प्राची शोभा की कहानी सुनते सुनते उसे चोद रही थी. बीच मे रुक जाती और फिर दुगने ज़ोर से चोदने लगती. कहानी ख़तम होते ही उसने शोभा के होंठ अपने होंठों मे दबा लिए और हचक हचक कर चोदने लगी. उसकी आँखों मे भरी वासना से शोभा को पता चल गया कि इस कहानी से वह कितना गरम गयी है. झड़ने के बाद वे पाँच मिनिट वैसी ही पड़ी रही. आख़िर चुप्पी तोड़ कर प्राची बोली "क्या लड़की है ये नेहा, इतनी कम उम्र मे इतनी आगे पहुँच गयी! ये सब तुम्हारा कमाल है शोभा दीदी"
शोभा प्रेम से प्राची के बालों मे उंगलियाँ चलाती हुई बोली. "अरी पगली, इस उमर मे बच्चे होते ही है ऐसे, उनके हॉर्मोन बढ़ रहे होते है, जो ज़्यादा कामुक होते है वे तो क्या क्या सोचते है. कुछ बच्चे इसीलिए तो बिगड़ जाते है. वैसे नेहा ज़रा ज़्यादा ही कामुक है. मुझे मालूम है कि काफ़ी लड़के भी ऐसे होते है. उन्हे बड़ी औरतों का आकर्षण होता है. कुछ का तो मा के
प्रति ऐसा प्रेम होता है पर बेचारे बताते नही है. अब तुम ही देखो, बुरा मत मानना, पर कभी गौर किया है कि दर्शन तेरी ओर कैसे देखता है!"
सुनकर प्राची चमक कर बोली "कुछ भी क्या बोलती है शोभा! अरे मेरे जिगर का टुकड़ा है वो, मैने पेट मे रखा है नौ महने. वह कभी अपनी मा के बारे मे ऐसा नही सोचेगा"
शोभा ने उस समझाते हुए कहा "अरे मैं कहाँ कहती हूँ कि वह बिगड़ा हुआ है. बहुत अच्छा लड़का है. जान बूझ कर नही करता वह. उसे शायद खुद मालूम नही होगा कि उसके मन मे क्या है. पर मैने बहुत बार गौर किया है कि जब तेरी नज़र और कही होती है तो वह चुप चाप तेरी ओर देखता है. बहुत प्यार करता है मा से. पर प्यार के साथ बड़ी सुंदर औरत के प्रति होने वाला यौन आकर्षण भी होता है उसकी नज़र मे, मैने तो बहुत बार देखा है"
शोभा ने उसके मन मे यह बात डाल दी थी इसलिए प्राची चाह कर भी उस बात को भुला ना पाई. उसे अचानक याद आया कल की सुबह जब शोभा के साथ रात भर की चुदाई के बाद वह अपने कपड़े ठीक से पहन कर अपने घर वापस आई थी, दर्शन पहले ही आ गया था. वह नज़र गढ़ाकर प्राची को देखता रह गया था, शायद मा को इतने अच्छे कपड़ों मे कभी नही देखा था. उसने तब कहा था कि "मा आज बहुत खुश लग रही हो, लगता है शोभा मौसी से अच्छी गप्पें हुई है तुम्हारी रात भर. आज तुम अलग ही लग रही हो, यह साड़ी कितनी अच्छी है, ये नयी हेर स्टाइल भी तुमको सूट करती है". उसकी नज़रों के भाव जब प्राची को याद आए तो उसे लगने लगा कि शायद शोभा ठीक कह रही है. "मेरा बेटा, मेरा दर्शन, ऐसा सोचता होगा मेरे बारे मे?" सोचकर लाज से उसका मूह लाल हो गया.
बात बदलने के लिए वह शोभा से बोली "शोभा, हमारी ये प्रेमलीला नेहा के आने तक तो चलेगी, उसके बाद? उसे पता चल गया तो नाराज़ हो जाएगी."
शोभा पहचान गयी कि प्राची पूरी उसके वासना जाल मे फँस चुकी है, यहाँ तक कि उसे अब यह कल्पना सहन नही हो रही है कि नेहा के आने के बाद वह शोभा के साथ कुछ नही कर पाएगी. उसको दिलासा देते हुए शोभा बोली. "चिंता मत कर प्राची, कोई रास्ता निकाल लेंगे. पर मुझे विश्वास है कि नेहा नाराज़ नही होगी. वह इस मामले मे काफ़ी ओपन माइंडेड है और मुझे बहुत प्यार करती है, मेरी खुशी के लिए कुछ भी कर लेगी. पिछले हफ्ते दो दिन उसका सिर दुख रहा था, तबीयत खराब थी, इसलिए मैं उसके सिर मे मालिश कर के वैसे ही उसे सुला देती थी, हमारी रति मैने बंद कर दी थी. नेहा को मेरा गरम स्वाभाव मालूम है, कि मुझे बिना संभोग किए नींद भी नही आएगी. कहने लगी मा, तुम बोर हो रही हो. स्वाद बदल कर क्यों नही देखती? वो प्राची मौसी ही कितनी सुंदर है, उसीको पटा लो. फिर हँसने लगी. पर मुझे लगता है कि वह आधा मज़ाक कर रही थी और आधा सीरियस्ली बोल रही थी. इसलिए मुझे लगता है कि वह नाराज़ नही खुश होगी"
फिर प्राची के स्तनों को हल्के हल्के मसलते हुए शोभा बोली "वैसे प्राची, सम्भल जा अब से. उसे पता चल गया कि हमारे बीच ये लफडा चल रहा है तो हो सकता है कि वह भी अपने इस खेल मे शामिल होने की हट करे, बोलेगी कि मा अकेले अकेले? मुझे भी तो ज़रा चखने दो प्राची मौसी का स्वाद"
अब प्राची बेचारी काफ़ी बौखला गयी थी. ये सब क्या हो रहा है? शुरू तो हुआ था बस शोभा के साथ एक सुंदर स्त्री स्त्री संभोग के रूप मे, एक 'तबू' संबंध पर जो उसके इस रसहीन जीवन मे ढेरों बहारे लेकर आया था. अब क्या नेहा के साथ भी? उस सुंदर युवती के साथ? और दर्शन के बारे मे क्या बोल रही है शोभा? बौखलाहट और लज्जा के साथ साथ उसके मन मे अब एक अपूर्व कामुकता और वासना की लहर उठ रही थी. शोभा ने चलाया कामदेव का बान उसे पूरा घायल कर गया था. उसने डिल्डो अपनी और शोभा की चूत से निकाला और शोभा से बोली "दीदी, बहुत हो गया, कुछ भी बके जा रही हो. ऐसा कभी होता है? चलो अब अपनी बुर चुसवाओ, मूह सूख रहा है"
शोभा ने डिल्डो उठा लिया और उस भाग को चाटने लगी जो प्राची की बुर मे घुसा हुआ था. चाट कर सॉफ करने के बाद डिल्डो उलटा करके प्राची को दिया "ले चाट ले. इस कामरस को वेस्ट करना पाप है. इतनी मेहनत से हम निकालते है" फिर
प्राची को बाहों मे लेकर फिर से बिस्तर पर लेट गयी. बाकी बचे दो दिन दोनो पड़ोसन मौका मिले तब मिलकर इसी तरह कामदेव की पूजा करती रही. आख़िर शनिवार का दिन आया. नेहा उसी दिन वापस आने वाली थी.
नेहा शाम को वापस आई. शोभा राह ही देख रही थी. जैसे ही उसने नेहा को घर मे लेकर दरवाजा लगाया, नेहा उससे लिपट कर उसे चूमने लगी. "ओह्ह्ह मम्मी, कितना अच्छा लगता है घर आ कर. मैने तुम्हे बहुत मिस किया. लगता था कब घर वापस जाऊं और मेरी मम्मी की गोद मे घुस जाऊं"
शोभा ने उसके चुंबनों का जवाब देते हुए उसे भींच कर छाती से लगा लिया. वह भी अपनी लाडली बेटी की राह देख रही थी. सौतेली मा होते हुए भी उसे अपनी इस बेटी से बहुत प्रेम था, एक प्रेमिका की तरह भी और एक मा की तरह भी. अपनी बाहों मे नेहा के उश्न मुलायम जवान बदन को भींच कर उसकी चूत मे तुरंत एक मीठी गुदगुदी होने लगी. "कैसी हुई तेरी ट्रिप नेहा? मज़ा आया?" अपनी वासना को दबाते हुए उसने पूछा.
"अच्छी हुई पर पूरी तरह से नही. लीना के साथ बस दो दिन अकेले मे मज़ा करने मिला, बाद मे इतने रिश्तेदार आ गये शादी मे कि घर मे जगह ही नही थी, हमारे कमरे मे दो बूढ़ी औरते आ कर रहने लगी. उसके बाद तो मुझे तुम्हारी बहुत याद आई. वैसे मम्मी, तुम सच कह रही थी, लीना हम दोनो जैसी ही है, तुमने बिल्कुल ठीक पहचाना उसे. पहली रात को मैने पहल की तो वो इस तरह से मुझसे लिपट गयी जैसे राह ही देख रही हो. मुझे छोड़ती ही नही थी. बहुत मस्त है उसका बदन, बहुत कसा हुआ, आख़िर स्टेट लेवेल की वॉलीबॉल प्लेयर है. हम दो रात सोए ही नही, बिस्तर मे वॉलीबॉल और कुश्ती खेलते रहे. बाद मे दिन मे भी जब मौका मिलता अपने कमरे मे आ जाते. फिर जब लीना की नानी और बुआ आ गयी हमारे कमरे मे तो सब बंद हो गया. क्या बोरियत हुई! उसके बाद बस खाना और सोना. बीच बीच मे थोड़ा अकेलापन मिलता तो किस कर लेते." नेहा ने बताया.