Hindi Porn Stories बदनसीब फुलवा; एक बेकसूर रण्डी - Page 6 - SexBaba
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Hindi Porn Stories बदनसीब फुलवा; एक बेकसूर रण्डी

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सबेरे 5 बजे चिराग की आंख खुली तो फुलवा उस पर अपना बदन रगड़ते हुए भूख से तिलमिला रही थी। हालांकि वह अब भी नींद में थी पर उसकी चूचियां नुकीली बन कर चिराग के सीने को खरोंचने की कोशिश कर रही थी। चिराग ने अपनी मां को नींद में ही आहें भरते हुए उसे पुकारते हुए पाया। चिराग को अब पता चला कि कल सुबह किस हालत में उठकर उसकी मां ने उसे राहत दिलाते हुए उससे आभार व्यक्त किया था।

चिराग ने अपनी मां को थोड़ा धकेला और वह अपनी पीठ के बल पैरों को फैलाए सो गई। फुलवा की चूत पर चिराग का तौलिया वीर्य से सुख कर चिपक गया था और अब मां की भूख से दुबारा भीग रहा था। चिराग ने धीरे से अपनी मां की चूत पर चिपका तौलिया उठाया तो चूत के फूले हुए होंठ खींच गए।

फुलवा ने नींद में आह भरी, "बेटा!!."

चिराग को तय करना था कि वह अपनी मां को उठाकर उसे अपनी भूख के बारे में आगाह करते हुए उसे शर्मसार करे या अपनी मां की भूख उसकी नींद में पूरी कर उसे खुश रखे। चिराग ने अपनी मां को खुश रखना बेहतर समझते हुए अपने खड़े खंबे पर अपनी लार लगाकर चिकनाहट दी।

चिराग ने अपने बाएं हाथ से अपने ऊपरी हिस्से को हवा में उठाए रखते हुए अपने दाएं हाथ से लौड़े के सुपाड़े को अपनी मां की तेजी से गीली होती चूत के मुंह को छेड़ा। फुलवा ने उत्तेजना की आह के साथ अपनी कमर हिलाते हुए चिराग को पुकारा। फुलवा की चूत में से यौन रसों का बहाव होने लगा और चिराग का सुपाड़ा फुलवा के यौन रसों में भीग कर चमकने लगा।

चिराग से और रहा नहीं गया। चिराग ने अपने लौड़े पर हल्का जोर दिया और उसके लौड़े ने फुलवा की अनुभवी चूत में अपना दूसरा गोता लगाया। चिराग ने धीरे धीरे अपने लौड़े को अपनी मां की गरमी में भरा और फुलवा ने आह भरते हुए अपनी जांघों को खोल कर उसका स्वागत किया।

फुलवा अब भी गहरी नींद में सो रही थी। उसका चुधवाना बिलकुल उसकी यौन तड़प की तरह नैसर्गिक और बिना किसी सोच के था। चिराग ने अपने हाथ पर से वजन कम करते हुए अपनी कोहनियों पर आ गया।

चिराग के सीने के बाल उसकी मां की सक्त चूचियों को छू रहे थे। हर सांस के साथ उसकी मां की चूचियां उसके खुरतरे सीने पर से होती उत्तेजित हो जाती। फुलवा की चूचियां इस एहसास को पाने से उत्तेजित हो गईं और फुलवा की सांसे तेज हो गई। तेज सांसों से चूचियां और रगड़ने लगी और फुलवा को उत्तेजना और बढ़ती चली गई। चिराग अपनी मां की हालत देखता बिना हिले उसकी चूत में अपने लौड़े को सेंकता रहा।

फुलवा तेज सांसे लेते हुए अपनी कमर हिला कर अपनी चूत चुधवात हुए अपनी चुचियों को अपने बेटे के सीने पर रगड़ रही थी। अचरज की बात यह थी की वह अब भी सो रही थी।

फुलवा के सपने में चिराग उसे चोद रहा था पर उसके चेहरे के पीछे एक और धूसर चेहरा छुपा हुआ था। अपनी जवानी की भूख मिटाने की कोशिश करते हुए उस दूसरे चेहरे को पहचानना मुमकिन नहीं था और फुलवा बेबसी में अपना सर हिलाते हुए अपने प्रेमी से कुछ चाहती थी।

फुलवा को यकीन था की वह अपने जलते बदन को ठंडक और प्यासी जवानी की राहत चाहती थी। फुलवा ने अपने बेटे को पुकारा और झड़ गई। यौन उत्तेजना की सवारी से उतरते हुए फुलवा की नींद उड़ गई और उसे एहसास हुआ की वह सच में लौड़ा अपने अंदर लिए झड़ चुकी थी।

फुलवा हड़बड़ाकर जाग गई और उसने अपने बेटे को मुस्कुराते हुए देखा।

चिराग, "मैं पूछना चाहता हूं कि सपना कैसा था पर जान चुका हूं कि बहुत मजेदार था!"

फुलवा अपने बेटे की शैतानी पर हंस पड़ी और उसे हल्के से चाटा मारा।

फुलवा, "इस बात की तुम्हें सजा देनी होगी!"

फुलवा ने अपने पैरों को उठाकर अपनी एड़ियों को अपने बेटे की कमर के पीछे अटका दिया। इस से चिराग का लौड़ा फुलवा की गहराई में दब गया। फुलवा ने फिर चिराग को कोहनियों को धक्का देकर उसका पूरा वजन अपने ऊपर लेते हुए अपनी कोहनियों को चिराग के बगल के अंदर से घुमाकर उसके बालों को पकड़ा।

फुलवा चिराग की आंखों में देख कर, "आजादी चाहते हो?"

चिराग मुस्कुराकर, "नहीं!!. मुझे तो यही गुलामी पसंद है!. लेकिन मीटिंग की वजह से जाना होगा।"

फुलवा चिराग के होंठों को चूम कर, "मुझे भर दो और अपने लिए कुछ देर की रिहाई खरीद लो!"

चिराग फुलवा को चूमते हुए, "नेकी!!.
ऊंह!!.
और !!.
ऊंह!!.
पूछ!!.
ऊंह!!.
पूछ!!.
उम्म्ह!!."

फुलवा ने अपने बेटे को अपनी जीभ से चूमते हुए उसकी आह में अपनी आह मिलाई। चिराग ने अपनी मां को चोद कर अपने जवानी की पूरी गर्मी को महसूस किया। रात में दो बार झड़कर भी वह सुबह बिलकुल तयार था। चिराग ने अपनी मां से चुम्बन तोड़ा और उसके गालों को चूमने लगा।

चिराग, "मां!!.
मां!!.
आह!!.
मां!!.
मां!!.
उम्न्ह!!.
ऊंह!!.
अन्ह्ह!!.
मां!!.
आन्ह!!."

फुलवा भी अपनी चूत की गरमी में घिसते अपने बेटे के यौवन को महसूस कर दुबारा कामुत्तेजना की शिखर पर पहुंची। फुलवा ने चिराग को अपने सीने से लगाया और उसने अपने तेज झटके लगते हुए अपनी मां के कान की बालि को अपने दांतों में पकड़कर हल्के से दबाया।

कान में उठे हल्के दर्द ने फुलवा को यौन शिखर से गिरा दिया और वह रोते हुए चिराग को पुकारते हुए झड़ने लगी। फुलवा की चूत में से यौन रसों का झरना नदी बन कर चिराग के लौड़े को धोते हुए निचोड़ने लगा। चिराग अपनी जवानी के हाथों मजबूर अपनी मां को बाहों में भर कर तड़पते हुए झड़ने लगा।

चिराग की गरमी ने फुलवा की कोख में भरकर सेंकते हुए दोनों की जलती जवानी को ठंडा कर दिया। फुलवा अपने बेटे को अपने बदन पर चढ़ाकर पड़ी रही।

चिराग चुपके से फुलवा के कान में, "माफ करना मां! मैंने आप को भूख से तड़पते हुए देखा और आप की इजाजत के बगैर आप को."

फुलवा मुस्कुराकर, "चोदने लगा? मजे लूटने आ गया? मौका देख कर चढ़ गया?"

चिराग को समझ नहीं आ रहा था कि उसकी मां उस पर गुस्सा है या नहीं।

चिराग, "आप मुझे जो सजा देना चाहो, दे दीजिए! बस मुझ पर गुस्सा नहीं होना!"

फुलवा, "एक सजा है! पर तुम उसे बर्दाश्त नहीं कर पाओगे!"

फुलवा ने अपने बेटे के कान को चूमा और चुपके से कहा,
"मेरी गांड़ मारो!!."
 
50

चिराग जवान था पर था तो मर्द ही। उसके लौड़े ने मां की बात मानने की पूरी कोशिश की पर नया माल बनाने के लिए गोटियों को वक्त चाहिए था और लौड़े को हार माननी पड़ी।

फुलवा चिराग का गिरा हुआ चेहरा देख कर हंस पड़ी। चिराग के गाल को चूमते हुए फुलवा ने उसकी चुटकी ली।

फुलवा, "शैतान कहीं के! कुछ तो शर्म करो! मुझे सुधारने निकले हो और खुद बिगड़ रहे हो? मेरे भोले आशिक जरा अपने बदन को वक्त दो की तुम्हारा उड़ाया पानी फिर बन जाए! एक और बात! अब हम प्रेमी हैं और हमारा एक दूसरे के बदन पर हक्क़ है पर अगर मैं या तुम रुको कहें तो दूसरे को रुकना होगा। मंजूर?"

चिराग अपनी मां की बात सुन कर शरमाया और मान भी गया। फुलवा फिर वापस नहाकर बाहर आई तो चिराग ने कुछ कपड़े बाहर निकाले थे।

फुलवा, "कहीं जा रहे हो?"

चिराग ने बताया की होटल में कसरत का कमरा है इस लिए दोनों को कसरत करने जाना है। फुलवा की भूख मिट चुकी थी और वह सच में कसरत करना चाहती थी।

दोनों T shirt और ट्रैक पैंट पहने कसरत करने गए तो वहां के लोगों को कसरत की खास पोशाक में पाया। चिराग और फुलवा बातें करते हुए अपनी कसरत करने लगे। बातों बातों में चिराग ने ठगने वाले व्यापारी से सौदे की बात की और फुलवा ने अपने अनुभव बताए।

SP किरण की मदद से जब फुलवा ने कैंटीन चलाया था तब एक सब्जीवाला उन्हें सब्जियां बहुत महंगी बेचने की कोशिश कर रहा था। दूसरा सब्जीवाला नही था तो फुलवा ने तरकीब इस्तमाल कर उसे ही ठग लिया। फिर उस सब्जीवाले ने कभी फुलवा के कैंटीन को तकलीफ नहीं दी। चिराग फुलवा की बात सुनकर सोच में पड़ गया।

1 घंटे तक अच्छे से कसरत करने के बाद मां बेटे रेस्टोरेंट में गए और नाश्ता किया। फुलवा ने juice और फल की प्लेट लेकर कल रात का देखा अपना रूप बदलने की ठानी। चिराग ने हमेशा की तरह दूध, उबले अंडे और पैनकेक लेकर अपनी मां के बने नाश्ते की तारीफ की।

मां बेटे को रेस्टोरेंट में देख कर कोई सोच भी नहीं सकता था कि इन्हीं दोनों ने रात को क्या खेल खेले थे। चिराग ने अपनी मां से जल्दी जाते हुए उसे अकेले छोड़ने की माफी मांगी।

फुलवा चुपके से, "चिराग मुझे कुछ पैसे दे सकते हो? यहां तुम सब को सौ सौ रुपए देते हो। तुम्हारे जाने के बाद मुझे बाहर जाना पड़ा तो."

चिराग ने अपनी मां के हाथ पर अपना हाथ रखा और मुस्कुराया।

चिराग, "मां यह पूरी जायदाद आपकी है! चलो मैं आप को क्रेडिट कार्ड इस्तमाल करना सिखाता हूं।"

चिराग ने रेस्टोरेंट का बिल चुकाते हुए फुलवा को कार्ड इस्तमाल करना सिखाया और कार्ड मां को देकर मीटिंग की तयारी में लग गया।

फुलवा ने तयार होकर निकले अपने सुंदर बेटे को गले लगाया और शुभ कामनाएं देकर भेजा। चिराग ने अपनी मां से वादा किया कि वह शाम को 6 बजे तक लौट आएगा।

फुलवा ने घड़ी में 9 बजते ही अपने अच्छे कपड़े पहने और होटल के दरवाजे के बगल में बनी बड़ी मेज पर गई। वहां की खूबसूरत लड़की ने मदद करनी चाही तो फुलवा ने अच्छे कपड़े खरीदने की दुकान पूछी। कुछ ही देर में एक गाड़ी फुलवा को लेकर एक चकाचौंध दुकानों की इमारत में गई। फुलवा ने लड़की के बताए दुकान का रास्ता पूंछा और वहां पहुंच गई।

Passion Dreams Boutique में कपड़ों से भरी खुली अलमारियां कतार में खड़ी थी। फुलवा हर बार एक सुंदर कपड़ा देख कर उसकी कीमत देखती और अचानक अपना हाथ पीछे कर लेती। फिर अपने आप को समझाकर दुबारा देखती। उसकी इस हरकत पर एक नजर पड़ी और वह औरत फुलवा की ओर बढ़ी।

औरत, "कुछ पसंद नहीं आ रहा?"

फुलवा संकोच करती, "असल में सब कुछ बहुत सुंदर है पर."

औरत, "क्या हुआ?"

फुलवा शर्माकर डरते हुए, "मैंने कभी कपड़े खरीदे नहीं है! मुझे नहीं पता कैसे."

औरत चौंककर, "कैसे मुमकिन है!!"

उस औरत का चेहरा इतना दोस्ताना और सच्चा था कि फुलवा उसे अपनी कहानी कुछ हद्द तक बताने लगी। फुलवा ने बताया की उसके बड़ा भाई उसके लिए बचपन में ही पैसा कमाने बाहर निकल गए। भाइयों ने पैसे कमाकर उसे 18वे साल लेने आने का वादा किया था। पर गरीब और अकेली लड़की को पहचान के आदमी ने भाइयों के शहर ले जाने के नाम पर कोठे पर बेचा। वहीं उसे बच्चा भी हुआ जो बाद में अनाथ पला बढ़ा। उसे एक कैद से दूसरे कैद में घुमाया गया जब एक दिन उसके जवान बेटे ने उसे ढूंढ कर बचाया। बाद में दोनों को पता चला की भाई एक्सीडेंट में गुजर चुके थे पर उन्होंने अपने दोस्त के पास उसके लिए कुछ पैसा छोड़ा था। अब फुलवा ने पहने कपड़े भी उसी दोस्त ने मदद करते हुए दिए कपड़े थे।

औरत के आंखों में आंसू थे पर होंठों पर निश्चय की मुस्कान।

औरत, "आप का बेटा किधर है?"

फुलवा, "उसे अपनी विरासत के साथ नई नौकरी मिली है। आज शाम तक वह मीटिंग में व्यस्त रहेगा!"

औरत, "फूलवाजी, मेरा नाम हनीफा है और मैं जानती हूं मर्दों के हाथों कैद होना कैसा होता है। आप मुझे एक दिन दीजिए और हम आपको बिकुल नया बना देंगे! सबसे पहले ब्यूटी पार्लर!!"

फुलवा, "लेकिन कपड़े?"

हनीफा हंसकर, "यह मेरी दुकान है! जब मैं चाहूं तब हमें कपड़े मिल सकते हैं!"

फुलवा को कुछ पता चलने से पहले उसे दूसरे दुकान के खास कमरे में ले जा कर उसके सारे कपड़े उतार दिए गए। फुलवा की बगलों और पैरों के बीच के जंगल को देख वहां की औरत कुछ बोली।

हनीफा, "बिना तराशे हुए हीरे को तुम्हारे हाथ में दोस्ती की वजह से दिया है! बोलो, कहीं और पूछूं?"

फुलवा के बगल के बालों और नीचे के बालों को हटाया गया तब तक वहां और तीन औरतें आ गई थी।

हनीफा, "फूलवाजी, इनसे मिलो! यह हैं मीना सोलंकी जो कुछ बड़े अस्पताल की मालिक हैं। यह हैं साफिया जो एक ऐसी कंपनी की साझेदार और चलाती हैं जो आप ना जाने तो बेहतर! (फुलवा चौंक गई और बाकी औरतें इस मजाक पर हंस पड़ी लेकिन किसी ने उसे गलत नहीं कहा) और आखिर में यह हैं रूबीना, मेरी मां!"

फुलवा चौंक कर, "मां?"

रूबीना अपने मंगलसूत्र को छू कर, "कम उम्र में निकाह कराया गया पर अब मैं अपने सच्चे प्यार के साथ हूं। आप को हमसे डरने की कोई जरूरत नहीं!"

बाकी का दिन पांच औरतों ने बातें करते, हंसते, चिढ़ाते और मर्द जात को गालियां देते हुए बिताया। फुलवा को सच में सहेलियां मिल गई जिन्होंने खुद दर्द, धोखा और प्यार पाया था। सब औरतों को जोड़ता एक मर्द था जो सबसे ज्यादा गलियों और किस्सों का हक्कदार था। जिसे सब दानव कहती थी पर उनके आवाज में दोस्ती और प्यार झलक रही थी।

फुलवा ने ब्यूटी पार्लर से वापस बुटीक में जाते हुए, "आप उसे दानव क्यों कहती हो?"

तीन औरतों ने आह भरते हुए अपनी नाभि के नीचे दबाया तो साफ़िया ने अपनी आंखें बंद कर मुंह बनाया।

साफ़िया, "आप को डरने की जरूरत नहीं! वह अब सब कुछ अपनी सौतेली बेटी को देकर खुद आराम की जिंदगी जी रहा है!"

बात वहां से जरूरी मुद्दों पर आ गई।

हनीफा, "फूलवाजी, आप को अपनी अंडरवियर अभी बदलनी होगी! जिसने भी इन्हें खरीदा है वह या तो अंधा था या आप को देखा ही नहीं था! आओ मेरे साथ!"

फुलवा को अपने बदन की नुमाइश करने की आदत थी पर जब एक छोटे कमरे में 4 औरतें मिलकर तय करें की क्या HOT और क्या NOT है तो जरा मुश्किल हो जाता है। शाम ढलते हुए फुलवा के पास न केवल उसे चाहिए थे वैसे कसरत के कपड़े थे पर उनके साथ रोज के इस्तमाल के लिए, घूमने के लिए, पार्टी के लिए, समारोह के लिए और हाथ लगे तो मर्द को रिझाने के लिए भी!

फुलवा के दिल की धड़कने तेज होने लगी थीं और उसका बदन गरमा रहा था जब उसने होटल में वापस कदम रखा। फुलवा नहीं जानती थी कि वह अपनी बीमारी से भूखी हो रही थी या अपने बेटे को सब दिखाने के लिए!

फुलवा ने अपने गॉगल साफिया की तरह अपने सर पर रखे और अपने सेट किए बालों को रूबीना की तरह लहराते हुए होटल की मेज पर अपनी चाबी मांगी तो वहां के आदमी की आंखें लगभग बाहर निकल आईं। किसी ने उसे धक्का देते हुए फुलवा का सामान उठाते हुए बताया की सर ऊपर जा चुके हैं। फुलवा ने उसे एक मुस्कान देते हुए मीना की तरह इठलाते हुए लिफ्ट में चढ़ गई। आदमी फुलवा को किसी जानी मानी मॉडलिंग एजेंसी के बारे में बता रहा था जब चिराग ने मुस्कुराते हुए रूम का दरवाजा खोला।

चिराग के चेहरे पर आए हैरानी के भाव देख कर फुलवा के अंदर की औरत इतराई। चिराग ने आदमी के हाथ में 100 की नोट थमाकर फुलवा को अंदर खींच लिया।

चिराग ने अपनी मां को देखा और देखता रह गया। फुलवा ने चिराग के गाल को चूमते हुए उसके कान में कहा,
"बेटा भूख लगी है। कुछ खिला सकते हो?"
 
51

चिराग, "ओह मां, माफ करना."

चिराग ने अपनी मां के गालों को छू कर चुपके से, "मुझे डर है कि मैं आप को छू कर आप को चोट लगाऊंगा!"

फुलवा चिढ़ाते हुए कमरे में जाते हुए, "आजमा कर देख लो! लेकिन शायद मेरे बच्चे को तयार होने से पहले कुछ और आराम की जरूरत है! क्यों न मैं उस समान उठने वाले को थोड़ी देर के लिए.
आह!!.
मां!!. "

चिराग ने अपनी मां को उठाकर सजाए हुए बेड पर पटक दिया। फुलवा बेड पर अपने पेट के बल गिर गई और उसकी साड़ी का पल्लू गिर गया।

फुलवा चौंक कर पीछे देखते हुए, "बेटा क्या कर रहे हो?"

चिराग ने आव देखा ना ताव और झट से अपनी पैंट को घुटनों तक उतार कर अपनी मां पर कूद पड़ा। फुलवा ने बेड पर से उठने की कोशिश की पर साड़ी में उसे पहले अपनी कलाई और घुटनों पर खड़ा होना पड़ा। चिराग ने तुरंत एक तकिया अपनी मां के पेट पर दबाते हुए उसे पीछे से धक्का दिया। फुलवा वापस बेड पर गिर गई पर अब उसकी कमर कुछ हद्द तक हवा में उठी हुई थी।

चिराग ने अपनी मां के संवारे हुए बालों को अपनी बाईं मुट्ठी में पकड़ कर खींचा और वह चीख पड़ी। फुलवा की साड़ी को चिराग के दाएं हाथ ने कमर तक उठा लिया था तो फुलवा को अपनी खुली टांगों पर AC की सर्द हवा चुभ गई।

फुलवा ने अपनी फैली हुई टांगें मारते हुए चिराग को रोकने की कोशिश की। चिराग ने अपनी मां की बातों को नजरंदाज करते हुए उसकी नई पतली लगभग पारदर्शी पैंटी को उसके दाएं कूल्हे पर सरका दिया।

फुलवा, "नही!!.
नहीं!!.
बेटा!!.
नही!!.
दर्द होगा!!.
नही!!.
बेटा नहीं!!.
मैं तुम्हारी.
मां!!!.
आ!!.
आ!!.
आह!!!."

चिराग का पूरा सुखा लौड़ा एक ही चाप में फुलवा की भूखी गीली चूत में समा गया। फुलवा की आंखों के सामने तारे चमकने लगे। इस मीठे दर्द से फुलवा कराह उठी और उसके कूल्हे उठ कर चिराग को जगह देने लगे।

चिराग का लौड़ा इस तरह फुलवा को चोदते हुए उसकी चूत के सामने वाले हिस्से को सुपाड़े से रगड़ता उसे मज़ा दे रहा था पर चिराग को चूत में कुछ अधूरा एहसास हो रहा था। चिराग ने अपनी मां के यौन रसों से भीगे लौड़े को सुपाड़े तक बाहर निकाल कर जड़ तक पेलते हुए अपनी मां की चीखों को आहें बना दिया था।

फुलवा ने मुड़कर अपने बेटे को देखते हुए, "बेटा!!.
इतना गुस्सा.
आह!!!.
आ!!.
आ!!.
आ!!.
आ!!.
आह!!!!.
हा!!.
हा!!.
हा!!."

चिराग ने अपनी मां की आंखों में देखते हुए अपने लौड़े की दिशा कुछ कोन से बदल दी जिस से चिराग का पूरा लौड़ा अपनी पहली गांड़ में दब गया।

फुलवा, "नहीं!!.
नही!!.
नही!!.
यह तूने क्या किया.
आ!!.
आ!!.
आह!!.
बेटा!!.
आ!!.
आ!!.
अन्ह!!."

चिराग ने अपनी मां की गांड़ को आराम का मौका नहीं दिया। चिराग ने अपने लौड़े को सुपाड़े से जड़ तक तेजी से पेलना जारी रखा। चिराग जब भी अपने लौड़े की जड़ को फुलवा की गांड़ में दबाता फुलवा के नरम गद्देदार गोले दबकर उसकी नई पैंटी खींच जाती। पैंटी की मुड़ी हुई किनार फुलवा की बहती हुई चूत के ऊपर उभरे हुए दाने का रगड़ती और फुलवा बेबसी में उत्तेजित होकर रो पड़ती। फुलवा की गांड़ आज कई सालों बाद चुधते हुए भी बिना किसी मदद के फुलवा को झड़ने के लिए मजबूर कर रही थी।

फुलवा बेबसी में रोते हुए, "नहीं!!.
नही बेटा!!.
नही!!.
नहीं!!.
न.
ई!!.
ई!!.
ई!!.
ईई!!.
आ!!.
आह!!.
आह!!.
हा!!.
हा!!.
हां!!.
हां!!.
हां बेटा!!.
बेटा!!.
बे.
आअंह."

फुलवा तकिए पर झड़ते हुए बेसुध होकर गिर गई और उसकी गांड़ ने चिराग को निचोड़ते हुए ऐसे कस लिया की बेचारा झड़ते हुए एक भी बूंद बहा नहीं पाया।

चिराग ने अपने लौड़े को अपनी मां की गांड़ में दबाए रखते हुए उसे घुमाया। फुलवा अब तकिए पर अपनी गांड़ रखे पीठ के बल लेटी हुई थी।

चिराग ने अपने लौड़े को फुलवा की गांड़ में रख कर अपने स्खलन पर काबू रखते हुए अपनी मां का नया ब्लाउज खोल। ब्लाउज के अंदर की लगभग पारदर्शी ब्रा में से फुलवा की चूचियां ललचाते तरीके से छुपी हुई थीं। चिराग को यह बात कतई मंजूर नहीं थी।

चिराग ने अपनी मां की ब्रा के कप को नीचे खींचते हुए उसकी लज्जतदार चूचियों को आजाद किया। चिराग ने फिर अपनी मां के पैरों को उठाते हुए उसके घुटनों को अपनी कोहनियों में फंसाया और खुद अपनी मां के बदन पर लेट गया।

फुलवा के पैर फैल कर उठ गए। फुलवा की गांड़ और खुलकर उठ गई। फुलवा की आह निकल गई और आंखें खुल गईं।

फुलवा चिराग को अपने चेहरे के करीब देखते हुए, "क्या कर रहे हो बेटा?"

चिराग अच्छे बेटे की तरह, "मैं आप की गांड़ मार रहा हूं, मां!!"

फुलवा, "बेटा मैं तेरी मां.
आ!!.
आ!!.
आह!!.
हूं!!."

चिराग, "हां.
मां.
इसी.
लिए.
आप.
की.
गांड.
पर.
कब्जा.
कर.
रहा.
हूं!."

फुलवा ने अपने बेटे के बालों को पकड़ कर, "पर.
यह.
आह!.
गलत.
उम्म्म!!.
गलत.
ऊंह!!.
है!.
बेटा!!.
नहीं!!.
नही!!.
न.
ई!!.
ई!!.
ईई!!!.
ईह!!.
आह!!.
आह!!.
आँह!!.
हा!!.
हा!!.
हां!!.
हां!!.
हां!!.
आह!!.
हां!!."

फुलवा अपने यौन शिखर पर दुबारा उड़ने लगी और आखिर में चीख कर बेहोश हो गई। फुलवा की गांड़ दुबारा चिराग के लौड़े को कस कर निचोडते हुए ढीली पड़ गई।

चिराग का लौड़ा फट पड़ा और उसके गोटियों ने अपना बना माल फुलवा की भूखी आतों में उड़ेल दिया। चिराग अपनी मां के घुटनों को अपनी कोहनियों में लिए उसे अपनी बांहों में भर कर उसकी चूचियों को चूसता पड़ा रहा।

फुलवा ने होश में आते हुए आह भरी तो चिराग ने अपनी मां के पैरों को आज़ाद किया। फुलवा अपने बेटे को अपनी चूचियां चूसते हुए महसूस कर उसके बालों में उंगलियां फेरते पड़ी रही।

चिराग डरकर, "मां, मैंने आप को चोट पहुंचाई! आप के साथ जबरदस्ती की! आप बस रुकने को कहती तो."

फुलवा ने चिराग को हल्के से चाटा मारा।

फुलवा आह भरते हुए, "हर औरत चाहती है कि उसका मर्द उसके ऊपर अपना हक़ बताए हमें थोड़ा चीखने चिल्लाने पर मजबूर करे!"

चिराग सोचते हुए, "पर आपने तो कहा था की औरत की इजाजत के बगैर."

फुलवा हंस पड़ी और चिराग के माथे को चूम लिया।

फुलवा, "वह भी सच है। हम ऐसी ही हैं! और हमें कब कैसा मन हो रहा है यही असली पहेली है!"

चिराग का हक्का बक्का चेहरा देख कर फुलवा दिल खोल कर हंस पड़ी और उसे एक ओर धक्का देकर बेड पर से उठ गई। चिराग बेड पर कुछ देर पड़ा रहा और फिर अपनी मां को देखने लगा।

फुलवा ने अपने सारे कपड़े उतार दिए और अपनी गांड़ धोने के बाद नए ब्रा पैंटी का सेट निकाला।

चिराग, "मां, यह सारे कपड़े, मेकअप.
कैसे?"

फुलवा ने एक और पारदर्शी जोड़ी पहनते हुए। मैं कसरत करने के कपड़े खरीदने गई और कुछ औरतों से दोस्ती की! कैसे लग रही हूं?"

चिराग मुस्कुराकर, "अगर इस बात का मुझे जवाब देना पड़ेगा तो पिछला आधा घंटा बिलकुल बेकार गया!"

चिराग को फुलवा ने चूमा और चिराग कराह उठा।

चिराग, "रुको मां!! (फुलवा अचरज में रुक गई) मैंने हमारे लिए फिल्म के टिकट निकाले हैं! अभी निकले तो खाना खाकर फिल्म देख सकते हैं!"

फुलवा ने चिराग के कंधे पर चाटा मारा।

फुलवा, "तुमने मेरी हालत बिगाड़ दी! उसे ठीक करने में एक घंटा जायेगा! खाना ऊपर मंगा लो! तब तक मैं तयार हो जाती हूं। (जरा रुक कर) क्या पहनूं?"

चिराग शैतानी मुस्कान से, "कुछ ऐसा जिसे देख कर सिनेमा हॉल में भगदड़ मच जाए!"

फुलवा ने अपने शरारती बेटे को शरारती मुस्कान दी और सजने लगी।
 
52

फुलवा के साथ जब चिराग थिएटर पहुंचा तो वहां लोगों को उन्हें देखते रहने के अलावा कोई काम नहीं सूझा। फुलवा समझ चुकी थी कि मोहनजी ने जब उन दोनों के लिए घर बनाया उन्हें चिराग के बारे में कुछ अंदाज तो था पर फुलवा की जेल की तस्वीरें छोड़ कोई तरीका नहीं था।

फिल्म की कहानी कुछ खास नहीं थी पर नाच गाने के हावभाव देखकर फुलवा को हंसी आई। शोर शराबे में 3 घंटे आराम से गुजर जाते अगर बीच में ही फुलवा ने झुककर चिराग के कान में भूख लगने की बात न कही होती। अगला एक घंटा दोनों एक दूसरे को छू कर अपनी आग भड़काते रहे। अगर फुलवा की हल्की आह निकल जाती तो वह अक्सर फिल्म के शोर में दब जाती। फिल्म खत्म हुई तो मां बेटे को कहानी की भनक भी नहीं थी।

जाहिर सी बात थी कि जब दोनों के पीछे होटल का कमरा बंद हुआ तो भूखी शेरनी अपने खाने पर झपट पड़ी। शेरनी ने अपने शिकार को नीचे दबाकर दबोच लिया और रास्ते में आती रुकावटों को हटाकर अपनी भूख मिटाने लगी। शिकार ने पहले कुछ हाथापाई कर नियंत्रण पाने की कोशिश की पर आखिर में अपनी हार मान कर शेरनी का निवाला बना।

शेरनी की भूख मिटने तक कमरे में से सिर्फ जंगली गुर्राहट और शिकार की आहें बन रही थी। जब शेरनी का पेट शिकार की गर्मी से भर गया तब शेरनी ने जीत की आह भरते हुए सुस्ताना शुरू किया। शिकार बेचारा कब का पस्त होकर बस अपनी सांसे गिन रहा था।

फुलवा ने अपने बेटे की सीने पर सर रखकर उसके गले को चूमा। चिराग ने अपनी मां के पसीने से भीगे बदन को अपनी बाहों में लेकर उसके बालों को चूमा।

चिराग, "मां, अगर बुरा न मानो तो एक बात कहूं?"

फुलवा चिराग की धड़कने सुनते हुए, "बोलो बेटा!"

चिराग, "फर्श बहुत ठंडी है। क्या हम बिस्तर पर जाएं?"

दोनों ने हंसते हुए अपने बिखरे हुए कपड़े उठाए और बिस्तर में लेट गए।

फुलवा चिराग के सीने पर हाथ घुमाते हुए, "मीटिंग कैसी हुई?"

चिराग अपनी मां को बाहों में लेकर, "मजेदार!"

फुलवा चौंक कर, "मतलब?"

चिराग मां के माथे को चूम कर, "गंगाराम डाइज के मालिक को मिलने से पहले मैं बाजार में घुमा और कच्चेमाल की कीमत जानी। फिर मशीन की कीमत, चलाने का खर्चा और बाकी लागत को गिनकर सही हिसाब से मुनाफा जोड़ा।"

फुलवा बड़ी उत्सुकता से अपने बेटे से मीटिंग के किस्से सुन रही थी।

चिराग, "गंगाराम डाइज का मालिक साढ़े छह फीट का सांड जैसा आदमी है। उसे मिलकर कर लगा जैसे कोई बच्चा जो एक ही खेल से ऊब गया हो पर फिर भी खेल रहा हो।"

फुलवा, "कैसा खेल?"

चिराग सोचते हुए, "आसान जवाब होगा पैसा पर असलियत में लोग! यह आदमी इंसान की कमजोरियां पहचानकर उन्हें हराता है। पैसा तो बस हार जीत की निशानी है!"

फुलवा अपनी हथेली पर सर रखकर देखते हुए, "तुम हारे?"

चिराग मुस्कुराया, "उसकी भी एक कमजोरी है! वह खेल में इतना खो जाता है कि वह सिर्फ एक बात पर ध्यान केंद्रित करता है। मैं मुद्दे बदलता रहा! कभी डाई की कीमत, कभी ट्रांसपोर्ट तो कभी स्पेयर पार्ट्स। कॉन्ट्रैक्ट लिखे गए तब तक उसने मेरी तय कीमत पर डाइज बेची और अगले 3 साल स्पेयर पार्ट्स को तय कीमत पर देना भी मान गया।"

फुलवा मुस्कुराते हुए, "इतनी आसानी से हार गया?"

चिराग नटखट मुस्कान से, "पर उसने अपनी असली चाल चली नहीं थी! बीच में एक बार उस से मिलने उसकी बेटी आई थी। 27 साल की है पर कोई बोल के दिखाए की उसके 2 बच्चे हैं! जब उसे यह पता चला कि मैंने उसे हराया तो वह खुश हो गया। बोला की बच्चे होने के बाद दामाद बेटी से अच्छे पति का बर्ताव नहीं करता। अगर मैं उसकी बेटी को दो दिन की खुशी दूं तो वह मुझे वापस जाने के लिए अपनी 3 करोड़ रूपए की गाड़ी देगा!"

फुलवा का हाथ फिसला और वह बेड पर गिर गई।

फुलवा चौंक कर, "उसने तुम्हें 2 रात के लिए 3 करोड़ रुपए दिए!! क्या हुआ है बेटी को?"

चिराग दूर देखते हुए, "क्या कहूं मां! उसे ईश्वर ने छुट्टी लेकर तराशा है! कुदरत ने ममता से पकाया है! इतनी कम उम्र में अपने पिता के पूरे कारोबार की एक छत्र मल्लिका बनी है बस अपनी बेरहम अकल और ठोस ईमानदारी के जोर पर! मां, बस इतना समझ लो कि मानव शाह को मना करना शायद इस जिंदगी का सबसे घाटे का सौदा होगा!"

फुलवा जल भुन उठी और उसने ने चिराग के कंधे को काटते हुए उसकी गोटियां दबाई।

चिराग चीख पड़ा, "मां!!.
मां!!.
मैंने मना किया ना!!."

फुलवा ईर्षा से, "इतना दुख हो रहा है तो हां कहा होता!"

चिराग ने अपनी मां को चूमते हुए, "दानव सुधर जाए तो भी उसकी सारी बातों पर यकीन नहीं करते! दानव शाह के बारे में जानकारी जुटाकर ही मैं उस से मिलने गया था। गंगाराम उसके भाई का एक नाम था जो दानव की कृपा से उम्रकैद मना रहा है। भाई का कसूर था लालच! ऐसे आदमी से मिला शहद भी थोड़ा ही चखना चाहिए!"

फुलवा, "अगर वह इतना बुरा है तो मोहनजी ने तुम्हें क्यों भेजा? और उसने तुम्हें अपनी बेटी क्यों देनी चाही?"

चिराग ने अपनी रूठी हुई मां के नंगे बदन को सहलाकर उसे मानते हुए, "अमीर लोगों की आदतें समझना मुश्किल है! शायद मैं गधा हूं या शायद यह कोई इम्तिहान है? कल हमें खाने पर बुलाया है तब तुम बता देना!"

फुलवा सोचते हुए, "दानव मानव शाह.
सुधर गया है.
बेटी को जायदाद दे दी."
 
53
अगले दिन सुबह फुलवा ने चिराग को जल्दी उठाया और अपनी चूत की आग बुझाई। मां बेटे फिर कसरत करने गए। वहां के सारे मर्दों की नजर फुलवा पर ऐसी चिपकी हुई थी कि चिराग उसे मां पुकारते हुए उसके साथ रहकर भी उन्हें रोक नहीं पाया। जाहिर सी बात थी कि फुलवा दुबारा भूखी हो गई!

जैसे तैसे नाश्ता पूरा कर जब मां बेटे अपने कमरे में पहुंचे तो चिराग अपनी मां के रूप और अपनी जलन से इतना गुस्सा था कि उसका गुस्सा मां पर फूट पड़ा।

नहाती हुई मां की कसी हुई गांड़ में अपना गुस्सा थूंक कर चिराग ने उसे धोने और साफ होने में मदद की। गांड़ में बेटे का प्यार मिलने पर भला फुलवा अपने बेटे को माफ कैसे ना करती?

फुलवा ने जानबूझ कर एक मॉडर्न लेकिन समारोह वाला ड्रेस पहना और तयार होने में पूरे 2 घंटे लगा दिए।

जब फुलवा ने चिराग को तयार होने के बारे में बताया तो उसने किसी बहाने अपनी मां को बिस्तर की ओर ले जाने की कोशिश की।

फुलवा हंसकर, "मेरे बहादुर बच्चे, अब तुम से ना हो पाएगा! अच्छे बच्चे की तरह रहे तो रात को मालपुआ खिलाऊंगी!"

चिराग ललचाता फुलवा के पीछे पीछे दानव शाह से खाने पर मिलने निकला।

मानव शाह का घर एक आलीशान बिल्डिंग का penthouse suite था जहां वह अपनी बीवी (जो पहले उसकी भाभी थी) और बेटे के साथ रहता था। बगल का penthouse suite उसकी बेटी (भतीजी) का था जहां वह अपने पति और दो बच्चों के साथ रहती थी। पूरा परिवार एक साथ खाना खाता था और यहीं का चिराग और फुलवा को न्योता मिला था।

फुलवा की अनुभवी नजरों ने इस परिवार के हर पहलू को देखा और समझा। हंसी मजाक में खाने से पहले की बातें हुई और फुलवा को अपनी बढ़ती गर्मी को कम करने के लिए टॉयलेट जा कर अपने बदन पर पानी छिड़कना पड़ा।

फुलवा जब बाहर आई तो वह मानव के चौड़े सीने से टकराई।

फुलवा, "माफ कीजिए!!"

मानव, "मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगा!"

फुलवा ने मानव को देखा और दो योद्धा जंग से पहले एक दूसरे को तोलने लगे।

मानव, "आप कौन हैं?"

फुलवा पलकें झपकाते हुए झूठी मुस्कान से, "चिराग की मां।"

मानव फुलवा को निहारते हुए, "ओह, आप मां जरूर हो! पर चिराग. ना!!"

फुलवा झूठा गुस्सा कर, "क्या मतलब?"

मानव, "यहां मराठी में एक कहावत है कि मैंने बारा गांव का पानी पिया है। मतलब मैंने दुनिया देखी है! मैने तो सच में पूरी दुनिया देखी है। 32DD-30-38 सही काहा ना? आप चिराग की मां होने के लिए बहुत छोटी हो! सच बताओ!"

फुलवा शैतानी मुस्कान से, "मैं एक रण्डी थी जिसे चिराग ने बचाया है। चिराग से मैं एक हफ्ते पहले ही मिली हूं। दिन में बीस मर्दों से चूधने से मुझे सेक्स की लत लग गई है। जब चिराग काम से मुंबई आ रहा था तो मैं अपनी भूख मिटाने उसके पीछे आ गई। (मानव के हैरान चेहरे को नीचे खींच कर उसके कान में) मैं अभी भी भूखी हूं इस लिए अपने बदन पर ठंडा पानी छिड़क कर आ रही थी।"

मानव ने फुलवा को अपने सीने से लगाते हुए अपने अंग का एहसास कराया।

मानव फुलवा के कान में, "मेरे भाई ने मुझे जहर दिया था लेकिन सिर्फ इतना असर हुआ। अब मैं 15 इंच लम्बा और 5 इंच मोटा हूं जिसे ठंडा होने के लिए दिन में 18 बार उगलना पड़ता है। मेरे साथ रुक जाओ! हम एक दूसरे की मदद कर सकते हैं। मेरी बीवी समझती है कि एक औरत मुझे संभाल नहीं सकती। मेरी बीवी बुरा नहीं मानेगी।"

फुलवा ने मानव की पैंट पर अपनी हथेली दबाकर घूमाते हुए उसके मोटे मूसल को दबाते हुए,
"लेकिन क्या आप की बेटी इतनी समझदार है? (मानव के हक्का बक्का चेहरे पर हल्का चाटा मार कर) रण्डी हूं, जिस्म की बोली जानती हूं! आप के सारे नाति आप के बच्चे हैं! डरो मत, मैं सुधर रही हूं! अपने बेटे के लिए! एक दिन जरूर आयेगा जब वह मुझे मां पुकारेगा और मैं उसके लिए सिर्फ वही रहूंगी। बस उसकी मां और कुछ नहीं! (मानव के चेहरे को नीचे खींच कर उसे गाल पर चूम कर) मुझे सेक्स की लत है। मैं जानती हूं कि मैं बीमार हूं और इसी वजह से मैं ठीक हो रही हूं। एक बार अपनी जांच करा लो!"

फुलवा खाने के कमरे में चली गई और मानव उसके चूमे गाल को सहलाता खड़ा रह गया। मानव जब वापस आया तब उसे काम्या की तेज आंखों ने उसे दबोच लिया।

काम्या, "पापा, चिराग ने क्या कहा? आप मोहनजी से दोस्ती में हैं! मैं गांधी गोल्ड से शादी कर चुकी हूं और आप हमारे इकलौते प्रतिस्पर्धी से दोस्ती कर रहे हैं!"

मानव, "तुम शाह डायमंड और गांधी गोल्ड की कड़ी हो! मैं तो बस सब कुछ छोड़ दुनिया से दोस्ती करता मन मौजी हूं!"

मानव की इस बात को मेज पर बैठे बच्चे भी सच नही मानते थे। फुलवा ने दोपहर का खाना खत्म होते हुए और दो सहेलियां और शायद एक दोस्त बनाया। यह पूरा परिवार दर्द, धोखा और प्यार करीब से पहचानता था। खाना होने के बाद मानव एक कॉल करके लौटा।

मानव, "चिराग, मैंने सुना है कि फूलवाजी मुंबई में पहली बार आईं हैं। अब जब हमारा सौदा पूरा हो चुका है क्यों न आप दोनों चौपाटी घूम लो? वहां से मेरी गाड़ी आप दोनों को मेरे भाई साहब के मढ के बंगले पर ले जायेगी। कल सुबह आप दोनो घुमो, मुंबई देखो और रात की उड़ान से लौट जाओ!"

चिराग ने मानव के आभार व्यक्त करते हुए उसे मना करने की कोशिश की तो काम्या ने उसे टोक दिया।

काम्या, "मैं जानती हूं कि पापा ने मुझे कल दोपहर को किस वजह से बुलाया था! अगर तुमने हां कहा होता तो आज खाने की मेज पर नहीं होते। समझ लो कि यह तुम्हारे सही जवाब का इनाम है। फूलवाजी, साफिया से आप के बारे में सुना था, मिलकर यकीन हुआ। अगली बार आप जब भी मुंबई आएं, हम सब मिलकर ब्यूटी पार्लर डे मनाएंगी!(मानव की ओर देख कर) मेरे पास भी काफी किस्से हैं बताने के लिए!"

फुलवा और चिराग मानव की 3 करोड़ की गाड़ी में बैठ गए तो उन्हें पता चला की होटल से उनका सामान मढ के बंगले पर पहुंचा दिया गया था और गाड़ी कल शाम तक उनके लिए रहेगी। फुलवा छोटी बच्ची की तरह गाड़ी में बैठे बैठे उछलने लगी और हर चीज को छूने लगी।

चिराग ने अपनी मां की मासूमियत को टोके बगैर उसे अपनी खुशी जाहिर करने दी। चौपाटी नजदीक थी और ड्राइवर समझदार।

मां बेटे कुछ देर तक बच्चों की तरह रेत में खेले और फिर नमकीन पानी में नहाकर बाहर निकले। हर अंग में रेत चिपक कर एक अजीब गुदगुदी सी खुजली होने लगी तो फुलवा ने चिराग को बाहर निकाला।

फुलवा, "हम ऐसे गंदे कपड़ों में उस गाड़ी में नहीं बैठ सकते!"

चिराग मुस्कुराकर, "मैंने इसका इंतजाम कर दिया है। मेरी बैग में हमारे एक जोड़ी कपड़े है। हम दोनों यहां के किसी छोटे होटल में जाकर नहा लेते हैं। कपड़े बदलकर फिर गाड़ी में बैठेंगे!"

चिराग का सुझाव फुलवा को पसंद आया और दोनों ने पीछे की गली में बने छोटे होटल का एक कमरा लिया। अंदर पहुंच कर फुलवा हैरान रह गई।

चिराग ने दरवाजा लगाकर अपनी मां के कंधे पर हाथ रखकर, "क्या हुआ मां?"

फुलवा चुपके से, "तुम्हारे पास 500 हैं?"

चिराग ने अपनी जेब में से एक 500 की पत्ती निकाली और फुलवा को दी।

फुलवा चिराग को मुस्कुराकर देखते हुए, "यह बिलकुल 500 रुपए वाली रण्डी का कमरा है। (नोट को अपने बटुए में रखकर) अब तुम्हारे पास एक घंटा है सेठ! बोलो क्या करोगे?"
 
54

चिराग समझ गया कि उसकी मां उसके साथ खेलना चाहती थी लेकिन उसे यह डर भी था की वह उस के व्यवहार से उससे दूरी बनाने लगे।

चिराग, "एक घंटे में क्या करना है?"

फुलवा चिढ़ाते हुए, "नया है क्या?"

चिराग सर झुकाकर, "हां! पहली बार किसी को पैसे दिए हैं।"

फुलवा हंसकर, "आजा!!. आज फुलवाबाई तुझे सब कुछ सिखा देगी।"

फुलवा ने अपने हाथ उठाए और चिराग को देख कर आंख मारी। चिराग ने फुलवा की ड्रेस उतारी। फुलवा अब एक स्ट्रेपलेस ब्रा और बड़ी कसी हुई शॉर्ट्स में खड़ी थी।

चिराग, "ये हाफ पैंट क्यों पहनी है?"

फुलवा, "ड्रेस में पेट बड़ा नहीं दिखना चाहिए इस लिए यह खास पैंट है!"

चिराग ने फुलवा के पेट को पैंट पर से चूमते हुए, "आपका पेट बड़ा नहीं है। आप बहुत सुंदर हो!"

फुलवा, "मेरे नादान आशिक इसी तरह एक घंटा खत्म हो गया तो नीले गोटे लेकर जाना पड़ेगा!"

चिराग समझ गया कि उसकी मां प्यार से चुधवाने के मन में नहीं है। चिराग ने तुरंत अपनी रेत से भरी पैंट उतार दी और फुलवा के सामने खड़ा हो गया।

फुलवा, "रुको सेठ! आपके औजार पर भी रेत लगी है। मैं छिल जाऊंगी!!"

फुलवा ने तुरंत अपने घुटनों पर बैठ कर चिराग का 7 इंची फौलादी औजार चाटना शुरू किया। चिराग को चाटते हुए जब उसकी जीभ पर रेत के कण लगते तो फुलवा बगल में थूंक देती। कुछ ही पलों में चिराग का लौड़ा साफ होकर चमकने लगा और फुलवा उसे जोर जोर से चूसने लगी।

चिराग ने फुलवा को जमीन पर से उठाया और छोटे से कमरे को लगभग पूरी तरह भरते बेड पर धक्का दिया। चिराग ने देखा तो पैंट में छेद था जहां से उसकी मां के गुप्तांग पूरी तरह से खुले थे। चिराग तुरंत अपनी मां की चूत को चाट कर साफ करने लगा।

फुलवा के मखमली साफ किए अंग जल्द ही चिराग की लार और अपने काम रसों से चमकने लगे। चिरागने चाटते हुए अपनी मां की गांड़ भी चाट दी थी। चिराग अब अधीर हो रहा था पर फिर भी वह लगा रहा।

फुलवा से अब रहा नहीं गया और वह अपने बेटे को अपनी चूत पर दबाते हुए उसकी जीभ पर झड़ गई। चिराग ने ढीली पड़ चुकी अपनी मां के ऊपर लेटते हुए उसके 32DD ब्रा के कप नीचे किए। चिराग के होठों ने फुलवा की बाईं चूची पर हमला कर चूसना शुरू किया तो फुलवा की दहिनी चूची चिराग के बाएं हाथ की निचोड़ती उंगलियों में दब रही थी। फुलवा अपने मम्मों के दर्द का मज़ा ले रही थी जब उसे चिराग का सुपाड़ा अपनी चूत पर महसूस हुआ। मन के एक कोने में खेल की याद आई और फुलवा ने अपने बेटे को रोकने की कोशिश की।

फुलवा, "नहीं सेठ!!. 500 में बिना कंडोम के करने को नहीं मिलता! कंडोम पहन कर ही आना!"

चिराग समझ गया कि उसकी मां उसे अब भी अपने स्वास्थ के बारे में खबरदार रहने की सिख दे रही थी।

चिराग ने अपने लौड़े को फुलवा की भूखी चूत में पेल दिया। फुलवा की आह निकल गई और चिराग ने उसे गले लगाया।

चिराग फुलवा के कान में, "बोलो रुक जाऊं?"

फुलवा बस अपना सर हिलाकर मना कर पाई। भूख से बेबस फुलवा जीभ से झड़कर अब लौड़े से झड़ने को बेताब हो रही थी। चिराग ने लंबे चाप लगाते हुए अपनी मां की गरम चूत को वो पेला की उसकी मां का पानी फव्वारे की तरह उड़ गया।

आज सुबह दो बार लगातार झड़ने से चिराग अब भी झड़ने से कुछ दूर था।

चिराग फुलवा के कान में, "रंडियां तो सेठ का माल अपनी चूत में नहीं लेती ना?"

फुलवा ने झड़कर थकी हालत में अपने सर को हिलाकर मना किया। चिराग ने फुलवा को बेड पर से आधा उतारा और पेट के बल लिटा दिया। फुलवा का दाहिना घुटना बेड पर रखा तो बायां पैर पूरी तरह बेड से नीचे छोड़ दिया। इस से पहले कि फुलवा कुछ कर पाती चिराग ने पीछे से अपनी हथेलियों में फुलवा के भरे हुए मम्मे पकड़ लिए। चिराग ने अपनी मां को उसके रसीले मम्मों से उठाकर अपने सीने से लगाया। फुलवा की गांड़ खुली हुई थी और चिराग का चिकना लौड़ा आसानी से अपनी मां की गांड़ में जड़ तक समा गया।

फुलवा आह भरते हुए, "मां!!."

चिराग, "क्या 500 की रंडियां गांड़ नहीं मरवाती?"

फुलवा चिराग के तेज रफ्तार चुधाई में उसका जवाब बस आहों से दे पाई। चिराग अपने पूरे लौड़े को सुपाड़े तक बाहर निकालते हुए सीधे उसके दूधिया गोलों से अपनी मां को उठाता और फिर उन्हीं गोलों को खींच कर उसे अपने लौड़े पर पटख देता। फुलवा की आहें गूंजती रही और उसकी चूत झड़ती रही।

फुलवा ने अपने खाली हाथों से अपनी सुनी और खुली गीली चूत को सहलाना शुरु किया और अपनी उंगलियों से भी झड़ने लगी। फुलवा अब बस एक झड़ता हुआ मांस का गरम टुकड़ा थी ठीक जैसे वह जिस्म की मंडी में हुआ करती थी। लेकिन इस बार अपनी मर्जी से चूधने से फुलवा को कई गुना ज्यादा मज़ा आ रहा था। फुलवा अपने बेटे के लौड़े पर प्यार से खुद को न्योछावर कर अपनी जवानी का सही मजा ले रही थी।

आखिर में चिराग की आह निकल गई और वह फुलवा के ऊपर लेटकर उसकी गांड़ की गहराइयों में जोरों से धड़कने लगा। चिराग की गरमी अपनी आतों में लेकर फुलवा मुस्कुराई और एक झपकी लेने लगी।

चिराग ने अपनी मां को आराम करने दिया और खुद नहाकर नए कपड़े पहनने लगा। फुलवा की खुली गांड़ में से वीर्य फर्श पर टपक रहा था जब फुलवा ने धीरे से अपनी आंखें खोली।

फुलवा, "1 घंटा हो गया?"

चिराग फुलवा को चूमते हुए, "अभी के लिए काफी हुआ! भूख लगी तो रात को वापस खेलेंगे।"

फुलवा मान गई और नहाकर नए कपड़े पहनने के बाद दोनों बाहर निकले। चाबी लौटते हुए होटल के लड़के ने चिराग को रुकने का इशारा किया।

लड़का फुसफुसाते हुए, "कमरा पसंद आया?"

चिराग मुस्कुराकर फुसफुसाते हुए, "बहुत बढ़िया और यादगार कमरा है। क्या लगता है?"

लड़का एक आंख से फुलवा को देखा, "शरीफ घर की मां को पटाना बहुत मुश्किल होता है! कैसे किया?"

चिराग, "बहुत पापड़ बेलने पड़े! पर. पूरा वसूल!!"

लड़का मुंह बनाकर, "किस्मत वाले हो! वरना पापड़ बेलकर भी बिस्कुट पर भगा दिया जाता है! देखो जरा इसके पहचान की कोई. कोई भी चलेगी¡"

चिराग ने हंसकर हां कहा और बाहर निकल आया।

फुलवा, "मेरी कीमत पूछी?"

चिराग, "उसने कहा की मैं नसीबवाला हूं जो शरीफ घर की मां के मजे ले पाया। मां, आप कभी अपने आप पर शक नहीं करना!"

फुलवा मान गई और मां बेटे बातें करते हुए मानव शाह की गाड़ी में बैठ गए।
 
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मानव शाह की गाड़ी का ड्राइवर उसके चुनिंदा लोगों की तरह होशियार और ईमानदार था। वह मां बेटे को मढ के बंगले पर ले जाते हुए रास्ते के नजारों के बारे में बता रहा था। ड्राइवर ने न केवल काफी कुछ बताया पर जाना भी। उसने पाया की मां बेटे को दौलत की कमी नहीं थी पर आदत भी नहीं थी। उन्हें अच्छी चीजें पसंद थी पर दूसरे की चीजों से जलन नहीं थी। उनके पास दोस्त ज्यादा नहीं थे पर जो थे उनके लिए दोनों वफादार थे। अगर उसे पूछा जाता (और मानव शाह उसे पूछेगा) तो वह कहता की मां बेटे अच्छे लोग हैं।

चिराग ने असहज महसूस करते हुए, "शाह साहब को हमारे लिए अपना घर देने की जरूरत नहीं थी। हम होटल में रह सकते थे।"

ड्राइवर ने खिड़की से बाहर देखती फुलवा की मासूमियत और चिराग के जवान चेहरे पर जमा असहजता का बोझ देखा और शाह परिवार के कुछ राज़ खोले।

ड्राइवर, "आप अगर पुराने लोगों से मिले तो आप को पता चल जायेगा की इस घर में मानव शाह कभी नहीं आते। इसी घर में साहब के भाई ने नशे की हालत में उनकी मां को लूटा और खुदकुशी करने के लिए मजबूर किया। अब यह घर बस खास मेहमानों के लिए तैयार रखा जाता है।"

फुलवा और चिराग को मढ के बंगले पर छोड़ ड्राइवर अगले दिन सुबह मिलने का कहकर चला गया। मां बेटे ने पूरे घर को देखा और उस खामोश सुंदरता को महसूस किया जिसके लिए यह घर बनाया गया था।

मानव शाह का बंगला बस 2 बेडरूम, एक बड़ा हॉल और रसोईघर था। ऊपर छत पर एक झूला लगा हुआ था। पर इस घर की खास बात थी इसके इर्द गिर्द की रचना। तीन तरफ से ऊंचे पेड़ों से छुपा यह घर सीधे पत्थरों से टकराते समुंदर को दिखाता था।

मां बेटे ने इस जगह का रूप निहारते हुए एक दूसरे को छेड़कर खाना बनाया। खाना खाने के बाद किसी को नींद नहीं आ रही थी पर फुलवा की दूसरी भूख उसे दुबारा जला रही थी।

चिराग और फुलवा अपने सोने के कपड़े पहने ऊपर छत पर गए और बातें करने लगे। चिराग मानव शाह के साथ सौदा करके भले जीता था पर वह समझ गया था की उसे और बहुत सीखना बाकी है। फुलवा अपने जैसी औरतों से मिलकर महसूस कर रही थी कि उसे औरतों के साथ साथ मानव शाह जैसे उलझे हुए मर्दों से भी दोस्ती करनी होगी।

दोनों की बातें देर तक चली जब पेड़ों के ऊपर कुछ देख कर चिराग चुप हो गया।

चिराग ने चांद की ओर इशारा करते हुए, "मां, शायद आज पूर्णिमा है। देखो चांद कैसे चमक रहा है!"

फुलवा तेज सांसे दबाने की नाकाम कोशिश करते हुए, "बहुत सुंदर है ना! इतनी खामोश और अच्छी जगह का इतना दुखी अतीत है।"

चिराग ने अपनी मां को पीछे से अपने सीने पर दबाया तो वह चिराग की गरमी में समा गई।

चिराग फुलवा के कान में, "बिकूल आप की तरह!! क्या आप ने कभी खुले में चुधाई की है?"

फुलवा उत्तेजना में सिहरते हुए, " नहीं!. अक्सर बंद कमरों में या फिर मेरे भाइयों के साथ या इशारे पर गाड़ी में। खुले में. अभी तक नहीं!!"

चिराग ने अपनी मां के कंधों पर से उसका satin robe उतारा और उसके satin गाउन के पतले पट्टे पर से अपनी मां का कंधा चूमा। फुलवा ने सिहरते हुए अपने बेटे के बालों में उंगलियां फेरते हुए उसे अपनी भूख मिटाने की इजाजत दी। चिराग ने अपनी मां का satin gown उतारा और वह धरती पर उतरी पारी की तरह चांद की रोशनी में चमकने लगी।

चिराग ने अपनी मां की पीठ को चूमते हुए उसकी रीढ़ की हड्डी पर से नीचे जाते हुए उस जगह को चूमा जहां से उसकी कमर दो हिस्सो में बंटकर उसके गदराए कूल्हे बना रही थी। फुलवा से और बर्दास्त नहीं किया गया और उसने मुड़कर अपने बेटे पर धावा बोला। देखते ही देखते पूरी छत चिराग के कपड़ों से सजा दी गई।

फुलवा ने चिराग को छत की ठंडी फर्श पर लिटा दिया और उसके ऊपर लेट कर उसके नंगे बदन को चूमे लगी। चिराग आज 3 बार झड़ चुका था और उसे यकीन था की वह अपनी मां का बेहतरीन साथ दे पाएगा।

फुलवा ने अपने बेटे के जवान सीने को चूमते हुए नीचे होकर उसके तयार हथियार के सिरे को चूमा। चिराग की आह निकल गई पर वह हिले डुले बगैर लेटा रहा। फुलवा ने फिर अपने सालों के तजुर्बे को इस्तमाल कर अपने बेटे को सताना शुरू किया।

फुलवा ने अपने बेटे के खड़े लौड़े की जड़ से उसके सिरे तक चाटते हुए उसकी धड़कनों को अपनी जीभ पर महसूस किया। चिराग का लौड़ा चूसते हुए फुलवा ने अपनी आंखें से उसकी आंखों में देखा और अपना सर झुकाया। चिराग का सुपाड़ा और फिर लौड़े का अगला हिस्सा फुलवा के गले में समा गया।

फुलवा का गला चिराग के सुपाड़े को निगलने की कोशिश करने लगा और चिराग की आह निकल गई। चिराग की गोटियों में भूचाल आ गया और वह निचोड़ कर अपना पूरा माल बाहर उड़ाने लगी। फुलवा ने ठीक उसी समय अपने होठों को कस कर चिराग के लौड़े पर दबाया।

अपनी मां के मुंह की गीली गर्मी में कैद होकर चिराग का लौड़ा बेतहाशा झड़ता रहा। फुलवा के गले की मांस पेशियां अपने बेटे को निगल रही थी पर उसके होंठ बेटे का ताजा स्वादिष्ट माल बाहर निकलने से रोक रहे थे।

चिराग कमर उठकर अकड़ी के मरीज की तरह पूरे एक मिनट तक कांपता रहा। फुलवा से अपनी सांस और रोकी नहीं गई और उसने अपनी उंगलियों से चिराग के लौड़े की जड़ और नब्ज दबाकर अपने गले को खाली किया।

लार से सना चिकना लौड़ा पत्थर की तरह मजबूती से खड़ा था। फुलवा ने अपने बेटे को धीरे से उसके बदन पर काबू पाने देते हुए उसका लौड़ा पकड़े रखा। जब चिराग धीरे सांसे लेने लगा तो फुलवा ने अपने अंगूठे को उसके लौड़े के जड़ से हटाया। एक मोटी बूंद वीर्य फिर भी लौड़े से बाहर आ ही गई।

चिराग (अपनी मां को रोकते हुए), "उसे हाथ मत लगाना!!"

फुलवा, "क्यों?
क्या हुआ?
पसंद नहीं आया?"

चिराग ने निर्धार से उठते हुए उस बूंद को अपने चिकने लौड़े पर क्रीम की तरह फैलाया। चिराग ने फिर अपनी मां को उसके बाल पकड़ कर उठाया और खीच कर झूले पर उल्टा बिठाया।

फुलवा "बेटा!!" कर चिल्लाते हुए अपने घुटनों के बल झूले पर बैठ गई और झूले की पीठ के हिस्से को अपने हाथों से पकड़ लिया।

चिराग, "मां!! आज तुम्हें बताऊंगा की मैं कितनी आसानी से बातें सीखता हूं!"

चिराग ने अपने चिकने सुपाड़े को अपनी मां की फैली गांड़ के खुले भूरे छेद पर रखा और धीरे धीरे अपने लौड़े को पेलने लगा। फुलवा आह भरने लगी और चिराग उसकी संकरी गली को सिर्फ 2 इंची चुधाई से तड़पा रहा था।

फुलवा (बेसब्री से), "मेरे बच्चे!!
मुझे और ना सताओ!!
मेरी गांड़ मारो!!"

लेकिन चिराग को अपनी मां से उसे तड़पने का बदला लेना था। चिराग ने अपनी मां के गले को झूले की पीठ पर रखते हुए उसकी कलाइयां पीछे की ओर मोड़ कर एक हाथ से पकड़ ली। दूसरे हाथ को अपनी मां के पेट के नीचे से ले जाते हुए अपनी उंगलियों से अपनी मां की टपकती चूत को सहलाने लगा। चिराग अपनी मां की कलाइयों को छोटे पर तेज धक्के देते हुए झूले को झूला कर अपनी मां की गांड़ सिर्फ 2 इंच से मार रहा था।

गांड़ की चुधाई और चूत को माहिर तरीके से सहलाना फुलवा के लिए उत्तेजित कर झड़ने के लिए काफी था लेकिन अधूरी गांड़ चुधाई में वह दर्द नहीं था जिसके सहारे वह झड़ पाती। चिराग का सहलाना भी उसे उत्तेजना की पहाड़ी पर तेजी से उठा रहा था पर झड़ने से रोक रहा था। फुलवा तड़पने लगी और हिलकर अपनी गांड़ को मरवाने की कोशिश करने लगी।

चिराग फिर भी बेरहमी से फुलवा को सिर्फ उत्तेजित करता और मजबूर किए जा रहा था।

फुलवा रो पड़ी, "बेटा!!
अपनी मां को ऐसे नही तड़पते!!
मार मेरी गांड़!!
भर दे मुझे!!"

चिराग ने आखिर कार अपने लौड़े को पूरी तरह पेल दिया और उसकी मां ने सिसकते हुए झड़ना शुरू किया। चिराग ने अपनी मां की हथेलियों को छोड़ दिया और उसकी चूत को सहलाना बंद कर दिया तो फुलवा बाएं हाथ की तीन उंगलियों से अपनी चूत चोदते हुए अपने दाई उंगलियों से अपने यौन मोती को सहलाने लगी।

फुलवा की गांड़ चिराग को निचोड़ रही थी पर चिराग बिना झड़े बिना रुके अपनी मां की बुंड मारे जा रहा था। फुलवा को एहसास हुआ कि उसका बेटा अपने लौड़े की जड़ को दबाकर अपना स्खलन रोकते हुए उसकी भूख मिटा रहा था।

फुलवा अपने बेटे की अच्छाई पर उतनी ही रोई जितनी उसकी प्यासी गांड़ उसके बेटे की गरम मलाई के लिए तड़पी। चिराग ने अपनी मां को पूरे 13 मिनट झड़ते हुए रखा जब आखिरकार वह झड़ते हुए बेहोश हो गई। फिर चिराग ने अपने लौड़े की जड़ पर बनाया हुआ दबाव निकाला।

चिराग की गोटियों में धमाका हुआ और वह तड़पते हुए अपनी बेहोश मां पर गिर कर अकड़ने लगा। फुलवा की प्यासी गांड़ को उसके मनचाहे मलाई ने भर दिया और लौड़े के इर्दगिर्द से बहने लगी। चिराग किसी तरह अपनी मां को अपने साथ लेकर छत की फर्श पर ही सो गया।
 
56

अगले दिन सबेरे की ठंड में मां बेटे एक दूसरे को ऐसे लिपटे की जब आंख खुली तो उसके बदन ने सहज रूप से चुधाई शुरू कर दी थी। अब गर्मी के ऐसे मजेदार स्त्रोत को माना करने जितना बेवकूफ कोई नहीं था और चिराग अपनी मां पर चढ़ कर उसकी चूत को अपनी गर्मी से भरने के बाद ही रुक गया।

फिर दोनों ने एक दूसरे की बाहों में कुछ वक्त आलस में बिताया और नहाने गए। शावर में पहले अपने बेटे को चूस कर तयार करने के बाद मां ने अपनी गांड़ मरवाई। दुबारा नहाकर साफ होने के बाद मां बेटे ने अपने कपड़े पहने और नाश्ता किया जब ड्राइवर ने दरवाजा खटखटाया।

ड्राइवर इस आम दिखने वाले मां बेटे को मुंबई की कुछ सैर कराकर अंधेरी हवाई अड्डे पर छोड़ कर चला गया। ड्राइवर को यह कभी समझ नहीं आया कि मानव सेठ को इस मां बेटे में क्या खास लगा। सिवाय इसके कि वह बिलकुल आम लोग थे और मानव शाह को आम लोगों की आदत नहीं थी।

लखनऊ में मां बेटे उतरे तो वहां उनके लिए नारायण जी और मोहनजी खुद आए थे। मां बेटे को अपने घर खाने के बहाने ले जा कर मोहनजी ने पूरी बात बताई।

मोहन, "जिस दिन बापू ने यह कंपनी मेरे हाथ में दी तब कहा था कि कंपनी औलाद की तरह होती है पर मेरे लिए यह मेरी बेटी की तरह होगी। इसे मैने बढ़ाया, काबिल बनाया पर अब मुझे इसे तुम्हारे हवाले करना होगा। इसके आगे मैं बस सलाह दे सकता हूं पर मेरी बेटी पर मेरा हक़ नहीं होगा। (नारायण जी ने मोहन के कंधे पर हाथ रखा) मैंने चिराग को मानव शाह जैसे ठग के पास भेजा क्योंकि उसे इंसान को परखना आता है और मैं चिराग को परखने के लिए उसके बहुत करीब हूं।"

चिराग की ओर मुस्कुराकर मोहन, "तुम तो उम्मीद से कहीं बेहतर निकले! तुमने न केवल कंपनी को हफ्ते भर में समझ लिया पर मानव शाह को धंधे में हराया। मानव शाह ने तुम्हें अपनी बेटी का लालच दिया और यह बात अपने आप में अनोखी है। मानव शाह की बेटी को बुरी नजर से देखने वाला ज्यादा दिन नहीं बचता पर तुमने तो उसे भी मना कर दिया।"

मोहन (सोचते हुए), "मैं सोचता हूं कि तुम मेरे साथ 3 साल बिताने के बजाय एक या दो साल बाद मेरा मुंबई ऑफिस संभालने जाओ। वहां से ही असली धंधा होता है। तुम्हारी पहचान भी बनेगी और मेरे भरोसेमंद लोग तुम पर नजर भी रख पाएंगे।"

चिराग, "आप मुझे सिखाने वाले थे! अब क्या हुआ?"

मोहन, "मेरी बेटी को तुम्हारे हाथ देते हुए मुझे डर है कि मैं तुमसे जलने लग जाऊंगा। मैं अपनी बेटी के भविष्य को अपने आप से बचा रहा हूं!"

फुलवा, "मोहनजी आप एक बेहतरीन पिता हैं!"

मोहन हंसकर, "अभी मेरे बेटे रक्षित को बड़ा होने दो। फिर उस से पूछेंगे।"

मां बेटे ने बाप बेटे से इजाजत ली और अपने घर लौटे। घर में कदम रखते ही फुलवा अपने बेटे पर टूट पड़ी और दोनों को होश आने में आधा घंटा लग गया। फिर रात में यही हाथापाई एक बार और हुई। सुबह चिराग ने अपने खड़े लौड़े को अपनी नींद में होकर भी भूखी मां की भट्टी में भर दिया और फुलवा खुशी खुशी नींद में ही चूध गई। सुबह ऑफिस जाते हुए चिराग अपनी मां से विदा लेते हुए उसकी गांड़ में अपना माल भर कर चला गया और फुलवा का दिन संतुष्टि से शुरू हुआ।

फुलवा ने सत्या के साथ मिलकर कसरत की और उस दौरान दोनों ने खरीददारी का प्लान बनाया। फुलवा के सुझाव अपनाकर सत्या मोहन को बिस्तर में दुबारा अधमरा कर खुश थी। दोपहर को जब सत्या ने मोहन को फोन पर खरीददारी का बिल बताया तो वह चौंक गया। जब सत्या ने उसे खरीदी हुई चीजें बताई तो उसका गला सुख गया। मोहन ने चिराग को आखरी दो मीटिंग संभालने को कहा और मन ही मन फुलवा को आभार जताते हुए रक्षित से पहले अपने घर लौटा।

जल्द ही फुलवा चिराग के साथ अपनी नई दिनचर्या को अपनाकर खुशी खुशी जीने लगी। रोज सुबह चिराग दो बार फुलवा की भूख मिटता और ऑफिस चला जाता। शाम को लौटने के बाद फुलवा चिराग से अपनी भूख मिटाती और फिर रात को सोते हुए दोनों पति पत्नी की तरह धीरे धीरे प्यार से एक दूसरे से प्यार करते। मानसूपचार अब भी चल रहे थे और फुलवा को एहसास हो रहा था कि अब वह एक मर्द के प्यार से संतुष्ट होने लगी थी। फुलवा की भूख अब चिराग के ना होने पर भड़कती नहीं थी। अगर चिराग की तबियत खराब हो तो फुलवा दिन में तीन बार झड़ कर भी सह सकती थी। यह आम घरेलू औरत के लिए ज्यादा होगा पर 20 बार चूधने वाली रण्डी के लिए बड़ी तरक्की थी।

चिराग के हाथों बचकर लगभग एक साल हो गया था जब चूधी हुई फुलवा हमेशा की तरह चिराग से लिपट कर सो रही थी। फुलवा को गहरी नींद में सपना आया जो उसे एक पुराने वादे की याद लाया।

राज नर्तकी ने फुलवा को पुकारा था।
 
57

फुलवा ने सपने में देखा की राज नर्तकी की हवेली का दरवाजा खुला था और अंदर से सिसकने की आवाज आ रही थी। राज नर्तकी गुस्से में नाच रही थी और उसके सुनहरे घुंघरुओं की आवाज मानो गूंज रही थी। अचानक घुंघरू रुक गए और एक और सिसकती बेबस आवाज शुरू हो गई।

राज नर्तकी (सिर्फ आवाज), "मेरी सखी! मैं थक गई हूं! मुझे मदद करोगी?"

फुलवा की आंख खुली और उसे अपने इर्दगिर्द मौत की बू आ रही थी। फुलवा ने गहरी सांस ली और समझ गई कि आज उसकी मौत तय है।

फुलवा ने चुपके से उठ कर अपने सोते हुए बेटे को आखरी आशीर्वाद दिया और रसोईघर से एक तेज चाकू लेकर बापू की गाड़ी लेकर निकली। मौत की बू मानो उसे सही रास्ते पर तेजी से खींचे जा रही थी। 15 मिनट बाद गाड़ी राज नर्तकी की हवेली के सामने अपने आप बंद पड़ गई।

राज नर्तकी की हवेली का दरवाजा सच में पूरी तरह खुला था और अंदर से सिसकियों के साथ किसी तरह के काले जादू के रसम की आवाज सुनाई दे रही थी। फुलवा ने अंदर झांक कर देखा तो एक जवान लड़की के माथे पर अपने खून से किसी तरह की निशानी बनाकर एक आदमी राज नर्तकी को पुकार रहा था। आदमी की पीठ फुलवा की ओर थी पर लड़की हाथ और मुंह बंधी हुई हालत में उसे अपनी ओर आते हुए देख रही थी।

आदमी, "ओ प्राचीन खजाने की रखवाली करती पिशाच!! मेरा यह तोहफा कुबूल कर!! इस कोरी अनछुई कुंवारी को अपनी गुलाम बना और मुझे अपने खजाने को बस छूने का मौका दे! मैं तेरे लिए छोटे छोटे बच्चे भी लाऊंगा बस मुझे अपना प्रसाद दे!!"

आदमी ने अपने घुटनों पर बैठ कर अपने जोड़े हुए हाथ ऊपर उठाए तो उसने पकड़ा हुआ चाकू साफ नजर आया। लड़की डर कर रोते हुए उस चाकू को देख रही थी तो लालची आदमी लड़की का कांपता हुआ गला।

फुलवा ने बिना सोचे अपना चाकू निकाला और पीछे से आदमी का सर पकड़ लिया। आदमी चौंक गया और उसके हाथ से चाकू गिर गया।

फुलवा, "धन तुझे चाहिए और मरे कोई और, यह कहां का इंसाफ हुआ?"

फुलवा ने अपने चाकू को आदमी के गले पर लगाया तो वह छटपटाते हुए अपनी आज़ादी मांगने लगा।

फुलवा, "तूने पहले भी कहीं पर किसी मासूम को मारा है। तुझे छोड़ दूं तो तू और छोटे बच्चों को मारेगा। इंसाफ कहता है कि तुझे मारकर ही उन्हें बचाना होगा!"

फुलवा ने चाकू घुमाया और दरिंदे ने जलाई आग उसी के खून से बुझ गई। फुलवा ने उस मरते बदन को नजरंदाज करते हुए डरी हुई लड़की को अपने गले से लगाया और उसके हाथ और मुंह को खोला।

लड़की रोते हुए हाथ जोड़कर, "मुझे मत मारो!.
मैंने कुछ नहीं देखा!!.
मैं बेकसूर हूं!!."

फुलवा को उस कांपते हुए बदन में वही विवशता, वही डर महसूस किया जो उसने इस हवेली में बापू के साथ महसूस किया था। फुलवा ने एक मां की ममता से उस लड़की के माथे को चूमा और उसकी आंखों में देखा।

फुलवा, "बेटा, जो भी हुआ वह गुनाह नहीं है। कातिल को सजा देना इंसाफ होता है। तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं!!"

फुलवा को अपने पीछे से घुंघरू की आवाज सुनाई दी और उसकी आंखों में से आंसू छलक पड़े। फुलवा ने अपने आप से कहा कि वह अब भी बेकसूर है।

फुलवा लड़की के कान में, "क्या तुम्हें घुंघरू सुनाई दे रहे हैं?"

लड़की ने बुरी तरह कांपते हुए हां कहा।

फुलवा, "इसका मतलब तुम भी बेकसूर हो!"

अचानक हवेली की सदियों से बंद खिड़कियां खुल गईं और जोर से हवाएं बहने लगी। फुलवा को अपने पीछे से राज नर्तकी की आवाज सुनाई दी।

राज नर्तकी, "इतने सालों में मेरा मनुष्य से विश्वास उठ गया था। मेरी सखी, मेरी सहायता करने के लिए मैं आभारी हूं।"

फुलवा और लड़की ने पीछे आवाज की ओर देखा और भोर की पहली किरणों में राज नर्तकी चमक रही थी।



फुलवा राज नर्तकी के रूप से मंत्रमुग्ध हो कर देखती रही और राज नर्तकी ने उसे प्रणाम किया।

राज नर्तकी, "आज तुमने न्याय करके इस श्रापित वास्तु को मुक्त किया है और इस लिए मैं तुम्हें कुछ देना चाहती हूं।"

राज नर्तकी के पीछे पीछे फुलवा और लड़की चलते हुए दरबार के बीचोबीच आ गए।

फुलवा, "मैंने वादा किया था की मैं आऊंगी, इस लिए मैं आई। मुझे कुछ नहीं चाहिए।"

राज नर्तकी मुस्कुराते हुए, "सखी, मैं यह जानती हूं। इसी लिए मैं स्वेच्छा से तुम्हें यह देना चाहती हूं।"

राज नर्तकी ने ठीक बीच की फर्श पर अपनी ऐड़ी को दबाया और वह फर्श टूट कर बिखर गई। राज नर्तकी ने इशारे से दोनों को वहां के टुकड़ों को उठाने को कहा।

राज नर्तकी, "इसी जगह पर मैंने अपनी आखरी सांस छोड़ी थी।"

फर्श के अंदर से एक पोटली निकली जिसमे कुछ सामान था। पोटली बगल में रखते ही दूसरी पोटली वहां आ गई। ऐसा लग रहा था मानो पिछली कई सदियों से हवेली ने जो खजाना निगला था उसे हवेली उल्टी कर निकाल रही थी। पोटलियों के बाद संदूकें आईं। उनके बाद पुराने लकड़ी के डिब्बे बक्से और सबसे आखिर में कुछ राजसी जेवरात। आखिर में सोने और हीरे जड़े कई खंजर और जेवरात आए जो मानो पूरे दरबार ने एक साथ निकाल रखे थे। उनके बाद एक रत्नजड़ित खंजर जिस पर अब भी ताज़ा खून लगा था और आखिर में हीरे रत्न लगा कमरपट्टा और सोने के घुंघरू ठीक जैसे राज नर्तकी ने पहने हुए थे।

राज नर्तकी, "सामान बहुत है इसे जल्दी से बाहर ले जाओ सुबह बस होने को है।"

फुलवा की गाड़ी भर गई तो उसने राज नर्तकी को अपने कैद से आजाद होते हुए देखा।

राज नर्तकी (बाहर खड़ी हो कर), "सखी, मेरे लिए दुखी न होना। मैं तो अपने आराध्य, अप्सरा उर्वशी के शरण में जा रही हूं। तुम्हारी प्रशंसा अवश्य करूंगी!"

सूरज की पहली किरण के साथ राज नर्तकी जैसे चमकने लगी और देखते ही देखते ओझल हो गई। राज नर्तकी के जाते ही पूरा महल ताश के पत्तों के महल जैसा गिर गया। अंदर सदियों से बंद लाशें खुले में आ गई। फुलवा सदमे में खोई लड़की को अपनी गाड़ी में बिठाकर अपने साथ अपने घर ले आई।

चिराग काम के लिए तैयार हो गया था और अपनी मां को वापस आता देख आगे आया पर लड़की को देख रुक गया।

फुलवा, "चिराग, यह मेरी सहेली है और अब हमारे साथ ही रहेगी। तुम काम करने जाओ, आज हम दोनों जरा व्यस्त रहेंगी।"

चिराग अपनी मां से बिना बहस किए चला गया।

फुलवा ने लड़की को कुछ साफ कपड़े दिए और नहाकर नए कपड़े पहनने को कहा। जब लड़की लौटी तो फुलवा ने उसे नाश्ता खिलाया और उसके बारे में पूछा।



लड़की, "मेरा नाम झीना है और मैं पुराने दिल्ली की बदनाम गलियों में पली बढ़ी हूं।"

फुलवा, "झीना!! इसका मतलब क्या है?"

लड़की सर झुकाकर, "शादी के बिना मर्द का साथ देना।"

फुलवा चौंक कर, "क्या? मुझे नहीं लगता कि तुम्हारी मां ने तुम्हें यह नाम दिया होगा!"

लड़की, "नही, यह नाम अब्बू ने दिया था। वह मां से वही काम करवाते। लेकिन. मां कभी कभी मुझे नींद में समझ कर मुझे प्रिया बुलाती।"

फुलवा, "क्या हम तुम्हें प्रिया बुलाएं? (उसने सर हिलाकर हां कहा) तुम्हारी मां कहां है?"

प्रिया जोर जोर से रोने लगी। काफी देर बाद फुलवा उसे शांत कर पाई और प्रिया ने अपनी दुखी दास्तान सुनाई।

प्रिया की मां किसी अच्छे घर की बेटी थी जिसे उसके अब्बू ने भगाया, बर्बाद किया और अब वह लौट नहीं सकती थी। मजबूरी में अपना जिस्म बेचकर अपना पेट और बच्चा पालती थी। अब्बू उस के लिए ग्राहक लाते और तब अपनी बेटी को मार कर रात भर बाहर रखते। जैसे बेटी जवान होने लगी अब्बू ने उसे बेचने के पैंतरे शुरू किए पर उसकी मां ने उसे बड़ी मुश्किल से बचाए रखा। कल जब वह 18 साल की हुई तो अब्बू ने उसे मोटी रक्कम में एक काला जादू करने वाले ओझा को बेच दिया। जब ओझा प्रिया को ले जा रहा था तब उसकी मां को रोकते हुए अब्बू बुरी तरह पिट रहा था। प्रिया ने अपनी मां को आखरी बार देखा तब कोठे की सीढ़ियों से नीचे गिरकर टूटी गुड़िया की तरह दिख रही थी।

फुलवा ने उस दुःखी बच्ची को ममता से गले लगाया और उसे अपना दिल हल्का कर अपनी मां की मौत का मातम करने दिया। फिर फुलवा ने फोन उठाया और नारायण जी से बात की।

फुलवा, "नारायण जी मुझे धनदास की जरूरत है। क्या आप उसे भेज सकते हैं?"

नारायण जी, "ऐसा क्या है जो तुम्हें धनदास की जरूरत आ पड़ी? ठीक है, आता हूं!"

फुलवा के साथ प्रिया को देख नारायण जी चौंक गए पर प्रिया डर गई की शायद अब फुलवा उसे बेच दे। लेकिन फुलवा ने खजाने की पहली पोटली खोली और अंदर के जेवरात को देख नारायण जी और ज्यादा चौंक गए।

नारायण जी, "बेटी, ये कहां से मिला? यह हार मैने बनाया था और इसे चोरी हुए 12 साल बीत चुके हैं।"

फुलवा, "क्या आप इसे सही लोगों को लौटा सकते हैं?"

नारायण जी चिढ़ाते हुए, "याद है ना? धनदास ऐसे काम नहीं करता!"

फुलवा, "धनदास को और मौके मिलेंगे!"

पहली पोटली को बंद कर फुलवा ने दूसरी पोटली निकाली। धनदास ने इसे 20 साल पुरानी बताई। इसके भी मालिक का पता चलना मुमकिन था तो इसे भी रख दिया गया। पोटलियां निकलती गई और धनदास को इस खेल में मजा आने लगा। भारत की स्वतंत्रता का दौर गया और संदूकें खुलने लगी। अब मालिक का पता चलना मुमकिन नहीं था और कीमत पर मोल भाव होने लगा। प्रिया के लिए ऐसे पैसे के साथ खेलना नया था पर मर्द और औरत में हंसी मजाक बिलकुल अविश्वसनीय था।

संदूकों के साथ अंग्रेजों का काल बीत गया और नक्काशी के लकड़ी के बक्सों को खोलने से उनका खजाना तोलने तक के खेल में प्रिया भी शामिल हो गई। नवाबों का दौर खत्म होते हुए फुलवा ने राजसी जेवरात निकाले और उन्हें देख कर धनदास को जैसे सांप सूंघ गया।

धनदास बुदबुदाया, "नवाबी बहु के जेवरात?"

सोने और हीरे जड़े खंजर देख कर धनदास का रंग उड़ गया।

धनदास, "गायब नवाबी दरबार?"

रत्नजड़ित खंजर देख कर धनदास लगभग बेहोश हो गया।

धनदास फुसफुसाया, "नवाबजादे का खंजर."

सोने के घुंघरू और एक रत्नजड़ित कमरपट्टा देख धनदास बस एक वाक्य कह पाया।

धनदास, "राज नर्तकी का खजाना!!"

फुलवा ने प्रिया का हाथ अपने हाथ में लेकर, "हमें मिला है।"

धनदास की आंखों में आंसू भर आए।

धनदास, "मेरी बच्ची ये तूने क्या किया!!.
यह खजाना शापित है। इसे मुझे दे दो! मैं इसे लौटाऊंगा! मैं अपनी जिंदगी जी चुका हूं। तुम यह बात किसी को मत बताना और मुझे ढूंढने मत आना! वहां मौत का राज है!"

प्रिया चौंक कर, "आप हमारे लिए मरने को तैयार हैं?"

धनदास उसके सर पर हाथ रखकर, "एक आखरी कर्जा उतार रहा हूं मेरी बच्ची!"

फुलवा मुस्कुराकर, "नारायण जी कोई कर्जा बाकी नहीं है और कोई कहीं नहीं जा रहा! यह राज नर्तकी ने खुद हमें दिया हुआ तोहफा है और अब वहां कोई हवेली नही। श्राप टूट चुका है और हम दोनों अब सही सलामत हैं।"

नारायण जी को विश्वास दिलाने में थोड़ा वक्त और लगा पर उसने जिन चीजों के मालिक ढूंढे जा सकते थे उन्हें लौटाने का जिम्मा उठाया। फुलवा ने खजाने के बारे में पूरी सच्चाई बताते हुए कुंवारी की बली देते ओझा के बारे में बताया और नारायण जी सोच में पड़ गए।

नारायण जी, "मैं तुम्हें डराना नहीं चाहता पर ऐसे लोग अक्सर जोड़ी या किसी साझेदारी में रहते हैं। इस लड़की की जान को अब भी खतरा है!"

प्रिया डर गई और फुलवा ने उसे ढाढस बंधाते हुए, "आप ही बताइए! क्या करें?"

नारायण जी, "मोहन से बात कर तुम सब को मुंबई भेज देते हैं! इसे कोई देखने से पहले अगर तुम सब यहां से चले गए तो तुम्हारा साथ होना किसी को पता ही नहीं चलेगा। मोहन ने मुंबई में तैयारी कर रखी है और बाकी बातें आराम से हो जाएंगी।"

दोपहर के खाने तक नारायण जी और मोहनजी ने सारे इंतजाम कर लिए थे। चिराग आज घर जल्दी आ कर मुंबई जाने की तैयारी में हाथ बटाने वाला था। कल सुबह की ट्रेन से तीनों मुंबई जाने वाले थे क्योंकि वहां सिर्फ चिराग के कागज दिखाकर काम चल जाने वाला था।

प्रिया पैसे की इस ताकत को देख कर बुरी तरह डर चुकी थी। फुलवा ने नारायण जी के जाने के बाद प्रिया को सच्चाई से अवगत कराया।

फुलवा (प्रिया के हाथ अपने हाथों में लेकर), "प्रिया तुमने मुझसे यह नहीं छुपाया की तुम एक वैश्या की बेटी हो। सच्चाई बताते हुए तुम्हें डर लगा होगा की तुम्हें बुरा बर्ताव मिलेगा पर तुमने सच कहा! अब सच कहने की बारी मेरी है। मैं भी वैश्या की बेटी हूं। राज नर्तकी मेरी सखी थी क्योंकि उसी के सामने मेरे बापू ने मेरी गांड़ मार कर मुझे वैश्या बनाया था। कल तुम्हारा 18 वा जन्मदिन था और आज मेरा 38 वा जन्मदिन है। मैने जवानी के 20 सालों में से 19 साल किसी न किसी तरह से कैद में गुजारे हैं। मैं कभी रण्डी थी तो कभी डकैत। आखरी कैद में मैं एक 50 रुपए की रण्डी थी और हर रात 20 से ज्यादा लौड़े लेती थी। इसी वजह से मुझे सेक्स की बीमारी लग गई है। मेरे बेटे चिराग ने मुझे बचाया और अब मैं अपने ही बेटे ने चुधवाते हुए अपनी बीमारी पर काबू पाने की कोशिश कर रही हूं। अब बताओ, क्या तुम ऐसे बदचलन लोगों के बीच रहना चाहती हो? सोचो! अगर मना किया तो मैं आसानी से तुम्हें नारायण जी की मदद से तुम्हारी मर्जी के शहर में तुम्हारा अच्छा इंतज़ाम कर सकती हूं!"

प्रिया मुस्कुराकर, "औरत मर्द के बीच क्या होता है यह तो शायद मैं बोलना सीखने से पहले सीख गई। लेकिन आप की सच्चाई जानकर मुझे लगता है कि मुझे आप से बेहतर कोई समझ नहीं पाएगा। अगर आप बुरा न मानो तो मैं आप के साथ ही रहना चाहूंगी।"

फुलवा ने प्रिया को गले लगाया और उसके साथ अपने मानसउपचारतज्ञ के पास गई। डॉक्टर ने उनके मुंबई के दोस्त का पता दिया और दोनों को शुभकामनाएं दी।

चिराग घर लौटा तो उसके मन में कई सवाल थे। चिराग ने अपनी मां को देखा और उसके लाल होते चेहरे, तेज चलती सांसे, माथे पर पसीना और चमकती आंखों से पहचान गया की उसे जवाबों के लिए थोड़ा और इंतजार करना होगा।
 
58

चिराग फुलवा को पकड़कर उनके कमरे में ले गया और दरवाजा हैरानी से देखती प्रिया के मुंह पर बंद कर दिया।

चिराग, "मां, तुम भूखी हो।"

फुलवा चिराग से लिपट गई और दोनों के वजन से दरवाजा बज गया।

फुलवा चिराग के कान में, "बेहद भूखी!!"

चिराग असहज होकर, "बाहर! वह लड़की!!"

फुलवा चिराग को चूमते हुए, "प्रिया!! उसे सब बता दिया है!!"

चिराग चौंक कर, "सब!!"

फुलवा, "इतना वक्त नहीं था!!. बस मेरा अतीत, मेरी बीमारी, मेरा इलाज और हमारा रिश्ता!"

चिराग, "और वह कुछ नहीं बोली?"

फुलवा ने नीचे झुककर चिराग के पैंट की चैन खोली और अंदर से उसका फूला हुआ लौड़ा बाहर निकाला। चिराग के लौड़े पर थूंक कर उसे हिलाते हुए फुलवा ने चिराग को देखा।

फुलवा, "लाचार है! उसके पास दूसरा सहारा नहीं! उसकी जान को खतरा है और मैने उसकी जान बचाई है! वह मेरे कहने पर तुझे भी चुधवा ले!!"

चिराग डांटते हुए, "मां! ऐसे मजाक में भी नहीं कहना!!"

फुलवा ने अपने बेटे की वाजिब डांट खाते हुए उसका लौड़ा चूसने लगी। चिराग ने भी सुबह से अपना माल दबाए रखा था और वह उसे अपनी मां की कोख में ही भरना चाहता था।

चिराग ने अपनी मां को उठाया और घुमाकर दरवाजे पर दबाया। चिराग की उंगलियों ने मां की साड़ी और पेटीकोट को कमर तक ऊपर उठाया और उसे मोड़ कर मां की कमर से दरवाजे पर दबा दिया। फुलवा की भूखी चूत में जमा यौन रस से भीग कर उसकी पैंटी कब की भीग चुकी थी। अब यौन रसों की पतली धारा फुलवा की जांघों पर से होते हुए नीचे बह रही थी।

चिराग ने जल्दी से फुलवा की पैंटी की बीच में बनी गीली पट्टी को खीच कर एक ओर सरका दिया। फुलवा की टपकती गरम चूत को बाहर की ठंडी हवा लगी तो उसकी यौन पंखुड़ियां फूल की तरह खिल उठी और फैल गई। चिराग ने अपने मोटे सुपाड़े को फुलवा की टपकती पंखुड़ियों पर घुमाया और फुलवा उत्तेजना वश सिसक उठी।

चिराग ने अपने लौड़े को अपनी मां की गरम बहती जवानी में धीरे धीरे भरना शुरू किया तो फुलवा ने भूख से तड़प कर उसके इस तरीके का विरोध किया।

फुलवा अपनी कमर हिलाकर दरवाजे को बजाते हुए चीख पड़ी, "नहीं!.
बेटा ऐसे नही तड़पते!!.
आह!!.
आह!!.
आ!!.
मैने तुझे भूखा रखा!!.
गुस्सा नहीं होना!!.
मेरी बात मान!!.
आह!!."

फुलवा ने अपने हाथों से चिराग के कंधे पकड़ लिए और अपने पैरों को उठाकर चिराग के चाप लगाते कूल्हों के पीछे अपनी एडियां अटका ली। चिराग का हर चाप फुलवा की चीख निकालता और दरवाजे को बजाता। जवान फौलादी लौड़ा उबलती भूखी जवानी में समा चुका था तो अब होश तो आग में पानी चिड़कने के बाद ही आना था।

सुबह से भूखे प्रेमियों की भूख शांत होने में पूरा आधा घंटा गया जिस दौरान चिराग लगातार दो बार झड़ गया तो फुलवा की चीखों की किसीने गिनती नहीं की।

गिनती तो हुई थी पर इसकी खबर फुलवा को देर से चली। फुलवा अपने कपड़े बदलकर बाहर आई तो प्रिया चिराग को शाम का नाश्ता परोस रही थी। फुलवा को देख कर प्रिया की आंखों में इतनी हमदर्दी भर आई की फुलवा पहले समझ ही नहीं पाई।

फुलवा को नाश्ते के बाद अकेले में पकड़ प्रिया, "मर्द जात बड़ी बेरहम होती है। आप को बोलने तक का वक्त नहीं दिया!!"

फुलवा को समझने में कुछ पल लगे और फिर वह जोर से हंसने लगी। फुलवा के पेट में दर्द तो आंखों में आंसू आ गए। प्रिया नासमझ होने से देखती रह गई। फुलवा ने आखिर कार अपने आप को संभाला और प्रिया को गले लगाकर उसके गाल और माथे को चूमा।

असहज प्रिया को देख फुलवा, "मेरी मासूम बच्ची तुझे किसी की नज़र ना लगे!!"

प्रिया, "मतलब? आप दर्द से चिल्ला रही थी और वो अपनी मां को दरवाजे पर पटकते हुए तड़पा रहा था। आप की बातें मैंने सुनी! आप उसे कह रही थीं कि वह आप को ना तड़पाए पर वह लगा रहा। मां भी ग्राहकों के आने पर ऐसे ही चिल्लाती रहती!"

फुलवा समझाते हुए, "मेरी भोली बच्ची तेरी मां बहुत अच्छी थी जो उसने अपनी हालातों में भी तुझे इतनी मासूमियत में रहने दिया। अगर औरत अपनी मर्जी ना हो कर भी मर्द का साथ देने को मजबूर हो जाए तो यह दर्द वाकई बहुत बुरा होता है। पर जब औरत को अपने मर्द से प्यार हो और वह उसे अपनाना चाहती हो तो यह दर्द मज़ेदार होता है! तुम जवान हो रही हो, जल्द ही प्यार भी करने लगोगी! तब बताना!"

प्रिया मुंह बनाकर, "आप मुझे बहलाने की कोशिश कर रही हो! मैने मर्द का अंग देखा है! ऐसा गंदा मोटा कीड़े जैसा हिस्सा कोई औरत अपने अंदर अपनी मर्जी से कभी नहीं लेगी! और दर्द तो दर्द होता है। अपने दे या पराए, अच्छा क्यों लगेगा? मुझे कुछ नहीं पता! मैं बस इतना जानती हूं कि अगर कोई मर्द मुझे छूने की भी कोशिश करे तो मैं उसे मार दूंगी या मर जाऊंगी!"

फुलवा ने अपनी मासूम बच्ची के सर पर हाथ फेरते हुए मुस्कुराकर बात टाल दी।
 
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