Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के संग - Page 3 - SexBaba
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Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के संग

‘अच्छा बाबा, मैंने आपको माफ़ किया… अब खुश?’ मैंने फिर से उसका चेहरा अपने हथेलियों में लिया और उसकी आँखों में देखते हुए कह दिया।
‘ऐसे नहीं… पहले मुझे यकीन होने दीजिये कि आपने सच में मुझे माफ़ कर दिया…’ उसने फिर से अपनी जिद भरी बातें कही।
‘तो अब तुम्हीं बताओ कि क्या करूँ जिससे तुम्हें यकीन हो जाए…’ मैंने सवाल किया।
‘अगर आपने सच में मुझे माफ़ किया है तो ये जेल मैं खुद आपके जलन वाली जगह पे लगाऊँगी, तभी मुझे यकीन होगा..’ उसने एक ही सांस में मेरी आँखों में आँखें डालकर बिना अपनी पलकें झपकाए कहा।
वंदना की बात सुनकर एक पल के लिए तो मैं स्तब्ध हो गया… ये लड़की क्या कह रही है… कसम से कहता हूँ दोस्तो, अगर मैंने उसकी माँ रेणुका को नहीं चोदा होता तो शायद उसकी इस मांग पर मैं फूले नहीं समाता। इतनी खूबसूरत लड़की और वो चाहती थी कि वो मेरे जाँघों पे जेल क्रीम से मालिश करे… कौन मर्द ये नहीं चाहेगा कि एक बला की खूबसूरत हसीना अपने नाज़ुक नाज़ुक हाथों से उसकी मालिश करे और वो भी जाँघों पे। लेकिन पता नहीं क्यूँ मुझे अचानक से रेणुका का ख़याल आने लगा.. कहीं मैं उसके विश्वास के साथ दगेबाज़ी तो नहीं कर रहा… अगर उसे पता चला तो वो क्या समझेगी.. तरह तरह के सवाल मेरे मन में आने लगे।
‘क्या हुआ… क्या सोचने लगे… देखा ना मुझे पता था कि आपने मुझे माफ़ नहीं किया…’ वंदना ने मेरा ध्यान तोड़ते हुए फिर से रोने वाली शक्ल बना ली।
‘अरे बाबा ऐसा कुछ भी नहीं है… तुम समझने की कोशिश करो, मैं यह जेल खुद ही लगा लूँगा… मैं वादा करता हूँ।’ मैंने उसे समझाते हुए कहा।
‘मुझे कुछ नहीं सुनना.. मैंने कह दिया सो कह दिया…’ उसने जिद पकड़ ली।
अब मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ… मुझे इतना पता था कि अगर उसने मेरी जाँघों को छुआ तो मैं अपने ज़ज्बातों पे काबू नहीं रख नहीं सकूँगा और लण्ड तो आखिर लण्ड ही होता है… वो तो अपना सर उठाएगा ही… हे भगवन, अब आप ही कुछ रास्ता दिखाओ…!!
शायद भगवन ने मेरी सुन ली और एक रास्ता दिखा दिया… हुआ यूँ कि अचानक से बिजली चली गई और पूरे कमरे में अँधेरा छा गया…
हम दोनों एक दूसरे का हाथ थामे चुपचाप खड़े थे… कमरे में सिर्फ हमारी साँसों की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
मैंने एक बार फिर से उसे समझाने के लिए उसके हाथों को जोर से पकड़ा और उसके चेहरे के पास अपना चेहरा ले जाकर धीरे से कहा- यह ठीक नहीं है वंदना… मान भी जाओ..देखो हमें देर भी हो रही है… और मैंने कहा न कि मैं दवा लगा लूँगा।
मैंने धीरे से फुसफुसा कर उसके कान में कहा।
मेरे बोलते वक़्त मेरी साँसें गर्म हो चुकी थीं और उसके गालों पे पड़ रही थीं। शायद इससे उसकी आग और भड़क गई और उसने भी उसी तरह फुसफुसाते हुए गर्म साँसों के साथ मेरे कान के पास अपने होंठ लाकर कहा- प्लीज समीर जी… मान जाइये, मेरी खातिर… मुझे लगेगा कि मैंने जो गलती की है उसके बदले आपकी मदद कर रही हूँ… प्लीज !
उसने अपने साँसों की खुशबू मेरे चेहरे पे छोड़ते हुए इतने सेक्सी अंदाज़ में कहा कि मेरे तो रोम रोम सिहर उठे।
आप सबने यह महसूस किया होगा कि जब इंसान वासना की आग में गर्म हो जाता है तो उसकी फुसफुसाहट काम भावना का परिचय देती है, ऐसा ही कुछ मुझे उस वक़्त महसूस हो रहा था।
‘मैं जानती हूँ कि आपको शर्म आ रही है… लेकिन शायद ऊपरवाले ने आपकी इस समस्या का हल भी भेज दिया है.. बिजली चली गई है और पूरा अँधेरा है… अब तो आपको शर्माने की भी कोई जरूरत नहीं है.. और अगर अब भी आप चाहोगे तो मैं अपनी आँखें बंद कर लूँगी… लेकिन दवा लगाए बिना नहीं जाऊँगी।’ अपनी जिद और अपनी मंशा ज़ाहिर करते हुए उसने मुझे पूरी तरह से विवश करते हुए मुझे धीरे से बिस्तर की तरफ धकेलते हुए बिठा दिया।
अँधेरे की वजह से वो कुछ देख नहीं पायेगी, इस बात की संतुष्टि तो थी लेकिन एक और भी डर था कि अँधेरे में उसका हाथ जाँघों से होता हुआ कहीं मेरे भूखे लंड पर गया तो फिर वंदना को चुदने से कोई नहीं बचा पायेगा… और मैं यह चाहता नहीं था क्यूंकि अब तक मेरे दिमाग से रेणुका का ख्याल गया नहीं था… और पिछले 3–4 दिनों से रेणुका को चोदा नहीं था.. अरविन्द भैया की वजह से हमें मौका नहीं मिला था।
और मैं जानता था कि मेरा लंड अगर उसके छूने से जाग गया तो अपना पानी झाड़े बिना नहीं मानेगा।
 
इस उहापोह की स्थिति में मैंने एक फैसला किया और बिस्तर से उठ कर रसोई की तरफ गया।
मेरे अचानक यूँ उठने से वंदना को अजीब सा लगा और अँधेरे में ही उसने टटोलते हुए मेरा हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा- क्या हुआ… कहाँ जा रहे हैं आप?
वंदना ने चिंता भरे लहजे में पूछा।
‘बस अभी आया… तुम यहीं रुको।’ मैंने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा और रसोई में चला गया।
पहले तो टटोलकर फ़्रिज़ का दरवाज़ा ढूंढा और पानी की बोतल निकाल कर एक ही घूंट में पूरी बोतल खाली कर दी… मेरे सूखते हुए गले को थोड़ी सी राहत मिली।
फिर मैं फ़्रिज़ के ऊपर से जैसे तैसे मोमबत्ती तलाशने लगा और किस्मत से एक मोमबत्ती मिल भी गई, वहीं पास में माचिस भी मिल गई और मैंने मोमबत्ती जला ली।
जलती हुई मोमबत्ती लेकर मैं वापस कमरे में आया और बिस्तर के बगल में रखे मेज पर उसे ठीक से लगा दिया। मोमबत्ती की हल्की सी रोशनी में वंदना का दमकता हुआ चेहरा मेरे दिल पर बिजलियाँ गिराने लगा।
कसम से कह रहा हूँ, उस वक़्त उसे देख कर ऐसा लग रहा था मानो कोई खूबसूरत सी परी सफ़ेद कपड़ों में मेरे सामने मेरा सर्वस्व लेने के लिए खड़ी हो… मैं एक पल को उसे यूँ ही निहारता रहा।
‘अब आइये भी… अब देरी नहीं हो रही क्या?’ वंदना ने शरारत से मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और मुझे बिस्तर पर आने को कहा।
‘हे ईश्वर, कुछ भूल होने से बचा लेना..’ मैंने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की और धीरे से बिस्तर पे बैठ गया।
मैं उस वक़्त सिर्फ एक तौलिये में था सिर्फ अन्दर एक वी कट जॉकी पहनी हुई थी और ऊपर बिल्कुल नंगा था।
वंदना अब भी बिस्तर के बगल में हाथों में जेल लिए खड़ी थी।
उसने मुझे अपने पैरों को ऊपर करके सीधे लेट जाने को कहा, मैं चुपचाप उसकी बात सुनते हुए अपने पैरों को उठा कर बिल्कुल सीधा लेट गया।
उसने मुझे बिस्तर के थोड़ा और अन्दर की तरफ धकेला और फिर मेरे जाँघों के पास मुझसे बिल्कुल सट कर बैठ गई।
वंदना इस तरह बैठी कि उसका चेहरा मेरी टांगों की तरफ था और सामने मोमबत्ती जल रही थी जिस वजह से मुझे बस उसके शरीर के पीछे का हिस्सा रोशनी की वजह से सिर्फ एक आकार की तरह नज़र आ रहा था। मेरे कूल्हे और उसके कूल्हे बिल्कुल चिपके हुए थे जो अनायास ही मुझे गर्मी का एहसास करा रहे थे। 
उसके शरीर से इतना चिपकते ही मेरे लंड ने हरकत शुरू कर दी और धीरे धीरे अपना सर उठाने की कोशिश करने लगा, लेकिन मन में द्वन्द चल रहा था इस वजह से मेरा लंड पूरी तरह सख्त न होकर आधा ही सख्त हुआ और बस मेरी ही तरह वो बेचारा भी उहापोह की स्थिति में फुदक कर अपनी बेचैनी का एहसास करवा रहा था।
अब वंदना ने धीरे से मेरे कमर में लिपटे तौलिये को खोलने के लिए अपने हाथ बढ़ाये और तौलिये का एक सिरा पकड़ कर खींचना शुरू किया। मैंने अपना एक हाथ बढ़ा कर उसे रोकने की कोशिश की लेकिन उसने मेरा हाथ हटा दिया और तौलिये को पूरी तरह से कमर से खोल दिया।
अब स्थिति यह थी कि मैं खुले हुए तौलिये के ऊपर बस एक जॉकी में लेटा हुआ था। उसने अपने हाथ मेरे पैरों पे रख दिया और उन्हें फ़ैलाने का इशारा किया.. उफ्फ्फ… उसके नर्म हाथ पड़ते ही मेरे पैर एक बार तो काँप ही गए थे।
ऐसा पहली बार नहीं था जब मैं किसी लड़की के सामने ऐसे हालात में था… लेकिन उन लड़कियों या औरतों को मैं मन से चोदने के लिए तैयार रहता था और इस बार बात कुछ और थी।
मैं वंदना के साथ इस हालत में होकर भी उसे चोदने के बारे में सोच नहीं पा रहा था… अगर रेणुका का ख्याल दिमाग में न होता तो अब तक वंदना मेरी जगह इस हालत में लेती होती और मैं उसकी जाँघों की मालिश कर रहा होता।
खैर, मोमबत्ती की रोशनी में जैसे ही वंदना ने मेरे जाँघों पे पड़े छालों को देखा उसके मुँह से एक सिसकारी निकल गई- हे भगवन… कितना जल गया है! और आप कह रहे थे कि कुछ हुआ ही नहीं?
उसकी आवाज़ में फिर से मुझे रोने वाली करुण ध्वनि का एहसास हुआ।
 
‘अरे कुछ नहीं हुआ बाबा.. तुम यूँ ही चिंता कर रही हो!’ मैंने स्थिति को सँभालते हुए कहा और अपनी कमर से ऊपर उठ कर बैठ सा गया।
‘चुपचाप लेटे रहिये… अब मैं आपकी कोई बात नहीं सुनूँगी।’ उसने मेरे मुँह को अपनी हथेली से बंद करते हुए मुझे धीरे से धकेल कर फिर से सुला दिया।
अब मैं चुपचाप लेट गया और इंतज़ार करने लगा कि वो जल्दी से जल्दी दवा लगाये और यहाँ से जाए… वरना पता नहीं मैं क्या कर बैठूं…
वंदना ने अपनी उँगलियों में जेल लिया और मेरे छालों पे धीरे धीरे से उँगलियाँ फेरने लगी। उसकी उँगलियों ने जैसे ही मेरे छालों को छुआ, मुझे थोड़ी सी जलन हुई और मैं सिहर गया। 
मेरी सिहरन का एहसास वंदना को हुआ और तुरंत अपना एक हाथ मेरे सीने पे रख दिया और सहलाने लगी जैसा कि हम बच्चों को चुप करने के लिए करते हैं… उसकी उँगलियाँ अब मेरे सीने के बालों को सहला रही थी और दूसरी तरफ दूसरे हाथ कि उँगलियाँ मेरे छालों पे जेल लगा रही थी.. उस जेल में कुछ तो था जिसकी वजह से एक अजीब सी ठंढक का एहसास होने लगा, मुझे सच में आराम मिल रहा था।
लेकिन इस तरह से जाँघों और सीने पे एक साथ नाज़ुक नाज़ुक उँगलियों की हरकत ने अब आग में घी का काम करना शुरू कर दिया। हम दोनों बिल्कुल चुप थे और बस लम्बी लम्बी साँसे ले रहे थे।
उसके हाथों की नजाकत ने अपना रंग दिखाया और मेरे शेर ने अब पूरी तरह से अपना सर उठा लिया.. वी कट जॉकी में जब लंड अपने पूरे शवाब में आ जाता है तो आप सबको भी पता है कि क्या हालत होती है.. मेरे लंड ने भी तम्बू बना दिया और रुक रुक कर फुदकने लगा… यूँ फुदकने की वजह से शायद वंदना का ध्यान मेरे लंड पे जरूर चला गया होगा…
इस बात का एहसास तब हुआ जब वंदना का वो हाथ जो मेरे सीने को सहला रहा था उसका दबाव बढ़ने लगा और जो हाथ जाँघों पे था वो अब धीरे धीरे लंड के करीब जाने लगा।
मैं समझ गया कि अगर उसने एक बार भी मेरे लंड को छू लिया या पकड़ लिया तो मैं अभी उसे पटक कर उसके नाज़ुक चूत में अपना विकराल लंड डाल दूंगा और उसे चोदे बिना नहीं छोडूंगा।
उसकी साँसों की गर्मी और रफ़्तार का एहसास मुझे होने लगा था।
मैंने यह सब रोकने का फैसला किया और अपने सीने पे पड़े उसके हाथ को पकड़ कर उसे टूटे फूटे आवाज़ में रोका।
‘अ अ अब रहने दो… वंदना अ अ अब आराम है मुझे… मैं बाद में फिर से लगा लूँगा।’ मैंने कांपते हुई आवाज़ में कहा।
मेरे इतना कहने पर वो मेरी तरफ मुड़ गई और मेरे ऊपर झुक सी गई… धीरे धीरे उसका मुँह मेरे मुँह के पास आने लगा… लेकिन उसका एक हाथ अब भी मेरी जाँघों पर ही था जो अब भी अपना काम कर रहे थे और मेरे जाँघों को सहला कर मुझे पागल बना रहे थे..
तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी कल्पना मैंने नहीं की थी, उसने बिना कुछ कहे अपने होठों को मेरे होठों पे रख दिया और अपनी आँखें बंद करके एक लम्बा सा चुम्बन करने लगी… उसने मेरे दोनों होठों को अपने होठों में बंद कर लिया चूमने लगी।
मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ… और तभी उसने वो हरकत भी कर दी जिससे मैं डर रहा था.. उसने अपना हाथ मेरे जॉकी के ऊपर से मेरे टन टन कर रहे लंड पे रख दिया और धीरे से दबा दिया।
 
हे ईश्वर, यह क्या हो रहा है…
मैंने एक जोर की सांस ली और अपने होंठ उसके होठों से छुड़ा कर उसकी तरफ देखा, वंदना की आँखों में वासना के लाल डोरे साफ़ दिखाई दे रहे थे…
एक दो सेकंड तक हम एक दूसरे को यूँ ही देखते रहे… इस दौरान उसका हाथ स्थिर होकर मेरे लंड पे ही था और मेरा लंड उसके हाथों के नीचे दबा हुआ ठुनक रहा था।
मैं जानता था कि अब रुकना मुश्किल है… लेकिन मैंने फिर भी एक अंतिम प्रयास किया और उठ कर बैठ गया।
मेरे उठने से वंदना को अपनी हरकत का एहसास हुआ और वो झट से उठ कर बाहर की तरफ भाग गई।
मेरा गला सूख गया और मुझे पसीने आ गए, कुछ देर मैं उसी हालत में बैठा रहा और सोचने लगा कि आखिर करूँ तो क्या करूँ… लंड था जो कि अब वंदना के हाथों का स्पर्श पाकर अकड़ गया था और बस उसे चोदना चाहता था लेकिन मुझे रेणुका से बेवफाई का एहसास ऐसा करने से मना कर रहा था।
इस असमंजस की स्थिति ने मुझे पूरी तरह से उलझन में डाल दिया था। 
इससे पहले भी मेरे ऐसे एक दो सम्बन्ध रहे थे जिसमे मैं एक ही घर की माँ और बेटी दोनों को बड़े चाव से चोदा था और उनके साथ चुदाई का भरपूर मज़ा लिया था… लेकिन इस बार पता नहीं क्यूँ मैं रेणुका की तरफ कुछ इस तरह से खिंचा चला गया था कि मुझे अब ऐसा लगने लगा था कि अगर मैंने वंदना को चोदा तो यह रेणुका के साथ दगेबाज़ी होगी… लेकिन जो आग आज वंदना लगा गई थी वो शांत भी हो तो कैसे…
इधर मेरा लंड अब भी ठुनक ठुनक कर मुझे यह एहसास दिला रहा था कि चूत मिल रही है तो बस चोद दो… मैंने मोमबत्ती बुझा दी और वहीँ बिस्तर पर लेट कर अपने लंड को बाहर निकल कर मसलने लगा और मुठ मारने लगा…
मुझे पता था कि इस तरह अकड़े हुए लंड को लेकर मैं बाहर नहीं जा सकता था।
मैंने लंड को रगड़ना शुरू किया और रेणुका की हसीं चूचियों और मखमली चूत को याद करने लगा… लेकिन कमबख्त मेरे दिमाग में अब वंदना के हाथों का दबाव याद आने लगा और मुझे इस बात पर बहुत हैरानी हुई कि जब मैंने वंदना की अनदेखी गोल मटोल चूचियों और सुनहरे बालों से भरी प्यारी सी रसदार चूत का ख्याल अपने दिमाग में लाया तो बरबस ही मेरे लंड ने एक ज़ोरदार पिचकारी के साथ ढेर सारा लावा उगल दिया और मैं लम्बी लम्बी साँसे लेता हुआ वहीं बिस्तर पर ढेर हो गया।
करीब दस मिनट तक ऐसे ही रहने के बाद मैं उठा और जल्दी से कपड़े बदलने लगा… लेकिन अब भी मैं यही सोच रहा था कि इतना सब होने के बाद मैं अब वंदना के साथ सहज रह पाऊँगा या नहीं.. और अभी तुरंत उसके साथ उसके दोस्त के घर पर जाना था… उसके साथ कैसे पेश आऊँगा या वो कैसे पेश आएगी.. कैसी बातें होंगी अब हमारे बीच?!
इसी तरह के ख्यालों में डूबा मैं तैयार हो रहा था कि तभी किसी के आने की आहट सुनाई दी और मैंने बाहर झाँका। मैंने देखा कि रेणुका मेरे कमरे की तरफ चली आ रही थी… उसकी आँखों में एक अलग सी चमक थी और वो बहुत खुश लग रही थी.. तब तक बिजली आ चुकी थी और मैं उसके चेहरे के हर भाव को अच्छी तरह से देख पा रहा था।
उसने आते ही मुझे पीछे से जकड़ लिया और मुझसे लिपट गई- क्या बात है समीर बाबू… बड़े हैंड्सम लग रहे हो?’ उसने बड़े ही प्यार से कहा।
उसकी इन्ही अदाओं पे तो मर मिटा था मैं… मैंने उसे पकड़ कर अपने सामने किया और उसे जोर से अपने गले से लगा लिया- आज बड़ा चहक रही हैं आप… क्या बात है… यूँ इतना खुश और इतनी सजी संवरी तो कभी नहीं देखा… कोई ख़ास बात है क्या?उसे अपने सीने में और भी भींचते हुए पूछने लगा।
 
‘उफ्फ्फ… इतनी जोर से मत भींचों न… पूरा बदन दुःख रहा है… और इन पर थोड़ा रहम करो, बेचारी सुबह से मसली जा रही हैं…’ रेणुका ने शरारत भरे अंदाज़ में एक मादक हंसी के साथ अपनी चूचियों की तरफ इशारा किया।
उसकी बात मुझे खटकने लगी… मैंने उसे झट से अपने से थोड़ा अलग किया और उसकी चूचियों को अपनी हथेलियों में पकड़ कर दबाकर देखने लगा।
‘उफ्फ्फ… बोला ना… प्लीज आज इन्हें छोड़ दो.. इनकी हालत बहुत खराब है और पता नहीं रात भर में इन बेचारियों को और कितना जुल्म सहना पड़ेगा…’ रेणुका ने सिसकारी भरते हुए अपनी एक आँख दबा कर मुस्कुराते हुए कहा।
उसकी चूचियों को दबाकर सच में यह पता लग गया कि उन्हें बहुत ही बेदर्दी से मसला गया था और उसका सारा रस निचोड़ निचोड़ कर पिया गया था… यानि आज सुबह से… शायद आज अरविन्द भैया ने सुबह से जमकर रेणुका कि चुदाई की थी… और आगे भी रात भर कुछ ऐसा ही प्लान था… तभी तो वंदना के साथ मुझे भेज कर वो दोनों अपने लिए एकांत का इंतज़ाम कर रहे थे… शायद तभी रेणुका की आँखों में वो चमक देखी थी जब अरविन्द भैया मुझे अपने घर में बुलाकर वंदना के साथ जाने को कह रहे थे… और इस बात से रेणुका भी बहुत खुश थी…
हे ईश्वर… एक तरफ तो मैं रेणुका के प्यार में पागल हुआ जा रहा था… उसका दिल न दुखे इस बात से डर कर मैं वंदना जैसे हसीं माल को छूने से भी कतरा रहा था… और यहाँ रेणुका है जो बड़े मज़े से अपनी दिन भर कि चुदाई की दास्ताँ सुना रही थी… 
सच कहूँ तो एक पल के लिए मेरा दिल टूट सा गया… मुझे रेणुका के ऊपर गुस्सा आने लगा… मैं यह सोचने लगा कि रेणुका मेरे अलावा किसी और से कैसे चुद सकती है… जिन चूचियों को मैं अपनी आँखों से ओझल नहीं होने देना चाहता उन पर कोई और कैसे हाथ लगा सकता है… जिस मखमली चूत को मैं चाट चाट कर उनका रस पीता हूँ उस रसीली चूत में कोई और कैसे अपना लंड डाल सकता है??
मुझे जलन होने लगी और मेरे मन में अजीब अजीब से ख्याल आने लगे… 
‘क्या हुआ मेरे समीर… किस सोच में डूब गए… तुम्हे कहीं इस बात से बुरा तो नहीं लग रहा कि मैं आज अपने पति के साथ बहुत ही खुशनुमा पल गुजार रही हूँ…’ रेणुका ने अजीब सी शकल बनाकर मुझसे पूछा और सवाल पूछते पूछते अपना हाथ सीधे मेरे लंड परलेजा कर दबाने लगी।
जी में तो आया कि खींच कर एक थप्पड़ लगा दूँ उसके गालों पर… लेकिन फिर मैंने अपने आपको संभाला और उसे अपने से अलग कर दिया।
‘मुझे बुरा क्यूँ लगेगा… आखिर वो आपके पति हैं और आपके ऊपर पहला हक उनका ही है… मैं तो बस कुछ दिनों का मेहमान हूँ…’ मैंने दुःख भरे गले से मुस्कुराते हुए कहा और इस बात का ख्याल रखा कि उन्हें मेरी नाराज़गी का एहसास न हो।
‘यह बात तो बिल्कुल ठीक है… आखिर वो हैं तो मेरे पति… और आज कई बरसों के बाद उनका प्यार मुझे फिर से जवान कर रहा है… और हाँ, रही बात आपकी तो आप को तो मैंने अपना सब कुछ दे दिया है लेकिन आपका नंबर तो उनके बाद ही आता है न…’ बड़े ही सफाई से रेणुका ने यह बात कह दी और मुझे इस बात का एहसास दिला दिया कि मैं बेवकूफों की तरह उनके लिए प्यार में मारा जा रहा था।
आखिर मैंने सच्चाई को कबूल करने मे ही भलाई समझी और अपने आपको समझाने की कोशिश करने लगा… इतना आसान भी नहीं था लेकिन सच तो सच ही था।
‘चलिए अब देर हो रही है… वंदना कब से इंतज़ार कर रही है… हम दोनों के मिलने के लिए तो बहुत वक़्त पड़ा है।’ रेणुका ने मुझसे अलग होकर मुझे चलने का इशारा किया।
 
उसकी आखिरी बात ने मेरा दिल और भी तोड़ दिया… उसने इतनी आसानी से कह दिया कि उसके और मेरे मिलने के लिए बहुत वक़्त पड़ा है… मानो हमारे मिलन का कोई खास महत्त्व ही नहीं हो उसके लिए…!
मैं समझ गया था कि जिस रेणुका में मैं अपना प्यार तलाश रहा था वो रेणुका सिर्फ मुझसे अपने जिस्म की जरूरत पूरी कर रही थी… 
रेणुका मुझसे मिल कर धीरे धीरे अपनी कमर और चूतड़ मटकाती हुई मुझे अपनी कामुक चाल दिखा कर चली गई… मैं भारी मन से उसे जाते हुए देखता रहा..
मैंने एक बात नोटिस करी.. पहले जब भी रेणुका मुझसे लिपटती और मेरे लंड पे हाथ फेरती मेरा लंड फनफना कर खड़ा हो जाया करता था… लेकिन आज ऐसा नहीं हुआ… शायद मेरे टूटे हुए दिल की वजह से?

खैर मैं बुझे हुए मन से रेणुका के घर तक गया और बाहर से ही वंदना को आवाज़ लगाई…
एक दो बार पुकारने के बाद ही वंदना अपने हाथों में एक बड़ा सा डब्बा लेकर बाहर आई, शायद अपने दोस्त के लिए गिफ्ट लिया होगा…
मेरा मन उदास था और थोड़ी देर पहले वंदना और मेरे बीच हुए उस हादसे की वजह से मैं उसकी तरफ देख नहीं पा रहा था… लेकिन एक बार जल्दी में जब मैंने उसकी आँखों में देखा तो उसकी आँखें वैसे ही लाल दिखाई दी जैसी उस वक़्त हो गई थीं और उसके चेहरे पे एक प्रणय भरा निवेदन सा था।
मैंने मुस्कुरा कर झट से अपनी नज़रें हटा लीं और इधर उधर देखने लगा। 
तभी अन्दर से अरविन्द भैया अपे कार की चाभी लेकर बाहर निकले और पीछे पीछे रेणुका भी मुस्कुराते हुए आई। 
‘समीर, मेरी कार ले जाइए… रात में शायद आप लोगों को लौटने में देर हो जाए और मौसम भी कुछ ठीक नहीं है… और इतनी रात गए इस शहर में बाइक से जाना सही नहीं होगा…’ अरविन्द भैया ने मेरी तरफ देखते हुए कहा और अपने गराज से कार निकलने लगे।
इसी बीच रेणुका हम दोनों के पास आई… वंदना को उसने कुछ कहा और फिर वो मेरी तरफ मुड़ी- आराम से आइयेगा… रात का वक़्त है हड़बड़ाने की कोई जरूरत नहीं है… कहीं कोई हादसा न हो जाए।
उसने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा।
मैं उसका इशारा समझ गया था… और उसकी बातों का मतलब समझते ही एक बार फिर से मेरे टन बदन में आग लग गई… असल में रेणुका अपने पति के साथ तन्हाई में रहना चाह रही थी।
‘अजी अगर आप कहें तो आज हम आते ही नहीं हैं… फिर अप अपने दिल के सारे अरमान पूरे कर लीजियेगा।’ मैंने गुस्से में बनावटी हंसी दिखाते हुए रेणुका को आँख मारते हुए कहा।
‘फिर तो मजा आ जायेगा।’ उसने भी बेशर्मी से कह दिया।
मेरा गुस्सा और भी बढ़ गया… मैं उसके पास से हटकर अरविन्द भैया के पास चला गया और गाड़ी निकलने में उनकी मदद करने लगा।
गाड़ी निकल गई और हम दोनों यानि वंदना और मैं उसमें बैठ कर चल दिए।
घर से थोड़ी दूर आगे निकलने के बाद वंदना ने कार के म्यूजिक सिस्टम को ओन कर दिया और एक रोमांटिक गाना बजा दिया…
अगर तुम मिल जाओ…
ज़माना छोड़ देंगे हम… 
गाना शुरू होते ही उसने अपनी नज़रें मेरी तरफ कर लीं और मुझे एकटक देखने लगी…
मेरा ध्यान सीधे रास्ते पर था लेकिन मुझे यह पता चल रहा था कि वो टकटकी लगाये मुझे ही देख रही है… मैंने धीरे से अपनी नज़रें उसकी तरफ करीं और उसकी आँखों में देखा।
जैसे ही मैंने देखा, उसने अपने चेहरे पे मुस्कराहट बिखेर दी और अपनी आँखें बड़ी बड़ी करके बिना पलकें झपकाए देखने लगी… दो पल के बाद उसकी आँखों को मैंने फिर से डबडब होते देखा।
 
मैंने अचानक से ब्रेक दबाया और गाड़ी रोक दी..
‘नाराज़ हो?’ वंदना ने रुंधे हुए गले से मेरी तरफ देखते हुए गेयर पर रखे मेरे हाथ पे अपना हाथ रख कर पूछा।
उसकी आँखों में उस वक़्त इतना प्रेम और इतनी करुणा थी कि मेरा दिल पसीज गया और मैंने अपने बाएँ हाथ से उसके गालों को पकड़ कर प्यार भरे अंदाज़ में उसकी आँखों में देखते हुए न में सर हिलाया।
मेरा यह स्नेह एक बार फिर से उसे रोने पर मजबूर कर गया और उसकी आँखों से आँसुओं की बरसात होने लगी, झट से आगे बढ़ कर वो मेरे सीने से लिपट गई और जोर जोर से रोने लगी…
‘समीर… मैं आपसे बहुत प्यार करने लगी हूँ… बोलो ना… आप मुझसे नाराज़ तो नहीं हो ना… मैं आपके बगैर नहीं रह सकती… मुझसे नाराज़ मत होना.. मैं मर जाऊँगी।’ एक ही सांस में वंदना ने रोते हुए मेरे सीने से चिपक कर वो सारी बातें कह डालीं जो प्यार में पागल हो चुकी एक लड़की अपने चाहने वाले से कहती है।
मैं हक्का बक्का सा उसकी बातें सुनता रहा और उसके बालों को सहलाता हुआ उसे चुप करता रहा।
‘पागल… ऐसे कोई रोता है भला… तुम भी मुझे बहुत अच्छी लगती हो… लेकिन ये प्यार व्यार के बारे में मैंने कभी नहीं सोचा है… अब रोना बंद करो प्लीज!’ मैंने उसे बड़े प्यार से सहलाते हुए चुप करने की कोशिश करते हुए कहा।
जिस जगह हमने गाड़ी रोकी थी, वहाँ से कुछ लोग गुजर रहे थे और हम दोनों को ऐसी हालत में देख कर घूर रहे थे। छोटे शहरों में ऐसा लाज़मी है।
‘अब उठ जाओ..देखो लोग देख रहे हैं… और ये रोना बंद करो वरना तुम्हारी सहेलियाँ कहेंगी कि हमने आपको रुलाया है और मैं भी नहीं चाहता कि मेरी प्यारी वंदना के खूबसूरत से चेहरे पे आँसुओं के कोई भी निशाँ पड़ें… न आज न ही आगे कभी… तुम मुझे वैसे ही पसंद हो, शरारती और हमेशा हंसती हुई…’ मैंने इतना कहकर वंदना को सीधा किया और फिर अपनी जेब से रुमाल निकाल कर उसके आँसू पोंछे।
मेरी बातों ने वंदना को इतना खुश कर दिया कि वो चहक उठी और उसने मुझे पकड़ कर सीधा मेरे होठों पे चूम लिया। जब उसने मुझे चूमा तब बाहर से किसी ने हमें देख लिया और वंदना ने भी यह देखा कि कोई हमें देख रहा है।
‘इस्स्स… बदमाश… यहीं रोकनी थी गाड़ी आपको… कैसे घूर रहे हैं सब? अब चलो यहाँ से!’ वंदना ने लजाते हुए कहा और अपनी सीट पर वापस ठीक से बैठ गई।
‘अच्छा जी… शरारत आप करो और बदमाश हम…’ मैंने भी चुटकी लेते हुए कहा।
‘गंदे कहीं के… अब चलो भी!’ प्यार और मनुहार से उसने मेरे जांघों पे एक मुक्का मारा और हंसने लगी।
 
अचानक से पूरा महल खुशनुमा हो गया… मेरे मन पे परा बोझ भी न जाने कहाँ खो गया.. रेणुका ने जो गुस्सा दिलाया था वो वंदना के प्यार ने कहीं दूर भगा दिया था। वंदना बहुत खुश हो गई थी… उसके चेहरे की चमक और होठों की मुस्कराहट ने मेरा सारा दर्द भुला दिया था।
मेरे दिल से एक आवाज़ आई कि बेटा समीर… जिस प्यार की तलाश में तू कहीं और भटक रहा था वो तुझे वंदना से ही मिल सकता है… तू खामख्वाह रेणुका के पीछे दिल लगा रहा है।
यह बात दिमाग में आते ही मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और मैं मुस्कुराता हुआ वंदना की तरफ देख कर गाड़ी चलाता रहा… शायद हमारे इस ख़ुशी में ऊपर वाला भी शामिल होना चाहता था… इसीलिए बाहर ज़ोरों से बारिश होने लगी और जोर से एक बिजली चमकी जिससे डर कर वंदना मुझसे चिपक सी गई।
‘हाहाहा… डरपोक… डर गई?’ मैंने वंदना का मजाक उड़ाते हुए कहा।
‘अच्छा जी… मैं डरपोक… अभी बताती हूँ..’ इतना बोलकर उसने आगे बढ़ कर मेरे गालों के अपने दांत गड़ा दिए।
‘आउच… बदमाश… बना दिए न दांतों के निशान..अब जब आपकी सहेलियाँ पूछेंगी तब क्या जवाब दूँगा? मैंने मुस्कुराते हुए पूछा।
‘कह दीजियेगा कि रास्ते में एक जंगली बिल्ली ने काट खाया…’ शरारत भरे शब्दों में वंदना ने कहा और ठहाके लगा कर हंसने लगी।
इसी तरह हंसी मजाक करते हुए हम थोड़ी देर में उसकी सहेली के यहाँ पहुँच गए… बारिश अब भी बड़े ज़ोरों से हो रही थी।
गाड़ी से निकल कर हम भागते हुए वंदना की सहेली के घर के भीतर घुसे, अन्दर बड़ा ही खुशनुमा सा माहौल था, ढेर सारी लड़कियाँ सच कहूँ तो खूबसूरत लड़कियाँ तरह तरह के आधुनिक पोशाकों में इधर उधर इठलाती हुई चहल कदमी कर रही थीं और मद्धिम सी आवाज़ में संगीत का शोर भी फैला हुआ था।
पूरा हॉल चमकीले सितारों से और रंग बिरंगे बलून से भरा पड़ा था।
मैंने नज़र दौड़ाई तो वहाँ कुछ लड़कों को भी देखा जो शायद वंदना और उसकी सहेली के सहपाठी रहे होंगे। सब लोग अपनी मस्ती में खोये हुए थे।
हम जैसे ही हॉल में दाखिल हुए तभी हॉल के एक कोने से लाल रंग की खूबसूरत सी ड्रेस में बिल्कुल किसी बार्बी डॉल की तरह वंदना के उम्र की ही लड़की आई और ख़ुशी से चिल्लाते हुए वंदना को अपने गले से लग लिया।
‘शैतान… अब समय मिला है तुझे… ये कोई वक़्त है… कहाँ थी अब तक?’ एक ही सांस में सारे सवाल पूछ लिए उसने।
उफ्फ… ये लड़कियाँ… सारी की सारी एक जैसी ही होती हैं… सबके लबों पे बस सवाल ही सवाल होते हैं!
‘अरे यार माफ़ कर दे… एक तो मौसम इतना खराब है और ऊपर से ये जनाब नखरे दिखा रहे थे।’ वंदना ने अपनी सहेली को मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा।
‘ओह… तो आप हैं समीर बाबू… धन्य भाग हमारे जो आपके दर्शन हो गए।’ वंदना की सहेली ने मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देखकर कहा और फिर वंदना को देख कर आँख मारी।
मुझे कुछ अजीब सा लगा, उसकी सहेली की बातों से ऐसा महसूस हुआ मानो वंदना और उसके बीच मेरे बारे में बहुत कुछ बातें हो चुकी हों शायद… मेरे चेहरे पर एक शिकन आई लेकिन मैंने भी मुस्कुराते हुए वंदना की सहेली की तरफ देखा।
‘समीर जी, यह है मेरी सबसे प्यारी और सबसे ख़ास सहेली ज्योति… हम सगी बहनों से भी ज्यादा प्यार करते हैं एक दूसरे को, और ज्योति… ये रहे समीर बाबू, अब मिल लो… इतने दिनों से मेरी जान खा गई थी न मिलवाने के लिए सो आज मैं इन्हें लेकर आ ही गई।’ वंदना ने हम दोनों का परिचय एक दूसरे से करवाया।
उन दोनों की आँखों में मुझे शरारत नज़र आ रही थी… एक चमक सी थी उन दोनों की आँखों में, मानो वंदना और हमारी नई नई शादी हुई हो और वो अपने पति का परिचय अपनी सहेली से करवा रही हो।
साथ ही ज्योति इस तरह मिल रही थी मानो अपने नए नए जीजाजी से मिल रही हो। 
 
यह समझना मुश्किल नहीं था कि वंदना अपनी सहेलियों या यूँ कहें कि अपनी ख़ास सहेली से मेरे बारे में काफी दिनों से बातें करती आ रही होगी… यानि कि जिन दिनों में मैं रेणुका जी के साथ प्रेम लीला में व्यस्त था उन दिनों उसकी बेटी मन ही मन में मेरे साथ अपने प्रेम की लीला की संरचना में मस्त थी।
वाह रे ऊपर वाले… तेरी लीला भी अपरम्पार है !!
‘आइये समीर जी, आपको अपनी सहेलियों से मिलवा दूँ… सब आपसे मिलने को बेकरार हैं।’ ज्योति ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींच कर हॉल के बीच में ले गई और एक एक करके वहाँ मौजूद सभी से मेरा परिचय करवाया।
लगभग 35 लोग थे वहाँ जिनमें 10 से 12 लड़के भी थे। सभी लड़कियों ने बड़े ही गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया और लड़कों ने भी मुझसे पहले तो हाथ मिलाये और फिर मेरे गले लग कर मेरा अभिवादन किया।
सच कहूँ तो ऐसा लग ही नहीं रहा था कि मैं कोई अनजान हूँ या उनसे पहली बार मिल रहा हूँ… यह अपनापन मेरे दिल को छू गया।
थोड़ी देर हम सब यूँ ही एक दूसरे के साथ हंसी मजाक करते रहे और इस पूरे समय के दरम्यान वंदना मुझसे चिपक कर रही और अपने हाथों से मेरा हाथ पकड़े रखा, उसके हाथों में मेरा हाथ यूँ देख कर लड़कियाँ तिरछी निगाहों से देख देख कर मुस्कुराती रहीं तो वहीं लड़कों की आँखों में मुझे जलन साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी।
आखिर मैं भी एक लड़का हूँ और मुझे पता है उस एहसास के बारे में जब आपके क्लास की सबसे खूबसूरत लड़की किसी और का हाथ थामे बैठी हो और आप बस अपना मन मसोस कर रह जाते हो।
खैर, समय बहुत हो चुका था और अब बारी आई केक काटने की… 
 
हॉल के बीचों बीच एक गोल मेज़ पर बहुत ही खूबसूरत सा केक सजा हुआ था और उसके ऊपर बस एक मोमबत्ती लगी हुई थी, उस एक मोमबत्ती को देख कर मेरे होठों पे बरबस एक मुस्कान उभर गई..
‘लड़कियाँ चाहे छोटे शहर की हों या बड़े शहर की… अपनी उम्र छिपाने की आदत सब में एक जैसी ही होती है…’ मैंने मन ही मन में सोच कर ज्योति की तरफ देखा और एक हल्की सी मुस्कान दे दी।
ज्योति शायद मेरे मुस्कुराने की वजह समझ गई और तभी धीरे से मेरे करीब आकर सबकी नज़रों से बचते हुए मेरे कान में धीरे से कहा- समीर बाबू… लड़कियों की उम्र तो बस निगाहों से ही नाप कर समझनी होती है।
मैं एकटक उसे देखता ही रह गया और फिर धीरे से मुस्कुरा कर रह गया… 
कमरे की सारी बत्तियाँ बुझ गई और फिर ज्योति ने फूंक मार कर मोमबत्ती बुझाई और हम सबने तालियाँ बजाकर और वही पुराना ऐतिहासिक जन्मदिन का गाना गाकर उसे बधाईयाँ दी।
हम सबने मिलकर केक खाया और फिर सबने ज्योति को तोहफे देना शुरू किए…
इस एक क्षण में मुझे बड़ा अजीब सा लगा… वहाँ सब के हाथों में कुछ न कुछ था जो वो ज्योति को दे रहे थे.. मैं अकेला खाली हाथ था… मेरे चेहरे पे शर्मिंदगी के भाव उभर आये और मैं ज्योति से नज़रें चुराने लगा…
कहते हैं लड़कियों को ऊपर वाले ने कुछ ख़ास गुण दिए हैं, और उनमें एक गुण यह भी है कि वो लड़कों के चेहरे पे आये भावों को पढ़ लेती हैं…
ऐसा ही हुआ…
मेरे बगल में खड़ी वंदना ने मेरे चेहरे के भावों को पढ़ लिया और ठीक उसी समय ज्योति की निगाहों ने भी मेरे चेहरे को पढ़ना शुरू किया और फिर उसने वंदना की तरफ देखा… दोनों सहेलियों ने एक दूसरे को आँखों ही आँखों में सारी बातें समझा दीं।
सहसा मेरे कानों में ज्योति की आवाज़ सुनाई दी… 
‘आप सबका इन खूबसूरत तोहफों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद… लेकिन यहाँ एक शख्स ऐसे भी हैं जो खाली हाथ आये हैं… और उन्हें इसकी सजा मिलेगी…’ ज्योति ने सीधा मेरी तरफ ऊँगली से इशारा कर दिया।
अचानक से सारे लोगों की निगाहें मेरी तरफ हो गईं और मैं तो शर्म से पानी पानी सा हो गया।
‘समीर बाबू, डरिये मत… आपको इतनी भी बड़ी सजा नहीं मिलेगी…’ ज्योति ने शरारत भरे लहजे में मुस्कुराते हुए कहा और चलती हुई मेरी तरफ बढ़ी।
मेरे सीने की धड़कन बढ़ गई… पता नहीं अब क्या करना पड़े…!!
ज्योति मेरे बगल में आकर खड़ी हुई और मेरा हाथ पकड़ कर बाकी सब की तरफ देख कर बोलने लगी- दोस्तो, हमारे समीर जी बहुत अच्छा गाते हैं और उनके गानों की तारीफ़ मैंने कई बार सुनी है… तो आज इनकी सजा यही है कि आज मेरे जन्मदिन के मौके पर समीर जी हम सबको एक प्यारा सा गाना सुनायेंगे… तालियाँ !
एक ही सांस में उस लड़की ने सबकुछ कह दिया और वहाँ मौजूद सभी ने तालियाँ बजानी शुरू कर दीं।
मुझे तो मानो शॉक सा लग गया… कई सवाल कौंध गए मेरे ख्यालों में…
आप सबको यह बता दूँ कि मुझे संगीत का बहुत शौक रहा है बचपन से और ऊपर वाले ने मुझे यह नेमत बख्शी है कि मैं ठीक-ठाक गा लेता हूँ… मैं और मेरे दोस्तों ने मिलकर एक बैंड भी बना रखा है जिसमें मैं गिटार बजा लेता हूँ और अपने बैंड का लीड सिंगर भी हूँ।
लेकिन मेरी इस बात का पता ज्योति को कैसे चला, यह सोच कर हैरान था… हैरानी इसलिए ज्यादा थी कि मैंने तो कभी वंदना को भी नहीं बताया था इस बारे में… पता नहीं यह सीक्रेट कैसे पता लगा इन्हें !!
खैर अब कोई चारा नहीं बचा था… और पिछले कुछ देर के दरम्यान वंदना के साथ रास्ते में बिठाये उन हसीन पलों की वजह से मेरा मूड बहुत अच्छा था… मैंने भी सोचा कि चलो उस प्यारी सी लड़की के जन्मदिन पर इतना तो करना बनता है।
‘तुमको देखा तो ये ख़याल आया… ज़िन्दगी धूप तुम घना साया..’
वो पल मेरे लिए बहुत ही खूबसूरत हो गया था… वंदना एकटक मेरे चेहरे पे अपनी नज़रें जमाये मेरे होठों से निकलते हर एक लफ्ज़ को इतनी संजीदगी से सुन रही थी मानो मेरा हर लफ्ज़ अपने अन्दर समां लेना चाह रही हो…
मेरे सबसे चहेते जगजीत सिंह जी की बेहतरीन ग़ज़ल गाकर मैंने वहाँ मौजूद सबका दिल जीत लिया।
जैसे ही मैंने गाना ख़त्म किया, ज्योति दौड़कर मेरे पास आई और मुझसे लिपट गई… मुझे गले लगाकर उसने मेरा धन्यवाद किया… और फिर सबने तालियाँ बजाकर मेरा अभिवादन किया।
कुल मिलकर बड़ा ही खुशनुमा सा महल बन गया था… फिर हम सबने मिलकर खाना खाया और धीरे धीरे मेहमानों ने विदाई ली और मैंने भी वंदना को इशारा किया कि अब चलना चाहिए।
घड़ी की सुइयाँ दस बजा रही थीं और मौसम भी खराब था।
वंदना और ज्योति अब भी एक दूसरे से चिपकी हुई थीं… दोनों मेरे पास आईं और दोनों के चेहरे पे दिल को घायल कर देने वाली मुस्कान बिखरी पड़ी थी।
‘क्यूँ समीर जी, लगता है आपको हमारा साथ अच्छा नहीं लग रहा है… तभी आप घर जाने के लिए इतना हड़बड़ा रहे हो..’ ज्योति ने ऐसे शरारत से पूछा मनो वो कह कुछ और रही हो और पूछ कुछ और!
‘अरे ऐसी बात नहीं है ज्योति जी… वंदना के पापा ने हमे हिदायत दी थी कि हम समय से घर पहुँच जाएँ… वरना मैं तो वैसे भी निशाचर हूँ… रात भर जागने की बीमारी है मुझे!’ मैंने भी मुस्कुराते हुए ज्योति की तरफ देख कर जवाब दिया।
‘ओफ्फो… तो आपको रात भर जागने की बीमारी है… फिर तो भगवान् ही बचाए आपसे… रात भर खुद भी जागेंगे और दूसरों को भी जगाये रखेंगे!’ ज्योति ने यह कहते हुए वंदना की तरफ देख कर आँख मार दी और खिलखिला कर हंस दी।
वंदना ने ज्योति के हाथों पे चिकोटी काट ली- …शैतान कहीं की…
 
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