hotaks444
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वो बोली, “हाँ आपा, अब तो बहुत मज़ा आ रहा है!”
मैंने पूछा, “अब दर्द नहीं हो रहा है?”
वो बोली, “दर्द तो हो रहा है लेकिन काफ़ी कम।”
मैंने मोनू से कहा, “अब तुम पूरी ताकत के साथ तेजी से संजीदा की चुदाई शुरू कर दो।”
मोनू ने पूरी ताकत लगाते हुए बहुत तेजी के साथ संजीदा की चुदाई शुरू कर दी। अब वो संजीदा को एक दम आँधी की तरह चोद रहा था। पाँच मिनट की चुदाई के बाद ही संजीदा ने “और तेज... और तेज...” कहना शुरू कर दिया तो मोनू ने उसे बुरी तरह से चोदना शुरू कर दिया। सारे कमरे में धप-धप और फच-फच की आवाज़ गूँज रही थी। साथ ही साथ संजीदा की जोश भरी किलकारियाँ भी गूँज रही थी। वो “और तेज... और तेज... खूब जोर-जोर से चोदो मेरे जानू... फाड़ दो आज मेरी प्यासी चूत को...” कहते हुए चुदवा रही थी। रशीद आँखें फाड़े हुए संजीदा को पूरे जोश के साथ चुदवाते हुए देख रहा था। संजीदा अपने चूत्तड़ उठा-उठा कर मोनू से चुदवा रही थी। मोनू को अब तक संजीदा की चुदाई करते हुए करीब पैंतालीस मिनट हो चुके थे। उसने संजीदा को चोदने के तुरंत पहले ही मुझे चोदा था इसलिए वो झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। दस मिनट तक चुदवाने के बाद संजीदा फिर से झड़ गयी। लेखिका: अमीना-काज़ी।
मोनू अभी भी संजीदा को बुरी तरह से चोद रहा था और संजीदा एक दम मस्त हो कर मोनू से चुदवा रही थी। दस मिनट और चोदने के बाद मोनू रुक-रुक कर बहुत जोर-जोर के धक्के लगाने लगा तो मैं समझ गयी कि वो अब झड़ने वाला है। संजीदा भी अपने चूत्तड़ बहुत तेजी के साथ ऊपर उठा रही थी। दो मिनट बाद ही मोनू संजीदा की चूत में झड़ने लगा तो संजीदा भी उसके साथ ही साथ फिर से झड़ गयी।
तमाम मनि संजीदा की चूत में निकाल देने के बाद मोनू संजीदा के ऊपर ही लेट गया और उसे चूमने लगा। संजीदा भी उसकी पीठ को सहलाते हुए उसे चूमने लगी। मैंने संजीदा से पूछा, “मज़ा आया?”
संजीदा बोली, “हाँ आपा, बहुत मज़ा आया। मैं इसी मज़े के लिये शादी के बाद से ही तड़प रही थी!”
मैंने कहा, “अब तो तुम रशीद से खफ़ा नहीं रहोगी?”
वो बोली, “अगर रशीद मुझे मोनू से चुदवाने से मना नहीं करेगा तो मैं उससे कभी भी खफ़ा नहीं रहुँगी।”
वो दोनों थोड़ी देर तक एक दूसरे को चूमते हुए लेटे रहे। दस मिनट बाद मोनू संजीदा के उपर से हट गया और उसकी बगल में ही लेट गया। मैंने देखा कि संजीदा की चूत का मुँह एक दम चौड़ा हो चुका था। उसकी चूत एक दम गुलाबी हो गयी थी और कई जगह से एक दम कट फट गयी थी। एक घंटे तक आराम करने के बाद संजीदा बाथरूम जाना चाहती थी लेकिन वो उठ नहीं पा रही थी। मोनू उसे गोद में उठा कर बाथरूम ले जाने लगा तो मैंने देखा कि मोनू का लंड फिर से खड़ा होने लगा था। मोनू संजीदा को लेकर बाथरूम में चला गया।
जब दस-पंद्रह मिनट तक मोनू वापस नहीं आया तो मैं रशीद के साथ बाथरूम में गयी। मैंने देखा कि मोनू बाथरूम में ही संजीदा की डॉगी स्टाईल में बुरी तरह से चुदाई कर रहा था। संजीदा भी एक दम मस्त हो कर उससे चुदवा रही थी। मैंने मोनू से कहा, “तुम इसे बेडरूम में ला कर इसकी चुदाई करते तो क्या मैं तुम्हें मना कर देती?”
मोनू ने कहा, “ऐसी बात नहीं है। ये जब पेशाब कर चुकी तो मुझसे रहा नहीं गया। मैंने इनसे कहा कि मैं फिर से चोदना चाहता हूँ तो इन्होंने कहा कि यहीं चोद दो ना और मैंने इन्हें चोदना शुरू कर दिया!”
मैंने कहा, “ठीक है!”
उसके बाद मैं रशीद के साथ बेडरूम में आ गयी। करीब आधे घंटे के बाद मोनू संजीदा को गोद में उठा कर ले आया और उसे बेड पर लिटा दिया। संजीदा की चूत एक दम सूज चुकी थी। मैंने संजीदा से पूछा, “इस बार कैसा लगा?”
वो बोली, “इस बार चुदवाने में इतना मज़ा आया कि मैं बता नहीं सकती। मोनू ने इतनी बुरी तरह से मेरी चुदाई की है कि मैं इसका धक्का बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। इस बार की चुदाई ने मेरे जिस्म का सारा जोड़ हिला कर रख दिया!”
मैंने कहा, “अब तो खुश हो?”
वो बोली, “हाँ, अब मैं बहुत खुश हूँ!”
अगले दो दिनों तक रशीद साईट पर अकेला ही गया। मैं संजीदा और मोनू के साथ घर पर रही ताकि संजीदा दिल भर्र कर मोनू से चुदवा सके। मोनू ने दो दिनो में सोलह मर्तबा संजीदा की चुदाई की। संजीदा की चूत का मुँह एक दम खुल चुका था। लेकिन उसे अब भी चलने फिरने में दिक्कत हो रही थी। उसकी चूत मोनू से चुदवा-चुदवा कर एक दम सूज गयी थी और किसी डबल-रोटी की तरह फूल चुकी थी। उन दो दिनों में मैंने मोनू से एक बार भी नहीं चुदवाया, केवल संजीदा ही चुदवाती रही। मैं भी चुदवाने का खूब मज़ा लेना चाहती थी।
मेरे मन में ख्याल आया कि मुझे किसी दूसरे मर्द का इंतज़ाम कर लेना चाहिए। तभी हम दोनों चुदाई का खूब मज़ा ले पायेंगी। तीसरे दिन मैं रशीद के साथ दूसरी साईट पर गयी। वो साईट एक आदिवासी इलाके में थी। संजीदा और मोनू घर पर ही थे। मैंने उस साईट पर भी एक आदमी देखा। वो आदिवासी था और उसका रंग एक दम साँवला था लेकिन था बहुत ही हट्टा कट्टा। उसका लंड मुझे मोनू के लंड से भी मोटा और लंबा लगा। मैंने रशीद से उसे भी घर पर काम करने के लिये रखने को कहा। रशीद ने उससे बात की तो वो राज़ी हो गया। उसका नाम झबरू था। वो हमारे साथ घर आ गया।
मैंने पूछा, “अब दर्द नहीं हो रहा है?”
वो बोली, “दर्द तो हो रहा है लेकिन काफ़ी कम।”
मैंने मोनू से कहा, “अब तुम पूरी ताकत के साथ तेजी से संजीदा की चुदाई शुरू कर दो।”
मोनू ने पूरी ताकत लगाते हुए बहुत तेजी के साथ संजीदा की चुदाई शुरू कर दी। अब वो संजीदा को एक दम आँधी की तरह चोद रहा था। पाँच मिनट की चुदाई के बाद ही संजीदा ने “और तेज... और तेज...” कहना शुरू कर दिया तो मोनू ने उसे बुरी तरह से चोदना शुरू कर दिया। सारे कमरे में धप-धप और फच-फच की आवाज़ गूँज रही थी। साथ ही साथ संजीदा की जोश भरी किलकारियाँ भी गूँज रही थी। वो “और तेज... और तेज... खूब जोर-जोर से चोदो मेरे जानू... फाड़ दो आज मेरी प्यासी चूत को...” कहते हुए चुदवा रही थी। रशीद आँखें फाड़े हुए संजीदा को पूरे जोश के साथ चुदवाते हुए देख रहा था। संजीदा अपने चूत्तड़ उठा-उठा कर मोनू से चुदवा रही थी। मोनू को अब तक संजीदा की चुदाई करते हुए करीब पैंतालीस मिनट हो चुके थे। उसने संजीदा को चोदने के तुरंत पहले ही मुझे चोदा था इसलिए वो झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। दस मिनट तक चुदवाने के बाद संजीदा फिर से झड़ गयी। लेखिका: अमीना-काज़ी।
मोनू अभी भी संजीदा को बुरी तरह से चोद रहा था और संजीदा एक दम मस्त हो कर मोनू से चुदवा रही थी। दस मिनट और चोदने के बाद मोनू रुक-रुक कर बहुत जोर-जोर के धक्के लगाने लगा तो मैं समझ गयी कि वो अब झड़ने वाला है। संजीदा भी अपने चूत्तड़ बहुत तेजी के साथ ऊपर उठा रही थी। दो मिनट बाद ही मोनू संजीदा की चूत में झड़ने लगा तो संजीदा भी उसके साथ ही साथ फिर से झड़ गयी।
तमाम मनि संजीदा की चूत में निकाल देने के बाद मोनू संजीदा के ऊपर ही लेट गया और उसे चूमने लगा। संजीदा भी उसकी पीठ को सहलाते हुए उसे चूमने लगी। मैंने संजीदा से पूछा, “मज़ा आया?”
संजीदा बोली, “हाँ आपा, बहुत मज़ा आया। मैं इसी मज़े के लिये शादी के बाद से ही तड़प रही थी!”
मैंने कहा, “अब तो तुम रशीद से खफ़ा नहीं रहोगी?”
वो बोली, “अगर रशीद मुझे मोनू से चुदवाने से मना नहीं करेगा तो मैं उससे कभी भी खफ़ा नहीं रहुँगी।”
वो दोनों थोड़ी देर तक एक दूसरे को चूमते हुए लेटे रहे। दस मिनट बाद मोनू संजीदा के उपर से हट गया और उसकी बगल में ही लेट गया। मैंने देखा कि संजीदा की चूत का मुँह एक दम चौड़ा हो चुका था। उसकी चूत एक दम गुलाबी हो गयी थी और कई जगह से एक दम कट फट गयी थी। एक घंटे तक आराम करने के बाद संजीदा बाथरूम जाना चाहती थी लेकिन वो उठ नहीं पा रही थी। मोनू उसे गोद में उठा कर बाथरूम ले जाने लगा तो मैंने देखा कि मोनू का लंड फिर से खड़ा होने लगा था। मोनू संजीदा को लेकर बाथरूम में चला गया।
जब दस-पंद्रह मिनट तक मोनू वापस नहीं आया तो मैं रशीद के साथ बाथरूम में गयी। मैंने देखा कि मोनू बाथरूम में ही संजीदा की डॉगी स्टाईल में बुरी तरह से चुदाई कर रहा था। संजीदा भी एक दम मस्त हो कर उससे चुदवा रही थी। मैंने मोनू से कहा, “तुम इसे बेडरूम में ला कर इसकी चुदाई करते तो क्या मैं तुम्हें मना कर देती?”
मोनू ने कहा, “ऐसी बात नहीं है। ये जब पेशाब कर चुकी तो मुझसे रहा नहीं गया। मैंने इनसे कहा कि मैं फिर से चोदना चाहता हूँ तो इन्होंने कहा कि यहीं चोद दो ना और मैंने इन्हें चोदना शुरू कर दिया!”
मैंने कहा, “ठीक है!”
उसके बाद मैं रशीद के साथ बेडरूम में आ गयी। करीब आधे घंटे के बाद मोनू संजीदा को गोद में उठा कर ले आया और उसे बेड पर लिटा दिया। संजीदा की चूत एक दम सूज चुकी थी। मैंने संजीदा से पूछा, “इस बार कैसा लगा?”
वो बोली, “इस बार चुदवाने में इतना मज़ा आया कि मैं बता नहीं सकती। मोनू ने इतनी बुरी तरह से मेरी चुदाई की है कि मैं इसका धक्का बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। इस बार की चुदाई ने मेरे जिस्म का सारा जोड़ हिला कर रख दिया!”
मैंने कहा, “अब तो खुश हो?”
वो बोली, “हाँ, अब मैं बहुत खुश हूँ!”
अगले दो दिनों तक रशीद साईट पर अकेला ही गया। मैं संजीदा और मोनू के साथ घर पर रही ताकि संजीदा दिल भर्र कर मोनू से चुदवा सके। मोनू ने दो दिनो में सोलह मर्तबा संजीदा की चुदाई की। संजीदा की चूत का मुँह एक दम खुल चुका था। लेकिन उसे अब भी चलने फिरने में दिक्कत हो रही थी। उसकी चूत मोनू से चुदवा-चुदवा कर एक दम सूज गयी थी और किसी डबल-रोटी की तरह फूल चुकी थी। उन दो दिनों में मैंने मोनू से एक बार भी नहीं चुदवाया, केवल संजीदा ही चुदवाती रही। मैं भी चुदवाने का खूब मज़ा लेना चाहती थी।
मेरे मन में ख्याल आया कि मुझे किसी दूसरे मर्द का इंतज़ाम कर लेना चाहिए। तभी हम दोनों चुदाई का खूब मज़ा ले पायेंगी। तीसरे दिन मैं रशीद के साथ दूसरी साईट पर गयी। वो साईट एक आदिवासी इलाके में थी। संजीदा और मोनू घर पर ही थे। मैंने उस साईट पर भी एक आदमी देखा। वो आदिवासी था और उसका रंग एक दम साँवला था लेकिन था बहुत ही हट्टा कट्टा। उसका लंड मुझे मोनू के लंड से भी मोटा और लंबा लगा। मैंने रशीद से उसे भी घर पर काम करने के लिये रखने को कहा। रशीद ने उससे बात की तो वो राज़ी हो गया। उसका नाम झबरू था। वो हमारे साथ घर आ गया।