desiaks
Administrator
- Joined
- Aug 28, 2015
- Messages
- 24,893
जब से मैने होश संभाला था. तब से आज पहली बार मैं छोटी माँ को यूँ फुट फुट कर रोते देख रहा था. मैं अब कोई बच्चा नही था इसलिए ये सब समझ सकता था कि क्या हुआ है और इन आसुओं का मतलब क्या है. छोटी माँ को रोते देख मेरी आँखे भी अपने आपको छलकने से ना रोक पाई, लेकिन ये आँसू ना किसी दुख के थे और ना किसी पछतावे के थे, बल्कि ये आँसू एक ऐसी नफ़रत के थे जो मुझे अभी अभी अपने बाप से हुई थी.
मैने गुस्से से भरा हुआ था. मैने छोटी माँ से अपना हाथ छुड़ाया और वापस ऑफीस के अंदर जाने लगा. छोटी माँ ने मुझे आवाज़ लगाई मगर मैं उनकी बात को अनसुनी कर अंदर की ओर बढ़ता चला गया. छोटी माँ भी मेरे पीछे पीछे आ रही थी और मुझे अंदर जाने से रोकने की कोशिश कर रही थी. लेकिन जब मैं नही रुका तो उन्हो ने कहा.
छोटी माँ "पुन्नू रुक जा. तुझे अमि निमी की कसम है. तू एक कदम भी आगे नही बढ़ाएगा."
ये कह कर छोटी माँ ने मेरे बढ़ते हुए कदमो को तो रोक लिया, मगर मेरे अंदर भड़क रही गुस्से की आग को वो नही भुझा सकी.
मैं गुस्से चीखते हुए बोला "क्यों नही छोटी माँ.? वो सब जो अंदर हो रहा था, यदि वो सही है तो आप रोई क्यों.? और यदि सही नही है तो आज उस आदमी को इसका जबाब सबके सामने देना होगा कि, उसने ये क्यों किया.?"
छोटी माँ "देख तुझे जो कुछ भी बोलना है. उनके घर आने पर बोल लेना. यहाँ ऑफीस मे बात करके उनकी इज़्ज़त का तमाशा बनाने से वो सब कुछ वापस तो नही हो जाएगा."
मैं बोला "कौन सी इज़्ज़त छोटी माँ. किसी मजबूर लड़की की मजबूरी का फ़ायदा उठाने वाले की तो बीच चौराहे मे इज़्ज़त उच्छालना चाहिए. उसने आपके विस्वास को ठेस लगाया है. मैं उस शैतान को कभी माफ़ नही कर सकता."
छोटी माँ ने मुझे गले से लगा लिया और रोते हुए बोली "देख तुझे मेरा इतना ख़याल है तो मेरा और अपनी छोटी बहनों का ख़याल करके चुप चाप घर चल. जो भी बात करना है हम उनके घर आने पर कर लेंगे."
आख़िर मे मुझे छोटी माँ की बात मानकर घर आना पड़ा लेकिन अब मेरा मन मेरे बाप से ज़रा भी बात करने का नही था. मैं मन ही मन उसे गालियाँ बक रहा था और मेरे अंदर उसके लिए कोई सम्मान की भावना अब शेष नही बची थी. शाम को पापा घर आए तो मैं अपने कमरे मे था. घर का महॉल उन्हे बदला हुआ लगा मगर इसका कारण उन्हे नही मालूम था. जब उन से छोटी माँ ने दिन वाली बात बताई तो वो उल्टा छोटी माँ पर बरस पड़े.
पापा छोटी माँ से कह रहे थे "मैं एक मर्द हूँ और घर की चार दीवारी के बाहर मैं किस किस के साथ क्या करता हूँ इसका तुमसे कोई मतलब नही है. मैं घर मे किसी को लेकर आता हूँ तो तुम्हे परेशानी होना चाहिए.. तुम्हे अच्छा लगता है तो तुम इस घर मे रहो, और यदि अच्छा नही लगता तो तुम जहाँ चाहे जा सकती हो. मेरी तरफ से कोई रोक नही है. मगर आइन्दा से मेरे किसी मामले मे दखल देने की ज़रा भी कोशिश मत करना."
ये सब सुनकर तो मेरे होश ही उड़ गये और मेरा सारा गुस्सा अब डर मे बदल गया कि कही छोटी माँ सच मे ना चली जाए. छोटी माँ रोती रही मगर फिर कुछ नही बोली. उस दिन ना तो मैने खाना खाया और ना ही छोटी माँ ने खाना खाया. दूसरे दिन छोटी माँ को मैने अपना समान बाँधते देखा तो मैं रोने लगा. वो घर छोड़ कर जाने की तैयारी कर रही थी. लेकिन मेरा चेहरा देख कर उन्हो ने अपना घर छोड़ने का इरादा बदल दिया. शाम को पापा आए और उन्हो ने छोटी माँ को घर मे देखा तो उन्हे अपनी जीत महसूस हो रही थी क्योंकि अब उनके मामले मे टाँग अडाने वाला कोई नही था.
मैने उनके साथ उठना बैठना, बात करना, खाना खाना सब बंद कर दिया. कुछ दिन तो उनको इस बात का अहसास ही नही हुआ. मगर जब कुछ दिन बात उन्हे इस बात का ऐएहसास हुआ तो उन ने मुझसे इसकी वजह पूछी. तब मैने उन्हे उनकी उस जलील हरकत के बारे मे बताया. जिसे सुनकर उनके पैरों से ज़मीन ही खिसक गयी. लेकिन उन्हो ने मुझे भी वही जबाब दिया जो छोटी माँ को दिया था. तब मैने उन्हे कोई जबाब तो नही दिया, मगर उस दिन से मेरा उनके साथ सिर्फ़ नाम का ही रिश्ता रह गया. हम बाप बेटे एक घर मे भी रहकर अजनबी की तरह रहने लगे और फिर कुछ समय बाद मैं अमि निमी के साथ इधर उपर आकर रहने लगा.
इतना कह कर मैं खामोश हो गया. कीर्ति जो अभी तक खामोशी से मेरी बात सुन रही थी. उसने मुझसे पूछा.
कीर्ति बोली "क्या तुम मौसा जी को माफ़ नही कर सकते."
मैं बोला "माफ़ तो उसे किया जाता है जो अपनी ग़लती माने. उसे क्या माफ़ करूँ जो अपनी ग़लती को मानने को ही तैयार नही है."
कीर्ति बोली "मौसी ने ये बात तो शायद मम्मी को भी नही बताई है."
मैं बोला "हाँ इस बात को मेरे और उनके सिवा कोई नही जानता. वो तो शायद इसे भूल भी गयी हो मगर पापा का उस लड़की से ये कहना आज भी मेरे कानो मे गूँजता है की यदि तू मेरी बेटी होती तो तेरे साथ मैं कब का ये सब कर चुका होता."
कीर्ति बोली "ये सब बोलने की बात है. कोई बाप अपनी बेटी के साथ ऐसा नही कर सकता."
मैं बोला "वो बाप नही हवस का भूका भेड़िया है. ना जाने इस बीच मे उस ने और कितनी लड़कियों के साथ ये सब किया होगा. लेकिन यदि उसने कभी मेरी अमि निमी पर अपनी बुरी नज़र डाली तो वो उसकी जिंदगी का आख़िरी दिन होगा. मैं उसे जिंदा नही छोड़ूँगा."
कीर्ति ने पापा के लिए मेरे अंदर इतनी नफ़रत और गुस्सा देखा तो वो बात को पलटने के लिए बोली.
कीर्ति बोली "चल इस बात को यही ख़तम कर और ये बता मेहुल को उसके पापा की बीमारी के बारे मे कब और कैसे बताएगा."
मैने अपने दिमाग़ को शांत किया और बोला.
मैं बोला "पहले अंकल का वहाँ से फोन तो आ जाए कि डॉक्टर. क्या बोल रहे है फिर उसके बाद ही मैं इस बारे मे कुछ सोचुगा."
थोड़ी देर हम लोगों मे अंकल की तबीयत के बारे मे ही बात चलती रही. फिर कीर्ति ने कहा कि उसे नींद आ रही है. वो कल की तरह मेरे सीने पर सर रख कर और मुझे अपनी बाँहों मे जाकड़ कर आँख बंद कर लेती है. लेकिन अपने अतीत को याद करने के बाद मेरी आँखों से नींद गायब हो चुकी थी. कुछ देर बाद कीर्ति मुझे जागता देखती है तो, फिर कल की तरह मेरे बालों मे हाथ फेर कर मुझे सुलाने लगती है. उसके ऐसा करने से मुझे राहत महसूस होती है और कुछ देर बाद मेरी नींद लग जाती है.
सुबह 7 बजे मेरी नींद खुलती है. मैं अपने कमरे मे अकेला था. नीचे से अमि निमी की आवाज़ आ रही थी. कीर्ति भी नीचे ही थी. शायद वो ही स्कूल जाने के लिए निमी को तैयार कर रही थी. मेरे घुटने मे आज दर्द कुछ कम था. मैने अपने घुटने को मोड़ा तो वो अब कुछ हद तक मूड रहा था. मैं उठ कर फ्रेश होने बाथरूम मे चला गया. कुछ देर बाद मैं फ्रेश होकर बाहर निकला और कपड़े पहनने लगा. तभी कीर्ति नाश्ता लेकर आ गयी. मैने नाश्ता किया और दवा खिलाने के बाद वो चली गयी. मैं अपने कमरे मे ही आराम करता रहा. फिर 9 बजे पापा के ऑफीस जाने के बाद मैं खुद से नीचे आकर बैठ गया और मेरी कीर्ति से बात चलती रही. इस बीच ऐसा कुछ भी खास नही हुआ जिसे बताया जा सके.
दोपहर को 1 बजे अमि निमी स्कूल से आ गयी और हम सबने खाना खाया. सबकी बातें होती रही. तभी 2 बजे कमल कीर्ति का बेग और कपड़े लेकर आ गया. वो शाम तक रुका और फिर घर चला गया. यू ही पूरा दिन गुजर गया और फिर रोज की तरह रत को कीर्ति मेरे पास ही सोई. दूसरे दिन वो छोटी माँ की स्कूटी लेकर स्कूल भी गयी. इन 2 दिनो मे मैं अपने घर से नही निकला. मुंबई जाने से पहले रिया मुझसे मिलने आई. फिर तीसरे दिन रिया वापस मुंबई चली गयी. मेरी अंकल से भी फोन पर बकायदा बात चलती रही.
यू ही करते करते 1 हफ़्ता बीत गया. अब मैं पूरी तरह से ठीक हो चुका था और कल के दिन कीर्ति को वापस जाना था. उसके जाने की बात से ना तो मुझे अच्छा लग रहा था और ना ही उसे अच्छा लग रहा था. रात को जब कीर्ति मेरे पास सोने आई तो वो उदास लग रही थी.
मुझसे उसकी उदासी देखी नही जा रही थी.
मैं बोला "देख अब मैं बिल्कुल ठीक हूँ. अब तो मैं कहीं भी आ जा सकता हूँ. फिर तू यू उदास क्यों है. क्या तुझे मेरे ठीक होने से खुशी नही हुई है."
कीर्ति बोली "कैसी पागल जैसी बात करता है. मुझे बहुत खुशी हुई तेरे अच्छे होने से. मैं तो उदास इसलिए हूँ क्योंकि कल मुझे वापस घर जाना है."
मैं बोला "घर जाने मे उदास होने की क्या बात है. तुझे तो खुशी खुशी घर जाना चाहिए."
कीर्ति बोली "मेरे जाने से तुझे खुशी हो रही है तो तू खुशी मना. लेकिन तुझसे दूर होना मुझे अच्छा नही लग रहा है."
मैं बोला "पागलपन की बातें तो तू कर रही है. घर जाने मे उदास होने की क्या बात है. मैं कौन सा तुझसे दूर हूँ. तेरा जब मुझसे मिलने का मन चाहे तू मुझे बुला लेना. मैं तेरे पास आ जाउन्गा और अब तो तेरे पास मोबाइल भी है. तू जाब चाहे मुझसे बात कर सकती है."
मेरी बातों से कीर्ति को कुछ राहत मिली और फिर हम दोनो सो गये. सुबह कीर्ति ने अपना समान पॅक किया और फिर मैं उसे घर तक छोड़ कर आया. मगर घर आने के बाद मुझे बहुत सूना सूना लग रहा था. यू लग रहा था कि जैसे घर की सारी रौनक कही खो गयी हो. रात को मुझसे खाना भी ढंग से नही खाया गया और मुझे नींद भी नही आ रही थी. कीर्ति के ना होने से मुझे अपने कमरे मे रहना तक अच्छा नही लग रहा था. मैं अपने कमरे से बाहर निकल आया. मैने अमि निमी के पास जाने की सोची मगर वो सो चुकी थी. आख़िर मे मैं लौट कर वापस अपने कमरे मे आ गया और टीवी चालू कर टीवी देखने मे मन लगाने की कोशिश करने लगा. लेकिन मेरा मन टीवी देखने मे भी नही लग रहा था. मैं नही जानता था कि कीर्ति के जाने के बाद मुझे उसकी इतनी ज़्यादा याद आएगी. मुझसे उसके बिना एक पल भी नही रहा जा रहा था. मैने टीवी बंद कर दी और आँख बंद करके लेट गया. मेरी कुछ समझ ही नही आ रहा था कि मैं क्या करू.
रात के 12 बज गये थे और अब मुझे कीर्ति पर गुस्सा भी आ रहा था, कि उसने मुझे एक कॉल करने की ज़रूरत भी नही समझी. मैं मन ही मन कीर्ति पर गुस्सा कर रहा था कि तभी कीर्ति का कॉल आ गया. उसका कॉल देखते ही मेरे चेहरे पर रौनक आ गयी. मैने उसका कॉल तुरंत उठाया.
मैं बोला "तू तो मुझे जाते ही भूल गयी. एक बार भी कॉल करने की ज़रूरत नही समझी."
कीर्ति बोली "अगर भूल गयी होती तो तुझे इतनी रात को खुद से कॉल नही लगाया होता. भूल तो तू मुझे गया है. तूने ज़रूरत नही समझी कि कम से कम मेरा हाल चाल पूछ ले."
मैं बोला "अमि निमी की कसम मैं तुझे बहुत मिस कर रहा हूँ. आज तेरे बिना मेरा कमरा भी मुझे काटने को दौड़ रहा है. सब कुछ उजड़ा उजड़ा सा लग रहा है और एक तू है जिसे अब मुझे कॉल करने का टाइम मिला है."
कीर्ति बोली "अच्छा तो मुझे भी नही लग रहा था इसलिए मैं शाम को ही सो गयी. अभी जैसे ही नींद खुली तो सबसे पहले तुझे कॉल किया है."
मैं बोला "तू शाम से सो रही है तो फिर तूने खाना कब खाया."
कीर्ति बोली "आज मुझे भूक ही नही है तो खाना कैसे खाती."
मैं बोला "देख यू खाली पेट रहना ग़लत बात है. पहले तू कुछ खा ले फिर हम लोग बात करते है."
कीर्ति बोली "खाना ही तो खा रही हूँ."
मैं बोला "क्या खा रही है."
कीर्ति बोली "तेरा भेजा जो खा रही हूँ."
मैं बोला "देख मज़ाक बंद कर और जल्दी से कुछ खा ले."
कीर्ति बोली "सच मे मुझे भूक नही है."
मैं बोला "मैं तेरी कोई बात नही सुनुगा. मैं कॉल काट रहा हूँ. पहले तू कुछ खा कर आ. उसके बाद मुझे कॉल करना. मैं तेरे कॉल का वेट कर रहा हू."
ये कह कर मैने कॉल काट दिया और कीर्ति के कॉल आने का वेट करने लगा. फिर कोई 10-15 मिनिट बाद कीर्ति का कॉल आया.
मैं बोला "कुछ खाया या नही."
कीर्ति बोली "हाँ खा लिया."
मैं बोला "झूठ तो नही बोल रही."
कीर्ति बोली "तेरी कसम. सच मे खाना खा कर आ रही हूँ."
मैं बोला "ठीक है. अब ये बता कैसा गुज़रा आज का दिन."
कीर्ति बोली "बहुत बुरा. सारे टाइम तेरी याद सताती रही. दिल कर रहा था कि तेरे पास वापस चली जाउ. मुझसे तेरे बिन नही रहा जा रहा है."
मैं बोला "यार मेरी भी हालत कुछ ऐसी ही है. तेरे बिना कुछ भी अच्छा नही ला रहा. अगर तेरा कॉल नही आया होता तो शायद मैं सच मे ही पागल हो जाता."
और फिर 1:30 बजे तक हम लोग ऐसे ही बात करते रहे. आख़िर मे मुझे ही कीर्ति से फोन रखने को बोलना पड़ा. उसने कल रात को फोन करने का बोलकर फोन रख दिया. कीर्ति से बात होने से मेरा मन कुछ हल्का हो गया था. मैं उसके बारे मे सोचते सोचते ही सो गया.
अगले दिन से मैं भी स्कूल जाने लगा. अंकल मुंबई से आ चुके थे. मेरी उनसे मुलाकात भी हुई थी. मैने उन्हे बताया कि अभी मैने मेहुल को कुछ भी नही बताया है. उनने बताया कि डॉक्टर. ने ऑपरेशन के लिए बोला है. कुछ दिन बाद उन्हे फिर मुंबई जाना है. उन्हो ने मेहुल को सब बात बताने को बोला तो मैने कल बात करने को बोला. रात को मैने कीर्ति को सब बात बताई. कीर्ति ने कहा कि वह भी मेरे साथ कल मेहुल से बात करेगी. मैं कल उस से मेहुल के साथ मिलूं. मैने उसकी बात मान ली और कल उस से मिलने को कहा.
मैने गुस्से से भरा हुआ था. मैने छोटी माँ से अपना हाथ छुड़ाया और वापस ऑफीस के अंदर जाने लगा. छोटी माँ ने मुझे आवाज़ लगाई मगर मैं उनकी बात को अनसुनी कर अंदर की ओर बढ़ता चला गया. छोटी माँ भी मेरे पीछे पीछे आ रही थी और मुझे अंदर जाने से रोकने की कोशिश कर रही थी. लेकिन जब मैं नही रुका तो उन्हो ने कहा.
छोटी माँ "पुन्नू रुक जा. तुझे अमि निमी की कसम है. तू एक कदम भी आगे नही बढ़ाएगा."
ये कह कर छोटी माँ ने मेरे बढ़ते हुए कदमो को तो रोक लिया, मगर मेरे अंदर भड़क रही गुस्से की आग को वो नही भुझा सकी.
मैं गुस्से चीखते हुए बोला "क्यों नही छोटी माँ.? वो सब जो अंदर हो रहा था, यदि वो सही है तो आप रोई क्यों.? और यदि सही नही है तो आज उस आदमी को इसका जबाब सबके सामने देना होगा कि, उसने ये क्यों किया.?"
छोटी माँ "देख तुझे जो कुछ भी बोलना है. उनके घर आने पर बोल लेना. यहाँ ऑफीस मे बात करके उनकी इज़्ज़त का तमाशा बनाने से वो सब कुछ वापस तो नही हो जाएगा."
मैं बोला "कौन सी इज़्ज़त छोटी माँ. किसी मजबूर लड़की की मजबूरी का फ़ायदा उठाने वाले की तो बीच चौराहे मे इज़्ज़त उच्छालना चाहिए. उसने आपके विस्वास को ठेस लगाया है. मैं उस शैतान को कभी माफ़ नही कर सकता."
छोटी माँ ने मुझे गले से लगा लिया और रोते हुए बोली "देख तुझे मेरा इतना ख़याल है तो मेरा और अपनी छोटी बहनों का ख़याल करके चुप चाप घर चल. जो भी बात करना है हम उनके घर आने पर कर लेंगे."
आख़िर मे मुझे छोटी माँ की बात मानकर घर आना पड़ा लेकिन अब मेरा मन मेरे बाप से ज़रा भी बात करने का नही था. मैं मन ही मन उसे गालियाँ बक रहा था और मेरे अंदर उसके लिए कोई सम्मान की भावना अब शेष नही बची थी. शाम को पापा घर आए तो मैं अपने कमरे मे था. घर का महॉल उन्हे बदला हुआ लगा मगर इसका कारण उन्हे नही मालूम था. जब उन से छोटी माँ ने दिन वाली बात बताई तो वो उल्टा छोटी माँ पर बरस पड़े.
पापा छोटी माँ से कह रहे थे "मैं एक मर्द हूँ और घर की चार दीवारी के बाहर मैं किस किस के साथ क्या करता हूँ इसका तुमसे कोई मतलब नही है. मैं घर मे किसी को लेकर आता हूँ तो तुम्हे परेशानी होना चाहिए.. तुम्हे अच्छा लगता है तो तुम इस घर मे रहो, और यदि अच्छा नही लगता तो तुम जहाँ चाहे जा सकती हो. मेरी तरफ से कोई रोक नही है. मगर आइन्दा से मेरे किसी मामले मे दखल देने की ज़रा भी कोशिश मत करना."
ये सब सुनकर तो मेरे होश ही उड़ गये और मेरा सारा गुस्सा अब डर मे बदल गया कि कही छोटी माँ सच मे ना चली जाए. छोटी माँ रोती रही मगर फिर कुछ नही बोली. उस दिन ना तो मैने खाना खाया और ना ही छोटी माँ ने खाना खाया. दूसरे दिन छोटी माँ को मैने अपना समान बाँधते देखा तो मैं रोने लगा. वो घर छोड़ कर जाने की तैयारी कर रही थी. लेकिन मेरा चेहरा देख कर उन्हो ने अपना घर छोड़ने का इरादा बदल दिया. शाम को पापा आए और उन्हो ने छोटी माँ को घर मे देखा तो उन्हे अपनी जीत महसूस हो रही थी क्योंकि अब उनके मामले मे टाँग अडाने वाला कोई नही था.
मैने उनके साथ उठना बैठना, बात करना, खाना खाना सब बंद कर दिया. कुछ दिन तो उनको इस बात का अहसास ही नही हुआ. मगर जब कुछ दिन बात उन्हे इस बात का ऐएहसास हुआ तो उन ने मुझसे इसकी वजह पूछी. तब मैने उन्हे उनकी उस जलील हरकत के बारे मे बताया. जिसे सुनकर उनके पैरों से ज़मीन ही खिसक गयी. लेकिन उन्हो ने मुझे भी वही जबाब दिया जो छोटी माँ को दिया था. तब मैने उन्हे कोई जबाब तो नही दिया, मगर उस दिन से मेरा उनके साथ सिर्फ़ नाम का ही रिश्ता रह गया. हम बाप बेटे एक घर मे भी रहकर अजनबी की तरह रहने लगे और फिर कुछ समय बाद मैं अमि निमी के साथ इधर उपर आकर रहने लगा.
इतना कह कर मैं खामोश हो गया. कीर्ति जो अभी तक खामोशी से मेरी बात सुन रही थी. उसने मुझसे पूछा.
कीर्ति बोली "क्या तुम मौसा जी को माफ़ नही कर सकते."
मैं बोला "माफ़ तो उसे किया जाता है जो अपनी ग़लती माने. उसे क्या माफ़ करूँ जो अपनी ग़लती को मानने को ही तैयार नही है."
कीर्ति बोली "मौसी ने ये बात तो शायद मम्मी को भी नही बताई है."
मैं बोला "हाँ इस बात को मेरे और उनके सिवा कोई नही जानता. वो तो शायद इसे भूल भी गयी हो मगर पापा का उस लड़की से ये कहना आज भी मेरे कानो मे गूँजता है की यदि तू मेरी बेटी होती तो तेरे साथ मैं कब का ये सब कर चुका होता."
कीर्ति बोली "ये सब बोलने की बात है. कोई बाप अपनी बेटी के साथ ऐसा नही कर सकता."
मैं बोला "वो बाप नही हवस का भूका भेड़िया है. ना जाने इस बीच मे उस ने और कितनी लड़कियों के साथ ये सब किया होगा. लेकिन यदि उसने कभी मेरी अमि निमी पर अपनी बुरी नज़र डाली तो वो उसकी जिंदगी का आख़िरी दिन होगा. मैं उसे जिंदा नही छोड़ूँगा."
कीर्ति ने पापा के लिए मेरे अंदर इतनी नफ़रत और गुस्सा देखा तो वो बात को पलटने के लिए बोली.
कीर्ति बोली "चल इस बात को यही ख़तम कर और ये बता मेहुल को उसके पापा की बीमारी के बारे मे कब और कैसे बताएगा."
मैने अपने दिमाग़ को शांत किया और बोला.
मैं बोला "पहले अंकल का वहाँ से फोन तो आ जाए कि डॉक्टर. क्या बोल रहे है फिर उसके बाद ही मैं इस बारे मे कुछ सोचुगा."
थोड़ी देर हम लोगों मे अंकल की तबीयत के बारे मे ही बात चलती रही. फिर कीर्ति ने कहा कि उसे नींद आ रही है. वो कल की तरह मेरे सीने पर सर रख कर और मुझे अपनी बाँहों मे जाकड़ कर आँख बंद कर लेती है. लेकिन अपने अतीत को याद करने के बाद मेरी आँखों से नींद गायब हो चुकी थी. कुछ देर बाद कीर्ति मुझे जागता देखती है तो, फिर कल की तरह मेरे बालों मे हाथ फेर कर मुझे सुलाने लगती है. उसके ऐसा करने से मुझे राहत महसूस होती है और कुछ देर बाद मेरी नींद लग जाती है.
सुबह 7 बजे मेरी नींद खुलती है. मैं अपने कमरे मे अकेला था. नीचे से अमि निमी की आवाज़ आ रही थी. कीर्ति भी नीचे ही थी. शायद वो ही स्कूल जाने के लिए निमी को तैयार कर रही थी. मेरे घुटने मे आज दर्द कुछ कम था. मैने अपने घुटने को मोड़ा तो वो अब कुछ हद तक मूड रहा था. मैं उठ कर फ्रेश होने बाथरूम मे चला गया. कुछ देर बाद मैं फ्रेश होकर बाहर निकला और कपड़े पहनने लगा. तभी कीर्ति नाश्ता लेकर आ गयी. मैने नाश्ता किया और दवा खिलाने के बाद वो चली गयी. मैं अपने कमरे मे ही आराम करता रहा. फिर 9 बजे पापा के ऑफीस जाने के बाद मैं खुद से नीचे आकर बैठ गया और मेरी कीर्ति से बात चलती रही. इस बीच ऐसा कुछ भी खास नही हुआ जिसे बताया जा सके.
दोपहर को 1 बजे अमि निमी स्कूल से आ गयी और हम सबने खाना खाया. सबकी बातें होती रही. तभी 2 बजे कमल कीर्ति का बेग और कपड़े लेकर आ गया. वो शाम तक रुका और फिर घर चला गया. यू ही पूरा दिन गुजर गया और फिर रोज की तरह रत को कीर्ति मेरे पास ही सोई. दूसरे दिन वो छोटी माँ की स्कूटी लेकर स्कूल भी गयी. इन 2 दिनो मे मैं अपने घर से नही निकला. मुंबई जाने से पहले रिया मुझसे मिलने आई. फिर तीसरे दिन रिया वापस मुंबई चली गयी. मेरी अंकल से भी फोन पर बकायदा बात चलती रही.
यू ही करते करते 1 हफ़्ता बीत गया. अब मैं पूरी तरह से ठीक हो चुका था और कल के दिन कीर्ति को वापस जाना था. उसके जाने की बात से ना तो मुझे अच्छा लग रहा था और ना ही उसे अच्छा लग रहा था. रात को जब कीर्ति मेरे पास सोने आई तो वो उदास लग रही थी.
मुझसे उसकी उदासी देखी नही जा रही थी.
मैं बोला "देख अब मैं बिल्कुल ठीक हूँ. अब तो मैं कहीं भी आ जा सकता हूँ. फिर तू यू उदास क्यों है. क्या तुझे मेरे ठीक होने से खुशी नही हुई है."
कीर्ति बोली "कैसी पागल जैसी बात करता है. मुझे बहुत खुशी हुई तेरे अच्छे होने से. मैं तो उदास इसलिए हूँ क्योंकि कल मुझे वापस घर जाना है."
मैं बोला "घर जाने मे उदास होने की क्या बात है. तुझे तो खुशी खुशी घर जाना चाहिए."
कीर्ति बोली "मेरे जाने से तुझे खुशी हो रही है तो तू खुशी मना. लेकिन तुझसे दूर होना मुझे अच्छा नही लग रहा है."
मैं बोला "पागलपन की बातें तो तू कर रही है. घर जाने मे उदास होने की क्या बात है. मैं कौन सा तुझसे दूर हूँ. तेरा जब मुझसे मिलने का मन चाहे तू मुझे बुला लेना. मैं तेरे पास आ जाउन्गा और अब तो तेरे पास मोबाइल भी है. तू जाब चाहे मुझसे बात कर सकती है."
मेरी बातों से कीर्ति को कुछ राहत मिली और फिर हम दोनो सो गये. सुबह कीर्ति ने अपना समान पॅक किया और फिर मैं उसे घर तक छोड़ कर आया. मगर घर आने के बाद मुझे बहुत सूना सूना लग रहा था. यू लग रहा था कि जैसे घर की सारी रौनक कही खो गयी हो. रात को मुझसे खाना भी ढंग से नही खाया गया और मुझे नींद भी नही आ रही थी. कीर्ति के ना होने से मुझे अपने कमरे मे रहना तक अच्छा नही लग रहा था. मैं अपने कमरे से बाहर निकल आया. मैने अमि निमी के पास जाने की सोची मगर वो सो चुकी थी. आख़िर मे मैं लौट कर वापस अपने कमरे मे आ गया और टीवी चालू कर टीवी देखने मे मन लगाने की कोशिश करने लगा. लेकिन मेरा मन टीवी देखने मे भी नही लग रहा था. मैं नही जानता था कि कीर्ति के जाने के बाद मुझे उसकी इतनी ज़्यादा याद आएगी. मुझसे उसके बिना एक पल भी नही रहा जा रहा था. मैने टीवी बंद कर दी और आँख बंद करके लेट गया. मेरी कुछ समझ ही नही आ रहा था कि मैं क्या करू.
रात के 12 बज गये थे और अब मुझे कीर्ति पर गुस्सा भी आ रहा था, कि उसने मुझे एक कॉल करने की ज़रूरत भी नही समझी. मैं मन ही मन कीर्ति पर गुस्सा कर रहा था कि तभी कीर्ति का कॉल आ गया. उसका कॉल देखते ही मेरे चेहरे पर रौनक आ गयी. मैने उसका कॉल तुरंत उठाया.
मैं बोला "तू तो मुझे जाते ही भूल गयी. एक बार भी कॉल करने की ज़रूरत नही समझी."
कीर्ति बोली "अगर भूल गयी होती तो तुझे इतनी रात को खुद से कॉल नही लगाया होता. भूल तो तू मुझे गया है. तूने ज़रूरत नही समझी कि कम से कम मेरा हाल चाल पूछ ले."
मैं बोला "अमि निमी की कसम मैं तुझे बहुत मिस कर रहा हूँ. आज तेरे बिना मेरा कमरा भी मुझे काटने को दौड़ रहा है. सब कुछ उजड़ा उजड़ा सा लग रहा है और एक तू है जिसे अब मुझे कॉल करने का टाइम मिला है."
कीर्ति बोली "अच्छा तो मुझे भी नही लग रहा था इसलिए मैं शाम को ही सो गयी. अभी जैसे ही नींद खुली तो सबसे पहले तुझे कॉल किया है."
मैं बोला "तू शाम से सो रही है तो फिर तूने खाना कब खाया."
कीर्ति बोली "आज मुझे भूक ही नही है तो खाना कैसे खाती."
मैं बोला "देख यू खाली पेट रहना ग़लत बात है. पहले तू कुछ खा ले फिर हम लोग बात करते है."
कीर्ति बोली "खाना ही तो खा रही हूँ."
मैं बोला "क्या खा रही है."
कीर्ति बोली "तेरा भेजा जो खा रही हूँ."
मैं बोला "देख मज़ाक बंद कर और जल्दी से कुछ खा ले."
कीर्ति बोली "सच मे मुझे भूक नही है."
मैं बोला "मैं तेरी कोई बात नही सुनुगा. मैं कॉल काट रहा हूँ. पहले तू कुछ खा कर आ. उसके बाद मुझे कॉल करना. मैं तेरे कॉल का वेट कर रहा हू."
ये कह कर मैने कॉल काट दिया और कीर्ति के कॉल आने का वेट करने लगा. फिर कोई 10-15 मिनिट बाद कीर्ति का कॉल आया.
मैं बोला "कुछ खाया या नही."
कीर्ति बोली "हाँ खा लिया."
मैं बोला "झूठ तो नही बोल रही."
कीर्ति बोली "तेरी कसम. सच मे खाना खा कर आ रही हूँ."
मैं बोला "ठीक है. अब ये बता कैसा गुज़रा आज का दिन."
कीर्ति बोली "बहुत बुरा. सारे टाइम तेरी याद सताती रही. दिल कर रहा था कि तेरे पास वापस चली जाउ. मुझसे तेरे बिन नही रहा जा रहा है."
मैं बोला "यार मेरी भी हालत कुछ ऐसी ही है. तेरे बिना कुछ भी अच्छा नही ला रहा. अगर तेरा कॉल नही आया होता तो शायद मैं सच मे ही पागल हो जाता."
और फिर 1:30 बजे तक हम लोग ऐसे ही बात करते रहे. आख़िर मे मुझे ही कीर्ति से फोन रखने को बोलना पड़ा. उसने कल रात को फोन करने का बोलकर फोन रख दिया. कीर्ति से बात होने से मेरा मन कुछ हल्का हो गया था. मैं उसके बारे मे सोचते सोचते ही सो गया.
अगले दिन से मैं भी स्कूल जाने लगा. अंकल मुंबई से आ चुके थे. मेरी उनसे मुलाकात भी हुई थी. मैने उन्हे बताया कि अभी मैने मेहुल को कुछ भी नही बताया है. उनने बताया कि डॉक्टर. ने ऑपरेशन के लिए बोला है. कुछ दिन बाद उन्हे फिर मुंबई जाना है. उन्हो ने मेहुल को सब बात बताने को बोला तो मैने कल बात करने को बोला. रात को मैने कीर्ति को सब बात बताई. कीर्ति ने कहा कि वह भी मेरे साथ कल मेहुल से बात करेगी. मैं कल उस से मेहुल के साथ मिलूं. मैने उसकी बात मान ली और कल उस से मिलने को कहा.