desiaks
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पद्मिननी को छुने का मेरा दिल तो बहुत कर रहा था. लेकिन उसके दर्द को देखते हुए, उसको छुने की मेरी हिम्मत नही हो रही थी. अपने दिमाग़ को पद्मि.नी से हटाने के लिए, मैने करवट बदली और दूसरी तरफ मूह करके लेट गया.
मैने अपनी आँखे बंद की और सोने की कोसिस करने लगा. मगर मेरी आँखों मे अभी भी नींद नही थी. मैने आँख बंद किए किए ही वापस पद्मि़नी की तरफ करवट ले ली. काफ़ी देर तक बस मैं करवट ही बदलता रहा.
मैं पद्मिदनी की तरफ करवट लिए लेता था. तभी मुझे अपनी पीठ पर पद्मिअनी के हाथ रखने का अहसास हुआ. मैने फ़ौरन अपनी आँख खोली और वापस पद्मिअनी की तरफ करवट ली. पद्मिहनी जाग रही थी और मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी. मैं भी उसे देख कर मुस्कुरा दिया. उसने मुझसे पुछा.
पद्मिहनी बोली “क्या हुआ पिताजी. आप बार बार करवट क्यो बदल रहे है.”
मैं बोला “कुछ नही, बस मुझे नींद नही आ रही.”
पद्मिोनी बोली “आज तो मैने आपको वो दवा भी नही दी है. फिर आपको ये बेचैनी क्यो हो रही है.”
मैं बोला “पता नही.”
पद्मिोनी बोली “मुझे पता है. आज आपको कुछ करने को नही मिल रहा है. इसलिए आपको ये बेचैनी हो रही है.”
मैं बोला “नही, ऐसी कोई बात नही है.”
पद्मिोनी बोली “चलिए मैं आपकी सोने मे कुछ मदद कर देती हूँ.”
ये कह कर उसने अपना हाथ मेरे लिंग पर रख दिया. जो पद्मिदनी के पास सोने की वजह से पहले ही तना हुआ था. उसने लिंग पर हाथ रख कर उसे, पायजामे के उपर से ही दबाना सुरू कर दिया. उसके हाथों के अहसास से ही, मेरे तन बदन मे आग लग गयी.
मैने भी खिसक कर पद्मिेनी के पास आ गया और अपना हाथ उसके बूब्स पर रख दिया और उन्हे धीरे धीरे मसल्ने लगा. फिर पद्मि नी ने मेरा पायजामा खोल कर नीचे किया और मेरी अंडर वेअर को भी नीचे सरका कर मेरे लिंग को अपने हाथ मे थाम कर उसे उपर नीचे करने लगी.
कुछ ही देर मे मेरे लिंग ने विकराल रूप ले लिया. अब मुझसे सहन नही हो रहा था. मैने भी पद्मिीनी की नाइटी को पकड़ कर उसके गले तक खिसका दिया और उसके बूब्स पर अपने होंठ रख कर उन्हे चूसने लगा. पद्मिउनी ने एक हाथ से मेरे सर को अपने बूब्स पर दबा लिया और दूसरे हाथ से मेरे किंग को मसल्ति रही.
अब पद्मिेनी भी बहुत गरम हो चुकी थी. मैने उस से लिंग को मूह मे लेने को कहा तो, उसने मना कर दिया. लेकिन बाद मे उसने मुझे अपने से अलग किया और पलट कर लेट गयी. अब उसका मूह मेरे लिंग के सामने था. वो मेरे लिंग को देखने हुए उसे उपर नीचे कर रही थी.
मैने उसकी पैंटी को नीचे खिसका दिया और अपने होंठ उसकी पुसी पर रख दिए. मैं उसकी पुसी को चूसने चाटने लगा. कुछ ही देर मे पद्मिीनी अपनी पुसी को मेरे मूह पर दबाने लगी और मेरे लिंग को ज़ोर ज़ोर से मसल्ने लगी. मैने अपनी जीभ उसकी पुसी के अंदर डाल दी और उसे अंदर बाहर करने लगा.
कुछ ही देर मे पद्मिेनी को भी जोश आ गया और उसने मेरे लिंग पर अपने होंठ रख दिए. उसके होंठ का गरम गरम अससास होते ही मैं लिंग को उसके होंठों पर दबाने लगा. पद्मि नी ने अपने होंठ खोले और लिंग को अंदर लेने की कोसिस करने लगी.
कुछ ही पल मे मेरे लिंग का टॉप पद्मिरनी के मूह मे था. मैं जोश मे आकर तेज़ी से उसकी पुसी मे जीभ को अंदर बाहर करने लगा. पद्मिरनी ने भी जितना हो सका मेरे लिंग को अपने मूह के अंदर कर लिया और उसे अंदर बाहर करने लगी.
मैने पद्मि नी को अपने उपर कर लिया और उसकी पुसी के अंदर जीभ को घुमाने लगा. पद्मि नी भी जोश से भरी हुई थी. वो मेरे लिंग पर अपने मूह को उपर नीचे कर रही थी. कुछ ही देर मे पद्मिशनी की पुसी ने पानी छोड़ दिया और वो शांत पड़ गयी.
मैने अपनी जीभ को उसकी पुसी से बाहर निकाला और उसमे उंगली डाल कर अंदर बाहर करने लगा. कुछ देर ऐसा करने के बाद पद्मि नी फिर से गरम हो गयी और फिर से मेरे लिंग पर मेहनत करने लगी. अब मैं धीरे धीरे उसकी पुसी मे अपनी उंगली को घुमा रहा था.
पद्मिलनी तेज़ी से मेरे लिंग को अपने मूह के अंदर बाहर करने मे लगी हुई थी. मेरे लिंग की अकड़ बढ़ गयी थी और अब वो भी पानी छोड़ने के करीब पहुच गया था. ये देखते ही मैने अपनी जीभ पद्मियनी की पुसी मे डाल दी और उसे अंदर बाहर करने लगा.
हम दोनो ही तेज़ी से एक दूसरे का पानी निकालने मे लगे हुए थे. कुछ ही देर बाद पद्मिीनी की मेहनत रंग लाई और मेरे लिंग ने उसके मूह मे ही पिचकारी मारना सुरू कर दी. पद्मि्नी ने तेज़ी से उसे बाहर निकाला और हाथ से उसे उपर नीचे करने लगी.
वो लिंग को तब तक उपर नीचे करती रही. जब तक की लिंग ने आख़िरी बूँद तक नही छोड़ दी. मैं कुछ देर रुका और फिर से पद्मितनी की पुसी पर अपनी जीभ फेरने लगा. अब मेरी तेज़ी बहुत ज़्यादा थी. मेरी जीभ पद्मिीनी की पुसी मे अंदर बाहर हो रही थी और पद्मितनी सिसकारी लेती हुई, मुझे पुसी पर दबा रही थी.
मैं उसके कुल्हों को मसल कर उसकी पुसी के अंदर बाहर जीभ को कर रहा था. फिर अचानक पद्मिसनी का सरीर तेज़ी से हिलने लगा और उसकी पुसी ने पानी छोड़ना सुरू कर दिया. वो एक बार फिर से शांत पड़ गयी.
कुछ देर वो ऐसे ही लेटी रही. फिर मेरे बराबर मे आकर लेट गयी और कहने लगी.
पद्मिेनी बोली “पिताजी, मज़ा आया.”
उसकी बात सुनकर मुझे हँसी आ गयी और मैने कहा.
मैं बोला “हाँ बहुत मज़ा आया.”
ये कह कर मैने उसे अपने पास खिचा और उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए. उसके होंठों को चूमने के बाद हम लोग एक दूसरे की बाहों मे बाहें डाले ही सो गये.
सुबह मेरी नींद पद्मिएनी के जगाने पर खुली. उसने मुझे जगा कर कहा.
पद्मिमनी बोली “पिताजी, जल्दी से उठ कर फ्रेश हो जाइए. मान जी लोग किसी भी समय आते ही होगे.”
मैं उठ कर फ्रेश होने चला गया. मैं फ्रेश होकर लौटा तो पद्मि्नी चाय लेकर आ चुकी थी. मैने उस से चाय ली और उस से पुछा.
मैं बोला “बहू, अब तुम्हारा दर्द कैसा है.”
पद्मिोनी बोली “पिताजी, दर्द अभी भी हो रहा है और मुझे चलने मे भी तकलीफ़ हो रही है.”
मैं बोला “कोई बात नही, तुम कल वाली दवा फिर से खा लेना. शाम तक तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगी.”
इसके बाद मेरी पद्मि नी से इसी बारे मे बात चीत चलती रही. तभी डॉरबेल बजी और पद्मिबनी दरवाजा खोलने चली गयी. उसके दरवाजा खोलने के बाद बाहर से अलीशा की आवाज़ आने लगी. मैं समझ गया कि, वो लोग आ चुके है. फिर भी मैं अपने कमरे मे ही रहा.
काफ़ी देर बाद अलीशा कमरे मे आई. उसने आते ही हंसते हुए मुझसे पूछा.
अलीशा बोली “काम सब ठीक ठाक हो गया ना.”
मैं बोला “हाँ काम तो सब ठीक ठाक हो गया है. लेकिन एक गड़बड़ हो गयी है.”
अलीशा बोली “क्या हुआ.”
मैने उसे कल की सारी सच्चाई बता दी. इस पर अलीशा हंसते हुए कहने लगी.
अलीशा बोली “इसमे गड़बड़ की क्या बात है. पहली पहली बार हर लड़की के साथ ऐसा ही होता है. आप चिंता ना करे, मैं सब संभाल लुगी.”
इसके बाद अलीशा उठ कर पद्मिानी के पास चली गयी. उसने पद्मिकनी को भी समझा दिया कि, घबराने की कोई बात नही है. ऐसा सभी लड़कियों के साथ होता है. उसकी बात से पद्मिीनी को कुछ राहत महसूस हुई.
उसके बाद समय यूँ ही बीतने लगा. बीच बीच मे मुझे और पद्मि नी को जब भी मौका मिलता, हम खुल कर सेक्स करते. ये सब चलते हुए एक साल हुआ और फिर राज का जनम हो गया. हमारे घर मे खुशियाँ मनाई जाने लगी.
मैने और पद्मिानी ने तय कर लिया कि अब हम सेक्स संबंध नही बनाएगे. लेकिन कुछ समय बाद, आकाश एक लड़की की चाहत जाहिर करने लगा. उसी समय अलीशा की भी तबीयत खराब रहने लगी थी. जब उसका इलाज कराया गया तो, उसको कॅन्सर निकला. जो कि आख़िरी स्टेज पर था.
अलीशा तो मेरी हर बात जानती ही थी. उसने भी अपनी आख़िरी इच्छा यही रखी कि, मैं जल्द से जल्द पद्मिेनी की झोली एक लड़की से भर दूं. आकाश और अलीशा की बात मानने के लिए मैने एक बार फिर पद्मिमनी से सेक्स संबंध बनाना सुरू कर दिए.
इधर दिन ब दिन अलीशा की हालत गिरती जा रही थी और उधर पद्मिरनी के भी दिन पूरे होने वाले थे. आख़िर भगवान ने अलीशा की सुन ली और पद्मिकनी ने रिया को जनम दे दिया. रिया के जनम के कुछ दिन बाद ही अलीशा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
इन थोड़े से दिनो मे ही मैं अलीशा को बहुत प्यार करने लगा था. इसलिए उसकी मौत के बाद मैं टूट सा गया था. तब मुझे अलीशा के गम से पद्मिानी ने बाहर निकाला और हम दोनो के बीच एक बार फिर से नज़दीकियाँ बन गयी. जिसके कारण कुछ ही समय बाद प्रिया का जनम हुआ.
प्रिया के जनम के बाद मैं अपने आपको संभाल चुका था. इसलिए फिर मैने और पद्मिकनी ने कभी सेक्स संबंध बनाने की कोई कोशिश नही की और हम लोग अपने बच्चों के बीच खुश रहने लगे.
पद्मि नी को शादी के बाद का जो सुख आकाश से मिलना चाहिए था. उसे वो उस से कभी ना मिल सका. फिर भी वो इस सब दर्द को पी गयी और कभी आकाश पर ये बात जाहिर नही होने दी. मगर एक बार फिर पद्मिभनी का अतीत उसकी बीमारी बनकर उसके सामने खड़ा है.
अब मेरी उमर तो इतनी रही नही कि, मैं पद्मिबनी की इस कमी को पूरा कर सकूँ. इसलिए मैने ये बात तुमसे कही है. तुम्हारा गरम खून है और अभी तुमको भी सेक्स करने की बहुत इच्छा होती होगी. ऐसे मे यदि तुम ये सब करते हो तो, इसमे तुम्हारी इच्छा की पूर्ति भी हो जाएगी और इसी बहाने पद्मिहनी का इलाज भी हो जाएगा.
अब आगे की कहानी पुन्नू की ज़ुबानी...
दादा जी कहानी सुनने के बाद मैं कीर्ति की तरफ देखने लगा. उसके चेहरे पर कयि रंग आ जा रहे थे. मगर मैं इस सब का मतलब नही समझ पा रहा था कि, उसके मन मे इस समय क्या चल रहा है. उसको इस तरह खामोश देख कर मुझे डर भी लग रहा था कि, वो फिर से कहीं नाराज़ ना हो जाए.
मगर इस सब के बाद भी, मेरी उस से कुछ कहने की हिम्मत नही हो रही थी. मैं बस खामोशी से उसकी तरफ देख रहा था. कुछ देर तक ये खामोशी यू ही बनी रही. फिर कीर्ति ने खुद ही इस खामोशी को तोड़ते हुए कहा.
कीर्ति बोली “हमे यहाँ आए हुए बहुत देर हो गयी है. अब हमे घर वापस चलना चाहिए.”
कीर्ति की ये बात सुनकर मुझे तो ऐसा लगा, जैसे किसी ने बड़ा सा पत्थर मेरे उपर रख दिया हो और मैं उसके वजन से दब गया हूँ. उस समय मुझे कीर्ति पर गुस्सा तो नही आ रहा था, मगर अपने उपर रोना ज़रूर आ रहा था कि, मैं जिस लड़की से कुछ नही छुपा रहा हू. वो ही मेरी एक ज़रा सी बात को समझने को तैयार नही है.
आख़िर मैने ऐसा किया ही क्या है. मैने तो सिर्फ़ वो ही सब बातें बताई थी. जो मेरे साथ हुई थी. इसमे मेरी ग़लती ही क्या थी. क्या मेरी यही ग़लती थी कि, मैं कीर्ति से कुछ भी छुपाना नही चाहता था. क्या मेरी यही ग़लती थी कि, मैं अपने से जुड़ी हर बात उसे बताए जा रहा था.
यही सब बातें सोचते सोचते मेरा चेहरा रुआंसा सा हो गया. मेरे दिल पर एक अजीब सा बोझ, मुझे महसूस होने लगा. इसलिए मैने ना तो कीर्ति की बात का कोई जबाब दिया और ना ही उसकी तरफ देखा. मैं सर झुका कर खामोश बैठ गया.
कीर्ति ने जब मुझे इस तरह से बैठे देखा तो, वो मेरे पास आकर खड़ी हो गयी और फिर मुझसे कहने लगी.
कीर्ति बोली “तुमने सुना नही, मैं क्या कह रही हूँ.”
लेकिन मैने कुछ ना कहा. मैं खामोश बैठा रहा. तब उसने फिर से कहा.
कीर्ति बोली “मैं कह रही हूँ कि, अब हमे घर चलना चाहिए. हमे यहाँ आए बहुत देर हो गयी है. फिर तुम्हे वापस भी तो जाना है.”
मगर मैने अभी भी कोई जबाब नही दिया. मैं यू ही सर झुकाए बैठा रहा और मन ही मन कीर्ति से हज़ारों सवाल करता रहा. लेकिन जब कीर्ति ने देखा कि, मैं ना तो उसकी बात का कोई जबाब दे रहा हूँ और ना ही उसकी तरफ देख रहा हूँ. तब वो मेरे बिल्कुल पास आकर खड़ी हो गयी और मेरे बालों मे उंगलियाँ चलाते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली “तुम्हे क्या हो गया है. तुम ऐसे क्यो बैठे हो. मेरी किसी बात का जबाब क्यो नही दे रहे.”
मैं कहना तो बहुत कुछ चाह रहा था. मगर कीर्ति के इस बर्ताव से, मेरे दिल को ऐसी ठेस लगी थी कि, मैं चाह कर भी कुछ नही बोल पा रहा था. यदि कीर्ति ने ये बात सुनकर मुझे भला बुरा बोल लिया होता तो, मुझे इतना बुरा नही लगता. लेकिन मेरी बात सुनने के बाद उसका सीधे घर वापस चलने को कहना, ना जाने क्यो मेरे दिल को दुख पहुचा रहा था.
मैं सिर्फ़ खामोश बैठा रहा और अब मेरी खामोशी कीर्ति को परेशान करने लगी थी. जब मैं उसके बार बार पुच्छने पर भी कुछ नही बोला. तब कीर्ति ने मेरे सर को खीच कर अपने सीने से लगा लिया. शायद उसे मेरे दर्द का अहसास हो गया था. मगर वो उसकी वजह नही समझ पाई थी. इसलिए वो मुझे अपने सीने से चिपका कर पुछ्ने लगी.
कीर्ति बोली “जान, तुम्हे मेरी कसम है. बोलो तुम्हे क्या हुआ है. तुम इस तरह चुप क्यो हो.”
कीर्ति की कसम ने मुझे बोलने पर मजबूर कर दिया और मेरे सब्र का बाँध टूट गया. मैने उस से कहा.
मैं बोला “मुझे क्या हुआ है. हुआ तो तुझे है. जो मेरी ज़रा सी बात को सुनकर मेरे साथ ऐसा बर्ताव कर रही है, जैसे मैने कोई बड़ा भारी गुनाह कर दिया हो. आख़िर मैने किया क्या है. मैने तो सिर्फ़ तुझे वो बात बताई है. जो मेरे साथ वहाँ पर हुई थी. इस सब मे मेरी ग़लती कहाँ है. बताओ मुझे.”
ये बात सुनते ही कीर्ति को समझ मे आ गया कि, मुझे क्या हुआ है. वो मेरे बालों मे हाथ फेरते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली “ओ हो, मेरी जान, मुझसे नाराज़ है. लेकिन मैने तो अपनी जान की बात सुनकर उसको कुछ भी नही कहा. ना ही उस पर कोई गुस्सा किया. फिर मेरी जान मुझसे क्यो नाराज़ है.”
मैं बोला “ज़्यादा मत बन. तूने कुछ ना कह कर भी बहुत कुछ कह दिया.”
कीर्ति बोली “कसम से जान, मुझे नही पता कि, तुम्हे मेरी कौन सी बात बुरी लगी है. प्लीज़ बोलो, तुम्हे मेरी कौन सी बात बुरी लगी है.”
मैं बोला “जब बोलने वाले को ही अपनी बात का पता नही है तो, फिर मैं क्यो बोलू.”
कीर्ति बोली “जान तुम्हे मेरी कसम, प्लीज़ बताओ, तुम्हे मेरी कौन सी बात बुरी लगी है.”
एक बार फिर मुझे कीर्ति की कसम के आगे झुकना पड़ा. मैने कहा.
मैं बोला “तूने मेरी बात सुनने के बाद ये क्यो कहा कि, अब हमे घर चलना चाहिए.”
कीर्ति बोली “बस इतनी सी बात है. अरे वो तो मैने इस लिए कहा था, क्योकि अभी हमे जाकर अंकिता से भी तो मिलना है.”
मैं बोला “ज़्यादा झूठ मत बोल. मैं जानता हूँ कि, तूने ये बात गुस्से मे कही थी. मगर मेरे उपर तेरा गुस्सा फ़िजूल है. मैने जब कुछ ऐसा वैसा किया ही नही है. तब तेरा मेरे उपर गुस्सा करने का क्या मतलब है.”
कीर्ति बोली “जान, जैसा तुम सोच रहे हो, ऐसा कुछ भी नही है. मेरा यकीन करो. मैं तुम पर ज़रा भी गुस्सा नही थी. बस तुम्हारी बात सुनकर मैं ज़रा परेशान हो गयी थी और मेरा मूड खराब हो गया था. इसलिए मैने तुमसे घर वापस चलने को कहा था.”
मैं बोला “क्यो, ऐसा क्या हुआ, जो मेरी बात सुनकर तू परेशान हो गयी और तेरा मूड खराब हो गया.”
कीर्ति बोली “जान, अब उस बात को छोड़ो भी. अब मेरा मूड अच्छा है. हम कोई और बात करते है.”
मैं बोला “नही, मुझे जानना है कि, किस बात ने तुझे परेशान किया है. तू नही जानती कि तेरे अचानक बिना कुछ कहे घर वापस चलने की बात से मुझे कितनी तकलीफ़ पहुचि है.”
मेरी बात सुनकर कीर्ति ने अपने दोनो हाथ अपने कान पर रख लिए और कान पकड़ कर कहने लगी.
कीर्ति बोली “सॉरी जान, मुझसे ग़लती हुई. अब मैं दोबारा कभी ऐसा नही करूगी. अब तो तुम अपना गुस्सा ख़तम करो.”
मैं बोला “नही, मैं तुझ पर ज़रा भी गुस्सा नही हूँ. लेकिन मुझे ये जानना है कि, तूने ऐसा क्यो किया.”
कीर्ति बोली “जान प्लीज़, इस बात को ख़तम करो ना. मैं कान पकड़ कर तुमसे सॉरी कहती हूँ. दोबारा कभी ऐसी ग़लती नही करूगी.”
जब कीर्ति मुझे बात बताने को तैयार नही हुई तो, मेरा मूड खराब हो गया. मैने उस से गुस्से मे कहा.
मैं बोला “ठीक है, तू मुझे नही बताना चाहती तो, मत बता. चल हम घर वापस चलते है.”
ये कह कर मैं उठ कर खड़ा हो गया और जाने के लिए आगे बढ़ा ही था की, कीर्ति ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा.
कीर्ति बोली “अच्छा जी. अब ये मुझ पर गुस्सा नही तो, क्या दिखाया जा रहा है.”
उसके मूह से अच्छा जी सुनते ही मेरे दिल मे फिर से गुदगुदी होने लगी. लेकिन मैने अपनी मुस्कुराहट को छुपा कर, झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.
मैं बोला “मैं कोई गुस्सा नही हूँ. लेकिन जब तुम्हे अपनी कोई बात मुझे बतानी ही नही है तो, फिर हम रुक कर यहा क्या करेगे. मैं ही पागल हूँ, जो अपनी हर छोटी बड़ी बात तुम्हे बता देता हूँ.”
मेरी बात सुनकर कीर्ति को लगा कि, मैं सच मे उस से गुस्सा हो गया हूँ. इसलिए वो मुझे मानते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली “ओके बाबा, अब तुम अपना गुस्सा थूक दो. तुम पागल नही हो. मैं ही पागल हूँ, जो तुम्हे अपनी बात नही बता रही थी. चलो मैं तुम्हे अपनी बात बता देती हूँ. लेकिन पहले तुम अपना मूड ठीक करो और यहाँ बैठो.”
मैं बोला “मेरा मूड ठीक हो जाएगा. पहले तुम अपनी बात बोलो.”
ये कह कर मैं वापस अपनी जगह पर जाकर बैठ गया. मेरे बैठते ही कीर्ति भी मेरे पास आकर बैठ गयी. वो थोड़ी देर चुप रही और फिर उसने एक बार मेरी तरफ देखा. उसके बाद अपने चेहरे को सामने की तरफ घुमा लिया और अपनी बात कहना शुरू कर दी.
कीर्ति बोली “जान, तुम्हारे मूह से दादा जी की बात सुनकर मुझे लगा कि, तुमको उनकी मदद करना चाहिए. लेकिन जब मैने तुम्हारे साथ आंटी की कल्पना की तो, मुझसे ये सब सहन नही हुआ और मेरा मूड खराब हो गया. मैं इस बारे मे और बात नही करना चाहती थी. इसलिए मैने तुमसे घर वापस चलने को कहा था.”
मैं बोला “तुझे ये सब सोचने की कोई ज़रूरत नही है. तू बेकार मे परेशान मत हो. मैं इस सब के लिए पहले ही मना कर चुका हूँ. मेरी हर खुशी तुझ से ही जुड़ी है. जिस बात से तू खुश नही है. उस बात से भला मैं खुश कैसे रह सकता हूँ. इसलिए अब इस बारे मे कोई बात नही करेगे. अब तो तू अपना मूड ठीक कर ले.”
मेरी बात सुनकर कीर्ति मेरे सीने से लग गयी और बड़ी मासूमियत के साथ कहने लगी.
कीर्ति बोली “आइ लव यू जान. तुम सच मे बहुत अच्छे हो. मैं तुम्हारे बिना नही रह सकती. तुम कभी मुझे छोड़ कर तो नही जाओगे.”
मैं बोला “कभी नही. मैं तुझसे दूर होने की कभी सोच भी नही सकता. तू तो मेरी जान है.”
ये कह कर मैने कीर्ति को अपने सीने पर दबा लिया. वो अब भी बहुत भावुक हो रही थी और इसी भावना मे बहती हुई वो कहने लगी.
कीर्ति बोली “जान, यदि तुम मुझसे दूर हो गये तो, मैं सच मे जी नही पाउन्गी. मैं तुम्हे किसी का होते हुए भी नही देख सकती. यदि कभी ऐसा हो गया तो, मैं अपने आपको ख़तम कर दुगी.”
मैं बोला “ये मरने की बात क्यो कर रही है. मेरे जीवन मे तेरे सिवा कभी कोई नही आएगा. मैं हमेशा तेरा ही रहुगा.”
मेरे इतना सब कहने पर भी, आज ना जाने कीर्ति पर क्या जुनून सवार हो गया था कि, वो इस बात को करना बंद ही नही कर रही थी. ऐसा लग रहा था, जैसे उसके मन मे मुझसे दूर होने का डर समा गया हो. वो बार बार बस उसी बात को दोहराई जा रही थी.
उस समय कीर्ति बिल्कुल किसी मासूम बच्चे की तरह, मेरे सीने से लगी सवाल किए जा रही थी और मैं उसके सवालों का जबाब दिए जा रहा था. जब मैने देखा कि कीर्ति बहुत ज़्यादा भावुक हो रही है. तब मैने माहौल को हल्का बनाने के लिए उसके माथे को चूमा और कहा.
मैं बोला “आज हम इतने दिन बाद मिले है और आज तूने अपनी किस्सी नही ली. क्या आज तेरा किसी लेने का मूड नही है.”
मेरी बात सुनकर कीर्ति हँसने लगी और फिर अपना चेहरा मेरे सामने करके अपनी आँख बंद कर ली. उस समय उसके सुंदर चेहरे पर बहुत ही मासूमियत झलक रही थी और मुझे उस पर सारे जमाने का प्यार लुटाने का मन कर रहा था. मेरी नज़र उसके चेहरे से हट ही नही रही थी. मैं बस उसे एक-टक देखे जा रहा था.
पद्मिननी को छुने का मेरा दिल तो बहुत कर रहा था. लेकिन उसके दर्द को देखते हुए, उसको छुने की मेरी हिम्मत नही हो रही थी. अपने दिमाग़ को पद्मि.नी से हटाने के लिए, मैने करवट बदली और दूसरी तरफ मूह करके लेट गया.
मैने अपनी आँखे बंद की और सोने की कोसिस करने लगा. मगर मेरी आँखों मे अभी भी नींद नही थी. मैने आँख बंद किए किए ही वापस पद्मि़नी की तरफ करवट ले ली. काफ़ी देर तक बस मैं करवट ही बदलता रहा.
मैं पद्मिदनी की तरफ करवट लिए लेता था. तभी मुझे अपनी पीठ पर पद्मिअनी के हाथ रखने का अहसास हुआ. मैने फ़ौरन अपनी आँख खोली और वापस पद्मिअनी की तरफ करवट ली. पद्मिहनी जाग रही थी और मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी. मैं भी उसे देख कर मुस्कुरा दिया. उसने मुझसे पुछा.
पद्मिहनी बोली “क्या हुआ पिताजी. आप बार बार करवट क्यो बदल रहे है.”
मैं बोला “कुछ नही, बस मुझे नींद नही आ रही.”
पद्मिोनी बोली “आज तो मैने आपको वो दवा भी नही दी है. फिर आपको ये बेचैनी क्यो हो रही है.”
मैं बोला “पता नही.”
पद्मिोनी बोली “मुझे पता है. आज आपको कुछ करने को नही मिल रहा है. इसलिए आपको ये बेचैनी हो रही है.”
मैं बोला “नही, ऐसी कोई बात नही है.”
पद्मिोनी बोली “चलिए मैं आपकी सोने मे कुछ मदद कर देती हूँ.”
ये कह कर उसने अपना हाथ मेरे लिंग पर रख दिया. जो पद्मिदनी के पास सोने की वजह से पहले ही तना हुआ था. उसने लिंग पर हाथ रख कर उसे, पायजामे के उपर से ही दबाना सुरू कर दिया. उसके हाथों के अहसास से ही, मेरे तन बदन मे आग लग गयी.
मैने भी खिसक कर पद्मिेनी के पास आ गया और अपना हाथ उसके बूब्स पर रख दिया और उन्हे धीरे धीरे मसल्ने लगा. फिर पद्मि नी ने मेरा पायजामा खोल कर नीचे किया और मेरी अंडर वेअर को भी नीचे सरका कर मेरे लिंग को अपने हाथ मे थाम कर उसे उपर नीचे करने लगी.
कुछ ही देर मे मेरे लिंग ने विकराल रूप ले लिया. अब मुझसे सहन नही हो रहा था. मैने भी पद्मिीनी की नाइटी को पकड़ कर उसके गले तक खिसका दिया और उसके बूब्स पर अपने होंठ रख कर उन्हे चूसने लगा. पद्मिउनी ने एक हाथ से मेरे सर को अपने बूब्स पर दबा लिया और दूसरे हाथ से मेरे किंग को मसल्ति रही.
अब पद्मिेनी भी बहुत गरम हो चुकी थी. मैने उस से लिंग को मूह मे लेने को कहा तो, उसने मना कर दिया. लेकिन बाद मे उसने मुझे अपने से अलग किया और पलट कर लेट गयी. अब उसका मूह मेरे लिंग के सामने था. वो मेरे लिंग को देखने हुए उसे उपर नीचे कर रही थी.
मैने उसकी पैंटी को नीचे खिसका दिया और अपने होंठ उसकी पुसी पर रख दिए. मैं उसकी पुसी को चूसने चाटने लगा. कुछ ही देर मे पद्मिीनी अपनी पुसी को मेरे मूह पर दबाने लगी और मेरे लिंग को ज़ोर ज़ोर से मसल्ने लगी. मैने अपनी जीभ उसकी पुसी के अंदर डाल दी और उसे अंदर बाहर करने लगा.
कुछ ही देर मे पद्मिेनी को भी जोश आ गया और उसने मेरे लिंग पर अपने होंठ रख दिए. उसके होंठ का गरम गरम अससास होते ही मैं लिंग को उसके होंठों पर दबाने लगा. पद्मि नी ने अपने होंठ खोले और लिंग को अंदर लेने की कोसिस करने लगी.
कुछ ही पल मे मेरे लिंग का टॉप पद्मिरनी के मूह मे था. मैं जोश मे आकर तेज़ी से उसकी पुसी मे जीभ को अंदर बाहर करने लगा. पद्मिरनी ने भी जितना हो सका मेरे लिंग को अपने मूह के अंदर कर लिया और उसे अंदर बाहर करने लगी.
मैने पद्मि नी को अपने उपर कर लिया और उसकी पुसी के अंदर जीभ को घुमाने लगा. पद्मि नी भी जोश से भरी हुई थी. वो मेरे लिंग पर अपने मूह को उपर नीचे कर रही थी. कुछ ही देर मे पद्मिशनी की पुसी ने पानी छोड़ दिया और वो शांत पड़ गयी.
मैने अपनी जीभ को उसकी पुसी से बाहर निकाला और उसमे उंगली डाल कर अंदर बाहर करने लगा. कुछ देर ऐसा करने के बाद पद्मि नी फिर से गरम हो गयी और फिर से मेरे लिंग पर मेहनत करने लगी. अब मैं धीरे धीरे उसकी पुसी मे अपनी उंगली को घुमा रहा था.
पद्मिलनी तेज़ी से मेरे लिंग को अपने मूह के अंदर बाहर करने मे लगी हुई थी. मेरे लिंग की अकड़ बढ़ गयी थी और अब वो भी पानी छोड़ने के करीब पहुच गया था. ये देखते ही मैने अपनी जीभ पद्मियनी की पुसी मे डाल दी और उसे अंदर बाहर करने लगा.
हम दोनो ही तेज़ी से एक दूसरे का पानी निकालने मे लगे हुए थे. कुछ ही देर बाद पद्मिीनी की मेहनत रंग लाई और मेरे लिंग ने उसके मूह मे ही पिचकारी मारना सुरू कर दी. पद्मि्नी ने तेज़ी से उसे बाहर निकाला और हाथ से उसे उपर नीचे करने लगी.
वो लिंग को तब तक उपर नीचे करती रही. जब तक की लिंग ने आख़िरी बूँद तक नही छोड़ दी. मैं कुछ देर रुका और फिर से पद्मितनी की पुसी पर अपनी जीभ फेरने लगा. अब मेरी तेज़ी बहुत ज़्यादा थी. मेरी जीभ पद्मिीनी की पुसी मे अंदर बाहर हो रही थी और पद्मितनी सिसकारी लेती हुई, मुझे पुसी पर दबा रही थी.
मैं उसके कुल्हों को मसल कर उसकी पुसी के अंदर बाहर जीभ को कर रहा था. फिर अचानक पद्मिसनी का सरीर तेज़ी से हिलने लगा और उसकी पुसी ने पानी छोड़ना सुरू कर दिया. वो एक बार फिर से शांत पड़ गयी.
कुछ देर वो ऐसे ही लेटी रही. फिर मेरे बराबर मे आकर लेट गयी और कहने लगी.
पद्मिेनी बोली “पिताजी, मज़ा आया.”
उसकी बात सुनकर मुझे हँसी आ गयी और मैने कहा.
मैं बोला “हाँ बहुत मज़ा आया.”
ये कह कर मैने उसे अपने पास खिचा और उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए. उसके होंठों को चूमने के बाद हम लोग एक दूसरे की बाहों मे बाहें डाले ही सो गये.
सुबह मेरी नींद पद्मिएनी के जगाने पर खुली. उसने मुझे जगा कर कहा.
पद्मिमनी बोली “पिताजी, जल्दी से उठ कर फ्रेश हो जाइए. मान जी लोग किसी भी समय आते ही होगे.”
मैं उठ कर फ्रेश होने चला गया. मैं फ्रेश होकर लौटा तो पद्मि्नी चाय लेकर आ चुकी थी. मैने उस से चाय ली और उस से पुछा.
मैं बोला “बहू, अब तुम्हारा दर्द कैसा है.”
पद्मिोनी बोली “पिताजी, दर्द अभी भी हो रहा है और मुझे चलने मे भी तकलीफ़ हो रही है.”
मैं बोला “कोई बात नही, तुम कल वाली दवा फिर से खा लेना. शाम तक तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगी.”
इसके बाद मेरी पद्मि नी से इसी बारे मे बात चीत चलती रही. तभी डॉरबेल बजी और पद्मिबनी दरवाजा खोलने चली गयी. उसके दरवाजा खोलने के बाद बाहर से अलीशा की आवाज़ आने लगी. मैं समझ गया कि, वो लोग आ चुके है. फिर भी मैं अपने कमरे मे ही रहा.
काफ़ी देर बाद अलीशा कमरे मे आई. उसने आते ही हंसते हुए मुझसे पूछा.
अलीशा बोली “काम सब ठीक ठाक हो गया ना.”
मैं बोला “हाँ काम तो सब ठीक ठाक हो गया है. लेकिन एक गड़बड़ हो गयी है.”
अलीशा बोली “क्या हुआ.”
मैने उसे कल की सारी सच्चाई बता दी. इस पर अलीशा हंसते हुए कहने लगी.
अलीशा बोली “इसमे गड़बड़ की क्या बात है. पहली पहली बार हर लड़की के साथ ऐसा ही होता है. आप चिंता ना करे, मैं सब संभाल लुगी.”
इसके बाद अलीशा उठ कर पद्मिानी के पास चली गयी. उसने पद्मिकनी को भी समझा दिया कि, घबराने की कोई बात नही है. ऐसा सभी लड़कियों के साथ होता है. उसकी बात से पद्मिीनी को कुछ राहत महसूस हुई.
उसके बाद समय यूँ ही बीतने लगा. बीच बीच मे मुझे और पद्मि नी को जब भी मौका मिलता, हम खुल कर सेक्स करते. ये सब चलते हुए एक साल हुआ और फिर राज का जनम हो गया. हमारे घर मे खुशियाँ मनाई जाने लगी.
मैने और पद्मिानी ने तय कर लिया कि अब हम सेक्स संबंध नही बनाएगे. लेकिन कुछ समय बाद, आकाश एक लड़की की चाहत जाहिर करने लगा. उसी समय अलीशा की भी तबीयत खराब रहने लगी थी. जब उसका इलाज कराया गया तो, उसको कॅन्सर निकला. जो कि आख़िरी स्टेज पर था.
अलीशा तो मेरी हर बात जानती ही थी. उसने भी अपनी आख़िरी इच्छा यही रखी कि, मैं जल्द से जल्द पद्मिेनी की झोली एक लड़की से भर दूं. आकाश और अलीशा की बात मानने के लिए मैने एक बार फिर पद्मिमनी से सेक्स संबंध बनाना सुरू कर दिए.
इधर दिन ब दिन अलीशा की हालत गिरती जा रही थी और उधर पद्मिरनी के भी दिन पूरे होने वाले थे. आख़िर भगवान ने अलीशा की सुन ली और पद्मिकनी ने रिया को जनम दे दिया. रिया के जनम के कुछ दिन बाद ही अलीशा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
इन थोड़े से दिनो मे ही मैं अलीशा को बहुत प्यार करने लगा था. इसलिए उसकी मौत के बाद मैं टूट सा गया था. तब मुझे अलीशा के गम से पद्मिानी ने बाहर निकाला और हम दोनो के बीच एक बार फिर से नज़दीकियाँ बन गयी. जिसके कारण कुछ ही समय बाद प्रिया का जनम हुआ.
प्रिया के जनम के बाद मैं अपने आपको संभाल चुका था. इसलिए फिर मैने और पद्मिकनी ने कभी सेक्स संबंध बनाने की कोई कोशिश नही की और हम लोग अपने बच्चों के बीच खुश रहने लगे.
पद्मि नी को शादी के बाद का जो सुख आकाश से मिलना चाहिए था. उसे वो उस से कभी ना मिल सका. फिर भी वो इस सब दर्द को पी गयी और कभी आकाश पर ये बात जाहिर नही होने दी. मगर एक बार फिर पद्मिभनी का अतीत उसकी बीमारी बनकर उसके सामने खड़ा है.
अब मेरी उमर तो इतनी रही नही कि, मैं पद्मिबनी की इस कमी को पूरा कर सकूँ. इसलिए मैने ये बात तुमसे कही है. तुम्हारा गरम खून है और अभी तुमको भी सेक्स करने की बहुत इच्छा होती होगी. ऐसे मे यदि तुम ये सब करते हो तो, इसमे तुम्हारी इच्छा की पूर्ति भी हो जाएगी और इसी बहाने पद्मिहनी का इलाज भी हो जाएगा.
अब आगे की कहानी पुन्नू की ज़ुबानी...
दादा जी कहानी सुनने के बाद मैं कीर्ति की तरफ देखने लगा. उसके चेहरे पर कयि रंग आ जा रहे थे. मगर मैं इस सब का मतलब नही समझ पा रहा था कि, उसके मन मे इस समय क्या चल रहा है. उसको इस तरह खामोश देख कर मुझे डर भी लग रहा था कि, वो फिर से कहीं नाराज़ ना हो जाए.
मगर इस सब के बाद भी, मेरी उस से कुछ कहने की हिम्मत नही हो रही थी. मैं बस खामोशी से उसकी तरफ देख रहा था. कुछ देर तक ये खामोशी यू ही बनी रही. फिर कीर्ति ने खुद ही इस खामोशी को तोड़ते हुए कहा.
कीर्ति बोली “हमे यहाँ आए हुए बहुत देर हो गयी है. अब हमे घर वापस चलना चाहिए.”
कीर्ति की ये बात सुनकर मुझे तो ऐसा लगा, जैसे किसी ने बड़ा सा पत्थर मेरे उपर रख दिया हो और मैं उसके वजन से दब गया हूँ. उस समय मुझे कीर्ति पर गुस्सा तो नही आ रहा था, मगर अपने उपर रोना ज़रूर आ रहा था कि, मैं जिस लड़की से कुछ नही छुपा रहा हू. वो ही मेरी एक ज़रा सी बात को समझने को तैयार नही है.
आख़िर मैने ऐसा किया ही क्या है. मैने तो सिर्फ़ वो ही सब बातें बताई थी. जो मेरे साथ हुई थी. इसमे मेरी ग़लती ही क्या थी. क्या मेरी यही ग़लती थी कि, मैं कीर्ति से कुछ भी छुपाना नही चाहता था. क्या मेरी यही ग़लती थी कि, मैं अपने से जुड़ी हर बात उसे बताए जा रहा था.
यही सब बातें सोचते सोचते मेरा चेहरा रुआंसा सा हो गया. मेरे दिल पर एक अजीब सा बोझ, मुझे महसूस होने लगा. इसलिए मैने ना तो कीर्ति की बात का कोई जबाब दिया और ना ही उसकी तरफ देखा. मैं सर झुका कर खामोश बैठ गया.
कीर्ति ने जब मुझे इस तरह से बैठे देखा तो, वो मेरे पास आकर खड़ी हो गयी और फिर मुझसे कहने लगी.
कीर्ति बोली “तुमने सुना नही, मैं क्या कह रही हूँ.”
लेकिन मैने कुछ ना कहा. मैं खामोश बैठा रहा. तब उसने फिर से कहा.
कीर्ति बोली “मैं कह रही हूँ कि, अब हमे घर चलना चाहिए. हमे यहाँ आए बहुत देर हो गयी है. फिर तुम्हे वापस भी तो जाना है.”
मगर मैने अभी भी कोई जबाब नही दिया. मैं यू ही सर झुकाए बैठा रहा और मन ही मन कीर्ति से हज़ारों सवाल करता रहा. लेकिन जब कीर्ति ने देखा कि, मैं ना तो उसकी बात का कोई जबाब दे रहा हूँ और ना ही उसकी तरफ देख रहा हूँ. तब वो मेरे बिल्कुल पास आकर खड़ी हो गयी और मेरे बालों मे उंगलियाँ चलाते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली “तुम्हे क्या हो गया है. तुम ऐसे क्यो बैठे हो. मेरी किसी बात का जबाब क्यो नही दे रहे.”
मैं कहना तो बहुत कुछ चाह रहा था. मगर कीर्ति के इस बर्ताव से, मेरे दिल को ऐसी ठेस लगी थी कि, मैं चाह कर भी कुछ नही बोल पा रहा था. यदि कीर्ति ने ये बात सुनकर मुझे भला बुरा बोल लिया होता तो, मुझे इतना बुरा नही लगता. लेकिन मेरी बात सुनने के बाद उसका सीधे घर वापस चलने को कहना, ना जाने क्यो मेरे दिल को दुख पहुचा रहा था.
मैं सिर्फ़ खामोश बैठा रहा और अब मेरी खामोशी कीर्ति को परेशान करने लगी थी. जब मैं उसके बार बार पुच्छने पर भी कुछ नही बोला. तब कीर्ति ने मेरे सर को खीच कर अपने सीने से लगा लिया. शायद उसे मेरे दर्द का अहसास हो गया था. मगर वो उसकी वजह नही समझ पाई थी. इसलिए वो मुझे अपने सीने से चिपका कर पुछ्ने लगी.
कीर्ति बोली “जान, तुम्हे मेरी कसम है. बोलो तुम्हे क्या हुआ है. तुम इस तरह चुप क्यो हो.”
कीर्ति की कसम ने मुझे बोलने पर मजबूर कर दिया और मेरे सब्र का बाँध टूट गया. मैने उस से कहा.
मैं बोला “मुझे क्या हुआ है. हुआ तो तुझे है. जो मेरी ज़रा सी बात को सुनकर मेरे साथ ऐसा बर्ताव कर रही है, जैसे मैने कोई बड़ा भारी गुनाह कर दिया हो. आख़िर मैने किया क्या है. मैने तो सिर्फ़ तुझे वो बात बताई है. जो मेरे साथ वहाँ पर हुई थी. इस सब मे मेरी ग़लती कहाँ है. बताओ मुझे.”
ये बात सुनते ही कीर्ति को समझ मे आ गया कि, मुझे क्या हुआ है. वो मेरे बालों मे हाथ फेरते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली “ओ हो, मेरी जान, मुझसे नाराज़ है. लेकिन मैने तो अपनी जान की बात सुनकर उसको कुछ भी नही कहा. ना ही उस पर कोई गुस्सा किया. फिर मेरी जान मुझसे क्यो नाराज़ है.”
मैं बोला “ज़्यादा मत बन. तूने कुछ ना कह कर भी बहुत कुछ कह दिया.”
कीर्ति बोली “कसम से जान, मुझे नही पता कि, तुम्हे मेरी कौन सी बात बुरी लगी है. प्लीज़ बोलो, तुम्हे मेरी कौन सी बात बुरी लगी है.”
मैं बोला “जब बोलने वाले को ही अपनी बात का पता नही है तो, फिर मैं क्यो बोलू.”
कीर्ति बोली “जान तुम्हे मेरी कसम, प्लीज़ बताओ, तुम्हे मेरी कौन सी बात बुरी लगी है.”
एक बार फिर मुझे कीर्ति की कसम के आगे झुकना पड़ा. मैने कहा.
मैं बोला “तूने मेरी बात सुनने के बाद ये क्यो कहा कि, अब हमे घर चलना चाहिए.”
कीर्ति बोली “बस इतनी सी बात है. अरे वो तो मैने इस लिए कहा था, क्योकि अभी हमे जाकर अंकिता से भी तो मिलना है.”
मैं बोला “ज़्यादा झूठ मत बोल. मैं जानता हूँ कि, तूने ये बात गुस्से मे कही थी. मगर मेरे उपर तेरा गुस्सा फ़िजूल है. मैने जब कुछ ऐसा वैसा किया ही नही है. तब तेरा मेरे उपर गुस्सा करने का क्या मतलब है.”
कीर्ति बोली “जान, जैसा तुम सोच रहे हो, ऐसा कुछ भी नही है. मेरा यकीन करो. मैं तुम पर ज़रा भी गुस्सा नही थी. बस तुम्हारी बात सुनकर मैं ज़रा परेशान हो गयी थी और मेरा मूड खराब हो गया था. इसलिए मैने तुमसे घर वापस चलने को कहा था.”
मैं बोला “क्यो, ऐसा क्या हुआ, जो मेरी बात सुनकर तू परेशान हो गयी और तेरा मूड खराब हो गया.”
कीर्ति बोली “जान, अब उस बात को छोड़ो भी. अब मेरा मूड अच्छा है. हम कोई और बात करते है.”
मैं बोला “नही, मुझे जानना है कि, किस बात ने तुझे परेशान किया है. तू नही जानती कि तेरे अचानक बिना कुछ कहे घर वापस चलने की बात से मुझे कितनी तकलीफ़ पहुचि है.”
मेरी बात सुनकर कीर्ति ने अपने दोनो हाथ अपने कान पर रख लिए और कान पकड़ कर कहने लगी.
कीर्ति बोली “सॉरी जान, मुझसे ग़लती हुई. अब मैं दोबारा कभी ऐसा नही करूगी. अब तो तुम अपना गुस्सा ख़तम करो.”
मैं बोला “नही, मैं तुझ पर ज़रा भी गुस्सा नही हूँ. लेकिन मुझे ये जानना है कि, तूने ऐसा क्यो किया.”
कीर्ति बोली “जान प्लीज़, इस बात को ख़तम करो ना. मैं कान पकड़ कर तुमसे सॉरी कहती हूँ. दोबारा कभी ऐसी ग़लती नही करूगी.”
जब कीर्ति मुझे बात बताने को तैयार नही हुई तो, मेरा मूड खराब हो गया. मैने उस से गुस्से मे कहा.
मैं बोला “ठीक है, तू मुझे नही बताना चाहती तो, मत बता. चल हम घर वापस चलते है.”
ये कह कर मैं उठ कर खड़ा हो गया और जाने के लिए आगे बढ़ा ही था की, कीर्ति ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा.
कीर्ति बोली “अच्छा जी. अब ये मुझ पर गुस्सा नही तो, क्या दिखाया जा रहा है.”
उसके मूह से अच्छा जी सुनते ही मेरे दिल मे फिर से गुदगुदी होने लगी. लेकिन मैने अपनी मुस्कुराहट को छुपा कर, झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.
मैं बोला “मैं कोई गुस्सा नही हूँ. लेकिन जब तुम्हे अपनी कोई बात मुझे बतानी ही नही है तो, फिर हम रुक कर यहा क्या करेगे. मैं ही पागल हूँ, जो अपनी हर छोटी बड़ी बात तुम्हे बता देता हूँ.”
मेरी बात सुनकर कीर्ति को लगा कि, मैं सच मे उस से गुस्सा हो गया हूँ. इसलिए वो मुझे मानते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली “ओके बाबा, अब तुम अपना गुस्सा थूक दो. तुम पागल नही हो. मैं ही पागल हूँ, जो तुम्हे अपनी बात नही बता रही थी. चलो मैं तुम्हे अपनी बात बता देती हूँ. लेकिन पहले तुम अपना मूड ठीक करो और यहाँ बैठो.”
मैं बोला “मेरा मूड ठीक हो जाएगा. पहले तुम अपनी बात बोलो.”
ये कह कर मैं वापस अपनी जगह पर जाकर बैठ गया. मेरे बैठते ही कीर्ति भी मेरे पास आकर बैठ गयी. वो थोड़ी देर चुप रही और फिर उसने एक बार मेरी तरफ देखा. उसके बाद अपने चेहरे को सामने की तरफ घुमा लिया और अपनी बात कहना शुरू कर दी.
कीर्ति बोली “जान, तुम्हारे मूह से दादा जी की बात सुनकर मुझे लगा कि, तुमको उनकी मदद करना चाहिए. लेकिन जब मैने तुम्हारे साथ आंटी की कल्पना की तो, मुझसे ये सब सहन नही हुआ और मेरा मूड खराब हो गया. मैं इस बारे मे और बात नही करना चाहती थी. इसलिए मैने तुमसे घर वापस चलने को कहा था.”
मैं बोला “तुझे ये सब सोचने की कोई ज़रूरत नही है. तू बेकार मे परेशान मत हो. मैं इस सब के लिए पहले ही मना कर चुका हूँ. मेरी हर खुशी तुझ से ही जुड़ी है. जिस बात से तू खुश नही है. उस बात से भला मैं खुश कैसे रह सकता हूँ. इसलिए अब इस बारे मे कोई बात नही करेगे. अब तो तू अपना मूड ठीक कर ले.”
मेरी बात सुनकर कीर्ति मेरे सीने से लग गयी और बड़ी मासूमियत के साथ कहने लगी.
कीर्ति बोली “आइ लव यू जान. तुम सच मे बहुत अच्छे हो. मैं तुम्हारे बिना नही रह सकती. तुम कभी मुझे छोड़ कर तो नही जाओगे.”
मैं बोला “कभी नही. मैं तुझसे दूर होने की कभी सोच भी नही सकता. तू तो मेरी जान है.”
ये कह कर मैने कीर्ति को अपने सीने पर दबा लिया. वो अब भी बहुत भावुक हो रही थी और इसी भावना मे बहती हुई वो कहने लगी.
कीर्ति बोली “जान, यदि तुम मुझसे दूर हो गये तो, मैं सच मे जी नही पाउन्गी. मैं तुम्हे किसी का होते हुए भी नही देख सकती. यदि कभी ऐसा हो गया तो, मैं अपने आपको ख़तम कर दुगी.”
मैं बोला “ये मरने की बात क्यो कर रही है. मेरे जीवन मे तेरे सिवा कभी कोई नही आएगा. मैं हमेशा तेरा ही रहुगा.”
मेरे इतना सब कहने पर भी, आज ना जाने कीर्ति पर क्या जुनून सवार हो गया था कि, वो इस बात को करना बंद ही नही कर रही थी. ऐसा लग रहा था, जैसे उसके मन मे मुझसे दूर होने का डर समा गया हो. वो बार बार बस उसी बात को दोहराई जा रही थी.
उस समय कीर्ति बिल्कुल किसी मासूम बच्चे की तरह, मेरे सीने से लगी सवाल किए जा रही थी और मैं उसके सवालों का जबाब दिए जा रहा था. जब मैने देखा कि कीर्ति बहुत ज़्यादा भावुक हो रही है. तब मैने माहौल को हल्का बनाने के लिए उसके माथे को चूमा और कहा.
मैं बोला “आज हम इतने दिन बाद मिले है और आज तूने अपनी किस्सी नही ली. क्या आज तेरा किसी लेने का मूड नही है.”
मेरी बात सुनकर कीर्ति हँसने लगी और फिर अपना चेहरा मेरे सामने करके अपनी आँख बंद कर ली. उस समय उसके सुंदर चेहरे पर बहुत ही मासूमियत झलक रही थी और मुझे उस पर सारे जमाने का प्यार लुटाने का मन कर रहा था. मेरी नज़र उसके चेहरे से हट ही नही रही थी. मैं बस उसे एक-टक देखे जा रहा था.