- Joined
- Dec 5, 2013
- Messages
- 11,318
उनकी फुल्ती साँसे धीमी पड़ गयी. शरीर बेजान था. परंतु मस्तिस्क अभी भी काम कर रहा था. इसलिए उन्होने बंद होती आँखों के साथ एक सपना देखा. राधा उनके समीप बैठी है. वह राजा सूरजभन सिंग हैं और राधा उनकी पत्नी. राधा के तन पर कीमती कपड़ें और गहने हैं. वह महारानी के रूप में बहुत सुंदर लग रही है. सूरजभान सिंग की नज़र उसके चेहरे से हट नही रही है. फिर दूसरा दृश्य उभरा. वह दृश्य जब वह राधा को खोजते हुए कृष्णा नगर गये थे. उन्होने उनके आगे घुटने टेक कर उससे क्षमा की भीख माँगी थी. उस वक़्त शायद राधा का दिल उनके प्रति सहानुभूति से भर भी गया था. शायद वह उसे क्षमा भी कर देती. परंतु फिर ना जाने क्या हुआ. वह रातों रात ही कृष्णा नगर छोड़ गयी थी. फिर वह दृश्य भी उभरा. जब उन्होने राधा को हवेली की सबसे उपरी मंज़िल पर ले जाकर उससे अपनी ग़लती की क्षमा माँगी थी. और राधा ने बेहद घृणा से कहा था, - "राजा साहेब मैं आपको कभी क्षमा नही करूँगी. बल्कि मैं चाहूँगी कि भगवान तुम्हे ऐसी जगह मारे जहाँ पानी की एक बूँद को भी तुम तरस जाओ. तुम्हारे शरीर को चिता भी नसीब ना हो. गिद्ध और कोव्वे तुम्हारे शरीर को नोच - नोच कर खा जाएँ."
उन्हे अपने भाग्य पर हँसी आई. मुस्कुराने के लिए उनके होठ खुले, परंतु जैसे वहाँ जान ही नही रही थी. होठ खुले तो खुले ही रह गये. पलकों से आँसुओं ने गालों पर आकर उनकी प्यास बुझानी चाही पर हवाओं ने उसका रुख़ बदल कर दाढ़ी में उलझा दिया. फिर उन्हे एक हिचकी आई. बहुत धीमे से. फिर छाती में कहीं छिपा खून निकल कर उनके होंठों पर फैल गया. उन्होने अंतिम समय पर देखा. आकाश पर कुच्छ गिद्ध मंडरा रहे हैं. मंडराते हुए उनके करीब आते जा रहे हैं. बस इसके आगे वह कुच्छ भी महसूस नही कर पाए.
*****
सुबह के 6 बजे तो राधा पलंग से उठ खड़ी हुई. नहाई ना मूह धोया, नाश्ता भी नही किया और हवेली की सबसे उपरी मंज़िल पर जा पहुँची. मौसम सुहाना था. ठंडी हवाएँ उसके अधपके बालों को बिखरा कर चली जाती थी. फिर भी उसके मन को संतोष नही मिल रहा था. उसकी आँखें आशाओं से रास्ते पर बिछि थी. शायद उसका साजन आज ही आ जाए.
सहसा ताड़ के पेड़ों से उड़ कर कुच्छ गिद्ध हवा में पंख फैलाए हवेली के उपर से गुज़रे तो इनकी सनसनाहट से उसका ध्यान टूटा. उसने देखा एक नही कयि सारे गिद्ध पंख फैलाए एक जगह उतरते जा रहे हैं. उसके दिल की धड़कने बहुत तेज़ हो गयी.
तभी नाश्ते के लिए कमल मा को लेने उपर आ पहुँचा.
"मा नीचे चलो नाश्ता तैयार हो चुका है." कमल ने राधा को कंधे से थाम लिया.
परंतु राधा का ध्यान उसी और रहा. उसने पुछा. - "बेटा वहाँ इतने सारे गिद्ध क्यों जमा हैं?"
"कोई जानवर मर गया होगा मा." वह बोला. - "रात की तूफ़ानी वर्षा में उसे बचने का स्थान नही मिला होगा."
राधा कुच्छ नही बोली. जाने क्यों पर कमल की बात सुन कर उसकी आँखें भर आई थी. कमल उसे लिए सीढ़ियाँ उतर गया.
शाम का सुहाना पन. राधा ने घूमने की इच्छा ज़ाहिर की तो कमल और सरोज भी साथ हो लिए. राधा कुच्छ विचार करके उनके पिछे ही रह गयी थी. कमल और सरोज बाते करते हुए इतने खो गये कि उन्हे पता ही नही चला मा पिछे रह गयी है.
सहसा राधा की दृष्टि एक ओर उठी तो उसका दिल ज़ोरों से धड़का. कुच्छ दूरी पर नागफनी के पौधे की आड़ से हटकर एक हड्डियों का ढाँचा पड़ा था.
राधा के पग अपने आप ही ढाँचे की ओर उठ गये. कुच्छेक कोव्वे उस ढाँचे का बचा खुचा माँस नोच कर खा रहे थे. उसके समीप पहुँचते ही वे फुदक कर हट गये. राधा को बदबू का भभका सा लगा. उसने देखा यह किसी इंसान का ढाँचा है. गिद्ध और कोव्वो ने शायद माँस खाते समय उसके वस्त्र भी निगल लिए थे. कहीं कहीं कपड़ों के छोटे बड़े टुकड़े कीचड़ में सने बिखरे थे.
सहसा राधा का दिल ज़ोरों से धड़का. गला सुख चला. होठ ही नही शरीर भी काँपने लगा. दृष्टि एक ही जगह चिपक कर रह गयी. जहाँ सूर्य की रोशनी में एक सफेद वास्तु चमक रही थी. ढाँचे की दोनो बाहें फैली हुई थी. छितरि हुई उंगलियों के बीच में थी एक अंगूठी.
राधा को चक्कर सा आ गया. घुटनो के बल झुक कर काँपते हाथों से वह अंगूठी को उठा ली. इसे गौर से देखा. 'राधा' मानो हड्डी का ढाँचा चीख पड़ा हो. राधा यही एक नाम अंगूठी पर अंकित था. वह तड़प उठी. आँखों में आँसू छलक आए. आँसू की एक बूँद जब इस अंगूठी पर गिरी तो राधा को सूरजभान सिंग से हुई हर एक मुलाक़ात की ताश्वीर उनकी आँखों के आगे उभर आई. उनका बार बार मिन्नते करना. गाओं छोड़ते समय घुटने का बल झुक कर हाथ जोड़ना. उसका दिल फट गया. उसने दिल की गहराई से इच्छा की कि यह धरती फट जाए और वह इसमे समा जाए. वह कितनी कठोर है, कितनी निर्दयी है, पापन है, जिसने एक नारी होकर भी अपने अभिमान में एक ऐसे देवता को क्षमा नही किया जो उसके बेटे का पिता था.
वह तड़प उठी. जी चाहा लपक कर हड्डी की ढाँचे से लिपट जाए. अपनी जान दे दे. यह गिद्ध और कोव्वे उसका माँस भी नोच नोच कर खा जाए. वह प्यार के जोश में शायद हड्डी के ढाँचे पर गिर भी पड़ती. परंतु जैसे ही ऐसा करने के लिए उसने खड़े होकर आगे बढ़ना चाहा एक आवाज़ उसके कानों में पड़ गयी.
"मा...!" दूर खड़ा कमल उसके अचानक रुक जाने से आवाज़ दे रहा था. - "आओ ना मा. साथ चलो."
राधा ने आँसू पीने का प्रयत्न किया तो उसकी हिचकियाँ बँध गयी. हिचक़ियों पर काबू पाने की कोशिश की तो होठ काँपने लगे. परंतु फिर भी मन पर पत्थेर रख लिया. अपने होठों को दातों से काट-ती हुई सड़क पर हो ली. मुस्कुराने का प्रयत्न करती हुई आगे बढ़ने लगी. राधा ने आहिस्ता से छुपा कर अंगूठी अपनी अंगुली पर पहन ली.
रात का अंधेरा फैला तो राधा हाथ में पेट्रोल का कनस्तर और माचिस लेकर ढाँचे के पास आई. उसपर सुखी लकड़ियाँ डाली. पेट्रोल छिड़का और आग लगा दी.
फिर दौड़ती-भागती हवेली में पहुंचकर हांफने लगी। कुछ पल दम लेने के बाद वह हवेली की ऊपरी मंजिल पर पहुंची तो उसने देखा, बहुत दूर उसके अरमानों की चिता जल रही थी। शोले दिल के अंदर सुलगती आग के समान बार-बार भभक उठते थे। काफी देर के बाद जब ये शोले बुझ गए तो उसने एक गहरी सांस ली और सीढ़ियां उतरकर अपने कमरे में पहुंच गई। जाते-जाते उसने देखा, कमल और सरोज अपने कमरे में अभी तक सो रहे हैं।
दूसरी सुबह तड़के ही जब मज़दूर रामगढ़ लौटे तो उन्हें रास्ते में एक स्थान पर कुछ राख और किसी पशु की हड्डी के अर्द्ध जले टुकड़े दिखाई पड़े। आसपास की सारी धरती जलकर भूरी-भूरी हो गई थी, परंतु कोई यह नहीं जान सका कि ऐसा क्यों हुआ? ऐसा कौन-सा भेद था जो किसी ने एक जानवर को यूं छिपाकर जला दिया? लोग हैरान थे‒ लोग अब भी हैरान हैं। क्रमशः काम करते समय इनके मध्य इस भेद का वर्णन भी छिड़ जाता है। लोग अनेक प्रकार की अपनी राय भी प्रकट करने लगते हैं, परंतु वास्तविकता केवल राधा जानती है, जिसके रास्ते में उसके कदमों तले उसके साजन ने फूल की पंक्तियां बिछाई थीं, परंतु उसने बदले में उसे क्या दिया?
क्या दिया उसने अपने साजन को, अपने प्रीतम को ‒ कांटों का उपहार।
दोस्तो प्यार इसी का नाम है प्यार सिर्फ़ देना जानता है बदले मे कुछ मिले या ना मिले प्यार इसकी परवाह नही करता . राजा सूरजभान ने प्यार की पराकाष्ठा को पार कर दिया था . लेकिन राधा ने अभिमान स्वरूप राजा सूरजभान के प्यार को नही समझा था जिसका नतीजा ये हुआ वरना जिंदगी कुछ और ही होती . दोस्तो आपको ये कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना
दा एंड. समाप्त
उन्हे अपने भाग्य पर हँसी आई. मुस्कुराने के लिए उनके होठ खुले, परंतु जैसे वहाँ जान ही नही रही थी. होठ खुले तो खुले ही रह गये. पलकों से आँसुओं ने गालों पर आकर उनकी प्यास बुझानी चाही पर हवाओं ने उसका रुख़ बदल कर दाढ़ी में उलझा दिया. फिर उन्हे एक हिचकी आई. बहुत धीमे से. फिर छाती में कहीं छिपा खून निकल कर उनके होंठों पर फैल गया. उन्होने अंतिम समय पर देखा. आकाश पर कुच्छ गिद्ध मंडरा रहे हैं. मंडराते हुए उनके करीब आते जा रहे हैं. बस इसके आगे वह कुच्छ भी महसूस नही कर पाए.
*****
सुबह के 6 बजे तो राधा पलंग से उठ खड़ी हुई. नहाई ना मूह धोया, नाश्ता भी नही किया और हवेली की सबसे उपरी मंज़िल पर जा पहुँची. मौसम सुहाना था. ठंडी हवाएँ उसके अधपके बालों को बिखरा कर चली जाती थी. फिर भी उसके मन को संतोष नही मिल रहा था. उसकी आँखें आशाओं से रास्ते पर बिछि थी. शायद उसका साजन आज ही आ जाए.
सहसा ताड़ के पेड़ों से उड़ कर कुच्छ गिद्ध हवा में पंख फैलाए हवेली के उपर से गुज़रे तो इनकी सनसनाहट से उसका ध्यान टूटा. उसने देखा एक नही कयि सारे गिद्ध पंख फैलाए एक जगह उतरते जा रहे हैं. उसके दिल की धड़कने बहुत तेज़ हो गयी.
तभी नाश्ते के लिए कमल मा को लेने उपर आ पहुँचा.
"मा नीचे चलो नाश्ता तैयार हो चुका है." कमल ने राधा को कंधे से थाम लिया.
परंतु राधा का ध्यान उसी और रहा. उसने पुछा. - "बेटा वहाँ इतने सारे गिद्ध क्यों जमा हैं?"
"कोई जानवर मर गया होगा मा." वह बोला. - "रात की तूफ़ानी वर्षा में उसे बचने का स्थान नही मिला होगा."
राधा कुच्छ नही बोली. जाने क्यों पर कमल की बात सुन कर उसकी आँखें भर आई थी. कमल उसे लिए सीढ़ियाँ उतर गया.
शाम का सुहाना पन. राधा ने घूमने की इच्छा ज़ाहिर की तो कमल और सरोज भी साथ हो लिए. राधा कुच्छ विचार करके उनके पिछे ही रह गयी थी. कमल और सरोज बाते करते हुए इतने खो गये कि उन्हे पता ही नही चला मा पिछे रह गयी है.
सहसा राधा की दृष्टि एक ओर उठी तो उसका दिल ज़ोरों से धड़का. कुच्छ दूरी पर नागफनी के पौधे की आड़ से हटकर एक हड्डियों का ढाँचा पड़ा था.
राधा के पग अपने आप ही ढाँचे की ओर उठ गये. कुच्छेक कोव्वे उस ढाँचे का बचा खुचा माँस नोच कर खा रहे थे. उसके समीप पहुँचते ही वे फुदक कर हट गये. राधा को बदबू का भभका सा लगा. उसने देखा यह किसी इंसान का ढाँचा है. गिद्ध और कोव्वो ने शायद माँस खाते समय उसके वस्त्र भी निगल लिए थे. कहीं कहीं कपड़ों के छोटे बड़े टुकड़े कीचड़ में सने बिखरे थे.
सहसा राधा का दिल ज़ोरों से धड़का. गला सुख चला. होठ ही नही शरीर भी काँपने लगा. दृष्टि एक ही जगह चिपक कर रह गयी. जहाँ सूर्य की रोशनी में एक सफेद वास्तु चमक रही थी. ढाँचे की दोनो बाहें फैली हुई थी. छितरि हुई उंगलियों के बीच में थी एक अंगूठी.
राधा को चक्कर सा आ गया. घुटनो के बल झुक कर काँपते हाथों से वह अंगूठी को उठा ली. इसे गौर से देखा. 'राधा' मानो हड्डी का ढाँचा चीख पड़ा हो. राधा यही एक नाम अंगूठी पर अंकित था. वह तड़प उठी. आँखों में आँसू छलक आए. आँसू की एक बूँद जब इस अंगूठी पर गिरी तो राधा को सूरजभान सिंग से हुई हर एक मुलाक़ात की ताश्वीर उनकी आँखों के आगे उभर आई. उनका बार बार मिन्नते करना. गाओं छोड़ते समय घुटने का बल झुक कर हाथ जोड़ना. उसका दिल फट गया. उसने दिल की गहराई से इच्छा की कि यह धरती फट जाए और वह इसमे समा जाए. वह कितनी कठोर है, कितनी निर्दयी है, पापन है, जिसने एक नारी होकर भी अपने अभिमान में एक ऐसे देवता को क्षमा नही किया जो उसके बेटे का पिता था.
वह तड़प उठी. जी चाहा लपक कर हड्डी की ढाँचे से लिपट जाए. अपनी जान दे दे. यह गिद्ध और कोव्वे उसका माँस भी नोच नोच कर खा जाए. वह प्यार के जोश में शायद हड्डी के ढाँचे पर गिर भी पड़ती. परंतु जैसे ही ऐसा करने के लिए उसने खड़े होकर आगे बढ़ना चाहा एक आवाज़ उसके कानों में पड़ गयी.
"मा...!" दूर खड़ा कमल उसके अचानक रुक जाने से आवाज़ दे रहा था. - "आओ ना मा. साथ चलो."
राधा ने आँसू पीने का प्रयत्न किया तो उसकी हिचकियाँ बँध गयी. हिचक़ियों पर काबू पाने की कोशिश की तो होठ काँपने लगे. परंतु फिर भी मन पर पत्थेर रख लिया. अपने होठों को दातों से काट-ती हुई सड़क पर हो ली. मुस्कुराने का प्रयत्न करती हुई आगे बढ़ने लगी. राधा ने आहिस्ता से छुपा कर अंगूठी अपनी अंगुली पर पहन ली.
रात का अंधेरा फैला तो राधा हाथ में पेट्रोल का कनस्तर और माचिस लेकर ढाँचे के पास आई. उसपर सुखी लकड़ियाँ डाली. पेट्रोल छिड़का और आग लगा दी.
फिर दौड़ती-भागती हवेली में पहुंचकर हांफने लगी। कुछ पल दम लेने के बाद वह हवेली की ऊपरी मंजिल पर पहुंची तो उसने देखा, बहुत दूर उसके अरमानों की चिता जल रही थी। शोले दिल के अंदर सुलगती आग के समान बार-बार भभक उठते थे। काफी देर के बाद जब ये शोले बुझ गए तो उसने एक गहरी सांस ली और सीढ़ियां उतरकर अपने कमरे में पहुंच गई। जाते-जाते उसने देखा, कमल और सरोज अपने कमरे में अभी तक सो रहे हैं।
दूसरी सुबह तड़के ही जब मज़दूर रामगढ़ लौटे तो उन्हें रास्ते में एक स्थान पर कुछ राख और किसी पशु की हड्डी के अर्द्ध जले टुकड़े दिखाई पड़े। आसपास की सारी धरती जलकर भूरी-भूरी हो गई थी, परंतु कोई यह नहीं जान सका कि ऐसा क्यों हुआ? ऐसा कौन-सा भेद था जो किसी ने एक जानवर को यूं छिपाकर जला दिया? लोग हैरान थे‒ लोग अब भी हैरान हैं। क्रमशः काम करते समय इनके मध्य इस भेद का वर्णन भी छिड़ जाता है। लोग अनेक प्रकार की अपनी राय भी प्रकट करने लगते हैं, परंतु वास्तविकता केवल राधा जानती है, जिसके रास्ते में उसके कदमों तले उसके साजन ने फूल की पंक्तियां बिछाई थीं, परंतु उसने बदले में उसे क्या दिया?
क्या दिया उसने अपने साजन को, अपने प्रीतम को ‒ कांटों का उपहार।
दोस्तो प्यार इसी का नाम है प्यार सिर्फ़ देना जानता है बदले मे कुछ मिले या ना मिले प्यार इसकी परवाह नही करता . राजा सूरजभान ने प्यार की पराकाष्ठा को पार कर दिया था . लेकिन राधा ने अभिमान स्वरूप राजा सूरजभान के प्यार को नही समझा था जिसका नतीजा ये हुआ वरना जिंदगी कुछ और ही होती . दोस्तो आपको ये कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना
दा एंड. समाप्त