hotaks444
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बिन बुलाया मेहमान-13
गतान्क से आगे……………………
मैं असमंजस में पड़ गयी. चाचा ने मुझे सोच में डूबा देख मेरा हाथ पकड़ कर झट से अपने लिंग पर रख दिया. मुझे एक दम से करंट सा लगा.मैने तुरंत अपना हाथ खींच लिया, "कामीने देहाती तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई."
"हिला दे ना थोड़ा सा. तेरा क्या बिगड़ जाएगा." चाचा ने फिर से मेरा हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रख दिया. और ज़ोर से उसे वही टिकाए रखा.
मैं अब ज़्यादा देर ड्रॉयिंग रूम में नही रुकना चाहती थी. मेरे शरीर पर एक भी कपड़ा नही था. इसलिए मेरे दिल में घबराहट बढ़ती जा रही थी. इसलिए इसबार मैने चाचा के लिंग से अपना हाथ नही हटाया. मुझे हाथ खींचने की कोशिश ना करते देख चाचा ने मेरा हाथ छोड़ दिया.
मैने चाचा के लिंग को अच्छे से हाथ में पकड़ लिया ताकि उसका हस्त मैथुन कर सकूँ. मेरे हाथ में उसका लिंग ऐसा लग रहा था जैसे कि मैने कोई मोटी मूसल पकड़ रखी हो या फिर कोई मोटा हठोड़ा पकड़ रखा हो.
"देखो मैं पहली और आखरी बार कर रही हूँ. मैं दुबारा ऐसा नही करूँगी."
"कल मैं वैसे भी यहाँ से जा रहा हूँ. दुबारा हम शायद ही मिले."
मैने चाचा के लिंग पर हाथ आगे पीछे करना शुरू कर दिया. पहली बार मेरे हाथ मेरे पराए मर्द का लिंग था वो भी इतना भारी भरकम. इतने लंबे और मोटे लिंग की मैने कभी कल्पना भी नही की थी. मगर अब ऐसा लिंग मेरे हाथ में था और मैं उसे हिला रही थी.
काफ़ी देर तक मैं उसके लिंग को हिलाती रही. मेरा हाथ भी दर्द करने लगा.
"कितना टाइम लगेगा तुम्हे."
"मुझे मज़ा नही आ रहा. मैं भी अपने सारे कपड़े उतार देता हूँ. फिर शायद कुछ बात बने."
"तू पागल है क्या देहाती. ऐसे में गगन आ गया तो. मेरी तो जींदगी बर्बाद हो जाएगी ना. हम दोनो एक साथ नंगे नही हो सकते."
"पर मुझे मज़ा नही आ रहा. कपड़े उतार कर जल्दी हो जाए शायद." चाचा ने अपनी कमीज़ उतारते हुए कहा. मैं चुपचाप उसके लिंग को हिलाती रही. मुझे जल्द से जल्द वहाँ से निकलना था इसलिए चुपचाप उसका लिंग हिलाती रही. चाचा ने अपना पायज़मा पहले ही नीचे सरका रखा था. उसने एक झटके में वो भी उतार दिया और अपना अंडरवेर भी उतार दिया. इस दौरान मेरे हाथ से उसका लिंग छूट गया. खुद हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ने की मुझमे हिम्मत नही हुई. मैं मन ही मन सोच रही थी कि इसे हस्त मैथुन करवाना है तो खुद पकड़ाए मेरे हाथ में....मुझे क्या लेना देना.
मगर मेरे होश तब उड़ गये जब वो मुझसे लिपट गया. मेरा नंगा जिस्म उसकी बाहों में था. मैं बुरी तरह छटपटाने लगी पर वो नही माना. उल्टा उसने मेरी गर्दन को चूमना शुरू कर दिया. उसके हाथ मेरे चुतडो पर थे.
हाथों से मेरे नितंबों पर दबाव बना कर वो मुझे अपनी और खींच रहा था.
"छोड़ मुझे देहाती. ये क्या बदतमीज़ी है. अब मैं सच में गगन को आवाज़ लगाने जा रही हूँ."
"लिपटा रहने दे थोड़ी देर मुझे अपने मखमली बदन से. मेरा पानी शांति से निकल जाएगा."
देहाती का लिंग मेरी योनि के ठीक उपर मेरे पेट से टकरा रहा था. उसके बदन पर बहुत घने बाल थे. ऐसा लग रहा था जैसे की वो कोई भालू हो. उसके घने बाल मेरे नाज़ुक बदन पर चुभ रहे थे. ख़ासकर उसकी छाति का जंगल मेरे उभारों को बहुत परेशान कर रहा था.
"छोड़ दो मुझे तुरंत नही तो बहुत बुरा होगा तुम्हारे साथ."
"बुरा तो हो ही रहा है मेरे साथ. मेरा लंड तड़प रहा है पर पानी छोड़ने का नाम नही ले रहा. कुछ और देर ऐसा ही रहा तो मेरी जान चली जाएगी."
"चुप कर देहाती ऐसा क्या जान जाती है किसी की."
"तुमने शायद जानकारी नही पर कुछ लोग मरे हैं इस अवस्था में."
"तो तुम जल्दी से अपने हाथ से हिला हिला कर निकाल दो ना."
"तुम्हारे हाथ से फ़ायडा नही हुआ कुछ. मेरे हाथ से क्या खाक फ़ायडा होगा."
"इसका मतलब कोई इलाज नही है इस प्राब्लम का."
"दो इलाज हैं. या तो तुम इसे मूह में ले लो या फिर मुझे अपना लंड तुम्हारी चूत पर रगड्ने दो."
"बकवास कम कर देहाती...इनमे से कोई काम नही करने दूँगी मैं.""मूह में मत ले पर थोड़ा अपनी चूत पर तो रगड़ लेने दे. तेरी चूत की गर्मी से ये तुरंत निढाल हो जाएगा."
"तुम्हे पता है हम कहाँ हैं. हम ड्रॉयिंग रूम में हैं. गगन को अगर अहसास हो गया कि मैं उसके साथ नही हूँ तो हम दोनो पर मुसीबत आ सकती है. यहा अंधेरा सही पर अंधेरे में भी वो हमें देख सकता है."
"तभी कहता हूँ. मेरे कमरे में चल. वहाँ बिस्तर पर आराम से लेटा कर चूत रागडूंगा तेरी."
"क्या मतलब?" मैने ज़ोर से उसके मूह पर थप्पड़ मार कर कहा. वो बेचारा मेरी हर गाली और मार सह रहा था.
"बाहर बाहर से रागडूंगा. अंदर से नही."
"जो भी हो मुझे मंजूर नही कमरे में जाना."
"चल फिर सोफे के पास चलते हैं. सोफे के पास जो कालीन बिछा है उस पर लेट जाते हैं"
"मैं तुम्हारे साथ नही लेटुंगी समझे. अपना मूह धो कर आओ...देहाती कही के. नीच गँवार."
"अरे बस थोड़ी देर की बात है. वहाँ सोफे की औट में हम छुपे रहेंगे."
"पर मैं तुम्हारे इसको वहाँ नही च्छुने दूँगी."
"अच्छा एक काम करते हैं. मैं तुम्हारी चूत में उंगली घीसूँगा और दूसरे हाथ से अपना हिलाता रहूँगा. ऐसे बात बन जाएगी. ऐसे मूठ मारने में बहुत मज़ा आता है."
गतान्क से आगे……………………
मैं असमंजस में पड़ गयी. चाचा ने मुझे सोच में डूबा देख मेरा हाथ पकड़ कर झट से अपने लिंग पर रख दिया. मुझे एक दम से करंट सा लगा.मैने तुरंत अपना हाथ खींच लिया, "कामीने देहाती तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई."
"हिला दे ना थोड़ा सा. तेरा क्या बिगड़ जाएगा." चाचा ने फिर से मेरा हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रख दिया. और ज़ोर से उसे वही टिकाए रखा.
मैं अब ज़्यादा देर ड्रॉयिंग रूम में नही रुकना चाहती थी. मेरे शरीर पर एक भी कपड़ा नही था. इसलिए मेरे दिल में घबराहट बढ़ती जा रही थी. इसलिए इसबार मैने चाचा के लिंग से अपना हाथ नही हटाया. मुझे हाथ खींचने की कोशिश ना करते देख चाचा ने मेरा हाथ छोड़ दिया.
मैने चाचा के लिंग को अच्छे से हाथ में पकड़ लिया ताकि उसका हस्त मैथुन कर सकूँ. मेरे हाथ में उसका लिंग ऐसा लग रहा था जैसे कि मैने कोई मोटी मूसल पकड़ रखी हो या फिर कोई मोटा हठोड़ा पकड़ रखा हो.
"देखो मैं पहली और आखरी बार कर रही हूँ. मैं दुबारा ऐसा नही करूँगी."
"कल मैं वैसे भी यहाँ से जा रहा हूँ. दुबारा हम शायद ही मिले."
मैने चाचा के लिंग पर हाथ आगे पीछे करना शुरू कर दिया. पहली बार मेरे हाथ मेरे पराए मर्द का लिंग था वो भी इतना भारी भरकम. इतने लंबे और मोटे लिंग की मैने कभी कल्पना भी नही की थी. मगर अब ऐसा लिंग मेरे हाथ में था और मैं उसे हिला रही थी.
काफ़ी देर तक मैं उसके लिंग को हिलाती रही. मेरा हाथ भी दर्द करने लगा.
"कितना टाइम लगेगा तुम्हे."
"मुझे मज़ा नही आ रहा. मैं भी अपने सारे कपड़े उतार देता हूँ. फिर शायद कुछ बात बने."
"तू पागल है क्या देहाती. ऐसे में गगन आ गया तो. मेरी तो जींदगी बर्बाद हो जाएगी ना. हम दोनो एक साथ नंगे नही हो सकते."
"पर मुझे मज़ा नही आ रहा. कपड़े उतार कर जल्दी हो जाए शायद." चाचा ने अपनी कमीज़ उतारते हुए कहा. मैं चुपचाप उसके लिंग को हिलाती रही. मुझे जल्द से जल्द वहाँ से निकलना था इसलिए चुपचाप उसका लिंग हिलाती रही. चाचा ने अपना पायज़मा पहले ही नीचे सरका रखा था. उसने एक झटके में वो भी उतार दिया और अपना अंडरवेर भी उतार दिया. इस दौरान मेरे हाथ से उसका लिंग छूट गया. खुद हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ने की मुझमे हिम्मत नही हुई. मैं मन ही मन सोच रही थी कि इसे हस्त मैथुन करवाना है तो खुद पकड़ाए मेरे हाथ में....मुझे क्या लेना देना.
मगर मेरे होश तब उड़ गये जब वो मुझसे लिपट गया. मेरा नंगा जिस्म उसकी बाहों में था. मैं बुरी तरह छटपटाने लगी पर वो नही माना. उल्टा उसने मेरी गर्दन को चूमना शुरू कर दिया. उसके हाथ मेरे चुतडो पर थे.
हाथों से मेरे नितंबों पर दबाव बना कर वो मुझे अपनी और खींच रहा था.
"छोड़ मुझे देहाती. ये क्या बदतमीज़ी है. अब मैं सच में गगन को आवाज़ लगाने जा रही हूँ."
"लिपटा रहने दे थोड़ी देर मुझे अपने मखमली बदन से. मेरा पानी शांति से निकल जाएगा."
देहाती का लिंग मेरी योनि के ठीक उपर मेरे पेट से टकरा रहा था. उसके बदन पर बहुत घने बाल थे. ऐसा लग रहा था जैसे की वो कोई भालू हो. उसके घने बाल मेरे नाज़ुक बदन पर चुभ रहे थे. ख़ासकर उसकी छाति का जंगल मेरे उभारों को बहुत परेशान कर रहा था.
"छोड़ दो मुझे तुरंत नही तो बहुत बुरा होगा तुम्हारे साथ."
"बुरा तो हो ही रहा है मेरे साथ. मेरा लंड तड़प रहा है पर पानी छोड़ने का नाम नही ले रहा. कुछ और देर ऐसा ही रहा तो मेरी जान चली जाएगी."
"चुप कर देहाती ऐसा क्या जान जाती है किसी की."
"तुमने शायद जानकारी नही पर कुछ लोग मरे हैं इस अवस्था में."
"तो तुम जल्दी से अपने हाथ से हिला हिला कर निकाल दो ना."
"तुम्हारे हाथ से फ़ायडा नही हुआ कुछ. मेरे हाथ से क्या खाक फ़ायडा होगा."
"इसका मतलब कोई इलाज नही है इस प्राब्लम का."
"दो इलाज हैं. या तो तुम इसे मूह में ले लो या फिर मुझे अपना लंड तुम्हारी चूत पर रगड्ने दो."
"बकवास कम कर देहाती...इनमे से कोई काम नही करने दूँगी मैं.""मूह में मत ले पर थोड़ा अपनी चूत पर तो रगड़ लेने दे. तेरी चूत की गर्मी से ये तुरंत निढाल हो जाएगा."
"तुम्हे पता है हम कहाँ हैं. हम ड्रॉयिंग रूम में हैं. गगन को अगर अहसास हो गया कि मैं उसके साथ नही हूँ तो हम दोनो पर मुसीबत आ सकती है. यहा अंधेरा सही पर अंधेरे में भी वो हमें देख सकता है."
"तभी कहता हूँ. मेरे कमरे में चल. वहाँ बिस्तर पर आराम से लेटा कर चूत रागडूंगा तेरी."
"क्या मतलब?" मैने ज़ोर से उसके मूह पर थप्पड़ मार कर कहा. वो बेचारा मेरी हर गाली और मार सह रहा था.
"बाहर बाहर से रागडूंगा. अंदर से नही."
"जो भी हो मुझे मंजूर नही कमरे में जाना."
"चल फिर सोफे के पास चलते हैं. सोफे के पास जो कालीन बिछा है उस पर लेट जाते हैं"
"मैं तुम्हारे साथ नही लेटुंगी समझे. अपना मूह धो कर आओ...देहाती कही के. नीच गँवार."
"अरे बस थोड़ी देर की बात है. वहाँ सोफे की औट में हम छुपे रहेंगे."
"पर मैं तुम्हारे इसको वहाँ नही च्छुने दूँगी."
"अच्छा एक काम करते हैं. मैं तुम्हारी चूत में उंगली घीसूँगा और दूसरे हाथ से अपना हिलाता रहूँगा. ऐसे बात बन जाएगी. ऐसे मूठ मारने में बहुत मज़ा आता है."