Real Chudai Kahani रंगीन रातों की कहानियाँ - Page 4 - SexBaba
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Real Chudai Kahani रंगीन रातों की कहानियाँ

मोहिनी भाभी और चाँदनी की चुदाई

मैं अब आपको अपनी सच्ची कहानी सुनाने जा रहा हूँ।
ये एक लड़की और एक भाभी (मोहिनी) की चुदाई की एकदम सच्ची घटना है। ये दोनों मेरे अलग-अलग प्रवास के दौरान बगल के कमरों में रहने वाली थीं।
मेरा नाम विवेक है, मैं एक छोटे शहर का रहने वाला हूँ। मेरे बगल के घर में एक बहुत ही खूबसूरत लड़की रहती थी उसका नाम चाँदनी था।
उसका कद 5’3” था। उसके घर में एक लड़की आती थी उसका नाम भारती था। उसकी बड़ी बहन चाँदनी के घर में किराए पर रहती थी और उसका भी कद 5’4” था और जिस्म करीब 32-28-34 था। मैं 10 वीं पास करके दिल्ली पढ़ने चला गया। मैं करीब चार महीने बाद लौटा तो मेरी बुआ के लड़के यानि मेरे फुफेरे भैया मेरे घर आए हुए थे। उनका नाम राजीव है। शाम को उनसे बात हो रही थी। उन्होंने मुझे बताया कि बगल में एक लड़की आई है वो मुझे बहुत परेशान कर रही है, वो चाँदनी से कहती है कि राजीव को मुझे दे दो या फिर एक बार मजा दिला दो।
उन्होंने मुझसे बोला- उसका नम्बर ले लो और तुम ही उसे पेल लो।
मैं झट से तैयार हो गया क्योंकि मैंने उससे पहले कभी चूत नहीं मारी थे। सिर्फ ब्लू-फ़िल्म में देख कर हाथ से काम चलाता था, मुठ मार लिया करता था।
दोस्तों.. मैं एक बात आपको बता दूँ कि मेरे राजीव भैया उस बगल वाली लड़की को बहुत पेलते थे, जिसका नाम चाँदनी है। भैया फार्मा में हैं उस समय वो चेन्नई में पढ़ते थे और वो जब भी आते तो रात में अपनी छत से उसके छत पर चले जाते और उसे चोदते। फ़िर सुबह होने से पहले चले आते। वो आकर मुझे सब बताते कि किस तरह वो अपना लन्ड चाँदनी को पेलते हैं… किस तरह उसे चोदते हैं।
तो जब मैंने भैया से उस लड़की की नम्बर लिया और उससे बात की, तो वो पहले तो मुझे नहीं पहचान पाई। फ़िर भैया ने अपनी गर्ल-फ्रेंड को फ़ोन करके बताया कि भारती के साथ छत पर आओ और विवेक उससे बात करना चाहता है। तब भारती सब समझ गई और फ़िर चाँदनी और भारती दोनों छत पर आ गईं।
फ़िर मैंने उससे प्यार से बात की और पूछा- हम लोग भी वैसे मिल सकते हैं, जैसे राजीव भैया, चाँदनी से मिलते हैं? तो उसने ‘हाँ’ कह दी।
चूंकि हम लोग खाना खा कर टहलने गए थे और भैया का चूत मारने का समय हो गया था। इसलिए भारती ने कह दिया, “वो कल से इस बारे में सोचेगी।”
फिर मैं अपने कमरे में आ गया और भारती भी नीचे अपने कमरे में चली गई। फिर हमने फोन पर बातें कीं, करीब एक घंटे तक गर्मा-गर्म बातें करने के बाद.. वो तैयार हुई। फिर मैंने झट से राजीव भैया को फोन किया और चूत छोड़ कर आने को कहा, पर वो नहीं माने, वो बोलते समय जोर लगा रहे थे शायद वो झड़ने वाले थे।
मैंने भारती से कहा- तुम ऊपर का दरवाजा खोलो।
फिर मैं भी भैया की तरह अपनी छत से उसकी छत पर चला गया।
दोस्तों मैं आपको बता दूँ कि मेरी छत और चाँदनी की छत लगभग सटी हुई है। कोई भी आ-जा सकता था।
फिर मैंने उसे गोद में उठाया और नीचे उसके कमरे में ले गया। फिर हमने दरवाजा बंद किया और कपड़े निकाले मुझे तो लड़का होकर भी बहुत शर्म आ रही थी और वो तुरन्त पैंटी और ब्रा में हो गई। उसने तो मेरी चड्डी भी उतार कर रख दी। उसने मेरा लन्ड अपने मुँह में ले लिया। मुझे अजीब सा अहसास होने लगा मैंने सोचा कि ये लड़की बहुत बड़ी चुदक्कड़ लगती है.. खैर मुझे क्या… मैं तो खुद चूत के लिए तड़फ रहा था। सो मुझे छेद आसानी से मिल रहा था। मैंने कभी चूत नहीं मारी थी इस लिए घबराहट सी हो रही थी। फिर भारती ने अपने भी पैंटी और ब्रा बगल में रख दिए। मैं लेट गया और मैंने उसे अपने लन्ड पर बैठने को कहा।
वो मेरे लवड़े पर चढ़ कर बैठ गई और उसने मेरे लन्ड का मुँह अपनी चूत में लगाया। फिर मैंने उसकी कमर पकड़ कर नीचे से धक्का लगाया.. वो चीख पड़ी। वो तो भला हो ऊपर वाले का.. कि किसी ने उसकी आवाज नहीं सुनी.. बगल के कमरे में उसकी बड़ी बहन और जीजा सोए थे। फिर मैंने देखा कि मेरे लन्ड पर खून लगा हुआ था, खून देख कर वो तो रोने लगी। फिर मैंने किसी तरह पुचकारते हुए उसे चुप कराया और उसे लिटा कर मैंने उसकी चूत को तौलिए से पौंछा। फ़िर थूक लगा कर अपना लन्ड डाल दिया। इस बार भी वो चिल्लाई, पर शांत हो गई। मैंने 10- 12 झटके ही लगाए होंगे कि मेरा बीज उसकी चूत में गिर गया। मैं थका-थका सा महसूस कर रहा था शायद डर के मारे। फिर मैंने कपड़े पहने और अपने घर चला गया। बाद में मैंने भैया से पूछा- अगर कोई चूत में ही झड़ जाए.. तो कुछ होगा तो नहीं..?
तो उन्होंने मुझसे आँख मार कर पूछा- कोई.. या फिर तुम…?
मैं उनसे आँख चुराने लगा।
उन्होंने मुझे बताया, “मैं उसी समय ही इधर आ गया था, जब तुमने फोन किया था, पर यहाँ से तो तुम गायब थे… तब मेरी समझ में आया कि तुम इसी चूत के लिए मुझे अधूरे में छोड़ कर आने पर मजबूर कर रहे थे।”
मतलब जब मैंने फ़ोन किया था उसके बाद ही राजीव भैया आ गए थे। फ़िर मैंने उनसे पूछा- कल रात मैं भारती की चूत में ही झड़ गया था.. कुछ होगा तो नहीं?
तो उन्होंने मुझे डराना शुरू कर दिया, “अब तो बच्चा हो जाएगा ।”
फिर मैंने चाँदनी से पूछा- उसने बताया, “नहीं उम्मीद तो कम है फिर भी अभी कुछ दिन मजा लेने के बाद एक गर्भनिरोधक दवा खिला देना..।”
फ़िर अगले दिन मैं भारती के कमरे में गया। वो ब्रा और पैन्टी में ही लेटी थी। उसने मुझसे बताया कि वो ऐसे ही सोती है। फिर हम दोनों ही नंगे हुए।
दोस्तों क्या बताऊँ.. वो क्या गजब की माल लग रही थी। उसकी चूत में हल्के हल्के रोयें से बाल थे.. मानो 1-2 दिन पहले ही झांटें साफ़ की हों। मैंने उसकी चूत चाटनी शुरू की.. वो अकुलाने लगी अपनी टाँगें दबाने लगी, मेरा सिर उसकी टाँगों के बीच में था। मैंने अपनी जीभ चूत के अन्दर ठेली और उसकी चूत के मुँह को चौड़ा किया और पूरे जोश के साथ उसकी चूत को चाटने लगा। वो पूरी तरह तड़फने लगी। वो मुँह से “इस्स्स्स” की आवाज निकाल रही थी। फिर मैंने अपना लन्ड उसके मुँह में डाल दिया। वो मेरा लवड़ा लॉलीपॉप की तरह चूस रही थी। उसके बाद मैंने अपना लन्ड उसकी चूत में डाल दिया, वो मजे लेने लगी और मैं जल्दी-जल्दी उसकी चूत में लौड़ा पेल कर उसे धुकर-पुकर चोदने लगा।
वो बोल रही थी, “मुझे छोड़ दो…।”
और मैं बोल रहा था, “मुझे चोद दो..।” वो हँसने लगती.. पर दर्द के मारे पूरी तरह नहीं हँस पाती। मैं उसे पेलता ही जा रहा था.. ना जाने कहाँ से मुझमें ताकत आ गई थी.. मेरा लन्ड एकदम कड़ा हो गया था और मैं धक्का-पे-धक्का लगाए जा रहा था। पूरा कमरा “पच-पच” की आवाज से गूंज रहा था। उसकी चूत गीली हो गई थी। मैंने अपना लन्ड उसकी चूत से बाहर किया और उसका सारा रस पी गया। कुछ अजीब सा स्वाद था पर मीठा भी था। फिर मैंने लन्ड को वापस चूत में डाला… चूत इतनी गरम थी कि मेरा लन्ड भी घिसते-घिसते गर्म हो गया था और आखिर आधे घंटे बाद मैं झड़ गया। वो भी थक कर चूर हो चुकी थी, फ़िर हमने थोड़ी देर आराम किया और फिर काम पर लग गए। अब मैंने उससे घोड़ी बनने को कहा.. वो झट से बन गई। फिर मैंने उसके चूतड़ों को थोड़ा पीछे किया और अपना लन्ड उसकी गान्ड में पेल दिया। वो चिल्ला उठी.. मैंने जल्दी से उसका मुँह अपने हाथों से दबा दिया। वो डर गई कि कहीं उसकी गान्ड तो नहीं फट गई और उसने मुझे चले जाने को कहा, फिर मैंने उसे समझाया और फिर से चुदाई शुरू हुई। उस रात हमने चार बार चुदाई की।
दोस्तों उस रात मैंने भारती की बुर को भोसड़ा बना दिया। सुबह उसकी चूत सूजी हुई थी।
मैं जब अगले दिन उसके पास गया, तो उसे दवा लाकर दी। फ़िर मैं रोज जाता और उसे पेल कर चला आता। कुछ दिन बाद वो अपने गाँव चली गई और भारती जब भी आती तो मैं उसे चोदता और राजीव भैया जब भी आते तो वो चाँदनी को चोदते थे।
अब इसके बाद मेरे लवड़े को चूत का स्वाद लग गया था। 
 
बहन के साथ मज़ा



मेरा नाम Raju है और मै २० साल का एक युवक हूँ मेरी दीदी का नाम संगीता है और उसकी उमर क़रीब २६ साल है दीदी मुझसे ६ साल बड़ी हैं हम लोग एक मिडल-कलास फमिली है और एक छोटे से फ्लैट मे मुंबई मे रहते हैं.
हमारा घर मे एक छोटा सा हाल, डिनिंग रूम दो बेडरूम और एक किचन है बाथरूम एक ही था और उसको सभी लोग इस्तेमाल करते थे. हमारे पिताजी और माँ दोनो नौकरी करते हैं दीदी मुझको अमित कह कर पुकारती हैं और मै उनको दीदी कहा कर पुकारता हूँ. शुरू शुरू मे मुझे सेक्स के बारे कुछ नही मालूम था क्योंकि मै हाई सकूल मे पढ़ता था और हमारे बिल्डिंग मे भी अच्छी मेरे उमर की कोई लड़की नही थी. इसलिए मैने अभी तक सेक्स का मज़ा नही लिया था और ना ही मैने अब तक कोई नंगी लड़की देखी थी. हाँ मै कभी कभी पॉर्न मैगजीन मे नंगी तसबीर देख लिया करता था. जब मै चौदह साल का हुआ तो मुझे लड़किओं के तरफ़ और सेक्स के लिए इंटेरेस्ट होना शुरू हुआ. मेरे नज़रों के आसपास अगर कोई लड़की थी तो वो संगीता दीदी ही थी. दीदी की लंबाई क़रीब क़रीब मेरे तरह ही थी, उनका रंग बहुत गोरा था और उनका चेहरा और बोडी स्ट्रक्चर हिंदी सिनेमा के जीनत अमान जैसा था. हाँ उनकी चुन्ची जीनत अमान जैसे बड़ी बड़ी नही थी.
मुझे अभी तक याद है की मै अपना पहला मुठ मेरी दीदी के लिए ही मारा था. एक सन्डे सुबह सुबह जैसे ही मेरी दीदी बाथरूम से निकली मै बाथरूम मे घुस गया. मै बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और अपने कपड़े खोलना शुरू किया. मुझे जोरो की पिशाब लगी थी. पिशाब करने के बाद मै अपने लंड से खेलने लगा. एका एक मेरी नज़र बाथरूम के किनारे दीदी के उतरे हुए कपड़े पर पड़ी. वहां पर दीदी अपनी नाइटगाऊन उतार कर छोड़ गयी थी. जैसे ही मैने दीदी की नाइटगाऊन उठाया तो देखा की नाइटगाऊन के नीचे दीदी की ब्रा पडा हुआ था. जैसे ही मै दीदी का काले रंग का ब्रा उठाया तो मेरा लंड अपने आप खडा होने लगा. मै दीदी के नाइटगाऊन उठाया तो उसमे से दीदी के नीले रंग का पैँटी भी गिर कर नीचे गिर गया. मैने पैँटी भी उठा लिया. अब मेरे एक हाथ मे दीदी की पैँटी थी और दूसरे हाथ मे दीदी के ब्रा था.
ओह भगवान दीदी के अन्दर वाले कपड़े चूमे से ही कितना मज़ा आ रहा है यह वोही ब्रा हैं जो की कुछ देर पहले दीदी के चुन्चिओं को जकड रखा था और यह वोही पैँटी हैं जो की कुछ देर पहले तक दीदी की चूत से लिपटा था. यह सोच सोच करके मै हैरान हो रहा था और अंदर ही अंदर गरमा रहा था. मै सोच नही पा रहा था की मै दीदी के ब्रा और पैँटी को ले कर क्या करूँ. मै दीदी की ब्रा और पैँटी को ले कर हर तरफ़ से छुआ, सूंघा, चाटा और पता नही क्या क्या किया. मैने उन कपड़ों को अपने लंड पर मला. ब्रा को अपने छाती पर रखा. मै अपने खड़े लंड के ऊपर दीदी की पैँटी को पहना और वो लंड के ऊपर तना हुआ था. फिर बाद मे मैं दीदी की नाइटगाऊन को बाथरूम के दीवार के पास एक हैंगर पर टांग दिया. फिर कपड़े टांगने वाला पिन लेकर ब्रा को नाइटगाऊन के ऊपरी भाग मे फँसा दिया और पैँटी को नाइटगाऊन के कमर के पास फँसा दिया. अब ऐसा लग रहा था की दीदी बाथरूम मे दीवार के सहारे ख़ड़ी हैं और मुझे अपनी ब्रा और पैँटी दिखा रही हैं मै झट जा कर दीदी के नाइटगाऊन से चिपक गया और उनकी ब्रा को चूसने लगा और मन ही मन सोचने लगा की मैं दीदी की चुंची चूस रहा हूँ. मै अपना लंड को दीदी के पैँटी पर रगड़ने लगा और सोचने लगा की मै दीदी को चोद रहा हूँ. मै इतना गरम हो गया था की मेरा लंड फूल कर पूरा का पूरा टनना गया था और थोड़ी देर के बाद मेरे लंड ने पानी छोड़ दिया और मै झड़ गया. मेरे लंड ने पहली बार अपना पानी छोड़ा था और मेरे पानी से दीदी की पैँटी और नाइटगाऊन भीग गया था. मुझे पता नही की मेरे लंड ने कितना वीरज़ निकाला था लेकिन जो कुछ निकला था वो मेरे दीदी के नाम पर निकला था.
मेरा पहले पहले बार झड़ना इतना तेज़ था की मेरे पैर जवाब दे दिया और मै पैरों पर ख़ड़ा नही हो पा रहा था और मै चुप चाप बाथरूम के फ़र्श पर बैठ गया. थॉरी देर के बाद मुझे होश आया और मै उठ कर नहाने लगा. शोवेर के नीचे नहा कर मुझे कुछ ताज़गी महसूस हुआ और मै फ़्रेश हो गया. नहाने बाद मै दीवार से दीदी की नाइटगाऊन, ब्रा और पैँटी उतारा और उसमे से अपना वीरज़ धो कर साफ़ किया और नीचे रख दिया. उस दिन के बाद से मेरा यह मुठ मरने का तरीक़ा मेरा सबसे फ़ेवरेट हो गया. हाँ, मुझे इस तरह से मै मरने का मौक़ा सिर्फ़ इतवार को ही मिलता था. क्योंकि, इतवार के दिन ही मै दीदी के नहाने के बाद नहाता था. इतवार के दिन चुप चाप अपने बिस्तर पर पड़ा देखा करता था की कब दीदी बाथरूम मे घुसे और दीदी के बाथरूम मे घुसते ही मै उठ जाया करता था और जब दीदी बाथरूम से निकलती तो मै बाथरूम मे घुस जाया करता था. मेरे मां और पिताजी सुबह सुबह उठ जाया करते थे और जब मै उठता था तो मां रसोई के नाश्ता बनाती होती और पिताजी बाहर बाल्कोनी मे बैठ कर अख़बार पढते होते या बाज़ार गये होते कुछ ना कुछ समान ख़रीदने. इतवार को छोड़ कर मै जब भी मै मारता तो तब यही सोचता कि मै अपना लंड दीदी की रस भरी चूत मे पेल रहा हूँ. शुरू शुरू मे मै यह सोचता था की दीदी जब नंगी होंगी तो कैसा दिखेंगी? फिर मै यह सोचने लगा की दीदी की चूत चोदने मे कैसा लगेगा. मै कभी कभी सपने ने दीदी को नंगी करके चोदता था और जब मेरी आँख खुलती तो मेरा शॉर्ट भीगा हुआ होता था. मैने कभी भी अपना सोच और अपना सपने के बारे मे किसी को भी नही बताया था और न ही दीदी को भी इसके बारे मे जानने दिया.
मै अपनी स्कूल की पढाई ख़तम करके कालेज जाने लगा. कॉलेज में मेरी कुछ गर्ल फ़रेंड भी हो गयी। उन गर्ल फ़रेंड मे से मैने दो चार के साथ सेक्स का मज़ा भी लिया. मै जब कोई गर्ल फ़रेंड के साथ चुदाई करता तो मै उसको अपने दीदी के साथ कम्पेयर करता और मुझे कोई भी गर्ल फ़रेंड दीदी के बराबर नही लगती. मै बार बार यह कोशिश करता था मेरा दिमाग़ दीदी पर से हट जाए, लेकिन मेरा दिमाग़ घूम फिर कर दीदी पर ही आ जाता. मै हूमेशा 24 घंटे दीदी के बारे मे और उसको चोदनेके बारे मे ही सोचता रहता. मै जब भी घर पर होता तो दीदी तो ही देखता रहता, लेकिन इसकी जानकारी दीदी की नही थी. दीदी जब भी अपने कपड़े बदलती थी या मां के साथ घर के काम मे हाथ बटाती थी तो मै चुपके चुपके उन्हे देखा करता था और कभी कभी मुझे सुडोल चुची देखने को मिल जाती (ब्लाउज़ के ऊपर से) थी. दीदी के साथ अपने छोटे से घर मे रहने से मुझे कभी कभी बहुत फ़ायदा हुआ करता था. कभी मेरा हाथ उनके शरीर से टकरा जाता था. मै दीदी के दो भरे भरे चुची और गोल गोल चूतड़ों को छूने के लिए मरा जा रहा था.
मेरा सबसे अच्छा पास टाइम था अपने बालकोनी मे खड़े हो कर सड़क पर देखना और जब दीदी पास होती तो धीरे धीरे उनकी चुचियों को छूना. हमारे घर की बाल्कोनी कुछ ऐसी थी की उसकी लम्बाई घर के सामने गली के बराबर मे था और उसकी संकरी सी चौड़ाई के सहारे खड़े हो कर हम सड़क देख सकते थे. मै जब भी बालकोनी पर खड़े होकर सड़क को देखता तो अपने हाथों को अपने सीने पर मोड़ कर बालकोनी की रेल्लिंग के सहारे ख़ड़ा रहता था. कभी कभी दीदी आती तो मै थोड़ा हट कर दीदी के लिए जगह बना देता और दीदी आकर अपने बगल ख़ड़ी हो जाती. मै ऐसे घूम कर ख़ड़ा होता की दीदी को बिलकुल सट कर खड़ा होना पड़ता. दीदी की भारी भारी चुन्ची मेरे सीने से सट जाता था. मेरे हाथों की उंगलियाँ, जो की बाल्कोनी के रेल्लिंग के सहारे रहती वे दीदी के चूचियों से छु जाती थी. मै अपने उंगलियों को धीरे धीरे दीदी की चूचियों पर हल्के हल्के चलत था और दीदी को यह बात नही मालूम था. मै उंगलीओं से दीदी की चुन्ची को छू कर देखा की उनकी चुनची कितना नरम और मुआयम है लेकिन फिर भी तनी तनी रहा करती हैं कभी कभी मै दीदी के चूतड़ों को भी धीरे धीरे अपने हाथों से छूता था. मै हमेशा ही दीदी की सेक्सी शरीर को इसी तरह से छू्ता था.
मै समझता था की दीदी मेरे हाक्तों और मेरे इरादो से अनजान हैं दीदी इस बात का पता भी नही था की उनका छोटा भाई उनके नंगे शरीर को चाहता है और उनकी नंगी शरीर से खेलना चाहता है लेकिन मै ग़लत था. फिर एक दीदी ने मुझे पकड़ लिया. उस दिन दीदी किचन मे जा कर अपने कपरे बदल रही थी. हाल और किचन के बीच का पर्दा थोड़ा खुला हुआ था. दीदी दूसरी तरफ़ देख रही थी और अपनी कुर्ता उतार रही थी और उसकी ब्रा मे छुपा हुआ चुची मेरे नज़रों के सामने था. फ़िर रोज़ के तरह मै टी वी देख रहा था और दीदी को भी कंखिओं से देख रहा था. दीदी ने तब एकाएक सामने वाले दीवार पर टंगा शीशे को देखा और मुझे आँखे फ़िरा फ़िरा कर घूरते हुए पाया. दीदी ने देखा की मै उनकी चूचियों को घूर रहा हूँ. फिर एकाएक मेरे और दीदी की आँखे मिरर मे टकरा गयी मै शर्मा गया और अपने आँखे टी वी तरफ़ कर लिया. मेरा दिल क्या धड़क रहा था. मै समझ गया की दीदी जान गयी हैं की मै उनकी चूचियों को घूर रहा था. अब दीदी क्या करेंगी? क्या दीदी मां और पिताजी को बता देंगी? क्या दीदी मुझसे नाराज़ होंगी? इसी तरह से हज़ारों प्रश्ना मेरे दिमाग़ मे घूम रहा था. मै दीदी के तरफ़ फिर से देखने का साहस जुटा नही पाया. उस दिन सारा दिन और उसके बाद 2-3 दीनो तक मै दीदी से दूर रहा, उनके तरफ़ नही देखा. इन 2-3 दीनो मे कुछ नही हुआ. मै ख़ुश हो गया और दीदी को फिर से घुरना चालू कर दिया. दीदी मे मुझे 2-3 बार फिर घुरते हुए पकड़ लिया, लेकिन फिर भी कुछ नही बोली. मै समझ गया की दीदी को मालूम हो चुका है मै क्या चाहता हूँ ।ख़ैर जब तक दीदी को कोई एतराज़ नही तो मुझे क्या लेना देना और मै मज़े से दीदी को घुरने लगा.
एक दिन मै और दीदी अपने घर के बालकोनी मे पहले जैसे खड़े थे. दीदी मेरे हाथों से सट कर ख़ड़ी थी और मै अपने उंगलीओं को दीदी के चुनची पर हल्के हल्के चला रहा था. मुझे लगा की दीदी को शायद यह बात नही मालूम की मै उनकी चूचियों पर अपनी उंगलीओं को चला रहा हूँ. मुझे इस लिए लगा क्योंकी दीदी मुझसे फिर भी सट कर ख़ड़ी थी. लेकिन मै यह तो समझ रहा थी क्योंकी दीदी ने पहले भी नही टोका था, तो अब भी कुछ नही बोलेंगी और मै आराम से दीदी की चूचियों को छू सकता हूँ.हमलोग अपने बालकोनी मे खड़े थे और आपस मे बातें कर रहे थे, हमलोग कालेज और स्पोर्ट्स के बारे मे बाते कर रहे थे. हमारा बालकोनी के सामने एक गली था तो हमलोगों की बालकोनी मे कुछ अंधेरा था.
बाते करते करते दीदी मेरे उंगलीओं को, जो उनकी चुनची पर घूम रहा था, अपने हाथों से पकड़कर अपने चुनची से हटा दिया. दीदी को अपने चुनची पर मेरे उंगली का एहसास हो गया था और वो थोड़ी देर के लिए बात करना बंद कर दिया और उनकी शरीर कुछ अकड़ गयी लेकिन, दीदी अपने जगह से हिली नही और मेरे हाथो से सट कर खड़ी रही. दीदी ने मुझे से कुछ नही बोली तो मेरा हिम्मत बढ गया और मै अपना पूरा का पूरा पंजा दीदी की एक मुलायम और गोल गोल चुनची पर रख दिया. मै बहुत डर रहा था. पता नही दीदी क्या बोलेंगी? मेरा पूरा का पूरा शरीर कांप रहा था. लेकिन दीदी कुछ नही बोली. दीदी सिर्फ़ एक बार मुझे देखी और फिर सड़क पर देखने लगी. मै भी दीदी की तरफ़ डर के मारे नही देख रहा था. मै भी सड़क पर देख रहा था और अपना हाथ से दीदी की एक चुनची को धीरे धीरे सहला रहा था. मै पहले धीरे धीरे दीदी की एक चुनची को सहला रहा था और फिर थोड़ी देर के बाद दीदी की एक मुलायम गोल गोल, नरम लेकिन तनी चुनची को अपने हाथ से ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा. दीदी की चुनची काफ़ी बड़ी थे और मेरे पंजे मे नही समा रही थी। थोड़ी देर बाद मुझे दीदी की कुर्ता और ब्रा के उपर से लगा की चुनची के निपपले तन गयी और मै समझ गया की मेरे चुनची मसलने से दीदी गरमा गयी हैं दीदी की कुर्ता और ब्रा के कपड़े बहुत ही महीन और मुलायम थी और उनके ऊपेर से मुझे दीदी की निपपले तनने के बाद दीदी की चुनची छूने से मुझे जैसे स्वर्ग मिल गया था. किसी जवान लड़की के चुनची छूने का मेरा यह पहला अवसर था. मुझे पता ही नही चला की मै कब तक दीदी की चूचियों को मसलता रहा. और दीदी ने भी मुझे एक बार के लिए मना नही किया. दीदी चुपचाप ख़ड़ी हो कर मुझसे अपना चुनची मसलवाती रही. दीदी की चुनची मसलते मसलते मेरा लंड धीरे धीरे ख़ड़ा होने लगा था. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था लेकिन एकाएक मां की आवाज़ सुनाई दी. मां की आवाज़ सुनते ही दीदी ने धीरे से मेरा हाथ अपने चुनची से हटा दिया और मां के पास चली गयी उस रात मै सो नही पाया, मै सारी रात दीदी की मुलायम मुलायम चुनची के बारे मे सोचता रहा.
दूसरे दिन शाम को मै रोज़ की तरह अपने बालकोनी मे खड़ा था. थोड़ी देर के बाद दीदी बालकोनी मे आई और मेरे बगल मे ख़ड़ी हो गयी मै 2-3 मिनट तक चुपचाप ख़ड़ा दीदी की तरफ़ देखता रहा. दीदी ने मेरे तरफ़ देखी. मै धीरे से मुस्कुरा दिया, लेकिन दीदी नही मुस्कुराई और चुपचाप सड़क पर देखने लगी. मै दीदी से धीरे से बोला- छूना है, मै साफ़ साफ़ दीदी से कुछ नही कह पा रहा था. और पास आ दीदी ने पूछा - क्या छूना चाहते हो? साफ़ साफ़ दीदी ने फिर मुझसे पूछी. तब मै धीरे से दीदी से बोला, तुम्हारी दूध छूना दीदी ने तब मुझसे तपाक से बोली, क्या छूना है साफ़ साफ़ मै तब दीदी से मुस्कुरा कर बोला, तुम्हारी चुनची छूना है उनको मसलना है। अभी मां आ सकती है दीदी ने तब मुस्कुरा कर बोली. मै भी तब मुस्कुरा कर अपनी दीदी से बोला, जब मां आएगी हमें पता चल जायेगा मेरे बातों को सुन कर दीदी कुछ नही बोली और चुपचाप नज़दीक आ कर ख़ड़ी हो गयी, लेकिन उनकी चुनची कल की तरह मेरे हाथों से नही छू रहा था. मै समझ गया की दीदी आज मेरे से सट कर ख़ड़ी होने से कुछ शर्मा रही है अबतक दीदी अनजाने मे मुझसे सट कर ख़ड़ी होती थी. लेकिन आज जान बुझ कर मुझसे सात कर ख़ड़ी होने से वो शर्मा रही है क्योंकी आज दीदी को मालूम था की सट कर ख़ड़ी होने से क्या होगा. जैसे दीदी पास आ गयी और अपने हाथों से दीदी को और पास खीच लिया. अब दीदी की चुनची मेरे हाथों को कल की तरह छू रही थी. मैने अपना हाथ दीदी की चुनची पर टिका दिया. दीदी के चुनची छूने के साथ ही मै मानो स्वर्ग पर पहुँच गया. मै दीदी की चुनची को पहले धीरे धीरे छुआ, फिर उन्हे कस कस कर मसला. कल की तरह, आज भी दीदी का कुर्ता और उसके नीचे ब्रा बहुत महीन कपड़े का था, और उनमे से मुझे दीदी की निपपले तन कर खड़े होना मालूम चल रहा था. मै तब अपने एक उंगली और अंगूठे से दीदी की निपपले को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा. मै जितने बार दीदी की निपपले को दबा रहा था, उतने बार दीदी कसमसा रही थी और दीदी का मुँह शरम के मारे लाल हो रहा था. तब दीदी ने मुझसे धीरे से बोली, धीरे दबा, लगता मै तब धीरे धीरे करने लगा.
 
मै और दीदी ऐसे ही फाल्तू बातें कर रहे थे और देखने वाले को एही दिखता की मै और दीदी कुछ गंभीर बातों पर बहस कर रहे रथे. लेकिन असल मे मै दीदी की चुचियोंको अपने हाथों से कभी धीरे धीरे और कभी ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था. थोड़ी देर मां ने दीदी को बुला लिया और दीदी चली गयी ऐसे ही 2-3 दिन तक चलता रहा. मै रोज़ दीदी की सिर्फ़ एक चुनची को मसल पाता था. लेकिन असल मे मै दीदी को दोनो चुचियों को अपने दोनो हाथों से पाकर कर मसलना चाहता था. लेकिन बालकोनी मे खड़े हो कर यह मुमकिन नही था. मै दो दिन तक इसके बारे मे सोचता रहा.
एक दिन शाम को मै हाल मे बैठ कर टी वी देख रहा था. मां और दीदी किचन मे डिनर की तैयारी कर रही थी. कुछ देर के बाद दीदी काम ख़तम करके हाल मे आ कर बिस्तर पर बैठ गयी दीदी ने थॉरी देर तक टी वी देखी और फिर अख़बार उठा कर पढने लगी. दीदी बिस्तर पर पालथी मार कर बैठी थी और अख़बार अपने सामने उठा कर पढ रही थी. मेरा पैर दीदी को छू रहा था. मैने अपना पैरों को और थोड़ा सा आगे खिसका दिया और और अब मेरा पैर दीदी की जांघो को छू रहा था. मै दीदी की पीठ को देख रहा था. दीदी आज एक काले रंग का झीना टी शर्ट पहने हुई थी और मुझे दीदी की काले रंग का ब्रा भी दिख रहा था. मै धीरे से अपना एक हाथ दीदी की पीठ पर रखा और टी शर्ट के उपर से दीदी की पीठ पर चलाने लगा. जैसे मेरा हाथ दीदी की पीठ को छुआ दीदी की शरीर अकड़ गया. दीदी ने तब दबी जवान से मुझसे पूछी, यह तुम क्या कर रहे हो तुम पागल तो नही हो गये मां अभी हम दोनो तो किचन से देख लेगी", दीदी ने दबी जवान से फिर मुझसे बोली. "मा कैसे देख लेगी?" मैने दीदी से कहा. "क्या मतलब है तुम्हारा? दीदी ने पूछी. "मेरा मतलब यह है की तुम्हारे सामने अख़बार खुली हुई है अगर मां हमारी तरफ़ देखेगी तो उनको अख़बार दिखलाई देगी." मैने दीदी से धीरे से कहा. "तू बहुत स्मार्ट और शैतान है दीदी ने धीरे से मुझसे बोली.
फिर दीदी चुप हो गयी और अपने सामने अख़बार को फैला कर अख़बार पढने लगी. मै भी चुपचाप अपना हाथ दीदी के दाहिने बगल के ऊपेर नीचे किया और फिर थोड़ा सा झुक कर मै अपना हाथ दीदी की दाहिने चुनची पर रख दिया. जैसे ही मै अपना हाथ दीदी के दाहिने चुनची पर रखा दीदी कांप गयी मै भी तब इत्मिनान से दीदी की दाहिने वाली चुनची अपने हाथ से मसलने लगा. थॉरी देर दाहिना चुनची मसलने के बाद मै अपना दूसरा हाथ से दीदी बाईं तरफ़ वाली चुनची पाकर लिया और दोनो हाथों से दीदी की दोनो चूचियों को एक साथ मसलने लगा. दीदी कुछ नही बोली और वो चुप चाप अपने सामने अख़बार फैलाए अख़बार पढ्ती रही. मै दीदी की टी शर्ट को पीछे से उठाने लगा. दीदी की टी शर्ट दीदी के चूतड़ों के नीचे दबी थी और इसलिए वो ऊपेर नही उठ रही थी. मै ज़ोर लगाया लेकिन कोई फ़ैदा नही हुआ. दीदी को मेरे दिमाग़ की बात पता चल गया. दीदी झुक कर के अपना चूतड़ को उठा दिया और मैने उनका टी शर्ट धीरे से उठा दिया. अब मै फिर से दीदी के पीठ पर अपना ऊपेर नीचे घूमना शुरू कर दिया और फिर अपना हाथ टी शर्ट के अंदर कर दिया. वो! क्या चिकना पीठ था दीदी का. मै धीरे धीरे दीदी की पीठ पर से उनका टी शर्ट पूरा का पूरा उठ दिया और दीदी की पीठ नंगी कर दिया. अब अपने हाथ को दीदी की पीठ पर ब्रा के ऊपेर घूमना शुरू किया. जैसे ही मैने ब्रा को छुआ दीदी कांपने लगी. फिर मै धीरे से अपने हाथ को ब्रा के सहारे सहारे बगल के नीचे से आगे की तरफ़ बढा दिया. फिर मै दीदी की दोनो चुचियों को अपने हाथ मे पकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा. दीदी की निपपले इस समय तनी तनी थी और मुझे उसे अपने उँगलेओं से दबाने मे मज़ा आ रहा था. मै तब आराम से दीदी की दोनो चूचियों को अपने हाथों से दबाने लगा और कभी कभी निपपले खिचने लगा.
मा अभी भी किचन मे खाना पका रही थी. हम लोगों को मां साफ़ साफ़ किचन मे काम करते दिखलाई दे रही थी. मै यह सोच सोच कर खुश हो रहा की दीदी कैसे मुझे अपनी चुचियों से खेलने दे रही है और वो भी तब जब मां घर मे मौजूद हैं। मै तब अपना एक हाथ फिर से दीदी के पीठ पर ब्रा के हूक तक ले आया और धीरे धीरे दीदी की ब्रा की हूक को खोलने लगा. दीदी की ब्रा बहुत टाईट थी और इसलिए ब्रा का हूक आसानी से नही खुल रहा था. लेकिन जब तक दीदी को यह पता चलता मै उनकी ब्रा की हूक खोल रहा हूँ, ब्रा की हूक खुल गया और ब्रा की स्ट्रप उनकी बगल तक पहुँच गया. दीदी अपना सर घुमा कर मुझसे कुछ कहने वाली थी की मां किचन मे से हाल मे आ गयी मै जल्दी से अपना हाथ खींच कर दीदी की टी शर्ट नीचे कर दिया और हाथ से टी शर्ट को ठीक कर दिया. मां हल मे आ कर कुछ ले रही थी और दीदी से बातें कर रही थी. दीदी भी बिना सर उठाए अपनी नज़र अख़बार पर रखते हुए मां से बाते कर रही थी. मां को हमारे कारनामो का पता नही चला और फिर से किचन मे चली गयी
जब मां चली गयी तो दीदी ने दबी ज़बान से मुझसे बोली, सोनू, मेरी ब्रा की हूक को लगा "क्या? मै यह हूक नही लगा पाउंगा," मै दीदी से बोला. "क्यों, तू हूक खोल सकता है और लगा नही सकता? दीदी मुझे झिड़कते हुए बोली. "नही, यह बात नही है दीदी. तुम्हारा ब्रा बहुत टाईट है !" मै फिर दीदी से कहा. दीदी अख़बार पढते हुए बोली, मुझे कुछ नही पता, तुमने ब्रा खोला है और अब तुम ही इसे लगाओगे." दीदी नाराज़ होती बोली. "लेकिन दीदी, ब्रा की हूक को तुम भी तो लगा सकती हो?" मै दीदी से पूछा. " बुधू, मै नही लगा सकता, मुझे हूक लगाने के लिए अपने हाथ पीछे करने पड़ेंगे और मां देख लेंगी तो उन्हे पता चल जाएगा की हम लोग क्या कर रहे थी, दीदी मुझसे बोली.
मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा था की मै क्या करूँ. मै अपना हाथ दीदी के टी शर्ट नीचे से दोनो बगल से बढा दिया और ब्रा के स्ट्रप को खीचने लगा. जब स्ट्रप थोड़ा आगे आया तो मैने हूक लगाने की कोशिश करने लगा. लेकिन ब्रा बहुत ही टाईट था और मुझसे हूक नही लग रहा था. मै बार बार कोशिश कर रहा था और बार बार मां की तरफ़ देख रहा था. मां ने रात का खाना क़रीब क़रीब पका लिया था और वो कभी भी किचन से आ सकती थी. दीदी मुझसे बोली, यह अख़बार पकड़. अब मुझे ही ब्रा के स्ट्रप को लगाना परेगा." मै बगल से हाथ निकल कर दीदी के सामने अख़बार पाकर लिया और दीदी अपनी हाथ पीछे करके ब्रा की हूक को लगाने लगी.मै पीछे से ब्रा का हूक लगाना देख रहा था. ब्रा इतनी टाईट थी की दीदी को भी हूक लगाने मे दिक्कत हो रही थी. आख़िर कर दीदी ने अपनी ब्रा की हूक को लगा लिया. जैसे ही दीदी ने ब्रा की हूक लगा कर अपने हाथ सामने किया मां कमरे मे फिर से आ गयी मां बिस्तर पर बैठ कर दीदी से बातें करने लगी. मै उठ कर टोइलेट की तरफ़ चल दिया, क्योंकी मेरा लंड बहुत गरम हो चुका था और मुझे उसे ठंडा करना था.
दूसरे दिन जब मै और दीदी बालकोनी पर खड़े थे तो दीदी मुझसे बोली, हम कल रत क़रीब क़रीब पकड़ लिए गये थे. मुझे बहुत शरम आ रही मुझे पता है और मै कल रात की बात से शर्मिंदा हूँ. तुम्हारी ब्रा इतना टाईट थी की मुझसे उसकी हूक नही लगा" मैने दीदी से कहा. दीदी तब मुझसे बोली, मुझे भी बहुत दिक्कत हो रही थी और मुझे अपने हाथ पीछे करके ब्रा की स्ट्रप लगाने मे बहुत शरम आ रही दीदी, तुम अपनी ब्रा रोज़ कैसे लगती मैने दीदी से धीरे से पूछा. दीदी बोली, हूमलोग फिर दीदी समझ गयी की मै दीदी से मज़ाक कर रहा हूँ तब बोली, तू बाद मे अपने आप समझ जाएगा.
फिर मैने दीदी से धीरे से कहा, मै तुमसे एक बात कहूं? हाँ -दीदी तपाक से बोली.
"दीदी तुम सामने हूक वाले ब्रा क्यों नही पहनती, मैने दीदी से पूछा. दीदी तब मुस्कुरा कर बोली, सामने हूक वाले ब्रा बहुत महंगी है। मै तपाक से दीदी से कहा, कोइ बात नही. तुम पैसे के लिए मत घबराओ, मै तुम्हे पैसे दे दूंगा । मेरे बातों को सुनकर दीदी मुस्कुराते हुए बोली, तेरे पास इतने सारे पैसे हैं चल मुझे एक 100 का नोट दे। मै भी अपना पर्स निकाल कर दीदी से बोला, तुम मुझसे 100 का नोट ले लो दीदी मेरे हाथ मे 100 का नोट देख कर बोली, नही, मुझे रुपया नही चाहिए. मै तो यूँही ही मज़ाक कर रही "लेकिन मै मज़ाक नही कर रहा हूँ. दीदी तुम ना मत करो और यह रुपये तुम मुझसे ले और मै ज़बरदस्ती दीदी के हाथ मे वो 100 का नोट थमा दिया. दीदी कुछ देर तक सोचती रही और वो नोट ले लिया और बोली, मै तुम्हे उदास नही देख सकती और मै यह रुपया ले रही हूँ. लेकिन याद रखना सिर्फ़ इस बार ही रुपये ले रही हूँ. मै भी दीदी से बोला, सिर्फ़ काले रंग की ब्रा ख़रीदना. मुझे काले रंग की ब्रा बहुत पसंद है और एक बात याद रखना, काले रंग के ब्रा के साथ काले रंग की पैँटी भी ख़रीदना दीदी। दीदी शर्मा गयी और मुझे मारने के लिए दौड़ी लेकिन मै अंदर भाग गया.
अगले दिन शाम को मै दीदी को अपने किसी सहेली के साथ फ़ोन पर बातें करते हुए सुना. मै सुना की दीदी अपने सहेली को मार्केटिंग करने के लिए साथ चलने के लिए बोल रही है। मै दीदी को अकेला पा कर बोला, मै भी तुम्हारे साथ मार्केटिंग करने के लिए जाना चाहता हूँ. क्या मै तुम्हारे साथ जा सकता हूं दीदी कुछ सोचती रही और फिर बोली, सोनू, मै अपनी सहेली से बात कर चुकी हूँ और वो शाम को घर पर आ रही है और फिर मैने मां से भी अभी नही कही है की मै शोपिन्ग के लिए जा रही हूं। मै दीदी से कहा, तुम जा कर मां से बोलो की तुम मेरे साथ मार्केट जा रही हो और देखना मां तुम्हे जाने देंगी. फिर हम लोग बाहर से तुम्हारी सहेली को फ़ोने कर देंगे की मार्केटिंग का प्रोग्राम कँसेल हो गया है और उसे आने की ज़रूरत नही है ठीक है ना, "हाँ, यह बात मुझे भी ठीक लगती है मै जा कर मां से बात करती हूं और यह कह कर दीदी मां से बात करने अंदर चली गयी मां ने तुरंत दीदी को मेरे साथ मार्केट जाने के लिए हाँ कहा दी.
उस दिन कपड़े की मार्केट मे बहुत भीड़ थी और मै ठीक दीदी के पीछे ख़ड़ा हुआ था और दीदी के चुतड़ मेरे जांघों से टकरा रहा था. मै दीदी के पीछे चल रहा था जिससे की दीदी को कोई धक्का ना मार दे. हम जब भी कोई फूटपाथ के दुकान मे खड़े हो कर कपड़े देखते तो दी मुझसे चिपक कर ख़ड़ी होती और उनकी चुनची और जांघे मुझसे छू रहा होता. अगर दीदी कोई दुकान पर कपड़े देखती तो मै भी उनसे सट कर ख़ड़ा होता और अपना लंड कपड़ों के ऊपेर से उनके चुतड़ से भिड़ा देता और कभी कभी मै उनके चूतड़ों को अपने हाथों से सहला देता. हम दोनो ऐसा कर रहे थे और बहाना मार्केट मे भीड़ का था. मुझे लगा की मेरे इन सब हरकतों दीदी कुछ समझ नही पा रही थी क्योंकी मार्केट मे बहुत भीड़ थी.
 
स्कूल की दोस्त

हैलो दोस्तो, आप सभी ने मेरी पिछली कहानी दोस्त की लिव-इन तो पढ़ी होगी.. यह उसके बाद की कहानी है।
बी.टेक की पढ़ाई खत्म होने के बाद मैं एक कमरा किराए पर लेकर दिल्ली में ही रहने लगा। अब मैं सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा था।
यह बात बहुत पुरानी है.. मेरी एक स्कूल की दोस्त अपर्णा.. जिसे मैं बहुत प्यार करता था और वो भी मुझे पसन्द करती थी लेकिन वो मेरी गर्ल-फ्रेण्ड ना बन सकी.. क्योंकि वो इस सबसे बहुत डरती थी।
हमारा स्कूल टाइम खत्म हो गया.. मैं और वो दूसरे कॉलेज में चले गए और उधर उसका ब्वॉय-फ्रेण्ड भी बन गया था लेकिन उसके ब्वॉय-फ्रेण्ड ने उसको चोद-चाद कर छोड़ दिया था।
फिर एक दिन जून में जब मेरी छुट्टी थी और मैं बी.टेक. के दूसरे साल में था.. उस समय एक दिन उसका मैसेज आया और वो अपनी चुदाई की पूरी कहानी बता कर रोने लगी।
उसके मैसेज को पढ़ कर मैंने उससे बात की और फिर हमारी बातचीत शुरू हो गई। बातचीत से मालूम हुआ कि वो एक अच्छी कंपनी में पोस्टेड है।
आज भी मैं और वो एक-दूसरे को बहुत याद करते हैं। लेकिन हम अभी भी ब्वॉय-फ्रेण्ड और गर्ल-फ्रेण्ड नहीं हैं।
अभी कुछ दिन पहले अपने दोस्तों के साथ वो दिल्ली घूमने आई थी.. तब उसने मुझे मिलने के लिए बुलाया।
वो अब काफ़ी खूबसूरत लग रही थी। मुझे देख कर उसने अपने दोस्तों से मुझे मिलाया। उसके बाद हम बातें करने लगे बातों ही बातों में उसने मुझे बताया कि उसके एक सहेली जो उसके साथ आई है.. वो अपने ब्वॉय-फ्रेण्ड के यहाँ रुकेगी और वो होटल में कमरा लेकर रहेगी।
मैंने उसको अपने यहाँ रुकने के लिए मना लिया.. क्योंकि वो मुझसे कहा करती थी- तुम खाना काफ़ी अच्छा बनाते हो.. कब खिला रहे हो?
आख़िर वो मेरे हाथ का खाना खाने के लिए मेरे कमरे पर रुकने को तैयार हो गई। रात में खाना खाने के बाद हम लेट कर पुरानी बातें याद करने लगे।
बात करते-करते मैंने उससे कहा- मैं हमेशा से तुम एक चुम्बन करना चाहता था.. लेकिन कभी कर नहीं पाया।
तो वो बस मुस्कुरा दी।
फिर मैंने उससे कहा- क्या मैं तुम्हें एक चुम्बन कर लूँ?
उसने मुस्कुराते हुए कहा- ठीक है.. लेकिन सिर्फ़ एक..
फिर मैंने उसके होंठों पर एक प्यारा सा और लंबा चुम्बन किया।
चूमने के बाद मैंने उससे पूछा- कैसा लगा?
तो उसने शर्माते हुए कहा- अच्छा लगा..
फिर मैंने उससे कहा- एक और..
तो उसने कुछ नहीं बोला.. मैं समझ गया कि लोहा गर्म है.. और मैंने अपने होंठों को उसके होंठों पर रख दिए।
अब हमारा अधर-मिलन आरम्भ हो गया.. मैं उसके होंठों को अपने होंठों से रगड़ कर रसपान करने लगा और फिर धीरे से अपने हाथों को उसके मम्मों पर फिराने लगा.. वो भी मेरा साथ देने लगी।
देखते ही देखते कब हमारे कपड़े उतर गए.. हमको पता ही नहीं चला।
मैंने उसके मदमस्त जिस्म को एक भरपूर नजर से देखा तो उसने लज्जा से अपनी निगाहें नीचे कर लीं और फिर वो मेरी बाँहों में सिमट गई।
हम दोनों ने एक-दूसरे को कस कर पकड़ लिया, हम दोनों एक-दूसरे के होंठों को ऐसे चूस रहे थे.. जैसे कोई आइसक्रीम चूस रहे हों।
उसके बाद में मैं उसके मम्मों को कभी चूसता.. कभी दबाता और फिर मैंने अपने हाथों से उसकी चूत को सहलाना चालू कर दिया और वो जोर-जोर से सिसकारियाँ लेने लगी।
मैं अपना एक हाथ उसकी चूत पर फेरता हुआ सहला रहा था और वो चुदाई की चाहत में मस्त हो रही थी। फिर मैंने अपनी दो उंगलियाँ उसकी चूत में डालीं और उसको ऊँगली से चोदने लगा। थोड़ी ही देर में वो झड़ गई।
उसके बाद मैंने अपना 7 इंच लंबा लंड उससे चूसने के लिए बोला और वो मेरे लंड को लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी।
मैं उसके कामुक अंदाज से अपना लौड़ा चुसवाने से मस्त हो गया।
उसके बाद मैंने उसको उठा कर बिस्तर पर पटक दिया और उसको बेतहाशा चूमने लगा। मैं अपने लंड को उसके मम्मों के बीच में रख कर उसके मम्मों को चोदने लगा।
वो मस्त हो गई और मुझसे बोलने लगी- प्लीज़.. अब मत तड़पाओ.. मुझे चोद दो.. प्लीज़ अजय..
उसके बाद मैंने अपना लंड उसकी चूत पर रखा और ऊपर से ही चूत की दरार के ऊपर रगड़ने लगा।
वो एकदम से बिन पानी की मछली की तरह तड़पने लगी, उसने चुदासी होकर पूरी रण्डी की तरह अपनी टाँगें खोल दीं।
उसके बाद मैंने अपना लंड एक झटके में उसकी चूत में ठोक दिया।
मेरे इस अचानक के प्रहार से उसके मुँह से एक जोरदार चीख निकल गई.. लेकिन मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिया और उसको हचक कर चोदने लगा।
उसके बाद मैंने उसके उल्टा किया और उसकी कमर को ऐसे उठाया कि उसकी चूत पीछे से उभर कर दिखने लगे।
फिर मैंने अपने लंड को उसकी चूत में डाल कर उसके जोर-जोर से चोदने लगा।
वो भी मस्ती से मुझे पीछे धकेल कर चुद रही थी। मैंने भी उसकी लटकती नारंगियों को अपनी मुठ्ठियों में दबोच लिया और किसी कुतिया की उसकी चुदाई करने लगा।
कुछ ही मिनटों में वो एकदम से सीत्कारने लगी और निढाल होकर झड़ गई व नीचे लेट गई। मैं अब भी उसे चोद रहा था।
उसके एकदम से नीचे लेट जाने से उसकी बुर और भी कसी सी हो गई और मैं भी अब झड़ने के कगार पर आ गया था.. तो मैंने भी तेज तेज शॉट मारे और अपना अपना पानी उसकी बुर में ही छोड़ दिया।
इस के बाद मैंने उस रात उसको कई बार चोदा.. लेकिन उसकी गाण्ड नहीं मारी।
उसके बाद अगले दिन वो अपनी सहेली के साथ बंगलुरू चली गई।
दोस्तो, कैसी लगी आपको मेरी कहानी.. मुझे ईमेल करके प्लीज़ अपने विचार लिखें।
 
शचित जी और मैं



ब्रा और ब्लाउज दोनों का साइज पहले से बड़ा था, वो जानते थे कि मान्या के जन्म के कारण मेरा वक्ष काफ़ी बढ़ गया है। असल में ही मैं मोटी हो गई हूँ।
शचित जी और मैं खुद, हम दोनों बहुत उत्सुक थे यौनानन्द की नई पारी शुरु करने को…
आपने मेरी कई कहानियाँ पढ़ी, मेरी अन्तिम प्रकाशित कहानी थी ‘पर पुरुष समर्पण‘ इसके दो भाग प्रकाशित हुए थे।
इसके आगे की कहानी मैं भेज नहीं पाई थी।
अभी संक्षेप मे बीच में घटित घटनाओं को बता कर आगे नया घटनाक्रम लिखूंगी।
शचित के साथ प्रथम सम्भोग के बाद जैसे मुझे उसकी आदत सी हो गई। अब मैं अवसर पाते ही शचित सन्ग यौन आनन्द लेने लगी थी।
श्रद्धा भी अपनी पढ़ाई पूरी करके अपने घर जा चुकी थी तो मुझे किसी का डर भय नहीं था, कोई रोकने टोकने वाला भी नहीं था, मेरे पति तो कभी महीने दो महीने में एक बार आते थे।
एक दिन मैंने अपने पति को फ़ोन पर बताया कि श्रद्धा अब जा चुकी है और मेरी रिश्तेदारी में एक युवक हमारे घर पेईंग गैस्ट आना चाहता है।
वैसे तो मेरे पति इसकी अनुमति ना देते कि कोई गैर मर्द हमारे घर पेईंग गैस्ट रहे लेकिन जब मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि शचित मेरे भाई जैसा है तो उन्होंने अनुमति दे दी और इस तरह शचित मेरे घर में ही रहने लगा।
अब तो अवसर की कोई बन्दिश भी नहीं रही। अब तो हर रात मौज मस्ती की रात थी।
मेरे ओनलाइन मित्र की सलाह से अब मैंने सन्तान सुख की इच्छा पूरी करने की योजना बनाई।
इस बार जब मेरे पति घर आए तो मैंने येन केन प्रकारेण उन्हें सम्भोग के लिये राजी कर लिया और उनके दो दिन के ठहराव में मैं उनसे तीन बार सम्भोग करने में सफ़ल रही।
पति के जाते ही शचित ने तीन दिन की छुट्टी ली और हमने उन तीन दिन में 10-12 बार असुरक्षित सम्भोग किया ताकि मैं गर्भ धारण कर सकूँ।
उसके बाद भी हम नियमित सेक्स करते रहे और जब ड्यू डेट पर मेरा मासिक धर्म नहीं हुआ तो मेरे अन्दर खुशी की लहर दौड़ गई।
मैंने तुरन्त अपने ओनलाईन मित्र से आगे की सलाह मांगी तो उन्होंने मुझे 15 दिन के बाद गर्भ जांच कराने की सलाह दी, साथ ही यह हिदायत भी दी कि मैं तुरन्त अपने पति को समय पर माहवारी ना आने की सूचना दे दूँ।
मैंने ऐसा ही किया और 15 दिन बाद जब मैंने गर्भ जांच कराई तो डॉक्टर ने मुझे खुश खबरी सुना ही दी।
मैंने तुरन्त यह खबर अपने पति को फ़ोन करके बताई और उसके बाद शचित जी को भी यह खुशखबरी सुनाई। उसके बाद डॉक्टर और अपने मित्र की सलाह से हमने सम्भोग मे एहतियात बरतनी शुरू कर दी। और जनवरी माह में मेरे घर मे एक नन्ही परी आ गई।
मेरे पति और शचित दोनों बहुत खुश थे, दोनों को ही पिता बनाने की खुशी थी। उस नन्ही परी का नामकरण हुआ, मान्या नाम रखा गया उसका… पिछ्ले 6-7 महीने से मैं इन्टरनेट से दूर रही और फ़िर फ़रवरी के आखिरी सप्ताह में एक दिन मैं ओनलाईन हुई और अपने उस मित्र को मान्या के जन्म की खुशखबरी दी।
कई महीने हो गये थे मुझे शचित जी को अपने बदन का आनन्द दिये लेकिन शचित जी ने भी एक बार मुझसे सम्भोग करने की चेष्टा नहीं की।
इसी बीच वेलेन्टाईन दिवस भी आया और शचित जी ने मुझे फ़िर लाल रंग की साड़ी और उसके साथ मैचिंग ब्लाउज, पेटिकोट और ब्रा पैन्टी गिफ़्ट करके अपनी इच्छा जाहिर कर दी थी। आपको याद होगा कि जब हम घूमने गए थे तो भी शचित ने मुझे लाल रंग की साड़ी उपहार में दी थी।
पर इस बार ब्रा और ब्लाउज दोनों का साइज पहले से बड़ा था, वो जानते थे कि मान्या के जन्म के कारण मेरा वक्ष काफ़ी बढ़ गया है। असल में ही मैं मोटी हो गई हूँ।
शचित जी और मैं खुद, हम दोनों बहुत उत्सुक थे यौनानन्द की नई पारी शुरु करने को…
मैंने अपने ओनलाइन मित्र से ही इस नई शुरुआत की सलाह मांगी क्योंकि इस बार भी कुछ अनोखा करतब करके ही शुरु करना चाह रही थी।
तब शाम के पांच बजने को थे और शचित जी 6:30 बजे के करीब आते हैं। तब मैं मान्या को दूध पिलाने लगी और उसके बाद घर के काम में लग गई।
उसके बाद मैंने अपने मित्र की बताई सलाह पर काम शुरु किया।
प्रसव के बाद से मेरी योनि के बाद काफ़ी बढ़ चुके थे तो वीट क्रीम लेकर नीचे का धमा चौकड़ी मचाने वाला मैदान साफ़ कर लिया।
पेट बढ़ने की वजह से ये सब करने में कुछ दिक्कत भी हुई लेकिन मन में ठान लिया था कि आज तो करना ही है। झांटें साफ़ करने के बाद मैं गर्म पानी से अच्छे से नहाई, शचित की वेलेन्टाईन वाली साड़ी खोली, अभी तक मैंने उसे नहीं पहना था,
ब्रा पैन्टी और ब्लाऊज एकदम सही आकार के थे, शचित ने मेरे बदन के आकार का एकदम सही अंदाज लगाया था, लेकिन ब्लाउज का गला और पीठ का कट काफ़ी ज्यादा गहरा था, शायद इसके जरिये वो अपनी अन्तर्वासना मुझ पर प्रकट करना चाह रहे होंगे।
मैंने साड़ी पहनी, मेकअप किया, गहरे लाल रंग की लिपस्टिक लगाई।
घर के बगीचे से एक लाल गुलाब लेकर बालों में लगाया, कितने दिनों महीनों बाद आज मैं सज धज कर तैयार हुई थी।
शायद मान्या ले प्यार में मैं शचित को और खुद को ही भुला बैठी थी।
मेरे मित्र के कहने से मेरे मन मे एक नई उमंग भर गई थी, आज मैं फ़िर से शचित को और खुद को रति क्रिया का आनन्द देना चाहती थी।
ठीक 6:30 पर मेन-गेट खुलने की आवाज आई, मैंने खिड़की से देखा कि शचित आ गये हैं।
उनके चेहरे से लग रहा था कि जैसे वे बहुत थके हुये थे।
उन्होंने घण्टी बजाई, मैंने जानबूझ कर दरवाजा नहीं खोला, उन्होंने एक बार फ़िर घण्टी बजाई, मैंने धीमे से जाकर दरवाजे की कुण्डी खोल दी और हट कर खड़ी हो गई।
उन्होंने दरवाजा धकेला तो मैं दरवाजे के पीछे छिप गई, वो सीधे अन्दर चले गये, उन्होंने मुझे आवाज दी, मैं चुप रही।
वो परेशान हो गये, अन्दर गये, वहाँ मान्या सो रही थी, उन्होंने उसे हल्के से थपथपाया और दरवाजा बन्द कर दिया ताकि बाहर का शोर उस तक ना जाये।
फ़िर वो सामने हाल में आये तो उन्होंने मुझे उनकी ओर पीठ किये खड़े पाया। कहानी जारी रहेगी…

मेरे साथ बने रहिए 
 
टीना अभी नादान थी


समय पीछे चला जाता है लेकिन उसकी कुछ खट्टी मीठी यादें जो मन पर अपना प्रभाव बनाए ही रखती हैं! और जब वे यादें बेचैन करने लगती हैं तो बस बेचैनी से बचने का एक ही मार्ग होता है वह यह कि उन्हें किसी से बांट दिया जाए ! यह कुछ ऐसी ही याद है जो मैं आपसे बांटना चाहता हूँ!
मेरी बी-टेक की परीक्षा का अन्तिम से पहला सेमेस्टर बजाय दिसंबर जनवरी के अप्रैल महीने में समाप्त हुआ। तभी गोरखपुर से चाचा जी की बेटी यानि कि दीदी का फोन आ गया कि घर जाने से पहले तीन-चार दिन के लिए आ जाओ।
मैं बचपन से ही उनसे लगा था। लेकिन इधर कई साल हो गये उन्हें देखा भी नहीं था, उधर गांव से भी फोन आ गया कि गोरखपुर हो कर आना।
दीदी की शादी हुए लगभग दस साल हो गये थे। जीजा जी बिजली विभाग में क्लर्क हैं, ऊपरी आमदनी का प्रभाव घर के रखरखाव से तुरन्त ही लग गया। स्कूल से लौटे तो मैंने देखा कि टीना और अनिकेत तो इतने बड़े हो गये कि पहचान में ही नहीं आ रहे थे, लेकिन अनुमान लगाने में को कठिनाई नहीं हुई, मगर उनके आने के कुछ देर बाद जो अजनबी लड़की में आई उसे देखकर मैं चौंका। सामान्य से अधिक लम्बी, स्कर्ट के नीचे मेरी निगाह गई तो उसकी लम्बी और पतली सुन्दर और चिकनी टांगे देख कर मन अजीब सा हुआ।
उसने 'मामा जी नमस्ते' कहा तो मेरी दृष्टि ऊपर गई। देखा आंखें फट सी गईं। शरीर के अनुपात से कहीं भारी, लम्बी और भारी उसकी दोनों छातियां उसके खूबसूरत प्रिन्टेड ब्लाउज फाड़कर बाहर निकलने को आतुर दिखीं। उसने संभवतः मुझे देखते हुए देख लिया।
वह शरमाई तो मैंने निगाहें नीचे कर लीं। तभी अन्दर वाले कमरे से दीदी आ गईं। मैंने तब उनको भी ध्यान से देखा। जो दीदी पहले दुबली पतली थी अब उनका शरीर भर गया था और काफी सुन्दर लगने लगी थीं।
दीदी ने बताया कि यह सोनम है जेठ की बेटी।
गांव से आठ पास करके साथ ही है अबकी बार बी ए के प्रथम वर्ष की परीक्षा दे रही थी और आज ही अन्तिम पेपर था।
शाम तक सोनम मुझसे काफी घुलमिल गई। वह बेहद बातूनी और चंचल थी। अब तक कई बार वह किसी न किसी बहाने अपने शरीर को मेरे शरीर से स्पर्श करा चुकी थी।
उसकी बातों के केन्द्र में गर्लफ्रेन्ड और लड़के ही अधिक थे। दोनों बच्चे भी परीक्षा देकर अगली कक्षाओं में आ गये थे, अभी पढ़ाई का दबाव भी अधिक नहीं था।
सोनम तो मेरे आने से बहुत ही प्रसन्न थी। असल में मेरा गांव और दीदी के गांव से बहुत दूर नहीं था। दो दिन बाद उसे मेरे साथ उसे भी जाना था।
जीजा जी इधर काम के कारण काफी देर से आने लगे थे इस लिए सब्जी लेने दीदी ही जातीं। शाम में वह अनिकेत को लेकर मार्केट चली गई तो घर में मैं टीना और सोनम ही थे।
टीना अभी नादान थी। फर्श पर बिछे गद्दे पर मैं लेटा था। टीना मेरे पैर की उंगलियों को चटका रही थी। बातें करते सोनम ने कहा,'' लाओ मैं सर दबा दूं।''
फिर मेरे बिना कुछ कहे ही मेरे सिर के पास आकर बैठ गई। और सर में अपनी उंगलियां धीरे-धीरे चलाने लगी। धीरे-धीरे उसके शरीर की सुगंध मुझे मस्त करने लगी। मैंने आंखें ऊपर उठाकर देखा तो उसकी बड़ी नुकीली चूचियां मेरे सर पर तनी थी। संभवतः वह भी उत्तेजित सी थी, क्योंकि मुझे लगा कि उसके चूचुक भी तने हैं। उसने ब्रा नहीं पहनी थी।
मैंने अंगड़ाई लेने के बहाने हाथ पीछे किया तो मेरे पंजे उसकी चूचियों से छू गये। लेकिन मैंने रुकने नहीं दिया और टीना से कहा, '' अब बस, जाओ''
वह जाकर टीवी देखने लगी। सोनम उसी तरह मेरे बालों में उंगली किये जा रही थी। मैंने फिर सामने टीना की तरफ देखते हुए फिर हाथों को पीछे ले जाकर उसकी चूचियों से स्पर्श कराते हुए वहीं रोक दिया। उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, हां हाथ अवश्य रुक गये।
एक पल रुकने के बाद मैं हौले हौले उसकी चूचियों पर हाथ फिराने लगा। कुछ क्षणों बाद उसने मेरे हाथ को वहां से हटाकर धीरे से कहा, ''टीना छोटी नहीं!''
उसके इस उत्तर से मेरी बांछें खिल उठीं। मैंने हाथ को अंगड़ाई के बहाने ले जाकर उसकी जांघों पर रख दिया। वह चिकनी और संभवतः बरफी की तरह सफेद थीं। मैं रह-रह कर उसके पेड़ू को भी छू देता। उसने कच्छी नहीं पहन रखी थी। उसकी झांटों और मेरे हाथों के बीच उसकी सलवार का झीना कपड़ा ही था।
सामने मेरा लिंग अकड़कर खड़ा हो गया और मेरे लोअर के अन्दर बांस की तरह तनकर उसे उठा दिया। जब सोनम की दृष्टि उस पर पड़ी तो वह मुस्कुराने लगी।
मैंने अपने हाथों को फिर ऊपर लेजा कर उसकी चूचियों से स्पर्श कराया तो लगा कि उसकी घुंडियां बिल्कुल तन कर खड़ी हो गई हैं।
छुआ-छुई का यह खेल चल ही रहा था तभी टीना फिर आ गई और पास बैठ गई। हम दोनों रुक गये। मैंने झट अपनी लम्बी टी-शर्ट को नीचे खींच दिया, लेकिन हमारे महाराज जी झुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे तो मैं झट से उठ गया।
सोनम भी मेरे साथ ही उठ गई। उसने चुन्नी अपने सीने पर नहीं रखी थीं। चूचियां कपड़े के ऊपर से ही वह पूरी तनी बिल्कुल स्तूप की तरह लग रही थीं। रसोई की तरफ जाते हुए मैंने कहा, '' चाय पीने का मन हो रहा है।''
'' चलो बना दूं।'' कहते हुए वह मेरे पीछे रसोई में आ गई।
अन्दर जाते ही मैंने उसे कचकचाकर लिपटा लिया और पूरी शक्ति से उसके शरीर को जकड़ लिया। वह कसमसाकर कुछ कहती इससे पहले ही अपने ओंठ उसके ओंठों पर रखकर जबरदस्ती उसके मुंह में अपनी जीभ डाल दी।
वह गों-गों कर उठी तो जीभ को निकाला। तब वह कांपते स्वर में बोली, ''छोड़ो अभी टीना आ जाये तो !''
मैंने उसे छोड़कर कहा, ''भगवान कसम अभी तक मैंने इतनी कसी और सुन्दर चूंचियां तो फिल्मों की हीरोइनों तक की नहीं देखी!''
वह अब स्थिर हो चुकी थी। बोली, '' तुम तो बहुत हरामी हो मामा !''
मैंने धीरे से कहा, '' सोनम मैं बिना तुमको लिए छोड़ूंगा नहीं !''
उसने ठेंगा दिखाते हुए कहा,'' बड़े आये लेने वाले !'' और फिर मेरे अभी तक खड़े लन्ड को ऊपर से नौच कर भाग गई।
दीदी सामान लेकर आईं और रसोई में चली गईं। दोनों बच्चे पढ़ने बैठ गये तो मैं छत पर चला गया और कुछ देर बाद सोनम को भी पुकारकर ऊपर बुला लिया। हमारी दीदी का मुहल्ला निम्न-मध्यवर्गीय मुहल्ला था। छतें एक दूसरे से सटी थीं। अंधेरा पूरी तरह से घिर आया था, इसलिए इक्का-दुक्का लोग ही अपनी छत पर थे।
'' सोनम दोगी नहीं?''
'' क्या?''
'' बुर ! या अगर हो गई हो तो चूत!''
'' मतलब?''
'' मतलब यह कि अगर किसी से चुदवा चुकी हो तो चूत हो गई होगी नहीं तो अभी बुर ही होगी ! बताओ क्या है ?''
'' हट !''
'' हट नहीं ! नहीं प्लीज सोनम ! दे दो न!'' मैंने उसे पलसाने के लिए कहा।
'' बहुत बड़ा पाप है। फिर तुम तो मामा हो !''
'' मैं कोई सगा मामा थोड़ी न हूं?''
''चाहे जो हो, मैं यह काम नहीं करूंगी। मुझे डर लगता है !''
उसने इस अन्दाज में कहा कि मुझे लग गया कि अभी तो बात बनने वाली नहीं, तो मैंने बातो को दूसरी तरफ मोड़कर कहा, ''अच्छा सच बताओ किसी से करवाया है कि नहीं?''
'' भगवान कसम नहीं।''
'' मिंजवाई हो?''
'' भला कौन लड़की होगी जिसकी किसी न किसी ने कभी मींजी न हो।''
फिर उसने कहा, '' तुमने मामा ? तुमने मींजी हैं?''
'' हां, तुम्हारी ही !''
'' धत! पहले?''
'' मींजी तो कइयों की है, और ली भी है, लेकिन पूछना नहीं किसकी। कभी बाद में बताऊंगा। अच्छा बताओ तुम इसके बारे में ठीक से जानती हो?''
उसने मुस्कुराकर कहा, '' किसके?''
मैंने खीजकर कहा, '' बुर की पेलाई या कहो चुदाई के संबंध में!''
'' हाय राम यह भला कौन नहीं जानती होगी? इतना तो टीना को भी पता होगा !''
'' अच्छा अपनी बताओ कि तुम को कैसे पता चला?''
'' क्यों बताऊं?''
मैंने अन्त में कहा, ''सोनम मैं बिना लिए तुम्हारी छोड़ूंगा नहीं !''
और फिर इधर उधर की बातें होने लगीं। बात फिर आकर पेलने, चोदने और लन्ड, बुर पर रुक गई। अन्त में सोनम ने यह वादा किया कि ऊपर से मैं चाहे जो कर लूं, लेकिन वह किसी भी कीमत पर मेरा लन्ड अपनी बुर में डालने नहीं देगी।
बाद के दो दिनों में वह सोई तो दीदी के कमरे में क्योंकि दीदी को माहवारी आ रही थी। यह भी उसी ने बताया, लेकिन दिन में जैसे ही अवसर मिलता हम दोनो एक दूसरे को नौचने चूसने में लग जाते। एकाध बार तो वह बुरी तरह से उत्तेजित भी हो गई, लेकिन उचित अवसर ही नहीं मिला। दीदी भी न जाने क्यों हमें अकेला नहीं छोड़ रही थीं।
यद्यपि मुझे अन्त तक यह लगने लगा कि अगर अकेले मिल जाए तो करवा लेगी।
मैं तीसरे दिन के बजाय चौथे जाने के लिए तैयार हुआ। उस दिन इतवार था। शहर से हमारे गांव की दूरी अधिक नहीं थी। तीन घण्टे बस से लगते थे। बीच में बदलकर अन्त में चार किलोमीटर का पैदल या फिर अपने निजी वाहन का रास्ता है। पैंसजर ट्रेन भी जाती थी, समय थोड़ा अधिक लगता था परन्तु आराम था।
बारह बजे की गाड़ी थी। प्रोग्राम यह बना कि चार बजे के लगभग गाड़ी पास के कस्बे पहुँच जायेगी फिर वहां से बस पकड़कर एकाध घंटे में अपने गांव की सड़क पर पहुंच जायेंगे। आगे अगर फोन लग गया तो कह दिया जायेगा कोई आ जायेगा, नहीं तो किसी रिक्शा या हम लोग पैदल ही निकल जायेंगे।
हमारा क्षेत्र बहुत शांत है। किसी तरह की चोरी डकैती या दूसरी घटनाओं से मुक्त ! इसलिए हम लोगों को आने जाने का भय नहीं होता अक्सर किसी कारण से देर हो जाने के बाद लोग बारह-बारह बजे रात तक में अकेले आ जाते।
यद्यपि सोनम ट्रेन से आने में घबरा रही थी, कहीं लेट न हो जाये!
हुआ भी वही, बारह से एक बज गया फिर दो, तब जाकर कहीं गाड़ी आई। घर फोन से बात करने की कोशिश की लेकिन संभवतः सम्पर्क ना होने के कारण बात नहीं हो पाई। अभी हमारे यहां यह सुविधा उतनी अच्छी नहीं थी। जाते जाते चाचा कह गये कि मुहानी पर कोई आ गया तो आ गया, नहीं तो वहीं सम्पत साह के यहां सामान रख कर पैदल ही चले जाना।
हम लोग बैठे तो देर हो जाने की घबराहट थी लेकिन गाड़ी में बैठते ही हवा हो गई। सोनम खिड़की तरफ बैठी, फिर मैं। हम लोगों की यात्रा तो ऐसे कटी जैसे पति पति पत्नी हों। वह लगातार मेरे हाथों से खेलती रही। कभी-कभी अपने हाथों की कुहनियों को मेरे लंड पर पैंट के ऊपर से दबाती मेरे हाथ तो पूरी यात्रा में किसी न किसी तरह उसकी चूचियों के संपर्क में ही रहे।
अवसर देखकर कामुक बातें भी होती रहीं। मुझे उसकी जानकारियाँ सुनकर आश्चर्य हुआ। उसने बताया कि दीदी और जीजा कभी कभी गंदी फिल्म देखते हैं। जिसमे कभी दो आदमी एक की लेते हैं तो कभी एक दो की !
कहने लगी कि चाचा चाची की निरोध लगाकर ही करते हैं। उसने यह भी बताया कि उसने दरवाजे में एक छेद ऐसा कर रखा है कि जिससे वह जब चाहे उन लोगों की चुदाई देखे, मगर वह जान नहीं सकते।
ऐसे में यात्रा जब समाप्त हुई तो पता चला कि गाड़ी रास्ते और लेट हो गई। स्टेशन पर पहुंचते-पहुंचते सात बज गये। हल्का अंधेरा हो गया। सोनम डरने लगी। लेकिन बस जल्दी ही मिल गई। कुछ दूर जाने के बाद पहिया पंक्चर हो गया। और देर होती देख सोनम घबराने लगी, लेकिन मेरा मन प्रसन्नता से झूम उठा। मैंने निश्चय कर लिया अब सोनम को कुंआरी नहीं रहने दूंगा।
जब हम लोग मुहानी पर पहुंचे तो आठ का समय हो गया था। अंधेरा घिर आया था, लेकिन चांद भी निकलने की तैयारी में था। सोनम तो रोने लगी कि अब क्या होगा!
मैंने दिलासा दिया तो जाने को तैयार हुई।
सामान साह जी के यहां रखने गये तो योजना के अनुसार सोनम को थोड़ा दूर खड़ा करके कह दिया कि चाची हैं। वह अड़ गये कि सायकिल ले लो, लेकिन मैंने यह कहकर मना का दिया कि वह पैदल ही जायेंगी।
गांव में जाने का एक थोड़ा निकट का रास्ता था, लेकिन वह पलाश और कुश के छोटे से जंगल में से जाता था। मैंने वही रास्ता पकड़ा तो वह रुक गई।
क्योंकि उसे पता था कि एक सड़क भी है, लेकिन मेरे समझाने और डर समाप्त करने के बाद ही वह जाने को तैयार हुई। पगडंडियां तमाम थीं। मैंने जानबूझकर अलग पगडंडी पकड़ी। चूंकि बचपन से मैं इतनी बार इधर से गया था कि मुझे रास्ते का चप्पा चप्पा पता था। मेरे कंधे पर छोटा सा बैग था। जिसमे मेरे कपड़े थे। उसका सामान तो रख दिया था।
उसने मजबूती से मेरा हाथ पकड़ लिया था। थोड़ी दूर जाकर मैंने कहा, '' हाथ छोड़ो, मैं जरा मूत लूं !''
वह बोली, '' नहीं मुझे डर लग रहा है, यहीं मूतो !''
तब तक चांदनी के प्रकाश का प्रभाव वातावरण में उभर गया था। मैं उत्तेजित होने लगा। मुतास के कारण मेरा लंड पहले से ही खड़ा था मैंने उसी के सामने लंड को पैंट से निकाला और छल छल मूतने लगा। मूतने के बाद जब लंड हिलाकर बूंदें गिराने लगा तो वह बोली, '' बीज गिरा रहे हो मामा?''
मैंने कहा, '' बीज तो तुम्हारी बुर में गिराऊंगा।''
'' कैसे?''
'' तुम्हें चोदकर और कैसे?'' इतना कह कर मैं लंड को यूं ही बाहर लटकाये चल पड़ा। और हाथ उसके कंधे पर रखकर बगल से उसकी चूचियों को सहलाने लगा। वह कड़ी होने लगीं तो और तेज मलने लगा। वह उत्तेजित होकर मुझसे चिपकने लगी। चूचियां बड़े लम्बे आम का रूप धारण करने लगीं। मैंने रुककर मुंह में सटाकर अपनी जीभ उसके मुंह में डालकर जो चूसा तो बोली, '' मामा लगता है कि आज तुम मुझे खराब करके ही छोड़ोगे !''
" मतलब?''
'' मतलब न पूछो!'' कहकर वह बोली, मुझे भी मूतना है !'' कहकर वह वहीं सलवार खोलकर बैठ गई। जानवरों को चारा खिलाने वाली नाद की तरह उसके चूतड़ सामने आ गये। वह सीटी बजाती शर-शर मूतने लगी। मैं अपने खड़े लन्ड को उसकी कनपटियों से रगड़ने लगा।
मूत कर उठी तो सलवार बांधने से पहले ही मैंने उसकी झांटों से भरी चूत को मुट्ठी में पकड़ लिया वह मूत से गीली हो रही थी। उसने हल्का सा प्रतिरोध किया, '' छोड़ो न!''
अब तक चांदनी खिल चुकी थी। चारों तरफ सन्नाटा था। मुझे याद आया कि थोड़ा अन्दर एक छोटी सी पोखर है। मैं उसी तरफ उसे लिपटाये चला गया।
पोखर में पानी तो कम था, लेकिन उसके किनारे साफ स्थान था। पास में सफेद पुष्प खिले थे। वातावरण मादक था। उसने मस्ती भरे स्वर में कहा, ''यहां क्यों आये?''
मैंने कहा, '' तुम्हें लेने के लिए।'' फिर उससे खड़े ही खड़े ही लिपट गया।
वह मेरे ही बराबर थी। उसके बाल खुल गये थे। उसकी कड़ी होकर पत्थर चूचियां मेरे सीने से टकराकर मेरे अन्दर आग भर रही थीं। मैंने हाथ को पीछे ले जाकर उसके उभरे चूतड़ों को पकड़ लिया और मुंह को उसके मुंह से लगाकर उसके चेहरे और होंठों को चूसने लगा। उसने भी मुझे जकड़ लिया। मेरा लंड खड़ा होकर सलवार के ऊपर से उसकी चूत को चूमने लगा।
वह थोड़ी देर बाद अलग होकर बोली, '' अब चलो मुझे डर लग रहा है।''
मैंने उसकी बात को अनसुना करते हुए बैग खोल कर अपनी लुंगी निकाल कर बिछा दी और कहा, '' अब न तो मैं बिना चोदे रह सकता हूं और नहीं तुम बिना चुदाये !''
फिर मैंने उसे भूमि पर लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़कर उससे लिपट गया। उसने भी मुझे कस लिया। पांच मिनट की लिपटा-लिपटी के बाद मैं उठा और उसे उठाकर उसकी कुरती को शमीज़ सहित ऊपर खींच कर उतार दिया। वह ऊपर से नंगी हो गई। दोनों छातियां ऐसी गोरी चिकनी और फूलकर खड़ी हो गई थीं मानो उन्हें अलग से चिपका दिया गया हो। उन्हें नीचे से ऊपर मींजते सहलाते हुए कहा, '' सच बताओ सोनम मेरे अतिरिक्त तुम्हारे दो पपीतों को किसी और मींजा है?''
'' भगवान कसम नहीं। जब मैं गांव में थी तो संध्या भाभी जरूर मींजती और कभी कभी चूसतीं भी थीं, लेकिन तब यह छोटी थीं। कामता भैया कलकत्ता रहते थे। वह अपनी चूचियां चुसाती भी थीं। यहां किसी ने कभी नहीं कुछ किया।''
" तो आज मैं सब कुछ करूंगा !'' कहते हुए मैंने उसकी चूचियों को चूसना आरम्भ कर दिया। उसका सीना मेरे थूक भीग गया। वह वहीं लेट गई और अकड़ने लगी।
तब मैं उठा और अपनी पैंट और चड्ढी साथ उतार दी। बल्ल से मेरा लंड सामने आ गया। वह उसे ही देखने लगीं। मेरी झांटे काफी बड़ी हो गईं थीं। नसें तनकर अकड़ गई थीं। मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया। वह वैसे ही पकड़े रही। उसकी खड़ी चूचियां मेरे होंठों के सामने तनी थीं। तब मैंने कहा, '' सहलाओ।''
वह बोली, '' शरम आती है।''
'' लो अभी मैं शरम मिटाता हूं।'' कहकर मैंने उसके सलवार का नाड़ा पकड़कर खींच दिया। सलवार खुल गई। नीचे से पकड़कर खींचा तो उतर गई। वह शरमाने लगी। उसकी भी झांटे काफी बड़ी थीं। उसकी बुर उसी में छुपी थी।
'' कभी-कभी इसे साफ कर लिया करो।'' कहकर मैं हथेली से उसकी बुर सहलाने लगा।
सोनम सिसियाते हुए बोली, '' तुम्हारी भी तो बड़ी है।'' और फिर मेरे लंड पर अपनी हथेलियां चलाने लगी।
मेरी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई, लगा कि अब मैं कही झड़ न जाऊं। उसकी बुर भी गीली हो गई थी। उसकी बुर का दाना उभर आया था। यद्यपि मैंने तो रास्ते में सोचा तो बहुत कुछ करने के लिए था, लेकिन लगा कि अब मैं कहीं बिना अन्दर डाले ही न झड़ जाऊं तो उससे कहा, '' टांगें फैलाकर लेटो।''
वह लेटते हुए बोली, '' छोड़ दो न मामा!''
'' पागल हूं मैं !'' कहकर मैंने अपनी शर्ट उतार दी ओर उसके पूरे शरीर को सहलाया और फिर उसकी टांगों के बीच में जाकर उसकी बुर के छेद को हाथों से टटोलकर उसपर अपने लंड का सुपाड़ा रखकर औंधे मुंह उसपर लेट गया और कमर पर दबाव डाला तो भीग चुकी उसकी बुर में मेरा लंड सक से चला गया।
'' हाय राम मैं मरी!'' उसने कहा।
मैंने कहा, '' झिल्ली फट गई?''
'' पता नहीं!''
मैं एक पल के लिए रुका फिर कुहनियों को भूमि पर टिका कर उसकी चूचियों को मलते हुए कमर चलाते हुए सोनम को हचर-हचर चोदने लगा। सात आठ धक्के के बाद वह भी कमर चलाने लगी और अपने हाथों से मुझे कस लिया। मैं उसे चोदे ही जा रहा था। उसका शरीर महकने लगा। उसके मुंह से हों-हों का स्वर निकलने लगा।
मेरी कमर और तेज चलने लगी। उसने किचकिचाकर मुझे दबोच लिया। अन्त में मैं भल्ल से उसकी चूत में झड़ गया। मैं कुछ देर बाद उसके ऊपर से उठा। मेरा लंड बीज से सना था। उसकी चूत भी वैसे ही बीज से भरी थी। वह लम्बी लम्बी सांसे भर रही थी। मैंने पास पड़ी पैंट से रुमाल निकालकर पहले अपने गीले लंड को पौंछा फिर उसकी बुर को। अब वह स्थिर हो गई थी। बोली, '' मामा अगर कहीं बच्चा ठहर गया तो?''
'' पागल एक बार में बच्चा नहीं ठहरता है। उठो ! बैठकर मूत दो ! बीज नीचे गिर जायेगा।''
मूत कर वह उठी तो मैंने उसे अपनी टांगों को सीधे फैला लिया और उसकी टांगों को अपनी कमर के दोनो तरफ करवा कर बैठा लिया। उसकी चूत से मेरा सिकुड़ा लंड स्पर्श कर रहा था। मांसल चूचियां मेरे सीने से पिस रही थीं। उसके खुले बाल उसकी पीठ पर फैलकर वातावरण को मादक बना रहे थे। वह बोली, '' अब चलो। अपनी तो कर ही ली। देर हो जायेगी।''
'' देर तो हो गई। थोड़ी और सही। ऐसा सुनहरा अवसर अब तो कभी नहीं मिलेगा।''
उसने कोई उत्तर नहीं दिया इसका मतलब था कि उसकी भी मौन स्वीकृति थी। मेरे हाथ उसकी पीठ से लेकर उसके नाद जैसे भारी चूतड़ों की दरार तक चल रहे थे।
वह भी मेरे बालों में अंगुलियाँ चला रही थी। कभी कभी मेरी कनपटियो को भी सहलाने लगती। मैंने यूं ही पूछा, ''सोनम कभी सोचा था कि तुम्हारी चुदाई ऐसे रोमांटिक वातावरण में होगी?''
उसने कोई उत्तर नहीं दिया। मैंने उसे खड़ा किया तो वह रोबोट की भांति खड़ी हो गई। बिल्कुल नंगी ! मैं भी मनुष्य के आदिम रूप में था। हम नंगे पोखर के किनारो पर टहलने लगे। उसके चूतड़ चलते में हिल रहे थे। चिकने थे। एक भी रोयां नहीं था। जांघं और पिंडलियां भी चिकनी थी। झांटें जरूर पेड़ू तक फैली थीं। चूची हिल नहीं केवल थरथरा रही थी।
मैंने टहलते हुए बुर पर हथेली रखते हुए कहा, '' सोनम झांट हेयर रिमूवर से बना लिया करो। अभी लगता है एक बार नहीं किया?''
'' नहीं साफ तो किया है, लेकिन मुझे शरम आती है। जब चाची को याद आता है तब लाकर देती हैं तो करती हैं, स्वयं तो एकदम चिकना किए रहती हैं।''
फिर दोनों हाथों की अंगुली और अंगूठे को मिलाकर चूत का आकार देते हुए कहा, '' भोंसड़ा हो गई है, फिर भी !''
मैंने कहा, '' उन्हें चुदना जो होता है, जब तुम लगातार चुदोगी तो अपने आप साफ रखोगी।''
'' तुम तो चोदते हो तब भी जंगल उगा लिया है।'' कहकर वह मेरे लंड को पकड़ कर खेलने लगी और पेलड़ की गोलियों से खेलने लगी।
मुझे न जाने क्या सूझी कि मैंने उसे उठाकर सामने से उसे अपने कंधे पर बैठा लिया। उसकी टांगें पीठ की तरफ हो गईं। उसकी चूत मेरे मुंह के सामने आ गई और मन में आया कि लाओ चूम लूं, लेकिन सोचा पता नहीं क्या सोचे तो अपनी ठुड्डी उसकी बुर से रगड़ने लगा। उसकी झांट के बालों का स्पर्श चेहरे को अजब आनन्द दे रहा था।
इसी के साथ मैंने अपने हाथों को ऊपर उठाकर उसके दोनों दूधों को मसलने लगा। बुर चूत की बातें होती रहीं और हम फिर उत्तेजित हो गये। मेरा लंड दुबारा कील की तरह खड़ा होकर ऊपर उठ गया। इसी तरह पोखर का तीन चक्कर लगाते-लगाते वह उत्तेजित हो गई । तो बोली, '' मामा चलो फिर चोदो मगर दूसरी तरह से।''
मैं उसके इस खुले आमन्त्रण से हिल गया। कंधे से उतार कर ले जाकर लुंगी पर उसे झुका दिया और हथेली पर अपने और उसके मुंह से थूक लेकर अपने लण्ड पर मला और चूत को ढके झांटों को इधर-उधर करके छेद पर रखकर कसा तो एकदम अन्दर चला गया। फिर कमर हिलाहिलाकर उसे चोदने लगा।
कुछ पल बाद लंड निकाला तो देख कि उसकी बुर का छेद खुल चुका था। उसका चना भी फूल गया था। फिर मैं भूमि पर लेट गया। मेरा लंड हवा में तना था। मैंने उससे कहा, '' सोनम आओ ! इसपर टांगें फैलाकर बैठो।''
वह बोली, '' नहीं ! पूरा अन्दर चला जायेगा ! दर्द होगा !!''
'' यह सब कहने की बात है, और मजा आयेगा। बैठकर तो देखो !''
वह दानों टांगों को इधर उधर करके बुर के छेद को लंड के निशाने पर लेकर बैठी तो एकाएक कमर को पकड़कर दबा दिया। वह घप्प से गिर गई। सट से लंड अन्दर पूरा उसकी बुर की जड़ तक चला गया। पहले मैंने नीचे से अपनी कमर को हिलाया फिर वह भी हचर-हचर अपनी कमर चलाने लगी। मैं सामने उसकी स्तूप की तरह हिल रही चूचियों को सहलाने लगा। बढ़ती उत्तेजना के साथ मेरी और उसकी गति तेज हो गई। अन्त में मैं फल्ल-फल्ल झड़ने लगा। वह अजब अजब स्वर निकालने लगी और औंधे मुंह मेरे ऊपर गिर पड़ी।
 
चालीस की उम्र

मैं अपनी चालीस की उम्र पार कर चुकी थी। पर तन का सुख मुझे बस चार-पांच साल
ही मिला। मैं चौबीस वर्ष की ही थी कि मेरे पति एक बस दुर्घटना में चल बसे थे।
मेरी बेटी की शादी मैंने उसके अठारह वर्ष होते ही कर दी थी। अब मुझे बहुत
अकेलापन लगता था।
पड़ोसी सविता का जवान लड़का मोनू अधिकतर मेरे यहाँ कम्प्यूटर पर काम करने आता
था। कभी कभी तो उसे काम करते करते बारह तक बज जाते थे। वो मेरी बेटी वर्षा के
कमरे में ही काम करता था। मेरा कमरा पीछे वाला था ... मैं तो दस बजे ही सोने
चली जाती थी।
एक बार रात को सेक्स की बचैनी के कारण मुझे नींद नही आ रही थी व इधर उधर
करवटें बदल रही थी। मैंने अपना पेटीकोट ऊपर कर रखा था और चूत को हौले हौले
सहला रही थी। कभी कभी अपने चुचूकों को भी मसल देती थी। मुझे लगा कि बिना
अंगुली घुसाये चैन नहीं आयेगा। सो मैं कमरे से बाहर निकल आई।


मोनू अभी तक कम्प्यूटर पर काम कर रहा था। मैंने बस यूं ही जिज्ञासावश खिड़की
से झांक लिया। मुझे झटका सा लगा। वो इन्टरनेट पर लड़कियों की नंगी तस्वीरें
देख रहा था। मैं भी उस समय हीट में थी, मैं शान्ति से खिड़की पर खड़ी हो गई और
उसकी हरकतें देखने लग गई। उसका हाथ पजामे के ऊपर लण्ड पर था और धीरे धीरे उसे
मल रहा था।

ये सब देख कर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई। मेरे हाथ अनायास ही चूत पर चले गये, और
सहलाने लग गये। कुछ ही समय में उसने पजामा नीचे सरका कर अपना नंगा लण्ड बाहर
निकाल लिया और सुपाड़ा खोल कर मुठ मारने लगा। मन कह रहा था कि तेरी प्यासी
आंटी चुदवाने को तैयार है, मुठ काहे मारता है?

तभी उसका वीर्य निकल पड़ा और उसने अपने रूमाल से लण्ड साफ़ कर लिया। अब वो
कम्प्यूटर बंद करके घर जाने की तैयारी कर रहा था। मैं फ़ुर्ती से लपक कर अपने
कमरे में चली आई। उसने कमरा बन्द किया और बाहर चला गया।

उसके जाते ही मेरे खाली दिमाग में सेक्स उभर आया। मेरा जिस्म जैसे तड़पने लगा।
मैंने जैसे तैसे बाथरूम में जा कर चूत में अंगुली डाल कर अपनी अग्नि शान्त
की। पर दिल में मोनू का लण्ड मेरी नजरों के सामने से नहीं हट पा रहा था। सपने
में भी मैंने उसके लण्ड को चूस लिया था। अब मोनू को देख कर मेरे मन में वासना
जागने लगी थी। मुझे लगा कि सोनू को भी कोई लड़की चोदने के लिये नहीं मिल रही
है, इसीलिये वो ये सब करता है। मतलब उसे पटाया जा सकता है। सुबह तक उसका लण्ड
मेरे मन में छाया रहा। मैंने सोच लिया था कि यूं ही जलते रहने से तो अच्छा है
कि उसे जैसे तैसे पटा कर चुदवा लिया जाये, बस अगर रास्ता खुल गया तो मजे ही
मजे हैं।

मोनू सवेरे ही आ गया था। वो सीधे कम्प्यूटर पर गया और उसने कुछ किया और जाने
लगा। मैंने उसे चाय के लिये रोक लिया। चाय के बहाने मैंने उसे अपने सुडौल
वक्ष के दर्शन करा दिये। मुझे लगा कि उसकी नजरें मेरे स्तनों पर जम सी गई थी।
मैंने उसके सामने अपने गोल गोल चूतड़ों को भी घुमा कर उसका ध्यान अपनी ओर
खींचने की कोशिश की और मुझे लगा कि मुझे उसे आकर्षित में सफ़लता मिल रही है।
मन ही मन में मैं हंसी कि ये लड़के भी कितने फ़िसलपट्टू होते हैं। मेरा दिल बाग
बाग हो गया। लगा कि मुझे सफ़लता जल्दी ही मिल जायेगी।

मेरा अन्दाजा सही निकला। दिन में आराम करने के समय वो चुपके से आ गया और मेरी
खिड़की से झांक कर देखा। उसकी आहट पा कर मैं अपना पेटीकोट पांवों से ऊपर
जांघों तक खींच कर लेट गई। मेरे चिकने उघाड़े जिस्म को वो आंखे फ़ाड़-फ़ाड़ कर
देखता रहा, फिर वो कम्प्यूटर के कमरे में आ गया। ये सब देख कर मुझे लगा
चिड़िया जाल में उलझ चुकी है, बस फ़न्दा कसना बाकी है।

रात को मैं बेसब्री से उसका इन्तज़ार करती रही। आशा के अनुरूप वो जल्दी ही आ
गया। मैं कम्प्यूटर के पास बिस्तर पर यूँ ही उल्टी लेटी हुई एक किताब खोल कर
पढने का बहाना करने लगी। मैंने पेटीकोट भी पीछे से जांघो तक उठा दिया था।
ढीले से ब्लाऊज में से मेरे स्तन झूलने लगे और उसे साफ़ दिखने लगे। ये सब करते
हुये मेरा दिल धड़क भी रहा था, पर वासना का जोर मन में अधिक था।

मैंने देखा उसका मन कम्प्यूटर में बिलकुल नहीं था, बस मेरे झूलते हुये सुघड़
स्तनों को घूर रहा था। उसका पजामा भी लण्ड के तन जाने से उठ चुका था। उसके
लण्ड की तड़प साफ़ नजर आ रही थी। उसे गर्म जान कर मैंने प्रहार कर ही दिया।

"क्या देख रहे हो मोनू...?"

"आं ... हां ... कुछ नहीं रीता आण्टी... !" उसके चेहरे पर पसीना आ गया था।

"झूठ... मुझे पता है कि तुम ये किताब देख रहे थे ना ......?" उसके चेहरे की
चमक में वासना साफ़ नजर आ रही थी।

वो कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और मेरे पास बिस्तर के नजदीक आ गया।

"आण्टी, आप बहुत अच्छी हैं, एक बात कहूँ ! आप को प्यार करने का मन कर रहा
है।" उसके स्वर में प्यार भरी वासना थी।

मैंने उसे अपना सर घुमा कर देखा,"आण्टी हूँ मैं तेरी, कर ले प्यार, इसमे
शर्माना क्या..."

वो धीरे से मेरी पीठ पर सवार हो गया और पीछे से लिपट पड़ा। उसकी कमर मेरे
नितम्बो से सट गई। उसका लण्ड मेरे कोमल चूतड़ों में घुस गया। उसके हाथ मेरे
सीने पर पहुंच गये। पीछे से ही मेरे गालों को चूमने लगा। भोला कबूतर जाल में
उलझ कर तड़प रहा था। मुझे लगा कि जैसे मैंने कोई गढ़ जीत लिया हो।
मैंने अपनी टांगें और चौड़ी कर ली, उसका लण्ड गाण्ड में फ़िट करने की उसे
मनमानी करने में सहायता करने लगी।

"बस बस, बहुत हो गया प्यार ... अब हट जा..." मेरा दिल खुशी से बाग बाग हो गया
था।

"नहीं रीता आण्टी, बस थोड़ी सी देर और..." उसने कुत्ते की भांति अपने लण्ड को
और गहराई में घुसाने की कोशिश की। मेरी गाण्ड का छेद भी उसके लण्ड को छू गया।
उसके हाथ मेरी झूलती हुई चूंचियों को मसलने लगे, उसकी सांसें तेज हो गई थी।
मेरी सांसे भी धौकनीं की तरह चलने लगी थी। दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। लगा
कि मुझे चोद ही डालेगा।

"बस ना... मोनू ...तू तो जाने क्या करने लगा है ...ऐसे कोई प्यार किया जाता
है क्या ? ...चल हट अब !" मैंने प्यार भरी झिड़की दी उसे। वास्तव में मेरी
इच्छा थी कि बस वो मुझे पर ऐसे ही चढ़ा रहे और अब मुझे चोद दे... मेरी झिड़की
सुन कर वो मेरी पीठ पर से उतर गया। उसके लण्ड का बुरा हाल था। इधर मेरी
चूंचियां, निपल सभी कड़क गये थे, फ़ूल कर कठोर हो गये थे।

"तू तो मेरे से ऐसे लिपट गया कि जैसे मुझे बहुत प्यार करता है ?"

"हां सच आण्टी ... बहुत प्यार करता हूँ..."

"तो इतने दिनों तक तूने बताया क्यों नहीं?"

"वो मेरी हिम्मत नहीं हुई थी..."उसने शरमा कर कहा।

"कोई बात नहीं ... चल अब ठीक से मेरे गाल पर प्यार कर... बस... आजा !" मैं
उसे अधिक सोचने का मौका नहीं देना चाहती थी।

उसने फिर से मुझे जकड़ सा लिया और मेरे गालों को चूमने लगा। तभी उसके होंठ
मेरे होठों से चिपक गये। उसने अपना लण्ड उभार कर मेरी चूत से चिपका दिया।

मेरे दिल के तार झनझना गये। जैसे बाग में बहार आ गई। मन डोल उठा। मेरी चूत भी
उभर कर उसके लण्ड का उभार को स्पर्श करने लगी। मैंने उसकी उत्तेजना और बढ़ाने
के लिये उसे अब परे धकेल दिया। वो हांफ़ता सा दो कदम दूर हट गया।

मुझे पूर्ण विश्वास था कि अब वो मेरी कैद में था।

"मोनू, मैं अब सोने जा रही हूं, तू भी अपना काम करके चले जाना !" मैंने उसे
मुस्करा कर देखा और कमरे के बाहर चल दी। इस बार मेरी चाल में बला की लचक आ गई
थी, जो जवानी में हुआ करती थी।

कमरे में आकर मैंने अपनी दोनों चूंचियाँ दबाई और आह भरने लगी। पेटीकोट में
हाथ डाल कर चूत दबा ली और लेट गई। तभी मेरे कमरे में मोनू आ गया। इस बार वो
पूरा नंगा था। मैं झट से बिस्तर से उतरी और उसके पास चली आई।

"अरे तूने कपड़े क्यों उतार दिये...?"

"आ...आ... आण्टी ... मुझे और प्यार करो ..."

"हां हां, क्यों नहीं ... पर कपड़े...?"

"आण्टी... प्लीज आप भी ये ब्लाऊज उतार दो, ये पेटीकोट उतार दो।" उसकी आवाज
जैसे लड़खड़ा रही थी।

"अरे नहीं रे ... ऐसे ही प्यार कर ले !"

उसने मेरी बांह पकड़ कर मुझे अपनी ओर खींच लिया और मुझसे लिपट गया।

"आण्टी ... प्लीज ... मैं आपको ... आपको ... अह्ह्ह्ह्... चोदना चाहता हूं !"
वो अपने होश खो बैठा था।

"मोनू बेटा, क्या कह रहा है ..." उसके बावलेपन का फ़ायदा उठाते हुये मैंने
उसका तना हुआ लण्ड पकड़ लिया।

"आह रीता आण्टी ... मजा आ गया ... इसे छोड़ना नहीं ... कस लो मुठ्ठी में
इसे..."

उसने अपने हाथ मेरे गले में डाल दिये और लण्ड को मेरी तरफ़ उभार दिया।

मैंने उसका कड़क लण्ड पकड़ लिया। मेरे दिल को बहुत सुकून पहुंचा। आखिर मैंने
उसे फ़ंसा ही लिया। बस अब उसकी मदमस्त जवानी का मजा उठाना था। बरसों बाद मेरी
सूनी जिंदगी में बहार आई थी। मैंने दूसरे हाथ से अपना पेटीकोट का नाड़ा ढीला
कर दिया, वह जाने कब नीचे सरक गया। मैंने मोनू को बिस्तर के पास ही खड़ा कर
दिया और खुद बिस्तर पर बैठ गई। अब उसका लौड़ा मैंने फिर से मुठ्ठी में भरा और
उसे आगे पीछे करके मुठ मारने लगी। वो जैसे चीखने सा लगा। अपना लण्ड जोर जोर
से हाथ में मारने लगा। तभी मैंने उसे अपने मुख में ले लिया। उसकी उत्तेजना
बढ़ती गई। मेरे मुख मर्दन और मुठ मारने पर उसे बहुत मजा आ रहा था। तभी उसने
अपना वीर्य उगल दिया। जवानी का ताजा वीर्य ...

सुन्दर लण्ड का माल ... लाल सुपाड़े का रस ... किसे नसीब होता है ... मेरे मुख
में पिचकारियां भरने लगी। पहली रति क्रिया का वीर्य ... ढेर सारा ... मुँह
में ... हाय ... स्वाद भरा... गले में उतरता चला गया। अन्त में जोर जोर से
चूस कर पूरा ही निकाल लिया।

सब कुछ शान्त हो गया। उसने शरम के मारे अपना चेहरा हाथों में छिपा लिया।

मैंने भी ये देख कर अपना चेहरा भी छुपा लिया।

"आण्टी... सॉरी ... मुझे माफ़ कर देना ... मुझे जाने क्या हो गया था।" उसने
प्यार से मेरे बालों में हाथ फ़ेरते हुये कहा।

मैं उसके पास ही बैठ गई। अपने फ़ांसे हुये शिकार को प्यार से निहारने लगी।

"मोनू, तेरा लण्ड तो बहुत करारा है रे...!"

"आण्टी ... फिर आपने उसे भी प्यार किया... आई लव यू आण्टी!"

मैंने उसका लण्ड फिर से हाथ में ले लिया।

"बस आंटी, अब मुझे जाने दीजिये... कल फिर आऊंगा" उसे ये सब करने से शायद शर्म
सी लग रही थी।

वो उठ कर जाने लगा, मैं जल्दी से उठ खड़ी हुई और दरवाजे के पास जा खड़ी हुई और
उसे प्यार भरी नजरों से देखने लगी। उसने मेरी चूत और जिस्म को एक बार निहारा
और कहा,"एक बार प्यार कर लो ... आप को यूँ छोड़ कर जाने को मन नहीं कर रहा !"

मैंने अपनी नजरें झुका ली और पास में रखा तौलिया अपने ऊपर डाल लिया। उसका
लण्ड एक बार फिर से कड़क होने लगा। वो मेरे नजदीक आ गया और मेरी पीठ से चिपक
गया। उसका बलिष्ठ लण्ड मेरी चूतड़ की दरारों में फ़ंसने लगा। इस बार उसके भारी
लण्ड ने मुझ पर असर किया... उसके हाथों ने मेरी चूंचियां सम्भाल ली और उसका
मर्दन करने लगे। अब वह मुझे एक पूर्ण मर्द सा नजर आने लगा था। मेरा तौलिया
छूट कर जमीन पर गिर पड़ा।

"क्या कर रहे हो मोनू..."

"वही जो ब्ल्यू फ़िल्म में होता है ... आपकी गाण्ड मारना चाहता हू ... फिर चूत
भी..."

"नहीं मोनू, मैं तेरी आण्टी हू ना ..."

"आण्टी, सच कहो, आपका मन भी तो चुदने को कर रहा है ना?"

"हाय रे, कैसे कहूँ ... जन्मों से नहीं चुदी हूँ... पर प्लीज आज मुझे छोड़
दे..."

"और मेरे लण्ड का क्या होगा ... प्लीज " और उसका लण्ड ने मेरी गाण्ड के छेद
में दबाव डाल दिया।

"सच में चोदेगा... ? हाय ... रुक तो ... वो क्रीम लगा दे पहले, वर्ना मेरी
गाण्ड फ़ट जायेगी !"

उसने क्रीम मेरी गाण्ड के छेद में लगा दी और अंगुली गाण्ड में चलाने लगा।
मुझे तेज खुजली सी हुई।

"मार दे ना अब ... खुजली हो रही है।"

मोनू ने लण्ड दरार में घुसा कर छेद तक पहुंचा दिया और मेरा छेद उसके लण्ड के
दबाव से खुलने लगा और फ़क से अन्दर घुस पड़ा।

"आह मेरे मोनू ... गया रे भीतर ... अब चोद दे बस !"

मोनू ने एक बार फिर से मेरे उभरे हुये गोरे गोरे स्तनों को भींच लिया। मेरे
मुख से आनन्द भरी चीख निकल गई। मैंने झुक कर मेज़ पर हाथ रख लिया और अपनी
टांगें और चौड़ा दी। मेरी चिकनी गाण्ड के बीच उसका लण्ड अन्दर-बाहर होने लगा।
चुदना बड़ा आसान सा और मनमोहक सा लग रहा था। वो मेरी कभी चूंचियां निचोड़ता तो
कभी मेरी गोरी गोरी गाण्ड पर जोर जोर से हाथ मारता।

उसक सुपाड़ा मेरी गाण्ड के छेद की चमड़ी को बाहर तक खींच देता था और फिर से
अन्दर घुस जाता था। वो मेरी पीठ को हाथ से रगड़ रगड़ कर और रोमांचित कर रहा था।
उसका सोलिड लण्ड तेजी से मेरी गाण्ड मार रहा था। कभी मेरी पनीली चूत में अपनी
अंगुली घुसा देता था। मैं आनन्द से निहाल हो चुकी थी। तभी मुझे लगा कि मोनू
कहीं झड़ न जाये। पर एक बार वो झड़ चुका था, इसलिये उम्मीद थी कि दूसरी बार देर
से झड़ेगा, फिर भी मैंने उसे चूत का रास्ता दिखा दिया।

"मोनू, बस मेरी गाण्ड को मजा गया, अब मेरी चूत मार दो ..." उसके चहरे पर
पसीना छलक आया था। उसे बहुत मेहनत करनी पड़ रही थी। उसने एक झटके से अपना लण्ड
बाहर खींच लिया। मैंने मुड़ कर देखा तो उसका लण्ड फ़ूल कर लम्बा और मोटा हो
चुका था। उसे देखते ही मेरी चूत उसे खाने के लिये लपलपा उठी।

"मोनू मार दे मेरी चूत ... हाय कितना मदमस्त हो रहा है ... दैय्या रे !"

"आन्टी, जरा पकड़ कर सेट कर दो..." उसकी सांसें जैसे उखड़ रही थी, वो बुरी तरह
हांफ़ने लगा था, उसके विपरीत मुझे तो बस चुदवाना था। तभी मेरे मुख से आनन्द
भरी सीत्कार निकल गई। मेरे बिना सेट किये ही उसका लण्ड चूत में प्रवेश कर गया
था। उसने मेरे बाल खींच कर मुझे अपने से और कस कर चिपटा लिया और मेरी चूत पर
लण्ड जोर जोर से मारने लगा। बालों के खींचने से मैं दर्द से बिलबिला उठी। मैं
छिटक कर उससे अलग हो गई। उसे मैंने धक्का दे कर बिस्तर पर गिरा दिया और उससे
जोंक की तरह उस पर चढ़ कर चिपक गई। उसके कड़कते लण्ड की धार पर मैंने अपनी
प्यासी चूत रख दी और जैसे चाकू मेरे शरीर में उतरता चला गया। उसके बाल पकड़ कर
मैंने जोर लगाया और उसका लण्ड मेरी बच्चेदानी से जा टकराया। उसने मदहोशी में
मेरी चूंचियां जैसे निचोड़ कर रख दी। मैं दर्द से एक बार फिर चीख उठी और चूत
को उसके लण्ड पर बेतहाशा पटकने लगी। मेरी अदम्य वासना प्रचण्ड रूप में थी।
मेरे हाथ भी उसे नोंच खसोट रहे थे, वो आनन्द के मारे निहाल हो रहा था, अपने
दांत भींच कर अपने चूतड़ ऊपर की ओर जोर-जोर से मार रहा था।

"मां कसम, मोनू चोद मेरे भोसड़े को ... साले का कीमा बना दे ... रण्डी बना दे
मुझे... !"

"पटक, हरामजादी ... चूत पटक ... मेरा लौड़ा ... आह रे ... आण्टी..." मोनू भी
वासना के शिकंजे में जकड़ा हुआ था। हम दोनों की चुदाई रफ़्तार पकड़ चुकी थी।
मेरे बाल मेरे चेहरे पर उलझ से गये थे। मेरी चूत उसके लण्ड को जैसे खा जाना
चाहती हो। सालों बाद चूत को लण्ड मिला था, भला कैसे छोड़ देती !

वो भी नीचे से अपने चूतड़ उछाल रहा था, जबरदस्त ताकत थी उसमें, मेरी चूत में
जोर की मिठास भरी जा रही थी। तभी जैसे आग का भभका सा आया ... मैंने अपनी चूत
का पूरा जोर लण्ड पर लगा दिया... लण्ड चूत की गहराई में जोर से गड़ने लगा...
तभी चूत कसने और ढीली होने लगी। लगा मैं गई... उधर इस दबाव से मोनू भी चीख
उठा और उसने भी अपने लण्ड को जोर से चूत में भींच दिया। उसका वीर्य निकल पड़ा
था। मैं भी झड़ रही थी। जैसे ठण्डा पानी सा हम दोनों को नहला गया। हम दोनों एक
दूसरे से जकड़े हुये झड़ रहे थे। हम तेज सांसें भर रहे थे। हम दोनों का शरीर
पसीने में भीग गया था। उसने मुझे धीरे से साईड में करके अपने नीचे दबा लिया
और मुझे दबा कर चूमने लगा। मैं बेसुध सी टांगें चौड़ी करके उसके चुम्बन का
जवाब दे रही थी। मेरा मन शान्त हो चुका था। मैं भी प्यार में भर कर उसे चूमने
लगी थी। लेकिन हाय रे ! जवानी का क्या दोष ... उसका लण्ड जाने कब कड़ा हो गया
था और चूत में घुस गया था, वो फिर से मुझे चोदने लगा था।

मैं निढाल सी चुदती रही ... पता नहीं कब वो झड़ गया था। तब तक मेरी उत्तेजना
भी वासना के रूप में मुझ छा गई थी। मुझे लगा कि मुझे अब और चुदना चाहिये कि
तभी एक बार फिर उसका लण्ड मेरी चूत को चीरता हुआ अन्दर घुस गया। मैंने उसे
आश्चर्य से देखा और चुदती रही। कुछ देर में हम दोनों झड़ गये। मुझे अब कमजोरी
आने लगी थी। मुझ पर नींद का साया मण्डराने लगा था। आंखें थकान के मारे बंद
हुई जा रही थी, कि मुझे चूत में फिर से अंगारा सा घुसता महसूस हुआ।

"मोनू, बस अब छो ... छोड़ दे... कल करेंगे ...!" पर मुझे नहीं पता चला कि उसने
मुझे कब तक चोदा, मैं गहरी नींद में चली गई थी।

सुबह उठी तो मेरा बदन दर्द कर रहा था। भयानक कमजोरी आने लगी थी। मैं उठ कर
बैठ गई, देखा तो मेरे बिस्तर पर वीर्य और खून के दाग थे। मेरी चूत पर खून की
पपड़ी जम गई थी। उठते ही चूत में दर्द हुआ। गाण्ड भी चुदने के कारण दर्द कर
रही थी। मोनू बिस्तर पर पसरा हुआ था। उसके शरीर पर मेरे नाखूनों की खरोंचे
थी। मैं गरम पानी से नहाई तब मुझे कुछ ठीक लगा। मैंने एक एण्टी सेप्टिक क्रीम
चूत और गाण्ड में मल ली।

मैंने किचन में आकर दो गिलास दूध पिया और एक गिलास मोनू के लिये ले आई।

मेरी काम-पिपासा शान्त हो चुकी थी, मोनू ने मुझे अच्छी तरह चोद दिया था। कुछ
ही देर में मोनू जाग गया, उसको भी बहुत कमजोरी आ रही थी। मैंने उसे दूध पिला
दिया। उसके जिस्म की खरोंचों पर मैंने दवाई लगा दी थी। शाम तक उसे बुखार हो
आया था। शायद उसने अति कर दी थी...।
 
रेलगाड़ी में हुआ मिलन



मै रेलगाडी में मुंबई से हावडा जा रहा था. मेरे सामने वाली सीट पर एक सुंदर
महिला बैठी थी. उसने नीली साडी पहनी हुई थी. वो पतली दुबली थी मगर उसके दूध
बड़े बड़े थे, ऐसा लगता था मानो अभी ब्लाउज़ फाड़ कर बाहर आने को बेताब हैं।
उसका रंग भी बिल्कुल दूध की तरह सफ़ेद था। उसकी उमर कोई २८ साल की होगी ।
मैने ध्यान दिया कि वो मुझे बहुत देर से देख रही है तो मैने भी उसकी तरफ़ देख
कर थोड़ा मुस्करा दिया। फिर वो मुझसे अपनी टिकट दिखाते हुए पूछी कि ज़रा देखो
मेरा रिज़र्वेशन है कि नहीं? मैने देखा उनका वेटिंग टिकेट था। मैने कहा कोई
बात नहीं आप मेरे सीट में सो जाना। फिर मैने उसका नाम पूछा तो उसने बताया कि
उसका नाम रूपा है। रूपा की खूबसूरती देख कर मेरे मुंह और लंड दोनो ही जगह से
पानी निकल रहा था। मैं मन ही मन उसे चोदने का प्लान बनाने लगा। ये सरदी की
रात थी इसलिये सभी लोग कम्बल ढक कर सो रहे थे।


रात को हम खाना खाने के बाद मैने रूपा से कहा के आप सो जाओ मैं बैठता हूं।
उसने कहा नहीं तुम भी कम्बल ओढ कर सो जाओ। और फिर वो ट्रेन की उस छोटी सी सीट
पर इस तरह से लेट गये कि उसकी गांड मेरी तरफ़ थी और चेहरा दूसरी तरफ़। फिर
मैं उसके सर की तरफ़ पैर को रख कर लेट गया और मैं उसकी गांड की तरफ़ मुंह
घुमा कर सो गया। अब लंड बिल्कुल उसकी गांड की दरार में था उसकी गोल गोल गांड
और मेरा लंड एक दूसरे से चिपके हुए थे। रूपा के गोरे गोरे पैर भी बिल्कुल
मेरे चेहरे के सामने थे। मेरे लंड को समझाना अब मुश्किल हो रहा था। मैने अपने
हाथ उसके पैरों पर रख कर थोड़ा सहलाना शुरु किया और गरम गरम सांसो के साथ
उसके पैरों को चूमने लगा।

थोड़ी देर बाद वो मेरी तरफ़ मुड़ गयी। अब उसका चेहरा भी मेरे पैरों की ओर था।
उसने मेरे पैरों को ज़ोर से पकड़ का अपने बूब्स से रब करना शुरु कर दिया। फिर
मैने भी उसके पैरों को सहलाते हुए जांघ तक जा पहुंचा और जब मैं उसकी चूत पर
हाथ रखा तो ऐसा लगा मेरा हाथ जल गया। उसकी चूत भट्टी की तरह गरम हो रही थी और
गरम गरम चूत बिल्कुल गीली हो रही थी। मैने उसकी चूत में अपनी उंगलियां डालनी
शुरु कर दी, उसकी चूत पर छोटे छोटे बाल थे जिनको मैं अपनी उंगलियों से सहला
रहा था। फिर धीरे धीरे कम्बल के अन्दर ही मैं अपना मुंह उसके चूत तक लेकर गया
और उसकी चूत को पीने की कोशिश करने लगा। उसने अपने एक पैर को उठा कर मेरे
कंधे पर रख दिया। अब उसकी बुर बिल्कुल मेरे मुंह में थी मैं अपनी जीभ को उसके
बुर के चारों तरफ़ घुमाना शुरु कर दिया वो भी अपनी कमर धीरे धीरे हिलाना शुरु
कर दी। मैने भी अपने पैर को उठा कर अपना लंड उसकी तरफ़ बढ़ा दिया। वो बड़े
प्यार से लंड को चूसने लगी।

हम अब बिल्कुल ६९ की पोजिशन में थे लेकिन ऊपर नीचे नहीं थे बल्कि साइड बाइ
साइड थे और हम जो भी कर रहे थे धीरे धीरे कर रहे थे क्यों कि ट्रेन में किसी
को पता न चले। वो अब कुछ ज्यादा ही ज़ोर से अपने कमर को उठा का अपने बुर को
मेरे मुंह में रगड़वा रही थी। अचानक उसने मेरे सर को अपने हाथ से अपनी बुर
में ज़ोर से दबा दिया और कमर को मेरे मुंह में दबा दिया और ढीली पर गयी। मैं
उसके बुर की गरमी धीरे धीरे अपने मुंह से चाट चाट कर साफ़ किया। वो अब भी
मेरे लंड को चूस रही थी। मैं भी अब जोर जोर से अपने लंड को उसके मुंह में
घुसा रहा। मेरे लंड का पानी भी अब बाहर निकलने वाला था मैं ने ज़ोर से उसके
बुर में अपना मुंह घुसा दिया और मेरे लंड से पानी निकलना शुरु हुआ तो ८-१०
झटके तक निकलता ही रहा। उसने मेरे लंड के पानी को पूरा अपनी मुंह में लेकर पी
गयी।

थोड़ी देर के बाद मैं उठा और टोइलेट गया। मैने अपनी पैंट उतार दी फिर अपनी
चड्ढी भी उतार दी। अपने लंड को अच्छी तरह से साफ़ किया और पैंट पहन ली। वापस
आकर मैने अपनी चड्ढी बैग में डाल दी। फिर वो भी टोइलेट जाकर आयी। और मेरी
तरफ़ मुंह करके सो गयी और कम्बल ढक ली। अब उसके बूब्स मेरी छाती से लग रहे
थे। मैने उसके ब्लाउज़ के बटन खोल दिये। वो ब्रा नहीं पहनी थी। ब्रा को शायद
टोइलेट में ही उतार कर आयी थी। मैं उसके गोल गोल बूब्स को अपने हाथ से दबाने
लगा और उसके निप्पल को मुंह में लेकर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा। उसने अपने एक
हाथ से अपनी साड़ी को उठा कर कमर के ऊपर रख लिया। अब उसकी कमर के नीचे कुछ भी
नहीं था मेरा हाथ उसके मक्खन जैसी जांघों को तो कभी उसके बुर को प्यार से
सहला रहा था और रुपा अपने हाथों से मेरे लंड को सहला रही थी। ऐसा काफ़ी देर
तक चलता रहा।

मेरा लंड एक बार फिर से उसकी बुर की गहराई को नापने के लिये मचलने लगा था।
मैने धीरे से रूपा से पलट कर सोने को कहा। रुपा धीरे से पलट गयी। अब उसकी
नंगी गांड की दरार मेरे लंड से चिपकी हुई थी। मैने धीरे से अपने लंड को हाथ
से पकड़ कर पीछे से उसकी गांड के छेद में रखा और एक हल्का सा धक्का मारा।
मेरा लंड उसकी गांड में आधा घुस गया लेकिन वो दर्द से कराह उठी। लेकिन वो
चीखी नहीं। वो जानती थी कि ट्रेन में सब सो रहे लोगों को शक न हो जाये।

मैने धीरे से एक और धक्का मारा और लंड पूरा का पूरा अन्दर घुस गया। फिर मैं
एक हाथ से उसकी चूचियों को मसलने लगा। रूपा की चिकनी चिकनी गांड मेरे पेट से
रगड़ खा रही थी। और मैं उसे चोदे जा रहा था। फिर चार पांच मिनट के बाद मैने
अपनी चुदाई की स्पीड बढ़ा दी। और जोर जोर से रूपा को चोदने लगा। रूपा भी अपनी
गांड हिला हिला कर चुदवा रही थी।

अचानक रूपा अपनी गांड को मेरे लंड पे जोर से दबा कर रुक गयी। मेरा लंड भी
पिचकारी की तरह पानी छोड़ना शुरु कर दिया। लंड और बुर दोनो का पानी गिर जाने
के बाद दोनो शान्त हो गये। लेकिन हमारी चुदाई सुबह तक चलती रही। हमने रात भर
में सात बार चुदाई की। और किसी को पता भी नहीं चला।

फिर सुबह मेरा स्टेशन आ गया। और मैं उतर गया। उसे आगे जाना था तो वो चली गयी
और जाते जाते अपना फोन नम्बर भी दे गयी।
 
प्यासी चाची

दरअसल बात मेरे भइया की शादी से शुरू होती है जो कि जबलपुर में थी। वैसे तो मैं भोपाल शहर का रहने वाला हूँ। पर अपने भाई की शादी होने की वजह से मैं जबलपुर गया था जहाँ हमारे सारे रिश्तेदार आए थे। जिनमें से एक थी सपना चाची। वैसे तो वो मेरी दूर की रिश्तेदार थी पर उनके साथ मैं घुल मिल गया था।
वो दिल्ली की रहने वाली थी, पर उनके पति का देहांत कई सालों पहले हो हो चुका था। सपना चाची की उमर करीब ३०-३२ साल है । पर देखने में वो बला सी खूबसूरत हैं। उनका जिस्म देख के सारे शरीर मैं कंपकपी होने लगती है। उनका फिगर ३६-२४-३६ है। और वो हमेशा थोड़ा पतले कपड़े का बलाउज़ पहनती हैं जिसमें से उनकी ब्रा साफ़ साफ़ दिखती थी।

शादी को अभी २ दिन बाकी थे और घर में भीड़ होने की वजह से कुछ लोगों ने तय किया कि वो छत पे सोयेंगे। उन लोगों में से मैं भी एक था। छत पे हम सिर्फ़ ६ लोग सो रहे थे। जब रात के २ बजे मेरी नींद खुली और मैं दूसरी तरफ़ पेशाब करने गया तो मैंने पाया कि वहां पलंग पे कोई औरत सोई हुई थी जिसका पेटीकोट उसके घुटने के ऊपर तक आ गया था। उसको देखते ही मेरा लंड खड़ा हो गया और मैं ख़ुद को उस औरत के पास जाने से रोक नहीं सका। जब मैं उसके नजदीक पहुँचा तो पाया कि वो कोई और नहीं बल्कि सपना चाची थी। उनको देखते ही मेरा लंड मेरे पायजामे में से बाहर आने लगा था। मैंने फैसला कर लिया था कि आज तो मैं इनके बदन को छू के ही रहूँगा।

मैं सबको देख कर आया कि कहीं कोई उठा तो नहीं है। पर सब गहरी नींद में सो रहे थे। शायद सपना चाची भी गहरी नींद में सो रही थी तो मेरी हिम्मत और बढ़ गई और मैं उनके पलंग के बाजू में जाकर बैठ गया और धीरे धीरे उनके पेटीकोट को ऊपर की तरफ़ सरकाने लगा। थोड़ी ही देर में उनका पेटीकोट बिल्कुल ऊपर तक आ चुका था। शायद वोह चड्डी नही पहनती थीं, जिस कारण उनकी चूत मुझे साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी जिस पर हलके से बाल थे।

उनकी चूत देखकर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उनकी जांघ पे धीरे धीरे हाथ फेरना शुरू कर दिया और उनके जिस्म के भी रोंगटे खड़े हो गए थे, थोड़ी ही देर में उन्होंने करवट ले ली और अब उनकी चूत के दर्शन मुझको साफ़ तरीके से होने लगे थे। तो मैंने भी देर ना करते हुए उनके गड्ढे में अपनी एक ऊँगली डालना शुरू कर दी पर उनकी चूत बहुत ही टाईट थी जिस वजह से मैं और पागल हो चुका था और थोड़ी देर में मैंने एक ऊँगली से दो उँगलियाँ उनकी चूत में अन्दर बाहर करना शुरू कर दी।

मैं इतना जोश मैं आ चुका था कि मैं चाची के ऊपर चढ़ गया और उनकी चूची को दबाने लगा ऊपर से ही। पर तब तक वो जाग चुकी थी। उनकी आँख खुली देखकर मैं एकदम डर सा गया, चाची ने मुझे एक चांटा लगाया और फ़िर रोने लगी और मुझसे चिपक गई, मुझे भी एक दम से कुछ समझ नहीं आया था पर उनके बदन की गर्मी से मैं पागल हो गया और उनके होंठो को मैंने चूमना शुरू कर दिया। धीरे धीरे उनके दूध दबाने लगा और वो भी मेरा बराबरी से साथ देने लगी जिससे हमारे बीच सेक्स का मज़ा दोगुना हो गया।

अब मैंने पेटीकोट को हटा दिया और उनकी चूत पर अपना मुँह रख दिया जिससे चाची परेशान हो गई और चुदने के लिए अपनी चू्त को उछालने लगी। मैं खीर को धीरे धीरे खाना चाहता था, इस वजह से मैंने उनके छेद में अपनी जीभ डाल के अन्दर बाहर करना शुरू कर दी और उनके झड़ने का इंतज़ार करने लगा।

जैसे ही चाची झड़ने वाली थी मैंने सब कुछ एकदम से रोक दिया जिस वजह से चाची झड़ नहीं पाई और वो और भी ज्यादा गरम हो गई और मुझसे कहने लगी कि आज तक इतना सुखद अनुभव उसको कभी नहीं हुआ, उसके पति के जाने के बाद से वो प्यासी थी, आज मैं उसकी प्यास बुझाऊं।

मैंने भी देरी ना करते हुए अपने ९ इंच का लंड चाची के हाथ में दे दिया और चाची ने भी बुद्धिमानी दिखाते हुए मेरे लंड को अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसना शुरू कर दिया और जब मेरी झड़ने की बारी आई तो चाची ने सब रोक दिया जैसा कि मैंने उनके साथ किया था।

अब बारी थी असली मज़ा करने की। मैंने चाची के छेद के ऊपर अपना सु्पाड़ा रखा और थोड़ा सा धक्का लगाया और कुछ ही देर में मेरा लंड उनकी चूत में समां चुका था फ़िर मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी और अन्दर बाहर करने लगा। फ़िर थोड़ी देर के लिए चाची मेरे ऊपर आई और अपने दूध मेरे मुँह के सामने रख दिए तो मैंने भी उसकी चुचियों को अपने दांतों में रख के धीरे धीरे दबाना शुरू कर दिया और अन्दर से उस पे जीभ फेरना भी शुरू कर दिया।

चाची अब पागलों की तरह मेरे पूरे बदन पे हाथ फेरने लगी थी और फ़िर बारी आई चाची को निढाल करने की। तो अब मैंने चाची को अपने ऊपर चढ़ाया और धीरे धीरे उसे ऊपर नीचे होने के लिए कहा। और चाची भी एक्सपर्ट थी जैसा कहा बिल्कुल वैसा ही करती रही और कुछ ही देर में हम दोनों साथ झड़ गए और एक दूसरे की बाहों में करीब ३० मिनट तक लिपटे रहे और मेरा पूरा वीर्य चाची की चूत में ही था। अब सुबह होने को थी तो मैं अपने बिस्तर पे चला गया।

उसके बाद मुझको चाची के साथ सेक्स करने का मौका नहीं मिल पाया। पर हमारी बात होती रहती है और वो मेरे साथ और सेक्स करना चाहती हैं।

अब मैं जून मैं दिल्ली जाऊंगा तब चाची को अपना और करिश्मा दिखाऊंगा।
 
विधवा भाभी

मेरा नाम डॉ ब्लू है और ये कहानी मेरी और मेरे विधवा भाभी की है। जब हमारे घर पर सिर्फ़ हम दोनों ही थे क्योँकि हमारे माता पिता का दो साल पहले ही निधन हो गया था और उस के एक साल के बाद मेरे भाई ने शादी कर ली और हम घर में दो से तीन हो गये। मेरा भाई अक्सर काम के सिलसिले में शहर से बाहर जाता था और लौटने में काफी वक्त लगता था।

मेरी भाभी एक अच्छी और सुशील लड़की थी और उन का फिगर था ३८ २८ ३८ । जब वो चलती थी तो उन की गांड देख कर हर कोई यही चाहता था कि उन की गांड मारे।

शादी के ६ महीने बाद मेरे भाई का एक्सीडेंट हो गया और वो उस एक्सीडेंट में मर गया और उस कारण भाभी थोडी से पागल सी हो गई थी और अब घर की ज़िम्मेदारी मुझ पर आ गई थी। मैंने अपनी पढ़ाई छोड़ कर नौकरी करना शुरू किया और देखते ही देखते मैंने भाभी का इलाज कर लिया और वो अब ठीक हो गई थी और फिर भाभी के घर वालों ने भाभी की दूसरी शादी की बात की तो भाभी ने मना कर दिया क्योँकि वो जानती थी कि अगर उन्होंने दूसरी शादी की तो मैं अकेला रह जाउंगा और इस वजह से उन्होंने दूसरी शादी नहीं की और हम लोग हसी खुशी रहने लगे।

पर एक दिन जब मैं जब काम से लौटा तो मैंने दरवाज़ा खुला पाया और जैसे मैंने अन्दर जाकर देखा तो भाभी कपड़े धो रही थी और उन की साड़ी काफ़ी ऊपर तक उठी हुई है और उन की सारे कपड़े भीग गए थे जिस से उनकी अंदर की ब्रा साफ़ दिखाई दे रही थी और जैसे ही मैंने उन की ब्रा देखी, मैंने देखा कि भाभी एक दम लो कट ब्लाउज़ पहने है और उनके बूब्स भी दिख रहे है, तो उसी वक्त मेरे लंड खड़ा हो गया

मैंने अपने रूम में जाकर उसे ठीक किया और फिर भाभी को आवाज़ लगा कर कहा कि चलो कहीं घूम कर आते है। वो राजी हो गई। हम लोग ट्रेन से गए।

लौटते समय ट्रेन में काफी भीड़ थी, जिस के कारण मैंने भाभी को सामने किया और मैं उनके पीछे खड़ा हो गया और कुछ देर बाद मुझे किसी ने धक्का मारा, जिस के कारण मैं उन के करीब हो गया इतना करीब कि मेरा लण्ड उनकी गांड को हौले से टच करने लगा। उन्होंने ये महसूस किया और जैसे ही मेंने पीछे हटने की कोशिश की तो वो भी पीछे हट रही थी।

मेंने सोचा कि शायद भीड़ के कारण वो पीछे हटी होंगी पर जब हम लोग घर पहुंचे तो मैंने महसूस किया कि भाभी का आज रंग कुछ बदला है और उन की चाल भी कुछ बदली हुई है।

और फिर हम लोग खाना खा कर अपने अपने रूम में चले गए पर रात को मुझे नींद नहीं आ रही थी जिस से मैंने टीवी रूम में बैठ कर टीवी चालू किया और टीवी देखने लगा।

टीवी की आवाज़ सुनकर भाभी भी वहां आ गई और पूछा कि क्या तुम्हे नींद नहीं आ रही है जैसे ही मैंने उन को देखा तो मेरा लण्ड एक खंभे की तरह खड़ा हो गया क्योँकि उन्होंने एक दम मलमल जैसी पतली नाईटी पहन रखी थी जिसमें से उनकी ब्रा और उन की पैन्टी भी एक दम साफ़ दिखाई दे रही थी।

ये देख कर मेरा लण्ड अब फ़ड़फ़ड़ाने लगा था। जैसे ही वो मेरे पास आई और सोफे पर बैठे हुए उन्होंने कहा कि इतनी सर्दी में तुम्हें पसीने छूट रहे हैं तो मैंने डर गया और अपनी नज़र हटा ली।। हाथ मेरे लण्ड पर रख लिए और फिर कुछ नहीं कहा पर मेरी नज़र उनके बूब्स पर ही थी।

कुछ देर बाद भाभी ने मुझे कहा कि उन के सारे बदन में दर्द हो रहा है और उनको मालिश करनी है तो मुझ से पूछा कि क्या कोई है जिसे तुम जानते हो तो मैंने कहा कि नहीं पर मुझे मालिश करनी आती है तो वो पहले मुस्कुराई और कहा कि अच्छा और मेरे करीब आ गई और मुझे कहा कि क्या तुम मेरी मालिश करोगे?

तो मैंने हाँ में सर हिलाया और फिर वो मुझे अपने रूम में ले गई और लेट गई और कहा कि चलो अब मेरी मालिश करो मैंने पहले उन के पैर से शुरू किया ५ मिनट और फिर मैंने उन से कहा कि क्यों न आप अपनी गाऊन उतार दें, तो उन्होंने झट से उसे उतार दिया। अब भाभी सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में थी और मैंने उन को ऐसे पहली बार देखा था और फिर मैंने तेल की बोटेल ली और उन की पीठ पर लगाना शुरू किया कुछ देर मालिश करने के बाद मेंने भाभी से कहा कि आप की ये ब्रा मुझे चुभ रही है तो उन्होंने कहा कि इसे भी खोल दो, तो मैने उसे भी खोल दिया और फ़िर मैंने भाभी को पीठ के बल लेटने को कहा जैसे ही उन्होंने करवट ली तो उनकी नज़र मेरे तने हुए लण्ड पर पड़ी तो उन्होंने कहा कि समीर ये क्या है तो मैने कहा कि ये मेरा हथियार है जैसा भाई के पास था बिल्कुल वैसे ही।

तो भाभी ने कहा कि चलो मैं अब अपनी पैंटी उतारती हूं और तुम अपना ये शोर्ट उतारो, तो मैंने पहले मना कर दिया पर भाभी ने कहा कि मैंने तो अपनी ब्रा और पैंटी उतारने में तो कुछ नही कहा और तुम सिर्फ़ अपना शोर्ट उतरने के लिए इतना सोच रहे हो। तो मैंने कहा की आप मेरी भाभी है तो उन्होंने कहा कि चलो आज से तुम मुझे मेरे नाम से बुलाना और उन का नाम पिंकी था और फिर उन के इतना कहने के बाद मैंने अपना शोर्ट उतार दिया।

जैसे ही मैंने अपना शोर्ट उतारा तो वो मेरे लण्ड को देख कर दंग रह गई और कहा कि तुम्हारा लण्ड तो वाकई बहुत बड़ा है उन्होंने पूछा कि ये कितना लंबा है तो मैंने कहा कि ये ९ इंच का है तो उन्होंने कहा कि तुम्हारे भाई का तो सिर्फ़ ५ इंच का था उन्होंने ख़ुद कहा था।

अब भाभी और मैं एक दम नंगे थे और फिर भाभी मेरे लण्ड को घूर रही थी और मैं उन की चूत को घूर रहा था। फिर भाभी ने कहा कि अब मेरे बूब्स की मालिश करो मैं उनके बूब्स को दबाने लगा था और भाभी ने मेरा लण्ड अपने हाथ में ले लिया और उस को सहलाने लगी और मुझे भी मज़ा आने लगा। कुछ देर बाद मैंने अपना सारा माल उन के हाथ और उन के बूब्स पर गिरा दिया। मैंने उन को सॉरी कहा पर उन्होंने कुछ नही कहा और जो मेरा माल गिरा था वो उसे चाटने लगी और बड़े मज़े से चाटने लगी।

मेरे सामने ही अपनी चूत में ऊँगली डाल कर रगड़ने करने लगी और मुझे देखने लगी और वो कुछ अजीब सी आवाजें निकल ने लगी आआआआ ऊऊऊओ ईईईईईईईए फिर कुछ देर बाद उन की चूत में से भी पानी निकल गया और वो शांत हो गई।

फिर मैंने भाभी से कहा कि भाभी! मैं सोने जा रहा हूं तो उन्होंने कहा कि मैंने तुम को कहा कि तुम मुझे नाम से बुलाना तो मेंने उनको नाम से बुलाना शुरू किया। फिर मैं अपने रूम में चला गया और जब सुबह को उठा तो मैंने देखा कि रात की उस सेक्स मसाज़ की वजह से मेरा लण्ड काफी बड़ा हो गया था मैंने सोंचा कि चलो अब पिंकी किचन में होगी तो मैंने कुछ नही पहना और किचन की ओर चला गया। देखा तो पिंकी वहीं थी।
जैसे ही उन्होंने मुझे देखा तो कहा कि तेरा लण्ड तो रात से भी ज्यादा बड़ा हो गया है। तो मैंने कहा कि ये सब आप ही मेहरबानी है तो वो हंसने लगी और कहा कि क्या तुम भी वही चाहते हो जो मैं चाहती हूं?

तो मैंने कहा कि इस के बारे में बाद में बात करते हैं और मैं बाथरूम में गया और कुछ देर बाद भाभी को आवाज़ लगाई। मैंने कहा कि पिंकी ज़रा साबुन देना। तो वो समझ गई और अपने सारे कपड़े उतार कर बाथरूम में आ गई और कहा कि आज हम दोनों मिल कर नहाएंगे।

तो मैंने कहा कि ठीक है और उन्होंने साबुन अपने बदन पर साबुन लगाना शुरू किया और मैं उनको देखने लगा। उन्होंने पूछा- ऐसे क्या देख रहे हो? तो मैंने कहा कि मैं आप के…… आप के बूब्स और गाण्ड को देख रहा हूं, मुझे ये बड़े मस्त लगते है। तो उन्होंने कहा कि क्या तुम इन्हे छूना चाहते हो क्या तो मैंने हामी में सर हिलाया और वो मेरे करीब आइ और मेरे लण्ड को अपने हाथ में लिया और मुझे उनके बूब्स को दबाने को कहा।

और मैंने उन के बूब्स को दबाना शुरू किया और उनकी गांड को सहलाना शुरू किया। वाह दोस्तो, क्या गाण्ड एक दम सॉफ्ट। और मैंने देखा उनकी फ़ुद्दी पर एक भी बाल नही था। मेंने उन के बूब्स को मुँह में ले लिया और उन की फ़ुद्दी को अपनी हाथ से रगड़ने लगा और वो जोश में आकर आआआआऊऊश ह्श्श्श्श्श्श्श्श कर ने लगी। तो मैं उन को बेडरूम में ले गया और उनको लिटा दिया और उन के बूब्स को चूसने लगा और उन की फ़ुद्दी को अपनी ऊँगली से चोदने लगा।

फिर उन्होंने कहा कि समीर मेरी चूत को चाटो तो मैंने उनकी फुद्दी को चाटना शुरू किया, वो अभी जोश में आ गई और जोर से कराहने लगी आआऊऊऊऊऊऊऊऊश्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्स् ईईईईईईईईईईईईईई ऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊ और चाटो और चाटो कह रही थी।

१० मिनट चाटने के बाद उन्होंने कहा कि मैं झड़ने वाली हूं तो मैंने कहा कि मैं आप का रस पीना चाहता हूं। इतना कहा ही था कि वो झड़ गई और मैंने उनका सारा रस पी लिया और फिर मैंने उनको उठाया और मेरा लण्ड उनके मुँह में दे दिया और उनको चूसने को कहा। उन्होंने खूब चूसा और अच्छा चूसा। १० मिनट के बाद जब मैंने उनसे कहा कि मैं झड़ने वाला हूं तो उन्होंने कहा कि मैं भी तुम्हारा वीर्य पीना चाहती हूं और मैंने अपना सारा वीर्य उनके मुँह में झाड दिया और उन्होंने मेरा सारा वीर्य पी लिया और फिर हम एक दूसरे से लिपट कर सोये रहे।

फिर ५ मिनट के बाद मेरा लण्ड फिर खड़ा हो गया और मैंने उन से कहा कि चलो अब मैं तुम्हारी चूत मारता हूं और उन को लिटा दिया और उनकी फ़ुद्दी के द्वार पर मेरा लण्ड रखा और एक धक्का मारा और मेरा आधा लण्ड उनकी फुद्दी में चला गया और वो दर्द के कारण चिल्लाई और मैंने उन से पूछा कि क्या आप को दर्द हो रहा है? तो उनहोने कहा की मेरी फ़ुद्दी ने ७ महीने से लण्ड नही खाया न इसीलिए दर्द हो रहा है। मैंने अपना काम जारी रखा और फिर एक और धक्का मारा और मेरा पूरा लण्ड उन की चूत में घुस गया और मैंने देखा कि उन की फुद्दी में से खून निकल रहा है तो मैंने कहा कि तु्म्हारी फुद्दी में से खून निकल रहा है तो उन्होंने कहा कि तु्म्हारा लण्ड इतना बड़ा है न।

और फिर मैंने धक्के लगाना चालू किया और कुछ धक्के मरने के बाद उनको भी मजा आने लगा और वो भी अपनी गांड उठा उठा कर अपनी चूत मरवा रही थी और फी ऊऊऊऊऊऊऊऊऊ श्श्श्श्श्श्श्श्ह्स म्म्म्म्म्म्म्म्म्म और कह रही थी कि और डालो और डालो और डालो समीर, मेरी फुद्दी को फाड़ दो मेरी फुद्दी को फाड़ दो और हमारी ये चुदाई ४० मिनट तक चलती रही और बाद उन्होंने कहा कि अब बस करो पर मैं कहाँ मानने वाला था फिर उस के १० मिनट के बाद मेंने उन से कहा कि में झड़ने वाला हूं तो उन्होंने कहा कि मेरी फुद्दी में झाड दो और मैंने उन की फ़ुद्दी में झड़ गया और उन के ऊपर लेट गया. फिर हम दोनों वैसे ही लेटे रहे और फिर हमने पूरा दिन कम से कम ८ बार चुदाई की और फिर रात को भी हमने चुदाई की। अब भाभी मेरे बच्चे की माँ बनने वाली है और मैंने उन से शादी कर ली
 
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