Sex kahani अधूरी हसरतें - Page 28 - SexBaba
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Sex kahani अधूरी हसरतें

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निर्मला के अंदर की बेचैनी बढ़ती जा रही थी काफी दिनों से उसके मन में शंका ने घर कर लिया था की शुभम का झुकाव शीतल की तरफ बढ़ता जा रहा है और उसका ऐसा शंका करना बेमतलब का भी नहीं था। यह हकीकत भी था कि शुभम का भी झुकाव शीतल की तरह बढ़ता जा रहा था। इसका एक कारण था जो कि सनातन सत्य भी था की घर की मुर्गी दाल बराबर,,,
निर्मला जो की पूरी तरह से शुभम की हो चुकी थी एवं जैसे चाहे वैसे निर्मला का उपयोग और उपभोग कर सकता था,,, बला की खूबसूरत सुंदर सुगठीत बदन की मालकिन निर्मला,,, जो कि हम तरह से शुभम को संभोग सुख का आनंद देते आ रही थी,,, और इसीलिए तो शुभम भी अच्छी तरह से जानता था कि निर्मला को वह कभी भी किसी भी समय चोद कर अपनी प्यास बुझा सकता था। इसलिए तो शुभम को भी घर की मुर्गी दाल के बराबर लग रही थी और यही वजह थी कि जहां पर संपूर्ण रूप से अपना सब कुछ निछावर कर देने वाली निर्मला के प्यार की अपेक्षा उसे शीतल की छेड़खानी अच्छी लगने लगी थी। घर का खाना खा खा कर शुभम भी बोर हो गया था इसलिए होटल के खाने की इच्छा बढ़ती जा रही थी। और यही बात निर्मला को परेशान किए जा रही थी।,,,,
घर में मधु की मौजूदगी अब निर्मला को खटकने लगी थी, क्योंकि उसके रहते वह अपनी प्यास नहीं बुझा पा रही थी,,, शुभम के लंड को लेने के लिए उसकी बुर बेकरार हो रही थी,,, लेकिन कोई जुगाड़ नहीं हो पा रहा था।,,,,,, अशोक भी मधु को ठिकाना दीलाने के लिए कार्यरत था वह मधु को घर से दूर और ऑफिस के करीब रखना चाहता था। ताकि उसे आने जाने में कोई दिक्कत ना हो,,,। लेकिन उसे भी अपने पसंद की जगह पर कोई फ्लैट नहीं मिल रहा था।,,,

स्कूल में अपनी क्लास की तरफ जाती निर्मला सामने से आ रही शीतल को देख कर रुक गई,,, सीतल अब उसे अपनी सौतन की तरह लगने लगी थी,,,, शीतल के चेहरे पर जवानी की चमक बरकरार थी,,, शीतल मुस्कुराते हुए निर्मला के अभिवादन की जिसका जवाब निर्मला ने भी मुस्कुराकर अभिवादन करते हुए दी,,,

और बताओ निर्मला मेरी जान केसा चल रहा है।,,, आजकल और ज्यादा निखरती जा रही हो ऐसा लग रहा है कि जवानी तुम्हारे बदन पर आकर रुक गई है। हमेशा तरोताजा लगती हो आखिरकार यह राज क्या है,,,

कुछ नहीं यार पहले की तरह तो दिखती हूं तुम्हें ही कुछ और नजर आने लगता है,,,,।

ऐसा तुम्हें लगता है लेकिन देखने वालों को तो तुम रोज का रोज एकदम जवान होती नजर आ रही हो,,,
( शीतल के मुंह से अपनी तारीफ सुनते हुए निर्मला को अच्छा लगने लगा कुछ देर के लिए वह भूल गई कि,,, शीतल से उसे जलन हो रही है,,, तभी सामने से आ रहे शुभम की तरफ देखकर शीतल मुस्कुराते हुए बोली,,,।


निर्मला तुम्हारा बेटा जब जवान हो गया और खूबसूरत भी,,,,( ऐसा कहते हुए शीतल,, एकटक शुभम की तरफ देखने लगी,,,, निर्मला को शीतल का इस तरह से देखना अच्छा नहीं लग रहा था,,, इसलिए वह बोली,,,।)

क्यों इरादा क्या है तुम्हारा,, कहीं मेरे बेटे पर तो नैन मटक्का करने का इरादा नहीं है ना,,,। देखना तेरे बेटे की ही उम्र का है वह,,,।

काश सुभम मेरा बेटा होता तो,,,, पर अपनी किस्मत में कहा,, तेरी तो बहुत अच्छे से कट रही होगी,, ।

क्या मतलब,,,,,

जिंदगी और क्या चलो अच्छा मुझे देर हो रही है मैं जा रही हूं,,,।( तब तक सुभम एकदम करीब आ चुका था और शीतल उसे बाय करते हुए मुस्कुरा कर अपने क्लास की तरफ जाने लगी और शुभम भी उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा रहा था और निर्मला ने जब उसकी नजरों का पीछा की तो वह हैरान रह गई क्योंकि का बेटा शुभम शीतल की मटकती हुई गांड को ही देख रहा था,,, ओर वह अच्छी तरह से जानती थी की बड़ी बड़ी गांड सुभम की सबसे बड़ी कमजोरी है।,,,,,

क्या देख रहे हो,,,( जैसे शुभम की चोरी पकड़ी गई हो इस तरह से वह एकदम से चौंक गया,,,) जाओ अपनी क्लास में,,,।

जी मम्मी ( इतना कहकर वह अपनी क्लास की तरफ चला गया,,, निर्मला उसे जाते हुए देखती रह गई ओर मन ही मन सोचने लगी कि दोनों के बीच कुछ ना कुछ जरुर खिचड़ी पक रही है,,,। धीरे धीरे कर के दो-चार दिन और गुजर गए मधु भी शुभम को भोगने के लिए तड़प रही थी वह समझ गई थी कि सुभम असली मर्द है। क्योंकि बाथरूम में किस तरह की जबरदस्त उसने चुदाई किया था उसकी वजह से वह 2 दिन तक ठीक से चल नहीं पा रही थी और ऐसा अब तक बिल्कुल भी नहीं हुआ था। लेकिन उसे भी मौका नहीं मिल पा रहा था।,,,
निर्मला तो घर में मधु की मौजूदगी में कुछ भी नहीं कर पा रही थी,,,। ऐसे ही एक दिन दोपहर के समय निर्मला किचन में पानी पीने के लिए गई और ऐन मौके पर सुभम भी वहां पर पहुंच गया,,, शुभम को किचन में इस तरह से तो आकर एकांत का फायदा उठाते हुए यु सुभम को अकेला देखकर निर्मला एकदम से कामा तूर हो गई,,, और शुभम को अपनी बाहों में भीच करो उसके होठों को चूमना शुरु कर दी,,, और चूमते हुए उसे बोले जा रही थी,,,

ओहहहहहह शुभम मेरे राजा बहुत दिन हो गए तेरे लंड का स्वाद चखें,,, मेरी बुर तड़प रही है तुम्हारे लंड को अंदर लेने के लिए,,,,,( ऐसा कहते हुए निर्मला ने पेंट के ऊपर से ही सुभम के लंड को मसलना शुरू कर दी,, सुभम भी आखिर क्या करता उसे भी काफी दिन हो चुके थे अब तक उसने बुर का स्वाद नहीं चखा था इसलिए वह भी अंदर ही अंदर तड़प रहा था,,, और अपनी मां को कामातुर होता हुआ देखकर वह भी अपना सब्र खोने लगा,,,, वह भी एकदम से चुदवासा हो गया,,, उसने भी अपने हाथों को हर कत देते हुए ब्लाउज के ऊपर से अपनी मां की चुचियों को दबाना शुरू कर दिया,,,, निर्मला के मुख से सिसकारी छूटने लगी,,,

सससहहहहहहह शुभम मुझसे रहा नहीं जा रहा है रे अब तो तू मेरे ऊपर ध्यान ही नहीं देता जब से गांव से वापस आई हूं तबसे प्यासी हूं,,,, और तू इतना बेदर्दी हो गया है कि मेरी तरफ जरा भी ध्यान ही नहीं देता,,,,
( इतना कहते हुए निर्मला अपने बेटे के पेंट को नीचे सरका कर ऊसके नंगे लंड को हाथ में पकड़ कर हिलाने लगी,,) क्या मैं तुझे इतनी खराब लगने लगी,, क्या आप मुझसे तेरा मन भर गया है,,,।

यह क्या कह रही होमम्मी,,, तुम तो बहुत सेक्सी और खूबसूरत हो,,( ब्लाउज के ऊपर से ही बड़ी-बड़ी चुचियों को दबाते हुए बोला,,,)

खूबसूरत होती तो तू सीतल कों प्यासी नजरो से नही देखता,,, ।
( अपनी मां के मुंह से शीतल का नाम सुनते ही वह चौंक गया। और अपनी मां की चूची को जोर जोर से दबाता हुआ बोला।)

तुम्हें गलतफहमी हो रही है ऐसा कुछ भी नहीं है,,,।

मुझे गलतफहमी नहीं सुभम,, मैं पक्के यकीन के साथ कह सकती हूं कि उस दिन तू शीतल जब मेरे पास उसे क्लास की तरफ जाने लगी तब तुझे बाय कर के जा रही थी और तू भी उसकी मटकती गांड को देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रहा था,,,,।( निर्मला अपने बेटे की लंड को हिला हिला कर बड़ा करते हुए बोली।)

नहीं मम्मी ऐसा कुछ भी नहीं है आप जैसा सोच रही हैं वह सब गलत है,,,।

अच्छी बात है कि जो मैं सोच रही हूं गलत ही हो अगर सच निकली तो सुभम मुझसे बुरा कोई नहीं होगा,,,,
( इतना कहने के साथ ही निर्मला चुदवांसी होकर अपनी घुटनों के बल बैठ गई और जैसे कई दिनों की प्यासी हो इस तरह से शुभम के लंड को मुंह में लेकर चुसना शुरू कर दी,,। सीतल की बात से सुभम एकदम से घबरा गया था,,, उसे लगने लगा था कि उसकी मां को शक हो गया है,, और मन में ठान लिया कि वह इस बारे में शीतल से जरूर बात करेगा ताकि उसकी मां को बिल्कुल भी शक ना हो इस समय शुभम के मन में यह सब ख्याल आप चल ही रहे थे कि तभी निर्मला अपनी जीभ का कमाल दिखाते हुए शुभम के लंड को चूस कर एकदम से टाइट कर दी,,,, निर्मला पूरी तरह से चुदवासी हो चुकी थी उसकी बुर से मधुर रस की बुंदे टपक रही थी। यह जानते हुए भी कि मधु घर में मौजूद हैं लेकिन फिर भी चुदाई का नशा निर्मला पर इस कदर छाया हुआ था कि,, वह सब कुछ भूल चुकी थी इस समय उसे बस शुभम का मोटा तगड़ा लंड ही दिखाई दे रहा था जो कि अपनी बुर में लेने के लिए तड़प रही थी।,,, अब निर्मला से सब्र कर पाना मुश्किल हुआ जा रहा था और दूसरी तरफ से सुभम भी पूरी तरह से तैयार था अपनी मां की बुर में लंड डालने के लिए,,,, शुभम का मोटा तगड़ा बंद उसकी मां के मुंह में उत्तेजना के मारे और ज्यादा फूल गया था,,, और यही हाल निर्मला की बुर का भी था।
निर्मला की बुर भी उत्तेजना के मारे फुल कर गरम रोटी की तरह हो गई थी,,, अब उससे भी सहन नहीं हो रहा था इसलिए वह तुरंत खड़ी हुई,,, और किचन की तरफ मुंह करके झुकते हुए अपने साड़ी को अपनी कमर तक उठा कर खड़ी हो गई,,,, निर्मला अपनी मदमस्त गांड को अपने बेटे के सामने परोस कर पीछे नजर घुमाकर उसकी तरफ देख रही थी मानो की कह रही हो,, ले अब शुरू हो जा,,,
काफी दिनों बाद शुभम भी अपनी मां की मदमस्त गांड का दर्शन कर रहा था,,, इसलिए उसकी आंखों में नशा उतरने लगा और वह भी एक पल की देरी किए बिना ही अपनी मां की गुलाबी पेंटिं को दोनों हाथों से पकड़कर नीचे की तरफ सरकाने लगा,,, अगले ही पल उसकी आंखों के सामने निर्मला कीमत मा की नंगी गांड थिर कट कर रही थी,,, जिसे निर्मला उत्तेजना वश कसमसाते हुए बार-बार दाएं बाएं करके हिला रही थी,,, और अपनी मां की ईस अदा को देखकर शुभम से बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हुआ और वह,,, आगे बढ़कर अपनी मां की गांड की बड़ी-बड़ी दोनों भागों को पकड़ कर फैलाता हुआ अपने लंड के सुपाड़े को बुर से सटा कर एक ही धक्के में अंदर तक ऊतार दिया,,, काफी दिनों बाद अपने बेटे के मोटे लंड को अपने बुर के अंदर महसूस करके निर्मला पूरी तरह से मदहोश होने लगी और उसके मुंह से सिसकारी छूटने लगी,,,, शुभम काफी उत्तेजित नजर आ रहा था इसलिए अपनी मां की कमर पकड़ कर उसे चोदना शुरू कर दिया दोनों अत्यंत कामोत्तेजित अवस्था में एक दूसरे को मजा देते हुए एक दूसरे की तरफ धक्के लगा रहे थे। निर्मला अपने बेटे से चुदकर चुदाई का अद्भुत आनंद को महसूस कर रही थी।
सुभम हर धक्के को निर्मला अपनी बुर के अंदर महसूस कर के भाव विभोर हुए जा रही थी।

ऐसा लग ही नहीं रहा था कि निर्मला अपने बेटे से बहुत बार चुदवा चुकी है । निर्मला शुभम के हर धक्के को एकदम जवान औरत की तरह महसूस कर रही थी। इतने जोश से वह शुभम से चुदवा रही थी मानो पहली बार ही वह चुदाई का आनंद लूट रहीे हैं।,,, अद्भुत नजारा किचन में नजर आ रहा था चुदाई का ऐसा नशा निर्मला पर छाया था कि वह बिल्कुल भी भूल गई थी कि घर में उसकी ननद मधु मौजूद है।,,, संभोग की चाह में वह इतनी उतावली हो गई थी कि संपूर्ण रूप से नंगी ना हो करके बस उस अंग को ही वित्त विहीन कर दी थी जिस अंग की चुदाई के समय आवश्यकता होती है। बाकी के अंग अभी भी वस्त्रों से ढके हुए थे भले ही से बंद वस्त्र के ऊपर से ही उस अंगों को मसल कर आनंद ले रहा था। निर्मला की सांसे तीव्र गति से चल रही थी से बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी और सुभम के धक्के किसी मशीन की भांति आगे पीछे हो रहे थे। दोनों पसीने से तरबतर हो चुके थे हालांकि किचन में पंखा तीव्र गति से चालू था लेकिन बदन की गर्मी दोनों को पिघला रही थी शुभम हाफ रहा था निर्मला भी से बम का डटकर सामना करते हुए अपनी भारी भरकम गांड को पीछे की तरफ ठेल दे रही थी।,,,,, दोनों का जोश बढ़ता जा रहा था वह दोनों इस बात से बिल्कुल हम जानते हैं कि किचन में कोई भी आ सकता है और ऐसा हुआ भी दूसरी तरफ मधु को प्यास लगने लगी तो वह खाली गिलास लेकर अपने कमरे से बाहर आने लगी,।
वह सीढ़ीयो से ऊतर ही रही थी कि अचानक उसके हाथ से ग्लास छूटकर नीचे गिर गया,,, और बर्तन की आवाज से संभोगनिए मुद्रा में मदहोश हो चुके निर्मला और शुभम की तंद्रा भंग हुई,, और तुरंत उन्हें इस बात का ज्ञान हो गया कि कोई किचन की तरफ आ रहा है और दोनों तुरंत स्फुर्ती दिखाते हुए एक दूसरे से अलग हुए और तुरंत अपने कपड़ों को दुरुस्त करने लगे,,, निर्मला और शुभम ने इतनी ज्यादा उसको उड़ती दिखाई थी कि मधु के रसोई घर के दरवाजे तक आते-आते निर्मला तुरंत छोटे बर्तनों को इधर-उधर करने लगी और शुभम फ्रिज से पानी की बोतल निकाल कर पीने लगा मधु रसोई घर में प्रवेश करते हुए यह देखी तो उसे इस बात का जरा भी अंदेशा भी नहीं हुआ कि इस कीचन में कुछ गड़बड़ चल रही थी। उसे बिल्कुल भी भान नहीं हुआ कि कुछ सेकंड पहले ही उसकी भाभी अपने ही बेटे से चूद रही थी । अपनी भाभी को झूठे बर्तन इकट्ठा करते हुए देखकर मधु बोली।

भाभी ने साफ कर देती हैं आप क्यों परेशान हो रही हो मैं आपसे पहले भी कही थी कि जब तक मे यहां हुं तब तक रसोई का काम मे हीं सभालूंगी,,,,
( इतना कहते हुए वहां निर्मला के हाथों से बर्तन लेकर दोनों शुरू कर दी और निर्मला दी जवाब में मुस्कुरा कर किसी से बाहर निकल गई और मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगी थी अच्छा हुआ आज बच गई लेकिन उसे मधु पर बहुत ही गुस्सा आ रहा था,, वह अपने चरम सुख को प्राप्त भी नहीं कर पाई थी कि ऐन मौके पर मधु के आ जाने की वजह से उसका सारा मजा किरकिरा हो गया था। इसलिए वह अशोक से बात करके मधु को जल्द से जल्द कहीं और फ्लैट दिलाने की बात करने वाली थी और ऐसा हुआ कि रात को अशोक के आते ही उसने मधु को कहीं और रहने की बंदोबस्त करने के लिए अशोक को जल्द से जल्द बोल दी,,, क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि जब तक मधु यहां रहेगी,,,तब तक वह चुदाई का मजा पूरी तरह से नहीं ले पाएगी निर्मला की बातें सुनकर अशोक ने भी उसे जल्द से जल्द कहीं और रूम दिलाने का वादा कर दिया,,,,।
दूसरी तरफ शुभम दूसरे दिन स्कूल में शीतल को यह बता दिया कि उसकी मां को हम दोनों के बीच कुछ खिचड़ी पक रही है इस बारे में शंका हो गई है इसलिए कुछ दिन तक वह दूरी बनाकर रखें वर्ना सारा काम बिगड़ जाएगा यह बात सुनकर शीतल को भी झटका लगा था और वह भी वह नहीं चाहती थी कि यह बात निर्मला को किसी भी कीमत पर पता चला क्योंकि शीतल कुछ लंबे प्लान में ही थी। सुबह अपने पति को लेकर चिंतित हो गई क्योंकि भविष्य की खुशियां शुभम से ही जुड़ी हुई थी इसलिए वह कुछ दिन तक अपने आप को संभालने की कोशिश करने लगी। लेकिन कितने दिन तक वह अपने आप पर सब्र कर ती शुभम की हाजिरी ले वह अजीब सा महसुस करने लगती थी,, जब भी सुभम उसकी आंखों के सामने होता था तो,
ऊसकी बुर में चींटिया रेंगने लगती थी,,, उसका बदन मीठे-मीठे दर्द से टूटने लगता था उसकी बुर में खुजली सी महसूस होने लगती थी,, और वह अच्छी तरह से जानती थी कि यह खुजली कौन मिटा सकता है।
उससे यह खुजली बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो रही थी,,, और एक दिन रीशेष मे वह सुभम को इशारे से अपने रूम में बुलाई,,,। शुभम भी रिशेष होते ही शीतल के रूम की तरफ जाने लगा रिशेष होने की वजह से सभी कमरे खाली थे सारे स्टूडेंट स्कूल के ग्राउंड में थे। शीतल कुर्सी पर बैठ कर बड़ी बेसब्री से शुभम का इंतजार कर रही थी।
 
मदमस्त शीतल जवानी से भरी हुई थी,,, हालांकि उसकी जवानी के रस को पीने वाला सछम रूप से असली मर्द मिला ही नहीं था जो कि उसकी जवानी को रगड़ कर उसका रस निचोड़ सकें इसलिए तो वह तड़प रही थी अपनी जवानी के रस को बाहर निकालने के लिए और ऐसा सक्षम और संपूर्ण रूप से बलशाली मर्द शुभम ही था।,,, इसलिए तो जब से शुभम ने बताया था कि उसकी मां को उन दोनों पर शक होने लगा है तब से, दोनों ने मिलना कम कर दिया था ताकी निर्मला को उन पर बिल्कुल भी शक ना हो। लेकिन यह दूरी अब शीतल से बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो रही थी,, शुभम शेगाव जाने के बाद शुभम को याद करके ना जाने कितनी बार उसने अपनी हथेली से अपनी गरम बुर को रगड़ कर शांत करने की कोशिश की थी,, इससे उसकी प्यास बढ़ती जरूर थी लेकिन शुभम की कल्पना करने से उसके तन मन को बेहद शांति प्रतीत होती थी। लेकिन शुभम के शहर वापस आ जाने के बाद शीतल के सब्र का बांध अब टूटने लगा था।,,, इसलिए तो उसके मन में इस समय बेहद अजीब से हालात उमड़ रहे थे कुर्सी पर बैठ कर वा टेबल से हाथों की कोहनी को टीकाकर शुभम के बारे में सोच रही थी।,,,, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई ।

मे आई कम इन मैडम,,,

ओहहहह अाओ सुभम में कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी (टेबल पर से अपने दोनों कहानियों को हटाते हुए मुस्कुराकर शीतल बोली।)

मेरा इंतजार लेकिन क्यों मैडम आप तो जानते ही हैं कि मम्मी को हम दोनों पर कुछ शक सा होने लगा है,,, ऐसे में हम दोनों को स्कूल में इस तरह से मिलना,,,,

हां मैं जानती हूं शुभम हम दोनों को इस तरह से नहीं मिलना चाहिए,,,( शुभम की बात पूरी होने से पहले ही उसकी बात को बीच में काटते हुए शीतल बोली तब तक शुभम अंदर आ चुका था) लेकिन क्या करूं शुभम तुम्हारी मौजूदगी में मुझे तुमसे मिले बिना रहा नहीं जा रहा है,,,। ना जाने मुझे क्या हो गया है मैं सब कुछ जानती हूं कि तुम्हारी उम्र और मेरी उम्र में जमीन आसमान का फर्क है मैं उम्र में लगभग तुम्हारी मम्मी के समान ही हूं लेकिन फिर भी मुझे ना जाने क्यों तुमसे प्यार होने लगा है।,,,

मेडम,,,,,, ( आश्चर्य से सुभम बोला)

मैडम नहीं मुझे शीतल बोला करो इस तरह से अकेले में मुझे शीतल ही बोला करो,,, मैं जानती हूं कि तुम्हें बड़ा अजीब लग रहा होगा कि मैं यह क्या बोल रही हूं लेकिन जो मैं कह रही हो बिल्कुल सच है,,,,।( इतना कहते हुए शीतल कुर्सी पर से खड़ी हुई और धीरे धीरे चलते हुए सुभम के करीब जाने लगी,,,, शीतल की बातों को सुनकर शुभम के तन बदन में झुंरझुकी से फैलने लगी थी,, शीतल शुभम के बिल्कुल करीब जाते हुए बोली,,,।)
शुभम मैं तुमसे प्यार करने लगी हुं,, और प्यार करने की कोई उम्र की सीमा नहीं होती यह तो अपने आप ही दिल से हो जाता है,,,,
( शीतल की बातें शुभम को प्रभावित कर रही थी और इस समय यह रोमांटिक बातें शुभम को बेहद उत्तेजक लग रही थी शुभम की उत्तेजना को बढ़ाने के उद्देश्य से शीतल लंबी लंबी सांसे भरते हुए अपने विशाल स्तनों को ऊपर नीचे कर रही थी और शुभम की नजरें शीतल के ऊपर नीचे हो रही छातियों पर टिकी हुई थी जोकि ट्रांसपेरेंट साड़ी होने की वजह से चूचियों के बीच की खाई साफ साफ नजर आ रही थी। शीतल कि चोर नज़रों ने अपनी शारीरिक चेष्टाओ के द्वारा शुभम के भजन में आए बदलाव को साफ तौर पर देख रही थी और यह भी देख रही थी कि उसके बदन मे उत्तेजना का असर बेहद तीव्र गति से हो रहा है जिसके फलस्वरूप शुभम के पेंट का तंबू ऊंचा उठने लगा था ओर यह देख कर शीतल की बुर कुलबुलाने लगी थी,,।,,, उसके बदन में भी उत्तेजना का असर बड़ी तीव्र गति से हो रहा था,,, वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,,।)

शुभम तुम्हें देख कर जिस तरह का अनुभव मैं करती हूं क्या तुम भी वैसा ही अंबा करते हो,,, बोलो सुभम क्या तुम भी मुझसे प्यार करते हो,,,,, ( शीतल जैसी खूबसूरत औरत का यह प्रस्ताव और उसकी रोमांटिक बातों को सुनकर शुभम के बदन में रोमांच फैल गया था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कल के इस तरह के ईस तरह के इजहार का वह क्या जवाब दे,,, उसे भला कब इंकार होने वाला था,,, शीतल के अोंफर से तो उसकी दसो उंगलियां घी में नजर आ रही थी,,,, सुभम की सबसे तेज गति से चलने लगी थी क्योंकि शीतल सुभम के बहुत करीब आ चुकी थी,, इतने करीब कि दोनों की सांसे एक दूसरे के चेहरे पर अठखेलियां कर रही थी,, शीतल भी कामज्वर से तप रही थी,,,, उसके बदन में कामाग्नि की ज्वाला भड़क रही थी,,,,, वह इतनी ज्यादा रोमांचित और उत्तेजित हो चुकी थी कि शुभम का जवाब जाने बिना ही वह तुरंत अपनी गुलाबी होठों को सुगम के होठों पर रख कर पागलों की तरह ऊसे चूसना शुरू कर दी,,, शुभम भला कैसे शांत रहने वाला था,,,, अगर वह इस स्थिति में शांत रहना चाहता भी तो भी शांत नहीं रह सकता था भला एक जवान मर जवानी से भरपूर मतलब काया को अपने बदन से लिपटा हुआ पाकर कब तक शांत रह पाता,,, शुभम ने भी वही किया जो इस वक्त एक जवान मर्द को करना चाहिए था वह भी अपनी बाहों को खोल कर शीतल को अपनी बाहों में भर लिया,,,, जवानी से भरपुर सीतल की मदमस्त काया सुभम की भुजाओं में समा नहीं पा रही थी,,, लेकिन फिर भी सुबह में अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हुए सीतल की मदमस्त काया को अपनी भुजाओं में ताकत लगाकर समाए हुए था। कुछ ही सेकंड मे सुभम मदहोश हो गया और मदहोशी के असर मे सुभम की दोनो हथेलियां शीतल के संगमरमकरी बदन पर फिराने लगा,,,सुभम सीतल के बड़े बड़े नितंबो को बड़ी मदहोशी के साथ अपनी हथेली मे भरकर दबा रहा था।
भले ही सुभम शीतल की बड़ी बड़ी गांड को साड़ी के ऊपर से दबा रहा था, लेकीन सीतल की नंगी गांड की गर्माहट को पुरी तरह से महसुस कर रहा था। शुभम की हथेलिया शीतल के ऊस अंग पर अधिक फीर रही थी जहा पर ऊसके अंग वस्त्र से ढंके हुए नही थे। दोनो पुरी तरह से गरमा चुके थै। शीतल एकदम मदहोश हो चुकीथी । शीतल के बदन की गर्मी शुभम को पूरी तरह से अपने आगोश में ले चुकी थी, बरसो से प्यासी शीतल मदहोशी के नशे मे यह भी भुल गई की, वह एक शक्षिका है,, और वह क्लासरूम मे है। काफी दिनों से
सुभम की गैरहाजीरी मे ऊसकी कल्पना कर करके शीतल बहुत गर्म हो चुकी थी,, खास करके शीतल की कल्पनाओ को घोड़ा सुभम के मोटे लंड की सवारी करता रहता था, इसलिए शीतल चुदवासी होकर सुभम के मोटे लंड को पेंट के ऊपर से पकड़कर दबाना शुरु कर दी, दोनों के होठ अभी भी आपस में भिड़े हुए थे,, और सुभम पागलो की तरह शीतल के लाल लाल होठो को चुसता हुआ ऊसकी चुचीयां दबा रहा था। दोनों की गर्म सांसे पुरे क्लासरुम मे गुंजने लगी थी । शीतल लंड की प्यासी हो चुकी थी ईसलिए वह सुभम के पेंट की बटन खोलकर ऊसके मोटे तगड़े लंड को पकड़कर हीलाना शुरु कर दी,,,

ओहहहहहहह सुभम तेरालंड तो बहुत मोटा और लंबा है।,,, ( ऐसा कहते हुए वह सुभम के लंड को जोर जोर से हीलाने लगी,,, सुभम बिना जवाब दीए शीतल की जवानी से खेल रहा था। शीतल चुदवासी हो चुकी थी। वह यह भुल गई की वह स्कुल मे है,, वह पुरी तरह से सुभम के लंड को अपनी बुर मे लेने की मन बना चुकी थी वह सुभम के लंड को एकबार फीर से अपने मुंह मे लेकर चुसना चाहती थी, ईसलिए वह नीचे झुकने ही वाली थी की भड़ाक से दरवाजा खुला और दरवाजे पर निर्मला को देखकर दोनो बुरी तरह से चोंक गए।
 
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