Mastaram Stories पिशाच की वापसी - Page 2 - SexBaba
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Mastaram Stories पिशाच की वापसी

पिशाच की वापसी – 11

तभी वहां ज़ोर दार बिजली कड़कने लगी, कड़दड़…. कद्दद्ड…… कद्द्दद्ड…… कद्द्दद्ड……… कड़दड़…,
जिसकी रोशनी से जब सामने का दृश्य और ज्यादा चमका तो जावेद की रूह ने एक पल के लिए उसका साथ छोड ही दिया, सामने वह बीच में से कटे सर का शरीर खड़ा था बिलकुल उसेी स्थिति में जैसे वह कटा हुआ था, चेहरे का एक हिस्सा एक तरफ और दूसरा हिस्सा दूसरी तरफ, शायद सिर्फ़ दिखावे से संतुष्टि नहीं मिली की उसने अपनी खौफनाक हँसी को उस जगह में फैला दिया.

"आआआहा.आहहा..अहहा….."

वह भयानक हँसी उसके उसे कटे हुए चेहरे पे इतनी खौफनाक नज़र आ रही थी की जावेद ने अपनी आँखें बंद कर ली, उसके वह आधे होंठ एक तरफ हंसते हुए नज़र आ रहे थे तो सेम दूसरी तरफ भी ऐसा ही था, उसके बाद कुछ पल के लिए शांति हो गयी, जावेद को तो मन ही मन लग रहा था की किसी भी पल उसपर हमला होगा और वह आखिरी साँसें गिन रहा होगा, लेकिन जब कुछ पल के लिए कुछ नहीं हुआ तो उसने आँखें खोली, पर कोई फर्क नहीं था वह भयानक मंजर वैसे ही था, बल्कि अब और भयानक होने जा रहा था.

सामने खड़े उसे शरीर ने अपने हाथ धीरे धीरे उपर उठाने शुरू किए और अपने चेहरे के दोनों अलग हिस्से पे ले आया, और धीरे धीरे उन हिस्सों को पास लाने लगा, कुछ ही सेकेंड में वह दोनों आपस में मिल गये और जुड़ गये, जावेद ये दृश्य देख के बेहोश होने ही वाला था की तभी पास में पड़ा उसका फोन बज उठा, लेकिन जावेद तो अपनी ही दुनिया में था वह दृश्य देखने के बाद, आँखें खुली थी, दिल चल रहा था, पर उसकी रूह कहीं और ही थी, लेकिन तभी

"उठा ले फोन क्या पता मुख्तार का हो आआहाहा…अहहहः"

सामने खड़े रघु के शरीर ने फिर से भयनक आवाज़ में हंसते हुए कहा, जावेद अपनी दुनिया से बाहर आया और कुछ सेकेंड वह पहले सामने खड़ी अपनी मौत को देखता रहा फिर उसने मोबाइल की तरफ देखा जो उसके बगल में ही गिरा हुआ था और वह बज रहा था, उसने अपने कपकपाते हुए हाथ से फोन को उठाया, उसने सबसे पहले सिग्नल देखा जो की फूल था फिर नाम देखा जो अननोन था, उसका हलक सुख रहा था, जावेद ने अपने काँपते अंघुटे से अन्सर कॉल को स्लाइड किया और अपने कान से लगाया.

"हेलो, जावेद साहब, आप ठीक है ना, साहब, मेरी मानिए वहा उस जगह पे मत जाना, नहीं जाना साहब"
दूसरी तरफ से आवाज़ आई, जिसे सुन के जावेद बच्चों की तरह रोते हुए जवाब देने लगा.

"रघु, रघु तू ही है ना, मुझे बचा ले रघु मुझे बचा ले, में मरना नहीं चाहता बचा ले मुझे"

"साहब आप चिंता मत कीजिए, आपको कोई तकलीफ नहीं होगी, अभी कुछ देर पहले ही मुझे मौत मिली है अब आपको वह मौत मिलेगी"

सामने से जब ये बातें सुनी तो जावेद ने फोन कोन से हटा लिया, फोन पे वक्त देखा तो उसमें 3 बज रहे थे, फोन हाथ से गीर गया, और जावेद सामने खड़े उस रघु के शरीर को देखने लगा, उसे सब कुछ समझ में आ गया की ये वक्त का क्या खेल हुआ अभी अभी, रघु कभी उसके साथ आया ही नहीं, वह ही शैतान ही था जो हर वक्त उसके साथ था, वह रघु था जो 2 बजे मरा.

“खीखीखीखीखी"

सामने वह गर्दन उठा के ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा, इस हँसी को देख कर अब जावेद समझ गया की उसका ये आखिरी वक्त है, लेकिन वह मरना नहीं चाहता था, कोई इंसान ऐसे मरना नहीं चाहेगा जिसके मरने का किसी को कुछ पता भी ना चले.

"मुझे मत मारो, में तुम्हारे हाथ जोड़ता हूँ, क्यों मारना चाहते हो मुझे, क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा"

अक्सर इंसान मरने से बचने के लिए ये करता है, फिर उसकी मौत कोई इंसान ले रहा हो या फिर कोई शैतान, जो इस वक्त जावेद कर रहा था.

"मौत से क्या घबराना, मौत में जो मजा है वह मजा तो जिंदगी भी नहीं देती"

भयानक आवाज़ में उसने अपने कटे फटे होठों से कहा.

"लेकिन, लेकिन इंसान को मार के क्या मिलेगा, क्या कहते हो तुम"

जावेद फिर से गिड़गिडया.

"क्यों की मुझे वह चाहिए, चाहिए वह मुझे"

भयानक पिशाच से निकलती भयंकर आवाज़ ने जावेद को तो हिला के रख दिया साथ साथ वहां का वातावरण बदल गया, पेड़ तेजी से हिलने लगे, आसमान में बादल इकट्ठा होकर आपस में लड़ने लगे, ज़ोर ज़ोर से बिजली कड़कने लगी.

जावेद उसकी बातों को समझ नहीं पा रहा था, वैसे भी मौत और डर ने उसको घेर लिया था.

"ये जगह मेरी है, ये ज़मीन मेरी है, ये आसमान मेरा है और जल्द ही में इंसानियत का नाश कर के इस पूरे ब्रम्हांड को शैतान का घर बनाउंगा, शैतान का घर आहहहहहााआ..आ…."

जावेद ने जब उस शैतान की इस आवाज़ को सुना तब वह समझ गया की उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है और इंसानो के उपर कितना बड़ा खतरा मंडरा रहा है, जो शायद पूरी इंसानियत के लिए घातक होगा.

जावेद अपनी जगह पे खड़ा हुआ, जैसे ही खड़ा हुआ उपर से कुछ उसके सामने आ गिरा, वह थोड़ा घबराते हुए पीछे हो गया,

"आअहह"

उसके मुंह से डर की चीख निकल गयी, जैसे ही उसने सामने का नज़ारा ढंग से देखा तो उसको उबकाई सी आ गयी, सामने रघु की असली लाश उल्टी लटकी हुई थी, उसके पेट में से उसकी अंतड़ियां बाहर निकली हुई थी, गला कटा हुआ था उसेमें से खून बह रहा था, उसकी रिब्ब्स उसके शरीर से बाहर निकल रही थी, और उसकी आँखों में से खून निकल रहा था, तभी सामने से वह पिशाच चल के आया और उसने अपने बड़े बड़े नाखून से रघु के शरीर में से उसकी निकली अंतड़ियां बाहर निकली और उसे चबाने लगा, जावेद ये सब देख के अपने आप को रोक नहीं पाया और उसने वहां उल्टी करनी शुरू कर दी, फिर जब उसने सामने देखा की वह शैतान खाने में लगा हुवा है, उसने वहां से भागने की सोची, पर वह जैसे ही आगे थोड़ा निकला, उसके कानों में वही शैतानी पिशाच की हँसी पडी.

"खीखीखीखीखीखी, जब तक में ना कहूँ, तब तक यहाँ से कोई नहीं जा सकता"

उस रूह ने अपनी भारी आवाज़ में एक बार फिर से कहा, जिसे सुन के जावेद वहां रुक गया और पीछे घूम के उस शैतानी पिशाच को देखने लगा, दोनों एक दूसरे के आमने सामने खड़े थे.

"में इस धरती का सब कुछ हूँ, में हूँ अब इस धरती का मालिक, में, आआहाहहाः"

हाथ फैला के भारी आवाज़ में उसे पिशाच ने गुराते हुई कहा, और उसके गुराते ही आसमान में लड़ रहे बादलो ने दम तोड़ दिया और उसमें से बहता पानी धरती पे जोरों से गिरने लगा, एक ही पल में वहां ज़ोर से बारिश शुरू हो गयी.

"उपर वाले की ताक़त से बड़ा कोई नहीं होता इस पूरे ब्रम्हांड में"

जावेद ने बहुत ठहरे हुए लबज़ों में कहा, मानो डर उसके शरीर से खत्म ही हो गया हो.

"जो कुछ भी है सिर्फ़ में हूँ, सिर्फ़ में, आज तू अपनी मौत के सामने खड़ा है, अगर मेरे से बड़ा कोई है तो तुझे बचा के दिखाए"

बोलते हुए वह पिशाच धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा, और जावेद ने आज फिर कुदरत की शैतानी ताक़त को देखा, आगे बढ़ते बढ़ते उस पिशाच का शरीर जो इस वक्त रघु का था, वह धीरे धीरे बदलते हुए जावेद का हो गया.
 
पिशाच की वापसी – 12

"तुम इंसान कुछ नहीं बिगाड़ सकते मेरा, कुछ नहीं"

भारी आवाज़ में बोलते हुए उस पिशाच ने अपना हाथ उपर किया और उसने ऐसे ही इशारा किया मानो अपने नाखून से कुछ कुरेद रहा हो, हुआ भी यही जैसे ही उसने हाथ से इशारा किया वैसे ही जावेद के हाथ उसके गले पे चले गये, उसकी आँखें बाहर निकलने को हो गयी, उसके हाथ के पीछे से खून की धारा बहने लगी, जावेद को सांस लेने में तकलीफ होने लगी,

वह पिशाच आगे बढ़ता जा रहा था, उसने अपने हाथ से एक बार फिर इशारा किया और जावेद के ठीक पीछे ज़मीन से मिट्टी हटने लगी और कुछ ही सेकेंड में एक गहरा गढ़ा बन गया, फिर उसे रूह ने हाथ से एक ऐसा इशारा किया मानो धक्का दिया हो, जावेद सीधे उसे गढ्ढे में जा गिरा.

“आआआआहह"

उसके मुंह से एक जोरदार चीख निकली, जावेद पीठ के बाल उसे मिट्टी के गढ्ढे में गिरा हुआ था और उसके गले से खून बह रहा था, बारिश का पानी उस गढ्ढे में भरने लगा, जावेद की आँखें आधी खुली हुई थी, उसे सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी, उसकी आँखें बंद होती उससे पहले उसने उस काले साये को देखा जो हवा में उड़ता हुआ आया और सीधे जावेद के घुटनों पे जा गिरा …

तड्द्ड़…तद्द्द्द्द्द्दद्ड.. कर के जावेद की हड्डियाँ चूर चूर हो गयी और उसके मुंह से एक ज़ोर दार चीख निकल पडी, उसका चेहरा ज़मीन से काफी उपर उठ गया, आँखों से आँसू निकल के साइड में गिरने लगे.

"ये वक्त मेरा है, तुम इंसान मेरे गुलाम हो गुलाम"

वह पिशाच एक बार फिर अपनी उस खौफनाक आवाज़ में चिल्लाया और आसमान में एक बार फिर बिजली ने कड़कड़ाना शुरू कर दिया, उसने हाथ से इशारा किया और एक साथ ढेर सारेी मिट्टी उसे गढ्ढे में भरने लगी, जावेद का शरीर मिट्टी में धसने लगा वह अपनी गर्दन उपर कर रहा था जिससे सांस ले पाए, उसकी आँखें आधी खुली थी जिसमें वह उस पिशाच को थोड़ा थोड़ा देख पा रहा था, मौत उसके करीब थी, दहशत उसकी आँखों के सामने था लेकिन फिर भी जबान पे वह अनमोल शब्द थे,

"अल्लाह बक्श देना इसे"

जावेद इतना ही कह पाया की उस रूह ने अपना हाथ उठाया और जावेद की छाती के बीचों बीच घुसा दिया जावेद की साँसें वहीं रुक गयी, लेकिन भड़के हुए पिशाच को अभी कुछ और चाहिए था, उसने अपने हाथ को पीछे खिच के उस छाती के मास को फाड़ डाला और अपना हाथ डाल के उसमें से जावेद के लंग्ज़ को उखाड़ के बाहर निकल लिया.

"याआआआआआअ…. अहहहहहहा, अल्लाह से बड़ा है शैतान, शैतान अहाहाहहाह... में आ गया हूँ वापिस, हा, आ गया हूँ में, आहाहहा..."

वह आसमान की तरफ देख के गुर्राता रहा, उसकी आवाज़ में एक खौफ था, एक गुस्सा था और एक संदेश था की इंसान अब शैतान का गुलाम बनेगा, उस गढ्ढे में पानी और मिट्टी भरती गयी, और कुछ ही पलों में वहां कुछ नहीं बचा ना ही जावेद और ना ही वह पिशाच..

"खीखीखीखीखीखीखीखीखी"

बारिश की हँसी के साथ उस पिशाच की आवाज़ पूरे जंगल में गूँज उठी, शायद ये हँसी आने वाले वक्त में तड़पते हुए इंसानो की मौत की हँसी थी.

पिंक सूट में भागती हुई वह सीडिया चढ़ रही थी, हाथों में पहनी चूड़ियां भागने की वजह से छन छन कर रही थी, उसके सूट की चुन्नी नीचे ज़मीन पे घिसती हुई जा रही थी, चेहरे पे मासूमियत बिखर रही थी लेकिन साथ ही साथ उसपर चिंता और परेशानी की लकीरें भी थी, भागती हुई वह एक कमरे के सामने रुकी जिसका दरवाजा बंद था, उसने अपने काँपते हुए हाथ आगे बड़ा के डोर को खोला, डोर खुलते ही अंदर से एक नर्स उसकी तरफ देखती हुई बाहर निकल गयी, उसने सामने देखा तो पलंग पे वह सो रही थी बड़ी शांति से, मानो दुनिया की कोई खबर ही ना हो, उसकी आँखें बंद थी, चेहरे पे ऑक्सिजन मास्क लगा हुआ था, डोर से सामने का नज़ारा देख के उसकी आँखों से आँसू की बूंदे बाहर छलक आई, धीरे धीरे कदमों से वह रूम में एंटर हुई और बेड के पास आकर बैठ गयी…..

उसने अपने हाथ आगे बढाये और उसके माथे पे रख के उसने अपनी प्यारी सी बेहद धीमी आवाज़ में उसका नाम पुकारा.

"नीलू “………. अंशिका ने नीलू के माथे पे हाथ फेरते हुए कहा, कुछ सेकेंड बाद नीलू ने धीरे धीरे आँखें खोली और अंशिका की तरफ देख के मुस्कुराईं, अंशिका भी उसे देख के मुस्कुराईं पर उसके चेहरे पे अभी भी एक परेशानी, दुख दिखाई दे रहा था.

"नीलू सब ठीक हो जाएगा, प्लीज़ तुम हिम्मत रखो"

बोलते हुए अंशिका का गला भारी हो गया.

अंशिका की बात सुन के नीलू की आँखों से आँसू निकल के साइड से होता कहीं खो गया, नीलू ने अपने काँपते हाथों से फेस पे लगा मास्क हटा दिया.

"हा……."

नीलू ने एक गहरी सांस ली और फिर अंशिका को देखती हुई उसके चेहरे पे हल्की सी मुस्कान आ गयी.

"अंशिका"

नीलू ने इतना ही कहा की उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी,"

"नीलू, डॉक्टर..!!

अंशिका चिल्लाई.

"नहीं, नहीं प्लीज़ अंशिका अब नहीं, मुझे तुझसे ही बात करनी है, ज्यादा टाइम नहीं है मेरे पास"

बोल के नीलू अंशिका को घूरने लगी, अंशिका के कानों में नीलू की कही हुई बातें घूमने लगी

"नहीं नीलू ये क्या बोल रही हो, तुम्हें कुछ नहीं होगा प्लीज़ ऐसा मत बोलो"

बोलते हुए उसने नीलू का हाथ पकड़ लिया, उसकी आँखों से आँसू एक बार फिर बाहर आने लगे.

"नहीं अंशिका, शायद ये सही वक्त है, वह मुझे याद कर रहा है बहुत और उसे ज्यादा में..."

बोलते हुए उसे प्यारे चेहरे पे दुख की परछाई छा गयी और आँखों से वह प्यार के कुछ अनमोल याद बाहर आ गयी, शायद दुख था, बिछड़ने का.

"नहीं नीलू वह कभी नहीं चाहेगा, की तू उसके पास आये, हि ऑल्वेज़ वांटेड यू टू बी हॅपी, प्लीज़ तू ऐसा मत कर, प्लीज़ हम सब का क्या होगा नीलू प्लीज़"

रोते हुए अंशिका ने नीलू को समझाया.
 
पिशाच की वापसी – 13

"हम दोनों ध्यान रखेंगे सबका, में और नहीं सहन कर सकती ये तन्हाई, मेरा दिल बिखरता जा रहा है अंशिका में क्या करूँ, में क्या करूँ"

नीलू ने बोलते हुए आँखें बंद कर ली, आँखों से उन कीमती यादों को बाहर निकालने में उसे बेहद तकलीफ हो रही थी.

"हम है तुम्हारे साथ, प्लीज़ अपने आप को संभालो, सब ठीक हो जाएगा"

अंशिका का गला भारी हो गया था, उसकी प्यारी सी आँखें असीम दुख को बाहर निकाल रही थी, कुछ देर वह बस ऐसे ही नीलू के माथे को सहलाती रही, कमरे में सिर्फ़ उन मशीनो की आवाज़ आ रही थी जो लगी हुई थी, पर तभी नीलू ने आंखें खोली.

"मुझसे वादा कर अंशिका, प्रॉमिस कर, उसे कभी पता नहीं चलना कहिए की क्या हुआ हमारे साथ, उसपर कभी उसका असर नहीं पड़ने देगी, उसे कभी नहीं पता चलने देगी की वह कौन है, में कौन हूँ, उसको इस जगह से इतनी दूर ले जाना की कभी इस जगह का जिक्र ना हो, मुझे प्रॉमिस कर अंशिका, प्लीज़, प्लीज़.."

बोलते हुए नीलू का गला भारी होने लगा.

"नहीं नीलू, में नहीं कर सकती, प्लीज़, मेरे पास इतनी ताक़त नहीं है"

अंशिका ने अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए कहा,

"तुम्हें कुछ नहीं होगा, यू हॅव टू लाइव, तुम ऐसा नहीं कर सकती"

अंशिका ने नीलू को देखते हुए कहा.

"तुम्हें मुझसे ये प्रॉमिस करना होगा, उसके लिए अंशिका, उसके लिए, जिसने तुम्हें अपनी जिंदगी बनाया, उसके लिए, जिसे तुम प्यार करती थी, प्रॉमिस करो मुझसे"

नीलू ने अंशिका की तरफ अपना दूसरा हाथ आगे बढ़ाया, अंशिका उसे देखते रोती रही, कुछ कह नहीं पाई, बस उसने भी अपना हाथ आगे बढ़ाया और नीलू के हाथ के उपर रख दिया, एक ऐसा वादा ले लिया जिसे अब उसे निभाना था, दोस्ती के लिए, प्यार के लिए, खुशी और जिंदगी के लिए.

"में प्रॉमिस करती हूँ नीलू, में प्रॉमिस करती हूँ, कभी कुछ नहीं पता चलेगा, कभी कुछ नहीं"

बोलते हुए अंशिका आगे बड़ी और उसने नीलू के माथे पे अपने होंठ सजा दिए, शायद आखिरी कुछ पल बेहद प्यारे होते हैं किसी अपने के साथ के, अंशिका जानती थी की आने वाले कुछ ही पलों में क्या होगा.

नीलू ने अपनी आँखें बंद कर ली,

"में आ रही हूँ ‘हर्ष’, आ रही हूँ में तेरे पास हमेशा के लिए, आ रही हूँ आअ"

एक लंबी सांस भरते हुए नीलू ने अपनी आँखें नहीं खोली.

"नीलुऊऊ……."
रोते हुए अंशिका ज़ोर से चिल्लाई, नीलू को हिलाने लगी, लेकिन उसे पता था इस प्यार के आगे जिंदगी नहीं रही.

"अंशिका"कमरे के डोर पे खड़े होकर उसने आवाज़ लगाई, अंशिका फौरन पीछे मुड़ी और उसे देखकर भागते हुए उसके गले जा लगी.

"सीड, नीलू आह… नीलू"

अंशिका इतना ही कह पाई और फिर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी.

सीड भी सामने देख रहा था, जहाँ नीलू निढाल पडी थी, आँखें बंद कर के एक बहुत गहरी नींदमें, एक ऐसी नींद जहाँ से कोई उठ के वापिस नहीं आता, सीड की आँखों से भी आँसू छलक आए और उसने अंशिका को और कस के अपने में समेट लिया.

“चाहती बहुत हूँ तुझे इसलिए ये जिंदगी भी बेकार लग रही है, प्यार को मिलने में आ रही हूँ, जिंदगी को छोड के"

नीलू की डायरी में आखिरी लाइन लिखी हुई थी जो साइड में रखी टेबल पे खुली हुई थी.

2 साल बाद ………….. साल 2010

सुबह हो चुकी थी, बिती रात जो भी हुआ, उसके बारे में शायद ये कुदरत ही जानती थी, उसके अलावा कोई नहीं, वक्त ने माहौल अभी भी वैसा ही बना रखा था, बिलकुल खामोश, जैसे कुछ ना हुआ हो, ऐसी खामोशी बहुत बड़ी तबाई को दस्तक देती है.

मौसम खामोश था और वहां खड़े लोग भी खामोश थे, मुख्तार खड़ा था हाथ में हाथ बांधे चेहरे पे उसके टेन्शन थी, उसके सामने कुछ मजदूर खड़े थे, कुछ इंजीनियर खड़े थे.

"क्या करना है साहब"

उनमें से एक ने कहा.

"देखो, काम तो बंद नहीं होगा, तुम नहीं करोगे कोई और करेगा, पर में तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ की घबराने वाली बात नहीं है, किसी भी मजदूर को कुछ नहीं होगा, यहाँ कोई आत्मा वातमा नहीं है, सुना तुम सब ने, यहाँ कुछ नहीं है"

मुख्तार चील्लाते हुए बोला, उसकी आवाज़ पूरी जगह पे गूंजने लगी.

उसके इतना कहते ही, अचानक से हवा चलने लगी, पेड़ हिलने लगे और उसे हवा में कुछ अजीब सी आवाज़ थी, मानो कुछ कहना चाहती हो.

"सुना साहब अपने, सुना, ये आवाज़ हवा में कुछ कहना चाहती है, मेरी बात मानिए साहब यहाँ....”

"चुप रहो तुम"

मुख्तार गुस्से में बोला,

"कुछ नहीं है ऐसा यहाँ, हवा में कुछ है क्या है इस हवा में, ब्लडी ईडियट्स..!"

गुस्से में मुख्तार चिल्लाया.

"अगर कुछ नहीं है तो फिर रघु और जावेद साहब कहाँ गायब है, क्यों नहीं आए वह दोनों"

उनमें से एक ने कहा.

"जावेद को जरूरी काम से शहर जाना पड़ा, रही बात तुम्हारे रघु की तो वह भघोड़ा निकला भाग गया कल रात ही, ये शहर छोड के"

मुख्तार ने भड़कते हुए एक बार फिर कहा.

“देखिए आप सब, यहाँ डरने की जरूरत नहीं है, आप सब अपने अपने काम पे लग जाए, हमें ये काम वक्त पे पूरा करना है “

वहां खड़े एक इंजीनियर ने सबको समझाया.

"ये आप बहुत गलत कर रहे हैं मालिक, यहाँ कोई पिशाच बस्ती है, ये आप अच्छी तरह जानते है, अगर अभी भी काम नहीं रुका तो ना जाने कितना खून बहेगा, फिर उस खून का हिसाब कोई नहीं रख पायेगा आप भी नहीं, क्यों की शायद आप भी ना बचे"

उनमें से एक मजदूर ने गुर्राते हुए कहा.

मुख्तार कुछ नहीं बोला बस उसे देखता रहा और फिर अपनी गाड़ी में बैठ के वहां से निकल गया.

"देखो मुझे हर बात की खबर चाहिए, कौन क्या कर रहा है, कैसे कर रहा है, हर एक डिटेल मुझे चाहिए समझ रहे हो ना तुम सब"

मुख्तार अपने सामने खड़े कुछ आदमियो से बातें कर रहा था.

"जी सर, आप बेफिक्र रहिए"

"एक बात और जो सबसे ज्यादा जरूरी है, कोई भी घटना घटती है, या कोई भी मौत होती है तो उसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं चलना चाहिए, कुछ भी नहीं"

मुख्तार ने गंभरी चेहरा बनाते हुए कहा.

"जी सर, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा"

इंसान जितनी चाहे कोशिश कर ले बचने की, वक्त हर मुसीबत का सामना करा ही देता है, पर शायद वक्त ने एक बदलाव ले लिया था, कुछ दिन काम बिना किसी रुकावट के बढ़ता जा रहा था, पर एक दिन का काम तीन दिन में पूरा हो रहा था, उसके पीछे कुछ वजह थी, पहली वजह ये की काम का समय सिर्फ़ 12 से 4 बजे तक हो पा रहा था, क्यों की उसके बाद ठंड उस जगह पे ऐसे पड़ती थी की वहां खड़ा होना लगभग नामुमकिन सा होने लगा था, उसके अलावा एक बहुत ही अजीब से हादसे हो रहे थे, जिसका कोई इंसानी तालूक़ तो नहीं था, पर इसे कोई दूसरा नाम भी नहीं दे सकते थे, हादसों में कई बार कोई मजदूर अपनी शकल का दूसरा आदमी देख लेता जो उसके साथ ही कम कर रहा होता था, किसी भी इंसान के लिए ये एक बेहद डरावनी बात होती है जब वह खुद पहले से डरा हुआ हो, कभी कभी काम करते करते मजदूर ज़मीन पे गिर जाता और अजीब अजीब सी आवाज़ निकालने लगता अपने आप को नोचने लगते, इसमें कुछ मजदूर घायल भी हुए, पर मुख्तार ने बात को हमेशा दूसरी तरफ मोड़ के उसे खत्म कर दिया, पर एक दिन....
 
पिशाच की वापसी – 14

एक मजदूर अपनी पूरी मेहनत से काम कर रहा था, खच्चच ….. खच्चच, एक जगह हल्की सी खुदाई का काम करना था उसे, वह अपने काम में मग्न था वहां के हालत को भूल के, की तभी उसने ज़मीन पे कुछ देखा, ज़मीन पे हल्का सा पानी भरा हुआ था जिसे उसने उसके अंदर कुछ देखा वह सोचने लगा की क्या है, फिर उसने अपने हाथ आगे बढाया धीरे धीरे उस पानी की तरफ, धीरे धीरे वह हाथ आगे बढा रहा था और जैसे ही उसने उस पानी को चूहा..

"आआआआआआआअ….!!
एक आवाज़ जो चीखने की थी वह अचानक घुट के रही गयी, जिसे कोई और सुन नहीं पाया.

रोज़ की तरह काम हो रहा था, आज का मौसम कुछ अजीब था बाकी दीनों से, कुछ अलग ही माहौल, मानो एक अजीब सी शांति जो ना तो इंसान को भा रही थी और ना ही उस जगह से दूर भेज रही थी, ऐसा लग रहा था मानो उस जगह ने वहां पे सबको जकड़ा हुआ था, बेमन से ही सही पर सब अपने काम में लगे हुए थे.

दोपहर का वक्त था, कुछ लोग आगे के हिस्से में काम कर रहे थे तो कुछ वहां बनी उस उजड़े हुए कब्रिस्तान के उपर, पर एक अकेला ऐसा मजदूर था जो जंगल की गहराई में काम कर रहा था, जगह जगह गढ्ढे खुदे हुए थे, बारिश की वजह से पानी भरा हुआ था.

"खच्चच ….. खच्चच, आवाज़ के साथ वह मिट्टी उठा के साइड में डाल रहा था, उसका काम लगभग खत्म पर ही था, की उसने गढ्डे में भरे पानी के अंदर कुछ देखा, उसकी आँखें बड़ी हो गयी और उसके हाथ उसके खुद के चेहरे पे घूमने लगे, मानो चेहरे से कुछ हटाना चाह रहा हो, तभी उसने अपने चेहरे से हाथ हटाया और फिर दुबारा पानी में देखा, इस बार उसे राहत की सांस आई क्यों की उसका चेहरा अब नॉर्मल दिखाई दे रहा था लेकिन तभी …

देखते ही देखते उसका चेहरा उसके चीन से काला होने लगा, मानो धीरे धीरे जल रहा हो, उसेमें छाले पड़ने लगे, वह जलता गया और धीरे धीरे उपर बढ़ गया और कुछ ही पलों में वह आधा चेहरा अपना जला हुआ देख रहा था, एक बार फिर उसको झटका लगा..

"आआहह..."
वह हलके से चिल्लाते हुआ थोड़ा पीछे हुआ और अपने चेहरे पे हाथ लगाने लगा, लेकिन उसे फिर महसूस हुआ की उसका चेहरा बिलकुल ठीक है, उसके दिल की धड़कने बढ़ रही थी, साँसें इतनी जबरदस्त चढी हुई थी मानो वह मिलो दूर से भाग कर आया हो, चेहरे पे एक डर उभर के उसके चेहरे पे निखर रहा था, उसके हाथ पाव एक पल के लिए फूल गये, हिम्मत तो नहीं हो रही थी की वह आगे बड़े पर फिर भी वह आगे बड़ा, इंसान की लालसा उससे हर वह काम करने की तरफ खिंचती है जिसे नहीं करना चाहिए, वह काँपते हुए पैर को उठा के थोड़ा सा आगे गया और वहाँ जाकर अपनी शकल एक बार फिर पानी में देखी.

"मुझे ही धोका हो रहा है, हरिया सही कहता था, ये जगह ही अजीब है, मुझे यहाँ से निकल जाना चाहिए, नहीं तो में पागल हो जाऊंगा"

कहते हुई वह आदमी वहां से जाने लगता है की तभी उसके कानों में उसे कोई जानी पहचानी आवाज़ सुनाई देती है.

उसे आवाज़ को सुन के वह वहीं रुक गया, लेकिन फिर वह आवाज़ भी आनी बंद हो गयी,

"इस जगह में जरूर कोई गड़बड़ है"

बोलते हुए वह आगे बड़ा की उसे एक बार फिर जानी पहचानी आवाज़ सुनाई पडी, आवाज़ सुन के वह वहीं रुक गया पर इस बार वह आवाज़ नहीं रुकी, वह उस आवाज़ को ध्यान से सुनने लगा तभी उसे महसूस हुआ की वह कोन चिल्ला रहा है.

"ये आवाज़ तो हरिया की है"

बोलते हुए वह पीछे मुडा, लेकिन उसके पीछे कोई नहीं था, थी तो सिर्फ़ वह आवाज़ जिसमें उसका नाम था, मंगलू, मंगलू, बस यही आवाज़ आ रही थी.

"हरिया, हरिया, कहाँ है तू"

मंगलू आगे की तरफ बढ़ता हुआ चिल्लाया.

"में यहीं हूँ, तेरे सामने, मुझे बचा ले भाई, में यहाँ फँस गया हूँ बचा ले मुझे"

हरिया की घबराई हुई आवाज़ सुन के मंगलू के माथे पे शिकन आ गयी और उसके शरीर में डर की एक लहर दौड़ गयी.

"पर मुझे तू क्यों दिखाई नहीं दे रहा, कहाँ है तू"

आगे बढ़ते हुए वह उसेी जगह पे पहुंच गया था जहाँ से वह चला था, वह जंगलो की गहराइयो में देखने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, कोहरा इतना घना था की ज्यादा दूर से आँखों की रोशनी से देखना नामुमकिन था.

"मेरे भाई देख में तेरे पीछे ही हूँ जल्दी कर"

तभी मंगलू के कानो में आवाज़ पडी तो वह फौरन पीछे मुडा और सामने का नज़ारा देख वह पूरी तरह से चौंक गया, उसका शरीर कांप उठा.

"हरियाआआ…..”

मंगलू ज़ोर से चिल्लाया, उसके सामने हरिया उसेी गढ्ढे में पानी के अंदर था और बार बार पानी पे हाथ मार के बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था, पर निकल नहीं पा रहा था.

"हरिया, तू, तू अंदर कैसे, हे भगवान ये क्या देख रहा हूँ में"?

मंगलू इस पल को देख के बिलकुल कांप चुका था, उसे यकीन नहीं हो रहा था की ये उसकी आँखें क्या देख रही है, उसका शरीर डर से कांप रहा था वहीं अपने दोस्त को उसे जगह पे ऐसे देख की पूरी तरह से चिंता में था.

"वह सब मत पूछ, मुझे जल्दी बाहर निकाल, मुझे सांस लेने में दिक्कत हो रही है बहुत"

हरिया फिर से चिल्लाता है.

"तू चिंता मत कर भाई, में हूँ ना, में बचाता हूँ तुझे"

इतना कहा और वह पानी में उतर गया, पानी उसकी कमर तक आ गया, पर घुसते ही उसे अजीब सी चीज़ महसूस हुई

"पानी गरम, इस जगह पे हे भगवान ये तू आज क्या खेल दिखा रहा है"

इतना सोचते हुई वह कुछ कदम आगे बढा.

पर वह क्या जाने की ये खेल कोई भगवान नहीं, बल्कि कुदरत में जन्मा एक पिशाच खेल रहा है.

मंगलू आगे बड़ा, दूसरी तरफ से हरिया का हाथ उपर उठा मानो पकड़ने के लिए हाथ दे रहा हो, मंगलू का दिमाग इस वक्त उसके साथ नहीं था, उसने भी अपना हाथ उस तरफ बढ़ाया, उंगलीयो ने पानी को छुआ, थोड़ा सा हाथ अंदर गया की तभी…….

उसका हाथ फँस गया, अचानक ही उसके शरीर को झटका लगा, उसे महसूस हुआ मानो उसे कोई खींच रहा हो, इस सब से मंगलू का ध्यान पानी से हट गया और वह अपने हाथ को बाहर खींचने लगा, लेकिन वह हाथ टस से मस ना हुआ, मानो किसी पानी में नहीं बल्कि एक गाढ़े कीचड़ में फँस गया हो, वह कोशिश करने लगा लेकिन उसका हाथ नहीं निकला

"हरिया मेरा हाथ आ, निकल नहीं.."

बस इतना ही कहता है और पानी की तरफ देखता है तो उसे एक और बडा झटका लगता है, पानी में हरिया की छाया या उसका कोई भी अस्तित्व उसे नहीं दिखा, उसकी रूह अंदर तक कांप गयी, उसके बदन में डर की अकड़न पैदा हो गयी, वह चिल्लाया

"बचाओ"

बस इतना ही चिल्ला पाया की उसकी आवाज़ घुट गयी और तभी उसका शरीर पानी के अंदर ऐसे घुस गया मानो किसी ने तेजी से अंदर खिच लिया हो.

कहानी जारी रहेगी...
 
पिशाच की वापसी – 15

कुछ देर पानी में कोई हलचल नहीं हुई, पर तभी अचानक से, कुछ अजीब सी आवाजें आने लगी पानी के अंदर से, मानो हज़ारों किडे कुछ कुतर रहे हो तेजी से, ना जाने क्या पर बहुत ज़ोर ज़ोर से कुतरने की आवाज़ आने लगी मानो कोई चीज़ किसी में से खींची जा रही हो, पर तभी पानी में बुलबुले से बनने लगे और फिर तेज आवाज़ करते हुए, एक फुव्वारा उपर की बढ़ उड़ा, खून का फुव्वारा, मानो किसी ने पानी के नीचे खून का फुव्वारा बना रखा हो, वह खून पूरे पानी में फैल गया और कुछ ही पलों में पानी लाल हो गया, कुछ मिनट तक ऐसे ही खून का फुव्वारा निकलता रहा और फिर वह शांत हो गया.

पर शायद इस बार कुदरत, या फिर यूँ कहूँ की पिशाच के इरादे कुछ और ही थे, तभी एक बार पानी में हलचल शुरू हुई, पानी में ज़ोर ज़ोर से बुलबुले उठने लगे और अचानक ही…
पानी में से एक कंकाल हवा में उड़ता हुआ बाहर निकला और सीधा पीछे वाले पेड़ के आगे जा गिरा, और इधर गड्ढे में एक अजीब सी आवाज़ हुई और सारा पानी कुछ ही पल में ज़मीन के अंदर चला गया और वह गढ़ा सुख गया.

पेड़ के सहारे वह कंकाल ऐसे ही पड़ा रहा उसका चेहरा बता रहा था की कितनी दर्दनाक तरीके से उस नोचा गया है, हड्डियों पे भी बारे बारे निशान थे, कुछ जगह बारे बारे गड्ढे हो गये थे. मंगलू के बदन का एक भी कतरा मास उस कंकाल में नहीं बचा था.

तभी वहां किसी के पैरों की चलने की आवाज़ आने लगी,

"ये मंगलू कहाँ गया, इसको में बोला था की अकेले इस जंगल में काम मत करना, अगर करना तो किसी को साथ लेकर करना था, अब पता नहीं"

वह इतना ही कह पाया की उसकी नज़र सामने पड़े कंकाल पे गया, वह वहीं रुक गया, मानो किसी ने उस खामोशी की दवा दे दी हो, पर अचानक ही वह चिल्ला पडा..

"आआआआआआहह, भूत, भूत"
चील्लाते हुई वह वहां से भाग गया.

"हमें बारे साहब से मिलना है अभी, अभी उन्हें बाहर बुलाओ, अभी के अभी"

बहुत सारेे मजदूर एक ही जगह पी खड़े चिल्ला रहे थे.

"देखिए आप सब शांत हो जाये बारे साहब काम में है"
पुलिस वाले ने सबको शांति से समझते हुए कहा.

"उनको बोलो काम छोड के आए, हमारी फरियाद सुनने, अभी बुलाओ नहीं तो यहाँ से हम सब नहीं जाएँगे"

वहां सभी मजदूर हल्ला मचाने लगे, अंदर घुसने लगे, पर तभी.

"शांत हो जाइये सब“

अंदर से एक पुलिस वाला बाहर आया,

"शांत हो जाईये, ऐसे चिल्लाने से क्या आप अपनी समस्या का हाल पा लेंगे, देखिए आराम से बताइये क्या हुआ है"?

"साहब वह जगह, वह जगह जहाँ हम काम कर रहे हैं, वह शापित है साहब, वह जगह शापित है, लेकिन बारे लोग उस बात को नहीं मान रहे साहब, वहां हर दूसरे दिन इंसान गायब हो रहा है साहब, वह जगह शापित है"

एक मजदूर ने कहा और वहां एक पल के लिए अजीब सा सन्नाटा फेल गया.

"क्या तुम उसी जगह की बात कर रहे हो, जहाँ मेयर साहब वाला काम चल रहा है"

पुलिस वाले ने अजीब सी टोन में पूछा.

"जी साहब, आप हमारे साथ चलिए, हमारे पास सबूत है, वहां हमारे आदमी का कंकाल मिला है है साहब"

"हम्म, देखो तुम सब चिंता मत करो हम अभी चलते हैं, चलो"

बोल की पुलिस वाले जीप लेकर निकल जाते हैं, कुछ ही देर बाद पुलिस और सारे मजदूर जंगल के पास खड़े होते हैं.

"कहाँ देखा था तुमने वह कंकाल"?

"वह, वह जंगल के अंदर साहब उस जगह"
हरिया ने उंगली से इशारा करते हुए कहा.

"हम्म चलो"
बोलते हुए पुलिस वाले और कुछ मजदूर अंदर चले गये, कुछ देर चलने के बाद उस जगह पे पहुंचे पर.

"यहाँ तो कुछ भी नहीं है"
पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा, हरिया के साथ साथ सभी मजदूर हैरान थे.

"पर, पर थोड़ी देर पहले यहीं था साहब, उस पेड़ के नीचे पड़ा हुआ था"
हरिया ने अपनी बात ज़ोर देते हुए कही..

"पर यहाँ कुछ नहीं है, तुम्हें जरूर कोई धोका हुआ होगा, लेकिन फिर भी हम यहाँ पे अपनी टीम को ढूंडले के लिए भेजते हैं, पर अगर कुछ नहीं मिला तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा"

"पर साहब, भूषण भी तो गायब है, उसका क्या"
हरिया फिर से बोला और सभी मजदूरों ने उसका साथ दिया.

"हम, उस भी हम ढूंढ. लेंगे, फिलहाल तुम सब यहाँ से जाऊं और हमें काम करने दो"

इंस्पेक्टर ने इतना कहा और सभी मजदूर चले गये, की तभी उसने फोन किया.

"एस सर, हम वही है, नहीं यहाँ वह नहीं मिला, नहीं वह भी नहीं, जी सर ऑलराइट, में अभी आता हूँ"
इतना बोले के उसने फोन कट कर दिया और फिर सबको ढूंढ़ने का बोल के जंगल के बाहर निकल आया."
अच्छी तरह ढूंढो, हर जगह, कोई भी जगह छूटनी नहीं चाहिए, चलो फटाफट ढूंढो"
इंस्पेक्टर ने सभी हवलदारों को कहा और खुद फोन पे बात करने लगा.

"हाँ सर, जी आप बेफ़िक्र रहिए, नहीं नहीं यहाँ सब कंट्रोल में है, हाँ में आपके पास ही आऊंगा सीधे जी जी, ओके सर, ओके"
फोन पे बात करने के बाद वह खुद भी जंगल के अंदर चला गया.

करीब 1 घंटे तक सब वहाँ ढूंढ़ते रहे, इधर उधर लेकिन कहीं भी कुछ नहीं मिला उन्हें, आख़िर थक हार के सब जंगल से बाहर आ गये.

"हमें कुछ नहीं मिला, एक एक जगह ढूंढ़ने के बाद कहीं कुछ नहीं मिला"
इंस्पेक्टर ने बाहर आकर सभी मजदूरों से कहा.

"पर साहब ऐसा कैसे हो सकता है, हमें विश्वास नहीं है, आप एक बार फिर से"
बस वह इतना ही कह पाया.

"बस, वैसे भी तुम्हारी वजह से मैंने अपना काफी टाइम खराब कर दिया, तुम्हारी तसल्ली के लिए देख लिया ना मैंने, पर कुछ नहीं मिला, अब तुम सब अपने काम पे लग जाओ, यहाँ कुछ भी ऐसा नहीं है, अगर अगली बार गलत अफवा फैला के पुलिस स्टेशन आए तो तुम सब को अंदर डाल दूँगा"
इंस्पेक्टर ने गुस्से में कहा और वह वहां से चला गया.

मजदूर ताकते रह गये और कुछ नहीं कर पाये, यही सोच रहे थे की अब कौन है जो उनकी मदद करेगा काम छोड नहीं सकते या फिर यूँ कहा जाए की ये जगह काम छोडने नहीं देगी, इस वक्त ये सब उस जगह खड़े थे जहाँ दोनों तरफ ही खाई थी, मरते क्या ना करते, सब ने अपना काम जारी रखा.

दूसरी तरफ.

"थैंक यू सो मच मिस्टर. पाटिल, अगर आप ना होते तो आज"
मुख्तार ने इंस्पेक्टर पाटिल से हाथ मिलाते हुए कहा.
 
पिशाच की वापसी – 16

"अरे कैसी बात कर रहे हैं आप सर, ये तो मेरा काम था, आपको और मेयर साहब को तकलीफ हो तो फिर हम जैसों का फायदा क्या है"

पाटिल मुस्कुराते हुए अपनी बात रखता है.

"अरे ये तो आपका बड़प्पन है मिस्टर. पाटिल, वैसे अच्छा हुआ की अपने मुझे फोन कर दिया था उस टाइम, जब वह मजदूर आपके पास आए थे, उसी टाइम मैंने अपने आदमियो को इनफॉर्म कर दिया था, लेकिन ताज्जुब की बात ये है की उन्हें भी कुछ नहीं मिला, अगर वहां कुछ था ही नहीं तो वह सब मजदूर आपके पास आए क्यों, क्या आपको कुछ मिला."
सोचते सोचते मुख्तार ने अपनी बात रखी.

"नहीं मुख्तार साहब, हमें भी कुछ नहीं मिला, जब आपसे बात हुई, उसके बाद हमने काफी ढूंढा पर हमें कुछ नहीं मिला, जबकि सब कुछ ठीक था, एक दम नॉर्मल"
पाटिल ने बेहद आसानी से जवाब दिया.

इस जवाब को सुनकर मुख्तार सोच में पड गया,

"क्या सोच रहे हैं मुख्तार साहब"?
पाटिल ने मुख्तार को सोचते देख पूछा.

"बस यही सोच रहा हूँ की अगर कोई हादसा वहाँ हुआ तो क्यों कुछ नहीं मिला हमें"?

"इसका जवाब तो खुद मेरे पास नहीं है"

"आपको क्या लगता है मिस्टर. पाटिल क्या वहाँ सच मच कोई आत्मा, कोई रूह है"?

मुख्तार ने चिंतित टोन में कहा, उसके कहते ही वहाँ के माहौल में एक अजीब सी शांति छा गयी, दोनों एक दूसरे को देखने लगे.

"में कुछ समझा नहीं की आप क्या कहना चाहते है, क्या आपको लगता है वह सब सच कह रहे हैं"
पाटिल ने गंभीर चेहरा बनाते हुए कहा.

मुख्तार अपनी जगह से उठते हुए,

"नहीं मेरा ये मतलब नहीं है, में बस ये पूछ रहा हूँ, क्या आपको इस जगह का इतिहास पता है, मतलब की कोई छुपा हुआ राज़ जिसे शायद अभी हम सब अंजान हो"
मुख्तार घूम के पाटिल की आँखों में देखते हुए पूछता है.

कमरे का तापमान बढ़ रहा था, दोनों की साँसें तेज चल रही थी, माहौल इस वक्त कुछ अलग मोड़ ले रहा था, पाटिल अपनी जगह से खड़ा होता हुआ.

"इस बारे में आपको मैं कुछ नहीं बता सकता, मुझे आए हुए कुछ ही टाइम हुआ है, यहाँ पे जो हादसा हुआ था उसके बाद ही मेरी पोस्टिंग यहाँ की गयी थी"
पाटिल भी अब असमंजस में दिख रहा था.

"मतलब आपसे पहले कोई और होगा जो आपकी जगह पर होगा"

"हाँ बिलकुल, यहाँ पे पुलिस स्टेशन था, काली चौकी पुलिस स्टेशन के नाम से"

"था मतलब, अब नहीं है"?
मुख्तार पाटिल के करीब आते हुए बोला.

"मतलब उस हादसे के बाद वह पुलिस स्टेशन नहीं बचा, अब वह सिर्फ़ एक खंडहर की तरह हो गया है"

"हम्म पर मिस्टर. पाटिल में चाहता हूँ की आप उसके बारे में इन्फार्मेशन निकले"

"पर क्या करेंगे आप"?

"शायद यहाँ का छुपा हुआ कोई इतिहास मिल जाए हमें, या फिर कुछ भी, आप समझ रहे हैं ना में क्या कहना चाहता हूँ"
मुख्तार ने पाटिल की आँखों में एक बार फिर देखते हुए कहा.

"जी, अब में चलता हूँ, जल्दी ही खबर लगाउंगा"
पाटिल की आवाज़ इस बार कुछ अलग थी, इतना कह कर वह निकल गया.

उसके जाते ही मुख्तार ने अपना फोन उठाया और नंबर डायल किया,

"हेलो सर, जी काम चल रहा है, आपको फिक्र करने की जरूरत नहीं है, क्या…., पर क्यों, हम्म, जी सर, अपने सही कहा, ये अच्छी मार्केटिंग स्ट्रॅटजी बन सकती है, हा बिलकुल सर में इस बात का बिलकुल ध्यान रखूँगा, जानता हूँ सर ये प्रोजेक्ट कितना इंपॉर्टेंट है आप बेफ़िक्र रहीये, यहाँ पे अब कोई भी उस बनने से रोक नहीं पाएगा, आप देखते जाइये सर, इस जगह का नाम एक बार फिर पहले की तरह कितना बड़ा हो जाएगा…., ओफ्फकोर्स सर, में जानता हूँ लेकिन कहते हैं ना सर कुछ पाने के लिए कुछ कुर्बनियाँ तो देनी ही पड़ती है, हाहहहाहा, बस आपकी मेहरबानी है सर"
इतनी बात करने के बाद थोड़ी देर मुख्तार शांत रहता है, दूसरी तरफ से कुछ देर सुनाने के बाद उसने कहना शुरू किया,

"नहीं सर फिलहाल उस जगह के बारे में कुछ नहीं जान पाया हूँ, आप तो जानते ही हैं सर मुझे आए हुए अभी सिर्फ़ 4 महीने ही हुए हैं, पर आप चिंता ना कर्रे में जल्दी ही पता लगा लूँगा, ओके सर, ये शुरू, जब आप कहे, पर में तो चाहता हूँ की आपसे उसी दिन मिलूं जब मेरा काम खत्म हो जाए, आप बेफ़िक्र रहिए, काम ऐसा होगा की दूर दूर से लोग आकर देखेंगे, जी सर ओके, ओके, हॅव आ नाइस डे सर"
इतना कहने के बाद मुख्तार ने फोन रख दिया.

"उफफ, ये मेयर साहब के सवाल का जवाब कहाँ से दु, मुझे जल्दी ही अब पता लगाना पड़ेगा की ऐसा क्या है उस जगह, जिसके बारे में जिसे पूछो वह कुछ बोल पाता नहीं पर मुझे उन सब के चेहरे पे एक अजीब सी खामोशी नज़र आती है"
इतना कह के मुख्तार अपना गिलास वाइन से भरने लगता है.

"साहब..!
मुख्तार के कानों में आवाज़ पड़ती है, अपनी गर्दन पीछे घुमा के देखता है तो उसका नौकर खड़ा होता है,
"हाँ बोल"
गिलास से एक घूँट भरते हुए वह उस बोलता है.

"साहब, क्या ये सब बातें उस जगह की है जहाँ वह कब्रिस्तान है"
छोटू ने थोड़े अटकते हुए कहा.

"हा, कब्रिस्तान है नहीं, था, अभी नहीं बचा, पर तुझे कैसे पता"?
अजीब सी निगाहों से पूछा.

"वह आपकी बातों से और उस दिन जो मजदूर आए थे उस दिन की बातों से मुझे लगा की वहीं की है..”

"तू बहुत बातें सुनने लगा है आज कल, चल जा के काम कर अपना, वैसे भी में इस वक्त कुछ सोच रहा हूँ"
मुख्तार थोड़ा चीखते हुए बोला और फिर वाइन की बॉटल उठा के अपना गिलास भरने लगा, गिलास में जा रही वाइन की आवाज़ उस कमरे में गूँज रही थी की तभी वह आवाज़ बंद हो गयी और मुख्तार के हाथ रुक गयी, वह फौरन घुमा और छोटू को देखने लगा.

"क्या कहाँ तूने अभी"?
मुख्तार ने बहुत तेजी से अपना सवाल किया.

"वही साहब जो मैंने सुना है, अपनी मां से, उसने बताया था मुझे एक बार, की वह जगह शापित है, साहब मां ने इतना भी बताया था की वहाँ कुछ साल पहले एक हवेली हुआ करती थी, बहुत बड़ी हवेली जिसे किसी शैतान ने जकड़ा हुआ था, बहुतो का खून पिया है साहब उस हवेली ने, मुझे तो लगता है साहब की ये वही हवेली है जो बदला ले रही है"

छोटू ने इतना कहा और वह चुप हो गया, एक पल के लिए कमरे को शांति ने घेर लिया, एक दम खोमोशी, मुख्तार एक गहरी सोच में डूबा हुआ था.

"हवेली हम्म, तुम जाकर खाने की तैयारी करो"
मुख्तार ने इतना कहा और फिर से सोच में डूब गया.

पुलिस स्टेशन.

"अरे राकेश मेरा एक काम तो कर देना"
पाटिल ने अंदर घुसते ही अपना आर्डर एक सब-इंस्पेक्टर को दिया.

"जी सर बोलिए"

"राकेश यार तू वह काली चौकी पुलिस स्टेशन के बारे में जानता है ना, जो उस पहाड़ी के ठीक आगे बना हुआ है"

"वह खंडहर सर"

"हाँ हाँ, यार वही"

"उस खंडहर में क्या काम आ गया है सर"

"अरे यार तू ये पता कर की मेरे आने से पहले वहाँ किसकी पोस्टिंग थी और किस वजह से उसका ट्रांसफर कर दिया, साथ ही साथ उसकी पूरी यूनिट का भी, क्यों की मेरे यहाँ पोस्टिंग करने की वजह मुझे नहीं बताई गयी थी, तो सोच रहा हूँ अब जब यहाँ आ गया हूँ तो सब कुछ पता कर लू"

"ये तो हम सबके साथ है सर, हम सबकी पोस्टिंग का रीज़न दिया ही नहीं गया है, आप चिंता मत कीजिए, ये काम जल्दी ही हो जाएगा"

राकेश ने इतना कहा और वह वहाँ से चला गया.

"लगता है अब गडे मुर्दे उखाड़ने का वक्त आ गया है"
पाटिल ने अजीब सा चेहरा बनाते हुए अपने आप से कहा और फिर फाइल खोल के अपने काम में लग गया…
 
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