desiaks
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अब दोनो तरफ से सिर्फ़ शांति थी. ना तो वो कुछ बोल रही थी और ना ही मैं कुछ बोल रहा था. बीती हुई बातों को याद करने का मेरे उपर ये असर पड़ा था कि अब मेरे मन मे कीर्ति के लिए कोई नाराज़गी नही थी.
अब मुझे सिर्फ़ उसका प्यार नज़र आ रहा था और मैं उसकी की हुई ग़लती को नज़र अंदाज़ करके उस से बात करना चाहता था. मैं जानता था की कीर्ति कि नाराज़गी भी मुझसे बात करते ही दूर हो जाएगी. इसलिए अब मैने खुद ही उस से बात करने की पहल करने का फ़ैसला कर लिया था.
लेकिन अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी मुझे कीर्ति की आवाज़ सुनाई दी. शायद कीर्ति ने दूसरे मोबाइल से किसी को कॉल किया था और उसने कहा.
कीर्ति बोली “हेलो, कौन, जीत.”
जीत का नाम सुनते ही मेरा मूड फिर से खराब हो गया. दूसरी तरफ से कुछ कहा गया. जिसके जबाब मे कीर्ति ने कहा.
कीर्ति बोली “तुम तो रात को बड़ी जल्दी सो जाते हो.”
इतना कह कर वो चुप हो गयी. शायद दूसरी तरफ से कुछ कहा जा रहा था. जिसके बाद कीर्ति ने कहा.
कीर्ति बोली “ओके, अभी मैं थोड़ी बिज़ी हूँ. मैं तुमसे कुछ देर बाद बात करती हूँ. बाइ.”
इसके बाद कीर्ति की आवाज़ आना बंद हो गयी. शायद उसने कॉल रख दिया था. थोड़ी देर की खामोशी के बाद कीर्ति ने मुझसे कहा.
कीर्ति बोली “हेलो.”
मैं बोला “हां बोलो.”
कीर्ति बोली “तुमको कुछ कहना है.”
मैं बोला “नही.”
कीर्ति बोली “तो फिर कॉल रखा जाए.”
मैं बोला “ओक, बाइ.”
इतना कह कर मैने कीर्ति का कोई जबाब सुने बिना कॉल काट दिया. मुझे समझ मे नही आया कि, कीर्ति ने मेरे साथ ऐसा क्यो किया. जिस जीत की वजह से हमारे बीच झगड़ा लगा चल रहा था. उसे ही मेरे सामने कॉल लगाने का क्या मतलब था.
इसका तो सिर्फ़ एक ही मतलब समझ मे आ रहा था कि, कीर्ति मेरे सामने उसको कॉल लगा कर मुझे जलाना चाहती थी. कुछ भी हो लेकिन कीर्ति की इस हरकत ने मुझे फिर से चोट पहुचा दी थी.
मुझे उसके प्यार पर पूरा विस्वास था, इसलिए मैं तो उसको मनाने की पहल करने वाला था. लेकिन जीत को कॉल लगा कर उसने मेरे गुस्से को और बढ़ा दिया था. अब मैने भी सोच लिया था कि, यदि कीर्ति खुद से बात नही करती तो, अब मैं भी उस से कोई बात नही करूगा.
कीर्ति से बात ना करने का फ़ैसला तो मैने ले लिया था. लेकिन ये सवाल तो अब जहाँ का तहाँ था कि, कीर्ति ने मेरे साथ ऐसा क्यो किया. मैं जितना इस सवाल का जबाब ढूँढने की कोसिस करता. उतना ही उलझता जा रहा था और इसी उलझन मे उलझे उलझे मेरी आँख लग गयी.
मगर नींद मे भी मेरे दिमाग़ मे कीर्ति ही घूमती रही और फिर 8:45 बजे मेरी नींद खुल गयी. थोड़ी देर मैं लेटे लेटे कीर्ति के बारे मे ही सोचता रहा और जब उसके बारे मे सोचने से मेरा तनाव बढ़ने लगा तो, मैं उठ कर हॉस्पिटल जाने के लिए तैयार होने लगा.
जब से मैं मुंबई आया था. तब से रोज मेरे साथ कोई ना कोई घटना हो रही थी. मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि, ये सब मेरे साथ क्यो हो रहा है. ये ही सब सोचते हुए मैं तैयार हुआ और 9:30 बजे हॉस्पिटल के लिए निकल गया.
मैं हॉस्पिटल पहुँचा तो मुझे राज नीचे ही मिल गया. मगर आज मेरा उस से बात करने का कोई मूड नही था. मैने मेहुल को बुलाया और घर जाने का कहा तो राज भी उसके साथ घर जाने लगा.
राज को मेहुल के साथ घर जाते देख कर मैने राज से कहा.
मैं बोला “क्या आज तुम प्रिया के पास नही रुकोगे.”
राज बोला “नही, प्रिया की तबीयत अब सही है और घबराने की कोई बात नही है. इसलिए उसके पास निक्की अकेली रुक रही है और तुम भी तो यही हो.”
उसके बाद वो मेहुल के साथ घर चला और मैं कुछ देर प्रिया के पास रुक कर अंकल के पास चला गया. मेरी थोड़ी बहुत अंकल से बात हुई. अब वो पूरी तरह से ठीक हो चुके थे. लेकिन अभी उनको एक हफ्ते ऑर हॉस्पिटल मे ही रहना था.
कुछ देर बाद अंकल को नींद आने लगी और वो सो गये. मेरा मूड आज अच्छा नही था और रह रह कर, बार बार कीर्ति का ख़याल आ रहा था. अभी तक रोज 11 बजे के बाद मेरी कीर्ति से बात होती थी.
लेकिन आज 12 बज गया था और मेरी उस से कोई बात नही हुई थी. इसलिए अब मुझे उसकी कमी बहुत अखर रही थी और जब मुझे कीर्ति की कमी का अहसास बहुत सताने लगा तो, मैं उठ कर नीचे आ गया.
नीचे आकर मैने कॉफी ली और फिर बाहर आकर समुंदर के किनारे बैठ गया. लेकिन मेरे आने के कुछ ही देर बाद निक्की मेरे पास आ गयी. मुझे समझ नही आया कि उसे मेरे नीचे आने का पता कैसे चल गया. इसलिए मैने उस से कहा.
मैं बोला “आप यहाँ कैसे. आपको कैसे पता चला कि मैं नीचे आया हूँ.”
मेरी बात सुनकर निक्की ने हंसते हुए कहा.
निक्की बोली “मैने तो आपको नीचे आते समय ही देख लिया था. जब आप नीचे आए तब मैं लिफ्ट के पास खड़ी शिखा दीदी से बात कर रही थी. लेकिन आप अपने आप मे इतना खोए हुए थे कि, आप मेरे पास से निकल कर कॅंटीन की तरफ चले गये मगर मुझे नही देखा.”
निक्की का कहना सही था. मैं कीर्ति की सोच मे इतना उलझा हुआ था कि, मुझे कुछ भी ध्यान नही था. फिर भी मैने बात को टालते हुए कहा.
मैं बोला “वो मुझे कॉफी की तलब लगी हुई थी. इसलिए मैने ध्यान नही दिया होगा और सीधे कॅंटीन की तरफ चला गया. आप रुकिये मैं आपके लिए भी कॉफी ले आता हूँ.”
निक्की अभी कुछ कह पाती, उस से पहले ही हम लोगो को अजय की आवाज़ सुनाई दी. अजय कह रहा था.
अजय बोला “मैं भी कॉफी पियुंगा.”
अजय की आवाज़ सुनते ही हम लोगो ने अजय की तरफ देखा तो, वो हमारे पीछे खड़ा था. उसकी बात सुनते ही मैने कहा.
मैं बोला “ओके, तुम निक्की के साथ बैठो, मैं अभी कॉफी लेकर आता हूँ.”
ये बोल कर, मैं बिना उनका जबाब सुने कॉफी लेने चला गया. थोड़ी देर बाद मैं कॉफी लेकर लौटा और दोनो को कॉफी देने के बाद उनके पास ही बैठ गया. मेरे बैठते ही अजय ने कहा.
अजय बोला “क्या हुआ. तुमको कोई परेसानी है क्या.”
अजय का सीधा सा सवाल सुनकर मैं चौक गया. मैने हैरत भरी नज़रों से अजय को देखते हुए कहा.
मैं बोला “नही तो, ऐसी कोई बात नही है. तुमको ऐसा क्यो लगा.”
अजय बोला “तुम्हारे चेहरे से ऐसा लगा कि, तुम कुछ परेशान हो.”
मैं बोला “नही, ऐसा कुछ भी नही है. बस मुझे बहुत देर से कॉफी की तलब लगी थी. इसलिए शायद परेशान लग रहा हूँ.”
मेरी बात को सुनने के बाद अजय ने भी इस बात पर ज़्यादा ज़ोर नही दिया और अंकल की तबीयत पूछने लगा. इसके बाद उसकी निक्की से प्रिया की तबीयत के बारे मे बातें होती रही.
इन्ही बातों मे निक्की का कॉफी पीना हो गया और फिर वो उठ कर वापस प्रिया के पास चली गयी. निक्की के जाने के बाद अजय ने मुझसे कहा.
अजय बोला “ऑर सूनाओ, तुम्हारी गर्लफ्रेंड का क्या हाल है. आज उस से बात हुई या नही.”
अचानक से अजय की बात सुनकर एक पल के लिए मैं चौक गया. मगर ये फिर मैने अपने आप पर काबू पाते हुए उस से कहा.
मैं बोला “वो अच्छी है. अभी अभी सोई है.”
मेरी बात सुनकर, अजय मुस्कुराने लगा. उसे मुस्कुराते देख मुझे अजीब ज़रूर लगा. लेकिन मैं खामोश ही रहा. मुझे खामोश देख कर अजय ने कहा.
अजय बोला “लगता तुम मुझे अपना दोस्त नही मानते, वरना मुझसे झूठ नही बोलते.”
मुझे अजय की ये बात समझ मे नही आई कि, उसने मुझसे ऐसा क्यो कहा. फिर भी मैने उस से कहा.
मैं बोला “मैं कुछ समझा नही. मैने तुमसे क्या बात झूठ कही है.”
अजय बोला “ये ही कि, तुम्हारी गर्लफ्रेंड से तुम्हारी अभी बात हुई है.”
मैं बोला “तो इसमे झूठ क्या बात है. मेरी उस से रोज ही इस समय बात होती है. हम लोग रोज देर रात तक बात करते है.”
अजय बोला “मैने रोज का नही पूछा था. मैने तुमसे सिर्फ़ आज का पूछा था कि, आज उस से तुम्हारी बात हुई या नही हुई.”
अजय मुझसे अपने सवालो मे उलझा रहा था. मुझे महसूस हो गया कि, उसे किसी ना किसी बात का शक़ है. इसलिए मैने उस से कहा.
मैं बोला “लेकिन तुमको, ये क्यो लगा रहा है क़ी, आज उस से बात होने की बात मैने तुमसे झूठ कही है.”
मेरी बात सुनकर, अजय ने मुस्कुराते हुए कहा.
अजय बोला “क्योकि आज से पहले जब भी मैं तुमसे, तुम्हारी गर्लफ्रेंड के बारे मे कोई सवाल करता था. तुम्हारे होंठो पर मुस्कुराहट और चेहरे पर चमक आ जाती थी. लेकिन आज उसका नाम सुनते ही तुम्हारा चेहरा मुरझा सा गया.”
अजय की ये बात सुनकर, मुझे मानना पड़ा कि, उसके अंदर इंसान के मन की बात समझने की क़ाबलियत है. अब मुझे उस से कोई बात छुपाना ठीक नही लगा. इसलिए मैने उस से कहा.
मैं बोला “हां, तुम ठीक कह रहे हो. कल मेरा उस से ज़रा झगड़ा हो गया था. इसलिए कल से मेरी उस से बात बंद है.”
ये कहते हुए मैने अजय को कल रात और आज शाम को कीर्ति से हुई दोनो बातें बता दी. अपनी बात कहने के बाद मैं अजय की तरफ देखने लगा. अजय थोड़ी देर तक कुछ सोचता रहा. फिर उसने मुझसे कहा.
अजय बोला “तुमको क्या लगता है. वो सच मे तुमसे नाराज़ है या नाटक कर रही है.”
मैं बोला “मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा. इसके पहले भी हमारे बीच बहुत बार झगड़ा हुआ. लेकिन उसने मेरे साथ ऐसा कभी नही किया. लेकिन कल तो उसने मेरी हर बात के बदले मुझे बहुत बातें सुनाई और आज तो उसने मुझे नीचे दिखाने की हद ही कर दी. वो एक ज़रा सी बात पर मुझसे इतना नाराज़ क्यो है, मैं अभी तक समझ नही पाया हूँ.”
इतना बोल कर मैं चुप हो गया. मगर मेरे दिल मे अब भी ये ही सवाल गूँज रहा था कि, आख़िर मेरी ज़रा सी बात पर कीर्ति इतना नाराज़ क्यों है. मुझे खोया हुआ सा देख कर अजय ने कहा.
अजय बोला “एक सच्चा प्यार करने वाला सिर्फ़ तकदीर वालो को मिलता है. तुम किस्मत वाले हो, जो तुम्हे इतना प्यार करने वाली लड़की मिली है. वरना लोग जिंदगी भर सच्चे प्यार की तलाश मे भटकते रहते है, मगर उन्हे उनका प्यार नही मिलता.”
अजय की इन बातों मे उसका दर्द सॉफ झलक रहा था. वो एक साइकिट्रिस्ट (मनो-चिकित्सक) होकर भी टॅक्सी चला रहा था. इसी से पता चलता था कि, वो अपना प्यार पाने के लिए किस हद तक संघर्ष कर रहा था.
मुझे अजय की छुपि हुई जिंदगी से परदा उठाने के लिए ये ही समय सही लगा और मैने अजय से कहा.
मैं बोला “तुम तो एक साइकिट्रिस्ट (मनो-चिकित्सक) हो. फिर तुम्हे अपना प्यार हासिल करने के लिए टॅक्सी चलाने की क्या ज़रूरत थी.”
मेरी बात सुनकर अचानक ही अजय बहुत ज़्यादा तनाव मे लगने लगा. उसने इस तनाव से बाहर निकलने के लिए अपनी जेब से सिगरेट का पॅकेट निकाला और एक सिगरेट जला कर कश लगाने लगा.
हर कश के साथ ना जाने उसके चेहरे पर कितने भाव आ रहे थे, जा रहे थे. कुछ देर तक सिगरेट के कश लगाने के बाद उसका चेहरा बहुत सख़्त हो गया. उसने एक ठंडी सी साँस छोड़ते हुए कहा.
अजय बोला “जो तुम देख और समझ रहे हो. मैं उनमे से कोई नही हूँ.”
मुझे अजय की बात बिल्कुल भी समझ मे नही आई कि वो कहना क्या चाहता है. मैने उस से फिर से सवाल करते हुए कहा.
मैं बोला “क्या मतलब.? मैं समझा नही कि तुम कहना क्या चाहते हो.”
अजय बोला “यही कि मैं टॅक्सी भी चलाता हूँ और एक साइकिट्रिस्ट (मनो-चिकित्सक) भी हूँ. लेकिन ये दोनो ही मेरा पेशा नही है.”
अजय की इस बात ने मुझे और भी ज़्यादा हैरानी मे डाल दिया. इसका मतलब था कि अजय की एक और भी पहचान है. मैने हैरानी भरे शब्दो मे अजय से कहा.
मैं बोला “तो फिर तुम कॉन हो और तुम्हारा पेशा क्या है.”
अजय बोला “सबसे बड़ी बात कि, मैं मुंबई का नही हूँ. मैं सूरत का रहने वाला हूँ. इसलिए मुझे यहाँ कोई नही जानता. मैं एक खानदानी बिज़्नेस मॅन हूँ. मेरा टेक्सटाइल का बिज़्नेस है और सूरत मे मेरी 5 टेक्सटाइल मिल्स है.”
अजय की ये बात सुनकर मेरी आँखें खुली की खुली रह गयी. मैं अब तक जिसके करोड़पति होने का अनुमान लगाता था. वो तो असल मे एक अरबपति था. मेरे मूह के बोल मूह मे ही रह गये.
इस से आगे पुच्छने के लिए मुझे कुछ समझ मे ही नही आ रहा था. मैं बस आँखे फाडे अजय को देखे जा रहा था. जब मैं कुछ सामान्य हुआ तो मैने बात को आगे बढ़ाते हुए उस से कहा.
मैं बोला “जब तुम इतने बड़े बिज़्नेसमॅन हो तो, फिर तुम्हे अपने प्यार को पाने मे क्या परेशानी थी, जो तुमको एक टॅक्सी ड्राइवर बनना पड़ गया.”
मेरी बात सुनकर भी अजय कही खोया हुआ सा बस सिगरेट फुके जा रहा था. उसकी आँखे ना जाने क्यो लाल हो गयी थी. जब उसकी एक सिगरेट ख़तम हो गयी तो, उसने दूसरी सिगरेट जलाई और उसके 2-3 गहरे कश लगाने के बाद मेरी तरफ देखते हुए कहा.
अजय बोला “क्योकि एक बिज़्नेसमॅन होने के साथ साथ मैं कुछ और भी हूँ.”
मुझे उसकी बारे मे जानने की इतनी ज़्यादा बेचेनी थी कि, उसकी बात पूरी होते ही मेरे मूह से खुद ब खुद निकल गया.
मैं बोला “तुम एक बिज़्नेसमॅन के अलावा और क्या हो.”
अजय ने बड़े गौर से मेरी तरफ देखा और एक ठंडी साँस छोड़ते हुए कहा.
अजय बोला “जिस लड़की को प्यार करता हूँ. उसके भाई का कातिल.”
मैं बोला “क्य्ाआआआ.”
अजय की ये बात सुनकर मुझे अब भी अपने कानो पर विस्वास नही हो रहा था. अभी तक मैने अजय के बारे मे जितना जाना था. उसमे ये सबसे बड़ा खुलासा था. मगर अजय के मूह से ये बात सुनने के बाद भी, मेरा दिल ये बात मानने को तैयार नही था की, अजय एक कातिल है.
अब दोनो तरफ से सिर्फ़ शांति थी. ना तो वो कुछ बोल रही थी और ना ही मैं कुछ बोल रहा था. बीती हुई बातों को याद करने का मेरे उपर ये असर पड़ा था कि अब मेरे मन मे कीर्ति के लिए कोई नाराज़गी नही थी.
अब मुझे सिर्फ़ उसका प्यार नज़र आ रहा था और मैं उसकी की हुई ग़लती को नज़र अंदाज़ करके उस से बात करना चाहता था. मैं जानता था की कीर्ति कि नाराज़गी भी मुझसे बात करते ही दूर हो जाएगी. इसलिए अब मैने खुद ही उस से बात करने की पहल करने का फ़ैसला कर लिया था.
लेकिन अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी मुझे कीर्ति की आवाज़ सुनाई दी. शायद कीर्ति ने दूसरे मोबाइल से किसी को कॉल किया था और उसने कहा.
कीर्ति बोली “हेलो, कौन, जीत.”
जीत का नाम सुनते ही मेरा मूड फिर से खराब हो गया. दूसरी तरफ से कुछ कहा गया. जिसके जबाब मे कीर्ति ने कहा.
कीर्ति बोली “तुम तो रात को बड़ी जल्दी सो जाते हो.”
इतना कह कर वो चुप हो गयी. शायद दूसरी तरफ से कुछ कहा जा रहा था. जिसके बाद कीर्ति ने कहा.
कीर्ति बोली “ओके, अभी मैं थोड़ी बिज़ी हूँ. मैं तुमसे कुछ देर बाद बात करती हूँ. बाइ.”
इसके बाद कीर्ति की आवाज़ आना बंद हो गयी. शायद उसने कॉल रख दिया था. थोड़ी देर की खामोशी के बाद कीर्ति ने मुझसे कहा.
कीर्ति बोली “हेलो.”
मैं बोला “हां बोलो.”
कीर्ति बोली “तुमको कुछ कहना है.”
मैं बोला “नही.”
कीर्ति बोली “तो फिर कॉल रखा जाए.”
मैं बोला “ओक, बाइ.”
इतना कह कर मैने कीर्ति का कोई जबाब सुने बिना कॉल काट दिया. मुझे समझ मे नही आया कि, कीर्ति ने मेरे साथ ऐसा क्यो किया. जिस जीत की वजह से हमारे बीच झगड़ा लगा चल रहा था. उसे ही मेरे सामने कॉल लगाने का क्या मतलब था.
इसका तो सिर्फ़ एक ही मतलब समझ मे आ रहा था कि, कीर्ति मेरे सामने उसको कॉल लगा कर मुझे जलाना चाहती थी. कुछ भी हो लेकिन कीर्ति की इस हरकत ने मुझे फिर से चोट पहुचा दी थी.
मुझे उसके प्यार पर पूरा विस्वास था, इसलिए मैं तो उसको मनाने की पहल करने वाला था. लेकिन जीत को कॉल लगा कर उसने मेरे गुस्से को और बढ़ा दिया था. अब मैने भी सोच लिया था कि, यदि कीर्ति खुद से बात नही करती तो, अब मैं भी उस से कोई बात नही करूगा.
कीर्ति से बात ना करने का फ़ैसला तो मैने ले लिया था. लेकिन ये सवाल तो अब जहाँ का तहाँ था कि, कीर्ति ने मेरे साथ ऐसा क्यो किया. मैं जितना इस सवाल का जबाब ढूँढने की कोसिस करता. उतना ही उलझता जा रहा था और इसी उलझन मे उलझे उलझे मेरी आँख लग गयी.
मगर नींद मे भी मेरे दिमाग़ मे कीर्ति ही घूमती रही और फिर 8:45 बजे मेरी नींद खुल गयी. थोड़ी देर मैं लेटे लेटे कीर्ति के बारे मे ही सोचता रहा और जब उसके बारे मे सोचने से मेरा तनाव बढ़ने लगा तो, मैं उठ कर हॉस्पिटल जाने के लिए तैयार होने लगा.
जब से मैं मुंबई आया था. तब से रोज मेरे साथ कोई ना कोई घटना हो रही थी. मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि, ये सब मेरे साथ क्यो हो रहा है. ये ही सब सोचते हुए मैं तैयार हुआ और 9:30 बजे हॉस्पिटल के लिए निकल गया.
मैं हॉस्पिटल पहुँचा तो मुझे राज नीचे ही मिल गया. मगर आज मेरा उस से बात करने का कोई मूड नही था. मैने मेहुल को बुलाया और घर जाने का कहा तो राज भी उसके साथ घर जाने लगा.
राज को मेहुल के साथ घर जाते देख कर मैने राज से कहा.
मैं बोला “क्या आज तुम प्रिया के पास नही रुकोगे.”
राज बोला “नही, प्रिया की तबीयत अब सही है और घबराने की कोई बात नही है. इसलिए उसके पास निक्की अकेली रुक रही है और तुम भी तो यही हो.”
उसके बाद वो मेहुल के साथ घर चला और मैं कुछ देर प्रिया के पास रुक कर अंकल के पास चला गया. मेरी थोड़ी बहुत अंकल से बात हुई. अब वो पूरी तरह से ठीक हो चुके थे. लेकिन अभी उनको एक हफ्ते ऑर हॉस्पिटल मे ही रहना था.
कुछ देर बाद अंकल को नींद आने लगी और वो सो गये. मेरा मूड आज अच्छा नही था और रह रह कर, बार बार कीर्ति का ख़याल आ रहा था. अभी तक रोज 11 बजे के बाद मेरी कीर्ति से बात होती थी.
लेकिन आज 12 बज गया था और मेरी उस से कोई बात नही हुई थी. इसलिए अब मुझे उसकी कमी बहुत अखर रही थी और जब मुझे कीर्ति की कमी का अहसास बहुत सताने लगा तो, मैं उठ कर नीचे आ गया.
नीचे आकर मैने कॉफी ली और फिर बाहर आकर समुंदर के किनारे बैठ गया. लेकिन मेरे आने के कुछ ही देर बाद निक्की मेरे पास आ गयी. मुझे समझ नही आया कि उसे मेरे नीचे आने का पता कैसे चल गया. इसलिए मैने उस से कहा.
मैं बोला “आप यहाँ कैसे. आपको कैसे पता चला कि मैं नीचे आया हूँ.”
मेरी बात सुनकर निक्की ने हंसते हुए कहा.
निक्की बोली “मैने तो आपको नीचे आते समय ही देख लिया था. जब आप नीचे आए तब मैं लिफ्ट के पास खड़ी शिखा दीदी से बात कर रही थी. लेकिन आप अपने आप मे इतना खोए हुए थे कि, आप मेरे पास से निकल कर कॅंटीन की तरफ चले गये मगर मुझे नही देखा.”
निक्की का कहना सही था. मैं कीर्ति की सोच मे इतना उलझा हुआ था कि, मुझे कुछ भी ध्यान नही था. फिर भी मैने बात को टालते हुए कहा.
मैं बोला “वो मुझे कॉफी की तलब लगी हुई थी. इसलिए मैने ध्यान नही दिया होगा और सीधे कॅंटीन की तरफ चला गया. आप रुकिये मैं आपके लिए भी कॉफी ले आता हूँ.”
निक्की अभी कुछ कह पाती, उस से पहले ही हम लोगो को अजय की आवाज़ सुनाई दी. अजय कह रहा था.
अजय बोला “मैं भी कॉफी पियुंगा.”
अजय की आवाज़ सुनते ही हम लोगो ने अजय की तरफ देखा तो, वो हमारे पीछे खड़ा था. उसकी बात सुनते ही मैने कहा.
मैं बोला “ओके, तुम निक्की के साथ बैठो, मैं अभी कॉफी लेकर आता हूँ.”
ये बोल कर, मैं बिना उनका जबाब सुने कॉफी लेने चला गया. थोड़ी देर बाद मैं कॉफी लेकर लौटा और दोनो को कॉफी देने के बाद उनके पास ही बैठ गया. मेरे बैठते ही अजय ने कहा.
अजय बोला “क्या हुआ. तुमको कोई परेसानी है क्या.”
अजय का सीधा सा सवाल सुनकर मैं चौक गया. मैने हैरत भरी नज़रों से अजय को देखते हुए कहा.
मैं बोला “नही तो, ऐसी कोई बात नही है. तुमको ऐसा क्यो लगा.”
अजय बोला “तुम्हारे चेहरे से ऐसा लगा कि, तुम कुछ परेशान हो.”
मैं बोला “नही, ऐसा कुछ भी नही है. बस मुझे बहुत देर से कॉफी की तलब लगी थी. इसलिए शायद परेशान लग रहा हूँ.”
मेरी बात को सुनने के बाद अजय ने भी इस बात पर ज़्यादा ज़ोर नही दिया और अंकल की तबीयत पूछने लगा. इसके बाद उसकी निक्की से प्रिया की तबीयत के बारे मे बातें होती रही.
इन्ही बातों मे निक्की का कॉफी पीना हो गया और फिर वो उठ कर वापस प्रिया के पास चली गयी. निक्की के जाने के बाद अजय ने मुझसे कहा.
अजय बोला “ऑर सूनाओ, तुम्हारी गर्लफ्रेंड का क्या हाल है. आज उस से बात हुई या नही.”
अचानक से अजय की बात सुनकर एक पल के लिए मैं चौक गया. मगर ये फिर मैने अपने आप पर काबू पाते हुए उस से कहा.
मैं बोला “वो अच्छी है. अभी अभी सोई है.”
मेरी बात सुनकर, अजय मुस्कुराने लगा. उसे मुस्कुराते देख मुझे अजीब ज़रूर लगा. लेकिन मैं खामोश ही रहा. मुझे खामोश देख कर अजय ने कहा.
अजय बोला “लगता तुम मुझे अपना दोस्त नही मानते, वरना मुझसे झूठ नही बोलते.”
मुझे अजय की ये बात समझ मे नही आई कि, उसने मुझसे ऐसा क्यो कहा. फिर भी मैने उस से कहा.
मैं बोला “मैं कुछ समझा नही. मैने तुमसे क्या बात झूठ कही है.”
अजय बोला “ये ही कि, तुम्हारी गर्लफ्रेंड से तुम्हारी अभी बात हुई है.”
मैं बोला “तो इसमे झूठ क्या बात है. मेरी उस से रोज ही इस समय बात होती है. हम लोग रोज देर रात तक बात करते है.”
अजय बोला “मैने रोज का नही पूछा था. मैने तुमसे सिर्फ़ आज का पूछा था कि, आज उस से तुम्हारी बात हुई या नही हुई.”
अजय मुझसे अपने सवालो मे उलझा रहा था. मुझे महसूस हो गया कि, उसे किसी ना किसी बात का शक़ है. इसलिए मैने उस से कहा.
मैं बोला “लेकिन तुमको, ये क्यो लगा रहा है क़ी, आज उस से बात होने की बात मैने तुमसे झूठ कही है.”
मेरी बात सुनकर, अजय ने मुस्कुराते हुए कहा.
अजय बोला “क्योकि आज से पहले जब भी मैं तुमसे, तुम्हारी गर्लफ्रेंड के बारे मे कोई सवाल करता था. तुम्हारे होंठो पर मुस्कुराहट और चेहरे पर चमक आ जाती थी. लेकिन आज उसका नाम सुनते ही तुम्हारा चेहरा मुरझा सा गया.”
अजय की ये बात सुनकर, मुझे मानना पड़ा कि, उसके अंदर इंसान के मन की बात समझने की क़ाबलियत है. अब मुझे उस से कोई बात छुपाना ठीक नही लगा. इसलिए मैने उस से कहा.
मैं बोला “हां, तुम ठीक कह रहे हो. कल मेरा उस से ज़रा झगड़ा हो गया था. इसलिए कल से मेरी उस से बात बंद है.”
ये कहते हुए मैने अजय को कल रात और आज शाम को कीर्ति से हुई दोनो बातें बता दी. अपनी बात कहने के बाद मैं अजय की तरफ देखने लगा. अजय थोड़ी देर तक कुछ सोचता रहा. फिर उसने मुझसे कहा.
अजय बोला “तुमको क्या लगता है. वो सच मे तुमसे नाराज़ है या नाटक कर रही है.”
मैं बोला “मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा. इसके पहले भी हमारे बीच बहुत बार झगड़ा हुआ. लेकिन उसने मेरे साथ ऐसा कभी नही किया. लेकिन कल तो उसने मेरी हर बात के बदले मुझे बहुत बातें सुनाई और आज तो उसने मुझे नीचे दिखाने की हद ही कर दी. वो एक ज़रा सी बात पर मुझसे इतना नाराज़ क्यो है, मैं अभी तक समझ नही पाया हूँ.”
इतना बोल कर मैं चुप हो गया. मगर मेरे दिल मे अब भी ये ही सवाल गूँज रहा था कि, आख़िर मेरी ज़रा सी बात पर कीर्ति इतना नाराज़ क्यों है. मुझे खोया हुआ सा देख कर अजय ने कहा.
अजय बोला “एक सच्चा प्यार करने वाला सिर्फ़ तकदीर वालो को मिलता है. तुम किस्मत वाले हो, जो तुम्हे इतना प्यार करने वाली लड़की मिली है. वरना लोग जिंदगी भर सच्चे प्यार की तलाश मे भटकते रहते है, मगर उन्हे उनका प्यार नही मिलता.”
अजय की इन बातों मे उसका दर्द सॉफ झलक रहा था. वो एक साइकिट्रिस्ट (मनो-चिकित्सक) होकर भी टॅक्सी चला रहा था. इसी से पता चलता था कि, वो अपना प्यार पाने के लिए किस हद तक संघर्ष कर रहा था.
मुझे अजय की छुपि हुई जिंदगी से परदा उठाने के लिए ये ही समय सही लगा और मैने अजय से कहा.
मैं बोला “तुम तो एक साइकिट्रिस्ट (मनो-चिकित्सक) हो. फिर तुम्हे अपना प्यार हासिल करने के लिए टॅक्सी चलाने की क्या ज़रूरत थी.”
मेरी बात सुनकर अचानक ही अजय बहुत ज़्यादा तनाव मे लगने लगा. उसने इस तनाव से बाहर निकलने के लिए अपनी जेब से सिगरेट का पॅकेट निकाला और एक सिगरेट जला कर कश लगाने लगा.
हर कश के साथ ना जाने उसके चेहरे पर कितने भाव आ रहे थे, जा रहे थे. कुछ देर तक सिगरेट के कश लगाने के बाद उसका चेहरा बहुत सख़्त हो गया. उसने एक ठंडी सी साँस छोड़ते हुए कहा.
अजय बोला “जो तुम देख और समझ रहे हो. मैं उनमे से कोई नही हूँ.”
मुझे अजय की बात बिल्कुल भी समझ मे नही आई कि वो कहना क्या चाहता है. मैने उस से फिर से सवाल करते हुए कहा.
मैं बोला “क्या मतलब.? मैं समझा नही कि तुम कहना क्या चाहते हो.”
अजय बोला “यही कि मैं टॅक्सी भी चलाता हूँ और एक साइकिट्रिस्ट (मनो-चिकित्सक) भी हूँ. लेकिन ये दोनो ही मेरा पेशा नही है.”
अजय की इस बात ने मुझे और भी ज़्यादा हैरानी मे डाल दिया. इसका मतलब था कि अजय की एक और भी पहचान है. मैने हैरानी भरे शब्दो मे अजय से कहा.
मैं बोला “तो फिर तुम कॉन हो और तुम्हारा पेशा क्या है.”
अजय बोला “सबसे बड़ी बात कि, मैं मुंबई का नही हूँ. मैं सूरत का रहने वाला हूँ. इसलिए मुझे यहाँ कोई नही जानता. मैं एक खानदानी बिज़्नेस मॅन हूँ. मेरा टेक्सटाइल का बिज़्नेस है और सूरत मे मेरी 5 टेक्सटाइल मिल्स है.”
अजय की ये बात सुनकर मेरी आँखें खुली की खुली रह गयी. मैं अब तक जिसके करोड़पति होने का अनुमान लगाता था. वो तो असल मे एक अरबपति था. मेरे मूह के बोल मूह मे ही रह गये.
इस से आगे पुच्छने के लिए मुझे कुछ समझ मे ही नही आ रहा था. मैं बस आँखे फाडे अजय को देखे जा रहा था. जब मैं कुछ सामान्य हुआ तो मैने बात को आगे बढ़ाते हुए उस से कहा.
मैं बोला “जब तुम इतने बड़े बिज़्नेसमॅन हो तो, फिर तुम्हे अपने प्यार को पाने मे क्या परेशानी थी, जो तुमको एक टॅक्सी ड्राइवर बनना पड़ गया.”
मेरी बात सुनकर भी अजय कही खोया हुआ सा बस सिगरेट फुके जा रहा था. उसकी आँखे ना जाने क्यो लाल हो गयी थी. जब उसकी एक सिगरेट ख़तम हो गयी तो, उसने दूसरी सिगरेट जलाई और उसके 2-3 गहरे कश लगाने के बाद मेरी तरफ देखते हुए कहा.
अजय बोला “क्योकि एक बिज़्नेसमॅन होने के साथ साथ मैं कुछ और भी हूँ.”
मुझे उसकी बारे मे जानने की इतनी ज़्यादा बेचेनी थी कि, उसकी बात पूरी होते ही मेरे मूह से खुद ब खुद निकल गया.
मैं बोला “तुम एक बिज़्नेसमॅन के अलावा और क्या हो.”
अजय ने बड़े गौर से मेरी तरफ देखा और एक ठंडी साँस छोड़ते हुए कहा.
अजय बोला “जिस लड़की को प्यार करता हूँ. उसके भाई का कातिल.”
मैं बोला “क्य्ाआआआ.”
अजय की ये बात सुनकर मुझे अब भी अपने कानो पर विस्वास नही हो रहा था. अभी तक मैने अजय के बारे मे जितना जाना था. उसमे ये सबसे बड़ा खुलासा था. मगर अजय के मूह से ये बात सुनने के बाद भी, मेरा दिल ये बात मानने को तैयार नही था की, अजय एक कातिल है.