमारे बीच सिर्फ़ सात दिनों की दूरी थी.....सिर्फ़ एक हफ़्ता ...

पर ये आखरी एक हफ़्ता , बीते तीन सालों से भी ज़्यादा लग रहा था..मैं बहुत बेसब्र था...और साथ में काफ़ी एग्ज़ाइटेड भी ....दीदी की चूत की कल्पना से ही मेरा लंड तन तना उठता ....

स्वेता दीदी उस शाम को मेरी मूठ मारते मारते थक गयी ......जितनी बार मैं झाड़ता ..फिर लंड खड़ा हो जाता ....

"अफ ...किशू ..तेरा लंड अब बिना चूत के अंदर गये शांत नहीं होनेवाला .....इतना ही बेचैन है तो चोद ले मुझे ..मैं पायल को समझा दूँगी...." और वह मेरी पलंग पर अपनी सारी उपर करते हुए टाँगें फैला लेट गयीं ....

मेरा भी बहुत मन कर रहा था..पर फिर दीदी की बात

"मेरी चूत तेरी अमानत है रे किशू..मैने इसे बहुत सहेज़ के रखा है..""

मुझे हथौड़े की तरह मश्तिश्क में लगी ..मैं संभाल गया ...

स्वेता दीदी की सारी नीचे कर दी उनकी चूत ढँक दी .

" नहीं स्वेता दीदी .....इतने दिनों तक मैने सब्र किया .....सात दिन और सही.....मैं दीदी को अपना कुँवारा लंड ही भेंट में दूँगा ....उनके आने की भेंट ...."

" वाह रे तुम दोनों भाई-बहन का प्यार ....काश मेरा भी तेरे जैसा भाई होता ...." उनकी आँखों में आँसू की कुछ बूँद छलक रही थी ...

" अरे अरे ये क्या स्वेता दीदी..मैं भी तो आप का भाई ही हूँ ना ....आप ऐसी बात फिर कभी मत करना ...."

और फिर हम दोनों एक दूसरे से लिपट गये ..उन्होने मेरा लंड अपने मुँह में ले लिया और ऐसी चुसाइ की .....मेरा पूरा बदन कांप उठा और थोड़ी ही देर में उनके मुँह में ही खाली हो गया ...मैं भी उतनी ही तड़प , एग्ज़ाइट्मेंट और जोश से उनकी चूत चाटने लगा , जीभ डालने लगा ..उंगली से सहलाता रहा .... उन्होने भी चूतड़ उछाल उछाल कर अपना पानी बूरी तरह छ्चोड़ दिया...

अब मेरा लंड शांत था ...........

और आख़िर वो इंतेज़ार और बेसब्री की घड़ियाँ ख़त्म हुईं....वो दिन आ ही गया ..

उन दिनों हमारे शहर में इंटरनॅशनल फ्लाइट्स नहीं उतरते थे ....दीदी की फ्लाइट कोलकाता के दम दम एरपोर्ट पर लॅंड करनेवाली थी...हम सब यानी..मेरे मामा , मामी और मैं एक दिन पहले ही ट्रेन से वहाँ पहून्च गये , और दूसरे दिन शाम की ट्रेन से वापसी का रिज़र्वेशन भी करा लिया था...

दीदी की फ्लाइट तड़के सुबेह आनेवाली थी.

एरपोर्ट पहून्च मैं मामा और मामी को नीचे अराइवल लाउंज में बैठा कर खुद एरपोर्ट की बिल्डिंग के टेरेस पर चला गया..उन दिनों सेक्यूरिटी वग़ैरह का उतना सख़्त इंतज़ाम नहीं रहता था ....लोग टेरेस से भी आनेवाले फ्लाइट्स का व्यू लेते थे..

मैं टेरेस की रेलिंग से लगा खड़ा दूर क्षितीज़ की ओर देख रहा था...दीदी के प्लेन का इंतेज़ार कर रहा था...

प्लेन के लॅंड करने का अनाउन्स्मेंट हो चूका था ..अब किसी भी वक़्त प्लेन लॅंड कर सकती थी ..मेरे दिल की धड़कन बढ़ गयी थी..एक अजीब उत्सुकता , कुछ आशंका , कुछ सिहरन सी मेरे मन में आती जा रही थी ....

तभी दूर क्षिटीज़ से निकलती हुई एक गोलाकार आकृति दिखाई दी.....धीरे धीरे वो आकर पास आ रही थी ...बड़ी और बड़ी होती गयी ...और वो आकार प्लेन का शेप लिए नीचे और नीचे आ रही थी.......

जैसे ही प्लेन ने रनवे को टच किया ..मेरे दिल की धड़कान मानों रुक सी गयी ...

गड़गड़ाहाट की आवाज़ के साथ पूरा प्लेन नीचे उतार चूका था...दीदी हमारी धरती पर आ चूकि थीं ...मैं खुशी से पागल हो रहा था ...

लोग एक एक कर उतर रहे थे ....मेरी आँखें एक तक प्लेन के दरवाज़े पर लगी थीं ..

और फिर वो मेरी जानी पहचानी आकृति , मेरी जिंदगी , मेरी पायल दीदी ....बहार आती दिखाई दी ..

उनकी एक ही झलक से तीन साल का अंतराल मानों लुप्त हो गया.....समय जैसे ठहर सा गया....ये तीन साल जो काटे नहीं कट ते ..आज एक पल ने उस समय के विशाल अंतराल को एक झटके में मिटा दिया था.....

प्लेन की लॅंडिंग पोज़िशन एरपोर्ट की बिल्डिंग से काफ़ी दूर थी .....रनवे पर खड़ी एरपोर्ट की बस में सभी यात्री सवार हो गये .....

मैं भी भागता हुआ टेरेस से नीचे आ गया.......अराइवल लाउंज में मामा , मामी के साथ दीदी के बाहर आने का इंतेज़ार करने लगा ...........

मामी ने पूछा " देख लिया पायल को.... कैसी है रे ..?'

"हाँ मामी दीदी तो देखीं ..पर प्लेन इतनी दूर थी के कुछ सॉफ नहीं दिखता ...पर मामी ..जीजा जी नहीं दिखे ..? "

इसका जवाब मामा ने दिया " हाँ बेटा ..उनको कुछ दिन और रहना पड़ेगा ....वो बाद में आएँगे ...."

मेरी तो बाछे खिल गयी ..याने दीदी अकेली ......पर ये बात दीदी ने मुझे नहीं बताया ..????

शायद मुझे सर्प्राइज़ देना चाहती हों..??? दीदी के अंदाज़ भी निराले थे .....

मैं मुस्कुराता हुआ .दीदी के बाहर आने का इंतेज़ार करता रहा....
 
और वो दिखी दूर से आती हुई पायल दीदी......गोद में उनका सब से छोटा बच्चा .. ...साथ में चलती हुई एक एर होस्टेस्स की गोद में उनका दूसरा बच्चा और उनके बगल में उनके हाथ थामे चलता हुआ तीसरा वाला.... कंधे से लटकता उनका एर बॅग .... सामने ट्रॉल्ली में उनका बाकी लगेज ....

धीमे धीमे चलते हुए वो आ रहीं थी ..कुछ थकि थकि सी ..चेहरा थोड़ा मुरझाया ..जो स्वाभाविक था..इतने लंबे सफ़र के बाद .

अब वो हमारे पास थी , मैं उनको छू सकता था .. मैं उनसे गले लग गया ...." दीदी..दीदी ....." और उनकी गोद से बच्चे को अपनी गोद में ले लिया ....

उन्होने तपाक से मामा ,मामी के पैर छूए ..मामी ने एर होस्टेस्स से उनका दूसरा बच्चा ले लिया और मामा ने तीसरे को संभाला.

मेरी आँखें तो बस दीदी से हट ती ही नहीं थी ..उन्होने सही में अपने आप को सहेज़ कर रखा था .. बिल्कुल वैसे ही थी जैसा हम ने उन्हें आखरी बार देखा था ..रंग और भी निखर आया था ....चेहरा और लाल....

" कैसा है किशू..??? " उन्होने चूप्पि तोड़ी..

" बस ठीक हूँ दीदी .. आप को बहुत मिस किया ...."

उन्होने मुझे उपर से नीचे देखा ..उनकी आँखें चौड़ी हो गयीं ...

"ह्म्‍म्म्म ..अब तू काफ़ी बड़ा हो गया है....काफ़ी लंबा भी ...

लो अब मैं आ गयी ना ... अब तो खुश ..??" मैं जवाब में उनकी तरफ देख मुस्कुरा रहा था..मेरी खुशी मेरे चेहरे की चमक से सॉफ ज़ाहिर हो रही थी ..

" जीजा जी नहीं आए दीदी..? क्या हुआ...?" मैने पूछा .

" अरे बाबा सांस तो लेने दो..सारी बात यहीं करेगा ...? बताऊंगी ..बताऊंगी ..."

ऐसी ही बातें करते हम एर पोर्ट से बाहर आ गये ....टॅक्सी ली और होटेल आ गये ...

वैसे होटेल और ट्रेन में कोई ख़ास बात नहीं हुई उन से ..एक तो काफ़ी थकि थीं और दूसरे बच्चों को संभालने में ही सारा समय निकल जाता ...बाकी समय आराम कर लेतीं ..

सुबेह हम अपने घर पहून्च गये ...

शाम को हम फूर्सत में थे ...

बच्चे अपने नाना नानी के संग थे ...मैं और दीदी उनके कमरे में अकेले ..

मैं और दीदी पलंग पर आमने सामने बैठे थे ..मैं उनकी ओर एक टक देखे जा रहा था ...उनको अपनी आँखों से पी रहा था ....वो भी चुप चाप मुझे देखे जा रही थी ...

मैने उन्हें अपनी बाहों में ले लिया और अपने से चिपका लिया ..दीदी भी अपनी बाहों से मेरी पीठ जकड़ती हुई मुझसे और भी चिपक गयीं ..

"हाँ किशू ..हाँ ...बस ऐसे ही मुझे अपने में समा ले रे ..बहुत तडपि हूँ मैं तेरे लिए ..बहुत ..."

" हाँ दीदी ..मैने भी कितने आँसू बहाए हैं आप के लिए ...अब आप कहीं मत जाना ..."और मैं उनके होंठ चूसने लगा ...जीभ अंदर डाल उनकी जीभ चूसने लगा...

" हाँ रे किशू ....समा ले मुझे अपने में ..समा ले ..कभी अलग मत करना ..उफफफफफफ्फ़ ...देख ना मैं कितनी बेचैन थी तेरे लिए ..हम दोनों साथ आने वाले थे ..पर ऐन मौके पर गौरव को कुछ ज़रूरी काम आ गया ...वो एक हफ्ते बाद आने वाले हैं..मुझ से नहीं रूका गया किशू ...मैं अकेले ही आ गयी ....ऊऊहह किशू ..मैं तेरे लिए पागल हो रही थी ...बस अब और नहीं ..अब कभी तेरे से दूर नहीं जाऊंगी ..."

और उन्होने मेरे पाजामे के नाडे को एक झटके में खोल दिया ..मेरा कड़क लंड उछलता हुआ बाहर आया ....

" उफफफफफफ्फ़ किशू .....देख कितना मस्त ..कितना बड़ा ..कितना मोटा है .....इसके लिए ही तो मैं इतनी बेसब्री थी..."

उन्होने उसे मूठ में भर लिया और जोरों से दबाने लगीं , जैसे उसे निचोड़ लेंगी ..

मैं सिहर उठा ....कांप उठा

" हाँ दीदी ..मैने इसे आप के लिए ही तो संभाल के रखा है..आप की चूत के लिए ...मेरा कुँवारा लंड ...ये भी तो आप की ही अमानत है ...."

" हाँ किशू ..ये बिल्कुल मेरा है ..मेरा अपना ..इसे मैने भी कितना सहलाया है..पूचकारा है ..प्यार किया है ...."

और उन्होने झूकते हुए उसे अपने मुँह में ले लिया ....चूमने लगीं , चाटने लगीं , हथेली से सहलाने लगीं ...

मैं इतने दिनों तक उनके इस स्पर्श , चूसने , चाटने और चूमने से महरूम था ..आज जब ये मौका आया ..मेरा रोम रोम तड़प उठा , सिहर उठा ......अजीब सी कंप कंपी हो उठी मेरे बदन में

दीदी ने और जोरो से मेरे लंड को अपने होंठों से जकड़ते हुए चूसना शुरू कर दिया ....जैसे कोई बच्चा आइस क्रीम जोरों से चूसता है ....

मैं ज़्यादा देर सहन नहीं कर सका .....मैने अपनी पिचकारी उनके मुँह में छ्चोड़ दी ..

उन्होने अपना पूरा मुँह खोले सारे का सारा रस अपने मुँह में लेती रही...पीती रही ..जब तक के मैं पूरी तरह झाड़ नहीं गया .....

फिर उन्होने अपने होंठों से उसे पूरी तरह चूसा , अंदर जितना भी थोड़ा बहुत था पूरा बाहर उनके मुँह में जाता रहा ..जीभ फिराते हुए उसे पूरी तरह सॉफ कर दिया ...

" तेरे रस का टेस्ट भी कितना अच्छा है रे किशू ..मैं कितना मिस करती थी " उन्होने अपने होंठों पर अपनी जीभ फिराते हुए कहा ..

मैं उनके सीने से लगा शांत हो गया था ...

दीदी मेरे बालों को सहलाते हुए मेरे चेहरे को अपने हाथों से थाम लिया मुझे चूम लिया और कहा " मेला बच्चा ..कितना बड़ा हो गया है .....आज रात बड़े बच्चे का बड़ा लंड लूँगी .....उफफफफफफफ्फ़.."

और तभी दोनों बड़े वाले बच्चे धमाका मचाते हुए कमरे के अंदर आ गये ..

दीदी उनके साथ व्यस्त हो गयीं और मैं रात के बारे सोचता हुआ कमरे से बाहर आ गया.....
 
महँगी चूत सस्ता पानी--13

गतान्क से आगे…………………………….

और फिर रात भी आ गयी ....वो रात जिस का हम दोनों को इतनी बेसब्री ..इतनी तड़प ..इतनी ललक ..इतनी बेताबी थी ...तीन सालों से ....तीन सालों से मिलने की तड़प और हमेशा से एक दूसरे में समान जाने की बेचैनी ..... मैं इस कल्पना मात्र से सीहर जाता ....मेरा लॉडा अभी से तन तना रहा था .... उछल रहा था ....

मैं अपने कमरे में पाजामे के अंदर हाथ डाले अपने लंड को धीमे धीमे सहलाता हुआ दीदी का इंतेज़ार कर रहा था ...

दीदी अपने बच्चों को सूला कर धीमे से दरवाज़ा खोलते हुए मेरे कमरे में अंदर आईं ..

उन्‍होने दरवाज़ा बंद कर दिया ...मेरी तरफ अपने नपे तुले कदमों से आगे बढ़ती गयीं ..मैने अपना हाथ अपने लंड से हटा लिया ..पाजामे के अंदर बिल्कुल तन्नाया हुआ कड़क खड़ा था ..

दीदी ने एक नज़र उस पर डाली .....मैं पीठ के बल लेटा था ...लंड कड़क इतना था के हिल रहा था..मानों दीदी को सलामी दे रहा हो ..

दीदी ने उसे अपनी मुट्ठी में लेते हुए जोरों से दबाया और मेरे उपर आ गयीं ..अपने जांघों के बीच मेरे लौडे को रखते हुए उसे अपनी चूत के उपर से ही दबाया ....और मुझे अपनी बाहों से जाकड़ लिया ..मैने भी उन्हें जाकड़ लिया ....दोनों एक दूसरे से बूरी तारेह लिपटे थे ..जैसे कोई भूखा शेर अपने शिकार पर टूट पड़ता है.....एक दूसरे को चूम रहे थे....चाट रहे थे ..नोच रहे थे..काट रहे थे ....उफफफफफफ्फ़ ..मुझे समझ नही आ रहा था मैं क्या करूँ....दीदी भी मुझे अपने सीने से जोरों से लगा रखा था ..मानों मुझे अपने सीने के अंदर समा लेंगी....कोई कुछ बोल नहीं रहा था .....साँसें और धड़कानों की आवाज़ आ रही थी ...बीच बीच कपड़ों के फटने की भी आवाज़ आती...

एक दूसरे के कपड़े फाड़ फाड़ हम नीचे फेंके जा रहे थे ....उफफफफफफफ्फ़..क्या माहौल था .....इतनी तड़प थी हम दोनों को .....आख़िर हमने एक दूसरे को बिल्कुल नंगा कर दिया ..कपड़े तार तार हो नीचे पड़े थे ..और हम दोनों नंगे चीपके हुए एक दूसरे को महसूस करते हुए ...चूमते हुए ..काट ते हुए ..चाट ते हुए ..एक दूसरे के उपर..कभी मैं उपर तो कभी दीदी उपर ....हम दोनों पलंग पर लुढ़क रहे थे ......पागलों की तारेह ...मेरा लॉडा उनकी जांघों के बीच ..कभी उनकी चूत की दीवारों के बीच टकराता जा रहा था ..फॅन फ़ना रहा था ....

ओओओओओह..उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ ......डिडियीयियी...किशुउऊउ .....बस इतने ही शब्द निकलते हमारे मुँह से ....कभी मैं उन्हें चूमता रहता ..उन्हके होंठ चूस्ता ..उनकी जीभ चूस्ता ..उनकी थूक अंदर लेता ......

उनकी चूत और मेरे लंड से लगातार पानी रिस रहा था .....मेरा लॉडा तो बस दीदी के हाथ में झड़ने को तैय्यार था ..मुझ से रहा नहीं जा रहा था ..

"डीडीिईई..प्ल्ज़ दो ना ...दो ना अपनी चूत ......."

दीदी भी समझती थी मेरी बेचैनी ..मेरे बगल लेट गयीं ..अपनी टाँगें फैला दीं ..चूत भी ...

उफफफफ्फ़ अभी भी उनकी चूत की फाँक टाइट थी .....

उन्होने मुझे इशारा किया ..मैं उनकी टाँगों के बीच आ गया ..मेरे लौडे को अपने हाथ में ले अपनी चूत पर रख दिया ..और एक बार उसे अपनी चूत पर जोरो से घीस दिया ..मैं तड़प उठा ....."आआआआआआआआआआआआआआह ......"

फिर चूत की होल पर रखा और कहा "किशू ..ले मेरी चूत ...मार धक्का .. फाड़ देना हां ....आज मीटा ले अपनी भूक ..मैं जानती हूँ किशू तू कितना इंतेज़ार किया मेरे लिए .. अब रुक मत ..ले चोद ....."

और अपनी टाँगों से मेरी पीठ जाकड़ ली ..

मैने लंड को अंदर पुश किया ...उफफफफफफ्फ़ .. अब तक इतनी गीली हो गयी थी ...फिसलता हुआ अंदर चला गया ......आआआआआः ...इतना मुलायम ..इतना गर्म ....इतनी टाइट .....मैने कभी सोचा ना था .कभी कल्पना में भी ऐसा अनुभव नहीं हुआ .....मैं अंदर डाले उनकी चूत को महसूस करता रहा ..अपने लौडे से उन्हें अपने अंदर समाने की कोशिश करता रहा .... दीदी भी मेरी एक एक बात समझ जाती ..उन्होने अपनी चूतको मेरे लौडे पर घूमाना शूरू कर दिया ..जैसे मेरे लौडे को अपनी चूत के एक एक कोने का मज़ा दे रही हों ..मैने उन्हें जाकड़ लिया ..अपने से चीपका लिया और अंदर ही अंदर लॉडा उनकी चूत में घूमता रहा....

" किशू ....मेरे राजा ..मेला बड़ा बच्चा ...ले ना अब धक्के लगा ना .....अंदर का मज़ा ले लिया ना ....अब मुझे अपने लंड की ताक़त का भी मज़ा दे रे.....कितना सख़्त है ...उफफफफफफफफ्फ़ ...रूकना मत .."

और फिर मैने उनकी चूतड़ अपने हाथों से जकड़ते हुए जोरदार धक्के लगाना शूरू कर दिया

फतच ..फतच और ..पॅच पॅच की आवाज़ से कमरा भर उठा ...

हर धक्के में उनकी चूतड़ उछल जाती , वो " हाइईईई...आआआआआहह ......उईईईईईईईई ...." किए जा रही थीं ..मैं उन्हें तबाद तोड़ चोदे जा रहा था ..अपने कुंवारे लंड की प्यास बूझाता जा रहा था .....उफफफफफफफफफफफ्फ़ ..क्या चोद्ना यही है ..क्या चरम सूख यही है ....उफफफफफफ्फ़ ..मैने इतना इंतेज़ार किया ....सही में इंतेज़ार का फल कितना मीठा और रस से भरपूर था ....

"डीडीिईईईईईईईई ....आआआः दीदी ..बहोत अच्छा लग रहा है ...उफ्फ दीदी .. आप को दर्द तो नहीं हो रहा ना ..?"

" नहीं रे ....मुझे इतना मज़ा आज तक नहीं आया रे ..तू रूकना मत ..बस चोद्ते रहो....."

और मैं पागलों की तरह उन्हें चोदे जा रहा था ...मैं इतना उत्तेजित था ...मेरा लंड उनकी चूत में कड़क और कड़क होता जाता ....".उफफफफफफफफ्फ़ ..हे भगवान यह क्या है ......."

और फिर मैं दीदी को और जोरों से अपनी बाहों में जाकड़ लिया ..दीदी भी अपनी टाँगें और भी टाइट कर लीं मेरी पीठ पर ..मेरा धक्का लगाना बिल्कुल पिस्टन की तारेह ज़ोर पकड़ लिया ..ज़ोर और ज़ोर और ज़ोर ..

"डीडीिईईईईईईईईईईईईई ................"

"हाां मेला बच्चा ...छ्चोड़ दे ..छ्चोड़ अपना रस ...बिल्कुल खाली हो जा ...."

मैं उन्हें जकड़ा था ..मेरी चूतड़ उछल रही थी ..लंड से रस की धार फूट पड़ी थी ....दीदी के चूतड़ उछल रहे थे ...दीदी की चूत भरती जा रही थी .....मेरे वीर्य से ....

मेरा पूरा लंड खाली हो गया पर मेरा मन अभी भी भरा नहीं .....

जब मैने अपना लंड बाहर किया ..पूरी तरह गीला था ..पर दीदी की आँखें फटी की फटी रह गयी

झड़ने के बाद भी मेरा लंड अभी भी तननाया था ..इतनी उत्तेजना थी मुझ में ...

मैने फ़ौरन फिर से उनकी गीली और लाबा लब रस से भरी चूत में अपना लंड पेल दिया

"आआआआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ......." दीदी कराह उठीं ..पर मैं धक्के लगाना जारी रखा ..उन्हें चोद्ता रहा ,,चोद्ता रहा ...चोद्ता रहा ....

दीदी हाँफ रही थी ..मैं हाँफ रहा था ..पर मेरा चोद्ना जारी था ....

मुझ में एक अजीब नशा , जोश , जुनून था आज ...

कितनी बार झाड़ा और फिर उसी जोश में चोद्ना जारी था ....मेरा लंड ढीला होने का नाम ही नहीं लेता ......यह तीसरी बार था मेरे लगातार चोद्ने की

दीदी की टाँगें ढीली हो गयीं थी..उनकी चूत से रस बाहर टपक रहा था ..मेरा लंड बूरी तरह गीला था...रस से सराबोर ....सुपाडे से रस टपकता हुआ ......

" दीदी ..मैं क्या करूँ ..दीदी देखिए ना आपके लिए कितना तैय्यार है मेरा लंड ...आप के लिए ..आप की चूत के लिए .....दीदी ......मैं क्या करूँ...??"

" हां किशू ..देख ना यह तो इतने गुस्से में है शांत ही नहीं होता ...."

और फिर उन्होने मेरे गीले लंड को अपने हाथों से बड़े प्यार से सहलाना शूरू कर दिया ..उसे चूमने लगीं ..जीभ से चाटने लगीं और फ़ौरन अपने मुँह में ले इतनी जोरों से चूसा ..जैसे मेरे लंड का पूरा पानी अपने अंदर ले लेंगी ...खूब जोरों से चूस रही थी ..जीभ फिरा रही थी .....हाथों से भी सहला रही थी ....

":हााआअँ ऊवू ,,हां दीदी "

और इस बार मैं इतनी जोरों से उनके मुँह में झाड़ा ..जैसे मेरा पूरा बदन खाली हो गया हो..मेरी पूरी जान उनके अंदर समा गयी हो......

मैं झड्ता जा रहा था ..दीदी पूरा रस पीती जा रही थी ....

अब मैं शांत था ..मेरा लॉडा शांत था... ..दीदी के हाथों में ....

दीदी टाँगें फैलाए ..हाथ पसारे आँखें बंद किए लेटी थीं ....अभी भी उनकी साँसें थमी नहीं थीं ...मेरी चूडैई इतनी ताबड तोड़ थी ...मैं भी उनकी बाहों में अपना सर रखे हाँफ रहा था...

" उफफफफफफफ्फ़ ..क्या चुदाई की रे किशू तू ने ......मेरा रोम रोम चोद दिया तुम ने ....सिर्फ़ चूत ही नहीं ...सारा बदन ..मेरा अंग अंग तुम ने आज चोद लिया ....वाह रे तेरा लंड ....." दीदी ने मुझे चूमते हुए कहा .

" हां दीदी ....मैं इतना तडपा हूँ..एक एक दिन मैं और मेरा लंड आप के लिए कितना तरसा है .....तीन साल से जमा सारा रस आज निकल गया ...मुझे कितना अच्छा लग रहा है दीदी ..आप ने मुझे इतना सूख दिया ......आप कितनी अच्छे हो दीदी ..मेरे लिए आप ने कितना सहा आज ....दीदी ..दीदी आइ लव यू सो मच ..." और मैं फिर से उन से चीपकता हुआ उनकी चूचियाँ चूसने लगा ..

"हां रे मैं समझती हूँ ....तू इतना प्यार करता है ना मुझ से ..??? देख ना एक एक धक्का तेरी इस बात की गवाह है ..... हर बार तुम ने मुझे निहाल कर दिया ....इतनी प्यास ..इतनी तड़प ...अफ किशू तुम ने मुझे प्यार से सराबोर कर दिया रे ...मुझे नहला दिया अपने प्यार से ...."

और फिर हम दोनों एक दूसरे को नोच रहे थे ..चूम रहे थे ..चाट रहे थे ....काट रहे थे ..और अगली चुदाई की तैयारी में थे .....

और यह खेल अब तो मेरे और दीदी का नॉर्मल रुटीन बन गया है ...

जब भी मौका मिलता है हम अपना खेल जारी रखते हैं ....

गौरव जीजा जी एक हफ्ते बाद दीदी को ले गये ....

पर दीदी हमेशा आती हैं ....मेरे लिए ..मेरे प्यार के लिए ....जो हमेशा जवान था ..है और रहेगा ......

तो दोस्तो आपको ये कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा

दा एंड.....
 
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