Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान - Page 4 - SexBaba
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Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान

बिन बुलाया मेहमान-13

गतान्क से आगे……………………

मैं असमंजस में पड़ गयी. चाचा ने मुझे सोच में डूबा देख मेरा हाथ पकड़ कर झट से अपने लिंग पर रख दिया. मुझे एक दम से करंट सा लगा.मैने तुरंत अपना हाथ खींच लिया, "कामीने देहाती तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई."

"हिला दे ना थोड़ा सा. तेरा क्या बिगड़ जाएगा." चाचा ने फिर से मेरा हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रख दिया. और ज़ोर से उसे वही टिकाए रखा.

मैं अब ज़्यादा देर ड्रॉयिंग रूम में नही रुकना चाहती थी. मेरे शरीर पर एक भी कपड़ा नही था. इसलिए मेरे दिल में घबराहट बढ़ती जा रही थी. इसलिए इसबार मैने चाचा के लिंग से अपना हाथ नही हटाया. मुझे हाथ खींचने की कोशिश ना करते देख चाचा ने मेरा हाथ छोड़ दिया.

मैने चाचा के लिंग को अच्छे से हाथ में पकड़ लिया ताकि उसका हस्त मैथुन कर सकूँ. मेरे हाथ में उसका लिंग ऐसा लग रहा था जैसे कि मैने कोई मोटी मूसल पकड़ रखी हो या फिर कोई मोटा हठोड़ा पकड़ रखा हो.

"देखो मैं पहली और आखरी बार कर रही हूँ. मैं दुबारा ऐसा नही करूँगी."

"कल मैं वैसे भी यहाँ से जा रहा हूँ. दुबारा हम शायद ही मिले."

मैने चाचा के लिंग पर हाथ आगे पीछे करना शुरू कर दिया. पहली बार मेरे हाथ मेरे पराए मर्द का लिंग था वो भी इतना भारी भरकम. इतने लंबे और मोटे लिंग की मैने कभी कल्पना भी नही की थी. मगर अब ऐसा लिंग मेरे हाथ में था और मैं उसे हिला रही थी.

काफ़ी देर तक मैं उसके लिंग को हिलाती रही. मेरा हाथ भी दर्द करने लगा.

"कितना टाइम लगेगा तुम्हे."

"मुझे मज़ा नही आ रहा. मैं भी अपने सारे कपड़े उतार देता हूँ. फिर शायद कुछ बात बने."

"तू पागल है क्या देहाती. ऐसे में गगन आ गया तो. मेरी तो जींदगी बर्बाद हो जाएगी ना. हम दोनो एक साथ नंगे नही हो सकते."

"पर मुझे मज़ा नही आ रहा. कपड़े उतार कर जल्दी हो जाए शायद." चाचा ने अपनी कमीज़ उतारते हुए कहा. मैं चुपचाप उसके लिंग को हिलाती रही. मुझे जल्द से जल्द वहाँ से निकलना था इसलिए चुपचाप उसका लिंग हिलाती रही. चाचा ने अपना पायज़मा पहले ही नीचे सरका रखा था. उसने एक झटके में वो भी उतार दिया और अपना अंडरवेर भी उतार दिया. इस दौरान मेरे हाथ से उसका लिंग छूट गया. खुद हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ने की मुझमे हिम्मत नही हुई. मैं मन ही मन सोच रही थी कि इसे हस्त मैथुन करवाना है तो खुद पकड़ाए मेरे हाथ में....मुझे क्या लेना देना.

मगर मेरे होश तब उड़ गये जब वो मुझसे लिपट गया. मेरा नंगा जिस्म उसकी बाहों में था. मैं बुरी तरह छटपटाने लगी पर वो नही माना. उल्टा उसने मेरी गर्दन को चूमना शुरू कर दिया. उसके हाथ मेरे चुतडो पर थे.

हाथों से मेरे नितंबों पर दबाव बना कर वो मुझे अपनी और खींच रहा था.

"छोड़ मुझे देहाती. ये क्या बदतमीज़ी है. अब मैं सच में गगन को आवाज़ लगाने जा रही हूँ."

"लिपटा रहने दे थोड़ी देर मुझे अपने मखमली बदन से. मेरा पानी शांति से निकल जाएगा."

देहाती का लिंग मेरी योनि के ठीक उपर मेरे पेट से टकरा रहा था. उसके बदन पर बहुत घने बाल थे. ऐसा लग रहा था जैसे की वो कोई भालू हो. उसके घने बाल मेरे नाज़ुक बदन पर चुभ रहे थे. ख़ासकर उसकी छाति का जंगल मेरे उभारों को बहुत परेशान कर रहा था.

"छोड़ दो मुझे तुरंत नही तो बहुत बुरा होगा तुम्हारे साथ."

"बुरा तो हो ही रहा है मेरे साथ. मेरा लंड तड़प रहा है पर पानी छोड़ने का नाम नही ले रहा. कुछ और देर ऐसा ही रहा तो मेरी जान चली जाएगी."

"चुप कर देहाती ऐसा क्या जान जाती है किसी की."

"तुमने शायद जानकारी नही पर कुछ लोग मरे हैं इस अवस्था में."

"तो तुम जल्दी से अपने हाथ से हिला हिला कर निकाल दो ना."

"तुम्हारे हाथ से फ़ायडा नही हुआ कुछ. मेरे हाथ से क्या खाक फ़ायडा होगा."

"इसका मतलब कोई इलाज नही है इस प्राब्लम का."

"दो इलाज हैं. या तो तुम इसे मूह में ले लो या फिर मुझे अपना लंड तुम्हारी चूत पर रगड्ने दो."

"बकवास कम कर देहाती...इनमे से कोई काम नही करने दूँगी मैं.""मूह में मत ले पर थोड़ा अपनी चूत पर तो रगड़ लेने दे. तेरी चूत की गर्मी से ये तुरंत निढाल हो जाएगा."

"तुम्हे पता है हम कहाँ हैं. हम ड्रॉयिंग रूम में हैं. गगन को अगर अहसास हो गया कि मैं उसके साथ नही हूँ तो हम दोनो पर मुसीबत आ सकती है. यहा अंधेरा सही पर अंधेरे में भी वो हमें देख सकता है."

"तभी कहता हूँ. मेरे कमरे में चल. वहाँ बिस्तर पर आराम से लेटा कर चूत रागडूंगा तेरी."

"क्या मतलब?" मैने ज़ोर से उसके मूह पर थप्पड़ मार कर कहा. वो बेचारा मेरी हर गाली और मार सह रहा था.

"बाहर बाहर से रागडूंगा. अंदर से नही."

"जो भी हो मुझे मंजूर नही कमरे में जाना."

"चल फिर सोफे के पास चलते हैं. सोफे के पास जो कालीन बिछा है उस पर लेट जाते हैं"

"मैं तुम्हारे साथ नही लेटुंगी समझे. अपना मूह धो कर आओ...देहाती कही के. नीच गँवार."

"अरे बस थोड़ी देर की बात है. वहाँ सोफे की औट में हम छुपे रहेंगे."

"पर मैं तुम्हारे इसको वहाँ नही च्छुने दूँगी."

"अच्छा एक काम करते हैं. मैं तुम्हारी चूत में उंगली घीसूँगा और दूसरे हाथ से अपना हिलाता रहूँगा. ऐसे बात बन जाएगी. ऐसे मूठ मारने में बहुत मज़ा आता है."
 
उंगली की बात सुन कर मेरी योनि भड़क उठी. मगर मैं सोच में पड़ गयी की सोफे की औट में जाना ठीक होगा कि नही.

हाथ पकड़ लिया और मुझे सोफे की तरफ खींचता हुआ बोला, "जल्दी चल...इस से पहले की गगन जाग जाए मुझे मेरा पानी निकाल लेने दे."

"रूको कपड़े उठा लेते हैं यहाँ से."

"ओह हां उठा लो."

मैने अपनी ब्रा,पॅंटीस, कमीज़ और सलवार फर्श से उठा ली. चाचा ने भी अपने कपड़े उठा लिए और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींच कर सोफे के पास ले आया.

थ्री सीटर सोफे के सामने जो टेबल रखी थी चाचा ने वो थोड़ी सरका दी और बोला, "लेट जाओ तुम. मैं आराम से बैठ कर उंगली करूँगा चूत में."

इतनी गंदी बाते सुनना मुझे अजीब सा लग रहा था मगर मैं सुने जा रही थी.

"अरे लेट ना देर मत कर." चाचा ने मेरे कंधे पर दबाव डालते हुए कहा.

मैं चुपचाप बिना कुछ कहे नीचे कालीन पर लेट गयी. मेरे लेटते ही चाचा मेरी टांगे चौड़ी करके उनके बीच बैठ गया. मेरे बाईं तरफ थ्री सीटर सोफा था, बाईं तरफ टेबल थी. मेरे सर की तरफ टू सीटर सोफा था और मेरे पाओं की तरफ भी एक टू सीटर सोफा था. सोफे के पीछे जो दीवार थी वो मेरे बेडरूम की दीवार थी जिसके पीछे मेरा पति सोया हुआ था.

"डाल दूं."

"क्या डालने की बात कर रहे हो."

"उंगली और क्या. मगर उस से पहले एक बार मुझे तेरे उपर लेट जाने दे." चाचा टांगे फैला कर मेरे उपर पसर गया. उसका लिंग मेरी योनि के ठीक उपर था.

"ये क्या कर रहे हो हटो. जो काम करना है वो करो. मेरा वक्त बर्बाद मत करो."

"थोड़ी देर तो ये अहसास पा लेने दे की मैं तेरे उपर चढ़ कर तेरी चूत मार रहा हूँ. ये अहसास मेरा पानी निकालने में मदद करेगा."

"तू एक नंबर का कमीना है देहाती. नीच है..सूअर है. बोलता कुछ है करता कुछ है."

अचानक चाचा ने दोनो हाथो से मेरा मूह ढक लिया और अपनी कमर को उपर करते हुए अपने लिंग के सूपदे को मेरी योनि पर टिकाने की कोशिश करने लगा. क्योंकि उसके दोनो हाथ मेरे मूह पर थे इसलिए उसे दिक्कत आ रही थी. मगर अगले ही पल मेरे होश उड़ गये. मेरी साँस अटक गयी. ज़ोर से चीखना चाहती थी पर मेरे मूह को देहाती ने ज़ोर से बंद कर रखा था. चाचा के लिंग का मोटा सूपड़ा मेरी योनि के छोटे से छिद्र में फँस गया था. चाचा ने बड़ी चालाकी से उसे वहाँ फसाया था. मेरी आँखो से आँसू निकलने लगे और मैं छटपटाने लगी. मैं उसके मूह पर कमर पर हर जगह मुक्के मार रही थी. पर देहाती टस से मस नही हुआ. कुछ देर वो अपने सूपदे को यू ही मेरी योनि में फँसाए पड़ा रहा. बिल्कुल भी नही हिला. ना ही मुझे हिलने दिया. मेरा दर्द कब गायब हो गया मुझे पता ही नही चला.

चाचा ने मेरे मूह पर से अपने हाथ हटा लिए और बोला, "धीरे धीरे डालूँगा चिंता मत कर."

"गगन........" मैं ज़ोर से चिल्लाई.

चाचा ने तुरंत मेरा मूह दोनो हाथो से फिर से दबोच लिया.

"चुप कर. तुझे भरपूर मज़ा आएगा. बस थोड़ी देर रुक जा." चाचा ने ये बोल कर एक ज़ोर का धक्का मारा और चाचा का सूपड़ा मेरी योनि को चीरता हुआ अपने पीछे आधा लिंग भी मेरे अंदर ले आया. मेरा फिर से बुरा हाल हो गया. मैं उसे कहना चाहती थी कि और ज़्यादा मेरे अंदर मत डालना नही तो मैं मर जाउन्गि. पर मेरा मूह उसने दबोच रखा था. मैं थोड़ी देर छटपताई. जब दर्द हट गया तो मैं शांत हो गयी. मुझे शांत देख चाचा की हिम्मत बढ़ गयी और उसने ज़ोर से एक और धक्का मारा और चाचा का पूरा का पूरा लिंग मेरी योनि के अंदर उतर गया. मुझे इस बात का पता एक बात से लगा. मेरी योनि के द्वार से ठीक नीचे चाचा के अंडकोष टकरा रहे थे. मुझे बहुत ज़्यादा आश्चर्या हो रहा था कि चाचा का इतना लंबा और मोटा लिंग पूरा मेरी छोटी सी योनि में समा गया था. मुझे बहुत दर्द हो रहा था. मैं छटपटा भी रही थी पर असचर्या ने मुझे इस कदर घेरा हुआ था की मैं सब कुछ भूले पड़ी थी चाचा के नीचे.

क्योंकि मुझे यकीन नही हो रहा था इसलिए मैने अपना हाथ अपनी योनि तरफ बढ़ाया. मैने अपनी योनि के छिद्र के ठीक नीचे अपनी उंगलियों से च्छू कर देखा था चाचा के अंडकोष को वहाँ टीके पाया. मैने तुरंत अपना हाथ वापिस खींच लिया.

"क्या हुआ मेरी जान. च्छू ले ना मेरे आँड को. देख पूरा का पूरा घुसा रखा है तेरी चूत में मैने. बड़े नखरे कर रही थी तू. अब देख तेरा क्या हाल करता हूँ मैं. तेरी चूत का कचूमर ना निकाल दिया तो मेरा नाम बदल देना." चाचा ने ये बोल कर ज़ोर से अपने लिंग को बाहर की तरफ खींचा फिर ज़ोर से दुबारा अंदर धकेल दिया. मैं चाह कर भी चीन्ख ना पाई. कुछ देर वो यू ही करता रहा.

क्रमशः……………….
 
बिन बुलाया मेहमान-14

गतान्क से आगे……………………

मैं उसके मूह पर बार बार थप्पड़ मार रही थी पर वो बिल्कुल नही रुक रहा था.

जल्दी ही मुझे संभोग के असीम आनंद ने घेर लिया और मैं मदहोश होकर सिसकिया भरने लगी. चाचा मेरी हालत समझ गया. उसने मेरे मूह से हाथ हटा लिया और रुक कर बोला, "ज़्यादा ज़ोर से अयाया ऊओ मत करना. नही तो पकड़े जाएँगे...हहेहहे."

मैं कुछ भी नही बोल पाई. शरम से मेरी आँखे बंद हो गयी.

चाचा का लिंग अब बड़े आराम से बिना किसी रुकावट के अंदर बाहर हो रहा था.

मेरी साँसे उखड़ रही थी. चाचा की स्पीड बढ़ती ही जा रही थी. और फिर अचानक चाचा ने एक ऐसा तूफान मचाया जिसमे मैं उलझती चली गयी. वो बहुत ज़ोर ज़ोर से मेरी योनि को छेद रहा था. हर बार उसका लिंग और ज़्यादा गहरा जाता मालूम हो रहा था. मैने कालीन को मुट्ठि में लेने की कोशिश की. पर बात नही बनी. मैने ज़ोर से दाँत भींच लिए. मैं खुद को चिल्लाने से रोक रही थी क्योंकि एक तूफ़ानी ऑर्गॅज़म मेरे उपर छाने वाला था. और अचानक मैं झाड़ गयी. मगर चाचा की रफ़्तार कम नही हुई. वो पूरे जोश में मेरे अंदर धक्के पे धक्के लगाए जा रहा था. वो सच में मेरी योनि का कचूमर बना रहा था. कब मैं दुबारा झाड़ गयी मुझे पता ही नही चला पर चाचा की स्पीड कम नही हुई.

"बस करो अब. मैं थक गयी हूँ. रुक जाओ." मुझे बोलना ही पड़ा.

"बस थोड़ी देर और मार लेने दे मेरी रानी. बस थोड़ी देर और. क्या मैं तेरे होंटो को चूम लूँ."

"नही...." मैने चेहरा घुमा लिया

"चूम लेने दे ना इन अंगरों को क्यों चेहरा घुमा रही है." चाचा रुक कर बोला.

चाचा ने हाथ से मेरा चेहरा सीधा किया और अपने होन्ट मेरे होन्ट पर रख दिए. उसकी मूछ मेरे उपरे होन्ट से टकराई तो मैने तुरंत उसे हटा दिया.

"हटो...दुबारा मत करना ऐसा."

मगर चाचा ने फिर से मेरे होंटो पर होन्ट रख दिए और साथ ही फिर से मेरी योनि में धक्के लगाने शुरू कर दिया. योनि को मिल रहे धक्को के कारण मैं मदहोशी में डूबती चली गयी और मैं भी चाचा को चूमने लगी. अचानक चाचा एक दम रुक गया और बस मेरे होंटो को ही चूसना जारी रखा. मैं भी सहयोग देती रही.

"मज़ा आ गया यार. तू तो एक दम मस्त माल है. बड़े प्यार से चूत मरवाती है तू बस एक बार कोई डाल दे तेरी चूत में लंड."

"ऐसा कुछ नही है. तुमने धोके से किया है ये सब."

"चल जो भी है. तेरी चूत तो ले ही ली. जींदगी भर याद रखूँगा मैं तेरी ये चुदाई."

चाचा ने फिर से स्पीड पकड़ ली और मैं दाँत भींच कर फिर से झाड़ गयी. वो यू ही लगा रहा. बार बार मेरी योनि में लिंग धकेल्ता रहा.

अचानक उसकी स्पीड और ज़्यादा बढ़ गयी. मेरा शरीर काँपने लगा और साँसे उखाड़ने लगी. अचानक मुझे अपनी योनि में गरम गरम महसूस हुआ. मैं समझ गयी की चाचा झढ़ रहा है. मैने राहत की साँस ली. चाचा मेरे उपर ढेर हो गया. हम दोनो पसीने पसीने हो गये थे.

कुछ देर यू ही पड़ा रहा चाचा. फिर उसने धीरे से मेरी योनि से अपना लिंग निकाल लिया और अपने कपड़े उठा कर चुपचाप टाय्लेट की तरफ बढ़ गया. मैने भी तुरंत अपने सारे कपड़े पहन लिए. संभोग की खुमारी की जगह अब मुझ पर शरम और ग्लानि हावी हो रहे थे. मेरी आँखे टपक गयी और मैं घुटनो में सर छुपा कर सुबकने लगी.

चाचा कपड़े पहन कर टाय्लेट से बाहर आया और मेरे सर पर हाथ रख कर बोला, "क्या हुआ ऐसे क्यों बैठी हो."

"दूर हटो मुझसे देहाती" मैं ज़ोर से चिल्लाई.

"रस्सी जल गयी पर बल नही गये. तेरी चूत फाड़ दी है मैने. सीलवानी हो तो मेरे कमरे में आ जाना." चाचा बोल कर वहाँ से चला गया.

मैं अपने में गुम्सुम वहाँ बैठी रही. मेरा सब कुछ लूट चुका था. मैं कुछ सोफे पर ही अंधेरे में बैठी रही. मैं बहुत थकि थकि महसूस कर रही थी. हो भी क्यों ना जालिम ने मेरी जान निकाल दी थी. आँसू थे कि टपके ही जा रहे थे. मगर रोने से क्या हो सकता था. जो होना था वो तो हो ही चुका था. मैं धीरे से सोफे से उठी तो मेरी टांगे काँप रही थी. खड़े होने पर मेरे योनि द्वार से चाचा का वीर्य रिस्ता हुआ मेरी जाँघो तक आ गया और मेरी पॅंटीस और सलवार को गीला कर दिया. मैं बेडरूम में आई चुपचाप और गगन के बाजू में आकर लेट गयी. क्योंकि पॅंटीस और सलवार थोड़ी गीली हो गयी थी इसलिए मैने उन्हे बदलने का फ़ैसला किया. मगर गगन गहरी नींद सोया था. मैं दूसरे कपड़े निकालने के लिए आल्मिरा खोलती तो वो उठ जाता.

तभी मुझे ध्यान आया कि मैने शाम को अपनी नाइटी निकाली थी आल्मिरा से. उसमे माइनर सी सीलाई करनी थी. वो एक जगह से मामूली उधाड़ गयी थी. मैने अपने कपड़े निकाल कर वो पहन ली और वापिस बिस्तर पर लेट गयी.

बिस्तर पर पड़े पड़े बहुत देर तक मैं चाचा को कोस्ती रही. कब मुझे नींद आ गयी मुझे पता ही नही चला.

सुबह मेरी आँख तब खुली जब मुझे अपने उपर भार महसूस हुआ. मेरी नाइटी मेरे नितंबो से उपर उठी हुई थी और मेरे नितंबो की दरार में कुछ फँसा हुआ था. मैं नींद की खुमारी में थी. एक तो देर से सीई थी उपर से पूरा शरीर टूटा हुआ था. मुझमे उठने की और आँख खोलने की हिम्मत नही थी. खोल ही नही पा रही थी आँखे. नशा ही कुछ ऐसा था नींद का.

मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं कोई सपना देख रही हूँ. अचानक दो हाथो ने मेरे नितंब के दोनो गुम्बदो को एक दूसरे से दूर कर कर दिया. फिर मुझे अपने पीछले छिद्र पर गीला गीला महसूस हुआ. मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या हो रहा है. ये सपना है या हक़ीक़त मुझे कुछ समझ नही आ रहा था.

जब मेरे पीछले छिद्र पर मोटी सी चीज़ रख दी गयी तो मेरी नींद टूट गयी.

"गगन हट जाओ. तुम तो यहाँ कभी नही डालते आज क्या हो गया तुम्हे. अभी मुझे नींद आ रही है. ये सब करना ही है तो बाद में कर लेना. अभी नही प्लीज़."

मगर मेरी बात का कोई असर नही हुआ. मेरे छिद्र पर लिंग टिका रहा. मैने हाथ पीछे करके लिंग को पकड़ लिया, ताकि उसे अपने होल के उपर हटा सकूँ.

तुरंत मुझे 1000 वॉल्ट का करेंट लगा. मेरे हाथ में बहुत मोटा लिंग था. बिल्कुल चाचा के लिंग जैसा.

"ओह नो देहाती तू यहाँ क्या कर रहा है. गगन....गगन." मैने ज़ोर ज़ोर से गगन को आवाज़ दी.

"गगन सैर करने गया है मेरी जान. चल थोड़ी मस्ती करते हैं."

"कुत्ते, सुवर...हट जा तुरंत नही तो अंजाम बुरा होगा."

"जैसे तूने कल रात चूत दी प्यार से. ये गान्ड भी दे दे. मैं धन्य हो जाउन्गा.

इतनी खूबसूरत गान्ड मैने आज तक नही देखी. बहुत सुडौल और मांसल है तेरी गान्ड. मगर इतनी मोटी भी नही है कि तूल तुली लगे. सबसे बड़ी बात ये है कि इस पर एक भी दाग या धब्बा नही है. अक्सर गान्ड के छेद के पास का हिस्सा काला होता है मगर तेरे छेद के साथ ऐसा नही है. सोने की तरह चमकता है तेरे छेद के पास का हिस्सा."

मुझे इतनी तारीफ़ अच्छी तो लग रही थी मगर शरम भी आ रही थी की ये क्या बोल रहा है. लेकिन मैं दुबारा उसके जाल में नही फसना चाहती थी.

"हट जा सुवर मेरे उपर से. दफ़ा हो जा अपने गाओं."

"इस सुवर को ये अनमोल गान्ड भी मार लेने दे. तेरी गान्ड का गुलाबी छेद मेरे लंड को बुला रहा है."

मैं ज़ोर से छटपताई और चाचा को अपने उपर से हटा कर बिस्तर पर बैठ गयी.

अपनी नाइटी भी मैने टाँगो तक वापिस खींच ली थी.

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे कमरे में आने की."

"देख तेरी चूत तो ले ही चुका हूँ. बस ये गान्ड भी दे दे. तू भी चाहती है इसे अपनी गान्ड में बस झीजक रही है." चाचा ने अपने लिंग के मोटे सुपाडे पर हाथ फिराते हुए कहा.

"कुत्ते के मूह हड्डी का लग गयी आदत खराब हो गयी. तुमने ज़बरदस्ती की मेरे साथ रात को. मैं तुम्हे जैल में डलवा सकती हूँ. एक मिनिट के अंदर यहाँ से नही गये तो तुरंत पोलीस को फोन घुमा दूँगी."

चाचा मेरी ये बात सुन कर घबरा सा गया और बिस्तर से उठ कर नीचे खड़ा हो गया. अपना लिंग भी उसने अंदर डाल लिया. अचानक उसने अपने कुर्ते की जेब से एक सोने का हार निकाला और मेरे उपर फेंक कर बोला, "ये ले मेरी रखैल की बाक्सिश."

बोल कर वो तुरंत बाहर जाने को मूड गया.

"कुत्ते मैं तेरी रखैल नही हूँ. ज़ुबान पर लगाम रख."

चाचा के जाने के बाद मैने सोने के हार को उठा कर देखा. देखने से ही

बहुत कीमती लगता था. इतना कीमती हार मैने आज तक नही पहना था. मगर मैं वो हार नही रख सकती थी. मैं बिस्तर से उठी और गुस्से में चाचा के पीछे पीछे उसके कमरे तक आ गयी. वो अपना बेड तैयार कर रहा था. मैने हार उसके उपर फेंका और बोली, "तू ही रख ये सोने का हार. मुझे इसकी कोई ज़रूरत नही है.

मेरा पति मुझे खूब देता है."

"पर तू मेरी रखैल है. कुछ तो तुझे देना ही होगा ना हहहे." वो मुझे जान बुझ कर नीचा दिखा रहा था.

"तुझे कुत्ते की मौत देंगे भगवान." मैने तिलमिला कर कहा और अपने बेडरूम में वापिस आ गयी.

10 बजे तक सर दर्द का बहाना करके मैं अपने कमरे में ही पड़ी रही. नाश्ता भी नही बनाया. गगन ने मुझसे कहा कि जाते जाते चाचा से तो मिल लो. मैं बोल दिया कि मैं मिल चुकी हूँ उनसे जब तुम सैर पर गये थे.

गगन चाचा को रेलवे स्टेशन छोड़ आया. मैने सुकून की साँस ली. बिन बुलाया मेहमान जा चुका था.

तो दोस्तो ये कहानी यही ख़तम हुई फिर मिलेंगे एक नई कहानी के साथ आपका दोस्त राज शर्मा

समाप्त

"दा एंड"
 
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