desiaks
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गाड़ी चलाते हुए शादाब को अपने उपर बहुत गुस्सा अा रहा था कि वो रेशमा के साथ ना चाहते हुए भी बहक गया था। मेरी अम्मी मुझ पर कितना यकीन करती है अगर उन्हें पता चलेगा तो मुझसे हमेशा के लिए रिश्ता खत्म कर लेगी। लेकिन जो सुख आज उसे रेशमा ने दिया था वो अभी तक महसूस कर रहा था, रह रह कर उसे अपने लंड पर रेशमा की जीभ जी की रगड़ याद अा रही थी और उसका पूरा जिस्म एक अजीब सी मस्ती से भरा हुआ था।
कोई शाम को छह के आस पास शादाब घर पहुंच गया और दादा दादी आपके घर वापिस आकर खुशी से फूले नहीं समाए। आखिर अपनी मिट्टी की खुशबू अपनी ही होती हैं, ये बात दोनो अच्छी तरह से महसूस कर रहे थे। शादाब गाड़ी पार्क करने चला गया और दादा दादी दोनो नीचे बैठक में बैठ गई। उन्हें हैरानी हो रही थी कि शहनाज़ अब तक उनके पास क्यों नहीं अाई क्योंकि शहनाज़ तो हमेशा दौड़ती हुई आती थी जब भी दादा जी बाहर से आते थे। उन्हें लगा शायद सो रही होगी इसलिए नहीं अाई। दरअसल शहनाज के पूरे बदन में से हल्दी की खुशबू अा जाती और उसके बदले हुए रूप को अगर दोनो देख लेते तो उन्हें जरूर शक हो जाता। बस ये सब सोचकर शहनाज़ नीचे आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। हल्दी की खुशबू तो शादाब के बदन में भी थी लेकिन शादाब ने सुबह ही अपने बदन पर एक तेज गंध वाला परफ्यूम लगा लिया था जिससे वो बच गया था लेकिन शहनाज़ ने तो आज तक परफ्यूम नहीं लगाया था इसलिए वो नहीं लगा सकती थी। शादाब गाड़ी पार्क करके अा गया और दादा बोले:"
" बड़ी जोर से प्यास लगी है बेटा, थोड़ा पानी तो ला से मुझे, शहनाज़ नहीं अाई शायद सोई होगी बेचारी।
शादाब अपने दादा जी की बात सुनकर उपर की तरफ चल दिया तो उपर पहुंचते ही उसे सामने ही शहनाज़ नजर आईं और उसने दौड़कर शादाब को अपने गले लगा लिया। शादाब में भी शहनाज़ को अपनी बांहों में कस लिया। शहनाज़ एक पागल दीवानी की तरह उसका चूम चूमने लगी मानो सदियों के बाद उसे उसका खोया हुआ प्रेमी मिला हो। शादाब ने उसके गाल गुलाबी चूमते हुए कहा:"
" अम्मी दादा जी पानी मांग रहे हैं और आप नीचे नहीं अाई उन्हें अजीब सा लग रहा है।
शहनाज़:" कैसे जाऊ मै उनके सामने ? तूने मुझे इस लायक छोड़ा ही कहां है, मेरे बदन से उठती हुई हल्दी की खुशबू वो एक दम पहचान लेंगे और फिर मेरा चेहरा और स्टाइल पूरी तरह से बदल चुका हैं। वो क्या सोचेंगे।
शादाब:" अम्मी आप अपना मुंह ढक लेना बाकी आप मुझ पर छोड़ दो।
शहनाज़ ने अपने बेटे की बात मानते हुए दो ग्लास में पानी भरा और घूंघट निकाल कर नीचे की तरफ चल पड़ी। जैसे ही वो दादा दादी के पास पहुंच गई तो शादाब पीछे से अपना परफ्यूम का डिब्बा लिए आया और उसको हिलाते हुए कहा:"
," उफ्फ मेरा ये डिब्बा खराब हो गया शायद,
इतना कहकर उसने डिब्बे को जोर से दबा दिया तो उसमें से निकलता हुआ परफ्यूम शहनाज़ के जिस्म पर गिरने लगा और दादा दादी के मुंह से हंसी छूट गई। शहनाज़ ने ट्रे उनके आगे कर दी और दोनो के एक एक ग्लास पानी उठा लिया।
दादा जी:" हा हा हा शादाब, तूने तो डिब्बे को ठीक करने के चक्कर में शहनाज़ पर ही परफ्यूम छिड़क दिया। अरे शहनाज़ तुमने पर्दा क्यों किया हैं आज ?
शहनाज़ कांप उठी लेकिन बात को संभालते हुए बोली:"
"आप मेरे बड़े हैं ना इसलिए मैंने फैसला किया है कि अब आगे से आपसे पर्दा करूंगी।
दादी:" अरे शाहनाज तू तो हमारे लिए बेटी जैसी हैं और पहले ही तुम कौन सा पर्दा करती थी इनसे जो अब कर रही है ?
शाहनाज घबरा गई और मदद के लिए शादाब की तरफ देखा तो शादाब बोला:"
" अम्मी पर्दा इसलिए कर रही हैं क्योंकि आपके जाने के बाद कुछ औरतें अाई थी जो अम्मी को बता रही थी कि असली शर्म ती आंखो की होती हैं। बस शायद इसीलिए कर रही है।
दादा जी:" हान बेटी शहनाज़ हमारे जमाने में तो आंखो की शर्म बहुत बड़ी बात मानी जाती थी, चल अगर तुझे लगता हैं कि तुझे पर्दा करना चाहिए तो हम ज्यादा जबरदस्ती नहीं करेंगे।
दादी:" बस शहनाज हमे तो तेरी ख़ुशी चाहिए जो तुझे अच्छा लगे कर बेटी ।
शादाब:" अम्मी पर्दा करना अच्छी बात हैं लेकिन ध्यान देना कि पर्दे के चककर में कहीं दादा दादी जी की खिदमत पर असर ना पड जाए
शहनाज़ अपनी गर्दन हिलाते हुए:" मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगी कि उनकी खिदमत में कोई कमी ना आए, अगर मुझे लगा कि कोई कमी अा रही हैं तो मैं पर्दा खोल दूंगी।
शहनाज़ ने बड़ी चतुराई से इस बात की भी तसल्ली कर ली कि जब एक दुल्हन का रंग उसके उपर से पूरी तरह से उतर जायेगा तो वो आराम से पर्दा खोल सके।
शादाब:" बिल्कुल अम्मी आपको ऐसा ही करना चाहिए। अब आप खाने का कुछ इंतजाम कीजिए दादा दादी जी को भूख लगी होगी।
दादा जी:" हान बेटी खाना खाकर सो जायेंगे वैसे भी इस उम्र में इतना लंबा सफर पूरी तरह से थका देता है।
शहनाज़ और शादाब दादा जी की बात सुनकर अंदर ही अंदर खुश हो गए। शहनाज़ और शादाब दोनो उपर चले गए तो सीढ़ियों में जाते ही शादाब ने शहनाज़ को अपनी बांहों में उठा लिया तो शहनाज़ भी अपना पर्दा हटाकर उसकी आंखो में देखने लगी और बोली:"
" थैंक्स शादाब मुझे बचाने के लिए, तूने अच्छा बहाना बना दिया नहीं तो आज मै फस जाती
शादाब:" अम्मी आपको मैं कभी फसने नहीं दूंगा आप बेफिक्र रहे और खुश रहे।
शहनाज़ किचेन के पास जाकर उसकी बांहों में से उतर गई और बोली:" सुन शादाब खाना तो मैंने पहले ही बना दिया था बस सब्जी गर्म करके रोटी बना देती हूं।
कोई शाम को छह के आस पास शादाब घर पहुंच गया और दादा दादी आपके घर वापिस आकर खुशी से फूले नहीं समाए। आखिर अपनी मिट्टी की खुशबू अपनी ही होती हैं, ये बात दोनो अच्छी तरह से महसूस कर रहे थे। शादाब गाड़ी पार्क करने चला गया और दादा दादी दोनो नीचे बैठक में बैठ गई। उन्हें हैरानी हो रही थी कि शहनाज़ अब तक उनके पास क्यों नहीं अाई क्योंकि शहनाज़ तो हमेशा दौड़ती हुई आती थी जब भी दादा जी बाहर से आते थे। उन्हें लगा शायद सो रही होगी इसलिए नहीं अाई। दरअसल शहनाज के पूरे बदन में से हल्दी की खुशबू अा जाती और उसके बदले हुए रूप को अगर दोनो देख लेते तो उन्हें जरूर शक हो जाता। बस ये सब सोचकर शहनाज़ नीचे आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। हल्दी की खुशबू तो शादाब के बदन में भी थी लेकिन शादाब ने सुबह ही अपने बदन पर एक तेज गंध वाला परफ्यूम लगा लिया था जिससे वो बच गया था लेकिन शहनाज़ ने तो आज तक परफ्यूम नहीं लगाया था इसलिए वो नहीं लगा सकती थी। शादाब गाड़ी पार्क करके अा गया और दादा बोले:"
" बड़ी जोर से प्यास लगी है बेटा, थोड़ा पानी तो ला से मुझे, शहनाज़ नहीं अाई शायद सोई होगी बेचारी।
शादाब अपने दादा जी की बात सुनकर उपर की तरफ चल दिया तो उपर पहुंचते ही उसे सामने ही शहनाज़ नजर आईं और उसने दौड़कर शादाब को अपने गले लगा लिया। शादाब में भी शहनाज़ को अपनी बांहों में कस लिया। शहनाज़ एक पागल दीवानी की तरह उसका चूम चूमने लगी मानो सदियों के बाद उसे उसका खोया हुआ प्रेमी मिला हो। शादाब ने उसके गाल गुलाबी चूमते हुए कहा:"
" अम्मी दादा जी पानी मांग रहे हैं और आप नीचे नहीं अाई उन्हें अजीब सा लग रहा है।
शहनाज़:" कैसे जाऊ मै उनके सामने ? तूने मुझे इस लायक छोड़ा ही कहां है, मेरे बदन से उठती हुई हल्दी की खुशबू वो एक दम पहचान लेंगे और फिर मेरा चेहरा और स्टाइल पूरी तरह से बदल चुका हैं। वो क्या सोचेंगे।
शादाब:" अम्मी आप अपना मुंह ढक लेना बाकी आप मुझ पर छोड़ दो।
शहनाज़ ने अपने बेटे की बात मानते हुए दो ग्लास में पानी भरा और घूंघट निकाल कर नीचे की तरफ चल पड़ी। जैसे ही वो दादा दादी के पास पहुंच गई तो शादाब पीछे से अपना परफ्यूम का डिब्बा लिए आया और उसको हिलाते हुए कहा:"
," उफ्फ मेरा ये डिब्बा खराब हो गया शायद,
इतना कहकर उसने डिब्बे को जोर से दबा दिया तो उसमें से निकलता हुआ परफ्यूम शहनाज़ के जिस्म पर गिरने लगा और दादा दादी के मुंह से हंसी छूट गई। शहनाज़ ने ट्रे उनके आगे कर दी और दोनो के एक एक ग्लास पानी उठा लिया।
दादा जी:" हा हा हा शादाब, तूने तो डिब्बे को ठीक करने के चक्कर में शहनाज़ पर ही परफ्यूम छिड़क दिया। अरे शहनाज़ तुमने पर्दा क्यों किया हैं आज ?
शहनाज़ कांप उठी लेकिन बात को संभालते हुए बोली:"
"आप मेरे बड़े हैं ना इसलिए मैंने फैसला किया है कि अब आगे से आपसे पर्दा करूंगी।
दादी:" अरे शाहनाज तू तो हमारे लिए बेटी जैसी हैं और पहले ही तुम कौन सा पर्दा करती थी इनसे जो अब कर रही है ?
शाहनाज घबरा गई और मदद के लिए शादाब की तरफ देखा तो शादाब बोला:"
" अम्मी पर्दा इसलिए कर रही हैं क्योंकि आपके जाने के बाद कुछ औरतें अाई थी जो अम्मी को बता रही थी कि असली शर्म ती आंखो की होती हैं। बस शायद इसीलिए कर रही है।
दादा जी:" हान बेटी शहनाज़ हमारे जमाने में तो आंखो की शर्म बहुत बड़ी बात मानी जाती थी, चल अगर तुझे लगता हैं कि तुझे पर्दा करना चाहिए तो हम ज्यादा जबरदस्ती नहीं करेंगे।
दादी:" बस शहनाज हमे तो तेरी ख़ुशी चाहिए जो तुझे अच्छा लगे कर बेटी ।
शादाब:" अम्मी पर्दा करना अच्छी बात हैं लेकिन ध्यान देना कि पर्दे के चककर में कहीं दादा दादी जी की खिदमत पर असर ना पड जाए
शहनाज़ अपनी गर्दन हिलाते हुए:" मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगी कि उनकी खिदमत में कोई कमी ना आए, अगर मुझे लगा कि कोई कमी अा रही हैं तो मैं पर्दा खोल दूंगी।
शहनाज़ ने बड़ी चतुराई से इस बात की भी तसल्ली कर ली कि जब एक दुल्हन का रंग उसके उपर से पूरी तरह से उतर जायेगा तो वो आराम से पर्दा खोल सके।
शादाब:" बिल्कुल अम्मी आपको ऐसा ही करना चाहिए। अब आप खाने का कुछ इंतजाम कीजिए दादा दादी जी को भूख लगी होगी।
दादा जी:" हान बेटी खाना खाकर सो जायेंगे वैसे भी इस उम्र में इतना लंबा सफर पूरी तरह से थका देता है।
शहनाज़ और शादाब दादा जी की बात सुनकर अंदर ही अंदर खुश हो गए। शहनाज़ और शादाब दोनो उपर चले गए तो सीढ़ियों में जाते ही शादाब ने शहनाज़ को अपनी बांहों में उठा लिया तो शहनाज़ भी अपना पर्दा हटाकर उसकी आंखो में देखने लगी और बोली:"
" थैंक्स शादाब मुझे बचाने के लिए, तूने अच्छा बहाना बना दिया नहीं तो आज मै फस जाती
शादाब:" अम्मी आपको मैं कभी फसने नहीं दूंगा आप बेफिक्र रहे और खुश रहे।
शहनाज़ किचेन के पास जाकर उसकी बांहों में से उतर गई और बोली:" सुन शादाब खाना तो मैंने पहले ही बना दिया था बस सब्जी गर्म करके रोटी बना देती हूं।