Kamukta Story प्यास बुझाई नौकर से - SexBaba
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Kamukta Story प्यास बुझाई नौकर से

desiaks

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प्यास बुझाई नौकर से

पात्र (किरदार) परिचय

01. हरदयाल- रूबी के ससुर,

02. कमलजीत- रूबी की सास,

03. प्रीति- हरजीत की पत्नी, हरदयाल की बेटी,

04. लखविंदर- रूबी का पति, दुबई में नौकरी, हरदयाल का बेटा,

05. रूबी- उम्र 28 साल, लखविंदर की पत्नी, रंग गोरा, कद 54” इंच, सुडौल मुम्मे, कम्प्यूटर डिग्री

06. हरजीत- प्रीति का पति, सरकारी टीचर,

07. रामू- उम्र 22 साल, घर का नौकर,

08. सीमा- कामवाली बाई,
 
दिसम्बर महीना रात का टाइम, चारों तरफ सन्नाटा था। बीच-बीच में दूर से कुत्तों के भौंकने की आवाज आ रही थी। पूरा गाँव नींद की आगोश में था। अचानक घड़ी की आवाज आई टन्न्। रूबी ने देखा रात का एक बज चुका था। पर लाख कोशिश के बाद भी 28 साल की रूबी को नींद नहीं आ रही थी, मानो जैसे नींद रूबी से रूठी हो। गाँव के बाहर बाहर आलीशान घर में रूबी इतनी रात होने पे भी अपने मखमली बेड पे कम्बल में करवटें ले रही थी। अपने बेड पे लेटे-लेटे उसे अकेलापन निगल रहा था।

हमेशा खुश रहने वाली रूबी आजकल काफी अकेलापन महसूस करने लगी थी। 28 साल की गदराई जवानी की मालेकिन रूबी को किश्मत ने सब कुछ दिया था। घर में सासू माँ कमलजीत, और ससुर हरदयाल के अलावा रूबी ही थी। दो साल पहले रूबी दुल्हन बनकर इस घर में आई थी।

हरदयाल और कमलजीत के दो बच्चे थे। पहला बचा लड़की हई। उसका नाम रखा गया प्रीति। उसकी शादी हए 5 साल हो चुके हैं और वो अपने ससुराल में खुश है अपने पति के साथ।

हरदयाल और कमालित का दूसरा बच्चा हुआ लखविंदर। लखविंदर दुबई में कन्स्ट्रक्सन कंपनी में सिविल इंजिनियर है। अच्छी खासी सेलरी है लखविंदर की। दुबई में काम करने के कारण साल दो साल बाद ही इंडिया का चक्कर लगता है। लास्ट टाइम लखविंदर 8 महीने पहले घर आया था। रूबी और लखविंदर की अरेंज मैरेज हुई थी।

रूबी भी पीछे से अच्छे खानदान से है। उसके फादर की सरकारी जाब थी और उसके दो और भाई हैं जो की अभी रूबी से बड़े हैं। रूबी पढ़ने में अच्छी थी तो घर वालों ने कंप्यूटर्स में डिग्री करवा दी। कालेज में कुछ लड़कों ने रूबी को पटाने की कोशिश की। करते भी क्यों ना, गोरा रंग, 5'4' इंच का कद, सुडौल मुम्मे, मोटे चूतर किसी की भी नींद हराम कर सकते थे।

लेकिन अच्छे संस्कार वाली रूबी ने कभी लड़कों में इंटेरेस्ट नहीं लिया। रूबी को पता था की लड़के सिर्फ उसका जोवन रस पीना चाहते हैं। पर वो सिर्फ अपनी पढ़ाई में ही इंटरेस्ट लेती थी। कालेज छोड़ने के बाद रूबी ने प्राइवेट स्कूल में टीचिंग भी की कुछ साल। 26 साल की होते-होते लखविंदर का रिश्ता आया। रूबी के घर वालों ने देखा अच्छा परिवार है, लड़का अच्छा कमाता है, वेल सेटल्ड है। गाँव के बाहर-बाहर आलीशान घर है। जमीन भी अच्छी है तो उन्होंने ने झट से हाँ कर दिया रिश्ते को।

रूबी पहले थोड़ा ना-नकर की। पर जब लखविंदर को देखा और बात की तो रूबी को लखविंदर भा गया और उसने हाँ बोल दिया शादी के लिए। पीछे से खुशहाल परिवार की लड़ली को ससुराल भी खुशहाल ही मिला। कमलजीत और हरदयाल इतनी अच्छी बहू पाकर फूले नहीं समा रहे थे। शादी के बाद रूबी अपने ससुराल में अच्छे से अड्जस्ट हो गई। इतना अच्छा ससुराल और पति पाकर रूबी अपनी लाइफ में खुश थी। ससुराल में कोई खास काम नहीं था, जो रूबी को करना पड़ता।

घर की सफाई के लिए गाँव से लड़की आती थी। बस खाना ही बनाना होता था, जो की रूबी और कमलजीत दोनों मिलकर बना लेती थी। हरदयाल अपने खेतों के कामों में राम के साथ बिजी रहता था।

रामू घर का नौकर था जो की 22 साल का था। रामू का काम भैंसों का दूध निकालना, चारा डालना और खेतों का काम करना था। शादी के एक महीने बाद लखविंदर वापिस दुबई चला गया। उसके जाने के टाइम रूबी लखविंदर से सटकर काफी रोई थी। लखविंदर के जाने के बाद रूबी उदास हो गई।
 
अभी-अभी तो शार्द । और अभी तो रूबी अपना पूरा प्यार भी नहीं दे पाई थी लखविंदर को। पर जाना तो पड़ा ही था लखविंदर को। उसके जाने के बाद रूबी के लिए काली रातें काटना मुश्किल हो गया था। रात को सोने के टाइम बेड पे लेटे-लेटे उसे लखविंदर के साथ बिताया टाइम याद आ जाता था। वो ही तो उसका पहला प्यार था, जिसे उसने अपना मन और तन अर्पित किया था सुहागरात को। एक वो ही तो था जिसने रूबी को पहली बार भोगा था। ये तो रूबी की ही हिम्मत थी की इतना गदराया बदन उसने अपने पति के लिए ही बचक्कर रखा था, वरना उसे भोगने की चाहत रखने वाले तो कालेज में भी

लखविंदर के दुबई वापिस जाने के बाद ही रूबी जिश्म की भूख में तड़पने लगी थी। पर उसने अपने आपको संभाला हुआ था। संभालना ही था उसे अपने आपको, बाजारी औरत की तरह तो अपनी नुमाइश नहीं लगा सकती थी। आखीरकार, उसकी ससुराल और मायके की इज्जत का सवाल था। पर आज कुछ ज्यादा ही बेचैनी थी। इस बेचैनी का कारण थी लखविंदर की बहन प्रीति यानी की रूबी की ननद और उसका पति हरजीत। लखविंदर की बहन पिछले कल मायके आई थी हरजीत के साथ। महीने में एक-दो बार वो अपने मायके में मिलने आ जाती थी। रूबी और प्रीति की अच्छी बनती थी। दोनों की उमर में एक-दो साल का ही तो अंतर था। प्रीति का ससुराल 20 किलोमीटर दूर ही तो था।

हरजीत सरकारी टीचर था स्कूल में। सरकारी जाब के कारण उसे सनडे की तो छुट्टी मिलती ही थी। और तो और बाकी सरकारी छुट्टियां मिल जाती थी। इसलिए महीने में एक आध बार वो ससुराल आता था प्रीति के साथ। वैसे प्रीति खुद भी अकेले कई बार घर आ जाती थी। पहले भी तो प्रीति और हरजीत घर में आते थे। पहले तो कभी रूबी को इतनी बेचैनी नहीं हई थी, तो आज क्या हो गया था जो उसे नींद नहीं आ रही थी। जब भी वो आँख बंद करती उसकी आँखों के सामने कुछ देर पहले का दृश्य सामने आ जाता और वो आँखें खोल लेती।

अभी एक घंटे पहले की तो बात है। रूबी करवटें ले रही थी। लेटे-लेटे अपने और लखविंदर के उन प्यार भरे लम्हों को याद कर रही थी। और करती भी क्या? याद ही तो कर सकती थी। उसे भोगने वाला तो था ही नहीं उसके पास। इतनी ठंड में उन लम्हों को याद करते-करते कम्बल में रूबी को गर्मी आ गई थी और गला सूखने लगा था। रूबी ने सोचा थोड़ा पानी पी लेती हैं, और अपने कमरे से बाहर निकलकर किचेन में चली गई। अपने कमरे का दरवाजा खोलने और किचेन तक जाने का काम उसने धीरे-धीरे किया ताकी कोई घर में डिस्टर्ब ना हो।
 
अभी एक घंटे पहले की तो बात है। रूबी करवटें ले रही थी। लेटे-लेटे अपने और लखविंदर के उन प्यार भरे लम्हों को याद कर रही थी। और करती भी क्या? याद ही तो कर सकती थी। उसे भोगने वाला तो था ही नहीं उसके पास। इतनी ठंड में उन लम्हों को याद करते-करते कम्बल में रूबी को गर्मी आ गई थी और गला सूखने लगा था। रूबी ने सोचा थोड़ा पानी पी लेती हैं, और अपने कमरे से बाहर निकलकर किचेन में चली गई। अपने कमरे का दरवाजा खोलने और किचेन तक जाने का काम उसने धीरे-धीरे किया ताकी कोई घर में डिस्टर्ब ना हो।

पानी पीने के बाद अब वो कमरे क पास आई तो उसे सिसकियां सनाई दी। वो आ रही थी, वहीं खड़ी हो गई। उसे लगा सिसकियां ननद के कमरे से आ रही थी, रूबी ने सोचा। आधी रात हो गई थी और वो अभी तक सोई नहीं थी। रूबी का तो समझ में आता है इतनी रात तक करवटें लेना पर प्रीति? रूबी के दिल में आया की पास जाकर देखा जाए। इधर रूबी लाबी में थी और वहां पे व लाइट आफ थी और अंधेरा था। कोई अपने कमरे के बाहर आकर टकटकी लगाकर देखता उसकी तरफ, तभी पता चल सकता था की वहां पे कोई है। रूबी ने प्रीति के कमरे के दरवाजे पे कान लगाया और सिसकियां सुनने लगी।

प्रीति-अहह... अहह... उम्म्म्म

... अभी कितना बाकी है।

हरजीत- अरे बेबी आधा ही अंदर किया है अभी तो।

प्रीति- तो डाल दो पूरा। क्यों तड़पते हो?

हरजीत- क्योंकी मैं अपनी बीवी को अच्छे से भोगना चाहता हूँ। मेरा तो दिल करता है की सारी उमर तुम्हें ऐसे ही चोदता रहूं।

प्रीति- तो और क्या करते आए हो अभी तक? हफ्ते में एक आध दिन ही होता है जब आपका मन नहीं करता, नहीं तो यह तो आपका डेली का कम है।

हरजीत- बेबी तुम हो ही इतनी खूबसूरत। क्या करें रहा नहीं जाता। क्या तुम्हें मजा नहीं आता?

प्रीति- नहीं बाबा... आपको ऐसा क्यों लगता है? आप जैसा पति पाकर कौन औरत खुश नहीं होगी।

रूबी ना जाने क्यों वहां से हिल नहीं पाई और उसका मन किया की थोड़ी देर और रुक जाए। रूबी ने कभी किसी की चुदाई नहीं देखी थी। वो चुपचाप दरवाजे के साथ कान लगाए कमरे की आवाजें सुनने लगी। प्रीति की सिसकियां रूबी पे सीने को तीर बनकर लग रही थी। उसने आँखें बंद कर ली और अंदर के नजारे को इमेजिन करने लगी। धीरे-धीरे रूबी गरम होने लगी। इस ठंडी रात में वो सिर्फ अपनी नाइटी में लाबी में खड़ी थी, पर उसे गर्मी का एहसास हो रहा था।

उधर प्रीति और हरजीत प्यार के आगोश में खोए हए और इस बात से अंजान थे की रूबी दरवाजे के पास कान लगाए सब कुछ सुन रही थी। उनकी आवाजें सुनते-सुनते रूबी का एक हाथ उसके दायें वाले मुम्मे को दबाने लगा। करती भी क्या? खुद को ही करना पड़ा, कोई और तो था नहीं। रूबी उत्तेजना से भरती जा रही थी। उसके लिए वहां पे खड़े होना भी मुश्किल हो रहा था।

उधर हरजीत ने प्रीति के मम्मे पे काट लिया और प्रीति की हल्की सी चीख निकल गई। इस चीख से रूबी अपने होशो हवाश में आई। वि पशीने से तरबतर थी।
 
प्रीति- क्या करते हो? ऐसे कोई काटता है?

हरजीत- क्या करूं, इतने साफ्ट हैं तुम्हारे मुम्मे की मन नहीं भरता।

प्रीति- चूस-चूस के लाल कर दिए हैं और अभी तक मन नहीं भरा?

हरजीत- नहीं बेबी। इतनी खूबसूरत बीवी से मन भर सकता है किसी का क्या? यह कहते ही हरजीत ने प्रीति के मुम्मे दुबारा चूसने शुरू किए। प्रीति कामवासना में खो गई।

प्रीति- “उई माँ... हरजीत अब कर डालौ। इस आग को ठंडा करो प्लीज़्ज़..."

हरजीत- “ओके मेरी जान..."

हरजीत ने देखा प्रीति अभी चरम पे है और आधी रात का टाइम हो गया था। टाइम सही था खेल को इसके
अंजाम तक पहुँचाने ने के लिए। हरजीत ने झटका दिया और पूरा लण्ड प्रीति के अंदर चला गया।

प्रीति- ऊहह... हाँ..."

रूबी समझ गई थी की हरजीत का पूरा लण्ड प्रीति की चूत में उतर चुका है। रूबी ये सब इमेजिन करके बेकाबू हो गई थी। वो इस वासना में जल रही थी और उसकी ननद अपनी प्यास बुझा रही थी। प्रीति की चुदाई देखने का ख्याल रूबी के दिमाग में आ गया। कामवासना के वश में रूबी ठीक उ छ भी डिसाइड नहीं कर पा रही थी। उसे बस प्रीति को चुदते देखना था।

प्रीति के साथ वाला कमरा स्टोर था। स्टोर और प्रीति के कमरे की दीवार में क्रास वेंटिलेशन के लिए रोशनदान के साइज की जगह छोड़ी हुई थी।

रूबी को पता था की स्टोर यम की सीढ़ी है। रूबी धीरे-धीरे स्टोर में गई और देखा सीढ़ी पहले से ही रोशनदन की जगह से सटी हुई थी। इसे रूबी की किश्मत कहिए या कुछ और उसे बस अभी सीढ़ी पे चढ़ना ही था। रूबी बिना आवाज किए धीरे-धीरे सीढ़ी पे चढ़ आई और रोशनदन के महाने पी आकर धीरे-धीरे अपना सिर ऊपर किया और अंदर का नजारा देखकर सन्न हो गई।
 
रूबी को पता था की स्टोर रूम की सीढ़ी है। रूबी धीरे-धीरे स्टोर में गई और देखा सीढ़ी पहले से ही रोशनदन की जगह से सटी हुई थी। इसे रूबी की किश्मत कहिए या कुछ और उसे बस अभी सीढ़ी पे चढ़ना ही था। रूबी बिना आवाज किए धीरे-धीरे सीढ़ी पे चढ़ आई और रोशनदन के महाने पी आकर धीरे-धीरे अपना सिर ऊपर किया और अंदर का नजारा देखकर सन्न हो गई।

प्रीति और हरजीत दोनों पूरे नंगे थे एक दूसरे में समाए हुए थे। प्रीति के कमरे में वैसे तो लाइट नहीं जल रही थी पर उसके कमरे के पीछे की तरफ की खीड़की खुली होने के कारण चाँद की रोशनी आ रही थी। कमरे के अंदर आती चाँद की रोशनी बेड पे एक दूसरे में खोए हए प्रीति और हरजीत को रूबी की नजरों में आराम से ले आई।

प्रीति का गोरा सुडौल बदन हरजीत के नीचे दबा पड़ा था और हरजीत प्रीति के मुम्मों को चूस रहा था। नीचे उसका लण्ड पूरा प्रीति के अंदर घुसा पड़ा था। हरजीत ने अभी धक्के चालू नहीं किए थे। रूबी का गला यह दृश्य देखकर सूखने लगा। प्रीति ने अपने बाल खुले छोड़े हुए थे और बेडशीट को अपने दोनों हाथों में पकड़कर रखा था और मुम्मे चुसवाने का पूरा मजा ले रही थी।

रूबी ने देखा प्रीति की बेटी उसके साथ नहीं थी। वो जब भी अपने घर आती तो उसकी बेटी उसके मम्मी पापा के साथ ही सोती थी। प्रीति शादी से पहले पतली होती थी, पर बच्चा होने के बाद उसका शरीर भर गया था। भाभी ननद में अक्सर छेद-छाड़ होती रहती थी। हम उमर होने के कारण दोनों की अंडरस्टैंडिंग अच्छी थी। एक दूसरे को छेड़ने का कभी कोई मौका हाथ से नहीं जाने देती थी भाभी और ननद। रूबी अंदर के नजारे का पूरा आनंद ले रही थी।

इधर हरजीत ने अपना लण्ड आधा बाहर किया और फिर से अंदर पेल दिया।

रूबी- उफफ्फ... पूरा चला गया क्या?

हरजीत- क्या?

रूबी- वही आपका?

हरजीत- मेरा क्या, कोई नाम भी तो होगा?

रूबी- आप भी ना... कितने गंदे हो।

हरजीत- इसमें गंदे होने की क्या बात है? पहले भी तो नाम लिया है इसका।

रूबी- आपको क्या मजा आता है मेरे मुँह से इसका नाम सुनने में?

हरजीत- तुम्हें पता तो है मेरी जान। चुदाई के टाइम तुम्हारे मुँह से गंदी बातें मुझे अच्छी लगती है।

रूबी- बदमाश।

हरजीत- तो बताओ ना क्या पूरा गया है?

रूबी- आपका लण्ड।
 
हरजीत ने जैसे ही लण्ड शब्द सुना, उसने प्रीति के होंठों पे किस किया और फिर से मुम्मों को चूसने लगा।

प्रीति- अब कर दो हरजीत, अब नहीं रहा जाता।

हरजीत- क्या कर दूं?

प्रीति- “आपको पता है। क्यों तड़पते हो प्लीज़्ज़... उई माँ.."

हरजीत- प्लीज जान, तुम्हें पता है मैं क्या सुनना चाहता हूँ। तुम खुद ही तड़पती हो। तुम्हें पता है जब तक तुम नहीं बोलती मैं कभी शुरू नहीं करता। मैं अपनी जान को पूरा मजा देना चाहता हूँ।

प्रीति अपने मम्मे चुसवाकर आनंद की लहरों पे सफर कर रही थी। उसे बस अब अपनी मंजिल जाने के चरम पे पहुँचना था। हरजीत ने प्रीति के मुम्मों को चूसना छोड़ा और उसके गुलाबी होंठों को अपने होंठों में ले लिया और अपने हाथ से प्रीति के मम्मे की निपल को कुरेदने लगा। प्रीति भी अपने होंठों से हरजीत के होंठों का रसपान करने लगी। नीचे से उसकी चूत में लण्ड घुसा पड़ा था। कुछ देर होंठ चूसने के बाद प्रीति को हारना पड़ा, और उसने हरजीत को बोल दिया जो वो चाहता था।

प्रीति- “जानू प्लीज... अब नहीं रहा जाता, मुझे चोद डालो। अपने लण्ड से मेरी चूत का रस निकाल दो.." और ये कहते ही प्रीति ने दुबारा हरजीत के होंठों को अपने होंठों में ले लिया।

हरजीत धीरे-धीरे अपना लण्ड प्रीति की चूत के अंदर-बाहर करने लगा। प्रीति की चूत के रस में सना लण्ड आराम से अंदर-बाहर होने लगा। इधर हरजीत ने प्रीति के मुम्मे दुबारा चूसने शुरू किए। प्रीति के लिए ये सब सहना मुश्किल हो रहा था। वो अपने सिर की दायें बायें करने लगी और मुँह से सिसकियां निकालने लगी।

प्रीति- “चोदो मुझे प्यार से जान्न उम्म्म... उम्म्म... उफफ्फ.."

हरजीत- कैसा लग रहा है बेबी?

प्रीति- “बहुत अच्छा उम्म्म...”
 
हरजीत धीरे-धीरे अपना लण्ड प्रीति की चूत के अंदर-बाहर करने लगा। प्रीति की चूत के रस में सना लण्ड आराम से अंदर-बाहर होने लगा। इधर हरजीत ने प्रीति के मुम्मे दुबारा चूसने शुरू किए। प्रीति के लिए ये सब सहना मुश्किल हो रहा था। वो अपने सिर की दायें बायें करने लगी और मुँह से सिसकियां निकालने लगी।

प्रीति- “चोदो मुझे प्यार से जान्न उम्म्म... उम्म्म... उफफ्फ.."

हरजीत- कैसा लग रहा है बेबी?

प्रीति- “बहुत अच्छा उम्म्म...”

इधर रूबी यह सब देखकर अपने पे काबू नहीं रख पाई, और अपने मम्मों को दबाने लगी। उधर प्रीति अपनी आँखें बंद किए हरजीत के लण्ड का भरपूर मजा ले रही थी। दोनों एक दूसरे के प्यार में डूबे हुए थे। रूबी के यह सब देखते हुए पशीने छूट रहे थे। प्रीति और हरजीत की चुदाई ने रूबी को बेचैन कर दिया था। उसके अंदर की ज्वाला भड़क उठी थी। उसने सोचा की प्रीति की चुदाई देखने का डिसाइड करना गलत फैसला था। चुदाई देखने पे तो उसकी बुरी हालत हो गई थी। उसकी निपल टाइट हो गई थी और वो अपने मुम्मे को अच्छे से दबा रही थी।

उधर हरजीत के झटके तेज हो गये थे। प्रीति ने अपनी जांघों से हरजीत की कमर का घेरा बना लिया और उससे पूरी तरह लिपट गई। प्रीति की चूत के रस से सना लण्ड तेजी से अंदर-बाहर हो रहा था। कमरे में लण्ड के अंदर-बाहर होने से पूछ-पूछ की आवाजें आ रही थी। अब लगता था की दोनों अपनी मंजिल तक पहुँचने वाले थे।

हरजीत ने प्रीति के मुम्मे चूसने छोड़े और प्रीति के होंठ अपने होंठों में लेकर चूसने लगा और धक्के और तेज कर दिए। प्रीति भी अपनी कमर ऊपर उठा-उठाकर हरजीत का लण्ड ले रही थी। कुछ देर प्रीति के होंठों का रसपान करने के बाद हरजीत ने अपना चेहरा प्रीति के बगल में बेड के गददे में घुसेड़ दिया और जोर-जोर से धक्के मारने लगा।

रूबी ये सब देखकर समझ गई थी की हरजीत अब कम खतम करना चाहता है।

हरजीत ने अपने हाथों से प्रीति के चूतरों को फैला रखा था और जोर-जोर से पेल रहा था। उधर प्रीति ने भी अपने हाथों से हरजीत के चूतरों को पकड़ा और अपनी तरफ खींचने लगी। नीचे से भी अपनी कमर उठा-उठा के लण्ड ले रही थी।

रूबी से यह सब देखना मुश्किल हो गया था। वो मंत्रमुग्ध हो गई थी। प्रीति और हरजीत की चुदाई की आवाजों से कमरा भर गया था।

प्रीति- “बेबी... मैं आ रही हूँ उफफ्फ... और तेज करो।

हरजीत- “बेबी तुम भी मेरे लिये झड़ जाओ.."

प्रीति- "तेज्ज और तेज्ज... ओह माँ आहह... आहह..."

हरजीत- “हाँ हाँ हाँ..."

तभी हरजीत ने जोर का झटका दिया और प्रीति के अंदर लण्ड घुसेड़कर रुक गया। रूबी समझ गई की हरजीत झड़ रहा है। प्रीति ने अपनी पकड़ ढीली कर दी और हरजीत ऐसे ही उसके ऊपर निढाल पड़ा रहा।

इधर रूबी की बुरी हालत थी। हरजीत का प्रीति के अंदर झड़ना रूबी को बेचैन कर गया। खेल खतम होने के बाद उसका वहां पे रुकने का मतलब नहीं था। वो धीरे से अपने कमरे में आ गई और बेड पे लेट गई। तब से वो करवटें ले रही थी और नींद नहीं आ रही थी। बार-बार प्रीति की चुदाई का दृश्य आँखों के सामने आ जाता था और वो तड़प उठती थी।

रूबी इस हालत में अपनी नाइटी में हाथ डालकर अपने मम्मे दबा रही थी। पर उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। इसी बेचैनी के बीच उसने अपने एक हाथ से नाइटी के ऊपर से अपनी चूत को छुआ तो उसे थोड़ा सा गीलापन का एहसास हुआ। उसकी चूत ने पानी छोड़ा था और चुदवाने के लिए पूरी तरह तैयार थी। पर उसकी विडंबना ही ये थी की उसे चोदने वाला नहीं था।
 
रूबी इस हालत में अपनी नाइटी में हाथ डालकर अपने मम्मे दबा रही थी। पर उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। इसी बेचैनी के बीच उसने अपने एक हाथ से नाइटी के ऊपर से अपनी चूत को छुआ तो उसे थोड़ा सा गीलापन का एहसास हुआ। उसकी चूत ने पानी छोड़ा था और चुदवाने के लिए पूरी तरह तैयार थी। पर उसकी विडंबना ही ये थी की उसे चोदने वाला नहीं था।

कुछ देर रूबी ने अपनी चूत को नाइटी के ऊपर से ही रगड़ा, तो उसकी अंदर की आग और भड़क गई और प्रीति को अपनी नाइटी को अपनी कमर तक उठना ही पड़ा। रूबी ने अपनी पैंटी के ऊपर से ही अपनी चूत और महसूस किया की पैंटी पूरी तरह से गीली थी। रूबी को पता था इस हालत में उसको नींद आना मुश्किल ही है, जब तक चूत शांत नहीं होती। उसने धीरे से अपना हाथ पैंटी के अंदर डाला और चूत की पंखुड़ियों के साथ खेलने लगी। अपनी आँखें बंद किए हुए प्रीति और हरजीत की चुदाई को याद करने लगी। धीरे-धीरे उसने अपनी एक उंगली को चूत के अंदर डाल दिया और अंदर-बाहर करने लगी।

रूबी की सांसें तेज हो रही थी। अचानक उसके मुंह से निकला 'उफफ्फ' हरजीत और प्रीति की चुदाई को अपने आँखों के सामने लाते हये वो मदहोशी में खोने लगी। उसने अपनी उंगली की रफ्तार बढ़ा दी। उसका गला सूखने लगा। वो अपनी जीभ से होंठों को लाटने लगी। अब रूबी की दूसरी उंगली ने पहली वाली को जान कर लिया और दोनों साथ मिलकर रूबी का पानी निकालने की कोशिश करने लगी।

रूबी की सांसें तेज हो गई। आँखें बाद किए वो इमेजिन कर रही थी की हरजीत प्रीति की जगह उसे चोद रहा है। प्रीति की जगह वो हरजीत के नीचे लेटकर लण्ड का स्वाद ले रही थी। अब उंगलियों की रफ्तार तेज हो गई और रूबी अपने क्लाइमेक्स की तरफ बढ़ने लगी। रूबी की सिसकियां बढ़ने लगी। उफफ्फ... आहह... उम्म्म... की आवाजें रूबी के गुलाबी होंठों से निकल रही थी। इतनी ठंड में भी रूबी के बदन पे पशीना आ गया था। हरजीत के लण्ड की कल्पना करती रूबी पूरी स्पीड से उंगलियों को अपनी चूत के अंदर-बाहर कर रही थी। दोनों उंगलियां चूत के रस से सराबोर थीं।

तभी रूबी की साँस अटकी और चूत ने अपना पानी छोड़ दिया। रूबी तेज-तेज सांसें लेने लगी और बेड पे लेटी लेटी शांत हो गई। धीरे-धीरे रूबी की सांसें और धड़कन कंट्रोल में आने लगी। रूबी की चूत की आग ठंडी हो चुकी थी। पहले भी रूबी पता नहीं इस आग को अपनी उंगलियों के साथ कितनी बार ठंडी कर चुकी थी। पर यह आग बढ़ती ही जा रही थी। इस आग को ठंडा करने के लिए तगड़े मोटे लाड की जरूरत थी, जो की रूबी को साल भर बाद मिलता था। चूत की आग ठंडी होते ही रूबी की आँखें भारी होने लगी। नींद ने कब उसको अपने आगोश में ले लिया उसे पता भी ना चला।
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*****
 
अगले दिन रूबी सुबह उठी और ब्रश वगेरा करने के बाद सलवार सूट में आ गई, और फिर अपने कमरे से बाहर आ गई, तो देखा मम्मीजी किचेन में थे। रूबी ने उनके पैर छुए और उनका हाथ बंटाने लगी।

ससुर अभी टहलने गये थे। कुछ देर बाद वापिस आ गये और फिर तीनों ने बैठकर चाय पी और बातें करने लगे। सुबह का अखबार भी आ चुका था। तीनों ने अलग-अलग पेज लेकर पढ़ना शुरू कर दिया। बातें करते-करते 8:00 बज गये थे।

रामू ने बाहर खड़े होकर मालिक को आवाज लगाई। हरदयाल बाहर गया और दोनों के बीच कुछ बात होने लगी।

रामू- बाबूजी काफी टाइम हो गया है घर गये। कुछ दिन की छुट्टी डेडा घर वालों से मिल आएं।

हरदयाल- अरे राम तुम्हें पता है ना काम कितना है खेतों का? अगर तुम मिलने गये तो जल्दी वापिस नहीं वाले हो, और मैं अकेला कैसे सारा काम देखूगा। पहले भी तुम दो हफ्तो का कहकर जब भी जाते हो और महीने से ज्यादा लगाके आते हो।

राम- बाबूजी क्या करें? घर पे कोई ना कोई काम पड़ जाता है और टाइम ज्यादा लग जाता है।

हरदयाल- चल देखता हूँ कुछ दिनों तक। अगर कुछ हो सका तो चले जाना।

राम- "ठीक है बाबू जी। और बाबू जी अगर पगार थोड़ी सी बढ़ा देते तो घर का गुजारा थोड़ा सा अच्छे से चल जाता। पिछले साल से पगार नहीं बढ़ी है और खर्चे बढ़ गये हैं।

हरदयाल- हाँ हाँ, देखता हूँ इसके बारे में भी। तुम्हारी छुट्टी खतम होने के बाद जब तुम वापिस आओगे तो बढ़ा दूंगा पगार।

रामू- ठीक है बाबूजी।

हरदयाल- ठीक है। भैसों को नहला दो और बाद में खेतों में खाद डालने चलना है।

रामू- ठीक है बाबू जी।

हरदयाल वापिस आकर अखबार पढ़ने लगता है। रूबी और कमलजीत वापिस किचेन में आ गये थे, और खाने की तैयारी कर रहे थे।

कमलजीत- क्या कह रहा था रामू?

हरदयाल- कुछ नहीं वही छुट्टी का रोना और पगार बढ़ाने का बोल रहा था।

कमलजीत- इन लोगों का यही इश्यू होता है। छुट्टी दे दो घर जाना है। पगार बढ़ा दो।

हरदयाल- हाँ, वो तो है। पर इतना है की रामू काफी टाइम से काम कर रहा है और सबसे बड़ी बात ईमानदार भी

कमलजीत- हाँ जी यह तो है।
 
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