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- Dec 5, 2013
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अब उसका साथी कमाण्डर के पास था ।
भाले वाले युवक के जाते ही उस दूसरे बर्मी युवक ने झोंपड़ी में से एक चारपाई निकालकर बाहर डाल दी ।
“अगर तुम आराम करना चाहते हो, तो कर लो ।” वह युवक बोला- “मेरा साथी तो अब आधा-पौने घण्टे से पहले लौटने वाला नहीं है या फिर उसे और भी देर लग सकती है ।”
“क्यों, क्या गांव ज्यादा दूर है ?”
“नहीं, गांव तो ज्यादा दूर नहीं है ।” युवक के होठों पर मुस्कान तैरी- “लेकिन बात कुछ और है ।”
“और क्या बात हो सकती है ?” कमाण्डर करण सक्सेना के कान खड़े हुए ।
उसके दिमाग में खतरे की घण्टी बजी ।
“बात न ही पूछो तो बेहतर है ।”
“फिर भी ।”
“दरअसल उस गांव में एक लड़की है, मेरे दोस्त का आजकल उससे टांका भिड़ा हुआ है । अब यह कैसे हो सकता है कि वह किसी काम से उस गांव में जाये और उससे न मिले ।”
“ओह !” कमाण्डर हंसा- “मैं कुछ और समझा था ।”
“तुम क्या समझे थे ?”
“कुछ नहीं ।”
कमाण्डर ने अपनी पीठ पर लदा हैवरसेक बैग उतारकर चारपाई के सिरहाने रख लिया ।
“अब मैं आराम करता हूँ ।”
“ठीक है ।”
कमाण्डर चारपाई पर पैर फैलाकर लेट गया ।
दोनों इंजेक्शनों ने उस पर अच्छा-खासा असर दिखाया था और अब उसके घुटने में बिल्कुल भी दर्द नहीं था ।
हालांकि रंगून पहुँचना कमाण्डर करण सक्सेना का लक्ष्य नहीं था और न ही उसने रंगून जाना था, लेकिन फिर भी वो उन दोनों बर्मी युवकों की हाँ में हाँ इसलिए मिला रहा था, क्योंकि वह उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी पाने का इच्छुक था ।
उसने देखा, वहाँ मौजूद बर्मी युवक अब नगाड़े को लेकर उसी तरफ आ रहा था और फिर वो उसे रखने के लिए झोंपड़ी के अंदर चला गया ।
थोड़ी देर बाद ही वो बाहर निकला ।
“क्या चाय पिओगे ?” उसने कमाण्डर से बर्मी भाषा में ही पूछा था ।
“नहीं, अभी इच्छा नहीं है ।”
युवक ने कुछ न कहा ।
वो वहीं चूल्हे के नजदीक बैठ गया ।
फिर उसने अपनी जेब से केले का पत्ता निकाला, जिसे गोलाई में रोल किया गया था और जिसके अंदर कोई चीज बंद थी । उसने वह केले का पत्ता खोला, तो उसके अंदर से दो सिगार चमके । वह ‘बर्मी सिगार’ थे और कोई ज्यादा उम्दा क्वालिटी के नहीं थे ।
उसने वह दोनों सिगार चूल्हे के अंदर रखी एक भभकती लकड़ी की आग में सुलगा लिये ।
“लो ।” फिर वह कमाण्डर करण सक्सेना से सम्बोधित हुआ- “सिगार तो पी लो ।”
“नहीं, अभी मेरी कुछ भी पीने की इच्छा नहीं है । मैं बस आराम करके अपनी तबियत को थोड़ी हल्की करना चाहता हूँ ।”
“कमाल है । सिगार पीने से मना कर रहे हो ।”
कमाण्डर सिर्फ मुस्कराया ।
उसके मना करने के बावजूद बर्मी युवक ने दूसरा सिगार बुझाया नहीं था । उसने वह सिगार चूल्हें के पास ही थोड़ा तिरछा करके रख दिया ।
उसके बाद वह उस सिगार के छोटे-छोटे कश लगाने लगा, जो उसने अपने लिये सुलगाया था ।
“एक बात समझ नहीं आयी ।” कमाण्डर चारपाई पर लेटे-लेटे बोला ।
“क्या ?”
“तुम सुबह-ही-सुबह इतनी जोर-जोर से नगाड़े पर थाप किसलिये दे रहे थे ?”
“इसके पीछे एक खास वजह है ।”
“क्या ?”
“दरअसल यह जंगल के अपने सिग्नल हैं ।” उस बर्मी युवक ने बताया- “जब सुबह-ही-सुबह बर्मा के जंगलों में जोर-जोर से नगाड़े पर थाप दी जाती है, तो इसका यह मतलब होता है कि वहाँ रात बिल्कुल ठीक गुजरी है और कोई बुरी घटना नहीं घटी हैं । इससे आसपास के गावों में रहने वाले लोग राहत की सांस लेते हैं ।”
“यानि बर्मा के जंगलों में नगाड़े पर थाप देना सकुशलता का प्रतीक है ।”
“हाँ ।”
कमाण्डर करण सक्सेना शान्त भाव से लेटा रहा ।
भाले वाले युवक के जाते ही उस दूसरे बर्मी युवक ने झोंपड़ी में से एक चारपाई निकालकर बाहर डाल दी ।
“अगर तुम आराम करना चाहते हो, तो कर लो ।” वह युवक बोला- “मेरा साथी तो अब आधा-पौने घण्टे से पहले लौटने वाला नहीं है या फिर उसे और भी देर लग सकती है ।”
“क्यों, क्या गांव ज्यादा दूर है ?”
“नहीं, गांव तो ज्यादा दूर नहीं है ।” युवक के होठों पर मुस्कान तैरी- “लेकिन बात कुछ और है ।”
“और क्या बात हो सकती है ?” कमाण्डर करण सक्सेना के कान खड़े हुए ।
उसके दिमाग में खतरे की घण्टी बजी ।
“बात न ही पूछो तो बेहतर है ।”
“फिर भी ।”
“दरअसल उस गांव में एक लड़की है, मेरे दोस्त का आजकल उससे टांका भिड़ा हुआ है । अब यह कैसे हो सकता है कि वह किसी काम से उस गांव में जाये और उससे न मिले ।”
“ओह !” कमाण्डर हंसा- “मैं कुछ और समझा था ।”
“तुम क्या समझे थे ?”
“कुछ नहीं ।”
कमाण्डर ने अपनी पीठ पर लदा हैवरसेक बैग उतारकर चारपाई के सिरहाने रख लिया ।
“अब मैं आराम करता हूँ ।”
“ठीक है ।”
कमाण्डर चारपाई पर पैर फैलाकर लेट गया ।
दोनों इंजेक्शनों ने उस पर अच्छा-खासा असर दिखाया था और अब उसके घुटने में बिल्कुल भी दर्द नहीं था ।
हालांकि रंगून पहुँचना कमाण्डर करण सक्सेना का लक्ष्य नहीं था और न ही उसने रंगून जाना था, लेकिन फिर भी वो उन दोनों बर्मी युवकों की हाँ में हाँ इसलिए मिला रहा था, क्योंकि वह उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी पाने का इच्छुक था ।
उसने देखा, वहाँ मौजूद बर्मी युवक अब नगाड़े को लेकर उसी तरफ आ रहा था और फिर वो उसे रखने के लिए झोंपड़ी के अंदर चला गया ।
थोड़ी देर बाद ही वो बाहर निकला ।
“क्या चाय पिओगे ?” उसने कमाण्डर से बर्मी भाषा में ही पूछा था ।
“नहीं, अभी इच्छा नहीं है ।”
युवक ने कुछ न कहा ।
वो वहीं चूल्हे के नजदीक बैठ गया ।
फिर उसने अपनी जेब से केले का पत्ता निकाला, जिसे गोलाई में रोल किया गया था और जिसके अंदर कोई चीज बंद थी । उसने वह केले का पत्ता खोला, तो उसके अंदर से दो सिगार चमके । वह ‘बर्मी सिगार’ थे और कोई ज्यादा उम्दा क्वालिटी के नहीं थे ।
उसने वह दोनों सिगार चूल्हे के अंदर रखी एक भभकती लकड़ी की आग में सुलगा लिये ।
“लो ।” फिर वह कमाण्डर करण सक्सेना से सम्बोधित हुआ- “सिगार तो पी लो ।”
“नहीं, अभी मेरी कुछ भी पीने की इच्छा नहीं है । मैं बस आराम करके अपनी तबियत को थोड़ी हल्की करना चाहता हूँ ।”
“कमाल है । सिगार पीने से मना कर रहे हो ।”
कमाण्डर सिर्फ मुस्कराया ।
उसके मना करने के बावजूद बर्मी युवक ने दूसरा सिगार बुझाया नहीं था । उसने वह सिगार चूल्हें के पास ही थोड़ा तिरछा करके रख दिया ।
उसके बाद वह उस सिगार के छोटे-छोटे कश लगाने लगा, जो उसने अपने लिये सुलगाया था ।
“एक बात समझ नहीं आयी ।” कमाण्डर चारपाई पर लेटे-लेटे बोला ।
“क्या ?”
“तुम सुबह-ही-सुबह इतनी जोर-जोर से नगाड़े पर थाप किसलिये दे रहे थे ?”
“इसके पीछे एक खास वजह है ।”
“क्या ?”
“दरअसल यह जंगल के अपने सिग्नल हैं ।” उस बर्मी युवक ने बताया- “जब सुबह-ही-सुबह बर्मा के जंगलों में जोर-जोर से नगाड़े पर थाप दी जाती है, तो इसका यह मतलब होता है कि वहाँ रात बिल्कुल ठीक गुजरी है और कोई बुरी घटना नहीं घटी हैं । इससे आसपास के गावों में रहने वाले लोग राहत की सांस लेते हैं ।”
“यानि बर्मा के जंगलों में नगाड़े पर थाप देना सकुशलता का प्रतीक है ।”
“हाँ ।”
कमाण्डर करण सक्सेना शान्त भाव से लेटा रहा ।