kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून - Page 3 - SexBaba
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kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून

उसके बाद भाभी ने कहा अब तुझे एक स्पेशल शॉपिंग करानी है. मे बोली हो तो गया सब कुछ अब और क्या. तब तक हम लोग अजमल ख़ान रोड एक दुकान मे घुस गये थे. उनकी सहेली ने वहाँ पहले ही फोन कर दिया था. और उसने नाइटी, बेबी डॉल. मैं कहने लगी भाभी ये इतनी कैसी. तो वो और सेल्स गर्ल दोनो हंस के बोली अर्रे असली शादी की ड्रेस तो यही है, दूल्हे राजा को दिखाने के लिए बाकी सब तो पब्लिक के लिए है. भाभी ने 3-4 तो गाउन लिए उपर से बहोत लो कट, दो पिंक एक लाइट ब्लू एक वर्जिन वाइट और एकदम लेसी.. ये तो बहोत वैसे है, मेने शर्मा के कहा तो सेल्स गर्ल बोली, ये कुछ नही है, ये देखिए फिर उसने ऑलमोस्ट टॉप लेस और ट्रॅन्स्परेंट सी बेबी डॉल और फ्रॉक, फिर सॅटिन की कॉरसेट, और फिर जो उन्होने मेरे लिए गुलाबी रंग का लहंगा बनवाया था उससे मॅचिंग पिंक लेसी हाफ कप ब्रा और बहोत ही डेकरेटेड लेसी एक बहोत ही छोटी सी पैंटी ली. और उसके बाद 5-6 ब्रा पैंटी के सेट अलग रंगों के जिसमे दो स्किन कलर्स के भी थे. लेकिन इससे उनका मन नही भरा और वो बोली कुछ और एग्ज़ाइटिंग दिखाओ तो वो थॉंग और क्रॉच लेस पैंटी ले आई. भाभी ने वर्जिन वाइट और फॅशन रेड कलर की दो दो थॉंग और दो दो क्रॉच लेस पैंटी मेरे और अपने लिए भी.

अगले दिन अर्बॅल ट्रीटमेंट के लिए मुझे छोड़ के वो लोग चली गयी. अरमॅटिक थेरपिस्ट बोला कि तुम्हारी स्किन तो एकदम पर्फेक्ट है, पीच और क्रीम कंपेक्स्षन लेकिन आज के ट्रीटमेंट से जो भी डेड स्किन है एक्सप्लाय्टेड वो सब निकल जाएगा और टॉक्सिन भी, और अगले सिट्टिंग से एकदम पर्फेक्ट हो जाएगा. दिन भर ट्रीटमेंट चला. शाम को जब मम्मी आई तो उनकी सहेली बोली कि आगे का ट्रीटमेंट हमारे शहेर मे ही हो जाएगा और वो लड़की ब्राइडल मेकप भी घर आ के कर देगी. मम्मी से कहा कि मेरा मानना है कि दुल्हन के लिए जो पुराना सिस्टम था तेल और उबटन का बहोत अच्छा था. वो भी अपने कॉसमेटिक से बॉडी की नेचुरल क्वालिटी उभरती है और उसको एकदम नेचुरल बनाने की कोशिश करती है. फिर उन्होने पूछा कि मेने किसी जाइनकॉलजिस्ट को दिखाया तो मम्मी ने कहा मुझे कोई ज़रूरत नही लगी. वो बोली नही शादी के पहले ये बहोत ज़रूरी है. उन्होने मुझे अरमॅटिक आयिल्स, कॅंडल्स और अपने अर्बॅल कॉसमेटिक्स का एक बड़ा सेट, वेड्डिंग गिफ्ट के तौर पे भी दिया.

रात की ट्रेन से हम लौटे. अगले ही दिन भाभी मुझे, एक डॉक्टर जो उनकी फ्रेंड भी है, के पास ले गयी. शादी तय होने की बात सुन के सबसे पहले उन्होने पिल्स और पीरियड के बारे मे पूछा. जब मेने बताया कि मेरा नेक्स्ट पीरियड पाँच दिन मे पड़ेगा तो उन्होने कहा और शादी की तारीख क्या है? भाभी ने जब तारीख बताई तो वो बोली अर्रे तो तुमने कुछ इसके बारे मे सोचा नही क्या. मेरे कुछ समझ मे नही आया तो वो हंस के बोली, "अर्रे तू अपने दूल्हे का हनिमून स्पोइल करेगी क्या. तेरे हिसाब से शादी के 7-8 दिन बाद पीरियड्स पड़ेंगे तो वो बेचारा क्या करेगा. लेकिन चल मे कुछ करती हूँ, अपनी छोटी ननद का कुछ ख़याल तो रखना पड़ेगा." फिर उन्होने बर्थ कंट्रोल की गोलियाँ दी. मुझे समझाया कि कैसे लेनी है. फिर उन्होने एक और दवा लिखी और कहा कि इससे मेरे 'वो दिन' शादी के 7-8 दिन पहले ही प्रेपोने होके ख़तम हो जाएँगे, और अगली डेट करीब 35-36 दिन बाद पड़ेगी यानी शादी के 25-26 दिन बाद, और हमारे हनिमून मे कोई डिस्टर्बेन्स नही होगा. इसी बीच उनकी नर्स आ के मेरा ब्लड सॅंपल ले गयी. वो बोली कि अब इसका फिज़िकल मे कर लेती हूँ, थोड़ा टाइम उसमे लगेगा. भाभी बोली, "ठीक है मे तब तक ज़रा शॉपिंग से आती हूँ".
 
मुझे उन्होने एग्ज़ॅमाइन्षन रूम मे भिज दिया, और नर्स से बोला कि चेक अप शुरू करें. उसने मुझे सारे कपड़े उतरवाके सिर्फ़ एक गाउन पहनने को बोला और फिर मेरी हाइट, वेट, कमर, हिप्स, सब कुछ मेषर किया. और फिर मुझे एक टेबल पे लिटा के टांगे उपर फिक्स कर दी तभी वो भाभी की सहेली, डॉक्टर आ गयी. हाथ मे दस्ताने पेहन्के नर्स से बोली कि तुम बाहर जाओ, मे खुद एग्ज़ॅमिन कर लूँगी. जब उन्होने गाउन को उपर सरकाया तो मे झिझकी और बोली डॉक्टर प्लीज़ ऐसे ही चेक कर लीजिए. वो बनावटी गुस्से से बोली "हे डॉक्टर बोलेगी तो तेरे दूल्हे के पहले मे पूरा हाथ अंदर कर दूँगी". मेने फिर कहा ओके भाभी. हां अब ठीक है, मुस्कारके उन्होने कहा और एक रूई के फाहे से मेरी चूत के अंदर डालकर कुछ टेस्ट किया. जब एक उंगली उन्होने मेरी योनि के अंदर ज़रा सी डाली तो मे चीखी, "भाभी लगता है".

वो हैरानी से बोली कि क्या अभी तक कुछ भी इसके अंदर नही गया है, ना उंगली ना कॅंडल मेने हामी मे सर हिलाया तो वो बोली तेरे दूल्हे को थोड़ी ज़्यादा मेहनत करनी पड़ेगी, फिर उन्होने पीछे का भी और उसके बाद ब्रेस्ट और यहाँ तक की निपल्स भी चेक किए. जब हम बाहर निकले तो ब्लड की रिपोर्ट आ चुकी थी.

वो देख के वो बोली सब कुछ नॉर्मल, बल्कि बढ़िया है.. ठीक तभी भाभी आई तो उन्हे उन्होने बताया कि सब ठीक है लेकिन दुल्हन का घूँघट थोड़ा उपर है कहो तो थोड़ा खोल दूं इसका दूल्हा हम लोगों को थॅंक्स देगा. मुझे तो कुछ समझ मे नही आया पर भाभी समझ गयी और हंस के बोली, हां एक दम पर उसके लिए कब आना होगा. वो बोली शादी के 6-7 दिन पहले. जब पीरियड ख़तम हो जाए, और उस समय मे एक बार और चेक कर लूँगी.

जब हम लोग लौटे तो भाभी के हाथ मे दो वीडियो कॅसेट थे, मेने उनसे पूछा कि क्या है तो वो हंस के बोली बच्चों के लिए नही है. मे चिढ़ा के बोली अब मे बच्ची नही हूँ मेरी भी शादी होने वाली है. तो वो हंस के बोली अच्छा चल अभी चेक करती हूँ लगा. मम्मी किसी से काम से बाहर गयी थी और घर मे खाली हम दोनो ही थे. पिक्चर की शुरुआत मे, एक कपल की किस्सिंग सीन थी, मेने भाभी से बोला कि ये कौन सी बड़ी बात है इतना तो हर पिक्चर मे होता है. वो मुस्करा के बोली देखती जाओ. तभी उस आदमी ने लड़की का टॉप सरकाया और उस के बूब्स बाहर आ गये .वो उन्हे किस करने लगा. तब तक तो मे देखती रही लेकिन जब लड़की ने उसके पैरों के पास बैठ के, उसकी पॅंट खोल कर उसका, 'वो' किस करने और चूसने लगी तो मेने नज़र झुका ली.

भाभी ने मुझे कूहनी से टोका, हे तुम अब बच्ची नही हो ना तो देखो ना और कुछ दिन बाद तो तू भी यही सब करेगी, देख और सीख. और जब मेने नज़र उठाई तो दोनो नंगे हो चुके थे. वो उसकी जाँघो के बीच मे लीक कर रहा था.
 
थोड़ी ही देर मे, उसकी दोनो टांगे मर्द के कंधे पे थी और उसने घुसाना शुरू कर दिया था. भाभी ने यहीं पिक्चर पॉज़ कर दी .मुझसे बोली, देख कैसे टांगे चौड़ी कर के उठाए है, सीख और फिर प्ले कर दिया. उनकी कॉमेंटरी चालू थी, देख कितने सॅट सॅट के रगड़ के अंदर जा रहा है. और सब कुछ तो था उस मे, दो मर्द और एक औरत, दो लड़किया और एक मर्द, फिर कभी लड़की उपर से चढ़ के खुद भाभी कभी स्लो कर के एक एक सीन मुझे दिखाती ब्लू फिल्मों के बारे मे सुना तो था लेकिन देख पहली बार रही थी. और थोड़ी देर मे मेरी शरम कम हो गयी तो मे खुल के देख रही थी, बल्कि भाभी की तरह कॉमेंट भी कर रही थी और मज़े भी ले रही थी. जब भाभी ने दूसरा कॅसेट लगाया जो वो मेरे लिए ही ले आई थी, हाउ टू डू टेप इसमे एक लड़की ने पहले अपनी देह के सारे अंग दिखाए, उन के बारे मे बताया, फिर एक न्यूड लड़के के फिर किस से लेके इंटर कोर्स तक सब कुछ लेकिन बड़े ही एरॉटिक ढंग से लेकिन मुझे असली एहसास और 'शिक्षा' घर से ही मिली. हुआ ये कि दो चार दिन बाद दादी आई और उन के साथ गाँव से कुछ काम करने वालिया, महारजिन, मेरी चाची और एक दो औरते.

उन्होने सबसे पहले मुझे डाँट लगाई, क्या उदबिलाव की तरह टहलती रहती है. फिर मुझे प्यार से गले लगा के बोली कि अब तेरी लगन लग गयी है,दुल्हन की तरह रहा कर.अब तू उच्छल कूद करने वाली लड़की थोड़ी है. फिर मम्मी का नंबर था कि शादी का घर ये लग ही नही रहा है, न कहीं ढोलक बज रही है और अभी तक दुल्हन को उबटन तक लगाना नही शुरू हुआ.महीना भर भी नही बचा है.लेकिन सबसे ज़्यादा डाँट बसंती को पड़ी कि उसने मुझे न तो मालिश की और न उबटन लगाई. दादी बोली कि नाहिन होने के नाते दुल्हन की सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदारी तो उसी की है और वो फिर बहू है, मेरी भाभी तो उसकी तो दुहरी ज़िम्मेदारी है. वो बेचारी शाम को तेल, उबटन सब लेके पहुँची मेरे कमरे मे. मे बड़ी मुश्किल से तैयार तो हो गई लेकिन उसने कहा कि मे कोई सारी या ढीला गाउन पहन लू तो वो शर्त मुझे स्वीकार नही हुई. अब बेचारी, थोड़ा बहोत टाँग मे उसने लगाया. लेकिन उसके आगे वो बढ़ना चाहती थी तो मेने सॉफ मना कर दिया. उसने लाख समझाया कि मे कोई पुरानी सारी पहन लू, लेकिन मे नही मानी.

थोड़ी देर बाद जब मे नीचे खाने के लिए उतरी तो दादी, बसंती की क्लास ले रही थी. वो किसी 'ख़ास' उबटन के बारे मे पूच्छ रही थी लेकिन बसंती कह रही थी कि मेने मना कर दिया. उन्होने बड़ी ज़ोर से डांटा कि वो तो लड़की है, ये तो तुम लोगों की ज़िम्मेदारी है कि उसे कैसे तैयार करो. मुझे बहोत बुरा लगा ख़ास तौर से अपने उपर. अगर मे कोई गाउन पहन लेती या वैसे ही उससे लगवा लेती, आख़िर मे अरमॅटिक थेरपी वाले के यहाँ सिर्फ़ टवल लपेट के, फिर जब बॉडी मे दिल्ली मे मड्पॅक करवाया था.., और तो और हर हफ्ते जिम मे जब मे जाती हूँ तो आख़िर तौलिया ही तो और कई लड़कियाँ तो वो भी नही और मेरी भी कितनी बार छेड़ छाड़ मे वो तौलिया भी खींच लेती है.. फिर इससे तो मे भाभी ही कहती हूँ. किसी तरह खाना खाया. अगले दिन स्कूल से मे लौटी तो थक के चूर हो गयी थी. स्कूल मे इंटर कोलीजिट गेम्स और कल्चर कॉंपिटेशन इवेंट्स चल रहे थे. मेने स्विम्मिंग के हर इवेंट मे पार्टिसिपेट किया था और फिर दो घंटे तक डॅन्स की रिहर्सल. वेस्टर्न, फोक और ग्रूप टीमॉ की. फिर आज जिम का भी दिन था. और वहाँ भी ट्रेडमिल फुल स्पीड पे और उस के बाद पुश अप भी 10-15 करा दिए. थकान के मारे हालत खराब थी.

मे जब अपने कमरे मे पहुँची तो सीधे बिस्तर पे पड़ गयी. जब मेने थोड़ी देर मे आँखे खोली, तो मुस्काराए बिना नही रह सकी. मेरे पैर के पास मे बसंती खड़ी थी, हाथ मे तेल और उबटन की कटोरी लिए और बगल मे चटाई बिछा कर मेरे सामने उस बेचारी की कल की सूरत घूम गयी जब दादी उसको हड़का रही थी और उसकी आँखो मे आँसू तैर रहे थे. मे उतर कर खड़ी हो गयी और थोड़ा इधर उधर ढूँढ के बोली,

"हे कोई पुरानी सारी तो है नही, मे क्या पहन के मालिश कर्वाउन्गि."
 
उस के चेहरे पे खुशी नाच गई लेकिन थोड़ी परेशानी भी. कुछ सोच के वो बोली,

"अर्रे बीबी जी आप मेरी सारी पहने के लगवा लीजिए" मे मान गई और बोली,

"ठीक है लेकिन दो बाते है, तुम मेरी भाभी हो और बड़ी हो इस लिए 'आप' बंद करो. और ये लाइट भी. सिर्फ़ नाइट लॅंप काफ़ी है.

दरवाजा बंद कर के उसने अपनी सारी उतार के मुझे दी. वो सिर्फ़ साया ब्लाउस मे हो गयी. मेने भी ब्रा और पैंटी के उपर पहले तो उसकी सारी पहनी, फिर कुछ सोच के उसे छ्चोड़ एक चादर ओढ़ के पेट के बल लेट गयी, और मूड के उसे देख के मुस्करा के, अदा से बोली,

"सारी रहने दे. वरना उसमे तेल तो लग ही जाएगा, ये कुर्सी ठीक है. लेकिन भाभी जी मेरे जंघे फटी पड़ रही है कुछ करो ना."

"अर्रे, ननद रानी. अभी से फटी पड़ रही है तो आगे क्या होगा. लेकिन चिंता मत करो मेरे हाथ से मालिश करा के और बुकावा (उबटन) लगवा के तुम्हारी टांगे इतनी तगड़ी हो जाएगी, कि तेरा दूल्हा उसे चाहे जितनी देर तक उसे उठाए या फैलाए, कुछ फरक नही पड़ेगा."

और उसने जैसे अपनी उंगलिओं मे तेल लेके लगाना शुरू किया, मेरी जो भी झिझक थी और दर्द, सब कुछ ही देर मे पिघल गया. मेरे पैरों, पिंडलियों, जाँघो की थकान तो गायब हो ही गई, मुझे लगने लगा कि जैसे मे एकदम हल्की हो गई हूँ. उसका हाथ जब मेरे नितंबो पे पहुँचा, और उसने अपने हाथों के बीच दोनो नितंबो को लेके मसलना शुरू किया तो मेरी पैंटी एकदम दरारों के बीच फँस गयी. मे झिझकी ज़रूर,मन किया कि मना करू पर इतना आराम लग रहा था और अगले दिन कॉलेज मे रेस भी थी. फिर उसने उबटन लगाना शुरू किया, पहले पैरों पे फिर उसका हाथ मेरे ब्रा की स्ट्रिंग्स पे गया. वो बोली कि बीबी जी आपकी अंगिया ..खराब हो जाएगी. मे वैसे ही अधसोई सी थी. मेने ना सुनने का बहाना किया. उसने हल्के से मेरे हुक्स खोल दिए, फिर थोड़ा सा एक दूसरी कटोरी से कुछ अलग सा उबटन मेरे बूब्स के साइड मे लगा दिया. मे अपने आप करवट बदल के पीठ के बल हो गयी. अब उसने थोड़ा और हिम्मत कर के ब्रा उपर सरका के, मेरे उभारों पे बड़े सहम के कुछ और लगाया तो मेने आँखे खोल दी और उससे पूछा हे यहाँ क्यों तो वो बोली कि दादी ने कहा था. इससे थोड़ी देर पड़े रहने देना होगा.मुझे बहोत अच्छा लग रहा था. मेने उससे कहा कि मुझे बहोत आराम लग रहा है और मेरा नीचे जाने का मन नही कर रहा है, प्लीज़ भाभी मेरा खाना उपर ही ले आओ ना.

खुशी से वो तुरंत दरवाजे की ओर मूडी,तो मैं हंस के बोली, अर्रे भाभी जी सारी तो पहन लो वरना हंस के वो फिर वापस मूडी. थोड़ी देर मे वो सिर्फ़ खाना ले आई बल्कि अपने हाथ से खिलाया भी .

क्रमशः……………………..
 
शादी सुहागरात और हनीमून--9

गतान्क से आगे…………………………………..

अगले दिन स्कूल मे 4 रेस मे दौड़ी और तीन मे फर्स्ट आई और एक मे सेकेंड.

मुझे बेस्ट आत्लीट का अवॉर्ड भी मिला.

शाम को जब मे घर लौटी तो मेने वो अवॉर्ड बसंती को दे दिया और कहा कि वो उसके मालिश का नतीजा है. उसने खुश होके मुझे गले लगा लिया और चिढ़ाते हुए बोली,

"ननद रानी कुछ जगह कल बच गयी थी, आज वहाँ भी मालिश होगी." मेने भी उसे कस के भींचते हुए कहा,

"अर्रे डरता कौन है. आख़िर तुम्हारी ननद हूँ. हां, उसके बाद मुझसे उठा नही जाएगा इसलिए खाने भी उपर ही खाउन्गि.' " एकदम" वो बोली. मे हस्ते हुए उपर अपने कमरे मे चली गई.

जब तक वो आई तो आज मैं खुद ही, कपड़े उतार के चटाई बिछा के, चादर ओढ़ कर लेटी हुई थी. दरवाजा बंद कर के पलंग पे मेरे पड़े कपड़ों को देख, वो हंस के द्विअर्थि अंदाज़ मे बोली,

"तो आज खुद ही कपड़े उतार दिए. लेकिन ठीक है अगर लगवाना है तो कपड़े तो उतारने ही पड़ेंगे"

मे भी हंस के उसी अंदाज़ मे बोली, "लेकिन लगाने वाले को भी को भी कपड़े उतारने पड़ेंगे."

मेरे कहने के साथ ही उसने सारी उतार के ज़मीन पे रख दी थी और ब्लाउस साए की ओर इशारा कर के पूछा कहो तो ये भी उतार दूं. कल की तरह उसने फिर पैरों से मालिश शुरू की और थोड़ी ही देर मे मेरी सारी थकान गायब थी. और फिर उसकी जादू भरी उंगलिया पिंडलियों,जाँघो से होते हुए नितंबो तक पहुँच गयी. मेरी पूरी देह मे एक नशा सा छा रहा था. थोड़ी देर तक वो मेरे नितंबो को सहलाती, दबाती, कुचलती रही. और फिर उसने एक झटके मे मेरी पैंटी खींच के उतार दी और मेने मना किया तो बोली, अर्रे चादर से धकि तो हो कौन सा मे देख रही हूँ. और थोड़ी देर मे यही हालत मेरी ब्रा की हुई. मालिश के बाद उसने उबटन लगाना चालू शुरू किया और आज पैरों के बाद सीधे मेरे उरोजो पे और एक दूसरी कटोरी से एक अलग ढंग का उबटन ले के मेरे सीने पे हल्के हाथों से लगाया. (मुझे बाद मे पता चला कि वो अनार्दाने और अनार का एक ख़ास उबटन था जो बच्चे होने के बाद औरतों के सीने मे कसाव और शेप के लिए इस्तेमाल होता था) फिर उसे यहीं लगा हुआ छ्चोड़ के फिर उसने बाकी देह मे चंदन, हल्दी और सरसों का उबटन लगाना शुरू किया. एक घंटे के बाद फिर सीने पर लगा वो लेप छुड़ाया.

एक दो दिनों मे ही वो चादर भी हट गया और फिर खुल के अब मे समझी कि भाभी और बाकी औरते क्यों कहती थी कि उसकी उंगलिओं मे जादू है. सीने पे वो ख़ास उबटन जब वो छुड़ाती तो चिढ़ाते हुए मेरे सीने को मसल देती और कहती तेरा दूल्हा ऐसे ही कस के मसलेगा. कयि बार जब वो मेरे निपल्स को छूटी तो पता नही कैसी छुअन थी कि वो तुरंत एरेक्ट हो जाते. फिर उसे पुल कर वो कहती, ननद रानी, तेरे दूल्हे के तो भाग जाग गये जो इतने मस्त जोबन मिलेंगे उसको. नीचे भी वो कोई मौका नही छोड़ती थी, कभी मेरी कुँवारी किशोर पंखुड़ियो को सहला देती तो कभी तेल लगाने के बहाने उंगली की टिप से छेद को छु देती. मे एक दम मस्ती से गिन-गिना जाती. और जब कभी मे उसे सीने को छुने से मना करती तो वो और कस के मसल के बोलती, "अर्रे बन्नो, ये तो जवानी के फूल हैं, तेरे दूल्हे के खिलौने. अर्रे वो तो इतने कस कस के मसलेगा कि तेरे पसीने छूट जाएँगे. सिर्फ़ हाथों से नही, होंठो से भी, चूमेगा, चुसेगा, चाटेगा और कच कचा के काटेगा. अब तेरे इन कबूतरो के उड़ने के दिन आ गये. और जब तेरे "वो दिन" होंगे ना, तो इन मस्त जोबन के बीच वो लंड डाल के चोदेगा भी."
 
मे शरमाती, गुस्सा होने का नाटक करती पर मन ही मन सोचती कि वो दिन कब आएँगे जब मे उनकी बाहों मे होंगी, और वो कस कस के मेरी उंगलिओं की तरह बसंती की ज़ुबान मे भी जादू था (नही मेरा और कुछ मतलब नही है, सिर्फ़ उसकी बातों से है). वो रोज मुझे अपने मर्द का किस्सा रस ले ले के पूरे डीटेल के साथ सुनाती. एक दिन वो कुछ चुप सी थी तो मेने पूछा, क्या बात है भाभी, आज चुप हो तो वो चालू हो गयी. अर्रे आज आने के पहले बड़ी देर तक उसके टटटे चुस्ती रही. मेरे कुछ समझ मे नही आया, मे बोली.

"टटटे?? अर्रे इसका क्या मतलब ."

"अर्रे तू इसका मतलब नही जानती ससुराल मे नाम डुबोएगी, हम लोगों का. अर्रे पेल्हड़, वो जो लटकता रहता है." मे समझ गई कि वो बॉल्स के बारे मे बात कर रही है. मेने पूछा अर्रे तू उसको भी चूस रही थी. वो हंस के बोली और क्या,असली कारखाना तो यहीं है, माल बनाने का . और फिर वो बोली कि उसके बाद मेने उसके पीछे भी उसकी गांद को भी कस के चूसा.

"छी भाभी बड़ी गंदी हो तुम. वो कौन सी प्यार करने की जगह हुई.' मे बन के बोली.

"अर्रे मेरी ननद रानी," वो मेरे नितंबो को कस के मसल्ते बोली, "यही तो तुम नही जानती, गंदा सॉफ कुछ नही होता मज़ा लेना असली चीज़ है.और ये ट्रिक सीख लो तुम भी - उसे तो बहोत मज़ा आता है और मे भी एक दम जीभ अंदर कर के जब लंड एकदम थका हो ना कितना भी मुरझाया हो पेल्हड़ और गांद के बीच मे चूमने चाटने से एकदम खड़ा हो जाता है. देखो जो चीज़ मर्द को अच्छी लगे, वो पता कर के, करना चाहिए. और आख़िर जब वो जोश मे होता है तो हम लोगों को भी तो मज़ा देता है, इसलिए बन्नो समझ लो फालतू का नखरा, या शरम करने से कोई फ़ायदा नही." ऐसे ही एक दिन तेल लगाते लगाते उसने मुझे एकदम दुहरा कर दिया. मेरे घुटने मेरे छातियों से लग गये. मे चीखी, ये "क्या कर रही हो छोड़ो ना."

"अर्रे ननद रानी जब वो ऐसे कर के चोदेगा ने तो लंड का टोपा सीधे बच्चे दानी से लगेगा, और क्या मज़ा आता है उस समय. और साथ साथ नीचे से ये चूत का दाना भी रगड़ ख़ाता है साथ साथ."

नितंबो पे तेल लगाते हुए उसने मेरे पीछे के छेद को भी पूरी ताक़त से कस के फैला के, वहाँ भी दो बूँद तेल अंदर चुवा दिया.

"हे क्या करती हो वहाँ क्यों तेल "

"अर्रे ननद रानी जैसे मशीन के हर छेद मे तेल डालते है ना इस्तेमाल के पहले, उसी तरह.और तू क्या सोचती है यहाँ छोड़ेगा वो. तेरे इतते मस्त कसे कसे चूतड़ है - मेरे दूल्हे ने तो मेरे लाख मना करने के बाद भी पीछे वाले दरवाजा का बाजा बजा दिया था." और ये कह के थोड़ा सा उबटन लेके मेरे चूतड़ के बीचोबीच कस के रगड़ दिया. उसने मुझे मालिश की सारी ट्रिक भी सीखा दी थी और ये भी कि मर्दों के "ख़ास ख़ास पॉइंट" कौन से होते है उन्हे कैसे मालिश करना चाहिए और कैसे छेड़ना चाहिए.अब हमारी अच्छी ख़ासी दोस्ती थी और एक दिन मेने पूच्छ लिया कि ये उबटन और मालिश शादी के पहले क्यों करते है. वो उस समय मेरे उरोजो से उबटन छुड़ा रही थी. उन्हे मसल के बोली,

"इसलिए बन्नो कि तुम अब तक सिर्फ़ लड़की थी लेकिन अब लड़की से दुल्हन बन चुकी हो और ये तेरे तन मन मे दुल्हन का एहसास कराता है, तुमको तैयार करता है दुल्हन की तरह बनने के लिए और इसके बाद तुम दुल्हन से औरत बन जाओगी."

"वो कैसे,.." मे अपनी जाँघो से उबटन छुड़ाने के लिए फैलाती हुई बोली.

"वो काम दूल्हे राजा का है. वो अपने सीने मे कस के भींच के, दबा के, रगड़ के रोज रात को कच कचा के प्यार करेगा ना. लेकिन पूरी औरत तुम उस दिन बन जाओगी जिस दिन वो तुम्हे गर्भिन कर देगा, तुम्हारे पेट मे अपने बच्चा डाल देगा."

"और, तुम अभी किस हालत मे हो." मेने उठते हुए उसे छेड़ा.

"थोड़ी दुल्हन थोड़ी औरत, लेकिन सबसे ज़्यादा मज़ा इसी हालत मे मिलता है बिना किसी डर के रोज" वो हंस के बोली.
 
वास्तव मे मुझे अलग सा एहसास होता रहता था. आँखो मे सपने, मन मे मुरादे, बस मन करता रहता था कि वो दिन कितनी जल्दी आ जाए. जब मे उनकी बाहों मे होऊ और वो कस कर, भींच कर..मेरे होंटो पे मेरे शरीर का हर अंग नेये ढंग से महसूस कराता मेरे उभार, मेरी छातियाँ मुझे खुद भारी भारी, पहले से कसी लगती, और हर समय मुझे उनका एहसास होता रहता और अक्सर मे सोच बैठती कि राजीव कैसे मुझे बाहों मे लेंगे कैसे इन्हे कस के दबा देंगे लेकिन मे फिर खुद ही शर्मा जाती. और सारी देह मे एक अलग ढंग का रस्स खुमार, एक हल्की सी नेशीली सी चुभन और अब मेने जाने कि ये दुल्हन बनने का एहसास है.

जब मे उबटन लगवा के नीचे उतरी तो कुछ गाना हो रहा था. अब तो हर दम घर मे तरह तरह के गाने, काम वाली कोई दाल बनाती, चावल छाँटति या चक्की चलाती तो गा गा कर. बहोत प्यारी लेकिन थोड़ी उदास सी, रसोई मे महारजिन गा रही थी,
 बाबा निमिया के पेड़ जिन छोटियो, निमिया चिरैया के बेसर..

बाबा बिटियाई जानी कोई दुख देई बिटिया चिरैया की ने.

सबेरे चिड़िया उड़ी उड़ी जैहई रही जैहई निमिया अकेली.

सबेरे बिटिया जैहई ससुर रही जैहई मैंया अकेल..

बहोत अच्छा गाना था लेकिन मे अचानक उदास हो गयी. सोचने लगी अब कुछ दिन मे ही, अंगने तो परबत भयो, देहरि भयो बिदेसाए अंगों,


बस अब कब आना होगा कुछ ही दिनों मे और मम्मी ने मेरे उदास चेहरे को देख के खुद ही ताड़ लिया वो महारजिन से बोली, हे बिदाई के गाने मत गाओ देखो मेरी बेटी कितनी उदास हो गयी. गाँव से मेरी चाची और भाभीया आई थी. वो ढोलक ले के बरामदे मे बैठ के बन्ने बन्नी गा रही थी. उन्होने मुझे पास बुलाया कि हे बन्नी इधर आओ तुम्हे खुश कर देने वाले गाने सुनाते है. और उन्होने मुझे छेड़ते हुए बन्नी सुनानी शुरू कर दी,


बन्ने जी तोरी चितवन जादू भरी, बनने जी तोरी चितवन,

आज दिखाओ, बन्ने जी तोरी बिहसन जादू भरी,

बन्ने जी तोरी अधैरान की अरुनेइ, बनने जी तोरी बोली जादू भरी


और मेरे मन मे 'उनके' बारे मे ढेर सारे चित्र उभरने लगे. उनकी निगाहों के और कैसे कैसे बाते करते है मे एकदम भूल जाती हूँ अपने आप को ओर जो बाते बसंती करती है. सोच के बस सिहर सी उठी मे.

लेकिन भाभीया हो और बात सिर्फ़ बन्नी तक रहे ये कैसे हो सकता है. एक ने मुझे पकड़ के नाचने के लिए खड़ा कर दिया अपने साथ और दूसरी भाभी ने ढोलक संभाला और चालू हो गयी,


लगाए जाओ राजा धक्के पे धक्का, लगाए जाओ,

दो दो बटन है कस के दबाओ


(और उन्होने मेरे उभार खुल के पकड़ लिए और मेरी एक टाँग उठा के अपनी कमर मे लपेट धक्के लगाते हुए नाचनेलगी), अर्रे लगाए जाओ राजा, धक्के पे धक्का.

बड़ी मुश्किल से मे छुड़ा के बैठी लेकिन इतने से कहाँ छुटकारा मिलता.

गालियाँ शुरू हो गई,

ननद रानी पक्की छिनार,

एक जाए आगे दूसरा पिछवाड़े बचा नही को नेुआ कहार .

और फिर ननद रानी बड़ी चुद्वासि कोई कस के लेला कोई हंस के लेला,

अर्रे कोई ढाई ढाई जोबना बकैये लेला मे जीतने मूह बनाती वो और कस के .
.जब सब लोग जाने लगे तो चाची ने मुझे समझाया.

"देख ये गाने, ये रस्मे छेड़ छाड़ बेहोट ज़रूरी है. अब तुम लड़कपन से निकल के अब तुम्हारा कुँवारा पन ख़तम होनेवाला है तो जो बाते बचपन मे कुंवारे पन मे ग़लत मानी जाती थी,.."

"यहीं बाते अब सही हो जाती है. सबसे ज़रूरी हो जाती है' हंस के मेने बोला.

"एकदम तुम तो समझदार हो गयी हो. तो अब उन्ही चीज़ों का खुल के, जम के मज़ा लेने का समय आ गया है. लड़की की धड़क खुल जाय और समझ जाय कि अब उसे क्या करना है. हर उमर मे अलग अलग मज़ा है तो अब तुम्हारा जवानी का मज़ा लेने का वक़्त आ गया है, समझी." ये कह के उन्होने मुझे गले लगा लिया.

हां एकदम और मुस्कराते हुए दौड़ के मे उपर अपने कमरे मे सोने चली गई.
 
उस रात मेने अपनी डाइयरी मे लिखा इट ईज़ अन आक्सेप्टेन्स ऑफ फीमेल सेक्षुवालिटी न इट ईज़ आ सेलेब्रेशन ऑफ फीमेल सेक्षुवालिटी.

और उस रात राजीव ने मुझे खूब तंग किया, रात भर सपने मे सोने नही दिया.

वक़्त पंखा लगा के उड़ रहा था, लेकिन मेरा बस चलता तो मे उसे और तेज कर देती.

मेरे पीरियड्स, वक़्त से पहले हो गये थे, थॅंक्स टू, भाभी और डॉक्टर भाभी.

लेकिन 'उन दिनों' के आख़िरी दिन, मेरे दिमाग़ से उतर गया था पर भाभी को याद था कि डॉक्टर के पास जाना है. अगले दिन हम लोग डॉक्टर भाभी के पास पहुँचे. उन्होने पहले तो चेक किया और फिर एक छोटा सा ऑपरेशन भी किया. बाद मे उन्होने मुझे बताया कि इसे पार्षियल होडेक्टमी कहते है.

उन्होने शीशे मे मुझे दिखाया, मेरी क्लिट अब सॉफ सॉफ दिख रही थी. वो हंस के बोली " मेने इसका घूँघट बस थोड़ा सा हटा दिया है, पूरा नही. जैसे घूँघट से दुल्हन दिखती है ना बस वैसे ही. लेकिन जब तुम उत्तेजित होगी, तो ये अपने आप पूरी तरह खुल जाएगा."और उन्होने खोल के दिखाया भी, गुलाबी, गीला और बड़े मटर के दाने सा मुझे बसंती की बात याद आई, कि कैसे उसके मर्द के लिंग..का बेस जब वहाँ रगड़ता है तो. वो बोल रही थी कि और ये दवाई 4-5 दिन तुम खा लेना बस. हां और एक क्रीम भी तेरे लिए है, एकदम स्पेशल. ये वो वॅसलीन या जेल्ली की तरह नही. इस्तेमाल के पहले लगाने वाली, वो तो तेरा दूल्हा लगाएगा. ये इस्तेमाल के बाद वाली है. रोज सुबह लगा लेना.इससे रात भर की जो तुम्हारी रागड़ाई हुई होगी, वो सारी थकान मिट जाएगी.

इसमे तीन चीज़े है, एक तो स्पेरमीसिडल जो सीमेन पे असर कर के एक्सट्रा बर्थ कंट्रोल का प्रोटेक्षन देगी. दूसरा, इसमे वो केमिकल है जो योनि को एकदम टाइट कर देते है और समन्यतय मे इसे डेलिवरी के बाद औरतों को देती हूँ.

इसका असर ये होगा कि बेचारे तेरे दूल्हे को हर रात पहली रात जितनी ही मेह्नत करनी पड़ेगी. और तीसरा, अगर कुछ खड़ास या ज़यादा रगड़ होने से कुछ छिल विल जाएगा तो उसमे भी ये हेल्प करती है. (और असली चीज़ जो उन्होने ये नही बताई थी, जिसका पता मुझे खुद उसके इस्तेमाल के बाद चला कि उसमे कुछ ऐसी भी चीज़ थी, जो 'उसे' लगातार गीला और अराउज़्ड रखती थी,) मेने मुस्करा कर कहा डॉक्टर भाभी थॅंक्स.. लेकिन फीस. बड़ी ज़ोर से मेरे हिप्स पे उन्होने एक धौल मार के, भाभी की ओर देख के कहा"चल बड़ी आई फीस मे अपने ननदोइ से लूँगी. दो रात और तीन दिन भाभियों के साथ. क्यों मंजूर है." मेने तुरंत हंस के कहा, एकदम भाभी.

अगले दिन सुबह ही कंगन बन्दन की और तेल की रसम थी, और इसी के साथ सारी रसमे शुरू होनी थी. और तेल और कंगन के बाद मे घर से बाहर नही निकल सकती थी. कंगन के बाद न्योता देने का काम शुरू हुआ, गाने के साथ,

अर्रे अर्रे करें भँवरा, करिय तोहरि जतिया, भँवरा लू हरदिया की गाँठ, नेवात पहुँचाओ.

नेवथो आरीगन-परिगन,मे के नेहआर,मोर नेनियौर.

पहला न्योता देवता को मंदिर मे, दूसरा हमारे परिवार के गुरु को, फिर मेरे नेनिहाल और फिर सब को दिया गया और उस के बाद तो एक के बाद एक रस्मे, उड़द चुने की. मट्टी खोदने की और सबमे गाने और गाने से ज़्यादा गलियाँ और भाभीया किसी को बक्ष नही रही थी.

क्रमशः……………………..
शादी सुहागरात और हनीमून--9
 
शादी सुहागरात और हनीमून--10

गतान्क से आगे…………………………………..

मट्टी खोदने पे जो कुम्हारिन थी, सब अब उसके ही पीछे पड़ गई और फिर रीमा और उसकी सहेलियों का नाम ले ले के. फिर एक कुँवारी की पटरी की रसम थी, उसमे दुल्हन के उपर से एक पत्तल उतार के जो उसकी कुँवारी बेहन होती है, जिसकी अगली शादी होनी होती है, उसके सर पे रखी जाती है. मुझसे छोटी रीमा ही थी उसके सर पे रखी गई, और भाभी ने बड़े द्विअर्थि अंदाज़ मे मुस्करा के पूछा,

"क्यों चढ़ा" और उसने भी उसी अंदाज़ मे मुस्करा के जवाब दिया हां भाभी.

चढ़ा. भाभी बोली," इसका मतलब कि तुम्हारे उपर जल्दी ही चढ़ेगा, इंतजार नही करना पड़ेगा." गालियाँ और गाने सुन, गा के वो भी मूह फॅट हो गयी थी.

बोली, "भाभी आपके मूह मे घी-शक्कर." खूब गहमा गहमी चहल पहल और रोज रात को गाने.

अगले दिन सुबह मे उठी, तो आँगन मे बुआ, चाची और गाँव की एक दो मेरी भाभीया, बैठ के गा रही थी,

अर्रे भोर भए भिनेसुरव, धरमवा की जूनिया चिरैया बन बोलाई
, मिरिग बन चुगाई अर्रे जाई के जगाओ

मुझे बहुत अच्छा लगा और मेने पूछा तो पता चला कि ये भोर जगाने का गाना है. फिर इसी तरह सांझी हर सांझ को गायी जाती थी. एक रस्म मे पितरों का भी आवाहन किया गया थी मुझे लगा कि जो बात उस दिन चाची कह रही थी की जीवन के उस महत्व पूर्ण संक्रमण कल मे सिर्फ़ सारे सगे संबंधी ही नही, प्रक्रति और मेरे पूर्वज भी साथ साथ साथ है. दो तीन दिन के अंदर ही घर सारे रिश्तेदारों से भर गया था..और हर किसी के आने पे पानी बाद मे पहले गालियाँ और गाने सबसे ज़्यादा तो जब मेरी छोटी मौसी आई तो मेरी सारी चाचियों ने मिल के वो जम के गालियाँ सुनाई. और रात को लेकिन मम्मी के साथ मिल, के सारी मौसीयों ने चाची की सूद ब्याज सहित खबर ली. और इसमे मर्द औरत, उमर, रिश्ते का कोई फरक नही पड़ता था. वो किसी ना किसी का नेंदोई, जीजा, साला, या ननद भाभी लगती ही. जैसे ही गाना शुरू होता -अर्रे आया बेहन चोद आया, अपनी बहने चुदवा आया हम लोग समझ जाते कौन आया है, किसका नाम लगा के गालियाँ दी जा रही है जो कुछ बचा खुचा होता वो रस्मों मे बिना इस ख़याल के कि वहाँ लड़कियाँ, बच्चिया है. अगर घर के लोगो ने छोड़ भी दिया तो काम करने वाली नही छोड़ने वाली थी. और इस से हर रस्म और रसीली हो जाती. (मेरा मन तो बहुत कर रहा है, पर मे जान बूझ के उन रस्मों और गानों का ज़िकरा नही कर रही क्योंकि एक तो मेने अपनी कहानी 'इट हॅपंड' मे और थोड़ा बहुत मेरी पिछली कहानी, 'ननद की ट्रैनिंग मे इनका ज़िकरा किया था, तो दुहराव ही होगा और मे भी फास्ट फॉर्वर्ड कर के मैं बात पे आना चाहती हूँ). गाँव से बहुत लोग आए थे और माहौल मे जैसे पुराने ढंग का माहौल हो और जहा तक लोकचार और रीति रिवाज का सवाल है ज़्यादा कन्सेशन नही था, इसमे लास्ट वर्ड, दादी और घर की और बुज़ुर्ग औरतों का ही था.

और इन सबके साथ. काम भी बहुत बढ़ गया था. बहुत सा काम, डेकोरेशन, फ्लवर अरेंज्मेंट, केटरिंग सब कुछ तो बाहर वालों का था और अंदर भी घर मे नौकरो की पूरी फौज थी लेकिन उनको गाइड करना के लिए भाभी और फिर ख़ास शादी के काम डाल सजाने, और सबसे बढ़कर मेरे काम मेरे नेल कटर से लेके सॅनिटरी नाप्कीन तक सब कुछ सजाने का काम, भाभी के ही ज़िम्मे था. उसके बाद भी जब रात को गाना होता तो मुझे चुन चुन के गालियाँ देने के लिए वो ज़रूर पहुँच जाती.

और उस समय मे उनका और उनकी गालियो का इंतजार करती.
 
मेरे घर के माहौल मे गाँव और शहेर, पूरब और पस्चिम का अजब संगम था. घर के अंदर के सारे रीति रिवाज जहाँ गाँव के, यहीं बाहर एकदम मॉडर्न माहौल शादी के तीन दिन पहले पापा ने अपने दोस्तों और जिसमे मम्मी की सहेलिया भी शामिल थी,कॉकटेल पार्टी रखी थी. मे चाहती थी कि जाय्न करू, मम्मी की भी बहुत इच्छा थी पर कंगन बँधन के बाद घर से बाहर जाना मना था. लेकिन भाभी ने दादी को पटा लिया ये कह के कि पार्टी तो घर के अंदर ही है. मेने बोला कि मे सारी ही पहन लूँगी पर भाभी ने कहा नही ऐसे कैसे और फिर मेने दादी से कहा और मेरा कहना वो नॉर्मली टालती नही तो वो उसके लिए भी मान गई. मेरे लाख मना करने पे भी मेरे लिए भाभी एक नेई कॉकटेल ड्रेस ले आई, और उस के नीचे एक पुश-अप ब्रा भी. और जब मेने पहने तो एकदम कसी, देह से चिपकी, घुटने तक और सबसे बढ़ के, उसका गला तो खुला ही था, उसने मेरे उभारो को और अच्छी तरह उभार दिया था. भाभी इतने पे भी कहाँ मान-ने वाली थी, बहुत ही जबरदस्त मेकप और जब पार्टी मे घुसी तो जैसे एक स्टॅंड साइलेन्स थे तो सारे पापा मम्मी के दोस्त और सहेलिया और एक एक कर के सब लोगों से मैं मिली. बार जबरदस्त था. हर तरह के ड्रिंक, कॉकटेल...तभी वेर्मा अंकल से मे मिली (यही जिन्होने राजीव की डेढ़ महीने की छुट्टी अरेंज करवाई थी. वो शादी पे नही रह पाने वाले थे, उन्हे किसी डेलिगेशन मे बाहर जाना था पर आंटी शादी तक रुकने वाली थी) उन्होने बहुत ज़ोर से हाथ मिलाया और एक शॅंपेन की बॉटल मेरे ऑनर मे खोली और एक ग्लास मुझे दे कर मेरे नाम पे चियर्स दिया. अब उन्हे मे कैसे मना कर सकती थी तो सीप करना ही पड़ा और उसके बाद फिर मम्मी की सहेलियों ने फोर्स कर के दो तीन ग्लास. ( ये बात नही कि मेने पहले कभी नही चखा था, एक दो बार, भाभी की सहेलियों के साथ, वाइन और एक बार छुप के मम्मी के ग्लास से विस्की, लेकिन बड़ी कड़वी लगी). मेरी निगाह कबाब और स्नेक्क्स के स्टॉल पे बार बार जा रही थी, हर तरह के कबाब, काकोरी,तुंदे के, सीक, गलवट और फिर टोमॅटो फिश. वार मे आंटी ने एक वेटर को रोका और एक कबाब ले के सीधे मेरे मूह मे और पूछा क्यों कहीं तेरा मिया वैष्ञव तो नही है. मम्मी ने हंस के जवाब दिया अर्रे होगा भी तो ये उसका धरम भ्रष्ट कर देगी.

अगले दिन मेहंदी की रसम रखी गयी थी. उसी दिन भाभी और मेने मिल के संगीत पे अपनी सहेलियो को इन्वाइट किया था ओन्ली गर्ल्स, हां भाभीया पर्मिटेड थी. मेहंदी के लिए, तीन चार मेहंदी वालियाँ आई थी और मेरे तो तो हाथ पैर के साथ, भाभी ने नेवेल पे भी डिज़ाइन वाली लगवा दी. शाम को एक हॉल मे इन्तेजाम था, म्यूज़िक सिस्टम, गाने के कॅसेट सब कुछ. थीम थी 70-80 के दशक का बॉलीवुड, मेरी सबसे क्लोज़ दोस्त रश्मि, जानी मेरा नाम की हेमा की तरह, आई थी, और थी भी वो खूब गोरी, मस्त पंजाबी कुड़ी, भारी भारी देह और दूसरी सहेली मुमताज़ बन के, रेशमी सलवार जालीदार कुर्ता, जिससे उसकी जवानी छितकी पड़ रही थी. और तो और रीमा की सहेलिया भी ख़ास तौर से रंभा, एक खूब टाइट टॉप और हिप हगिंग जिस मे ज़ीनत अमान की तरह दम मारो दम गर्ल बन के. रश्मि ने शुरू किया ओ बाबुल प्यारे, और सब लोग खूब झूम के नाचे लेकिन भाभी बोली अब विदाई के गाने नही होंगे सिर्फ़ मिलन के और फास्ट नंबर..और उस के बाद तो एक से एक, रंभा ने तो मेरी बेरी के बेर मत तोडो, काँटा लगा ऐसे अपने उभारो को उभार के गया कि आज की रीमिक्स गर्ल्स भी मात हो जाए. और फिर मे कैसे बचती, मुझे भी भाभी, ज्योत्सना मेरी सहेली और रंभा ने मिल के खींच लिया और फिर मेने भी, मेरे हाथों मे नई नई चूड़िया है गाने पे नाचना शुरू कर दिया, और जब मेने मेरे दर्जी से आज मेरी जंग हो गयी, मेने चोली सिलवाई थी, तंग हो गई पे अपने चोली मे कसे उभारो को रंभा की तरह मस्ती से उभारा तो चारों ओर मस्ती छा गई. भाभी की एक सहेली बोली, मुझे पकड़ के, "

अर्रे बहुत उभर रहे है ना आ रहा है परसों दबाने वाला."
 
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