hotaks444
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हम दोनो गहरी साँसे लेते हुए अपनी सांसु को दुरस्त करने के कॉसिश कर रहे थे कि, अचानक से नज़ीबा की आवाज़ सुन कर हम दोनो एक दम से चोंक गये….”अम्मी… “
जैसे ही नज़ीबा की आवाज़ सुन कर हम दोनो को होश आया….मैं नाज़िया के ऊपेर से उठा तो नाज़िया भी एक दम से उठ कर खड़ी हो गयी….हम तीनो के फेस पर हैरानी थी….हम तीनो एक दूसरे को पलके झपकाई बिना देख रहे थे…
.” मैं वो आप नीचे नही थी….वो ऊपेर लाइट ऑन थी…वो मैं….” नज़ीबा ने लड़खड़ाती हुई आवाज़ मे कहना चाहा..कि वो नाज़िया को ढूंढते -2 ऊपेर आई है… पर वो अपनी बात पूरी नही कर पाई….और आख़िर कार नीचे चली गयी….
“समीर….” नाज़िया ने टवल पकड़ कर मेरे ऊपेर फेंकते हुए कहा…तो मुझे अहसास हुआ कि, मैं अभी तक नंगा बैठा हुआ था….और नाज़िया मुझे गुस्से से घुरती हुई नीचे चली गयी…नीचे क्या हुआ मुझे नही मालूम…और ना ही मेरी नीचे जाने की हिम्मत हुई…..अगली सुबह जब मैं तैयार होकर नीचे आया…तो मैने नाज़िया को हॉल रूम में बैठे हुए देखा…मैं उसके पास चला गया…जैसे ही नाज़िया ने मुझे देखा तो वो एक दम से खड़ी हो गयी….
नाज़िया: समीर अब क्या होगा….(नाज़िया ने घबराते हुए कहा….)
मैं:हुआ क्या है…?
नाज़िया: समीर कल इतना कुछ हो गया….और तुम पूछ रहे हो हुआ क्या है….
मैं: मेरा मतलब वो नही था…मतलब उसके बाद तुम्हारी नज़ीबा से बात हुई…
नाज़िया: नही…..और आज भी वो बिना कुछ बोले अकेली कॉलेज चली गयी है….मुझे बहुत डर लग रहा है समीर..कही कुछ गड़बड़ ना हो जाए….
मैं: कुछ नही होता तुम घबराओ नही….करते है कुछ ना कुछ….
उसके बाद हम बॅंक आ गये….उस दिन और कोई ख़ास बात ना हुई….नाज़िया नज़ीबा को लेकर बेहद पेरशान थी…पर जब हम घर पहुँचे तो, नज़ीबा घर आ चुकी थी… दो तीन दिनो तक नज़ीबा और नाज़िया के बीच कोई बात नही हुई….चोथे दिन नाज़िया ने मुझसे बात की और बताया कि, उसे अभी भी बहुत डर लग रहा है….कही नज़ीबा खुद को कुछ कर ना ले….वो खाना पीना भी ठीक तरह से नही खा रही है…..जब मैने नाज़िया से कहा कि, वो उससे बात कर ले….बात करने से मुसबीत का हल निकलेगा…तो नाज़िया ने ये कह कर सॉफ इनकार कर दिया कि, अब उसमे नज़ीबा के सामने जाने की हिम्मत भी नही है…. आख़िर कार मैने नाज़िया से कहा कि, अगर वो नज़ीबा से बात नही कर सकती….तो मैं उससे बात करता हूँ….
एक दो बार मना करने के बाद आख़िर कार नाज़िया को राज़ी होना पड़ा…इसीलिए उस दिन मैं लंच टाइम के वक़्त ही छुट्टी लेकर घर आ गया…मुझे पता था कि, नज़ीबा भी 2 बजे तक घर आ जाती है….और 2 से 6 बजे तक मुझ नज़ीबा से बात करने के लिए काफ़ी वक़्त मिल जाएगा….जब मैं 2 बजे घर पहुँचा तो, बाहर गेट को लॉक नही लगा हुआ था… इसका मतलब नज़ीबा घर आ चुकी थी….मैने डोर बेल बजाई तो थोड़ी देर बाद नज़ीबा ने गेट खोला…एक पल के लिए नज़ीबा मुझे उस वक़्त जल्दी घर मे देख कर चोंक गयी….पर फिर उसने साइड में होकर मुझे अंदर आने का रास्ता दिया….
अंदर आकर मैं सीढ़ियों के पास आकर खड़ा हो गया….नजीबा जैसे ही गेट के कुण्डी लगा कर वापिस मूडी तो, मुझे सीढ़ियों के पास देख कर झिझक गयी…और झिझकते हुए आगे बढ़ी….जैसे ही वो मेरे पास आई…तो मैने उसे कहा…”नज़ीबा क्या मैं तुमसे बात कर सकता हूँ….मुझे तुमसे बहुत ज़रूरी बात करनी है…” पर नजीबा ने मेरी बात का कोई जवाब नही दिया…और अंदर जाने लगी…. “प्लीज़ नज़ीबा एक बार मेरी बात सुन लो…सिर्फ़ दो मिनिट…” नजीबा ने पलट कर मेरी तरफ देखा ..और फिर सर नीचे करते हुए, हां में सर हिला कर अंदर चली गयी…जब मैं उसके पीछे अंदर गया तो, देखा नज़ीबा नाज़िया के रूम मे बेड पर बैठी हुई थी…..
मुझे अंदर आता देख नज़ीबा ने फॉरन ही अपने सर को झुका लिया…मैं नज़ीबा के पास जाकर बेड पर बैठ गया…..मुझे समझ नही आ रहा था कि बात कहाँ से शुरू करू.. क्या कहूँ और क्या ना कहूँ…आख़िर बहुत सोचने के बाद जो पहले अल्फ़ाज़ मेरे मुँह से निकले वो ये थे….”तुम अपनी अम्मी से बात क्यों नही कर रही हो…..?” मैने नज़ीबा की तरफ देखते हुए कहा….तो नज़ीबा ने अपना सर उठा कर मेरी आँखो में देखा तो मुझे अहसास हुआ कि उसके आँखो में नमी थी…. “इतना सब कुछ हो जाने के बाद आप को क्या लगता है….कि मुझे उनसे बात करनी चाहिए थी….”
हम दोनो गहरी साँसे लेते हुए अपनी सांसु को दुरस्त करने के कॉसिश कर रहे थे कि, अचानक से नज़ीबा की आवाज़ सुन कर हम दोनो एक दम से चोंक गये….”अम्मी… “
जैसे ही नज़ीबा की आवाज़ सुन कर हम दोनो को होश आया….मैं नाज़िया के ऊपेर से उठा तो नाज़िया भी एक दम से उठ कर खड़ी हो गयी….हम तीनो के फेस पर हैरानी थी….हम तीनो एक दूसरे को पलके झपकाई बिना देख रहे थे…
.” मैं वो आप नीचे नही थी….वो ऊपेर लाइट ऑन थी…वो मैं….” नज़ीबा ने लड़खड़ाती हुई आवाज़ मे कहना चाहा..कि वो नाज़िया को ढूंढते -2 ऊपेर आई है… पर वो अपनी बात पूरी नही कर पाई….और आख़िर कार नीचे चली गयी….
“समीर….” नाज़िया ने टवल पकड़ कर मेरे ऊपेर फेंकते हुए कहा…तो मुझे अहसास हुआ कि, मैं अभी तक नंगा बैठा हुआ था….और नाज़िया मुझे गुस्से से घुरती हुई नीचे चली गयी…नीचे क्या हुआ मुझे नही मालूम…और ना ही मेरी नीचे जाने की हिम्मत हुई…..अगली सुबह जब मैं तैयार होकर नीचे आया…तो मैने नाज़िया को हॉल रूम में बैठे हुए देखा…मैं उसके पास चला गया…जैसे ही नाज़िया ने मुझे देखा तो वो एक दम से खड़ी हो गयी….
नाज़िया: समीर अब क्या होगा….(नाज़िया ने घबराते हुए कहा….)
मैं:हुआ क्या है…?
नाज़िया: समीर कल इतना कुछ हो गया….और तुम पूछ रहे हो हुआ क्या है….
मैं: मेरा मतलब वो नही था…मतलब उसके बाद तुम्हारी नज़ीबा से बात हुई…
नाज़िया: नही…..और आज भी वो बिना कुछ बोले अकेली कॉलेज चली गयी है….मुझे बहुत डर लग रहा है समीर..कही कुछ गड़बड़ ना हो जाए….
मैं: कुछ नही होता तुम घबराओ नही….करते है कुछ ना कुछ….
उसके बाद हम बॅंक आ गये….उस दिन और कोई ख़ास बात ना हुई….नाज़िया नज़ीबा को लेकर बेहद पेरशान थी…पर जब हम घर पहुँचे तो, नज़ीबा घर आ चुकी थी… दो तीन दिनो तक नज़ीबा और नाज़िया के बीच कोई बात नही हुई….चोथे दिन नाज़िया ने मुझसे बात की और बताया कि, उसे अभी भी बहुत डर लग रहा है….कही नज़ीबा खुद को कुछ कर ना ले….वो खाना पीना भी ठीक तरह से नही खा रही है…..जब मैने नाज़िया से कहा कि, वो उससे बात कर ले….बात करने से मुसबीत का हल निकलेगा…तो नाज़िया ने ये कह कर सॉफ इनकार कर दिया कि, अब उसमे नज़ीबा के सामने जाने की हिम्मत भी नही है…. आख़िर कार मैने नाज़िया से कहा कि, अगर वो नज़ीबा से बात नही कर सकती….तो मैं उससे बात करता हूँ….
एक दो बार मना करने के बाद आख़िर कार नाज़िया को राज़ी होना पड़ा…इसीलिए उस दिन मैं लंच टाइम के वक़्त ही छुट्टी लेकर घर आ गया…मुझे पता था कि, नज़ीबा भी 2 बजे तक घर आ जाती है….और 2 से 6 बजे तक मुझ नज़ीबा से बात करने के लिए काफ़ी वक़्त मिल जाएगा….जब मैं 2 बजे घर पहुँचा तो, बाहर गेट को लॉक नही लगा हुआ था… इसका मतलब नज़ीबा घर आ चुकी थी….मैने डोर बेल बजाई तो थोड़ी देर बाद नज़ीबा ने गेट खोला…एक पल के लिए नज़ीबा मुझे उस वक़्त जल्दी घर मे देख कर चोंक गयी….पर फिर उसने साइड में होकर मुझे अंदर आने का रास्ता दिया….
अंदर आकर मैं सीढ़ियों के पास आकर खड़ा हो गया….नजीबा जैसे ही गेट के कुण्डी लगा कर वापिस मूडी तो, मुझे सीढ़ियों के पास देख कर झिझक गयी…और झिझकते हुए आगे बढ़ी….जैसे ही वो मेरे पास आई…तो मैने उसे कहा…”नज़ीबा क्या मैं तुमसे बात कर सकता हूँ….मुझे तुमसे बहुत ज़रूरी बात करनी है…” पर नजीबा ने मेरी बात का कोई जवाब नही दिया…और अंदर जाने लगी…. “प्लीज़ नज़ीबा एक बार मेरी बात सुन लो…सिर्फ़ दो मिनिट…” नजीबा ने पलट कर मेरी तरफ देखा ..और फिर सर नीचे करते हुए, हां में सर हिला कर अंदर चली गयी…जब मैं उसके पीछे अंदर गया तो, देखा नज़ीबा नाज़िया के रूम मे बेड पर बैठी हुई थी…..
मुझे अंदर आता देख नज़ीबा ने फॉरन ही अपने सर को झुका लिया…मैं नज़ीबा के पास जाकर बेड पर बैठ गया…..मुझे समझ नही आ रहा था कि बात कहाँ से शुरू करू.. क्या कहूँ और क्या ना कहूँ…आख़िर बहुत सोचने के बाद जो पहले अल्फ़ाज़ मेरे मुँह से निकले वो ये थे….”तुम अपनी अम्मी से बात क्यों नही कर रही हो…..?” मैने नज़ीबा की तरफ देखते हुए कहा….तो नज़ीबा ने अपना सर उठा कर मेरी आँखो में देखा तो मुझे अहसास हुआ कि उसके आँखो में नमी थी…. “इतना सब कुछ हो जाने के बाद आप को क्या लगता है….कि मुझे उनसे बात करनी चाहिए थी….”