Kamukta Kahani मेरी बहन कविता - SexBaba
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Kamukta Kahani मेरी बहन कविता

hotaks444

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मेरी बहन कविता 

दुनिया में कुछ बाते कब और कैसे हो जाती है ये कहना बहुत मुश्किल है. जिसके बारे में आपने कभी कल्पना भी नहीं की होती वैसी घटनाये आपके जीवन को पूरी तरह से बदल कर रख देती है. बात इधर उधर घुमाने की जगह सीधा कहानी पर आता हूँ. मैं मुंबई में रहता था और वही एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करने के साथ कंप्यूटर कोर्स भी करता था.

मेरी बड़ी बहन भी वही रहती थी रहती थी. उसका पति एक प्राइवेट फर्म में काम करता था. अच्छा कमाता था, और उसने एक छोटा सा एक बेडरूम वाला फ्लैट ले रखा था. उनका घर छोटा होने के कारण मैं वहां नहीं रह सकता था. मगर उनके घर के पास ही मैंने भी एक कमरा किराये पर ले लिया था.

मेरी बहन का नाम कविता था. शादी के 4 साल बाद भी उसे कोई बच्चा नहीं था और शायद होने की सम्भावना भी नहीं थी. क्योंकि उसका पति थोड़ा सनकी किस्म का था . उसके दिमाग में पता नहीं कहाँ से अमीर बन ने का भूत सवार हो गया था. हालाँकि ये हमारे परिवार की जरुरत थी. वो हर समय दुबई जाने के बारे में बाते करता रहता था. हालाँकि दीदी उसकी इन बातो से कभी-कभी चिढ जाती थी मगर फिर भी वो उसके विचारो से सहमत थी.

फिर एक दिन ऐसा आया जब वो सच में दुबई चला गया. वहाँ उसे एक फर्म में नौकरी मिल गई थी. तब मैंने किराया बचाने और दीदी की सुविधा के लिए अपना किराये का कमरा छोड़ कर अपने आप को दीदी के एक बेडरूम फ्लैट में शिफ्ट कर लिया. ड्राइंग रूम के एक कोने में रखा हुआ दीवान मेरा बिस्तर बना और मैं उसी पर सोने लगा . दीदी अपने बेडरूम में सोती थी. एक ओर साइड में रसोइ और दूसरी तरफ लैट्रीन और बाथरूम. रात में दीदी बेडरूम के दरवाजे को पूरी तरह बंद नहीं करती थी केवल सटा भर देती थी. अगर दरवाजा थोड़ा सा भी अलग होता था तो उसके कमरे की नाईट बल्ब की रौशनी मुझे ड्राइंग रूम में भी आती थी. दरवाजे के खुले होने के कारण मुझे रात को जब मुठ मारने की तलब लगती थी तब मुझे बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती थी. क्योंकि हमेशा डर लगा रहता था की पता नहीं दीदी कब बाहर आ जायेगी. लड़कियो के प्रति आकर्षण तो शुरू से था. आस-पास की लड़कियो और शादी शुदा औरतो को देख-देख कर मूठ मारा करता था.

दीदी के साथ रहते हुए मैंने इस बात को महसूस किया की मेरी दीदी वाकई बहुत ही खूबसूरत औरत है. ऐसा नहीं था की दीदी शादी के पहले खूबसूरत नहीं थी. दीदी एकदम गोरी चिट्टी और तीखे नाक-नक्शे वाली थी. पर दीदी और मेरे उम्र के बीच करीब 6 से 7 साल का फर्क था, इसलिए जब दीदी कुंवारी थी तो मेरी उतनी समझदारी ही नहीं थी की मैं उनकी सुन्दरता को समझ पाता या फिर उसका आकलन कर पाता. फिर शादी के बाद दीदी अलग रहने लगी थी. अब जब मैं जवान और समझदार हो गया था और हम दुबारा साथ रहने लगे तो मुझे अपनी दीदी को काफी नजदीक से देखने का अवसर मिल रहा था और यह अहसास हो रहा था की वाकई मेरी बहन लाखो में एक हैं. शादी के बाद से उसका बदन थोड़ा मोटा हो गया था. मतलब उसमे भराव आ गया था. पहले वो दुबली पतली थी मगर अब उसका बदन गदरा गया था. शायद ये उम्र का भी असर था क्योंकि उसकी उम्र भी 31-32 के आस पास की हो गई थी . उसके गोरे सुडौल बदन में गजब का भराव और लोच था. चलने का अंदाज बेहद आकर्षक और क्या कह सकते है कोई शब्द नहीं मिल रहा शायद सेक्सी था. कभी चुस्त सलवार कमीज़ तो कभी साडी ब्लाउज जो भी वो पहनती थी उसका बदन उसमे और भी ज्यादा निखर जाता था . चुस्त सलवार कुर्ती में तो हद से ज्यादा सेक्सी दिखती. दीदी जब वो पहनती थी उस समय सबसे ज्यादा आकर्षण उसकी टांगो में होता था . सलवार उसके पैरो से एकदम चिपकी हुई होती थी. जैसा की आप सभी जानते है ज्यादातर अपने यहाँ जो भी चुस्त सलवार बनती है वो झीने सूती कपड़ो की होती है. इसलिए दीदी की सलवार भी झीने सूती कपड़े की बनी होती थी और वो उसके टांगो से एकदम चिपकी हुई होती. कमीज़ थोरी लम्बी होती थी मगर ठीक कमर के पास आकर उसमे जो कट होता था असल में वही जानलेवा होता था. कमीज़ का कट चलते समय जब इधर से उधर होता तो चुस्त सलवार में कसी हुई मांसल जांघे और चुत्तर दिख जाते थे. कविता दीदी की जांघे एकदम ठोस, गदराई और मोटी कन्दली के खंभे जैसी थी फिर उसी अनुपात में चुत्तर भी थे. एकदम मोटे मोटे , गोल-मटोल गदराये, मांसल और गद्देदार जो चलने पर हिलते थे. सीढियों पर चढ़ते समय कई बार मुझे कविता दीदी के पीछे चलने का अवसर प्राप्त हुआ था. सीढियाँ चढ़ते समय जब साडी या सलवार कमीज में कसे हुए उनके चुत्तर हिलते थे, तो पता नहीं क्यों मुझे बड़ी शर्मिंदगी महसूस होती थी. इसका कारण शायद ये था की मुझे उम्र में अपने से बड़ी और भरे बदन वाली लड़कियोँ या औरते ज्यादा अच्छी लगती थी. सीढियों पर चढ़ते समय जब कविता दीदी के तरबूजे के जैसे चुत्तर के दोनों फांक जब हिलते तो पता नहीं मेरे अन्दर कुछ हो जाता था. मेरी नज़रे अपने आप पर काबू नहीं रख पाती और मैं उन्हें चोर नजरो से देखने की कोशिश करता. पीछे से देखते समय मेरा सामना चूँकि दीदी से नहीं होता था इसलिए शायद मैं उनको एक भरपूर जवान औरत के रूप में देखने लगता था और अपने आप को उनके हिलते हुए चूत्तरों को देखने से नहीं रोक पाता था. अपनी ही दीदी के चुत्तरों को देखने के कारण मैं अपराधबोध से ग्रस्त हो शर्मिंदगी महसूस करता था. कई बार वो चुस्त सलवार पर शोर्ट कुर्ती यानि की छोटी जांघो तक की कुर्ती भी पहन लेती थी. उस दिन मैं उनसे नज़रे नहीं मिला पाता था. मेरी नज़रे जांघो से ऊपर उठ ही नहीं पाती थी. शोर्ट कुर्ती से झांकते चुस्त सलवार में कसे मोटे मोटे गदराये जांघ भला किसे अच्छे नहीं लगेंगे भले ही वो आपकी बहन के हो. पर इसके कारण आत्मग्लानी भी होती थी और मैं उनसे आंखे नहीं मिला पाता था.

दीदी की चुत्तर और जांघो में जो मांसलता आई थी वही उनकी चुचियों में भी देखने को मिलती थी. उनके मोटे चुत्तर और गांड के अनुपात में ही उनकी चुचियाँ भी थी. चुचियों के बारे में यही कह सकते है की इतने बड़े हो की आपकी हथेली में नहीं समाये पर इतने ज्यादा बड़े भी न हो की दो हाथो की हथेलियों से भी बाहर निकल जाये. कुल मिला कर ये कहे तो शरीर के अनुपात में हो. कुछ १८-१९ साल की लड़कीयों जो की देखने में खूबसूरत तो होंगी मगर उनकी चुचियाँ निम्बू या संतरे के आकार की होती है. जवान लड़कियोँ की चुचियों का आकार कम से कम बेल या नारियल के फल जितना तो होना ही चाहिए. निम्बू तो चौदह-पंद्रह साल की छोकरियों पर अच्छा लगता है. कई बार ध्यान से देखने पर पता चल पाता है की पुशअप ब्रा पहन कर फुला कर घूम रही है. इसी तरह कुछ की ऐसी ढीली और इतनी बड़ी-बड़ी होगी की देख कर मूड ख़राब हो जायेगा. लोगो का मुझे नहीं पता मगर मुझे तो एक साइज़ में ढली चूचियां ही अच्छी लगती है. शारीरिक अनुपात में ढली में हुई, ताकि ऐसा न लगे की पुरे बदन से भारी तो चूचियां है या फिर चूची की जगह पर सपाट छाती लिए घूम रही हो. सुन्दर मुखड़ा और नुकीली चुचियाँ ही लड़कियों को माल बनाती है.
 
एकदम तीर की तरह नुकीली चुचिया थी दीदी की. भरी-भरी, भारी और गुदाज़. गोल और गदराई हुई. साधारण सलवार कुर्ती में भी गजब की लगती थी. बिना चुन्नी के उनकी चूचियां ऐसे लगती जैसे किसी बड़े नारियल को दो भागो में काट कर उलट कर उनकी छाती से चिपका दिया गया है. घर में दीदी ज्यादातर साड़ी या सलवार कमीज़ में रहती थी . गर्मियों में वो आम तौर पर साड़ी पहनती थी . शायद इसका सबसे बड़ा कारण ये था की वो घर में अपनी साड़ी उतार कर, केवल पेटीकोट ब्लाउज में घूम सकती थी. ये एक तरह से उसके लिए नाईटी या फिर मैक्सी का काम करता था. अगर कही जाना होता था तो वो झट से एक पतली सूती साड़ी लपेट लेती थी. मेरी मौजूदगी से भी उसे कोई अंतर नहीं पड़ता था, केवल अपनी छाती पर एक पतली चुन्नी डाल लेती थी. पेटीकोट और ब्लाउज में रहने से उसे शायद गर्मी कम लगती थी. मेरी समझ से इसका कारण ये हो सकता है की नाईटी पहनने पर भी उसे नाईटी के अन्दर एक स्लिप और पेटीकोट तो पहनना ही पड़ता था, और अगर वो ऐसा नहीं करती तो उसकी ब्रा और पैन्टी दिखने लगते, जो की मेरी मौजूदगी के कारण वो नहीं चाहती थी. जबकि पेटीकोट जो की आम तौर पर मोटे सूती कपड़े का बना होता है एकदम ढीला ढाला और हवादार. कई बार रसोई में या बाथरूम में काम समय मैंने देखा था की वो अपने पेटीकोट को उठा कर कमर में खोस लेती थी जिससे घुटने तक उसकी गोरी गोरी टांगे नंगी हो जाती थी. दीदी की पिंडलियाँ भी मांसल और चिकनी थी. वो हमेशा एक पतला सा पायल पहने रहती थी. मैं कविता दीदी को इन्ही वस्त्रो में देखता रहता था मगर फिर भी उनके साथ एक सम्मान और इज्ज़त भरे रिश्ते की सीमाओं को लांघने के बारे में नहीं सोचता था. वो भी मुझे एक मासूम सा लड़का समझती थी और भले ही किसी भी अवस्था या कपड़े में हो , मेरे सामने आने में नहीं हिचकिचाती थी. ड्राइंग रूम में बैठे हुए रसोई में जहॉ वो खाना बनाती थी वो सब ड्राइंग रूम में रखे अल्मीराह में लगे आईने (mirror) में स्पष्ट दिखाई पड़ता था. कई बार दीदी पसीना पोछने के लिए लिए अपने पेटीकोट का इस्तेमाल करती थी. पेटीकोट के निचले भाग को ऊपर उठा कर चेहरे का पसीने के पोछते हुए मैंने कई बार मैंने आईने में देखा. पेटीकोट के निचले भाग को उठा कर जब वो थोड़ा तिरछा हो कर पसीना पोछती थी तो उनकी गोरी, बेदाग, मोटी जांघे दिख जाती थी.

एक दिन गर्मी बहुत ज्यादा थी और दीदी सफ़ेद रंग का पेटिकोट और लाल रंग का ब्लाउज पहन कर खाना बना रही थी उस दिन मैं रसोई में फ़्रिज से पानी लेने दो-तीन बार गया. रसोई में दीदी को बहुत पसीना आ रहा था. उसके चेहरे और पेट पर पसीना साफ़ दिख रहा था. पसीने के कारण सफ़ेद रंग का पेटीकोट उनके चुत्तरो से चिपक गया था. ब्लाउज भी काफी भींग गया था और उसकी चुचियों से चिपक गया था. ध्यान से देखने पर मुझे ऐसा लगा जैसे उनकी चुचियों के निप्पल भी ब्लाउज के ऊपर से दिख रहे थे. शायद दीदी ने गर्मी के कारण ब्रा नहीं पहना था. मैं फ्रीज से पानी निकाल कर पी रहा था तभी वो निचे झुक कर कुछ करने लगी, उनके चुत्तर मेरी आँखों के सामने पूरी तरह से उभर कर आ गए. पसीने से भीगा पेटीकोट पूरी तरह से चिपक गया था और दोनों चुत्तर दिखने लगे थे. नीले रंग की पैंटी और उसके किनारे साफ़ नज़र आ रहे थे. पेटीकोट का कपड़ा भींग कर उनकी गांड की दरार में फस जाता अगर उन्होंने पैंटी नहीं पहनी होती. मैं एक दम से घबरा गया और भाग कर जल्दी से रसोई से निकल गया.

शुक्रवार की रातो को मैं आमतौर पर बहुत देर से सोता था. क्योंकि अगले दिन शनिवार और रविवार मेरे ऑफिस में छुट्टी होती थी. ऐसे ही एक शनिवार के दिन मेरे जीवन में एक नया मोर आया. शुक्रवार की रात थी और दीदी हमेशा की तरह 11 बजे रात को सोने चली गई थी. मैं देर रात तक केबल पर फिल्म देखता रहा. अगले दिन शनिवार को मेरी नींद बहुत देर से खुली . छुट्टी के दिनों में दीदी मुझे जगाती नहीं थी. क्योंकि घर में सभी जानते थे की मुझे देर तक सोना पसंद था. उस दिन ऐसा ही हुआ था. मैंने जब घड़ी देखी तो उस समय दिन के 10 बज रहे थे . मैं घबरा कर जल्दी से उठा. अपने चारो तरफ देखते ही मुझे अहसास हो गया की दीदी बहुत पहले उठ चुकी है क्यों की, पुरे घर की सफाई हो चुकी थी . मुझे अपने देर से उठने की आदत पर शर्मिन्दगी हुई. जल्दी से ब्रश किया और चाय के लिए रसोई में जा कर खुद से चाय बना लिया और पेपर पढ़ते हुए चाय पिने लगा. बिना चाय पिए मुझे सुबह में बाथरूम जाने में प्रॉब्लम होती थी. दीदी शायद घर में नहीं थी, पड़ोस में किसी के पास गई थी. चाय ख़तम कर के मैं लैट्रीन चला गया.

ये लैट्रीन पहले सेपरेट नहीं था. मतलब बाथरूम के साथ ही मिला हुआ था और एक ही दरवाजा था. इसके कारण बहुत असुविधा होती थी. क्योंकि एक आदमी के घुसने से ही लैट्रीन और बाथरूम दोनों इंगेज हो जाते थे. अगर घर में ज्यादा सदस्य न हो तब तो कोई प्रॉब्लम नहीं होती थी, मगर गेस्ट्स के आ जाने पर समस्या खड़ी हो जाती थी. लैट्रीन बाथरूम सेपरेट रहने पर दो आदमी एक साथ दो काम कर सकते थे. इसलिए लैट्रीन और बाथरूम दोनों को सेपरेट कर दिया गया. इसके लिए बाथरूम के बीच में लकड़ी के पट्टो की सहायता से एक दिवार बना दी गई. ईट की दीवार बनाने में एक तो खर्च बहुत आता दूसरा वो ज्यादा जगह भी लेता, लकड़ी की दीवार इस बाथरूम के लिए एक दम सही थी. लैट्रीन के लिए एक अलग दरवाजा बना दिया गया.

दस मिनट बाद जब मैंने फ्लश कर लिया और बाहर निकलने वाला ही था की तभी मुझे लगा की कोई बाथरूम का दरवाजा खोल कर अन्दर घुसा है . पता नहीं क्यों मगर मेरे पैर जहाँ थे वही रुक गए. कौन हो सकता है, ये बात ज्यादा सोचने की नहीं थी. मैं थोड़ी देर तक वही दरवाजा बंद होने की आहट का इन्तेज़ार करता रहा. दीदी शायद कोई गीत गुनगुना रही थी. लैट्रीन में उसकी आवाज़ स्पष्ट आ रही थी.

बहुत आराम से उठ कर लकड़ी के पट्टो पर कान लगा कर ध्यान से सुन ने लगा. केवल चुड़ियो के खन-खनाने और गुन-गुनाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी. फिर नल के खुलने पानी गिरने की आवाज़ सुनाई दी. मेरे अन्दर के शैतान ने मुझे एक आवाज़ दी, लकड़ी के पट्टो को ध्यान से देख. मैंने अपने अन्दर के शैतान की आवाज़ को अनसुना करने की कोशिश की, मगर शैतान हावी हो गया था. दीदी जैसी एक खूबसूरत औरत लकड़ी के पट्टो के उस पार नहाने जा रही थी. मेरा गला सुख गया और मेरे पैर कांपने लगे. अचानक ही पजामा एकदम से आगे की ओर उभर गया. दिमाग का काम अब लण्ड कर रहा था. मेरी आँखें लकड़ी के पट्टो के बीच ऊपर से निचे की तरफ घुमने लगी और अचानक मेरी मन की मुराद जैसे पूरी हो गई. लकड़ी के दो पट्टो के बीच थोड़ा सा गैप रह गया था. सबसे पहले तो मैंने धीरे से हाथ बढा का बाथरूम स्विच ऑफ किया फिर लकड़ी के पट्टो के गैप पर अपनी ऑंखें जमा दी.

दीदी की पीठ लकड़ी की दिवार की तरफ थी. वो सफ़ेद पेटिको़ट और काले ब्लाउज में नल के सामने खड़ी थी. नल खोल कर अपने कंधो पर रखे तौलिये को अपना एक हाथ बढा कर नल की बगल वाली खूंटी पर टांग दिया. फिर अपने हाथों को पीछे ले जा कर अपने खुले रेशमी बालो को समेट कर जुड़ा बना दिया. बाथरूम के कोने में बने रैक से एक क्रीम की बोतल उठा कर उसमे से क्रीम निकाल-निकाल कर अपने चेहरे के आगे हाथ घुमाने लगी. पीछे से मुझे उनका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था मगर ऐसा लग रहा था की वो क्रीम निकाल कर अपने चेहरे पर ही लगा रही है. लकड़ी के पट्टो के गैप से मुझे उनके सर से चुत्तरों के थोड़ा निचे तक का भाग दिखाई पड़ रहा था. क्रीम लगाने के बाद अपने पेटिको़ट को घुटनों के पास से पकर कर थोड़ा सा ऊपर उठाया और फिर थोड़ा तिरछा हो कर निचे बैठ गई. इस समय मुझे केवल उनका पीठ और सर नज़र आ रहा थे. पर अचानक से सिटी जैसी आवाज़ जो की औरतो के पेशाब करने की एक विशिष्ट पहचान है वो सुनाई दी. दीदी इस समय शायद वही बाथरूम के कोने में पेशाब कर रही थी. मेरे बदन में सिहरन दौर गई. मैं कुछ देख तो सकता नहीं था मगर मेरे दिमाग ने बहुत सारी कल्पनाये कर डाली. पेशाब करने की आवाज़ सुन कर कुंवारे लण्ड ने झटका खाया. मगर अफ़सोस कुछ देख नहीं सकता था.
 
मुझे लगा की शायद दीदी की चूत के ऊपर भी उसकी कान्खो की तरह से बालों का घना जंगल होगा और जरुर वो उसे ही देख रही होंगी. मेरा अनुमान सही था और दीदी ने अपने हाथ को बढा कर रैक पर से फिर वही क्रीम वाली बोतल उतार ली और अपने हाथो से अपने जांघो के बीच क्रीम लगाने लगी. पीछे से दीदी को क्रीम लगाते हुए देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो मुठ मार रही है. क्रीम लगाने के बाद वो फिर से निचे बैठ गई और अपने पेटीकोट और पैंटी को साफ़ करने लगी. मैंने अपने लौड़े को आश्वाशन दिया की घबराओ नहीं कपरे साफ़ होने के बाद और भी कुछ देखने को मिल सकता है. ज्यादा नहीं तो फिर से दीदी के नंगे चुत्तर, पीठ और जांघो को देख कर पानी गिरा लेंगे.

करीब पांच-सात मिनट के बाद वो फिर से खड़ी हो गई. लौड़े में फिर से जान आ गई. दीदी इस समय अपनी कमर पर हाथ रख कर खड़ी थी. फिर उसने अपने चुत्तर को खुजाया और सहलाया फिर अपने दोनों हाथों को बारी बारी से उठा कर अपनी कान्खो को देखा और फिर अपने जांघो के बीच झाँकने के बाद फर्श पर परे हुए कपड़ो को उठाया. यही वो क्षण था जिसका मैं काफी देर से इन्तेज़ार कर रहा था. फर्श पर पड़े हुए कपड़ो को उठाने के लिए दीदी निचे झुकी और उनके चुत्तर लकड़ी के पट्टो के बीच बने गैप के सामने आ गए. निचे झुकने के कारण उनके दोनों चुत्तर अपने आप अलग हो गए और उनके बीच की मोटी लकीर अब दीदी की गहरी गांड में बदल गई. दोनों चुत्तर बहुत ज्यादा अलग नहीं हुए थे मगर फिर भी इतने अलग तो हो चुके थे की उनके बीच की गहरी खाई नज़र आने लगी थी. देखने से ऐसा लग रहा था जैसे किसी बड़े खरबूजे को बीच से काट कर थोड़ा सा अलग करके दो खम्भों के ऊपर टिका कर रख दिया गया है. दीदी वैसे ही झुके हुए बाल्टी में कपड़ो को डाल कर खंगाल रही थी और बाहर निकाल कर उनका पानी निचोड़ रही थी. ताकत लगाने के कारण दीदी के चुत्तर और फ़ैल गए और गोरी चुत्तरों के बीच की गहरी भूरे रंग की गांड की खाई पूरी तरह से नज़र आने लगी. दीदी की गांड की खाई एक दम चिकनी थी. गांड के छेद के आस-पास भी बाल उग जाते है मगर दीदी के मामले में ऐसा नहीं था उसकी गांड, जैसा की उसका बदन था, की तरह ही मलाई के जैसी चिकनी लग रही थी. झुकने के कारण चुत्तरों के सबसे निचले भाग से जांघो के बीच से दीदी की चूत के बाल भी नजर आ रहे थे. उनके ऊपर लगा हुआ सफ़ेद क्रीम भी नज़र आ रहा था. चुत्तरो की खाई में काफी निचे जाकर जहा चूत के बाल थे उनसे थोड़ा सा ऊपर दीदी की गांड की सिकुरी हुई भूरे रंग की छेद थी. ऊँगली के अगले सिरे भर की बराबर की छेद थी. किसी फूल की तरह से नज़र आ रही थी. दीदी के एक दो बार हिलने पर वो छेद हल्का सा हिला और एक दो बार थोड़ा सा फुला-पिचका. ऐसा क्यों हुआ मेरी समझ में नहीं आया मगर इस समय मेरा दिल कर रहा था की मैं अपनी ऊँगली को दीदी की गांड की खाई में रख कर धीरे-धीरे चलाऊ और उसके भूरे रंग की दुप-दुपाती छेद पर अपनी ऊँगली रख हलके-हलके दबाब दाल कर गांड की छेद की मालिश करू. उफ़ कितना मजा आएगा अगर एक हाथ से चुत्तर को मसलते हुए दुसरे हाथ की ऊँगली को गांड की छेद पर डाल कर हलके-हलके कभी थोड़ा सा अन्दर कभी थोड़ा सा बाहर कर चलाया जाये तो. पूरी ऊँगली दीदी की गांड में डालने से उन्हें दर्द हो सकता था इसलिए पूरी ऊँगली की जगह आधी ऊँगली या फिर उस से भी कम डाल कर धीरे धीरे गोल-गोल घुमाते हुए अन्दर-बाहर करते हुए गांड की फूल जैसी छेद ऊँगली से हलके-हलके मालिश करने में बहुत मजा आएगा. इस कल्पना से ही मेरा पूरा बदन सिहर गया. दीदी की गांड इस समय इतनी खूबसूरत लग रही थी की दिल कर रहा थी अपने मुंह को उसके चुत्तरों के बीच घुसा दू और उसकी इस भूरे रंग की सिकुरी हुई गांड की छेद को अपने मुंह में भर कर उसके ऊपर अपना जीभ चलाते हुए उसके अन्दर अपनी जीभ डाल दू. उसके चुत्तरो को दांत से हलके हलके काट कर खाऊ और पूरी गांड की खाई में जीभ चलाते हुए उसकी गांड चाटू. पर ऐसा संभव नहीं था. मैं इतना उत्तेजित हो चूका था की लण्ड किसी भी समय पानी फेंक सकता था. लौड़ा अपनी पूरी औकात पर आ चूका था और अब दर्द करने लगा था. अपने अंडकोष को अपने हाथो से सहलाते हुए हलके से सुपाड़े को दो उँगलियों के बीच दबा कर अपने आप को सान्तवना दिया.

सारे कपड़े अब खंगाले जा चुके थे. दीदी सीधी खड़ी हो गई और अपने दोनों हाथो को उठा कर उसने एक अंगराई ली और अपनी कमर को सीधा किया फिर दाहिनी तरफ घूम गई. मेरी किस्मत शायद आज बहुत अच्छी थी. दाहिनी तरफ घूमते ही उसकी दाहिनी चूची जो की अब नंगी थी मेरी लालची आँखों के सामने आ गई. उफ़ अभी अगर मैं अपने लण्ड को केवल अपने हाथ से छू भर देता तो मेरा पानी निकल जाता. चूची का एक ही साइड दिख रहा था. दीदी की चूची एक दम ठस सीना तान के खड़ी थी. ब्लाउज के ऊपर से देखने पर मुझे लगता तो था की उनकी चूचियां सख्त होंगी मगर 28-29 साल की होने के बाद भी उनकी चुचियों में कोई ढलकाव नहीं आया था. इसका एक कारण ये भी हो सकता था की उनको अभी तक कोई बच्चा नहीं हुआ था. दीदी को शायद ब्रा की कोई जरुरत ही नहीं थी. उनकी चुचियों की कठोरता किसी भी 17-18

साल की लौंडिया के दिल में जलन पैदा कर सकती थी. जलन तो मेरे दिल में भी हो रही थी इतनी अच्छी चुचियों मेरी किस्मत में क्यों नहीं है. चूची एकदम दूध के जैसी गोरे रंग की थी. चूची का आकार ऐसा था जैसे किसी मध्यम आकार के कटोरे को उलट कर दीदी की छाती से चिपका दिया गया हो और फिर उसके ऊपर किशमिश के एक बड़े से दाने को डाल दिया गया हो. मध्यम आकार के कटोरे से मेरा मतलब है की अगर दीदी की चूची को मुट्ठी में पकड़ा जाये तो उसका आधा भाग मुट्ठी से बाहर ही रहेगा. चूची का रंग चूँकि हद से ज्यादा गोरा था इसलिए हरी हरी नसे उस पर साफ़ दिखाई पर रही थी, जो की चूची की सुन्दरता को और बढा रही थी. साइड से देखने के कारण चूची के निप्पल वन-डायेमेन्शन में नज़र आ रहे थे. सामने से देखने पर ही थ्री-डायेमेन्शन में नज़र आ सकते थे. तभी उनकी लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई का सही मायेने में अंदाज लगाया जा सकता था मगर क्या कर सकता था मजबूरी थी मैं साइड व्यू से ही काम चला रहा था. निप्पलों का रंग गुलाबी था, पर हल्का भूरापन लिए हुए था. बहुत ज्यादा बड़ा तो नहीं था मगर एक दम छोटा भी नहीं था किशमिश से बड़ा और चॉकलेट से थोड़ा सा छोटा. मतलब मुंह में जाने के बाद चॉकलेट और किशमिश दोनों का मजा देने वाला. दोनों होंठो के बीच दबा कर हलके-हलके दबा-दबा कर दांत से काटते हुए अगर चूसा जाये तो बिना चोदे झर जाने की पूरी सम्भावना थी
 
दाहिनी तरफ घूम कर आईने में अपने दाहिने हाथ को उठा कर देखा फिर बाएं हाथ को उठा कर देखा. फिर अपनी गर्दन को झुका कर अपनी जांघो के बीच देखा. फिर वापस नल की तरफ घूम गई और खंगाले हुए कपरों को वही नल के पास बनी एक खूंटी पर टांग दिया और फिर नल खोल कर बाल्टी में पानी भरने लगी. मैं समझ गया की दीदी अब शायद नहाना शुरू करेंगी. मैंने पूरी सावधानी के साथ अपनी आँखों को लकड़ी के पट्टो के गैप में लगा दिया. मग में पानी भर कर दीदी थोड़ा सा झुक गई और पानी से पहले अपने बाएं हाथ फिर दाहिनी हाथ के कान्खो को धोया. पीछे से मुझे कुछ दिखाई नहीं पर रहा था मगर. दीदी ने पानी से अच्छी तरह से धोने के बाद कान्खो को अपने हाथो से छू कर देखा. मुझे लगा की वो हेयर रेमोविंग क्रीम के काम से संतुष्ट हो गई और उन्होंने अपना ध्यान अब अपनी जांघो के बीच लगा दिया. दाहिने हाथ से पानी डालते हुए अपने बाएं हाथ को अपनी जांघो बीच ले जाकर धोने लगी. हाथों को धीरे धीरे चलाते हुए जांघो के बीच के बालों को धो रही थी. मैं सोच रहा था की काश इस समय वो मेरी तरफ घूम कर ये सब कर रही होती तो कितना मजा आता. झांटों के साफ़ होने के बाद कितनी चिकनी लग रही होगी दीदी की चुत ये सोच का बदन में झन-झनाहट होने लगी. पानी से अपने जन्घो के बीच साफ़ कर लेने के बाद दीदी ने अब नहाना शुरू कर दिया. अपने कंधो के ऊपर पानी डालते हुए पुरे बदन को भीगा दिया. बालों के जुड़े को खोल कर उनको गीला कर शैंपू लगाने लगी. दीदी का बदन भीग जाने के बाद और भी खूबसूरत और मदमस्त लगने लगा था. बदन पर पानी पड़ते ही एक चमक सी आ गई थी दीदी के बदन में. शैंपू से खूब सारा झाग बना कर अपने बालों को साफ़ कर रही थी. बालो और गर्दन के पास से शैंपू मिला हुआ मटमैला पानी उनकी गर्दन से बहता हुआ उनकी पीठ पर चुते हुए निचे की तरफ गिरता हुआ कमर के बाद सीधा दोनों चुत्तरों के बीच यानी की उनके बीच की दरार जो की दीदी की गांड थी में घुस रहा था. क्योंकि ये पानी शैंपू लगाने के कारण झाग से मिला हुआ था और बहुत कम मात्रा में था इसलिए गांड की दरार में घुसने के बाद कहा गायब हो जा रहा था ये मुझे नहीं दिख रहा था. अगर पानी की मात्रा ज्यादा होती तो फिर वो वहां से निकल कर जांघो के अंदरूनी भागो से ढुलकता हुआ निचे गिर जाता. बालों में अच्छी तरह से शैंपू लगा लेने के बाद बालों को लपेट कर एक गोला सा बना कर गर्दन के पास छोड़ दिया और फिर अपने कंधो पर पानी डाल कर अपने बदन को फिर से गीला कर लिया. गर्दन और पीठ पर लगा हुआ शैंपू मिला हुआ मटमैला पानी भी धुल गया था. फिर उन्होंने एक स्पोंज के जैसी कोई चीज़ रैक पर से उठा ली और उस से अपने पुरे बदन को हलके-हलके रगरने लगी. पहले अपने हाथो को रगरा फिर अपनी छाती को फिर अपनी पीठ को फिर बैठ गई. निचे बैठने पर मुझे केवल गर्दन और उसके निचे का कुछ हिस्सा दिख रहा था. पर ऐसा लग रहा था जैसे वो निचे बैठ कर अपने पैरों को फैला कर पूरी तरह से रगर कर साफ़ कर रही थी क्योंकि उनका शरीर हिल रहा था. थोरी देर बाद खड़ी हो गई और अपने जांघो को रगरना शुरू कर दिया. मैं सोचने लगा की फिर निचे बैठ कर क्या कर रही थी. फिर दिमाग में आया की हो सकता है अपने पैर के तलवे और उँगलियों को रगर कर साफ़ कर रही होंगी. मेरी दीदी बहुत सफाई पसंद है. जैसे उसे घर के किसी कोने में गंदगी पसंद नहीं है उसी तरह से उसे अपने शरीर के किसी भी भाग में गंदगी पसंद नहीं होगी. अब वो अपने जांघो को रगर रगर कर साफ़ कर रही थी और फिर अपने आप को थोड़ा झुका कर अपनी दोनों जांघो को फैलाया और फिर स्पोंज को दोनों जांघो के बीच ले जाकर जांघो के अंदरूनी भाग और रान को रगरने लगी. पीछे से देखने पर लग रहा था जैसे वो जांघो को जोर यानि जहाँ पर जांघ और पेट के निचले हिस्से का मिलन होता और जिसके बीच में चूत होती है को रगर कर साफ़ करते हुए हलके-हलके शायद अपनी चूत को भी रगर कर साफ़ कर रही थी ऐसा मेरा सोचना है. वैसे चुत जैसी कोमल चीज़ को हाथ से रगर कर साफ़ करना ही उचित होता. वाकई ऐसा था या नहीं मुझे नहीं पता, पीछे से इस से ज्यादा पता भी नहीं चल सकता था. थोड़ी देर बाद थोड़ा और झुक कर घुटनों तक रगर कर फिर सीधा हो कर अपने हाथों को पीछे ले जाकर अपने चुत्तरों को रगरने लगी. वो थोड़ी-थोड़ी देर में अपने बदन पर पानी डाल लेती थी जिस से शरीर का जो भाग सुख गया होता वो फिर से गीला हो जाता था और फिर उन्हें रगरने में आसानी होती थी. चुत्तरों को भी इसी तरह से एक बार फिर से गीला कर खूब जोर जोर से रगर रही थी. चुत्तरों को जोर से रगरने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था क्योंकि वहां का मांस बहुत मोटा था, पर जोर से रगरने के कारण लाल हो गया था और थल-थलाते हुए हिल रहा था. मेरे हाथों में खुजली होने लगी थी और दिल कर रहा था की थल-थलाते हुए चुत्तरों को पकड़ कर मसलते हुए हलके-हलके मारते हुए खूब हिलाउ. चुत्तारों को रगरने के बाद दीदी ने स्पोंज को दोनों चुत्तरों की दरार के ऊपर रगरने लगी फिर थोड़ा सा आगे की तरफ झुक गैई जिस से उसके चुत्तर फ़ैल गए. फिर स्पोंज को दोनों चुत्तरों के बीच की खाई में डाल कर रगड़ने लगी. कोमल गांड की फूल जैसी छेद शायद रगड़ने के बाद लाल हो गुलाब के फूल जैसी खिल जायेगी. ये सोच कर मेरे मन में दीदी की गांड देखने की तीव्र इच्छा उत्पन्न हो गई. मन में आया की इस लकड़ी की दिवार को तोड़ कर सारी दुरी मिटा दू, मगर, सोचने में तो ये अच्छा था, सच में ऐसा करने की हिम्मत मेरी गांड में नहीं थी. बचपन से दीदी का गुस्सैल स्वभाव देखा था, जानता था, की जब उस दुबई वाले को नहीं छोड़ती थी तो फिर मेरी क्या बिसात. गांड पर ऐसी लात मारेगी की गांड देखना भूल जाऊंगा. हालाँकि दीदी मुझे प्यार भी बहुत करती थी और मुझे कभी भी परेशानी में देख तुंरत मेरे पास आ कर मेरी समस्या के बारे में पूछने लगती थी.
 
स्पोंज से अपने बदन को रगड़ने के बाद. वापस स्पोंज को रैक पर रख दिया और मग से पानी लेकर कंधो पर डालते हुए नहाने लगी. मात्र स्पोंज से सफाई करने के बाद ही दीदी का पूरा बदन चम-चमाने लगा था. पानी से अपने पुरे बदन को धोने के बाद दीदी ने अपने शैंपू लगे बालों का गोला खोला और एक बार फिर से कमर के पास से निचे झुक गई और उनके चुत्तर फिर से लकड़ी के पट्टो के बीच बने गैप के सामने आ गए. इस बार उनके गोरे चम-चमाते चुत्तरों के बीच की चमचमाती खाई के आलावा मुझे एक और चीज़ के दिखने को मिल रही थी. वो क्या थी इसका अहसास मुझे थोड़ी देर से हुआ. गांड की सिकुरी हुई छेद से करीब चार अंगुल भर की दूरी पर निचे की तरफ एक लम्बी लकीर सी नज़र आ रही थी. मैं ये देख कर ताज्जुब में पर गया, पर तभी ख्याल आया की घोंचू ये तो शायद चूत है. पहले ये लकीर इसलिए नहीं नज़र आ रही थी क्योंकि यहाँ पर झान्ट के बाल थे, हेयर रिमुविंग क्रीम ने जब झांटो की सफाई कर दी तो चूत की लकीर स्पष्ट दिखने लगी. इस बात का अहसास होते ही की मैं अपनी दीदी की चूत देख रहा हूँ, मुझे लगा जैसे मेरा कलेजा मुंह को आ जायेगा और फिर से मेरा गला सुख गया और पैर कांपने लगे. इस बार शायद मेरे लण्ड से दो बूँद टपक कर निचे गिर भी गया पर मैंने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया. लण्ड भी मारे उत्तेजना के काँप रहा था. बाथरूम में वैसे तो लाइट आँन थी मगर चूँकि बल्ब भी लकरी के पट्टो के सामने ही लगा हुआ था इसलिए दीदी की पीठ की तरफ रोशनी कम थी. फिर भी दोनों मोटी जांघो के बीच ऊपर की तरफ चुत्तरों की खाई के ठीक निचे एक गुलाबी लकीर सी दिख रही थी. पट्टो के बीच से देखने से ऐसा लग रहा था जैसे सेब या पके हुए पपीते के आधे भाग को काट कर फिर से आपस में चिपका कर दोनों जांघो के बीच फिट कर दिया गया है. मतलब दीदी की चूत ऐसी दिख रही थी जैसे सेब को चार भागो में काट कर फिर दो भागो को आपस में चिपका कर गांड के निचे लगा दिया गया हो. कमर या चुत्तरों के इधर-उधर होने पर दोनों फांकों में भी हरकत होती थी और ऐसा लगता जैसे कभी लकीर टेढी हो गई है कभी लकीर सीधी हो गई है. जैसे चूत के दोनों होंठ कभी मुस्कुरा रहे है कभी नाराज़ हो रहे है. दोनों होंठ आपस में एक दुसरे से एक दम सटे हुए दिख रहे थे. होंठो के आपस में सटे होने के मतलब बाद में समझ में आया की ऐसा चूत के बहुत ज्यादा टाइट होने के कारण था. दोनों फांक एक दम गुलाबी और पावरोटी के जैसे फूले हुए थे. मेरे मन में आया की काश मैं चूत की लकीर पर ऊपर से निचे तक अपनी ऊँगली चला और हलके से दोनों फांकों को अलग कर के देख पाता की कैसी दिखती है, दोनों गुलाबी होंठो के बीच का अंदरूनी भाग कैसा है मगर ये सपना ही रह गया. दीदी के बाल धुल चुके थे और वो सीधी खड़ी हो गई.

बालो को अच्छी तरह से धोने के बाद फिर से उनका गोला बना कर सर के ऊपर बाँध लिया और फिर अपने कंधो पर पानी डाल कर अपने आप को फिर से गीला कर पुरे बदन पर साबुन लगाने लगी। पहले अपने हाथो पर अच्छी तरह से साबुन लगाया फिर अपने हाथो को ऊपर उठा कर वो दाहिनी तरफ घूम गई और अपने कान्खो को आईने में देख कर उसमे साबुन लगाने लगी. पहले बाएं कांख में साबुन लगाया फिर दाहिने हाथ को उठा कर दाहिनी कांख में जब साबुन लगाने जा रही थी तो मुझे हेयर रिमुविंग क्रीम का कमाल देखने को मिला. दीदी की कांख एक दम

गोरी, गुलाबी और चिकनी हो गई थी।
 
जीभ लगा कर चाटो तो जीभ फिसल जाये ऐसी चिकनी लग रही थी. दीदी ने खूब सारा साबुन अपनी कान्खो में लगाया और फिर वैसे ही अपनी छाती पर रगर-रगर कर साबुन लगाने लगी. छाती पर साबुन का खूब सारा झाग उत्पन्न हो रहा था. दीदी का हाथ उसमे फिसल रहा था और वो अपनी ही चुचियों के साथ खिलवार करते हुए साबुन लगा रही थी. कभी निप्पल को चुटकियों में पकर कर उन पर साबुन लगाती कभी पूरी चूची को दोनों हाथो की मुट्ठी में कस कर साबुन लगाती. साबुन लगाने के कारण दीदी की चूची हिल रही थी और थलथला रही थी. चुचियों के हिलने का नज़ारा लण्ड को बेकाबू करने के लिए काफी था. तभी दीदी वापस नल की तरफ घूम गई और फिर निचे झुक कर पैरों पर साबुन लगाने के बाद सीधा हो कर अपनी जांघो पर साबुन लगाने लगी. दोनों जांघो पर साबुन लगाने के बाद अपने हाथो में ढेर सारा साबुन का झाग बना कर अपनी जांघो को फैला कर उनके बीच अपने हाथों को घुसा दिया. हाथ चलाते हुए अपनी चूत पर साबुन लगाने लगी. अच्छी तरह से चूत पर साबुन लगा लेने के बाद जैसा की मैंने सोचा था गांड की बारी आई और फिर पहले अपने चुतरों पर साबुन लगा लेने के बाद अपने हाथो में साबुन का ढेर सारा झाग बना कर अपने हाथो को चुत्तरों की दरार में घुसा दिया और ऊपर से निचे चलाती हुई अपनी गांड की खाई को रगरते हुए उसमे साबुन लगाने लगी. गांड में साबुन लगाने से भी खूब सारा झाग उत्पन्न हो रहा था. खूब अच्छी तरह से साबुन लगा लेने के बाद. नल खोल कर मग से पानी उठा-उठा कर दीदी ने अपना बदन धोना शुरू कर दिया. पानी धीरे-धीरे साबुन को धो कर निचे गिराता जा रहा था और उसी के साथ दीदी के गोरे बदन की सुन्दरता को भी उजागर करता जा रहा था. साबुन से धुल जाने के बाद दीदी का गोरा बदन एक दम ढूध का धुला लग रहा था. जैसे बाथरूम के उस अंधियारे में चांदनी रौशन हो गई थी. ऊपर से निचे तक दीदी का पूरा बदन चम-चमा रहा था. मेरी आंखे चुंधिया रही थी और मैं अपनी आँखों को फार कर ज्यादा से ज्यादा उसके मद भरे यौवन का रस अपनी आँखों से पी जाना चाहता था. मेरे पैर थक चुके थे और कमर अकड़ चूँकि थी मगर फिर भी मैं वह से हिल नहीं पा रहा था. अपने पुरे बदन को धो लेने के बाद दीदी ने खूंटी पर टंगा तौलिया उतारा और अपने बदन को पोछने लगी. पुरे बदन को तौलिये से हौले-हौले दबा कर पोछने के बाद अपने सर को बालों को तौलिये से हल्के से पोछा और तौलिये को बालों में लपेट कर एक गोला बना दिया. फिर दाहिनी तरफ घूम कर आईने के सामने आ गई. दाहिनी चूची जो की मुझे इस समय दिख रही थी थोड़ी लाल या फिर कहे तो गुलाबी लग रही थी. ऐसा शायद रगर का सफाई करने के कारण हुआ होगा, निप्पल भी थोड़ी काली लग रही थी ऐसा शायद उनमे खून भर जाने के कारण हुआ होगा. दीदी ने अपने आप को आईने अच्छी तरह से देखा फिर अपने दोनों हाथो को उठा कर बारी-बारी से अपनी कान्खो को देखा और सुंघा भी, फिर अपने दोनों जांघो के बीच अच्छी तरह से देखा, अपने चेहरे का हर कोण से अच्छी तरह से आईने में देखा और फिर अपनी नजरो को निचे ले जा कर अपने पैरों आदि को देखने लगी. मैं समझ गया की अब दीदी बाहर निकलेंगी. इस से पहले की वो बाहर निकले मुझे चुप चाप निकल जाना चाहिए. मैं जल्दी से बाहर निकला और साइड में बने बेसीन पर अपना हाथ धोया और एक शर्ट पहन कर चुपचाप बाहर निकल गया. मैं किसी भी तरह का खतरा नहीं मोलना चाहता चाहता था इसलिए बाहर निकल पहले अपने आप को सयंत किया, अपने उखरे हुए सांसो पर काबू पाया और फिर करीब पंद्रह मिनट के बाद घर में फिर से दाखील हुआ.

घर में घुसने पर देखा की दीदी अपने कपड़े पहन कर बालकनी में खरी हो कर अपने बालों को सुखा रही थी. पीली साडी और ब्लाउज में आसमान से उतरी परी की तरह लग रही थी. गर्दन पीछे की तरफ कर के बालों को तौलिये से रगर कर पोछते हुए शायद उसे ध्यान नहीं था की टाइट ब्लाउज में बाहर की ओर उसकी चुचियाँ निकल जाएँगी. देखने से ऐसा लग रहा था जैसे अभी फार कर बाहर निकल आएगी. उसने शायद थोड़ा मेकअप भी कर लिया था. बाल सुखाते हुए उसकी नज़र मेरे ऊपर पड़ी तो बोली “कहाँ था, बोल के जाता…मैं कम से कम दरवाजा तो बंद कर लेती”. मैंने कहा “सॉरी दीदी वो मुझे ध्यान नहीं रहा…”. फिर बाल सुखाने के बाद दीदी अपने कमरे में चली गई. मैं वही बाहर बैठ कर टेलिविज़न देखने लगा.

अब मैं एक चोर बन चूका था, एक ऐसा चोर जो अपनी बड़ी बहन की खूबसूरती को चोरी छुपे हर समय निहारने की कोशिश में लगा रहता था. एक चोर की तरह मैं डरता भी था की कही मेरी चोरी पकरी न जाये. हर समय कोशिश करता रहता था की जब दीदी अस्त-व्यस्त अवस्था में लेटी हो या कुछ काम कर रही हो तो उसकी एक झलक ले लू. दफ्तर खुल चूका था सो बाथरूम में फिर से दीदी की जवानी को निहारने का मौका नहीं मिल रहा था. सुबह-सुबह नहा कर लोकल पकर कर ऑफिस जाता और फिर शाम में ही घर पर वापस आ पाता था. नया शनिवार और रविवार आया, उस दिन मैं काफी देर तक लैट्रिन में बैठा रहा पर दीदी बाथरूम में नहाने नहीं आई. फिर मैंने मौका देख कर दीदी जब नहाने गई तो लैट्रिन में चोरी से घुसने की कोशिश की पर उस काम में भी असफल रहा परोस से कोई आ कर दरवाज़ा खटखटाने लगा और दीदी ने बाथरूम में से मुझे जोर से आवाज़ देकर कहा की “देख कौन है दरवाजे पर”, मजबूरन निकलना पड़ा. ऐसे ही हमेशा कुछ न कुछ हो जाता था और अपने प्रयासों में मुझे असफलता हाथ लगती. फिर मुझे मौका भी केवल शनिवार और रविवार को मिलता था. अगर इन दो दिनों में कुछ हो पाता तो ठीक है नहीं तो फिर पुरे एक सप्ताह तक इंतजार करना परता था. उस दिन की घटना को याद कर कर के मैंने न जाने कितनी बार मुठ मारी होगी इसका मुझे खुद अहसास नहीं था.
 
इसी तरह एक रात जब मैं अपने लण्ड को खड़ा करके हलके हलके अपने लण्ड की चमरी को ऊपर निचे करते हुए अपनी प्यारी दीदी को याद करके मुठ मारने की कोशिश करते हुए, अपनी आँखों को बंद कर उसके गदराये बदन की याद में अपने को डुबाने की कोशिश कर रहा था तो मेरी आँखों में पड़ती हुई रौशनी की लकीर ने मुझे थोड़ा बैचैन कर दिया और मैंने अपनी आंखे खोल दी. दीदी के कमरे का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ था. दरवाजे के दोनों पल्लो के बीच से नाईट बल्ब की रौशनी की एक लकीर सीधे मेरे तकिये के ऊपर जहाँ मैं अपना सर रखता हूँ पर आ रही थी. मैं आहिस्ते से उठा और दरवाजो के पास जा कर सोचा की इसके दोनों पल्लो को अच्छी तरह से आपस में सटा देता हूँ. चोरी तो मेरे मन में थी ही. दोनों पल्लो के बीच से अन्दर झाँकने के लोभ पर मैं काबू नहीं रख पाया. दीदी के गुस्सैल स्वाभाव से परिचित होने के कारण मैं जानता था, अगर मैं पकड़ा गया तो शायद इस घर में मेरा आखिरी दिन होगा. दोनों पल्लो के बीच से अन्दर झांक कर देखा की दीदी अपने पलंग पर करवट होकर लेटी हुई थी. उसका मुंह दरवाजे के विपरीत दिशा में था. यानि की पैर दरवाजे की तरफ था. पलंग एक साइड से दीवाल सटा हुआ था, दीदी दीवाल की ओर मुंह करके केवल पेटिकोट और ब्लाउज में जैसा की गर्मी के दिनों में वो हमेशा करती है लेटी हुई थी. गहरे नीले रंग का ब्लाउज और पेटिकोट दीदी के गोरे रंग पर खूब खिलता था. मुझे उनका पिछवारा नज़र आ रहा था. कई बार सोई हुई अवस्था में पेटिकोट इधर उधर हो जाने पर बहुत कुछ देख पाने का मौका मिल जाता है ऐसा मैंने कई कहानियों में पढ़ा था मगर यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं था. पेटिकोट अच्छी तरह से दीदी के पैरों से लिपटा हुआ था और केवल उनकी गोरी पिंडलियाँ ही दिख रही थी. दीदी ने अपने एक पैर में पतली सी पायल पहन रखी थी. दीदी वैसे भी कोई बहुत ज्यादा जेवरों की शौकीन नहीं थी. हाथो में एक पतली से सोने की चुड़ी. गोरी पिंडलियों में सोने की पतली से पायल बहुत खूबसूरत लग रही थी. पेटिकोट दीदी के भारी चुत्तरो से चिपके हुए थे. वो शायद काफी गहरी नींद में थी. बहुत ध्यान से सुन ने पर हलके खर्राटों की आवाज़ आ रही थी. मैंने हलके से दरवाजे के पल्लो को अलग किया और दबे पाँव अन्दर घुस गया. मेरा कलेजा धक्-धक् कर रहा था मगर मैं अपने कदमो को रोक पाने असमर्थ था. मेरे अन्दर दीदी के प्रति एक तीव्र लालसा ने जन्म ले लिया था. मैं दीदी के पास पहुँच कर एक बार सोती हुई दीदी को नजदीक से देखना चाहता था. दबे कदमो से चलते हुए मैं पलंग के पास पहुँच गया. दीदी का मुंह दूसरी तरफ था. वो बाया करवट हो कर लेटी हुई थी. कुछ पलो के बाद पलंग के पास मैं अपनी सोई हुई प्यारी बहन के पीछे खड़ा था. मेरी सांस बहुत तेज चल रही थी. दम साध कर उन पर काबू करते हुए मैं थोड़ा सा आगे की ओर झुका. दीदी की सांसो के साथ उनकी छाती धीरे-धीरे उठ बैठ रही. गहरे नीले रंग के ब्लाउज का ऊपर का एक बटन खुला हुआ था और उस से गोरी छातियों दिख रही थी. थोड़ा सा उनके सर की तरफ तिरछा हो कर झुकने पर दोनों चुचियों के बीच की गहरी घाटी का उपरी भाग दिखने लगा. मेरे दिमाग इस समय काम करना बंद कर चूका था. शायद मैंने सोच लिया था की जब ओखली में सर दे दिया तो मुसल से क्या डरना. मैंने अपने दाहिने हाथ को धीरे से आगे बढाया. इस समय मेरा हाथ काँप रहा था फिर भी मैंने अपने कांपते हाथो को धीरे से दीदी की दाहिनी चूची पर रख दिया. गुदाज चुचियों पर हाथ रखते ही लगा जैसे बिजली के नंगे तार को छू दिया हो. ब्लाउज के ऊपर से चूची पर हाथो का हल्का सा दबाब दिया तो पुरे बदन में चीटियाँ रेंगने लगी. किसी लड़की या औरत की चुचियों को पहली बार अपने हाथो से छुआ था. दीदी की चूची एकदम सख्त थी. ज्यादा जोर से दबा नहीं सकता था. क्योंकि उनके जग जाने का खतरा था, मगर फिर भी इतना अहसास हो गया की नारियल की कठोर खोपरी जैसी दिखने वाली ये चूची वास्तव में स्पोंज के कठोर गेंद के समान थी. जिस से बचपन में मैंने खूब क्रिकेट खेली थी. मगर ये गेंद जिसको मैं दबा रहा था वो एक जवान औरत के थे जो की इस समय सोई हुई थी. इनके साथ ज्यादा खेलने की कोशिश मैं नहीं कर सकता था फिर भी मैं कुछ देर तक दीदी की दाहिनी चूची को वही खड़े-खड़े हलके-हलके दबाता रहा. दीदी के बदन में कोई हरकत नहीं हो रही थी. वो एकदम बेशुध खर्राटे भर रही थी. ब्लाउज का एक बटन खुला हुआ था, मैंने हलके से ब्लाउज के उपरी भाग को पकर कर ब्लाउज के दोनों भागो को अलग कर के चूची देखने के लिए और अन्दर झाँकने की कोशिश की मगर एक बटन खुला होने के कारण ज्यादा आगे नहीं जा सका. निराश हो कर चूची छोर कर मैं अब निचे की तरफ बढा. दीदी की गोरी चिकनी पेट और कमर को कुछ पलो तक देखने के बाद मैंने हलके से अपने हाथो को उनकी जांघो पर रख दिया. दीदी की मोटी मदमस्त जांघो का मैं दीवाना था. पेटिकोट के कपरे के ऊपर से जांघो को हलके से दबाया तो अहसास हुआ की कितनी सख्त और गुदाज जांघे है. काश मैं इस पेटिकोट के कपड़े को कुछ पलो के लिए ही सही हटा कर एक बार इन जांघो को चूम पाता या थोड़ा सा चाट भर लेता तो मेरे दिल को करार आ जाता. दीदी की मोटी जांघो को हलके हलके दबाते हुए मैं सोचने लगा की इन जांघो के बीच अपना सर रख कर सोने में कितना मजा आएगा. तभी मेरी नज़र दीदी की कमर के पास पड़ी जहाँ वो अपने पेटिकोट का नाड़ा बांधती है. पेटिकोट का नाड़ा तो खूब कस कर बंधा हुआ था, मगर जहाँ पर नाड़ा बंधा होता है ठीक वही पर पेटिकोट में एक कट बना हुआ था. ये शायद नाड़ा बाँधने और खोलने में आसानी हो इसलिए बना होता है. मैं हलके से अपने हाथो को जांघो पर से हटा कर उस कट के पास ले गया और एक ऊँगली लगा कर कट को थोड़ा सा फैलाया. ओह…वहां से सीधा दीदी की बुर का उपरी भाग नज़र आ रहा था. मेरा पूरा बदन झन-झना गया. लण्ड ने अंगराई ली और फनफना कर खड़ा हो गया. ऐसा लगा जैसे पानी एक दम सुपाड़े तक आ कर अटक गया है और अब गिर जायेगा. मैंने उस कट से दीदी के पेरू (पेट का सबसे निचला भाग) के थोड़ा निचे तक देख पा रहा था. चूँकि दीदी को बाथरूम में नहाते हुए देखने के बाद से तीन हफ्ते बीत चुके थे और शायद दीदी ने दुबारा फिर से अपने अंदरूनी बालों की सफाई नहीं की थी इसलिए उनकी चुत पर झांटे उग गई थी. मुझे वही झांटे दिख रही थी. वासना और उत्तेजना में अँधा हो कर मैंने धीरे से अपनी ऊँगली पेटिकोट के कट के अन्दर सरका दी. मेरी उँगलियों को पेरू की कोमल त्वचा ने जब छुआ तो मैं काँप गया और मेरी उँगलियाँ और अन्दर की तरफ सरक गई. चुत की झांटे मेरी उँगलियों में उलझ चुकी थी. मैं बहुत सावधानी से अपनी उँगलियों को उनके बीच चलाते हुए और अन्दर की तरफ ले जाना चाहता था. इसलिए मैंने पेटिकोट के कट को दुसरे हाथ की सहायता से थोड़ा सा और फैलाया और फिर अपनी ऊँगली को थोड़ा और अन्दर घुसाया और यही मेरी सबसे बड़ी गलती साबित हो गई. मुझे ज्यादा लालच नहीं करना चाहिए था मगर गलती हो चुकी थी. दीदी अचानक सीधी होती हुई उठ कर बैठ गई. अपनी नींद से भरी आँखों को उन्होंने ऐसे खोल दिया जैसे वो कभी सोई ही नहीं थी. सीधा मेरे उस हाथ को पकर लिया जो उनके पेटिकोट के नाड़े के कट के पास था.
 
मैं एक दम हक्का बक्का सा खड़ा रह गया. दीदी ने मेरे हाथो को जोर से झटक दिया और एक दम सीधी बैठती हुई बोली “हरामी…सूअर…क्या कर रहा….था…शर्म नहीं आती तुझे….” कहते हुए आगे बढ़ कर चटक से मेरी गाल पर एक जोर दार थप्पड़ रशीद कर दिया. इस जोरदार झापड़ ने मुझे ऊपर से निचे तक एक दम झन-झना दिया. मेरे होश उर चुके थे. गाल पर हाथ रखे वही हतप्रभ सा खड़ा मैं निचे देख रहा था. दीदी से नज़र मिलाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था. दीदी ने एक बार फिर से मेरा हाथ पकर लिया और अपने पास खींचते हुए मुझे ऊपर से निचे तक देखा. मैं काँप रहा था. मुझे लग रहा था जैसे मेरे पैरों की सारी ताकत खत्म हो चुकी है और मैं अब निचे गिर जाऊंगा. तभी दीदी ने एक बार फिर कड़कती हुई आवाज़ में पूछा “कमीने…क्या कर रहा था…जवाब क्यों नहीं देता….” फिर उनकी नज़रे मेरे हाफ पैंट पर पड़ी जो की आगे से अभी भी थोड़ा सा उभरा हुआ दिख रहा था. हिकारत भरी नजरो से मुझे देखते हुए बोली “यही काम करने के लिए तू….मेरे पास….छि….उफ़….कैसा सूअर…..”. मेरे पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं था मगर फिर भी हिम्मत करके हकलाते हुए मैं बोला “वो दीदी…माफ़..मैं…..मुझे…माफ़…मैं अब…आ….आगे…” पर दीदी ने फिर से जोर से अपना हाथ चलाया. चूँकि वो बैठी हुई थी और मैं खड़ा था इसलिए उनका हाथ सीधा मेरे पैंट के लगा. ऐसा उन्होंने जान-बूझ कर किया था या नहीं मुझे नहीं पता मगर उनका हाथ थोड़ा मेरे लण्ड पर लगा और उन्होंने अपना हाथ झटके से ऐसे पीछे खिंच लिया जैसे बिजली के नंगे तारो ने उन को छू लिया हो और एकदम दुखी स्वर में रुआंसी सी होकर बोली “उफ़….कैसा लड़का है…..अगर माँ सुनेगी….तो क्या बोलेगी…ओह…मेरी तो समझ में नहीं आ रहा…मैं क्या करू…”. बात माँ तक पहुचेगी ये सुनते ही मेरी गांड फट गई. घबरा कर कैसे भी बात को सँभालने के इरादे से हकलाता हुआ बोला “दीदी…प्लीज़….माफ़…कर दो…प्लीज़….अब कभी…ऐसा…नहीं होगा….मैं बहक गया…था…आज के बाद…प्लीज़ दीदी…प्लीज़…मैं कही मुंह नहीं दिखा पाउँगा…मैं आपके पैर….” कहते हुए मैं दीदी के पैरों पर गिर पड़ा. दीदी इस समय एक पैर घुटनों के पास से मोर कर बिस्तर पर पालथी मारने के अंदाज में रखा हुआ था और दूसरा पैर घुटना मोर कर सामने सीधा रखे हुए थी. मेरी आँखों से सच में आंसू निकलने लगे थे और वो दीदी के पैर के तलवे के उपरी भाग को भींगा रहे थे. मेरी आँखों से निकलते इन प्रायश्चित के आंसुओं ने शायद दीदी को पिघला दिया और उन्होंने धीरे से मेरे सर को ऊपर की तरफ उठाया. हालाँकि उनका गुस्सा अभी भी कम नहीं हुआ था और वो उनकी आँखों में दिख रहा था मगर अपनी आवाज़ में थोड़ी कोमलता लाते हुए बोली “ये क्या कर रहा था तू…..तुझे लोक लाज…मान मर्यादा किसी भी चीज़ की चिंता नहीं….मैं तेरी बड़ी बहन हूँ….मेरी और तेरी उम्र के बीच…नौ साल का फासला है….ओह मैं क्या बोलू मेरी समझ में नहीं आ रहा….ठीक है तू बड़ा हो गया है…मगर…..क्या यही तरीका मिला था तुझे….उफ़…” दीदी की आवाज़ की कोमलता ने मुझे कुछ शांति प्रदान की हालाँकि अभी भी मेरे गाल उनके तगड़े झापर से झनझना रहे थे और शायद दीदी की उँगलियों के निशान भी मेरी गालों पर उग गए थे. मैं फिर से रोते हुए बोला “प्लीज़ दीदी मुझे…माफ़ कर दो…मैं अब दुबारा ऐसी…गलती….”. दीदी मुझे बीच में काटते हुए बोली “मुझे तो तेरे भविष्य की चिंता हो रही है….तुने जो किया सो किया पर मैं जानती हूँ…तू अब बड़ा हो चूका है….तू क्या करता है…. कही तू अपने शरीर को बर्बाद….तो नहीं…कर रहा है”

मैंने इसका मतलब नहीं समझ पाया. हक्का बक्का सा दीदी का मुंह ताकता रहा. दीदी ने मेरे से फिर पूछा “कही….तू कही….अपने हाथ से तो नहीं….”. अब दीदी की बात मेरी समझ में आ गई. दीदी का ये सवाल पूछना वाजिब था क्योंकि मेरी हरकतों से उन्हें इस बात का अहसास तो हो ही चूका था की मैंने आज तक किसी लड़की के साथ कुछ किया नहीं था और उन्हें ये भी पता था की मेरे जैसे लड़के अपने हाथो से काम चलाते है. पर मैं ये सवाल सुन कर हक्का बक्का सा रह गया गया. मेरे होंठ सुख गए और मैं कुछ बोल नहीं पाया. दीदी ने फिर से मेरी बाँहों को पकड़ मुझे झकझोरा और पूछा “बोलता क्यों नहीं है….मैं क्या पूछ रही हूँ….तू अपने हाथो से तो नहीं करता…” मैंने नासमझ होने का नाटक किया और बोला “हाथो से दीदी…म म मैं समझा नहीं…”
 
“देख….इतना तो मैं समझ चुकी हु की तू लड़कियों के बारे में सोचता..है…इसलिए पूछ रही हु तू अपने आप को शांत करने के लिए….जैसे तू अभी मेरे साथ…उफ़ बोलने में भी शर्म आ रही पर….अभी जब तेरा….ये तन जाता है तो अपने हाथो से शांत करता है क्या…इसे…” मेरे पैंट के उभरे हुए भाग की तरफ इशारा करते हुए बोली. अब दीदी अपनी बात को पूरी तरह से स्पष्ट कर चुकी थी मैं कोई बहाना नहीं कर सकता था गर्दन झुका कर बोला “दी…दीदी…वो वो…मुझे माफ़ कर…माफ़…” एक बार फिर से दीदी का हाथ चला और मेरी गाल फिर से लाल हो गई “क्या दीदी, दीदी कर रहा है…जो पूछ रही हूँ साफ़ साफ़ क्यों नहीं बताता….हाथ से करता है….यहाँ ऊपर पलंग पर बैठ…बता मुझे…” कहते हुए दीदी ने मेरे कंधो को पकड़ ऊपर उठाने की कोशिश की. दीदी को एक बार फिर गुस्से में आता देख मैं धीरे से उठ कर दीदी के सामने पलंग पर बैठ गया और एक गाल पर हाथ रखे हुए अपनी गर्दन निचे किये हुए धीरे से बोला “हाँ…हाथ से……हाथ से…करता…” मैं इतना बोल कर चुप हो गया. हम दोनों के बीच कुछ पल की चुप्पी छाई रही फिर दीदी गहरी सांस लेते हुए बोली “इसी बात का मुझे डर था….मुझे लग रहा था की इन सब चक्करों में तू अपने आप को बर्बाद कर रहा है…” फिर मेरी ठोढी पकड़ कर मेरे चेहरे को ऊपर उठा कर ध्यान से देखते हुए बोली “मैंने…तुझे मारा…उफ़…देख कैसा निशान पर गया है…पर क्या करती मैं मुझे गुस्सा आ गया था….खैर मेरे साथ जो किया सो किया……पर भाई…सच में मैं बहुत दुखी हूँ…..तुम जो ये काम करते हो ये…..ये तो…” मेरे अन्दर ये जान कर थोड़ी सी हिम्मत आ गई की मैंने दीदी के बदन को देखने की जो कोशिश की थी उस बात से दीदी अब नाराज़ नहीं है बल्कि वो मेरे मुठ मरने की आदत से परेशान है. मैं दीदी की ओर देखते हुए बोला “सॉरी दीदी…मैं अब नहीं….करूँगा…”

“भाई मैं तुम्हारे भले के लिए ही बोल रही हूँ…तुम्हारा शरीर बर्बाद कर देगा…ये काम…..ठीक है इस उम्र में लड़कियों के प्रति आकर्षण तो होता है….मगर…ये हाथ से करना सही नहीं है….ये ठीक नहीं है… राजू तुम ऐसा मत करो आगे से….”

“ठीक है दीदी….मुझे माफ़ कर दो मैं आगे से ऐसा नहीं करूँगा…मैं शर्मिंदा हूँ….” मैंने अपनी गर्दन और ज्यादा झुकाते हुए धीरे से कहा. दीदी एक पल को चुप रही फिर मेरी ठोड़ी पकड़ कर मेरे चेहरे को ऊपर उठाती हुई हल्का सा मुस्कुराते हुई बोली “मैं तुझे अच्छी लगती हूँ क्या….” मैं एकदम से शर्मा गया मेरे गाल लाल हो गए और झेंप कर गर्दन फिर से निचे झुका ली. मैं दीदी के सामने बैठा हुआ था दीदी ने हाफ पैंट के बाहर झांकती मेरी जांघो पर अपना हाथ रखा और उसे सहलाती हुई धीरे से अपने हाथ को आगे बढा कर मेरे पैंट के उभरे हुए भाग पर रख दिया. मैं शर्मा कर अपने आप में सिमटते हुए दीदी के हाथ को हटाने की कोशिश करते हुए अपने दोनों जांघो को आपस में सटाने की कोशिश की ताकि दीदी मेरे उभार को नहीं देख पाए. दीदी ने मेरे जांघ पर दबाब डालते हुए उनका सीधा कर दिया और मेरे पैंट के उभार को पैंट के ऊपर से पकड़ लिया और बोली “रुक…आराम से बैठा रह…देखने दे….साले अभी शर्मा रहा है,…चुपचाप मेरे कमरे में आकर मुझे छू रहा था…तब शर्म नहीं आ रही थी तुझे…कुत्ते” दीदी ने फिर से अपना गुस्सा दिखाया और मुझे गाली दी. मैं सहम कर चुप चाप बैठ गया.

दीदी मेरे लण्ड को छोर कर मेरे हाफ पैंट का बटन खोलने लगी. मेरे पैंट के बटन खोल कर कड़कती आवाज़ में बोली “चुत्तर…उठा तो…तेरा पैंट निकालू…” मैंने हल्का विरोध किया “ओह दीदी छोड़ दो…”

“फिर से मार खायेगा क्या…जैसा कहती हु वैसा कर…” कहती हुई थोड़ा आगे खिसक कर मेरे पास आई और अपने पेटिकोट को खींच कर घुटनों से ऊपर करते हुए पहले के जैसे बैठ गई. मैंने चुपचाप अपने चुत्तरों को थोड़ा सा ऊपर उठा दिया. दीदी ने सटाक से मेरे पैंट को खींच कर मेरी कमर और चुत्तरों के निचे कर दिया, फिर मेरे पैरों से होकर मेरे पैंट को पूरा निकाल कर निचे कारपेट पर फेंक दिया. मैंने निचे से पूरा नंगा हो गया था और मेरा ढीला लण्ड दीदी की आँखों के सामने था. मैंने हाल ही में अपने लण्ड के ऊपर उगे के बालो को ट्रिम किया था इसलिए झांट बहुत कम थे. मेरे ढीले लण्ड को अपनी मुठ्ठी में भरते हुए दीदी ने सुपाड़े की चमरी को थोड़ा सा निचे खींचते हुए मेरे मरे हुए लण्ड पर जब हाथ चलाया तो मैं सनसनी से भर आह किया. दीदी ने मेरी इस आह पर कोई ध्यान नहीं दिया और अपने अंगूठे को सुपाड़े पर चलाती हुई सक-सक मेरे लण्ड की चमरी को ऊपर निचे किया. दीदी के कोमल हाथो का स्पर्श पा कर मेरे लण्ड में जान वापस आ गई. मैं डरा हुआ था पर दीदी जैसी खूबसूरत औरत की हथेली ने लौड़े को अपनी मुठ्ठी में दबोच कर मसलते हुए, चमरी को ऊपर निचे करते हुए सुपाड़े को गुदगुदाया तो अपने आप मेरे लण्ड की तरफ खून की रफ्तार तेज हो गई. लौड़ा फुफकार उठा और अपनी पूरी औकात पर आ गया. मेरे खड़े होते लण्ड को देख दीदी का जोश दुगुना हो गया और दो-चार बार हाथ चला कर मेरे लण्ड को अपने बित्ते से नापती हुई बोली “बाप रे बाप….कैसा हल्लबी लण्ड है…ओह… हाय…भाई तेरा तो सच में बहुत बड़ा है….मेरी इतनी उम्र हो गई….आज तक ऐसा नहीं देखा था…ओह…ये पूरा नौ इंच का लग रहा है…इतना बड़ा तो तेरे बहनोई का भी नहीं….हाय….ये तो उनसे बहुत बड़ा लग रहा है…..और काफी शानदार है….उफ़….मैं तो….मैं तो……हाय…..ये तो गधे के लण्ड जितना बड़ा है…..उफ्फ्फ्फ़…..” बोलते हुए मेरे लण्ड को जोर से मरोर दिया और सुपाड़े को अपनी ऊँगली और अंगूठे के बीच कस कर दबा दिया. दर्द के मारे छटपटा कर जांघ सिकोरते हुए दीदी का हाथ हटाने की कोशिश करते हुए पीछे खिसका तो तो मेरे लण्ड को पकर कर अपनी तरफ खींचती हुई बोली “हरामी….साले….मैं जब सो रही होती हु तो मेरी चूची दबाता है मेरी चुत में ऊँगली करता है….आग लगाता है….इतना मोटा लौड़ा ले कर….घूमता है…और बाएं गाल पर तड़ाक से एक झापड़ जड़ दिया. मैं हतप्रभ सा हो गया. मेरी समझ में नहीं आ रहा था मैं क्या करू. दीदी मुझ से क्या चाहती है, ये भी समझ में नहीं आ रहा था. एक तरफ तो वो मेरे लण्ड को सहलाते हुए मुठ मार रही थी और दूसरी तरफ गाली देते हुए बात कर रही थी और मार रही थी. मैं उदास और डरी हुई नज़रों से दीदी को देख रहा था. दीदी मेरे लण्ड की मुठ मारने में मशगूल थी. एक हाथ में लण्ड को पकरे हुए दुसरे हाथ से मेरे अन्डकोषो को अपनी हथेली में लेकर सहलाती हुई बोली “….हाथ से करता है…. राजू….अपना शरीर बर्बाद मत कर…..तेरा शरीर बर्बाद हो जायेगा तो मैं माँ को क्या मुंह दिखाउंगी….” कहते हुए जब अपनी नजरों को ऊपर उठाया तो मेरे उदास चेहरे पर दीदी की नज़र पड़ी. मुझे उदास देख लण्ड पर हाथ चलाती हुई दुसरे हाथ से मेरे गाल को चुटकी में पकड़ मसलते हुए बोली “उदास क्यों है….क्या तुझे अच्छा नहीं लग रहा है…..हाय राजू तेरा लण्ड बहुत बड़ा और मजेदार है…. तेरा हाथ से करने लायक नहीं है….ये किसी छेद घुसा कर किया कर…..” मैं दीदी की ऐसी खुल्लम खुल्ला बातों को सुन कर एक दम से भोच्चक रह गया और उनका मुंह ताकता रहा. दीदी मेरे लण्ड की चमरी को पूरा निचे उतार कर सुपाड़े की गोलाई के चारो तरफ ऊँगली फेरती हुई बोली “ऐसे क्या देख रहा है….तू अपना शरीर बर्बाद कर लेगा तो मैं माँ को क्या मुंह दिखाउंगी……मैंने सोच लिया है मुझे तेरी मदद करनी पड़ेगी……..तू घबरा मत….” दीदी की बाते सुन कर मुझे ख़ुशी हुई मैं हकलाते हुए बोला “हाय दीदी मुझे डर लगता है….आपसे….” इस पर दीदी बोली “राजू मेरे भाई…डर मत….मैंने तुझे….गाली दी इसकी चिंता मत कर…. मैं तेरा मजा ख़राब नहीं करना चाहती…ले……मेरा मुंह मत देख तू भी मजे कर……..” और मेरा एक हाथ पकड़ कर अपनी ब्लाउज में कसी चुचियों पर रखती हुई बोली “….तू इनको दबाना चाहता था ना….ले…दबा…तू….भी मजा कर….मैं जरा तेरे लण्ड…. की……कितना पानी भरा है इसके अंदर….” मैंने डरते हुए दीदी की चुचियों को अपनी हथेली में थाम लिया और हलके हलके दबाने लगा. अभी दो तीन बार ही दबाया था की दीदी मेरे लण्ड को मरोरती हुई बोली “साले…कब मर्द बनेगा….ऐसे औरतो की तरह चूची दबाएगा तो…इतना तगड़ा लण्ड हाथ से ही हिलाता रह जायेगा….अरे मर्द की तरह दबा ना…डर मत….ब्लाउज खोल के दबाना चाहता है तो खोल दे….हाय कितना मजेदार हथियार है तेरा….देख….इतनी देर से मुठ मार रही हूँ मगर पानी नहीं फेंक रहा…..” मैंने मन ही मन सोचा की आराम से मुठ मारेगी तभी तो पानी फेंकेगा, यहाँ तो जैसे ही लौड़ा अपनी औकात पर आया था वैसे ही एक थप्पर मार कर उसको ढीला कर दिया. इतनी देर में ये समझ में आ गया की अगर मुझे दीदी के साथ मजा करना है तो बर्दाश्त करना ही परेगा, चूँकि दीदी ने अब खुली छूट दे दी थी इसलिए अपने मजे के अनुसार दोनों चुचियों को दबाने लगा, ब्लाउज के बटन भी साथ ही साथ खोल दिए और नीले रंग की छोटी से ब्रा में कसी दीदी की दोनों रसभरी चुचियों को दोनों हाथो में भर का दबाते हुए मजा लूटने लगा. मजा बढ़ने के साथ लण्ड की औकात में भी बढोतरी होने लगी. सुपाड़ा गुलाबी से लाल हो गया था और नसों की रेखाएं लण्ड के ऊपर उभर आई थी. दीदी पूरी कोशिश करके अपनी हथेली की मुट्ठी बना कर पुरे लण्ड को कसते हुए अपना हाथ चला रही थी. फिर अचानक उन्होंने लण्ड को पकरे हुए ही मुझे पीछे की तरफ धकेला, मेरी पीठ पलंग की पुश्त से जाकर टकराई मैं अभी संभल भी नहीं पाया था की दीदी ने थोड़ा पीछे की तरफ खिसकते हुए जगह बनाते हुए अपने सर को निचे झुका दिया और मेरे लाल आलू जैसे चमचमाते सुपाड़े को अपने होंठो के बीच कसते हुए जोर से चूसा. मुझे लगा जैसे मेरी जान सुपाड़े से निकल कर दीदी के मुंह के अन्दर समा गई हो. गुदगुदी और मजे ने बेहाल कर दिया था. अपने नौजवान सुपाड़े को चमरी हटा कर पहले कभी पंखे के निचे हवा लगाता था तो इतनी जबरदस्त सनसनी होती थी की मैं जल्दी से चमरी ऊपर कर लेता था. यहाँ दीदी की गरम मुंह के अन्दर उनके कोमल होंठ और जीभ ने जब अपना कमाल सुपाड़े पर दिखाना शुरू किया तो मैं सनसनी से भर उठा. लगा की लण्ड पानी छोड़ देगा. घबरा कर दीदी के मुंह को अपने लण्ड पर से हटाने के लिए चूची छोड़ कर उनके सर को पकड़ ऊपर उठाने की कोशिश की तो दीदी मेरे हाथ को झटक लौड़े पर से मुंह हटाती हुई बोली “हाय राजू….तेरा लण्ड तो बहुत स्वादिष्ट है….खाने लायक है….तुझे मजा आएगा…….चूसने दे….देख हाथ से करने से ज्यादा मजा मिलेगा….” मैं घबराता हुआ बोला “पर…पर…दीदी मेरा निकल जायेगा,,,,बहुत गुदगुदी होती है…..जब चूसती हो…..हाय. इस पर दीदी खुश होती हुई बोली “कोई बात नहीं भाई….ऐसा होता है…..आज से पहले कभी तुने चुसवाया है…”

“हाय…नहीं दीदी…कभी…नहीं….”
 
“ओह… हो…..मतलब किसी के साथ भी किसी तरह का मजा नहीं लिया है…..”
“हाय…नहीं दीदी….कभी किसी के साथ…..नहीं”
“कभी किसी औरत या लड़की को नंगा नहीं देखा है…..”
मैं दीदी की इस बात पर शर्मा गया और हकलाते हुए बोला ” जी कभी नहीं…”
“हाय तभी तू इतना तरस रहा है….और छुप कर देखने की कोशिश कर रहा था….कोई बात नहीं राजू….मुझे भी माँ को मुंह दिखाना है….चिंता मत कर….पहले मैं ये तेरा चूस कर इसकी मलाई एक बार निकल देती हूँ…फिर तुझे दिखा दूंगी…..” मैं ज्यादा कुछ समझ नहीं पाया की क्या दिखा दूंगी. मेरा ध्यान तो मेरे तन्नाये हुए लौड़े पर ही अटका पड़ा था. मैं बहुत ज्यादा उत्तेजित हो चुंका था और अब किसी भी तरह से लण्ड का पानी निकलना चाहता था. मैंने अपने लण्ड को हाथ से पकड़ा तो दीदी ने मेरा हाथ झटक दिया और अपनी चूची पर रखती हुई बोली “ले इसको पकड़” और मेरे लण्ड को अपनी मुठ्ठी में भर कर ऊपर निचे करते हुए सुपाड़े को अपने मुंह में भर कर चूसने लगी. मैं सीसीयाते हुए दोनों हाथो में दीदी की कठोर चुचियों को मसलते हुए अपनी गांड बिस्तर से उछालते हुए चुसाई का मजा लेने लगा. मेरी समझ में नहीं आ रहा था की मैं क्या क्या करू. सनसनी के मारे मेरा बुरा हाल हो गया था. दीदी मेरे सुपाड़े के चारो तरफ जीभ फ़िराते हुए मेरे लण्ड को लौलीपौप की तरह से चूस रही थी. कभी वो पुरे लण्ड पर जीभ फ़िराते हुए मेरे अंडकोष को अपनी हथेली में लेकर सहलाते हुए चूसती कभी मेरे लौड़े के सुपाड़े के अपने होंठो के बीच दबा कर इतनी जोर-जोर से चूसती की गोल सुपाड़ा पिचक का चपटा होने लगता था. चूची छोड़ कर मैं दीदी के सर को पकड़ गिरगिड़ाते हुए बोला “हाय दीदी मेरा….निकल जाएगा….ओह…सी सी….दीदी अपना मुंह….हटा लो…ओह दीदी….बहुत गुदगुदी हो रही है…प्लीज दीदी….ओह मुंह हटा लो….देखो मेरा….पानी निकल रहा है…..” मेरे इतना कहते ही मेरे लण्ड ने एक तेज पिचकारी छोड़ी. कविता दीदी ने जल्दी से अपना मुंह हटाया मगर तब भी मेरे लण्ड की तेज धार के साथ निकली हुई वीर्य की पिचकारी का पहला धार तो उनके मुंह में ही गिरा बाकी धीरे-धीरे पुच-पुच करते हुए उनके पेटिकोट एवं हाथ पर गिरने लगा जिस से उन्होंने लण्ड पकड़ रखा था. मैं डरते हुए दीदी का मुंह का मुंह देखने लगा की कही वो इस बात के लिए नाराज़ तो नहीं हो गई की मैंने अपना पानी उनके मुंह में गिरा दिया है. मगर मैंने देखा की दीदी अपने मुंह को चलाती हुई जीभ निकल कर अपने होंठो के कोने पर लगे मेरे सफ़ेद रंग के गाढे वीर्य को चाट रही थी. मेरी तरफ मुस्कुरा कर देखते हुई बोली “हाय राजू…बहुत अच्छा पानी निकला…. बहुत मजा आया…तेरा हथियार बहुत अलबेला है….भाई….बहुत पानी छोड़ता है….मजा आया की नहीं…बोल…कैसा लगा अपनी दीदी के मुंह में पानी छोड़ना….हाय…तेरा लण्ड जिस बूर में पानी छोड़ेगा वो तो…एक दम लबालब भर जायेगी….”. दीदी एकदम खुल्ल्लम खुल्ला बोल रही थी. दीदी के ऐसे बोलने पर मैं झरने के बाद भी सनसनी से भर शरमाया तो दीदी मेरे झरे लण्ड को मुठ्ठी में कसती हुई बोली “अनचुदे लौड़े की सही पहचान यही है…की उसका औजार एक पानी निकालने के बाद कितनी जल्दी खड़ा होता…. ” कहते हुए मेरे लण्ड को अपनी हथेली में भर कर सहलाते हुए सुपाड़े पर ऊँगली चलाने लगी. मेरे बदन में फिर से सनसनाहट होने लगी. झरने के कारण मेरे पैर अभी भी काँप रहे थे. दीदी मेरी ओर मुस्कुराते हुए देख रह थी और बोली “इस बार जब तेरा निकलेगा तो और ज्यादा टाइम लगाएगा….वैसे भी तेरा काफी देर में निकलता है…..साला बहुत दमदार लौड़ा है तेरा….” मैं शरमाते हुए दीदी की तरफ देखा और बोला “हाय….फिर से…मत करो…हाथ से…”. इस पर दीदी बोली “ठहर जा…पहले खड़ा कर लेने दे…हाय देख खड़ा हो रहा है लौड़ा….वाह….बहुत तेजी से खड़ा हो रहा है तेरा तो….”. कहते हुए दीदी और जोर से अपने हाथो को चलाने लगी. “हाय दीदी हाथ से मत करो….फिर निकल जाएगा….” मैं अपने खड़े होते लण्ड को देखते हुए बोला. इस पर दीदी ने मेरे गाल पकड़ खींचते हुए कहा “साले हाथ से करने के लिए तो मैंने खुद रोका था…हाथ से मैं कभी नहीं करुँगी….मेरे भाई राजा का शरीर मैं बर्बाद नहीं होने दूंगी….” फिर मेरे लण्ड को छोड़ कर अपने हाथ को साइड से अपनी पेटिकोट के अन्दर ले जा कर जांघो के बीच पता नहीं क्या, शायद अपनी बूर को छुआ और फिर हाथ निकाल कर ऊँगली दिखाती हुई बोली “हाय देख… मेरी चूत कैसे पनिया गई….बड़ा मस्त लण्ड है तेरा…जो भी देखेगी उसकी पनिया जायेगी….एक दम घोड़े के जैसा है…अनचुदी लौंडिया की तो फार देगा तू….मेरे जैसी चुदी चुतो के लायक लौड़ा है….कभी किसी औरत की नंगी नहीं देखी है….”. दीदी के इस तरह से बिना किसी लाज शर्म के बोलने के कारण मेरे अन्दर भी हिम्मत आ रही थी और मैं भी अपने आप को दीदी के साथ खोलना चाह रहा था. दीदी के ये बोलने पर मैंने शर्माने का नाटक करते हुए कहा “हाय दीदी किसी की नहीं…बस एक बार वो ग्वालिन बाहर मुनिसिप्लिटी के नल पर सुबह-सुबह नहा रही थी….तब….” दीदी इस चहकती हुई बोली “हाँ..तब क्या भाई…तब…”. मैं गर्दन निचे करते हुए बोला “वो..वो…तो…दीदी कपड़े पहन कर नहा रही थी…बैठ कर…पैर मोड़ कर…..तो उसकी साड़ी बीच में से हट…हट गई…पर…काला…काला दिख रहा था….जैसे बाल हो….” दीदी हँसने लगी और बोली “अरे…वो तो झांटे होंगी….उसकी चूत की….बस इतना सा देख कर ही तेरा काम हो गया….मतलब तुने आजतक असल में किसी की नहीं देखी है…” मैं शरमाते हुए बोला “अब पता नहीं दीदी….मुझे….लगा वही होगी…इसलिए…” दीदी इस पर मुस्कुराते हुए बोली “ओह हो…मेरा प्यारा छोटा भाई…..बेचारा….फिर तुझे और कोई नहीं मिली देखने के लिए जो मेरे कमरे में घुस गया….” मैं इस पर दीदी का थोड़ा सा विरोध करते हुए बोला “नहीं दीदी….ऐसी बात नहीं है….वो तो….तो मैं….मेरे ऑफिस में भी बहुत सारी लड़कियाँ है मगर…..मगर….मुझे नहीं पता….ऐसा क्यों है….मगर मुझे आप से ज्यादा सुन्दर…कोई नहीं…..कोई भी नहीं….लगती….मुझे वो लड़कियाँ अच्छी नहीं…लगती प्लीज़ दीदी मुझे माफ़ कर दो… मैं…मैं…आगे से ऐसा…..नहीं…” इस पर दीदी हँसने लगी और मुझे रोकते हुए बोली “अरे…रे…इतना घबराने की जरुरत नहीं है….मैं तो तुमसे इसलिए नाराज़ थी की तुम अपना शरीर बर्बाद कर रहे थे….मेरे भाई को मैं इतनी अच्छी लगती हूँ की उसे कोई और लड़की अच्छी नहीं लगती….ये मेरे लिए गर्व की बात है मैं बहुत खुश हूँ….मुझे तो लग रहा था की मेरी उम्र बहुत ज्यादा हो चूँकि है इसलिए…..पर….इक्कीस साल का मेरा नौजवान भाई मुझे इतना पसंद करता है ये तो मुझे पता ही नहीं था…” कहते हुए आगे बढ़ कर मेरे होंठो पर एक जोरदार चुम्मा लिया और फिर दुबारा अपने होंठो को मेरे होंठो से सटा कर मेरे होंठो को अपने होंठो के दबोच कर अपना जीभ मेरे मुंह में ठेलते हुए चूसने लगी. उसके होंठ चूसने के अंदाज से लगा जैसे मेरे कमसिन जवान होंठो का पूरा रस दीदी चूस लेना चाहती हो. होंठ चूसते चूसते वो मेरे लण्ड को अपनी हथेली के बीच दबोच कर मसल रही थी.
 
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