desiaks
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मैं नाश्ता करके नीचे आया तो मेहुल छोटी माँ से बात कर रहा था. मुझे आता देख वो उठ कर खड़ा हो गया. मैने उसे खड़ा होते देख कहा.
मैं बोला "मुझे देख कर खड़ा क्यों हो गया. बैठ ना."
मेहुल बोला "अब साहब आएँगे तो नौकर चाकर तो उठ कर खड़े ही होगे."
मैं बोला "इतना गुस्सा क्यों हो रहा है. मैने क्या कर दिया."
मेहुल बोला "तुझे नही मालूम कि मैं गुस्सा क्यों हो रहा हूँ."
मैं बोला "जब तू बताएगा नही तो फिर मुझे कैसे पता चलेगा. अब कुछ बोल भी क्या हुआ."
मेहुल बोला "कल तुझे कितने कॉल किए. तूने फोन उठाया क्यों नही."
मैं बोला "मेरी नींद लग गयी थी इसलिए देख नही सका."
मेहुल बोला "जब तू रात को सो गया था तो फिर अभी 9 बजे तुझे क्यों उठाना पड़ा."
मैं बोला "यार रात को ये निमी अचानक रोने लगी इसलिए फिर रात को सो नही पाया. अब तू ये फालतू की बात छोड़ और ये बता चलने की सब तैयारी हो गयी या नही."
मेहुल बोला "मेरी तो सारी तैयारी हो गयी मगर यहाँ आने पर पता चला कि तेरी अभी तक कोई तैयारी नही है."
मैं बोला "मुझे क्या तैयारी करना. मुझे तो बस अपने कपड़े पॅक करना है. उनमे तो 15 मिनिट लगना है. तू कहे तो अभी तेरे साथ चल चलता हूँ."
मेहुल बोला "नही अभी चलने की ज़रूरत नही है मगर आंटी के साथ 5 बजे के पहले ज़रूर आ जाना."
मैं बोला "ठीक है. अब तू जा."
मेहुल बोला "मैं क्यों जाउ. तू जा और जाकर अपनी तैयारी कर."
मैं उसे पकड़ कर अपने साथ बाहर लाया और पूछा.
मैं बोला "तू शिल्पा से मिला."
मेहुल बोला "नही."
मैं बोला "क्यों नही मिला. क्या उसे बताया नही कि तू मुंबई जा रहा है."
मेहुल बोला "मैने सब बता दिया."
मैं बोला "तो उसने मिलने का नही बोला."
मेहुल बोला "बोला था मगर मैने मना कर दिया. मैने कह दिया कि जब मैं लौट कर आउन्गा तभी उससे मिलुगा."
मैं बोला "कभी कभी तू बिल्कुल पागलपन वाली हरकत करता है. अगर उस से मिल लेता तो तेरा क्या जाएगा."
मेहुल बोला "यार मेरा मन अभी पापा के सिवा कही नही लग रहा."
मैं बोला "देख बात तेरी ठीक है पर ज़रा उसके बारे मे भी तो सोच. उसे इतने दिन तेरे बिना कैसा लगेगा. क्या पता तुझे उधर जाकर उस से बात करने का टाइम कब मिटा है. इसलिए कह रहा हूँ उसे बेकार मे परेशान मत कर और उस से एक बार मिल ले. अब कोई भी बेकार की बात मत कर और जाकर उस से मिल."
मेहुल बोला "ठीक है तू कहता है तो मिल लेता हूँ. तू अपनी तैयारी कर मैं उस से मिल कर तुझे घर मे ही मिलुगा."
ये कहकर मेहुल चला गया और मैने वापस आकर अपनी पॅकिंग करना शुरू कर दिया. इस सब के साथ साथ मैं हर घंटे पर कीर्ति को किस भी देता रहा. मेरे लिए ये किस करना एक अलग ही अनुभव था. ऐसा शायद किसी और समय होता तो शायद मैं उसे किस करने का इंतजार करता रहता. लेकिन इस समय उसके किस से मेरी हालत पतली हो रही थी. ऐसा नही था कि मुझे खुशी नही हो रही थी. खुशी तो हो रही थी मगर उस से कही ज़्यादा, ये डर भी लग रहा था कि कोई देख ना ले. इसलिए मैं कीर्ति से बचता हुआ फिर रहा था. लेकिन वो हर घंटे पर मुझे ढूँढ कर मेरे सामने आ ही जाती थी.
मैं अपने कमरे मे ही था और लगभग मेरी सारी पॅकिंग हो चुकी थी. अब मैं मेहुल के घर जाने को तैयार हो रहा था. 3 बजे तक तो सब ठीक तक चलता रहा मगर फिर मेरे जाने का टाइम करीब हो गया तो अब अमि निमी मेरे आस पास ही रह रही थी.
मेरी जाने की सारी तैयारियाँ तो हो चुकी थी मगर अमि निमी की तैयारियाँ अभी भी ख़तम होने का नाम नही ले रही थी. वो बार बार पूछ रही थी. भैया ये समान रख लिया. भैया वो समान रख लिया. कही कुछ रखने को ले आती तो कही कुछ रखने को ले आती. मुझे मेरे डियो की खुश्बू तो आ रही थी मगर वो कहीं दिख नही रहा था तो मैने अमि से पूछा.
मैं बोला "मेरा देव इधर ही रखा था मगर अब इधर नही दिख रहा. तुम दोनो मे से किसी ने उठाया तो नही.."
अमि बोली "वो तो निमी ने स्प्रे कर दिया."
मैं बोला "कहाँ."
अमि बोली "आपके बॅग से बदबू सी आ रही थी तो, उसने पहले बॅग पर स्प्रे किया और फिर उसे, आपके कमरे से भी बदबू आती समझ मे आई तो बाकी का आपके रूम मे स्प्रे कर दिया."
मैं बोला "कुछ तो बचा होगा."
निमी बोली "उसमे था ही कहाँ. आपके आधे ही रूम मे हो पाया तभी तो इतनी कम खुसबु आ रही है."
मैं बोला "तुझे इतना भी नही मालूम कि रूम स्प्रे और बॉडी स्प्रे मे अंतर होता है. वो रूम स्प्रे नही था, बॉडी स्प्रे था. जिसे तूने अपनी बॉडी को छोड़ कर सब जगह कर दिया."
निमी बोली "मुझे मालूम है पर आपका डियो गंदा था. उसकी खुसबु अच्छी नही थी, इसलिए मैने उसे ख़तम कर दिया ताकि आप अच्छा वाला डियो ले लो."
मुझे मालूम था कि चाहे कुछ भी हो जाए, पर निमी अपनी ग़लती नही मानेगी. मैने खुद ही चुप हो जाने मे अपनी भलाई समझी और मैं तैयार होने लगा. ऐसा ही चलते चलते 4 बज गये और अब कीर्ति के आख़िरी किस करने की बारी भी आ गयी. लेकिन अब मेरे साथ अमि निमी चिपकी हुई थी, और कीर्ति 4 बजने के बाद भी मेरे सामने नही आई थी.
सुबह से ऐसा पहली बार हुआ था कि उसे किस करने का समय हो और वो सामने ना आई हो. मैने अमि से कहा कि वो जाकर कीर्ति को देख कर आए. अमि उसे देखने गयी और उसने आकर बताया कि कीर्ति दीदी नही है. वो अपनी सहेली नितिका के घर चली गयी है, और बोल गयी है कि वो आपसे मेहुल भैया के घर ही मिल लेगी.
ये सुनते ही मुझे बहुत ज़ोर का झटका लगा. ना चाहते हुए भी मैं तड़प उठा. ये तड़प कीर्ति को किस ना कर पाने की नही थी. बल्कि ये तड़प अपने जाने के पहले, कुछ पल कीर्ति के साथ ना बिता पाने की थी. मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि कीर्ति के लिए मेरे जज्बातों की कोई अहमियत नही है. उसे ये भी नही लगा कि मैं जा रहा हूँ तो, कम से कम मेरे पास तो रहे और यदि उसका जाना इतना ही ज़रूरी था तो कम से कम मुझसे बोलकर तो जा सकती थी. इस से तो यही लगता है कि, उसे मेरे जाने का ज़रा भी दुख नही है. इस आख़िरी समय पर कीर्ति के मेरे सामने ना आने से, मुझे बहुत बुरा लग रहा था.
मुझे कीर्ति की ये हरकत ज़रा भी पसंद नही आई थी. मैं मन ही मन उस से नाराज़ था. मेरी इस नाराज़गी ने मुझे उदास भी कर दिया. मैं इतना उदास था कि यदि कोई और समय होता तो, मैं अपना जाना ही टाल देता. लेकिन अभी ऐसा कर पाना संभव ही नही था. मैने बेमन से अपना समान उठाया और नीचे आ गया.
नीचे आने पर छोटी माँ भी तैयार मिली. उन्होने ड्राइवर से मेरा समान गाड़ी मे रखने कहा. छोटी माँ और अमि निमी मेरे साथ मेहुल के घर तक जा रही थी. समान रख जाने के बाद हम लोग मेहुल के घर के लिए निकल लिए और 5 बजे के पहले ही पहुच गये.
वहाँ पहुचते ही सबसे पहले मेरी नज़र कीर्ति की स्कूटी पर पड़ी. वो नितिका के घर से मेहुल के यहाँ आ चुकी थी. लेकिन अब मेरा मन उस से, बात करने का नही था. मैं सीधा अंदर पहुच गया. कीर्ति और नितिका मिलकर आंटी के साथ सारा समान रखवा रही थी. मुझे देख कर कीर्ति मुस्कुराइ, पर मैं उसे अनदेखा करते हुए सीधा मेहुल के कमरे मे चला गया. मेहुल भी अपना समान पॅक कर रहा था. मैने उस से कहा.
मैं बोला "सुबह तो तू बोल रहा था कि, तेरी सब तैयारी हो चुकी है, पर यहाँ तो अभी तक तेरी पॅकिंग ही चल रही है."
मेहुल बोला "अबे तैयारी भी सब थी और पॅकिंग भी थी, लेकिन अभी अभी कीर्ति ने कुछ समान लाकर दिया तो उसे ही पॅक कर रहा हूँ."
कीर्ति का नाम आते ही मेरा फिर दिमाग़ खराब हो गया. मैं सोचने लगा मेरे लिए तो, कुछ लाई नही है और ना जाने इसे क्या लाकर दे दिया. अरे मुझे कुछ ना देती पर, कम से कम आख़िरी मे मिलने का कुछ समय तो दे देती. अभी ये हाल है तो मेरे मुंबई जाने के बाद तो, ये मुझे भूल ही जाएगी. मुझे यू खोया देख कर मेहुल ने कहा.
मेहुल बोला "अबे क्या ख़यालों मे ही मुंबई पहुच गया है. चल समान बाहर ले चलने मे मेरी मदद कर."
मैं बोला "मैने अपना समान रखने मे खुद अपनी मदद की है. तू भी अपनी मदद खुद कर ले. मुझे थोडा आराम करने दे."
मेहुल बोला "चल रहने दे. तुझ जैसे नाज़ुक आदमी से ये होगा भी नही, पर तुझे आते ही आराम की ज़रूरत क्या है. घर से ही तो इधर तक आया है, और थक गया. तो फिर तेरी इधर से मुंबई तक के सफ़र मे क्या हालत होगी."
मैं बोला "फालतू की बकवास बंद करके अपना काम कर, और मुझे तब तक आराम करने दे."
मेहुल बोला "अबे तुझे हुआ क्या है. भड़क तो ऐसा रहा है. जैसे कोई तेरी महबूबा को भगा कर ले गया हो."
मैं बोला "मेरी महबूबा को कोई भगा कर नही ले गया. वो खुद ही मुझे छोड़ कर भाग गयी."
मेहुल बोला "मुझे लगता है तू मुंबई जाने के नाम से सठिया गया है. तू आराम ही कर तो अच्छा है, नही तो अपने साथ साथ मेरा भी दिमाग़ खराब कर देगा."
ये बोल कर मेहुल एक एक करके समान बाहर ले जाने लगा, और मैं उसके बेड पर लेट कर अपने दिमाग़ को शांत करने की कोसिस करने लगा. लेकिन मेरे दिमाग़ को कुछ हुआ होता तो वो शांत होता. हुआ तो मेरे दिल को था. मेरा दिल कीर्ति की एक छोटी सी बात से इतना दुखी हो गया था कि, अब मुझे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था. यहाँ तक की कीर्ति ने आते समय मुझे देख कर जो मुस्कुराया था. वो मुस्कुराहट भी मेरे सीने मे चुभ रही थी.
मुझे कीर्ति का यू हँसना ज़रा भी सहन नही हुआ. मैं तो बस यही मान कर चल रहा था कि कीर्ति को मेरे जाने का कोई दुख नही है. इसमे जो थोड़ी बहुत कसर बाकी थी वो मेहुल ने ये बता कर पूरी कर दी थी कि, कीर्ति कुछ लेकर आई है. जो मुझे ये सोचने पर मजबूर कर रही थी कि, कीर्ति को उसकी फिकर तो है मगर मेरी फिकर नही है. मुझे मेहुल से जलन तो नही थी पर कीर्ति का मुझे छोड़ कर उसकी फिकर करना मैं सह नही पाया.
मगर अभी मेरे दिल का जलना और बाकी था. कीर्ति के साथ साथ शिल्पा भी उस रूम मे मेरे लिए चाय लेकर आई. तीनो हंस हंस कर आपस मे बात कर रही थी, और उनकी हँसी मुझे चुभ रही थी. मेरा दिमाग़ मेरे नियंत्रण मे नही था. उन्हो ने मुहे चाय देना चाही तो मैने मना कहा मुझे नही पीना, और तीनो वैसे ही बात करती हुई वापस भी चली गयी.
इससे मेरा गुस्सा और भी बढ़ गया. मैं सोचने लगा कि, कम से कम ये तो पूछ सकती थी कि, मैं चाय क्यों नही पी रहा. इसे तो मेरी ज़रा भी परवाह नही है. मैं भी अब मुंबई जाकर रिया के साथ खूब मस्ती करूगा और इसे फोन भी नही लगाउन्गा, पर क्या पता इसे मुझसे बात करने का टाइम भी मिलता है या नही और मेरे बात करने या ना करने से इसे क्या असर पड़ेगा. इसे तो 3 दिनो मे मेरे से बिना बात किए रहने की आदत हो गयी है. रात को कैसे मुझे समझा रही थी और अब एक बार मेरी तरफ देख तक नही रही है.
मैं जो भी मेरे मन मे, उल्टा सीधा आ रहा था, बस सोचे जा रहा था और मन ही मन कीर्ति को कोसे जा रहा था. मेरे सीने मे एक अजीब सी आग जल रही थी. जो मुझे अंदर ही अंदर जलाए जा रही थी. मेरा दिल अंदर ही अंदर रो रहा था. उसे कीर्ति के इस बर्ताव से बहुत ही ठेस पहुचि थी. जिस वजह से मैं अपने आपको बहुत ही अकेला महसूस कर रहा था. ऐसा लग रहा था मान लो मेरे सीने मे दिल तो हो पर उसमे धड़कन ना हो. मुझे कीर्ति से अपने साथ ऐसे बर्ताव की उम्मीद कभी नही थी.
मैं अभी अपनी सोचो मे गुम ही था कि तभी मेरे कमरे मे शिल्पा आई. मैं समझा कि वो किसी काम से आई है. लेकिन वो मुझसे ही मिलने आई थी. मैं बेड पर लेटा हुआ था लेकिन उसे अपने पास आते देख कर मैं उठ कर बैठ गया. वो मेरे पास ही आकर खड़ी हो गयी. उसे यू खड़ा देख कर मैने उस से पूछा.
मैं बोला "क्या हुआ. क्या कोई काम है."
शिल्पा बोली "नही कोई काम नही है. बस तुमको सॉरी और थॅंक्स बोलना था."
मैं बोला "थॅंक्स तुमको क्यों बोलना है. ये तो मेरी समझ मे आ रहा है. लेकिन ये सॉरी किसलिए.? मेरी नज़र मे तो तुमने ऐसा कुछ भी नही किया. जिसके लिए तुम्हे सॉरी बोलना पड़े."
ये सुनकर शिल्पा ने अपना सर झुकाते हुए कहा.
शिल्पा बोली "तुम्हारी नज़र मे तो नही मगर मेरी नज़र मे मैने बहुत ग़लत किया है. मैं हमेशा तुम्हारे बारे मे ग़लत ही रही."
मैं बोला "मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा कि तुम क्या बोल रही हो."
शिल्पा बोली "मैं मन ही मन तुम्हारे लिए जलन रखती थी."
मैं बोला "मुझे मालूम है. लेकिन ये तुम्हारा घर है और इस पर कोई बाहर वाला अपना हक़ जताकर, तुम्हारे किसी का हक़ छीनेगा तो, उस से तुम्हे जलन होना स्वाभाविक ही है. मुझे इसमे कोई बुराई नज़र नही आती."
शिल्पा बोली "तुम चाहे कुछ भी कहो पर मैं ग़लत थी. जो तुम्हे हमेशा बाहर वाला समझती रही. तुमने अंकल आंटी को कभी खुद से अलग नही समझा और अंकल आंटी ने भी तुम्हे मेहुल से कम नही समझा. एक मैं ही थी जो ये सोचती रही कि तुम मेहुल का हक़ छीन रहे हो. जो सब अंकल आंटी से मेहुल को मिलना चाहिए. उस पर तुम डाका डाल रहे हो."
मैं बोला "ठीक है. जो हुआ उसे भूल जाओ, पर एक बात बताओ. आज अचानक तुम्हे इस बात का अहसास कैसे हो गया."
शिल्पा बोली "मेहुल तो मुझसे मिलना ही नही चाहता था, मगर तुमने जबरजस्ती उसे मेरे पास भेजा. मेहुल तो मुझे घर भी नही लाना चाहता था. लेकिन तुमने कीर्ति से मुझे, यहाँ बुलवा कर, मुझे इस घड़ी सब के साथ शामिल होने का मौका दिया. इन सब बातों ने मेरी तुम्हारे बारे मे, जो भी बुरी सोच थी उसे ख़तम कर दिया."
मैं बोला "अब तो तुम मुझे अपने परिवार का एक हिस्सा समझती हो."
शिल्पा बोली "हाँ."
मैं बोला "तो फिर सॉरी और थॅंक्स की कोई ज़रूरत नही है."
अभी मेरी बात पूरी भी नही हुई थी कि, तभी कीर्ति अंदर आ गयी. उसने आते ही शिल्पा से कहा.
कीर्ति बोली "अब तेरा सॉरी और थॅंक्स कहना हो गया हो तो, तू ज़रा नितिका के घर चली जा. वो तैयार होने गयी है. उसे जल्दी से तैयार करवा कर ला. नही तो पता चले कि इधर सबके जाने का टाइम हो जाए और वो तैयार ही होती रहे."
कीर्ति की बात सुनकर शिल्पा बाहर जाने लगी. उसके साथ साथ कीर्ति भी दरवाजे के बाहर तक गयी लेकिन शिल्पा के दूर होते ही, वो तुरंत वापस पलटी और मेरे पास आकर बैठ गयी और कहा.
कीर्ति बोली "मेरे किस का टाइम हो गया है. मेरा किस दो."
मैं बोला "चल ज़्यादा नाटक मत कर. देख लिया तेरा किस और तेरा प्यार."
कीर्ति बोली "देख तू मुझे जो चाहे वो बोल लेकिन मेरे प्यार को कुछ मत बोलना."
मैं बोला "बोलुगा. एक बार नही सौ बार बोलुगा. तू जा यहाँ से."
कीर्ति गुस्से मे उठी और बाहर चली गयी. लेकिन उसके जाने के बाद फिर मुझे खराब लगा. मैं सोचने लगा. अरे गुस्सा तो मैं था तो क्या मुझे मना नही सकती थी. अभी मैं आगे कुछ सोच पता तभी कीर्ति मुझे वापस आती दिखी. अब मुझे तो उस से कुछ कहना ही नही था और कहना तो उसे भी कुछ नही था. वो तेज कदमो से चलती हुई मेरे पास आई और इस से पहले की मैं कुछ सोचने समझने की कोसिस कर पता. उस से पहले ही कीर्ति ने अपना काम कर दिया.
उसने आते ही मेरे चेहरे को पकड़ा और अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिए. मैने उस से खुद को छुड़ाने की कोसिस की मगर सारी कोसिस बेकार थी. वो कसकर मुझे पकड़े हुए थी और मेरे होंठ चूसे जा रही थी और इधर मेरी हालत इस डर से खराब हुई जा रही थी कि कही कोई आ ना जाए. कुछ देर बाद मैं भी उसे किस करने लगा. किस करते करते मेरा सारा गुस्सा शांत हो चुका था.
मुझे उसका यू किस करना बहुत अच्छा लग रहा था.
लेकिन फिर भी कुछ देर बाद मैने बड़े प्यार से उस से खुद को छुड़ाया तो उसने मुझे छोड़ दिया. मैने उस से कहा.
मैं बोला "ये क्या पागलपन था. अभी कोई आ जाता तो."
कीर्ति बोली "कोई आ जाता तो आ जाता. मुझे मेरा किस चाहिए था और वो मैने ले लिया."
मैं बोला "यदि ऐसी ही किस वाली थी तो इसके पहले का किस लेना क्यों भूल गयी. क्या मुझसे मिल कर नही आ सकती थी."
कीर्ति बोली "वो इसलिए क्योंकि मेरे दिमाग़ मे कुछ और ही चल रहा था."
मैं बोला "क्या चल रहा था."
कीर्ति बोली "पहले तू बता. तूने क्या सोच रखा था."
मैं बोला "मैने तो यही सोचा था कि हम घर मे ही अच्छे से एक दूसरे से मिल लेगे. अब इतनी भीड़ भाड़ मे ऐसे मिलना ठीक नही रहता."
कीर्ति बोली "मुझे मालूम था कि, तू अपने जाने के बहुत पहले ही मुझसे पीछा छुड़ा लेगा. लेकिन मैं तेरा पीछा इतनी आसानी से छोड़ने वाली नही हूँ. मैं तो तुझसे जाते जाते भी किस लुगी."
मैं बोला "पागल है क्या. अभी अच्छा था कि कोई नही आया मगर अब इसके बाद कुछ मत करना. ज़रूरी नही कि हर बार कोई ना आए."
कीर्ति बोली "कोई कैसे आता. मैं सब को काम मे फसा कर आई थी और आगे भी ऐसा ही होगा."
मैं बोला "आगे ऐसा कुछ नही होगा. क्योंकि अब सब हमारे साथ ही होंगे."
कीर्ति बोली "तू भी बच्चों वाली बात करता है. मैं ऐसे ही घर से जल्दी नही निकली थी. मैंने सब सोच रखा है. अब तू ज़्यादा सवाल मत कर और चुप चाप मेरे साथ चल."
मैं बोला "कहा."
कीर्ति बोली "कहा ना कोई सवाल मत कर."
ये कह कर उसने मुझे पकड़ कर खिचा और मैं उठ कर उसके पीछे पीछे चलने लगा. बाहर निकल कर उसने आंटी से कहा.
कीर्ति बोली "आंटी हम लोग वही पहुच जाएगे. आप लोग आने मे देर मत करना."
आंटी बोली "तू चिंता मत कर हम लोग समय पर पहुच जाएगे."
मेरी तो कुछ समझ मे नही आ रहा था. कोई भी ये नही पूछ रहा था कि तुम लोग कहाँ जा रहे हो. ना जाने कीर्ति ने सब लोगों को कौन सी घुट्टी घोंट कर पिला दी. मुझे बस इतना ही समझ मे आ रहा था कि इसने ज़रूर इन लोगों को कोई पट्टी पढ़ा दी है. तभी सब हाँ हाँ किए जा रहे है. कोई कुछ सवाल नही कर रहा है. मैं बिना ये जाने कि, हम कहाँ जा रहे है, चुप चाप उसके पीछे पीछे चला जा रहा था.
मैं बोला "मुझे देख कर खड़ा क्यों हो गया. बैठ ना."
मेहुल बोला "अब साहब आएँगे तो नौकर चाकर तो उठ कर खड़े ही होगे."
मैं बोला "इतना गुस्सा क्यों हो रहा है. मैने क्या कर दिया."
मेहुल बोला "तुझे नही मालूम कि मैं गुस्सा क्यों हो रहा हूँ."
मैं बोला "जब तू बताएगा नही तो फिर मुझे कैसे पता चलेगा. अब कुछ बोल भी क्या हुआ."
मेहुल बोला "कल तुझे कितने कॉल किए. तूने फोन उठाया क्यों नही."
मैं बोला "मेरी नींद लग गयी थी इसलिए देख नही सका."
मेहुल बोला "जब तू रात को सो गया था तो फिर अभी 9 बजे तुझे क्यों उठाना पड़ा."
मैं बोला "यार रात को ये निमी अचानक रोने लगी इसलिए फिर रात को सो नही पाया. अब तू ये फालतू की बात छोड़ और ये बता चलने की सब तैयारी हो गयी या नही."
मेहुल बोला "मेरी तो सारी तैयारी हो गयी मगर यहाँ आने पर पता चला कि तेरी अभी तक कोई तैयारी नही है."
मैं बोला "मुझे क्या तैयारी करना. मुझे तो बस अपने कपड़े पॅक करना है. उनमे तो 15 मिनिट लगना है. तू कहे तो अभी तेरे साथ चल चलता हूँ."
मेहुल बोला "नही अभी चलने की ज़रूरत नही है मगर आंटी के साथ 5 बजे के पहले ज़रूर आ जाना."
मैं बोला "ठीक है. अब तू जा."
मेहुल बोला "मैं क्यों जाउ. तू जा और जाकर अपनी तैयारी कर."
मैं उसे पकड़ कर अपने साथ बाहर लाया और पूछा.
मैं बोला "तू शिल्पा से मिला."
मेहुल बोला "नही."
मैं बोला "क्यों नही मिला. क्या उसे बताया नही कि तू मुंबई जा रहा है."
मेहुल बोला "मैने सब बता दिया."
मैं बोला "तो उसने मिलने का नही बोला."
मेहुल बोला "बोला था मगर मैने मना कर दिया. मैने कह दिया कि जब मैं लौट कर आउन्गा तभी उससे मिलुगा."
मैं बोला "कभी कभी तू बिल्कुल पागलपन वाली हरकत करता है. अगर उस से मिल लेता तो तेरा क्या जाएगा."
मेहुल बोला "यार मेरा मन अभी पापा के सिवा कही नही लग रहा."
मैं बोला "देख बात तेरी ठीक है पर ज़रा उसके बारे मे भी तो सोच. उसे इतने दिन तेरे बिना कैसा लगेगा. क्या पता तुझे उधर जाकर उस से बात करने का टाइम कब मिटा है. इसलिए कह रहा हूँ उसे बेकार मे परेशान मत कर और उस से एक बार मिल ले. अब कोई भी बेकार की बात मत कर और जाकर उस से मिल."
मेहुल बोला "ठीक है तू कहता है तो मिल लेता हूँ. तू अपनी तैयारी कर मैं उस से मिल कर तुझे घर मे ही मिलुगा."
ये कहकर मेहुल चला गया और मैने वापस आकर अपनी पॅकिंग करना शुरू कर दिया. इस सब के साथ साथ मैं हर घंटे पर कीर्ति को किस भी देता रहा. मेरे लिए ये किस करना एक अलग ही अनुभव था. ऐसा शायद किसी और समय होता तो शायद मैं उसे किस करने का इंतजार करता रहता. लेकिन इस समय उसके किस से मेरी हालत पतली हो रही थी. ऐसा नही था कि मुझे खुशी नही हो रही थी. खुशी तो हो रही थी मगर उस से कही ज़्यादा, ये डर भी लग रहा था कि कोई देख ना ले. इसलिए मैं कीर्ति से बचता हुआ फिर रहा था. लेकिन वो हर घंटे पर मुझे ढूँढ कर मेरे सामने आ ही जाती थी.
मैं अपने कमरे मे ही था और लगभग मेरी सारी पॅकिंग हो चुकी थी. अब मैं मेहुल के घर जाने को तैयार हो रहा था. 3 बजे तक तो सब ठीक तक चलता रहा मगर फिर मेरे जाने का टाइम करीब हो गया तो अब अमि निमी मेरे आस पास ही रह रही थी.
मेरी जाने की सारी तैयारियाँ तो हो चुकी थी मगर अमि निमी की तैयारियाँ अभी भी ख़तम होने का नाम नही ले रही थी. वो बार बार पूछ रही थी. भैया ये समान रख लिया. भैया वो समान रख लिया. कही कुछ रखने को ले आती तो कही कुछ रखने को ले आती. मुझे मेरे डियो की खुश्बू तो आ रही थी मगर वो कहीं दिख नही रहा था तो मैने अमि से पूछा.
मैं बोला "मेरा देव इधर ही रखा था मगर अब इधर नही दिख रहा. तुम दोनो मे से किसी ने उठाया तो नही.."
अमि बोली "वो तो निमी ने स्प्रे कर दिया."
मैं बोला "कहाँ."
अमि बोली "आपके बॅग से बदबू सी आ रही थी तो, उसने पहले बॅग पर स्प्रे किया और फिर उसे, आपके कमरे से भी बदबू आती समझ मे आई तो बाकी का आपके रूम मे स्प्रे कर दिया."
मैं बोला "कुछ तो बचा होगा."
निमी बोली "उसमे था ही कहाँ. आपके आधे ही रूम मे हो पाया तभी तो इतनी कम खुसबु आ रही है."
मैं बोला "तुझे इतना भी नही मालूम कि रूम स्प्रे और बॉडी स्प्रे मे अंतर होता है. वो रूम स्प्रे नही था, बॉडी स्प्रे था. जिसे तूने अपनी बॉडी को छोड़ कर सब जगह कर दिया."
निमी बोली "मुझे मालूम है पर आपका डियो गंदा था. उसकी खुसबु अच्छी नही थी, इसलिए मैने उसे ख़तम कर दिया ताकि आप अच्छा वाला डियो ले लो."
मुझे मालूम था कि चाहे कुछ भी हो जाए, पर निमी अपनी ग़लती नही मानेगी. मैने खुद ही चुप हो जाने मे अपनी भलाई समझी और मैं तैयार होने लगा. ऐसा ही चलते चलते 4 बज गये और अब कीर्ति के आख़िरी किस करने की बारी भी आ गयी. लेकिन अब मेरे साथ अमि निमी चिपकी हुई थी, और कीर्ति 4 बजने के बाद भी मेरे सामने नही आई थी.
सुबह से ऐसा पहली बार हुआ था कि उसे किस करने का समय हो और वो सामने ना आई हो. मैने अमि से कहा कि वो जाकर कीर्ति को देख कर आए. अमि उसे देखने गयी और उसने आकर बताया कि कीर्ति दीदी नही है. वो अपनी सहेली नितिका के घर चली गयी है, और बोल गयी है कि वो आपसे मेहुल भैया के घर ही मिल लेगी.
ये सुनते ही मुझे बहुत ज़ोर का झटका लगा. ना चाहते हुए भी मैं तड़प उठा. ये तड़प कीर्ति को किस ना कर पाने की नही थी. बल्कि ये तड़प अपने जाने के पहले, कुछ पल कीर्ति के साथ ना बिता पाने की थी. मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि कीर्ति के लिए मेरे जज्बातों की कोई अहमियत नही है. उसे ये भी नही लगा कि मैं जा रहा हूँ तो, कम से कम मेरे पास तो रहे और यदि उसका जाना इतना ही ज़रूरी था तो कम से कम मुझसे बोलकर तो जा सकती थी. इस से तो यही लगता है कि, उसे मेरे जाने का ज़रा भी दुख नही है. इस आख़िरी समय पर कीर्ति के मेरे सामने ना आने से, मुझे बहुत बुरा लग रहा था.
मुझे कीर्ति की ये हरकत ज़रा भी पसंद नही आई थी. मैं मन ही मन उस से नाराज़ था. मेरी इस नाराज़गी ने मुझे उदास भी कर दिया. मैं इतना उदास था कि यदि कोई और समय होता तो, मैं अपना जाना ही टाल देता. लेकिन अभी ऐसा कर पाना संभव ही नही था. मैने बेमन से अपना समान उठाया और नीचे आ गया.
नीचे आने पर छोटी माँ भी तैयार मिली. उन्होने ड्राइवर से मेरा समान गाड़ी मे रखने कहा. छोटी माँ और अमि निमी मेरे साथ मेहुल के घर तक जा रही थी. समान रख जाने के बाद हम लोग मेहुल के घर के लिए निकल लिए और 5 बजे के पहले ही पहुच गये.
वहाँ पहुचते ही सबसे पहले मेरी नज़र कीर्ति की स्कूटी पर पड़ी. वो नितिका के घर से मेहुल के यहाँ आ चुकी थी. लेकिन अब मेरा मन उस से, बात करने का नही था. मैं सीधा अंदर पहुच गया. कीर्ति और नितिका मिलकर आंटी के साथ सारा समान रखवा रही थी. मुझे देख कर कीर्ति मुस्कुराइ, पर मैं उसे अनदेखा करते हुए सीधा मेहुल के कमरे मे चला गया. मेहुल भी अपना समान पॅक कर रहा था. मैने उस से कहा.
मैं बोला "सुबह तो तू बोल रहा था कि, तेरी सब तैयारी हो चुकी है, पर यहाँ तो अभी तक तेरी पॅकिंग ही चल रही है."
मेहुल बोला "अबे तैयारी भी सब थी और पॅकिंग भी थी, लेकिन अभी अभी कीर्ति ने कुछ समान लाकर दिया तो उसे ही पॅक कर रहा हूँ."
कीर्ति का नाम आते ही मेरा फिर दिमाग़ खराब हो गया. मैं सोचने लगा मेरे लिए तो, कुछ लाई नही है और ना जाने इसे क्या लाकर दे दिया. अरे मुझे कुछ ना देती पर, कम से कम आख़िरी मे मिलने का कुछ समय तो दे देती. अभी ये हाल है तो मेरे मुंबई जाने के बाद तो, ये मुझे भूल ही जाएगी. मुझे यू खोया देख कर मेहुल ने कहा.
मेहुल बोला "अबे क्या ख़यालों मे ही मुंबई पहुच गया है. चल समान बाहर ले चलने मे मेरी मदद कर."
मैं बोला "मैने अपना समान रखने मे खुद अपनी मदद की है. तू भी अपनी मदद खुद कर ले. मुझे थोडा आराम करने दे."
मेहुल बोला "चल रहने दे. तुझ जैसे नाज़ुक आदमी से ये होगा भी नही, पर तुझे आते ही आराम की ज़रूरत क्या है. घर से ही तो इधर तक आया है, और थक गया. तो फिर तेरी इधर से मुंबई तक के सफ़र मे क्या हालत होगी."
मैं बोला "फालतू की बकवास बंद करके अपना काम कर, और मुझे तब तक आराम करने दे."
मेहुल बोला "अबे तुझे हुआ क्या है. भड़क तो ऐसा रहा है. जैसे कोई तेरी महबूबा को भगा कर ले गया हो."
मैं बोला "मेरी महबूबा को कोई भगा कर नही ले गया. वो खुद ही मुझे छोड़ कर भाग गयी."
मेहुल बोला "मुझे लगता है तू मुंबई जाने के नाम से सठिया गया है. तू आराम ही कर तो अच्छा है, नही तो अपने साथ साथ मेरा भी दिमाग़ खराब कर देगा."
ये बोल कर मेहुल एक एक करके समान बाहर ले जाने लगा, और मैं उसके बेड पर लेट कर अपने दिमाग़ को शांत करने की कोसिस करने लगा. लेकिन मेरे दिमाग़ को कुछ हुआ होता तो वो शांत होता. हुआ तो मेरे दिल को था. मेरा दिल कीर्ति की एक छोटी सी बात से इतना दुखी हो गया था कि, अब मुझे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था. यहाँ तक की कीर्ति ने आते समय मुझे देख कर जो मुस्कुराया था. वो मुस्कुराहट भी मेरे सीने मे चुभ रही थी.
मुझे कीर्ति का यू हँसना ज़रा भी सहन नही हुआ. मैं तो बस यही मान कर चल रहा था कि कीर्ति को मेरे जाने का कोई दुख नही है. इसमे जो थोड़ी बहुत कसर बाकी थी वो मेहुल ने ये बता कर पूरी कर दी थी कि, कीर्ति कुछ लेकर आई है. जो मुझे ये सोचने पर मजबूर कर रही थी कि, कीर्ति को उसकी फिकर तो है मगर मेरी फिकर नही है. मुझे मेहुल से जलन तो नही थी पर कीर्ति का मुझे छोड़ कर उसकी फिकर करना मैं सह नही पाया.
मगर अभी मेरे दिल का जलना और बाकी था. कीर्ति के साथ साथ शिल्पा भी उस रूम मे मेरे लिए चाय लेकर आई. तीनो हंस हंस कर आपस मे बात कर रही थी, और उनकी हँसी मुझे चुभ रही थी. मेरा दिमाग़ मेरे नियंत्रण मे नही था. उन्हो ने मुहे चाय देना चाही तो मैने मना कहा मुझे नही पीना, और तीनो वैसे ही बात करती हुई वापस भी चली गयी.
इससे मेरा गुस्सा और भी बढ़ गया. मैं सोचने लगा कि, कम से कम ये तो पूछ सकती थी कि, मैं चाय क्यों नही पी रहा. इसे तो मेरी ज़रा भी परवाह नही है. मैं भी अब मुंबई जाकर रिया के साथ खूब मस्ती करूगा और इसे फोन भी नही लगाउन्गा, पर क्या पता इसे मुझसे बात करने का टाइम भी मिलता है या नही और मेरे बात करने या ना करने से इसे क्या असर पड़ेगा. इसे तो 3 दिनो मे मेरे से बिना बात किए रहने की आदत हो गयी है. रात को कैसे मुझे समझा रही थी और अब एक बार मेरी तरफ देख तक नही रही है.
मैं जो भी मेरे मन मे, उल्टा सीधा आ रहा था, बस सोचे जा रहा था और मन ही मन कीर्ति को कोसे जा रहा था. मेरे सीने मे एक अजीब सी आग जल रही थी. जो मुझे अंदर ही अंदर जलाए जा रही थी. मेरा दिल अंदर ही अंदर रो रहा था. उसे कीर्ति के इस बर्ताव से बहुत ही ठेस पहुचि थी. जिस वजह से मैं अपने आपको बहुत ही अकेला महसूस कर रहा था. ऐसा लग रहा था मान लो मेरे सीने मे दिल तो हो पर उसमे धड़कन ना हो. मुझे कीर्ति से अपने साथ ऐसे बर्ताव की उम्मीद कभी नही थी.
मैं अभी अपनी सोचो मे गुम ही था कि तभी मेरे कमरे मे शिल्पा आई. मैं समझा कि वो किसी काम से आई है. लेकिन वो मुझसे ही मिलने आई थी. मैं बेड पर लेटा हुआ था लेकिन उसे अपने पास आते देख कर मैं उठ कर बैठ गया. वो मेरे पास ही आकर खड़ी हो गयी. उसे यू खड़ा देख कर मैने उस से पूछा.
मैं बोला "क्या हुआ. क्या कोई काम है."
शिल्पा बोली "नही कोई काम नही है. बस तुमको सॉरी और थॅंक्स बोलना था."
मैं बोला "थॅंक्स तुमको क्यों बोलना है. ये तो मेरी समझ मे आ रहा है. लेकिन ये सॉरी किसलिए.? मेरी नज़र मे तो तुमने ऐसा कुछ भी नही किया. जिसके लिए तुम्हे सॉरी बोलना पड़े."
ये सुनकर शिल्पा ने अपना सर झुकाते हुए कहा.
शिल्पा बोली "तुम्हारी नज़र मे तो नही मगर मेरी नज़र मे मैने बहुत ग़लत किया है. मैं हमेशा तुम्हारे बारे मे ग़लत ही रही."
मैं बोला "मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा कि तुम क्या बोल रही हो."
शिल्पा बोली "मैं मन ही मन तुम्हारे लिए जलन रखती थी."
मैं बोला "मुझे मालूम है. लेकिन ये तुम्हारा घर है और इस पर कोई बाहर वाला अपना हक़ जताकर, तुम्हारे किसी का हक़ छीनेगा तो, उस से तुम्हे जलन होना स्वाभाविक ही है. मुझे इसमे कोई बुराई नज़र नही आती."
शिल्पा बोली "तुम चाहे कुछ भी कहो पर मैं ग़लत थी. जो तुम्हे हमेशा बाहर वाला समझती रही. तुमने अंकल आंटी को कभी खुद से अलग नही समझा और अंकल आंटी ने भी तुम्हे मेहुल से कम नही समझा. एक मैं ही थी जो ये सोचती रही कि तुम मेहुल का हक़ छीन रहे हो. जो सब अंकल आंटी से मेहुल को मिलना चाहिए. उस पर तुम डाका डाल रहे हो."
मैं बोला "ठीक है. जो हुआ उसे भूल जाओ, पर एक बात बताओ. आज अचानक तुम्हे इस बात का अहसास कैसे हो गया."
शिल्पा बोली "मेहुल तो मुझसे मिलना ही नही चाहता था, मगर तुमने जबरजस्ती उसे मेरे पास भेजा. मेहुल तो मुझे घर भी नही लाना चाहता था. लेकिन तुमने कीर्ति से मुझे, यहाँ बुलवा कर, मुझे इस घड़ी सब के साथ शामिल होने का मौका दिया. इन सब बातों ने मेरी तुम्हारे बारे मे, जो भी बुरी सोच थी उसे ख़तम कर दिया."
मैं बोला "अब तो तुम मुझे अपने परिवार का एक हिस्सा समझती हो."
शिल्पा बोली "हाँ."
मैं बोला "तो फिर सॉरी और थॅंक्स की कोई ज़रूरत नही है."
अभी मेरी बात पूरी भी नही हुई थी कि, तभी कीर्ति अंदर आ गयी. उसने आते ही शिल्पा से कहा.
कीर्ति बोली "अब तेरा सॉरी और थॅंक्स कहना हो गया हो तो, तू ज़रा नितिका के घर चली जा. वो तैयार होने गयी है. उसे जल्दी से तैयार करवा कर ला. नही तो पता चले कि इधर सबके जाने का टाइम हो जाए और वो तैयार ही होती रहे."
कीर्ति की बात सुनकर शिल्पा बाहर जाने लगी. उसके साथ साथ कीर्ति भी दरवाजे के बाहर तक गयी लेकिन शिल्पा के दूर होते ही, वो तुरंत वापस पलटी और मेरे पास आकर बैठ गयी और कहा.
कीर्ति बोली "मेरे किस का टाइम हो गया है. मेरा किस दो."
मैं बोला "चल ज़्यादा नाटक मत कर. देख लिया तेरा किस और तेरा प्यार."
कीर्ति बोली "देख तू मुझे जो चाहे वो बोल लेकिन मेरे प्यार को कुछ मत बोलना."
मैं बोला "बोलुगा. एक बार नही सौ बार बोलुगा. तू जा यहाँ से."
कीर्ति गुस्से मे उठी और बाहर चली गयी. लेकिन उसके जाने के बाद फिर मुझे खराब लगा. मैं सोचने लगा. अरे गुस्सा तो मैं था तो क्या मुझे मना नही सकती थी. अभी मैं आगे कुछ सोच पता तभी कीर्ति मुझे वापस आती दिखी. अब मुझे तो उस से कुछ कहना ही नही था और कहना तो उसे भी कुछ नही था. वो तेज कदमो से चलती हुई मेरे पास आई और इस से पहले की मैं कुछ सोचने समझने की कोसिस कर पता. उस से पहले ही कीर्ति ने अपना काम कर दिया.
उसने आते ही मेरे चेहरे को पकड़ा और अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिए. मैने उस से खुद को छुड़ाने की कोसिस की मगर सारी कोसिस बेकार थी. वो कसकर मुझे पकड़े हुए थी और मेरे होंठ चूसे जा रही थी और इधर मेरी हालत इस डर से खराब हुई जा रही थी कि कही कोई आ ना जाए. कुछ देर बाद मैं भी उसे किस करने लगा. किस करते करते मेरा सारा गुस्सा शांत हो चुका था.
मुझे उसका यू किस करना बहुत अच्छा लग रहा था.
लेकिन फिर भी कुछ देर बाद मैने बड़े प्यार से उस से खुद को छुड़ाया तो उसने मुझे छोड़ दिया. मैने उस से कहा.
मैं बोला "ये क्या पागलपन था. अभी कोई आ जाता तो."
कीर्ति बोली "कोई आ जाता तो आ जाता. मुझे मेरा किस चाहिए था और वो मैने ले लिया."
मैं बोला "यदि ऐसी ही किस वाली थी तो इसके पहले का किस लेना क्यों भूल गयी. क्या मुझसे मिल कर नही आ सकती थी."
कीर्ति बोली "वो इसलिए क्योंकि मेरे दिमाग़ मे कुछ और ही चल रहा था."
मैं बोला "क्या चल रहा था."
कीर्ति बोली "पहले तू बता. तूने क्या सोच रखा था."
मैं बोला "मैने तो यही सोचा था कि हम घर मे ही अच्छे से एक दूसरे से मिल लेगे. अब इतनी भीड़ भाड़ मे ऐसे मिलना ठीक नही रहता."
कीर्ति बोली "मुझे मालूम था कि, तू अपने जाने के बहुत पहले ही मुझसे पीछा छुड़ा लेगा. लेकिन मैं तेरा पीछा इतनी आसानी से छोड़ने वाली नही हूँ. मैं तो तुझसे जाते जाते भी किस लुगी."
मैं बोला "पागल है क्या. अभी अच्छा था कि कोई नही आया मगर अब इसके बाद कुछ मत करना. ज़रूरी नही कि हर बार कोई ना आए."
कीर्ति बोली "कोई कैसे आता. मैं सब को काम मे फसा कर आई थी और आगे भी ऐसा ही होगा."
मैं बोला "आगे ऐसा कुछ नही होगा. क्योंकि अब सब हमारे साथ ही होंगे."
कीर्ति बोली "तू भी बच्चों वाली बात करता है. मैं ऐसे ही घर से जल्दी नही निकली थी. मैंने सब सोच रखा है. अब तू ज़्यादा सवाल मत कर और चुप चाप मेरे साथ चल."
मैं बोला "कहा."
कीर्ति बोली "कहा ना कोई सवाल मत कर."
ये कह कर उसने मुझे पकड़ कर खिचा और मैं उठ कर उसके पीछे पीछे चलने लगा. बाहर निकल कर उसने आंटी से कहा.
कीर्ति बोली "आंटी हम लोग वही पहुच जाएगे. आप लोग आने मे देर मत करना."
आंटी बोली "तू चिंता मत कर हम लोग समय पर पहुच जाएगे."
मेरी तो कुछ समझ मे नही आ रहा था. कोई भी ये नही पूछ रहा था कि तुम लोग कहाँ जा रहे हो. ना जाने कीर्ति ने सब लोगों को कौन सी घुट्टी घोंट कर पिला दी. मुझे बस इतना ही समझ मे आ रहा था कि इसने ज़रूर इन लोगों को कोई पट्टी पढ़ा दी है. तभी सब हाँ हाँ किए जा रहे है. कोई कुछ सवाल नही कर रहा है. मैं बिना ये जाने कि, हम कहाँ जा रहे है, चुप चाप उसके पीछे पीछे चला जा रहा था.