desiaks
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एक तो मुझे खाना खाने के बाद, चाय ना मिलने से, मेरा सर भारी हो रहा था. उस पर निक्की लोगों की इस बात ने मुझे और भी ज़्यादा उलझा कर रख दिया था. मैं समझ नही पा रहा था कि, आख़िर उन तीनो के बीच क्या खिचड़ी पक रही है.
मैं अभी इन्ही बातों से परेशान था कि, तभी शिखा ने आवाज़ देकर बरखा को बुलाया और उस से मेरे लिए चाय बनाने को बोलने लगी. चाय की तलब तो मुझे बहुत ज़्यादा लगी थी. लेकिन इतने सारे मेहमआनो के बीच मे मेरे लिए चाय बनवाना मुझे अच्छा नही लग रहा था. मैने शिखा को ऐसा करने से रोकते हुए कहा.
मैं बोला “दीदी, आप बेकार मे परेशान मत होइए. मुझे कोई चाय वाय नही पीना.”
लेकिन शिखा ने फ़ौरन ही मेरी इस बात को काटते हुए कहा.
शिखा बोली “भैया, इसमे परेशान होने वाली कोई बात नही है. मुझे निक्की ने पहले ही बता दिया था कि, आपको खाने के बाद चाय पीने की आदत है. वरना आपका सर भारी हो जाता है. इसलिए आप चुप कर के बैठिए, बरखा अभी चाय लेकर आती है.”
शिखा की इस बात को सुनकर, मैं चुप रहने के सिवा कुछ ना कर सका. बरखा चाय बनाने चली गयी. उसके बाद मेरी शिखा और सीरू से यहाँ वहाँ की बातें होती रही. थोड़ी देर बाद बरखा चाय लेकर आ गयी. उसने हम लोगों को चाय दी और फिर शिखा से कहा.
बरखा बोली “दीदी, वो नेहा मुझे बुला रही है. उसे बाजार से कुछ खरीदी करना है. मैं उसके साथ जा रही हूँ.”
इतना बोल कर बरखा चली गयी और हम लोग चाय पीने लगे. चाय पीना हो जाने के बाद सीरू ने भी शिखा से कहा.
सीरत बोली “भाभी, अब हम भी चलते है. घर मे भी बहुत काम है. आपको यदि कोई काम हो तो, हम मे से किसी को भी कॉल कर देना.”
इतना बोल सीरू और सेलू उठ कर खड़ी हो गयी. शिखा ने भी उसको जाने से नही रोका और वो भी उनके साथ उठ कर खड़ी हो गयी. वो लोग बाहर जाने लगी तो, मैं भी उठ कर उनके साथ बाहर आ गया.
बाहर आकर सीरू ने निक्की और आरू को आवाज़ लगाई. कुछ ही देर मे निक्की और आरू नीचे आ गयी. नीचे आकर दोनो शिखा से मिली और थोड़ी बहुत मुझसे बात करने के बाद, वो चारो घर चली गयी.
उनके जाने के बाद, हम अंदर जाने को हुए, तभी मेरा मोबाइल बजने लगा. मैने मोबाइल निकाल कर देखा तो, मौसी का कॉल आ रहा था. इसलिए मैं अंदर जाते जाते रुक गया और वही आँगन मे रखी चेयर पर बैठ गया. शिखा भी ना जाने क्या सोच कर आँगन मे ही बैठ गयी.
मैने शिखा को अपने पास बैठते देखा तो, उसे बताया कि, मेरी मौसी का कॉल आ रहा है. इसके बाद मैने कॉल उठाते हुए मौसी से कहा.
मैं बोला “जी मौसी, आज इतने दिन बाद मेरी याद कैसे आ गयी.”
मौसी बोली “बड़ा आया मौसी वाला, तुझे वहाँ का एक काम करने को दिया था. मेरे उस काम का क्या हुआ. कहीं तू मेरा काम करना भूल तो नही गया.”
मौसी की ये बात सुनते ही, मुझे उन का बताया काम याद आ गया. मैं सच मे ही उनका बताया काम करना भूल गया था. मैने इस बात के लिए उनसे माफी माँगते हुए कहा.
मैं बोला “सॉरी मौसी, मैं सच मे ही हॉस्पिटल के चक्कर मे, आपका काम करना भूल गया था. लेकिन अब मैं बाकी बचे 2-3 दिन मे आपका काम करने की पूरी कोसिस करूगा.”
मौसी बोली “ठीक है, जब तुझे समय मिले, तब तू इस काम को कर लेना. लेकिन भूलना मत ये बहुत ज़रूरी काम है.”
मैं बोला “आप फिकर मत कीजिए मौसी. मैं जल्दी ही आपका काम करके आपको कॉल करता हूँ.”
मेरी इतनी बात सुनने के बाद मौसी ने कॉल रख दिया. मगर उनके इस कॉल ने मुझे गहरी सोच मे डाल दिया था. मुझे इस तरह सोच मे पड़ा देख कर, शिखा से नही रहा गया और उसने मुझे टोकते हुए कहा.
शिखा बोली “क्या हुआ भैया. किस बात को लेकर इतना सोच मे पड़ गये.”
मैं बोला “कुछ नही दीदी. वो मेरी मौसी ने मुझे एक काम करने का बोला था. लेकिन मेरे दिमाग़ से ही वो काम निकल गया था. अभी उन ने मुझे वो ही काम याद दिलाने के लिए कॉल किया था.”
शिखा बोली “तो इसमे परेशान होने की क्या बात है. अभी तो आपको 3-4 दिन यहाँ रहना ही है. इस समय मे आप अपना काम कर सकते हो.”
मैं बोला “ये ही तो परेशानी वाली बात है दीदी. इतने दिन अज्जि जब पूरी तरह से खाली था. तब मुझे काम याद नही था और अब जब मुझे काम याद आया तो अज्जि के पास ज़रा भी समय नही है. मुझे समझ मे नही आ रहा कि, अपने इस काम के लिए, अब किसको पकडू.”
शिखा बोली “क्या मैं जान सकती हूँ कि, आपको क्या काम है.”
मैं बोला “मौसी ने एक आदमी का पता दिया है और उसके बारे मे मालूम करने को कहा है. लेकिन ये भी कहा है कि, इस बारे मे किसी को कुछ मालूम नही पड़ना चाहिए.”
मेरी बात ये बात सुनकर, शिखा चौके बिना ना रह सकी. उसने बड़ी बेचेनी के साथ मुझसे कहा.
शिखा बोली “मौसी ने मुंबई मे कहाँ का पता दिया है.”
शिखा की इस बात के जबाब मे मैने अपना मोबाइल निकाला और उसमे मेसेज मे सेव किया हुआ, उस आदमी का नाम और पता निकाल कर, मोबाइल शिखा के हाथ मे थमा दिया. मोबाइल मे नाम और पता देखते ही, शिखा ने मुझे हैरानी से देखते हुए कहा.
शिखा बोली “भैया, क्या आप जानते हो ये मुंबई के किस इलाक़े का पता है.”
मैं बोला “नही, मैं तो यहाँ कही घुमा ही नही हूँ. मैं तो बस प्रिया के घर, हॉस्पिटल, अज्जि के बंगले और आपके घर के सिवा कही गया भी नही हूँ.”
शिखा बोली “फिर भी आपको ये पता मिल गया है.”
शिखा की इस बात से अब मेरी भी हैरानी का कोई ठिकाना नही था. शिखा ने मुझे हैरान होते देखा तो, मेरी हैरानी को दूर करते हुए कहा.
शिखा बोली “भैया, अभी आप इसी इलाक़े मे हो जहाँ का पता आप ढूँढ रहे हो.”
शिखा की इस बात से मेरी हैरानी और भी ज़्यादा बढ़ गयी. क्योकि मेरे पास जो पता लिखा था वो कुछ और था. जबकि शिखा का घर जिस इलाक़े मे था, उस इलाक़े का नाम कुछ और ही था. इसलिए मैने शिखा से कहा.
मैं बोला “लेकिन दीदी, इस जगह का नाम तो आआआ.. है. जबकि मेरे पास जो पता है. उसमे तो ब्ब्ब्बबब.. नाम लिखा है. मेरी समझ मे नही आ रहा कि, आप कहना क्या चाहती हो.”
शिखा बोली “भैया, जैसे पहले मुंबई का नाम बॉम्बे था. बस उसी तरह पहले इस इलाक़े को उसी नाम से जाना जाता था, जो आपके पास लिखा है. लेकिन 10 साल पहले इस इलाक़े का नया नाम रख दिया गया था. अब नाम बदल जाने से जगह तो नही बदल जाएगी ना.”
शिखा की बात सुनकर, मैने खुश होते हुए कहा.
मैं बोला “दीदी, यदि ये इसी इलाक़े का पता है तो, फिर आप इस आदमी को भी जानती ही होगी.”
शिखा बोली “नही, इस मैं इस नाम के किसी आदमी को नही जानती. मैने अपनी सारी जिंदगी यही पर गुज़ारी है. यहाँ इस नाम का कोई भी आदमी नही रहता. मुझे लगता है कि, आपकी मौसी को किसी ने ग़लत पता दे दिया है.”
शिखा की बात सुनकर, मैने राहत की साँस लेते हुए उस से कहा.
मैं बोला “थॅंक्स दीदी. आपने मेरी बहुत बड़ी परेशानी हाल कर दी. वरना मैं बेकार मे ही इस पते को लेकर यहाँ वहाँ भटकता रहता.”
शिखा बोली “लेकिन आपका काम तो हुआ नही.”
शिखा की इस बात के जबाब मे मैने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला “नही दीदी, मेरा काम तो हो गया. मौसी ने मुझे जो मालूम करने को कहा था. वो तो मैने मालूम कर लिया है. अब यदि वो आदमी यहाँ रहता ही नही है तो, इसमे हम भला क्या कर सकते है. मैं अभी मौसी को कॉल करके ये बात बता देता हूँ.”
ये कह कर, मैने शिखा से मोबाइल लिया और जैसे ही मौसी को कॉल लगाने लगा तो, शिखा ने मुझे रोकते हुए कहा.
शिखा बोली “एक मिनट भैया, यहाँ बहुत शोर-गुल हो रहा है. हम उपर चल कर मौसी से बात करते है. हो सकता है कि, उन्हे भी ये बात समझाना पड़ जाए.”
मुझे भी शिखा की ये बात सही लगी और फिर मैं शिखा के साथ उपर छत पर आ गया. हम उपर पहुचे तो, प्रिया बाहर छत पर ही, एक चेयर पर बैठी अख़बार पढ़ रही थी. उसने हमे उपर आते देखा तो, अख़बार एक किनारे रख दिया और मुस्कुराने लगी.
हम लोग भी उसे देख कर मुस्कुरा दिए और उसके पास खाली पड़ी चेयर पर जाकर बैठ गये. शिखा ने प्रिया को इस तरह वहाँ अकेले बैठे देखा तो, उस से कहा.
शिखा बोली “निक्की लोग तो कब की जा चुकी है. फिर तुम यहाँ अकेली क्यो बैठी हो.”
प्रिया बोली “दीदी, मैं भी नीचे ही आ रही थी. लेकिन तभी मेरी एक सहेली का कॉल आ गया और मैं उस से बात करने लगी. मगर बात करते करते उसने कहा कि, वो अभी थोड़ी देर से कॉल करती है. इसलिए मैं यही बैठ कर, उसके दोबारा कॉल आने का इंतजार करने लगी.”
प्रिया के कॉल वाली बात सुनते ही, शिखा को भी अपने उपर आने की वजह याद आ गयी. उसने फ़ौरन मुझे मौसी को कॉल लगाने को कहा और शिखा का इशारा मिलते ही मैने मौसी को कॉल लगा कर सारी बात बता दी. लेकिन इतनी जल्दी अपना काम हो जाने की बात मौसी के गले से नही उतार रही थी.
मैने मौसी के इस शंका का समाधान करने के लिए, उन को शिखा से बात करने को कह कर, मोबाइल शिखा को थमा दिया. जिसके बाद शिखा मौसी से बात करने लगी. शिखा मौसी से बात करते करते, हमारे पास से उठ कर, छत की दूसरी तरफ चली गयी. जिस वजह से मुझे उसकी बातें सुनाई देना बंद हो गया.
थोड़ी देर तक मौसी से बात करने के बाद, शिखा ने मेरे पास आकर वापस मोबाइल मुझे दे दिया. मैने मौसी से एक दो बातें की और उसके बाद उन्हो ने कॉल रख दिया. मेरी और मौसी की बात हो जाने के बाद, शिखा ने मुझसे कहा.
शिखा बोली “मैने मौसी को सब कुछ समझा दिया है और अब उनको भी इस बात का यकीन हो गया है.”
शिखा की बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला “अब उनको यकीन हो या ना हो, ये उनकी परेशानी है. मैने तो अपना काम पूरा करके, अपना पिछा इस काम से छुड़ा लिया है.”
मेरी बात सुनकर शिखा भी हँसने लगी. फिर ना जाने क्या सोचकर, शिखा ने मुझसे सवाल करते हुए कहा.
शिखा बोली “भैया, क्या आपके घर से शादी मे कोई नही आएगा.”
मैं बोला “दीदी, मैने आज सुबह ही, प्रिया के सामने अपनी मम्मी से बात की थी. उनसे मैने यहाँ आने के बारे मे पुछा था. लेकिन उनका कहना था कि, अभी मेहुल की मम्मी हमारे घर मे है. जिस वजह से वो चाहते हुए भी इस शादी मे शामिल नही हो पाएगी.”
मेरी इस बात की हामी प्रिया ने भी भर दी. लेकिन शिखा ने इस सवाल के बदलने मे, मुझसे दूसरा सवाल करते हुए कहा.
शिखा बोली “आंटी जी नही आ सकती तो क्या हुआ. अंकल जी तो आ ही सकते है. आप उनको ही बुला लीजिए.”
शिखा के मूह से अपने बाप का नाम सुनकर, एक पल के लिए मेरा चेहरा कठोर हो गया और मेरा मन अपने बाप को गाली देने का करने लगा. लेकिन मैने अपने आप पर काबू करते हुए कहा.
मैं बोला “दीदी, अभी वो 2 दिन पहले यही पर थे. उनकी अचानक तबीयत खराब हो गयी और उनको वापस जाना पड़ा. अभी भी उनकी तबीयत सफ़र करने लायक नही है. ऐसे मे उनका भी यहाँ आ पाना नही हो सकता है. लेकिन आप फिकर मत कीजिए. मैं आपसे वादा करता हूँ कि, शादी के बाद, मैं मोम को आपसे मिलाने ज़रूर लेकर आउगा.”
मेरी बात सुनने के बाद, शिखा ने मुझसे इस बारे मे, आगे कुछ नही कहा और हम लोगों से एक दो बातें करके नीचे चली गयी. लेकिन उसका उतरा हुआ चेहरा इस बात की गवाही दे रहा था कि, वो मेरी इस बात से खुश नही थी.
प्रिया को भी ये बात समझ मे आ चुकी थी और वो ये अच्छी तरह से जानती थी कि, मैने पापा की तबीयत खराब होने वाली बात शिखा से झूठ कही है. इसलिए शिखा के जाते ही उसने मुझे टोकते हुए कहा.
प्रिया बोली “तुम्हारे इस झूठ ने, दीदी का दिल दुखा दिया. तुम्हे एक बार कोसिस करके तो देखना था. हो सकता था कि, अंकल शादी मे आने के लिए तैयार हो जाते.”
प्रिया की बात सुनकर मेरा मूड फिर खराब हो गया और मैं भावनाओ मे बह कर, वो सब कह गया. जिसकी प्रिया कल्पना भी नही कर सकती थी. प्रिया की इस बात के जबाब मे मैने, उस पर भड़कते हुए कहा.
मैं बोला “हां तुम बिल्कुल ठीक कहती हो. यदि मैं चाहता तो, मेरा कमीना बाप ज़रूर इस शादी मे आ सकता था. लेकिन मैं उस कमिने का गंदा साया, अपनी इस मासूम और भोली भली बहन पर, किसी भी कीमत पर, नही पड़ने देना चाहता. क्योकि मैं सिर्फ़ ज़ुबान से ही नही, दिल से भी शिखा को अपनी बहन मानता हूँ.”
मैं इस समय सच मे ही बहुत गुस्से मे था और मेरा मन मेरे बाप को गालियाँ देने का कर रहा था. यदि इस समय मेरे सामने प्रिया की जगह कीर्ति होती तो, शायद अब तक मैं अपने बाप को गाली दे भी चुका होता.
लेकिन प्रिया के होने की वजह से, मैं कुछ हद तक अपने गुस्से को दबा कर रह गया था. प्रिया मेरे इस गुस्से की वजह को पूरी नही तो, कुछ हद ज़रूर समझ चुकी थी. इसलिए उसने मेरा ध्यान इस बात पर से हटाने के लिए मुझसे कहा.
प्रिया बोली “अरे इस खुशी के मौके पर बेकार मे अपना मूड खराब मत करो. ये देखो आज के अख़बार मे तुम्हारे लिए कितनी प्यारी चीज़ छपी है.”
ये कह कर प्रिया मुस्कुराते हुए, मुझे एक शायरी पढ़ कर सुनाने लगी.
प्रिया की शायरी
“आज मौसम मे अजीब सी बात है.
बेकाबू से मेरे ख़यालात है.
दिल चाहता है तुमको चुरा लूँ तुमसे,
पर मम्मी कहती है कि चोरी करना पाप है.”
लेकिन प्रिया की ये शायरी सुनकर भी मेरा मूड सही नही हुआ था. उसने अभी भी मेरा मूड उखड़ा हुआ देखा तो, फिर से एक शायरी पढ़ने लगी.
प्रिया की शायरी
“उमर क्या कहूँ काफ़ी नादान है मेरी.
हंस के मिलना पहचान है मेरी.
आपका दिल ज़ख़्मो से भरा हो तो मुझे याद कीजिए,
दिलो को रिपेयर करने की दुकान है मेरी.”
प्रिया की ये शायरी सुनकर, मैं प्रिया की तरफ देखने पर मजबूर हो गया. इस शायरी को सुनकर, मुझे ऐसा लगा. जैसे प्रिया ये खुद से ही बोली जा रही हो. अपने इस शक़ को दूर करने के लिए मैने प्रिया के हाथ से अख़बार छीन लिया और उसमे प्रिया की कही शायरी देखने लगा.
मेरा सोचना सही ही निकला. प्रिया अपने मन से ही शायरी बोल कर, मुझे सुनाए जा रही थी. प्रिया की सुनाई दोनो शायरी अख़बार मे नही थी. ये देख कर मैने प्रिया से कहा.
मैं बोला “ये क्या है. इसमे तो तुम्हारी सुनाई एक भी शायरी नही है.”
मेरी बात सुनकर, प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा.
प्रिया बोली “उसमे तुम्हे सुनने लायक कोई शायरी थी ही नही. इसलिए अपने मन से ही सुना दी.”
प्रिया की बात सुनकर, मैने एक बार फिर अख़बार पर नज़र डाली. मुझे उसमे तृप्ति की एक रचना दिखाई दे गयी. उसको देख कर मैने प्रिया से कहा.
मैं बोला “लेकिन इसमे तो एक अच्छी रचना छपि है.”
मेरी बात सुनकर, प्रिया ने मुझसे अख़बार ले लिया और देखने लगी कि, मैं किस रचना की बात कर रहा हूँ. उसे देखने के बाद, प्रिया ने मुझसे कहा.
प्रिया बोली “ये तो किसी खाड़ुस शायरा की खाड़ुस सी रचना है.”
मैं बोला “मगर मुझे इसका लिखा हुआ पसंद आता है.”
मेरी बात सुनकर, प्रिया ने हैरानी से मुझे देखते हुए कहा.
प्रिया बोली “क्या तुम तृप्ति की रचना पड़ते हो.”
मैं बोला “नही, लेकिन मैने मंडे को यहीं पर तृप्ति की एक रचना प्रतीक्षा पड़ी थी. मुझे वो बहुत पसंद आई थी. इसलिए मुझे इसका नाम याद हो गया. सच मे दिल को छुने वाली रचना लिखती है.”
मेरी इस बात को सुनकर, प्रिया ने मुस्कुराते हुए अख़बार को देखा और मुझसे कहा.
प्रिया बोली “ओके, मैं इसकी ये रचना सुनाती हूँ. देखती हूँ इसकी इस रचना मे तुमको क्या समझ मे आता है. रचना का नाम है, अजनबी से नफ़रत.”
रचना का शीर्षक बता कर प्रिया ने तृप्ति की इस रचना को पढ़ना सुरू कर दिया.
“अजनबी से नफ़रत”
“वो बँधे है किसी और की, चाहतो की जंजीर मे,
फिर भी उन्हे चाहने की, चाहत सी क्यों होती है.
दिल को समझाया बहुत कि, हैं वो मेरे नही किसी और के.
फिर भी उनको देखते ही, दिल मे धक धक सी क्यों होती है.
पता है वो आए है, पर किसी और के बुलाने पे.
फिर भी उनके आने से, कहीं कोई दस्तक सी क्यों होती है,
नज़रें मिली थी मेरी उनसे, ऐसे ही अंजाने मे.
फिर भी उनकी नज़रों की ही, इनायत सी क्यों होती है,
कि नही मैने कभी, वक़्त की बर्बादी फ़िजूल मे.
फिर भी उनकी बातो को सुनने की, फ़ुर्सत सी क्यों होती है.
हक़ नही है मुझे कि, मैं डूब जाऊ उनकी यादों मे.
फिर भी उनको चूमने की, सरारत सी क्यों होती है.
होंगे ना वो मेरे कभी, अगर मर भी जाउ उनके इंतजार मे.
फिर भी उनकी बाहों मे आने की, हसरत सी क्यों होती है.
नही जानती वो चाहते है किसे, इतना दिल ओ जान से.
फिर भी उस “अजनबी से नफ़रत” सी क्यों होती है.”
प्रिया मुझे तृप्ति की ये रचना सुना रही थी और मैं इसमे खो सा गया था. शेर-शायरी या किसी कविता को समझ पाना मेरे लिए हमेशा से ही एक मुश्किल काम था. लेकिन ना जाने तृप्ति की रचना मे ऐसी क्या बात थी कि, मैं उसकी रचना को सिर्फ़ समझ ही नही गया था, बल्कि उसमे छुपे दर्द और बेबसी को भी महसूस कर पा रहा था.
जबकि प्रिया इस रचना को पढ़ने के बाद, मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी. उसकी इस मुस्कान से समझ मे आ रहा था कि, उसे इस रचना मे कुछ भी महसूस नही हुआ है. इस बात को सोच कर मैने उस से कहा.
मैं बोला “क्या हुआ. क्या तुम्हे तृप्ति की ये रचना ज़रा भी समझ मे नही आई, जो तुम इस तरह मुस्कुरा रही हो.”
मेरी इस बात को सुनकर, प्रिया ने मुस्कुरा कर, शायरी मे जबाब देते हुए कहा.
प्रिया बोली
“मैं बेटी नही, ग़ालिब या फ़राज़ की.
जो बात समझ सकूँ, ग़ज़ल मे राज़ की.”
प्रिया की ये शायरी सुनकर, मैं अपनी हँसी ना रोक सका. लेकिन मैं उस से इसके बदले मे कुछ बोल पाता, उसके पहले ही उसका मोबाइल बजने लगा और प्रिया कॉल उठा कर बात करने लगी.
शायद उसकी सहेली, उसे कहीं आने के लिए बोल रही थी. लेकिन प्रिया उसे मना कर रही थी. प्रिया शायद मेरी वजह से अपनी सहेली के पास जाना नही चाहती थी. मगर बाद मे प्रिया ने उस से कह दिया कि, वो आने की कोसिस करती है. इसके बाद प्रिया ने कॉल रख दिया और मेरी तरफ देखते हुए कहा.
प्रिया बोली “क्या तुम मेरे साथ, मेरी सहेली से मिलने चलोगे.”
मैं बोला “हां, क्यो नही. चलो कहाँ चलना है.”
मेरी बात सुनकर, प्रिया को शायद अब भी इस बात का यकीन नही आ पा रहा था कि, मैं बिना कुछ जाने, बिना कुछ पुछे, इतनी आसानी से, उसके साथ जाने को तैयार हो गया हूँ. इसलिए उसने फिर से मुझसे कहा.
प्रिया बोली “क्या तुम सच मे मेरे साथ चलने को तैयार हो.”
मैं बोला “हां, मैं सच मे तुम्हारे साथ चल रहा हूँ और यदि तुम मुझे अपनी सहेली से, अपना बॉय फ्रेंड बनाकर, मिलाना चाहती हो तो, मुझे इस मे भी कोई परेशानी नही है.”
मेरी बात सुनते ही प्रिया का चेहरा खुशी से खिल उठा. वो फ़ौरन उठ कर चलने के लिए तैयार हो गयी. मैं भी उठ कर खड़ा हो गया. मैने उस से कहा कि मैं शिखा से बता देता हूँ कि, हम थोड़ी देर मे घूम कर आते है.
इतनी बात कर के हम नीचे आ गये. नीचे आकर मैने शिखा को बताया और फिर मैं अपनी कार मे प्रिया के साथ उसकी सहेली से मिलने निकल गया. कुछ ही देर मे हम प्रिया के बताए पार्क मे पहुच गये.
गाड़ी से उतरते ही प्रिया ने मेरा हाथ पकड़ लिया और फिर हम ऐसे ही पार्क के अंदर आ गये. हम अंदर आ कर, हम अपने आस पास देखते हुए आगे बढ़ने लगे. प्रिया अपनी सहेली को चारो तरफ देख रही थी.
मैं प्रिया की सहेली को नही जानता था. इसलिए मैं वहाँ पर आए प्रेमी युगल को देख कर, वहाँ के रंगीन नज़ारो का मज़ा लेने लगा. अचानक ही मेरी नज़र वहाँ एक किनारे पेड़ के पास खड़े एक जोड़े पर जाकर ठहर गयी.
लड़की मुझे कुछ जानी पहचानी सी लगी तो, मैं उसे गौर से देखने लगा. मगर लड़की का चेहरा मेरी तरफ नही था. इसलिए मैं उसका चेहरा देखने के लिए, प्रिया से अपना हाथ छुड़ाया और उस लड़की की तरफ बढ़ गया.
मैं जैसे ही उस लड़की के पास पहुचा, प्रिया भी मेरे पीछे पीछे वहाँ आ गयी थी. अभी प्रिया मुझसे कुछ पुछ पाती कि, मुझे लगा कि, वो लड़की कोई और नही बल्कि बरखा है.
ये बात समझ मे आते ही, मैने बिना कुछ सोचे समझे उस लड़की के कंधे पर हाथ रख दिया. वो लड़की सच मे ही बरखा थी और अचानक मुझे अपने सामने देख कर, कुछ घबरा सी गयी थी.
वही उस लड़के ने जब मुझे बरखा के कंधे पर हाथ रखता देखा तो, उसने आगे बढ़ कर, मेरा कॉलर पकड़ लिया. उस लड़के की इस हरकत से मेरा ध्यान मेरी कॉलर की तरफ चला गया और तभी चटाक़…चटाक़…की गूँज से, मैं बुरी तरह से हड़बड़ा गया.
एक तो मुझे खाना खाने के बाद, चाय ना मिलने से, मेरा सर भारी हो रहा था. उस पर निक्की लोगों की इस बात ने मुझे और भी ज़्यादा उलझा कर रख दिया था. मैं समझ नही पा रहा था कि, आख़िर उन तीनो के बीच क्या खिचड़ी पक रही है.
मैं अभी इन्ही बातों से परेशान था कि, तभी शिखा ने आवाज़ देकर बरखा को बुलाया और उस से मेरे लिए चाय बनाने को बोलने लगी. चाय की तलब तो मुझे बहुत ज़्यादा लगी थी. लेकिन इतने सारे मेहमआनो के बीच मे मेरे लिए चाय बनवाना मुझे अच्छा नही लग रहा था. मैने शिखा को ऐसा करने से रोकते हुए कहा.
मैं बोला “दीदी, आप बेकार मे परेशान मत होइए. मुझे कोई चाय वाय नही पीना.”
लेकिन शिखा ने फ़ौरन ही मेरी इस बात को काटते हुए कहा.
शिखा बोली “भैया, इसमे परेशान होने वाली कोई बात नही है. मुझे निक्की ने पहले ही बता दिया था कि, आपको खाने के बाद चाय पीने की आदत है. वरना आपका सर भारी हो जाता है. इसलिए आप चुप कर के बैठिए, बरखा अभी चाय लेकर आती है.”
शिखा की इस बात को सुनकर, मैं चुप रहने के सिवा कुछ ना कर सका. बरखा चाय बनाने चली गयी. उसके बाद मेरी शिखा और सीरू से यहाँ वहाँ की बातें होती रही. थोड़ी देर बाद बरखा चाय लेकर आ गयी. उसने हम लोगों को चाय दी और फिर शिखा से कहा.
बरखा बोली “दीदी, वो नेहा मुझे बुला रही है. उसे बाजार से कुछ खरीदी करना है. मैं उसके साथ जा रही हूँ.”
इतना बोल कर बरखा चली गयी और हम लोग चाय पीने लगे. चाय पीना हो जाने के बाद सीरू ने भी शिखा से कहा.
सीरत बोली “भाभी, अब हम भी चलते है. घर मे भी बहुत काम है. आपको यदि कोई काम हो तो, हम मे से किसी को भी कॉल कर देना.”
इतना बोल सीरू और सेलू उठ कर खड़ी हो गयी. शिखा ने भी उसको जाने से नही रोका और वो भी उनके साथ उठ कर खड़ी हो गयी. वो लोग बाहर जाने लगी तो, मैं भी उठ कर उनके साथ बाहर आ गया.
बाहर आकर सीरू ने निक्की और आरू को आवाज़ लगाई. कुछ ही देर मे निक्की और आरू नीचे आ गयी. नीचे आकर दोनो शिखा से मिली और थोड़ी बहुत मुझसे बात करने के बाद, वो चारो घर चली गयी.
उनके जाने के बाद, हम अंदर जाने को हुए, तभी मेरा मोबाइल बजने लगा. मैने मोबाइल निकाल कर देखा तो, मौसी का कॉल आ रहा था. इसलिए मैं अंदर जाते जाते रुक गया और वही आँगन मे रखी चेयर पर बैठ गया. शिखा भी ना जाने क्या सोच कर आँगन मे ही बैठ गयी.
मैने शिखा को अपने पास बैठते देखा तो, उसे बताया कि, मेरी मौसी का कॉल आ रहा है. इसके बाद मैने कॉल उठाते हुए मौसी से कहा.
मैं बोला “जी मौसी, आज इतने दिन बाद मेरी याद कैसे आ गयी.”
मौसी बोली “बड़ा आया मौसी वाला, तुझे वहाँ का एक काम करने को दिया था. मेरे उस काम का क्या हुआ. कहीं तू मेरा काम करना भूल तो नही गया.”
मौसी की ये बात सुनते ही, मुझे उन का बताया काम याद आ गया. मैं सच मे ही उनका बताया काम करना भूल गया था. मैने इस बात के लिए उनसे माफी माँगते हुए कहा.
मैं बोला “सॉरी मौसी, मैं सच मे ही हॉस्पिटल के चक्कर मे, आपका काम करना भूल गया था. लेकिन अब मैं बाकी बचे 2-3 दिन मे आपका काम करने की पूरी कोसिस करूगा.”
मौसी बोली “ठीक है, जब तुझे समय मिले, तब तू इस काम को कर लेना. लेकिन भूलना मत ये बहुत ज़रूरी काम है.”
मैं बोला “आप फिकर मत कीजिए मौसी. मैं जल्दी ही आपका काम करके आपको कॉल करता हूँ.”
मेरी इतनी बात सुनने के बाद मौसी ने कॉल रख दिया. मगर उनके इस कॉल ने मुझे गहरी सोच मे डाल दिया था. मुझे इस तरह सोच मे पड़ा देख कर, शिखा से नही रहा गया और उसने मुझे टोकते हुए कहा.
शिखा बोली “क्या हुआ भैया. किस बात को लेकर इतना सोच मे पड़ गये.”
मैं बोला “कुछ नही दीदी. वो मेरी मौसी ने मुझे एक काम करने का बोला था. लेकिन मेरे दिमाग़ से ही वो काम निकल गया था. अभी उन ने मुझे वो ही काम याद दिलाने के लिए कॉल किया था.”
शिखा बोली “तो इसमे परेशान होने की क्या बात है. अभी तो आपको 3-4 दिन यहाँ रहना ही है. इस समय मे आप अपना काम कर सकते हो.”
मैं बोला “ये ही तो परेशानी वाली बात है दीदी. इतने दिन अज्जि जब पूरी तरह से खाली था. तब मुझे काम याद नही था और अब जब मुझे काम याद आया तो अज्जि के पास ज़रा भी समय नही है. मुझे समझ मे नही आ रहा कि, अपने इस काम के लिए, अब किसको पकडू.”
शिखा बोली “क्या मैं जान सकती हूँ कि, आपको क्या काम है.”
मैं बोला “मौसी ने एक आदमी का पता दिया है और उसके बारे मे मालूम करने को कहा है. लेकिन ये भी कहा है कि, इस बारे मे किसी को कुछ मालूम नही पड़ना चाहिए.”
मेरी बात ये बात सुनकर, शिखा चौके बिना ना रह सकी. उसने बड़ी बेचेनी के साथ मुझसे कहा.
शिखा बोली “मौसी ने मुंबई मे कहाँ का पता दिया है.”
शिखा की इस बात के जबाब मे मैने अपना मोबाइल निकाला और उसमे मेसेज मे सेव किया हुआ, उस आदमी का नाम और पता निकाल कर, मोबाइल शिखा के हाथ मे थमा दिया. मोबाइल मे नाम और पता देखते ही, शिखा ने मुझे हैरानी से देखते हुए कहा.
शिखा बोली “भैया, क्या आप जानते हो ये मुंबई के किस इलाक़े का पता है.”
मैं बोला “नही, मैं तो यहाँ कही घुमा ही नही हूँ. मैं तो बस प्रिया के घर, हॉस्पिटल, अज्जि के बंगले और आपके घर के सिवा कही गया भी नही हूँ.”
शिखा बोली “फिर भी आपको ये पता मिल गया है.”
शिखा की इस बात से अब मेरी भी हैरानी का कोई ठिकाना नही था. शिखा ने मुझे हैरान होते देखा तो, मेरी हैरानी को दूर करते हुए कहा.
शिखा बोली “भैया, अभी आप इसी इलाक़े मे हो जहाँ का पता आप ढूँढ रहे हो.”
शिखा की इस बात से मेरी हैरानी और भी ज़्यादा बढ़ गयी. क्योकि मेरे पास जो पता लिखा था वो कुछ और था. जबकि शिखा का घर जिस इलाक़े मे था, उस इलाक़े का नाम कुछ और ही था. इसलिए मैने शिखा से कहा.
मैं बोला “लेकिन दीदी, इस जगह का नाम तो आआआ.. है. जबकि मेरे पास जो पता है. उसमे तो ब्ब्ब्बबब.. नाम लिखा है. मेरी समझ मे नही आ रहा कि, आप कहना क्या चाहती हो.”
शिखा बोली “भैया, जैसे पहले मुंबई का नाम बॉम्बे था. बस उसी तरह पहले इस इलाक़े को उसी नाम से जाना जाता था, जो आपके पास लिखा है. लेकिन 10 साल पहले इस इलाक़े का नया नाम रख दिया गया था. अब नाम बदल जाने से जगह तो नही बदल जाएगी ना.”
शिखा की बात सुनकर, मैने खुश होते हुए कहा.
मैं बोला “दीदी, यदि ये इसी इलाक़े का पता है तो, फिर आप इस आदमी को भी जानती ही होगी.”
शिखा बोली “नही, इस मैं इस नाम के किसी आदमी को नही जानती. मैने अपनी सारी जिंदगी यही पर गुज़ारी है. यहाँ इस नाम का कोई भी आदमी नही रहता. मुझे लगता है कि, आपकी मौसी को किसी ने ग़लत पता दे दिया है.”
शिखा की बात सुनकर, मैने राहत की साँस लेते हुए उस से कहा.
मैं बोला “थॅंक्स दीदी. आपने मेरी बहुत बड़ी परेशानी हाल कर दी. वरना मैं बेकार मे ही इस पते को लेकर यहाँ वहाँ भटकता रहता.”
शिखा बोली “लेकिन आपका काम तो हुआ नही.”
शिखा की इस बात के जबाब मे मैने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला “नही दीदी, मेरा काम तो हो गया. मौसी ने मुझे जो मालूम करने को कहा था. वो तो मैने मालूम कर लिया है. अब यदि वो आदमी यहाँ रहता ही नही है तो, इसमे हम भला क्या कर सकते है. मैं अभी मौसी को कॉल करके ये बात बता देता हूँ.”
ये कह कर, मैने शिखा से मोबाइल लिया और जैसे ही मौसी को कॉल लगाने लगा तो, शिखा ने मुझे रोकते हुए कहा.
शिखा बोली “एक मिनट भैया, यहाँ बहुत शोर-गुल हो रहा है. हम उपर चल कर मौसी से बात करते है. हो सकता है कि, उन्हे भी ये बात समझाना पड़ जाए.”
मुझे भी शिखा की ये बात सही लगी और फिर मैं शिखा के साथ उपर छत पर आ गया. हम उपर पहुचे तो, प्रिया बाहर छत पर ही, एक चेयर पर बैठी अख़बार पढ़ रही थी. उसने हमे उपर आते देखा तो, अख़बार एक किनारे रख दिया और मुस्कुराने लगी.
हम लोग भी उसे देख कर मुस्कुरा दिए और उसके पास खाली पड़ी चेयर पर जाकर बैठ गये. शिखा ने प्रिया को इस तरह वहाँ अकेले बैठे देखा तो, उस से कहा.
शिखा बोली “निक्की लोग तो कब की जा चुकी है. फिर तुम यहाँ अकेली क्यो बैठी हो.”
प्रिया बोली “दीदी, मैं भी नीचे ही आ रही थी. लेकिन तभी मेरी एक सहेली का कॉल आ गया और मैं उस से बात करने लगी. मगर बात करते करते उसने कहा कि, वो अभी थोड़ी देर से कॉल करती है. इसलिए मैं यही बैठ कर, उसके दोबारा कॉल आने का इंतजार करने लगी.”
प्रिया के कॉल वाली बात सुनते ही, शिखा को भी अपने उपर आने की वजह याद आ गयी. उसने फ़ौरन मुझे मौसी को कॉल लगाने को कहा और शिखा का इशारा मिलते ही मैने मौसी को कॉल लगा कर सारी बात बता दी. लेकिन इतनी जल्दी अपना काम हो जाने की बात मौसी के गले से नही उतार रही थी.
मैने मौसी के इस शंका का समाधान करने के लिए, उन को शिखा से बात करने को कह कर, मोबाइल शिखा को थमा दिया. जिसके बाद शिखा मौसी से बात करने लगी. शिखा मौसी से बात करते करते, हमारे पास से उठ कर, छत की दूसरी तरफ चली गयी. जिस वजह से मुझे उसकी बातें सुनाई देना बंद हो गया.
थोड़ी देर तक मौसी से बात करने के बाद, शिखा ने मेरे पास आकर वापस मोबाइल मुझे दे दिया. मैने मौसी से एक दो बातें की और उसके बाद उन्हो ने कॉल रख दिया. मेरी और मौसी की बात हो जाने के बाद, शिखा ने मुझसे कहा.
शिखा बोली “मैने मौसी को सब कुछ समझा दिया है और अब उनको भी इस बात का यकीन हो गया है.”
शिखा की बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला “अब उनको यकीन हो या ना हो, ये उनकी परेशानी है. मैने तो अपना काम पूरा करके, अपना पिछा इस काम से छुड़ा लिया है.”
मेरी बात सुनकर शिखा भी हँसने लगी. फिर ना जाने क्या सोचकर, शिखा ने मुझसे सवाल करते हुए कहा.
शिखा बोली “भैया, क्या आपके घर से शादी मे कोई नही आएगा.”
मैं बोला “दीदी, मैने आज सुबह ही, प्रिया के सामने अपनी मम्मी से बात की थी. उनसे मैने यहाँ आने के बारे मे पुछा था. लेकिन उनका कहना था कि, अभी मेहुल की मम्मी हमारे घर मे है. जिस वजह से वो चाहते हुए भी इस शादी मे शामिल नही हो पाएगी.”
मेरी इस बात की हामी प्रिया ने भी भर दी. लेकिन शिखा ने इस सवाल के बदलने मे, मुझसे दूसरा सवाल करते हुए कहा.
शिखा बोली “आंटी जी नही आ सकती तो क्या हुआ. अंकल जी तो आ ही सकते है. आप उनको ही बुला लीजिए.”
शिखा के मूह से अपने बाप का नाम सुनकर, एक पल के लिए मेरा चेहरा कठोर हो गया और मेरा मन अपने बाप को गाली देने का करने लगा. लेकिन मैने अपने आप पर काबू करते हुए कहा.
मैं बोला “दीदी, अभी वो 2 दिन पहले यही पर थे. उनकी अचानक तबीयत खराब हो गयी और उनको वापस जाना पड़ा. अभी भी उनकी तबीयत सफ़र करने लायक नही है. ऐसे मे उनका भी यहाँ आ पाना नही हो सकता है. लेकिन आप फिकर मत कीजिए. मैं आपसे वादा करता हूँ कि, शादी के बाद, मैं मोम को आपसे मिलाने ज़रूर लेकर आउगा.”
मेरी बात सुनने के बाद, शिखा ने मुझसे इस बारे मे, आगे कुछ नही कहा और हम लोगों से एक दो बातें करके नीचे चली गयी. लेकिन उसका उतरा हुआ चेहरा इस बात की गवाही दे रहा था कि, वो मेरी इस बात से खुश नही थी.
प्रिया को भी ये बात समझ मे आ चुकी थी और वो ये अच्छी तरह से जानती थी कि, मैने पापा की तबीयत खराब होने वाली बात शिखा से झूठ कही है. इसलिए शिखा के जाते ही उसने मुझे टोकते हुए कहा.
प्रिया बोली “तुम्हारे इस झूठ ने, दीदी का दिल दुखा दिया. तुम्हे एक बार कोसिस करके तो देखना था. हो सकता था कि, अंकल शादी मे आने के लिए तैयार हो जाते.”
प्रिया की बात सुनकर मेरा मूड फिर खराब हो गया और मैं भावनाओ मे बह कर, वो सब कह गया. जिसकी प्रिया कल्पना भी नही कर सकती थी. प्रिया की इस बात के जबाब मे मैने, उस पर भड़कते हुए कहा.
मैं बोला “हां तुम बिल्कुल ठीक कहती हो. यदि मैं चाहता तो, मेरा कमीना बाप ज़रूर इस शादी मे आ सकता था. लेकिन मैं उस कमिने का गंदा साया, अपनी इस मासूम और भोली भली बहन पर, किसी भी कीमत पर, नही पड़ने देना चाहता. क्योकि मैं सिर्फ़ ज़ुबान से ही नही, दिल से भी शिखा को अपनी बहन मानता हूँ.”
मैं इस समय सच मे ही बहुत गुस्से मे था और मेरा मन मेरे बाप को गालियाँ देने का कर रहा था. यदि इस समय मेरे सामने प्रिया की जगह कीर्ति होती तो, शायद अब तक मैं अपने बाप को गाली दे भी चुका होता.
लेकिन प्रिया के होने की वजह से, मैं कुछ हद तक अपने गुस्से को दबा कर रह गया था. प्रिया मेरे इस गुस्से की वजह को पूरी नही तो, कुछ हद ज़रूर समझ चुकी थी. इसलिए उसने मेरा ध्यान इस बात पर से हटाने के लिए मुझसे कहा.
प्रिया बोली “अरे इस खुशी के मौके पर बेकार मे अपना मूड खराब मत करो. ये देखो आज के अख़बार मे तुम्हारे लिए कितनी प्यारी चीज़ छपी है.”
ये कह कर प्रिया मुस्कुराते हुए, मुझे एक शायरी पढ़ कर सुनाने लगी.
प्रिया की शायरी
“आज मौसम मे अजीब सी बात है.
बेकाबू से मेरे ख़यालात है.
दिल चाहता है तुमको चुरा लूँ तुमसे,
पर मम्मी कहती है कि चोरी करना पाप है.”
लेकिन प्रिया की ये शायरी सुनकर भी मेरा मूड सही नही हुआ था. उसने अभी भी मेरा मूड उखड़ा हुआ देखा तो, फिर से एक शायरी पढ़ने लगी.
प्रिया की शायरी
“उमर क्या कहूँ काफ़ी नादान है मेरी.
हंस के मिलना पहचान है मेरी.
आपका दिल ज़ख़्मो से भरा हो तो मुझे याद कीजिए,
दिलो को रिपेयर करने की दुकान है मेरी.”
प्रिया की ये शायरी सुनकर, मैं प्रिया की तरफ देखने पर मजबूर हो गया. इस शायरी को सुनकर, मुझे ऐसा लगा. जैसे प्रिया ये खुद से ही बोली जा रही हो. अपने इस शक़ को दूर करने के लिए मैने प्रिया के हाथ से अख़बार छीन लिया और उसमे प्रिया की कही शायरी देखने लगा.
मेरा सोचना सही ही निकला. प्रिया अपने मन से ही शायरी बोल कर, मुझे सुनाए जा रही थी. प्रिया की सुनाई दोनो शायरी अख़बार मे नही थी. ये देख कर मैने प्रिया से कहा.
मैं बोला “ये क्या है. इसमे तो तुम्हारी सुनाई एक भी शायरी नही है.”
मेरी बात सुनकर, प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा.
प्रिया बोली “उसमे तुम्हे सुनने लायक कोई शायरी थी ही नही. इसलिए अपने मन से ही सुना दी.”
प्रिया की बात सुनकर, मैने एक बार फिर अख़बार पर नज़र डाली. मुझे उसमे तृप्ति की एक रचना दिखाई दे गयी. उसको देख कर मैने प्रिया से कहा.
मैं बोला “लेकिन इसमे तो एक अच्छी रचना छपि है.”
मेरी बात सुनकर, प्रिया ने मुझसे अख़बार ले लिया और देखने लगी कि, मैं किस रचना की बात कर रहा हूँ. उसे देखने के बाद, प्रिया ने मुझसे कहा.
प्रिया बोली “ये तो किसी खाड़ुस शायरा की खाड़ुस सी रचना है.”
मैं बोला “मगर मुझे इसका लिखा हुआ पसंद आता है.”
मेरी बात सुनकर, प्रिया ने हैरानी से मुझे देखते हुए कहा.
प्रिया बोली “क्या तुम तृप्ति की रचना पड़ते हो.”
मैं बोला “नही, लेकिन मैने मंडे को यहीं पर तृप्ति की एक रचना प्रतीक्षा पड़ी थी. मुझे वो बहुत पसंद आई थी. इसलिए मुझे इसका नाम याद हो गया. सच मे दिल को छुने वाली रचना लिखती है.”
मेरी इस बात को सुनकर, प्रिया ने मुस्कुराते हुए अख़बार को देखा और मुझसे कहा.
प्रिया बोली “ओके, मैं इसकी ये रचना सुनाती हूँ. देखती हूँ इसकी इस रचना मे तुमको क्या समझ मे आता है. रचना का नाम है, अजनबी से नफ़रत.”
रचना का शीर्षक बता कर प्रिया ने तृप्ति की इस रचना को पढ़ना सुरू कर दिया.
“अजनबी से नफ़रत”
“वो बँधे है किसी और की, चाहतो की जंजीर मे,
फिर भी उन्हे चाहने की, चाहत सी क्यों होती है.
दिल को समझाया बहुत कि, हैं वो मेरे नही किसी और के.
फिर भी उनको देखते ही, दिल मे धक धक सी क्यों होती है.
पता है वो आए है, पर किसी और के बुलाने पे.
फिर भी उनके आने से, कहीं कोई दस्तक सी क्यों होती है,
नज़रें मिली थी मेरी उनसे, ऐसे ही अंजाने मे.
फिर भी उनकी नज़रों की ही, इनायत सी क्यों होती है,
कि नही मैने कभी, वक़्त की बर्बादी फ़िजूल मे.
फिर भी उनकी बातो को सुनने की, फ़ुर्सत सी क्यों होती है.
हक़ नही है मुझे कि, मैं डूब जाऊ उनकी यादों मे.
फिर भी उनको चूमने की, सरारत सी क्यों होती है.
होंगे ना वो मेरे कभी, अगर मर भी जाउ उनके इंतजार मे.
फिर भी उनकी बाहों मे आने की, हसरत सी क्यों होती है.
नही जानती वो चाहते है किसे, इतना दिल ओ जान से.
फिर भी उस “अजनबी से नफ़रत” सी क्यों होती है.”
प्रिया मुझे तृप्ति की ये रचना सुना रही थी और मैं इसमे खो सा गया था. शेर-शायरी या किसी कविता को समझ पाना मेरे लिए हमेशा से ही एक मुश्किल काम था. लेकिन ना जाने तृप्ति की रचना मे ऐसी क्या बात थी कि, मैं उसकी रचना को सिर्फ़ समझ ही नही गया था, बल्कि उसमे छुपे दर्द और बेबसी को भी महसूस कर पा रहा था.
जबकि प्रिया इस रचना को पढ़ने के बाद, मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी. उसकी इस मुस्कान से समझ मे आ रहा था कि, उसे इस रचना मे कुछ भी महसूस नही हुआ है. इस बात को सोच कर मैने उस से कहा.
मैं बोला “क्या हुआ. क्या तुम्हे तृप्ति की ये रचना ज़रा भी समझ मे नही आई, जो तुम इस तरह मुस्कुरा रही हो.”
मेरी इस बात को सुनकर, प्रिया ने मुस्कुरा कर, शायरी मे जबाब देते हुए कहा.
प्रिया बोली
“मैं बेटी नही, ग़ालिब या फ़राज़ की.
जो बात समझ सकूँ, ग़ज़ल मे राज़ की.”
प्रिया की ये शायरी सुनकर, मैं अपनी हँसी ना रोक सका. लेकिन मैं उस से इसके बदले मे कुछ बोल पाता, उसके पहले ही उसका मोबाइल बजने लगा और प्रिया कॉल उठा कर बात करने लगी.
शायद उसकी सहेली, उसे कहीं आने के लिए बोल रही थी. लेकिन प्रिया उसे मना कर रही थी. प्रिया शायद मेरी वजह से अपनी सहेली के पास जाना नही चाहती थी. मगर बाद मे प्रिया ने उस से कह दिया कि, वो आने की कोसिस करती है. इसके बाद प्रिया ने कॉल रख दिया और मेरी तरफ देखते हुए कहा.
प्रिया बोली “क्या तुम मेरे साथ, मेरी सहेली से मिलने चलोगे.”
मैं बोला “हां, क्यो नही. चलो कहाँ चलना है.”
मेरी बात सुनकर, प्रिया को शायद अब भी इस बात का यकीन नही आ पा रहा था कि, मैं बिना कुछ जाने, बिना कुछ पुछे, इतनी आसानी से, उसके साथ जाने को तैयार हो गया हूँ. इसलिए उसने फिर से मुझसे कहा.
प्रिया बोली “क्या तुम सच मे मेरे साथ चलने को तैयार हो.”
मैं बोला “हां, मैं सच मे तुम्हारे साथ चल रहा हूँ और यदि तुम मुझे अपनी सहेली से, अपना बॉय फ्रेंड बनाकर, मिलाना चाहती हो तो, मुझे इस मे भी कोई परेशानी नही है.”
मेरी बात सुनते ही प्रिया का चेहरा खुशी से खिल उठा. वो फ़ौरन उठ कर चलने के लिए तैयार हो गयी. मैं भी उठ कर खड़ा हो गया. मैने उस से कहा कि मैं शिखा से बता देता हूँ कि, हम थोड़ी देर मे घूम कर आते है.
इतनी बात कर के हम नीचे आ गये. नीचे आकर मैने शिखा को बताया और फिर मैं अपनी कार मे प्रिया के साथ उसकी सहेली से मिलने निकल गया. कुछ ही देर मे हम प्रिया के बताए पार्क मे पहुच गये.
गाड़ी से उतरते ही प्रिया ने मेरा हाथ पकड़ लिया और फिर हम ऐसे ही पार्क के अंदर आ गये. हम अंदर आ कर, हम अपने आस पास देखते हुए आगे बढ़ने लगे. प्रिया अपनी सहेली को चारो तरफ देख रही थी.
मैं प्रिया की सहेली को नही जानता था. इसलिए मैं वहाँ पर आए प्रेमी युगल को देख कर, वहाँ के रंगीन नज़ारो का मज़ा लेने लगा. अचानक ही मेरी नज़र वहाँ एक किनारे पेड़ के पास खड़े एक जोड़े पर जाकर ठहर गयी.
लड़की मुझे कुछ जानी पहचानी सी लगी तो, मैं उसे गौर से देखने लगा. मगर लड़की का चेहरा मेरी तरफ नही था. इसलिए मैं उसका चेहरा देखने के लिए, प्रिया से अपना हाथ छुड़ाया और उस लड़की की तरफ बढ़ गया.
मैं जैसे ही उस लड़की के पास पहुचा, प्रिया भी मेरे पीछे पीछे वहाँ आ गयी थी. अभी प्रिया मुझसे कुछ पुछ पाती कि, मुझे लगा कि, वो लड़की कोई और नही बल्कि बरखा है.
ये बात समझ मे आते ही, मैने बिना कुछ सोचे समझे उस लड़की के कंधे पर हाथ रख दिया. वो लड़की सच मे ही बरखा थी और अचानक मुझे अपने सामने देख कर, कुछ घबरा सी गयी थी.
वही उस लड़के ने जब मुझे बरखा के कंधे पर हाथ रखता देखा तो, उसने आगे बढ़ कर, मेरा कॉलर पकड़ लिया. उस लड़के की इस हरकत से मेरा ध्यान मेरी कॉलर की तरफ चला गया और तभी चटाक़…चटाक़…की गूँज से, मैं बुरी तरह से हड़बड़ा गया.