Post Full Story प्यार हो तो ऐसा - SexBaba
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Post Full Story प्यार हो तो ऐसा

hotaks444

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Nov 15, 2016
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प्यार हो तो ऐसा पार्ट--1

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक ओर नई कहानी लेकर आपके लिए हाजिर हूँ दोस्तो ये कहानी भी एक लंबी कहानी है ये कहानी नही बल्किएक प्रेम साधना है

पूर्णिमा की रात है, चाँद की चाँदनी चारो ओर फैली हुई है. वर्षा अपनी बाल्कनी में खड़ी हुई चाँदनी में लहलहाते खेतो को देख रही है. पर उसका दिल बहुत बेचैन है

“उफ्फ ये चाँदनी रात क्या आज ही होनी थी, अब मैं कैसे बाहर जाउन्गि, किसी ने देख लिया तो मुशिबत हो जाएगी. अंधेरा होता तो आराम से निकल जाती. अब क्या करूँ ? ……. मदन मेरा इंतेज़ार कर रहा होगा, कैसे जाउ मैं अब………… वैसे मुझे यकीन है कि वो मेरी मज़बूरी समझ जाएगा”

वर्षा मन ही मन ये सब सोच रही है

इधर मदन भी चाँदनी रात में लहलहाते खेतो को देख रहा है. ऐसा लग रहा है जैसे की हवायें चाँदनी रात में खेतो में गीत गा रही हैं. बहुत ही सुन्दर नज़ारा है. पर मदन ज़्यादा देर तक इस नज़ारे में खो नही पाता क्योंकि वो बड़ी बेचैनी से वर्षा का इंतेज़ार कर रहा है

वो सोच रहा है कि अगर वर्षा किसी तरह से आ गयी तो वो दोनो पहली बार ऐसी तन्हाई में मिलेंगे.

आज सुबह वर्षा ने मंदिर के बाहर मदन से कहा था, “मदन पिता जी मेरे लिए लड़का ढूंड रहे हैं, मुझे बहुत डर लग रहा है”

“तुम चिंता मत करो…ऐसा करो आज रात अपने बंगलोव के पीछे के खेत में मिलो ……हम आराम से बात करेंगे”

“मैं वाहा कैसे आउन्गि मदन, मुझे डर लगता है”

“मुझे इतना प्यार करती हो, फिर मुझ से अकेले में मिलने से क्यो डरती हो”

“वो बात नही है मदन, मैं तो ये कह रही थी कि रात को उस सुनसान खेत में कैसे आउन्गि में, किसी ने देख लिया तो”

“उस खेत की ज़िम्मेदारी मुझ पर है, मैं ही रात भर उसकी रखवाली करता हूँ, वाहा डरने की कोई बात नही है, तुम आओ तो सही हम ढेर सारी बाते करेंगे”

“वो तो ठीक है ………… अछा मैं कोशिस करूँगी, मेरे लिए घर से निकलना बहुत मुस्किल होगा, पर मैं पूरी कोशिस करूँगी”

ये बातें हुई थी सुबह मंदिर के बाहर दोनो के बीच

इधर वर्षा अभी भी कसंकश में है कि क्या करे क्या ना करे. वो हिम्मत करके चलने का फ़ैसला करती है

वो चुपचाप सीढ़ियों से दबे पाँव नीचे उतरती है और घर के पीछे की दीवार पर चढ़ कर खेत में उतर जाती है. मगर हर पल उसका दिल डर के मारे धक धक कर रहा है

“कहाँ है ये मदन, उसे क्या यहा नही खड़े रहना चाहिए था, मैं अकेली कैसे उसे ढूनडूँगी” --- वर्षा मन ही मन बड़बड़ा रही है.
 
इधर मदन को भी अहसास होता है कि उसे वर्षा के बंगलोव की तरफ चलना चाहिए

“अगर वर्षा आ रही होगी तो अकेली डर जाएगी”

वो सोचता है और वर्षा के बंगलोव की तरफ चल देता है.

वर्षा डरी डरी आगे बढ़ रही है, वो सामने से आते एक साए को देख कर डर जाती है और वापिस मूड कर भागने लगती है.

“अरे रूको वर्षा, ये मैं हूँ तुम्हारा मदन” --- मदन पीछे से आवाज़ लगाता है

वर्षा रुक जाती है और पीछे मूड कर देखती है कि मदन उसकी तरफ दौड़ा चला आ रहा है

“तुम्हे मेरी बिल्कुल परवाह नही है, क्या तुम्हे बंगलोव के पास नही होना चाहिए था”

“वर्षा पिता जी साथ थे, वो आज मुझे घर भेज कर खुद खेत में रुकना चाहते थे, बड़ी मुस्किल से उन्हे यहाँ से भेजा है”

“पता है कितना डर लग रहा था मुझे, मैं कभी भी रात को ऐसे बाहर नही निकली हूँ, ऐसा लग रहा था कि कोई मेरा पीछा कर रहा है” --- वर्षा ने गुस्से में कहा

“मैं समझ सकता हूँ वर्षा, मेरे बस में होता तो में खुद तुम्हे अपनी गोदी में उठा कर लाता” ---- मदन ने कहा

“बस-बस रहने दो”

“मैं सच कह रहा हूँ वर्षा मेरा यकीन करो”

ये कह कर मदन वर्षा को अपनी बाहों में जाकड़ लेता है

वर्षा के तन बदन में बीजली दौड़ जाती है, वो पहली बार मदन की बाहों में थी, वो भी रात की तन्हाई में

“छ्चोड़ो मुझे मदन ये क्या कर रहे हो”

“वर्षा मैं बहुत खुस हूँ …… मुझे बिल्कुल यकीन नही था कि तुम आओगी….. मुझे थोड़ी देर अपने करीब रहने दो”

“मुझे शरम आ रही है मदन, छ्चोड़ो ना”

मदन वर्षा को छ्चोड़ देता है, और अपनी आँखो में आए आँसुओ को पोंछने लगता है

“क्या हुवा मदन ?…. मुझसे कोई ग़लती हुई क्या ? ….. ठीक है भर लो मुझे बाहों में, मैं तो बस ये कह रहे थी कि मुझे शरम आ रही है. पहले कभी तुम्हारे इतने करीब नही आई ना…..” ---- वर्षा मदन के कंधे पर हाथ रख कर कहती है

“वर्षा जब से तुमसे प्यार हुवा है कभी सपने में भी नही सोचा था कि तुम्हारे इतने करीब आ पाउन्गा. आँखे भर आई हैं तुम्हारे इतने करीब आ कर, कहाँ तुम कहाँ मैं” – मदन ने भावुक हो कर कहा

“कहाँ तुम कहाँ मैं का क्या मतलब ???, अब प्यार में भी क्या ये सब सोचा जाता है”

“वो तो ठीक है वर्षा पर तुम नही जानती तुम्हारा प्यार मेरे लिए एक ख्वाब सा लगता है. हम दौनो अक्सर आँखो आँखो में बात करते आए हैं, बहुत कम हम दौनो ने मूह से बात की है, वैसे भी यहा मिलने का मौका ही कहा है जो कुछ बात करें. बड़े दीनो बाद आज मंदिर के बाहर बात हुई थी और आज ही पहली बार हम तन्हाई में मिल रहे हैं…. क्या ये सब सपना सा नही लगता?”

“हाँ मदन मुझे भी ये सपना सा लगता है, पता नही मैं क्यों तुमसे प्यार कर बैठी हूँ, मुझे आछे से पता है कि इस प्यार का अंजाम बहुत भयानक होगा पर फिर भी जाने क्यों…. मेरा दिल बस तुम्हारे लिए धड़कता है”

“वर्षा चलो कहीं भाग चलते हैं, यहा से बहुत दूर जहा ये उन्च-नीच, जात-पात की दीवार ना हो”

“मदन मैं तुम्हारे साथ कहीं भी चलने को तैयार हूँ पर पिता जी हमें ढूंड निकालेंगे और हमें वो खौफनाक सज़ा मिलेगी जिसकी तुम कल्पना भी नही कर सकते”

“मौत से ज़्यादा खौफनाक क्या हो सकता है वर्षा”

”तुम अभी मेरे पिता जी को नही जानते, वो तुम्हारे पूरे परिवार को तबाह कर देंगे, मैं ऐसा हरगिज़ नही होने दूँगी”

“तो इसका क्या ये मतलब है कि इस प्यार को हम भूल जायें और इस दुनिया के आगे इस प्यार का बलिदान कर दें”

“मैने ऐसा तो नही कहा मदन”

“फिर तुम कहना क्या चाहती हो”

“हम साथ जी नही सकते पर साथ मर् तो सकते हैं”

ये कहते हुवे वर्षा की आँखो में आँसू उतर आए

“ये क्या पागलपन है वर्षा… ऐसे दिल छोटा करने से क्या होगा, अगर भगवान ने इस प्यार में हमारी मौत ही लीखी है तो क्यों ना हम एक कोशिस करके मरें, क्या पता हमारे सचे प्यार के आगे भगवान का दिल पीघल जाए और वो हमें एक खुशाल ज़ींदगी दे दें”

“कैसी कोसिस मदन, मैं समझी नही” वर्षा ने अपने आँसू पोंछते हुवे कहा

“हम यहा से बहुत दूर चले जाएँगे, बहुत दूर…. जहा किसी को हमारी जात पात का पता ना हो”

“हम कहा रहेंगे मदन, हमारे पास कुछ भी तो नही है”

“जिस भगवान ने ये प्यार बनाया है वही इस प्यार को मंज़िल तक भी ले जाएँगे, चलो सच्चे मन से अपने प्यार के लिए एक कोशिस करते हैं, बाकी सब भगवान पर छ्चोड़ देते हैं. कोशिस करने से कुछ भी मिल सकता है वर्षा, बिना कोशिस किए हार मान-ना इस प्यार का अपमान होगा”
 
“मैं तुम्हारी हूँ मदन, मुझे जहाँ चाहे वाहा ले चलो, मुझे अपनी चिंता नही है. अपनी चिंता होती तो ये प्यार ही ना करती. मुझे बस तुम्हारी और तुम्हारे घर वालो की चिंता है”

“तुम किसी की चिंता मत करो, जिसने ये जीवन दिया है वही इसकी रक्षा भी करेंगे, मुझे भी अपने घर वालो की चिंता है, पर मैं अपने दिल के हाथो मजबूर हूँ, मुझे यकीन है कि सब कुछ ठीक होगा” ---- मदन ने कहा

“ठीक है मदन जैसा तुम ठीक समझो”

चाँद की चाँदनी चारो तरफ फैली हुई है और दो प्यार में डूबे दिल दुनिया की हर दीवार को तोड़ कर आगे बढ़ना चाहते हैं.

हरे हरे खेत के एक कोने में आम के वृक्षा के नीचे दो दिल अपने प्यार को मंज़िल तक ले जाने की बाते कर रहे हैं

“वर्षा एक बात बताओ”

“हाँ पूछो”

“क्या तुम्हे डर नही लगा मेरे पास तन्हाई में आते हुवे”

“मदन एक तुम ही हो जिसको में कभी भी कहीं भी मिल सकती हूँ, तुमसे इतना प्यार जो करती हूँ, वरना मुझे हर आदमी से डर लगता है”

“ऐसा क्या है मुझ में वर्षा ?”

“तुम्हे याद है आज से करीब 4 साल पहले जब में खेतो में रास्ता भटक गयी थी तब तुम मुझे घर तक छ्चोड़ कर आए थे. अंधेरा होने को था और तुम मुझे बड़े प्यार से समझा रहे थे कि ‘डरो मत मैं तुम्हारे साथ हूँ ना’. उस दिन पिता जी से खूब डाँट पड़ी थी इस बात को ले कर कि मैं क्यों अपनी सहेलियों के साथ खेतो में घूमने गयी थी. पर सब कुछ भुला कर रात भर मैं बस तुम्हे ही सोच रही थी. उस दिन तुम जाने अंजाने मेरे दिल के एक कोने में अपना घर बना गये थे”

“वो दिन मुझे भी याद है, उस दिन तुम्हे पहली बार देखा था मैने, पता नही था कि तुम कौन हो कहा से हो. तुम खेत के एक कोने में परेशान सी खड़ी थी. मैं तुम्हे देखते ही समझ गया था कि तुम रास्ता भटक गयी हो. जब मैने पूछा था कि क्या बात है ? तुमने रोनी सूरत बना कर कहा था, “मुझे घर जाना है” और मैने कहा था चलो मैं तुम्हे घर छ्चोड़ देता हूँ”

“उस वक्त मैं बहुत डर गयी थी मदन, मेरी सहेलियाँ जाने कहाँ थी और अंधेरा घिर आया था, और वो पहली बार था कि मैं घर से ऐसे बाहर थी”

“हाँ तुम तो मुझ से भी डर रही थी”

“मैं तुम्हे तब जानती नही थी, डरना लाज़मी था, अकेली लड़की के साथ कुछ भी हो सकता है, पर मुझे अछा लगा था कि तुम मुझे बड़े प्यार से समझा रहे थे”

“हां पर बड़ी मुस्किल से तुम मेरे साथ चली थी”

“तुम्हारे साथ तब मज़बूरी में चली थी लेकिन आज तुम्हारे साथ अपनी ख़ुसी से कहीं भी चलने को तैयार हूँ”

“इतना प्यार क्यों करती हो तुम मुझे वर्षा ?”

“पता नही मदन, मुझे सच में नही पता”

“याद है जब मैने तुम्हारे घर के बारे में पूछा था तो तुम बड़े गरूर से बोली थी कि मैं रुद्र प्रताप सिंग की बेटी हूँ”

“मैं तुम्हे डराना चाहती थी ताकि तुम कुछ ऐसा वैसा ना सोचो, और तुम मेरे पिता जी का नाम सुन कर डर भी तो गये थे”

“उनके नाम से यहा कौन नही डरता वर्षा, उनके एक इशारे पर किसी की भी जान जा सकती है”

“पर 4 दिन बाद ही तुम में बहुत हिम्मत आ गयी थी, मुझे लाल गुलाब का फूल दे कर गये थे वो भी बड़े अजीब तरीके से. मैं मंदिर से निकल रही थी और तुम मेरे रास्ते में गुलाब का फूल फेंक कर भाग गये थे, मैं तुम्हे देखती रही पर तुमने पीछे मूड कर भी नही देखा. आज तक संभाल कर रखा है मैने वो फूल”

“पता नही क्या हो गया था मुझे, डरते डरते तुम्हारे रास्ते में फूल फेंका था, वो तो सूकर था कि किसी ने देखा नही वेर्ना मुसीबत हो जाती”

“मैने भी डरते डरते वो फूल उठाया था, वो पल आज तक मेरी आँखो में घूमता है, तुम तो फूल फेंक कर भाग गये थे, उठाते वक्त मुझ पर जो बीती थी वो मैं ही जानती हूँ”

“और अगले दिन तुमने क्या किया था, खुद भी तो एक गुलाब वहीं उसी जगह गिरा दिया था जहाँ मैने अपना गुलाब फेंका था. अगले दिन तुम में कहा से हिम्मत आ गयी थी?”

“पता नही, तुम्हारे प्यार का ज्वाब प्यार से देना चाहती थी”

“वर्षा मैने भी तुम्हारा गुलाब आज तक संभाल कर रखा है”

दौनो हंस पड़ते हैं
 
“मदन पहली बार हम ये सब बाते कर रहे है, जींदगी ने हमे अब तक मिलने का मोका क्यों नही दिया”

“हो सकता है कि हमने अब तक कोशिस ही ना की हो, आज तुम मंदिर के बाहर ना मिलती तो शायद आज भी ना मिल पाते”

“मदन चाहे कुछ हो जाए मेरा साथ मत छोड़ना, मैं तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ”

“अरे पगली कहीं की…. ये प्यार क्या साथ छोड़ने के लिए किया है मैने. मैं तो हर हाल में इस प्यार को मंज़िल तक ले जाना चाहता हूँ”

“एक बात पूचु मदन”

“हाँ पूछो ना”

“प्यार कितना अजीब होता हैं ना, हम इन चार सालो में बहुत कम मिले हैं फिर भी दिल में प्यार हर पल बढ़ता ही गया है, ऐसा क्यों है ?”

“वही तो मैं भी कह रहा था, देखो एक तरह से आज हमारी पहली मुलाकात है लेकिन ऐसा लगता है कि हम हर पल साथ रहते हैं, पता है ऐसा क्यों है ?”

“नही तो, तुम बताओ ना”

“हर पल हम एक दूसरे को जो सोचते रहते हैं”

“तुम्हे कैसे पता कि मैं तुम्हे सोचती रहती हूँ ?”

“बस अंदाज़ा लगाया क्योंकि में तो हर पल तुम्हारे ख़यालो में डूबा रहता हूँ”

“बिना एक दूसरे से मिले भी हम एक दूसरे में खोए रहते हैं कितना प्यारा अहसास है ना ये मदन”

“बिल्कुल वर्षा जींदगी में इस से प्यारा अहसास हमें नहीं मिल सकता”

“मदन एक बात बताओ क्या तुम्हे मेरे अलावा कोई और लड़की पसंद आ सकती है”

“सवाल ही पैदा नही होता वर्षा, तुम्हारे अलावा में किसी को नज़र उठा कर देखता भी नही हूँ”

“ऐसा है क्या ?”

“बिल्कुल वर्षा, जो प्यार तुमने मुझे दिया है वो प्यार मुझे कहीं नही मिल सकता. तुम्हारा दिल कितना बड़ा है. इतने बड़े घर की बेटी होते हुवे भी तुमने मुझ ग़रीब से प्यार किया, वो भी सब जात पात भुला कर”

“जात पात का मतलब मुझे नही पता मदन मुझे बस इतना पता है कि मुझे बस तुमसे प्यार है”

मदन भावुक हो कर वर्षा को अपनी बाहों में भर लेता है और मदहोश हो कर वर्षा की कमर पर हाथ फिराने लगता है. कब मद-होशी में उसके हाथ फिसलते हुवे वर्षा के नितंबो तक पहुँच जाते हैं उसे पता ही नही चलता

जैसे ही वर्षा को अपने नितंबो पर मदन के हाथ महसूस होते हैं वो मदन को दूर झटक देती है और मदन की बाहों से आज़ाद हो कर मदन से मूह फेर कर खड़ी हो जाती है

“क्या हुवा वर्षा, मुझ से कोई भूल हुई क्या ?”

“तुम्हारे प्यार में वासना उतर आई है मदन, मुझे वाहा क्यों छुवा तुमने ? …..मुझे डर लग रहा है”

मदन वर्षा के सामने आ कर उसके कदमो में बैठ जाता है और वर्षा के कदमो को चूम कर कहता है, “ ये वासना नही मेरा प्यार है वर्षा. मैं तो बस तुम्हे अपने करीब महसूस करने की कॉसिश कर रहा था, अगर तुम्हे बुरा लगा है तो मुझे माफ़ कर दो”
 
वर्षा मदन को कोई जवाब नही देती और फूट फूट कर रोने लगती है

“क्या हुवा वर्षा क्या मुझ से इतना बड़ा गुनाह हो गया कि तुम इस तरह से रो रही हो, क्या मेरा तुम पर इतना भी हक़ नही कि तुम्हे अपने करीब महसूस कर सकूँ ?”

“मैं सब कुछ भूल चुकी थी लेकिन तुमने फिर से सब कुछ याद दिला दिया”

“क्या याद दिला दिया वर्षा ?, मैं समझा नही”

“मदन मैं आज तुम्हे अपनी जींदगी का वो दर्द बताना चाहती हूँ जो मैने आज तक किसी को नही बताया, क्या तुम सुन पाओगे?”

“मेरा दिल बैठा जा रहा है वर्षा, जल्दी बताओ की बात क्या है वरना मैं अभी यही मर जाउन्गा”

“ऐसा मत कहो, मैं बता तो रहीं हूँ” ---- वर्षा ने अपनी आँखो के आंशु पोंछते हुवे कहा

“अछा चलो बैठ जाओ, बैठ कर आराम से बताओ, यहा हरी-हरी मखमली घास है, इस पर हम आराम से बैठ सकते हैं”

दौनो आमने सामने बैठ जाते हैं

“जब तुमने मुझे वहाँ छुवा तो मेरे ज़ख़्म हरे हो गये” ---- वर्षा ने दबी हुई आवाज़ में कहा

“कैसे ज़ख़्म वर्षा, मैं समझा नही”

वर्षा किन्ही गहरे ख़यालो में खो जाती है

“क्या हुवा वर्षा बताओ ना क्या बात है, मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ, तुम मुझे सब कुछ बता सकती हो”

“जीवन चाचा ने कयि बार मुझे वहाँ छुवा है मदन” --- वर्षा ने कहा और कह कर घुटनो में सर छुपा कर रोने लगी

एक पल को मदन हैरान रह जाता है, फिर खुद को संभाल कर कहता है, “मैं समझ गया वर्षा बस चुप हो जाओ”

“मदन करीब 2 साल तक मैने अपने ही घर में ये सब सहा है” --- वर्षा रोते हुवे कहती है

“कब की बात है ये वर्षा ?”

“कोई 6 साल पहले की बात है”

“अब तो ऐसा कुछ नही है ना”

“नही अब उसकी इतनी हिम्मत नही है कि मेरी तरफ नज़र उठा कर भी देख सके, लेकिन जींदगी के वो 2 साल मैने कैसे बिताए हैं ये मैं ही जानती हूँ”

“मैं समझ सकता हूँ वर्षा”

चाचा अक्सर मुझे अजीब सी नज़रो से घूरता था पर मैने कभी इस बात पर ध्यान नही दिया था. अपने सगे चाचा पर कोई कैसे शक कर सकता है

लेकिन धीरे धीरे बात घूर्ने से आगे बढ़ने लगी. एक दिन मैं अपनी बाल्कनी में खड़ी खेतो को देख रही थी. अचानक पीछे से आकर चाचा ने मेरे कंधे पर कुछ इस तरह से हाथ रखा की मैं काँप गयी. लेकिन जब मैने चाचा की तरफ देखा तो वो बोला, “बेटी क्या बात है ? यहा अकेली क्या कर रही हो ?”

इस तरह वो किसी ना किसी बहाने मुझे छूता रहा

लेकिन एक दिन उसने हद कर दी. मैं अपने घर के पीछे के गार्डेन में घूम रही थी, चाचा भी वाहा आ गया और मेरे साथ टहलने लगा. चलते चलते वो इधर उधर की बाते कर रहा था. अचानक मुझे अपने वाहा पीछे कुछ महसूस हुवा. मैने तुरंत पीछे मूड कर देखा तो कुछ नही दिखा. मैने चाचा की तरफ देखा तो वो मुस्कुरा दिया.

मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो ऐसा क्यों कर रहा है, और सच पूछो तो उस वक्त इतनी समझ भी नही थी, इश्लीए मैने चाचा की हरकत को अन-देखा कर दिया

कुछ दिन शांति से बीत गये
 
फिर एक दिन की बात है, शाम का वक्त था, मैं अपने घर की छत पर खड़ी थी.

मैं किन्ही ख़यालो में खोई थी, अचानक मुझे अपने पीछे वाहा कुछ महसूस हुवा

मैं चोंक कर मूड गयी

“क्या हुवा वर्षा बेटी” चाचा ने गंदी सी हँसी हंसते हुवे पूछा

“कुछ नही चाचा जी बस यू ही आपको देख कर चोंक गयी” --- मैने कहा

मैं और क्या कहती, पर मुझे तब पूरा यकीन हो गया था कि चाचा जान बुझ कर मेरे साथ छेड़कानी कर रहा है

होली वाले दिन तो चाचा ने हद ही कर दी

मैं होली की मस्ती में डूबी हुई थी. कुछ ना कुछ तरकीब लगा कर सभी को रंग रही थी

मैने अपने कमरे में ख़ास हरे रंग का गुलाल रखा था, वो लेने के लिए में अपने कमरे में घुसी ही थी कि पीछे पीछे चाचा भी आ गया

उसने मेरे वाहा हाथ रख कर कहा, “अब जवान हो गयी हो वर्षा बेटी, थोड़ी मौज मस्ती किया करो, ये क्या बच्चो के खेल खेलती हो…. आओ असली होली मनाते हैं”

चाचा ने पी रखी थी तभी उसकी इतनी हिम्मत हो गयी थी.

मुझे उस वक्त इतना गुस्सा आया कि मैने एक थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया

मैं भूल गयी थी कि वो मेरा चाचा है

“अछा किया वर्षा, जब वो भूल गया कि तुम उसकी भतीजी हो तो तुम क्यों भला उसे चाचा समझोगी”

लेकिन फिर भी उसकी बेसरमी नही रुकी मदन, वो बाद में भी मोका देख कर मुझे छेड़ने से बाज़ नही आया.

“क्या तुमने घर में किसी को ये बात नही बताई”

“किसे बताती मदन, पिता जी जीवन चाचा पर आँख मीच कर विश्वास करते हैं और तुम्हे तो पता ही है, मेरी मा को गुज़रे 8 साल हो चुके हैं”

“फिर बाद में ये सब कैसे रुका वर्षा”

एक दिन मैं शाम के वक्त छत पर खड़ी थी, चाचा वाहा आ गया और मेरे बाजू में खड़ा हो गया

मैं जाने लगी तो वो बोला, “वर्षा बेटी तुम मुझ से दूर क्यों भागती हो, मैं तो तुम्हे तुम्हारी जवानी का मज़ा देना चाहता हूँ, आओ तुम्हे कुछ सीखा दूं वरना ये जवानी बीत जाएगी और तुम हाथ मालती रह जाओगी”

“ठीक है चाचा जी मैं तैयार हूँ”

“अरे वाह !! क्या सच !!” --- चाचा ने कहा

“हाँ चाचा जी चलिए पिता जी से ये नयी शिक्षा शुरू करने से पहले आशीर्वाद ले आती हूँ”

ये सुन कर चाचा थर थर काँपने लगा

उस दिन मैने ठान लिया था कि चाहे पिता जी कुछ भी समझे में उन्हे चाचा की करतूतो के बारे में बता दूँगी

जैसे ही मैं वाहा से चली चाचा मेरे कदमो में गिर गया और बोला, “बेटी माफ़ कर दो आगे से मैं तुम्हे परेशान नही करूँगा पर रुद्रा को कुछ मत बताओ, वो मुझे जान से मार देगा”

मुझे यकीन नही था कि वो इतने आराम से सीधे रास्ते पर आ जाएगा. उस दिन के बाद उसने मुझे कभी परेशान नही किया

“वर्षा मैने सपने में भी नही सोचा था कि तुमने इतना कुछ सहा होगा” --- मदन ने दर्द भरी आवाज़ में कहा

“मदन औरत बाहर घूमते भेड़ियों से तो फिर भी निपट ले लेकिन घर के भेड़ियों का क्या ?… जो अपने होकर भी पराए बन जाते हैं और सब रिस्ते नाते भुला कर अपनी बहन बेटियों को बस एक शरीर समझ कर उन पर टूट पड़ते हैं” -----वर्षा ने रोते हुवे भावुक हो कर कहा

“बस वर्षा चुप हो जाओ, मुझे लग रहा है कि मैं भी एक भेड़िया हूँ…. ना मैं तुम्हे वाहा छूटा ना तुम्हे ये सब याद आता, पर मेरा यकीन करो वर्षा मैं बस तुम्हे प्यार कर रहा था और कुछ नही”

“पता नही क्यों मदन मुझे अछा नही लगा, मुझे यकीन है कि अब तुम समझ सकते हो”

“मैं समझ रहा हूँ वर्षा, छ्चोड़ो ये बाते देखो कितनी प्यारी चाँदनी रात है”

“पर इस चाँदनी रात ने आज घर से निकलना मुस्किल कर दिया था मदन, बड़ी मुस्किल से डरते डरते आई हूँ मैं”

“मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ वर्षा तुम्हारी ये दर्दनाक कहानी सुन कर दुख हुवा पर तुम पर और ज़्यादा प्यार आ रहा है क्योंकि तुमने इतना कड़वा सच मुझे बताया है जो शायद ही कोई लड़की अपने प्रेमी या पति को बताएगी”
 
मदन वर्षा को बाहों में भरना चाहता है लेकिन डर रहा है कि कहीं वर्षा को फिर से कुछ बुरा ना लग जाए

“तुम मेरे सब कुछ हो, मेरा तुम्हारे शिवा कोई और नही है, मुझे कहीं ले चलो मदन, यहा से बहुत दूर जहा हम शांति से रह सकें”

“तो तुम अब मेरे साथ चलने को तैयार हो”

“मैने मना कब किया मदन, मैं तो….”

तभी मदन हाथ का इशारा करके वर्षा को टोक देता है

“रूको”

“क्या हुवा मदन”

“श्ह्ह…… थोड़ी देर चुप रहो”

वर्षा बिल्कुल चुप हो जाती है और मदन को हैरानी भरी नज़रो से देखती है

“तुम्हे कुछ सुनाई दे रहा है” ---- मदन ने धीरे से पूछा

“ह्म्म…. हाँ किसी के चीखने की आवाज़ आ रही है”

“मुझे लगा मुझे वहाँ हो रहा है”

“मुझे डर लग रहा है मदन ये आधी रात को कौन चीन्ख रहा है, ऐसा लग रहा है जैसे कोई रोते हुवे चीन्ख रहा है”

“कुछ समझ नही आ रहा ?”

“तुमने क्या पहले भी यहा ऐसी आवाज़ सुनी है”

“नही वर्षा, वैसे भी मैं पीछले 3 दिन से ही रात को खेत में रुक रहा हूँ, पहले पिता जी ही रुकते थे, क्या मैं देख कर आउ ?”

“मदन मुझे बहुत डर लग रहा है, मुझे घर जाना है”

“अरे डरने की क्या बात है, मैं तो तुम्हारे साथ हूँ ना”

तभी उन्हे इतनी ज़ोर की चीन्ख सुनाई देती है कि मदन भी घबरा जाता है. वर्षा बैठे बैठे मदन को जाकड़ लेती है

“ये क्या हो रहा है यहा मदन ? मुझे बहुत डर लग रहा है”

“प…प…पता नही वर्षा, मैं खुद हैरान हूँ, 3 दिन से तो मैने कुछ नही सुना आज ना जाने क्या हो रहा है, चलो मैं तुम्हे घर तक छ्चोड़ आता हूँ, बाद में आकर देखूँगा कि क्या चक्कर है”

“कोई ज़रूरत नही है मदन कुछ देखने की ऐसा करो तुम भी घर जाओ, सुबह आकर देखना जो देखना हो”

“अरे नही वर्षा खेतो को छ्चोड़ कर मैं कहीं नही जा सकता मेरे अलावा यहा कोई नही है”

इधर खेत के दूसरे कोने में 3 घंटे पहले का दृश्या………….

“किशोर ये सब क्या है ?”

“क्या हुवा अब”

“मुझे ये सब अछा नही लगता, तुम कब पिता जी से मिल कर हमारी शादी की बात करोगे”

“अरे शादी भी कर लेंगे रूपा, इतनी जल्दी क्या है, अभी इन उभारों को थोड़ा दबा लेने दो ?”

“मेरी शादी जब कहीं और हो जाएगी ना तब तुम्हे पता चलेगा, जल्दी क्या है….. हा, दूर रखो अपने हाथ” ---- रूपा ने किशोर के हाथो को दूर झटक कर कहा

“अरे छ्चोड़ो ना रूपा… हम क्या आज लड़ाई करने के लिए मिले हैं ?, देखो कितनी प्यारी चाँदनी रात है, चलो कुछ करते हैं”

“क्या करते हैं, शादी से पहले मैं अब कुछ और नहीं करूँगी समझे”

“कैसी बाते करती हो रूपा जब हमें शादी करनी ही है तो क्या शादी से पहले, क्या शादी के बाद. वैसे भी तुम्हारे उभारो को दबाने के अलावा मैने अब तक किया ही क्या है और मुस्किल से 3-4 बार तुम्हारे होंटो का चुंबन लिया है, अब तुम ही बताओ कितना कुछ हुवा है हमारे बीच जो ऐसी बाते कर रही हो”

“मुझे कुछ नही पता, तुम जल्दी पिता जी से मिल कर शादी की बात करो वरना”

“वरना क्या रूपा ?”

“वरना मैं तुमसे मिलना बंद कर दूँगी”

“उफ्फ कैसी बाते करती हो तुम, छ्चोड़ो ना ये सब, मैं क्या शादी से मना कर रहा हूँ, देखो आज मुस्किल से तन्हाई मिली है वो भी इसलिए की आज वो बेवकूफ़ मदन खेत में है, उसका बापू होता तो आज ये पल हमें नसीब नही हो पता, वो तो रात भर खेत में घूमता रहता है”

“तुम्हे ये सब कैसे पता, क्या तुम पहले भी यहा आए हो”

“अरे नही आज पहली बार ही आया हूँ, लोगो से सुना है कि मदन का बापू खेतो की बड़े आछे से रखवाली करता है”

“पर किशोर पता नही क्यों मुझे यहा कुछ अजीब सा लग रहा है”

“पहली बार रात को खेत में आई हो ना इसलिए, और कुछ नही है…..अछा छ्चोड़ो ये सब आज इन उभारो का रस पीला दो ना”

“चुप रहो मैने कहा ना अब शादी से पहले कुछ और नही”

“छ्चोड़ो ये मज़ाक रूपा, आओ ना ऐसे ज़िद मत करो”

ये कह कर किशोर रूपा के उभारो को थाम लेता है और उन्हे मसालने लगता है

“तुम बहुत बदमास हो”

“जैसा भी हूँ तुम्हारा हूँ रूपा, अछा एक बात बताओ आज मेरा वो देखोगी”

“धत्त…. मैं पागल नही हूँ”

“क्या वो बस पागल ही देखते हैं”

“मुझे नही पता मुझ से ऐसी बाते मत करो”

“अरे तुम तो शर्मा रही हो, शादी के बाद भी तो देखोगी”

“तब की तब देखेंगे, छ्चोड़ो मुझे”

“अभी तो दबाना सुरू किया है, बाहर निकाल लो ना, एक बार इनका रस तो पी लेने दो, मुझे कब तक प्यासा रखोगी ?”

“जिस दिन पिता जी से शादी की बात करोगे उस दिन तक”
 
“अरे तब ये तन्हाई ना मिली तो, रोज रोज ऐसा मोका कहा मिलता है”

“मुझे कुछ नही पता”

“अछा चलो मैं अपना बाहर निकाल रहा हूँ, मैं तुम्हारी तरह डरता नही हूँ”

“नहीं ऐसा मत करो वरना मैं चली जाउन्गि”

“पागल हो क्या ? ऐसा कब तक चलेगा”

“तभी तो कहती हूँ कि शादी कर लो”

“शादी भी कर लेंगे रूपा समझती क्यों नही…. अछा ठीक है मैं कल ही तुम्हारे पिता जी से मिलता हूँ”

“सच कह रहे हो”

“और नही तो क्या, आज तक क्या मैने कभी झूठ बोला है ?”

“वो तो है पर…”

“पर क्या ?….चलो ना कुछ करते हैं कब तक यू ही तड़पेंगे”

“किशोर नहीं यहा मुझे डर लग रहा है… फिर कभी देखेंगे”

“अरे डरने की क्या बात है, पूर्णिमा की रात है चारो तरफ रोशनी है, अंधेरा हो तो डरे भी, ऐसी रोशनी में कैसा डर, लो पाकड़ो इसे”

किशोर रूपा का हाथ खींच कर अपने लिंग पर रख देता है और रूपा उसे डरते डरते हाथ में थाम लेती है

“इसे पहली बार छू रही हो, कुछ कहो तो सही कैसा है”

“ये ऐसा ही होता है क्या”

“हाँ रूपा ऐसा ही होता है, आचे से उपर से नीचे तक छुओ ना, शरमाती क्यों हो ?. शादी से पहले इसे आछे से जान लो ताकि शादी के बाद आराम से मज़े कर सको”

“धत्त… बेसराम कहीं के”

“चलो रूपा कुछ करते हैं”

“क्या करते हैं ?”

किशोर रूपा को बाहों में भर लेता है और उसके कान में कहता है, चलो आज संभोग करते हैं

“पागल हो गये हो क्या, मुझे यहा इतना डर लग रहा है और तुम्हे ये सब सूझ रहा है, मुझे लगता है हूमें यहा ज़्यादा देर नही रुकना चाहिए, चलो यहा से”

“अरे पगली ऐसा मोका रोज रोज कहाँ मिलता है आओ ना”

ये कह कर किशोर रूपा को बाहों में लिए लिए ज़मीन पर लेटा देता है और झट से उसका नाडा खोल कर उसकी सलवार नीचे सरका देता है

“किशोर नही”

“चुप रहो अब, वरना में कल तुम्हारे पिता जी से नही मिलूँगा, करनी है ना शादी तुमने मुझ से या फिर…”

“करनी है किशोर पर..”

“तो पर क्या ? .. चलो अछी पत्नी बन कर दीखाओ”

“नहीं किशोर रूको ना, मुझे डर लग रहा हैं यहा, फिर कभी करेंगे, आज ही करना क्या ज़रूरी है”

पर किशोर रूपा की एक नही सुनता और अपने लिंग को उसकी योनि पर रख कर ज़ोर लगा कर लिंग को उसके अंदर धकैल देता है

“आआईयईईईईईई” --- रूपा चील्ला उठती है

“रुक जाओ किशोर दर्द हो रहा है”

“एक मिनूट, मैं तोड़ा थूक लगाता हूँ, फिर आराम से होगा”

“किशोर मुझे यहा बहुत डर लग रहा है, तुम किशी और दिन कर लेना, मैं तुम्हे नही रोकूंगी, अभी चलो यहा से”

“इतनी प्यारी चाँदनी रात में कोई डरता है क्या, देखो अब चिकना हो गया है, अब आराम से अंदर जाएगा”

ये कह कर किशोर खुद को फिर से रूपा के अंदर धकैल देता है
 
“आअहह” --- रूपा फिर दर्द से कराह उठती है

“इतनी ज़ोर से चील्लाने की क्या ज़रूरत है, कोई सुन लेगा”

“मैं कब चील्लाइ किशोर अब दर्द में क्या कोई कराह भी नही सकता ?”

तभी उन्हे बहुत ज़ोर की चीन्ख सुनाई देती है जिसे सुन कर दोनो घबरा जाते हैं

किशोर ये कोई और चील्ला रहा है, वो मैं नही थी

“स्श्ह्ह्ह चुप रहो”

वो चील्लाहत उन्हे अपने करीब आती महसूस होती है और दोनो थर थर काँपने लगते हैं

“किशोर ये क्या है, मुझे बहुत डर लग रहा है, मैं कह रही थी ना कि यहा मुझे कुछ अजीब लग रहा है, चलो जल्दी यहा से”

तभी उन्हे किसी के भागने की आहट सुनाई देती है

“किशोर…” --- रूपा कुछ कहना चाहती है लेकिन किशोर उसके मूह पर हाथ रख देता है

“पागल हो क्या ? थोड़ी देर चुप नही रह सकती, बिल्कुल चुप रहो” --- किशोर रूपा के मूह पर हाथ रखे हुवे उसके कान में धीरे से कहता है

लेकिन तभी उन्हे फिर से बहुत ज़ोर की चीन्ख सुनाई देती है

“रूपा अपने कपड़े ठीक करो, पर आराम से, शांति से, कोई आवाज़ मत करना”

“ठीक है” --- रूपा अपनी गर्दन हिला कर इशारा करती है

किशोर भी अपने कपड़े ठीक करने लगता है

तभी उन्हे अपने बहुत करीब किसी के कदमो की आहट सुनाई देती है. उन्हे ऐसा लगता है जैसे कोई उनकी तरफ आ रहा है

“रूपा मेरी बात ध्यान से सुनो, चाहे कुछ हो जाए पीछे मूड कर मत देखना और जितना हो सके उतनी ज़ोर से भागना, ठीक है, और हाँ मेरा हाथ मत छोड़ना” --- किशोरे रूपा के कान में कहता है

और ये कह कर वो रूपा का हाथ पकड़ कर उसे वाहा से भगा ले चलता है, दोनो बिना पीछे देखे भागते चले जाते हैं

भागते भागते किशोर एक पत्थर से टकरा जाता है और लड़खड़ा कर गिर जाता है, रूपा गिरते गिरते बचती है

रूपा तुम भागो में आ रहा हूँ, मेरा अंगूठा चिल गया है, ये रास्ता सीधा खेतो से बाहर जा रहा है, तुम जल्दी यहा से निकलो

“मैं तुम्हे छ्चोड़ कर कहीं नही जाउन्गि किशोर, तुम्हारे साथ ही जाउन्गि जहा जाना है”

चीखने की आवाज़ बढ़ती ही जा रही है

किशोर मुस्किल से खड़ा होता है और रूपा का हाथ थाम कर फिर से भागने लगता है

इधर वर्षा, मदन को समझा रही है कि वो आज रात घर चला जाए, पर वो नही मान रहा

“ऐसे डर कर भागना अछा नही लगता वर्षा, क्या पता ये किसी का मज़ाक हो”

“ये बहुत भयानक आवाज़ है मदन, ये मज़ाक नही हो सकता”

“जो भी हो पर मैं यहीं रहूँगा, चलो तुम्हे घर छ्चोड़ आता हूँ”

तभी वर्षा को कुछ ऐसा दीखता है जिसे देख कर वो सहम जाती है

“मदन पीछे मूड कर देखो” --- वर्षा डरी हुई आवाज़ में कहती है

मदन पीछे मूड कर देखता है

“उसे बहुत दूर 2 साए दीखाई देते हैं”

“वर्षा तुम इस पेड़ के पीछे चुप जाओ मैं देखता हूँ कि बात क्या है”,

“नही मदन मुझे अकेला मत छ्चोड़ो मुझे बहुत डर लग रहा है”

“ठीक है फिर, चलो हम दोनो पेड़ के पीछे चलते हैं”

दौनो पेड़ के पीछे छुप जाते हैं

2 साए जब करीब आते हैं तो मदन मन ही मन कहता है

“अरे ये तो किशोर और रूपा हैं, ये इस वक्त यहा क्या कर रहे हैं ? क्या इन्होने ही यहा ये तूफान मचा रखा है”

जब वो बहुत करीब आ जाते हैं तो मदन वर्षा को वहीं पेड़ के पीछे रुकने का इशारा कर के उन दोनो के सामने आ जाता है
 
“किशोर ये क्या कर रहे हो तुम यहा, और रूपा तुमसे ये उम्मीद नही थी कि तुम इस तरह रात को खेत में हंगामा करती फ़िरोगी” --- मदन ने गुस्से में कहा

“मदन मेरी बात सुनो हमने कोई हंगामा नही किया, पता नही कौन है वाहा, हम तो डर के मारे यहा भाग कर आए हैं” --- किशोर ने कांपति आवाज़ में कहा
 
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