desiaks
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Hawas ka ghulam ( हवस का गुलाम )
गर्मियों के मौसम को झेलने के बाद बारिश का मौसम कुछ ज़्यादा ही सुहाना लगता है. सावन जो शुरू हो चुका है. आज जल्दी सुबह से ही काले मेघों ने अपनी हुंकार लगानी शुरू करदी. हरे भरे पेड़ों के हरे पत्तों से पानी की बूंदे अठखेलियाँ करते हुए ज़मीन मे समा जाती है. और ये बारिश अपनी मिट्टी की खुश्बू इस कदर फैला जाती है कि माहॉल एक तरह से रोमांचित हो उठता है.ये तो कुदरत का एक अनोखा करिश्मा है कि 1 साल मे कुदरत अपने की रंग दिखाती है, कभी आसमान से बर्फ बन कर तो कभी आसमानी आग बन कर, कभी झड़ते पत्तों का खेल, तो कभी आग और पानी का मेल, कभी बारिश बरसाती है तो कही बीजूरी कडकाती है, कहीं आग बरसाती है, तो कही...
कितना बताऊ कुदरत के बारे मे. इंसान भी इसी कुदरत की तरह है कभी भी कुछ भी कर देता है, कभी प्यार तो कभी तकरार, कभी झगड़ा तो कभी भांगड़ा. औरत का मन और इंसान की फ़ितरत कब बदल जाए कुछ कहा नहीं जा सकता. जैसे कि इसी घर मे देखलो,
अंजलि,
अंजलि यार मेरा रुमाल कहाँ है,
भाभी मेरे नाश्ता तैयार हुआ कि नहीं प्लीज़ भाभी जल्दी कर दो ना मैं लेट हो रही हूँ,
अंजलि:- जी लाई, कोमल तुम्हारा नाश्ता टेबल पर है जल्दी करो, टिफिन किचन मे है बॅग मे रख लेना याद कर के,
बहू... बहू,,
अंजलि: जी माँ जी