hotaks444
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"तूने चंदर से कह दिया था ना के तू रात में हवेली में ही सोया करेगी?" रूपाली ने ड्रॉयिंग रूम में ही बैठी टीवी देख रही बिंदिया से पुचछा
"हां मैने उसे कह दिया था के मैं आपके कमरे में सोया करूँगी क्यूंकी आपको रात को डर सा लगता है" बिंदिया ने टीवी बंद करते हुए कहा
"ठीक है. तेज आ गया है. मैं अपने कमरे में जा रही हूँ. आयेज का काम तेरा है" कहते हुए रूपाली अपने कमरे की और बढ़ गयी.
अपने कमरे में आकर रूपाली बिस्तर पर निढाल गिर पड़ी. उसकी कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या सोचे और क्या करे. सोचते सोचते उसे 2 घंटे से ज़्यादा गुज़र गये.पिच्छले कुच्छ दीनो में उसकी पूरी ज़िंदगी बदल चुकी थी. एक सीधी सादी घरेलू औरत से वो कुच्छ और ही बन चुकी थी. भगवान का नाम सुबह शाम जपने वाली औरत का अपने ही ससुर से नाजायज़ संबंध बन गया था और वो अपने ससुर से प्यार भी करने लगी थी. उसका वो ससुर जिसकी असलियत खुद उसके लिए सवाल बनकर खड़ी हो गयी थी. एक तरफ उसके पति की मौत का सवाल था और दूसरी तरफ वो इनस्पेक्टर जो उसपर ही शक कर रहा था. कहाँ वो कल तक ठाकुर खानदान की बहू थी और कहाँ वो आज पूरी जायदाद की मालकिन हो गयी थी. कहाँ उसने पिच्छले 10 साल से अपनी ज़िंदगी से समझौता कर रखा था और कहाँ अब वो खुद ही जाने कितने सवालों के जवाब ढूँढने निकल पड़ी थी. हद तो ये थी के कहाँ वो कल तक एक शर्मीली सी औरत थी और कहाँ अब वो मर्द तो मर्द औरतों के साथ भी बिस्तर पर जाने को तैय्यार थी.
ये ख्याल आते ही उसका ध्यान पायल की तरफ गया जो आज उसके कमरे में नही आई थी. बल्कि आज तो पूरा दिन पायल उसे नज़र नही आई थी. रूपाली ने उठकर बीच का दरवाज़ा खोला और पायल के कमरे में आई. पायल अपने उसी बेख़बर अंदाज़ में सोई पड़ी थी. ना खुद का होश और ना अपने कपड़ो का. रूपाली उसे देखकर मुस्कुराइ और वापिस अपने कमरे में आ गयी.
खिड़की पर खड़े खड़े उसकी नज़र सामने कॉंपाउंड में बिंदिया और चंदर के कमरो की तरफ गयी. दोनो के कमरो की लाइट्स ऑफ थी यानी के आज रात काम नही चल रहा था. तभी रूपाली को ध्यान आया के उसने आज रात बिंदिया को तेज को इशारा कर देने को कहा था. ये ख्याल आते ही वो फ़ौरन अपने कमरे से निकली और तेज के कमरे की तरफ आई. कमरे अंदर से बंद था. रूपाली ने दरवाज़े पर कान लगाकर ध्यान से सुनने की कोशिश की. गहरी रात थी और हर तरफ सन्नाटा था इसलिए उसे कमरे के अंदर से आती बिंदिया की आवाज़ सुनने में कोई परेशानी नही हुई. आवाज़ सुनकर ही उसने अंदाज़ा लगा लिया के अंदर बिंदिया चुद रही है. रूपाली फिर मुस्कुरा उठी. उसने तो सिर्फ़ बिंदिया को इशारा करने को कहा था पर वो तो पहली ही रात तेज के बिस्तर में पहुँच गयी थी. रूपाली को लगा जैसे उसने कोई बहुत बड़ी जीत हासिल कर ली हो. उसे यकीन था के अगर हर रात बिंदिया तेज का बिस्तर गरम करे तो यूँ रातों को तेज का हवेली से बाहर रहना कम हो जाएगा.
वो फिर वापिस अपने कमरे में पहुँची. आधी रात होने को आई थी और नींद उसकी आँखों से कोसो दूर थी. ये बात उसे खाए जा रही थी के उसके अपने भाई का चक्कर कामिनी के साथ था और उसे इस बात का कोई अंदाज़ा नही था. या फिर चक्कर था ही नही. ये भी तो हो सकता है के उन दोनो को शायरी का शौक रहा हो और इंदर ने बस यूँ ही शायरी लिख कर कामिनी को दी हो. रूपाली ने अपनी अलमारी खोलकर फिर से कामिनी की डाइयरी निकली. डाइयरी उसने कपड़ो के बीच च्छुपाकर रखी थी इसलिए. डाइयरी निकालते ही कुच्छ कपड़े अलमारी से निकलकर बाहर गिर पड़े. रूपाली कपड़े उठाकर वापिस अलमारी में रखने लगी. उन्ही कपड़ो में एक वो ब्रा भी था जो उसे अपने सबसे छ्होटे देवर कुलदीप के कमरे से मिला था. जो ना तो उसका था, ना कामिनी का और ना ही उसकी सास सरिता देवी का. रूपाली ने एक नज़र ब्रा पर डाली और अलमारी में रखने ही लगी थी के अचानक उसे कुच्छ ध्यान आया. उसने जल्दी से डाइयरी अलमारी में वापिस रखी, अलमारी बंद करी और ब्रा हाथ में लिए हुए अपने कमरे से बाहर आई.
सीढ़ियाँ उतरती वो सीधा बेसमेंट में पहुँची. वो अपने साथ कमरे से टॉर्च उठा लाई थी इसलिए लाइट्स ऑन करने के बाजार टॉर्च ऑन कर ली. वो नही चाहती थी के अगर तेज या कोई और बाहर आए तो इस वक़्त उसे बेसमेंट में पाए और सबसे ज़्यादा वो अभी किसी से बॉक्स के बारे बात नही करना चाहती थी. टॉर्च की रोशनी उसने नीचे ज़मीन पर डाली. कपड़े अभी भी ज़मीन पर यूँ ही पड़े थे जैसे वो शाम को छ्चोड़कर गयी थी. रूपाली ने नीचे बैठकर कपड़े इधर उधर करने शुरू किए. कामिनी के साथ जिस दूसरी औरत के कपड़े बॉक्स में थे उसने उन कपड़ो में से उस औरत का ब्रा निकाला और टॉर्च की रोशनी में उस ब्रा से मिलाया जो उसे कुलदीप के कमरे से मिला था. एक नज़र डालते ही वो सॉफ समझ गयी के दोनो ब्रा एक ही औरत के थे. रंग के सिवा दोनो ब्रा बिल्कुल एक जैसे थे. साइज़ के साथ साथ ब्रा का पॅटर्न भी बिल्कुल एक जैसा था. सॉफ ज़ाहिर था के या तो ये दोनो किसी एक ही औरत के हैं या दो ऐसी औरतों के हैं जिनका कपड़े का अंदाज़ बिल्कुल एक दूसरे की तरह था.
रूपाली अभी अपनी ही सोच में थी के उसे एक हल्की सी आहट आई. कोई बस्मेंट का दरवाज़ा खोल रहा था. उसने फ़ौरन अपनी टॉर्च ऑफ की और हाथ में वो सरिया उठा लिया जिससे उसने बॉक्स का ताला तोड़ा था.
"हां मैने उसे कह दिया था के मैं आपके कमरे में सोया करूँगी क्यूंकी आपको रात को डर सा लगता है" बिंदिया ने टीवी बंद करते हुए कहा
"ठीक है. तेज आ गया है. मैं अपने कमरे में जा रही हूँ. आयेज का काम तेरा है" कहते हुए रूपाली अपने कमरे की और बढ़ गयी.
अपने कमरे में आकर रूपाली बिस्तर पर निढाल गिर पड़ी. उसकी कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या सोचे और क्या करे. सोचते सोचते उसे 2 घंटे से ज़्यादा गुज़र गये.पिच्छले कुच्छ दीनो में उसकी पूरी ज़िंदगी बदल चुकी थी. एक सीधी सादी घरेलू औरत से वो कुच्छ और ही बन चुकी थी. भगवान का नाम सुबह शाम जपने वाली औरत का अपने ही ससुर से नाजायज़ संबंध बन गया था और वो अपने ससुर से प्यार भी करने लगी थी. उसका वो ससुर जिसकी असलियत खुद उसके लिए सवाल बनकर खड़ी हो गयी थी. एक तरफ उसके पति की मौत का सवाल था और दूसरी तरफ वो इनस्पेक्टर जो उसपर ही शक कर रहा था. कहाँ वो कल तक ठाकुर खानदान की बहू थी और कहाँ वो आज पूरी जायदाद की मालकिन हो गयी थी. कहाँ उसने पिच्छले 10 साल से अपनी ज़िंदगी से समझौता कर रखा था और कहाँ अब वो खुद ही जाने कितने सवालों के जवाब ढूँढने निकल पड़ी थी. हद तो ये थी के कहाँ वो कल तक एक शर्मीली सी औरत थी और कहाँ अब वो मर्द तो मर्द औरतों के साथ भी बिस्तर पर जाने को तैय्यार थी.
ये ख्याल आते ही उसका ध्यान पायल की तरफ गया जो आज उसके कमरे में नही आई थी. बल्कि आज तो पूरा दिन पायल उसे नज़र नही आई थी. रूपाली ने उठकर बीच का दरवाज़ा खोला और पायल के कमरे में आई. पायल अपने उसी बेख़बर अंदाज़ में सोई पड़ी थी. ना खुद का होश और ना अपने कपड़ो का. रूपाली उसे देखकर मुस्कुराइ और वापिस अपने कमरे में आ गयी.
खिड़की पर खड़े खड़े उसकी नज़र सामने कॉंपाउंड में बिंदिया और चंदर के कमरो की तरफ गयी. दोनो के कमरो की लाइट्स ऑफ थी यानी के आज रात काम नही चल रहा था. तभी रूपाली को ध्यान आया के उसने आज रात बिंदिया को तेज को इशारा कर देने को कहा था. ये ख्याल आते ही वो फ़ौरन अपने कमरे से निकली और तेज के कमरे की तरफ आई. कमरे अंदर से बंद था. रूपाली ने दरवाज़े पर कान लगाकर ध्यान से सुनने की कोशिश की. गहरी रात थी और हर तरफ सन्नाटा था इसलिए उसे कमरे के अंदर से आती बिंदिया की आवाज़ सुनने में कोई परेशानी नही हुई. आवाज़ सुनकर ही उसने अंदाज़ा लगा लिया के अंदर बिंदिया चुद रही है. रूपाली फिर मुस्कुरा उठी. उसने तो सिर्फ़ बिंदिया को इशारा करने को कहा था पर वो तो पहली ही रात तेज के बिस्तर में पहुँच गयी थी. रूपाली को लगा जैसे उसने कोई बहुत बड़ी जीत हासिल कर ली हो. उसे यकीन था के अगर हर रात बिंदिया तेज का बिस्तर गरम करे तो यूँ रातों को तेज का हवेली से बाहर रहना कम हो जाएगा.
वो फिर वापिस अपने कमरे में पहुँची. आधी रात होने को आई थी और नींद उसकी आँखों से कोसो दूर थी. ये बात उसे खाए जा रही थी के उसके अपने भाई का चक्कर कामिनी के साथ था और उसे इस बात का कोई अंदाज़ा नही था. या फिर चक्कर था ही नही. ये भी तो हो सकता है के उन दोनो को शायरी का शौक रहा हो और इंदर ने बस यूँ ही शायरी लिख कर कामिनी को दी हो. रूपाली ने अपनी अलमारी खोलकर फिर से कामिनी की डाइयरी निकली. डाइयरी उसने कपड़ो के बीच च्छुपाकर रखी थी इसलिए. डाइयरी निकालते ही कुच्छ कपड़े अलमारी से निकलकर बाहर गिर पड़े. रूपाली कपड़े उठाकर वापिस अलमारी में रखने लगी. उन्ही कपड़ो में एक वो ब्रा भी था जो उसे अपने सबसे छ्होटे देवर कुलदीप के कमरे से मिला था. जो ना तो उसका था, ना कामिनी का और ना ही उसकी सास सरिता देवी का. रूपाली ने एक नज़र ब्रा पर डाली और अलमारी में रखने ही लगी थी के अचानक उसे कुच्छ ध्यान आया. उसने जल्दी से डाइयरी अलमारी में वापिस रखी, अलमारी बंद करी और ब्रा हाथ में लिए हुए अपने कमरे से बाहर आई.
सीढ़ियाँ उतरती वो सीधा बेसमेंट में पहुँची. वो अपने साथ कमरे से टॉर्च उठा लाई थी इसलिए लाइट्स ऑन करने के बाजार टॉर्च ऑन कर ली. वो नही चाहती थी के अगर तेज या कोई और बाहर आए तो इस वक़्त उसे बेसमेंट में पाए और सबसे ज़्यादा वो अभी किसी से बॉक्स के बारे बात नही करना चाहती थी. टॉर्च की रोशनी उसने नीचे ज़मीन पर डाली. कपड़े अभी भी ज़मीन पर यूँ ही पड़े थे जैसे वो शाम को छ्चोड़कर गयी थी. रूपाली ने नीचे बैठकर कपड़े इधर उधर करने शुरू किए. कामिनी के साथ जिस दूसरी औरत के कपड़े बॉक्स में थे उसने उन कपड़ो में से उस औरत का ब्रा निकाला और टॉर्च की रोशनी में उस ब्रा से मिलाया जो उसे कुलदीप के कमरे से मिला था. एक नज़र डालते ही वो सॉफ समझ गयी के दोनो ब्रा एक ही औरत के थे. रंग के सिवा दोनो ब्रा बिल्कुल एक जैसे थे. साइज़ के साथ साथ ब्रा का पॅटर्न भी बिल्कुल एक जैसा था. सॉफ ज़ाहिर था के या तो ये दोनो किसी एक ही औरत के हैं या दो ऐसी औरतों के हैं जिनका कपड़े का अंदाज़ बिल्कुल एक दूसरे की तरह था.
रूपाली अभी अपनी ही सोच में थी के उसे एक हल्की सी आहट आई. कोई बस्मेंट का दरवाज़ा खोल रहा था. उसने फ़ौरन अपनी टॉर्च ऑफ की और हाथ में वो सरिया उठा लिया जिससे उसने बॉक्स का ताला तोड़ा था.