Kamukta Story गदरायी लड़कियाँ - Page 5 - SexBaba
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Kamukta Story गदरायी लड़कियाँ

छोकरी ने यही एक्शन बार बार दुहराया और फिर तेजी से मुझे चोदने लगी और फिर थोड़ी ही देर में किसी कामोनमत्त नवयौवना की भांति लज्जा का परित्याग कर कामुक आहें कराहें किलकारियां निकालती हुई मुझे चोदने लगी.

मैं बड़े आराम से उसकी नटखट चूचियों का उछालना कूदना देखता रहा; बीच बीच में मैं उसके निप्पलस खींच कर अपने सीने पर रगड़ने लगता और उसके कूल्हों के बीच की दरार को, उसकी गांड के झुर्रीदार छिद्र को अपनी उँगलियों से सहलाने लगता जिससे छोकरी की वासना और प्रचण्ड रूप ले लेती और वो किसी हिस्टीरिया के मरीज की तरह अपनी कमर चलाने लगती.

कई बार ऐसा हुआ कि मेरा लंड फिसल कर उसकी चूत से बाहर निकल गया लेकिन उसने जल्दी ही मेरे लंड की लेंग्थ के हिसाब से अपनी कमर उठाना और गिराना सीख लिया और फिर एक बार भी लंड को बाहर नहीं निकलने दिया. वो छोकरी ऐसे ही करीब पांच सात मिनट मुझे चोदती रही फिर थक कर उतर गयी मेरे ऊपर से.

'' मास्टर जी थक गयी मैं तो. अब आप आओ मेरे ऊपर!” वो मेरा हाथ पकड़ कर खींचती हुई बोली.

उस छोकरी के संग चुदाई का पहला दौर ही काफी लम्बा खिंच गया था जिसकी मुझे कतई उम्मीद नहीं थी. समय बहुत हो चुका था. ऐसा सोच कर मैंने नवयौवना को दबोच लिया और फचाक से उसकी चूत में लंड पेल कर उसे चोदने लगा; अब झड़ने की जल्दी मुझे थी सो मैंने ताबड़तोड़, आढ़े तिरछे गहरे शॉट्स उसकी चूत में मारने शुरू किये; छोकरी किसी कुशल प्रतिद्वन्दी की तरह लगातार मेरे लंड से अपनी चूत लड़वाती रही.


मास्टर जी मास्टर जी, मुझे कसके पकड़ लो आप, जमीन सी हिल रही है मेरे भीतर से कुछ तेज तेज निकल रहा है.” वो बोली और फिर वो झटके से मुझसे लिपट गयी.
और मुझे अपनी बांहों में पूरी शक्ति से कस लिया और अपनी टाँगें मेरी कमर में लपेट दीं.

“अरे बेटा रुक तो सही, मेरा पानी निकलने वाला है; मुझे बाहर निकालने दे.” मैंने उसे चेतावनी दी.

'' कोई नही मेरे भीतर ही भर दो आप तो!” वो मुझसे कस के लिपटते हुए बोली कि कहीं मैं उससे अलग न हट जाऊं.

“अरे तुझे कुछ हो गया तो?”

'' कुछ नही होगा … मैं इसे गर्भ निरोधक गोली दे दूँगी आप अपना पूरा मज़ा लीजिए मास्टर जी !” सेठानी ने कहा

सेठानी की बात सुन कर अब मुझे क्या चिंता होनी थी, मैंने आखिरी दस बीस धक्के और लगा कर अपना काम भी तमाम किया और मेरा लंड लावा उगलने लगा. उधर कोकरी की चूत के मस्स्ल्स फैल सिकुड़ कर मेरे लंड से वीर्य को निचोड़ने लगे, एक एक बूंद निचुड़ गयी उसकी चूत में और फिर उसकी चूत एकदम से सिकुड़ गयी और मेरा लंड शहीद होकर बाहर निकल गया.

इसके बाद हम अलग हो गये और छोकरी ने अपनी चूत पास पड़ी चादर से अच्छे से पौंछ डाली और अपने कपड़े पहन लिए और बालों का जूडा खोल कर बाल फिर से बिखरा लिए.

मैंने भी लंड पौंछा और आँखे बंद कर लेट गया
 
उस कमसिन हसीना की चुदाइ करके मैं एक तरफ लेट गया और मुझे कब नींद आ गई मुझे पता भी नही चला

सुबह मेरी आँख मीना के जगाने से खुली तो देखा सुबह के सात बज चुके थे .मीना चाय का कप लिए खड़ी थी मैं फटाफट उठा हाथ मुँह धोया और फिर मीना से चाय का कप लेकर चाय पीने लगा .

चाय पीने के बाद मैंने मीना पर एक भरपूर नज़र डाली मीना इस समय स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा लग रही थी उसने पिंक कलर का शलवार सूट पहन रखा था उसे देखते ही मेरा नागराज अंगड़ाइया लेकर फूँकारने लगा मैने मीना की कमर में हाथ डाल कर उसे अपने से चिपका लिया और उसका माथा गाल कई कई बार चूम डाले. फिर तो मुझ पर जैसे दीवानगी सी सवार हो गयी. मैं मीना को सब जगह चूमता चला गया उसके गाल, गला गर्दन और फिर हमारे होंठ कब एक दूसरे के होंठों से जुड़ गये पता ही न चला.

‘कुंवारी कन्या के अधरों का प्रथम रसपान का स्वाद कितना अलौकिक कितना मधुर होता है.’ ये मैंने उस दिन जाना.

मीना कोई विरोध नहीं कर रही थी वरन वो भी मेरे संग बहती सी चली जा रही थी की जहां नियति ले जाये वहीं चले चलें जैसी मनःस्थिति थी हम दोनों की.

जो कुछ हो रहा था वो जैसे स्वयं ही, बिना हमारे कुछ किये ही हो रहा था. मैंने कब मीना के उरोज दबोच लिए और उन्हें कब मसलने लगा मुझे खुद याद नहीं.

'' आहह मास्टर जी धीरे … इत्त्ति जोर से नहीं; दुखते हैं.” मीना कांपती सी आवाज में बोली. तो मुझे होश सा आया तो मैंने देखा कि मेरा हाथ मीना के कुर्ते के अन्दर उसकी ब्रा के भीतर उसके नग्न स्तनों को मसल रहा था … गूंथ रहा था …मसल रहा था. उसके फूल से कोमल स्तन मेरी सख्त मुट्ठी में जैसे कराह से रहे थे. मुझे अपनी स्थिति का भान हुआ तो मैंने अपना हाथ उसकी ब्रा से बाहर निकाल लिया.

मैंने देखा तो मीना की नज़रें झुकी हुयीं थीं. मैंने उसे फिर से अपनी बांहों में भर लिया और उसका निचला होंठ चूसने लगा. साथ में मेरा एक हाथ उसकी जांघों को सहलाए जा रहा था.

अब मीना भी चुम्बन में मेरा साथ देने लगी थी और उसकी पैर स्वयमेव खुल से गये थे. मेरा हाथ उसकी जांघों के जोड़ पर जा पहुंचा और अपनी मंजिल को सलवार के ऊपर से ही छू लिया और धीरे से मसल दिया.

पुरुष के हाथों की छुअन का असर, उसकी तासीर लड़की के जिस्म पर जादू के जैसा असर दिखाती है. विशेष तौर पर अगर उसके स्तनों या चूत को छेड़ दिया जाए तो.

मीना की चूत पर मेरा हाथ लगते ही वो मोम की तरह पिघल गयी और मीना ने चुम्बन तोड़ कर अपना सिर मेरे कंधे पर झुका दिया. मेरी उंगलियाँ शलवार के ऊपर से ही उसकी चूत से खेलती रहीं, मसलती रहीं, चूत की दरार में घुसने का प्रयास करती रहीं पर सलवार के ऊपर से ऐसा हो पाना संभव ही नहीं था. हां मीना की झांटों का झुरमुट मुझे अच्छी तरह से महसूस हो रहा था.
 
लेकिन सिर्फ इतने भर से ही मुझे संतोष होने वाला नहीं था, पता नहीं अभी मीना लंड से चोदने को मिले न मिले क्योंकि सेठानी अपने सामने मीना को चुदवाना चाहती थी ; पर मैं उसकी नंगी चूत से तो खेल ही सकता था. इसी धुन में मैंने उसकी कुर्ती पेट के ऊपर से ऊपर की तरफ चुचियों तक सरका दी इससे उसका पेट अनावृत हो गया. उफ्फ क्या मखमली जिस्म पाया था मीना ने!

मैंने उसके पेट को सहलाया और फिर उसकी नाभि में उंगली रख के हिलाया; इतने से ही मीना हिल गयी और उसकी हंसी छूट गयी- मास्टर जी गुदगुदी मत करो ऐसे!

वो अपने मुंह पर हाथ रख कर खिलखिलाते हुए बोली.

लेकिन मैंने उसकी बात अनसुनी करते हुए अपना हाथ झटके से उसकी सलवार में घुसा दिया और इससे पहले कि मीना कुछ समझ पाती या संभल पाती मैंने उसकी पैंटी की इलास्टिक के नीचे से उंगलियां अन्दर सरका दीं और उसकी नंगी झांटों भरी चूत मेरी मुट्ठी में कैद हो गयी; मुझे लगा जैसी कोई ताजा मुलायम नर्म गर्म पाव मैंने पकड़ रखा हो. मेरी हसरत पूरी हो चुकी थी. मीना की इज्जत मेरी मुट्ठी में कैद थी.

उसका लालकिला मेरे अधिकार में आ चुका था बस अब उसमें प्रवेश करके उसे भोगना, उस पर राज करना, उसकी प्राचीर की सवारी करना भर शेष रह गया था.

मैंने अपनी मुट्ठी खोल के हथेली उसकी चूत से चिपका दी और झांटों को सहलाता, खींचता हुआ उसकी चूत से खेलने लगा; बीच बीच में मैं उसकी झांटें हौले से खींच लेता तो वो चिहुंक पड़ती. उसकी गद्देदार नंगी चूत को यूं सहलाने का आनन्द ही अलग आ रहा था. चूत की फांकें आपस में चिपकी हुईं थीं मैंने दरार में उंगली ऊपर से नीचे तक और नीचे से ऊपर तक फिरा दी.

मीना ने मेरा कन्धा पकड़ कर जोर से अपने नाखून मेरे कंधे में गड़ा दिए, शायद उत्तेजना वश उसने ऐसा किया होगा.

अब मैं उसकी चूत को मुट्ठी में भर कर दबाने, मसलने के साथ साथ दरार में कुरेदने लगा; उसकी चूत के रस से मेरा हाथ चिपचिपा हो गया. फिर मैंने अपने अंगूठे को चूतरस से गीला करके उसकी चूत का दाना टटोलने लगा, अंगूठे से अनारदाने को छेड़ने लगा.

लड़की की क्लिट को छेड़ो और वो चुदने को न मचल जाए ऐसा तो हो ही नहीं सकता. मीना ने भी अपना जिस्म ढीला छोड़ दिया और आनन्द से आंखें मूंद लीं और और अपने पैर और चौड़े कर दिए इससे उसकी चूत और खुल गयी और मुझे उससे खेलने के लिए ज्यादा स्थान मिलने लगा.
 
ऐसा कोई एक डेढ़ मिनट ही चला होगा कि वो मेरा हाथ अपनी चूत पर से हटाने का प्रयास करने लगी. वो मेरा हाथ अपनी चूत से हटाने का भरपूर प्रयास करती लग रही थी. लेकिन उसके हाथ में शक्ति नहीं बस एक तरह की रस्म अदायगी सी लगी मुझे. कि कहीं मैं उसे इतना बेशर्म, इतनी चीप न समझ लूं कि मैं उसकी चूत को छेड़ रहा था और वो चुपचाप बिना कोई प्रतिवाद किये अपनी चूत में उंगली करवाते हुए चुपचाप मजा लेती रही थी.

“बस भी करो मास्टर जी, कोई देख लेगा. वो नौकर खाना लेकर भी आता होगा!” मीना ने मुझे अपने से दूर हटाया और खुद दूर खिसक कर बैठ गयी.

'' मीना मेरी जान … कोई नहीं आने वाला. तू सब कुछ भूल कर इन पलों का मज़ा ले; ऐसा हसीन मौका और समय ज़िन्दगी में बार बार नहीं मिलता!” मैंने उसे कहा और उसकी कुरती को ऊपर उठा दिया जिससे मीना का सीना एकदम नंगा हो गया

मीना ने मेरे सीने को कुछ देर तक निहारा और फिर उठ कर मेरी छाती से लग गयी और अपना मुंह वहीं छुपा कर गहरी गहरी सांस लेने लगी, फिर वहीं पर दो तीन बार चूम लिया.

मैंने उसका मुंह ऊपर उठाया और उसके होंठों का रसपान करने लगा. मेरी जीभ मीना के मुंह में घुसने की कोशिश करने लगी. उधर मेरा हाथ उसकी ब्रा में घुस चुका था और उसके फूल से कोमल उरोजों से खेल रहा था फिर जल्दी ही उनसे खिलवाड़ करने लगा. उसके काबुली चने जैसे निप्पलस को मैं चुटकी से दबाने, मरोड़ने लगा.

मेरे ऐसे करने से मीना की चूत की चुदास और प्यार की प्यास जग उठी थी सो उसने अपना मुंह खोल दिया और मेरी जीभ भीतर ले ली. उस शहरी बाला के मुखरस का स्वाद बेमिसाल था जिसे उचित शब्द देना मेरे बस में नहीं है. हमारी जीभें कितनी ही देर तक आपस में गुटरगूं करती रहीं, लड़ती झगड़ती रहीं और फिर वो हट गयी और लेट कर अपनी अपना मुंह अपनी हथेलियों से छिपा लिया और गहरी गहरी सांसें भरने लगी.

वो अपना मुंह हथेलियों से ढके सीधी लेटी थी, उसके उन्नत उरोज सांसों के उतार चढ़ाव के साथ उठ बैठ से रहे थे; दोनों पैर अलग अलग से फैले थे जिससे उसकी मांसल जांघों का वो फैलाव उसके बदन की कामुकता को और प्रबलता से दर्शा रहा था.

इस समय उसकी चूत पैंटी के भीतर कैसी लग रही होगी; चूत की दरार खुली होगी या दोनों लब आपस में चिपके होंगे? इस बात का फैसला मैं नहीं कर सका. जो होगा जैसा होगा अभी सामने आ जाएगा ऐसा सोचते हुए मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खींच कर खोल दिया और इसके पहले कि वो कुछ रियेक्ट करे मैंने सलवार ढीली करके सामने का हिस्सा नीचे सरका दिया.

पैंटी उसकी फूली हुई चूत पर डेरा डाले थी. यह मैं क्षणमात्र के लिए ही देख सका कि मीना ने घबरा कर अपनी सलवार झट से ऊपर कर ली और उसे कसके मुट्ठी में पकड़ लिया.

मैंने जोर लगा कर सलवार छुड़ाने का प्रयास किया तो उसने अब दोनों हाथों से उसे पकड़ लिया और इन्कार में गर्दन हिलाने लगी.

“अरे छोड़ तो सही गुड़िया रानी!” मैंने कहा.

“ऊं हूं…” उसकी गर्दन फिर इनकार में हिली.

“अरे छोड़ दे मीना, एक बार देखने तो दे. तू तो मेरी प्यारी प्यारी गुड़िया रानी है न!” मैंने बहुत ही मीठी आवाज में उसे मक्खन लगाया.

“नहीं मास्टर जी, मुझे शर्म आती है.”
 
“अरे तो फिर कैसे क्या होगा सलवार तो उतारनी ही पड़ेगी न?”

“मुझे नही पता वो सब!” उसने जिद की.

“अरे मान जा बेटा, देख टाइम खराब मत कर बेकार में. अभी काम बहुत है करने को और समय कम है.” मैंने उसे याद दिलाया.

“अच्छा पहले खाना खा लो नौकर खाना लेकर आने वाला है !” वो अपना फैसला सुनाती हुई सी बोली.


'' अरे मीना बेटा मास्टर जी को उठाया या नही '' कहते हुए सेठानी ने कमरे में प्रवेश किया और मीना और मेरी अवस्था को देख कर आँखे बड़ी करके बोली '' ओहो मीना बेटा मास्टर जी को सुबह का नाश्ता करा रही हो ''

''नही माँ मैं तो मास्टर जी को चाय देने आई थी '' मीना ने झेन्पते हुए कहा

'' कोई बात नही बेटा अब तुम जाकर स्कूल के लिए तैयार जाओ '' मैं मास्टर जी को चाय पिला देती हूँ और नाश्ता करा देती हूँ

सेठानी की बात सुनते ही मीना हँसती हुई वहाँ से चली गई


मीना के जाते ही सेठानी मुझ से सट कर बैठ गई और मेरे लौडे को हाथ मे लेकर सहलाने लगी

'' मास्टर जी रात बहुत अच्छा चोदे थे तुम उस गदराई छोरी को ....... तुमको मज़ा आया ना '' सेठानी मेरे लौडे की मूठ मारते हुए पूछी

'' हाई बहुत मज़ा आया ''

'' आज रात को भी चोदोगे का ''

'' हां आप कहेंगी तो ''

'' ठीक है आज रात को नौ बजे तैयार रहना मस्त लौन्डिया है उसकी सील तोड़ना अभी तक कुंआरी है ''

मेरे शरीर मे सनसनी से दौड़ रही थी मैं उसकी पपीते सी चुचियों को दबाते हुए कहा

'' हाई हमें तो आपको ही चोदना है ''

''देखो हमे कुंआरी लड़कियों को चुदवाने में जो मज़ा आता है अपनी चुदाई में भी नही आता .... हम तुमसे रोज कुँवारी बुर चुदवायेन्गे ''
 
''देखो हमे कुंआरी लड़कियों को चुदवाने में जो मज़ा आता है अपनी चुदाई में भी नही आता .... हम तुमसे रोज कुँवारी बुर चुदवायेन्गे ''

'' हाई वो सब तो रात को होगा पर अभी क्या करें ''

'' ठीक है हमारी बुर् में पेल लो बहुत सुरसुरी सी हो रही है ''

सेठानी बॅड पर लेट गईं और टाँगें चौड़ा कर अपना पेटिकोट उठाकर कमर तक कर ली

मैं उनकी नंगी बुर को देखने लगा । वह रानों को पूरी तरह फैला चूतड़ को उचका बोली- ;; इसे सहला कर देखो ज़रा .

देखो लीडियो सी चिकनी है शरामाआ नहीं....सहलाओ तुमको मजा आएगा हमसे

"जी जी हाय कितनी प्यारी प्यारी है-और मैंने दायें हाथ से जो सेठानी के बड़े साइज की गुदाज बुर को सलहाना प्रारम्भ किया तो लगा कि मैं| जन्नत में पहुंच गया होऊँ । मुझे लगा कि उसकी कमसीन लड़की की बुर को सहला रहा हूँ। । वास्तव में चुची से ज्यादा मजो बुर पर हाथ फेरने में आ रहा था

फिर मैने अपने लिए सेठानी के पैरों मे जगह बनाई और सेठानी के ऊपर लेटकर उसकी पपीतेजैसी चुचि को मुँह में लेकर चूसने लगा

"समझे ना...हमको तुम्हारी जवानी का असली मजा तव आयेगा जब मुझे अन्चुदी लड़कियों को चोद चोद उनकी बुर को जवान कर के दिखाओगे।"
सेठानी ने मेरा लंड अपनी एक बुर पर लगाते हुए कहा

" ओ. के. मैडम पर आप को भी मज़ा देंगे -"

'' ठीक है अब पेलो मेरे राजा हमको भी तो तनिक मज़ा दो '''' मास्टर जीऽऽस्स्स्स स्स्स्स बस अब घुसेड़ भी दो ना, चोदो जल्दी ई …ऽऽ से मुझे!”

“हां … ये लो सेठानी अपने यार का लंड अपनी चूत में … संभालो इसे!” मैंने कहा और अपने दांत भींच कर, पूरी ताकत से लंड को उनकी बुर में धकेल दिया. मेरा लंड उनकी चूत की मांसपेशियों के बंधन ढीले करता हुआ पूरी गहराई तक घुस गया और मेरी झांटें सेठानी की झांटों से जा मिलीं.
 
“हाय रामजी, मर गयी रे … धीरे … आराम से क्यों नहीं घुसाते … मम्मीं … ओ माँ ऽऽ.. मर गयी … बचा लो आज तो!” सेठानी तड़प कर बोली और मुझे परे धकेलने लगी. पर मैंने उनकी दोनों कलाइयां कस के पकड़ीं और अपने लंड को जरा सा पीछे खींच के फिर से पूरे दम से सेठानी की चूत में घुसा दिया.

“मार डाला आज तो मुझे ऐसे ही सूखा पेल के … न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. सारी जान एक बार में ही निकाल लो आप तो!” वो रुआंसे स्वर में बोली.

'' सेठानी जी, मेरा बांस तुम्हारी बांसुरी में हमेशा बजेगा जब तक दम में दम है; आप ऐसे क्यों बोलती है?” मैंने उसे चूमते हुए पुचकारा.

“रहने दो मास्टर, धीरे से नहीं घुसा सकते थे क्या? बस आपको तो जरूरी है एकदम से आक्रमण कर देना. चाहे कोई मरे या जिये आपकी बला से!”

“ऐसे नहीं न कहते मेरी जान … अच्छा चलो मेरी सॉरी; आगे से बड़े प्यार से एंटर करूंगा. बस?” मैंने सेठानी को सांत्वना दी.

“हम्म्म्म … ठीक है मास्टर जी आगे से याद रखना अपनी ये वाली प्रॉमिस?”

“ओके सेठानी जी … पक्का याद रखूंगा” मैंने कहा.



इन हसीनाओं की ये भोली अदाएं ही तो चुदाई का आनन्द दोगुना कर देतीं हैं; इनका ये रोना धोना, नखरे कर कर के चुदना, एक प्रकार का कॉम्प्लीमेंट, उत्साहवर्धक ही है हम चोदने वालों के लिये. सभी हसीनाओं की ये सांझी आदत होती है कि लंड को उनकी चूत के छेद से छुला भर दो और ये ‘धीरे से करना जी, ऊई माँ … हाय राम हाय राम … मार डाला … फट गयी …’ जपना शुरू कर देंगी… नहीं तो इनकी चूतों की कैपेसिटी कितनी और कैसी होती है वो तो हम सब जानते ही हैं. आप सबने ऐसी स्थिति को अनुभव तो किया ही होगा.क्यों दोस्तो मैंने सच कहा न?

चलिए अब स्टोरी आगे बढ़ाते हैं; आप सब भी अपने अपने हाथों से मेरे साथ साथ मजे लेना शुरू करो.
 
“ओके माय डार्लिंग … प्रॉमिस बाई यू!” मैंने सेठानी का गाल चूमते हुए उन्हें आश्वासन दिया और अपने लंड को अन्दर बाहर करने का कम शुरू किया. उसकी चूत अब तक खूब रसीली हो उठी थी और लंड अब सटासट, निर्विघ्न चूत में अन्दर बाहर होने लगा था. फिर तो मैंने रेल चला दी. उधर सेठानी को भी चुदाई का जोश चढ़ने लगा और वो मुझसे लिपट लिपट के चूत देने लगी.

हाई मास्टर जी… अब लगाओ बड़े और गहरे धक्के !” सेठानी भयंकर चुदासी होकर बोली और अपने नाखून मेरी पीठ में जोर से गड़ा दिए.

''हाई ये लो मेरी प्यारी सेठानी !” मैंने कहा और उसके दोनों पैर और ऊपर उठा कर उसी के हाथों में पकड़ा दिए जिससे उसकी चूत खूब अच्छे से ऊँची होकर लंड के निशाने पर आ गयी. फिर मैंने पूरे दम से और बेरहमी से सेठानी की चूत की चटनी बनाना शुरू की.

सेठानी की चूत से फचाफच फच्च फच्च फचाक जैसी आवाजें आने लगीं और ऐसी चुदाई से सेठानी पूरी तरह से मस्ता गयी.

“आई लव यू डार्लिंग … मेरी जान … मेरे राजा … फाड़ के रख दो मेरी चूत अपने लंड से. बहुत ही ज्यादा तंग करती है मुझे ये!” सेठानी मिसमिसा कर बोली.

“हां सेठानी जी, अभी लो!” मैंने कहा और लंड को उनकी चूत से बाहर निकाल कर पास पड़े घाघरे से अच्छे से पौंछा और फिर उनकी चूत को भी बाहर भीतर से अच्छे से पौंछ दिया और फिर से उनकी दहकती बुर में धकेल दिया. चिकनाहट थोड़ी कम हो जाने से लंड अब टाइट जा रहा था चूत में.

सेठानी ने अपने पैर सीधे कर लिए थे और अब एड़ियों पर से उचक उचक कर मेरा लंड अपने चूत में दम से लील रही थी और मेरे धक्कों के साथ ताल में ताल मिलाती हुई अपनी जवानी मुझ पर लुटा रही थी.

ऐसे कोई तीन चार मिनट तक सेठानी चुदाई का मज़ा लेती रही, फिर …

'' मास्टर जी, अब मैं आपके ऊपर आऊँगी. अपना मज़ा मैं अपने हिसाब से लूंगी और चुदाई का कंट्रोल मैं अपने पास रखूंगी आप तो चुपचाप लेटे रहना!” सेठानी मुझे चूम कर बोली.

“ठीक है जी … आजाओ अब मेरी सवारी कर लो!” मैंने कहा और सेठानी के ऊपर से उतर कर लेट गया और एक तकिया अपने सिर के नीचे लगा लिया.
 
सेठानी मेरे ऊपर झट से सवार हो गयी और मेरे लंड को मेरे पेट पर लिटा कर अपनी चूत से दबा लिया और आगे पीछे होकर इस पर अपनी चूत घिसने लगी या यूं कह लो कि वो अपनी चूत से मेरे लंड की मालिश करने लगी; उसकी चूत से लगातार रस की नदिया बहे जा रही थी और मेरा लंड, झांटें, जांघें सब भीग रहे थे.

दो तीन मिनट ऐसे ही मजे लेने के बाद सेठानी ने थोड़ा सा ऊपर उठ कर लंड को अपनी चूत के छेद पर सेट किया और उसे भीतर लेते हुए मेरे ऊपर बैठ गयीं और उनकी चूत सट्ट से मेरा लंड निगल गयी.

फिर सेठानी मेरे ऊपर झुक गयी; उसके खुले बाल मेरे मुंह पर आ गिरे जिसे उसने मेरे सिर के पीछे करके मेरे मुंह पर एक घरोंदा सा बना दिया और अपनी कमर चलाते हुए मुझसे आंख मिलाते हुए मुझे चोदने लगी. उसके पपीते जैसी चुचियाँ मेरी छाती पर झूल रही थी जिन्हें मैंने पकड़ कर झूलने से रोक दिया और उन्हें दबाते हुए सेठानी के धक्कों का आनन्द लेने लगा.

मेरे ऊपर चढ़ कर गजब की चुदाई की सेठानी ने … अपनी चूत से उन्होने आड़े तिरछे खड़े लम्बवत शॉट्स लगा लगा कर मेरे लंड को निहाल कर दिया.

ऐसे करते करते वे कुछ ही देर में थक गयी- मास्टर जी बस … अब नांय है मेरे बस का. मुझे अपने नीचे लिटा लो!
वो उखड़ी सांसों से बोली.

“आजाओ, बहुत मेहनत कर ली मेरी प्यारी सेठानी ने!” मैंने सेठानी को चूमते हुए कहा और उसे अपने नीचे लिटा कर उस पर छा गया.

सेठानी ने झट से अपने पैर ऊपर उठा लिये और अपनी चूत हवा में उठा दी. मैंने देखा कि उसकी चूत का छेद पांच रुपये के सिक्के के बराबर खुला हुआ दिख रहा था और उसके आगे अंधेरी गुफा की सुरंग सी दिख रही थी.
मेरे ऐसे देखने से सेठानी थोड़ा लजा गयी और उसने मेरा सिर अपने चुचों पर दबा दिया और लंड पकड़ कर उसे ज़न्नत का रास्ता दिखा दिया.
 
मैंने भी लंड को धकेल दिया अन्दर की तरफ और ताबड़तोड़ शॉट्स लगाने लगा; सेठानी भी किलकारियां निकालती हुयी चुदने लगी और जल्दी ही वो मेरी पीठ ऊपर से नीचे तक सहलाते हुए, मुझे अपने से लिपटाते हुए अपनी चूत मेरे लंड पर जोर जोर से मारने लगी; उसके इन संकेतों से मैं भलीभांति परिचित था; वो झड़ने की कगार पर आ चुकी थी.

'' मास्टर संभालो मुझे, कस के पकड़ लो मुझे. मैं तो आ गयी!” वो बोली और मुझसे जोंक की तरह लिपट गयी और अपने पैर मेरी कमर में लॉक कर दिए और उसकी चूत में बाढ़ जैसे हालात हो गये चूत से जैसे झरना बह निकला.

इधर मेरे लंड ने भी थूकना शुरू कर दिया और मेरे लंड ने भी रस की पिचकारियां छोड़नी शुरू कर दीं.

हम यूं ही झड़ते हुए एक दूजे की बांहों में कुछ देर समाये रहे. उसकी चूत संकुचन कर कर के मेरे लंड से वीर्य निचोड़ने लगी. कितना सुखद अनुभव होता है ये जब चूत की मांसपेशियां लंड को जकड़ती और रिलीज करती हैं. ऐसा लगता है जैसे चूत लंड को दुह रही हो.

दीन दुनिया से बेखबर हम दोनों यूं ही कुछ देर और पड़े रहे.

तकरीबन आधे घंटे बाद मैं उठा घड़ी मे देखा 10 बज चुके थे और सेठानी से शाम को आने का कहकर अपने कमरे पर आ गया और आते ही सो गया
 
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