hotaks444
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सीन में एक लड़की दूसरी लड़की के साथ अपनी टांगें फैलाकर उसकी चूत से सुनहरी धार टपका रही थी। और एक लड़की उसे अपने होंठों से गटक रही थी, खूब स्वाद लेकर।
“हे, तूने अपनी ननद को इस खारे शरबत का स्वाद चखाया की नहीं?” दूबे भाभी बोल पड़ीं।
मैंने उन्हें कसकर घूरा। वो तो सारा काम चौपट करने में लगी थीं, चखाना क्या मेरा प्लान तो उसे इसकी पक्की आदत लगा देने का था। पर हर चीज धीरे-धीरे अच्छी लगती है, जिससे वो भी ना बिचके।
“हे भाभी, कित्ती गन्दी, क्या कर रही हैं ये?” मेरी ननद बिचक के बोली।
“अरे इसमें गन्दी क्या बात है? आखिर तुम लण्ड को मजे से लालीपाप की तरह चूसती हो उसमें से निकली मलाई गटागट लीलती हो। आखिर वो भी तो इसी लण्ड से निकलता है और अगर वो गंदा नहीं हुआ तो ये कैसे गंदा है। और फिर ये तो कई लोग इलाज के लिये इश्तेमाल करते हैं। गो-मूत्र तो ढेर सारी आयुवेर्दिक दवाओं में पड़ता है तो गाय का पीना ठीक है? और देख ये सब मन की बातें हैं। बंद कमरे में औरत मर्द क्या करते हैं, या दो औरतें क्या करती हैं? अगर उनको इसमें मजा आता है तो आता है, इसमें अच्छे या बुरे की कोई बात नहीं। देख कैसे मजे से गटक रही है वो। एक बार स्वाद लगने की बात है…” मैंने भी दूबे भाभी का साथ दिया।
तब तक उस सीन में एक लड़का भी आ गया था और अब सामुहिक… पहले लड़के के ऊपर एक लड़की ने जम के तेज धार घलघल सुनहले रंग की धार और फिर लड़के ने। अब गुड्डी भी टकटकी लगाकरके देख रही थी और उसके चेहरे पे उत्तेजना साफ झलक रही थी।
गुड्डी- “पर क्या भाभी आप भी भैया के साथ और भैया भी आपके साथ?”
“अरे और क्या? मैं तो उन्हें अक्सर… और आखिर जब वो चूत चाटते हैं तो कई बार लगा होता है उसमें तो क्या फर्क पड़ता है। और तू भी एक बार ट्राई कर ना… अच्छा लगेगा…” अबकी दूबे भाभी ने मोर्चा संभाला।
सवाल मुझसे पूछा गया था लेकिन मैं जवाब गोल कर गयी। अगला सीन तो “उसके भी आगे” के स्टेप का था। अगर वो मेरी ननद देख लेती तो उसे जोर का झटका जोर से लगता, इसलिये मैंने बात टाली और दूबे भाभी से कहा- “अरे भाभी, ये पिक्चर तो बहुत डाइवर्ट कर रही है और इसके चक्कर में ये ननद साल्ल्ली बच जायगी। इसको बंद करते हैं और जो काम हम लोग कर रहे थे वो शुरू करते हैं। आपने तो इसकी शहद की कटोरी चाट ली। अब जरा इसे भी तो कस-कसकर रगड़ के चटाइये अपनी और मैं इसकी चाटती हूं…”
दूबे भाभी को भी तो यही चाहिये था। वो लेटी गुड्डी के ऊपर चढ़ गयी और अपनी चूत सीधे उसके मुँह पे रख दी और मैं उसकी फैली टांगों के बीच। दूबे भाभी अपनी झांटों भरी चूत उसके मुँह पे कस-कसकर रगड़ रही थी और मैं उसकी संतरें की फांक ऐसी रस भरी चूत चूस रही थी। रात भर चुदने के बाद उसकी चूत हल्की सी खुल गयी थी। मैंने अपनी जीभ उसकी कोमल किशोर चूत में पेल दी। चूत की दीवालें, मखमल की तरह मुलायम, मादक और रसीली थीं और उन्होंने मेरी जुबान को इस तरह जकड़ लिया जैसे कोई बिछुड़ा हुआ यार बहुत दिनों बाद मिला हो।
मेरी जीभ भी उसका चूत-रस चख के सुख से पागल हो रही थी और होंठ उसके भगोष्ठों को जकड़ के कस-कसकर चूस रहे थे। तभी मैंने देखा की दूबे भाभी ने चूत चटवाते हुये फिल्म फिर से शुरू कर दी और अब गुड्डी भी टकटकी लगाके देख रही थी। मेरे होंठों ने जैसे ही उसकी क्लिट छूई कि वो उत्तेजना से कांपने लगी और दूबे भाभी ने मौके का फायदा उठाया।
जैसा मैं डर रही थी वही हुआ। दूबे भाभी ने चूत जरा आगे सरका के अपने बड़े-बड़े चूतड़ उसके मुँह पे रख दिये पीछे वाले छेद के लिये, पर गुड्डी जरा घबड़ा और हिचक रही थी। दूबे भाभी कच्ची कलियों के साथ जोर जबर्दस्ती करके सब कुछ ‘खिलाने पिलाने’ में एक्स्पर्ट थीं। उन्होंने बिना झिझके अपने चूतड़ थोड़े ऊपर किये और उसकी नाक पकड़कर ‘पिंच’ कर दी। बेचारी… मजबूरन उसको जल्द ही अपना मुँह खोलना पड़ा और दूबे भाभी ने तुरंत अपनी गाण्ड उसके मुँह पे रख दी।
फिर बोली- “चाट… चाट ठीक से। हां हां चूस और जीभ लगा वरना नाक बंद ही रहेगी…”
“हे, तूने अपनी ननद को इस खारे शरबत का स्वाद चखाया की नहीं?” दूबे भाभी बोल पड़ीं।
मैंने उन्हें कसकर घूरा। वो तो सारा काम चौपट करने में लगी थीं, चखाना क्या मेरा प्लान तो उसे इसकी पक्की आदत लगा देने का था। पर हर चीज धीरे-धीरे अच्छी लगती है, जिससे वो भी ना बिचके।
“हे भाभी, कित्ती गन्दी, क्या कर रही हैं ये?” मेरी ननद बिचक के बोली।
“अरे इसमें गन्दी क्या बात है? आखिर तुम लण्ड को मजे से लालीपाप की तरह चूसती हो उसमें से निकली मलाई गटागट लीलती हो। आखिर वो भी तो इसी लण्ड से निकलता है और अगर वो गंदा नहीं हुआ तो ये कैसे गंदा है। और फिर ये तो कई लोग इलाज के लिये इश्तेमाल करते हैं। गो-मूत्र तो ढेर सारी आयुवेर्दिक दवाओं में पड़ता है तो गाय का पीना ठीक है? और देख ये सब मन की बातें हैं। बंद कमरे में औरत मर्द क्या करते हैं, या दो औरतें क्या करती हैं? अगर उनको इसमें मजा आता है तो आता है, इसमें अच्छे या बुरे की कोई बात नहीं। देख कैसे मजे से गटक रही है वो। एक बार स्वाद लगने की बात है…” मैंने भी दूबे भाभी का साथ दिया।
तब तक उस सीन में एक लड़का भी आ गया था और अब सामुहिक… पहले लड़के के ऊपर एक लड़की ने जम के तेज धार घलघल सुनहले रंग की धार और फिर लड़के ने। अब गुड्डी भी टकटकी लगाकरके देख रही थी और उसके चेहरे पे उत्तेजना साफ झलक रही थी।
गुड्डी- “पर क्या भाभी आप भी भैया के साथ और भैया भी आपके साथ?”
“अरे और क्या? मैं तो उन्हें अक्सर… और आखिर जब वो चूत चाटते हैं तो कई बार लगा होता है उसमें तो क्या फर्क पड़ता है। और तू भी एक बार ट्राई कर ना… अच्छा लगेगा…” अबकी दूबे भाभी ने मोर्चा संभाला।
सवाल मुझसे पूछा गया था लेकिन मैं जवाब गोल कर गयी। अगला सीन तो “उसके भी आगे” के स्टेप का था। अगर वो मेरी ननद देख लेती तो उसे जोर का झटका जोर से लगता, इसलिये मैंने बात टाली और दूबे भाभी से कहा- “अरे भाभी, ये पिक्चर तो बहुत डाइवर्ट कर रही है और इसके चक्कर में ये ननद साल्ल्ली बच जायगी। इसको बंद करते हैं और जो काम हम लोग कर रहे थे वो शुरू करते हैं। आपने तो इसकी शहद की कटोरी चाट ली। अब जरा इसे भी तो कस-कसकर रगड़ के चटाइये अपनी और मैं इसकी चाटती हूं…”
दूबे भाभी को भी तो यही चाहिये था। वो लेटी गुड्डी के ऊपर चढ़ गयी और अपनी चूत सीधे उसके मुँह पे रख दी और मैं उसकी फैली टांगों के बीच। दूबे भाभी अपनी झांटों भरी चूत उसके मुँह पे कस-कसकर रगड़ रही थी और मैं उसकी संतरें की फांक ऐसी रस भरी चूत चूस रही थी। रात भर चुदने के बाद उसकी चूत हल्की सी खुल गयी थी। मैंने अपनी जीभ उसकी कोमल किशोर चूत में पेल दी। चूत की दीवालें, मखमल की तरह मुलायम, मादक और रसीली थीं और उन्होंने मेरी जुबान को इस तरह जकड़ लिया जैसे कोई बिछुड़ा हुआ यार बहुत दिनों बाद मिला हो।
मेरी जीभ भी उसका चूत-रस चख के सुख से पागल हो रही थी और होंठ उसके भगोष्ठों को जकड़ के कस-कसकर चूस रहे थे। तभी मैंने देखा की दूबे भाभी ने चूत चटवाते हुये फिल्म फिर से शुरू कर दी और अब गुड्डी भी टकटकी लगाके देख रही थी। मेरे होंठों ने जैसे ही उसकी क्लिट छूई कि वो उत्तेजना से कांपने लगी और दूबे भाभी ने मौके का फायदा उठाया।
जैसा मैं डर रही थी वही हुआ। दूबे भाभी ने चूत जरा आगे सरका के अपने बड़े-बड़े चूतड़ उसके मुँह पे रख दिये पीछे वाले छेद के लिये, पर गुड्डी जरा घबड़ा और हिचक रही थी। दूबे भाभी कच्ची कलियों के साथ जोर जबर्दस्ती करके सब कुछ ‘खिलाने पिलाने’ में एक्स्पर्ट थीं। उन्होंने बिना झिझके अपने चूतड़ थोड़े ऊपर किये और उसकी नाक पकड़कर ‘पिंच’ कर दी। बेचारी… मजबूरन उसको जल्द ही अपना मुँह खोलना पड़ा और दूबे भाभी ने तुरंत अपनी गाण्ड उसके मुँह पे रख दी।
फिर बोली- “चाट… चाट ठीक से। हां हां चूस और जीभ लगा वरना नाक बंद ही रहेगी…”