desiaks
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पिशाच की वापसी – 11
तभी वहां ज़ोर दार बिजली कड़कने लगी, कड़दड़…. कद्दद्ड…… कद्द्दद्ड…… कद्द्दद्ड……… कड़दड़…,
जिसकी रोशनी से जब सामने का दृश्य और ज्यादा चमका तो जावेद की रूह ने एक पल के लिए उसका साथ छोड ही दिया, सामने वह बीच में से कटे सर का शरीर खड़ा था बिलकुल उसेी स्थिति में जैसे वह कटा हुआ था, चेहरे का एक हिस्सा एक तरफ और दूसरा हिस्सा दूसरी तरफ, शायद सिर्फ़ दिखावे से संतुष्टि नहीं मिली की उसने अपनी खौफनाक हँसी को उस जगह में फैला दिया.
"आआआहा.आहहा..अहहा….."
वह भयानक हँसी उसके उसे कटे हुए चेहरे पे इतनी खौफनाक नज़र आ रही थी की जावेद ने अपनी आँखें बंद कर ली, उसके वह आधे होंठ एक तरफ हंसते हुए नज़र आ रहे थे तो सेम दूसरी तरफ भी ऐसा ही था, उसके बाद कुछ पल के लिए शांति हो गयी, जावेद को तो मन ही मन लग रहा था की किसी भी पल उसपर हमला होगा और वह आखिरी साँसें गिन रहा होगा, लेकिन जब कुछ पल के लिए कुछ नहीं हुआ तो उसने आँखें खोली, पर कोई फर्क नहीं था वह भयानक मंजर वैसे ही था, बल्कि अब और भयानक होने जा रहा था.
सामने खड़े उसे शरीर ने अपने हाथ धीरे धीरे उपर उठाने शुरू किए और अपने चेहरे के दोनों अलग हिस्से पे ले आया, और धीरे धीरे उन हिस्सों को पास लाने लगा, कुछ ही सेकेंड में वह दोनों आपस में मिल गये और जुड़ गये, जावेद ये दृश्य देख के बेहोश होने ही वाला था की तभी पास में पड़ा उसका फोन बज उठा, लेकिन जावेद तो अपनी ही दुनिया में था वह दृश्य देखने के बाद, आँखें खुली थी, दिल चल रहा था, पर उसकी रूह कहीं और ही थी, लेकिन तभी
"उठा ले फोन क्या पता मुख्तार का हो आआहाहा…अहहहः"
सामने खड़े रघु के शरीर ने फिर से भयनक आवाज़ में हंसते हुए कहा, जावेद अपनी दुनिया से बाहर आया और कुछ सेकेंड वह पहले सामने खड़ी अपनी मौत को देखता रहा फिर उसने मोबाइल की तरफ देखा जो उसके बगल में ही गिरा हुआ था और वह बज रहा था, उसने अपने कपकपाते हुए हाथ से फोन को उठाया, उसने सबसे पहले सिग्नल देखा जो की फूल था फिर नाम देखा जो अननोन था, उसका हलक सुख रहा था, जावेद ने अपने काँपते अंघुटे से अन्सर कॉल को स्लाइड किया और अपने कान से लगाया.
"हेलो, जावेद साहब, आप ठीक है ना, साहब, मेरी मानिए वहा उस जगह पे मत जाना, नहीं जाना साहब"
दूसरी तरफ से आवाज़ आई, जिसे सुन के जावेद बच्चों की तरह रोते हुए जवाब देने लगा.
"रघु, रघु तू ही है ना, मुझे बचा ले रघु मुझे बचा ले, में मरना नहीं चाहता बचा ले मुझे"
"साहब आप चिंता मत कीजिए, आपको कोई तकलीफ नहीं होगी, अभी कुछ देर पहले ही मुझे मौत मिली है अब आपको वह मौत मिलेगी"
सामने से जब ये बातें सुनी तो जावेद ने फोन कोन से हटा लिया, फोन पे वक्त देखा तो उसमें 3 बज रहे थे, फोन हाथ से गीर गया, और जावेद सामने खड़े उस रघु के शरीर को देखने लगा, उसे सब कुछ समझ में आ गया की ये वक्त का क्या खेल हुआ अभी अभी, रघु कभी उसके साथ आया ही नहीं, वह ही शैतान ही था जो हर वक्त उसके साथ था, वह रघु था जो 2 बजे मरा.
“खीखीखीखीखी"
सामने वह गर्दन उठा के ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा, इस हँसी को देख कर अब जावेद समझ गया की उसका ये आखिरी वक्त है, लेकिन वह मरना नहीं चाहता था, कोई इंसान ऐसे मरना नहीं चाहेगा जिसके मरने का किसी को कुछ पता भी ना चले.
"मुझे मत मारो, में तुम्हारे हाथ जोड़ता हूँ, क्यों मारना चाहते हो मुझे, क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा"
अक्सर इंसान मरने से बचने के लिए ये करता है, फिर उसकी मौत कोई इंसान ले रहा हो या फिर कोई शैतान, जो इस वक्त जावेद कर रहा था.
"मौत से क्या घबराना, मौत में जो मजा है वह मजा तो जिंदगी भी नहीं देती"
भयानक आवाज़ में उसने अपने कटे फटे होठों से कहा.
"लेकिन, लेकिन इंसान को मार के क्या मिलेगा, क्या कहते हो तुम"
जावेद फिर से गिड़गिडया.
"क्यों की मुझे वह चाहिए, चाहिए वह मुझे"
भयानक पिशाच से निकलती भयंकर आवाज़ ने जावेद को तो हिला के रख दिया साथ साथ वहां का वातावरण बदल गया, पेड़ तेजी से हिलने लगे, आसमान में बादल इकट्ठा होकर आपस में लड़ने लगे, ज़ोर ज़ोर से बिजली कड़कने लगी.
जावेद उसकी बातों को समझ नहीं पा रहा था, वैसे भी मौत और डर ने उसको घेर लिया था.
"ये जगह मेरी है, ये ज़मीन मेरी है, ये आसमान मेरा है और जल्द ही में इंसानियत का नाश कर के इस पूरे ब्रम्हांड को शैतान का घर बनाउंगा, शैतान का घर आहहहहहााआ..आ…."
जावेद ने जब उस शैतान की इस आवाज़ को सुना तब वह समझ गया की उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है और इंसानो के उपर कितना बड़ा खतरा मंडरा रहा है, जो शायद पूरी इंसानियत के लिए घातक होगा.
जावेद अपनी जगह पे खड़ा हुआ, जैसे ही खड़ा हुआ उपर से कुछ उसके सामने आ गिरा, वह थोड़ा घबराते हुए पीछे हो गया,
"आअहह"
उसके मुंह से डर की चीख निकल गयी, जैसे ही उसने सामने का नज़ारा ढंग से देखा तो उसको उबकाई सी आ गयी, सामने रघु की असली लाश उल्टी लटकी हुई थी, उसके पेट में से उसकी अंतड़ियां बाहर निकली हुई थी, गला कटा हुआ था उसेमें से खून बह रहा था, उसकी रिब्ब्स उसके शरीर से बाहर निकल रही थी, और उसकी आँखों में से खून निकल रहा था, तभी सामने से वह पिशाच चल के आया और उसने अपने बड़े बड़े नाखून से रघु के शरीर में से उसकी निकली अंतड़ियां बाहर निकली और उसे चबाने लगा, जावेद ये सब देख के अपने आप को रोक नहीं पाया और उसने वहां उल्टी करनी शुरू कर दी, फिर जब उसने सामने देखा की वह शैतान खाने में लगा हुवा है, उसने वहां से भागने की सोची, पर वह जैसे ही आगे थोड़ा निकला, उसके कानों में वही शैतानी पिशाच की हँसी पडी.
"खीखीखीखीखीखी, जब तक में ना कहूँ, तब तक यहाँ से कोई नहीं जा सकता"
उस रूह ने अपनी भारी आवाज़ में एक बार फिर से कहा, जिसे सुन के जावेद वहां रुक गया और पीछे घूम के उस शैतानी पिशाच को देखने लगा, दोनों एक दूसरे के आमने सामने खड़े थे.
"में इस धरती का सब कुछ हूँ, में हूँ अब इस धरती का मालिक, में, आआहाहहाः"
हाथ फैला के भारी आवाज़ में उसे पिशाच ने गुराते हुई कहा, और उसके गुराते ही आसमान में लड़ रहे बादलो ने दम तोड़ दिया और उसमें से बहता पानी धरती पे जोरों से गिरने लगा, एक ही पल में वहां ज़ोर से बारिश शुरू हो गयी.
"उपर वाले की ताक़त से बड़ा कोई नहीं होता इस पूरे ब्रम्हांड में"
जावेद ने बहुत ठहरे हुए लबज़ों में कहा, मानो डर उसके शरीर से खत्म ही हो गया हो.
"जो कुछ भी है सिर्फ़ में हूँ, सिर्फ़ में, आज तू अपनी मौत के सामने खड़ा है, अगर मेरे से बड़ा कोई है तो तुझे बचा के दिखाए"
बोलते हुए वह पिशाच धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा, और जावेद ने आज फिर कुदरत की शैतानी ताक़त को देखा, आगे बढ़ते बढ़ते उस पिशाच का शरीर जो इस वक्त रघु का था, वह धीरे धीरे बदलते हुए जावेद का हो गया.
तभी वहां ज़ोर दार बिजली कड़कने लगी, कड़दड़…. कद्दद्ड…… कद्द्दद्ड…… कद्द्दद्ड……… कड़दड़…,
जिसकी रोशनी से जब सामने का दृश्य और ज्यादा चमका तो जावेद की रूह ने एक पल के लिए उसका साथ छोड ही दिया, सामने वह बीच में से कटे सर का शरीर खड़ा था बिलकुल उसेी स्थिति में जैसे वह कटा हुआ था, चेहरे का एक हिस्सा एक तरफ और दूसरा हिस्सा दूसरी तरफ, शायद सिर्फ़ दिखावे से संतुष्टि नहीं मिली की उसने अपनी खौफनाक हँसी को उस जगह में फैला दिया.
"आआआहा.आहहा..अहहा….."
वह भयानक हँसी उसके उसे कटे हुए चेहरे पे इतनी खौफनाक नज़र आ रही थी की जावेद ने अपनी आँखें बंद कर ली, उसके वह आधे होंठ एक तरफ हंसते हुए नज़र आ रहे थे तो सेम दूसरी तरफ भी ऐसा ही था, उसके बाद कुछ पल के लिए शांति हो गयी, जावेद को तो मन ही मन लग रहा था की किसी भी पल उसपर हमला होगा और वह आखिरी साँसें गिन रहा होगा, लेकिन जब कुछ पल के लिए कुछ नहीं हुआ तो उसने आँखें खोली, पर कोई फर्क नहीं था वह भयानक मंजर वैसे ही था, बल्कि अब और भयानक होने जा रहा था.
सामने खड़े उसे शरीर ने अपने हाथ धीरे धीरे उपर उठाने शुरू किए और अपने चेहरे के दोनों अलग हिस्से पे ले आया, और धीरे धीरे उन हिस्सों को पास लाने लगा, कुछ ही सेकेंड में वह दोनों आपस में मिल गये और जुड़ गये, जावेद ये दृश्य देख के बेहोश होने ही वाला था की तभी पास में पड़ा उसका फोन बज उठा, लेकिन जावेद तो अपनी ही दुनिया में था वह दृश्य देखने के बाद, आँखें खुली थी, दिल चल रहा था, पर उसकी रूह कहीं और ही थी, लेकिन तभी
"उठा ले फोन क्या पता मुख्तार का हो आआहाहा…अहहहः"
सामने खड़े रघु के शरीर ने फिर से भयनक आवाज़ में हंसते हुए कहा, जावेद अपनी दुनिया से बाहर आया और कुछ सेकेंड वह पहले सामने खड़ी अपनी मौत को देखता रहा फिर उसने मोबाइल की तरफ देखा जो उसके बगल में ही गिरा हुआ था और वह बज रहा था, उसने अपने कपकपाते हुए हाथ से फोन को उठाया, उसने सबसे पहले सिग्नल देखा जो की फूल था फिर नाम देखा जो अननोन था, उसका हलक सुख रहा था, जावेद ने अपने काँपते अंघुटे से अन्सर कॉल को स्लाइड किया और अपने कान से लगाया.
"हेलो, जावेद साहब, आप ठीक है ना, साहब, मेरी मानिए वहा उस जगह पे मत जाना, नहीं जाना साहब"
दूसरी तरफ से आवाज़ आई, जिसे सुन के जावेद बच्चों की तरह रोते हुए जवाब देने लगा.
"रघु, रघु तू ही है ना, मुझे बचा ले रघु मुझे बचा ले, में मरना नहीं चाहता बचा ले मुझे"
"साहब आप चिंता मत कीजिए, आपको कोई तकलीफ नहीं होगी, अभी कुछ देर पहले ही मुझे मौत मिली है अब आपको वह मौत मिलेगी"
सामने से जब ये बातें सुनी तो जावेद ने फोन कोन से हटा लिया, फोन पे वक्त देखा तो उसमें 3 बज रहे थे, फोन हाथ से गीर गया, और जावेद सामने खड़े उस रघु के शरीर को देखने लगा, उसे सब कुछ समझ में आ गया की ये वक्त का क्या खेल हुआ अभी अभी, रघु कभी उसके साथ आया ही नहीं, वह ही शैतान ही था जो हर वक्त उसके साथ था, वह रघु था जो 2 बजे मरा.
“खीखीखीखीखी"
सामने वह गर्दन उठा के ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा, इस हँसी को देख कर अब जावेद समझ गया की उसका ये आखिरी वक्त है, लेकिन वह मरना नहीं चाहता था, कोई इंसान ऐसे मरना नहीं चाहेगा जिसके मरने का किसी को कुछ पता भी ना चले.
"मुझे मत मारो, में तुम्हारे हाथ जोड़ता हूँ, क्यों मारना चाहते हो मुझे, क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा"
अक्सर इंसान मरने से बचने के लिए ये करता है, फिर उसकी मौत कोई इंसान ले रहा हो या फिर कोई शैतान, जो इस वक्त जावेद कर रहा था.
"मौत से क्या घबराना, मौत में जो मजा है वह मजा तो जिंदगी भी नहीं देती"
भयानक आवाज़ में उसने अपने कटे फटे होठों से कहा.
"लेकिन, लेकिन इंसान को मार के क्या मिलेगा, क्या कहते हो तुम"
जावेद फिर से गिड़गिडया.
"क्यों की मुझे वह चाहिए, चाहिए वह मुझे"
भयानक पिशाच से निकलती भयंकर आवाज़ ने जावेद को तो हिला के रख दिया साथ साथ वहां का वातावरण बदल गया, पेड़ तेजी से हिलने लगे, आसमान में बादल इकट्ठा होकर आपस में लड़ने लगे, ज़ोर ज़ोर से बिजली कड़कने लगी.
जावेद उसकी बातों को समझ नहीं पा रहा था, वैसे भी मौत और डर ने उसको घेर लिया था.
"ये जगह मेरी है, ये ज़मीन मेरी है, ये आसमान मेरा है और जल्द ही में इंसानियत का नाश कर के इस पूरे ब्रम्हांड को शैतान का घर बनाउंगा, शैतान का घर आहहहहहााआ..आ…."
जावेद ने जब उस शैतान की इस आवाज़ को सुना तब वह समझ गया की उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है और इंसानो के उपर कितना बड़ा खतरा मंडरा रहा है, जो शायद पूरी इंसानियत के लिए घातक होगा.
जावेद अपनी जगह पे खड़ा हुआ, जैसे ही खड़ा हुआ उपर से कुछ उसके सामने आ गिरा, वह थोड़ा घबराते हुए पीछे हो गया,
"आअहह"
उसके मुंह से डर की चीख निकल गयी, जैसे ही उसने सामने का नज़ारा ढंग से देखा तो उसको उबकाई सी आ गयी, सामने रघु की असली लाश उल्टी लटकी हुई थी, उसके पेट में से उसकी अंतड़ियां बाहर निकली हुई थी, गला कटा हुआ था उसेमें से खून बह रहा था, उसकी रिब्ब्स उसके शरीर से बाहर निकल रही थी, और उसकी आँखों में से खून निकल रहा था, तभी सामने से वह पिशाच चल के आया और उसने अपने बड़े बड़े नाखून से रघु के शरीर में से उसकी निकली अंतड़ियां बाहर निकली और उसे चबाने लगा, जावेद ये सब देख के अपने आप को रोक नहीं पाया और उसने वहां उल्टी करनी शुरू कर दी, फिर जब उसने सामने देखा की वह शैतान खाने में लगा हुवा है, उसने वहां से भागने की सोची, पर वह जैसे ही आगे थोड़ा निकला, उसके कानों में वही शैतानी पिशाच की हँसी पडी.
"खीखीखीखीखीखी, जब तक में ना कहूँ, तब तक यहाँ से कोई नहीं जा सकता"
उस रूह ने अपनी भारी आवाज़ में एक बार फिर से कहा, जिसे सुन के जावेद वहां रुक गया और पीछे घूम के उस शैतानी पिशाच को देखने लगा, दोनों एक दूसरे के आमने सामने खड़े थे.
"में इस धरती का सब कुछ हूँ, में हूँ अब इस धरती का मालिक, में, आआहाहहाः"
हाथ फैला के भारी आवाज़ में उसे पिशाच ने गुराते हुई कहा, और उसके गुराते ही आसमान में लड़ रहे बादलो ने दम तोड़ दिया और उसमें से बहता पानी धरती पे जोरों से गिरने लगा, एक ही पल में वहां ज़ोर से बारिश शुरू हो गयी.
"उपर वाले की ताक़त से बड़ा कोई नहीं होता इस पूरे ब्रम्हांड में"
जावेद ने बहुत ठहरे हुए लबज़ों में कहा, मानो डर उसके शरीर से खत्म ही हो गया हो.
"जो कुछ भी है सिर्फ़ में हूँ, सिर्फ़ में, आज तू अपनी मौत के सामने खड़ा है, अगर मेरे से बड़ा कोई है तो तुझे बचा के दिखाए"
बोलते हुए वह पिशाच धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा, और जावेद ने आज फिर कुदरत की शैतानी ताक़त को देखा, आगे बढ़ते बढ़ते उस पिशाच का शरीर जो इस वक्त रघु का था, वह धीरे धीरे बदलते हुए जावेद का हो गया.