Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच - Page 2 - SexBaba
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Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच

रूपाली ने भूषण का हाथ अपनी गांद से हटाया और थोड़ा पिछे होकर मुस्कुराइ. भूषण ने उसे सवालिया नज़र से देखा. रूपाली चलकर कमरे में रखी टेबल तक पहुँची. शलवार अब भी उसके पैरों में फसि हुई थी. टेबल के नज़दीक पहुँचकर रूपाली ने अपनी दोनो हाथ अपनी टाँगो पे फेरते हुए उपेर अपनी गांद पे लाई और अपनी कमीज़ को उपेर उठा लिया. एक हाथ से कमीज़ को पकड़े हुए उसने दूसरा हाथ टेबल पे रखा और आगे को झुक गयी. टांगे उसने अपने फेला दी. अब उसकी गांद भूषण के सामने दी. आगे को झुकी होने के कारण पिछे से उसे रूपाली की चूत भी सॉफ नज़र आ रही थी. रूपाली ने पलटकर भूषण की तरफ देखा. वो रूपाली की गांद को ऐसे देख रहा था जैसे को भूखा कुत्ता गोश्त की बोटी को देख रहा हो. रूपाली भूषण की तरफ देखकर मुस्कुराइ और अपनी कमीज़ को छ्चोड़कर वो हाथ अपनी गांद पे फेरने लगी. कमीज़ उसके पेट पे सिकुड गयी. रूपाली गांद पे हाथ फेरते हुए अपनी टाँगो के बीच हाथ ले गयी. एक बार अपनी चूत को धीरे से सहलाया और भूषण की तरफ देखते हुए बोली

"आ जाओ काका. देखते ही रहोगे क्या?"

भूषण आखें फाडे उसकी तरफ देख रहा जैसे उसे यकीन सा ना हो रहा हो. रूपाली ने दोबारा उसे आँख के इशारे से अपनी तरफ आने का इशारा किया तो वो धीरे धीरे रूपाली की तरफ बढ़ा. वो सीधा रूपाली के पिछे जा खड़ा हुआ और उसकी मोटी गांद को आँखें फाडे देखने लगा. उसकी साँस ऐसे चल रही थी जैसे कोई दमे का मरीज़ हो, जैसे अभी अस्थमा का अटॅक आया हो. जब भूषण ने कुच्छ ना किया तो रूपाली ने थोड़ा पिछे होकर उसका एक हाथ पकड़ा और अपनी गांद पे रख दिया.

"क्या हुआ काका? अभी थोड़ी देर पहले शलवार के उपेर से तो बड़ा गांद सहला रहे थे. अब मैं खोलके खड़ी हूँ तो बस देखे जा रहे हो?"

भूषण ने अपने हाथ से फिर उसकी गांद को सहलाना शुरू कर दिया. रूपाली ने देखा के दूसरे हाथ से वो अपना लंड हिला रहा था, शायद खड़ा करने की नाकाम कोशिश कर रहा था. भूषण ने अपने हाथ रूपाली की गांद के बीचे में रखा और उसकी गांद के छेद से चूत तक अपनी उंगली फिरने लगा. रूपाली का जिस्म भी अब गरम होने लगा था और चूत गीली हो रही थी. थोड़ी देर तक ऐसे ही सहलाने के बाद भूषण ने अपना दूसरा हाथ भी रूपाली के गांद पर रख दिया और उसकी गांद को मज़बूती से पकड़ लिया. रूपाली कद में उससे ऊँची थी, उससे कहीं ज़्यादा लंबी इसलिए उसके चूत भूषण के पेट तक आ रही थी. रूपाली पलटी तो देखा के भूषण अपने पंजो पे खड़ा होकर अपना लंड उसकी चूत तक पहुँचने की कोशिश कर रहा है पर कर नही पा रहा था. वो किसी मरियल कुत्ते की तरह अपना लंड हवा में ही हिला रहा था. रूपाली की हसी छूटने लगी पर उसपे कभी करते हुए उसने अपने घुटने मोड़ लिया. शलवार अब भी टाँगो में फासी हुई थी इसलिए वो अपने पेर और ज़्यादा नही फेला सकी पर घुटने काफ़ी हाढ़ तक मोड़ लेने की वजह से उसकी चूत नीचे हो गयी. अब भूषण का लंड उसकी चूत से आ लगा पर भूषण अब भी उसे चोदने में कामयाब नही हो पाया. उसका लंड ज़रा भी खड़ा नही हुआ था. एक तो छ्होटा सा लंड, उपेर से 70 साल के आदमी का और वो भी बैठा हुआ, भूषण बस लंड चूत पे रगड़ता ही रह गया.

अपने नंगे जिस्म पे भूषण के हाथों के स्पर्श से रूपाली पूरी तरह गरम हो चुकी थी और जब भूषण लंड चूत में घुसा नही पाया तो वो झल्ला उठी. उसने भूषण का हाथ अपनी गांद से हटाया और सीधी होकर खड़ी हो गयी. भूषण की तरफ पलटी और भूषण को खींचकर लगभग धक्‍का सा देकर उसे अपनी सास के बिस्तर पे गिरा दिया. उसके बाद उसने झुक कर अपने पैरों में फासी शलवार को निकालर एक तरफ उच्छाल दिया और भूषण के साथ बिस्तर पे चढ़ गयी. भूषण अब भी हैरान परेशान सा उसे देख रहा था. उसके हालत सचमुच एक कुत्ते जैसे हो गयी थी. रूपाली ने अपने दोनो हाथ उसकी छाती पे रखे और अपनो दोनो टाँगें भूषण के दोनो तरफ रखकर उसपे चढ़ बैठी. उसने नीचे से एक हाथ में भूषण का लंड पकड़ा और अपनी छूट में घुसने की कोशिश करने लगी पर नतीजा वही. लंड 1 इंच भी अंदर नही जा पा रहा था. रूपाली का दिल किया के भूषण को वहीं कमरे से नीचे फेंक दे, उसने अंदर लंड घुसने की कोशिश छ्चोड़ अपने अपनी गांद नीचे की और चूत को भूषण के लंड पे उपेर से ही रगड़ने लगी. भूषण ने दोनो हाथ से बेड को पकड़ रखा था और अपने उपेर बैठी रूपाली को चूत लंड पे रगड़ते देख रहा था. उसका लंड रूपाली की चूत के नीचे दबा हुआ था.

रूपाली तो जैसे हवा में उड़ रही थी. ये पहली बार था के वो किसी मर्द के उपेर बैठी थी. आज तक सिर्फ़ वो चुदी थी, कभी खुद नही चुदवाया था. लंड चूत में ना होने के बावजूद उसके शरीर में वासना पुर जोश पे आ चुकी थी. चूत उसने ज़ोर ज़ोर से भूषण के लंड पे रगड़नी चालू कर दी थी. पूरा बिस्तर हिल रहा था. रूपाली कभी खुद कमीज़ के उपेर से ही अपनी चूचियाँ दबाती, कभी खुद अपनी गांद पे हाथ फिराती और कभी झुक कर बिस्तर पे अपने दोनो हाथ रख भूष्ण के उपेर लेट सी जाती. बिस्तर पे रखी उसकी सास के कपड़े इधर उधर फेल चुके थे. रूपाली की एक नज़र उनपे पड़ी तो उसके दिमाग़ में घंटियाँ सी बजने लगी.

सामने सरिता देवी की सारी रखी हुई थी और खुलकर आधी बिस्तर से नीचे लटक रही थी और उस सारी के पल्लू में बँधी हुई थी एक चाभी. रूपाली ने भूषण के लंड पे चूत रगड़ते हुए गौर से देखा तो ये चाभी उस चाभी से मिलती लगी जो भूषण ने उसे दी थी. उसने हाथ बढ़कर चाभी उठाने की कोशिश की ही थी के हवेली के बाहर एक कार के रुकने की आवाज़ आई.

भूषण और रूपाली एक झटके में एक दूसरे से अलग हो गये और अपने कपड़े ठीक करने लगे.

"शायद पिताजी आ गये. आप नीचे चलिए मैं कमरा ठीक करके आती हूँ" रूपाली ने शलवार का नाडा बाँधते हुए भूषण से कहा.

भूषण ने अपना पाजामा उपेर खींचा और उसे ठीक से पहनता हुआ कमरे से बाहर चला गया. रूपाली ने उसके जाते ही अपना हुलिया ठीक किया और सारी में बँधी चाभी को निकालकर अपने ब्रा में घुसा लिया. वो कमरा ठीक करने को हुई ही थी के नीचे से भूषण की उसे बुलाने की आवाज़ आई

"बहू ज़रा नीचे आइए. कोई आया है"

रूपाली हैरत में पड़ गयी. आज सालो बाद शायद कोई अजनबी इस हवेली में आया है. उसे अपना दुपट्टा ठीक किया और सीढ़ियाँ उतारकर नीचे आई. नीचे बड़े कमरे में एक आदमी सफेद कमीज़ और खाकी पेंट पहने खड़ा हवेली को देख रहा था, जैसे जायज़ा ले रहा हो. रूपाली को आता देखा तो वो उसकी तरफ पलटा और अपनी जेब में हाथ डाला.

"सलाम अर्ज़ करता हूँ मेडम." उसने अपनी जेब से कुच्छ निकाला और रूपाली की तरफ बढ़ाया

"बंदे को ख़ान कहते हैं, इनस्पेक्टर ख़ान" वो अपना आइ कार्ड रूपाली को दिखाते हुए बोला "वैसे मेरा पूरा नाम मुनव्वर ख़ान है पर लोग मुझे प्यार से मुन्ना भी कहते हैं"

"कहिए" रूपाली सीढ़ियों से उतरती हुई बोली

"ख़ास कुच्छ नही है" ख़ान उसे उपेर से नीचे तक देखते हुए बोला" इस इलाक़े में नया आया हूँ तो सोचा ठाकुर साहब से मिल लूँ एक बार"

"वो तो इस वक़्त घर पर नही हैं" रूपाली सोफे की तरफ इशारा करते हुए बोली " आप बैठिए. कुच्छ लेंगे"

"इस वक़्त तो ठंडा ही ले लेते हैं" ख़ान सोफे पर बैठते हुए बोला. रूपाली ने भूषण को ठंडा लाने का इशारा किया

"अगर मैं ग़लत नही हूँ तो आप ठाकुर साहब की बड़ी बहू रूपाली जी हैं ? " ख़ान ने रूपाली से पुचछा

"बड़ी बहू नही, उनकी एकलौती बहू" रूपाली ने कहा

"ओह " ख़ान ने तभी आए भूषण के हाथ से ग्लास पकड़ते हुए बोला

तभी बाहर से कार रुकने की आवाज़ आई

"लगता है ठाकुर साहब आ गये" ख़ान ग्लास नीचे रखकर खड़ा होता हुआ बोला

कुच्छ पल बाद ही ठाकुर दरवाज़े से अंदर दाखिल हुए. ख़ान फ़ौरन हाथ जोड़कर आगे बढ़ा

"सलाम अर्ज़ करते हूँ ठाकुर साहब"

ठाकुर ने ख़ान की तरफ अजीब सी नज़र से देखा.

"जी मेरा नाम इनस्पेक्टर मुनव्वर ख़ान है. इस इलाक़े में नया ट्रान्स्फर हुआ हूँ" ख़ान ने फिर ई कार्ड निकालकर दिखाया " वैसे लोग मुझे प्यार से मुन्ना भी कहते हैं"

ठाकुर ने सोफे पे बैठे हुए ख़ान को बैठने का इशारा किया और रूपाली की तरफ देखकर उसे वहाँ से जाने का इशारा किया. रूपाली बड़े कमरे से निकलकर सीढ़ियों के पास आकर रुक गयी और दीवार की ओट में बातें सुनने लगी.

"शर्मा का क्या हुआ?" ठाकुर ने ख़ान से पहले उस इलाक़े में पोस्टेड इनस्पेक्टर के बारे में पुचछा

"रिटाइर हो गये." ख़ान ने जवाब दिया

"ह्म्‍म्म्म" ठाकुर ने इतना ही कहा

"मैं नया आया था तो सोचा के आपसे मुलाक़ात हो जाए" ख़ान ने अपनी बात जारी रखी " और आपसे कुच्छ बात भी करनी थी तो सोचा के वो भी कर लूँ"

"किस बारे में " ठाकुर ने पुचछा

"आपके बेटे के मौत के बारे में" ख़ान ने सीधा जवाब दिया.

थोड़ी देर यूँ ही खामोशी बनी रही. ना ठाकुर ने कुच्छ कहा ना ख़ान ने. थोड़ी देर बाद फिर ठाकुर के आवाज़ आई.

"मेरे बेटे को मरे हुए 10 साल हो चुके हैं .....ह्म्‍म्म्मम क्या नाम बताया तुमने अपना?

"ख़ान, मुनव्वर ख़ान. वैसे लोग मुझे मुन्ना भी कहते हैं" ख़ान की आवाज़ आई" 10 साल बीत तो चुके हैं ठाकुर साहब पर केस तो हमारी फाइल्स में आज भी ओपन है. देखा जाए तो शर्मा ने इस बारे में कुच्छ नही किया"

"उसे ज़रूरत भी नही थी कुच्छ करने की" ठाकुर की आवाज़ थोड़ी तेज़ हो गयी "हमारे मामले हम खुद निपटाते हैं. पोलीस धखल नही देती हमारी बातों में"

"जानता हूँ" ख़ान ने ठहरी हुई आवाज़ में जवाब दिया " आप अपने मामले खुद निपटाते हैं शायद इसी लिए आपने आस पास के इलाक़े में ना जाने कितनी लाशें गिरा दी अपने बेटे के क़ातिल की तलाश में, है ना ठाकुर साहब"

थोड़ी देर के लिए हवेली में सन्नाटा छा गया. कोई कुच्छ नही बोला. रूपाली की साँस भी अटक गयी. ठाकुर के सामने इस तरह से बात करने की किसी ने जुर्रत नही की थी. उनका रुबब अब इलाक़े में ख़तम हो चुका था शायद इसी लिए एक मामूली पोलीस वाला उनके सामने बैठकर इस अंदाज़ में बात कर रहा था.

"हवेली के बाहर जाने का रास्ता तुम्हें मालूम है या मैं बताऊं?" ठाकुर की आवाज़ आई

"मालूम है ठाकुर साहब" ख़ान ने जवाब दिया.

थोड़ी देर बाद ख़ान के हवेली से बाहर जाते कदमों की आवाज़ आई.

उस रात रूपाली फिर अपने ससुर के बिस्तर पे नंगी पड़ी हुई थी. ठाकुर उसे चोद्कर नींद के आगोश में जा चुके थे पर रूपाली की आँखों से नींद कोसो दूर थी. उसे ख़ान का यूँ हवेली में आना और 10 साल पुरानी हत्या के बारे में बात करना कुच्छ ठीक नही लग रहा था. आम तौर पर पुलिस वाले हवेली के अंदर आने की हिम्मत नही करते थे पर आज वक़्त बदल गया था. ठाकुर का रौब ख़तम हो चुका था. आज एक पुलिस वाला उनकी ही हवेली में उनपर इस बात का इल्ज़ाम लगा गया था के उन्होने अपने बेटे के बदले में खुद कई लोगों की हत्या की है. वो अब भी जवाबों से कोसों दूर थी.

ख़ान के जाने के बाद वो सीधा अपने कमरे में पहुँची थी और अपनी सास के कमरे से मिली चाभी को भूषण की दी चाभी से मिलाने लगी. दोनो चाबियाँ एक जैसी थी और सबसे गौर तलब बात ये थी के दोनो में से एक भी चाभी असली नही थी. दोनो ही नकल थी असली चाभी की. जो बात रूपाली को परेशान कर रही थी वो ये थी के क्या उसकी सास उस आदमी को जानती थी जिसे भूषण ने रात में हवेली में देखा था. शायद जानती थी इसलिए किसी से उसके बारे में कुच्छ कहा नही और अगर नही जानती थी तो ये चाभी उनके पास क्या कर रही है?

रूपाली को दो बातें और परेशान कर रही थी. एक तो ये के उसकी शादी से पहले इस हवेली में क्या कुच्छ हुआ था वो कुच्छ नही जानती थी. इस हवेली के इतिहास के बारे में कभी उसके पति ने भी उससे ज़िक्र नही किया था. और जो दूसरी बात थी वो जय की कही हुई थी. के उसने ठाकुर से वही सब लिया जो उसका अपना था. और इन दोनो बातों के सही जवाब जो आदमी उसे दे सकता था वो खुद जय था. आख़िर वो इसी घर का हिस्सा था. इसी हवेली में पला बढ़ा था. पर उससे रूपाली मिले कैसे. और अगर मिले भी तो अपने सवालों के जवाब कैसे हासिल करे. ठाकुर से वो इस बारे में सीधी बात नही कर सकती थी क्यूंकी वो जानती थे के ठाकुर या तो बताएँगे नही और अगर बताएँगे तो पूरी बात नही. और फिर ये सवाल भी उठेगा के रूपाली क्यूँ ये सब सवाल कर रही है.

रूपाली ने दरवाज़े की तरफ देखा. आज रात दरवाज़ा बंद ही रहा. आज भूषण ने पिच्छली 2 बार की तरह उसे चुदवाते हुए नही देखा था और ना ही रूपाली ने भूषण से आज इस बारे में बात की थी. और इसी चक्कर में वो ये भी पुच्छना भूल गयी थी के क्या भूषण कामिनी को सिगेरेत्टेस लाकर देता था और अगर लाता था तो काब्से?

यही सब सोचते रूपाली ने आपे ससुर की तरफ नज़र उठाई जो दुनिया से बेख़बर सो रहे थे. रूपाली के दिल में अब उनके लिए प्यार उठने लगा था. जो आदमी रूपाली के पास नंगा सोया पड़ा था वो उसका ससुर नही उसका प्रेमी था. रूपाली ने करवट ली और ठाकुर के सोए हुए लंड को हाथ में पकड़ा. लंड बैठा होने के बावजूद पूरा उसके हाथ में नही आ रहा था. रूपाली ने मुट्ठी बंद की और लंड को धीरे धीरे हिलाने लगी. उसकी इस हरकत से ठाकुर की आँख खुल गयी और उन्होने मुस्कुराते हुए उसकी तरफ करवट ली. रूपाली ने लंड हिलना जारी रखा. लंड जब पूरा खड़ा हो गया तो ठाकुर ने उसे सीधा लिटाया, उसके उपेर चढ़े और उसकी टांगे खोलकर लंड अंदर घुसा दिया

दोस्तो यह कहानी आप जब तक पूरी नही पढ़ेंगे तब तक शायद आपकी समझ मैं ना आए इसलिए इस कहानी को को पूरा

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अगले दिन सुबह रूपाली फिर देर से उठी. वो ठाकुर के बिस्तर पे नंगी पड़ी थी और ठाकुर उठ चुके थे. पिच्छले कुच्छ दीनो से रूपाली का रोज़ाना देर से उठना जैसे उसकी एक आदत बन गया था. कहाँ तो वो रोज़ाना सुबह 4 बजे उठकर नहा धोकर पूजा पाठ में लग जाती थी और कहाँ अब उसे होश ही नही रहता के कितने बजे उठना है.

"आप कुच्छ हवेली की सफाई की बात कर रही थी. कुच्छ होता दिख नही रहा" नाश्ता करते हुए ठाकुर ने उससे पुचछा

रूपाली से जवाब ना सूझा. कैसे बताती के उसने चाबियाँ सिर्फ़ हवेली की तलाशी लेने के लिए ली थी, सफाई तो सिर्फ़ एक बहाना था.

"कई बार हिम्मत की के शुरू करूँ पर इतनी बड़ी हवेली और अकेली मैं, सोचकर ही हिम्मत हार जाती थी" रूपाली हस्ते हुए बोली

"मैं कुच्छ आदमियों का इंतजाम कर देता हूँ" ठकुए ने भी हस्ते हुए जवाब दिया

"नही उसकी ज़रूरत नही. मैं खुद ही कर लूँगी. कल से शुरू कर दूँगी" रूपाली ने कहा

"कल से?" ठाकुर ने पुचछा " क्यूँ आज कोई ख़ास प्लान है क्या?

"हां" रूपाली ने सावधानी से अपने शब्द चुनते हुए कहा " मैं सोच रही थी के........"

"क्या?" ठाकुर ने चाइ का ग्लास उठाते हुए कहा

"मैं कुच्छ नही जानती हमारी ज़मीन जायदाद के बारे में. जबसे शादी करके आई हूँ तबसे बस घर की छिप्कलि बनी बैठी रही." रूपाली ने नज़र झुकाए हुए बोला

"तो?" ठाकुर ने चाइ पीते हुए उससे पुचछा

"तो मैं सोच रही थी के आज ज़मीन का एक चक्कर लगा आउ. अगर आप इजाज़त दें तो" रूपाली ने नज़र अब भी झुकाए रखी

"अरे इसमें मेरी इजाज़त की क्या ज़रूरत है? आपका घर हैं, आपकी ज़मीन है. आप जब चाहे देखिए" ठाकुर ने नाश्ते की टेबल से उठते हुए कहा.

रूपाली भी उनके साथ साथ उठ खड़ी हुई

"मुझे आज वक़ील से मिलने जाना है और कुच्छ और काम भी है. आप भूषण को साथ ले जाइए"ठाकुर ने कहा

उनके चले जाने के बाद रूपाली तैय्यार हुई. अब सवाल ये था के अगर वो भूषण को साथ लेके गयी तो हवेली खाली हो जाएगी. उसने फ़ैसला किया के वो खुद जाएगी. भूषण को जब उसने बताया तो पहले तो उसने मना किया पर फिर रूपाली के ज़ोर डालने पर मान गया और उसे जो ज़मीन अब भी ठाकुर के पास बची थी उसका रास्ता बता दिया.

रूपाली गाड़ी लेकर अकेली ही निकल गयी. कार चलाना उसे अच्छी तरह आता था पर उसे याद नही था के आखरी बार वो ड्राइविंग सीट पे कब बैठी थी इसलिए धीरे धीरे कार चलते हुए गाओं पार कर जिस तरफ भूषण ने बताया था उस तरफ निकल गयी.
 
ज़मीन का वो टुकड़ा जिसकी बात भूषण कर रहा था उसे ढूँढने में रूपाली को ज़्यादा तकलीफ़ नही हुई. वजह ये थी के गाओं के आस पास के ज़्यादातर ज़मीन ठाकुर शौर्या सिंग की ही थी, या यूँ कहा जाए के हुआ करती थी और अब जय ने अपने नाम पे कर ली थी. जिस हिस्से को भूषण ने ज़मीन का एक टुकड़ा बताया था वो एक बहुत लंबा चौड़ा खेत था. रूपाली ने कार कच्चे रास्ते पर उतार दी और ज़मीन के चारो तरफ एक चक्कर लगाने की सोची. वो काफ़ी देर तक ड्राइव करती रही और आस पास निगाह दौड़ती रही. चारो तरफ सूखी पड़ी ज़मीन थी. कहीं खेती का कोई नामो निशान नही था. रूपाली ये देखकर खुद हैरत में थी. ठाकुर की ज़मीन हर साल गाओं वाले या तो किराए पर लेकर उसमें खेती करते थे या फिर ठाकुर के लिए ही काम करते थे. रूपाली की याददास्त के मुताबिक तो ऐसा ही होता था पर ज़मीन की जो अब हालत थी उसे देखके तो लगता था के इसपर बरसो से खेती नही हुई.

रूपाली ने एक पेड़ देखकर उसके नीचे गाड़ी रोकी और खड़ी होकर चारो तरफ देखने लगी. दोपहर का सूरज सर पर आ चुका था. गर्मी की वजह से जैसे ज़मीन आग उगल रही थी. थोड़ी देर यूँ ही खड़े रहकर रूपाली ने वापिस लौटने का इरादा किया ही था के पिछे से किसी ने उसका नाम पुकारा.

"मालकिन"

आवाज़ सुनकर रूपाली पलटी तो पिछे एक गाओं की एक औरत खड़ी थी

"आप ठाकुर साहब की बहू रूपाली हैं ना?" उस औरत ने रूपाली से पुचछा

"हां" रूपाली ने उसकी तरफ देखते हुए जवाब दिया. औरत ने फ़ौरन अपने हाथ जोड़ दिए

"आज पहली बार आपको देख रही हूँ मालकिन. लोगों से सुना था के आप बहुत सुंदर हैं पर आज देखा पहली बार है"

अपनी तारीफ सुन रूपाली मुस्कुरा उठी

"तुम कौन हो?" उसने उस औरत से पुचछा

"जी मैं यहीं ठाकुर साहब की ज़मीन की देख रेख करती हूँ. असल में काम तो ये मेरे मर्द का था पर उसके मरने के बाद अब मैं और मेरी बेटी करते हैं" उस औरत ने बताया

रूपाली ने उस औरत को गौर से देखा. वो कोई 40 साल के करीब लग रही थी या उससे एक दो साल उपेर ही. एक गंदी से सारी उसने लपेट रखी थी. जिस बात ने रूपाली का ध्यान अपनी तरफ खींचा वो ये थी के इस उमर में भी उस औरत का बदन एकदम गठा हुआ था. कहीं फालतू चरबी या मोटापा नही आया था. शायद सारा दिन खेतो में काम करती है इस वजह से.

"तुम्हारे पास पानी होगा? मुझे प्यास लगी है" रूपाली ने उस औरत से कहा

"मेरा मकान यहीं पास में ही है. अगर मालकिन को ऐतराज़ ना हो तो आप आ जाइए. थोड़ी देर आराम भी कर लीजिएगा"

रूपाली ने देखा के जिस तरफ वो औरत इशारा कर रही थी वहाँ एक झोपड़ी बनी हुई. थोड़ी सी दूरी पर थी पर कार वहाँ तक नही जा सकती थी. रूपाली ने कार वही पेड़ के नीचे छ्चोड़ी और उस औरत के साथ चल पड़ी.

"काब्से काम कर रही हो यहाँ पर" चलते चलते रूपाली ने उस औरत से पुचछा " और तुम्हारा नाम क्या है?"

"मेरा नाम बिंदिया है मालकिन. मेरा मर्द पहले ठाकुर साहब की ज़मीन की देखभाल करता था इसलिए मैने तो जबसे उससे शादी की तबसे यही काम कर रही हूँ" उस औरत ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया

"तुम यहाँ अकेली रही हो? गाओं से बाहर?" रूपाली ने पुचछा

"मैं और मेरी बेटी यहाँ रहते हैं. अब हमारे पास अपना घर या ज़मीन तो है नही मालकिन इसलिए यहीं ठाकुर साहब की ज़मीन पे गुज़ारा करते हैं. गाओं में रहें गे कहाँ" बिंदिया ने बताया

चलते चलते वो दोनो झोपड़ी तक पहुँचे. रूपाली ने देखा के बिंदिया ने अपनी ज़मीन के आस पास थोड़ी सब्ज़ियाँ और कुच्छ फूल उगा रखे थे. झोपड़ी के बाहर कोई 18 साल की एक लड़की बैठी हुई कपड़े धो रही थी.

"ये मेरी पायल है" बिंदिया ने उस लड़की की तरफ इशारा किया

रूपाली ने उस लड़की की तरफ देखा. उसकी शकल देखके सॉफ मालूम होता था के वो अभी 18-19 साल से ज़्यादा की नही है पर सर के नीचे जिस्म किसी पूरी तरह जवान औरत का था. उसने जो कपड़े पहेन रखे थे उसे देखके मालूम पड़ता था के उसने काफ़ी वक़्त से कपड़े नही सिलवाए. पुराने वही कपड़े बचपन से पहेन रही है जो अब उसके जिस्म पे छ्होटे पड़ रहे हैं. चोली इतनी तंग हो चुकी थी के पायल की बड़ी बड़ी चूचियाँ उसमें समा नही रही थी, आधी से ज़्यादा चूचियाँ उपेर से बाहर की तरफ निकल रही थी. उसका घाघरा सिर्फ़ घुटनो तक आ रहा था और बैठे होने की वजह से रूपाली को उसकी जांघें सॉफ नज़र आ रही थी.

रूपाली को देख वो लड़की हाथ जोड़कर उठ कही हुई

"नमस्ते मालकिन"

रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के बेटी का जिस्म भी अपनी मान की तरह एकदम गठा हुआ था.

बिंदिया ने वहीं पास पड़ी एक चारपाई पर चादर डाल दी. पायल भागकर एक ग्लास पानी ले आई.

"आज इस तरफ कैसे आना हुआ मालकिन" बिंदिया ने नीचे ज़मीन पर बैठे हुए कहा. पायल जाकर अपने धोए हुए कुच्छ कपड़े बाल्टी में डालने लगी.

"हवेली में कुच्छ करने को था नही" रूपाली ने जवाब दिया " इसलिए सोचा के ज़मीन का ही एक चक्कर लगा आऊँ"

कहते हुए उसने पायल की तरफ देखा जो झुकी हुई कपड़े बाल्टी में डाल रही थी. झुकी होने की वजह से उसकी चूचियाँ ब्लाउस में से बाहर निकलकर गिरने को तैय्यार थी. रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के उसकी चूचियाँ कम से कम 36 साइज़ की होंगी उसके बावजूद उसने ब्रा नही पहेन रखी थी

"बेचारी के पास पहेन्ने को कपड़े तो हैं नही ढंग के. ब्रा कहाँ से लाएगी" रूपाली ने मन ही मन सोचा

"अब यहाँ क्या बचा है देखने को मालकिन" बिंदिया उसके सामने बैठी उसे बता रही थी " कुच्छ साल पहले तक यहाँ लहराते हुए हारे भरे खेत होते थे पर अब तो सिर्फ़ ये बंजर ज़मीन है"

"तुम यहाँ खेती क्यूँ नही करती?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा

"हमारी ऐसी औकात कहाँ के इतनी बड़ी ज़मीन पर खेती करें" बिंदिया ने जवाब दिया " पहले ठाकुर साहब के इशारे पर ही यहाँ फसल उगा करती थी. हर तरफ हरियाली होती थी पर अब तो सब ख़तम हो गया"

"कितनी बड़ी है ये ज़मीन?" रूपाली ने पुचछा

"गाओं के इस तरफ की सारी ज़मीन ठाकुर साहब की है" बिंदिया ने ठंडी आह भरते हुए कहा" जहाँ तक आपकी नज़र जा रही है ये सब ज़मीन आपकी ही है. कभी गाओं के दूसरी तरफ की ज़मीन भी ठाकुर साहब की ही थी पर अब वो आपका देवर जय देखता है. वहाँ अब भी खेती होती है पर गाओं के इस तरफ तो सब बंजर हुआ पड़ा है. अब ठाकुर साहब को तो जैसे होश ही नही रहा अपनी जायदाद का"

रूपाली से बेहतर इस बात को कौन जान सकता था के क्यूँ होश नही रहा इसलिए वो कुच्छ नही बोली

"तुम माँ और बेटी अपना गुज़ारा कैसे चलाते हो?" रूपाली ने पुचछा

"गुज़ारा कहाँ चलता है मालकिन" बिंदिया बोली " बस जैसे तैसे वक़्त गुज़ार रहे हैं. मेरे मर्द के मरने के बाद तो सब तबाह हो गया हमारे लिए. वो होता था तो ज़मीन भी देखता था और हमें भी. अब बस मैं ही हूँ जो थोड़ा बहुत हाथ पेर मारकर हम दोनो को ज़िंदा रखे हुए हों"

पायल तब तक कपड़े सुखाकर अपनी माँ के पास आ बैठी थी. नीचे बैठे होने के कारण उसका घाघरा उपेर चढ़ गया था और रूपाली को उसकी जांघें काफ़ी अंदर तक दिखाई दे रही थी.

गर्मी बढ़ती जा रही थी. रूपाली को अपने बदन में जलन महसूस होने लगी थी. वो उठ खड़ी हुई

"एक काम करो बिंदिया. कल तुम अपनी बेटी को लेकर हवेली आ जाओ. वहाँ कुच्छ काम है वो कर लिया करना. मैं पैसे दे दूँगी तुम्हें"

"जी बहुत अच्छा" बिंदिया ने कहा " पर ठाकुर साहब से बिना पुच्छे ..... "

"उसकी तुम चिंता मत करो. बस कल सुबह तक वहाँ पहुँच जाना" कहते हुए रूपाली अपनी कार की तरफ बढ़ गयी. बिंदिया और पायल उसे कार तक छ्चोड़ने उसके पिछे पिछे आ रहे थे.

रूपाली वापिस हवेली पहुँची. आज उसने काफ़ी अरसे बाद कार चलाई थी इसलिए उसे ड्राइव करना अच्छा भी लग रहा. गाड़ी बाहर छ्चोड़ वो अंदर हवेली में पहुँची.

"पिताजी नही आए?" उसने सामने खड़े भूषण से पुचछा

"नही अभी तक तो नही आए. आप कुच्छ खावगी?" भूषण ने कहा

"नही मुझे कोई ख़ास भूख नही. थोड़ी देर आराम करूँगी. पिताजी आएँ तो मुझे आवाज़ दे दीजिएगा" रूपाली ने पानी पीते हुए कहा

वो उपेर अपने कमरे में आई और कपड़े बदलने लगी. ब्लाउस खोलकर ब्रा निकाला तो उसकी नज़र अपनी चूचियों पर पड़ी. फ़ौरन उसके ध्यान में पायल की चूचियाँ आ गयी. रूपाली 30 साल के करीब थी और पायल मुश्किल से 18 फिर भी पायल की चूचियाँ तकरीबन रूपाली के बराबर ही थी. थोड़ी देर अपनी चूचियों को देखकर रूपाली को खुद पे हैरत होने लगी. उसने कभी सोचा भी ना था के एक लड़की का जिस्म देखकर ही उसे ऐसा महसूस होगा. उसकी नज़र में अब भी पायल की चूचियाँ घूम रही थी. इस ख्याल को अपने दिमाग़ से झटक कर रूपाली बाथरूम में नहाने के लिए घुस गयी.

नहाकर रूपाली थोड़ी देर लेटी ही थे के उसके ध्यान में घर के बाकी कमरों पर एक नज़र डालने पा गया. वो उठी और अलमारी से चाबियाँ निकालकर अपने कमरे से बाहर निकली. भूषण नीचे किचन में था इसलिए उससे कोई ख़तरा भी नही था. और अगर वो देख भी लेता तो रूपाली को सिर्फ़ अपनी चूत उसके सामने खोलनी थी. भूषण का मुँह बंद करना एक बहुत आसान काम था.

रूपाली कामनि के कमरे के सामने से होती अपने सबसे छ्होटे देवर कुलदीप के कमरे के सामने पहुँची. उसके कमरे से रूपाली को कुच्छ ख़ास मिलने के उम्मीद नही थी फिर भी उसने कमरा खोला.

कुलदीप ठाकुर का सबसे छ्होटा बेटा और घर का सबसे ज़्यादा लाड़ला भी. छ्होटा होने की वजह से उसका हर कोई बहुत लाड़ किया करता था. दोनो माँ बाप,2 बड़े भाई और एक छ्होटी बहेन, साबकी आँखों का तारा था वो. रूपाली की उससे ज़्यादा मुलाक़ात नही हुई थी और ना ही कोई ज़्यादा बात. वजह थी के कुलदीप बचपन से ही विदेश में पढ़ा था और बस साल में एक बार कुच्छ दीनो के लिए छुट्टियों पर आया करता था. पुरुषोत्तम ने एक बार रूपाली को बताया था के यहाँ गाओं में कुलदीप का दिल नही लगता था इसलिए वो कम ही आता था. घर के बाकी लोग अक्सर उससे मिलने विदेश जाते रहते थे. इसी बहाने उससे मिल भी लेते थे और घूमना फिरना भी हो जाता था. एक बार पुरुषोत्तम रूपाली को लेकर कुलदीप से मिलने जाना चाहता था पर किसी वजह से वो प्लान बन नही पाया था.

जब रूपाली इस घर में आई थी तो कुलदीप 17-18 साल का था, रूपाली से सिर्फ़ 2-3 साल छ्होटा. वो हमेशा से ही बहुत शर्मिला था और इसलिए जब भी जब भी रूपाली उसे अपने पास बुलाती तो वो शर्माके भाग जाता. आखरी बार वो पुरुषोत्तम के मरने से पहले आया था और उसके बाद कभी नही. रूपाली ने उसे पिच्छले 10 साल से नही देखा था. और ना ही घर से किसी ने उसे यहाँ वापिस बुलाने की सोची थी. उल्टा कामिनी भी अपने भाई के पास ही चली गयी थी और दोनो जैसे बस वहीं के होके रह गये थे.

रूपाली ने कुलदीप का कमरा खोला और अंदर दाखिल हुई. लाइट ऑन करते ही उसके दिल से वाह निकल गयी. ये कमरा घर के बाकी कमरों से कहीं ज़्यादा सॉफ सुथरा था. हर चीज़ अपनी जगह पर थी और कहीं भी कुच्छ इधर उधर नही था. हर छ्होटी से छ्होटी चीज़ भी सलीके से रखी हुई थी. रूपाली को ध्यान आया के कुलदीप भी ऐसा ही था. हमेशा सॉफ सुथरा रहता. कपड़े पे एक धब्बा भी लग जाए तो फ़ौरन बदल देता. घर में भी वो ऐसे बन ठनके रहता था जैसे बस अभी कहीं बाहर जाने वाला हो. ज़रा सा हाथ भी गंदा हो जाए तो हाथ धोने के बजाय वो नहाने ही चला जाता था. दिन में 10 बार तो वो इस बहाने से नहा ही लेता था.

रूपाली ने कमरे पर नज़र डाली और कुलदीप की अलमारी की तरफ बढ़ी. अलमारी खोलने की कोशिश की तो वो लॉक्ड थी. रूपाली ने बाकी चाबियाँ लगाने की कोशिश की पर अलमार खोल नही सकी. जाने से पहले कुलदीप ने अपनी अलमारी बंद की थी और चाबियाँ शायद साथ ले गया था. रूपाली को हैरत नही हुई. जिस तरह से कुलदीप अपनी चीज़ों को सॉफ सुथरा रखता था उससे ज़ाहिर था के वो नही चाहता था के उसकी चीज़ों के साथ कोई छेड़ छाड करे. अलमारी की तरह ही उसके कमरे के बाकी सब कबोर्ड्स ताले लॉक थे और चाबियों का कहीं पता नही था. कुलदीप के कमरे में कहीं एक काग़ज़ भी इधर उधर नही था. रूपाली ने उसके बेड के उपेर नीचे तलाशी लेनी चाही पर वहाँ भी कुच्छ हासिल नही हुआ. तक कर रूपाली वापिस कुलदीप के कमरे से बाहर आ गयी. कमरे का दरवाज़ा उसने बंद किया ही था के उसकी नज़र में कुच्छ ऐसा आया के उसने दरवाज़ा वापिस खोल दिया और फिर कुलदीप की अलमारी की तरफ आई.

अलमारी यूँ तो बंद थी पर साइड से कपड़े का एक टुकड़ा हल्का सा बाहर निकला रह गया था जिसपर रूपाली की कमरा बंद करते वक़्त नज़र पड़ गयी थी. रूपाली नीचे बैठी और कपड़े को बाहर पकड़कर खींचे की कोशिश की पर अलमारी बंद होने के कारण वो किवाड़ के बीच में फसा हुआ था. रूपाली ने गौर से देखा तो वो एक ब्रा की स्ट्रॅप थी जो हल्की सी शायद अलमारी बंद करते हुए बाहर रह गयी और कुलदीप ने ध्यान नही दिया. रूपाली को बहुत हैरानी हुई. कुलदीप के कमरे में एक ब्रा क्या कर रही थी? वो ये कहाँ से लाया और क्यूँ लाया? रूपाली ने ब्रा की स्ट्रॅप को देखकर अंदाज़ा लगाया के ये प्लैइन ब्रा नही थी. काफ़ी सारे रंग थे उसपर. शायद कलर स्ट्रिपेस थी या कई रंग के फूल बने हुए था या रंग के छीटे थे. रूपाली का सर चकराने लगा. इस घर में उस वक़्त 3 ही औरतें थी जिस वक़्त कुलदीप यहाँ आया था. रूपाली ने अपनी कपड़ो की तरफ ध्यान दिया तो उसके पास इस तरह की कोई ब्रा नही थी. उसकी सारी ब्रा या तो सफेद रंग की थी या काले और यही हाल उसकी सास सरिता देवी का भी था. उनके आखरी वक़्त में रूपाली ही उनका ध्यान रखती थी और उनके कपड़े वगेरह धुलवाती थी. तब उसने अपनी सास के कपड़े देखे थे और सरिता देवी या तो प्लैइन वाइट या ब्लॅक ब्रा ही पेहेन्ति थी. बची कामिनी? क्या ये कामिनी की ब्रा हो सकती है? पर अगर है भी तो कुलदीप की अलमारी में क्या कर रही है?

रूपाली फ़ौरन कुलदीप के कमरे से निकली और बंद करके कामिनी के कमरे में पहुँची. उसने कामिनी के कपड़े इधर उधर किए और उसकी ब्रा देखने लगी. कामिनी की अलमारी में उसे कुच्छ ब्रा दिखाई दी और उसने राहत की साँस ली. कामिनी की कुच्छ ब्रा कोलोरेड थी पर सब प्लैइन कोलोरेड थी. कोई भी ऐसे नही थी जिसपे कई सारे रंग हो. पूरी ब्रा एक ही रंग की थी. कामिनी की ब्रा के स्ट्रॅप्स देखकर रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के कुलदीप की अलमारी में रखी ब्रा कामिनी की ब्रा से काफ़ी अलग थी.

रूपाली कुलदीप को अपने छोटे देवर और उसके खामोश और सुलझे हुए नेचर की वजह से काफ़ी पसंद करती थी. जब उसे लगा के ये ब्रा कामिनी की है तो वो परेशान हो गयी थी ये सोचकर के क्या कुलदीप अंदर अंदर अपनी ही बहेन की ब्रा चुरा ले गया था? पर जब उसने कामिनी की ब्रा देखी तो उसे अच्छा लगा. कुलदीप अपनी खुद की बहेन पर नज़र नही रखता था. वो मानसिक तौर पर भी ठीक था फिर भी सवाल ये था के उसके कमरे में एक ब्रा क्या कर रही थी?

रूपाली ने कामिनी के कपड़े वापिस रखे और अलमारी बंद करने लगी. फिर कुच्छ सोचकर उसने कामिनी के कुच्छ कपड़े उठा लिए और कुच्छ ब्रा और पॅंटीस भी और उन्हें लेकर अपने कमरे में आ गयी.

रात को रूपाली फिर अपने ससुर के बिस्तर पे नंगी पड़ी हुई थी. उनके लंड उसके हाथ में जिसे वो ज़ोर ज़ोर से हिला रही थी. ठाकुर उसके साइड में लेते हुए थे. रूपाली का एक निपल उनके मुँह में था जिसे वो चूस रहे थे और 2 उंगलियाँ रूपाली की चूत में अंदर बाहर हो रही थी.

"पिताजी" रूपाली ने ज़ोर ज़ोर से साँस लेते हुए कहा

"ह्म्‍म्म्म" ठाकुर ने जवाब दिया और रूपाली की चूत से उंगलियाँ निकल कर उसके उपेर चढ़ गये. अब रूपाली की दोनो चुचियाँ उनके हाथों में थी जिन्हें वो बारी बारी चूसने लगे.

रूपाली से सबर करना मुश्किल हो रहा था अगर राज शर्मा होता तो कबका चोद चुका होता ठाकुर के लंड पे उसकी गिरफ़्त मज़बूत हो गयी थी और हाथ तेज़ी के साथ उपेर नीचे हो रहा था

"आअज मैं ज़मीन देखने गयी थी" उसने अपनी भारी हो रही साँसों के बीच बोला

"ह्म" ठाकुर ने फिर इतना ही कहा और रूपाली की चुचियाँ छोड़ थोड़ा नीचे होकर उसके पेट को चूमने लगे. हाथ अभी भी दोनो चुचियाँ मसल रहे थे.

"मैं वहाँ काम करने वाली एक औरत से मिली. वो कह रही थी के उसके आदमी को आपने ज़मीन के देख भाल करने के लिए रखा था पर उसके मरने के बाद अब वो और उसकी बेटी ये काम करती हैं" रूपाली बड़ी मुश्किल से बोल सकी. उसकी धड़कन तेज़ हो चली थी. ठाकुर उसके पेट को चूम रहे थे. रूपाली की दोनो टांगे खुली हुई थी और चूत गीली हो रही थी. उसका दिल कर रहा था के ठाकुर सब छ्चोड़कर लंड उसके अंदर घुसा दें.

"हमने काम के लिए काफ़ी लोग रखे हुए थे. धीरे धीरे सब चले गये क्यूंकी ज़मीन पे कुच्छ काम ही नही था. फसल लगवानी हमने बंद कर दी थी.बस एक कालू ही रह गया था. शायद तुम उसकी बीवी से ही मिली होंगी. वो कुच्छ दिन पहले मर गया था. उसकी बीवी को हम अभी भी कुच्छ पैसे भेजते हैं. वैसे तो ज़मीन में देखभाल करने को कुच्छ बचा नही पर फिर भी तरस खाकर हमने उसे हटाया नही." कहते हुए ठाकुर ने रूपाली की दोनो टाँगें खोलकर अपने कंधे पे रख ली और थोड़ा और नीचे हो गये. रूपाली की चूत अब उनके चेहरे के सामने थी.

"नाम तो नही बताया उसने अपनी पति का पर हां शायद वो ही थी. उसकी बेटी भी है" रूपाली ने कहा. उसकी समझ नही आ रहा था के ठाकुर क्या कर रहे हैं. वो लंड के लिए मरी जा रही थी और ठाकुर इतनी देर से लंड घुसाने का नाम नही ले रहे थे. वो अब उसके टाँगो को अपने कंधे पे रखकर उसकी जाँघो को चूम रहे थे.

"हां वही होगी. बिंदिया नाम है शायद उस औरत का" ठाकुर उसकी जाँघो को चूमते हुए धीरे धीरे उसकी चूत की तरफ आ रहे थे.

" हां बिंदिया ही था" रूपाली ने कहा और इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाती ठाकुर ने अपने होंठ उसकी चूत पे रख दिए

"आआआआआआआहह पिताजी" रूपाल की जैसे चीख निकल पड़ी. उसके जिस्म में बढ़ती गर्मी एक ज्वालामुखी बनकर फॅट पड़ी. उसकी चूत पे आज तक किसी ने मुँह नही लगाया था. ठाकुर ने जैसे ही अपने होंठ उसकी चूत पे रखकर जीभ उसकी चूत पे फिराई, रूपाली की चूत ने पानी छ्चोड़ दिया.

रूपाली ने कसकर ठाकुर के सर को पकड़ लिया और अपनी चूत में और ज़ोर से घुसाने लगी. उसने अपने टाँगो को अपने ससुर के कंधो पर लपेट दिया जैसे अपनी टाँगो में उन्हें दबाकर मारना चाहती हो. ठाकुर की जीभ उसकी चूत पे उपेर से नीचे तक जा रही थी. रूपाली के पति ने कभी ये ना तो किया था और ना ही करने की कोशिश की थी. रूपाली को तो पता भी नही था के चूत में इस तरह भी मज़ा लिया जा सकता है. ठाकुर की एक उंगली अब उसकी चूत में घुस चुकी थी और अंदर बाहर हो रही थी. साथ साथ वो उसकी चूत की चाट भी रहे थे.

"मैने कल उसे यहाँ हवेली में बुलाया है" रूपाल ने कहा. उसने ठाकुर के बॉल पकड़ रखे थे और चूत में उनका मुँह दबा रही थी. उसके कमर मूड गयी थी. चूचियाँ उपेर छत की तरफ हो गयी थी, सर पिछे झटक दिया था और नीचे से गांद अपने आप हिलने लगी थी. वो खुद ही ठाकुर के मुँह पे अपनी चूत रगड़ रही थी.

"क्यूँ" कहते हुए ठाकुर रूपाली की टाँगें खोलते हुए सीधे हुए और घूमकर उसके उपेर आ गये. अब उनका मुँह रूपाली की चूत पर था और रूपाली का सर उनकी टाँगो के बीच. लंड सीधा रूपाली के मुँह के उपेर लटक रहा था.

"इसे कहते हैं 69 पोज़" ठाकुर नीचे से रूपाली की तरफ देखकर मुस्कुराए और फिर उसकी चूत चाटने लगे. रूपाली का जिस्म फिर गरम हुआ जा रहा था. उसने एक लंभी साँस छ्चोड़ी और ठाकुर का लंड अपने मुँह में ले लिया.

"क्यूँ बुलाया है" ठाकुर ने उसकी चूत पे जीभ फिरते हुए कहा

"हवेली की सफाई करनी है. मैने सोचा के उसकी बेटी मेरा हाथ बटा देगी." रूपाली ने लंड मुँह से निकाल कर कहा और फिर लंड मुँह में ले लिया

"वो मान गयी?" ठाकुर ने कहा और रूपाली की चूत से मुँह हटाकर साइड बैठ गये. दोनो हाथों से रूपाली के सर को पकड़ा और लंड उसके मुँह में अंदर बाहर करने लगे. दीपाली भी ठाकुर का लंड ऐसे पी रही थी जैसे अपने राज शर्मा का पी रही हो

"ह्म्‍म्म्मम" लंड मुँह में होने के कारण रूपाली इतना ही कह सकी.उसके ससुर उसके मुँह को चोद रहे थे.

थोड़ी देर लंड मुँह में हिलने के बाद ठाकुर बिस्तर से उतर गये और रूपाली को भी नीचे आने का इशारा किया. सवालिया नज़र से ठाकुर को देखती रूपाली बिस्तर से नीचे उतर खड़ी हुई जैसे पुच्छ रही हो के क्या हुआ?

ठाकुर ने उसे बिस्तर पे हाथ रखने को कहा और धीरे से उसे झुका दिया. रूपाली समझ गयी. उसने अपनी टांगे फेला दी, हाथ बिस्तर पे रहे और गांद पिछे को निकालकर खड़ी हो गयी, चुदने के लिए तैय्यार. ठाकुर उसके पिछे आए, दोनो हाथो से उसकी गांद को पकड़ा और एक ही झटके में लंड उसकी चूत के अंदर पूरा घुसा दिया.

"इसी बहाने सोच रही थी के हवेली के बाहर भी कुच्छ सफाई हो गयी. बाहर से देखने से तो लगता ही नही के अब हवेली में कोई रहता भी है" रूपाली ने कहा. उसकी चूत पे ठाकुर धक्के मार रहे थे. उसकी दोनो छातियाँ लटकी हुई उसके नीचे झूल रही थी. हर धक्के पे रूपाली थोड़ा आगे को सरक्ति और उसकी दोनो चूचियाँ बिस्तर के कोने से टकराती.

"जैसा आप ठीक समझें" ठाकुर ने कहा और धक्को की रफ़्तार बढ़ाकर पूरे ज़ोर से रूपाली को चोदने लगे.
 
अगले ही दिन सुबह सुबह पायल हवेली आ पहुँची. वो अकेली ही थी.

"तेरी माँ कहाँ है?" रूपाली ने उसे देखते हुए पुचछा

"माँ को कुच्छ काम पड़ गया था मालकिन" पायल ने जवाब दिया"इसलिए मुझे अकेले ही भेज दिया. कह रही थी के वो शाम को आएगी"

"ठीक है"कहते हुए रूपाली ने पायल को उपेर से नीचे तक देखा.

शकल सूरत से पायल भले ही बहुत ज़्यादा नही पर सुंदर ज़रूर थी. उसने एक चोली पहनी हुई थी जो छ्होटी होने से उसके जिस्म पे बहुत ज़्यादा फसि हुई थी. पीछे खींचकर बँधे जाने की वजह से पायल की दोनो चूचियाँ बुरी तरह से दब रही थी और लग रहा था के या तो चोली फाड़कर बाहर आ जाएँगी या उपेर से उच्छालकर बाहर आ गीरेंगी. रूपाली को हैरत हुई के ये लड़की साँस भी कैसे ले रही है. चोली ठीक पायल की दोनो चूचियों के नीचे ही ख़तम हो रही थी. उसका पूरा पेट खुला हुआ था. ल़हेंगा चूत से बस ज़रा सा ही उपेर बँधा हुआ था और मुश्किल से घुटनो तक आ रहा था. एक तरह से देखा जाए तो पायल जैसे आधी नंगी ही थी.

"वा री ग़रीबी" रूपाली ने सोचा

"तेरा समान कहाँ है?" उसे पायल से पुचछा

"समान?" पायल ने सवालिया नज़रों से रूपाली को देखा. उसके इस तरह देखने से ही रूपाली समझ गयी के उस बेचारी के पास समान कुच्छ है ही नही.

"आजा अंदर आजा" उसने पायल को इशारा किया

पायल रूपाली के पिछे पिछे हवेली में दाखिल हुई. हवेली में घुसते ही वो आँखे फाडे चारो तरफ देखने लगी

"क्या हुआ" रूपाली ने पुचछा

"इतना बड़ा घर" पायल घूमकर हवेली देखते हुए बोली " इतना आलीशान. यहाँ तो बहुत सारे लोग रहते होंगे ना मालकिन?"

"नही" रूपाली हस्ते हुए बोली " बहुत कम लोग रहते हैं"

पायल हवेली और अंदर हर चीज़ को ऐसे देख रही थी जैसे कहीं जादू की नगरी में आ गयी हो

"ऐसा तो मैने कभी सपने में भी नही देखा था मालकिन" उसे पायल के पिछे पिछे सीढ़ियाँ चढ़ते हुए कहा

"अब रोज़ देखती रहना. यहीं रहेगी तू" कहते हुए रूपाली उसे लेकर अपने कमरे तक बढ़ी.

रूपाली के कमरे से लगता हुआ एक छ्होटा कमरा था. वो कमरा ज़्यादातर समान रखने के काम ही आता था, किसी स्टोर रूम की तरह. उस कमरे का एक दरवाज़ा रूपाली के कमरे में भी खुलता था. कमरा बनवाया इसलिए गया था के अगर रूपाली वाले कमरे में समान ज़्यादा होने लगे तो छ्होटे कमरे में रख दो और अंदर से दरवाज़ा होने की वजह से जब चाहो उठा लाओ. रूपाली पायल को लेकर कमरे के अंदर पहुँची.

"ये आज से तेरा कमरा होगा" रूपाली ने पायल से कहा

कमरे में हर तरफ समान बिखरा पड़ा था. पायल कभी कमरे को देखती तो कभी रूपाली को

"ऐसे क्या देख रही है?" रूपाली ने कहा "ये सारा समान हट जाएगा यहाँ से. अपना कमरा सॉफ कर लेना. जो समान तुझे चाहिए रख लेना बाकी निकालकर स्टोर रूम में पहुँचा देना"

"नही मालकिन वो......" पायल ने कहने की कोशिश की

"क्या?"रूपाली ने पुचछा

"नही वो आपने कहा के मेरा कमरा. मतलब मैं यहीं रहूंगी? हवेली में?" पायल बोली

"हां और नही तो क्या" रूपाली वहीं दीवार से टेक लगते हुए बोली " तू यहीं रहकर मेरे काम में हाथ बटाएगी"

"पर माँ?" पायल फिर अटकते हुए बोली

"तेरी माँ की चिंता मत कर. उसे मैं कह दूँगी. और फिर यहाँ काम करने के हर महीने पैसे भी तो दूँगी मैं तुझे" रूपाली ने ऐसे कहा जैसे फ़ैसला सुना रही हो

"जी ठीक है" पायल ने रज़ामंदी में सर हिलाया

"अगर तुझे बाथरूम वगेरह जाना हो तो सामने गेस्ट रूम है वहाँ चली जाना. इस कमरे में बाथरूम नही है. और ये दरवाज़े के इस तरफ मेरा कमरा है" रूपाली ने अंदर वाले दरवाज़े की तरफ इशारा करते हुए कहा

पायल ने फिर रज़ामंदी में सर हिला दिया

"चल अब तू नहा ले. कितनी गंदी लग रही है. मैं तुझे कुच्छ कपड़े ला देती हूँ." रूपाली ने कहा

"कपड़े?" पायल ने ऐसे पुचछा के जैसे पुच्छ रही हो के कपड़े क्या होते हैं

"हां कपड़े?" रूपाली ने कहा " तेरे पास इस चोली और ल़हेंगे के साइवा पहेन्ने को कुच्छ नही है ना?"

पायन ने इनकार में सर हिला दिया.

रूपाली उसे लेकर गेस्ट रूम में पहुँची और बाथरूम का दरवाज़ा खोला.

"तू नहा ले. मैं तुझे कुच्छ और कपड़े ला देती हूँ" पायल को गेस्ट रूम में छ्चोड़कर रूपाली कमरे से बाहर निकल गयी

रूपाली कामिनी के कमरे में पहुँची और उसकी अलमारी से 3 जोड़ी सलवार कमीज़ निकल लिया. उसने जान भूझकर वही कपड़े निकाले थे जिन्हें पुराना हो जाने की वजह से कामिनी ने अलमारी में नीचे की तरफ फेंका हुआ था और कभी उन्हें पेहेन्ति नही थी. कपड़े लेकर वो वापिस गेस्ट रूम में पहुँची तो पायल वैसी की वैसी ही खड़ी थी.

"क्या हुआ? अंदर जाकर नहा ले ना" उसने पायल से कहा

"पर यहाँ पानी कहाँ है?" पायल ने जवाब दिया

रूपाली की जैसे हसी छ्होट पड़ी.

"अरे पगली यहाँ कोई कुआँ नही है जहाँ से तूने पानी निकालके नहाना है"रूपाली बाथरूम में दाखिल हुई " ये देख इसे शोवेर घूमाते हैं. इसे इस तरफ घुमाएगी तो उपेर यहाँ से पानी गिरेगा और ऐसे उल्टा घुमाएगी तो बंद हो जाएगा. समझी"

पायल ने हैरत से शवर की तरफ देखता हुआ फिर गर्दन हिला दी.

"ये यहाँ साबुन रखा हुआ है. नाहकार बाहर आजा" कहते हुए रूपाली बाथरूम से निकल गयी.

वो वापिस नीचे बड़े कमरे में पहुँची. ठाकुर सुबह सवेरे ही कहीं बाहर चले गये थे. किचन में भूषण दोपहर के खाने की तैय्यारि कर रहा था. रूपाली को आता देख उसकी तरफ मुस्कुराया

"एक काम कीजिए काका" रूपाली ने भूषण से कहा "ये लड़की अबसे यहीं हवेली में रहेगी और काम में हाथ बटाएगी. इसके साथ मिलकर हवेली की पूरी सफाई कर दीजिएगा"

"कौन है ये लड़की?" भूषण ने पुचछा

"गाओं की ही है" रूपाली ने जवाब दिया " और एक काम और करना. ये हवेली के बाहर जितना भी जंगल उगा पड़ा है इसे कटवाकर बाहर फिर से लॉन और गार्डेन लगवाना है"

"जैसा आप कहो" भूषण ने कहा " पर हवेली के आस पास इतनी जगह है के सफाई करने में एक हफ़्ता निकल जाएगा"

"कोई बात नही" रूपाली ने कहा

:और इसलिए लिए गाओं से आदमी बुलाने पड़ेंगे." भूषण ने बाहर खिड़की से बाहर देखते हुए कहा. एक वक़्त था जब हवेली के आस पास घास का कालीन सा बिच्छा हुआ था और अब सिर्फ़ झाड़ियाँ

"ठीक है आप आदमी बुला लेना" कहते हुए रूपाली बड़े कमरे में आई और सोफे पे बैठ कर टीवी देखने लगी

थोड़ी देर बाद वो वापिस गेस्ट रूम में पहुँची तो पायल नाहकार बाहर निकली ही थी. उसने फिर अपना चोली और ल़हेंगा पहेन लिया था. उसे देखते ही रूपाली को ध्यान आया के वो कामिनी के कपड़े पायल के लिए ले तो आई थी पर उसे बताना भूल गयी थी.

"अरी पगली. ये दोबारा क्यूँ पहेन लिया" उसने पायल से कहा " ये नही अब ये कपड़े पहना कर"

रूपाली ने कामिनी के कपड़े पायल की तरफ बढ़ाए.

पायल पूरी भीगी खड़ी थी. नाहकार उसने बिना बदन पोन्छे ही कपड़े पहेन लिए थे जिसकी वजह से कपड़े गीले होकर उसके बदन से चिपक गये थे. चोली छातियों से जा लगी थी और निपल्स कपड़े के उपेर उभर गये थे. नीचे ल़हेंगा जो वैसे ही सिर्फ़ घुटनो तक आता था भीगने के कारण उसकी टाँगो से चिपक गया था और उपेर टाँगो के बीच चूत का उभार सॉफ नज़र आने लगा था. पायल की घाघरे के उपेर से ही चूत का उभार देखकर रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के उसने अंदर पॅंटी भी नही पहेन रखी थी. पायल के दोनो हाथ पीठ के पिछे थे

"क्या हुआ?" रूपाली ने पुचछा

"जी वो ये चोली बँध नही रही" पायल ने शरमाते हुए कहा

रूपाली फ़ौरन समझ गयी. पायल की चूचियाँ काफ़ी बड़ी बड़ी थी और उसकी चोली इतनी छ्होटी के वो खुद उसे पिछे बाँध ही नही सकती थी. ज़रूर उसकी माँ ही खींचकर बाँधती होगी

"उसे छ्चोड़ दे. ये कमीज़ सलवार पहेन ले" रूपाली ने कामिनी के कपड़े पायल की तरफ बढ़ाए

पायल एक सलवार कमीज़ लेकर वापिस बाथरूम की तरफ बढ़ी. उसकी पीठ पर चोली खुली हुई थी जिससे उसकी कमर बिल्कुल नंगी थी.

"सुन" रूपाली ने उसकी नंगी कमर की तरफ देखते हुए कहा जहाँ ब्रा के स्ट्रॅप्स ना देखकर उसे कुच्छ याद आया था " तू ब्रा नही पेहेन्ति ना?"

"ब्रा?" पायन ने घूमते हुए ऐसे कहा जैसे किसी अजीब सी चीज़ का ज़िक्र हो रहा हो

"अरे वो जो औरतें छातियों पे पेहेन्ति हैं. तेरी माँ नही पेहेन्ति?" रूपाली ने पुचछा

पायल ने इनकार में गर्दन हिल्याई

"तेरे पास नही है?" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने फिर इनकार में गर्दन हिला दी.

रूपाली ने ठंडी साँस ली

"अब इसे ब्रा कहाँ से दूं?" उसने दिल में सोचा फिर ख्याल आया के अपनी कोई पुरानी ब्रा दे दे.

"पर मेरी ब्रा आएगी इसे?" उसने दिल में सोचा और पायल की तरफ देखा

"इधर आ" उसने पायल को नज़दीक आने का इशारा किया " साइज़ कितना है तेरा?"

"जी?" पायल ने फिर हैरा से पुचछा

"अरे साइज़ पगली. तेरी चूचोयो का. कितनी बड़ी हैं तेरी?" रूपाली ने थोड़ा गुस्से में पुचछा

पायल सहम गयी. हाथ में पकड़े कपड़े ऐसे अपने सामने की तरफ कर लिए जैसे रूपाली से अपनी चूचियों को च्छूपा रही हो

"ओफहो" रूपाली झुंझला गयी पर अगले ही पल ख्याल आया के ये बेचारी गाओं की एक ग़रीब सीधी सादी लड़की है.इसे क्या पता होगा ये सब

"चल कोई नही. मैं दे दूँगी ब्रा. इसे सामने से हटा ज़रा." रूपाली ने पायल के हाथ में पकड़े हुए कपड़ों की तरफ इशारा किया

पायल ने शरमाते हुए कमीज़ हटा दी. रूपाली गौर से उसकी चूचियों को देखने लगी. पायल की दोनो चूचियाँ काफ़ी बड़ी थी, बल्कि बहुत बड़ी. रूपाली ने थोड़ा और गौर से देखा तो महसूस हुआ के 18 साल की उमर में ही पायल की चुचियाँ खुद उसके बराबर ही थी. मतलब के पायल को उसका ब्रा आ जाना चाहिए

"ज़रा घूम" कहते हुए रूपाली ने पायल को घुमाया और उसकी नंगी कमर को देखते हुए पिछे से ब्रा का अंदाज़ा लेने लगी. उसने नज़र नीचे की तरफ गयी तो देखा के गीला होने की वजह से पायल का ल़हेंगा उसकी गांद से चिपक गया था. गांद का पूरा शेप ल़हेंगे के उपेर से नज़र आ रहा था.

"यहीं रुक" कहती हुई पायल कमरे से बाहर निकली और अपने कमरे से 2 ब्रा और अपनी 2 पॅंटीस उठा लाई

"ये पहना कर कपड़े के नीचे" उसे ब्रा और पॅंटीस पायल को दी " अब ये पहेन, फिर सलवार कमीज़ पहन कर नीचे आ"

पायल ब्रा को हाथ में पकड़े देखने लगी और फिर रूपाली को देखा

"अब क्या हुआ" रूपाली ने पुचछा

"इसे पेहेन्ते कैसे हैं?" उसने एक बेवकूफ़ की तरफ रूपाली से पुचछा

"हे भगवान" कहते हुए रूपाली करीब आई " चल मैं बताती हूँ. अपनी चोली उतार"

"जी?" पायल ने सुना तो शर्माके 2 कदम पिछे हट गयी

"अरे" रूपाली ने गुस्से से उसकी तरफ देखा" शर्मा क्या रही है. जो तेरे पास है वही मेरे पास भी है. जो मेरी ब्लाउस में च्छूपा हुआ है वही है तेरी चोली में भी. चल उतार."

रूपाली पायल के पास आई और उसके दोनो हाथ पकड़कर सीधे किया. फिर उसने खींचकर चोली को उतार दिया. पायल ने रोकने की कोशिश की तो रूपाली ने घूरकर उसकी तरफ देखा और चोली को जिस्म से अलग करके बिस्तर पे फेंक दिया

चोली उतरते ही पायल की दोनो चूचियाँ रूपाली की आँखो के सामने थी. खुद एक औरत होते हुए भी पायल की चुचियों को देखकर रूपाली की धड़कन जैसे तेज़ हो गयी हो. पायल की चुचियाँ इतनी बड़ी हैं इसका अंदाज़ा उसे चोली के उपेर से हो गया था पर चोली उतरते ही तो जैसे दो पहाड़ सामने आ गये हो. हल्के सावली रंग की 2 चुचियाँ और उनपर काले रंग के निपल्स. और इतनी बड़ी बड़ी होने की वजह से अपने ही वज़न से हल्का सा निच्चे को झुक गयी थी. पायल ने रूपाली को अपनी चुचियों को घूरते देखा तो हाथ आगे करके अपनी छाती ढक ली. रूपाली मुस्कुरा दी

"कितनी उमर है तेरी?" रूपाली ने पुचछा

"जी 18 साल" पायल ने शरमाते हुए जवाब दिया

"और अभी से इतनी बड़ी बड़ी लेके घूम रही है?" रूपाली ने हस्ते हुए कहा तो पायल पे जैसे घड़ो पानी गिर गया.

"अच्छा शर्मा मत. हाथ आगे कर" कहते हुए रूपाली ने ब्रा आगे की और पायल को ब्रा कैसे पेहेन्ते हैं बताने लगी. ब्रा को फिर करते हुए उसी बारी बारी पायल की दोनो चुचियों को हाथ से पकड़ना पड़ा ताकि ब्रा ढंग से पहना सके. उसने पहली बार किसी और औरत की चूचियों को हाथ लगाया. खुद रूपाली को समझ नही आया के उसे मज़ा आया या कैसा लगा पर जो भी था, अजीब सा था. उसकी धड़कन अब भी जैसे तेज़ होने चली थी

"हो गया" पीछे से ब्रा के हुक्स लगते हुए रूपाली बोली " अब तो खुद पहेन लेगी ना या रोज़ाना सुबह सवेरे मुझे तेरी छातियाँ देखना पड़ा करेंगी?" रूपाली पिछे से हटे हुए बोली.

"नही मुझे आ गया. अबसे खुद पहेन लिया करूँगी" जवाब में पायल भी मुस्कुराते हुए बोली

"वैसे एक बात तो है. काफ़ी बड़ी बड़ी और मुलायम सी हैं तेरी" कहते हुए रूपाली ने पायल की दोनो चूचियों पे हाथ फेरा और ज़ोर से हस्ने लगी

"क्या मालकिन आप भी" पायल शरमाते हुए आगे को बढ़ी

"अरे सुन" पीछे से रूपाली ने उसका हाथ पकड़ा" वो सामने पॅंटी पड़ी है. ये तो खुद पहेन लेगी ना या मैं ही पहनाके दिखाऊँ?"

"नही आप रहने दीजिए" रूपाली ने फ़ौरन अपने ल़हेंगे को ऐसे पकड़ा जैसे रूपाली उसे खींचकर उतार देगी" मैं खुद पहेन लूँगी"

"हाँ पहना कर. वरना ल़हेंगे के उपेर से तेरा पूरा पिच्छवाड़ा नज़र आता है" कहते हुए रूपाली ने पिछे से पायल की गांद पे पिंच किया
 
शाम को पायल अपनी माँ का इंतेज़ार करती रही पर वो नही आई. रात को खाने की टेबल पर रूपाली ने पायल को ठाकुर से मिलवाया.

"इसे मैने रख लिया है काम में मेरा हाथ बटाने के लिए. खाना वगेरह बनाना इसे आता नही पर धीरे धीरे सीख जाएगी" रूपाली ने कहा

ठाकुर ने सिर्फ़ सहमति में सर हिलाया, एक नज़र पायल पर डाली और खाना खाने लगे. रूपाली ठाकुर के साइड में ही बैठी खा रही थी. एक मौका ऐसा आया जब पायल ठाकुर के सामने रखे ग्लास में पानी डालने लगी. वो रूपाली के सामने टेबल के दूसरी और खड़ी थी इसलिए पानी डालने के लिए उसे थोड़ा झुकना पड़ा. झुकने से उसके ब्रा में बंद दोनो चूचियाँ सॉफ दिखने लगी. रूपाली और ठाकुर दोनो की नज़र एक साथ पायल के क्लीवेज पर पड़ी. ठाकुर ने एक नज़र डाली और दूसरे ही पल नज़र हटाकर खाना खाने लगे, जैसे कुच्छ देखा ही ना हो. ये बात भले ही छ्होटी सी थी पर रूपाली ने ये देखा तो उसके दिल में खुशी की एक ल़हेर दौड़ गयी. जिसे वो चाहती थी वो सिर्फ़ उसे ही देखता था.

खाना खाने के बाद रूपाली के सामने मुसीबत ये थी के पायल उसके अगले कमरे में ही थी और रूपाली रात तो अपने ससुर के बिस्तर पर चुद रही होती थी. अगर पायल रात को उठकर उसके कमरे पर आई तो हक़ीक़त खुलने का डर था. रूपाली की समझ में कुच्छ ना आया था उसने ठाकुर को धीरे से कह दिया के वो रात को पायल के सोने के बाद उनके कमरे में आ जाएगी.

धीरे धीरे काम ख़तम करने के बाद सब अपने अपने कमरे में चले गये. रूपाली अपने कमरे में बैठी बेसब्री से वक़्त गुज़रने का इंतेज़ार कर रही थी ताकि पायल नींद में चली जाए और वो उठकर अपने ससुर के कमरे में जा सके. उसकी टाँगो के बीच आग लगी हुई थी और उसकी नज़र के सामने रह रहकर ठाकुर का लंबा मोटा लंड घूम रहा था. अचानक कमरे के बीच के दरवाज़े पर दस्तक हुई. दस्तक पायल के कमरे की तरफ से थी.

"हां क्या हुआ?" रूपाली ने दरवाज़ा खोलते हुए कहा

"आज तक मैं कभी अकेली सोई नही मालकिन. डर सा लग रहा है इतने बड़े घर में" पायल ने कहा

"अरे इसमें डरने की क्या बात है. इस कमरे में मैं हूँ ना" रूपाली ने कहा तो पायल सर हिलाती हुई फिर अपने बिस्तर की तरफ बढ़ गयी. रूपाली ने दरवाज़ा बंद किया और आकर अपने बिस्तर पर लेट गयी.

करीब एक घंटा गुज़र जाने के बाद रूपाली उठी और दरवाज़ा खोलकर पायल के कमरे में पहुँची. पायल बेख़बर सोई पड़ी थी. उसके कमरे में एक पंखा चल रहा था पर फिर भी कमरे में गर्मी थी. शायद इसी वजह से पायल ने अपनी कमीज़ उतार दी थी और सिर्फ़ ब्रा पहने सो रही थी. उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ ब्रा में उसकी साँस के साथ उपेर नीचे हो रही थी. रूपाली ने एक नज़र उसे देखा तो उसका दिल किया के एक बार पायल की चुचियों पर हाथ लगाके देखे पर इस इरादे को उसने अपने दिल में ही रखा. वो चुपचाप वापिस अपने कमरे में आई, पायल के कमरे से लगे दरवाज़े को अपनी तरफ से बंद किया और अपने कमरे से निकालकर नीचे ठाकुर के कमरे में पहुँची. दरवाज़ा खोलकर अंदर दाखिल हुई तो कमरे में हल्की रोशनी थी.

"हम आप ही का इंतेज़ार कर रहे थे" उसे देखते हुए ठाकुर ने कहा

रूपाली अपने ससुर के बिस्तर के पास पहुँची तो देखा के वो पहले से ही पुर नंगे पड़े अपना लंड हिला रहे थे. लंड टंकार पूरी तरह खड़ा हुआ था. रूपाली मुस्कुराइ और अपने कपड़े उतारने लगी. पूरी तरह से नंगी होकर वो भी बिस्तर पर ठाकुर के पास आकर लेट गयी.

सुबह 4 बजे का अलार्म बजा तो रूपाली की आँख खुली. वो नंगी अपने ससुर की बाहों में पड़ी हुई थी जो बेख़बर सो रहे थे. रात चुद्नने के बात सोने से पहले ही रूपाली ने ठाकुर को बता दिया था के वो सुबह सुबह ही अपने कमरे में लौट जाएगी ताकि पायल को शक ना हो. इसलिए वो सुबह 4 बजे का अलार्म लगाके सोई थी. धीरे से वो बिस्तर से उठी और अपने कपड़े उठाकर पहेन्ने लगी. कपड़े पहेंकर रूपाली ने झुक कर ठाकुर के होंठ एक बार धीरे से चूमे और हल्के कदमों से चलती हुई दरवाज़े की तरफ बढ़ी ताकि ठाकुर की नींद खराब ना हो. दरवाज़ा खोलकर रूपाली पानी पीने के लिए किचन की तरफ बढ़ी. बाहर के कमरे में एक ऐसी खिड़की भी थी जहाँ से हवेली के बड़ा दरवाज़ा सीधा नज़र आता था. हवेली से लेकर बड़े दरवाज़े तक तकरीबन 200 मीटर्स का फासला था जिसमें बीचे में कभी घास बिछि होती थी पर अब सिर्फ़ सूखी ज़मीन थी. हवेली के चारो तरफ तकरीबन 10 फुट की दीवार थी और उतना ही बड़ा लोहे का बड़ा दरवाज़ा भी था. कभी यहाँ 24 घंटे 2 आदमी पहरे पर रहते थे पर अब कोई नही होता था. कभी कभी तो रात को दरवाज़ा बंद तक नही होता था.

रूपाली खिड़की के सामने से निकली तो उसके पावं जैसे वहीं जम गये. नज़र खिड़की से होती हुई बड़े दरवाज़े से चिपक गयी. एक पल के लिए उसे लगा के उसने किसी को दरवाज़े से बाहर जाते देखा है. पर दरवाज़ा काफ़ी दूर होने के कारण वो सॉफ तौर पर कुच्छ देख नही पाई. दरवाज़े के पास एक ट्यूबलाइज्ट जल रही थी और उसकी की रोशनी में एक पल को यूँ लगा जैसे कोई चादर सी लपेटे अभी दरवाज़े से बाहर निकला है. रूपाली वहीं सहम कर खिड़की के साइड में छिप कर खड़ी सी हो गयी और खिड़की के बाहर देखने लगी. सुबह के 4 बज रहे थे. बाहर अब भी घुप अंधेरा था. बड़े दरवाजे के पास जल रही ट्यूबलाइज्ट की रोशनी और खिड़की के बीचे में कुच्छ नज़र नही आ रहा. बस दूर लोहे का वो दरवाज़ा दिखाई दे रहा था जो अब भी हल्का सा खुला हुआ था. रूपाली चारो तरफ अंधेरे में नज़र घूमती रही. 15 मिनट यूँ ही गुज़र गये. उसे समझ नही आ रहा था के ये उसका ख्याल था या उसने सच में किसी को देखा था. अचानक उसके दिल में एक ख्याल आया और वो भागती हुई से हवेली के दरवाज़े पर पहुँची. दरवाज़ा अंदर से बंद था. यानी के जो कोई भी था, वो बड़े दरवाज़े से अंदर आया पर हवेली के अंदर दाखिल नही हो पाया. बस हवेली के कॉंपाउंड तक ही आ पाया होगा. पर इस वक़्त चोरों की तरह कौन हो सकता है. सोचती हुई रूपाली फिर खिड़की तक पहुँची और थोड़ी देर तक फिर बाहर झाँकति रही. जब और कुच्छ दिखाई नही दिया तो वो किचन में पहुँची और पानी पीकर अपने कमरे में आ गयी.

कमरे में आकर रूपाली कपड़े बिस्तर पर लेटकर फिर उस आदमी के बारे में सोचने लगी. क्या उसे सच में किसी को देखा था या बस अंधेरे में यूँ ही वहाँ हुआ था. उसने खुद को समझने की कोशिश की के ये उसका भ्रम था. हवेली में यूँ रात को कोई क्यूँ आएगा. अब तो हवेली को मनहूस कहते हुए लोग हवेली के पास को भी नही आते अंदर आने की हिम्मत कौन करेगा? पर फिर भी उसका दिल जाने क्यूँ इस बात को समझने को तैय्यार नही था. उसका दिल बार बार यही कह रहा था के उसने किसी को देखा है. खुद रूपाली को भी इस बात पे हैरत थी के वो इस बात को लेके इतना घबरा क्यूँ रही थी? इतना डर क्यूँ गयी थी.

वो यूँ ही अपनी सोच में खोई हुई थी के अचानक उसके दिल में पायल का ख्याल आया. अपनी तसल्ली करने के लिए के पायल अब भी सो रही है वो बीच का दरवाज़ा खोलकर पायल के कमरे में आई.

पायल अब भी वैसे ही बेख़बर घोड़े बेचकर सोई पड़ी थी. फ़र्क सिर्फ़ ये था के अब उसने ब्रा भी एक तरफ उतारकर रख दी थी. वो उल्टी सोई हुई थी और उसकी दोनो चुचियाँ खुली हुई उसके नीचे दबकर साइड से बाहर को निकल रही थी. रूपाली धीमे कदमों से चलती उसके पास पहुँची और पायल की नंगी कमर को देखने लगी. दुबली पतली सावली सी कमर देखकर उसे अपने शादी से पहले के दिन याद आए. कभी वो भी ऐसी ही थी. दुबली पतली, उठी हुई गांद और बड़ी बड़ी चुचियाँ. अब जिस्म थोड़ा भर गया था. जाने किस ख्याल में वो वही पायल के बिस्तर पर बैठ गयी और एक हाथ उसकी कमर पर रखकर सहलाने लगी. पायल की नंगी कमर पर उसने धीरे से हाथ फिराया और साइड से उसकी एक चूची को च्छुआ. छाती पर हाथ लगते ही पायल नींद में थोड़ा हिली और रूपाली फ़ौरन उठकर बिस्तर से खड़ी हो गयी. उसने अपने सर को एक हल्का सा झटका दिया और पायल के कमरे से वापिस अपने कमरे में आ गयी. अब उसके दिमाग़ में दो ख्याल चल रहे थे. एक तो दरवाज़े पे दिखे आदमी का और दूसरा ये के क्या वो खुद ठीक है जो एक औरत के जिस्म को यूँ देखती है?

वापिस अपने कमरे में आकर रूपाली सो गयी. आँख खुली तो सुबह के 9 बज चुके थे और पायल बाहर दरवाज़े पर चाइ लिए खड़ी थी. फ्रेश होकर रूपाली नीचे आई तो बड़े कमरे में ठाकुर बैठे कुच्छ काग़ज़ देख रहे थे. रूपाली को आता देख वो उसकी तरफ मुस्कुराए.

"आँख खुल गयी आपकी?"

"पता नही क्यूँ आजकल इतनी नींद आने लगी है" रूपाली पास बैठते हुए मुस्कुराइ.

"क्यूंकी हमेशा बचपन से सुबह 5 बजे उठ जाती थी ना इसलिए. अब वो नींद पूरी कर रही हैं आप" कहकर ठाकुर हँसने लगे.

रूपाली ने मुस्कुराते हुए सामने रखे पेपर्स की तरफ देखा

"ये क्या है?" उसने ठाकुर से पुचछा

"कुच्छ नही. बॅंक स्टेट्मेंट्स और कुच्छ जायदाद के पेपर्स." ठाकुर थोड़ा सीरीयस होते हुए बोले "अंदाज़ा लगा रहे हैं के पिच्छले 10 साल में अपने बेटे और अपनी इज़्ज़त के सिवा और हमने कितना कुच्छ खोया है"

कमरे में थोड़ी देर खामोशी सी छा गयी. ना रूपाली कुच्छ बोली और ना ही ठाकुर. खामोशी टूटी पायल की आवाज़ से

"मैं आज क्या करूँ मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा

"बताती हूँ. किचन में चल" रूपाली ने पायल को किचन की तरफ जाने का इशारा किया. पायल के जाने के बाद वो ठाकुर की तरफ पलटी

"आप आज कहीं जा रहे हैं?"

"नही क्यूँ?" ठाकुर ने पुचछा

"नही मैं सोच रही थी के ज़मीन की तरफ आज एक फिर चक्कर लगा आऊँ. और फिर ये भी सोच रही थी के भूषण को बोलकर कुच्छ आदमी गाओं से बुलवा लूँ और हवेली के आस पास थोड़ी सफाई करा दूं" रूपाली ने कहा

"ज़मीन का चक्कर? क्यूँ?" ठाकुर ने पुचछा

"बंजर पड़ी ज़मीन किस काम की पिताजी?" मैं वहाँ दोबारा खेती शुरू करना चाहती हूँ

"तो वो हम पर छ्चोड़ दीजिए. आपको वैसे भी इस बारे में क्या पता?" ठाकुर ने कहा

"नही पिताजी. इस बार मुझे करने दीजिए. मैं हवेली को दोबारा पहले जैसा देखना चाहती हूँ और ये काम मैं खुद करना चाहती हूँ" रूपाली ने ऐसा कहा जैसे कोई फ़ैसला सुना रही हो

"ठीक है जैसा आप ठीक समझें" ठाकुर ने सामने खड़ी बला की खूबसूरत लग रही रूपाली के सामने हथ्यार से डाल दिए

"मैं भूषण को बोल देती हूँ के कुच्छ आदमी गाओं से बुलवा ले. आप देख लीजिएगा" रूपाली ने ठाकुर से कहा और किचन की तरफ बढ़ी.

पायल को उसने हवेली के कुच्छ हिस्सो में सफाई करने के बारे में बता दिया. पायल किसी समझदार बच्ची की तरह उसके पिछे गर्दन हिलती घूमती रही और समझती रही के उसे आज क्या करना है.

पायल को सब समझाकर रूपाली गाड़ी लेकर हवेली से बाहर निकल गयी. उसने फिर ज़मीन को उस हिस्से की तरफ गाड़ी घुमा दी जहाँ पायल और उसकी माँ बिंदिया का घर था. बिंदिया ने उसे कहा था के वो हमेशा से यहीं काम करती थी और उसका मर्द उससे पहले से. यानी बिंदिया उसे काफ़ी कुच्छ बता सकती है जो रूपाली को पता नही था. रूपाली की शादी से पहले के बारे में. उन दीनो के बारे में जब उसका पति पुरुषोत्तम सब काम देखा करता था. रूपाली का इरादा ये था का कहीं से उसे कुच्छ ऐसा पता चल जाअए जिससे उसे अपने पति की मौत की वजह का कोई सुराग मिले. इसलिए उसने ठाकुर को भी साथ आने से मना कर दिया था. क्यूंकी वो बिंदिया से अकेले में बात करना चाहती थी.

गाड़ी चलती रूपाली उसी जगह पहुँची जहाँ बिंदिया उसे पहले मिली थी. गाड़ी को उसी पेड़ के नीचे छ्चोड़कर रूपाली पैदल बिंदिया की झोपड़ी की तरफ बढ़ी. झोपड़ी का दरवाज़ा खुला हुआ था. दरवाज़े पर पहुँचकर रूपाली ने बिंदिया के नाम से उसे आवाज़ लगाई पर कोई हलचल नही हुई. दरवाज़े पर खड़ली रूपाली ने अंदर देखा तो कोई नज़र नही आया. रूपाली दरवाज़े से हटकर घूमकर झोपड़ी के पिछे आई ये सोचकर के शायद बिंदिया पिछे हो. सामने का नज़ारा देखकर उसके कदम वही जम गये और वो दो कदम पिछे हटकर फिर झोपड़ी की आड़ में चली गयी. एक पल को झोपड़ी के दीवार के सहारे खड़े रहकर उसने धीरे से थोड़ा आगे बढ़ी और दम साधे देखने लगी.

सामने एक नीम का पेड़ था जिसके नीचे एक चादर बिछी थी. चादर पर दो नंगे जिस्म एक दूसरे से उलझे हुए थे, एक मर्दाना और एक ज़नाना. मर्दाना जिस्म जिस किसी का भी था वो नीचे लेटा हुआ था और औरत उपेर बैठी हुई थी. हाथ आगे आदमी के सीने पर रखकर वो औरत आगे को झुकी हुई थी. रूपाली जहाँ खड़ी थी वहाँ से उसे उस औरत की कमर और आदमी की औरत की गांद के नीचे से निकलती हुई टांगे नज़र आ रही थी. औरत का मुँह रूपाली से दूसरी तरफ था और क्यूंकी वो आदमी के उपेर बैठी हुई थी इसलिए रूपाली को आदमी का चेहरा नज़र नही आ रहा था.

औरत आदमी के उपेर घुटने टांगे मोदकर बैठी हुई थी. उसकी दोनो टांगे आदमी के पेट के दोनो तरफ थी और घुटनो ज़मीन पर टीके हुए थे. वो हाथ सामने आदमी के सीने पर रखकर अपनी गांद को उपेर नीचे कर रही थी और पिछे से रूपाली को लंड उस औरत की चूत में अंदर बाहर होता नज़र आ रहा था. देखने से ही अंदाज़ा होता था के आदमी कोई छोटी कद काठी का था और औरत उससे लंबी और चौड़ी थी. रूपाली दम साधे देखती रही. उस औरत की मोटी गांद लंड पर तेज़ी के साथ उपेर नीचे हो रही थी और रूपाली की नज़र चूत में अंदर बाहर होते लंड पर जम गयी.उस आदमी का लंड भी इतना बड़ा नही था. शायद उसके छ्होटे जिस्म के हिसाब से लंड भी छ्होटा था. कई बार वो औरत उपेर को जाती तो लंड चूत से बाहर फिसल जाता जिसे वो फिर हाथ में पकड़कर लंड के अंदर घुसाती और उपेर नीचे होने लगती.

थोड़ी देर तक यही माजरा चलता रहा. अचानक वो औरत उस आदमी के उपेर से उठकर खड़ी हो गयी और तब रूपाली को उसका चेहरा नज़र आया. वो बिंदिया थी और इस वक़्त पूरी तरह से नंगी खड़ी हुई थी. रूपाली उसके जिस्म को देखकर दिल ही दिल में वा किए बिना ना रह सकी. इस औरत की 18 साल की एक बेटी थी पर जिस्म अब भी खुद किसी 18-19 साल की लड़की से कम नही था. कहीं भी जिस्म के किसी हिस्से में ढीला पन नही था. बड़ी बड़ी तनी हुई चूचियाँ, पतली कमर, सपाट पेट,मोटी उठी हुई गांद, खूबसूरत टाँगें. कहीं कोई फालतू मोटापा नही. गांद भी ना ज़्यादा फेली हुई और ना ही छ्होटी. तभी रूपाली की नज़र उस आदमी पर पड़ी और उसे समझ आया के वो क्यूँ छ्होटी सी कद काठी का लग रहा था. वो मुस्किल से 16-17 साल का एक लड़का था और कद में अपनी उमर के लड़को से कुच्छ छ्होटा ही था. रूपाली चुपचाप खड़ी देखती रही.

बिंदिया ने खड़ी होकर उस लड़के को उठने को कहा. वो चुपचाप उसकी बात मानकर खड़ा हो गया. बिंदिया उसके सामने घुटनो पे बैठ गयी और उसका लंड मुँह में लेकर चूसने लगी. लड़के का लंड पूरा खड़ा हुआ था पर फिर भी बिंदिया उसे पूरा मुँह में ले गयी. कभी वो उसके लंड को मुँह में अंदर बाहर करती तो कभी जीभ से उसे चाटने लगती, तो कभी लड़के के अंडे अपने मुँह में लेके चूस्ति. लड़का आँखें बंद किए खड़ा था और अपने दोनो हाथों से बिंदिया का सर पकड़ रखा था. थोड़ी देर लंड चूसने के बाद बिंदिया अपने घुटनो पे किसी कुतिया के तरह झुक गयी. घुटने फैलाकर उसके अपनी गांद उपेर को उठा दी ताकि उसकी चूत खुलकर लड़के के सामने आ जाए. उसकी दोनो चूचियाँ सामने से नीचे चादर पे रगड़ रही थी.

लड़का इशारा समझ गया और बिंदिया के पिछे आ गया. जहाँ रूपाली खड़ी थी वहाँ से उसे दोनो साइड से नज़र आ रहे थे. घुटनो पे झुकी हुई बिंदिया और उसके पिछे उसकी गांद पे हाथ रखे वो लड़का.

"रुक ज़रा वरना तू पिच्छली बार की तरह ग़लती से फिर गांद में डाल देगा" कहते हुए बिंदिया ने एक हाथ पिछे ले जाकर उस लड़के का लंड पकड़ा और उसे अपनी चूत का रास्ता दिखाया. एक बार लंड अंदर हुआ तो लड़के ने चूत पे धक्के मारने शुरू कर दिए. पीछे से उसकी टाँगो की बिंदिया की गांद पे ठप ठप टकराने की आवाज़ और सामने से बिंदिया के मुँह से आ आ की आवाज़ ने अजीब सा महॉल बना दिया था. थोड़ी देर बाद शायद बिंदिया झड़ने के करीब आ गयी थी. वो खुद भी अपनी गांद हिलाने लगी और लड़के को और ज़ोर से चोदने को कहने लगी. लड़का भी पूरा जोश में था. वो अपना लंड उसकी चूत में ऐसे पेल रहा था जैसे आज चूत फाड़ के ही दम लेगा. उसके हर धक्के से बिंदिया का सर नीचे ज़मीन से टकराता और वो उसे और ज़ोर से धक्का मारने को कहती.

अचानक बिंदिया ज़ोर से चीखी और उसने सामने से चादर को अपने दोनो हाथों में कासके पकड़ लिया. उसने अपना सर नीचे ज़मीन पे टीकाया और उसका पूरा जिस्म कापने लगा. उसकी आ आ और तेज़ हो गयी. चादर खींचकर उसने अपने मुँह में भींच ली और ज़ोर ज़ोर से ज़मीन पे हाथ मारते हुए आआआआअहह आआआआआअहह चीखने लगी. पीछे से लड़का भी पूरी जान लगाकर उसकी चूत पे धक्के मारने लगा. थोड़ी देर ऐसे ही चीखने के बाद बिंदिया ठंडी पड़ी तो रूपाली समझ गयी के वो ख़तम हो चुकी है. लड़का भी अब पूरी तेज़ी से उसकी चूत में लंड पेल रहा था.

"चूत में मत निकल देना" बिंदिया ने लड़के से कहा

लड़के ने हां में सर हिलाया और 3-4 और ज़ोर के झटके मारकर लंड बिंदिया की चूत से बाहर खींचा और उसकी गांद पे रख दिया. लंड ने पिचकारी छ्चोड़ी और कुच्छ बिंदिया की गांद पर गिरा, कुच्छ कमर पर और कुच्छ उसके बालों पर.

रूपाली धीरे से पिछे हुई और झोपड़ी के सामने रखी चारपाई पर आकर बैठ गयी.

थोड़ी ही देर बाद माथे से पसीना पोंचछति बिंदिया भी झोपड़ी के पिछे से निकली. उसके पिछे पिछे वो लड़का भी था. दोनो ने अपने अपने कपड़े पहेन लिए थे. रूपाली को बैठा देखकर दोनो ठिठक गये.

"अरे मालकिन आप? आप कब आई?" बिंदिया ने रूपाली से पुचछा

"बस अभी आई एक मिनट पहले" रूपाली ने झूठ बोला " तुम नही दिखी तो सोचा के इंतेज़ार कर लूँ"

"हां वो मैं ज़रा थोड़ा कुच्छ काम से गयी थी. ये चंदर है." बिंदिया ने कहा

लड़के ने हाथ जोड़कर रूपाली के सामने सर हल्का सा झुकाया और चला गया.

"आअप पानी लेंगी?" उसके जाने के बाद बिंदिया ने रूपाली से पुचछा

"हां" रूपाली ने कहा

बिंदिया झोपड़ी में जाकर एक ग्लास में पानी ले आई और रूपाली को दिया

"मालकिन वो मैं ..... " झिझकते हुए बिंदिया बोली

"ठीक है बिंदिया" रूपाली ने ग्लास एक तरफ रखते हुए कहा "तुम जो कर रही थी वो दुनिया की हर औरत करती है. शरमाने की ज़रूरत नही"

रूपाली ने बिंदिया के सामने सॉफ ज़ाहिर कर दिया के उसने सब देख लिया था. बिंदिया ने फिर भी कुच्छ नही कहा और सर झुकाए ज़मीन की और देखती रही.

"बाकी सब तो ठीक है पर थोड़ा छ्होटा नही था? इतने से काम चल जाता है तुम्हारा?" रूपाली ने हस्ते हुए कहा तो बिंदिया की भी हसी छूट पड़ी.

"नही मेरा मतलब था के लड़का थोड़ा छ्होटा नही है? तुम्हारी बेटी की उमर का लगता है" रूपाली ने कहा

"नही मेरी बेटी से 2 साल छ्होटा है" बिंदिया वहीं ज़मीन पर बैठते हुए बोली "पर काम चल जाता है. इसके माँ बाप नही हैं. इसलिए मैं ही खाने वगेरह को दे देती हूँ"

"और बदले में थोड़ा काम निकल लेती हो?" रूपाली मुस्कुराते हुए बोली

बिंदिया हँसने लगी

"नही ये तो पता नही कैसे हो गया वरना ये तो बहुत छ्होटा था जब मैं इसके माँ बाप मर गये थे. गाओं से मैं इसे लाई और यूँ समझिए के अपनी बेटी के साथ इसे भी बड़ा किया"बिंदिया ने कहा. रूपाली ने ग्लास से पानी का आखरी घूंठ लिया और ग्लास बिंदिया को दिया.

"तुम कल आई नही पायल के साथ?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा

"नही कल चंदर की तबीयत थोड़ी खराब थी. सुबह से ही हल्का बुखार था इसे तो मैं यहीं रुक गयी और पायल को भेज दिया. वो काम ठीक से कर तो रही है ना मालकिन?" बिंदिया ने पुचछा

"हां सब ठीक है." रूपाली ने कहा और फिर थोड़ा रुकते हुए बोली " मैं असल मैं तुमसे थोड़ा बात करने आई थी. अकेले में इसलिए किसी को साथ नही लाई"

"हां कहिए" बिंदिया बोली. तभी चंदर आया और हाथ के इशारे से बिंदिया को कुच्छ बताने लगा.

"हां ठीक है जा पर शाम तक आ जाना. आते हुए गाओं से थोड़ा दूध लेता आना. पैसे हैं ना तेरे पास?" बिंदिया चंदर से बोली. चंदर ने हां में सर हिलाया और चला गया

"बोल नही सकता बेचारा. गूंगा है" बिंदिया रूपाली की तरफ देखती हुई बोली

"काब्से?" रूपाली ने पुचछा

"बचपन से ऐसा ही है. इसके माँ बाप के मरने के बाद जब मैं इसे लाई तो बहुत वक़्त लग गया मुझे इसे बातें समझाने में. इसके इशारे समझ ही नही आते थे पहले तो" बिंदिया बोली

"माँ बाप कैसे मारे थे इसके?" रूपाली ने पुचछा तो बिंदिया बगले झाँकने लगी. थोड़ी देर तक वो यूँ ही चुप बैठी रही.

"क्या हुआ. बताओ ना" रूपाली ने दोबारा पुचछा

"छ्चोड़िए मालकिन. आपको अच्छा नही लगेगा" बिंदिया ने कहा

"क्यूँ?" रूपाली हैरत में बोली

"क्यूंकी इसके माँ बाप ठाकुर साहब की गोली के शिकार हुए थे. ठाकुर साहब ने ही एक रात दोनो को मौत की नींद सुलाया था."
 
"पर क्यूँ?"रूपाली के मुँह से अपने आप ही निकल गया

"जब आपकी पति छ्होटे ठाकुर की हत्या हुई तो उसके पिछे आस पास के इलाक़े में बहुत सारे लोग मौत की नींद सोए थे मालकिन. ठाकुर साहब और आपके देवर ठाकुर तेजवीर सिंग ने आपके पति की मौत का बदला लेने के लिए आस पास के इलाक़े में दहशत फेला दी थी."

"जानती हूँ" रूपाली ने ठंडी आवाज़ में कहा " आगे बोलो"

"गाओं में एक बनिया हुआ करता था. जाने क्यूँ ठाकुर साहब को लगा के उस बानिए का कुच्छ हाथ है आपके पति की हत्या में. बस एक रात ठाकुर साहब और उनकी आदमियों ने बानिए के घर पर हल्ला बोल दिया"

बिंदिया ने बात जारी रखते हुए कहा

"ह्म्‍म्म्मम फिर?" रूपाली गौर से उसकी बात सुन रही थी

"चंदर के माँ बाप उसी बानिए के घर पर काम करते थे. उनकी किस्मत खराब के उस रात बानिए के घर पर कोई पूजा चल रही थी जिसमें हाथ बटाने के लिए उसने चंदर के माँ बाप को रात भर के लिए रोक लिया था. आधी रात के करीब ठाकुर साहब अपने आदमियों के साथ बानिए के घर पहुँचे और घर में जो कोई भी था उसे मौत के घाट उतार दिया. उन लोगों में इस बेचारे चंदर के माँ बाप भी थे" बिंदिया ने साँस छ्चोड़ते हुए कहा और थोड़ी देर के लिए चुप हो गयी.

"ये आज से करीब 9 साल पहले की बात है. तब ये चंदर मुश्किल से 7-8 साल का था. गाओं में यूँ ही कुच्छ दिन अनाथ बेचारा यहाँ वहाँ घूमता रहा. एक दिन मेरे घर खाना माँगने आया तो मैने यहीं रख लिया" बिंदिया ने बात पूरी करते हुए कहा

रूपाली को समझ नही आया के क्या कहे. बिंदिया भी अपनी बात कहकर चुप हो गयी थी. दोनो औरतें खामोश बैठी यहाँ वहाँ देखती रही. रूपाली को ठाकुर के बारे में ये सुनना अच्छा नही लगा. पहले तो वो उसके ससुर थे और अब तो रिश्ता भी बदलकर मोहब्बत का हो गया था. उसका दिल ठाकुर को ग़लत मानने को तैय्यार नही था और ना ही उनके खिलाफ कुच्छ सुनने को तैय्यार था. उसके लिए ठाकुर वही आदमी था जिनकी बाहों में वो रात भर सोती थी और जो उसे इतना चाहते थे, वो आदमी नही जो किसी के घर में घुसकर लोगों को मारना शुरू कर दे. रूपाली ने बात बदलने की सोची

"एक बात कहूँ बिंदिया?" रूपाली ने कहा

"हां मालकिन" बिंदिया ने फ़ौरन उसकी तरफ देखा

"तुम्हारी उमर कितनी होगी?"

"सही तो नही पता पर 40 के आस पास तो होगी ही. क्यूँ?" बिंदिया ने सवालिया अंदाज़ में कहा

"क्यूंकी तुम्हारा नंगा जिस्म देखकर एक पल के लिए तो मुझे लगा के कोई 20 साल की लड़की है. लगा ही नही के तुम हो, एक 18 साल की लड़की की माँ" रूपाली ने मुस्कुराते हुए कहा

"मालकिन" बिंदिया शरम से पानी पानी हो गयी"आपने ..........?"

"हां सब देखा था मैने. जब मैं यहाँ आई तो तुम उस लकड़े के उपेर चढ़ि हुई थी इसलिए मैने पिछे से देखा. तुम्हारा जिस्म तो कमाल का है बिंदिया. मैं एक पल के लिए तो पिछे हटी पर फिर देखने लगी. खुद एक औरत होते हुए भी मैं तुम्हारे जिस्म को देखकर वहीं रुक ही गयी" पायल बोली

बिंदिया शरम से आँखें नीचे किए बैठी थी. उसपर तो लग रहा था जैसे किसी ने पानी फेंक दिया हो.

"मालकिन आपने सब ,,,,,,,,,,? मुझे तो लगा था के आपने इस बात से अंदाज़ा लगाया के मैं और चंदर एक साथ कपड़े ठीक करते हुए आए थे" बिंदिया अटकते हुए बोली

"नही तुम्हारा पूरा कार्यक्रम देखा था मैने. तुम लड़के के उपेर और फिर तुम झुकी हुई. अच्छा एक बात बताओ. तुम क्या आख़िर में हमेशा ऐसे ही शोर मचाती हो?" पायल ने अपनी बात जारी रखी. उसे बिंदिया का यूँ शरमाना अच्छा लग रहा था.

बिंदिया के मुँह से बोल नही फूट रहा था. वो नज़रें नीची किए ज़मीन की तरफ देख रही थी. रूपाली को ये मौका ठीक लगा. अगर उसे बिंदिया से और बातें पता करनी हैं तो उसके लिए ज़रूरी है के बिंदिया उसके साथ पूरी तरह खुल जाए और उस काम के लिए ये ठीक मौका था.

"अच्छा अब शरमाना छ्चोड़. मुझसे क्या शर्मा रही है?" रूपाली ने बिंदिया के सर पर हाथ मारते हुए कहा "मुझे अपनी दोस्त समझ, मालकिन नही."

बिंदिया ने रूपाली की तरफ देखा और मुस्कुराइ. रूपाली को अपना काम बनता लगा

"भूख लग रही है बहुत. कुच्छ खाने को है तेरे यहाँ?" उसने बिंदिया से पुचछा

बिंदिया घर में जो कुच्छ मिला खाने के लिए ले आई

"मालकिन ज़्यादा तो कुच्छ नही है मुझ ग़रीब के घर में. जो है बस यही है" उसने चारपाई पर खाना परोसते हुए रूपाली से कहा

"अरे पगली 2 वक़्त की रोटी मिल जाए, यही काफ़ी है इंसान के लिए" रूपाली ने हसते हुए जवाब दिए

रूपाली ने खामोशी से खाना खाया और बिंदिया वहीं नीचे बैठी उसे देखती रही. रूपाली ने उसे साथ खाने को कहा पर वो नही मानी. खाना ख़तम करके रूपाली ने हाथ धोए और घूमकर झोपड़ी के पिछे वहीं आ गयी जहाँ थोड़ी देर पहले बिंदिया चुड़वा रही थी. वो वही एक पेड़ की छाँव में आकर खड़ी हो गयी.

"क्या हुआ मालकिन" पीछे से आते हुए बिंदिया ने पुचछा

"कितनी शांति है यहाँ" रूपाली ने जवाब दिया"कितना सुकून"

"शांति नही मालकिन" बिंदिया ने कहा"सन्नाटा कहिए. एक बंजर पड़ी ज़मीन पे मौत का सा सन्नाटा"

"मौत का सन्नाटा?" रूपाली हस्ते हुए बोली "और इस मौत के सन्नाटे में तुम चंदर के साथ कबड्डी खेल रही थी?"

सुनते ही बिंदिया फिर से लाल हो गयी. वो दोनो चलते हुए फिर झोपड़ी के अंदर आ गयी.

"अच्छा ये सब शुरू कैसे हुआ ये तो बता?रूपाली फिर से बैठते हुए बोली

"क्या?"बिंदिया ने कहा

"यही. चंदर के साथ कबड्डी कबड्डी का खेल" रूपाली ने जवाब दिया

"क्या मालकिन आप भी. कोई और बात कीजिए ना" बिंदिया ने बात टालने की कोशिश की

"अरे बता ना. क्या बचपन से इसे लाते ही शुरू कर दिया था?" रूपाली बोली

"नही नही. ये तो अभी साल भर पहले ही शुरू हुआ था." बिंदिया बोली

"कैसे? बता ना" रूपाली ने ऐसे पुचछा जैसे कोई बहुत मज़े की बात सुनना शुरू कर रही हो

"छोड़िए ना मालकिन" बिंदिया ने एक और बार बात बदलने की कोशिश की

"बता ना" रूपाली ज़िद पर आदि रही

"ठीक है." बिंदिया ने हथ्यार डालते हुए कहा "जब चंदर को मैं यहाँ लाई थी तो ये मुश्किल से 7-8 साल का था. पाल पोस्के बड़ा किया. ये धीरे धीरे जवान होता चला गया पर शायद मैं इसे हमेशा एक बच्चे की तरह ही देखती रही. मेरे लिए तो ये वही बच्चा था जिसे अनाथ देखकर मैं अपने घर ले आई थी."

"ह्म्‍म्म्म" रूपाली ना हामी भारी

"मेरे इस कंधे में काफ़ी चोट लग गयी थी जिसकी वजह से ये हाथ ज़्यादा पिछे की तरफ मूड नही पाता" बिंदिया ने अपने लेफ्ट कंधे पर हाथ रखते हुए कहा. " इसी वजह से नहाते वक़्त मैं अपने हाथ से कमर पर साबुन नही लगा पाती. नहाते वक़्त या तो मैं अपने मर्द को बुला लेती थी या अपनी बेटी पायल को. जब मेरा मर्द मर गया तो ये काम पायल ही करती थी. एक दिन पायल घर पर नही तो तो मैने चंदर को कह दिया. तब वो बच्चा ही था. और फिर यह सिलसिला चल निकला. कभी पायल मेरी कमर पर साबुन लगा देती और जब वो ना होती तो मैं चंदर से लगवा लेती."

"तू नंगी हो जाती थी उसके सामने? बच्चा था तो क्या हुआ?" रूपाली ने हैरत से पुचछा

"अरे नही मालकिन. घाघरा उपेर खींच लेती थी सीने तक. बस कमर थोड़ा सा खोल देती थी ताकि वो साबुन आराम से लगा सके" बिंदिया बोली

"ह्म्‍म्म्म. फिर?" रूपाली ने आगे की बात बताने के लिए कहा

"फिर मेरा मर्द मर गया. कई साल तक मैं यूँ ही अकेले रही. एक बार जिस्म की आग इस कदर बढ़ गयी के अपने आप को रोक नही पाई और चंदर के साथ जिस्मानी रिश्ता बन गया. बस तबसे ऐसा ही चल रहा है" बिंदिया ने बात ख़तम करते बोला

"ये क्या बात हुई. अरे मैं वो किस्सा सुनना चाहती हूँ जब तुम दोनो ने पहली बार किया. वो कहानी बता. हर बात को बता के उसने क्या किया ओर तूने क्या किया" रूपाली जैसे हुकुम देते हुए बोली

"मालकिन" बिंदिया को जैसे यकीन नही हुआ

"क्या मालकिन?" रूपाली बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली"जैसे तूने कभी किसी औरत के साथ ऐसी बात नही की. औरतें तो अक्सर ऐसी बातें करती हैं आपस में"

"वो तो ठीक है मालकिन पर फिर भी" बिंदिया अब भी हिचकिचा रही थी

"पर वार कुच्छ नही अब बता. मैने कहा ने मुझे अपनी दोस्त ही समझ. अब जल्दी से बता. बताआआआअ नाआआआअ" रूपाली किसी बच्चे की तरह ज़िद करते हुए बोली

ठीक है आप सुनना ही चाहती हैं तो सुनिए" बिंदिया ने आह भरते हुए कहा

"बात आज से कोई एक साल पहले की है. पायल घर पर नही थी. मैं यहीं झोपड़ी में नहाती थी. रोज़ की तरह नहाने लगी और चंदर को आवाज़ देकर अपनी कमर पर साबुन लगाने को कहा. सच कहिए तो उस दिन मुझे अंदाज़ा हुआ था के वो अब बच्चा नही रहा, एक मर्द बन चुका है"

"ह्म्‍म्म्म" रूपाली हामी भरते बोली

"रोज़ की तरह मैने अपना घाघरा उपेर खींच रखा था. मेरे सीने से मेरे घुटने तक. चंदर आया और मेरी कमर पर साबुन लगाने लगा. पर उस दिन जो ग़लती मुझसे हुई वो ये थी के मैने सफेद रंग का घाघरा पहेन रखा था और अंदर कुच्छ भी नही था" बिंदिया बोली

"मतलब पानी गिरते ही घाघरा बदन से चिपक गया और तेरा सारा समान चंदर के सामने?" रूपाली हस्ते हुए बोली

"हां" बिंदिया ने भी हसके ही जवाब दिया"मुझे इस बात का अंदाज़ा ही नही था के मैं एक तरह से उसके सामने नंगी ही हूँ. वो चुपचाप मेरे पिछे खड़ा साबुन लगा रखा था. कमर तो मैने खोल ही रखी थी पर सफेद घाघरा जिस्म से चिपक जाने के कारण मेरे पिच्छला नीचे का हिस्सा भी एक तरह से उसे नज़र ही आ रहा था."

"मतलब तेरा पिच्छवाड़ा?" रूपाली ने सीधी चोट की, हस्ते हुए"तेरी गान्ड?"

बिंदिया पर जैसे घड़ो पानी गिर गया. रूपाली उसके लिए उसकी मालकिन थी, एक अच्छे घर की सीधी शरीफ बहू. उससे इस तरह की भाषा की बिंदिया को बिल्कुल उम्मीद नही थी. वो रूपाली का मुँह देखने लगी.

"ऐसे क्या देख रही है. गान्ड को गान्ड नही तो क्या गोल गप्पा कहूँ? अगर तू ऐसे शरमाएगी मेरे सामने तो तेरी मेरी दोस्ती यहीं ख़तम. मैं जा रही हूँ और फिर कभी नही आने वाली"रूपाली चारपाई से उठने को हुई

"अरे नही मालकिन" बिंदिया ने फ़ौरन से रोका "आप ग़लत समझ रही हैं. गाओं की सब औरतें ऐसी ही ज़ुबान में बात करती हैं. मैं खुद भी करती हूँ ऐसे ही बातें जब सब औरतें आपस में बैठी होती हैं तो. बस आपके मुँह से सुनके थोडा अजीब सा लगा"

"अजीब छ्चोड़. मेरे से वैसे ही बात कर जैसे तू बाकी औरतों से करती है. मैं भी तो एक औरत ही हूँ. अब आगे बता" रूपाली ने वापिस आराम से बैठते हुए कहा

"थोड़ी देर यूँ ही गुज़र गयी. वो साबुन रगड़ रहा था. अचानक मेरी नज़र सामने मेरी च्चातियों पर पड़ी तो मैने फ़ौरन अपने हाथ आगे किए. मेरा घाघरा मेरे सीने से चिपक गया था और मेरी दोनो छातियाँ सॉफ दिखाई दे रही थी. मैने फ़ौरन अपने हाथों से अपने सीने को ढका और दिल ही दिल में सोचा के अच्छा हुआ चंदर आगे की तरफ नही खड़ा."

"ह्म्‍म्म्मम" रूपाली ने फिर हामी भारी. उसका प्लान कामयाब हो रहा था. बिंदिया उससे खुल रही थी. आराम से सब बातें कर रही थी. चुदाई के ये कहानी तो बस एक ज़रिया थी. असल बात जो रूपाली मालूम करना चाहती थी वो तो हवेली के बारे में थी. पर अब इस कहानी में उसे खुद भी थोड़ा मज़ा आने लगा था. वो कान लगाकर गौर से सुन रही थी.

"तभी मुझे ध्यान आया के जो हाल आगे हैं वो पिछे भी होगा" बिंदिया ने बात जारी रखी"मैं और चंदर दोनो ही खड़े हुए थे और मैं फ़ौरन समझ गयी के पिछे से मेरी गान्ड भी सॉफ दिखाई दे रही होगी कपड़े के उपेर से. मैने फ़ौरन अपने दोनो हाथो से अपने घाघरे को झटका ताकि वो मेरे जिस्म से अलग हो जाए, चिपका ना रहे और थोड़ा आगे को होकर चंदर की तरफ पलटी. वो अजीब सी नज़र से मुझे देख रहा था. तब मुझे एहसास हुआ के मैं एक बच्चे की नही, एक जवान लड़के की आँखों में देख रही हूँ जो थोड़ी देर पहली मेरी गान्ड का नज़ारा कर रहा था."

"फिर?" रूपाली थोड़ा आगे को होते हुए बोली

"कुच्छ पल के लिए ना चंदर कुच्छ बोला और ना मैं. दोनो एक दूसरे की आँखों में आँखें डाले देख रहे थे. मुझे समझ नही आ रहा था के क्या करूँ. फिर मुझे एहसास हुआ के चंदर की नज़र नीचे को झूल गयी है. मुझे लगा के वो शर्मा रहा है पर फिर एहसास हुआ के वो असल में मेरी टाँगो के बीच की जगह की तरफ देख रहा था. मैने अपने हाथ आगे को कर रखे थे इसलिए छातियाँ तो ढाकी हुई थी पर नीचे घाघरा फिर बदन से चिपक गया था. टाँगो के बीचे की जगह हल्की हल्की दिखाई दे रही थी"

"मतलब तेरी चूत?"रूपाली ने फिर सीधी चोट की

"नही चूत नही"बिंदिया फिर हस्ते हुए बोली"वो कैसे दिखेगी. मेरे पेट पे थोड़े ही लगी है मेरी चूत. वो तो टाँगो के बीचे में है, नीचे की तरफ."

"फिर?"रूपाली भी उसके साथ हस्ने लगी

"सामने से उसे मेरी चूत के उपेर के बॉल नज़र आने लगे थे. मेरे मर्द के मरने के बाद मैं बॉल सॉफ नही किए थे इसलिए काफ़ी ज़्यादा उग गये थे. चंदर की नज़र वहीं जमी हुई थी. मैं शरम से ज़मीन में गड़ गयी. उसे फ़ौरन बाहर जाने को कहा और उसकी तरफ फिर अपनी पीठ करके खड़ी हो गयी. घाघरे को मैने फिर झटका ताकि पिछे से वो फिर मेरी गान्ड से चिपक ना जाए"

"वो गया बाहर?"रूपाली ने पुचछा

"नही बल्कि वो मेरे और करीब आ गया. मेरे पिछे खड़ा होकर फिर मेरी कमर पर हाथ लगाया. मैं सिहर उठी और उसे फिर बाहर जाने को कहा पर वो नही गया. वो धीरे धीरे मेरी पीठ सहलाने लगा. मुझे समझ नही आए के क्या करूँ इसलिए दो कदम आगे को बढ़ गयी पर वो फिर भी नही माना. वो भी आगे को आ गया. ऐसा मैने एक दो बार किया तो बिल्कुल दीवार के पास आ गयी. अब मैं और आगे नही बढ़ सकती थी और चंदर मान नही रहा था. बार बार आगे आकर मेरी पीठ सहला रहा था. मुझे कुच्छ सूझ नही रहा था. मैं बस उसे बाहर जाने को कह रही थी और वो नही मान रहा था. तभी उसने धीरे से मेरी पीठ सहलाते सहलाते अपना हाथ आगे की और बढ़के मेरी एक छाति पकड़ने की कोशिश की और बस. मेरा गुस्सा सातवे आसमान पर पहुँच गया और मैने पलटके उसे एक थप्पड़ मार दिया पर उसपर तो जैसे असर ही नही पड़ा. जैसे ही मैं पलटी और थप्पड़ मारा उसने आगे बढ़कर अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए"

"वा" रूपाली बोली " लड़का बड़ा तेज़ है. फिर?"

"मैने मुश्किल से अपने आपको उससे अलग किया और फिर उसके मुँह पर एक थप्पड़ जड़ दिया और फिर उसकी तरफ पीठ करके खड़ी हो गयी और रोते हुए उसे बाहर जाने को कहा" बिंदिया बोली

"तू रोने लगी?" रूपाली ने फिर हैरत से पुचछा

"हां ना जाने क्यूँ मेरा रोना छूट पड़ा पर उसे मेरे रोने से जैसे कुच्छ लेना देना ही नही था. इधर मैने रोना शुरू किया और उधर वो आगे बढ़कर पिछे से मेरे साथ सटकार खड़ा हो गया. उसका पूरा जिस्म मेरे जिस्म से लगा हुआ था और उसने मेरे गले को चूमना शुरू कर दिया. सच मानिए मालकिन, मुझे लग रहा था जैसे मेरा बलात्कार हो रहा हो. ज़रा भी मज़ा नही आ रहा था"

"ह्म. फिर?"रूपाली ने पुचछा

"फिर उसने अपना वो धीरे धीरे मेरे जिस्म से रगड़ना शुरू कर दिया" बिंदिया बोली

"वो?" रूपाली ने उसे देखते हुए कहा" तेरा मतलब उसका लंड?"

"हन मालकिन" बिंदिया फिर मुस्कुराइ"वो मेरे से लंबा है इसलिए उसका लंड मेरी कमर पर लग रहा था जिसे वो रग़ाद रहा था धीरे धीरे. मुझे कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या करूँ और ना ही मैं कुच्छ कर रही थी. बस दीवार की तरफ मुँह किए रो रही थी और वो पिच्छ से लगा हुआ था. थोड़ी देर बाद उसने धीरे से अपने घुटने मोड और अपना लंड कपड़ो के उपेर से ठीक मेरी गान्ड पे सटा दिया और वो पहला मौका था जब मेरे जिस्म में एक अजीब सी लहर उठी"

"तुझे मज़ा आया?" रूपाली ने पुचछा

"ऐसा ही समझ लो. मैं सालो बाद एक लंड को अपने जिस्म पर महसूस कर रही थी वो भी उसके लंड को जिसे मैने अपने बेटे की तरह पाला था" बिंदिया बोली "धीरे धीरे उसका रगड़ना और तेज़ हो गया और मेरा रोना भी बंद हो गया. मुझे अब भी कुच्छ समझ नही आ रहा था और मैं चुपचाप खड़ी अपने जिस्म में उठती हरारत को महसूस कर रही थी. तभी उसका लंड एक पल के लिए मेरी गान्ड से हटा और उसने अपने हाथ भी मेरी कमर से हटा लिए. पीछे कुच्छ हरकत हुई और इससे पहले के मैं कुच्छ समझ पाती वो फिर मेरे जिस्म से आ लगा. हाथ फिर कमर पर रख दिए और लंड फिर गान्ड से सटा दिया पर इस बार एक फरक था"

"क्या?"रूपाली ने पुचछा

"इस बार उसका पाजामा उसके लंड पर नही था" बिंदिया धीरे से मुस्कुराते बोली

"पाजामा उतार दिया उसने?" रूपाली ने पुचछा

"नही बस नीचे सरका दिया था" बिंदिया बोली

"हां एक ही बात है. लंड तो बाहर आ गया था ना. फिर?" रूपाली को अब सच में कहानी सुनने में मज़ा आने लगा था

"अब उसके लंड और मेरी गान्ड के बीचे सिर्फ़ मेरा घाघरा ही था. वो पूरे ज़ोर से अपना लंड मेरी गान्ड पर दबा रहा था और मेरे गले और कमर को चूम रहा था. मैं बस खड़ी ही थी. ना कुच्छ कर रही थी और जा उसे कुच्छ कह रही थी. जो मेरे साथ हो रहा था उसमें मज़ा भी आने लगा था और दुख भी हो रहा था के मेरे साथ ये क्या हो रहा है. मैं जैसे एक नींद सी में चली गयी थी. बस अपने जिस्म पे उसका जिस्म महसूस हो रहा था. ना वो कुच्छ कह रहा था और ना मैं. तभी मुझे अपना घाघरा उपेर को होता महसूस हुआ. वो मेरे घाघरे को पकड़के नीचे से उपेर को खींच रहा था ताकि मैं नीचे से नंगी हो जाऊ. मैं दीवार के साथ सटी खड़ी थी इसलिए उपेर से वो उसे उतार नही सकता था. कोशिश करता तो मैं रोक देती इसलिए उसने नीचे से उपेर को उठना शुरू कर दिया" बिंदिया कहती रही

"फिर? तूने रोका उसे?" रूपाली साँस रोके सुने जा रही थी

"चाहती तो बहुत थी पर ना जाने मुज़ेः क्या हो गया था. उसने मेरा घाघरा उपेर उठाकर मेरी कमर तक कर दिया और मैने कुच्छ ना कहा. मेरी चूत और गान्ड खुल गयी थी और मैं बस वैसे ही खड़ी थी. अब उसका लंड सीधा मेरी गान्ड को च्छू रहा था और उसने फिर वही रगड़ना शुरू कर दिया. दोस्तो ये कहानी राज शर्मा की है यानी मेरी है अगर कोई ओर अपने नाम से इसे पोस्ट कर रहा है तो समझ लो की वो कौन होगा मेरी गान्ड के बीचो बीच अपना लंड उपेर नीचे को कर रहा था और मेरी टाँगो पर हाथ फेर रहा था, उसकी साँस भारी हो चली थी और खुद मुझ पर भी एक नशा सा चढ़ गया था. शायद इतने दिन बाद एक मर्द के इतने करीब होने से."

"ह्म्‍म्म्म" रूपाली सुनती रही

"फिर उसने वो हरकत की जिसके लिए मैं शायद तैय्यार नही थी. उसने खड़े खड़े मेरी दोनो टांगे फेलाइ और थोडा नीचे को होके खड़े खड़े ही मेरी चूत में लंड डालने की कोशिश करने लगा. मैने फ़ौरन हटने की कोशिश की पर उसने मुझे मज़बूती से पकड़ रखा था इसलिए हिल भी नही पाई. पर इसका नतीजा ये हुआ के वो चूत लंड नही डाल पा रहा था क्यूंकी मैं बहुत हिल डुल रही थी. तभी उसने ज़ोर से मेरी कमर को पकड़ा और मुझे दीवार के साथ दबा दिया ताकि मैं एक इंच भी ना हिल सकूँ और फिर चूत में लंड डालने की कोशिश करने लगा," बिंदिया बोली

"अंदर डाला उसने?" रूपाली ने पुचछा

"इतनी आसानी से कहाँ मालकिन. नया लड़का था. पहली बार किसी औरत के इतना करीब था और उपेर से हम खड़े थे, बिस्तर पे लेते हुए नही थे और उसपे मैं उसका बिल्कुल साथ नही दे रही थी. काई बार कोशिश के बावजूद भी वो लंड छूट में नही घुसा पाया और शायद इसपर खुद भी झल्ला रहा था. उसने अभी थोड़ी देर पहले ही मेरी कमर पर साबुन लगाया था जो अब भी लगा हुआ था. जब उसका लंड मेरी कमर और गांद पर रगड़ा तो उसके लंड पर भी साबुन लग गया था. ऐसे ही कोशिश करते करते उसने झल्लाके एक बार ज़ोर से धक्का मारा और इस बार लंड को घुसने की जगह मिल गयी." बिंदिया मुस्कुराते हुए बोली

"तेरी चूत में डाल दिया?"रूपाली ने ऐसा पुचछा जैसे बहुत राज़ की बात कर रही हो

"नही मालकिन. लंड घुसा तो पर चूत में नही गान्ड में" बिंदिया बोली

"क्या?" रूपाली जैसे लगभज् चिल्ला उठी "लंड गान्ड में घुस भी गया?"

"अरे साबुन से पूरा लंड चिकना हो रखा था मालकिन. उसने एक ज़ोर का धक्का मारा तो पूरा लंड गान्ड में अंदर तक घुसता चला गया" बिंदिया बोली

"पूरा का पूरा? दर्द नही हुआ तुझे?" रूपाली ने पुचछा

"हुआ ना" बिंदिया हलकसे से हस्ते बोली "मेरी चीख निकल गयी. मेरी पूरी ज़िंदगी में मेरे मर्द ने भी कभी मेरी गान्ड नही मारी थी. ज़िंदगी में पहली बार लंड गान्ड में लिया तो जैसे मुझे चक्कर आने लगा. इतनी तकलीफ़ तो तब भी नही हुई थी जब पहली बार चुदी थी"

"फिर?"रूपाली अब भी हैरानी से सुन रही थी

"फिर क्या. उसने धक्के मारने शुरू कर दिए. उसे शायद पता भी नही था के उसने लंड कहाँ डाल रखा है. उसे तो बस इस बात से मतलब था के उसका लंड मेरे अंदर आ चुका है. नया लड़का था. पता हो भी नही सकता था. लंड अंदर जाते ही उसने जल्दी से मेरी गान्ड पे धक्के मारने शुरू कर दिए. लंड गान्ड में तेज़ी से अंदर बाहर होने लगा. मेरे घुटने कमज़ोर होने लगा था और मुझे लग रहा था के मैं चक्कर खाकर गिर जाऊंगी पर उसने मुझे ऐसे पकड़ रखा था के मैं हिल भी नही पा रही थी. दोनो छातियाँ दीवार के साथ दबी हुई थी और वो मेरी कमर पकड़े मेरी गान्ड मार रहा था" बिंदिया एक साँस में बोली

"तुझे मज़ा आया?" रूपाली बोली

"बिल्कुल भी नही. अभी तो दर्द का दौर भी ख़तम नही हुआ था के वो ख़तम होने लगा" बिंदिया ने जवाब दिया

"इतनी जल्दी? कितनी देर गान्ड मारी तेरी उसने?"रूपाली ने फिर सवाल किया

"मुश्किल से एक मिनट." बिंदिया ने कहा "वो ज़िंदगी में पहली बार किसी औरत को भोग रहा था. मुझे तो हैरत थी के लंड घुसते वक़्त उसका खड़ा था वरना पहली बार तो मर्द का जोश की वजह से ढंग से खड़ा भी नही होता और ज़्यादातर तो अंदर डालने से पहले ही झाड़ जाता है पर उसके साथ ऐसा नही हुआ. उसका लंड खड़ा भी हुआ और मेरी गांद में भी गया पर नया है इस बात का सबूत जल्दी ही मिल गया. उसने पागलों की तरह एक मिनट मेरी गान्ड मारी और थोड़ी देर बाद ही अपना पानी मेरी गान्ड में छ्चोड़ दिया"

"फिर" रूपाली को हैरानी हो रही थी के कोई औरत गान्ड भी मरा सकती है

"जब उसका निकल गया तो वो यूँ ही थोड़ी देर मेरे साथ लगा खड़ा रहा. उसका चेहरा मेरे गले पर था और वो दोनो हाथों से मेरी गान्ड सहला रहा था. लंड बैठने लगा तो गान्ड में से अपने आप बाहर निकल गया. लंड निकलते ही वो पलटा और मुझे यूँ ही नंगी खड़ी छ्चोड़कर कमरे से बाहर निकल गया"
 
हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा सेक्सी हवेली का सच -11 लेकर आपके सामने हाजिर हूँ अब आप कहानी का मज़ा लीजिए

"मैं कुच्छ ऐसे ही दीवार के साथ लगी नंगी ही खड़ी रही" बिंदिया ने अपनी बात जारी रखी " मुझे यकीन नही हो रहा था के जिसे मैं एक छ्होटा बच्चा समझती थी वो अभी अभी मेरी गान्ड मारके गया है. समझ नही आ रहा था के मेरा बलात्कार हुआ है या मैने अपनी मर्ज़ी से अपनी गान्ड मराई है. तभी मुझे पायल के आने की आवाज़ सुनाई दी तो मैने जल्दी से कपड़े पहने"

"चंदर ने इस बारे में क्या कहा?" रूपाली ने पुचछा

"वही तो बात है ना मालकिन. आज तक मेरी चंदर से उस दिन के बारे में कोई बात नही हुई है. बस जब उसका दिल करता है तो वो मेरे पास आके इशारे से समझा देता है और अगर मेरा दिल करता है तो मैं उसे इशारा कर देती हूँ. हम में से कोई भी इस बारे में चुदाई हो जाने के बाद बात नही करता. बाकी वक़्त हमारा रिश्ता वही रहता है जो हमेशा से था." बिंदिया ने जवाब दिया

"ह्म्‍म्म्मम" रूपाली ने हामी भारी

"उस दिन वो पूरा दिन गायब रहा और रात 9 बजे से पहले घर नही आया. जब वो आया तो पायल सो चुकी थी पर मैं जाग रही थी. वो अपनी चारपाई पर जाकर चुपचाप लेट गया. खाना भी नही माँगा और सो गया. पर मेरी आँखों से नींद गायब थी. दोपहर को मेरी गान्ड मारके उसने मेरे अंदर एक आग लगा दी थी. मैं कई साल से नही चुदी थी और उस दिन मेरा दिल बेकाबू हो रहा था. समझ नही आ रहा था के क्या करूँ पर सो ना सकी. आधी रात के करीब हुलचूल महसूस हुई तो मैने चादर हटाके देखा तो वो मेरे बिस्तर के पास खड़ा था. अंधेरे में हम एक दूसरे को देख नही सके पर समझ गया था के मैं जाग चुकी हूँ. मैं थोड़ी देर ऐसे ही लेटी रही और वो यूँ ही खड़ा हुआ मुझे देखता रहा. मुझे आज तक नही पता के मैने कैसे किया पर कुच्छ देर बाद मैं अपनी चारपाई पर एक तरफ को हो गयी. वो इशारा समझ गया के मैं उसे अपनी पास आके लेटने के लिए कह रही हूँ. वो फ़ौरन चारपाई पर चढ़ गया और मेरे पास आके लेट गया.

"मैं उसकी तरफ पीठ करके लेटी थी और वो मेरा चेहरा दूसरी तरफ था. वो सीधा लेटा हुआ था. कुच्छ पल यूँ ही गुज़र गये. जब उसने देखा के मैं बस चुपचाप लेती हूँ तो उसने मेरी तरफ करवट ली और मेरे कंधे पर हाथ रखा. मुझे लगा के वो मुझे अपनी तरफ घुमाएगा पर उसने धीरे धीरे मेरे कंधे को सहलाना शुरू कर दिया और उसका हाथ धीरे धीरे मेरी पीठ से होता हुआ फिर मेरी गान्ड तक आ पहुँचा. उसने थोड़ी देर पकड़कर मेरी गान्ड को दबाया और पिछे से ही हाथ मेरी टाँगो के बीच घुसकर मेरी चूत टटोलने लगा. इस वक़्त उसे मेरी तरफ से किसी इनकार का सामना करना नही पड़ रहा था. उसने मेरी टाँगो में हाथ घुसाया और मैने उसे रोका नही. उसने मेरी चूत पर हाथ फेरना शुरू किया और तब भी मैं कुच्छ नही बोली. पर हां उसकी इस हरकत ने मेरे जिस्म में जैसे आग लगा दी. मेरी साँस भारी हो गयी और मेरे मुँह से एक आह निकल गयी. वो समझ गया के मैं भी उसके साथ हूँ और मेरे साथ सॅट गया. उसका लंड फिर मेरी गान्ड पर आ लगा और तब मुझे महसूस हुआ के वो अपना पाजामा उतार चुका था. उसके लंड और मेरी गान्ड के बीच फिर से सिर्फ़ मेरा घाघरा ही था जिसे उसने फिर एक बार उपेर को खींचना शुरू कर दिया. मुझे उसकी इस हरकत से फ़ौरन दिन की कहानी याद आ गयी और मेरा दिल सहम गया के वो कहीं से फिर से लंड गान्ड में ना घुसा दे. ये ख्याल आते ही मैं फ़ौरन सीधी होकर लेट गयी जैसे अपनी गान्ड को अपने नीचे करके उसे बचा रही हूँ. मेरा घाघरा वो काफ़ी उपेर उठा चुका था और मेरे यूँ अचानक सीधा होने से और भी उपेर हो गया. मैं जाँघो तक नंगी हो चुकी थी. मेरी दोनो आँखें बंद थी और मैं खामोशी से उसकी अगली हरकत का इंतेज़ार कर रही थी. दिल ही दिल में मुझे अपने उपेर हैरानी हो रही थी के मैं उसे रोक क्यूँ नही रही. वो मेरे बेटे जैसा था और उसे अपनी चूत देना एक पाप था पर दूसरी तरफ दिल से ये आवाज़ आ रही थी के बेटे जैसा ही तो है. मेरा अपना बेटा तो नही तो पाप कैसा. मैं इसी सोच में थी के मुझे अपने उपेर वज़न महसूस हुआ. आँखें खोली तो देखा के वो मेरे उपेर आ चुका था. मेरा घाघरा उसने और उपेर खिच दिया था और मेरी चूत खुल चुकी थी. वो मेरे उपेर आया और हाथ में लंड पकड़कर चूत में डालने की कोशिश करने लगा" बिंदिया बोले जा रही थी. अब उसे भी अपनी चुदाई की दास्तान सुनने में मज़ा आ रहा था.

"सीधे चूत में लंड? उससे पहले कुच्छ नही?" रूपाली ने पुचछा

"पहली बार ज़िंदगी में किसी औरत के नज़दीक आया था मालकिन और वो भी सिर्फ़ 16-17 साल का लड़का. उसे तो बस चूत मारने की जल्दी थी. उसे क्या पता था के एक औरत को कैसे गरम तैय्यार करते हैं. उसे तो ये तक नही पता था के चूत में लंड कैसे डालते हैं. मेरी दोनो टांगे बंद थी और वो उपेर मेरे बालों पे लंड रगदकर घुसने की जगह ढूँढ रहा था. मेरी दोनो टाँगें उसकी इस हरकत से अपने आप खुल गयी और वो ठीक मेरी टाँगो के बीच आ गया. लंड को उसने फिर चूत पर रगड़ा तो मेरे मुँह से फिर आह निकल गयी. चूत पूरी तरह गीली हो चुकी थी पर वो अब भी लंड घुसाने में कामयाब नही हो पा रहा था. लंड को चूत पर रखकर धक्का मारता तो लंड फिसलकर इधर उधर हो जाता. जब खुद मुझसे भी बर्दाश्त नही हुए तो मैने अपने घुटने मॉड्कर टांगे उपेर हवा में कर ली. गान्ड मेरी उपेर उठ चुकी थी और चूत लंड के बिल्कुल सामने हो गयी. नतीजा ये हुआ के उसके अगले ही धक्के में लंड पूरा चूत में उतरता चला गया. बहुत दिन बार चुड रही थी इसलिए मेरे मुँह से आह निकल गयी और जैसी की मुझे उम्मीद थी, लंड चूत में घुसते ही उसके पागलों की तरह धक्के शुरू हो गये. उसने कुच्छ नही किया था. ना मुझे चूमा, ना मेरे जिस्म में कोई रूचि दिखाई. बस लंड चूत में डाला और धक्के मारने शुरू. 10-12 धक्को में ही उसके लंड ने पानी छ्चोड़ दिया और उसने मेरी चूत को भर दिया. मैं झल्ला उठी. मुझे अभी मज़ा आना शुरू ही हुआ था के वो ख़तम हो गया. मुझे लगा के शायद वो रुकेगा पर उसने लंड चूत में से निकाला, मेरे उपेर से उठा और पाजामा उठाकर अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया"

"और तू अभी तक गरम थी?" रूपाली ने पुचछा

"हां और क्या. मेरे जिस्म से तो जैसे अँगारे उठ रहे थे. मैं यूँ ही पड़ी रही. घाघरा उपेर पेट तक चढ़ा हुआ और चूत खुली हुई. मुझे ये तक फिकर नही रही के अगले ही बिस्तर पर मेरी जवान बेटी सो रही है जो किसी भी पल जाग सकती थी.चंदर मुझे ऐसी हालत में छ्चोड़के गया था के मेरा दिल कर रहा था उसे एक थप्पड़ जड़ दूं. मेरे हाथ मेरी चूत तक पहुँच गये और मैं खुद ही अपनी चूत को टटोलने लगी. उसका पानी अब तक चूत में से बाहर बह रहा था. मैं अपनी चूत मसलनी शुरू की पर दी पर जो मज़ा लंड में था वो अपने हाथ में कहा. जब मुझसे बर्दाश्त ना हुआ तो मैं बिस्तर से उठी और खुद चंदर की चारपाई के पास जा पहुँची. वो सीधा लेटा हुआ था और उसने अब तक पाजामा नही पहना था. मुझे हैरत हुई के मेरी तरह उसे भी पायल के जाग जाने की कोई परवाह नही थी. उसने गर्दन घूमकर मुझे देखा और मैने उसकी तरफ. अंधेरा था इसलिए एक दूसरे के चेहरे को सॉफ देख नही सकी. मैने अपना घाघरा खोला और नीचे गिरा दिया. नीचे से पूरी तरह नंगी होकर मैं उसकी चारपाई पर चढ़ि. उसने हिलकर साइड होने की कोशिश की पर मैने उसका हाथ पकड़कर उसे वहीं लेट रहने का इशारा किया और अपनी टाँगें उसके दोनो तरफ रखकर उसके उपेर चढ़ गयी. उसका लंड अभी भी बैठा हुआ था. मैने उसे अपने हाथ से पकड़ा और गान्ड थोड़ी उपेर उठाकर नीचे से लंड चूत पर रगड़ने लगी. वो वैसे ही लेटा रहा और मैने लंड रगड़ना जारी रखा. मेरी चूत पूरी तरह गीली और गरम थी और लंड रगड़ने से और भी ज़्यादा शोले भड़क रहे थे. थोड़ी देर लंड यूँ ही रगड़ने का अंजाम सामने आया और उसका लंड फिर खड़ा हो गया. मैने अपनी गान्ड नीचे की और लंड पूरा चूत में ले लिया." बिंदिया ने जैसे बात ख़तम करते हुए कहा

"तो तूने भी उसे बता दिया के तू भी वही चाहती है?" रूपाली ने पुचछा

"और क्या करती मालकिन. जिस्म में मेरे भी आग लगी हुई थी. वो बच्चा था इसलिए बार बार जल्दी से झाड़ जाता. उस पूरी रात मैं उससे चुड़वति रही. तब तक जब तक की मेरी चूत की आग ठंडी नही हो गयी. उस रात हम दोनो का रिश्ता पूरा बदल गया पर हमने कभी इस बारे में बात नही की. तबसे अब तक वो हर रोज़ मुझे चोद्ता है. दिन में कम से कम 3 बार तो चोद ही लेता है और कम्बख़्त ने गान्ड भी नही बख़्शी. कभी चूत मारता है तो कभी गान्ड." बिंदिया हस्ते हुए बोली

"और तू मरवा लेती है? दर्द नही होता?" रूपाली ने फिर हैरत से पुचछा

"होता है पर जब लंड घुसता है तब. बाद में मज़ा आने लगता है. अरे मालकिन औरत को लंड घुसने से मज़ा ही आता है. अब वो लंड चाहे उसके मुँह में घुसे, या चूत में या गान्ड में" (दोस्तो यही बात तो आपका दोस्त राज शर्मा कहता है जिस औरत ने अपने तीनो छेदों का मज़ा नही लिया तो क्या खाक सेक्स किया )बिंदिया ऐसी बोली जैसे सेक्स पर कोई ग्यान दे रही ही रूपाली को

"पर उसके लंड से काम चल जाता है तेरा?" रूपाली ने पुचछा

"मतलब" बिंदिया आँखें सिकोडती बोली

"अरे देखा था आज मैने दिन में जब तू उसके लंड पर कूद रही थी. थोडा छ्होटा ही लगा मुझे तो" रूपाली ने जवाब दिया

"बच्चा है वो अभी मालकिन. इस उमर में एक आम आदमी का जितना होता है उतना ही है उसका भी. पर ये कमी वो दूसरी जगह पूरी कर देता है. शुरू शुरू में जल्दी झाड़ जाता था पर अब तो आधे घंटे से पहले पानी छ्चोड़ने का नाम नही लेता. और चूत मारे या गान्ड, धक्के ऐसे मारता है के मेरा पूरा जिस्म हिला देता है. दिन में 3-4 बार चोद्के भी दोबारा चोदने को तैय्यार रहता है" बिंदिया बोली

"कभी पायल को शक नही हुआ?" रूपाली ने फिर सवाल किया

"पता नही. शायद हुआ हो. हम अक्सर ऐसे वक़्त ही चोद्ते थे जब वो कहीं बाहर गयी होती थी पर कह नही सकती." बिंदिया ने जवाब दिया

रूपाली और बिंदिया अब ऐसे बात कर रहे थे जैसे बरसो की दोस्ती थी. रूपाली जानती थी के उसका तीर निशाने पर लगा है. बिंदिया बॉटल में उतार चुकी है. वो रूपाली को वो सब बता देगी जो वो मालूम करना चाहती है और इस बात का किसी से ज़िक्र भी नही करेगी. रूपाली अच्छी तरह जानती थी के अगर ठाकुर को ये पता चला के वो उनके खानदान के बारे में नौकरों से पुछ्ती फिर रही है तो ये रूपाली के लिए ठीक ना रहता. और उपेर से वो ठाकुर को दुख भी नही पहुँचना चाहती थी इसलिए इस बात को गुप्त रखना चाहती थी.

बातों बातों में दिल धंले को आ गया था इसलिए रूपाली जानती थी के अब उसे वापिस जाना पड़ेगा. उसने बिंदिया को अगले दिन पक्का हवेली आने को कहा और अपनी कार की तरफ बढ़ चली. वो चाहती थी के अगले दिन बिंदिया हवेली आए और वो उससे वो सब मालूम कर सके जो वो करना चाहती थी.

कार चलाती रूपाली हवेली पहुँची तो हैरान रह गयी. हवेली के कॉंपाउंड में पोलीस की जीप खड़ी थी और कुच्छ आदमी एक तरफ खड़े नीची आवाज़ में कुच्छ बात कर रहे थे. रूपाली कार से उतरी और आगे बढ़ी ही थी के एक तरफ से आवाज़ आई

"सलाम अर्ज़ करता हूँ मोहतार्मा"

वो पलटी तो देखा के इनस्पेक्टर मुनव्वर ख़ान खड़ा हुआ था

"क्या हो रहा है ये सब?" रूपाली ने पुचछा

"लाश मिली है एक." इनस्पेक्टर ने जवाब दिया "यहीं हवेली के कॉंपाउंड से"

"कैसी लाश?" रूपाली ने चौंकते हुए पुचछा

"ओजी लाश तो लाश होती है" ख़ान सिगेरेत्टे का काश लेता हुआ बोला "ऐसी लाश वैसी लाश मैं कैसे बताऊं. लाश तो सब एक जैसी ही होती हैं"

"पिताजी कहाँ है?" रूपाली ने ख़ान की बात सुनकर झुंझलाते हुए पुचछा

"रूपाली" ठाकुर की आवाज़ आई. रूपाली ने फ़ौरन अपने सर पर सारी का पल्लू डाल लिया. औरों के सामने तो उसे यही दिखना था के वो अब भी ठाकुर से परदा करती है. भले अकेले में शरम के सारे पर्दे उठा देती हो.

"आप अंदर जाइए. हम आपको बाद में बताते हैं" ठाकुर ने उससे कहा और खुद ख़ान से बात करने लगे

रूपाली धीमे कदमो से हवेली के अंदर आ गयी. उसने आते हुए चारों तरफ नज़र दौड़ाई पर लाश जैसा कुच्छ दिखाई नही दिया. हां बाहर खड़े आदमी उसे देखकर नीची आवाज़ में कुच्छ बात कर रहे थे. अपने कमरे में आकर रूपाली फ़ौरन खिड़की के पास आई पर जिस तरफ उसके कमरे की खिड़की खुलती थी वहाँ से कुच्छ नज़र नही आ रहा था. थोड़ी देर बाद पोलीस की जीप हवेली के दरवाज़े से बाहर निकल गयी. उसमें बेता ख़ान अब भी सिगेरेत्टे के कश लगा रहा था.

कपड़े बदलकर रूपाली नीचे आई.

"वो ख़ान क्या कह रहा था. लाश?" उसने बड़े कमरे में परेशान बैठे ठाकुर से पुचछा

"हां. हवेली के पिच्चे के दीवार के पास मिली है. लाश क्या अब तो सिर्फ़ हड्डियाँ बची थी. सिर्फ़ एक कंकाल" ठाकुर ने परेशान आवाज़ में कहा

"हवेली में लाश?" रूपाली को जैसे यकीन नही हो रहा था "किसकी थी?"

"क्या पता" ठाकुर ने उसी सोच भारी आवाज़ में कहा "अब तो सिर्फ़ हड्डियाँ ही बाकी थी."

"पर यहाँ तो कोई आता जाता भी नही. बरसो से हवेली में कोई आया गया नही" रूपाली परेशान सी बोली

"यही बात तो हमें परेशान कर रही है. हमारी ही हवेली में एक लाश गाड़ी हुई थी और हमें ही कोई अंदाज़ा नही? ऐसा कैसे हो सकता है?" ठाकुर की आवाज़ में गुस्से झलक रहा था
 
"ख़ान क्या कह रहा था? उसे किसने खबर की?" रूपाली सामने सोफे पर बैठते हुए बोली

"आपके कहने पर हमने कुच्छ आदमी सुबह बुलवाए थे. हवेली के कॉंपाउंड में सफाई करने के लिए. ये लोग पिछे उगी हुई झाड़ियाँ काट रहे थे तब इनको वो लाश दिखाई दी. इन्हें में से कोई एक पोलीस को खबर कर आया. और वो ख़ान क्या कहेगा? एक मामूली पोलीस वाला है." ठाकुर ने कहा

रूपाली दिल ही दिल में ठाकुर की इस बात से सहमत नही थी. रूपाली को ख़ान उन आदमियों में से लगता था जो बॉल की खाल निकालने में यकीन रखते थे. वो शकल से ही एक खड़ूस पोलीस वाला लगता था जो हर चीज़ को अपने बाप का माल समझके हड़पने की कोशिश करते हैं

"मालकिन आपकी चाय" सुनकर रूपाली पलटी तो पिछे पायल चाय की ट्रे लिए खड़ी थी. रूपाली भूल ही गयी थी के आते हुए उसने पायल को चाय के लिए बोला था. पायल ने उसे बताया था के वो खाना तो नही पर चाय वगेरह बना सकती थी.

रूपाली ने चाय लेकर पायल को जाने का इशारा किया और फिट बात करने के लिए ठाकुर की तरफ पलटी ही थी के हवेली के कॉंपाउंड से कार की आवाज़ आई. कॉंपाउंड बड़ा होने के कारण कार से भी हवेली के बाहर के दरवाज़े से हवेली तक आने में तकरीबन 3 मिनट लगते थे. ठाकुर और रूपाली खामोशी से धीरे धीरे पास आती कार की आवाज़ सुनते रहे. कार हवेली के बाहर आकर रुकी और ठाकुर का वकील देवधर एक बाग उठाए हवेली में दाखिल हुआ. ठाकुर के हाव भाव से रूपाली समझ गयी के उन्होने ही उसे फोन करके बुलाया था. देवधर के आते ही रूपाली उठी और अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी. वो जानती थी के ठाकुर उसके सामने वकील से बात नही करना चाहेंगे इसलिए खुद ही उठ गयी.

देवधर के बारे में सोचती रूपाली अपने कमरे में पहुँची. देवधर को उसने अपनी शादी में पहली बार देखा था. वो उसके पति पुरुषोत्तम का बहुत करीबी दोस्त था. ठाकुर के सारे बिज़्नेस के क़ानूनी पहलू वो ही संभलता था. सब कहते थे के वो पुरुषोत्तम का दोस्त कम चमचा ज़्यादा था पर रूपाली को वो हमेशा आस्तीन का साँप लगा. ऐसे साँप जो आपके ही घर में पलता है और वक़्त आने पर आपको भी डॅस सकता है. इन 10 सालों में वही एक था जो अब भी ठाकुर से रिश्ता रखे हुए था. बाकी तो अपने भी रिश्ता छ्चोड़ गये थे. ठाकुर उसकी इस हरकत को उसकी हवेली के साथ वफ़ादारी समझते थे पर रूपाली जानती थी के देवधर सिर्फ़ इसलिए आता है क्यूंकी उसे भी ठाकुर से हर महीने के लगे बँधे पैसे मिलते थे. भले ही उसने सालों से ठाकुर के लिए क़ानूनी काम कोई ना किया हो. बल्कि उसके सामने ही ठाकुर का भतीजा ठाकुर की सारी जयदाद उनकी नाक के नीचे से ले गया था और देवधर ने कुच्छ ना किया था. जो बात रूपाली को खटक रही थी वो ये थी के मरने से कुच्छ दिन पहले पुरुषोत्तम ने उसे बताया था के देवधर ने उससे 25 लाख उधर माँगे थे. किसलये वो नही जानती थी. क्या उसके पति ने देवधर को वो पैसे दिए थे ये भी वो नही जानती थी. और अगर दिए थे तो क्या देवधर ने अब तक ठाकुर को वो पैसे वापिस किए? रूपाली ने दिल में सोच लिया के वो आज रात ठाकुर से ये बात पुछेगि.

रूपाली अपनी ही सोच में थी के उसे अचानक पायल का ध्यान आया. उस बेचारी का आज हवेली में दूसरा ही दिन था और आज ही उसने ये सब देख लिया. जाने उसपे क्या गुज़री होगी सोचते हुए रूपाली ने अपने कमरे के बीच का दरवाज़ा खोला और पायल के कमरे में दाखिल हुई. पायल वहाँ नही थी. रूपाली दरवाज़ा खोलकर उस कमरे में पहुँची जहाँ उसने पायल को बाथरूम इस्तेमाल करने के लिए कहा था. बाथरूम से शवर की आवाज़ आ रही थी मतलब के पायल यहीं है. रूपाली वहीं कोने में रखी एक कुर्सी पर बैठ गयी और पायल के बाहर निकलने का इंतेज़ार करने लगी.

थोड़ी देर बाद बाथरूम का दरवाज़ा खुला और उसके साथ ही रूपाली की आँखें भी खुली रह गयी. पायल नाहकार बाथरूम से बिल्कुल नंगी बाहर निकल आई थी. उसकी नज़र कमरे में बैठी पायल पर नही पड़ी और वो सीधी कमरे में शीशे के सामने जाकर खड़ी हो गयी. उसने सर पर तोलिया लपेटा हुआ था जिससे वो अपने बॉल सूखा रही थी. रूपाली पिछे से उसके नंगे जिस्म को देखने लगी. हल्का सावला रंग, पति कमर. पायल की उठी हुई गान्ड देखकर रूपाली को उसकी माँ बिंदिया की गान्ड ध्यान में आ गयी. पायल की गान्ड भी उसकी माँ की तरह बड़ी और भरी हुई थी. पायल अब भी उससे बेख़बर अपने सर पर तोलिया रगड़ रही थी.

"यूँ नंगी बाहर ना आया कर. कमरे में कोई भी हो सकता है" रूपाली ने कहा

उसकी आवाज़ सुनते ही पायल फ़ौरन पलटी और कमरे में उसे देखकर उसके मुँह से हल्की चीख निकल पड़ी. उसने फ़ौरन हाथ में पकड़ा हुआ तोलिया अपने आगे करके अपनी छातियाँ और चूत को धक लिया. पायल के मुँह से हल्की हसी छूट पड़ी

"अरे तेरा सब देख लिया मैने. अब क्या छुपा रही है" वो मुस्कुराते हुए बोली

"आप कब आई मालकिन?" पायल ने पुचछा

"अभी जब तू नहा रही थी. यूँ नंगी ना निकल आया कर कमरे से. समझी?" रूपाली ने उससे कहा. पायल ने रज़ामंदी में सर हिलाया. वो अभी भी शरम से सर झुकाए खड़ी थी.

"कपड़े पहेन कर नीचे आ जा. राते के खाने का वक़्त हो रहा है. खाना बनाना सीख ले जल्दी से तू" कहते हुए रूपाली कमरे से बाहर निकल गयी. उसने ये सोच कर राहत की साँस ली के हवेली में लाश मिलने की खबर से पायल परेशान नही दिख रही थी.

रूपाली नीचे आई तो ठाकुर और देवधर अब भी कुच्छ बात कर रहे थे. वो वहीं दीवार की ओट में खड़ी होकर सुनने लगी

"तो अब ख़ान का क्या करना है?" ठाकुर शौर्या सिंग कह रहे थे

"उसकी आप फिकर मत कीजिए. उसे मैं संभाल लूँगा. आपको फिकर करने की कोई ज़रूरत नही." देवधर ने जवाब दिया

"और उसे ये भी समझा देना के हमारे सामने दोबारा ऐसे बात की जैसे आज कर रहा था तो उसकी लाश भी कहीं ऐसे ही गढ़ी हुई मिलेगी" ठाकुर गुस्से में बोले

"आप चिंता ना कीजिए. मुझपे छ्चोड़ दीजिए. आप बस अगले हफ्ते केस के दिन टाइम पे कोर्ट पहुँच जाइएएगा." देवधर कह रहा था

देवधर और ठाकुर उठ कर खड़े हो चुके थे. देवधर अपने सारे काग़ज़ समेट कर अपने बॅग में रख रहा था. तभी रूपाली को उपेर से पायल के सीढ़ियाँ उतरने की आवाज़ आई. वो दीवार की ओट से निकली और सर पर घूँघट डालकर किचन की तरफ बढ़ चली. उसके बड़े कमरे में आते ही ठाकुर और देवधर दोनो चुप हो गये.

रात को पायल के सोने के बाद रूपाली फिर उठकर अपने ससुर के कमरे में पहुँची. ठाकुर अब भी बड़े कमरे में ही बैठे हुए थे, चेहरे पर परेशानी के भाव लिए.

"क्या हुआ पिताजी? अब तक सोए नही आप?" रूपाली ने पुचछा. उसने देख लिया था के भूषण भी अब तक हवेली में ही था.

"नही नींद नही आ रही" ठाकुर ने जवाब दिया

रूपाली ठाकुर को पिछे जा खड़ी हुई और उनके सर पर हाथ फेरने लगी

"चलिए आपको हम सुला देते हैं" उसने प्यार से कहा

ठाकुर ने उसका हाथ पकड़ा और प्यार से घूमाकर अपने सामने बैठाया

"आप जाकर सो जाइए. आज हवेली में जो कुच्छ हुआ उसे लेकर हम थोड़ा परेशन हैं"

रूपाली ठाकुर का इशारा समझ गयी. मतलब आज रात वो चुदाई के मूड में नही थे और उसे अपने कमरे में जाकर सोने के लिए कह रहे थे. उसने कुच्छ कहने के लिए मुँह खोला ही था के सामने से भूषण चाय की ट्रे लिए आता दिखाई दिया. रूपाली चुप हो गयी और उठकर खड़ी हो गयी.

"आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो हमें आवाज़ दे दीजिएगा" उसने ठाकुर से कहा

"नही आप आराम कीजिए. आप इस हवेली की मालकिन हैं, नौकर नही जो आपको हम यूँ परेशान करें. आप जाकर सो जाइए" ठाकुर ने प्यार से कहा

रूपाली अपने कमरे की तरफ चल दी. भूषण की बगल से निकलते हुए दोनो की आँखें एक पल के लिए मिली और रूपाली सीढ़ियाँ चढ़कर अपने कमरे में पहुँच गयी.

बिस्तर पर रूपाली को जैसे अपने उपेर हैरत हो रही थी. हवेली में एक लाश मिली थी जिसकी परेशानी ठाकुर के चेहरे पर सॉफ दिखाई दे रही थी. भूषण भी बोखलाया हुआ था. ऐसे महॉल में खुद रूपाली को भी परेशान होना चाहिए था पर हो इसका बिल्कुल उल्टा रहा था. वो परेशान होने के बजाय जैसे अपने अंदर एक ताक़त सी महसूस कर रही थी. हवेली में लाश मिलने की बात ने इस बात को सॉफ कर दिया था के हवेली में बहुत कुच्छ ऐसा है जो वो नही जानती. जो उसे मालूम करना था. और सबसे ज़्यादा हैरानी उसे अपने जिस्म में उठ रही आग पे था. वो पिच्छले कुच्छ दीनो से हर रात चुद रही थी और आज रात भी उसका जिस्म फिर किसी मर्द के जिस्म की तलब कर रहा था. रूपाली ने अपने दिमाग़ से ये ख्याल झटकने की कोशिश की पर बार बार उसका ध्यान अपनी टाँगो के बीच उठ रही हलचल पर जा रहा था. दिन में बिंदिया के मुँह से चुदाई की दास्तान सुनकर दोपहर से ही उसके दिल में वासना पूरे ज़ोर पर थी.

वो अपने ही ख्यालों में खोई हुई थी के बीच के दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक हुई. पायल अपने कमरे की तरफ से दरवाज़ा खटखटा रही थी. रूपाली ने उठकर दरवाज़ा खोला

"क्या हुआ?" उसने सामने खड़ी पायल से पुचछा. पायल अब भी आधी नींद में थी. बॉल बिखरे हुए.

"मालकिन मैं आपके कमरे में सो जाऊं? डर लग रहा है" पायल ने छ्होटी बच्ची की तरह पुचछा

"कैसा डर?" रूपाली ने पुचछा

" जी वो जो आज हवेली में लाश मिली थी. बुरे बुरे सपने आ रहे हैं. मैं यहीं नीचे सो जाऊंगी" पायल जैसे रोने को तैय्यार थी.

रूपाली को उसपर तरस आ गया. आख़िर अभी बच्ची ही तो थी. और हमेशा अपनी मा के साथ सोती थी.

"आजा सो जा" रूपाली ने इशारा किया. पायल कमरे में आई तो रूपाली ने दोबारा दरवाज़ा बंद कर दिया.

पायल वहीं रूपाली के बिस्तर के पास नीचे बिछि कालीन पर आकर सो गयी. रूपाली फिर अपने बिस्तर पर जा गिरी.

आधी रात गुज़र गयी पर रूपाली की आँखों में नींद का कोई निशान नही था. उसके जिस्म में लगी आग उसे अब भी पागल किए जा रही थी. नीचे पायल जैसे दुनिया से बेख़बर सोई पड़ी थी. रूपाली ने बिस्तर पर आगे को सरक कर पायल पर नज़र डाली तो देखती रह गयी.

पायल उल्टी सोई हुई थी. उसकी कमर साँस के साथ उपेर नीचे हो रही थी. घाघरा चढ़ कर जाँघो तक आ चुका था और उसकी आधी से ज़्यादा टांगे नंगी थी. रूपाली ने उसके जिस्म को देखा तो उसकी साँसें और तेज़ हो गयी. पायल ग़रीब सही पर उसका जिस्म भगवान ने बिल्कुल उसकी माँ जैसा बनाया था. एकदम गाथा हुआ. जिस्म का हर हिस्सा जैसे तराशा हुआ था. जहाँ जितना माँस होना चाहिए उतना ही. ना कम ना ज़्यादा. उसकी गान्ड देखकर रूपाली समझ गयी के पायल ने अंदर पॅंटी नही पहेन रखी थी. शायद ज़िंदगी में कभी नही पहनी इसलिए उतारकर सोती है. कमर पर भी चोली के नीचे ब्रा के स्ट्रॅप्स नही थे. शायद वो भी उतारकर आई थी. रूपाली को वो पल याद आया जब उसने पायल को नाहकार नंगी निकलते देखा था. उसका हाथ जैसे अपने आप आगे पड़ा और बिस्तर के साइड में लेटी पायल के घाघरे को पकड़कर उपेर सरकाने लगा. घाघरा पायल के नीचे दबा हुआ था इसलिए रूपाली को उसे थोड़ा खींचना पड़ा. उसके दिल में ज़रा भी ये डर नही था के पायल जाग गयी तो क्या सोचेगी. थोडा ज़ोर लगाकर खींचा तो घाघरा पायल की गान्ड से उठकर उसकी कमर तक आ गया. पायल नींद में थोड़ा हिली. शायद गान्ड पर एसी की ठंडी हवा महसूस होने से या फिर घाघरा उपेर सरकने की हुलचूल से पर फिर दोबारा नींद में चली गयी. रूपाली एकटक उसकी खुली हुई गान्ड को देखती रही. उसकी गान्ड की गोलाई जैसे कमाल थी. रूपाली ने अपना एक हाथ आगे बढ़ाया और धीरे से पायल की गान्ड पर फिराया. ऐसा करते ही उसके मुँह से आ निकल पड़ी. टाँगो के बीचे की आग और तेज़ हो गयी और फिर उसे बर्दाश्त ना हुआ. उसने जल्दी से अपनी नाइटी उपेर खींची और पॅंटी उतारकर एक तरफ फेंक दी. अपनी टांगे फेला दी और एक हाथ से अपनी चूत मसल्ने लगी. दूसरा हाथ उसने फिर पायल की गान्ड पर रखा धीरे धीरे सहलाने लगी. रूपाली को जैसे अपने उपेर यकीन नही हो रहा था. वो एक लड़की की गान्ड देखकर उसे सहलाते हुए गरम हो रही थी और अपनी चूत मसल रही थी. एक दूसरी औरत का जिस्म उसके जिस्म में आग लगा रहा था, उसे मज़ा दे रहा था. रूपाली के दिमाग़ में फिर ख्याल आया के क्या वो ठीक है जो औरत को देखकर भी गरम हो जाती है या ये बरसो से दभी हुई वासना है जो औरत और मर्द दोनो का स्पर्श पाकर बाहर आ जाती है. एक पल के लिए आए इस ख्याल को रूपाली ने अपने दिमाग़ से निकाला और पायल की गान्ड सहलाते हुए अपनी चूत में उंगली करने लगी.

अगले दिन सुबह रूपाली की आँख खुली तो पायल उठकर जा चुकी थी. वो अपने बिस्तर से उठी और नीचे आई तो ठाकुर कहीं बाहर जा रहे थे.

"हम दोपहर तक लौट आएँगे. देवधर का फोन आया था. कह रहा थे के इनस्पेक्टर ख़ान से हमें भी उसके साथ मिल लेना चाहिए" उन्होने रूपाली को देखते हुए कहा

"जी ठीक है." रूपाली ने जवाब दिया

"आपको कहीं जाना तो नही है आज?" ठाकुर ने पुचछा

"नही कहीं नही जाना" रूपाली ने जवाब दिया

"वैसे कल कहाँ थी आप सारा दिन?" ठाकुर कार की चाबियाँ उठाते हुए बोले

"जी ऐसे ही अपनी ज़मीन के चक्कर लगा रही थी. देख रही थी के कहाँ से दोबारा शुरुआत किया जाए." रूपाली बोली

"तो कुच्छ पता चला के कहाँ से दोबारा शुरू करने वाली हैं आप?" ठाकुर ने मुस्कुराते हुए सवाल किया

रूपाली ने हां में सर हिला दिया. ठाकुर उसकी और देखकर हसे और हवेली से बाहर निकल गये.

ठाकुर के जाने के बाद रूपाली वहीं बड़े कमरे में बैठ गयी. पूरी रात सोने के बावजूद उसका पूरा जिस्म जैसे टूट रहा था. उसे समझ नही आ रहा थे के ऐसा इसलिए है क्यूंकी कल रात वो हवेली में लाश मिलने की बात से परेशान थी या इसलिए के कल रात वो चूड़ी नही थी. जो भी था, रूपाली का दिल कर रहा था के वो फिर बिस्तर पर जा गिरे. उसने घूमकर पायल को आवाज़ दी. उसकी आवाज़ सुनकर पायल और भूषण दोनो किचन से बाहर आए

"एक कप चाय ले आ ज़रा" रूपाली ने कहा और भूषण की तरफ पलटी "इसे खाना बनाते वक़्त अपने साथ रखिए और खाना बनाना सीखा दीजिए ज़रा"

"जी वही कर रहा हूँ" भूषण ने जवाब दिया. वो दोनो पलटकर फिर किचन की तरफ बढ़ गये.

रूपाली का ध्यान फिर हवेली में मिली लाश की तरफ चला गया. किसकी हो सकती थी? कब से वहाँ थी? हवेली में कोई खून हुआ हो ऐसा उसने कही सुना तो नही था फिर अचानक? वो अपने ख्यालों में ही के के तभी फोन की घंटी बज उठी. रूपाली ने आगे बढ़कर फोन उठाया

"कैसी हैं दीदी?" दूसरी तरफ से एक जानी पहचानी आवाज़ आई. ये उसके छ्होटे भाई इंदर की आवाज़ थी.

इंदर रूपाली का लाड़ला छ्होटा भाई था. वो रूपाली से 5 साल छ्होटा था और रूपाले के बचपन का खिलोना था. वो उसे बड़े लाड से रखती थी, उसकी हर बात मानती और हमेशा उसे अपने माँ बाप की डाँट से बचाती. इंदर यूँ तो दिमाग़ से बड़ा तेज़ था पर किताबें शायद उसके लिए नही बनी थी. वो बहुत ही छ्होटी उमर में स्कूल से निकल गया था और अपने बाप का काम काज में हाथ बटाया करता था. रूपाली के पिता का कपड़ों का बहुत बड़ा कारोबार था अब इंदर ही उसकी देख रेख करता था.

"ठीक हूँ. तू कैसा है?" रूपाली ने पुचछा

"मैं भी ठीक हूँ. आप तो अब याद ही नही करती. मैने पहले भी 2-3 बार फोन किया था पर किसी ने उठाया ही नही. मम्मी पापा भी आपके लिए काफ़ी परेशान थे." इंदर बोला

"हां शायद मैं इधर उधर कहीं होगी इसलिए फोन नही उठाया" रूपाली बोली

"कभी खुद फोन कर लेती दीदी. आप तो हमें भूल ही गयी" इंदर शिकायत बोला तो रूपाली को ध्यान आया के उसने महीनो से अपने माँ बाप से बात नही की थी

"वो सब छ्चोड़" रूपाली ने बात टालते हुए कहा "काम कैसा चल रहा है?"

"सब ठीक है दीदी." इंदर ने जवाब दिया "आप कुच्छ दिन के लिए घर क्यूँ नही आ जाती. उस मनहूस हवेली में आख़िर तब तक अकेली रहेंगी आप?"

रूपाली बस हलकसे इतना ही निकाल पाई

"आऊँगी. ज़रूर आऊँगी."

"अच्छा एक काम कीजिए. मैं आपसे मिलने आ जाऊं?" इंदर बोला

"नही तू मत आ मैं ही घर आ जाऊंगी" रूपाली ने फ़ौरन मना किया. उसे डर था के अगर इंदर यहाँ आ गया तो शायद उसके रास्ते में रुकावट बन सकता है

"कब?" इंदर ने पुचछा

"जल्दी ही" रूपाली प्यार से बोली

"अच्छा एक काम कीजिए. घर फोन करके मम्मी से बात कर लीजिए. मैं अभी रखता हूँ. बाद में फोन करूँगा" इंदर ने कहा

"ठीक है" रूपाली ने अपनी भाई को प्यार से अपना ध्यान रखने के लिए कहा और फोन रख दिया. ज़िंदगी में अगर कोई एक इंसान जिसे रूपाली ने सबसे ज़्यादा चाहा था तो शायद वो उसका अपना भाई था. वो अपने भाई के लिए जान तक दे सकती थी, बिना सोचे. पर वक़्त ने कितना कुच्छ बदल दिया था उसके लिए. अब एक वक़्त ये भी आया था के उसी भाई से बात किए उसे महीनो गुज़र गये थे.
 
फोन रखकर रूपाली उठी जे तभी पायल चाय लेकर आ गयी. रूपाली को रात का वो नज़ारा याद आया जब उसने पायल की गान्ड पर हाथ फेरते हुए अपने जिस्म की आग ठंडी की थी. वो एकटूक पायल को देखने लगी, उसकी अल्हड़ जवानी को निहारने लगी.

"क्या हुआ मालकिन?" पायल ने पुचछा "ऐसे क्या देख रही हैं?"

"कुच्छ नही" रूपाली ने कहा और अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी.

अगला कुच्छ वक़्त रूपाली ने यूँ ही बिस्तर पर पड़े पड़े ही गुज़ार दिया. उसका पूरा बदन टूट रहा था. लग रहा था जैसे बरसो की बीमार हो. उसे बहुत सारे काम करने थे पर हिम्मत ही नही हो रही थी के उठे. थोड़ी देर बाद दरवाज़े पर नॉक हुआ. रूपाली ने उठकर दरवाज़ा खोला. सामने पायल खड़ी थी.

"माँ आई हैं. कह रही थी के आपने बुलाया था" पायल ने कहा तो रूपाली को ध्यान आया के उसने आज बिंदिया को आने के लिए कहा था

"हां उसे यहीं उपेर मेरे कमरे में ले आ" उसने पायल को कहा और फिर बिस्तर पर आकर बैठ गयी. थोड़ी ही देर बाद पायल अपनी माँ के साथ वापिस आई

"नमस्ते मालकिन" रूपाली को देखते ही बिंदिया ने हाथ जोड़े

"नमस्ते" रूपाली ने जवाब दिया "आ अंदर आजा"

बिंदिया वहीं कमरे में आकर खड़ी हो गयी. पायल बाहर दरवाज़े पर ही खड़ी थी.

"अपनी माँ को चाय पानी के लिए नही पुछेगि?" रूपाली ने कहा तो पायल मुस्कुरकर नीचे चली गयी.

"कैसी है?" रूपाली ने बिंदिया की तरफ देखकर कहा "बैठ ना"

"ठीक हूँ" कहती हुई बिंदिया वहीं नीचे ज़मीन पर बिछि कालीन पर बैठ गयी

"घर जाने की कोई जल्दी तो नही है ना?" रूपाली ने मुस्कुराते हुए पुचछा

"नही तो." बिंदिया हैरानी से बोली "क्यूँ?"

"नही मैं सोच रही थी के तेरा और चंदर का तो रोज़ का प्लान होता है ना वो भी दिन में 3-4 बार. इसलिए मैने सोचा के .........." रूपाली ने बात अधूरी छ्चोड़ दी.

बिंदिया की हसी छूट पड़ी.

"नही अभी आज को कोटा पूरा करके आई हूँ" उसने हस्ते हुए कहा

"आगे से पूरा करवाके आई है या पिछे से?" रूपाली ने भी उसी अंदाज़ में पुचछा

दोनो ज़ोर ज़ोर से हासणे लगी. तभी पायल पानी लेकर आ गयी

"चाय पिएगी माँ?"उसने बिंदिया से पुचछा

"नही रहने दे" बिंदिया ने पानी का ग्लास लिया और पानी पीने लगी

"पायल तू नीचे जाके भूषण काका का हाथ में काम बटा. मुझे तेरी माँ से एक ज़रूरी बात करनी है" रूपाली ने पायल को जाने का इशारा किया. पायल सहमति में गर्दन हिलती नीचे चली गयी.

बिंदिया ने पानी ख़तम करके ग्लास एक तरफ रखा और रूपाली की तरफ देखकर बोली

"मुझसे ज़रूरी बात करनी है?"

"हां" रूपाली हल्के से हस्ते हुए बोली "तुझसे ये सीखना है के तू लंड गान्ड में भी कैसे ले लेती है?"

दोनो फिर ज़ोर ज़ोर से हासणे लगी. रूपाली ने कह तो दिया पर अगले ही पल अपनी ग़लती का एहसास हुआ. बिंदिया के नज़र में वो विधवा थी तो उसे ये क्यूँ पता करना था, उसे किसका लंड लेना था अब. पति तो उसका मर चुका था.

"तुझसे कुच्छ बातें मालूम करनी थी" उसे हसी रोक कर पुचछा

"हां पुच्हिए" बिंदिया ने कहा

"पर एक बात है. जो बातें यहाँ बंद कमरे में मेरे और तेरे बीच हो रही हैं कहीं और बाहर ना जाएँ" उसने ऐसे कहा जैसे बिंदिया से एक आश्वासन माँग रही हो

"आप फिकर ना करें मालकिन" बिंदिया ने कहा "ज़ुबान खुले तो कटवा दीजिएगा"

"देख मुझे वैसे तो हवेली में आए 10 साल से उपेर हो चुके हैं" पायल उठकर कमरे में चहल कदमी करने लगी "पर मेरे आने के कुच्छ वक़्त तक ही ये हवेली एक घर थी. उसके बाद तो जैसे एक वीरान खंडहर हो गयी जहाँ मैं और पिताजी भूत की तरह बसे हुए हैं"

बिंदिया ने सहमति में सर हिलाया

"मेरे पति का मरना मेरी सबसे बड़ी बदक़िस्मती थी. पर उससे भी ज़्यादा बुरा हवेली का यूँ बर्बाद हो जाना है. मैं जानती हूँ के हवेली और पिताजी के घर खानदान के बारे में काफ़ी कुच्छ ऐसा है जो मैं नही जानती पर मालूम करना चाहती हूँ" रूपाली ये सब कहते हुए जैसे अंधेरे में तीर चला रही थी. उसे भुसन की कही हुई वो बात आज भी याद थी के उसके पति की हत्या की वजह यहीं हवेली में दफ़न है कहीं, जिसे उसको पता करना है.

"आप क्या कह रही हैं मालकिन?" बिंदिया ने पुचछा

"मैं ये कह रही हूँ के तेरा मर्द तो हमेशा से ठाकुर साहब के लिए काम करता था और तू भी बड़े वक़्त से यहीं हमारी ज़मीनो पर काम कर रही है. क्या तू मुझे कुच्छ ऐसा बता सकती हैं जो मैं नही जानती पर जिस बात की खबर मुझे होनी चाहिए?"

"आप करना क्या चाहती हैं मालकिन?" बिंदिया ने थोड़ी फिकर भारी आवाज़ में पुचछा

"मैं इस हवेली को दोबारा घर बनाना चाहती हूँ. यहाँ दोबारा खुशियाँ देखना चाहती हूँ. फिर से इसे वैसे ही देखना चाहती हूँ जैसी के ये पहली थी और इसके लिए ज़रूरी है के मुझे पहले सब कुच्छ पता हो ताकि मैं बर्बादी की हर वजह को मिटा सकूँ. समझी?" रूपाली एक साँस में बोली

बिंदिया ने हां में सर हिलाया

"तो अब बता" रूपाली उसके सामने बिस्तर पर बैठते हुए बोली "तू जानती है ऐसा कुच्छ?"

"छ्होटा मुँह बड़ी बात हो जाएगी मालकिन" बिंदिया ने हिचकिचाते हुए बोला

"तू फिकर ना कर. "रूपाली ने कहा "बस कुच्छ जानती है है तो बता मुझे"

"मैं नही जानती मालकिन के आपके लिए क्या ज़रूरी है क्या नही या आप क्या जानती हैं क्या नही. मैं बस अपने हिसाब से आपको कुच्छ बातें बता देती हूँ जो मुझे लगता है के आपसे च्छुपाई गयी होंगी. इस घर की नयी बहू से जो की आप आज से 10 साल पहले थी." बिंदिया ने कहा तो रूपाली ने हां में सर हिलाया

"आपको क्या लगता है के ठाकुर साहब की बर्बादी का सबसे बड़ा ज़िम्मेदार कौन है?" बिंदिया ने पुचछा तो रूपाली ने अपने कंधे हिलाए जैसे कह रही हो के पता नही

"आप अपने देवर जय के बारे में जानती हैं ना?" बिंदिया ने पुचछा "ठाकुर साहब के छ्होटे भाई का बेटा"

रूपाली ने हां में सर हिलाया

"वो हैं आस्तीन का असली साँप जो आपके पति ने पाल रखा था. आपके पति के मरते ही उसने ठाकुर साहब का सब कुच्छ ऐसे हड़प लिया जैसे कबे मौके की ताक में बैठा हो" बिंदिया ने आवाज़ यूँ नीची की जैसे बहुत बड़े राज़ की बात बता रही हो

"मालूम है मुझे" रूपाली ने कहा

"आप जानती हैं उसने ऐसा क्यूँ किया जबकि ठाकुर साहब ने अपने तीन बेटों के साथ उसे भी अपने चौथे बेटे की तरह पाला था" बिंदिया ने पुचछा

रूपाली ने फिर इनकार में सर हिलाया

"क्यूंकी गाओं में हर कोई ये कहता है के ठाकुर साहब ने पूरी जायदाद के लिए खुद अपने भाई का खून किया था" बिंदिया ने कहा

रूपाली पर जैसे कोई बॉम्ब गिरा हो

"मैं नही मानती. बकवास है ये" उसने बिंदिया से कहा

"मैं भी नही मानती मालकिन पर गाओं और आस पास के सारे इलाक़े में हर कोई यही कहता है. और जहाँ तक मेरा ख्याल है जय के कानो में भी यही बात पड़ गयी इसलिए तो खुद अपने चाचा के खिलाफ दिल में ज़हेर पालता रहा" बिंदिया ने जवाब दिया

"पर पिताजी ऐसा क्यूँ करेंगे?" रूपाली बोली

"वही तो." बिंदिया ने कहा "आपके ससुर और उनके भाई में बहुत बनती थी. भाई कम दोनो दोस्त ज़्यादा थे इसलिए तो ठाकुर साहब ने अपने भाई के बेटे को अपने बेटे की तरह पाला"

"जय के माता पिता की मौत कैसे हुई थी?" रूपाली ने पुचछा

"कार आक्सिडेंट था. गाड़ी खाई में जा गिरी थी. सब कहते हैं के ठाकुर साहब ने ही गाड़ी में कुच्छ खराबी की थी जिसकी वजह से आक्सिडेंट हुआ था." बिंदिया बोली

"कोरी बकवास है ये" रूपाली थोड़ा गुस्से में बोली "मैं जानती हूँ पिताजी को. वो ऐसा कुच्छ कर ही नही सकते"

"मैं जानती हूँ नही कर सकते मालकिन" बिंदिया ने भी हां में हां मिलाई "मैं तो बस आपको बता रही हूँ के गाओं के लोग क्या कहते हैं. मुझसे पुच्हिए तो मैं तो खुद ये कहती हूँ के ठाकुर साहब जैसा भला आदमी हो ही नही सकता"

उसकी बात सुन रूपाली मुस्कुराइ. जैसे अपने प्रेमी की तारीफ सुनकर खुश हुई हो

"और कोई बात?" उसने बिंदिया से पुचछा

"हां एक बात है तो पर पता नही के कितनी सच्ची है" बिंदिया ने कहा

"बता मुझे" रूपाली बोली

"मेरे मर्द की और मेरी एक अजीब आदत थी" बिंदिया ने कहा "बिस्तर पर हम चुप नही रहते थे. बातें करते करते चुदाई करते थे"

"कैसी बातें?" रूपाली हैरत से बोली "वो कोई बातें करने का टाइम होता है भला?"

"जानती हूँ बातें करने का वक़्त नही होता पर चुदाई की बातें करने का वक़्त वही होता है मालकिन. सच बड़ा मज़ा आता था" बिंदिया मुस्कुराते बोली

"मैं कुच्छ समझी नही" रूपाली बोली

"जब वो मुझे चोद्ता था तो हम गंदी गंदी बातें करते थे. जैसे मैं उसे कहती थी के चूत मारो, गान्ड मारो और वो कहता था के लंड चूस मेरा, गान्ड में ले, घोड़ी बन, उपेर आ. कभी कभी हम दोनो सोचते थे के हम बिस्तर पर नही कहीं और चुदाई कर रहे हैं जैसे खेत में या नदी किनारे और फिर हम दोनो बातों बातों में चुदाई करते थे. असल में वो मुझे उस वक़्त चोदा करता था और बातों में कहीं और चुदाई चल रही होती थी. वो मुझे कहता के अब मैं तुम्हें झुका कर चोद रहा हूँ और मैं कहती के मेरी चूचियाँ तुम्हारे हर धक्के के साथ हिल रही हैं. समझ रही हैं आप?" बिंदिया ने कहा

"कुच्छ कुच्छ" रूपाली बोली

"ऐसी ही एक चुदाई के वक़्त उसने मुझे बताया था के उसने आज एक लड़की को चूड़ते हुए देखा और बताया के उसने क्या देखा. मुझे चोद्ते हुए उसने पूरी कहानी बताई के उसने क्या देखा था. हम दोनो को बहुत मज़ा आया. चुदाई के बाद जब मैने उससे पुचछा के वो लड़की कौन थी तो वो बात टाल गया. और फिर अक्सर ऐसा ही करता. मुझे चोद्ता तो उस लड़की की कहानी दोहराता. उसकी चूचियाँ कैसी थी बताता. वो कैसे चुद्व रही थी ये पूरा अच्छे से मुझे बताता पर हमेशा उस लड़की का नाम टाल जाता. फिर एक दिन मैने उसे चूत देने से इनकार कर दिया. शर्त ये रखी के मैं चूत तब तक नही दूँगी जब तक के वो मुझे ये नही बताता के वो लड़की कौन थी. तब जाके उसने मुझे उसका नाम बताया." बिंदिया ने कहा और चुप हो गयी

"कौन थी लड़की?" रूपाली ने पुचछा. बिंदिया ने जवाब ना दिया

"बता ना" रूपाली ने फिर कहा

"आपकी ननद, कामिनी" बिंदिया ने जैसे धमाका किया "ठाकुर साहब के एकलौती बेटी"

"तू जानती है तू क्या बकवास कर रही है?" रूपाली लगभग चीखते हुए बोली

"मैं नही मालकिन ऐसा मेरा मर्द कहता था" बिंदिया ज़रा सहमी से आवाज़ में बोली

"ठाकुर साहब के कानो में अगर ये बात पड़ गयी तो जानती है ना के तेरा क्या अंजाम होगा" रूपाली ने कहा

"जानती हूँ मालकिन और यही बात मैने अपने मर्द से कही थी." बिंदिया ने कहा तो रूपाली ने अपने चेहरे से गुस्से के भाव हटाए

"क्या बताया था तेरे मर्द ने?" उसने बिंदिया ने पुचछा पर बिंदिया ने डर से कुच्छ ना कहा

"अच्छा डर मत ये बात कहीं नही जाएगी. अब बता" रूपाली ने ज़रा मुस्कुराते हुए कहा

"जी मेरे घर से थोड़ी दूर पहले आपकी ज़मीन पर एक ट्यूबिवेल होता था. तब वहाँ पर हर भर खेत थे जिनकी देखभाल मेरा मर्द करता था" बिंदिया ने बताना शुरू किया "वो कहता था के एक दिन उसे कामिनी की गाड़ी खेतों के बाहर सड़क पर खड़ी दिखाई दी. गाड़ी इस अंदाज़ में खड़ी की थी के सड़क से किसी को ना दिखे पर अगर कोई खेत की तरफ से आए तो उसे सॉफ नज़र आती थी. वो हैरत में पड़ गया के कामिनी के गाड़ी यहाँ क्या कर रही है. वो उसे ढूंढता हुआ ट्यूबिवेल की तरफ निकला क्यूंकी वहीं पर ठाकुर साहब ने थोड़ी जगह सॉफ करवाके एक छ्होटा सा कमरा बनवा रखा था. उसी के आगे वो अक्सर आके बेता करते थे और उसी कमरे में एक कुआँ था जिसमें ट्यूबिवेल लगा हुआ था. मेरे मर्द को लगा के कामिनी भी शायद उधर ही गयी होगी. वो उसे ढूंढता हुआ वहाँ पहुँचा तो देखा के कमरे का ताला खुला हुआ था पर दरवाज़ा अंदर से बंद था और अंदर से किसी के धीमी आवाज़ में बात करने की आवाज़ आ रही थी. टुबेवेल्ल की मोटर कमरे के अंदर थी और ट्यूबिवेल का पाइप कमरे में एक जगह से बाहर निकलता था. मेरे मर्द ने वहीं से अंदर झाँक कर देखा तो........"

"तो क्या?" रूपाली ने पुचछा "बता मुझे"

"वो कहता था के उसने देखा के कामिनी नीचे ज़मीन पर झुकी हुई थी, बिल्कुल नंगी. वो जहाँ से देख रहा था वहाँ से उसे कामिनी के आगे का हिस्सा नज़र आ रहा था, मतलब के उसकी कमर से उपेर का हिस्सा. उसकी चूचियाँ नीचे को लटकी हुई थी और वो आगे पिछे हो रही थी जिससे के ज़ाहिर था के पिछे से कोई उसे चोद रहा था. उसके बाल उसके चेहरे पर बिखरे हुए थे और उसने मज़े में आँखें बंद की हुई थी" बिंदिया बोली

"कौन छोड़ रहा था?" रूपाली ने जल्दी से पुचछा

"ये मेरा मर्द नही देख पाया क्यूंकी कामिनी की कमर से नीचे का हिस्सा उसे नज़र नही आ रहा था. उसने बस किसी के हाथों को देखा था जो कामिनी की कमर और उसकी चूचियों को सहला रहे थे, हाथ किसके थे ये वो नही देख पाया.'"बिंदिया बोली

"फिर?" रूपाली ने सवाल किया

"फिर वो कहता था के चुद्ते चुद्ते कामिनी ने अपनी गर्दन घुमाई और ठीक उस तरफ देखा जहाँ से मेरा मर्द झाँक रहा था. उसे लगा के कामिनी ने उसे देख लिया है और वो वहाँ से सर पर पावं रखकर भागा." बिंदिया ने बोला

"उसने वहाँ रुक कर ये देखने की कोशिश नही की के कामिनी के साथ वो आदमी कौन था?" रूपाली ने पुचछा

"मज़ाक कर रही हैं? उसे तो लगा था के वो अब गया जान से. उसने सोचा कामिनी ठाकुर साहब से कहके उसकी गर्दन कटवा देगी. 2-3 दिन तक बोखलाया सा रहा और फिर जब उसे लगा के कुच्छ नही हुआ तो तब उसने मुझे ये बात बताई." बिंदिया ने जवाब दिया

"हर रात यही बात करता था?" रूपाली ने कहा

"हां. मर्द था ना. चोद मुझे रहा होता था और याद उसे नंगी कामिनी आती थी" बिंदिया ने ऐसे कहा जैसे अपने मरे हुए मर्द को ताना मार रही हो

"फिर क्या हुआ? उसने दोबारा कभी देखा कामिनी को वहाँ?" रूपाली ने सवाल किया

"कहाँ मालकिन. महीने भर बाद ही मर गया था वो."

"कैसे?"

"वहीं उसी कमरे में. जो कुआँ बना हुआ है ना अंदर, उसी में लाश मिली थी उसकी. टुबेवेल्ल ठीक करने गया था और पता नही कैसे अंदर गिर पड़ा. उसका सर नीचे जा रहे ट्यूबिवेल के पाइप पे लगा और वो मर गया. पता नही चोट लगने से या डूबके मरने से." बिंदिया ने आह लेते हुए कहा

"बुरा ना माने तो एक बात कहूँ मालकिन?" बिंदिया बोली

"हां बोल" रूपाली ने कहा

"कामिनी के बारे में लोग अच्छा नही कहते. जो नौकर उस वक़्त यहाँ काम करते थे वो कहते थे के उसका चल चलन ठीक नही है. पता नही क्यूँ कहते थे पर हर कोई कहता था के सीधी सी दिखने वाली चुप चुप रहने वाली कामिनी ऐसी नही थी जैसी वो दिखती थी"

"हां कुच्छ ऐसा सुना था मैने भी. पर आज से पहले किसी ने ऐसी किसी घटना का ज़िक्र नही किया था." रूपाली ने जवाब दिया

"नौकरों से ध्यान आया मालकिन" बिंदिया बोली "अब तो घर में कोई नौकर बचा नही, इतनी बड़ी हवेली का ध्यान कैसे रखती हैं?"

"भूषण है ना. और फिर हम हवेली में 2 ही लोग हैं. मैं और पिताजी. चल जाता है" रूपाली ने कहा

"हां यही एक बेचारा रह गया जो हमेशा आपका वफ़ादार रहा."बिंदिया बोली "और वैसे भी इस उमर में जाता कहाँ. कोई है ही नही आगे पिछे. एक बीवी थी वो छ्चोड़के भाग गयी"

"भाग गयी?" रूपाली ने हैरानी से पुचछा "मुझे लगा था के वो मर गयी थी"

"अरे नही मालकिन" बिंदिया ने कहा "इतनी जल्दी कहाँ. अपनी भारी जवानी में थी वो"

"मतलब?" रूपाली ने पुचछा

"जब इसने शादी की थी तो ये लगभग 40 का था और वो लड़की मुश्किल से 20 की. कोई 15 साल इसके साथ रही और फिर भाग गयी किसी और के साथ" बिंदिया बोली

रूपाली को इस बात से काफ़ी हैरानी हुई. वो पुच्छना चाहती थी के वो लड़की क्यूँ भागी पर फिर जवाब खुद अपने दिल ने ही दे दिया. जब भूषण 40 का था तो बिस्तर पे उसे खुश रखता होगा. 15 साल में उमर ढली तो इसकी जवानी गयी और जवानी के साथ ही बीवी भी किसी और के साथ गयी.

रूपाली और बिंदिया थोड़ी देर और इधर उधर की बातें करते रहे. बिंदिया ने उसे गाओं और ठाकुर साहब की जायदाद के बारे में काफ़ी कुच्छ बताया पर कुच्छ भी ऐसा नही जो रूपाली पहले से ना जानती हो. कुच्छ देर बाद बिंदिया ने उठते हुए कहा के अब उसको चलना चाहिए.

"क्यूँ फिर टाँगो के बीच आग लग रही है क्या?" रूपाली ने कहा तो बिंदिया भी उसके साथ हस पड़ी

"वैसे मानना होगा तुझे बिंदिया. कोई देखके कह नही सकता के एक जवान बेटी की माँ है तू. साथ खड़ा कर दो तो पायल की बड़ी बहेन लगेगी, माँ नही" रूपाली बोली

"छ्चोड़िए मालकिन" हस्ते हुए बिंदिया ने कहा और कमरे से बाहर चली गयी.

रूपाली वहीं बिस्तर पर बैठी थोड़ी देर तक उसकी बातों पर गौर करती रही. अगर जो बिंदिया ने कहा था वो सच था तो कामिनी के बारे में जो घर के नौकर कहते थे वो भी ठीक ही था. मतलब कोई प्रेमी था उसका जिससे मिलने वो उस दिन खेतों की तरफ गयी थी और बहुत हद ये भी मुमकिन था के वहीं आदमी उससे मिलने हवेली में आता था. और ये भी मुमकिन था के उसी ने पुरुषोत्तम का भी खून किया हो. पर अब सवाल ये था के वो आदमी था कौन.

यही सोचती रूपाली अपने कमरे की खिड़की के पास आकर खड़ी हुई और नीचे देखने लगी. सामने से एक कार आकर रुकी और उसका देवर तेज गाड़ी से बाहर निकला. उसके पति का दूसरा भाई.

"आ गये मियाँ अययश" रूपाली ने दिल में सोचा

तभी हवेली के दरवाज़े से बिंदिया निकली और तेज के सामने हाथ जोड़कर नमस्ते करती हुई उसकी बगल से निकल गयी. जिस बात ने रूपाली का ध्यान अपनी और किया वो था तेज का पलटकर बिंदिया को देखना. वो कुच्छ पल के लिए पिछे से बिंदिया को देखता रहा. जिस अंदाज़ से वो देख रहा था उससे रूपाली ने यही अंदाज़ा लगाया के वो बिंदिया की गान्ड देख रहा था. बिंदिया थोड़ा आगे निकल गयी तो तेज पलटकर हवेली में दाखिल हो गया.रूपाली खिड़की से हटी ही थी के उसके दिमाग़ में एक ख्याल आया और वो मुस्कुरा उठी.

तेज अय्याश था, औरतों का शौकीन और इसी चक्कर में यहाँ वहाँ रंडियों में मुँह मारता फिरता था. रूपाली चाहती थी के वो हवेली में रुके और अपनी ज़मीन जायदाद की देखभाल की तरफ ध्यान दे, अपने पिता का हाथ बताए पर इसके लिए ज़रूरी था उसका हवेली में रुकना. उसे रोकने का एक तरीका ये था के घर में ही उसके लिए चूत का इन्तेजाम कर दिया जाए. रूपाली ने दोबारा खिड़की से बाहर कॉंपाउंड में जाती हुई बिंदिया को देखा, फिर एक पल पायल के बारे में सोचा और खुद ही मुस्कुरा उठी.

रूपाली अपने कमरे से बाहर निकली तो सामने से आता तेज मिल गया

"प्रणाम भाभी माँ" उसने बिल्कुल ठाकुरों के अंदाज़ में हाथ जोड़े और झुक कर रूपाली के पावं च्छुए

एक बात जो रूपाली को हैरत में डालती थी वो ये थी के तेज लाख आय्याश सही पर उसका हमेशा बहुत आदर करता था. हवेली में वो जबसे आई थी तबसे वो हमेशा उसे भाभी माँ कहकर बुलाता था और हमेशा उसके पावं छुता था

"कैसे हो तेज?" रूपाली ने पुचछा

"ठीक हूँ भाभी. आप कैसी हैं?" तेज ने जवाब दिया

"ठीक हूँ. घर की याद आ गयी आपको?" रूपाली ने हल्का सा ताना मारते हुए कहा. तेज ने कोई जवाब नही दिया

"दोबारा कब जा रहे हैं?" रूपाली ने फिर सवाल किया

"आप ऐसा क्यूँ कह रही हैं भाभी?" तेज ने कहा

"और कैसा कहूँ तेज?" रूपाली ने हल्का सा गुस्सा दिखाते हुए कहा "एक जवान देवर के होते हुए अगर उसकी भाभी को सार काम करना पड़ा तो और क्या कहूँ मैं?"

"कैसा काम भाभी?" तेज हल्का शर्मिंदा होते हुए बोला "आप मुझे कहिए"

"आप यहाँ हों तो आपको कहूँ ना. आप तो इस घर में मेहमान की तरह आते हैं" रूपाली ना उसी अंदाज़ में दोबारा ताना मारा

तेज फिर चुप खड़ा रहा. रूपाली को हमेशा उसपर हैरत होती थी. ये वही तेज वीर सिंग है जिसने जाने कितनी लाशें गिरा दी थी अपने भाई का बदला लेने के लिए, ये वही तेज है जिसके सामने कोई ज़ुबान नही खोलता था, खुद ठाकुर साहब भी नही पर रूपाली के सामने तेज हमेशा सर झुकाए ही खड़ा रहता था.

"खैर अब आप आए ही हैं तो हम चाहते हैं के आप कुच्छ दिन रुकें. हवेली में कुच्छ काम है और हमें अच्छा लगेगा के आप हमारा हाथ बटाये" रूपाली ने कहा

"जैसा आप ठीक समझें" तेज ने कहा और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया

रूपाली उसे जाता देखकर मुस्कुराइ. वो जानती थी के उसका प्लान काम कर रहा है.
 
रूपाली नीचे आकर किचन में पहुँची. पायल और भूषण खाना लगभग तैय्यार कर चुके थे.

"खाना तैय्यार है बहू रानी" भूषण ने कहा

"मैं अभी नही खाऊंगी" रूपाली ने कहा "पिताजी के आने के बाद ही खाऊंगी."

फिर वो पायल की तरफ पलटी

"जाकर छ्होटे मलिक के कमरे में पुच्छ आ कि उन्होने अभी खाना है या नही" वो चाहती थी के तेज पायल को देखे और उसे पता चल जाए के उसके लिए इस घर में ही चूत का इन्तजाम है. एक कच्ची कुँवारी कली का.

रूपाली वापिस अपने कमरे में पहुँची और सोच में पड़ गयी. उसने तेज को यहाँ रुकने को कह तो दिया था पर इससे खुद उसके लिए परेशानी खड़ी हो गयी थी. पहली परेशानी तो ये के इतने आदमियों के रहते वो खुले तौर पर ठाकुर से नही चुदवा सकती थी. अब जो कुच्छ भी हो चोरी छुपे ही हो सकता था, बड़ी सावधानी के साथ. दूसरी बात ये के ठाकुर अपने दूसरे बेटे तेज को इतना पसंद नही करते थे और ना ही तेज की अपने पिता के साथ कोई बोलचाल थी. इस वजह से शायद ठाकुर काम में तेज की धखल अंदाज़ी पसंद ना करते. और तीसरा ये के उसने अब तक तेज के कमरे की तलाशी नही ली थी. अब तेज के आ जाने से इस काम में दिक्कत हो सकती थी.

तलाशी के बारे में सोचते ही रूपाली के दिमाग़ में कई ख्याल एक साथ आए. उसने कुच्छ देर बैठ कर अपनी सोच को एक दूसरे के साथ जोड़ा और जल्दी से उठकर अपनी अलमारी के पास गयी. अलमारी से उसने वो दोनो चाबियाँ निकाली जिनमें से एक तो उसे भूषण ने दी थी ये कहकर के उसे रात को ये हवेली के पिछे के बगीचे से मिली थी और दूसरी जो उसे अपनी सास की सारी के पल्लू से मिली थी. दोनो चाबियों को रूपाली ने एक साथ रखा और मिलाया. यक़ीनन दोनो चाबियाँ एक ही ताले की थी पर सवाल ये था के किस ताले की. और ये दोनो चाबियाँ नकल थी तो असली कहाँ थी. रूपाली ने मन ही मन कुच्छ फ़ैसला किया और चाबियाँ उठाकर अपने पर्स में रख दी.

कुच्छ देर बाद रूपाली अपने कमरे से निकलकर तेज के कमरे की और बढ़ी. वो उससे कुच्छ बात करना चाहती थी. कमरे के दरवाज़े के सामने आती हसी की आवाज़ सुनकर वो वहीं रुक गयी. अंदर पायल और तेज हस हॅस्कर कुच्छ बात कर रहे थे. दरवाज़ा बंद होने की वजह से वो देख तो नही पाई पर तेज कुच्छ पुच्छ रहा था और पायल हस हॅस्कर जवाब दे रही थी. रूपाली मुस्कुराइ और पलटकर फिर अपने कमरे में आ गयी.

थोड़ी देर बाद ठाकुर भी वापिस आ गये. रूपाली ने उनके आने के बाद उनके साथ ही खाना खाया.

"तेज घर पर है?" ठाकुर ने पुचछा

"जी अभी थोड़ी देर पहले वापिस आए हैं" रूपाली ने जवाब दिया

"कितनी देर के लिए?" ठाकुर ने नफ़रत से पुचछा तो रूपाली ने जवाब ना दिया और दोनो खामोशी से खाना खाते रहे.

खाने के बाद ठाकुर अपने कमरे में आराम करने चले गये. रूपाली बड़े कमरे में बैठी टीवी देख रही और पायल भी वहीं उसके सामने ज़मीन पर बैठी हुई थी. तभी तेज नीचे उतरा और हवेली के बाहर जाने लगा

"कहाँ जा रहे हैं?" रूपाली ने पुचछा

"जी एक दोस्त के यहाँ" तेज ने जवाब दिया. उसके अंदाज़ से ही सॉफ मालूम हो गया के उसे रूपाली का यूँ टोकना पसंद नही आया

इससे पहले के रूपाली कुच्छ कहती, तेज ने खुद ही बता दिया के वो रात में वापिस नही आएगा और बिना रूपाली के जवाब का इंतेज़ार किए घर से निकल गया.

रूपाली अच्छी तरह जानती थी के रात बसर करने तेज फिर किसी रंडी के यहाँ गया है.

रात के 10 बज चुके थे. रूपाली अपने बिस्तर पर पड़ी करवट बदल रही थी. आज रात भी पायल वहीं उसके कमरे में सोने आई थी और नीचे ज़मीन पर पड़ी सो रही थी. रूपाली को उसपर गुस्सा आ रहा था क्यूंकी वो ठाकुर के कमरे में जाना चाहती थी पर पायल के डर की वजह से थोड़ी सावधानी बरतनी पड़ रही थी.रूपाली ने अपने ससुर को कहा था के वो थोड़ी देर बाद उनके कमरे में सोने आ जाएगी.

रूपाली बिस्तर से उठने को हुई ही थी के कमरे का दरवाज़ा खुला और ठाकुर खुद उसके कमरे में आ गये. पास आकर वो चुप चाप रूपाली के बिस्तर पर आ गये

"आप यहाँ?"रूपाली ने धीरे से पुचछा

"हां हमने सोचा के के आप उठकर हमारे कमरे में आएँगी तो पायल और भूषण को शक हो सकता है इसलिए हम ही आ गये" ठाकुर ने धीमी आवाज़ में जवाब दिया

रूपाली ने बिस्तर पर खिसक कर ठाकुर के लिए जगह बनाई

"पर यहाँ पायल....." उसने कहने के लिए मुँह खोला ही था के ठाकुर ने अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए. उनका एक हाथ निघट्य के उपेर से ठीक रूपाली की चूत पर आ गया. इसके बाद रूपाली कुच्छ ना कह सकी. एक एक करके उसके सारे कपड़े उतरते चले गये. वो पूरी तरह से नंगी होकर ठाकुर के नीचे आ गयी. उसके ससुर का लंड पहले उसके मुँह में और फिर उसकी चूत में आ गया. उसके टांगे हवा में फेल गयी और टाँगो के बीच ठाकुर ने उसकी चूत में लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया.

चुदाई बड़ी देर तक चलती रही. ना ठाकुर हार मानने को तैय्यार थे और ना ही रूपाली. दोनो के जिस्म में आग लगी हुई थी और दोनो जैसे पूरी तरह एक दूसरे में घुस जाना चाहते थे. उन्हें इस बात की कोई फिकर नही थी के वहीं बिस्तर के पास नीचे ज़मीन पर पायल सोई हुई थी जो किसी भी पल जाग सकती थी. रूपाली कभी सीधी लेटकर चूड़ी, तो कभी ठाकुर के उपेर आकर तो कभी घोड़ी बनकर. झुका कर चोद्ते हुए ठाकुर ने उसकी चूत पर ऐसे धक्के मारे के रूपाली से संभाला ना गया और वो बिस्तर उल्टी लेट गयी. ठाकुर उसकी उपेर लेट गये और पिछे से उसकी चूत मारने लगे. गान्ड पर धक्के अब भी उतनी ही ज़ोर से पड़ रहे थे और लंड रूपाली की चूत की गहराई पूरी तरह से नाप रहा था. रूपाली उस वक़्त बिस्तर पर टेढ़ी लेती हुई थी. उसका सर बिस्तर के किनारे पर रखा हुआ था. उसका चूत अच्छी तरह से मारी जा रही थी और ठाकुर ने अपना सर उसकी गर्दन के पास रखा हुआ था. रूपाली के बॉल उनके चेहरे पर बिखरे हुए थे और उनकी आँखें बंद थी. रूपाली ने एक नज़र पायल की तरफ उठाकर देखा तो वो बेख़बर सोई हुई थी. शायद उसे गहरी नींद में सोने की आदत थी. रूपाली की नज़र उसके जिस्म की तरफ पड़ी. रूपाली ने पायल को पहेन्ने के लिए काई कपड़े दिए थे पर रात को पायल वही अपना ल़हेंगा और चोली पहेनकर सोती थी. उसका ल़हेंगा फिर उसकी जाँघो तक चढ़ आया था और उसकी आधी टांगे नंगी थी. रूपाली सॉफ समझ गयी थी के इस वक़्त भी पायल ने कपड़ो के नीचे ब्रा और पॅंटी नही पहेन रखी थी. रूपाली को जाने क्या सूझी के उसे अपना एक हाथ आगे किया और सामने पड़ी पायल का ल़हेंगा खींचकर उसके पेट तक कर दिया. पायल की चूत खुलकर उसके सामने क्या आ गयी. चूत पर घने बॉल थे. लगता था के उसने बॉल कभी सॉफ नही किए थे. रूपाली ने एक पल उसकी चूत को देखा और फिर उसे च्छुने के लिए हाथ आगे बढ़ाया ही था के अचानक उसकी चूत पर पड़ते ठाकुर के धक्के बंद हो गये. रूपाली ने पलटकर ठाकुर की तरफ देखा उन्होने आँखें खोल दी थी और वो भी वही देख रहे थे जो रूपाली देख रही थी.

ठाकुर और रूपाली दोनो ही बिस्तर पर टेढ़े लेते हुए थे. रूपाली उल्टी थी और पिछे से ठाकुर ने अपना लंड उसकी चूत के अंदर उतरा हुआ था. दो पल के लिए दोनो की नज़रें मिली और फिर दोनो पायल को देखके मुस्कुराए. बेख़बर पायल अब भी गहरी नींद में थी. उसे कोई अंदाज़ा नही था के इस वक़्त उसकी चूत दो लोगों के सामने खुली हुई थी. रूपाली ने ठाकुर को देखा तो पाया के उनकी नज़रें पायल की टाँगो के बीच बालों पर अटक गयी थी. रूपाली दिल से ठाकुर को चाहती थी पर जाने क्यूँ उसे इस बात का ज़रा बुरा नही लगा के वो उसके अलावा किसी और की चूत देख रहे हैं. उल्टा इस बात से उसकी जिस्म की वासना और तेज़ होने लगी. उसने अपना एक हाथ आगे किया और ठाकुर के सामने ही ले जाकर पायल की चूत पर रख दिया और सहलाने लगी.उसकी इस हरकत ने जैसे ठाकुर के अंदर वासना का ज्वार सा उठा दिया और वो फिर बेरहमी से उसकी चूत मारने लगे. दोनो अब भी एकटक सामने पड़ी पायल को देख रहे थे. रूपाली ने थोड़ी देर पायल की चूत और झंघो पर हाथ फेरा और फिर हाथ उपेर करके पायल की छाति पर रख दिया. ठाकुर जिस तरह उसे चोद रहे थे उससे इस बात का अंदाज़ा सॉफ होता था के इस खेल में उन्हें कितना मज़ा आ रहा है.

रूपाली ने धीरे से पायल की चोली का एक बटन खोल दिया. उसके साथ साथ ठाकुर की नज़रें भी अब आकर पायल की बड़ी बड़ी च्चातियो पर अटक गयी. धीरे धीरे रूपाली ने एक एक करके पायल की चोली के सारे बटन खोल दिए और हल्के से उसकी चोली दोनो तरफ से साइड खिसका दी.

पायल की चूचयान खुलकर दोनो की नज़रों के सामने आ गयी और दोनो जैसे पागल हो उठे. चुदाई में और तेज़ी आ गयी. इस बात की दोनो को कोई फिकर नही थी के पायल सिर्फ़ सो रही है, बेहोश नही थी. अगर जो जाग जाती तो खुद को नंगा पाती और ससुर और बहू को चुदाई करते हुए नंगा देख लेती. रूपाली पायल की चूचियों पर हाथ फेर रही थी. वो इस बात का ख्याल रख रही थी के हल्का सा भी दबाव ना डाले ताकि पायल की नींद ना खुले. ठाकुर आँखें फाडे पायल के जिस्म को देख रहे थे और उसपर हाथ फेरती रूपाली को बेरहमी से चोद रहे थे.

रूपाली उल्टी लेटी थी और ठाकुर उसके उपेर. उनके दोनो हाथ रूपाली के नीचे थे जिसमें उन्होने उसकी दोनो चूचियाँ पकड़ रखी थी. रूपाली थोडा सा उपेर हुई और ठाकुर का एक हाथ अपनी छाति से हटाया. ठाकुर ने उसकी तरफ देखा. रूपाली मुस्कुराइ और उसने ठाकुर का हाथ धीरे से नीचे किया और पायल की चूत पर रख दिया. खुद वो फिर से पायल की चूचियाँ सहलाने लगी. इस हरकत ने जैसे दोनो के उपेर जादू सा कर दिया. ठाकुर पायल की चूत सहलाने लगे और आहें भरते हुए रूपाली की चूत पर ऐसे धक्के मारने लगे जैसे आज के बाद कभी नही मिलेगी.

सुबह सवेरे पायल की आँख खुली. उसने घड़ी की तरफ नज़र डाली तो सुबह के 5 बज रहे थे. वो अभी भी पूरी तरह नंगी थी. जिस्म पर कपड़े के नाम पर कुच्छ नही था. उसने अपनी गान्ड पर हाथ फेरा तो वहाँ रात को ठाकुर का गिराया हुआ पानी सूख चुका था. रूपाली ने उठकर अपने कपड़े उठाए और पायल की तरफ नज़र डाली तो उपेर की साँस उपेर और नीचे की नीचे रह गयी. रात चुदाई के बाद वो ठाकुर के साथ ऐसे ही थोड़ी देर लेटी रही और उनके जाने के बाद वैसे ही सो गयी थी. ना तो उसने अपने कपड़े पहने थे और ना ही पायल के कपड़े ठीक किए थे. पायल अब भी वैसे ही पड़ी थी. ल़हेंगा खिसक कर थोड़ा नीचे चूत के उपेर हो गया था पर जांघें अब भी खुली हुई थी. उसकी चोली पूरी तरह से खुली हुई थी और बड़ी बड़ी चूचियाँ खुली पड़ी थी. रूपाली जल्दी से बिस्तर से नीचे उतरी और पायल की चोली के बटन धीरे धीरे बंद करने लगी. फिर उसने ल़हेंगा नीचे किया और जब तसल्ली हो गयी के पायल को अपने कपड़े देखकर कुच्छ शक नही होगा तो उसके बाद रूपाली ने अपने कपड़े पहने. कपड़े क्या पहने बस उपेर से एक नाइटी डाल ली जो उसे सर से लेके पावं तक ढक लेती थी. नाइटी के नीचे कुच्छ नही पहना. एक पल के लिए उसने सोचा के पायल को जगाए पर फिर इरादा बदलकर नीचे आ गयी.

गर्मी के दिन होने की वजह से सुबह 5 बजे ही बाहर हल्की हल्की रोशनी होनी शुरू हो गयी थी. रूपाली नीचे उतरकर बड़े कमरे में पहुँची. तेज कल का गया रात को घर नही लौटा और ठाकुर साहब अब भी सो रहे थे. रूपाली को दिल ही दिल में डर था के कहीं ऐसा ना हो के तेज वापिस ही ना आए. बड़े कमरे में भूषण सफाई में लगे हुए थे.

"बड़ी जल्दी उठ गये काका?" रूपाली ने पुचछा

"मैं तो रोज़ाना इस वक़्त तक उठ जाता हूँ बहूरानी" भूषण ने जवाब दिया और रूपाली की तरफ पलटा

"हां मैं तो खुद ही इतनी देर से उठती हूँ के पता नही होता के आप कब उठे" कहते हुए रूपाली मुस्कुराइ. उसने ध्यान दिया के भूषण उसके गले की और ध्यान से देख रहा था

"क्या हुआ काका?" कहते हुए रूपाली ने अपने गले पर हाथ फिराया तो हल्का दर्द का एहसास हुआ. तभी उसे ध्यान आया के रात चोद्ते हुए ठाकुर से उसके गले पर अपने दाँत गढ़ा दिए थे

"ओह ये" रूपाली फिर मुस्कुराइ. भूषण ने अपनी नज़र फेर ली और फिर काम में लग गया. रूपाली किचन की तरफ बढ़ गयी.

रूपाली अच्छी तरह जानती थी के वो जो कर रही है उसमें भूषण का उसके साथ होना बहुत ज़रूरी है. वो पूरे परिवार को दोबारा जोड़ना चाहती थी पर उसके और ठाकुर के रिश्ते की हल्की सी भी भनक अगर किसी को लग जाती तो पूरे परिवार को एक साथ लाना नामुमकिन हो जाता. बदनामी हो जाती सो अलग. इसके लिए बहुत ज़रूरी था के भूषण को वो अपने साथ रखे.

किचन में खड़े खड़े रूपाली ने भूषण को आवाज़ लगाई. भूषण किचन में आया

"काका मेरी कमर पर बहुत दर्द सा हो रहा है. ज़रा देखेंगे के कुच्छ हुआ है क्या?" भूषण एकटूक रूपाली को देखने लगा

रूपाली उसके जवाब की फिकर किए बिना भूषण की तरफ अपनी कमर करके खड़ी हो गयी. फिर उसने जो किया वो देखकर भूषण के तो जैसे होश उड़ गये. वो नीचे झुकी और अपनी नाइटी को नीचे से उठाकर पूरा गले तक कर लिए. अब वो भूषण के सामने जैसे एक तरीके से नॅंगी ही खड़ी थी. नाइटी उसने अपने दोनो हाथों से उपेर उठाकर अपने गले के पास पकड़ी हुई थी. भूषण पिछे खड़ा उसकी गोरी चिकनी और क़यामत ढा रही उसकी गान्ड को देख रहा था.

"कुच्छ निशान वगेरह है क्या काका?" उसने वैसे ही खड़े खड़े भूषण से पुचछा

"नही कुच्छ नही है." भूषण सूखे गले से मुश्किल से जवाब दे सका

"ज़रा मेरी कमर पर धीरे से सहला देंगे. खुजली सी लग रही है. लगता है रात किसी चीज़ ने काट लिया" रूपाली ने कहा पर भूषण वैसे ही खड़ा रहा.

जब रूपाली ने देखा के भूषण आगे नही बढ़ रहा है तो वो खुद ही पिछे को हो गयी और भूषण के नज़दीक आ गयी. अब उसकी कमर भूषण के बिल्कुल सामने थी. दोनो के जिस्म में बस कुच्छ इंच का फासला था.

"थोडा सा हाथ फेर दीजिए ना काका" रूपाली ने कहा तो भूषण ने अपना कांपता हुआ हाथ उठाया और उसकी कमर पर फेरने लगा. बुड्ढे नौकर की तेज़ी से चलती साँस से साफ पता चलता के वो भी गरम हो सकता था.

रूपाली थोड़ा सा पिछे को सरकी और अपना जिस्म भूषण के जिस्म से मिला दिया पर जो वो चाहती थी वो हो ना सका. क्यूंकी भूषण उससे कद में छ्होटा था इसलिए उसका लंड रूपाली की गांद से आ लगा और रूपाली की गांद भूषण के पेट से. ये ना हुआ तो रूपाली ने अपना हाथ घूमकर भूषण का हाथ पकड़ा और आगे अपनी छाती पर ले आई

"ज़रा यहाँ भी सहला दीजिए ना काका" कहते हुए वो खुद ही भूषण के हाथ को पकड़कर अपनी छाति पर फेरने लगी.

रूपाली चाहती तो ये थी के इस नाटक को थोड़ी देर और करके भूषण को मज़ा दे पर तभी किसी की सीढ़ियाँ उतरने की आवाज़ सुनकर दोनो चौंक गये. रूपाली ने अपनी नाइटी फ़ौरन नीचे गिराई और भूषण से थोड़ा अलग होकर खड़ी हो गयी.

आँखें मलती हुई पायल ने किचन में कदम रखा

"उठ गयी तू?" रूपाली ने उसकी और देखते हुए पुचछा

केस का आज पहला दिन था. ठाकुर साहब सुबह से ही सब काग़ज़ जोड़ने में लगे हुए थे. उन्हें देखकर पता चलता था के वो थोड़े परेशान से थे

"सब ठीक होगा पिताजी. आप परेशान ना हों" रूपाली ने कहा

"हम जानते हैं"ठाकुर ने जवाब दिया

थोड़ी ही देर बाद ठाकुर कोर्ट के लिए निकल गये. रूपाली जानती थी के वो शाम से पहले ना आ सकेंगे.

वो अपने कमरे में पहुँची और तैय्यार होकर अलमारी में रखी दोनो चाबियाँ उठाई. ये वही चाबियाँ थी जिनमें से एक उसे भूषण ने दी थी और दूसरी उसे अपनी सास की साडी से मिली थी. रूपाली के दिमाग़ में एक अंदाज़ा था और वो देखना चाहती थी के उसका अंदाज़ा कितना ठीक है.

उसने पायल और भूषण को हवेली के आस पास सफाई शुरू करने को कहा और कार लेकर निकल गयी. हवेली से बाहर निकलते ही उसे सामने से तेज की कार दिखाई दी.

"चलो कम से कम वापिस तो आया" रूपाली ने मन ही मन सोचा और अपनी तरफ का शीशा नीचे किया. अपना हाथ बाहर निकलके उसने सामने से आते तेज को रुकने का इशारा किया

दोनो गाड़ियाँ एक दूसरे के पास आकर रुक गयी. तेज ने अपनी तरफ का शीशा नीचे किया

"पिताजी घर पर नही हैं. कोर्ट गये हैं" रूपाली ने तेज को बताया. तेज ने समझते हुए गर्दन हिलाई

"आज ज़मीन के केस की पहली तारीख है. अच्छा होता के आप भी उनके साथ चले जाते." रूपाली बोली

"आज नही" तेज ने जैसे बात टाल दी "अगली तारीख पर चला जाऊँगा. आप मुझे ये बताएँ के ये हवेली में लाश मिलने का क्या किस्सा है?"

"मैं फिलहाल कुच्छ काम से जा रही हूँ. आकर बताती हूँ." रूपाली ने कहा और अपनी गाड़ी का शीशा उपेर करने लगी.

तभी उसे कुच्छ याद आया और उसने फिर शीशा नीचे किए

"एक काम कीजिएगा. अगर आप घर पर ही हैं तो गाओं से कुच्छ आदमी बुलवाकर हवेली की सफाई का काम करवा लीजिए. परसो शुरू हुआ तो था पर कल कुच्छ नही हुआ"

"ठीक है" तेज ने कहा और गाड़ी आगे बढ़ा दी

रूपाली अपनी कार लेकर फिर बिंदिया के घर की और चल दी. उसने अपनी गाड़ी फिर वहीं पेड़ के पास छ्चोड़ दी और पैदल बिंदिया की झोपड़ी की तरफ चल दी. झोपड़ी के पास पहुँच कर वो बिंदिया को आवाज़ लगाने ही वाली थी के फिर कुच्छ सोचके मुस्कुराइ और दबे पावं आगे बढ़ती हुई झोपड़ी तक पहुँची.

बिंदिया की झोपड़ी में दरवाज़ा नही था सिर्फ़ दरवाज़े के नाम पर एक कपड़े को पर्दे की तरह टाँग दिया था. बिंदिया ने रूपाली को बताया था के उसके घर में ऐसा कुच्छ नही जो चोरी हो सके इसलिए उसने दरवाज़े के बारे में कभी नही सोचा था. रुपई दरवाज़े के पास पहुँची और परदा धीरे से एक तरफ हटके अंदर झाँका.

उसका शक सही निकला. उसने जो सोचा था झोपड़ी में वही हो रहा था. चंदर अपना पाजामा नीचे किए खड़ा था और बिंदिया उसके सामने बैठ कर उसका लंड चूस रही थी. वो उपेर से नंगी थी और नीचे बस अपना घाघरा पहना हुआ था. रूपाली उन दोनो को साइड से देख रही थी. किसी का मुँह रूपाली की तरफ नही था इसलिए किसी का ध्यान दरवाज़े की तरफ नही गया. रूपाली चुप चाप देखने लगी.

बिंदिया नीचे बैठी पूरे जोश में चंदर के लंड को मुँह में अंदर बाहर कर रही थी और एक हाथ से उसके अंडे सहला रही थी. उसका दूसरा हाथ अपनी छातियों पर था जिन्हें वो खुद ही दबाने में लगी हुई थी. तभी चंदर के मुँह से एक आह निकली

"नही" बिंदिया ने ऐसे कहा जैसे चंदे को रोकना चाहती हो और लंड मुँह से बाहर निकाला पर तब तक जैसे देर हो चुकी थी. चंदर के लंड ने पानी छ्चोड़ना शुरू कर दिया जो आधा बिंदिया के चेहरे पे गिरा और आधा उसके उपेर से नंगे जिस्म पर.

"अभी से पानी निकल दिया?" बिंदिया गुस्से में चंदर की तरफ देखते बोली "अब तुझे खड़ा करने में फिर आधा घंटा लगेगा और तब तक मैं परेशान होती रहूंगी"

उसने फिर चंदर का लंड मुँह में ले लिए और फिर खड़ा करने की कोशिश करने लगी.

रूपाली समझ गयी के अभी चुदाई का प्रोग्राम शुरू ही हुआ है और अभी टाइम लगेगा. दिल ही दिल में उसने फ़ैसला किया के जिस काम से वो आई थी उसके लिए बेहतर है के वो अकेले ही जाए. बिंदिया से वो जो बात करना चाहती थी वो बाद में आकर कर सकती है.

रूपाली ने एक आखरी नज़र लंड चूस रही बिंदिया पर डाली और दरवाज़े से हटकर फिर खेत की तरफ आई. बिंदिया ने उसे बताया था के जहाँ तक नज़र पड़ती थी वो सब ज़मीन ठाकुर साहब की ही थी पर जिस जगह को रूपाली ढूँढना चाहती थी उसे उसमें कोई मुश्किल नही हुई. खेत में पानी देने के लिए छ्होटे नाली जैसी जगह बनी हुई थी जिसमें से बहकर पानी खेत के हर कोने में जाता था. अब वो सूख चुकी थी क्यूंकी बरसो से यहाँ कोई खेती नही हुई थी. ऐसी ही एक नाली के साथ साथ चलती रूपाली वहाँ पहुँची जहाँ उसने आने की कल सोची थी. खेत में लगे ट्यूबिवेल और वहाँ बने कमरे पर.

बिंदिया ने उसे बताया था के यूँ तो खेत में कोई 50 के उपेर ट्यूबिवेल थे पर जहाँ उसका पति मरा था वो ट्यूबिवेल उसकी झोपड़ी से थोड़ी ही दूर था. और यहीं पर उसके पति ने कामिनी को चुद्ते हुए भी देखा था.

रूपाली कमरे तक पहुँची. कमरे पर ताला लगा हुआ था. रूपाली ने अपने पर्स से दोनो चाबियाँ निकाली और एक चाभी से ताला खोलने की कोशिश की. पुराना ताला था इसलिए थोड़ा ज़ोर लगाना पड़ा पर ताला फ़ौरन खुल गया.

रूपाली ने ताला खोलकर अपने हाथ में लिए और दूसरी चाभी से कोशिश की. उससे भी वो ताला खुल गया.

रूपाली आँखें खोले कभी कमरे की तरफ देखती तो कभी ताले की तरफ. तो ये चाभी इस कमरे की थी पर सवाल ये उठता था के असली किसके पास थी. इसकी नकल उस आदमी से गिरी थी जो हवेली में रात को चोरी च्छूपे आता था तो कौन था वो? बिंदिया का मर्द इस कमरे में आता था तो चाबी उसके पास तो ज़रूर होगी. तो क्या रात को वो ही हवेली में आता था पर क्यूँ? रूपाली के दिमाग़ में ऐसे कई सवाल उठ खड़े हुए पर सबसे ज़्यादा उसे एक सवाल परेशान कर रहा था.

बिंदिया ने बताया था के उसके मर्द ने यहाँ कामिनी को चुद्ते हुए देखा था तो मुमकिन है के कामिनी के प्रेमी के पास इसकी चाभी थी. तो क्या वो रात को हवेली में आता था? और वो था कौन? और उसके पास चाबी आई कैसे? असली किसके पास थी? और सबसे ज़रूरी सवाल ये था के अगर कामिनी यहाँ आती थी तो इसकी चाभी कामिनी के पास से मिलनी चाहिए थी पर उसे तो चाबी अपनी सास की साडी में बँधी हुई मिली थी. उनके पास ये चाभी क्या कर रही थी और ये चाभी इतनी ज़रूरी क्यूँ थी के वो इसे अपनी साडी से बाँधके हमेशा अपने पास रखा करती थी?

रूपाली ने कमरे के अंदर कदम रखा. कमरे में कुच्छ नही था. एक खाली कमरे और उसके बीचे बीच एक कुआँ जिसमें ट्यूबिवेल की नाल अंदर तक जा रही थी. रूपाली को याद आया के बिंदिया ने बताया था के इसी कमरे में उसका पति की मौत हुई थी. रूपाली ने कुच्छ पल और वहीं गुज़ारे और दरवाज़ा बंद करके बाहर आ गयी.

उसके दिमाग़ में हज़ारों सवाल उठ रहे थे. अपनी ही सोच में खोई हुई वो फिर बिंदिया की झोपड़ी की तरफ चल पड़ी. उसे बिंदिया से एक ज़रूरी बात और करनी थी.

बिंदिया ने उसे दूर से ही आता देख लिया था और झोपड़ी के बाहर खड़ी उसका इंतजार कर रही थी.

"कहाँ से आ रही हैं मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा

"ऐसे ही आगे तक का चक्कर लगाके आ रही हूँ. आई तो असल में तुझसे मिलने ही थी" रूपाली ने कमरे पर लगा ताला और अपने पास रखी दोनो चाबियों की बात च्छूपा ली

"जब मैं यहाँ आई तो तू और चंदर दोनो लगे हुए थे. इसलिए मैने सोचा के जब तक तुम अपना काम ख़तम करो मैं ज़रा आगे तक टहल आऊँ" रूपाली ने कहा तो बिंदिया मुस्करा दी

"तुम्हें और कोई काम नही है क्या? जब देखो लगे रहते हो" रूपाली झोपड़ी के अंदर आई और चारपाई पर बैठ गयी

"नया नया जवान लड़का है मालकिन." बिंदिया ने उसे पानी का ग्लास देते हुए कहा "लंड खड़ा होना शुरू ही हुआ था के घुसने के लिए छूट मिल गयी इसलिए खून बार बार गर्मी मरता है उसका. कल तो पूरी रात सोने नही दिया. मुझे तो याद भी नही के कितनी बार छोड़ा होगा उसने मुझे. तका दिया था मुझे और सुबह मेरी आँख भी तब खुली जब उसने फिर सुबह सुबह अपना लंड मेरी छूट में डाला. पहली पायल थी तो तोड़ा रुका रहता था पर अब वो नही है तो हर वक़्त चढ़ा रहता है मुझपर. उसका बस चले तो मुझे नंगी ही रखे 24 घंटे"

रूपाली ने पानी का ग्लास फिर बिंदिया को थमाया और उसे गौर से देखने लगी

"मेरे पास ज़्यादा वक़्त नही है. हवेली में कुच्छ काम करवाना है इसलिए वापिस जाना होगा. तेरे से एक ज़रूरी बात करनी है" उसने बिंदिया से कहा

"हां कहिए" बिंदिया ने भी गौर से उसकी बात सुनते हुए कहा

"एक बात बता. पायल अब जवान हो गयी है. कभी उसकी शादी की नही सोची तूने?" रूपाली ने सोच तो बिंदिया ने एक लंबी आह भारी

"कई बार सोचा है मालकिन पर सर के उपेर एक पक्की छत तो डाल नही सकी आज तक, शादी का खर्चा कैसे उठाऊंगी समझ नही आता. और कौन करना चाहेगा उस ग़रीब की लड़की से शादी"

"मेरे पास एक रास्ता है अगर तू हाँ कह दे तो" रूपाली ने अपना हर लफ्ज़ ध्यान से चुना "अगर तू मेरी बात मान ले तो तेरे सर पर पक्की छत भी आ जाएगी, तेरी बेटी की शादी भी हो जाएगी और अपनी बाकी की ज़िंदगी तू ऐश से रहेगी"

"कैसे?" बिंदिया ने उतावली होते हुए पुचछा

"देख तू तो जानती ही है के ठाकुर साहब का कारोबार और सब ज़मीन जयदाद किस हाल में है. उनका परिवार भी खुद उनके साथ नही है. मैं चाहती हूँ के सब कुच्छ पहले के जैसा हो जाए और हमारा परिवार वापिस साथ में आ जाए" रूपाली ने कहा

बिंदिया ने हां में सर हिलाया

"कभी कभी सही चीज़ को हासिल करने के लिए ग़लत रास्ते पर जाना पड़ता है और ऐसा ही कुच्छ करना पड़ रहा है फिलहाल मुझको. मैं चाहती हूँ के मेरा दूसरा देवर तेज हवेली वापिस आ जाए. वो कभी कभी महीनो घर से गायब रहता है पर मैं चाहती हूँ के वो वहीं हवेली में रहकर अपने कारोबार पर ध्यान दे, अपने पिता का हाथ बटाये पर इसके लिए ज़रूरी है उसे हवेली में रोकना" रूपाली ने बात जारी रखी

बिंदिया ने फिर हां में सर हिलाया

"मैं अच्छी तरह से जानती हूँ के तेज इतना पैसा कहाँ उड़ा रहा है और उसकी रातें कहाँ गुज़रती हैं. औरतों का शौकीन है वो" रूपाली ने कहा

"ये बात तो पूरा इलाक़ा जनता है मालकिन" बिंदिया ने अपनी बात जोड़ी

"हां. इसलिए मैने सोचा के तेज को रोकने का सबसे अच्छा तरीका ये है के जिस चीज़ के लिए वो बाहर मुँह मारता फिरता है वो उसे घर में ही हासिल हो जाए" रूपाली धीरे धीरे मतलब की बात पर आ रही थी

"मैं समझी नही" बिंदिया ने कहा

"एक औरत. एक चूत जो उसके लिए हर वक़्त हासिल हो. अगर तू हवेली में आकर रहने को राज़ी हो जाए और बिस्तर पर तेज को खुश रखे तो मैं तुझे हवेली के कॉंपाउंड में ही रहने के लिए कमरा दे दूँगी, पैसे दूँगी और तेरी बेटी की शादी का सारा खर्चा मैं उठाओँगी" रूपाली ने आखरी चोट की

बिंदिया के चेहरे से जैसा रंग उड़ गया. वो आँखे फाडे रूपाली को देखने लगी.

"आप जानती हैं आप क्या कह रही है?" बिंदिया ने रूपाली को देखते हुए कहा

"हां मैं जानती हूँ मैं क्या कह रही हूँ......." रूपाली ने कहा ही था के बिंदिया ने उसकी बात काट दी

"नही आप नही जानती मालकिन. आप मुझे एक रंडी बनने को कह रही हैं. अपने जिस्म का सौदा करने को कह रही हैं. आपने सोचा के मैं चंदर से चुदवा लेती हूँ तो किसी से भी चुदवा लूँगी पर आपने ग़लत सोचा" बिंदिया गुस्से में बोली

"ठीक है" रूपाली ने कहा " हां मैं तुझे कह रही हूँ के तू अपने जिस्म का सौदा कर. इसे अपने पास रखके आज तक कर भी क्या लिया तूने. एक पुरानी झोपड़ी में रह रही है. 17-18 साल के एक लड़के से अपने जिस्म की आग को ठंडा कर रही है ना अपने जिस्म पे ढंग के कपड़े डाल सकी ना अपनी जवान होती बेटी के."

बिंदिया चुप रही

"देख बिंदिया. मैं ये बात तुझसे इसलिए कह रही हूँ क्यूंकी मेरा तेरा रिश्ता दोस्ती जैसा है. तू मेरे काम आ और मैं तेरे काम आऊँगी. जितना पैसा चाहिए दूँगी. और मैं तुझे कौन सा कहीं कोठे पे जाके बैठने को कह रही हूँ. बस एक तेज का तुझे ध्यान रखना होगा. वो जब कहे बिना इनकार के कपड़े उतारने होंगे. उसके बदले में मैं तेरी ज़िंदगी बदल दूँगी. दो वक़्त का खाना बिना किसी तकलीफ़ के, सर पर छत, मुँहमांगा पैसा और तेरी बेटी की बेहतर ज़िंदगी. सोच ले बिंदिया. अपने नही तो अपनी बेटी के बारे में सोच." रूपाली ने बिंदिया को समझाते हुए कहा

"पर मैं ही क्यूँ?" बिंदिया ने पुचछा तो रूपाली समझ गयी के वो धीरे धीरे लाइन पे आ रही है.दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा आपसे पूछता हूँ क्या आपको लगता है रूपाली अपने देवर तेज को इन दो औरतो के सहारे सुधार सकती है

मुझे आपके जबाब का इंतजार रहेगा -राज शर्मा

"इसलिए के तू हमारे खानदान की वफ़ादार है. तू खूबसूरत है, तेरा जिस्म तो एक 17 साल के लड़के को भी दीवाना बना सकता है" रूपाली ने कहा तो बिंदिया समझ गयी के वो चंदर की तरफ इशारा कर रही है और धीरे से मुस्कुरा दी. रूपाली समझ गयी की बात बन चुकी है. उसे अंदाज़ा नही था के बिंदिया इतनी आसानी से मान जाएगी

"कल जब तू हवेली से निकली तो तेज पलटकर तुझे जाते हुए देख रहा था. नज़र तेरी गान्ड पर थी. तब मुझे ये तरकीब सूझी थी. बोल क्या कहती है?" रूपाली ने कहा

"पर चंदर?" बिंदिया ने फिर सवाल किया

"अरे चंदर को भी साथ ले आना. वहीं हवेली में रह लेगा और काम में हाथ बटा देगा. इसे भी कुच्छ पैसे दे दिया करूँगी मैं." रूपाली बोली "और फिर तेरे भी मज़े हो जाएँगे. सारा दिन कभी चंदर तो कभी तेज"

रूपाली ने हस्ते हुए कहा तो बिंदिया भी साथ हस्ने लगी

"मुझसे सोचने के लिए कुच्छ वक़्त चाहिए मालकिन" बिंदिया ने कहा तो रूपाली ने फ़ौरन हां कर दी

"सोच ले" वो कहती हुई उठी और झोपड़ी से बाहर निकली "तू नही तो मैं और किसी को ले आऊँगी. तू अच्छी तरह से जानती है के गाओं में कोई भी लड़की मेरी इस शर्त पर हवेली में आ जाएगी. पर मैं चाहती हूँ के तू आए"

रूपाली ने बात ख़तम की और बिना बिंदिया के जवाब का इंतेज़ार किए अपनी कार की तरफ चल पड़ी. अपने दिल में वो जानती थी बिंदिया का जवाब हां ही है और वो हवेली ज़रूर आएगी.

हवेली पहुँचकर रूपाली का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुँच गया. वो जानते हुए तेज को जो काम कहकर गयी थी वो तो क्या शुरू होता खुद तेज फिर से गायब था. गुस्से में पैर पटकती रूपाली ने हवेली में कदम रखा तो सामने भूषण मिला

"तेज कहाँ है?" उसने भूषण से पुचछा

"पता नही. वो तो आपके जाने के थोड़ी देर बाद आए और फ़ौरन कहीं चले गये" भूषण ने जवाब दिया

"ह्म्‍म्म्म" रूपाली का गुस्से का घूँट पीते हुए कहा "पायल कहाँ है?"

"उपेर अपने कमरे में" भूषण ने जवाब दिया. रूपाली का गुस्सा उसे भी सॉफ नज़र आ रहा था इसलिए काफ़ी धीमी आवाज़ में जवाब दे रहा था

रूपाली उपेर अपने कमरे में पहुँची. सॉफ ज़ाहिर था के तेज को आवारापन बंद करना उतना आसान नही था जितना वो सोच रही थी. उसे जो भी करना था जल्दी करना था. तेज उसके कहने से हवेली में रुक तो गया था पर कब तक रुकेगा ये बात वो खुद भी नही जानती थी. रूपाली की समझ नही आ रहा था के क्या करे. बिंदिया से तेज के बारे में बात करने से पहले रूपाली ने लाख बार सोचा था. अगर बिंदिया ना मानती और इस बात का जिकर किसी और से कर देती के भाभी खुद अपने देवर के लिए चूत ढूँढती फिर रही है तो रूपाली कहीं की ना रहती. ये बात अगर ठाकुर साहब या खुद तेज के कानो में पड़ जाती तो खुद अपने ही घर में रूपाली की इज़्ज़त मिट्टी में मिल सकती थी.इसी सोच में उसने अपने कमरे के बीच का दरवाज़ा खोला और पायल के कमरे में आई. पायल अपने कमरे में बेख़बर सोई पड़ी थी.
 
रूपाली ने पायल पर एक भरपूर नज़र डाली. उसके प्लान का एक हिस्सा तो कामयाब हो चुका था. बिंदिया को उसने बॉटल में उतार लिया था पर वो जानती थी के तेज उन मर्दों में से नही जो एक औरत तक सिमटकर रह जाएँ. वो भले कुच्छ दिन शौक से बिंदिया को चोद लेता पर दिल भरते ही फिर चलता बनता. रूपाली अच्छी तरह जानती थी के उसके लिए उसे एक और चूत का इंतज़ाम करना पड़ेगा और वो चूत उसे उस वक़्त पायल में नज़र आ रही थी. अगर एक ही घर में एक भरी हुई औरत और एक कमसिन कली एक साथ चोदने को मिले और वो भी दोनो माँ बेटी तो वो ज़रूर तेज को घर पर ही रोक सकती थी और इसी दौरान उसे उसका ध्यान अपने कारोबार की तरफ मोड़ने का वक़्त मिल सकता था. पर उसे जो भी करना था जल्दी करना था. वो ये भी अच्छी तरह जानती है के पायल भले ही जिस्म से एक पूरी औरत हो गयी थी पर थी वो अभी बच्ची ही. उसे पायल के साथ जो भी करना था बहुत सोच समझकर और पूरे ध्यान से करना था वरना बात बिगड़ सकती थी.

उसने पायल को आवाज़ देकर जगाया. पायल हमेशा की तरह घोड़े बेचकर सो रही थी. रूपाली ने बड़ी मुश्किल से उसे आवाज़ दे देकर जगाया. पायल ने उठकर उसकी तरफ देखा.

"कितना सोती है तू?"रूपाली ने थोड़ा गुस्से से कहा

"माफ़ करना मालकिन" पायल फ़ौरन उठ खड़ी हुई

"हाथ मुँह धो और नीचे पहुँच. मुझे हवेली के नीचे वाले हिस्से की सफाई करवानी है. बरसो से उधर कोई गया भी नही." रूपाली ने कहा और अपने कमरे में आ गयी.

हवेली के नीचे एक बेसमेंट बना हुआ था जिसका दरवाज़ा हवेली के पिछे की तरफ था.वो हिस्सा ज़्यादातर पुराना समान रखने के लिए स्टोर रूम की तरह काम आता था. इस हवेली में जो भी चीज़ एक बार आई थी वो कभी बाहर नही गयी थी. इस्तेमाल हुई और फिर नीचे स्टोर रूम में रख दी गयी. पुराना फर्निचर, कपड़ो से भरे पुराने संदूक बेसमेंट में भरे पड़े थे. रूपाली उस हिस्से की भी तलाशी लेना चाहती थी और क्यूंकी इस वक़्त घर पर कोई नही था, तो ये वक़्त उसे इस काम के लिए बिल्कुल ठीक लगा पर बेसमेंट में अकेले जाते उसे डर लग रहा था. बरसो से वहाँ नीचे किसी ने कदम नही रखा था इसलिए उसने अपने साथ पायल को ले जाने की सोची.

थोड़ी देर बाद रूपाली बेसमेंट की चाभी लिए हवेली के पिच्छले हिस्से में पहुँची. उसके साथ पायल थी जिसके हाथ में टॉर्च थी. रूपाली ने बेसमेंट का दरवाज़ा खोला. सामने नीचे की और जाती सीढ़ियाँ था और घुप अंधेरा होने की वजह से 10-12 सीढ़ियों से आगे कुच्छ नज़र नही आ रहा था.

"यहाँ तो बहुत अंधेरा है मालकिन" पायल ने कहा

"तो ये टॉर्च क्या तू गिल्ली डंडा खेलने के लिए लाई है?" रूपाली ने चिढ़ते हुए कहा और पायल के हाथ से टॉर्च लेकर आगे बढ़ी.

रूपाली धीरे धीरे सीढ़ियाँ उतरती नीचे पहुँची. उसके पिछे पिछे पायल भी नीचे आई. रूपाली ने नीचे आकर टॉर्च को चारों तरफ घुमाया. हर तरफ पुराना फर्निचर, पुराने बेड्स, कुच्छ पुराने बॉक्सस और ना जाने क्या क्या भरा हुआ था. हर चीज़ पर बेतहाशा धूल चढ़ि हुई थी. मकड़ियों ने चारो तरफ जाले बना रखे थे. रूपाली ने टॉर्च की लाइट चारो तरफ घुमाई. उसका अंदाज़ा सही निकला. नीचे बेसमेंट में भी लाइट का इंतज़ाम था. स्विच दरवाज़े के पास ही था. ये रूपाली की किस्मत ही थी के बेसमेंट के बीच लगा बल्ब अब भी काम कर रहा था और स्विच ऑन होते ही फ़ौरन जल उठा. हर तरफ रोशनी फेल गयी.

रूपाली आज पहली बार इस बेसमेंट में आई थी. उसने जितना बड़ा सोचा था बस्मेंट उससे कहीं ज़्यादा बड़ा था पर आधा हिस्सा खाली था. सारा पुराना समान हवेली के एक हिस्से में काफ़ी सलीके से लगाया हुआ था.

"यहाँ की सफाई तो बहुत मुश्किल है मालकिन" पायल ने कहा तो रूपाली उसकी तरफ पलटी.

पायल ने एक सफेद रंग की कमीज़ पहेन रखी थी. बहुत ज़्यादा गर्मी होने की वजह से वो दोनो ही पसीने से बुरी तरह भीग गयी थी. पायल की कमीज़ पसीने से भीग जाने के कारण उसके शरीर से चिपक गयी थी और उसके काले रंग के निपल्स कमीज़ के उपेर से नज़र आ रहे थे.

"तुझे मैने वो ब्रा क्या समान तोलने के लिए दे रखी हैं?" उसने पायल से पुचछा. "पहेनटी क्यूँ नही?"

पायल ने अपने सीने की तरफ देखा तो समझ गयी के रूपाली क्या कह रही थी. उसने फ़ौरन हाथ से पकड़के कमीज़ को झटका जिससे वो उसके जिस्म से अलग हो गयी

"पहेनटी क्यूँ नही है?" रूपाली ने दोबारा पुचछा

"जी वो बहुत फसा फसा सा महसूस होता है" पायल ने कहा

"अब तूने इतनी सी उमर में ये इतनी बड़ी बड़ी लटका ली हैं तो टाइट तो लगेगा ही. बिना उसे पहने घर में घूमेगी तो सबसे पहले नज़र तेरी इन हिलती हुई चूचियों पर जाएगी सबकी. घर में ठाकुर साहब होते हैं, तेज होता है, भूषण काका हैं. शरम नही आती तुझे?" रूपाली पायल को डाँट रही थी और वो बेचारी खड़ी चुप चाप सुन रही थी.

"जी अबसे पहना करूँगी" पायल ने जैसे रोते हुए जवाब दिया

पायल ने फिर चारों तरफ बेसमेंट पर नज़र डाली. उसे समझ नही आ रहा था के कहाँ से सफाई शुरू करवाए.

"चल एक काम कर. वो कपड़ा उठा वहाँ से और इन सब चीज़ों पर से सबसे पहले धूल झाड़ कर सॉफ कर. झाड़ू बाद में लगाते हैं" उसने पायल से कहा

पायल गर्दन हिलाती आगे बढ़ी और झुक कर सामने रखा कपड़ा उठाया

"क्या कर रही है?" रूपाली ने कहा तो वो फिर पलटी और सवालिया नज़र से उसकी तरफ देखने लगी. वो तो वही करने जा रही थी जो रूपाली ने उसे करने को कहा था

"ये जो कपड़े तूने पहेन रखे हैं ना तेरी माँ ने नही दिए तुझे. मैने दिए हैं. मेरी ननद के हैं और बहुत महेंगे हैं. इन्हें पहेंकर सफाई करेगी तो ये फिर पहेन्ने लायक नही बचेंगे" रूपाली ने कहा

पायल बेवकूफ़ की तरह उसकी तरफ देखने लगी. पायल क्या कहना चाह रही थी ये उसकी समझ में नही आ रहा था

"अरे बेवकूफ़ अपनी कमीज़ उतारकर एक तरफ रख और फिर सफाई कर" रूपाली ने कहा

पायल पर जैसे किसी ने पठार मार दिया हो.

"जी?" उसे ऐसे पुचछा जैसे अपने कानो पर भरोसा ना हुआ हो

"क्या जी?" रूपाली ने कहा "चल उतार जल्दी और काम शुरू कर"

"पर" पायल हिचकिचाते हुए बोली "मैने अंदर कुच्छ नही पहेन रखा"

"हां पता है. देखा था मैने अभी" रूपाली ने कहा "तो क्या हुआ? यहाँ कौन आ रहा है तेरी चुचियाँ देखने? यहाँ या तो मैं हूँ या तू है. और रही मेरी बात तो जैसी 2 तेरे पास हैं वैसी ही मेरे पास भी हैं. चल उतार अब"

पायल अब भी रूपाली की तरफ देखे जा रही थी. जब वो थोड़ी देर तक नही हिली तो रूपाली ने गुस्से से उसकी तरफ घूरा

"तू उतार रही है या ये काम मैं करूँ?"

पायल ने जब देखा के रूपाली का कहा उसे मानना पड़ेगा तो उसे कपड़ा एक तरफ रखा और अपनी कमीज़ उतार दी. वो उपेर से बिल्कुल नंगी हो गयी. बड़ी बड़ी पसीने में भीगी उसकी दोनो चूचियाँ आज़ाद हो गयी.

"ला ये मुझे पकड़ा दे" रूपाली ने उसके हाथ से कमीज़ लेते हुए कहा .दोस्तो बाकी कहानी अगले भाग मैं
 
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